Saturday 8 February 2020

रेखा रे रेखा - अरुण कुमार निगम

“रेखा रे रेखा”……

(छत्तीसगढ़िया मन बर छत्तीसगढ़ी आलेख)

रेखा…...ए शब्द ला सुनके हिन्दी सिनेमा के खूबसूरत हिरोइन के सुरता आगे का ? मँय ओ रेखा के बात नइ करत हँव, गणित के रेखा के बात करत हँव। स्कूल के जमाना मन-गणित ले चालू होइस फेर अंक-गणित, बीज-गणित संग जूझत-जूझत रेखा-गणित तक आइस। रेखा-गणित मा गुरुजी पढ़ाए रहिस कि रेखा दू किसम के होथे। सरल-रेखा अउ वक्र-रेखा। सरल-रेखा के परिभाषा रहिस - दू बिंदु के बीच के कम से कम दूरी ला सरल-रेखा कहे जाथे। स्कूल छूट गे। कॉपी-किताब छूट गे। रेखा-गणित के कम्पास के संगेसंग स्केल, प्रकार, चाँदा, गुनिया, सीस अउ रबर तको छूट गे फेर रेखा के संग नइ छूटिस।

जिनगी मा जेती देखव तेती रेखा च् रेखा दीखथे फेर गुरुजी के बताए वो दू बिंदु नइ दिखैं जेकर बीच मा कम से कम दूरी नापे नापे जा सके, तिही पायके ये जमाना मा सरल-रेखा नइ दिखय। भाई-भाई के बीच, बाप-बेटा के बीच, पति-पत्नी के बीच, अड़ोसी-पड़ोसी के बीच, कहूँ मेर नाप के देख लव, कम से कम दूरी वाले सरल-रेखा नइ दिखे। हाँ, दिखावा बर कहू तो दुनों बिंदु जरूर एक दिख जाथे फेर ये आँखी के भरम के सिवा कुछु नइये। रेखा के बात चलिस तो लक्ष्मण-रेखा के घलो सुरता आगे। पंचवटी मा रेखा के भीतरी मा सीता मैया अउ रेखा के बाहिर मा साधु के भेस धरे रावण। ढोंगी साधू ऊपर सीता मैया भरोसा करके लक्ष्मण रेखा ला पार कर डारिस। बाकी के किस्सा ला आप मन जानत हव।

आज घलो अमीर-गरीब के रेखा खिंचाए हे। देश के आजाद होए के बाद अपन संविधान लागू होइस। हर नागरिक ला समान अधिकार मिलिस फेर अमीर-गरीब के परिभाषा कोन गढ़ डारिस ? मनखे-मनखे के बीच मा रेखा कोन खींच दिस ? अतको मा मन नइ माड़िस तब गरीबी-रेखा के नामकरण होगे। लोकतंत्र के एखर ले बड़े मजाक का हो सकथे कि इहाँ के स्वतंत्र नागरिक ला गरीबी-रेखा के कार्ड बनाना जरूरी होगे। जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन - लोकतंत्र के इही तो आय परिभाषा। का इही दिन देखे बर हम जन प्रतिनिधि के चुनाव करथन ? हमन जन प्रतिनिधि मन ला ये सोच के वोट दे रहेन कि एमन जनता के सेवा करहीं।कुर्सी मा बइठे के बाद इंकर तीने काम रहि जाथें - शिक्षा, स्वास्थ्य अउ सुरक्षा । एखर अलावा हमर कहे अनुसार सरकार चलावँय। लेकिन उल्टा होगे। कुर्सी मा बइठ के इन मन राजा होगें अउ इन मन ला कुर्सी मा बइठइया मन धुर्रा माटी।

गरीबी रेखा के कार्ड बनवावव, अमका कार्ड बनवावव, ढमका कार्ड बनवावव तब ये मिलही अउ वो मिलही। अच्छा एक बात अउ… गरीबी-रेखा कहे ले स्टैण्डर्ड नइ लागे तब ओखर अंग्रेजी मा नामकरण कर दिन “बी पी एल कार्ड”। ए कार्ड ला बनाने वाला मन खुदे नइ जानँय कि बी पी एल काला कथें। अजीब रिवाज चलत हे हमर देश मा। अपन जनता के सुध नइये अउ अमेरिका, जापान जइसन आने-आने देश ला नेवता देवत हें कि हमर इहाँ आवव,नवा नवा कारखाना अउ उद्योग लगावव। हमन सस्ताहा मजदूर होगेन। अपने देश मा आने आने मन ला मालिक मानत रहिबो। माने मालिकाना हक बिदेसिया के अउ हमन कुली-कबाड़ी। कभू सुरता कर लव कि गाँधी बबा हर बिदेसी कपड़ा के होली काबर जलाए रहिस?

कोनो चाँउर दे के काहत हे - *चल रे - खा* । कोनों चप्पल बाँटत हे, कोनो साइकिल बाँटत हे त कोनो लैपटॉप अउ मोबाइल बाँटत हे। अब तो नगदी रुपिया घलो खाता मा जमा करे के घोषणा होवत हे। हमरे पइसा ला हमीं ला बाँट के एहसान जतावत हे। झन दे भइया चाँउर, चप्पल, साइकिल, मोबाइल अउ लैपटॉप झन दे। किसान मन के खेत मा पानी भर के व्यवस्था कर दे, बाकी इही किसान मन अपन अपन गाँव मा ये सबो जिनिस ला बिसाए के लाइक हो जाहीं अउ बखत परे मा अपन कमाई ले बाँट तको दिहीं।

आप मन सोचत होहू कि बात तो रेखा के करत रहिस अउ रेखा कोन डहर भटक गे ? मन के पीरा हे भइया। पीरा मा बड़े-बड़े मन भटक जाथें, मोर गिनती कहाँ हे?
भटकाव आए जाथे भाई, जब “भारत” हर “इंडिया” बन जाथे, तब भटकाव आथे,जब “गरीबी रेखा” हर “बी पी एल” बन जाथे, तब भटकाव आथे। जब जन-सेवक हर एम पी, एम एल ए, मिनिस्टर, सी एम, पी एम बन जाथे, तब भटकाव आथे।

हाथ के रेखा, माथ के रेखा, पाँव के रेखा पढ़इया के कमी नइये, फेर लोकतंत्र बर किसान के चेहरा के रेखा ला पढ़ने वाला चाही, मजदूर के हाथ मा सुख के रेखा खींचने वाला चाही, बी पी एल के रेखा ला मिटाने वाला चाही। बिदेसी मन ला नेवता दे के जघा अपने बलबूता मा अइसन कारखाना अउ उद्योग लगाने वाला चाही जउन मा चेहरा के झुर्री मिटाए बर नइ, भारत के जनता के चेहरा ले चिन्ता के रेखा मिटाए वाला फेसक्रीम तैयार हो। जनता ला घलो अब तिर्यक रेखा बने ला पड़ही जउन हर दल के समानांतर रेखा ला अइसन काटय कि एकांतर अउ सम्मुख कोन असन अमीर अउ गरीब, बराबरी मा आ जावै।

- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)