Wednesday 30 December 2020

साज श्रृंगार* आभूषण


 साज श्रृंगार* आभूषण


नरी म-सुर्रा, दुलरी, तिलरी,औरीदाना, पुतरी, संकरी, हमेल, गहूँदाना, कलदार,हंसाली, ढोलकी, तिलरी,सूता, मंगलसूत्र, रेशम डोर,चैन,हार,रुपिया,


आलता

कटहर

पहुँची

बनुरिया


कान म-खिनवा,ढार, बारी, खूंटी,लुरकी, तरकी, फूलसँकरी,लवंगफूल, करन फूल, झूमका,


सूता

बिछिया

नाक-नथनी,फुल्ली, नकबेसर,बुलाक, सर्ज़ा, नथ,लवंग,फुल्ली,बाली, बाला, चुटकी


पाँव म-टोंडा,पायल,साँटी,

माँग टिका


 कलाई म-ऐठी,टरकँउवा,पटा, चूड़ी, ककनी,हररँइयाँ


मुंदरी(छपाही, देवराही,भँवराही) 

माहुर

चूड़ी

बिंदी

काजल

क्लिप

करधन

नागमोरी



नखपालिश

कंगन

गजरा

फीता

फुंदरा

लाली

खोपा फूल

चाबी खोचना


मांगमोती

पैजन

बेनीफूल


बघनखा,ठुमड़ा,मठुला,ताबीज,

मुंगुवा-बच्चों का आभूषण


चुरवा, बाली, कंठी, रेशम डोर-पुरुष मनके आभूषण


सुरता-संस्मरण : श्रद्धेय लाल राम कुमार सिंह*



 

*सुरता-संस्मरण : श्रद्धेय लाल राम कुमार सिंह*


सत्र 1972-73...हायर सेकेंडरी पास करके कालेज मा दाखिला….नवा नवा शउँक, रेडियो कार्यक्रम मे हिस्सा लेहे के...आकाशवाणी रायपुर अउ श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन के विदेश विभाग। ये दू रेडियो स्टेशन अइसे रहिन जेमा रेडियो अनाउंसर अउ रेडियो श्रोता के बीच मा एक मया के रिश्ता रहिस। रहे बर विविध भारती अउ आल इंडिया रेडियो के उर्दू सर्विस घलो रहिस फेर फरमाइश मा नाम सुने ले ज्यादा के संबंध नइ रहिस। श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन के विदेश विभाग मा वो जमाना मा मनोहर महाजन, विजय लक्ष्मी डिजेरम, दलवीर सिंह परमार, शीला दीक्षित, इंदिरा हीरानंद मन रहिन। आकाशवाणी रायपुर मा बरसाती भैया (केशरी प्रसाद बाजपेयी), किशन गंगेले, मिर्जा मसूद, कल्पना यदु अउ लाल राम कुमार सिंह के सुरता आथे। वो रेडियो के बुलंदी के जमाना रहिस। देश भर मा रेडियो श्रोता संघ के भरमार रहिस। हमरो मोहल्ला के युवा मन विक्रांत रेडियो लिस्नर्स क्लब के स्थापना करे रहिन। रेडियो मनखे मन ला जोड़े के काम करत रहाय। दूरदर्शन आइस तब सब झन दूर-दूर होगे। दुरुग, भिलाई, रायपुर, राजनाँदगाँव अउ बिलासपुर के रेडियो श्रोता मन के एक दूसर के शहर मा आना जाना, मेल मिलाप साल भर चलत रहाय। दुरुग अउ भिलाई वाला मन बर "मैत्री गार्डन" मेल मिलाप के मुख्य केंद्र रहिस। भेंट के भेंट अउ पिकनिक के पिकनिक हो जात रहय। 


अइसने दुरुग भिलाई के श्रोता मन के मैत्री गार्डन म एक बैठक के दौरान आकाशवाणी रायपुर के अनाउंसर श्री लाल राम कुमार सिंह जी के संग पहिली भेंट होए रहिस। उमर के अंतर रहे के बावजूद उनकर नम्रता अउ सादगी मन मा पइठ गे। उँहचे हमन उन ला अपन मोहल्ला, शिक्षक नगर मा आये के नेवता दे डारेन अउ लाल राम कुमार सिंह जी अगला हफ्ता मा आये के वादा घलो कर डारिन। सिरतोन मा अगला हफ्ता मा उन मन हमर मोहल्ला मा पहुँच गिन अउ हमन बाकी संगी मन ला बुला डारेन। कुछ रेडियो के बात होइस तहाने उन मन पूछिन कि आप मन खाली रेडियो मा फरमाइश भेजथव कि साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र मा घलो कुछु करथव। हमन अपन अपन बारे मा बताएन। जब उन ला बताएंव कि महूँ कविता लिखथंव तब मोला आकाशवाणी केन्द्र मा आये के निर्देश देइन। उँकरे कारण सत्तर के दशक के मध्य मा मोला आकाशवाणी रायपुर से कविता पढ़े के अवसर मिले रहिस। अइसन सरल व्यक्तित्व रहिस श्रद्धेय लाल राम कुमार सिंह जी। 


लाल रामकुमार सिंह के जनम 27 अगस्त 1937 के होइस। उनकर संबंध खैरागढ़ के राज परिवार संग हवय। राज परिवार के सदस्य रहे के बावजूद उनकर बोली या व्यवहार मा कहूँ रौब या घमंड नइ रहिस। उँकर विनम्रता उँकर बड़प्पन के प्रतीक रहिस। 1971 ले 1995 तक आकाशवाणी रायपुर मा अपन सेवा प्रदान करिन। साहित्य, संगीत अउ लोक संस्कृति के वृहद ज्ञाता रहिन। सेवानिवृत्त होए के बाद घलो आकाशवाणी केन्द्र के मया नइ छूटिस। नवा अनाउंसर मन ला उद्घोषणा के बारीकी समझावँय। जब भी आकाशवाणी केन्द्र जावैं, जम्मो झन ला अपन डहर ले चाय जरूर पियावँय। छत्तीसगढ़ के अनेक प्रतिभा मन ला उनकर कारण पहिचान मिलिस। अइसन मनखे के जाना छत्तीसगढ़ बर अपूरणीय क्षति हे फेर अनेक झन के व्यक्तिगत क्षति घलो हे। कई झन उनला आकाशवाणी रायपुर के पर्याय घलो कहिथें। भगवान से प्रार्थना करथंव कि उँकर आत्मा लाँय शांति प्रदान करे अउ शोकाकुल परिवार ला ये दुःख वहन करे के शक्ति प्रदान करे। 


*अरुण कुमार निगम*

 

Tuesday 29 December 2020

अँगना दुवारी बारी बखरी अउ बाग बगीचा के *फूल*

 अँगना दुवारी  बारी बखरी अउ बाग बगीचा के *फूल*


चंदैनी गोंदा

दसमत

फाटक फूल

खोकमा फूल

मोंगरा

सेवंती

मोकैया फूल

सूँतई फूल

काँसी फूल

बैजंत्री फूल

गुलाब

सदा सोहागी

बिच्छी फूल

डगर फूल

चिरैया फूल

मंदार फूल

बेला फूल

कागज फूल


कनेर फूल

तरोई फूल

कमल फूल

रातरानी फूल

सरसो फूल

सूरजमुखी फूल

गंगादूबीफूल

परिजात


झाँइँझुँई

चाँउर गोंदा

मधु मालती

जासवन

दौना फूल

कोंहड़ा फूल


केकती फूल 

धतूरा फूल 

पारिजात

अपराजिता 

सुपारी फूल 

राखी फूल/झिनिया

रातरानी

जूही

चमेली

डहेलिया 

दुध मोंगरा

तिरैंया 

कलाइंचू

दसमत/गुड़हल

गुलाल

मुर्गा कलगी

केशरिया।

लीली

लाड़ू गोंदा 

चँदैनी गोंदा 

अंग्रेजी गोंदा

दिया फूल 

गजेनिया 

झरबेरा

पेनसी

साल्विया


संग्रहण-छन्द के छ परिवार

Sunday 27 December 2020

बर बिहाव* ले सम्बंधित शब्द

*बर बिहाव* ले सम्बंधित शब्द 


मंगरोहन- आमा या डूमर के लकड़ी के मड़वा तीर गड़े रइथे

पीढ़ही-आमा या डूमर के लकड़ी जेमा तेल हरदी चघत बेरा दूल्हा दुलहिन मन बइठथे।

चुलमाटी-

मायन-

खोर भाँवर

टुकना

चरिहा

धुकनी

बिजना

माँदी/पंगत

फूफू- ददा के बहिनी

फूफा - बुआ के पति

सटका-वर अउ वधु पक्ष ले परिचय वाले आदमी

मउर- ये दूल्हा दुलहिन के मूड में बंधे रथे।

पचहर-दाइज के पांच प्रकार के समान

पगराइत-

भड़ोंनी-

तेलचघ्घी-तेल हरदी चघत बेरा पहिरे कपड़ा

बराती गाड़ी

चौथिया

टिकावन

नेंग

दाहिज

सन्दुक पेटी

तेल हरदी

ड़ेढहा

पर्रा

परघवनी

भाँवर 

समधी भेट

पागा 

भवराही साड़ी

माईसरी

बूढीसरी

मंगरोहन

चीकट

नहडोरी

बिदा - विदाई

अम्मल - समय

समधी

समधिन

 सारा 

सारी

कलसा

 दीया

 नाँदी 

 नलकी वाला करसा सिंघोलिया 

कोपरा

बाँस

पंडित 

दूल्हा 

दुलही

बाप 

महतारी

नाउ 

नवइन

लाई

सेंदूर 

सील

चंगोरिया

पींऊरी

सबो सिंगार के चीज

सगा पहुना

सोहाग के सबो चीज

सोहगनीन

सखी सहेली 

पान 

हरदी

सुपाड़ी

गौर गणपति 

लाल कपड़ा 

बाजा रूंजी

झाँपी 

झाबा

कटारी

मंगल सूत्र 

धान

नरियर

फलदानी कपड़ा

मिठई 

कलेवा 

खाजा 

बूंदी लाड़ू

करी ला लाड़ू

ममा 

मामी

भाई 

नाना 

नानी 

दादा 

दादी

पटा 

कारी चूरी

आमा लकड़ी

घीव 

साँखला


ढेरहीन

ढेरहा

सात सुवासिन

मंगरोहन

जोत कलशा

झाँपी

पर्रा

चिक्कट 

जोरन

सील

आमा लकड़ी

लाई

चढाव गहना

मुड़ढक्की

बंदन सुधरौनी

देवतला

परघनी 

मायन

नहडोरी


बिजना

सिंघोलिया

चुकिया

गवन पठौनी

सुवासिन

सुवासा

करसा नाँदी

बइसकी

बइटकी

लेठवा

लोकड़हीन

तेलचग्घी

मुँड़ढ़क्की

पिंउरी लूगरा

कद

डंठजोर

सुपली

चुरकी

बंदन 

रोली

गुलाल

मायमउरी

मायसरी

माय पहिरावन

पहिरावन

फलदान

सुपारी भेट

नरियर सुपारी भेट

समधी भेट

बरतिया

घरतिया

तेलमाटी

चुलमाटी

नकटा नाच

मड़वापूजा

गड़वासरोनी

दुल्हा मउर

दुल्ही मउर

पगफेरा

बरात बिदा

बेटी बिदा

बर बलाव

कइना बलाव

साराजाँवर

पाणीग्रहण

कौड़ी खेल

कंकन म उर

कंकन बंधइ

कंकन छोरइ

लोचन पानी

गठजोराव

गड़जराव

पूछनी

सेंदूर पोछउनी लुगरा

बिहाव लुगरा

सतलड़वा

सात बचन

सतभँउरी

सतभाँवर

मानदान

लाईलवा

बिहइ चउँक

ड़डा चउँक

चिकट लुगरा 

चिकट धोती

हरदाही

चिकट हरदाही

दौतेला

परघनी

परछन

मुँहदेखउनी

नहडोरी

घरनींगनी पूजा

झलमला

जेवनास

जेवनासा

बर पूजा

कइना पूजा

ममाससुर मुँड़ढ़क्की

जेठ मुड़ढ़क्की

बर मुँड़ढ़क्की

सेंदुरदान

सेंदुर सुधरउनी

नेंगहा लुगरा

नेंगहा धोती

नेंग जोग

कुसुम लोटाना

ठाढ़ सोहाग

बिलरी (दुलही)

करसा कलउरी

नाँदी

चुकिया

द्वाराचार

द्वारपूजा

मउर सँउपइ

देवनेवता

पीतर पूजा

मातृका पूजा

धोबनिन सोहाग

नवाइन सोहाग

कुम्हारीन सोहाग

नवाइन

नाउ

बजनियातम

नचनिया

नचकाहरा

संग्रह-छंद के छ परिवार

नचकाहरीन 

गड़वा बाजा

बैंड बाजा

डी.जे. बाजा

डुमर डारा

मड़वा 

लाड़ू बरा

Saturday 26 December 2020

छत्तीसगढ़ के लोक खेल

 लइका मनके खेल अउ खिलौना के 


ढँकेल गाड़ी।

बिल्लस

गोंटा

गड़गड़ी

नादिया बैला माटी अउ लकड़ी के

गेंड़ी

गुलेल

कागज के डोंगा

सरफल्ली 

पिठ्ठूल

ढेलुवा

नदी पहाड

रेलेरेश

लुकउला टीप

गिल्ली डंडा

बितंगी कूद

टायर दउड़

घड़घीसलाC

अटकन बटकन

घरघुँदिया

पुतरी पुतरा बिहाव

तिरी पासा

बाटी भौरा

रस्सी कूद

लोहा गडउल

गोबर  लूउकल

रेश टीप

पोसम पाल

नदी पहाड़

सोना चांदी

पल्ली

सुर्रा

घरघुन्धिया

फुगड़ी

खोखो

कबड्डी

परी नचउल

सगरी भतरी

बिहतरा खेल पुतरा पुतरी के

लिल्ला खेल

पढहउल खेल

फादा खेल

माटी के बंगाला

चुकिया खेल

बिल्लस

बर के ब्नउँवा में झूला खेल

गुलेल

गड़गड़ी,भँवरा, बाँटी, गोंटा दोहरावत

नन्दिया बइला

गेंड़ी

कागज के डोंगा

घांदी मुंदी

रेती मा घर बनउल

खोन्द्ररा,खोलखा बनउल

चूड़ी लूउकल 

ढक्कन जितउल

तास के पत्ता से 3,2,5 अउ चिपों गदही के खेल 

डंडा पचरंगा

गुल्ली डंडा

पानी मे छू वउल

खंभा छू वउल

पुन्नी भात बना खा के सँगी मन संग  नचउल

तिग्गा 

भोटकुल

तिरिचंगा

पाली

तिरिपासा

ड़ाँडखिचउला

फुगड़ी

पिट्ठूल

खोखो 

कबड्डी

लोकचोक

पुकखेल

आँधीचौपट

रेलेरेस

कुर्सीदौड़

तउरइ

गिल्ली ड़ंडा

छू छूव उल

ढ़ेलवा झूलना

रुख झूलना

चुकिया पोरा

चोर पुलिस 

मुड़ी भर पानी

फोटो जितउल

साइकिल दउड़

अॅधियारी अंजोरी

धूप छांव के खेल

पोरा जांता

पताड़ी के मार

तासपत्ती के खेल

घोरघोर रानी

तोर घर मोर घर कते करा हे।

सगा पहुना

बोरा दौंड

दरगना ( तालाब या नदी के पार ले पानी में कूदना। )

शतरंज

आमा गोही

जनउला

कुकुरभूँक्का

दहला पकड़

तीन दु पाँच

चरफट्टी

प्रस्तुति-छ्न्द परिवार

Friday 25 December 2020

छत्तीसगढ़ के प्रमुख रूप से देशी धान के नाम


छत्तीसगढ़ के प्रमुख रूप से देशी धान के नाम 

सफरी

माँसुरी

गुरमटिया

विष्णुभोग

महामाया


दुबराज

जौफूल

सरना

बीडी    सफरी

ककेरा

रानी काजर  /चेपटी

तुलसी मंजरी

लुचई

बाॅसमती

एच एम टी

एक हजार दस

डवँर

पसहर

लक्षमी भोग


श्रीराम

तुलसीमोंजरी

महामाया

जीरा फूल

बंगला

लुचई

गर्राकाट

भूलऊ


*तुलसी भोग*

*कालका 64*

*टेड़गी सफरी*

*काला जीरा*

*धनिया धान*


परी

काली मूँछ

सरोना



दिलखुश

भतपहरी

खेत खार ले सम्बंधित छत्तीसगढ़ी शब्द

 खेत खार  ले सम्बंधित छत्तीसगढ़ी शब्द


मेड़ो

मेड़

धरसा

गाड़ा रवन

लमती डोली

टेंडगी डोली

बाहरा डोली

टेपरी

टिकरा

मटासी माटी

भर्री डोली

कन्हार माटी

डोरसा माटी

मुरमी/मुरुम/कुधरिल

गाँसा

पखार

अपासी

जेठासी

बाहरा

सुतिया

मेंड़रा खार

गुरूसही

भगदा

चऊँक

चउदाहा

चनवारी

मसरिहा

बाउली डिही

डोंगरी

कछार

आमा डोली

ऊपर कन्हार

बीच कन्हार

बाहरीन डोली

माता डोली

चुहरा डोली

मटासी खार

ठाड़गा बहरा

कुँआँ खार

धनहा खार

चनौरी खार

राहेर पार

खवा पार

पथरा डोली

बहेरा खार

जलदा खार

उतेरा

ओनहारी

परहा

बोता

लाइचीपी

हरिया

कोंटान

बढ़ावना

करपा

सेला/कुँड़

सरार खार

चंदिया खार

तरिया खार

 बरछा डोली 

दरहा खार

तीन डोलिया

भाठा डोली 

गणपार


कोपर 

बियासी

असकर

दूबांहा

तिगुन

लेटा

भर्रा

बत्तर

ढेलाही

गउँहारी

बँधिया

बँधियाखार

बरछाबारी

अमलिहाखार

लिमहाखार

सोर्रा 

सोनबरसा

सोनबाहरा

सोनकर बाहरा

गोड़ धोआ

टेड़गी

सूल्लू

लमता

लीमाही

डबर्रा

भड़ंँगा

उटँगा

लटकन्हार

गँउहारी

चनाही

अनबरसा

बहिरगँवा

बाहरा

चूहरी

झूरझूरी

मटासी

चीकटी

सारखार

टिपुर्री

पुरौनी

झोरगा

पठर्रा

पठारी

गोटर्री

बंगाबारी

बंगालाखार

केराखार

गोंदलीखार

चनाखार

चकरी

चकोलन

टिकरी

टिकराभर्री

भाँठाभर्री

रसनहा

सरभर्रा

गवँरसा खेत

पिछोतीखार

डोंगिया खार

नहरी 

गरौसा 

भाॅठा

गभ्भार

उरकहा

अपासी

बंजर

खुर्रा

बोता 

उतेरा

दू फसली

जोताई 

बोवाई

निंदाई 

जगाई

लुवाई 

मिसाई

कोप्पर

खुड़दइ

खरही

भराही गाड़ा

मड़वा

ब्यारा

कुँदरा

रास

बेलन

पैर

बीड़ा

करपा

भारा

हमर जिनगी मं सिनेमा के प्रभाव -सरला शर्मा

 हमर जिनगी मं सिनेमा के प्रभाव -सरला शर्मा

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    मनसे अउ आने प्राणी मं सबले बड़े अंतर ए होथे के ओहर सीखथे अउ जनम भर सीखत रहिथे कभू सुन के, कभू पढ़ के ,त कभू देख के फेर सीखे ज्ञान के उपयोग करथे गुन , विचार करके । मिट्ठू असन रटय भर नहीं न बेंदरा असन नकल करय । सीखे के ये प्रक्रिया ल विद्वान मन कहिथें दृश्य श्रव्य शिक्षण प्रक्रिया । 

   पहिली नाटक , प्रहसन , गम्मत , नाचा ल देख के बहुत अकन बात सीखे बर मिलय फेर आइस सिनेमा सुरुआती दौर मं मूक सिनेमा रहिस फेर सवाक सिनेमा देखे बर मिलिस अब तो डिजीटल सिनेमा , टी . वी के जमाना हे । सिनेमा देख के बने , मइहन दुनों सीखे बर मिलथे जेकर जइसन रुचि । 

महूं सिनेमा देखत आवत हौं धुर लइकाई ले अब तो सबो के सुरता घलाय नइये फेर एकठन सिनेमा " कोशिश " देखे रहेवं जेला कभू भुलाए नई सकवं । संजीव कुमार हीरो अउ जया भादुड़ी ( बच्चन ) हीरोइन रहिन , दुनों झन कोंदा , कोंदी रहिन पूरा सिनेमा मं एक शब्द नई बोलिन फेर जीवंत अभिनय करे रहिन , आंखी मं भरे भाव , मुसकियावत ओंठ , हाथ के इशारा ग़जब के रहिस । पहिली दृश्य जब संजीव कुमार अपन नांव बताथे  हरियर मिर्चा ल उठा के परोसिन दादी के गोड़ मं मढ़ा देथे त दीना  पाठक हांस के कथे " हरि चरण " जगजग ले मुसकिया के मूड़ हलाथे संजीव कुमार .....। 

   दूसर दृश्य जब उनमन के लइका जनमथे दुनों के खुशी के ठिकाना नई रहय फेर लइका रोथे तेला तो उनमन सुने च नई सकयं ...नवा नवा महतारी बाप बने मनसे पेट भर डेरा जाथें के उनमन के लइका घलाय कोंदा तो नइये ? संतान के भविष्य के संसो , अपन कमी ल लइका के उपर असर तो नई परगे के डर के अनुभूति के अभिनय दुनों कलाकार के जीवन के सबले बढ़िया अभिनय कहे जा सकत हे । दौड़त हपटत डॉक्टर तीर पहुंचथें जइसने डॉक्टर समझाथे के लइका तो नॉर्मल हे, रोवत तो हे तुमन सुने नई पावत हव ओतका बेर के अभिनय महतारी बाप के संतोष , निश्चिंतता , लइका के भविष्य बर आश्वासन , डॉक्टर बर कृतज्ञता एके संग दुनों के आंखी मं झिलमिलाए लगथे । 

   कहानी आघू बढ़थे ...सिनेमा पूरा होथे फेर संजीव कुमार , जया भादुड़ी के अभिनय ल कभू भुलाये नई जा सकय त सिनेमा के कथानक , मूक बधिर मन के समस्या , समाज मं अइसन मनसे मन ल सनमान सहित स्वीकार करे के शिक्षा ...अद्भुत हे । इही सबके सेतिर  मैं कोशिश सिनेमा ल कभू भुलाए नई सकंव । 

   लोकाक्षर मंच ल धन्यवाद कि अइसन अनूठा विषय उपर लिखे के मौका मिलिस हे । 

सरला शर्मा

हमर जिनगी म सिनेमा के प्रभाव-सुधा शर्मा

 हमर जिनगी म सिनेमा के प्रभाव-सुधा शर्मा

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चलचित्र नाचा गम्मत के बाद अइस। नाचाा गम्मत म मनोरंजन के अलावा एक सीख भी राहय।कथा ,कहिनी लोककथा म समय बितावत मनखे बर मुक्का चलचित्र बहुत ही मजेदार रहिस हे। हाव भाव अउ अभिनय के साथ एक झन कहानी सुनावय अउ सफेद पर्दा म चलचित्र चलय। कई बार तो मोहल्ला म घलो गांधी जी के जीवन ऊपर सिनेमा देखे रहेन।

बोलत चलचित्र अइस त "अलीबाबा चालीस चोर" देखेन बहुत मजा अइस। हमर ऊर प्रभाव बताना हे त सबले मजेदार बात बतावत हंव। हा हा हा। लइका रहेंव त कलाकार मन खाना खाये अउ चाय पीयंय त मोर रोना शुरु हो जाये के मोला भी उही चीज होना अउ मैं र्दा डआहर भागे के कोशिश करंव। मोर मां बहुत परेशान हो जाये। 

हमर समय म चूड़ी पहिरे के ज्या्दा प्रचलन रहिस हे। चलचित्र के नांव सुरता नइ आवत हे फेर दूनों हाथ म एक एक दर्जन चूड़ी पहिर के स्कूल जावंव। अंगुठी भी तरह तरह के पहिरन।

बॉबी सिनेमा के अइसे प्रभाव परिस के मैं बेलबॉटम ही पहिरत रहेंव। सबसे बढ़िया बात खादी के कपड़ा ले के स्वयं सीलत रहेंव।फुग्गा बांह के कुर्ता, लम्बा बाह के कुर्ता अउ मिनी स्कर्ट। मोर ऊपर पहनावा  के प्रभाव बहुत परीस।

नृतँय के शौक रहिस हे त कत्थक सीखेंव। जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली" के नृत्य के नकल करंव। वहीदा रहमान के फैन रहेंव त ओखर करे नृत्य, वैजंती माला, हेमामालिनी के बहुत नकल करंव।

उम्र के साथ साथ चलचित्र के कहानी के समझ विकसित होईस। जेन ल जनजीवन ले जोड़ के देखना शुरु करेंव। तब पता चलिस के ये सिर्फ सिनेमा नोहय। समाज से लेय गे विषय आये या फेर काल्पनिक कहानी आये। बलात्कार सरीख घटना, बैंक डकैती, खून, लूटमार ये सब ल फिल्म देखके सीखत हावंय अउ ओला अंजाम देवत हावंय।

अमोलपालेकर के अभिनय बहुत बढ़िया रहिस हे।  नदिया के पार फिल्म, काजल, खानदान, गाइड, बागबान पसंद केचलचित्र आये। बागबान तो एक सीख दिस के लाइकामन ल मरत तक कुछ नहीं देना चाही।

हास्य म खट्टा मिठा, पड़ोसन बहुत बढ़िया रहिस हे।

शालिमार भी बहुत बढ़िया रहिस हे।

हर फिल्म ले कुछ न कुछ तो सीख मिलबे करथे।मोला

मोला चलचित्र के नांव सुरता नाइ राहर कहिनी सुरता रहिथे।मैं अधीकतर आर्ट मूवी देखथंव।

मोरा भारतीय संस्कृति ले जुड़े पहनावा ही पसंद आथे त उही कलाकार अउ चलचित्र मन बने लागथे।

सुधा वर्मा

चल अकेला ,चल अकेला ,चल अकेला .., सरला शर्मा

 " चल अकेला ,चल अकेला ,चल अकेला .., सरला शर्मा

तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला ...। " 

    कोनो शब्द एती ओती हो गय होही त माफ़ी मांगत हंव ...फेर ए गाना के भाव हर नवा ढंग से मन ल मथ डारिस ..। सिनेमा के गाना  मन भी समय परे मं मन ल रस्ता देखाथे ...। देखव न ... कतका कन सरकारी , निजी चौपहिया , दुपहिया , त पैदल अवइया मन के मेला च लग गए रहिस मोर घर के पाछू वाला सड़क के बंगला मं ..सब  उधाउ होगिन । हव जी ...वर्तमान विधायक अरुण वोरा जी के अंगना मं दिवंगत मोती लाल वोरा के पार्थिव देंह ल आखिरी बिदा देहे बर लाने रहिन । जुड़ा गए देंह तो कुछु देखे , सुने सकय नहीं त कतका बड़ मेला लगिस के चार आदमी लटपट जुरिन तेकर ले तो जवइया ल कोनो लेना देना रहय नहीं ..। 

तभो जब उंकर देंह ल नदिया तीर दाह संस्कार बर लेगिन त मेला सिरा गे ...सुन्न पर गए हे मोहल्ला । तभे सुरता आइस अकेल्ला तो जाए बर हे लोगन के भीड़ , मेला के रिंगी -चिंगी , बाजा- रुंजी  , धन- दोगानी , हितू- पिरितू  , सब  छूट जाथे । जवइया संग कोनो , कुछु जिनिस नइ जावय ..इही हर चल अकेला ..गाना के मरम आय । 

    मोती लाल वोरा जी ल आखऱ के अरघ देवत हंव 🙏🏼

 *हमर जिनगी मा सिनेमा के प्रभाव*-अरुण कुमार निगम


सिनेमा के सुरता करव त अपन शहर अउ तीर-तखार में शहर के टाकीज के सुरता आ जाथे। टिकिट के खिड़की मा लंबा-लंबा लाइन लगे रहाय। पहिली टिकिट पाए बर झूमा-झटकी। टिकिट मिलिस तहाने युद्ध के विजेता असन चेहरा मा मुस्कान धर के सिनेमा हॉल मा खुसरे के लगलगी। सिनेमा हॉल मा लाइट बरे रहाय अउ रिकार्डिंग घलो होवत रहाय। जहाँ हेमन्त कुमार अउ गीता दत्त के गाए आनंद मठ फ़िल्म के आरती गीत "जय जगदीश हरे" या "आरती करो हरिहर की करो नटवर की भोले शंकर की,आरती करो शंकर की" बजिस माने मालूम हो जावय कि अब सिनेमा चालू होने वाला हे। बहुत बाद मा ये आरती के जघा "मैं तो आरती उतारूँ रे, संतोषी माता की" बजे लगिस। बस इही जमाना तक सिनेमा के असली फीलिंग आवत रहिस। अब तो ऑनलाइन टिकिट बुकिंग अउ मल्टीफ्लेक्स के जमाना आगे। अब न सिनेमा देखे बर मन मा इच्छा जागे अउ न पहिली असन फीलिंग आवै। 


मोर उमर के शुरुआती सिनेमा के नाम "कण कण में भगवान", "सम्पूर्ण रामायण", हर हर गंगे जइसन धार्मिक फ़िल्म रहिस जेकर ले पौराणिक ज्ञान मिलिस। फेर मैं चुप रहूंगी, ससुराल, घराना, गृहस्थी जइसे पारिवारिक फ़िल्म देखेंव। एमा सामाजिक समरसता के ज्ञान मिलिस। हातिमताई, पारसमणि जइसे तिलस्मी सिनेमा कल्पना शक्ति के विकास करिस। किशोरावस्था अउ तरुणाई के शुरुआती सिनेमा मिलन, संगम, गीत, आराधना, अमर प्रेम, बॉबी के कारण मन मा श्रृंगार जागिस। तेकर बाद कला फ़िल्म के दौर चलिस ओमपुरी, स्मिता पाटिल, नसरुद्दीन शाह,दीप्ति नवल जइसन कलाकार के फ़िल्म के कारण विसंगति डहर चिंतन होइस। फेर नाना पाटेकर के फ़िल्म मन अलगे प्रभाव डारिन। जुन्ना फ़िल्म देखे के शौक बाढ़िस - राजकपूर के आवारा, आह, अनाड़ी, बरसात, जागते रहो, कन्हैया, छलिया, जिस देश में गंगा बहती है, श्री चार सौ बीस, दिल ही तो है, सुनहरे दिन आदि, गुरुदत्त के चौदहवीं का चाँद, प्यासा, कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम आदि, व्ही शांताराम के फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ, नवरंग, गीत गाया पत्थरों ने, सेहरा आदि, ऐतिहासिक फ़िल्म मुगलेआजम, अनारकली, ताजमहल आदि देख के कला के प्रति रुझान होइस। शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी अउ नीरज जइसे गीतकार म फिल्मी गीत मा साहित्य के ऊँचाई मोर काव्य लेखन ला प्रभावित करिस। 


सिनेमा देखना तो कई बछर पहिली छूटगे फेर तइहा के जमाना के फिल्मी गीत मन आज घलो एक नशा बरोबर तन मन ला अथाह सुख देथे। सहगल, सी एच आत्मा, पंकज मालिक, राजकुमारी, जोहराबाई अम्बालावाली, शमशाद बेगम, हेमन्त कुमार, तलत महमूद, मोहम्मद रफी, सुरैया, चितलकर, लता मंगेशकर, मुकेश, महेंद्र कपूर, आशा भोंसले, सुलोचना कदम, कमल बारोट, किशोर कुमार, यशु दास जइसन अनेक सुरीला गायक-गायिका मन भारतीय सिनेमा मा अइसन अइसन गीत गाइन हें कि सुने बर जिनगी कम पड़ही। अनेक गीत मन जिनगी ले जुड़ गेहें। कभू लड़कपन के सुरता मा लेगथें तो कभू किशोरावस्था के नादानी ला बताथें। कभू ककरो बिहाव के सुरता आथे तो कभू कोनो गुरुजी के सुरता देवाथें। 


भारतीय सिनेमा के कुछ गीत भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन चुके हें। हर बरात मा ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे या नागिन धुन ऊपर नाच बिना बारात आगे नइ बढ़य। बिदाई के बेरा मा बाबुल की दुवाएँ लेती जा गीत, बिदाई ला अउ मार्मिक बना देथे। ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना, चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा, बिछड़े सभी बारी-बारी, दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ, जाने कहाँ गए वो दिन जइसे गीत सुनथंव तो बहुत झन दोस्त, रिश्तेदार अउ परिचित के अंतिम विदाई के सुरता आ जाथे। राखी के गीत बिना रक्षा बंधन, होरी के गीत बिना होरी के तिहार सुनसुनहा लागथे। जहाँ डाल डाल पर सोने के चिड़िया करती है बसेरा, ऐ मेरे प्यारे वतन, कर चले हम फिदा जानोतन साथियों, अपनी आजादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं, मेरा रंग दे बसंती चोला जइसन देशप्रेम वाला गीत के बिना हमर राष्ट्रीय पर्व नइ मने। प्रेम मा असफल प्रेमी जीव ला मुकेश के दर्दीला गीत सुहाथे। पहिली के जमाना मा छट्ठी के दिन छानी ऊपर पोंगा मा फ़िल्म के गाना बाजत रहाय। कहे के मतलब कि हमर जिनगी मा सिनेमा के प्रभाव कोनो न कोनो रूप मा दिखबे करथे। 


*अरुण कुमार निगम*

पुरखा के सुरता*-मिनेश साहू 🌷🌷

 🌷🌷 *पुरखा के सुरता*-मिनेश साहू 🌷🌷

         🙏  *नमन जोहार*🙏


छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़िया मनखे के स्वाभिमान ल जगाए बर गांव-गांव मा जा के छत्तीसगढ़ी भाखा मा सब विधा ला जोरे  रामायणाचार्य गोलोक वासी श्री मेहतर राम साहू जी छत्तीसगढ़,छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया बर अपन जिनगी ल बिसरइया,माटी ल महतारी मान देवइया किसान के पीरा-अभिमान के बखान करत कालजयी रचना ,गीत,कहिनी,कथा,कविता के रचनाकार अउ छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा बेटा रहिन स्व. श्री मेहतर राम साहू जी जेंखर 

जनम 1 जुलाई 1933ठउर-पांडुका (गरियाबंद जिला) मा होइस हे छत्तीसगढ़ी काव्य के छठवा दशक के बीच मा एकठन नवा सुरुज जइसन चमकत दिखिस ऐ वो बेरा रिहिस जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका के प्रकाशन चालू होय रिहिस हे।अउ वो बेरा सबले ज्यादा पत्रिका मा कखरो रचना छपै ता वो रिहिस पांडुका निवासी सर्व श्री मेहतर राम साहू जी, प्यारेलाल नरसिंह, चैतराम व्यास,उधौराम झखमार,अउ भागीरथी तिवारी जी, श्री साहू जी अउ व्यास जी चारों मुड़ा ले साहित्य के सबो विधा मा लिखत रिहिन हवै ओखर रचना मा एक डाहर गांव के जन जीवन ले कोनो विवशता अउ दैन्य भावना हा दिखै त दूसर डाहर नवा सुराज अउ आस्था के बिचार घलो दिखै। कोनो-कोनो जगहा हास्य ल घलो छूवत जावै।

    लगभग एक बच्छर चले के बाद छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका बंद हो गिस तब के बेरा मा ऐमन बहुते निराश हो गइन,अपन बोली भाखा के संग मा साहित्य ले लोगन मन के उछाह दिखत रिहिस वहू हा मुरझावत रहि गे । साहित्य तो लिखे जावत रिहिस फेर कोनो प्रचार-प्रसार के साधन नइ रिहिस ।तब रायपुर मा आकाशवाणी नइ रिहिस उही बेरा मा श्री चैतराम व्यास जी ल आकाशवाणी केन्द्र भोपाल म काव्यपाठ के नेवता मिलिस संगे- संग धीरे-धीरे श्री साहू जी जुरिन अउ छत्तीसगढ़ी के कवि के जेन काव्य के ममहई दिखे लगिस। गांव मा पले बढ़े गवंइहा जइसन दिखइया लागै, नांव मा घलो अपन देहातीपन लेकिन के धनी रिहिन जेन कुछ देखै सुनै उही भाव ल इमानदारी ले सब के आगू राखै, लोकगीत ले जुर के नवा कविता तक पहुंचइया पूरा काव्य- संघर्ष मा श्री मेहतर राम साहू जी के भागीदारी ल कभू भुलाए नइ जा सकै।

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना ले प्रकाशित "पंचदश लोकभाषा निबंधावली" मा सकेले "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य" मा डॉ सावित्री शुक्ल जी के संक्षिप्त टिप्पणी दिखथे.....श्री साहू जी हा समर्थ कवि हवै। "गोहार" रोवई नोहे, गीत आय" अउ सुख-सुख ऐखर प्रसिद्ध कविता आवै।...रोवई नोहे, गीत आय के पंक्ति आप मन के बीच मा राखे जात हे


पापी पेट बर,

ये संमुदर बर,

दू कौड़ी ले मंहगा होथन,

कतिक दुख उठाथन,

तब थोरकिन पाथन,

नस-नस के, हाड़ा-हाड़ा के,

गांठ-गांठ ह ढील होगे हे,

बासी खाथन तब पेट भरथे,

पसिया पीथन, प्यास बुझाथे।


कविता कोनो वर्ग,भाषा अउ क्षेत्र के लक्ष्य लेके नइ लिखे जावय।वो तो जुग के बानी हरै।जेमा जुग के अपन अलग अलग स्वरूप ल देखाथे। छत्तीसगढ़ी कविता के जनम मानवीय मूल्य अउ सत्य के आधार मा होय हे,इही कारन ले वो सामाजिक भाव मा सम्पन्न अउ सजे रहिथे,अउ एक डाहर सामाजिक विसंगति मा भावात्मक प्रहार करथे उहां दूसर डाहर आदमी के चेतना के स्तर ल विसंगति ले लड़े बर तैयार करथे।

कोनो कविता आज के यथार्थ ल सीधा साक्षात नइ करै त वो कविता बेकार हो जाथे...


कपट के तेल मा,

धोखा के दीया बरत हे।

गरीब-गंवार मनखे,

फांफा अस मरत हे।।


बादर ल धरे हे जर,

भुंइया मा फरे हे फर।

झन खाहू उल्टा रुख के फर ला,

कतको लठरे,

पिचकोलो ओखर गर ला हारौ झन हिम्मत।


श्री मेहतर राम साहू जी हा अपन कविता के माध्यम ले जीवन के यथार्थ चित्रण अउ विश्लेषण करै अउ समसामयिक अउ घटना,रिति-निती ल नि: संकोच अभिव्यंजना ले अपन आप बचा नइ पातिस।परिवेश अउ परिस्थिति ले उदगरे जीवन के निश्छल अभिव्यक्ति हवै...


टेटका ह,

रंगबदले बर,

कइसे भुलागे,

जनता-रसायन के,

चढ़ते साठ,

फक-फक ले पंडरागे।


जिहां-जिहां गुर,

तिहां -तिहां चांटा,

गुर सिरागे,

चांटा के रेम थिरागे।


जंगल के बरहा,

तने रिहिस गरहा,

फेर कइसे का होइस ते,

अपनेच सिंग मा,

फसगे अलकरहा।।


श्री साहू जी ले पेशा ले शिक्षक रिहिन बागबाहरा महासमुंद मा। कवि केवल अहंम के अभिव्यक्ति के आलेखन मा विश्वास नइ करै।


लेखन करम 1952 से सरलग

1965 म छःत्तीसगढ़ी म गज़ल कहे के प्रयास 

सँन - 1976 म आकाशवाणी रायपुर ले गीत  के प्रसारन 

अब तक छपे 13 छःत्तीसगढ़ी किताब

कौवा लेगे कान ला(काव्य संग्रह)

होही अँजोर (गीत संग्रह)

मया के बंधना (एकांकी संग्रह)

हमरेच भीतरी सब कुछ हे(कहानी संग्रह)

बूड़े म मोती मिलथे जी(कथा संग्रह)

सब परे हे चक्कर म (गम्मत)

कैकेयी (लघु प्रबंध काव्य)

रतना बपरी ( खंड काव्य)

राजिम लोचन ( कहानी )..

आदि किताब परकाशीत हे.

मुख्य गीत

सुवा लहकत हे डार म

सारस बोले रे

झुनकी तरोई रे भाई

मोंगरा फूल फूलगे

लक्ष्मण के रेखा पारे ल परही

तंहुँ जाबे महुँ जांहु राजिम मेला

झूम झूम नाचौ

इंखर अलावा अउ अतेक सुघ्घर जाने कतकोन गीत,कविता,कहिनी लिखिन जेन हर आज घलो गुने बर बिवस कर देथे एकर सेतिर काबर कि जइसन चिंतन आज छत्तीसगढ़ के सम्मान ,अस्मिता,पहिचान बर उदिम चलत हे उन सब ल हम साहू जी के कविता म देख सकत हन सँगे-सँग उंखर रचना म समाज ल संभले,उबरे, जागे अउ चेतवनी बर सोरियावत अब्बड़ अकन भाव देखे बर मिलथे जेन उंखर दूरदर्शिता ल बतावत हे कि कइसे चिंतन करत रहिन होही बाबू जी हर |

1980 म सांस्कृतिक लोक कला संस्था तुलसीदल लोक कला मंच खोपली बागबाहरा के स्थापना,संस्थापक अध्यक्ष-लोकोत्सव /महोत्सव म छःत्तीसगढ़ी लोक विधा ला लेके अनेको प्रस्तुति , अनेको सम्मान,पुरस्कार।

 गोलोक वासी मेहत्तर राम जी साहू जी के कलम हर भाव, दिशा अउ दशा बर चले हावय उंहे उंखर गीत के जउन मिठास हे ऊहू मन ल मोह लेथे जेन अकाशवाणी रइपुर ले बाजत रहिथें कई ठिन मुक्तक जेन अंतस ल टटोलत लागथे आपके साहित्य के बिषय,भाव अउ सन्देश बरबस ही हिरदय ल छू लेथे बागबाहरा के क्षेत्र म आज ले उंखर लोकगीत,साहित्य पुरवाई के सरूप म  बनके समाए हावय जेन साहित्य रूपी बिरवा मेहतर राम जी साहू लगाईंन अब्बड़ जतन करके राखिन उही बिरवा है बड़का  रुखवा बनगे हे  समुचा छत्तीसगढ़ रचना के लोहा मानत अंतस ले स्वीकारत हे एखर अलावा हमर जइसन नवा लिखइया पीढ़ी मन ल मारग देखावत पन्दोली देवत हे। 25 दिसंबर सन् 2010 मा अपन पंच तत्व के काया ल बिसार देइन |


महेतर राम जी साहू अतेक बड़ साहित्यकार होये के बावजूद ओ सम्मान नइ पाइस जेखर उन हर हकदार रहिन साहित्य,समरपन और सम्मान सब्बो दिन ले चलत आवत हे के सही साधक सब्बो दिन उपेक्छा ल झेलथे अइसने साहू जी ल भी उन समय म तिरिया देहे गिस जेंखर कारन उंखर साहित्य हर बियापक रूप म नइ फइल पाइस फेर आज उंखर बेटा धनराज साहू जी के अपन पिता के साहित्य के सम्मान बर जेन उदिम देखे बर मिलथे ऊहू प्रसंशा के बात आय जेंखर कारन आज पूरा छत्तीसगढ़ उन ल जान पाइस अउ साहित्य ल पढ़े के सौभाग्य ल पावत हे |

अइसन साहित्य के पुरोधा सतलोकी श्री मेहतर राम जी साहू जी ल मँय नमन करत उंखर चरन म माथा नवावत हँव |


सुरता मा

मिनेश कुमार साहू

  *भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कबीरधाम*

आदर के आँसू*-चोवाराम वर्मा बादल

 *आदर के आँसू*-चोवाराम वर्मा बादल

( लघुकथा)

रमेश के शादी असो डेड़ महिना पहिली पढ़े लिखे सुशील कन्या अनामिका ले कोरोना संकट के सेती सुग्घर सादगी पूर्वक होइस हे। भले गिने चुने सगा सोदर आये रहिन हे फेर आनंद,उछाह म कोनो कमी नइ रहिस हे।

   अनामिका के पिताजी ह अपन बेटी ल घर गृहस्थी के समान संग  दमाद ल मोटर साइकिल तको  हँसी खुशी देये हे।

     रमेश ह वो नवा मोटर साइकिल ल दूये चार दिन चलाइस तहाँ ले चुपचाप खड़ा कर देहे। पहिली के घर मा जेन होंडा के मोटर साइकिल हे तेने ल रात दिन जोंजत हे। वोकर बाबू दयाराम अकचकाये हे कि लइका ह नवा गाड़ी ल काबर नइ चलावत हे। आज पूछबे करिस--

कस बेटा तैं तोर नवा फटफटी ल काबर नइ चलावस जी? जेमा मैं एती वोती जातेंव तेने ल जोंजत रहिथस ।

वो गाड़ी ठीक नइये बाबू जी। रमेश कहिस।

आँय ! काय कहिथस जी। नवा गाड़ी ठीक नइये। का खराबी हे वोमा ?दयाराम पूछिस।

 सबसे पहिली खराबी तो ये हे कि वोमा आटो स्टार्ट नइये। दूसर म वो ह उँचाई म मोर बर छोटे हे।दस -बीस किलोमीटर चलाबे ततके म गोड़ पिराये ल धर लेथे। ससुर जी दिस त बने सोच बिचार के दे रहितिस। हमन माँगे थोरे हन। रमेश ह मुँह बिचकावत कहिस।

 अरे बेटा वोइसे नइ काहय ग ।जेन हे तेन ,सब ठीक हे। दान के बछिया के दाँत नइ देखे जाय जी। दयाराम समझावत कहिस।

ठीक हे बाबू वोला तैं चलाये कर। मैं तो अपन पुराना आटो स्टार्ट वाला गाड़ी ल चलाहूँ। रमेश कहिस।

नवा गाड़ी म किक मारत मोर गोड़ लचक जही बेटा।

त वोला बेंच दे।रमेश झट ले कहिस।

नहीं बेटा बेचना ठीक नइ होही। बदल के नवा ला देहूँ त  चलाबे न?दयाराम पूछिस।

रमेश कहिस-वाह तैं काबर बदलबे।वो काम तो ससुर जी ला करना चाही।

हव बेटा ससुर ह बदल देही काहत दयाराम ह सबो ल खड़े- खड़े सुनत नवेलिन बहू अनामिका कोती देखिस त वो ह घबराये हिरणी कस दिखिस अउ आँखी ह डबडबाये दिखिस। 

   बात आये गये होगे।थोकुन पाछू दयाराम ह नवा गाड़ी ल धरके निकलिस अउ साँझ के आने आटो स्टार्ट वाले गाड़ी ल अँगना म खड़ा करके चाबी ल रमेश ल देवत कहिस- अब तैं इही गाड़ी ल चलाबे बेटा।पुराना गाड़ी ल मैं चलाहूँ।

 वाहहहह जोरदार गाड़ी हे।ससुर जी बदल दिस का बाबूजी ?रमेश ह हाँसत पूछिस।

   हव बेटा। फेर एला बेटा के नहीं ,बहू के ससुर ह बदल के लाये हे। बात तो एके हे न-- ससुरे ह बदले हे-- कुलकत दयाराम कहिस अउ तीर म खड़े नवेलिन बहू कोती देखिस। वो शांत दिखिस।वोकर आँखी ससुर बर आदर म डबडबाये राहय।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

मन भइगे हरहा ..मोर बस नइये ....। "

 " मन भइगे हरहा ..मोर बस नइये ....। " 

     आज 25 दिसम्बर आय ...बड़े दिन कहिथन , लइकाई ले ईसाई भाई बहिनी मन के उमंग , उछाह ल देखत आवत हंव । फेर एसों ओ मज़ा नई आइस । 

   स्वतंत्रता संग्राम के एक झन पुरोधा , भारतीय शिक्षा के मार्गदर्शक पंडित मदन मोहन मालवीय अउ काल के कपाल मं अपन निष्पक्ष राजनीति अउ साहित्य के टीका लगइया अटल बिहारी बाजपेयी के जनमदिन आय । 

 तुलसी जयंती अउ गीता जयंती  घलाय तो आजे च आय ..फेर मोर मन तो हड़ताल कर देहे हे । हरके बरजे ल मानते नइये । अभी रेडियो मं अटल जी के प्रसिद्ध कविता " गीत नया गाता हूं .." सुनेंव ...सब ठीक हे तभो मोर मन तो हरहा हो गए हे । घेरी बेरी ..किसान आंदोलन के  खबर जाने , सुने बर बगटूट भागत हे । 

  किसान आंदोलन के सफलता हर ही हमर देश मं लोकतंत्र ल मजबूत करही । कृषि प्रधान देश के आर्थिक , सांस्कृतिक , सामाजिक व्यवस्था ल बनाए राखही । हमर देश के बाढ़त जनसंख्या के पेट भरे के साधन धरा रपटी मं अपनाए उद्योग प्रधानता हर  नइ करे सकय । किसानी हर अगर पूंजीवादी धनी मानी मन के हांथ मं चल दिही त किसान काय करही ? 

  सिरतो सिरतो मोर मन हर हरहा हो गए हे । 

    सरला शर्मा

गाँव गुड़ी के प्रमुख देवी देवता

 

आज हमर छत्तीसगढ़ अउ गाँव गुड़ी के प्रमुख देवी देवता मनके नाम ल संघेरबों-


साँहड़ादेव

भँइसासुर

सात बहनिया

बूढ़ादेव

अंगादेव

सीतला देवी

पताल भैरवी

ठाकुर देव 

दुल्हा देव 

समलाई

सर्वमङ्गला माई

कोसगाई देवी

चैतुरगढ़हीन

बम्लाई

ठाकुरदैया

बंजारी

रिक्षिन दाई

माँवली दाई

चंडी दाई

महामाई

बगदाई

डिंडिनेश्वरी दाई 

धुमनाथ

सत्ती दाई

आँगादेव

साँगादेव

परेतीन दाई(हीनदेवी)

मटिया दाई (हीनदेवी)

चटिया मटिया (हीनदेवी)

डोहारन दाई (हीनदेवी)

दंतेश्वरी दाई

ठाकुर देवता

कोरियादेव(हीनदेवता)

दूल्हादेवा

गौरी गौरा 

गोठानदेव

गोर्रइयादेव

सँहड़इलदेव

घटोरिया देवी

घाटदेवी

घठौंदीनदाई

शीतला दाई 

साँहड़ा देव

महादेव 

कर्मा दाई

सात बिहिनिया 

ठाकुर देव

खल्लारी दाई

जतमाई दाई 

पाताल भैरवी

चंड़ी दाई

दुल्हा देव

हरदेलाल बाबा

ठाकुरदिय।

समलाई

बम्मलाई 

महामाई

बागेश्वरी दाई 

मटिया दाई

दंतेश्वरी  दाई

शक्ति दाई 

गौरी गौरा 

गोर्ररैया देव 

घटोरिया दाई

बरम देव

पीपरेश्वर दे

कोरिया देव

गणगौर देव

रक्शा बाबा

भैरव बाबा

मंड़ई देवता 

बजरंग बली

काली माता 

चन्द्रहासनी माई

बंजारी दाई

बूढ़ी माई

घाट देवी

दंतेश्वरी दाई

झलमला दाई 

अंगार मोती दाई 

छत्तीसगढ़हिन दाई  कुरूद में 

धटारानी माता 

मनका माता 

रिछिन्न दाई 

मावली माता 

चैतुरगढहिन दाई 

सर्वमंगला माई

विश्व प्रसिद्ध भूतेश्वर नाथ

भोरम देव

रेणुक देव

भाड़ देवल आरंग में 

झनझना महादेव

चंपेश्वर महादेव

बम्हनेश्वर महादेव 

पोखेश्वर महादेव

कुलेश्वर महादेव

शबरी धाम

कंकालिन दाई 

छठी दाई

बूढ़ा देव

गलवा दाई 

हटकेश्वर महादेव (रायपुर )

हींगलाज माई

*फसहीन दाई*

जलदेवती दाई

ठाकुर दैया

ठाकुर माड़ा

कुलदेवा

कुलदेवी

कालकादेवी

Thursday 24 December 2020

खेत खार बारी बखरी म मिलइया खरपतवार बन बदउर के नाम

खेत खार बारी बखरी म मिलइया खरपतवार बन बदउर के नाम

 दूबी

भोंड़ काँदी

कँउवाकेनि

चीपी ,चिपचीपी

भुंडी

दुधिया

मुंगेसा

 लटकना

भेलवा

बगनखा

गोंदइला

बनमुड़ही

कान्द

काँशी 

धनधनी

साँवा

बेमची

उरदानी

बगरन्डा

तुलसा

फुलही 

मोखला काँटा

गुखरू काँटा

सिंका जोती

सिलियारी

कुकुरमुत्ता

झीपा

चुहाबन 

दूबी

बलियारी

मकोय

बन बोइर

चरोटा

लटकना

बगनखाॅ

कोदों

कुटकी

बदउर

करगा

 लटकना

भेलवा

बगनखा

गोंदइला

बनमुड़ही

कान्द

भसकटिया

फुटु रमकेलिया

मुंगेसा

केशरवा काँदा

धंवई

काँसी

भइँसरा

कुथुवा

भरूहा

भेंगरा

भुँईअँवरा

गोटारन

लटकनी

गंँठियारी दूबी

चरौटा

काँसी

कुकुरमुत्ता

बनरमकेरिया

बनकुलथी

बन कोदो

साँवा

बदउर

 काँदी

भसकटिया

फुटु रमकेलिया

मुंगेसा

केशरवा काँदा

मछरिया भाजी

घुड़मुड़ी(भाजी)

सिलियारी 

गाजर घास 

चिरपोटी 

भेगराज 

पनऊला

गेगरूवा

चनउरी

बेमची

फोटका

कोलिहापुरी

मोखला काँटा

गुखरू काँटा


Saturday 19 December 2020

आज नँदावत छत्तीसगढ़ी शब्द म *जीव जंतु मनके छत्तीसगढ़ी म नाम


आज नँदावत  छत्तीसगढ़ी शब्द म *जीव जंतु मनके छत्तीसगढ़ी म नाम 

छेरी-बकरी

बिलई - बिल्ली

बनबिलवा- वनबिलाव

चिटरा-गिलहरी

भलुवा-भालू

पिरपिटी-बरसात में दिखने वाले सांप

फाँफ़ा-टिड्डी

गोइहा-गोह

बछरू - गाय का बछड़ा 

पठरू - बकरी का बच्चा

मिट्ठू - तोता 

परेवा-

पुचपुची चिरई

*कोलिहा*- सियार

*ढोंढ़िया साँप*

*फुरफुन्दी*

*बिघवा*

*कुकुर*

*बिलई*

*मुसवा*

*छूछू* 

*भइस*

*भइसा*

*पड़रू* - भैस का बच्चा

*मंजूर*

*बाम्हन चिरई* - गौरैया 

*पड़की* - चिड़िया की एक प्रजाति

*हिरन* - हिरण

*बघवा* - शेर

*मछरी* - मछली

*बेंगवा* - मेढक

कुकरी ,कुकरा --मुर्गी मुर्गा

घाघर--लावा

परेवा --कबूतर

बाम्हन चिरई-गौरैया

कोयली-कोयल

मिठ्ठू, सुवा--तोता

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तीतूर-

ऐंरी-?

कठखोलवा-

गिद्धा,चील-

सलहई-

करिल-?

बटेर-

नेंवरा-?

कउँवा-

जोदर्रा-?

हारील-?

पैसा कीरा-?

भुनभुना-?

भुसड़ी-मच्छर

भोंगर्रा-भौरा

मछरी-मछली

मुसवा-चूहा

टेटका- 

घिरिया-

कुम्हार कीरा-मिट्टी का घर बनाकर रहने वाले कीट

बत्तर-बरसात में झुंड के झुंड उड़ने वाले कीट

भोडूँ- दिन्यार का घर

दिन्यार (लकड़ी या मिट्टी को खा जाने वाले कीट)

घूना कीरा-लकड़ी खाने वाले कीट

दतैया-पीले रंग का खतरनाक कीट 

भाँवर-बड़े मधुमक्खी

माछी-मक्खी

मेकरा-मकड़ी

केकड़ा-केकड़ा

सरांगी, बामी, डँड़ई, कोतरी, टेंगना, रुँहा, कतला,रूदई,खोकसी,मोंगरी,कतला,चिंगरी,रूँहा, कोमल कार-मछरी के नाम

गेंगड़वा-केचुवा

रानी कीरवा- वीरबहूटी

नपल्ली-छिपकली 

गिदरा, चमगेदरी-चमगादड़ 

ढेकुना- खटमल

*गिंधोल*-बड़ा मेंढक (भेंक)

*किन्नी*-पशुओं के शरीर मे रहने वाला जीव।

*मेचका*-मेंढक



Thursday 17 December 2020

मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा

 मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा

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        हे भगवान यक्ष प्रश्न असन लागत हे ....गुने बर पर गे ....काबर लिखथंव ???????

 सिरतो बात तो आय ...मोर ले पहिली कतको झन साहित्यकार , कवि , कहानीकार , उपन्यासकार मन तो तैहा दिन ले लिखत आवत हें ,  उनमन के लिखे ल थोर बहुत तो पढ़े च हंव।  साहित्य मं कविता लिखे के बेर दसे ठन तो रस होथे त कविमन समय सुजोग पाके दसो रस के कविता लिखे हें । कहानीकार , उपन्यासकार मन घलाय तो मन मं उपजत दसो भाव के अनुसार ही पात्र के चरित्र चित्रण करे हें त अइसने आने आने विधा मं भी लिखे हवयं त बांचिस का ? त फेर मैं नवा काय लिखत हंव , काबर लिखत हंव , मोर नइ लिखे ले साहित्य भंडार मं कोन तरह के कमी बेशी हो जाही ? 

   अलग अलग समय मं कलम चलाये के कारण आनी बानी के ओढ़र मिल जाथे जी । तभो मोर लेखन के दू ठन जरूरी बात रहिस हे पहिली के कविता लिखाई छूट गिस सिर्फ गद्य उपर ध्यान जम गिस , दूसर बात के अनुवाद डहर ध्यान नइ देहे पाएंव ओकर कारण मोर मन मं ए रहिस के गद्य हर भाषा के परिष्कृत रूप होथे , गहन विचार मंथन गद्य मं जादा अच्छा से करे जा सकथे । समसामयिक प्रसंग , सन्दर्भ मन ल उद्घाटित , विश्लेषित करे मं गद्य हर जादा सक्षम होथे । कविता ल हर आदमी आत्मसात नइ कर पावय त रस , छ्न्द , अलंकार से सजे कविता के रसबोध आम पाठक बर सहज नइ होवय ओकर बर मर्मज्ञ पाठक चाही जबकि गद्य हर बोलचाल के भाषा मं लिखे जाथे ते पाय के पाठक जल्दी समझ जाथे । तेकरे बर मैं सहज , सरल गद्य लिखे के कोशिश करथंव । सबले बड़े बात के गद्य मं विषय के कमी नइये सामाजिक , सांस्कृतिक , ऐतिहासिक , राजनैतिक , शैक्षणिक , वर्तमान सन्दर्भ - प्रसंग अउ बहुत अकन विषय वस्तु चारों मुड़ा बगरे परे हवय । 

   सबले पहिली जे दिन कागज कलम के शरण धरेवं ओहर लइकाई उमर के देखा - सीखी के सौख रहिस काबर के तब तो मैं हाई स्कूल मं पढ़त रहेंव , कहानी हर " कल्पना " पत्रिका मं छप घलाय गिस ...चार दिन मं भुला घलाय गयेंव । तभो कोनो दिन कोनो रिस , दुख , हांसी खुशी के बात होवय तेला एक ठन छोटकुन डायरी मं लिख लेवत रहेंव ....ओ कुछु नहीं ...लइका खेलवारी रहिस त कभू चार लाइन कविता असन कुछु लिख लेत रहेंव फेर छपास रोग नइ धरे रहिस । ओ डायरी कब , कहां गंवा गे सुरता नइये , तैहा के बात बैहा ले गे । 

     मोर लइका मन स्कूल जाए लगिन त ओमन बर भाषण , कविता , निबंन्ध लिख देवत रहेंव त मोर स्कूल के वार्षिक पत्रिका " रश्मि " के सम्पादन कर देवत रहेंव । अपन बर अलग से कुछु लिखे के तो सोचबे नइ करेंव फेर पढ़त रहेंव ..हिंदी , छत्तीसगढ़ी , बंगला , अंग्रेजी पत्र पत्रिका के संग प्रसिद्ध साहित्यकार मन के लिखे आनी बानी के किताब ..। 

   सन 2003 मं छोटे लइका मास्टर डिग्री लेहे बर इंग्लैंड जात रहिस त दू ठन बड़का कॉपी दे के कहिस " आप लिखती तो रही हैं अब अपने लिए फिर से लिखना शुरू कीजिये । "  पहिली तो समझ मं आबे नइ करिस का लिखना चाही तभो कविता लिखा गिस जे कविता मन " वनमाला " कविता संग्रह के नांव से छपे हे । मन नइ भरिस ...छत्तीसगढ़ी मं लखन लाल जी के संस्मरण तो पढ़े च रहेंव त मन मं आइस के मोर जीवन मं जेनमन के विचार , आचरण के प्रभाव परिस जेला कभू भुलाए नइ सकंव तेमन के सुरता ल लिख देहंव त लोगन ल प्रेरणा मिलही । 

..." सुरता के बादर " संस्मरण एतरह लिखा गिस । स्कूल के लइका मन बर " बहुरंगी " निबंन्ध संग्रह हिंदी मं लिखेंव । कलम चले लगिस ...नवा बने छत्तीसगढ़ के किसान , संस्कृति , पुरातत्व ,समाज मं होवत विकास ल " माटी के मितान " उपन्यास मं लिखेंव । 

    हिंदी , बंगला भाषा मं भी सामयिक प्रसंग उपर लिखना शुरू होगिस त छपास रोग धर लिस  .....छत्तीसगढ़ी मं लिखेंव " सुन संगवारी " गद्य के नवा जुन्ना विधा के 15 ठन लेख संग्रहित हे " आखर के अरघ " किताब मं । हिंदी मं स्त्री विमर्श के उपन्यास " कुसुम कथा " , प्रसिद्ध पंडवानी गायिका जियत किंवदन्ती बर  " पंडवानी और तीजन बाई " , कहानी संग्रह " सत्यं वद " मनसे के मनोभाव के प्रतिनिधि कहानी संग्रह लिखा गिस । 

  बंगला भाषा मं लइका मन बर बाल साहित्य " छड़ा " लिख तो डारेंव फेर अभियो प्रकाशित नइ करवा पाये हंव । 

 शील जी कहत रहिन " भगवान के कृपा से , पढ़ सुन के जौन थोर बहुत ज्ञान मिल गए हे तेला लिख के बांटना जरूरी हे , नहीं त गड़ियाए धन दोगानी के रखवार धनबोड़ा सांप बने बर पर जाही । " 

   मैं धनबोड़ा सांप बने नइ चाहवं जी ! तेकर ले लिखत रहिथवं उही मध्यम के संग पंचम असन उदिम तो आय । लिख लेथंव त हरु लागथे । संसो अतके हे के उमर के संगे संग छपास रोग घलाय बाढ़त जावत हे , मरन होगे हे के कैंसर रोग घलाय धर लेहे हे उही " मैं " रोग ...अउ का बांचिस ?? 

   लिखइया 

सरला शर्मा

मँय काबर लिखथँव* -अश्वनी कोसरे

 *मँय काबर लिखथँव* -अश्वनी कोसरे


सोंचत रहेंव कोनो दिन अइसे भी आही के अपनो राज़ खोले बर पर ही | जेकर ले अपन के भीतर लुकाय गलती अउ अभिमान के सरोकार होही| आज वो दिन आगे फरी- फरी सबो गुनीमानी ,विदुषी अउ विद्वान मन ल अपन छाती ल चीर के देखाय ल परही ,के मोरो हिरदे भीतरी भगवान श्री राम अउ सीता मइया बिराजित हें | फेर मँय हर भक्त श्री हनुमान जी नोहँव| अउ मोर श्री राम- सीता तो ए जुग के ओ बड़ झन नायक - नायिका मन हँरय| जेन खेत म पछिना ओगरइया किसान हरँय , बासी पानी बोहे खेत जवइया वो किसानिन मन हरँ, मजदुरी करत रकत अँउटइया दर - दर भटकत, देश परदेश जवइया मजदूर मन हरँय, उखरा पाँव जंगल, पहार के पथरिला अउ  कँटिला रसदा मं रेंगत महिनत के गंगा बोहइया बनवासी हरँय| तव मुड़ म बोझा बोहे भुतिहारिन हरँय जिकर दुख दरद के कोनो अंत नइ हे|

उँखर जिनगी के दशा देख के मोर जीव रो डरे हे| ओ हर अबला बहिनी मन मोर बर पूजनीय हवँय जिंखर जिनगी संघर्ष ले भरे पड़े हे| ए सबो मोर मन अगास के आदर्श हरँय|  आज के दूसित राजनीत हर मनखे ल जीयत म चोंहकत हे एखर दुष्परिणाम ल रोके बर , जन जागृति लानेबर , भ्रष्ट तंत्र ल चेताय बर , मँहगाई ल निजात पाय बर ,गरीबी अमिरी के खाई ल पाटे बर लिखे के कोशिश करत रहँव अइसे मोर आत्मा कहिथे | छूआ छूत भेद भाव ल खतम करके भाई चारा समता सुमता के भाव बर लिखे के प्रयास हवय|

     पर सबले गरीब तो मय ही हरँव मोर सो दे बर कहीं भारी जिनिस नइ हे| अभी मोर दुध के दाँत घलो बरोबर नइ झरे हे| कोशिश करत हँवव गिर - गिर के उँच के हरु - हरु ठुमुक - ठुमुक त कभू भुदुक- भुदुक रेंगे के| अउ कोनो विशेष गुन ले भरे मनखे भी नोहँव जेकर ले कोनो आने मनखे ल प्रेरणा मिल सकय|  सब ले कुछ सीख सकँव, अउ लिख लेवँव| तव अतके मोर उददेश्य हे लिख - लिख के सीखत रहँव | ते पाय के लिखत हँव| 


       छत्तीसगढ़ म देवी देवता मन के चरन परे हे| छत्तीसगढ़ी भाषा हा देवता मनके ,संत मन के महापुरुष मन के वाणी आए| अपन सुतंत्रता अउ सुराज बर लड़इया बीर सहीदन मन के कथा कहिनी हवय अउ जन मन म रचे बसे  साहित्य इतिहास अउ संस्कृति समाय हे| रिषि मुनी मन के ग्रंथ के अंग हरय तव संत शिरोमणी बाबा गुरु घासी जी के अमर उपदेश ,संदेश वाणी , पबरित गुरुवाणी हे| तव महतारी भाखा के मान बर,समृद्धि बर, संजोय बर लिखे के मोला प्रेरणा मिलिस| तव लिखे के शुरुआत तो कालेज म विद्यर्थी पन ले होइस |फेर वो समे भाषण ,तुक बंदी कविता तक कुछ  लेख बनत रहिस|

      पढ़ई लिखई पुरा होय के बाद बेरोजगारी के दौर आइस तव सोचेंव के कुछु पढ़े लिखे से संबंधित काम काज करे जावय|

तव छोटे कक्षा स्तर के  स्कूल म नौकरी करत बाल कहिनी मन से लिखे के सुरुआत होइस| संगवारी मन संग सहयोगी संग्रह छपे त बड़ खुशी होवय, अपन संतुष्टी बर लिखे के उदिम हर अब नइ  रहि गय | कुछ पारस समान गुरु मन के संगत मं आए ले अब 

पर समय के संगे संग लिखे के उद्देश्य बदलत हवय |संतुष्टि के संग आनंद भी आवत हवय | 

पत्र पत्रिका म खुद अपन लेख ल भेज के छपवान अउ सबो संगवारी मन ल बतावन के आज फलां पेपर म मोर रचना प्रकाशित होय हे| बाद म पता चलय दस लाईन म बीस ठन गलती हवय|आजो गलती रहिथे काबर के जीयत भर सीखना हे|

   गुनीमानी बुधियार सियान मन बताथें के कबीर,तुलसी ,प्रेम ,मीरा मन घलो अइसने अदरा रहिन फेर अपन महिनत लगन ले दुनिया ल मारग बताइन| अपन प्रतिभा ले परिचित करवाइन| कोजनि हमर कलम म ओतका धार बन परही के नही, फेर हिम्मत के डोंगी म सवार होय के चाहत हर आघू धकेलत हे| समस्या ले भरे

बड़ गहिर अउ बड़ दुरिहा ले समुंदर फइले हे ,सुख -दुख के लहरा हिलोरत हे |फेर मन म होवत उथल - पुथल अउ देश - दुनिया, समे - काल ,परिस्थिति हा लिखे बर विवश कर देहे| तव आज उत्सुकता अउ जिज्ञासा हर कलम ल सीखे बर रेंगावत हे| कखरो समस्या ल, वर्तमान ल, समाये पीरा ल लिखत हवँव, बतावत हववँ, कखरो बर ए जुनून हरे तव कखरो बर मनोरंजन फेर मोर बर अस्मिता के बात आए| नइ जानव के ए समस्या मन के  समाधान मिल पाही के नही| फेर उँकर हक बर लिखे के काम नइ रुकय|


अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

मैं काबर लिखथँव?-चोवाराम वर्मा बादल

 *मैं काबर लिखथँव?-चोवाराम वर्मा बादल


नानकुन प्रश्न फेर उत्तर अतका कठिन के सोचत-सोचत चोबीस घंटा पहागे। सबसे पहिली प्रश्न ल पढ़े के बाद अइसे लागिस कि कोनो मनखे ल पूछे जाय कि तैं साँस काबर लेथस?  

   वो मनखे साँस लेथे तेनो अर्धसत्य हे काबर कि साँस ह बिन लेये तको अपने आप चलत रहिथे। वोइसने मोर लेखन तको हे। बचपना म साँस्कृतिक कार्यक्रम ,रामायण ,लीला ,नाचा-पेखन मन मा भाग लेवत गीत,कविता कब अउ कइसे लिखे ल धर लेंव पता नइ चलिस।

      रुचिपूर्वक अउ सोंच विचार के गद्य लिखे के प्रयास आज ले तीस पैंतीस साल पहिली छत्तीसगढ़ी भाखा म प्रहसन (मूल अधार जुन्ना लोक कथा) प्रस्तुत करे बर हम कुछ ग्रामीण नवयुवक मन द्वारा गठित " कलजुग के गोठ" नाटक संस्था ले होइस । मोर लेखन म पहिली बार देखे 'चँदैनी गोंदा' के अमिट छाप अउ अमृत संदेश म पहिली बार छपे 'परिवार' लेख के प्रेरणा ,प्रोत्साहन समाये हे।

     मैं काबर लिखथँव  ये बात ल सोंचेंव त मन म इहू बात आइस कि पहिली के साहित्यकार मन काबर लिखिन होही या आज के लेखक कवि मन काबर लिखत होंही ? कुछ न कुछ तो कारण जरूर होही? बिना कारण के कार्य नइ होवय। कोनो मन स्वांतः सुखाय बर लिखत हन कहिथें त कोनो मन अउ कुछु कारण ले------आज के युग म स्वांत सुखाय बर के झन लिखत  हे तेला भगवान जानय -----फेर हम तो जेन विचार उमड़थे तेला लिखथन ताकि अवइया पीढ़ी बर वो ह सुरक्षित हो जवय, कभू पुस्तक छप जवय,  पइसा -वइसा एको कनी भले मत मिलय फेर थोक बहुत नाम हो जवय। हमू ल लेखक कवि के रूप म दुनिया जानय। हम तो लोकेषणा के सेती लिखथन भइया, दीदी हो,सँगवारी हो।मैं काबर लिखथँव तेमा आधा आठ आना कारण इही हे। बाँचे खोंचे आठ आना म चार आना कारण रूचि या बचपना ले मिले स्वभाव अउ संगति हे त चार आना गुरुदेव श्री निगम जी अउ अन्य मूर्धन्य चिंतक, साहित्यकार मन ले मिले सद प्रेरणा कि ज्ञान ल बाँटना चाही--ज्ञान दान बड़ पुण्य के काम आय-- ज्ञान ह बाँटे म कम नइ होवय उल्टा बाढ़त जाथे-- --  अब लागथे इही कारण ले मैं लिखथँव ।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा

 मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा


    किताब उताब तो लिखा गे तभो लिखत चलत हंव काबर ? उमर बाढ़त जाथे त मनसे घर , दुआर के संसो ले उबरत जाथे ...त खाए -  पहिरे , घूमे - फिरे के सौख मं भी कमी हो जाथे इही मेरन मनसे संसार के आने प्राणी मन ले अलग समझे गए हे । देश राज समाज संसार के संसो अपने  अपन मन मं समाए लगथे जेला सियान मन वानप्रस्थ आश्रम कहिथें माने घर परिवार मं रहिके भी नइ रहना , सन्यास एकर ले अउ आघू के अवस्था होथे जेमा मनसे सिर्फ आत्मा परमात्मा के संसो करथे । 

   एकरे बर आजकल वर्तमान सन्दर्भ , प्रसंग उपर लिखे मं मन लगथे ...जइसे अभी चलत किसान आंदोलन , कोरोना काल के नफा नुकसान , सोशल मीडिया मं बगरत साहित्य , सोशल मीडिया मं बनत , बिगड़त आभासी रिश्ता , सुरसा कस बाढ़त महंगाई , लइकन के बेरोजगारी अउ बहुत अकन विषय हे लिखे बर । मोर विचार मं सोशल मीडिया के प्लेटफार्म आज मोर बर , मोर लेखन बर बने ठौर हे त लिखथंव घलाय । बने बने साहित्यिक ग्रुप मं , ब्लॉग मं त पोगरी लिखथंव फेस बुक मं ...। मोर फेसबुक वॉल ल कोन देखिस , कोन पढ़ के टिप्पणी दिहिस कोन नइ दिहिस तेला नइ गुनवं ...मोर मन मं उपजे विचार ल लिख के निश्चिंत होके बइठ  जाए मं हरु लागथे । 

  कोन सोशल मीडिया के उपयोग कोन तरह से करथे तेकर उपर ध्यान नइ दे के अपन लिखथंव बड़ संतोष मिलथे । 

सरला शर्मा

मँय काबर लिखथँव ?-नीलम जायसवाल

 *मँय काबर लिखथँव ?-नीलम जायसवाल

        ये सवाल के जवाब सब कोई के अपन अपन अउ अलग अलग हो सकथे। तभो ले मोला लगथे,एक कारण हर जम्मो लेखक, कवि मन बर समान होही। अउ ओ हरे - ईश्वरीय कृपा, या प्रकृत प्रदत्त गुण। काबर कि समाज मं बहुत मन पढ़े-लिखे रथें, मगर सब झन नइ लिखँय, या रचना करे के उदिम नइ करँय।

    एखर अलावा लिखइया या साहित्यकार मन के अपन स्वार्थ या परमार्थ के भावना घलव लिखे के कारण होथे। 

    मैं पहिली लिखेंव अक्षर सीखे बर,माँ हर इमला बोल के लिखावय लेखन के त्रुटि दूर करे बर,स्कूल म लिखेंव, कापी पूरा करे बर, परीक्षा म लिखत रहेंव पास होय बर। तब नइ जानत रहेंव,कि एक दिन लेखन करें मं सुख मिलही,आत्म शांति के अनुभूति होही। बचपन म बड़े भाई ल चिढ़ाय बर हँसी हँसी मं एक कविता लिखेंव संभवतः वो मोर पहिली कविता रहिस।उम्र रहिस दस साल। ओखर बाद दू-चार कविता, अपन विचार अउ भावना ल प्रभावी ढ़ंग ले बताय बर लिखेंव। डायरी लेखन, पिताजी ल देख के शुरू करेंव,तब खास खास बात मन के दिन तारीख याद रखे बर बने लागय। घर म पढ़ें के माहौल रहिस त पढ़ँव।फेर लिखे बर ज्यादा धियान नइ देत रहेंव।ओ समय मोबाइल नइ रहिस, त रिश्तेदार मन जइसे कि कका, ममा, बबा अउ नानी मन ला चिट्ठी लिखत रहेंव,ओखर मन के हाल जानें बर अउ आशीर्वाद पाए बर। फेर बिहाव होगे, मइके ससुरार दुनो भिलाई च मं होय के बावजूद छै छै महीना मइके जाय बर तरस जाँव, तब शुरू होइस अपन मन के गोठ ला फिर से डायरी म लिखे के उदिम। अपन दुःख ल कम करे बर। एकाद घाँव दू चार लाइन कविता भी हो जाय। लिखे के उद्देश्य खाली अपन दिल के बोझ हल्का करना रहीसे। वहू ल छुप छुपा के लिखँव,अउ कोनो ल नि देखाँव।समय बीतत गे जिनगी म बदलाव आवत गे। बच्चा मन थोड़ा बड़े होगे, तब कविता लिखे के लहर चलिस। हिंदी के संगे संग छत्तीसगढ़ी म भी अलवा जलवा कविता लिखे लग गेंव।लिखे के उद्देश्य सिर्फ अपने भावना ल कागज म उतार के ओला सहेजना रहिस, छपना छपाना कभी नहीं।कभी कभी स्थानीय मंच म काव्य पाठ के मौका मिलिस,जिहाँ दर्शक-श्रोता गण के ताली मन उत्साह बढ़ाना की नाम कमाए के लालच चलो बाढ़िस।धन के लालसा तब भी नइ रहिस।

     एंड्रॉयड मोबाइल हाथ म आइस त साहित्यिक ग्रुप मन से जुड़ना होगे।कई ठन कविता साझा संकलन म छपिस घलव। पत्र-पत्रिका म घलव कभी कभार मोर दूं चार कविता छपिस।मगर मोर एको ठन पुस्तक नइ छपे हे। न छपाय के कोनो जल्दी हे। हाँ साहित्यकार मन संग जान पहिचान बाढ़िस जेन खुशी देथे। फेर छंद परिवार के सदस्यता मिलिस छंद के बिधिवत ज्ञान सीखे के साध पुरिस।संगे संग छत्तीसगढ़ी कविता रचे के बढ़िया मौका मिलिस। ये मोर साहित्यिक जीवन के स्वर्णिम काल रहिस। जब मैं नियमित रूप से रोजिना कविता गढ़ौं, छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी के घलौ रचना हो जावय। ये समय मँय छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरे म योगदान देय के उद्देश्य ले लिखत रहेंव। अउ संग म अपन ज्ञान ल परिष्कृत करे के कारण घलव हवै।

    वर्तमान म पति के तबियत अचानक खराब होए के कारण, साहित्य समाज ले थोकिन दूरी बन गे हवय।ओखर तबियत,घर करोबार सबके जिम्मेदारी मोर उपर आगे हे। अब त समय च  बहुत मुस्किल मं मिलथे। अब कभी कभार अगर थोड़ा बहुत लिख लेथँव।तो ये उद्देश्य रहिथे कि मोरपर सरस्वती दाई के किरपा बने रहय,मोर संगवारी मन साहित्यकार मन मोला भुला झन जाँवँय।

  अइसना करके, मोर बर समय समय म लिखे के अलग अलग उद्देश्य रहिस।  तब ले लेखन से मोला जेन संतुष्टि की सुख मिलथे।वो अउ कोनों काम ले नइ मिलय।मोर पर ईश्वर के कृपा सदा बने रहय मँय ज़िन्दगी भर लिखत रहँव।कलम कभू झन छूटय।इही कामना हवै।

नीलम जायसवाल, भिलाई।

मँय काबर लिखथंव ?-अरूण कुमार निगम

 मँय काबर लिखथंव ?-अरूण कुमार निगम


जब अपनआप ला पूछथंव -"मँय काबर लिखथंव" ? तब मोर मन कहिथे कि ये सवाल के उत्तर, उमर अउ अनुभव के संग मा बदलत रहिथे। उमर के संग-संग अनुभव घलो चलथे। सोच बदलत रहिथे। शुरुआती उमर मा धूम-धड़ाम वाला नवा-नवा गाना बने लगत रहिस। अब तइहा के जमाना के गाना मन सुहाथें। 


बस वइसने नवा-नवा उमर मा अपनआप ला जताए खातिर कविता लिखई चलत रहिस। घर मा साहित्यिक वातावरण रहे के कारण साहित्य के रुझान होना स्वाभाविक रहिस। वो उमर मा प्यार, मोहब्बत, सुन्दरता, कोनो ला एक झलक देखई, रंग रंग के सपना, मिलन, जुदाई ….अइसने विषय मा तुकबन्दी चलत रहिस। नौकरी लगे अउ बिहाव होए के कुछ समय बाद दुनियादारी समझ मा आइस तब प्यार, मोहब्बत, सुन्दरता जइसन विषय-वस्तु बकवास लगे लगिस। 


जउन दौर मा मोर जनम होइस वो समय संयुक्त परिवार, मोर-तोर ले अनजान मया, नाता, रिश्ता, मोहल्ला-संस्कृति के समय रहिस। मोर पीढ़ी समय के बदलाव ला देखिस हे। संयुक्त परिवार ला टूट के छोटे परिवार ला बनत देखिस हे। धुर्रा-माटी मा सनाय बचपन ला टिपटॉप सजे-सँवरे सूटेड-बूटेड बचपन मा बदलत देखिस हे। सरकारी स्कूल के झोला, पट्टी, हाफ-पेंट अउ सामूहिक पहाड़ा रटई ला नर्सरी, केजी वन, केजी टू, पीठ मा लटके वजनदार सुग्घर बस्ता, टिफिन बॉक्स, वाटर बॉटल, जॉनी जॉनी यस पापा अउ होमवर्क मा बदलत देखिस हे। ममा गाँव मा देवारी अउ गरमी के छुट्टी ला वीडियो गेम अउ मोबाइल गेम मा बदलत देखिस हे। खपरैल वाले छोटे से घर मा जउन सगा मन हफ्ता-हफ्ता रुकत रहंय वो घर पक्का अउ दुमंजिला होगे फेर सगा मन बर जघा के भारी कमी होगे। मन के मोल खतम होगे अउ धन के मोल होगे। 


अइसन बदलाव मा संस्कृति, परम्परा के गिरावट, रिश्ता-नाता के टूटन, विकास के नाम मा विनाश देख देख के कलम के सुर बदलगे। अब कोइली के कुहुक के जघा रांय-रांय रेंगत कार, बाइक अउ प्रदूषित धुंगियाँ मा रंग-बिरंगा सपना मन कब अउ कहाँ गँवा गिन, पताच नइ चलिस। कलम विद्रोही होगे। जउन कलम सुराहीदार गर्दन, नागिन कस बेनी, चन्दा कस मुखड़ा, लचकदार कनिहा, चूरी के खनक अउ पैरी के झनक के चित्र खींचत रहाय, तउन कलम बागी होगे। कभू सुते मनखे ला जगाए बर चलत हे, त कभू अपन अनमोल संस्कृति अउ परम्परा के सुरता देवावत चलत हे। 


मँय काबर लिखथंव ? एकर उत्तर नइ जान पायेंव फेर जब जब समाज कब विद्रूपता दिखथे, अन्याय दिखथे, कलम ऊपर हाथ के पकड़ मजबूत हो जाथे फेर कागज मा जउन बात उपक के आथे वोला कलम लिखवाथे, मँय कुछु नइ लिखँव। मोर जिनगी बर ये प्रश्न - मँय काबर लिखथंव ? अनुत्तरित रहिगे। 


*अरुण कुमार निगम*

मॅंय काबर लिखथॅंव* -महेंद्र बघेल

 *मॅंय काबर लिखथॅंव* -महेंद्र बघेल


जब उमर हा छे- सात साल के होइस तब स्कूल मा भर्ती होयेंव। आधा-गोल, पूरा -गोल, आड़ी -लकीर, खड़ी -लकीर ले पढ़ई लिखई के नेंव धरइस। लकीर ला खींचत खींचत थोर-थोर जाने समझे के लइक होयेंव।

फेर *बड़े सबेरे मुर्गा बोला, चिड़ियों ने अपना मुंह खोला* जइसन भाव प्रवण जागरण गीत ले  हमर जीवन के शुरूआत होइस।तब हम खुदे नइ जानत रहेन अइसन कविता मन ला हमरे जइसे कोई मनखे हर लिखत होही।

पहली कक्षा मा पढ़त-पढ़त भूल अउ प्रयास के मानसिक द्वन्द्व के बीच *उठो लाल अब ऑंखें खोलो, पानी लाई यूॅं मुॅंह धो लो।* जइसन गीत ला पढ़े,सुने अउ समझे बर मिलिस।

प्राथमिक स्कूल मा पढ़ें गय वो गद्य पद्य हर हमर मन मस्तिष्क मा अइसन घुल मिल गे कि समय हा पता च नइ चल पाइस अउ पाॅंच साल गुजर गय।

       फेर पेपर मा छपे कहानी कंथली ला पढ़े के अवसर मिलिस, उमर हर बाढ़त गिस पत्रिका मन ले वास्ता होइस जिहाॅं ले नाटक,सत्य कथा, बाल कथा पढ़ पायेन,काबर ओ समय तो रंगमंच अउ प्रिंट मिडिया के उत्पाद हर बस मनोरंजन के प्रमुख साधन रहिस।

धीरे-धीरे दिन दुनिया मा का सही आय अउ का गलत आय तेकर जानकारी होवत गिस। जब मॅंय हाईस्कूल डोंगरगांव मा पढ़त रहेंव ता प्रार्थना के बाद पाॅंच ले दस मिनट तक विद्यार्थी मन ला अभिव्यक्ति बर मौका देंवय।उहाॅं सहपाठी मन के एक ले बढ़के एक प्रस्तुति ला देखके महूं हर अन्दर अंदर जोशिया जाॅंव,मोर रूॅंवा ठाढ़ हो जाय फेर हिम्मत नइ जुटा सकेंव। 

जगा जगा कवि सम्मेलन होय तब उॅंकर कविता के पंक्ति सहित पेपर मा रिपोर्टिंग छपय। ओला पढ़ के  अइसे लगे कि महूॅं ला लिखना चाही, तभे अंतस के भावना ला लिखे के मन मा इच्छा जागिस। फेर का पूछना हे तुकबंदी वाले दू चार लाइन कविता लिख के मित्र मंडली ला सुनाय बर लग जाॅंव। संगवारी मन तारीफ करे तब अउ लिखे के इच्छा जागय। कभू कभू तो अइसे लगे कि मॅंय का लिखो , सोचत-सोचत सोचते च रहि जाॅंव फेर लिख नइ पाॅंव।

उही समय छत्तीसगढ़ मा चुटीली कविता के चलन बढ़त रहिस।ओकर असर मोरों मन-मस्तिष्क उपर गजब होइस। महूं हर ताली के आस मा अलवा- जलवा चुटीली हास्य कविता के रचना करें लगेंव, दू चार झन मन तारीफ करॅंय अउ ताली पिटॅंय तब लगे ,मॅंय तो एवरेस्ट फतह कर डरेंव।

कालेज मा उमर के अनुसार एकाद कनी मया पिरीत के गोल भाॅंवर कलम चलिस।

धीरे-धीरे साहित्यिक गोष्ठी मा आना जाना होइस तब विद्वान विचारक मन ला सुन सुन के समझ मा आवत गिस,हमला का लिखना चाही।

अनगिनत बुधियार लिखइया मन के बीच मा मन हर कहिथे समाज के समस्या हर बड़ विकराल हे, अभी  बहुत कुछ लिखना बाकी हे।

आज लगथे मॅंय बचपन मा जेन रचना ला विद्यालय मा पढ़ के कुछ नैतिक बात ला सिखे हॅंव ओकर ले तो कभू उऋण नइ हो सकॅंव फेर समाज मा अपन हिस्सा के योगदान निभाय च ला परही।

हम सब अपन परिवेश मा रहिके जो देखथन , समाचार ला सुनथन तब जेन विसंगति हर दिखथे, समाज के उही विसंगति ला दूर करे के कोशिश मा मोरो नानमुन योगदान हो जाय बस इही उदीम मा कलम चलत हे।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

मँय काबर लिखथंव*-आशा देशमुख

 *मँय काबर लिखथंव*-आशा देशमुख


येहा सहीच में यक्ष प्रश्न हे, गलत उत्तर दे से अपन सत्य रूपी प्राण नइ बाँचे। जतका नानुक ये प्रश्न हे ,वतका ही बड़े येखर विस्तार हे।शुरू शुरू में जब लिखत रहेंव तब तो कोनो भी प्रकार के मन में ये सवाल ही नइ रहिस अउ अभी तक घलो नइ रहिस,पर अचानक से ये प्रश्न आगे तब जिनगी के सबो क्रियाकलाप के डहर मन रिवर्स होके देखे लागिस ,तब उँहा से कुछ कुछ टुकड़ा उठावत हँव।


पहिली स्कूल के जमाना मा चिठ्ठी लिखँव तब मोर सहेली मन कहँय,तेँ हमर मन ले बढिया लिखथस अउ अपन पारिवारिक चिठ्ठी ल घलो मोर कर लिखवाँय।

महुँ ला लागय में बढिया लिख लेथंव, पर ओइसने ही जइसे मेचका ल कुआँ से बढ़के अउ कुछु बड़े नइ दिखे ,एक दिन इही मेचका अचानक से समुन्दर में पहुँच गे तिहाँ देखिस तब लागिस हाय ददा अतिक बड़े समुन्दर अउ में नानुक जीव,तब अहसास होय लागिस कि नही मोला बहुत तैरना हे।

तभे छंद के छ कक्षा में प्रवेश मिलगे तब जाने हन कि लिखाई का होथे।

अपन आप में लाज घलो बड़ आवय कि काय लिखत रहेंव अउ कैसे मुड़ उचाके रेंगत रहेंव।

एको ठन दाना नइहे अउ बदरा धरके बोहे रहेंव।

अब मोला लिखे के उद्देश्य पता चलिस ,

मँय सबसे पहिली अपन मन बर लिखथंव, कोनो जीवन के दुखद पहलू ल लिखथंव।

पहिली लगय कि पेपर में छप जातिस ,कोनो गोष्ठी में जातेंव, मोला लोगन बुलातीस ।

पर अब ये पानी के बुलबुला लागे धरलिस।

मँय अपन साथ साथ संसार बर लिखथंव।

ये मोर विचार आय ,पर जगत ला मोर रचना के जरूरत रहही या नइ रहय मैं नइ जानंव।

पर अब में जनहित बर लिखथंव।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

पुरोधा कवि लाला जगदलपुरी -सरला शर्मा

 पुरोधा कवि लाला जगदलपुरी -सरला शर्मा

    जनम ..17 दिसम्बर 1920  

     प्रयाण ...14 अगस्त 2013 

जनम , करम , मरण भूमि ...जगदलपुर ( छत्तीसगढ़ ) 

      दण्डकारण्य बस्तर जइसे विकास के धारा ले पिछुआ गए बस्तर मं लगभग 77 साल तक साहित्य सेवा करइया लाला जगदलपुरी ल शतशः नमन ।

अइसन मसिजीवी मन ल ही साहित्य साधक कहे जाथे ..उन हिंदी , छत्तीसगढ़ी दुनों भाषा मं लिखयं ...सादा जीवन , उच्च विचार काला कहिथें लाला जगदलपुरी के दर्शन करे के बाद ही समझ मं आवत रहिस । जौन समय बस्तर मं आवागमन के साधन कम रहिस , चिट्ठी पत्री , पत्र पत्रिका पहुंचत पन्द्रही लग जावय उन देश के साहित्य संसार से कइसे सम्पर्क करत रहिन होहीं आज सोच के अचरज होथे फेर साधक के साधना मं कभू कोनो कमी तो दिखिस नहीं । 

  खुशी होइस ये जानके कि जन्म शताब्दी के मौका मं सरकार जिला ग्रन्थालय के नांव लाला जगदलपुरी ग्रन्थालय करे के घोषणा करिस हे । जिहां के एक हिस्सा मं उंकर किताब , रचनावली , उंकर जीवन से जुरे कई प्रसंग आधारित जिनिस पत्तर के संकलन ल प्रदर्शित करे जाही । उनला छत्तीसगढ़ के शीर्ष साहित्य सम्मान पंडित सुन्दर लाल शर्मा सम्मान 2014 मं देहे गए रहिस । 

  बस्तर क्षेत्र के हल्बी , भतरी लोकभाषा मं  भी उंकर साहित्यिक अवदं कभू भुलाए नइ जा सकय । हिंदी ग़ज़ल संग्रह ",  मिमियाती जिंदगी दहाड़ते परिवेश " ग़ज़ल जइसे विधा मं नवा प्रयोग , अनूठा कहनी बर सबो दिन जाने माने जाही । " बस्तर इतिहास एवं संस्कृति " आदिवासी अंचल के प्रामाणिक जानकारी बर सबो दिन सनमान पाही । 

  जन्म शताब्दी मनावत आखऱ के अरघ देवत हे 

  छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर संग सरला शर्मा

मँय काबर लिखथँव*-पोखन जायसवाल

 *मँय काबर लिखथँव*-पोखन जायसवाल

       संसार म कोनो भी घटना अउ कारज के पिछू कोनो-न-कोनो कारण होबे करथे। जेन कारण होथे, उही ओकर मतलब ल पूरा करथे, ओला अर्थ देथे। बिन मतलब के कोनो कारज सधै नहीं। लेखन ह घलो एक ठन बड़का कारज आय, जउन सबो ले नि सधै। आज लेखन म दायित्व ह बाढ़ गे हवै। लेखन के तइहा ले कोनो उद्देश्य रहिबे करे हे। मोर समझ म अतका आय हे, कि साहित्य लेखन समाज जागरण बर लिखे जात रहिस हे, अउ अभियो लिखे जात हे। ए जागरण परतंत्रता के बेड़ी तोड़े बर, शोषण के विरुद्ध खड़े होय बर, अंधविश्वास अउ ढोंग पाखंड ले उबरे बर, अपन अधिकार बर सजग होय जइसे अउ कोनो बात के हो सकत हें।

       जब कोनो भी बुता करइया ल पूछे जाथे-'तें ए बुता ल काबर करथस?' त मनखे हड़बड़ा जथे। समझ नि पाय कि ओ का बतावँय? जब बइठ के गुने लगथे त पाथे घलो मँय ए सवाल कोति कभू काबर चेत नि करेंव? भेड़िया धसान का महूँ हर कुआँ म कूद परे हँव? जब सवाल आ जथे त जुवाब तो खोजबे करथे। अइसे कोनो सवाल नि हे जेकर जुवाब नि हे। बस सवाल के तिर म गुनान करे के जरूरत हे। महूँ ह ए सवाल ल पढ़-सुन के सन्न खा गेंव। ए सवाल मोर ले बहुत पहिली अउ पूछे जा चुके हे, तब मँय फट ले कहि दे रेहेंव *मन के संतुष्टि बर* लिखथँव। तब पूछइया साहित्यकार अउ बुधियार मनखे नइ रहिस। आज ए सवाल बिहारी के दोहा बरोबर हे। *सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।

देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।* मँय ए प्रश्न बर अनुत्तरित हँव।

      वो समय मँय कविता लिखना शुरू करे रहेंव। कोनो विषय ऊपर विचार आय त लिखे बिना नींद नइ आवत रहिस। सूते दसना ले उठ के लिखे के बादेच नींद बरोबर पड़य।

          मोर लिखना रेडियो कार्यक्रम सुन के चिट्ठी लिखे के रूप ले शुरू होय हे। तब मोर मन म इही बात रहिस कि मँय रेडियो सुनथँव कहिके, सरी दुनिया जानँय। इही बात ल लेके चना चबेना बर मिले पइसा के पोस्टकार्ड लेके चिठ्ठी लिखँव। मोर संग मोर गाँव के नाँव होवय यहू मन म रहिस। तब मँय दसवीं पास करे रहेंव। रेडियो म गाँव के संग अपन नाँव सुन के बड़ खुश होवँव। दू चार झन मन घलो मोला सहराय लगिन। धीर लगाके चिट्ठी लिखई मोर नशा होगे। उही चिट्ठी म तुकबंदी करत कविता लिखे लग गेंव। तब एके धुन सवार रहिस मोला-  लिखना हे ...अउ सिरिफ लिखना हे। कार्यक्रम के समीक्षा लिखत जाँव।

        आज जब गुनथौं त बस इही लागथे कि मोला लिखना हे अउ बस लिखना च हे। जेन भी लेखन बड़का साहित्यकार मन करे हें अउ करत हें उन काबर लिखथें, उँखर जुवाब हमर/मोर सीखे के लइक रही। जब कोनो घटना या विषय ऊपर कोनो विचार मन म उठे लगथे त अपन विचार ल लिखना हे कहिके ही आज घलो लिखथँव। मोर विचार ल सबो ल बतावँव इही मोर मन म रहिथे। अइसे करे ले एक संतुष्टि घलो मिलथे। अभियो अइसन करे म न चार आना मिले हे, अउ न चार आना मिले के आशा हे, अउ न आशा रखँव। ए बात जम्मो लिखइया मन जानथे। आज के भाग दउड़ म जेन थकान हे, उहाँ ले बाँचे बर थोकन बइठ के लिखे म जेन आनंद हे, उही सुख आनंद बर सरी दुनिया तरसथे। 

       गुरु बिन ज्ञान अधूरा माने गे हे। छंद के छ आनलाइन कक्षा म शामिल होय ले प्रणम्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम के कृपा दृष्टि ले लेखन के मरम सीखे मिले हे अउ मोर लेखन ल दिशा घलो।

        एक ठन बात घलो गुनथँव, आज सोशल मीडिया के जमाना ए। जिहाँ कोनो भी रचना करत हें, अउ लाइक के चक्कर म अपन समय बरबाद करत हें। इहाँ कतको कोनो सही रस्ता बतइया हवै फेर इगो के चक्कर म सबो फँसे हन। अइसन म अपन मन के संतुष्टि बर लिखना हे अउ लिखना हे कहिके लिखत जावत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

मँय काबर लिखथँव*

 *मँय काबर लिखथँव* 


मँय काबर लिखथँव विमर्श के ये विषय हर आज सिरतोन म मोला ये बात ला गुने बर संसो मा डार देय हवै , अउ घेरी बेरी मोर अन्तस् हर मोला पूछत हे आखिर मँय काबर लिखथँव । मँय तो अभी के अदरा नवसिखिया साहित्य के छोटकुन साधक अँव , साहित्य का होथे येखर पूरा मरम ला अभी तक से बने ढंग ले नइ जान पाये हँव । 

मँय कब अउ कइसे पढ़त लिखत सिखत सिखत साहित्य के ये क्षेत्र मा आ गेव मोला खुदे पताये नइ चलिस । मँय अपन स्कुल के समय मा स्कुल के प्रार्थना मा अनमोल वचन बोले बर राहय ,  तव सब शुरू शुरू मा कोनो कलेंडर म लिखाय मन ल बोलय त कोन्हों पेपर म छपे सुविचार मन ला बोलय । तब मँय सोचेव दूसर के लिखे विचार ल कब तक ले बोलबो , येखर ले अच्छा रही हम अपन विचार ल प्रार्थना म रखबो , अइसे कहिके मँय हर अपन स्कुल के समय मा सुविचार लिखे के शुरू करेंव ।


जब मँय अपन लिखे सुविचार मन ल प्रार्थना मा बोलव तब मोर सहपाठी संगी मन ओला कलेंडर अउ अखबार मा खोजय की आखिर येहा कामे के सुविचार ल बोलथे कहिके । मोर पढ़इ लिखइ जइसे तइसे बारहवी पास तक होइस । अब मँय हर अपन घर परिवार वाले मन संग काम बुता करे ल धर लेव , धीरे धीरे कमा के एकठन मोबाइल लेव । अब नवा नवा लेय रहेंव तो ओतेक जानकारी नइ रहिस मोला मोबाइल के , एक झन संगवारी बतावय येला अइसे चलाथे देला फलाना कहिथे येला ढेकाना कहिथे कहिके । उही संगवारी हर मोला वाट्सअप अउ फेसबुक ऐप ल डाउनलोड करके दिस अउ मोर आई डी बना के बताइस येला अइसे चलाना हे कहिके । धीरे धीरे चलाय के शुरू करेंव अब महूँ ल धीरे धीरे सब समझ म आवत गीस , की का होथे सोशलमीडिया फेसबुक वॉटसअप हर । मँय फेसबुक चलाय ल धर लेव फेसबुक म सबले पहिली मोर मुलाकात बड़े भइया कवि सुनील शर्मा जी "नील" मन ले होइस , मँय उनकर संगवारी के लिस्ट म रहेंव तेपाय के उनकर मन के सब पोस्ट मन मोर मोबाइल म आवँय । मँय उनकर मन के कविता रचना मन ल पढ़ते राहँव अउ उनकर मन के रचना मन म अपन विचार मन ला कमेन्ट करके रखँव ।


 सुनील भइया जी अउ हमर मन के बीच सुग्घर सम्बन्ध बनत गीस , एक दिन सुनील भइया मन अपन एक ठन मंचीय कार्यक्रम म प्रस्तुति के फोटु फेसबुक म शेयर करिन , जउन ल देख के मँय उनकर मन ले बहुत जादा प्रभावित होएव । अतका प्रभावित रहेंव की मँय उनकर मन ले उनकर मोबाइल नम्बर माँग के बात करके उनला अपन खुशी ल देखावत बधाई देव । तब सुनील भइया जी मन मोला कविता लिखे बर प्रेरित करिन की आप लिख सकथँव भाई जी आप अपन गाँव गली घर दुवार खेती खार बारी बखरी मन ल देख के का सोचथँव सब ल लिखव कहिके । सुनील भइया जी मन ले प्रेरित होके मँय हर अपन अलवा जलवा कविता मन ल लिखे के शुरू करेंव उन मन मोला सब दिन प्रोत्साहित करते राहय । तइसने ठउका मोला हमर "छंद के छ" छंद परिवार के आश्रय मिलिस , जउन हर मोर बर सोना ऊपर सुहागा असन होइस ।  एक तो मोर शुरवाती समे रहिस अउ ना काखरो से कोनो जादा चिन्ह पहिचान रहिस जेन मन काही बतातीन सिखातीन । 


अइसन समय म मोला हमर छंद परिवार मिलिस जउन हर मोर असन अंकुरित पीका ला सींच सींच के एक ठन पउधा बनाय के उदीम करिस ।  येला मँय अपन सौभाग्य मानथँव की मोला अपन शुरवाती दउर ले ही हमर परम् पूज्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन के आशीर्वाद के छाँव मिलिस । पूज्य गुरुदेव जी मन ले मँय हर छंद साधना के नान नान बारीकी मन ला जानेव अउ छंद ल सिखेव । गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी जउन मन मोर साहित्यिक गुरु आय , उन मन सबो दिन हमला ये बात ल बतावत राहय अउ अभी भी बताथे की लेखन के उद्देश्य बस किताब छपवाना नइ होना चाही । कुछ एकठन अइसे लिखव अउ करव जेखर ले लोगन मन आप ल सब दिन सुरता करय , अइसन लिखव जउन आप के नाव ल अमर कर दय । अइसे तो मँय हर साहित्य के ये क्षेत्र मा आय हँव , गुरुदेव जी मन ले जउन सीखे हँव अउ जाने हँव ओखर ले लागीस की सामाजिक जनजागरूकता अउ जन जागरण के कविता लिखना चाही ।


जउन रचना म समाज ल काही सन्देश जाय । मँय कोशिश तो इही करथँव की पद्य म लिखँव चाहे गद्य म कविता होय चाहे आलेख या कहिनी समाज बर कुछ न कुछ तो सन्देश होनेच चाही । तब तो हमर ओ लेखन के कोन्हों मतलब निकलही नइतो हमर ओ लिखइ हर बस छपवाये भर के होही । मोर अपन जादा रूचि लेके लिखे के एक ठन बड़का कारण इहु हर हे : - मोर अपन ननपन ले सपना रहिस पुलिस नइतो फौज म जाके अपन देश के सेवा करतेव कहिके । फेर किस्मत म नइ रहिस ओइसन सेवा हर , तब मँय सोचेव जवान मन उँहा हथियार थाम के सेवा कर सकत हे , तव हम हर कलम थाम के देश सेवा काबर नइ कर सकन । हम किताब मन म पढ़े हवन की - कलम की ताकत तलवार की ताकत से जादा होता है कहिके। इही सब ला सोंच के मँय हर अपन देश सेवा समाज सेवा के नाव ले कलम उठाये हँव अउ मँय येखरे बर ही लिखथँव ।   


                मयारू मोहन कुमार निषाद 

                  गाँव - लमती , भाटापारा ,

               छंद साधक सत्र कक्षा - 4

मँय काबर लिखथँव*-पूरन जायसवाल

 *मँय काबर लिखथँव*-पूरन जायसवाल


मँय काबर लिखथँव ये प्रश्न देखे मा जतका नानकुन अउ सहज दिखत हे, येखर उत्तर हा ओतके जटिल हावय। अइसे नोहय के ये प्रश्न अभी के आय, ये प्रश्न कई बारी खुद भी खुद ले करे हँव, तव कई बार दूसर गणमान्य मन भी मोर ले प्रश्न पूछे हे। एमा खासकर नाम लेहूँ हमर पलारी अँचल के बड़ मयारू अउ गुरतुर अउ मोर बड़ सम्माननीय कवि *डॉ. रामकुमार साहू 'मयारू'* के।


  मँय जब उत्तर देये के कोशिश करथौं तब *मँय काबर लिखथँव* के बजाय *मँय काबर लिखत हँव* के उत्तर जादा प्रभावी रूप मा मिलथे। सँगेसँग *काबर लिखना चाही* एकरो उत्तर हा हावी हो जाथे।



*मँय काबर लिखथँव* एक प्रवृत्ति परक सामान्य वाक्य आय। अउ बात लेखन के प्रवृत्ति के आय तव ये तो उमर अउ अनुभव अउ नवा जानबा के साथ बदलना स्वाभाविक हे।


मँय कहँव कि मँय अपन भैया *श्री पोखन जायसवाल* (जउन अभी पटल मा सरलग लिखत हें) ला अपन आगू मा लिखत, सोचत, आकाशवाणी मा कविता पढ़त, पेपर मा छपत कवि गोष्ठी मा जावत देखके लिखे के शुरू करे हँव तव मोर लिखे के उद्देश्य अउ कारन बाहरी रूप मा निकलथे *मँय पेपर मा छपे अउ रेडियो मा आये बर लिखे ला धरेंव।*


ऊपर लिखे मयारू भैया के प्रश्न जउन समे के बात आय, वो समे मँय कहूँ बताना, जताना नइ चाहत रहेंव कि मँय कवि आँव, मँय कविता लिखथँव। तव *मँय काबर लिखथँव* एकर सीधा उत्तर रहय *सिरिफ अपन बर*। वोकर बार बार पूछे उकसाये ले कवि गोष्ठी मन मा आये जाये लगेंव। अब लिखे के उद्देश्य थोकन बदलगे अउ बड़े होगे। इही बीच मा मोर मिलना रायपुर के उस्ताद शायर *जनाब गौहर जमाली* ले होइस जेन बाद मा मोरो उस्ताद होइस। वो बताइस कि सिरिफ सिंगार हा कविता नइ होवय। (वो समय सिंगार ही जादा लिखत रहेंव।) समाज अउ देश मा हमर आसपास मा जे घटना घटत हावय चाहे घटगे हावय वोकर ऊपर भी बहुत कुछ लिखे जा सकत हे अउ लिखे के जरूरत भी हे।


ये तरह ले समय अउ मार्गदर्शन अउ जीवन के अपन अनुभव के हिसाब से लिखे के उद्देश्य बदलत गिस।


अब कहूँ आज के स्थिति मा *मँय काबर लिखथँव* के एकेच्च ठन उत्तर देये के बात हे तब कहिहौं कि अपन मन के आनंद के सँगेसँग यहू सोच हावय कि का पता मोर लिखे कोन गोठ मा कोनो व्यक्ति अउ समाज के हित निकल आय। साहित्य रूपी पार बँधावय तब का पता एको पत्थर मोरो नाव के लग जावय। *लिखत हँव, लिखत हँव, लिखत हँव।* स्पष्ट हे *लिखथँव* के उत्तर जटिल हे।


पूरन जायसवाल

नँदावत खेल

  नँदावत खेल


फुगड़ी-महिलाओं द्वारा खेले जाने वाला खेल।

गोंटा-महिलाओं द्वारा खेले जाने वाला खेल।

नदी पहाड़-बच्चों द्वारा खेले जाने वाला खेल।

लोहा गड़उला- बरसात में खेले जाथे। 

गिल्ली

भौंरा

बाँटी

खो खो

कबड्डी

डंडा पचरंगा

बिल्लस

रेस टीप

सत्तुल(पिट्टुल)

गोंटा

छुपन छुपाई

घरघुंदिया

नदी पहाड़ 

छू छूवउला

चूड़ी पकउला

पुतरी पुतरा

सांकली

गेड़ी दौड़

घोड़ा कूदउला

रंग पहचानना

गोटा

पोसम पा

तिरी पासा

चोर सिपाही

रस्सी कूद

लंगड़ी

गोला फेंकउला

आँख मिचौली

बोरी दउड़

जलेबी दउड़

लूडो, साँप सीढ़ी

फोदा

तुवे

डंडा फेंकउला 

धूप छाँव

लंगड़ी दौड़ 

पीठ चघउला 

मेंचका दौड़

आलू दौड़ 

फल्ली

तिरी पासा

तिरी चउक

बिल्ल्स

गिल्ली डंडा

पचरंगा


नदी पहाड़

छू छुवाल 

रेस टीप 

भक़्क़ा गिधवा

भौंरा 

बाँटी

चाय की पत्ती

मनखे मनके क्रियाकलाप* ले सम्बंधित शब्द के दिन रही

 आज नॅदावत शब्द  म *मनखे मनके क्रियाकलाप* ले सम्बंधित शब्द के दिन रही

*अ*

*असकटाना*- बोर होना

*अतलंग करना*- अति करना

*अमरना*- पहुँचना

*अकबकाना*-दम घुटना

*अटकना*-रुक जाना ,फँस जाना

*अँड़ना*-अडिग

*अखरना*-पश्चाताप

*अधमरहा*-आधे मरे

*अदरा*-नवसीखिया,आषाढ़

*अतलंग*-अति करना

*अनपचक*-पाचन नही होना



*आ*


.

.

*इ*

*इतराना*

मजाक करना

.


*उछरना*

उल्टी करना 


*उॅंखाना/ उॅंघाना*-  नींद आना, सोना

*उॅंखानना*- उखाड़ना


*ऊ*

.

.


*क*

*कलपना*-किलौली करना, बार बार निवेदन करना, पुकारना।

*कुचरना* - कूटना, पिसना, मारना

*कोड़ियाना*-  कुरेदना,   



*ख*


*खिसियाना*- डाॅटना

*खिसकना*-चुपके से निकल जाना

*खजवाना*-खुजलाना

*खखारना*-गले से कफ निकालने के लिए प्रयास करना

*खिलखिलाना*-हँसना

*खखुवाना* - क्रोधित होना, गुस्साना


*ग*

*गरियाना*-गारी देना, डाॅटना

*गपियाना*-हवा म बात करना

*गरजना*-जोर से चिल्लाना

*गिजोरना,खिसोरना,निपोरना*-दाँत दिखना

*गचकाना*-मारना

*गपकना* - खाना, निगलना


*घ*

*घोरना*- बार बार दुहराना, घोलना


*च*

*चिभोरना*- डुबाना

*चिचियाना*- चिल्लाना


*छटपटाना*

व्याकुल होना

*छरियाना*- फैलाना

छेंकना ---रोकना

छींकना-----छींक आना

छितिर बितिर करना--फैलाना

छींचना---सींचना

छर्रा देना- गोबर पानी छिड़कना।

छुछुवाना /किसी चीज की कमी होना,तरसना ।

छतराना/ फैलाना।




******


ज* 

*जम्हाना*- उबासी लेना

*जोजियाना*- जबरदस्ती करना

*******

जनमना/जन्म लेना

जमाना/ व्यवस्थित करना/ दूध का दही बनाना

जरई आना/अंकुर फूटना

जरना/जलना

जठाना/बिछाना

जीउ परना/ कीड़ा लगना या किसी काम में अधिक समय लेना।

जंजेड़ना-इकठ्ठा करना/अव्यवस्थित रूप से किसी चीज का रखना।

जीव खाना/परेशान करना

जगाना/ नींद से जगाना

जोरना- समान को बाँधना/व्यवस्थित रखना।

जोजन/परेशानी का काम

****************

झ*

*झोरना*- मारना-पिटना, खाना-पीना

*झोलना* - लूटना 

******

झरझराना।/किसी को खरी खोटी सुनाना

झरना/  फल या पत्तियों, बाजार आदि का समापन ।


झझकना /चौंकना,अचानक भयभीत होना।

झगरना^-लड़ना 

झाँइ परना/चेहरे पर काले निशान पड़ना।

झोरना/छानकर निकालना ,

मछली को जाल में फँसाना।


झँवाना किसी वस्तु का अधिक सीक जाना

*******




ट*

*टमरना*- टटोलना

****

टोटका करना/ 

टरकना/ किसी स्थान से चुपके सेखिसक जाना,

हट जाना

टपकना/ चूना,पानी या किसी द्रव पदार्थ का बूँद बूँद गिरना।

टरटराना/ मोटी आवाज में चिल्लाना मेढक का आवाज निकालना।

टोरना, विच्छेद करना ,

तोड़ना।

टारना/हटाना

******

ठ*

. *ठठाना*- मारना✅

.ठगना/ बेवकूफ बनाना

ठठ्ठा करना/मजाक करना

ठुनठुनाना/ठंड में हाथों का शून्य होना।

ठिनठिनाना/घंटी बजाना

ठेंगवा दिखाना/बेवकूफ बनाना या चिढ़ाना

ठूसियाना/ मुक्के से मारना

ठस होना/ किसी वस्तु का कड़ा होना


***********


*ड*

*डोहारना*- ढुलवाना


डोंहराना ,कलि आना

डोहर होना/अधपका  

डूमना/पानी आदि निकालना।


******

ढ*

*ढेरियाना*- सुस्त पड़ जाना


*त*

*तॅंउरना*- तैरना

*तिरना*- खींचना


ततियाना/गर्महोना आक्रोश मे आना।

तरना/तलना

तारी पीटना/ताली बजाना

तुकना/निशाना लगाना

ताकना/निगरानी करना

तियारना/काम बताना

*****

थ*

*थेमना*- सहारा देना

थथमराना  /डगडगाना

थार थीर रहना/ स्थिर रहना शांति रहना ।

थूकना-

थूथियाना'/टोटका करना


*******((


द*

*दॅंदकना*-  गरमी लगना

दँदरना// सिहरना शारीरिक रुप से परेशान होना। 

दँउरी फाँदना/धान मिंजाई के लिए बैलों काउपयोग करना।

देखासीखी/एक दूसरे का अनुसरण करना।

दँदोरना/परेशान करना।

दिल्लगी करना/मजाक करना।

देखौटी/दिखाना करना

*********

ध*

*धाॅंधना*- बंद करना


धँधाना/बंद हो जाना

धुंगियाना -धुंआ धुंआ होना

धुर्रा छँड़ाना/बार बार किसी काम का करना।

धुंकना/हवा करना पंखा झेलना

धरना/पकड़ना रखना

धकियाना /किसी को धक्का देना

धपोरना -ढेरियाना /किसी काम को नही करने की इच्छा से चुपचाप खड़ा हो जाना  ।

**********



न*

. *निटोरना*- एकटक देखना✅

. *नँगत अकन*- ढेर सारा✅


नरियाना/जानवरों का आवाज निकालना

नहाना/स्नान करना

नाचना/ नृत्य करना

नचाना/नृत्य करवाना

नटना/अड़ना जिद करना

निनासना -कमी निकलना हीनना

निमारना -साफ करना,छाँटना

निथारना-पानी से अलग करना

नटेरना -किसी को गुस्से से आँख दिखाना


नोहर -कोई चीज का नइ मिलना ,



प* 

. *पछारना*- पटकना✅

.पोसना/पालन करना 

पोटारना/गले लगाना

पटकना/गिराना 

पहिरना/पहनना

पिचिर पिचिर करना/ फालतु बात करना।

पिचपिचाना/ नमी होना/किसी वस्तु का जादा गल जाना।

पिकियाना /अंकुर फूटना

पिलपिलाना/ज्यादा पक जाना।


परतीत -यकीन

परेतिन --एक प्रकार का भूत प्रेत से सम्बंधित शब्द

पोलखा -ब्लाउज

पोगरी-खुद का


*फ*

*फटिकना*- फेंकना

फोरिराना/स्पष्ट बात कहना

फरियाना/ फैलाना

फारना/ फैलाना 

**********

*ब* 

. *बुलकना*- घुसना ✅

. *बिसरना* - भूल जाना 

*बकना/गाली देना

बोरना/डूबाना

बउरना/उपयोग करना 

बगियाना/ भड़कना

बजाना/आवाज़ करना

बरना/ किसी वस्तु को लपेटना-जलना

बसियाना/बासी होना

बखानना/गाली  देना

बउछाना/बच्चे का रोना चिल्लाना ।

बिफड़ना/भड़कना

बियाकुल होना/आकुल होना।

बिजराना-चिढ़ांना

********


भ*

*भुलवारना*- मनाना

भकोसना/ खाना

भकभकाना/ उभराना/ भड़काना/ गुस्सा दिलाना

भीतराना/ अंदर करना 

भाँजना/ लाठी घुमाना

भँजाना/ तुड़वाना चिल्हर कराना

भभकना/  लौ का   उपर उठना

भुरियाना/ फफूंद लगना

भूंजाना / सेक जाना

भूंजना/ सेकना


**********





म*

*मटियाना*-शांत होना

*मसकना*- दबाना

मुरकेटना,/मरोड़ना

मूड़ाना/ पूरा बाल काटना/ठगा जाना

मुटकाना/घूँसा मारना

मेछराना/मस्ती में घूमना

मटियाना/ अनदेखा करना 

*मटमटाना* - इतराना

*मसमोटी*- मस्ती करना


***********

*य*

.

.

*र*

*रूॅंगना*- कलपत कुछु कहीं मांगना

रिरियाना/ भीख मांगना 

रिसाना/गुस्सा होना

रिझना/ मोहित होना

रिस करना/ गुस्सा करना

रितोना/गिराना 



*ल*

*लतियाना*- लात से मारना

ललियाना/गुस्से में लाल होना

लिबलिबाना/ पलक का उपर नीचे करना

लिरबूटाना/ चिपचिपा होना

लरियाना/चिपचिपा होना

लूर उतारना/नकल करना अनुसरण करना।

लरघियाना/सुस्ती पड़ना

लपटाना/मिंझर जान

लटलटाना/चिपचिपा होना

लटकना/झूलना

ललचाना/लालच लगना

 **********

व*





.

*स*

*सकेलना*- इकट्ठा करना

*सुसकना* सोंच सोंच के रोना 

*सुड़कना/नाक से साँस उपर खींचना

सरना/ सड़ना

सिझोना/ मजबूत करना 

सरापना/ गाली बकना बद्दुवा देना

सैंतना/ गोबर थोपना

साँटना/मिलाना

सानना/मिलाना-गूथना

*************

ह*

*हुदरना*- कोचकना

हलदियाना/हल्दी लगाना

हरियाना/हरा भरा होना

हरहराना/गर्म हवा चलना

हँकालना/हाँकना/भगाना

हकहकाना/मन अंतर से भाव प्रकट करना। 

हुमेलना/ढकेलना

 ***********

कोंघरना=दर्द से व्याकुल हो जाना

खोदरना=कुरेदना

हुदेनना=सिर,या कुहनी से झटका देना

सुरकना=सर्दी य्या तीखा खाने पर नाक से साँस खींचने पर आने वाली आवाज

कलपना=किसी चीज के लिए अत्यंत दुःखी होना

सोरियाना=याद करना

लुड़हारना=मनाना

रिसाना=गुस्से से नाराज होना

खिसियाना=चिढ़ जाना

गारी बकना=अपशब्द कहना

बखानना=गाली देना

अशीसना=आशीर्वाद देना

सरापना=सरप देना

कठलना=जोरदार परिहास

घोलंडना=जमीन पर लेटना

उखरू =पैर के बल बैठना

आरो देना=जवाब देना,बोलना,प्रत्युत्तर

ढलनँगना=लेटना

ऊँघाना=नींद से पहले की स्थिति

गिन्गियाना=ऐसी आवाज जो अस्पष्ट हो,गले को दबाकर निकाली जाने वाली आवाज

झर्राना=झटकना

ओंगना= तेल ,लोशन इत्यादि का लेप,चुपरना

चुरपुराना=तीखा खाने पर सी सी की आवाज

अँखियाना=आँखो  का इशारा

तोतराना=तुतलाना

गोठियाना,बतियाना=बात करना,संवाद करना

चुलुक लगना=मन करना

महकना=सुगन्ध

बस्साना-बदबू

सूंघियाना=सूँघना

परछो लेना= परीक्षा लेना

क़ुर्बुराना,फुसुर फुसुर करना=धीरे धीरे  बोलना,बुदबुदाना,अस्पष्ट आवाज जो सामने वाले को सुनाई न दे

बन्नी बन्नी देखना, गुर्री गुर्री देखना=आंख तरेरना

फ़ुसन के सोना=नाक बजाकर सोनां,देर तक सोना

सकेलना=एकत्रीकरण

पंचायती करना(मुहावरा)= अतलंग करना

शोक करना=संवेदना करना

उलानबांटी=सिर के बल लुढ़कना

रेंगना=चलना

झोंकना=हवा में फेंकी गई वस्तु को पकड़ना

कोंघरना=दर्द से व्याकुल हो जाना

खोदरना=कुरेदना

हुदेनना=सिर य्या कुहनी से झटका देना

सुरकना=सर्दी य्या तीखा खाने पर नाक से साँस खींचने पर आने वाली आवाज

कलपना=किसी चीज के लिए अत्यंत दुःखी होना

सोरियाना=याद करना

लुडहारना=मनाना

रिसाना=गुस्से से नाराज होना

खिसियाना=चिढ़ जाना

गारी बकना=अपशब्द कहना

बखानना=गाली देना

अशीसना=आशीर्वाद देना

सरापना=शाप देना

कठलना=जोरदार परिहास

घोलंडना=जमीन पर लेटना

उखरू =घुटने के बल बैठना

आरो देना=जवाब देना,बोलना,प्रत्युत्तर

ढलनगना=लेटना

ऊँघाना=नींद से पहले की स्थिति

गेंगीयाना=ऐसी आवाज जो अस्पष्ट हो,गले को दबाकर निकाली जाने वाली आवाज

झर्राना=झटकना

ओंगना= तेल ,लोशन इत्यादि का लेप,चुपरना

चुरपुराना=तीखा खाने पर सी सी की आवाज

चुचवाना /टपकना।

अँखियाना=आँखो  का इशारा

तोतराना=तुतलाना

गोठीयाना=बात करना,संवाद करना

चुलुक लगना=मन करना

------------------------------------

चिभिक करना /चेत करना ।

चरबत्ता गोठियाना /दो से अधिक लोग अलग अलग विषय पर चर्चा करना।

परछो लेना /परीक्षा लेना।

------------------------------------

माहकना=बदबू देना

सूंघीयाना=सूँघना

परछो लेना=संकेत समझना

क़ुर्बुराना=धीरे धीरे 

 बोलना,बुदबुदाना,अस्पष्ट आवाज जो सामने वाले को सुनाई न दे

बटबटाना /आंख में आसू भर आना ।

बाहरना /घर आंगन को झाड़ू लगाना।

बन्नी बन्नी देखना=आंख तरेरना

फ़ुसन के सोना=नाक बजाकर सोनां,देर तक सोना

सकेलना=एकत्रीकरण

पंचयती करना(मुहावरा)=अतलंग करना

सोग करना=संवेदना करना

उलानबांटी=सिर के बल लुढ़कना

रेंगना=चलना

झोंकना=हवा में फेंकी गई वस्तु को पकड़ना

संग्रह-छंद के छ परिवार

साग भाजी से सम्बंधित शब्द

 बारी बखरी के साग भाजी 

आज नंदावत शब्द म बारी बखरी के साग भाजी रही-


खेकसी

कुंदरू

पोंई भाजी

करेला

अमारी भाजी

बोहार भाजी

मुनगा

रखिया

मखना

जोन्धरा

पटवा

रमकेलिया, मुरई, तूमा,

कलिंग(कोंहड़ा), तिवरा, 

चेच भाजी, बर्रे भाजी, 

तिनपनिया भाजी, रखिया, 

बथुआ भाजी, चिरपोटी पताल, 

चरोटा भाजी, चनौरी भाजी,

चुरचुटिया, सेमी, जिमिकान्दा, गाँठ गोभी, पत्ता गोभी, बरबट्टि, नीमऊ(नींबू), पालक भाजी, 

नवलगोल- गॉंठ गोभी

रमकेलिया- भिंडी

चुरचुटिया- ग्वारफली

पताल, बंगाला- टमाटर

चिरपोटी पताल-छोटे आकार का टमाटर

कोंहड़ा, कलिंज- कद्दू, कुम्हड़ा

मुरई , मुराई- मूली

पाला भाजी- पालक भाजी

भाटा- भट्टा

गोलइॅंदा भाटा-बड़ा गोलाकार भट्टा

मिरचा- मिर्च

गोंदली भाजी- प्याज भाज, पियाज भाजी

नवलगोल- गॉंठ गोभी

रमकेलिया- भिंडी

चुरचुटिया- ग्वारफली

पताल, बंगाला- टमाटर

चिरपोटी पताल-छोटे आकार का टमाटर

कोंहड़ा, कलिंज- कद्दू, कुम्हड़ा

मुरई , मुराई- मूली

पाला भाजी- पालक भाजी

भाटा- भट्टा

गोलइॅंदा भाटा-बड़ा गोलाकार भट्टा

मिरचा- मिर्च

गोंदली भाजी- प्याज भाज, पियाज भाजी

बोहार भाजी,खोटनी भाजी ,मुसकेनि मछरिया,पटवा,चरौटा, गुमी भाजी,दार भाजी,करमत्ता ,भथुआ भाजी,उरीद भाजी

मुनगा भाजी, तुमा, डोढका - गलका, 

जरी- खेड़हा, तिनपनिया भाजी, चरोटा भाजी, अमारी भाजी, बर्रे भाजी, कुसुम भाजी, कांदा भाजी, बोहार भाजी।

मछरिया भाजी

काँटा भाजी

बरबट्टीभाजी

मुस्केनी भाजी

अभारी भाजी 

कुरमा भाजी

गोंदली भाजी

लोहड़ी भाजी

कोलियारी भाजी

खोटनी भाजी 

मेथी भाजी

मिर्ची भाजी

दार भाजी/गोल भाजी

पलइचा भाजी

मुरौती भाजी

खेढ़हा भाजी 

पालक भाजी

तिंउरा भाजी

चना भाजी 

उरीद भाजी

पोइ भाजी

कंसइया भाजी

कोचई भाजी

बर्रा भाजी,छेरीकान भाजी, पटवा भाजी,मुरई भाजी,दार भाजी,मास्टर भाजी,बोहार भाजी,लाल भाजी,मखना भाजी,चनौरी भाजी करमता भाजी।

 कँउवा भाजी

संग्रह-छंद के छ परिवार

सरसो भाजी,

गुमी भाजी

खोटनी भाजी,

चमेटा= *सेमी के बड़े रूप*

उरला भाजी,

चनौरी भाजी,

सरसो,तिली,हुरहुरिया,

Monday 14 December 2020

घर ले सम्बंधित शब्द

घर ले सम्बंधित शब्द

*घर*

*कुटिया*साधू संत के पान पतइ के कुटी

*डेरा* अस्थायी घर पाल परदा तान के बनाय

 छँइहा।

*कुँदरा* खेत कोठार मा बनाय पैरा भूँसा के घर।

*छितका कुरिया* गरीब गुरबा के घर

*बाड़ा* गाँव के गौंटिया के घर

*हवेली* अब्बड़ अकन झरोखा वाला दूतल्ला

 घर

*महल* राजा के घर

*चाँदनी* पटनी पाट के बनाय छत

 *खोंधरा* चिरइ के घर

*माँद* शेर के घर

*बिल* मुसुवा/साँप के घर

*बीला* साँप मुसुवा के घर

*छाता* भाँवरमाछी के घर

*जाला* मेकरा के घर

*कोठा*-मवेशी मन ला राखे के ठउर

*गोर्रा*-गौशाला

*बछरूकुरिया*-बछरू रखे के ठउर 

*पठेरा*-माटी के दिवाल मा समान रखे बर बनाय जगह 

*फुला*-दिवाल मा समान रखे बर बनाय छोटकुन जगह

*झोरखा*-खिड़की

*खिरखी*-खिड़की,

झरोखा

*पटिया*-लम्बा 

*कमरगही*, 

*लदाव*, 

*गोदगोदा*, 

*काँड़*, 

*कोरइ*, 

*भदरी*, 

*नल्ली खपरा*,

 *पट्टी खपरा*

*कवेलू* 

*गोड़ा*

*कोठी*

*डोली*

*झिपारी*

*पटँउहा* 

*भीतरहा खोली*जेवन करे के खोली

*बइटका खोली* ब इठे के खोली

 *रँधनीखोली* राँधे पसाय के खोली

*सुतनीखोली* सुते के खोली

*जेवनीखोली* जेवन करे के खोली

*परछी* खोली के आगू के खंभा भारवट उपर टेके खुल्ला ठउर 

*खंभा*

*थामन/बोहन* खंभा ला बोहइया लकड़ी

*रेंगान* रेंगे के खुल्ला जगह

*ओसारी ओसारा* रँधनी खोली ले लगे भीतरहा खोली जिहाँ जेवन करे जाथे ।

*परसार* लम्बा चौंड़ा बड़का खोली।

*रेंगान* रेंगे के रद्दा गलियारा, 

*अँगना*दुवार* घर आगू के खुल्ला ठउर 

*साहन* ?

*डेहरी *डेरउठी* परछी के खाल्हे के ठउर

*खोर *दुवारी* *द्वार*  *मुँहाटी * मुँहटा*  दरवाजा

*मोक्कड़*-कचरा फेके के घर के लगझेवर घुरुवा

*टेकनी*-टूटे पटिया अउ काँड़ ला सहारा देबर लगाय जकनी लकड़ी

*म्यार* 

*मुड़का*,

*भदरी* 

*छपरी*

*छावनी* 

*छज्जा*, 

*छाजन*

*कोलाबारी*-घर से लगे छोटे से खाली जगह,

*पिछोत*-घर के पाछू भाग

*अगोत*-घर के आगू भाग

परवा-?

*बरेंड़ी*-छान्हीं के शिखर

*बागड़*-बैठक

*दमदमा*-छज्जा, सामान रखे के जगह

*आँट*-घर के परछी या दुवारी के लकझेवर ऊँच जगह जेला बइठे बर ब उरे जाथे। 

*फरिका*/

*फइरका*,

*सिटकिनी*

*बत्ता*

*रापटर*

*थामन*

*थमेरा*

*कलमी*

*कोलकी*

*संँगसी*

*सँगसा*

*पटउँहा खोली*

*देवताखोली*,

*अथानखोली*

*देवघर*

*देवघरा*

*समानखोली*

*पहुनाखोली*

*सियानखोली*

*घनौची*-पानी रखे बर बनाय गोड़ा वाला ऊँच ठउर, 

*कनकड़ा*?

*भदरी*-बाँस के बिछोना, जेखर ऊपर खपरा छाये रहिथे।

*कमचिल*-काटे अउ छीले बाँस के पातर पातर कुटका।

*मुड़का*-मिंयार के उप्पर के छोटे लकड़ी जे भदरी ल बोहे रहिथे।


*मिंयार*- घर के दीवार के ऊपरी हिस्सा के लकड़ी जे छानी परवा के भार ल बोहे रहिथे, दू दीवार म बेहड़ा गड़े रहिथे।।


*कोठ*- घर के दीवार


*पाया*-घर बनाये के पहली खने गड्ढा


*नेवान*- दीवार के तरी के पथरा या  ईंट

*नेव*-नीव, 

*गारा*,

*माटी*

*पेरउसी*

*काँड*

*कमरगाही*,

*भितया* 

*बत्ताखीला*

*काँड़खीली*

*काँड़खीला*

*पटनी*,

*पटाव*

*लदाव*

*कपाट*

*राहेर काड़ी*(पलानी बर),

*गोबर*(लिपे बर),,

*रंँधनी*,

*परछी*,

*बरवट*

*चौरा*

*खोली*,

*कुरिया*,

*पटँउहा*,

*गोड़ा*, 

*कोठी*,

*माईकोठी*,

*पटिया* कांड़ ल ठोके बर

 *धारन* -माई धारन- पटिया ला बोहे बर

*मूड़की-* पटिया ला उठा के रखे बर 

 *चूरला-* मूड़की ले पटिया म खापे बर छोटे हिस्सा

*मयार-* सात आठ फीट उँच भीठी म पोठ लकड़ी जउन छानी के भार ल सहिथे|

*कट पटाव* - परछी उतारे बर लकड़ी के खाँचॎ जेन म छोटे पटिया लगा के कांड़ ठोके जाथे|

*बत्ता* -भदरी ल बांधे बर बांस के घेरा

*खपरा -* नाली, पानी जाये  बर

 *ओरवाती* -ओरी ओर खपरा के धार

*ओरी*-

*ओरिया*

*कीरगा/पाला-/ढोली* धान , कोदो धरे के बाँस के बने चौकोर संरचना माटी छाब के बनाये जथे, कोनो गोलाकार भी रहिथे|


*कोठी* - माटी के बने होथे ।

*ढोली* - बाँस के कमचिल के बने होथे जउन ला बाहिर अउ भितरी ले माटी ले छाब के बनाये जाथे, ये दुनों के उपयोग अनाज धरे के काम आथे।

*ढाबाखोली*-

*ढाबा-ढोलगी*-

*खपरा*-

*दुवारी*-

*कपाट*-

*सँकरी*-

*रेला*-

*ओरवाती*-

*झिपारी*-बरसात म भितिया ल पानी से बचाय बर राहेर काड़ी अउ पैरा ले बनाए जाथे।

*पटउँहा*-लकड़ी छेना या अन्य समान रखे बर छानही के नीचे पटनी या बास लगा के गोबर माटी बरंड छाब के बनाए जाथे।

*पठेरा*-

*फूला*-

*भाँड़ी*-

*भीति*

*भितिया* बनाय जाथे।

*फइरका*-

*राचर*-

 *दरवाजा*-

*गाला*-

*सँकरी*-

*सिटकिनी*

*तुलसी चौंरा*

*फर्रस*

*घरलीपनी रंग* *कडमरगही*

*कमरगाह* माटी के घर कॉंड़ ल एक साथ बांध के रखे बर ओखर छोर म एक हाथ छोड़ के बॉंस ल चीर के उपर नीचे लगा के बांँधे जाथे।

घर म बउरे जाय वाले समान*

 घर म बउरे जाय वाले समान*

माची-खटिया के छोटे रूप


कथरी-खटिया म जठाये के कपड़ा।


कुटेला-कपड़ा धोय या कोनो सुखाय फसल ल कुचरे के काम अवइया लकड़ी के  गोल या चाकर पटिया


मुड़ेसा- कपड़ा ले बने मोठ छोट गोल चाकर गद्दा जेन मुड़ के तरी सोवत बेर उपयोग होय।


कोटना-बइला मनके पानी पिये के  पथरा के चाकर पात्र


धोनाही-धोवन धरे के छोट पात्र। येला हँड़िया म माटी छाभ के बनाये जाथे।


चुरोना बोरना - जादा या मोठ कपड़ा ल  धोय बर निरमा म डुबोना।


टठिया-- खाय के थाली जेला थारी घलो कथन


मुड़सरिया....ए हर तकिया आय


ओढ़ना..ओढ़े के

दसना...बिछाए के, बिस्तर


कोपरा ..परात


बटुवा.... भात राँधे के बर्तन


हँउला....पानी भरे के गुंडी या गगरी


मलिया, या थरकुलिया...प्लेट..


अब सइकमी या सइकमा नई दिखय..

बोरे बासी इही म खान...


कुंड़ेरा....माटी के दूध चुरोय के बर्तन..

            बड़े कुँड़ेरा म अथान डार के              

    ..... ..रखन घलो


बहरी....झाड़ू


सुपेती....रजाई


*कईधोना*= चाउर धोय के

*होमाही*= हूम देके


*तखत*=बइठे के लकड़ी के बाजवट जेंन सोय के घलो काम आवय


*करची*=जर्मन के बर्तन जेन भात बनाए के काम आथे


*जांँता*=अनाज पीसे के चक्की

*मूसर*

*मूसरी*

*बाहना*=अनाज कूटे के गड्ढानुमा स्थान

*पैली* = खाना बनाये बर चाँउर नापे के पात्र

*ढकेल गाड़ी* -लइका मन के 

*तख्ता*-जमीन में बिछाय वाला,जेमा पहिली दर्जी मन कपड़ा काटे

*लकड़ी खलबट्टा*

*कागज टुकनी* किसम किसम के टुकनी

*गोरसी*

 *मरपरई*

*काशी बहिरी*

*बाजवट*

*तखत*

*कजरौटी* काजर धरे के

*सुराही*-पानी भरे के 

 *दार मटकी*

*ढेरा* रस्सी बनाय के 

*चोंगी*

*भँदई* चमड़े का सेंडिल नुमा जेला अक्सर राउत मन पहिरे ।


*मोरा* पाना या झिल्ली से बने हुए  बरसाती जेला मुड़ी मा टाँग के ओढ़े जाथे।

*खुमरी* पाना, कमचील या झिल्ली से बने हुए बड़का टोपी कस  बरसाती 

*संदूक* पेटी

*धूसा* बड़का साल जेला कंबल बरोबर ओढ़े जाथे।

*खोल*

गद्दा रजाई में चढ़ाने वाला कवर।

*निसेनी* लकड़ी से बने अस्थायी सीढ़ी।

*पार्खत* तामा के बने नान्हे मलिया जेमा भगवान के मूर्ति ल नहवाय जाथे।

*पट्टी*

*नेवार*

*मचोली*

*माची*

*मचिया*

*दोलगा खटिया*

*भेलवा*- लकड़ी के *झूलना*

*गोदना*

*गोरसी* 

*काँटा बाहरी*

*खूँटी*

*मोरी*

*खुमरी*

*गाँती*

*लिपनी*

*पोतनी*

*पोतना*-

*झूलना*

*फट्टी*

*फट्टा*

*टट्टा*

*हुक-लकड़ी*

*अरोनी*

*सींका*

*डोरी ओनचे खटिया*

*नेवार गँथाय खटिया*

*पौतरा*

*कोपरी*

*कठौता*

*फूलबहिरी*

*काँसी बहिरी*-

*छीनबहिरी*-

*खरेटा बहिरी*-

*खरहेरा बहिरी*-

*झारनी*-

*बरकी*

*गोदड़ी*-

*गोदड़ा*

*गुदड़ी*

*गुदेलन*

*मसकनी*

*दुलइ*

*तिजौरी*

*माटीराख*-

*खारराख*

*गुडर्री*-

*गिरि*

*बिजना पंखा*-

*बिजनी पंखा*-

*बइटकी*-

*आसनी*-

*बिराजनी*-

*दसना*-

*मोड़ा*- बइठे के 

*टेमा*

*कंडील*

*भभका*

*चिमनी*

*माटीतेल*

*छेनौरा*

*छेनाखरही*

*छेनाघुरी*

*ठप्पा* चौंक चाँदन पुरे के छेदरहा डब्बा

*मचोली*

*मचोलिया*

*बघनखा*

*कजरौटी*

*ताबीज*

*रीठाचूरी*

*रीठाकरधन*

*रीठामाला*

*मुँड़मिंजनी माटी*

*पिंवरी छुही*

*सादा छुही*

*छोहर*

*कोटना*

*पर्रा*

*पर्री*

*सँउखी*

*घानी*

*पोथीपतरा*

*कंठी*

*टूटकपाट*

*पिढ़ुलिया*

*मढ़ुलिया*

*पिल्हर*

*चौखट*

*चौंखुट्टा*

*खूँटा*

*खूरा*

*कुँदवा खुरा*

*दरचलनी*

*मुसरी*

*आलमारी*-कोठ के भीतर बनाय जेमा दरवाजा  रहै।

*तुमड़ी* --खेत जाय तब पानी भर के ले जाय

तुमा के बने रहय -जब तुमा सूखा जाय तब वोला बनाय।

खड़ाऊ 

*लोचनी* - गोड़ मा गड़े कांटा निकाले के चिमटी

बटकी- बासी खाए के कटोरा

*अकतरिया* -खेत खार म कांटा खूंटी ले बांचें बर महतारी मन पहिरे सेंडिल नुमा चप्पल


अड़गसनी- घर मा कपड़ा टांगें अउ सुखोय बांस के लकड़ी के


*भंदई* - चमड़ा के बने सेंडिल जइसे चप्पल


*डंगनी* - पेड़ ऊपर के फर आदि ला टोरे बर, लंबा बांस


*कांवर* - लगभग 4-5 फीट फिट लंबा बांस के दूनों छोर मा जोंति लगा के पानी लाये बर उपयोग करे जाथे

: मर्रा-मुड़ कोरे के ककवा

कुरो,=धान नापे के

: कलम

दवात

स्याही

पट्टी

गोरसी

पोलखा

पटका

अँगोछा

गोदरी /कथरी

झाँपी

पर्रा 

डोर

गिल्ली 

डंडा

काठा-मापनी

बेलन/ धान मींजे के

 नहन्नी=काँटा निकाले के

Friday 11 December 2020

छत्तीसगढ़ी जन-जन के भाषा कइसे बनही*:एक विचार

 *छत्तीसगढ़ी जन-जन के भाषा कइसे बनही*:एक विचार

      छत्तीसगढ़ ल राज बने 20 बछर होगे हवय। हर राज के अपन भाखा-बोली होथे। जेकर ले राज म आपसी बातचीत, गोठबात अउ आचार-विचार चलथे। छत्तीसगढ़ बने के पहिली अउ अब देखन त छत्तीसगढ़ी के बोलइया राज म बाढ़त जनसंख्या के हिसाब ले बाढ़े के बदला घटते जात हे, जउन चिंता के विषय आय। आज नवा पीढ़ी मेर दाई-ददा मन छत्तीसगढ़ी म गोठियाय बर कनवावत हवँय। कस्बानुमा गाँव अउ शहर म अब नइ चाहँय कि हमर लइका छत्तीसगढ़ी सीखय अउ पढ़य। अपने आप म हीन भावना ल पनपा डरे हें। नवा पीढ़ी मेर छत्तीसगढ़ी के उपेक्षा करथें। छत्तीसगढ़ी के प्रति हीन भावना पैदा करे के उदीम घलो करथें। कारण कुछु हो। इही सियान बुधियार मन बात-बात म लइका ल संस्कार अउ परम्परा नइ जानव के दोष घलो मढ़त रहिथें। उँखर ले अपन मान-सम्मान चाहथें। भुला जथें कि अपन ले जोर के राखे म भाषा के बड़ महत्तम हे। भाषा हर संस्कार अउ परम्परा ल आगू बढ़ाथे। संस्कार अउ परम्परा बताए-सिखाए नइ जाय। देख के अपनाए जाथे। संस्कार अउ परम्परा आचार-व्यवहार के बात आय। जेन ल लइका दाई-ददा ले पाथे। कहे घलो गे हे- जइसन-जइसन घर-दुआर, तइसन-तइसन फइरिका, अउ जइसन-जइसन दाई-ददा, तइसन-तइसन लइका। धियान रखे लगही कि धर-बाँध के संस्कार नइ दिए जा सकय। हम संस्कारित रहिबो त हमर लइका संस्कारित रही। हमर परम्परा ल आगू बढ़ाय म लइका मन के सहयोग का रही, हमरे ऊपर निर्भर करही।

       एक समय रहिन जब गाँव-गाँव म लील्ला मंडली, रामायण पार्टी, भजन-मंडली अउ साँस्कृतिक पार्टी के चलन ले छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ भाषा सजोर होवत रहिस। लोकसंगीत अउ लोकपरम्परा विकास के आड़ म नँदावत गिस। राज बने के बाद पइसा कमाए के चक्कर म बने फूहड़ गीत-संगीत के एल्बम मन ले लोगन के छत्तीसगढ़ी ले मोह भंग होइस। आज छत्तीसगढ़ी ल फेर जन-जन के भाषा बनाए के जरूरत आ पड़े हे। *बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमे रे...., कोन सुर बाजँव मयँ तो घुनही बँसुरिया....,मोर संग चलव रे मोर संग चलव न....* ए गीत आज घलो मनखे के जुबान म हे। फेर विकास के रस्ता म कहूँ भटके ले कहे बर पड़त हवय *पता ले जा रे पता ले जा गाड़ी वाला.....।* हम ल अपन गँवई-गाँव अउ चिन्हारी ल सँजो के राखे के बखत आय हे।

       कारखाना मन के खुले ले जइसे संबंधित गाँव म

पर्यावरण संरक्षण के उपाय करे जाथे, वइसने छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परम्परा के संरक्षण बर कारखाना प्रबंधन डहर ले संस्कृति विभाग बर कार्ययोजना साल के साल बने। कारखाना स्थापित करे के पहिली भूमि अधिग्रहण के शर्त म ए बात के निर्देश खच्चित रहना चाही। जेकर ले छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति बर समर्पित मनखे ल रोजगार घला मिल सकय।

       छत्तीसगढ़ के दू करोड़ आगर मनखे के महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी आय। छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिले १३ बछर होगे फेर एकर हाल अभी घलो चिंता करे के लाइक हे। छत्तीसगढ़ी ल स्कूली पाठ्यक्रम म स्थान अइसे दे हवय कि अपन पादा बोचका सकँय। छत्तीसगढ़ी ल प्राथमिक कक्षा म माध्यम बना के पढ़ाए ले नींव मजबूत होही। बालमन माटी के लोंदा होथे, ओला जइसे बनाबे वइसे रूप पाथे। बाल साहित्य के कमी नइ हे, अउ सबे विषय के निश्चित पाठ्यक्रम छत्तीसगढ़ी म मिले ले लइका के सर्वांगीण विकास सही ढंग ले होही। काबर कि महतारी भाखा म शिक्षण के सलाह मनोवैज्ञानिक मन भी देथे। शासन गणित विज्ञान सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम के अनुवाद करा के अइसन कारज ल पूरा कर सकथे। उन मन छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के सहारा ले जब चुनाव जीतथें। त ए बुता काबर नी करँय। ए बात के उन ल एहसास कराए के जरूरत हे। ए बुता ल छत्तीसगढ़ी साहित्य, कला अउ संस्कृति ले जुरे बुधियार मन ल अपन हाथ म लेबर परही।

      आज छत्तीसगढ़ी ल उबारे अउ जन-जन के भाषा बनाए म सबले जादा भूमिका साहित्यकार, कलाकार अउ संस्कृति प्रेमी मन ल निभाए ल परही। सुरता करन छत्तीसगढ़ राज बने म इँखर कतका योगदान रहिन। आज इहाँ के संस्कृति अउ परम्परा ल बचाय के भूमिका मोला निभाना परही, इही मानके चलन।

         आज नवरात्र अउ आने-आने कार्यक्रम मन म दूसर राज के लोक-संगीत अउ नृत्य(गरबा, भाँगड़ा, डाँडिया...) ल अपनावत देखे जा सकत हे। बने बात आय कि भारतीय संस्कृति के दर्शन छत्तीसगढ़ म घलो देखे मिलत हे, फेर छत्तीसगढ़ के लोकसंस्कृति अउ परम्परा मन के जउन उपेक्षा दिखथे, वो गुने के लइक हे। *परोसी दरी साँप नइ मरय* सुरता राखन।

           समाचार पेपर अउ रेडियो-टीवी ले जन-जन के जुराव हे। आने राज मन म जइसन उहाँ के संस्कृति अउ भाखा-बोली के संवर्धन अउ संरक्षण देखे म मिलथे, वइसने इहों ए माध्यम मन ल ए बुता के जिम्मेदारी सौंपे के बुता सरकार ल ईमानदारी ले करना चाही। संगेसंग ए माध्यम मन भी अपन तरफ ले कोशिश करे के चाही। अइसे कोनो-कोनो समाचार पत्र मन अपन तरफ ले ए कोशिश करतेच हवँय। देशबंधु, हरिभूमि, पत्रिका, अमृत-संदेश प्रमुख हवँय।  साहित्यिक पत्रिका मन भी ए दिशा म सरलग योगदान देतेच हवय। बस जरूरत हे ए मन भी शासन कोति ले बरोबर प्रोत्साहन मिलय।        

         आज के समय सोशल मीडिया के हवय। सोशल मीडिया म कोनो भी खबर जंगल म लगे आगी सरीख तुरते फइल जथे। अइसन म छत्तीसगढ़ी ल जन-जन के भाषा बनाए बर एकर उपयोग जतका जादा हो सकय, करे के जरूरत हे। भाषा के विकास बर दूसर भाषा के शब्द ल समोए/अपनाए के घलो जरूरत हे। तभे भंडार बढ़ही। सोशल मीडिया के उपयोग सावचेत होके करन। ए बात के धियान राखन कि बिन मुड़ी-कान के कोनो भी बात झन परोसे जावय। कउआँ लेगे कान कहे म कउआँ के पीछू भागना नइ हे।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी बलौदाबाजार