Friday 11 December 2020

सियान मनके संग'-ज्ञानू

 'सियान मनके संग'-ज्ञानू


             सिरतों म सोला आना गोठ आय - बिन सियान के धियान नइ होय। सियान मनके संग बइठना, ऊँखर संग वक्त बिताना कोनो सतसंग ले कम नइ होय। जिनगी के सार तत्व ल पल भर म सुना अउ सीखो देथे। मैं तो समझथंव सबले अनमोल पल होथे जब हमन सियानमन तीर बइठथन। जिनगी के हर रूप ल बइठे- बइठे पल भर म उमन दिखा देथे। उमन जिनगी के हर उतार-चढ़ाव, दुख-सुख ल देखे- सहे अउ गुजरे हे।

           आजकल के लइकामन अइसनो कहइया मिलथे तँय कुछु नइ जानस ग चुपचाप रेहेकर। फालतू चिल्लावत भर रहिथस। अरे तँय का जानथस बाबू ऊँखर  समय अउ बचपना कतका दुख तकलीफ म बीते हे। पहिरे बर चेन्दरा घलो नइ मिलत रिहिस। कतका अकाल- दुकाल परे तेन ल। एकेक दाना बर तनानना होवय। एकेक पइसा बर कतका तरसय। बड़ मुश्किल म गुजारा होवय ।

           आज के समय म का चीज नइये या मिलत नइये। अउ पहिली के जमाना म मनखेमन दर्रा- घोटों, जुवाड़- जोन्धरा के रोटी अउ तो अउ भाजी- पाला ल ही खा खाके कतको दिन ले गुजार दय। कतको दिन ले तो कुछु जिनिस खाय बर नसीब नइ होवय। का अइसन दिन तुमन देखे  हव।

        बात - बात म हाना, किस्सा- कहानी अउ अपन सियानी गोठ ले हमन शिक्षा देथे। जेन शिक्षा कोनो स्कूल - कालेज म नइ मिलय। रीतिरिवाज, करम- धरम, रहन-सहन  अउ सत- असत सब ल बने अलखाके समझा देथे। मोला बड़ आनन्द अउ खुशी होथे सियानमन तीर बइठे म।

         सिरतों म जुन्ना सियानमन अनुभव अउ ज्ञान के अथाह समुद्र आय। जतके डूबकी लगात जाबे वतके डूबत जाबे। आजके नवा पीढ़ी के लइकामन ल चाही ऊँखर तीर बइठके ऊँखर ज्ञान अउ अनुभव के लाभ उठाना चाही। उमन भूत- भविष्य अउ वर्तमान के दृष्टा होथे।


ज्ञानुदास मानिकपुरी 

छंद साधक

चंदेनी कवर्धा

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