Friday 25 December 2020

पुरखा के सुरता*-मिनेश साहू 🌷🌷

 🌷🌷 *पुरखा के सुरता*-मिनेश साहू 🌷🌷

         🙏  *नमन जोहार*🙏


छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़िया मनखे के स्वाभिमान ल जगाए बर गांव-गांव मा जा के छत्तीसगढ़ी भाखा मा सब विधा ला जोरे  रामायणाचार्य गोलोक वासी श्री मेहतर राम साहू जी छत्तीसगढ़,छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया बर अपन जिनगी ल बिसरइया,माटी ल महतारी मान देवइया किसान के पीरा-अभिमान के बखान करत कालजयी रचना ,गीत,कहिनी,कथा,कविता के रचनाकार अउ छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा बेटा रहिन स्व. श्री मेहतर राम साहू जी जेंखर 

जनम 1 जुलाई 1933ठउर-पांडुका (गरियाबंद जिला) मा होइस हे छत्तीसगढ़ी काव्य के छठवा दशक के बीच मा एकठन नवा सुरुज जइसन चमकत दिखिस ऐ वो बेरा रिहिस जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका के प्रकाशन चालू होय रिहिस हे।अउ वो बेरा सबले ज्यादा पत्रिका मा कखरो रचना छपै ता वो रिहिस पांडुका निवासी सर्व श्री मेहतर राम साहू जी, प्यारेलाल नरसिंह, चैतराम व्यास,उधौराम झखमार,अउ भागीरथी तिवारी जी, श्री साहू जी अउ व्यास जी चारों मुड़ा ले साहित्य के सबो विधा मा लिखत रिहिन हवै ओखर रचना मा एक डाहर गांव के जन जीवन ले कोनो विवशता अउ दैन्य भावना हा दिखै त दूसर डाहर नवा सुराज अउ आस्था के बिचार घलो दिखै। कोनो-कोनो जगहा हास्य ल घलो छूवत जावै।

    लगभग एक बच्छर चले के बाद छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका बंद हो गिस तब के बेरा मा ऐमन बहुते निराश हो गइन,अपन बोली भाखा के संग मा साहित्य ले लोगन मन के उछाह दिखत रिहिस वहू हा मुरझावत रहि गे । साहित्य तो लिखे जावत रिहिस फेर कोनो प्रचार-प्रसार के साधन नइ रिहिस ।तब रायपुर मा आकाशवाणी नइ रिहिस उही बेरा मा श्री चैतराम व्यास जी ल आकाशवाणी केन्द्र भोपाल म काव्यपाठ के नेवता मिलिस संगे- संग धीरे-धीरे श्री साहू जी जुरिन अउ छत्तीसगढ़ी के कवि के जेन काव्य के ममहई दिखे लगिस। गांव मा पले बढ़े गवंइहा जइसन दिखइया लागै, नांव मा घलो अपन देहातीपन लेकिन के धनी रिहिन जेन कुछ देखै सुनै उही भाव ल इमानदारी ले सब के आगू राखै, लोकगीत ले जुर के नवा कविता तक पहुंचइया पूरा काव्य- संघर्ष मा श्री मेहतर राम साहू जी के भागीदारी ल कभू भुलाए नइ जा सकै।

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना ले प्रकाशित "पंचदश लोकभाषा निबंधावली" मा सकेले "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य" मा डॉ सावित्री शुक्ल जी के संक्षिप्त टिप्पणी दिखथे.....श्री साहू जी हा समर्थ कवि हवै। "गोहार" रोवई नोहे, गीत आय" अउ सुख-सुख ऐखर प्रसिद्ध कविता आवै।...रोवई नोहे, गीत आय के पंक्ति आप मन के बीच मा राखे जात हे


पापी पेट बर,

ये संमुदर बर,

दू कौड़ी ले मंहगा होथन,

कतिक दुख उठाथन,

तब थोरकिन पाथन,

नस-नस के, हाड़ा-हाड़ा के,

गांठ-गांठ ह ढील होगे हे,

बासी खाथन तब पेट भरथे,

पसिया पीथन, प्यास बुझाथे।


कविता कोनो वर्ग,भाषा अउ क्षेत्र के लक्ष्य लेके नइ लिखे जावय।वो तो जुग के बानी हरै।जेमा जुग के अपन अलग अलग स्वरूप ल देखाथे। छत्तीसगढ़ी कविता के जनम मानवीय मूल्य अउ सत्य के आधार मा होय हे,इही कारन ले वो सामाजिक भाव मा सम्पन्न अउ सजे रहिथे,अउ एक डाहर सामाजिक विसंगति मा भावात्मक प्रहार करथे उहां दूसर डाहर आदमी के चेतना के स्तर ल विसंगति ले लड़े बर तैयार करथे।

कोनो कविता आज के यथार्थ ल सीधा साक्षात नइ करै त वो कविता बेकार हो जाथे...


कपट के तेल मा,

धोखा के दीया बरत हे।

गरीब-गंवार मनखे,

फांफा अस मरत हे।।


बादर ल धरे हे जर,

भुंइया मा फरे हे फर।

झन खाहू उल्टा रुख के फर ला,

कतको लठरे,

पिचकोलो ओखर गर ला हारौ झन हिम्मत।


श्री मेहतर राम साहू जी हा अपन कविता के माध्यम ले जीवन के यथार्थ चित्रण अउ विश्लेषण करै अउ समसामयिक अउ घटना,रिति-निती ल नि: संकोच अभिव्यंजना ले अपन आप बचा नइ पातिस।परिवेश अउ परिस्थिति ले उदगरे जीवन के निश्छल अभिव्यक्ति हवै...


टेटका ह,

रंगबदले बर,

कइसे भुलागे,

जनता-रसायन के,

चढ़ते साठ,

फक-फक ले पंडरागे।


जिहां-जिहां गुर,

तिहां -तिहां चांटा,

गुर सिरागे,

चांटा के रेम थिरागे।


जंगल के बरहा,

तने रिहिस गरहा,

फेर कइसे का होइस ते,

अपनेच सिंग मा,

फसगे अलकरहा।।


श्री साहू जी ले पेशा ले शिक्षक रिहिन बागबाहरा महासमुंद मा। कवि केवल अहंम के अभिव्यक्ति के आलेखन मा विश्वास नइ करै।


लेखन करम 1952 से सरलग

1965 म छःत्तीसगढ़ी म गज़ल कहे के प्रयास 

सँन - 1976 म आकाशवाणी रायपुर ले गीत  के प्रसारन 

अब तक छपे 13 छःत्तीसगढ़ी किताब

कौवा लेगे कान ला(काव्य संग्रह)

होही अँजोर (गीत संग्रह)

मया के बंधना (एकांकी संग्रह)

हमरेच भीतरी सब कुछ हे(कहानी संग्रह)

बूड़े म मोती मिलथे जी(कथा संग्रह)

सब परे हे चक्कर म (गम्मत)

कैकेयी (लघु प्रबंध काव्य)

रतना बपरी ( खंड काव्य)

राजिम लोचन ( कहानी )..

आदि किताब परकाशीत हे.

मुख्य गीत

सुवा लहकत हे डार म

सारस बोले रे

झुनकी तरोई रे भाई

मोंगरा फूल फूलगे

लक्ष्मण के रेखा पारे ल परही

तंहुँ जाबे महुँ जांहु राजिम मेला

झूम झूम नाचौ

इंखर अलावा अउ अतेक सुघ्घर जाने कतकोन गीत,कविता,कहिनी लिखिन जेन हर आज घलो गुने बर बिवस कर देथे एकर सेतिर काबर कि जइसन चिंतन आज छत्तीसगढ़ के सम्मान ,अस्मिता,पहिचान बर उदिम चलत हे उन सब ल हम साहू जी के कविता म देख सकत हन सँगे-सँग उंखर रचना म समाज ल संभले,उबरे, जागे अउ चेतवनी बर सोरियावत अब्बड़ अकन भाव देखे बर मिलथे जेन उंखर दूरदर्शिता ल बतावत हे कि कइसे चिंतन करत रहिन होही बाबू जी हर |

1980 म सांस्कृतिक लोक कला संस्था तुलसीदल लोक कला मंच खोपली बागबाहरा के स्थापना,संस्थापक अध्यक्ष-लोकोत्सव /महोत्सव म छःत्तीसगढ़ी लोक विधा ला लेके अनेको प्रस्तुति , अनेको सम्मान,पुरस्कार।

 गोलोक वासी मेहत्तर राम जी साहू जी के कलम हर भाव, दिशा अउ दशा बर चले हावय उंहे उंखर गीत के जउन मिठास हे ऊहू मन ल मोह लेथे जेन अकाशवाणी रइपुर ले बाजत रहिथें कई ठिन मुक्तक जेन अंतस ल टटोलत लागथे आपके साहित्य के बिषय,भाव अउ सन्देश बरबस ही हिरदय ल छू लेथे बागबाहरा के क्षेत्र म आज ले उंखर लोकगीत,साहित्य पुरवाई के सरूप म  बनके समाए हावय जेन साहित्य रूपी बिरवा मेहतर राम जी साहू लगाईंन अब्बड़ जतन करके राखिन उही बिरवा है बड़का  रुखवा बनगे हे  समुचा छत्तीसगढ़ रचना के लोहा मानत अंतस ले स्वीकारत हे एखर अलावा हमर जइसन नवा लिखइया पीढ़ी मन ल मारग देखावत पन्दोली देवत हे। 25 दिसंबर सन् 2010 मा अपन पंच तत्व के काया ल बिसार देइन |


महेतर राम जी साहू अतेक बड़ साहित्यकार होये के बावजूद ओ सम्मान नइ पाइस जेखर उन हर हकदार रहिन साहित्य,समरपन और सम्मान सब्बो दिन ले चलत आवत हे के सही साधक सब्बो दिन उपेक्छा ल झेलथे अइसने साहू जी ल भी उन समय म तिरिया देहे गिस जेंखर कारन उंखर साहित्य हर बियापक रूप म नइ फइल पाइस फेर आज उंखर बेटा धनराज साहू जी के अपन पिता के साहित्य के सम्मान बर जेन उदिम देखे बर मिलथे ऊहू प्रसंशा के बात आय जेंखर कारन आज पूरा छत्तीसगढ़ उन ल जान पाइस अउ साहित्य ल पढ़े के सौभाग्य ल पावत हे |

अइसन साहित्य के पुरोधा सतलोकी श्री मेहतर राम जी साहू जी ल मँय नमन करत उंखर चरन म माथा नवावत हँव |


सुरता मा

मिनेश कुमार साहू

  *भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कबीरधाम*

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