Thursday 31 March 2022

सुरता-हमर पुरखा


 

सुरता-हमर पुरखा 



नाचा के महान कलाकार मंदराजी 

दाऊ के 111 वीं जयंती मा विशेष 


 नाचा बर अपन जिनगी खपा दिस दुलार सिंह साव जी हा 

 

                      -  ओमप्रकाश साहू "अंकुर "



धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संस्कृति के अलग पहचान हवय । हमर प्रदेश के लोकनाट्य नाचा, पंथी नृत्य, पण्डवानी, भरथरी, चन्देनी के संगे संग आदिवासी नृत्य के सोर हमर देश के साथ विश्व मा घलो अलगे छाप छोड़िस हे। पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे ,पण्डवानी गायक झाड़ू राम देवांगन, तीजन बाई, ऋतु वर्मा, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे जइसन कला साधक मन हा छत्तीसगढ़ अउ भारत के नाम ला दुनिया भर मा बगराइस हवय. रंगकर्मी हबीब तनवीर के माध्यम ले जिहां छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकार लालू राम (बिसाहू साहू),भुलवा राम, मदन निषाद, गोविन्द राम निर्मलकर, फिदा बाई  मरकाम, माला बाई मरकाम हा अपन अभिनय क्षमता के लोहा मनवाइस. ये नाचा के नामी कलाकार मन हा एक समय नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के अगुवाई मा काम करे रिहिन ।मंदराजी दाऊ हा नाचा के पितृ पुरुष हरय. वो हा एक अइसन तपस्वी कलाकार रिहिस जउन हा नाचा के खातिर अपन संपत्ति ला सरबस दांव मा लगा दिस ।


    मंदराजी कइसे कहलाइस 


    नाचा के अइसन महान कलाकार मंदराजी का जनम  1 अप्रैल 1911 मा संस्कारधानी शहर राजनांदगांव ले  5  किलोमीटर दूरिहा रवेली गांव मा एक माल गुजार परिवार मा होय रिहिस ।मंदरा जी के पूरा नांव दुलार सिंह साव रिहिस । ननपन मा गजब हंसमुख स्वभाव के राहुल हे तेखर सेति वोकर नाना हा मद्रासी कहिके बुलाय ।धीरे ले मद्रासी शब्द हा चलत चलत मंदराजी होगे. 


मंदराजी 1922 मा ओकर प्राथमिक शिक्षा हा पूरा होइस।दुलार सिंह के मन पढ़ई लिखई मा नई लगत रिहिस । ओकर धियान नाचा पेखा डहर जादा राहय । रवेली अउ आस पास गांव मा जब नाचा होवय तब बालक दुलार सिंह हा रात रात भर जाग के नाचा देखय ।एकर ले 


ओकर मन मा घलो चिकारा, तबला बजाय के धुन सवार होगे. वो समय रवेली गांव मा थोरकिन लोक कला के जानकार कलाकार रिहिस । ऊंकर मन ले मंदराजी हा 


चिकारा, तबला बजाय के संग गाना गाय ला घलो सीख गे । अब मंदरा जी हा ये काम मा पूरा रमगे ।वो समय नाचा के कोई बढ़िया से संगठित पार्टी नइ रिहिस । नाचा के प्रस्तुति मा घलो मनोरंजन के नाम मा द्विअर्थी संवाद बोले जाय ।येकर ले बालक दुलार के मन ला गजब ठेस पहुंचे ।


 पहिली संगठित नाचा पार्टी के गठन करिस 


दाऊ जी हा अपन गांव के लोक कलाकार मन ला लेके 1928-29 मा रवेली नाचा पार्टी के गठन करिस ।ये दल हा छत्तीसगढ़ मा नाचा के पहिली संगठित दल रिहिस ।वो समय खड़े साज चलय । कलाकार मन अपन साज बाज ला कनिहा मा बांधके अउ नरी मा लटका के नाचा ला करय ।


 मंदराजी के नाचा डहर नशा ला देखके वोकर पिता जी हा अब्बड़ डांट फटकार करय ।अउ चिन्ता करे लगगे कि दुलार हा अइसने करत रहि ता ओकर जिनगी के गाड़ी कइसे चल पाही । अउ एकर सेती ओकर बिहाव 14 बरस के उमर मा दुर्ग जिले के भोथली गांव (तिरगा) के राम्हिन बाई के साथ कर दिस ।बिहाव होय के बाद घलो नाचा के प्रति ओकर रुचि मा कोनो कमी नइ आइस ।शुरु मा ओकर गोसइन हा घलो एकर विरोध करिस कि सिरिफ नाचा ले जिनगी कइसे चलही पर बाद मा 


वोकर साधना मा बाधा पड़ना ठीक नइ समझिस ।अब वोकर गोसइन हा घलो वोकर काम मा सहयोग करे लगिन अउ उंकर घर अवइया कलाकार मन के खाना बेवस्था मा सहयोग करे लगिन ।


 सन् 1932 के बात हरय ।वो समय नाचा के गम्मत कलाकार 


सुकलू ठाकुर (लोहारा -भर्रीटोला) अउ नोहर दास मानिकपुरी (अछोली, खेरथा) रिहिस ।कन्हारपुरी के माल गुजार हा सुकलू ठाकुर अउ नोहर मानिकपुरी के कार्यक्रम अपन गांव मा रखिस ।ये कार्यक्रम मा मंदरा जी दाऊ जी हा चिकारा बजाइस ।ये कार्यक्रम ले खुश होके दाऊ जी हा सुकलू


अउ नोहर मानिकपुरी ला शामिल करके रवेली नाचा पार्टी के ऐतिहासिक गठन करिस ।अब खड़े साज के जगह सबो वादक कलाकार बइठ के बाजा बजाय लागिस ।


  नामी कलाकार मन ले सजगे रवेली नाचा पार्टी 


सन् 1933-34 मा मंदराजी दाऊ अपन मौसा टीकमनाथ साव ( लोक संगीतकार स्व. खुमाम साव के पिताजी )अउ अपन मामा नीलकंठ साहू के संग हारमोनियम खरीदे बर कलकत्ता गिस ।ये समय वोमन 8 दिन टाटानगर मा  घलो रुके रिहिस ।इही 8 दिन मा ये तीनों टाटानगर के एक हारमोनियम वादक ले हारमोनियम बजाय ला सिखिस ।बाद मा अपन मिहनत ले दाऊजी हा हारमोनियम बजाय मा बने पारंगत होगे । अब नाचा मा चिकारा के जगह हारमोनियम बजे ला लगिस ।सन् 1939-40 तक रवेली नाचा दल हमर छत्तीसगढ़ के सबले प्रसिद्ध दल बन गे रिहिस ।


   सन् 1941-42 तक कुरुद (राजिम) मा एक बढ़िया नाचा दल गठित होगे रिहिस ।ये मंडली मा बिसाहू राम (लालू राम) साहू जइसे गजब के परी नर्तक रिहिस । 1943-44 मा लालू राम साहू हा कुरुद पार्टी ला छोड़के रवेली नाचा पार्टी मा शामिल होगे ।इही साल हारमोनियम वादक अउ लोक संगीतकार खुमान साव जी 14 बरस के उमर मा मंदराजी दाऊ के नाचा दल ले जुड़गे ।खुमान जी हा वोकर मौसी के बेटा रिहिस ।इही साल गजब के गम्तिहा कलाकार मदन निषाद (गुंगेरी नवागांव) पुसूराम यादव अउ जगन्नाथ निर्मलकर मन घलो दाऊजी के दल मा आगे ।अब ये प्रकार ले अब रवेली नाचा दल हा लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, खुमान लाल साव, नोहर दास मानिकपुरी, पंचराम देवदास, जगन्नाथ निर्मलकर, गोविन्द निर्मलकर, रुप राम साहू, गुलाब चन्द जैन, श्रीमती फिदा मरकाम, श्रीमती माला मरकाम जइसे नाचा के बड़का कलाकार मन ले सजगे ।


    जब अंग्रेजी शासन नाचा के प्रदर्शन ला रोके बर आगे 


   नाचा के माध्यम ले दाऊ मंदराजी हा समाज मा फइले बुराई छुआछूत, बाल बिहाव के विरुद्ध लड़ाई लड़िस अउ लोगन मन ला जागरुक करे के काम करिस ।नाचा प्रदर्शन के समय कलाकार मन हा जोश मा आके अंग्रेज सरकार के विरोध मा संवाद घलो बोलके देश प्रेम के परिचय देवय ।अइसने आमदी (दुर्ग) मा मंदराजी के नाचा कार्यक्रम ला रोके बर अंग्रेज सरकार के पुलिस पहुंच गे रिहिस । वोहर मेहतरीन, पोंगा पंडित गम्मत के माध्यम ले छुअाछूत दूर करे के उदिम, ईरानी गम्मत मा हिन्दू मुसलमान मा एकता स्थापित करे के प्रयास, बुढ़वा बिहाव के माध्यम ले बाल बिहाव अउ बेमेल बिहाव ला रोकना, अउ मरानिन गम्मत के माध्यम ले देवर अउ भौजी के पवित्र रिश्ता के रुप मा सामने लाके समाज मा जन जागृति फैलाय के काम करिस ।


1940 से 1952 तक तक रवेली नाचा दल के भारी धूम रिहिस ।


    नामी कलाकार मन छोड़ दिस दाऊ जी के सँग 


 सन् 1952 मा फरवरी मा मंड़ई के अवसर मा पिनकापार (बालोद )वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के प्रमुख कलाकार मन ला नाचा कार्यक्रम बर नेवता दिस । पर ये दूनो दल के संचालक नइ रिहिस । अइसने 1953 मा घलो होइस ।ये सब परिस्थिति मा रवेली अउ रिंगनी (भिलाई) हा एके मा शामिल (विलय) होगे ।एकर संचालक लालू राम साहू बनिस ।मंदराजी दाऊ येमा सिरिफ वादक कलाकार के रुप मा शामिल करे गिस । अउ इन्चे ले रवेली अउ रिंगनी दल के किस्मत खराब होय लगिस ।रवेली अउ रिंगनी के सब बने बने कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल मा शामिल होगे ।पर कुछ समय बाद ही छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल के कार्यक्रम सप्रे स्कूल रायपुर मा होत रिहिस।ये कार्यक्रम हा गजब सफल होइस ।ये कार्यक्रम ला देखे बर प्रसिद्ध रंगककर्मी हबीब तनवीर हा आय रिहिस ।वोहर उदिम करके रिंगनी रवेली के कलाकार लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, ठाकुर राम, बापू दास, भुलऊ राम, शिवदयाल मन ला नया थियेटर दिल्ली मा शामिल कर लिस ।ये कलाकार मन हा दुनिया भर मा अपन अभिनय ले नाम घलो कमाइस अउ छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के सोर बगराइस । पर इंकर मन के जमगरहा नेंव रवेली अउ रिंगनी दल मा बने रिहिस ।


      दौलत गंवा के नाँव कमाइस 


  एती मंदरा जी दाऊ के घर भाई बंटवारा होगे ।वोहर अब्बड़ संपन्न रिहिस ।वोहर अपन संपत्ति ला नाचा अउ नाचा के कलाकार मन के आव भगत मा सिरा दिस ।दाऊ जी हा अपन कलाकारी के शौक ला पूरा करे के संग छोटे छोटे नाचा पार्टी मा जाय के शुरु कर दिस । धन दौलत कम होय के बाद संगी साथी मन घलो छूटत गिस । वोकर दूसर गांव बागनदी के जमींदारी हा घलो छिनागे ।स्वाभिमानी मंदरा जी कोनो ले कुछ नइ काहय ।


 बीसपी द्वारा सम्मानित होइस 


मंदराजी दाऊ ला नाचा मा वोकर अमूल्य योगदान खातिर  जीवन के आखिरी समय मा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा मई 1984 मा सम्मानित करिस । अंदर ले टूट चुके दाऊ जी सम्मान पाके भाव विभोर होगे ।


 सम्मानित होय के बाद सितंबर 1984 मा अपन दूसर गांव बागनदी के नवाटोला मा पंडवानी कार्यक्रम मा गिस । इहां वोकर तबियत खराब होगे ।वोला रवेली लाय गिस । 24 सितंबर 1984 मा नाचा के ये पुजारी हा अपन नश्वर शरीर ला छोड़के सरग चल दिस ।


स्व. मंदरा जी दाऊ हा एक गीत गावय - "




 दौलत तो कमाती है दुनिया पर नाम कमाना मुश्किल है ".दाऊ जी हा अपन दौलत गंवा के नाँव कमाइस ।


         रवेली मा आयोजित होथे मंदराजी महोत्सव 


 मंदराजी के जन्म दिवस 1 अप्रैल के दिन हर साल 1993 से लगातार मंदरा जी महोत्सव आयोजित करे जाथे ।1992 मा ये कार्यक्रम हा कन्हारपुरी मा होय रिहिस । यहू साल उंकर जयंती मा रवेली अउ कन्हारपुरी मा  लोक कला महोत्सव के आयोजन करे गे हवय. मंदरा जी जनम भूमि रवेली के संगे संग कर्मभूमि कन्हारपुरी मा घलो मंदराजी दाऊ के मूर्ति स्थापित करे गेहे ।वोकर सम्मान मा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र मा उल्लेखीन काम करइया लोक कलाकार ला हर साल राज्योत्सव मा मंदराजी सम्मान ले सम्मानित करे जाथ।

मंदरा जी पर छत्तीसगढ़ी बायोपिक फिल्म बनिस जेमा अभिनेता करण खान हा दमदार अभिनय करिस. 

नाचा के अइसन महान कलाकार ला आज 111 वीं जयंती मा शत् -शत् नमन हे। विनम्र श्रद्धांजलि...🙏🙏💐💐


             ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

     सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 

  मो. - 7974666840

Wednesday 30 March 2022

छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि*- डाँ विनोद कुमार वर्मा

 




 *छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि*


      .

 *छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि*


                *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 


                            ( 1 )

   

     हिन्दी भाषा बर अंगीकृत नागरी लिपि के 52 वर्ण ला ही *देवनागरी लिपि* कहे जाथे। एमा स्वर- 11, व्यंजन- 39, अनुस्वार अउ विसर्ग शामिल हें। 

      सन् 1885 म हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा लिखित ' *छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरण '* सन् 1890 म जार्ज ग्रियर्सन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशित करे गइस; जेमा वर्तमान देवनागरी लिपि के 13 वर्ण शामिल नि रहिस।..... एखर बाद सन् 1921 म बालपुर के पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय द्वारा संपादित अउ संशोधित होय के बाद ' *ए ग्रामर आॅफ दी छत्तीसगढ़ी डायलॅक्ट आॅफ ईस्टर्न, हिन्दी '* के नाम ले प्रकाशित होइस।.....  एखर बाद एही संशोधित व्याकरण के अनुकरण करत भालचंद्र राव तेलंग (1966 ), डाॅ कांति कुमार (1969), शंकर शेष ( 1973 ), डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा ( 1979 ) द्वारा छत्तीसगढ़ी व्याकरण के काम ला आघू बढ़ाय गइस। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा द्वारा सन् 2002 म ' *छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण '* नामक व्याकरण पुस्तक के लेखन करिन।.....देवनागरी लिपि के बहुप्रचलित आठ वर्ण-  *श् , ष् , ण् , व् , ज्ञ् , क्ष् , ड़ , ढ़* ला छत्तीसगढ़ी लेखन ले बहिष्कृत करे के कारण अंततोगत्वा छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य अपभ्रंस के शिकार हो गे। द्विगुण व्यंजन *ड़* अउ *ढ़* के प्रचलन तो छत्तीसगढ़ी बोलचाल अउ लेखन म आजादी के पहिलिच ले आ चुके हे। जैसे- पांड़े , एड़ी , मुड़ी , सिढ़िया, बढ़िया आदि। 

     *22 जुलाई 2018 के दिन ह बहुत महत्वपूर्ण हे।* एही दिन बिलासपुर म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा *छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि* उपर राज्यस्तरीय संगोष्ठी के आयोजन करे गे रहिस। ए संगोष्ठी के संयोजक मैं स्वयं रहेंव। संगोष्ठी म *डाॅ विनय कुमार पाठक, डाॅ चित्तरंजन कर, सरला शर्मा, शकुन्तला शर्मा, अरुण कुमार निगम, डाॅ शैल चंद्रा, डाॅ सोमनाथ यादव, डां विजय कुमार सिन्हा, डाॅ विनोद कुमार वर्मा , डाॅ बलदाऊ प्रसाद निर्मलकर* आदि प्रबुद्ध भाषाविद्, कवि, लेखक मन ए विषय उपर अपन विचार रखिन।एही संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाषा बर देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण के स्वीकार्यता बाबत् प्रस्ताव घलो पारित होइस। संगोष्ठी म आमंत्रित विशेषज्ञ वक्ता मन के अभिमत आदि के जानकारी विस्तृत रूप म आघू लिखहौं........ ए संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी साहित्य बर काम करइया पाँच साहित्यकार मन ला *वदान्या साहित्य सम्मान*  प्रदान किये गइस ओमे *बुधराम यादव, चोवाराम बादल, कृष्ण कुमार भट्ट पथिक, वसन्ती वर्मा अउ सनत तिवारी*  


                        ( 2 )


      ' *छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण '* ( डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा : 2002 ) नामक पुस्तक म देवनागरी लिपि के छै वर्ण- *श् , ष् , ण् , व् , ज्ञ् , क्ष् ,* के प्रयोग छत्तीसगढ़ी म वर्जित करे बाबत् निम्न तर्क दिये गे हे-


1) छत्तीसगढ़ी म ' *श्'* अउ ' *ष्* ' दोनों के जरूरत नि हे काबर कि दोनों के उच्चारण ' *स्* ' ही किये जाथे, एखरे खातिर *श्* , *ष्* के स्थान म *स्* लिखे जाय। जैसे- शंकर, प्रकाश, संतोष ला संकर, प्रकास, संतोस लिखे जाय। व्यक्तिवाचक संज्ञा के परिवर्तन बर एफीडेविट दिए जा सकत हे।


2) लिखित व्यंजन *ण्*  के स्थान म *न्*  लिखा जाना चाहिए- एला छत्तीसगढ़ी के रूपांकन कहे जाही। जैसे- *भूषण, प्राण*  ला *भूसन, प्रान* लिखे जाय।


3) *व्*  के छुट्टी होना चाहिए अउ ओखर स्थान म *ब्* लिखना चाहिए। जैसे- *गोविंद, विकास, विनय, वकील* ला क्रमशः *गोबिंद, बिकास, बिनय, बकील*  लिखे जाय।


4) *ज्ञ्*  के स्थान म *ग्य* लिखे जाय। जैसे- *ज्ञानूदास, प्रज्ञा* के स्थान म *ग्यानूदास, प्रग्या* लिखे जाय।


5) *क्ष्* के स्थान म *क्छ* लिखे जाय। जैसे- *लक्ष्मी, शिक्षा*  के स्थान म *लक्छमी, सिक्छा*  लिखे जाय।


    22 जुलाई 2018 के बिलासपुर म आयोजित प्रांतीय संगोष्ठी के विमर्श म आमंत्रित विषय विशेषज्ञ अउ वक्ता मन के चर्चा मुख्य रूप ले उपरोक्त पाँचों बिन्दु के उपर केन्द्रित रहिस।


 *लेखिका अउ समीक्षक सरला शर्मा*  *के विचार* -


1) संस्कृत, हिन्दी, छत्तीसगढ़ी तीनों भाषा के लिपि देवनागरी हे।ध्वनि आधारित होय के कारण उच्चारण घलो समान हे। तब प्रश्न हे कि लिपि समान हे त वर्णमाला म भेद काबर? तीनों भाषा म समान वर्णमाला होना चाहिए।


2) आम छत्तीसगढ़िया हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषा के कठिन शब्द मन के प्रयोग घलो आसानी ले करत हे त ओखर शब्द मन ला लेखन म  यथारूप ही स्वीकार करे जाही। अपभ्रंस रूप म लिखना सही नि हो सके।


3) *स* अउ *श* के अंतर स्पस्ट अउ प्रत्यक्ष हे। *शर्मा* ला *सरमा* नि लिखे जा सके। *अक्षर* ला *अकछर* घलो नि लिखना चाही। 

    भाषायी संकट के युग म छत्तीसगढ़ी के अस्तित्व के रक्षा बर देवनागरी के कुछ वर्ण ला छोड़े के दुराग्रह त्यागना परही। देवनागरी लिपि हर ही वो कड़ी ए जेन हा संस्कृत, हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी ला जोड़ रखे हे।


                          ( 3 )


 *छंदविद् अरुण कुमार निगम के अभिमत-*


1) ' *व* ' ला ' *ब*' से प्रतिस्थापित करे के अनुशंसा आश्चर्यजनक हे। *व* के उच्चारण तो असाक्षर व्यक्ति घलो कर लेथे। *गाँव, छाँव, सावन, सेवा* ला *गाँब, छाँब, साबन, सेबा* भला कोन कहथे?


2) व्यक्तिवाचक संज्ञा मन ला यथावत रखना चाही। *श्रीनगर, लक्ष्मण, अरुणाचल प्रदेश, शंकर*  ला *सिरीनगर, लछमन, अरुनाचल परदेस, संकर*    लिखना बिलकुल भी उचित नि कहे जा सके। 


3) *रामेश्वर ( राम, ईश्वर )* के अपन अर्थ हे; यदि *रमेसर* लिखबो त ओखर का अर्थ निकलही? *प्रकाश*  ला *परकास* लिखे म का उपलब्धि हासिल हो जाही?


4) मानकीकरण बर हम-मन ला उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना चाही।गलत उच्चारण ले बने अपभ्रंस शब्द अर्थहीन ही कहे जाही। यदि व्यक्तिवाचक, स्थानवाचक शब्द के उच्चारण देवनागरी के अनुसार करे जा सकत हे त फेर छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी के कुछ वर्ण ला विलोपित कइसे करे जा सकत हे? 


5) आन भाषा के बहुप्रचलित शब्द मन ला अंग्रेजी अउ हिन्दी म यथारूप स्वीकार करे जाथ हे त छत्तीसगढ़ी म स्वीकार करे म का अड़चन हे?  आज तो असाक्षर व्यक्ति घलो सिम, मोबाइल, चार्जर, कम्प्यूटर, बाइक, ब्रस, स्क्रू  जइसन शब्द मन के सहजता ले प्रयोग करत हे त ए शब्द मन ला यथारूप ही स्वीकार करे जाही।


   6) कुल मिला के देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म शामिल किए जाही तभे हमर भाषा समय के साथ चल पाही।


                         ( 4 )


 *डाॅ सोमनाथ यादव के अभिमत* -


   जेन शब्द मन के अपभ्रंस रूप प्रयोग होवत हे ओमा दू तरह के शब्द जादा हें- आधा वर्ण वाला शब्द अउ संयुक्त वर्ण वाला शब्द।


1) *आधा वर्ण वाला शब्द* जइसे:  प्रदेश-परदेस, प्रीति-पीरीति, प्रेम-परेम, प्रकाश-परकास, कर्म-करम, धर्म- धरम आदि।

2) *संयुक्त वर्ण वाला शब्द* जइसे: भिक्षा-भिक्छा, कक्षा-कक्छा, ज्ञान-ग्यान, श्रवण-सरवन, श्री-सिरी, चरित्र-चरितर आदि।

      अपभ्रंस रूप ला तभे स्वीकार करना चाही जब ओखर अर्थ वोइच्च हो जेखर बर प्रयोग करे गय हे।


3) जब छत्तीसगढ़ी लेखन अउ बोलचाल म अंग्रेजी के शब्द *डाॅक्टर, मास्टर, हाॅफपेंट, रेल* ला मूल रूप म स्वीकार करे गय हे तब हिन्दी के शब्द मन ला मूल रूप म स्वीकार करे म अतेक ना-नुकुर काबर?



 *कवयित्री शकुन्तला शर्मा के अभिमत*  -


   छत्तीसगढ़ी बहुत तेजी ले लोकप्रिय होवत जात हे-तेकरे सेथी एला फैले बर बहुत बड़े जगह के जरूरत हे। देवनागरी लिपि के पूरा बावन वर्ण के प्रयोग हम मन ला छत्तीसगढ़ी म करना हे। शब्द के संबंध आकाश से हे-वर्ण के उच्चारण म शुद्धता रही तभे हमर भाषा धरती ले आकाश तक गूंजही- एही भाषा के विधिवत विधान हे। *श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र* सबो हमर वर्णमाला म रही तभे हम मन ला अक्षर के आशीर्वाद मिलही।



 *कहानीकार,समीक्षक,संपादक डाॅ विनोद कुमार वर्मा के अभिमत*-


1) सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा के छत्तीसगढ़ी व्याकरण म उल्लेखित ' *श्', 'ष्'* के छुट्टी बाबत्- आजादी से ले के आज तक एफीडेविट दे के नाम परिवर्तन नि करे हें ( शीला-सीला, शंकर-संकर, संतोष-संतोस, ज्ञानु-ग्यानु, साक्षी-साक्छी आदि) न ही आगे कोई संभावना हे। छत्तीसगढ़ी म या कोई भी आन भाषा म रूपांकन के अवधारणा  बुद्धि-विलास के अलावा अउ कुछु नि होय। *का भाषा के शब्द मन के निर्धारण व्याकरणाचार्या मन करथें या ओला बोलइया आमजन?*  - पंचर ( Puncture, छेद, चोभ), कूलर ( Cooler, शीतक), हीरो ( Hero, नायक), कोट ( Coat, झिंगोला), कैंसर ( Cancer, कर्कट रोग), पेन ( Pen, कलम ) आदि मन  के निर्धारण छत्तीसगढ़ी भाषा म कोन करिस? व्याकरणाचार्या मन या आमजन? - निश्चित रूप म शब्द मन के स्वीकार्यता के निर्धारण आमजन ही करथें। रूपांकन या व्याकरण के बहाना ले के शब्द मन ला बाधित करना आत्मघाती हे-ओला आमजन कभू भी स्वीकार नि कर सके। *भाषा अउ मंदिर के कपाट ला कभू भी बन्द नि करना चाही।एखर खुला रहना सुखकर अउ समृद्धकर होथे।*


2) व्यक्तिवाचक संज्ञा म लिपि परिवर्तन करे ले कोर्ट-कचहरी , कार्यालय आदि सबो स्थान म काम करे मा बाधा आही। *संतोष ( Santosh ) ला संतोस ( Santos), ज्ञानू ( Gaynu ) ला ग्यानू ( Gyanu ), लक्ष्मी ( Lakshmi ) ला लक्छमी ( Lakchhami )* परिवर्तित करे मा ओला न कोर्ट-कचहरी स्वीकार करही न ही स्कूल, राजस्व आदि के अभिलेख म स्वीकार करे जाही।


3) छत्तीसगढ़ी भाषा यदि *देवनागरी* के स्थान म अन्य लिपि म लिखे जातिस तब डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा के रूपांकन के सुझाव अमल मा लाये जा सकत रहिस। वर्तमान परिस्थिति म रूपांकन असंभव हे।


4) छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के लइका अउ युवा मन जेन शब्द मन के प्रयोग छत्तीसगढ़ी बोले म करत हें- ओही भाषा छत्तीसगढ़ी हे। शिक्षा के प्रसार अउ वैश्वीकरण के प्रतिफलन म आन भाषा के आगत नवा-नवा शब्द मन ला यथा-रूप स्वीकार करना ही परही। छत्तीसगढ़ी ला गरीबहा अउ निरक्षर मन के भाषा बना के ओखरे अनुकूल शब्द विन्यास के कोशिश आत्मघाती हे- अइसने प्रयास म छत्तीसगढ़ी कभू भी समृद्ध नि हो पाही।



5) भारत शासन ह हिन्दी भाषा बर देवनागरी लिपि अउ ओखर 52 वर्ण ला अंगीकृत करे हे जेखर उपयोग समस्त शासकीय अभिलेख म होवत हे।छत्तीसगढ़ शासन ह घलो छत्तीसगढ़ी भाषा बर देवनागरी लिपि ला अंगीकृत करे हे। *छत्तीसगढ़ राजभाषा ( संशोधन ) अधिनियम 2007, धारा 2 के संशोधन-*


( *क) ' हिन्दी ' से अभिप्रेत है देवनागरी लिपि में हिन्दी।* 


( *ख) ' छत्तीसगढ़ी ' से अभिप्रेत है देवनागरी लिपि में छत्तीसगढ़ी।*


    उपरोक्त संशोधन ले स्पस्ट हे कि छत्तीसगढ़ी म देवनागरी लिपि के समस्त वर्ण अंगीकृत किये जाही। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा ए अधिसूचना 11 जुलाई 2008 के जारी किए गइस।

    अस्तु , यदि वर्तमान म *देवनागरी लिपि के कुछ वर्ण ला छत्तीसगढ़ी भाषा ले बहिष्कृत करना होही त छत्तीसगढ़ शासन ला विधानसभा म संशोधन बर पुनः अधिनियम लाना परही!*


                           ( 5 )


 *कवयित्री डाॅ शैल चन्द्रा के अभिमत*


1) कुछ लेखक/पत्रकार/मिडिया कर्मी मन व्यक्तिवाचक संज्ञा ला बिगाड़ के अपभ्रंस छत्तीसगढ़ी लिखत हें। जइसे: *रायपुर-रईपुर, बिलासपुर-बेलासपुर, शीतल शर्मा- सीतल सरमा, त्रिलोचन-तिरलोचन,* ये बिलकुल ही गलत हे। का ' *प्राणीशास्त्र* 'ला ' *परानीसास्तर* ' लिखना या फेर बोलना उचित होही?


2) *व* के स्थान म *ब* उच्चारित करे म अर्थ के अनर्थ होवत हे-

 *वात*-हवा

 *बात*- बचन, गोठ

 *वन*-जंगल

 *बन*-बनना,बनगिस,बनगे


3) *ण* के स्थान म *न*  उच्चारित करे म घलो अर्थ के अनर्थ होवत हे-

 *गणतंत्र*- आम जनता बर बने संविधान

 *गनतंत्र*-बंदूक के बल म बने नियम/संविधान

*वर्ण* ( किस्म/रंग ) अउ

*वरण*( चुनाव ) दुनों शब्द के अपभ्रंस रूप ' *वरन* ' या फेर ' *बरन* ' होवत हे!


4) *श्रम*  ला *सरम*  लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे।


5) *ज्ञेय* -जानना, जेला जाने जाय

 *गेय* -गाने के लायक या गाना योग्य

  अब *ज्ञेय*  ला *गेय*  लिखना का उचित होही?


6) *पुत्री* ( कन्या सन्तान) ला *पुतरी* ( निर्जीव खिलौना/ गुड्डी-गुड़िया) लिखना या बोलना बिलकुल भी सही नि होय।


   समय बदल गे हे। देश, समाज,परिवेश सब कुछ बदलत हे। परिवर्तन ला स्वीकार करना परही अउ देवनागरी के सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म स्वीकार करना परही।

  *विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी* ( 2018, पृ- 32) म डाॅ विनोद कुमार वर्मा लिखे हें...... *सम्प्रति, छत्तीसगढ़ी भाषा को निरक्षर और गरीब तबके की ही भाषा बनाकर ठीक उसके अनुकूल शब्दों का विन्यास करने से वह कभी भी समृद्ध नहीं हो पायेगी।......*  मैं लेखक के अभिमत ले पुरी तरह सहमत हौं। छत्तीसगढ़ी ला गरीबहा अउ निरक्षर मन के भाषा बनाये रखना घातक हे। छत्तीसगढ़ी ला 21वीं सदी के अनुकूल शिक्षित अउ सुसंस्कृत मन के भाषा के अनुरूप स्थापित करना  परही।


                          ( 6 )



 *डाॅ* *विजय कुमार सिन्हा के अभिमत*-


    प्रायः देखे गे हे कि नवा लेखक मन छत्तीसगढ़ी भाषा के शुद्धता के चक्कर म हिन्दी के शब्द मन ला बिगाड़ के लिखथें।अव्वल तो छत्तीसगढ़ी के अपभ्रंस लेखन ला कोनो पढ़ना नि चाहे; दूसर बात अइसन लेखन ले अर्थ के अनर्थ होवत हे। जइसे हिन्दी के वाक्य ' *वह शाला जाता है* ' के छत्तीसगढ़ी संस्करण ' *वोहा साला जाथे* ' लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। हिन्दी के आगत शब्द मन ला मूल रूप म ही लिखना सही होही- ओखर रूपांकन करे के उदिम छत्तीसगढ़ी ला रसातल म पहुँचात हे। देवनागरी लिपि के सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म स्वीकार करना परही।

      मोला सुरता आवत हे कि पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय जी जब कालिदासकृत ' *मेघदूत* ' के छत्तीसगढ़ी रूपान्तरण करत रहिन तब उन ला ' *स्त्री* ' शब्द के रूपान्तण बर छत्तीसगढ़ी के उपयुक्त शब्द नि मिलत रहिस। पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र के सलाह के बाद ' *स्त्री*' के स्थान म ' *नारी*'( हिन्दी ) शब्द के यथावत प्रयोग करिन। कुल मिला के छत्तीसगढ़ी लेखन म  अंग्रेजी अउ आन भाषा के आगत शब्द मन ला मूल रूप म ही स्वीकार करना चाही- शब्द बिगाड़ के लिखना आत्मघाती हे।


        *डाॅ* *बलदाऊ प्रसाद निर्मलकर के अभिमत-* 


   छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी लिपि के सबो वर्ण ला स्वीकार करे म  छत्तीसगढ़ी साहित्य उन्नत होही अउ ओला पढ़े घलो जाही। हमर गाँव के घर-परिवार, पारा-मोहल्ला म बहुत अकन अइसन शब्द मन के प्रयोग बोलचाल म होथे जेमन आन भाषा ले नि आय हें बल्कि छत्तीसगढ़ी के मूल शब्द हें- ओमन के संरक्षण अउ छत्तीसगढ़ी लेखन म प्रयोग दुनों जरूरी हे।जइसे-  *अथान, असनांदे, आकाबीसा, कलेचुप, किरिया, कुन्दरा, मुंदरी, गियाँ, गर्रा-धुंका, गुरतुर, गोरस, छेवारी, जड़काला, झुठर्रा, टेंकहा,* *टेटकी, ठउका, ठकरस, बनिहार, खोंदरा, डोंगरी, तनियाना, तिड़ी-बिड़ी, धुंगिया, पंगत, लकर-धकर, परसों, नरसों* , *नखा, निच्चट, रमकेलिया, बरछा, बलकरहा, बावनबूटी, बुड़ती, भरका, भकमुड़वा,* *भलुक,भुलका, भिनसरहा, भुसड़ी, भोंमरा, मइलहा, मतौना, मयारू, मुखारी, मोटियारी,* *मुड़पीरा* , *येती-ओती, रंगझांझर, राहपट/रहपट, लइकोरही, लपर-लपर, लागमानी, लागा-बोड़ी, संघरा, संसो, हाड़ा-गोड़ा, हितवा, हबरना* आदि। अइसने बहुत अकन छत्तीसगढ़ी के मौलिक शब्द मन के संरक्षण घलो जरूरी हे।


                            ( 7 )


 *संपादक, समीक्षक , कवयित्री सुधा वर्मा के अभिमत* -


छत्तीसगढ़ी लेखन म आन भाषा के आगत शब्द मन ला यथारूप ही लेना चाही। व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूपान्तरण करे म नाम बिगड़ जाही। कुल मिला के *छत्तीसगढ़ी लेखन म हिन्दी बर अंगीकृत देवनागरी लिपि के वर्णमाला ला  पूरी तरह मान लेना बेहतर* *विकल्प* *होही* । 

*कवि,समीक्षक* *डाॅ जगदीश कुलदीप के अभिमत*-


छत्तीसगढ़ी भाषा देवनागरी लिपि म लिखे जाथे त ओखर सम्पूर्ण वर्णमाला ला अपनाना परही; काबर कि हमन हिन्दी भाषी क्षेत्र म रहिथन अउ बोलचाल के संग लेखन म देवनागरी लिपि के सबो वर्ण के प्रयोग करथन त छत्तीसगढ़ी लेखन म ओला बाधित करे ले का फायदा होही? छत्तीसगढ़ी लेखन म  *ण्, श्, ष्, क्ष्, त्र्, ज्ञ्, श्र्* के स्थान म  *न्, स्, स्, क्छ्,तर्, ग्य् सर्,* के प्रयोग करे के कोई ठोस आधार नि दिखत हे। छत्तीसगढ़ी भाषा म संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी के अनेक शब्द मन रच-बस गय हें; नवा लेखक अउ मिडिया कर्मी मन उचित मार्गदर्शन/जानकारी के अभाव म ओही तत्सम शब्द मन ला अपभ्रंशित कर छत्तीसगढ़ी भाषा म लेखन करत हें अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के नाश करे म लगे हें। *कम्पोटर, मुबाईल,* *छिनीमा* जइसन अपभ्रंस शब्द के प्रयोग का सही माने जाही? *भाषा के काम हे- बिना कोई भ्रम के भावाभिव्यक्ति। यदि अपभ्रंस लेखन के कारण भाव व्यक्त करे म अड़चन आवत हे तब फेर लकीर के फकीर बने रहना उचित नि होय।*


*कवि, समीक्षक नरेन्द्र कौशिक अमसेनवी के अभिमत-* 


    अर्ध ' *र* ' के स्थान म पूर्ण ' *र*' लिख के हमन *प्रदेश* ला *परदेस* बना लेथन। *प्रभाव* ( सामर्थ्य या शक्ति ) ला *परभाव*( दूसरे की भावना ) लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। *कर्म*  अउ *क्रम*  ला *करम*  लिखे जा सकत हे का? *अज्ञात*  ला *अगियात* (जलन),*पात्र*  ला *पातर*( पतला ) लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। ' *ॐ नमः शिवाय '*  ला ' *ॐ नमः सिवाय '* लिखबो त महादेव भगवान ये संसार ले ' *सिवाय*' (बिना, बाहर,फालतू, अतिरिक्त ) कर दिहीं!


                     ( 8 )


   *लेखक समीक्षक नरेन्द्र वर्मा के अभिमत*


  1)  छत्तीसगढ़ी लेखन के आरंभिक दौर म देवनागरी के कुछ वर्ण *ऋ, ङ, ञ, ण, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र* ला छोड़ना अउ *व* ला कहीं-कहीं *ब* लिखना उपयुक्त रहिस होही। आजादी के पहिली शिक्षा के प्रचार-प्रसार न्यून रहिस अउ जइसन उच्चारण करन वइसन लिखे के प्रचलन रहिस। सन् 2011 के जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ म साक्षरता 70 प्रतिशत ले जादा हे- अभी तो और भी बढ़ चुके हे। पढ़े-लिखे लोग जेनमन हिन्दी माध्यम ले पढ़ के निकले हें; देवनागरी के सबो वर्ण के न्यूनाधिक उपयोग करत हें। अइसन समय म सरल शब्द मन ला छत्तीसगढ़ीकरण करे के नाम ले अनावश्यक तोड़े-मोड़े के प्रयास करबो तब ओला पढ़े-लिखे म नवा पीढ़ी ला परेशानी होही। एक तो अइसन घलो छत्तीसगढ़ी के पठन अउ लेखन बहुत कम लोग मन करथें। अभी आवश्यकता ये बात के जादा हे कि हमन सरल अउ आमजन म प्रचलित शब्द मन के लेखन म प्रयोग कर के युवा मन ला छत्तीसगढ़ी पढ़े-लिखे बर प्रेरित करी। बदलाव के दौर म यदि हमन नि बदलबो तब विकास-क्रम म या तो छूट जइबो या फेर पिछड़ जइबो। 


2) अंग्रेजी माध्यम ले पढ़-लिख के निकलइया लइका अउ युवा मन के बाते अलग हे ओमन ला तो हिन्दी पढ़े-लिखे म मुश्किल होवत हे भलेहि ओमन बोलचाल म हिन्दी के प्रयोग करत हें। अइसन क्रांतिक समय म छत्तीसगढ़ी पढ़ना-लिखना वह भी देवनागरी के ज्ञात वर्ण ला छोड़ के- शब्द मन ला अनावश्यक तोड़-मरोड़ के ओमन के सामने रखबो तब ओमन का करहीं ?- भगवान जाने! मोर समझ म छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखन म देवनागरी के सबो 52 वर्ण ला अंगीकृत कर लेना चाही वरना छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वाधिक अहित कुछ वर्ण के बहिस्कार के कारण होवत हे- ओला रोकना मुश्किल हो जाही।


3) भाषा तो नदी के भाँति हे- जेखर धारा निरंतर बहते रहना चाही।  बड़े नदी म जब पानी के अन्य श्रोत छोटे नदी-नाला मिलत जाथे तभे ओखर स्वरूप हा बढ़थे अउ बड़े नदी -  *महानदी* के आकार लेथे। यदि हमन ओखर श्रोत ला बंद कर देबो ( आन भाषा के शब्द मन ला मूल रूप म ग्रहण नि करबो ) तब ओखर प्रवाह अवरूद्ध हो जाही। *कोई भी भाषा दीर्घकाल तक तभे जीवित रह पाही जब ओखर शब्द भंडार विशाल होही- ये बात* *ला हमन ला समझना अउ* *मानना परही* ।


3) व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूपान्तरण के आग्रह न केवल हास्यास्प्रद हे बल्कि आत्मघाती घलो हे।


                         ( 9 )


 *सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ विनय कुमार पाठक के अभिमत-*


      संस्कृत, हिन्दी अउ ओखर प्रायः सबो प्रमुख लोकभाषा यथा- ब्रज, अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी के साथ कई भारतीय भाषा के लिपि देवनागरी हे अइसने सबो भाषाई क्षेत्र म ध्वनि आधारित वर्ण मन के उच्चारण प्रायः एक समान ही हे। प्रश्न ये हे कि यदि लिपि म समानता हे तब वर्णमाला म भेद काबर? बीसवीं सदी के पूर्वार्ध अउ आजादी के बाद तीन दशक तक छत्तीसगढ़ी के विद्वान मन व्याकरण के ये पक्ष ला जिस तरह नजरअंदाज करिन ओखर कारण छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रवाह के गति थम-से गइस; बल्कि ये कहना जादा सही होही कि छत्तीसगढ़ी भाषा दिशाहीनता के शिकार  होगे। विद्वान साहित्यकार मन स्वयं तो छत्तीसगढ़ी म समृद्ध साहित्य के सम्यक सृजन करिन मगर छत्तीसगढ़ी भाषा के नेतृत्व नि करिन।यदि नेतृत्व करतिन त छत्तीसगढ़ी भाषा दिशाहीनता ले बच जातिस। ओमन एक सुरक्षा कवच पहिन ले रहिन अउ वोही व्याकरण के पाछू भागत रहिन जेहर एक सदी पहिली लिखे गय रहिस। एखर ले इतर स्वतंत्रता आंदोलन के उत्तरार्ध म हिन्दी अपन प्रतिष्ठा पाइस अउ अनेक मूर्धन्य साहित्यकार मन ओला दिशा देखाइन। जबकि एही समय छत्तीसगढ़ के विद्वान मन *स्वांतः सुखाय* साहित्य के रचना करत रहिन।

    छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी लिखइया नवा लेखक अउ कवि मन घलो एखरे सेती दिशाहीनता के शिकार हो गिन अउ हिन्दी गद्य अउ पद्य के छत्तीसगढ़ी म मनमाने ढंग ले रूपान्तरण/रूपांकन करे लगिन। छिनीमा ( सिनेमा ), परकिरिति ( प्रकृति ), संसकिरिति ( संस्कृति ), डराइबर ( ड्रायवर ) , कम्पोटर ( कम्प्यूटर ) जइसन हजारों अपभ्रंस छत्तीसगढ़ी शब्द गढ़े गइस। जेन शब्द छत्तीसगढ़ी म बोले ही नि जात हे अइसन नवा-नवा शब्द गढ़े ले न लिखने वाला के भला होइस न ही छत्तीसगढ़ी भाषा के। *मानक बनाय के फेर म छत्तीसगढ़ी भाषा ला विकृत बनाय के कोशिश ले बचना आज के सबले बड़े जरूरत हे।*  *अब तो कुछ लेखक मन  छत्तीसगढ़ी लेखन म व्यक्तिवाचक संज्ञा ला घलो धिकृत-विकृत करे म लगे हें।* 

   आज से लगभग 137 साल पहिली लिखे छत्तीसगढ़ी व्याकरण ला यथावत स्वीकार करना का बुद्धिमानी हे? जेन समय ये व्याकरण ग्रंथ ला लिखे गे रहिस ओ समय छत्तीसगढ़ म शिक्षा नगण्य रहिस अउ *सीताफल* ला *छीताफल*, *सास* ला *छाछ*, *रायपुर* ला *रइपुर*, *दुर्ग* ला *दुरूग* बोलत रहिन। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बाद अब अइसन उच्चारण दोष सुदूर वन्यांचल म भले मिल जाही फेर छत्तीसगढ़ के अधिकांश व्यक्ति अइसन  अपभ्रंस शब्द के प्रयोग नि करें। जब बोलचाल म अइसन विकृति नि हे त फेर प्राचीनता के नाम ले के अइसन शब्द मन ला ढोना का लाश ला कंधा म ढोना के समान नि माने जाही?

      *श्* अउ *ष्* के स्थान म *स्*  के प्रयोग करे म विसंगति के वृत निर्मित होवत हे। *शंकर* ला *संकर* या फेर *शेष* ला *सेस* लिख देहे म अर्थ-द्योतित नि होवत हे। *गणेश* ला *गनेस* अउ *प्रसाद* ला *परसाद* लिखे के परिपाटी कब तक चलत रही?

      *डाॅ भालचंद्र राव तैलंग*, *डाॅ शंकर शेष, डाॅ कांतिकुमार* से लेके *डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा* तक अनेक विद्वान मन छत्तीसगढ़ी के बदलते भाषिक कलेवर अउ तेवर ला नि पहिचान पाइन अउ *लकीर के फकीर* बने रहिन।

     *छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी के हिन्दी बर अंगीकृत सबो 52 वर्ण ला स्वीकार करना परही ।* एखर साथे-साथ जइसे हिन्दी म तत्सम अउ तद्भव दुनों शब्द रूप समानांतर रूप ले प्रचलन म हे वइसने छत्तीसगढ़ी म ' *कल/काल/काली* अउ *आग/आगी*' समान रूप ले समादृत किया जाना चाही।


                       ( 10 )


   *भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर के अभिमत*-


         लेखन अउ उच्चारण अलग-अलग व्यवस्था हे। हमन जइसन बोलथन वइसन लिखन नहीं अउ जइसन लिखथन वइसन बोलन नहीं। ये बात सही हे कि छत्तीसगढ़ी म ' *ण* ', ' *श* ', ' *ष* ' ध्वनि नि हे। ' *ऐ, औ* ' ला ' *अइ, अउ* ' के रूप म बोले जाथे; परन्तु संस्कृत या हिन्दी ले जउन व्यक्तिवाचक-नाम, पद-नाम, संस्था-नाम, देवता-नाम, श्लोक, कविता के उद्धरण ला हम लेबो त का अपन भाषा के अनुसार लिखबो-पढ़बो ? का ' *प्रधानमंत्री*' ला ' *परधानमंतरी*, ' *राष्ट्रपति*', ला ' *रास्टरपति*', ' *प्रशासन*' ला ' *परसासन*' लिखबो- पढ़बो ? - निश्चित रूप म नहीं।

     भाषा के मानकीकरण बर लिपि के रूप म देवनागरी ला अपनाना सुविधाजनक हे। देवनागरी म कतको विदेशी ध्वनि बर घलो वर्ण बनाय के उपाय हे। एखर ले विदेशी भाषा के अनुवाद म सुविधा होही। रह गे बात छत्तीसगढ़ी ला संवैधानिक दर्जा मिले के - त ये हर सरकार के मुद्दा हे। एखर बर बुद्धिजीवी अउ साहित्यकार मन उपाय तो करतेच्च हें अउ हमर काम ओखर ( छत्तीसगढ़ी के) व्यवहारिक प्रयोग के हे। अपन मन ले ये कुण्ठा या हीनभावना निकाल फेंकव कि छत्तीसगढ़ी बोले-लिखे म हमन छोटे हो जाबो या आन लोगन हम ला अशिक्षित कहीं। अपन संस्कृति ला बचाय बर भाषा के अलावा अउ कोई उपाय नि हे। माता के समान अपन मातृभाषा ले जो सुख मिलथे वो हा दूसर भाषा ले नि मिल सके। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहुत पहिली कहै हें-

निज भासा उन्नति अहै,सब उन्नति के मूल।

बिन निज भासा ग्यान के,मिटै न हिय को सूल।।


       *मानकीकरण बर संगोष्ठी*

          -------------------------------


 *22 जुलाई 2018 के दिन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर बिलासपुर म  राज्यस्तरीय संगोष्ठी के आयोजन करे गइस। एखर संयोजक डाॅ विनोद कुमार वर्मा रहिन। संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि उपर गहन विचार-विमर्श के बाद* *सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर द्वारा प्रस्तुत ' छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि के 52 वर्ण के स्वीकार्यता बाबत् ' प्रस्ताव* *सर्वसम्मति से पारित किये गइस।* 


      *प्रस्ताव ( छत्तीसगढ़ी म )*

        ---------------------------------


 _छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर द्वारा 22 जुलाई 2018 के बिलासपुर म आयोजित राज्य-स्तरीय संगोष्ठी म ये प्रस्ताव पारित किये जावत हे-_


' *छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा 11 जुलाई 2018 के अधिसूचित राजभाषा ( संशोधन ) अधिनियम 2007 ( धारा 2 ) के संशोधन के अनुरूप छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि ( ओखर 52 वर्ण मन ) ल यथा-रूप अंगीकृत किये जाही जेला केंद्र शासन ह हिन्दी भाषा बर अंगीकृत करे हे। '*


 *हिन्दी भाषा के लिए अंगीकृत देवनागरी लिपि*


                  *हिन्दी वर्णमाला*

                    --------------------

# स्वर- अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ- (11)


# अयोगवाह- अं, अः (02)


# स्पर्श व्यंजन- ( 25 )

            क वर्ग : क,ख,ग,घ,ङ

            च वर्ग : च,छ,ज,झ,ञ

             ट वर्ग : ट,ठ,ड,ढ,ण

             त वर्ग : त,थ,द,ध,न

             प वर्ग : प,फ,ब,भ,म


# अन्तःस्थ व्यंजन : य, र, ल, व (04)

# उष्म व्यंजन : श, ष, स, ह (04)

# द्विगुण व्यंजन : ड़, ढ़ (02)

# संयुक्त व्यंजन : क्ष, त्र, ज्ञ, श्र (04)

----------------------------------------

         कुल वर्ण - 52

----------------------------------------


          - *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

            MIG - 59,नेहरूनगर,

            बिलासपुर छ.ग.495001

मो.- 98263-40331

ईमेल- vinodverma8070@gmail.com

Sunday 27 March 2022

हमर देसी फिरिज--करसा

 हमर देसी फिरिज--करसा



अब तो गरमी घलो नंगत के बाढ़ गेहे। सबो जीव धारी मन बर पानी अभी के बेरा म अब्बड़ जरूरी होथे। फेर कहूं-कहूं पानी के अब्बड़ तकलीफ घलो हो जाथे। अब तो थोरको घाम चघे नई रहय अउ टोंटा ह सुखाय ल परथे। कोई डहन ले आबे तहन ले मार संसन्न भर के ठंडा पानी पिबे तभे जीव लहुटे सही लगथे। अब गरमी म सरबत के चलन बढ़त हे, लिमऊ के रसा हो जाये तहन एक के ह दू गिलास पिया जाथे। गरमी म सगा मन के सुआगत ठंडा पानी के सरबत ले ही होथे। 


गरमी दिन म गंवई गांव म जादा ले फिरिज तो नई मिलय पर फिरिज के बड़े ददा जरूर सबे घर मिल जाही। जेला देशी फिरिज घलो कथे--करसा,करसी,मटका,घड़ा, येकर नाव हावे। जे ईहा के पानी ल पिथे ओला तो अमरीत पिये सरी लगथे। काबर के ईहा के पानी एकदम ठंडा,मीठा,सुवादिस रथे। नंगत घाम के आये के पीछू येला पिये के आनन्द अलगे रथिते। येकर गुन ल जनैया मन करसा के पानी ल पिये बर अब्बड़ सोरियात रथे, घर म सियान मन के भाखा सुनात रथे-ये करसा के पानी ल देबे नोनी न।


अभी करसा मन के चलन बाढ़ गेहे,बाजार म छोटे-बड़े कतको मिल जाथे। लेवैया मन अंगरी ल टेड़गा करके मारही तभे ओकर मन माढ़ही,मने करसा के बने ठहिल पाके के परख हरे,अउ बगबग ले लाल घलो रहय। करसा ल घर म लान के पानी ल भर के रखे ल पड़थे। रखे बर रेती ल भींजो के रखदे नहिते लोहा के स्टेन्ड घलो बनथे। जादा ठंडा रखे बर हे त चिरहा बोरा ल पानी म भींजो के करसा म गोल लपेट के रखे ले अब्बड़ ठंडा रथे।


करसा के पानी के ठंडा रहे के कारण घलो हे,करसा म अब्बड़ नांन्हे-नांन्हे छेद रथे,जे आँखी ले नई दिख पाये। ये छेद ले पानी ह रिसत रथे,अउ करसा के बाहिर तक आ जथे। बाहिर के तापमान ह भीतरी के तापमान ले जादा होय ले वाष्पीकरण होवत रथे। जेकर ले करसा के पानी अघात ठंडा रथिते।


करसा के पानी फिरिज के पानी ले अपन सेहत बर बने होथे। फिरिज ल पानी अउ बॉटल के पानी ल कतरो पी ले,पियास बुझाबे नई करय। शरीर बर तको नुकसानी आय। करसा माटी के बने हे जेमे कई परकार के रोग-राई के लड़े के समता हे। येकर पानी के सुवाद अउ मजा अलगे हे। 


करसा के पानी पिये ले जेवन ह बने पचे बर पाचन तंत्र ल सहयोग करथे, शरीर म टेस्टोस्टेरोन बढते। पेट के समस्या गैस,अपच,जलन नई होय। करसा के पानी अशुद्दी मन ल साफ कर पानी के गुन ल बढ़ाथे।वात रोग ल नई बढ़न दे। गला ल खराब नई होन दे। पी एच मान बने रथे। गरबवती माता मन बर अउ जादा पुस्टई काम करथे अउ नांन्हे लइका ल मजबूत बनाथे।


सियान मन कथे कि रोज बिहिनिया ले करसा के पानी ल पिये ले कोई बेमारी नई होय। बिहिनिया के पानी ल अब्बड़ फायदे माने गेहे,ये हमर आँखी,दिल,दिमाक ल बने पोठ करथे। अपन शरीर के बने ठहिल रखना हे त करसा के पानी ल जरूर अपनाए प लगही। पहली के सियान मन करसा के पानी,हड़िया के भात, कलौंजी का साग खाये त कइसे अब्बड़ ठोस रहय। हमन येला छोड़त हन त दिनों-दिन हमर शरीर के बल कम होवत जात हे। प्रकृति के दुरिहा भागे के फल ल पावत हन।


अब गांव रहय ते सहर सबो के मनखे मन करसा के पानी ल अपनाये हे। सड़क तीर अउ सहर मन म कतरो पियाऊ घर खुले हावे,जेमे एक झन पानी पियाईया जरूर रथे। येला कोई संसथा, भले आदमी,सामाजिक संसथा वाले मन खोल के पानी पियाये के धरम काम करत रहिथे।


करसा के पानी ल फिरिज के पानी सही बिजली ले ठंडा करे के जरूरत नई हे, ये तो प्राकृतिक रूप ले ठंडा रथे। मने एकदम सुद्द देशी। बिजली के ख़र्चा करे ले बचत घलो होथे। करसा लेय ले हमर कुम्भकार भाई मन के घलो मिहनत के मान अउ सहयोग होथे। करसा के पानी ल हमन पिबो त अवइया पीढ़ी मन हमन ल देख के करसा के पानी ल अपनाही अउ अपन सेहत बर जागरूक होही। परकीरीती के तीर म रहि अउ सेहत घलो बने ठहिल रहिही।



         हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

कहानी// अमरबेल

  सुशील भोले: कहानी//   अमरबेल

    मंगलू ल जब कभू ढेरा आॅंटना होय त बस्ती के बाहिर म एक ठन गस्ती के पेंड़ हे, तेकरे छांव म जा के बइठय अउ हरहिंछा ढेरा आंटय. एक पूरा कांसी के डोरी ल आंटे म वोला नहीं-नहीं म चार घंटा तो लगी जाय. आने मनखे कहूँ वतका डोरी ल आंटतीस त एक घंटा ले जादा नइ लागतीस. फेर मंगलू ढेरा ल आंटय कम अउ गस्ती के पेंड़ म अवइया चिरई-चिरगुन मनला जादा देखय, तेकर सेती वोला जादा बेरा लागय.

    बड़का बांस के घेरा के पुरती झंउरे रिहिसे गस्ती के पेंड़ ह. देखब म बड़ा नीक लागय. गद हरियर, साल म दू पइत पिकरी फरय तेकर सेती दू-दी तीन-तीन महीना के पुरती ले अवइया-जवइया मनला अपन सेवाद चिखावय. पिकरी मन पाक के जब चिरईजाम कस भठहूं रंग के हो जाय न, त अच्छा अच्छा मनखे के उपास-धास ह वोला चीखे के लालच म टूट जाय. एकरे सेती वो पेंड़ म रकम-रकम के चिरई-चिरगुन मनला तको पाते. मार चिंव-चिंव के तुतरू बाजत राहय दिन भर. मंगलू के मंझनिया ह एकरे सेती इहें पहावय. कइसनो गरमी के चरचरावत बेरा होय, फेर गस्ती के छांव ह जुड़ बोलय. एकरे सेती आन गाँव के अवइया-जवइया मन घलो एक घड़ी वोकर छांव म बिलमे के लालच जरूर करयं.

    जुड़ छांव ल देख के परदेशी के मन म घलो गस्ती तरी एक घड़ी सुरताए के लालच जागीस. वो सइकिल ले उतर के गस्ती तरी गिस, उहाँ मंगलू ल देख के वोकर संग मुंहाचाही करे लागिस. गोठे-गोठ म वो जानबा कर डारिस के ए गाँव म एको ठन चाय ठेला नइए. वोकर मन म उहाँ नानमुन ठेला राख के चाय अउ वोकर संग अउ कुछू नानमुन जिनिस मन के धंधा करे के बिचार जागीस. वो मंगलू तीर गाँव के बारे म पूरा जानकारी ले खातिर पूछिस- 'अच्छा ए तो बता भइया.. ए गाँव के सरपंच कोन आय?'

    -झंगलू दास

    -अउ वोकर घर कोन मुड़ा होही ते?

    -उही दे.. छेंव मुड़ा के तरिया तीर. मंगलू ह हाथ म इसारा करत कहिस.

    परदेसी फेर पूछिस-' अभी घर म भेंट हो सकथे का?'

    -'कोन जनी भई.. उहू काम-बुता वाले मनखे आय, एती-तेती अवई-जवई करते रहिथे.' मंगलू ल घलो वो मनखे के बारे म जाने के मन होइस, त पूछ परिस-' अउ तैं कहाँ ले आवत हस जी?'

    -एदे.. इही सिलतरा ले.

    -अरे त अतका दुरिहा नगरगांव के सरपंच ल नइ जानस जी?

    -नहीं.. मैं सिलतरा के खास रहइया थोरे आंव जी. हमन आने देस ले आए हन ग.. आने देस ले.

    -अच्छा-अच्छा.. त खाए-कमाए आए हौ इहाँ.

    -हहो.. रात पारी म इहें के फेकटरी म काम चलथे, तेकर सेती मैं सोचेंव, दिन-मान घलो कुछू धंधा कर लेतेंव. वोकरे सेती एदे अभी सइकिल म घूम-घूम के चना-मुर्रा अउ बिसकुट-डबलरोटी बेंचत रइथौं. फेर रात कन फेकटरी म जागे मनखे के दिन भर सइकिल म घुमई ह नइ बनय न, तेकरे सेती इहें नानमुन धंधा खोल लेतेंव, एके जगा बइठ के धंधा करे म देंह ल थोरिक सुरताए ले मिल जातीस.

    -अच्छा.. त वोकरे सेती सरपंच ल पूछत हस, तेमा वोकर जगा कोनो मेर ठेला-उला राखे खातिर हुंकारू भरवा सकस.

    परदेसी हीं-हीं-हीं कहिके हांस दिस. त मंगलू वोकर जगा फेर पूछिस-' त तैं ह अभी कतका दुरिहा ले किंजरथस जी?'

    -अभी.. अभी कहे त सिलतरा ले चरौदा-टांड़ा होवत एदे तुंहर गाँव नगरगांव, तहाँ ले एती ले बोहरही-सिलयारी डहार ले कुरूद-गोढ़ी होवत वापिस सिलतरा पहुँच जाथौं. 

    -हूँ ले का होइस कहिके मंगलू वोला चोंगी-माखुर खातिर पूछिस, फेर परदेसी ह कुछू नइ लागय कहिके सरपंच के घर कोती चल दिस. 

    मंगलू ढेरा आंटे ल छोड़ के वोला एकटक देखे लागिस. वो जब नजर ले ओझल होइस तहाँ ले खीसा ले बीड़ी-माचिस हेर के धुंगिया उड़ियावत गस्ती पेंड़ म ओध के ऊपर डहार ल देखे लागिस. वोहा देखिस के बुड़ती मुड़ा ले एक ठन कौंवा ह अपन चोंच म अमरबेल के नार ल चाबे आवत हे. आए के बाद अमरबेल के नार ल गस्ती के एक ठन डारा म लामी-लामा ओरमा दिस. मंगलू वोकर बारे म जादा गुनिस घलो नहीं. चोंगी चुहके के बाद ढेरा आंटे के बुता ल पूरा करीस तहाँ ले अपन घर लहुट आइस. 

* * * * * 

    कुछू न कुछू ओढ़र करके मंगलू रोजे गस्ती तरी जाय. कभू गाय-गरू खोजे के बहाना, त कभू ढेरा आंटे के बहाना. अउ अब जब कभू जाय, त कौंवा के ओरमाए अमरबेल ल अवस करके देखय. वोला बड़ा अचरज लागय, बिन जर के नार ह अतेक तालाबेली वाले गरमी म घलोक कइसे सूखावत नइए? कभू-कभू वो गुनय के गस्ती के जुड़ छांव के सेती वोमा घाम के असर नइ होवत होही, तेकर सेती न सूखावत हे, न अइलावत हे. वोला सबले जादा अचरज तो तब लागिस जब पंदरही के बीतत ले अमरबेल ल बाढ़त पाइस! वो अपन आंखी ल रमंज-रमंज के देखय अउ गुनय- कौंवा ह एला लान के ओरमाए रिहिसे तेन दिन तो सवा हाथ असन दूनों मुड़ा ओरमे रिहिसे, फेर आज डेढ़ अउ दू हाथ होए असन कइसे जनावत हे?

    मंगलू बिना जर वाले अमरबेल के बाढ़े के गोठ ल गुनतेच रिहिसे, तइसनेच म भंइसा गाड़ा म जोरा के एक ठन लकड़ी के ठेला घलो वो मेर आगे. वोकर संगे-संग परदेसी घलो सइकिल म आके वो मेर ठाढ़ होगे. तहाँ ले देखते-देखत ठउका गस्ती के आगू म परदेसी के चाय ठेला चालू होगे.

    अब मंगलू के गस्ती तरी अवई ह थोरिक कमती होगे रिहिसे, काबर ते परदेसी के ठेला के सेती वो मेर लोगन के भीड़-भाड़ बाढ़गे राहय. गस्ती पेंड़ म चिरई-चिरगुन मन के अवई घलो ह थोक कमतियागे राहय, फेर अमरबेल के फुन्नई ह अतलंग बाढ़गे राहय, वइसने परदेसी के ठेला के बढ़वार ह घलो लागय. जइसे गस्ती पेंड़ के रस ल पी-पी के बिना जड़ वाले अमरबेल ह चारों मुड़ा छछलत राहय, तइसने लोक-लाज डर-भय अउ चिंता ले निसफिक्कर परदेसी के ठेला घलो बस्ती वाले मनके रसा ल नीचो-नीचो के छछलंग बाढ़त राहय.

    ऐतराब के जम्मो बस्ती म वोकरे चरचा होवय. लोगन काहयं के वो हर तो केहे भर के चाय ठेला आय, असल म तो वो ह जम्मो किसम के नसा अउ जुआ-सट्टा खेलाय-खवाय के ठीहा आय. एकरे सेती उहाँ जम्मो लंदर-फंदर किसम के मनखे मन के भीड़ लगे रहिथे. परदेसी ल गाँव के मान-मर्यादा अउ लाज-शरम ले का लेना-देना? वो इहाँ के मूल निवासी होतीस, चारों मुड़ा के गाँव बस्ती मन म वोकर लाग-मानी, नता-रिश्ता मन होतीन, तब तो वोला कोनो किसम के बात-बानी ह लागतीस? वो तो गस्ती के पेंड़ म बिना जड़ के छछलत अमरबेल कस रिहिसे, जेन सिरिफ दूसर के रस ल पीथे अउ पीये के बाद वोकरेच छाती म छछल जाथे.

    देखते-देखत परदेसी के धंधा अतका बाढ़गे के वोला एके मनखे के भरोसा सम्हालना मुसकुल होगे. तब वो अपन 'देस' ले नता-रिश्ता अउ लरा-जरा मनला घलो बलाए लागिस. चारे-पांच साल के बीतत ले आसपास के गाँव मन म परदेसी के नहीं-नहीं म सौ दू सौ अकन परिवार आके बसगे. अब वो मनला कोनो गाँव म दुकानदारी खोले बर पंच-सरपंच मनला घलो पूछे के जरूरत नइ परत रिहिसे. मुड़ भर-भर के लउड़ी धर के दल के दल जावयं अउ जेन मेर पावयं तेने मेर के भुइयां ल अपन बना लेवयं. 

    अब वोमन सिरिफ दुकानदारी भर नइ करयं, गाँव के सियानी अउ महाजनी घलो करयं. बड़का मनखे होए के अहंकार ले भरे मनखे मन के अत्याचार ले त्रस्त जनता वोकर मनके मीठ-मीठ बात म झट फंस जायं. तहाँ ले वोकर मन करा थोक-बहुत करजा-बाढ़ी लेके बलदा म अपन जम्मो खेती-खार ल उंकरे नांव म चढ़ा देवयं. अब तो बस्ती के जतका बड़े घर-दुवार, बारी-बखरी अउ धनहा-डोली हे, सब वोकरेच मनके पोगरइती होगे हें.

    मंगलू महीना दू महीना म गस्ती पेंड़ करा अभी घलो जावय. एक नजर गस्ती के पेंड़ ल अउ एक नजर परदेसी के दुकान ल देखय. दूनों के दूनों चिनहाय कस नइ लागय. गस्ती के पेंड़ ह अब अमरबेल के पेंड़ बरोबर दिखय. न तो वोमा अपन पान-पतइला दिखय, न पहिली असन गुरतुर फर फरय. पेंड़वा घलो ह कतकों जगा ले सूखा-सूखा के चिल्फा छांड़े अस लागय. ठउका परदेसी के दुकान अउ वोकर आड़ म होवत रंग-रंग के उपई के मारे ए बस्ती के मूल निवासी मन के रूप रंग अउ घर दुवार मन घलो अइसने गढ़न दिखय. परदेसी के परिवार चारों मुड़ा मार सोन कस चमकत पिंयर-पिंयर दिखत राहय अउ मूल निवासी मन गस्ती के पेंड़ असन जगा-जगा ले चिल्फा छांड़े अस सूखागे राहयं.

* * * * * 

    मंगलू के खाली बेरा अब नरवा खंड़ के डूमर तरी बीतथे. कभू-कभू जुन्ना सरपंच झंगलूदास घलो उहाँ पहुँच जाथे. कतकों बेर सरकारी स्कूल के बड़े गुरुजी घलो अभर जाथे. तीनों झन जब सकलावयं त पांच साल पहिली के गाँव अउ आज के गाँव ऊपर जादा गोठियावयं. गुरुजी उनला हमेशा काहय- 'बाहिर के मनखे ल इहाँ खातिर मोह कइसे लागही सरपंच? वो तो पइसा रपोटे बर आए हे, वोकर बर वोला कुछू करना परय वो सबला करही.'

    -तभो ले गुरुजी, मान-मर्यादा अउ मानवता घलो तो कुछू चीज आय... संस्कृति अउ संस्कार घलो तो कुछू चीज होथे. अरे भई, ये देश म तो अंगरेज मन घलो राज करे हें, फेर उहू मन इहाँ के इतिहास, गौरव, बोली-भाखा अउ संस्कृति संग कभू अतका छेड़छाड़ नइ करीन, फेर ए मन तो वोकरो ले नहाक गेहें. राष्ट्रीयता के आड़ म क्षेत्रीय चिन्हारी के सत्यानाश करत हें. मैं का सोंच के दुकान खोले खातिर ए परदेसी ल जगा दे रेहेंव, अउ ए सब का होगे?'

    -कुछू नहीं सरपंच... अब कइसनो कर के फेर ए गाँव अउ देस-राज के जम्मो शासन-सत्ता ल हम मूल निवासी मनला अपन हाथ म ले बर लागही, तभे इहाँ के मरजाद बांचे पाही, नइते हमर पुरखा मन काय रिहिन हें, कइसे करत रिहिन हें, तेकरो पहिचान मिटा जाही.

    -ये सब तो ठीक हे, फेर कइसे करे जाय तेला तुहीं मन बतातेव गुरुजी.

    -बस जतका झन समझदार अउ स्वाभिमानी किसम के मनखे हे, ते मनला जोरव, अउ आज ले उनला पंदोली दे खातिर टंगिया के बेंठ बने बइठे हें, ते मनला लेसौ-भूंजौ, तहाँ ले सब ठीक हो जाही. अउ हाँ.. सबले बड़े बात तो ए हे के तहूं मन अपन  आदत-बेवहार, बोली-बचन अउ रहन-सहन ल सुधारौ. तुंहर तीर-तखार के मनखे तुंहला छोड़ के वोकर मन के संग खांध म खांध जोरे काबर रेंगथे, तेला गुनौ-बूझौ. काबर ते इही सबके नांव म तो वो मन हमन ल आपस म लड़वावत रहिथें.

    -ठीक हे गुरुजी, हम अपने घर-परिवार अउ समाज म काबर लड़-मर के सिरा जाथन तेला तो सोचेच बर लागही. फेर मैं सोचथौं, ये टंगिया के बेंठ मनला सबले पहिली सिरवाए जाय.

    -हाँ.. ये तो सबले जादा जरूरी हे.

    मंगलू ह सरपंच अउ गुरुजी के गोठ ल कलेचुप सुनत रिहिसे, वो टंगिया के बेंठ ल लेसे-भूंजे के बात ल सुन के पूछ परिस-' गुरुजी, ये टंगिया के बेंठ के अरथ ल तो मैं समझेच नइ पाए हौं.'

    गुरुजी कहिस-' मंगलू तैं तो किसान मनखे अस. टंगिया-बंसुला के रोजे उपयोग करथस, फेर बता बिना बेंठ के ए टंगिया-बंसुला मन कुछू काम आथे का?'

    मंगलू मुड़ ल खजवावत कहिस-' नइ तो आवय गुरुजी, एक्के तीर परे रहिथे बस.

    -हाँ... बस वइसने हमर मन के बीच म जतका झन टंगिया के बेंठ बने बइठे हें, जेकर मनके भरोसा परदेसी हमन ल चारों मुड़ा ले काटत-बोंगत हे, उहू मनला पहिली सिरवाए बर लागही.

    मंगलू फेर पूछिस-' फेर ए मनला जानबो कइसे गुरुजी?'

    गुरुजी वोला समझाइस-' ए तो एकदम सरल हे मंगलू. जेन भी मनखे वोमन ला धरम के नांव म, भाखा अउ संस्कृति के नांव म, जाति-समाज या फेर चिटुक सुवारथ म बूड़ के पंदोली देवत रहिथें, उही सबो झनला पहिली लेसे अउ सिरवाए बर लागही. चाहे वो कतकों हितु-पिरितु के मनखे होवय, तभो वोला ढनगाएच बर परही.

    -अच्छा.. अच्छा.. जइसे गस्ती पेंड़ के अमरबेल ल सिरवाना हे, त वोला जतका डारा-पाना मन वोला अपन रस पिया-पिया के पोंसत हें, ते मनला पहिली काट दिए जाय तहाँ ले अमरबेल खुदे सिरा जाही... कइसे गुरुजी?

    -वाह भई मंगलू अब्बड़ सुग्घर बात बोले हस. गस्ती के पेंड़ ल बचाना हे, अउ वोमा नवा डारा-पाना जमवाना हे, त अमरबेल म बिपतियाए जम्मो डारा-पाना ल तो काटेच बर लागही. बस इही किसम के परदेसी के जाल ले ए भुइयाॅं अउ इहाँ के अस्मिता ल बचाए के उपाय घलो हे. बस तुमन दूनों अपन-अपन बुता म भीड़ जावौ. सरपंच जम्मो स्वाभिमानी मनखे मनके फौज बनावय अउ तहाँ ले जनजागरन के बुता करय, अउ तैं ह गस्ती के पेंड़ म नवा डारा-पाना उल्होए के उदिम म भीड़ जा, अउ हां जब कभू सौ-पचास नेवरिया बाबू पिला मनके तुंहला जरूरत परही त वोला मैं पूरा करहूं, ए बात के भरोसा देवत हौं. अपन स्कूल के जम्मो पढ़इया लइका मनला तुंहर संग खांध म खांध मिला के रेंगे बर भेज दे करहूं जी, तुमन देखिहौ तो भला.

    गुरुजी के बात ल सुन के मंगलू के मन म फेर गस्ती पेंड़ के जुड़ छांव तरी बइठ के  ढेरा आंटे के भरोसा जागिस. वोकर मन-अंतस म रकम-रकम के चिरई-चिरगुन मन के चींव-चींव के भाखा सुनाए लागिस. वो अपन घर म आये के बाद कोठी-कुरिया के संगसा म माढ़े टंगिया ल हेर के मार टेंवना पखरा म टें-टें के अमरबेल ल पोंसत डारा-पाना मनला काटे के उदिम जोंगे लागिस.

(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल: छत्तीसगढ़ के दुर्भाग्य आय कि परदेसिया मन इहाँ ल चरागन समझत चरे बर आथें। कोनो कुछु बहाना बताहीं त कोनो अउ कुछु बहाना बताहीं। फेर अपन अंतस् के भेद ल नइ जनावन दँय। मन के बात गड़रिया जाने, कहिनउ उँकर पार नइ मिले। इहाँ के मनखे के हिरदे म अतेक दया-मया भरे हे के अपन अउ बिरान म फरक नइ करँय। सबो ल एके तराजू म तउलथें। कोनो म भेद नइ करँय। परदेसिया मन के बनवटी दुख-पीरा के पूरा म बोहाय लगथें अउ उँकर साहमत करे लग जथें।छत्तीसगढ़िया के इही मरम ल जान के परदेसिया मन फायदा उठाथें। छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया सुन के छाती फूलो लेथें। उँकर नीयत का हे ते ला भाँप नइ सकँय, या फेर नजरअंदाज कर देथें।परदेसिया मन इही कमजोरी ल भाँप के अपन चरागन के कति ठउर म जादा चारा हे, के अनुमान लगा लेथें। छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया के मीठ चासनी चँटावत परदेसिया मन हम ल भुलवारथें अउ हम भुला जथन। हमन दया दिखावत उन ल ठउर देथन। वो ठउर जउन ल हम अपने भाई-बंध ल देना नइ चाहन। अपने भाई बंध कहूँ दू-चार पइसा कमाय लगथे त हमीं मन विरोध करथन। परदेसिया के धंधा पानी ल चमकाय म सरबस लुटाय बर भिड़ जथन। जेकर तिर कुछु नइ रहय उन अन्चिन्हार ल पेट गुजारा के नाँव म जगा दे देथन। उन मन हमरे आसरा पाके अमरबेल सहीं फइले लगथे अउ धीरलगहा हमरे ऊपर राज करे धर लेथें। थोरिक पाँव जमावत भर देरी रहिथे।

     चार घर के रहिके घलो अपन संस्कृति, अपन संस्कार अउ रीत रिवाज ल कभू नइ भुलाँय, अपने अपन रहे म अपन भाखा बोली म गोठियाथें अउ हमन अपने घर परिवार अउ लोगन के बीच अपने संस्कृति संस्कार अउ रीत रिवाज ल सम्मान नइ दन। अपन भाखा बोली म गोठियाय बर शरम करथँन। अपने मन म हीन भावना ल पाल के अपने रीत-रिवाज अउ परम्परा ले दुरियावत हन। वो संस्कृति जउन हम ल जोड़े रखथे। हमर एकता ल संबल देथे। हमर भाईचारा के ताकत आय। हमर इही ताकत अउ भाईचारा ल परदेसिया मन टोर के हमर ऊपर राज करे के उदिम करथें। इही उँकर नीयत आय, जउन ल ओमन कभू उजागर नइ होवन दँय। संस्कार अउ संस्कृति हमर पहचान आय। संस्कार अउ संस्कृति ले ही अस्तित्व बँचे रहिथे। जेकर संस्कार अउ संस्कृति नइ बचिस उँकर पहचान अउ अस्तित्व दूनो खतरा म पर जथे। ए बात ल परदेसिया मन बने ढंग ले जानथें तभे तो अपन जनम भुइयाँ ले कोसों दूर अपन संस्कृति अउ संस्कार ल कभू नइ छोड़ँय। भलुक हमर एका ल टोरे खातिर हमर लोक-लाज, मान-मर्यादा अउ भाखा-बोली म हमला करथें। तरा-तरा के सपना देखावत हम ल नशा के खाई म ढकेलत जर-मूल ले चूसे लगथें। जब सरबस लुटा डरथन तब चेत आथे अउ कहिथन कटोरा धर आय मनखे मन हमर ऊपर राज करे धर लिन। हमर गाँव के मालिक बन बइठिन। फेर ए मउका तो हमींमन दे हन / देथन का? 

       अपन अस्मिता, अपन अस्तित्व अउ अपन स्वाभिमान बर हमीं ल जागे ल परही। जब अइसन गलती करत हम कोनो ल जगा नइ देबो, अपन आत्मसम्मान ल कखरो तिर गिरवी नइ धरबो, त भला कोन हमर ऊपर राज करही? हम ल पछताय बर नइ परही। भारत विविधता ले भरे देश आय। जे ह वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार ल आत्मसात करथे। फेर का हम ल एकर कभू फायदा मिले हे? अब ए बात ल नवा सिरा ले सोचे के समय आगे हवय। अपने घर म अउ कब तक आत्म सम्मान अउ स्वाभिमान बर तरसत रहिबो। चतुरा मन राष्ट्रीयता के नाँव म हम ल ठगथें। अपन भाखा-बोली अउ परम्परा ल बढ़ावा देथें। हमर क्षेत्रीय संस्कृति, संस्कार, परम्परा अउ भाखा-बोली ल नाश करे के सोचथें। जबकि इही हर देश ल एक सूत्र म पिरोय के रखथे। जम्मो क्षेत्रीय भाखा-बोली मन माला के मोती सहीं होथे।

      कहानी अमरबेल हर छत्तीसगढ़िया के अंतस् म इही आत्मसम्मान अउ अस्तित्व के मंत्रोच्चार अउ रक्षा बर उद्घोष के स्वर ल मुखरित करत हे। कहानीकार अपन उद्देश्य म सफल हें।

      मंगलू जइसन चरित्र आज घलो गाँव म बड़ सहज रूप ले देखे जा सकत हे। बर पीपर अउ लीम के जुड़ छाँव म कतको जिनगी ढेरा आँटत कट जथे।

        समाज ल जगाय बर जागरूक मनखे के कमी नइ हे, कमी हे त उन ल बरोबर साहमत देवत अपन गाँव के रक्षा बर समर्पित मनखे के हे। जेकर ले मंगलू जइसे ढेरा आँटत बइठांगुर मनखे घलव परदेसी अमरबेल के समूल नाश करत अपन गाँव के जम्मो चिन्हारी बचाय बर अपन हाथ म टँगिया टेंवे बर धर लँय।

        गुरुजी मन सदाकाल ले समाज ल, राज ल उबारे बर अपन योगदान दे हें अउ अमरबेल कहानी म घलव गुरुजी के उही धरम के दर्शन मिलथे।

         कहानी के भाषा शैली, संवाद, पात्र अउ चित्रण छत्तीसगढ़ी कहानी ल नवा उड़ान दे के संगेसंग पाठक के हिरदे म अपन संस्कृति अउ संस्कार ले जुड़े रहे के स्वाभिमान जगाय म सामर्थ्य हे लगथे। अइसन सुग्घर कहानी बर आद. सुशील भोले जी ल बधाई।💐🌹🙏

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार

9977252202

Thursday 24 March 2022

होली कुवांरी आगी अउ रोग-राई के दहन..

 होली

कुवांरी आगी अउ रोग-राई के दहन..

    होली परब म होले डांड़ म जलाए खातिर जेन लकड़ी, छेना या अन्य जिनिस सकलाय रहिथे, वोला जलाए बर कुवांरी आगी के उपयोग करे जाथे, अउ वोमा जम्मो जीव-जन्तु अउ गाँव ल जम्मो किसम के रोग-राई ले बचा के राखे के प्रतीक स्वरूप घलो कुछ खून चूसक किटाणु मन ल वोमा डार के भसम कर दिए जाथे.

    हमन गाँव म राहन त अपन बबा संग होले डांड़ जावन. वो हमन ल पांच ठन छेना धरे बर घलो काहय. ए पांच छेना ह कोनो भी मृतक के दाह संस्कार के बेरा पंचलकड़िया दिए जाथे, तेकरे प्रतीक स्वरूप होवय. 

    हमर गाँव म वइसे फाग गीत गाए-बजाए खातिर कतकों ठउर राहय. सबो पारा वाले मन अपन-अपन पारा म चौक-चातर असन जगा देख के गावयं-बजावयं, फेर होले बारे के परंपरा ल पूरा बस्ती म एकेच जगा निभाए जाय.

    गाँव के बइगा ह अपन जम्मो तैयारी-संवागा संग होले डांड़ म आवय अउ चिकमिक पखरा म लोहा के एक नान्हे खुरदुरा टुकड़ा म छनडाती असन मारय, जेमा ले आगी के लुक छटकय  तहाँ ले ओमा रखाय छोटे असन पोनी ह वो लुक के संपर्क म आए ले गुंगवाय बर धर लेवय. तहाँ ले वोला फूंक-फूंक के बने सिपचावय, अउ वो जगा सकलाय-रचाय लकड़ी के  ढेरी म ढील देवय. 

     बइगा जेन चिकमिक पखरा ले आगी सिपचावय, उही ल कुवांरी आगी कहे जाथे. एमा चिकमिक पखरा म जेन पोनी या रूई के उपयोग होथे, वोहा सेम्हरा पेड़ के फर ले निकलने वाला पोनी होथे. कतकों गाँव म शायद अब ए परंपरा नइ दिखत होही. अब चिकमिक पखरा ले आगी सिपचाए के बदला कोनो मंदिर-देवाला या अन्य माध्यम ले आगी सिपचाए के जोखा करे जावत होही.

    होले म आगी सिपचे के बाद सबो झन वोकर आंवर-भांवर किंजरन अउ संग म लेगे पांच ठन छेना ल पचलकड़िया के प्रतीक स्वरूप वोमा डार देवन. कतकों झन अपन घर ले ढेकना, किन्नी, पिस्सू जइसे खून चूसक किटाणु मन ल घलो लेके जावय अउ वो बरत होले म डार देवय. सियान मन बतावयं- ए ह गार-गरु अउ जम्मो गाँव ल खुरहा-चपका के संगे-संग अउ अन्य किसम के फैलने वाले बीमारी अउ महामारी मनले बचाए खातिर उंकर मनके किटाणु के प्रतीक स्वरूप डारे जाथे.

    होले जब अच्छा से बर जाय अउ जब वोमा ले राख निकले लगय, त फेर सब झन वोमा के राख ल धर के एक-दूसर के माथ म लगावन तहाँ ले  अपन-अपन घर लहुट आवन.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

होली सरा ररा सुन ले मोर कबीर - दुर्गा प्रसाद पारकर

 होली

सरा ररा सुन ले मोर कबीर 


- दुर्गा प्रसाद पारकर 


भौगोलिक नजर ले छत्तीसगढ़ सम्पन्न क्षेत्र हरे। रतनपुर, सिरपुर, खूंटाघाट, माड़मसिल्ली, रूद्री कस इहां कतको जघा ह पर्यटक मन के मन ल मोह लेथे। डोंगरगढ़, देव बलोदा, जांजगीर, तुरतुरिया, चम्पारन, बारासूर, मल्हार अऊ भोरमदेव ह इतिहास के अमूल्य धरोहर हरे। करमा, ददरिया, सुआ गीद, फाग अऊ डंडा नाच, फुगड़ी, राऊत नाच, गौरा गीद, जंवारा गीद, माता सेवा, पंथी नाच, चंदैनी, पंडवानी, बिहाव गीद, भजन, रामधून ह तो छत्तीसगढ़ के चिन्हारी कराथे। होली ह पौराणिक कथा अउ कतको दंत कथा ले घलो जूड़े हे-फागून म डिड़वा रोवय, अलीन गलीन सुन के फाग। डूड़ी उपर जऊन कथा प्रचलित हे ओहा येदइसन हे - डूड़ी राक्छसीन ह बड़ उपई रीहिसे। ओहा अतृप्त यौवन के सिकार रीहिसे। इही दुख म ओखर मउत होगे। मरे के बाद डूड़ी राक्छसीन के भूत ह मनखे मन ल तंगाए बर लीस। खिसिया के लोगन मन राक्छसीन ल गारी बखाना दे बर धर लीन। यौन क्रिया ले जुड़े गारी बखाना दे ले राक्छसीन के प्रेतात्मा ल सान्ति मिलय। जेखर से मनखे मन ल सतई कम होगे। एदे श्लोक ले ए उदीम ह सिरतोन घलो लागथे-''भगलिंगा किते शब्दै: स तृप्ति भवादमययाप्त।ÓÓ तेखरे सेती साल के साल होली ठउर म अश्लील शब्द के प्रयोग करके डूड़ी राक्छसीन ल सांत करत चले आवत हे जउन ह अब शिक्षा में बढ़ोतरी के संग धीरे-धीरे गारी बखाना के कमती होवई ह बने बात हरे।

बंसत पंचमी के दिन होले डाढ़ म अण्डा पेड़ के डारा ल गड़िया के पूजा-पाठ करते भार होली खातिर डारा-पाना सेकलई के सुरूआत हो जाथे ताहन सुन ले रोज, सरा ररा सुन ले मोर कबीर। नेवदहा मन संझा के संझा सियनहा मन सन डंडा नाचे बर सीखथे जेखर प्रदर्शन होली के दिन होथे। होली बर घर पीछू पांच ठन छेना अऊ लकड़ी सकेले जाथे। होलिका दहन के संग ढेकना ल घलो बरोथे। कतको बिपत ल बरो के बच्छर भर बर परिवार के सुख सांति बर प्रार्थना करथे। होली परब म जउन गीद ल गाथे ओला फाग अऊ नृत्य ल डंडा नाच के नाव ले जानथन। रायपुर अऊ दुरूग राज में नंगारा ल बीच म राख के चारों गुड़ा बइठ के गाथे बजाथे। एक झिन गाथे तेन ल सब झिन हाथ लमा-लमा के दुहराथे। फाग गीद के सुरू अऊ अंत म सरा ररा सुन ले मोर कबीर कही के सर्राथे। सर्राते भार नंगड़ची ह ताल मारथे। फाग ह गनेश बन्दना ले पिचकारी मारथे - 


अरे प्रथम गनेश मनाऊं अहो देवा

प्रथम गनेस मनाऊं

इही तरज म विद्या के देवी सारदा के सुमरनी करथे-

चल हाँ पहिली देवी सारदा लेइहौं

पहिली देवी सारदा गा लेइहौं


पंदरा दिन आगु ले होली के तइयारी करथन। घर दुआर ल लीपथन-पोतथन। मौसम मनखे ल प्रभावित करथे। बसंत ऋतु म तो ठुड़गा ह घलो पाना फोरे ल धर लेथे तब तो फेर एहंवाती के तो बाते अइलगे हे। मंगनी-जचनी चलत रहीथे। नवा नवा दुल्हीन-दुल्हा बनइया मन के हिरदे म जोड़ी देखे के उमंग ह छाए रहिथे। ओन्हारी लुआ जय रहिथे। किसान निश्चिंत मनाथे होली तिहार। लइका मन के गर के बतासा ह तिहार के उमंग ल दुगुना कर देथे। तिहार के दिन ठेठरी, खुरमी, अइरसा, सोंहारी, भजिया म तो झेंझरी ह बकबकावत रहिथे। बच्छर भर म सब ले जादा सुख अऊ सिंगार फागुन म देखे बर मिलथे। तभे कहिथे - हे माता तोर फागुनी सिंगार ह घलो अद्भुत हे। तोर सिंगार ल निहार के अइसे लागथे जानो मानो सुख ऊपर तोर अधिकार हे। तोर बेनी के गोंदा के फूल ह सबके मन ल मोह लेथे -


फागुन मास अहो माया

सुखीन के अधिकारी

बेनी गंथाए वह दस मूड़ के

खोंचे गोंदा भारी


हिरण्यकश्यप ह अपन बहिनी ले बिनती करीस कि प्रहलाद ह भगवान के नाव ल जपत रहिथे, एला तंय ह आगी म लेस के मार डर। होलिका अपन भाई के बात ल मान के भतीजा ल पा के आगी म प्रवेश करीस। आगी म जाते भार होलिका जर के बरगे। फेर प्रहलाद ह ईश्वर के किरपा ले बांच गे। तेखरे सेती होली ल बुराई उपर अच्छाई के विजय के खुशी म होली तिहार मनाए के परम्परा चले आवत हे। होली ल राधा-कृष्ण के पावन प्रेम ले घलो जोड़थे। छत्तीसगढ़ म यदुवंशी मन के भरमार हे तेखरे सेती इहाँ होली ल भारी धूमधाम ले मनाथे। अधिकांश पारम्परिक फाग गीद म किसन के गुनगान मिलथे -


मन हर लियो रे, मन हर लियो रे

छोटे से स्याम कन्हैया

छोटे से रूखवा कदम के

भुईंया लहसे डार

मुख मुरली बजाय

उपर म बइठे कन्हैया, कन्हैया

छोटे से स्याम कन्हैया


अइसे केहे जाथे कि गोंड़ मन ह डंडा ल अपन जातीय नृत्य मानथे। उंखर मुताबिक जब राम अऊ रावन के लड़ई होइस तब इन मन राम के सेना के रूप म लड़े रीहिन हे। रावन उपर जीत के खुसी म गोंड़ मन डंडा नृत्य करीन। तभे ले डंडा नृत्य के सुरूआत मानथे। डंडा नृत्य ल करीब-करीब पचासो किसम ले नाचे जा सकत हे। एमा प्रमुख रूप ले दूधइया, तीन डंडिया, चौदड़िया, माढल देब, चरखा धूर्रा, पीछ जोरूल समधीन भेंट, रेखी खोडूल अऊ आधा झूल ह जादा प्रचलित हे। सरगुजा जिला म सिकार सैला, हैरानी सैला, लहरी बैठकी, चाचरा, बगैर झूमर पुनरक्खी, भइस छंद, अइन ठड़गा, फुगथनी, पन छुठवा कस अऊ कतको सैली चलन म हे। आदिवासी क्षेत्र म डंडा वीर नृत्य के प्रतीक हरे। डंडा नृत्य ल पं. मुकुटधर पाण्डेय ह छत्तीसगढ़ के रास माने हे।

डंडा नृत्य म ताल के बिसेस महत्व हे। डंडा के चोट ले ताल उत्पन्न होथे। मैदानी भाग म डंडा अऊ पर्वतीय भाग म सैला नृत्य के नाव ले जाने जाथे। सैल के अर्थ होथे पर्वत अऊ पर्वत म होवइया नृत्य ल सैला नृत्य कहिथन। सैला के सामान्य अर्थ डंडा घलो होथे। चूंकि छत्तीसगढ़ म ए नृत्य ल डंडा के सहारा ले करथे तेखरे सेती डंडा नाच के नाव ले जानथन। नर्तक मन हाथ-डेढ़ हाथ के डंडा धरे रहिथे। सम संख्या म छै से ले के पचास झिन घलो एके संघरा नृत्य कर सकथे। डंडा नृत्य के पहिली चरण म ताल मिलाथे। दूसर चरण म कुहकी दे के बाद गायन अऊ नृत्य के सुरूआत हो जथे। नर्तक एक दूसर के डंडा उपर चोट करथे, उचकथे, कभू-कभू झूकथे कभू पीठ ल जोर के सिमटथे। अगल-बगल क्रम से डंडा देवत झूम-झूमके फैलत सिकुड़त त्रिकोण चतुष्कोण अऊ वृत्त के रचना करत नाचथे। डंडा नचइया मन दल के दल किसान मन के घर जोहारे बर घलो जाथे। ए क्रम पंदरा दिन ले चलत रहिथे। डंडा नृत्य के बदला म जऊन अनाज रूपिया मिलथे ओला सकेल के होली के दिन बर रंग गुलाल बिसा के गांव भर एक जघा सकला के रंग खेलथे। नृत्य के प्रारंभ म ठाकुर देव (महादेव) बंदना, सरसती, गनेस के सुमिरन करे के बाद कृष्ण अऊ राम के जुड़े गीद गाथे। सुर कबीर अऊ तुलसी दास के रचना घलो हो सकथे। छत्तीसगढ़ म डंडा गीद के बाननी प्रस्तुत हे -


तना रि ना मोरी ना नारि रे भाई

तना ना मोरी ना नारी जो

जोहर-जोहर ठाकुर देवता

पइयन टेको तोरे जो -


डंडा नृत्य के बहाना दमांद घलो पसंद करथे। फागुन ह दुल्हा कस सज धज के आगे हे। दुलहा डउका ल परघाए बर पाना पसई ह चिरई चिरगुन, नर नारी अऊ देवी देवता मन ल नेवतथे। फागुन में सरसों ह झूमत नाचत हे। परसा ह चऊंक पुरे हे जेमा फागुन ह आमा के मउर पहिर के खड़े हे। अतेक सिंगार म सजे फागुन ल मउंहा ह चाउंर टिकथे। कोइली दीदी ह सुआसिन बन गीद सुनावत हे। रसिया भंवरा ह ढेड़हा बन के अपन भाग ल संहरावत हे। जाड़ बबा ह अब चोंगी फूकत लकर धकर दंउड़े भागे। अभनपुर डाहर के डॉक्टर रामाधीन ह तो बड़ा मजादार बात फागुन म कथे -


डोकरी डोकरा कले चुप

भजिया ल चबलावत हे,

इंखर ठिठोली ल का कहिबे

राधा-किसन के जोड़ी लजावत हे।


दंतेवाड़ा के फागुन मड़ई के तो बाते अइलगे हे। फागुन महीना म अंजोरी पाख के छट के दिन दंतेसरी माई के कलस स्थापना के संग मड़ई सुरु होथे। थाना के आघु मेड़का डबरा म माई के कलस अउ छत्र संग गांव गांव ले लाने देवी देवता ल राखे जाथे। कलस स्थापना के दुसर दिन माता तरई म 'ताड़फ लंगाÓ धोनी होथे। दसमी, एकादसी, दुवास अउ तेरस के दिन लम्हामार, कोटनीमार, चीतलमार अऊ गंवरमार के आयोजन होथे। येमा लोगन ल गंज मजा आथे। तेरस के दिन मड़ई के जवानी चघे रहिथे। बड़ा धूमधाम ले खिलानी के कार्यक्रम होथे। इहिच दिन संझा होली के पहिली गारी उत्सव मनाए जाथे। चउदस के दिन आंवरामार होथे। पुन्नी के दिन पादूका पूजन होथे। संखिनी अउ डंकिनी के संगम म भैरव बाबा के पांव के चिन्हा के पूजा के बाद लोगन रंग गुलाल म रंग जाथे। अऊ गांव-गांव ले आए देवी देवता के बिदाई के संग दंतेवाड़ा के फागुन मड़ई पूरा होथे।

होली के सद्भाव पूर्ण वातावरण में असामाजिक तत्व मन ह धीरे धीरे अतलंग नापे ल धर ले हे। रंग गुलाल के जघा ग्रीस, चीट, वारनीस अउ पेंट के प्रयोग करथे। जऊन ह तबीयत बर हानिकारक हे। होलिका दहन बर जीयत पेड़ ल नई काट के पर्यावरण में योगदान दिये जा सकत हे। होली खेले के बखत सालीनता के परिचय देवय ताकि रंग गुलाल ह कोनो ल बुरा झन लागय। होली के पांचवां दिन छत्तीसगढ़ म रंग पंचमी मनाए जाथे। जेन ल लोक भाषा म 'धूरÓ कहिथन। जऊन ल नवा बछर के सुआगत के संग 'बासी तिहारÓ के रुप म मना के परंपरा ल जीवित राखे हन।


-00-

छत्तीसगढ़ महारानी कौशल्या के मइके आय - दुर्गा प्रसाद पारकर


छत्तीसगढ़ महारानी कौशल्या के मइके आय


- दुर्गा प्रसाद पारकर 

                        

मंय बंदव छत्तीसगढ़, मंय सुमिरंव छत्तीसगढ़,

धान धरम अउ धाम के धरती अइसन पावन गढ़ ल,

मंय बंदव छत्तीसगढ़ ल, मंय सुमिरंव छत्तीसगढ़ ल...।


अउ फेर सुमरबो भी काबर नही जिंहे कौशल्या कस दुलौरिन बेटी अवतरे रीहिस। एकाएक ए बात ह टोटा ले खाल्हे नइ उतरे फेर टोटा ले उतारे खातिर कुछ ठोस गोठ काहत हवं जेहा ग्रंथ मन म लिखाय हे। कोसल राज्य के स्थापना भानुमंत के पूर्वज महाप्रतापी सम्राट कोसल ह करे रीहिस। तभे तो ए राज्य के नाव कोसल परीस। कोसल के वंशज मन कोसल नही ते कौशल्या कहइन। कतको मन ए कहिथे कि अयोध्या ल ही कोसल कहिथे फेर एहा उकर भ्रम ए। अयोध्या के राजवंश ऐक्ष्वाक कहावत रीहिन अउ उंकर नोनी मन ऐक्ष्वाकी। जबकि छत्तीसगढ़ वाले कोसल के नोनी मन कौशल्या महाराजा दशरथ के समे तक अयोध्या राज्य के नाव कोसल नइ परे रीहिस। वो समे तक कौशल्या के ददा भानुमंत जउन क्षेत्र म राज करत रीहिस ओहा कोसल कहावत रीहिस। कोसल राज बहुत बड़े रीहिस। भंडार मुड़ा म कोसल राज के सीमा ह काशी राज्य ल छुवत रीहिस। रक्छहू म महानदी के उद्गम तक। कोसल राज के काबा म अभी के छत्तीसगढ़ के सिवाय उड़ीसा के कतनो जिला आवत रीहिस।

बंगला के कृतवास रामायण के मुताबिक कोसल राज्य म कोसल नरेश भानुमंत रीहिस। कन्या दान म कोसल नरेश ह अपन दमांद बाबू ल आधा राज्य दे दिस। कोसल के आधा राज्य पाए के बाद महाराजा दशरथ ह कोसल नरेश कहइस। भानुमंत के दुलौरिन बेटी कौशल्या जेकर बेटा भगवान श्री राम। भगवान श्री राम के आजा बबा (नाना) भानुमंत के स्वर्गवास के बाद जम्मो कोसल राज्य ओला उत्तराधिकार म मिलगे। अइसे लगथे शायद इही समे ले अयोध्या ल कोसल केहे बर धरीन होही। खंझा-खंझा होय के बाद अयोध्या ह उत्तर कोसल अउ छत्तीसगढ़ ह दक्षिण कोसल नाव ले चिन्हारी होइस। अब तो ए बात तय होगे कि कोसल अउ अयोध्या राज्य अलग-अलग आय। अयोध्या ल उत्तर कौसल दसरथ के बिहाव कौशल्या के संग होय के बाद केहे गीस बल्कि कोसल राज्य पहिली ले चले आवत हे जेहा आज छत्तीसगढ़ आय।

महाभारत के आदि पर्व अ. 95 के मुताबिक पुरु के गोसइन के नाव कौशल्या रीहिस। ओकर गर्भ ले जनमेजय नाव के बेटा जनम लीस। ओकरे मुताबिक विचित्र वीर्य ह अम्बिका अउ अम्बालिका नाव के काशीराज के नोनी मन संग बिहाव रचे रीहिस। नोनी मन के दाई के नाम कौशल्या रीहिस। हरि पु.अ. 37 के मुताबिक सत्वान उपनाम वाले सत्वत से कौशिल्या ह भजिन, भजनाम, देवावृध, अन्धक, अठ वृष्णि नाव के बेटा मन ल जनम दिस फेर हम तो मर्यादा पुरूषोत्तम राम के महतारी कौशल्या के गोठ करत हन जेकर मइके छत्तीसगढ़ आय।

नारायणी शिक्षा नाव के ग्रंथ ( पृष्ठ 143) के मुताबिक कौशल्या ह नीति शास्त्र के रचना करे रीहिस। भगवान श्री राम ल मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप म प्रतिष्ठित करे म अउ यशस्वी बनाए के पाछू माता कौशल्या अउ ओकर नीति शिक्षा के बहुत बड़े हाथ हे। बाल्मिकी रामायण के मुताबिक कौशल्या विदुषी अउ मंत्रविद् रीहिस। ओला वेद मन के बढ़िहा गियान रीहिस। श्रृंगी ऋषि ल भानुमंत के राज्याश्रय मिले रीहिस। अउ श्रृंगी ऋषि के आश्रम छत्तीसगढ़ के सिहावा पहाड़ म हे जिंहे ले महानदी निकले हे। अइसे लागथे कौशल्या के शिक्षा-दीक्षा श्रृंगी ऋषि के देख-रेख म होइस होही.. का ?

मनुस्मृति के मुताबिक उपाध्याय के दस गुना आचार्य, आचार्य से सौ गुना पिता अउ पिता से हजार गुना माता के गौरव हे। काबर के संतान ल बढ़िहा शिक्षा अउ बने संस्कार के खातिर महत्वपूर्ण भूमिका महतारी ही निभा सकथे। महाभारत के आदि पर्व म लिखे हे-महतारी जइसे कोई दूसर गुरू नई हो सकय। इही पाए के कौशल्या जइसे विदुषी अउ नीतिज्ञ महतारी ह श्री राम जइसे बेटा ल जनम दे सकथे। श्री राम ल जनम देवइया माता कौशल्या ल छत्तीसगढ़ के धरती ह जनम दे के धन्य अउ पुण्यवती हो गे हे। धन्य हे महानदी के वो करार जिहें कौशल्या के लइकापन बीतिस। धन्य हे माता कौशल्या ल जउन जगत के उद्धार करे खातिर श्री राम ल जनम दिस।


-00-

गाँव के गुड़ी अँव।

 गाँव के गुड़ी अँव।

-----------------------------

मैं गाँव के गुड़ी अँव।उही गुड़ी जिंहाँ आज ले दस-पंदरा बरस पहिली रौनक छाये राहय। बुढ़वा बर अउ पीपर पेंड़ के छँइहा तरी लइका-छउवा मन भौंरा-बाँटी, गिल्ली- डंडा, रेसटिप खेलत राहयँ त संझा बेरा सियनहा मन बइठे सुख-दुख ल गोठियावयँ, अपन अनुभो ल बाँटयँ।

      मैं उही गुड़ी आँव जिंहाँ  बेरा फुलफुलावत ,कुकरा बासत ले --- सोवा के परत ले आवाजाही होते राहय। मैं गवाही हँव वो दिन के जब गांँव के छोटे- बड़े सब समस्या के, झगरा-लड़ई के निपटारा मोरे अँगना म बइठ के होवय।कोनो मनखे ल थाना-कछेरी के डेहरी ल खूँदे ल नइ परत रहिस। पंच परमेश्वर मन इहें दूध के दूध अउ पानी के पानी कर देवत रहिन। मोर अँगना म कभू छोटे-बड़े के भेद नइ रहिस।

    गाँव के राम रामायेन,लीला ,मोरे चँवरा म होवय। गणेश, दुर्गा , गउरी-गउरा इहें बइठय। महमाई ले निकले जँवारा मोर अँगना म थोकुन थिराके, बड़े तरिया म गंगा स्नान करे बर जावय।

        होले  तिहार के सुरता आथे त आँसू निकल जथे। फागुन महिना लगय तहाँ ले होत संझौती नगाड़ा घिड़के ल धरलय। लइका-जवान,सियान सब एकमई होके हरहिंछा झूमयँ, नाचयँ ,गावयँ। तहाँ ले होलहार मन गाँव के बाहिर म होलिका दहन करे बर लकड़ी सकेले बर जावयँ। पेंड़ के सुखाये ,गिरे डारा ल लान-लान के गाँज दयँ।  खेत खार मनमाँड़े बिरछा राहय त कतको झन कच्चा डारा ल तको  टोर के गाँज दयँ। ढीक के ढीक गँजाये होले ह पहाड़ असन दिखय। अब तो खेत-खार म ओइसन पेंड़ ये, न होले गँजइया होलहार।

    होरी तिहार के दिन --का बताँव--कतका उछाह राहय। बिहनिया ले रंग-गुलाल उड़े ल धरलय। जरे होले म पाँच ठन छेना डार के अउ वोकर सात भाँवर परिकरमा करके लोगन वोकर राख ल धरके लावयँ अउ घूम-घूमके ,गाँवभर के देवता-धामी ल उही राख के टीका लगावयँ।खोर-गली म जेन मनखे मिलगे वोला टीका लगाके गला मिलयँ। लइका मन बाँस-पोंगरी बनाये ,नहीं ते प्लास्टिक के बिसाये पिचका अउ फुग्गा म चूड़ी रंग ल भरके जेला पावयँ तेकर उपर छींचत राहयँ।

       ये दिन संझाकुन जब मोर अँगना म फाग मातय त खुशी के ठिकाना नइ राहय। गाँव भर के दीदी-दाई, बहू-बेटी मन तकों देखे-सुने ल आवयँ। 

  गनपति ल मनावँ, प्रथम चरन गनपति को---- गीत ले शुरु होके-- कुंजन म होरी होय ,देदे बुलावा राधे को-----, छोटे से श्याम कन्हइया----, चलो हाँ रे मालिन रख दे धनुस को चँवरा में----, केरा बारी म बिलई टूरी, खोबा गड़ि जाये केरा बारी म, चलो हाँ रे रेलगाड़ी मजा उड़ाले टेशन मा-----जइसे आनी-बानी के फाग गीत ल सुनके हिरदे आनंद म बूड़ जय। 

    झूम-झूमके नाचत- गावत लोगन ल देख के अइसे लागय के सिरतो म इहाँ सरग उतरगे हे। सब ले बड़े खुशी इहें हे जेला अरबों-खरबों रुपिया-पइसा म नइ खरीदे जा सकय।

     कोन गरीब--कोन अमीर ,ये दिन सबो घर  रोटी पीठा ,ठेठरी-खुरमी, चीला ,भजिया बनबे करय अउ सब अपन संगी साथी घर जाके खावयँ--स्वाद लेवयँ। अइसन प्रेम अउ भाईचारा  भला अउ कहाँ मिलही--मोर भारत भुँइया के गाँव-देहात ल छोड़ के। मोर गाँव के नौकरी पेशा अउ पेट बिकाली म कमाये-खाये बर परदेश  निकले जम्मों बेटी बेटा मन ये दिन तिहार मनाये बर जरूर गाँव लहुटयँ त मोर शोभा बाढ़ जावय।

     फेर----फेर -- अब तो सब नँदाये ल धर लेहे। कहाँ होली----, कहाँ होलहार---, कहाँ मिल भेंट---, कहाँ रोटी-पीठा--  , कहाँ तिहार मनाये बर गाँव आना-जाना ,अब तो फोने म हाय-हलो हो जथे----, सब सपना बरोबर होगे हे।  अब तो मोर अँगना सुन्ना अउ उदास रहिथे। होरी तिहार के दिन घलो नगाड़ा के थाप अउ फाग गीत सुने बर मोर कान तरसत रइ जाथे। पिचकारी के धार म अब मोर ओनहा नइ भिंजय, अँगना म चिखला नइ मातय। रंग-गुलाल म तन नइ रँगै। माथा म गुलाल नइ चढय। रोटी पीठा के  महक मोर नाक म नइ जनावय उल्टा घरो-घर चूरत मछरी, कुकरा, बोकरा के गंध आथे। लोगन ल दारू पीके झूमरत, उंडत,घोंडत, झगरा- लड़ई, मारपीट होवत देख के,उँकर हिरदे म  रंजीश, छल- कपट ,इरखा-द्वेष के भभकत आगी ल देख के,  मोर अदरमा फाटे ल धर लेथे।     

      ये सब कइसे, काबर होगे कहिके सोचथँव त सरी अंग म पीरा समा जथे। आधुनिकता के नाम म मोर अंँगना के खुशी भेंट चढ़गे तइसे लागथे।अब तो  लोगन टीवी अउ मोबाइल म फाग ल देख-सुन लेथें त भला मोर अँगना म कोन आहीं ? कतको पढ़े- लिखे मन  मन कहे ल धर लेहें --होलिका दहन दकियानूसी ये-- लकड़ी के बर्बादी ये---, रंग-गुलाल उड़ाना पर्यावरण ल प्रदुषित करना ये,  रंग भर के पिचकारी चलाना, पानी के बर्बादी ये।

   मोर जइसे अप्पड़ उन ला भला का समझा पाहूँ? उन भले रात-दिन पेट्रोल-डीजल फूँक के, जंगल-झाड़ी ल उजार के, कंक्रीट के जंगल उगा के, नदिया-नरवा म फेक्ट्री मन के सरे-गले बजबजावत पानी ल बोहवाके,  दसों बाल्टी पानी म मोटर-कार,फटफटी ल धोके, गली-गली म बेंच अउ बेंचवा के---कुछु करलयँ---उँकर करनी सब अच्छा हे, काबर के उन पढ़े-लिखे अउ सभ्य हें।

      मैं तो ठहरेंव ठेठ गवइँहा। मोला तो मोर विश्वास, मोर आस्था, मोर परंपरा, मोर तिहार-बार म आनंद आथे। हाँ थोक-बहुत रुढ़ि हो सकथे जेला  महूँ हटाना चाहथँव--सुधार करना चाहथँव।

  मैं गाँव के गुड़ी अँव। मैं नँदा जहूँ तइसे लागथे। मोर अँगना के लोक परंपरा सिरा जही तइसे लागथे। 

 तभो ले एक कोती मन म विश्वास घलो हे  अइसन नइ होही--काबर के आधुनिक शिक्षा के टीप म चढ़े, विकास के चोटी म बइठे कतकोन देश के मनखे मन  अपन लोक संस्कृति कोती लहुटत हें। महल ले उतर के अपन रहे बर माटी के कुरिया बनाये ल धर लेहें। सोना-चाँदी के थारी के खवइया मन पतरी के फायदा ल देख के पाना-पतेरा म खाये ल धर लेहें। बिमारी ले बाँचे बर फ्रिज के पानी के बदला म मरकी-करसी के पानी ल पिये ल धरत हें।

उन ल समझ आये ल धर लेहे के जम्मों पुराना रीति-रिवाज, खान-पान, परंपरा ह बेकार नइये।उन स्वीकार करे ल धर लेहें के असली आनंद लोक संस्कृति अउ लोक व्यवहार म हे।

  आशा म दुनिया टिके हे। घुरवा के दिन तको बहुर जथे कहिंथे। मैं तो जिंयत-जागत ,सब के सेवा करइया गाँव के गुड़ी अँव त मोरो दिन बहुरबे करही। तुँहर मन ले सहयोग के बिनती हे।आशा हे सहयोग करहू।


चोवा राम ' बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

नाचा

 नाचा


छत्तीसगढ़ अपन लोक संस्कृति अउ परम्परा के नाँव ले सरी दुनिया म अपन पहचान रखथे। इही चिन्हारी के एक ठन नगीना आय 'नाचा'। जेकर माध्यम ले इहाँ के लोक परम्परा, लोक संस्कृति लम्बा समय ले संरक्षित रेहे हे। अब नाचा आधुनिकता के फेर म सिमटत हे। एकर पाछू कतको वजह हे। एक ठन वजह तो नाचा के संवर्धन अउ संरक्षण बर सरकारी योजना के नइ होना ए। अउ स्थानीय लोक कलाकार मन के जगहा बाहरी कलाकार मन ल महत्व देना। जेकर ले इहाँ के समर्पित कलाकार मन के आघू जीविका के संकट खड़ा हो जथे। आज नाचा नँदावत हे। नवा पीढ़ी के दर्शक मन आने प्रदेश के लोक परम्परा अउ लोकसंगीत लोकनृत्य ल पसंद करत हें। इहें के संस्कृति नृत्य अउ संगीत ल हेव करथें। छत्तीसगढ़ी के नाँव ले मुँह नाक सिकोड़े लगथें।  जेकर ले कलाकार मन घलव हतोत्साहित होवत जात हें। खैर अभिन नाचा के नँदावत परम्परा ऊपर कहे के समय नइ हे। उही नाचा जेमा लोक कलाकार मन समाज म व्याप्त शोषण, कु-व्यवस्था, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास   अउ समाज के रस्ता म रिकिम-रिकिम के बाधा परइया समस्या के विरोध म मुखर होके बात कहय। फेर ए बात ल हँसी मजाक म अइसे काहय कि कोनो ल बुरा नइ लगत रहिस। नाचा जेकर आयोजन गनेस पूजा, कुंआर नवरात्रि पाख अउ छट्ठी म करे जात रहिस। मँड़ई मेला म घलो नाचा होवय अउ अभियो थोर बहुत होथे। नाचा के जोक्कड़ जेन सबले ले जादा लोगन के मनोरंजन करय।जोक्कड़ बड़े बड़े मरम के बात ल, पहाड़ सरीख दुख पीरा बड़ सहज भाव ले रखय। अपन प्रदर्शन ले दर्शक मन के बीच सबो किसम के छाप छोड़े म सामरथ कलाकार। जे एक छिन म हँसाय के त दूसर छिन म रोवाय के ताकत रखथे। इही जोक्कड़ अउ कलाकार ल गाँव म गम्मतिया/गम्मतिहा के नाँव ले जाने जाथे। लोगन उँकर पेड़ौड़ी (असल) नाँव ल भुला जथे।

      घाम हे त छाँव हे, सुख हे त दुख घलव हे, दिन हे त रतिहा हे। कहे के मतलब जिनगी म सुख अउ दुख लगे हे। सुख के दिन कब पहाथे, कोनो ल गम नइ मिलय। आथे अउ कलेचुप चल देथे। फेर दुख के घड़ी अइसे लागथे कि एके तिर ठाड़ होगे हे। आगू बढ़े के नाँव नइ लेवत हे।  ए हमर मन के भरम आय। बोझा के लदाय ले जइसे गाड़ी के रफ्तार थोरिक कम हो जथे, वइसने दुख के पहाड़ तरी जिनगी म समय के गाड़ी धीरलगहा चलत हे सहीं जनाथे। अउ मनखे कोनो किसम के दुख ल गठिया के बइठ जथे जउन सही नोहय। नाचा के जोक्कड़ अउ गम्मतिया मन इही ल बड़ सुग्घर ढंग ले जिनगी के सबो दर्शन दर्शक ल समझा देथे। असल जिनगी के दुख, गरीबी, शोषण के पीरा ल अंतस् म छुपा के ठठ्ठा दिल्लगी करत पौराणिक कथा अउ सामयिक समाजिक गोठ बात अइसे लगथे कि लोगन सुनके हँसे लगथे नइ त शरमा घलव जथे। अर्थ फोरियाय ले जिनगी के सार दिखे लगथे। कहानी ले उदाहरण देख लन- चार महीना के छोकरी, छह महीना के पेट।

अठारा झन लइका बियाय, पुरुष संग नहीं भेट।

     कहानी गम्मतिया धनीराम अउ फुलबासन के पीरा ल लेके शोषण  ऊप्पर लिखे कहानी माने जा सकत हे। कला बर समर्पित धनीराम ह फुलबासन अउ परिवार के बरोबर चिंता नइ कर पाय, यहू ह एक तरह ले शोषण आय। तभे तो फूलबासन धनीराम ल झंझेटथे। भारतीय समाज म नारी गोसान(पति) के प्रति सम्मान के भाव रखथे। फुलबासन के झंझेटई शोषण के विरोध आय।

       दूसर कोति शासन अउ प्रशासन कलाकार मन के समर्पण अउ अवस्था ल पहचानय नइ, सबो ल सम्मान नइ दे जाय सकय, फेर स्थानीय कलाकार मन बर आर्थिक मदद के योजना तो बना सकथे। 

    सुने म कतकोन पइत गोठ सर न सुवाद के राहय। जइसे चार महीना के छोकरी, हे त पेट कइसे छह महीना के होही। 

      गरीब मन के दुख पीरा ल उकेरत अउ मन संतोष करे के उदिम बर लिखे गे सोला आना गोठ देखव - गरीब ह करजा म जनम लेथे करजा म बिहाव होथे अउ करजा लेके मर जथे।

     ए कहानी म नाचा पेखन के मंच के चित्रण अइसे करे गे हे कि पाठक ह अपन सुरता के  समंदर म तउँर के ही लहुटही।

     कहानी के भाषा शैली, संवाद अउ पात्र कहानी ल पोठ करे म पूरा पूरा सक्षम हे।

     एक गम्मतिया के बहाना लोक परम्परा अउ संस्कृति ले जुड़े कलाकार के जिनगी के सच्चाई ल उकेरत बढ़िया कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई देवत हँव।


पोखन लाल जायसवाल पठारीडीह पलारी

बलौदाबाजार

9977252202

छै आगर छै कोरी तरिया...

 22 मार्च विश्व जल दिवस म सुरता//

छै आगर छै कोरी तरिया...

   हमर जुन्ना ग्रामीण जीवन म तरिया समृद्धि अउ संस्कार के प्रतीक रिहिसे. अइसे माने जावय के जेन गाँव म जतका जादा तरिया वो वतके संपन्न अउ खुशहाल. काबर ते जादा तरिया के रहे ले वो गाँव म पानी के जादा संरक्षण, अउ पानी के जादा संरक्षण ले खेत-खार म अन्न के जादा पैदावार. तब इही उपज ह लोगन के संपन्नता के मानक रिहिसे न. एकरे सेती तब जादा ले जादा तरिया कोड़वाय के चलन रिहिसे.

   हमन ल आज घलो सुने बर मिल जाथे, के फलाना गाँव म छै आगर छै कोरी तरिया रिहिसे. आज घलो छत्तीसगढ़ के इतिहास म अइसन गाँव मन के उल्लेख मिलथे, जिहां छै आगर छै कोरी तरिया रिहिसे. इहाँ हमर आसपास म हमर गाँव ले कोस भर के दुरिहा म बसे बड़का गाँव कूंरा (कुंवरगढ़) के नांव सुनन. हमन कतकों बेर तो उहाँ तरियच देखे के नांव म गे हावन. अब छै आगर छै कोरी तो नइ होही तरिया मन, फेर अभो अतका हे, जेकर ले भरोसा हो जाथे, के वाजिब म उहाँ छै आगर छै कोरी तरिया रिहिस होही.

   हमर लोक साहित्य म अहिमन रानी अउ रेवा रानी के गाथा तरिया म नहाएच ले होथे. नौ लाख ओड़िया, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख म तरिया कोड़ाथे अउ फुलबासन के गाथा म मायावी तरिया रहिथे. जेमा एक लाख माल-मत्ता के जबर बरदी धर के रेंगइया बंजारा अउ नायक मन के स्वामीभक्त कुकुर के कुकुरदेव मंदिर के संगे-संग उंकर कोड़वाए तरिया के जानबा खपरी, दुर्ग, मंदिर हसौद, पांडुका तीर, रतनपुर जगा करमा-बसहा, बलौदा जगा महुदा जइसन कतकों गाँव म लोक मान्यता के अनुसार जानबा मिलथे.

   छत्तीसगढ़ म छै आगर छै कोरी तरिया होए के जानबा तो रतनपुर, मल्हार, खरौद, महंत, नवागढ़, अड़भार, आरंग अउ धमधा जइसन कतकों गाँव म होए के जानबा मिलथे. फेर ए सबो म पानी के संरक्षण के सबले अच्छा उदाहरण धमधा म देखे बर मिलथे. इहाँ सबले खास बात ए हे के इहाँ के जम्मो तरिया मनला बरसात के पानी ले भरे खातिर मानव निर्मित एक नरवा  बनाए गे रिहिसे, जेला "बूढ़ा नरवा" कहे जाथे.

  इहाँ ए जानना जरूरी हे, हमर इहाँ पानी निकासी के छोटे रद्दा ल नाली, वोकर ले थोकन बड़े ल ढोंड़गा या ढोंड़गी, अउ फेर वोकर बड़े ल नरवा, अउ नरवा ले बड़े ल नंदिया कहे जाथे. आखिरी म जम्मो स्रोत ले आवत पानी ह नंदिया के माध्यम ले समुंदर म समा जाथे. ए सब प्राकृतिक होथे. फेर धमधा म जेन नरवा हे, वो ह मानव निर्मित आय.

  ए नरवा ह आजकाल के नहीं, भलुक आठ सौ साल बछर पहिली उहाँ के गोंडवाना साम्राज्य द्वारा बनवाए गे रिहिसे, तेमा उहाँ के छै आगर छै कोरी तरिया, माने 120 तरिया के विशाल श्रृंखला ल भरे जा सकय. 

    धमधा के महत्व पुरातात्त्विक अउ ऐतिहासिक रूप म घलो हे. ए नरवा ह ठउका वइसने हे, जइसे बांधा के कैचमेंट बने होथे. 

   हमर पुरखा मन के पानी खातिर अइसन जागरूकता अउ संरक्षण के उदिम ल देख के गरब होथे. फेर आजकाल जेन अइसन ठिकाना मनके दुर्दशा होवत हे, तेला देख के रिस घलो लागथे. खासकर शहरी क्षेत्र म तो अतिच होवथे. हमन लइका राहन त सइकिल सीखे अउ चलाए के नांव रायपुर शहर ल चारों मुड़ा किंजरन. छुट्टी के दिन तो तीर-तखार के कोनो गाँव जइसे सरोना या रायपुरा के महादेव घाट घलो चल देवत राहन. तब रायपुर शहर पुरानी बस्ती इलाका म ही सकलाए बरोबर राहय. एकर छोड़ थोर-बहुत जय स्तंभ चौक के जावत ले एती-तेती बगरे असन. तब चारों मुड़ा जलरंग तरिया अउ रूख-राई दिख जावत रिहिसे. आज के रायपुर ल देखबे त एकर दुर्दशा बनगे हे तइसे जनाथे.

  हमर मनके देखतेच देखत कतकों अकन तरिया मन पटागें अउ उंकर जगा म आंखी ततेरत बड़े-बड़े बिल्डिंग, पारा, नगर अउ कालोनी दिखथे. 

  नवा छत्तीसगढ़ राज बने के बाद इहाँ के पहिली मुख्यमंत्री अजित जोगी ह एक अच्छा बुता चालू करे रिहिसे, गाँव गाँव म 'जोगी डबरा' के निर्माण के माध्यम ले पानी के संरक्षण करे के एक नान्हे प्रयास चालू करवाए रिहिसे. फेर वोकर बाद के सरकार मन ए डहर चेत नइ करिन. उल्टा ए जरूर होइस, के बड़े बड़े उद्योग चालू करवाए के उदिम करिन. जेकर ले लगभग नंदावत पानी के स्रोत मन अउ जादा गति ले सूखाय लागिन. 

  अभी घलो चेत करे जाय, त इहाँ के किसानी अउ निस्तारी के संगे-संग उद्योग मन खातिर घलो पानी के भरपूर संरक्षण करे जा सकथे. इहाँ जतका भी छोटे-बड़े नंदिया नरवा हे, सबो म हर दू-चार किलोमीटर के आड़ म छोटे छोटे स्टाप डेम बनाए के जोखा करे जाय. एकर ले इहाँ के बरसात के जम्मो पानी जेन बोहा के समुंदर म चले जाथे, वोला बहुत कुछ छेंके जा सकथे. एकर एक अउ फायदा ए होही के चारों मुड़ा के कुआँ-बावली अउ बोरिंग मन के जल स्तर म बढ़वार होही. फेर देखव अइसन नीति कब बनही? 

छत्तीसगढ़ म 36 नंदिया फेर 36 गति हो जाथे

खेत-खार सुक्खा रहिथे कारखाना मजा उड़ाथे

जीना होही मुश्किल जब तक बनही अइसे नीति

कुआँ-बावली-बोरिंग सबके मरे कस होही गति 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

विश्व कविता दिवस म छत्तीसगढ़ी कविता के एक विमर्श*

 *विश्व कविता दिवस म  छत्तीसगढ़ी कविता के एक विमर्श*


कविता काला कहिथे? पूछे जाय त अभी के बेरा म पूछइया ऊपर सबो हाँसे लगही। कविता का आय कोन नइ जानय? ननपन म महतारी के गोरस पीयत जउन लोरी सुनेन, चिरई चिरगुन के चींव चींव संग जेन उद्गार निकरथे, बाढ़त उमर के संग कोयली के तान ल मिलावत मन जउन गुनगुनाथे, उही तो कविता आय। मन म उमड़त भाव शब्द के मोती ले बने माला आय कविता। जेकर लय अउ तुक मन ल भा जथे। मन मंजूर झूमे लगथे।

       समय के संग कविता अपन भीतर कतको जिनिस ल समोखे हे। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंदन पंत जी के ए कथन आज विश्व कविता दिवस म प्रासंगिक हो जथे। 

वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।

निकलकर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।।

      अइसे हमर छत्तीसगढ़िया पुरखा कवि कोदूराम दलित जी मन कविता के बारे म कहे रहिन कि "जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले।'' 

    ए सिरतोन घला आय। जब कोनो विषय ऊपर विचार बनथे त दिल के गहराई ले निकलथे। उही उद्गार ह सब के मन म अपन छाप छोड़थे। आज जब हर हाथ  मोबाइल धरे फिरत हे, त रोज नवा-नवा कवि देखे-सुने बर मिलत हे। व्हाट्सएप छाप कवि मन के बाढ़ आ गय हें। इहें कविता के चस्का लगे ले मँजे कवि साहित्यकार साहित्य ल मिल सकत हे। साहित्य बर सोशल मीडिया वरदान घलो साबित होवत हे। इही बहाना मनखे रोज दू-चार ठन कविता-कहानी पढ़ लेथे।

       आज कविता के आयाम बाढ़गे हवय। लोगन प्रकृति के सुघरई अउ शृंगार ले आगर नवा नवा विषय म कविता लिखे लग गेहे। नवा-नवा कविता लिखइया मन ल चाही कि अपन पुरखा अउ अग्रज स्थापित साहित्यकार मन ल पढ़ँय अउ चित्रण अउ तुकबंदी ले ऊपर लिखे बर मेहनत करँय। सोशल मीडिया म चलत तँय खुश त मँय खुश के चलन ले बाँचे बर परही। सावचेत रेहे ल परही। 

         कविता लेखन कहन चाहे साहित्य लेखन ए एक साधना आय। साधना के ए आगी ले तप के निकले साहित्य साधक ल ही साहित्य जगत म पहिचान मिल पाही। साहित्य अपन समय के समाज के इतिहास ल गढ़थे। अइसन म कविता म अभी के बेरा के गोठ बात दिखना चाही। काबर कि कविता साहित्य के एक ठन विधा आय। आज कविता म ग्लोबल वार्मिंग, प्रकृति के अंधाधुंध दोहन अउ शोषण, राजनीति के विद्रुपता, विश्व शांति, जन कल्याण, भौगोलिक विस्तार बर युद्ध के विरोध, वैज्ञानिक सोच अउ सामाजिक चेतना के स्वर दिखना चाही। कविता स्वतंत्रता संग्राम के समय जनता ल संगठित करे अउ राष्ट्रीय भावना ले जोड़े के भूमिका निभाय हे। ए सब ल मालूम हवय।साहित्य सचेतक के भूमिका निभाथे अउ सरलग इही दिशा म चलना चाही।

       आज विश्व कविता दिवस के बहाना कुछ पुरखा कवि मन ल सुरता करत अभियो के दू चार कवि ल सँघेरे के उदिम ए लेख म करत हँव। हमर छत्तीसगढ़ी कविता संसार अतेक विस्तार पा गेहे कि सबो कवि ल सरेख पाना बड़ मुश्किल हे। कविता याने पद्य म गीत, ग़ज़ल अउ छंद ल समोखत कवि मन के दू-चार लाइन ल उदाहरण सहीं परोसत हँव।

    छत्तीसगढ़ महतारी के वंदना करे नरेन्द्र देव वर्मा जी मन लिखे हें, जउन आज हमर राजगीत के मान पावत हे।

      अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार।

      इंदरावती ह पखारय तोर पइयाँ

      महूँ पाँवें पखारँव तोर भुइयाँ

      जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइयाँ।


       बाबू प्यारेलाल गुप्त मन गँवई गाँव के सुघरई के चित्रण करत लिखिन-

        हमर कतका सुघ्घर गाँव

        जइसे लछमी जी के पाँव

        घर उज्जर लीपे-पोते

        जेला देख हवेली रोथे।

        खेती के घटत रकबा अउ किसान के माली हालत होवत देख हरि ठाकुर जी के अंतस् रो परथे अउ लिखिन-

         सबे खेत ल बना दिन खदान

         किसान अब का करही

         काहाँ बोही काहाँ लूही धान

         किसान अब का करही

         उछरत हे चिमनी ह धुंगिया अपार।

         चुचवावत हे पूँजीपति के लार।

          एती टी बी म निकरत हे परान।

            पं. सुंदरलाल शर्मा जी मन के दान-लीला के ए चौपाई देखव-

           सब्बो के जगात मड़वाहौं।

           अभ्भी एकक खोल देखाहौं।।

            रेंगब हर हाथी लुर आथै।

            पातर कन्हिया बाघ हराथै।।


धरती दाई के सेवा म समर्पित मनखे के अंतस् के भाव ल सरेखत शर्मा जी के लिखे कविता के अंश घलो पढ़व

      तराजू मा नइ तौलेन, हमन अपन साँस ला।

      हाँसत-हाँसत हेरेन, पीरा के साँस ला।

अड़चन ला मानेन हम,निच्चट चंदन चोवा

धरती महतारी के भाग मुचमुचावत हे।

       छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय, आज भले धान लुवई हार्वेस्टर ले होय धर लेहे फेर मौसम अउ खेती खार के परिस्थिति के मुताबिक आजो हँसिया ले धान लुवई होथे। इही ल जनकवि कोदूराम दलित जी मन लिखिन ओकर एक अंश हे-

         चल सँगवारी चल सँगवारिन, धान लुए ला जाई।

         मातिस धान लुवाई अड़बड़, मातिस धान लुवाई।

          पाटी पारे माँग सँवारे, हँसिया खोंच कमर मा।

           जाय मोटियारी जम्मो, तारा दे के घर मा।

           छन्नर छन्नर पैरी बाजय, खन्नर खन्नर चूरी।

           हाँसत कुलकत मटकत रेंगय, बेलबेलहिन टूरी।।

          शोषण ल अपन कविता के विषय बनाके मजदूर मन के पीरा ल नारायण लाल परमार जी मन लिखें हें

           चीखे हन हम सुवाद

           नवा नवा डगर के

           देखे हन नौटंकी

           अमृत अउ जहर के

           पी डारेन जहर ला संगी

           हम नीलकंठ

           हमर पछीना अमृत सहीं चुहचुहात हे।

            शोषण ल परिभाषा देवत सुशील भोले जी लिखथें

बछरू ह एक दिन

गाय जगा पूछिस

दाई शोषण काला कहिथे

त गाय कहिस

तँय ह खुँटा म बँधाये

जुच्छा पैरा ल पगुरावत रहिथस

अउ हमर मालिक ह 

मोर थन के दूध ल दुह के

अपन बेटा ल पियाथे

इही ल तो

शोषण कहिथे।

       संत कवि पव दीवान के सुरुज कविता के आनंद लव

टघल-टघल के सुरुज, झरत हे धरती ऊपर।

डबकत गिरे पसीना, माथा छिपिर छापर।

नदिया पातर-पातर होगे,तरिया रोज अँटावत हे।

खँड़ म रुखवा खड़े उमर के, टँगिया ताल कटावत हे।

        खेती खार अउ धरती ल तीरथ बतावत मेहत्तरराम साहू जी के लाइन मन देखन

घर बइठे वृंदावन गोकुल, घर बइठे हे काँसी।

ए माटी ल तिरथ जानौ, नइ मानो त माटी।

राम रहीम हे पोथी-पतरा, आवय खेती-खार ह।

तुलसी के दोहा चौपाई, बाहरा अउ मेंड़ पार ह।

नाँगर जोतत राम लखन ह होगे हे बनवासी।

       लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सबले लोकप्रिय गीत जउन लोगन के मुख म बिराजे हे ओकर बिना ए लेख अधूरा जनातिस

मोर संग चलव रे

ओ गिरे थके हपटे मन

अउ परे डरे मनखे मन

मोर संग चलव

अमरइया कस जुड़ छाँव म

मोर संग बइठ जुड़ा लव

पानी पी लव मँय सागर अँव

दुख पीरा बिसरा लव

नवा जोत बर नवा गाँव बर

रस्ता नवा गढ़व रे....

        रामनाथ साहू जउन साहित्य के सबो विधा म सरलग कलम चलावत हें उन मन नदिया मन ल मान देवत लिखे हें-

आ अरपा आना बहिनी

आ इंदरावती आना मौसी

देवी चित्रोत्पला मोर महतारी

आ पैरी आना बेटी...

अब तो

मोर हाथ हाड़ी हो गय हे

कनिहा म कूची ओरम गय हे

तुँहर मान गोन करे बर

समरथ हो गय हों मँय।

       शोभामोहन श्रीवास्तव जिनगी के दर्शन बतावत लिखें हें

तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे।

ए माटी के घरघुंदिया उझर जाबे रे।

जीव रहत ले मोहलो-मोहलो, काया के का मोल।

छूट जही तोर राग रे भौंरा, बिरथा झन तैं डोल।

आही बेरा के गरेरा, तैं बगर जाबे रे...

         रामेश्वर शर्मा जिनगी के मजा ले के संदेश देवत कहिथें

जिनगी जीना हे त

जड़ कस जमे रह

डारा कस थामे रह 

पाना कस झुमरत रह

हँसी के फूल कस फूलत रह

चारों कोती महमहावत रह 

ज्ञान के फल देवत रह।

        छत्तीसगढ़ कविता म ग़ज़ल घलव लिखे जात हे, छत्तीसगढ़ पद्य साहित्य म एकर चर्चा घलो चलबे करही। जउन मन लिखे हें अउ लिखत हें उन ल जरूर सरेखे के जरूरत हे। अपन हिस्सा के ल समोखत हँव।

    छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के सूत्रपात करइया रामेश्वर वैष्णव जी के ग़ज़ल के एक बानगी हे-

असली बात बताँव गिंया।

घाम म होथे छाँव गिंया।

     छत्तीसगढ़ी गीत अउ ग़ज़ल ल नवा पहचान देवइया मुकुंद कौशल के चार डाँड़ आप मन खातिर समर्पित हे

मन ले मन ला बरही कोने डोर असन।

कोन मया कर सकही तोला मोर असन।

बात सिरावै उँहचे कर दे बात खतम

बात लमाझन कौशल तैंहर लोर असन।

      लक्ष्मण मस्तुरिया मन नवा बछर म आसा के नवा किरण जगावत लिखथें

आसा नवा बिसवास जगाही ए नवा साल।

सुख शांति सुमत संपद बगराही ए नवा साल।

हक माँगे म कोनो ल लाठी गोली झन मिले,

मेहनत कस ही मोल रे देवाही ए नवा साल।

     माणिक विश्वकर्मा नवरंग के शृंगार म पगे ग़ज़ल 

तोर मया के चिन्हारी

फूले हावय फुलवारी

गेंदा कस तैं सुघ्घर हस

होबे दुनिया बर कारी।

       ज्ञानू मानिकपुरी जी के ग़ज़ल के एक बानगी पेश हे

धन दौलत अउ माल खजाना छोड़ एक दिन जाना।

कंचन काया माटी होही काबर जी इतराना।

बैर कपट ला दुश्मन जानौ गीत मया के गा ना।

मुट्ठी बाँधे आय जगत मा हाथ पसारे जाना।

      पूरन लाल जायसवाल छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल म नवा पीढ़ी के अगवानी करत हे, कहे जा सकत हे

हिरदे ले बैर भाव सबे हम बिसार लन।

आवव मया पिरित ले ये जिनगी सँवार लन।

सुख के नवा सुरुज हा अगोरा करत हवय

बेरा कभी जे दुख के हे हँस के गुजार लन।

        पद्य रचना म छंद रचना ल श्रेष्ठ माने जाथे। जेमा मात्रा अउ वर्ण के गणना के मुताबिक सबो छंद के अलग-अलग विधान तय हे। पाछू के दशक तक छत्तीसगढ़ी छंद रचना नहीं के बरोबर होय हे या प्रकाश म नइ आ पाय हे। अभी के बेरा म छत्तीसगढ़ी छंद रचना म क्रांति आय हे। ए क्रांति के शुरुआत छंदविद् अरुण कुमार निगम जी मन ऑनलाइन कक्षा के माध्यम ले २०१६ म करिन हें। छंद रचना करइया मन के गिनती सैकड़ा ले जादा हे। 

       प्रकृति के संग छेड़खानी ले प्राकृतिक आपदा आय के सुरता करावत अरुण कुमार निगम समाज ल चेतवना देवत लिखथें

चेताइस केदारनाथ, भुइयाँ के झन छोड़ साथ।

नइ तो हो जाबे अनाथ, कुछ तो नइ हे तोर हाथ।

हरियर कर दे खेत खार, जंगल के कर दे सिंगार।

रोवय झन नदिया पहार, पीढ़ी-पीढ़ी ला उबार।

        अमीर खुसरो के पहेली जइसन जनउला लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य म विविधता लाय के उदिम घलव देखे बर मिलथे। उदाहरण स्वरूप जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के चौपई छंद पढ़े जा सकत हे-

जड़काला मा जे मनभाय, गरमी घरी अबड़ रोवाय।

बरसा भर जे फिरे लुकाय, जल्दी बता चीज का आय। (घाम)


आघू मा बइठे रोवाय, नइ खाये जी तभो खवाय।

कान धरे अउ अबड़ घुमाय, काम होय अउ छोड़ भगाय।। (जाँता)

       सच के रस्ता म चलत धीर बाँधे के गोठ करत दिलीप कुमार वर्मा लिखथें-

लबरा मनके बात, आज जम्मो पतियाथें। 

जेमन कहिथें साँच, तेन मन लाठी खाथें। 

तेखर ले झन बोल, कलेचुप रह सँगवारी। 

रखले थोरिक आश, साँच के आही बारी। 


कहिथें लोगन साँच, लबारी ले नइ हारय। 

भले होय परसान, आखरी मा दे मारय। 

मन मा धीरज राख, एक दिन अइसे आही। 

झूठ लबारी छोड़, सबो झन सच बतियाही।  

        रमेश कुमार चौहान मन म आशा के मंत्र फूँकत लिखथें

ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा।

जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा।

नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेंट दे।

एक दीया बार के तैं,अंधियारी मेंट दे।

         अइसे तो छत्तीसगढ़ी कविता के विस्तार अतेक हे कि कोनो ल लेके कोनो ल छोड़े ल परत हे। अउ कभू ए कोती विचार लमही त वहू मन ल सँघेरे के उदिम रइही।


संदर्भ: सोशल मीडिया/व्हाट्सएप ले साभार।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार

9977252202

कोदूराम वर्मा-- भाग एक -- श्रवण के सेवा

 कोदूराम वर्मा-- भाग एक -- श्रवण के सेवा

------------------------–--------------------------

( रमा अपन दादी ले काहत हावय " चल दादी कहानी सुना।")

दादी -- थोरिक देर रुक जा , मैं पहिली सबके बिस्तर लगा लेथंव।

रमा --  दादी चल मैं  तोर मदद करत हंव।

( रमा दादी के संग संग गद्दा बिछइस  संग म चादर दसाइस, तकिया रखिस। गोड़तरिया म ओढ़े के चादर रखिस।)

दादी --  शाबाश रमा तैं बढ़िया नोनी आस।

रमा -- दादी कहिनी?

दादी -- हाँ हाँ चल अपन बिस्तर म बइठ जा, मैं कहानी सुनावत हंव।

रमा -- हाँ दादी

दादी -- तैं मोर काम करथस,  मोर पैर दबाथस। अपन माँ के काम करथस। अपन भाई रवि ल भी नहवाथस। गोदी म उठाथस।

रमा -- हाँ हाँ अब आगू बता न दादी।

दादी -- एक श्रवणकुमार रहिस हे। ओ ह अपन माँ पिताजी के बहुत सेवा करय। ओखर माँ पिताजी ल दिखाई नइ देवत रहिस हे।

( रवि दऊंड़त आ के दादी के गोदी म बइठ जथे)

रवि -- दादी मोला तो दिखाई देथे।

( दादी अउ रमा हांसे ले लगगे)

रमा -- अरे बुद्धु ,दादी तो कहानी सुनावत रहिस हे। श्रवण कुमार के माँ पिताजी ल दिखाई नइ देवत रहिस हे।

रवि -- "अच्छा" हमर घर.सबला दिखाई देथेःद

दादी -- हाँ सबला दिखाई देथे। एक बेर श्रवण ह अपन माँ पिताजी ल कांवर म बइठा के तीर्थ यात्रा बर निकलथे।

रमा -- दादी बस म काबर नइ लेगिस?

रवि -- मैं हवाई जहाज म लेगहुं।

दादी -- बेटा ये बहुत जुन्ना बात आये। ओ समय म बस अउ हवाई जहाज नइ रहिस हे। सब पैदल आना जाना करत रहिन हे। बाद म बइला गाड़ी म आना जाना करत रहिन हे।

रमा -- हाँ दादी ,आगे का होइस?

दादी -- रद्दा म दूनों झन ल प्यास लगथे। श्रवण ह ओमन ल एक तरिया तीर म उतार देथे। एक तुमड़ी ले के पानी बर जाथे।

रमा --  तुमड़ी काये होथे दादी? 

दादी -- तुम्बा या छत्तीसगढ़ी म तूमा कहिथें। ये गोल होथे अउ लौकी ह लम्बा होथे। जब फल ह सुखा जथे त येखर मुंहल काट के अंदर के सुखाये गुदा ल निकाल देथें। येमा पानी भरे जाथे। बस्तर म तो येखर ऊपर पेंटिंग करे जाथे। पेंटिंग करके सजाये के भी काम म आथे।

रमा -- दादी रवि सो गया।

दादी -- हाँ ओला सुतन दे, ओ ह अभी छोटे हावय। तैं सुन उंहां राजा दशरथ  शिकार करे बर आये रहिस हे। उही तरिया के आस पास रहिस हे।

रमा -- उंहा जंगल म शेर भी रहिस हे का दादी?

दादी -- नहीं बेटा उंहा हिरण रहिस हे। श्रवण ह जइसे ही तुमड़ी ल पानी म डुबइस त डुम के आवाज अइस। दशरथ ह आवाज के दिशा म तीर चला दिस।

रमा --  तीर श्रवण ल नइ लगिस न दादी? 

दादी -- नहीं बेटा तीर श्रवण ल लगगे।

रमा -- अरे!

दादी -- दशरथ दऊंड़त अइस के ओखर शिकार होही। फेर ये का ?? ये मेर तो श्रवण रहिस हे। ओ ह पीरा के मारे कलहरत रहिस हे।

रमा -- (आँखी म आँसू आ गे) श्रवण के माँ ल पानी कोन पियाही दादी?

दादी -- श्रवण ह दशरथ ल देख के कहिस के मोर माँ पिताजी ल ये पानी ल पीया देबे। मैं ओ मन ल तीर्थ लेगत रहेंव। ओ मन ल कुछु मत बताबे। अतका कहे के बाद म श्रवण के  प्राण ह छूट जथे।

( दशरथ तुमड़ी ले के कांवर तीर जाथे। ओ मन कहिथे-- आ गेस श्रवण, जल्दी पानी पीया बहुत प्यास लगत हावय। दशरथ ह सब बात ल बता देथे। दशरथ ह पानी पी लव कहिथे त ओ मन रोये ले लग जथें।पानी नइ पीन अउ दूनों झन प्राण त्याग देथें।

रमा -- दादी दशरथ ह बिना देखे बाण चलाथे तब भी श्रवण ल कइसे बाण लग जथे?

दादी -- हाँ अइसनो बाण चलाये जाथे येला "शब्द भेदी बाण" कहिथें।

रमा -- ये तो कहिनी मन में होथे सच म थोरे होथे दादी।

दादी -- सही में भी होथे, काली बताबो बेटा।



भाग दो -- कोदूराम वर्मा-शब्दभेदी बाण के संरक्षक

--------------------------------------------------------------

( रमा अपन माँ संग सबला खाना परोसत रहिस हे )

रमा -- दादी अउ रोटी देवंव।

दादी -- नहीं बेटा, रवि ल दे दे।

रवि -- दादी आज फेर कहिनी सुनाबे न।

दादी -- हाँ बेटा, आज सुतबे झन।

रवि -- दादी मैं तो कल भी नइ सोये रहेंव, पूरा रात जागत रहेंव।

दादी -- हा हा हा हा

रमा -- दादी के गोदी म कोन सुतत रहिस हे।

रवि -- मैं, दादी की गोदी पर तो मैं सोऊंगा।

दादी -- चलो रमा पहले बिस्तर लगा लें।

रमा -- हाँ दादी।

( तीनों झन मिलके हंसी मजाक करत बिस्तर ल लगाथें )

दादी -- ( बिस्तर म बइठत बाइठत कहिथे ) चल अब मैं दूनों झन ल कहिनी सुनावत हंव।

रमा -- दादी ,आज शब्द भेदी बाण के बारे म बताबे न।

दादी -- हाँ, आँखी म पट्टी बांध के कोनो आवाथ डाहर बाण चलाये जाथे। निशाना सही लगथे। बाण ह उही जगह म लगथे जेन मेर ले आवाज आथे।

रमा -- बिना देखे दादी।

दादी  --  हाँ बिना देखे।

रमा -- आपमन कभू बाण चलावत देखे हावव।

दादी -- हाँ मैं देखे हावंव। आज के धनुर्धर हे कोदूराम वर्मा। एक बेर ये ह श्री रामायण सेवा समिति तकियापारा दुर्ग म कुछु कार्यक्रम म भाग लेय बर आये रहिस हे। उही बेरा म देखे रहेंव।

रमा --  ओमन कहां सीखे रहिन हे?

दादी -- इहें छत्तीसगढ़ के दुर्ग में ही दीक्षा लेय रहिस हे। दीक्षा लेय के बाद येखर प्रदर्शन छत्तीसगढ़ में ही करिस।

रमा -- आपमन देखे रहेव दादी?

दादी -- हाँ रायपुर दूरदर्शन के स्टूडियो म प्रदर्शन करे रहिस हे। येखर विडियो शूटिंग करके रायपुर दूरदर्शन म कइ बेर देखाये गीस।

रमा -- बस दादी एके बेर प्रदर्शन करिस?

 दादी -/ अरे नहीं कइ जगह प्रदर्शन करिस। मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र अउ छत्तीसगढ़ म कोदूराम जी अकेल्ला धनुर्विद्या के जानकार रहिन हे। स्वामी विवेकानंद विद्यापीठ नारायणपुर में बात प्रदर्शन करे रहिन हे।

 रमा -- दादी आपमन देखे रहेव?

 दादी -- हाँ महुं देखे रहेंव। छत्तीसगढ़ राज्य बनिस तब पुलिस ग्राऊण्ड म रेखर प्रदर्शन होये रहिस हे। सन् 2002 में भी प्रदर्शन होये रहिस हे। पंडवानी गायन चलत रहिस हे तब बहुत कन कला दिखाइस। शब्दभेदी बाण चलइस, बाण ले एक धागा ल काटिस। धागा म बंधे माला ल काट के एक मनखे ल पहिरा दिस।

 रमा -- कोदूराम जी अउ का करत रहिस हे?

 दादी -- कोदूराम जी एक अप्रेल सन्1924.म पैदा होये रहिन हे। मरत तक पांच किलोमीटर तक चल लेवय। एक घंटा तक मंच म नाच सकत रहिस हे।

 रमा -- दादी का ओमन ल  नाचे बर भी आवत रहिस हे।

 दादी -- हाँ ओ ह  हमर लोक कला ल संजो के रखे रहिस हे। ओ ह करमा नृत्य बहुत बढ़िया करत रहिस हे। दिल्ली के साइंस कालेज के आडिटोरियम म पंद्रह दिन तक कार्यक्रम करे रहिस हे। सन् 2002 म रायपुर के गणतन्त्र दिवस के दिन बहुत बढ़िया नृत्य के कार्यक्रम दे रहिस हे।

 रमा -- ये सब अकेल्ला करत रहिस हे का दादी? 

 दादी -- नहीं ,पूरा समूह रहिस हे। नागपुर के विभिन्न विद्यालय के 150 नर्तक रहिन हे। झालम के 12 नर्तक रहिन हे जेन मन प्रशिक्षित रहिन हे। ये मन नागपुर म 22 दिन के प्रशिक्षण ले रहिन हे। ओखर बाद 4 जनवरी ले 23 जनवरी तक लगातार दिल्ली के राजपथ म प्रशिक्षण दिस। 24--25 तारीख के आराम करके 26 जनवरी के राष्ट्रपति अउ प्रधानमंत्री के आगू म राजपथ म करमा नृत्य के प्रदर्शन दू मिनट तक करिस।

 रमा -- ओखर बाद का होइस दादी?

 दादी -- दिल्ली के संस्कृति विभाग ह ओखर नृत्य के गंभीरतापूर्वक मूल्यांकन करिस। कोदूराम जी के दल ल प्रथम स्थान मिलिस।

 रमा -- ओखर बारे म अउ कुछ बता न दादी?

 दादी -- हाँ ,चल अब सुत जथन। काली बर तूमन ल बताहुं के कइसे कोदूराम जी नाचा में भी काम करत रहिस हे।



भाग तीन -- कोदूराम वर्मा- 

----------------------------------

आधुनिक नृत्य म भी सबले ऊपर करमा

-------------------------------------------------

( दादी, रमा अउ रवि एक साथ खाना खारे बर बइठे रहिन हे। रवि के माँ खाना परसत रहिस हे। रवि के बाबू जी आँगन म खटिया ऊपर बाइठे कुछ गुनगुनावत रहिस हे। रवि ह बहुत ही लाड़ से दादी ल कहिस--)

रवि -- दादी दादी तैं दीदी ल मोर सुते के बाद कहिनी सुनाथस। अब बिस्तर.ऊपर कहिनी मत सुनाबे ,मोला नींद आ जथे।

दादी -- चल आज मैं इही मेर बइठे बइठे कहिनी सुनावत हंव।

रमा -- दादी तैं कहे रहेस न कि आज शब्दभेदी बाण चलाने वाला दादाजी के कहिनी बताहूं।

रवि --दादी आज मजेदार कहिनी बताबे।

दादी --आज तूमन ल ओखर नाचा के बारे म बताहूं।

रवि -- ओ नाचा जेन मोर मामा घर होय रहिस हे। मौसी के बिहाव म रात के नाचा होय रहिस हे।

रमा -- अरे चुप दादी ल बोलन दे।

दादी -- हाँ रवि बोल न।

रवि -- जोकर भी रहिथे न दादी, ओ ह बहुत हंसाथे न दादी। मैं तो बहुत हांसत रहेंव। ओखर पैजामा के नाड़ा ह लटकत रहिस हे। हा हा हा हा। 

( रवि के दादाजी बइठे बइठे सब सुनत रहिस हे। अचानक बोलिस )

दादा जी -- चल रवि आज मैं तोला बतावत हंव के कइसे कोदूराम जी नाचा म गीस।

रवि -- हव दादाजी  सुना न।

दादा जी -- कोदूराम जी सम्पन्न परिवार म पैदा होये रहिस हे। ओखर पिताजी के नाम बुधराम अउ माँ के नाम बेलसिया रहिस हे।

रमा --  कहां के रहने वाला रहिन.हे?

दादा जी -- बेरला ब्लाक के आनंदनगर गाँव म राहत रहिन हे। भिंभौरी गाँव के स्कूल म चौथी तक पढ़ाई करे रहिन हे। ओखर बाद ओखर मन पढ़ाई म नइ लगिस। कोदूराम जी नाचा म परी के काम करे ले लगगें। 

रवि -- ओखर पिताजी डांट़िस नहीं का?

दादाजी --बेटा, कोदूराम जी ल बहुत डांट परिस। ओला खेती के काम म लगा दिन फेर ओखर मन ह खेती म भी नइ लगिस।

रमा -- नाचा म काम करे बर काबर मना करत रहिन हे।

दादाजी -- बने घर के मन उहां काम नइ करंय अइहे समझे जात रहिस हे।

रवि --  दादा जी मोला तो नाचा बने लागथे। महुं जोकर बनहुं।

दादाजी -- हाँ तैं जोकर बन जबे।आज तो येला कला के नजर हे देखे जाथे। अब आगे सुनव।

रमा -- हाँ दादा जी सुना।

दादाजी --  ओ ह बाद म जोकर बने ले लगगे। ओ अरह भजन गावय। कबीर के भजन ल खंजीरा अउ तंबूरा बजा के सुनावय।आज के समय म जेन खंजीरा मिलय नहीं गंवा गे हावय तेन तंबूरा ओखर तीर रहिस हे। सूरदास के भजन ल भी गावय।

( रवि दादा जी के गोद म जा के बइठ जथे। दादा जी के गाल ल छु के कहिथे ---

रवि -- दादाजी ओ ह नाचत नइ रहिस हे का?

दादाजी --अरे बेटा ओ ह तो मशाल नृत्य करय। गैस नृत्य लाइट नृत्य भी करय। ओ ह अपन नाचा के द्वारा शिक्षा, अंधविश्वास अउ समाज सुधार के बात ल प्रस्तुत करय। जाति प्रथा, धार्मिक एकता ल भी प्रस्तुत करय।

रवि -- मशाल नृत्य कइसे करथे? 

दादाजी -- मशाल नृत्य म मशाल ल अपन हाथ म पकड़ के कइ तरह से घुमा घुमा के अपन बात ल कहिथें। कोदू राम जी मशाल ल अपन शरीर के कोनो भी हिस्सा म दबा के बुता देवय। फेर ओला निकाल के जलावय।

रमा -- अउ आगू बता न दादाजी?

दादाजी -- हाँ सुन,कोदूराम जी "गंवई के फूल "नाव के एक संस्था बनाये रहिस हेःओखर निर्देशन भी करय। इसमें 25 झन मिलके मार्मिक चित्रण करत रहिन हे। अंग्रेज मन के  गुलामी के कारण भारतीय मनके जेन स्थिती रहिस हे ओखर चित्रण करे जाये। येखर खतम होये के पहिली " गंवई के फूल " के नायक ह शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य अउ आर्थिक विकास डाहर जाये के बात करय।

रमा -- रवि सोवत हस का? काम के बात ल सुनस नहीं।

दादाजी -- सुतन दे, कुछु नइ होवय।

रवि -- नहीं मैं ह जागत हंव। दादाजी मोला मजा नइ आवत हे।

दादाजी -- तोला बताये रहेंव न नाचा गम्मत के बाद कोदूराम जी ह करमा नृत्य करे ले लगगे। ओ ह 84-85 बछर के होवत ले करमा करिस। लगातार एक घंटा तक नृत्य करत रहिस हे।

रवि -- दादा जी कोदूराम जी आप मन ले बड़े रहिन हे का?

दादा जी -- हाँ

रवि -- त दादाजी तैं काबर नइ नाचस? काली बर डिस्को करबो।

दादाजी -- ( जोर से हाँसथे ) अरे बेटा मैं नइ नाच सकंव।

रवि -- त कोदूराम जी कइसे नाचत रहिस हे।

दादाजी -- देख तोला एक बढ़िया बात बतावत हंव। सन् 2005म नागपुर जोन ले150 नर्तक  चुने गीन।

रवि -- नर्तक काला कहिथें?

दादाजी -- जेन मन नृत्य करथे तेन मन ल नर्तक कहिथें।

ये दल म 12 नर्तक अउ मिल गे रहिस हे। ये मन 22 दिन ले  नागपुर म प्रशिक्षण लेय रहिन हे।ओखर बाद 4जनवरी ले 23जनवरी तक राजपथ दिल्ली म प्रशिक्षण दिस।

रमा -- 24-25 जनवरी के आराम करके 26 जनवरी के परेड म गीन। दू मिनट तक राष्ट्रपति अउ प्रधानमंत्री के सामने म नृत्य करिन। इंखर नृत्य दल ल प्रथम स्थान मिलिस।

दादाजी -- तोला कइसे पता है रमा?

रवि -- बता तो।

रमा -- तैं सुत गे रहेस। कल दादी बताये रहिस हे।

रवि --  देख न दादाजी मोला सुता के दादी ह दीदी ल कहिनी सुनाथे। अब से मैं बिस्तर म कहिनी नइ सुनव। मोला नींद आ जथे।

रमा -- हाँ अइसने बइठ के सुने कर।

दादाजी -- हां रवि तैं बइठ के कहिनी सुने कर।

रवि - नृत्य दल फर्स्ट अइस दादाजीः

दादाजी -- हाँ बेटा।

रमा -- समझेस दिल्ली म पहला अइस हमर छत्तीसगढ़ के नृत्य करमा।

दादाजी -- अउ खास बात सुन,ये मन नृत्य म जेन कदमताल लेथें तइसना अउ कोनो मन नइ लेवंय। इंखर करमा नृत्य तेजी से नृत्य करथे। कोदूराम जी नवा लइकामन ल भी नृत्य सिखाथे।

रमा -- ओमन अउ कुछु काम नइ करंय?

दादाजी -- करथे न, धमधा के पास सगनी गाँव हावय उंहा एक आश्रम बना के राहत रहिस हे। उहां छोटे छोटे लाइकामन ल पढ़ावत रहिस हे। छुट्टी के समय म लोक कला के दीक्षा घलो देवत रहिस हे।

रमा -- मतलब शिक्षक रहिस हे?

दादाजी -- हाँ, पहले लोग चौथी तक पढ़ कर शिक्षक हो जाते थे।

रवि --( दादाजी के गोदी म चढ़ के गाल ल छुथे अउ कहिथे)

अब चल सुतबो दादाजी।

दादाजी -- सुत जा अउ जल्दी उठबे। जानथस कोदूराम जी बिहनिया चार बजे उठय अउ पांच किलोमीटर पैदल चलय। ओ ह धार्मिक आडंबर ल नइ मानत रहिस हे। ओ ह कर्मकांड म विश्वास नइ करत रहिस हे।

रवि -- दादाजी वे अकेले रहते थे उनके घर पर कोई नहीं था क्या?

दादाजी -- ओखर घर म ओखर पत्नी रहिस हे।ओखर तीन बेटा हावय। चार बेटी हावय।बड़े अउ छोटे बेटा खेती करथें। संगेसंग म दुकान घलो चलाथें। मंझला बेटा शालिकराम छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग में संयुक्त संचालक रहिस हे। ये ह लइकापन ले बहुत होशियार रहिस हे।

रवि --दादाजी ओनको खाना कौन देता था?

रमा - कतेक बुद्धु हस, खाना ओखर घर के मन देवत रहिन हे।

दादाजी --हाँ ,रमा सही काहत हे। ओखर आश्रम बर ओखर बेटा ह एक बोरा चावल अउ दस हजार रुपिया देवत रहिस हे। कोदूराम जी लइकामन ल निःशुल्क पढ़ावत रहिस हे।

रवि -- हमन तो बहुत फीस देथन। कोदूराम जी बढ़िया मनखे रहिस हे।

रमा - ऊंखर करा कतेक तरह के गुण रहिस हे। बहुगुणी शिक्षक रहिन हे।

दादाजी -- कोदूराम जी छत्तीसगढ़ म एक अकेल्ला शब्दभेदी बाण चलाने वाला मनखे रहिन हे। एक अलग तरह के खंजेरी रहिस हे जेन नंदा गे हावय। अलग तरह के करमा नृत्य करंय।भजन गावंय।


संदर्भ --- अगासदिया

विलक्षण धनुर्धर एवं मंचीय योद्धा

श्री कोदूराम वर्मा

संपादक -- परदेशीराम वर्मा