Thursday 24 March 2022

नाचा

 नाचा


छत्तीसगढ़ अपन लोक संस्कृति अउ परम्परा के नाँव ले सरी दुनिया म अपन पहचान रखथे। इही चिन्हारी के एक ठन नगीना आय 'नाचा'। जेकर माध्यम ले इहाँ के लोक परम्परा, लोक संस्कृति लम्बा समय ले संरक्षित रेहे हे। अब नाचा आधुनिकता के फेर म सिमटत हे। एकर पाछू कतको वजह हे। एक ठन वजह तो नाचा के संवर्धन अउ संरक्षण बर सरकारी योजना के नइ होना ए। अउ स्थानीय लोक कलाकार मन के जगहा बाहरी कलाकार मन ल महत्व देना। जेकर ले इहाँ के समर्पित कलाकार मन के आघू जीविका के संकट खड़ा हो जथे। आज नाचा नँदावत हे। नवा पीढ़ी के दर्शक मन आने प्रदेश के लोक परम्परा अउ लोकसंगीत लोकनृत्य ल पसंद करत हें। इहें के संस्कृति नृत्य अउ संगीत ल हेव करथें। छत्तीसगढ़ी के नाँव ले मुँह नाक सिकोड़े लगथें।  जेकर ले कलाकार मन घलव हतोत्साहित होवत जात हें। खैर अभिन नाचा के नँदावत परम्परा ऊपर कहे के समय नइ हे। उही नाचा जेमा लोक कलाकार मन समाज म व्याप्त शोषण, कु-व्यवस्था, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास   अउ समाज के रस्ता म रिकिम-रिकिम के बाधा परइया समस्या के विरोध म मुखर होके बात कहय। फेर ए बात ल हँसी मजाक म अइसे काहय कि कोनो ल बुरा नइ लगत रहिस। नाचा जेकर आयोजन गनेस पूजा, कुंआर नवरात्रि पाख अउ छट्ठी म करे जात रहिस। मँड़ई मेला म घलो नाचा होवय अउ अभियो थोर बहुत होथे। नाचा के जोक्कड़ जेन सबले ले जादा लोगन के मनोरंजन करय।जोक्कड़ बड़े बड़े मरम के बात ल, पहाड़ सरीख दुख पीरा बड़ सहज भाव ले रखय। अपन प्रदर्शन ले दर्शक मन के बीच सबो किसम के छाप छोड़े म सामरथ कलाकार। जे एक छिन म हँसाय के त दूसर छिन म रोवाय के ताकत रखथे। इही जोक्कड़ अउ कलाकार ल गाँव म गम्मतिया/गम्मतिहा के नाँव ले जाने जाथे। लोगन उँकर पेड़ौड़ी (असल) नाँव ल भुला जथे।

      घाम हे त छाँव हे, सुख हे त दुख घलव हे, दिन हे त रतिहा हे। कहे के मतलब जिनगी म सुख अउ दुख लगे हे। सुख के दिन कब पहाथे, कोनो ल गम नइ मिलय। आथे अउ कलेचुप चल देथे। फेर दुख के घड़ी अइसे लागथे कि एके तिर ठाड़ होगे हे। आगू बढ़े के नाँव नइ लेवत हे।  ए हमर मन के भरम आय। बोझा के लदाय ले जइसे गाड़ी के रफ्तार थोरिक कम हो जथे, वइसने दुख के पहाड़ तरी जिनगी म समय के गाड़ी धीरलगहा चलत हे सहीं जनाथे। अउ मनखे कोनो किसम के दुख ल गठिया के बइठ जथे जउन सही नोहय। नाचा के जोक्कड़ अउ गम्मतिया मन इही ल बड़ सुग्घर ढंग ले जिनगी के सबो दर्शन दर्शक ल समझा देथे। असल जिनगी के दुख, गरीबी, शोषण के पीरा ल अंतस् म छुपा के ठठ्ठा दिल्लगी करत पौराणिक कथा अउ सामयिक समाजिक गोठ बात अइसे लगथे कि लोगन सुनके हँसे लगथे नइ त शरमा घलव जथे। अर्थ फोरियाय ले जिनगी के सार दिखे लगथे। कहानी ले उदाहरण देख लन- चार महीना के छोकरी, छह महीना के पेट।

अठारा झन लइका बियाय, पुरुष संग नहीं भेट।

     कहानी गम्मतिया धनीराम अउ फुलबासन के पीरा ल लेके शोषण  ऊप्पर लिखे कहानी माने जा सकत हे। कला बर समर्पित धनीराम ह फुलबासन अउ परिवार के बरोबर चिंता नइ कर पाय, यहू ह एक तरह ले शोषण आय। तभे तो फूलबासन धनीराम ल झंझेटथे। भारतीय समाज म नारी गोसान(पति) के प्रति सम्मान के भाव रखथे। फुलबासन के झंझेटई शोषण के विरोध आय।

       दूसर कोति शासन अउ प्रशासन कलाकार मन के समर्पण अउ अवस्था ल पहचानय नइ, सबो ल सम्मान नइ दे जाय सकय, फेर स्थानीय कलाकार मन बर आर्थिक मदद के योजना तो बना सकथे। 

    सुने म कतकोन पइत गोठ सर न सुवाद के राहय। जइसे चार महीना के छोकरी, हे त पेट कइसे छह महीना के होही। 

      गरीब मन के दुख पीरा ल उकेरत अउ मन संतोष करे के उदिम बर लिखे गे सोला आना गोठ देखव - गरीब ह करजा म जनम लेथे करजा म बिहाव होथे अउ करजा लेके मर जथे।

     ए कहानी म नाचा पेखन के मंच के चित्रण अइसे करे गे हे कि पाठक ह अपन सुरता के  समंदर म तउँर के ही लहुटही।

     कहानी के भाषा शैली, संवाद अउ पात्र कहानी ल पोठ करे म पूरा पूरा सक्षम हे।

     एक गम्मतिया के बहाना लोक परम्परा अउ संस्कृति ले जुड़े कलाकार के जिनगी के सच्चाई ल उकेरत बढ़िया कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई देवत हँव।


पोखन लाल जायसवाल पठारीडीह पलारी

बलौदाबाजार

9977252202

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