Thursday 3 March 2022

बिहाव तोला झूलना झूले बर नइ आवय दुल्हा बाबू

 बिहाव

तोला झूलना झूले बर नइ आवय दुल्हा बाबू


- दुर्गा प्रसाद पारकर 


बर बिहाव हमर लोक संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग आय। जउन ह हमला विरासत म मिले हे। बर बिहाव वंश बढ़ोतरी के संगे संग आदिम प्रेम, परस्पर सहयोग अउ सहज आकर्षण के किताब आय। किताब के पन्ना ल जेठउनी (तुलसी बिहाव) ले पढ़े ल धर लेथे। राम नउमी पाख अउ अकती म जादा भांवर परथे। अकती ल देव लगन माने गे हे।

सबले पहिली घर के सियान ह अपन घर के बहु बने के लइक लड़की टटोलथे। जान पहिचान रिश्ता नाता मन सगा जोड़े म सहयोग करथे पहिली तो मुखिया ह लड़की देख लेथे। ओखर बाद बेटा ल लड़की देखे बर भेजथे। मान ले लड़का ह लड़की ल पसंद कर डरिस ताहन फेर गोठ बात ल आगु बढ़ाथे। बिहाव के दौरान सटका (मध्यस्थता करइया) के महत्वपूर्ण भूमिका रथे। सुरु म लड़का के बाप ह नोनी ल पइसा धरा के बात ल पक्का कर लेथे। जिहां पांच परमेश्वर जरुर रहिथे। इही दिन फलदान के दिन ल तय कर लेथे। आघु जमाना म तो जऊन ल सियान ह पसंद कर लिस बहु बनाए बर उही ल बेटा के टोटा म घंटी बांध देवत रीहिन हे। मान ले बात पक्का होय के बाद अउ सगा उतरथे उन ल लड़की के बाप ह हाथ जोड़ के कहि देथे मंय तो फलाना जघा बेटी ल हार डरें हंव सगा। मान ले लड़की पक्ष वाले मन ल लड़का पसंद नई आवय या बर बिहाव करे के ताकत नइ राहय या अउ कोनो कारण से बिहाव नइ कर सकय तब सगा ल कहि देथे येसो तो मोर हिम्मत नई हे सगा बिहाव करे के। मान ले लड़की सुन्दर हे, गोरी हे अउ ओखर होवइया पति बिलवा हे, ये बात ल जान के नोनी के जी ह उदास हो जथे। बिहाव करे बर ओखर मन थोरको नइ तियार होवे। अइसन स्थिति म नारी परानी मन समझाथे-तोर सही भागमानी कोनो नई हे नोनी, भगवान कस जोड़ी फबे हे तुंहला। राम, विष्णु, शंकर अउ कृष्ण ह तो सांवला रीहिस हे फेर सीता, लक्ष्मी, पारवती अउ राधा ह तो गोरी रीहिस हे। तोर ले किस्मत वाले कोनो नइ हे जेन ल भगवान कस सांवला पति मिले हे। रही बात रंग के त फेर सुन-महतारी के कोख ह कुम्हार के आवा ताय कोनो करिया हो जथे त कोनो पड़री।


करिया गोरिया बिटिया झन कांही कहिबे

करिया हे सिरी भगवान हो

माई के कोख कुम्हार के आवा

कोई कारे कोई गोरे हो


फलदान के दिन लुगरा-पोलखा, चूरी-चाकी, तेल-फूल अउ हरदी, सुपारी धर के लड़का पक्ष वाले मन लड़की के घर जाथे। अंगना ल लीप पोत के धान के चऊंक पुरथे। उपर म फुलकसिया लोटा म पानी भर के नांदी म तोप देथे। तोप के नांदी के ऊपर दीया बार के कलस के स्थापना करथे। कलस म आमा पाना खोंचाए रहिथे। वर पक्ष डहर ले लाने सामान ल चऊंक के तीर म मड़ा देथे। गौरी पूजा होथे। हवन होथे। दूनो पक्ष हवन करथे। हवन के बाद दूनो समधी एक दुसर के कान म दूबी खोंच के समधी भेंट कर के जै जोहार बनाथे। वर पक्ष डाहर ले लाए श्रृंगार के जिनीस ल सुबासिन ह लड़की करा लेगथे। इही लुगरा पोलखा ल पहिरा के लड़की ल पांव पराए बर निकालथे। पांव परौनी सगुन के रूपिया धराथे। फलदान के खुसी म वर पक्ष वाले मन पर्रा बिसाथे जेमा एक पर्रा चना रहिथे चना म गुड़ मिला के ठोमा ठोमा लोगन ल बांटथे। फलदान ल आधा बिहाव मान लेथे। फलदान ल लोक भासा म चूरी पटका लेगई अऊ चुमा चाटी लेवई कहिथन। मंगनी जचनी के बाद फलदान अऊ फलदान के बाद नेवता बटई चालू हो जथे जइसे वर चि. मनराखन आत्मज रामाधार संग वधु सौ. का. दुकलहीन बाई आत्मजा थनवार। दूनो झिन परिणय सूत्र म बंधत हे। हमर दुवारी म पधार के वर-वधु ल असीस देहू।

चुरमाटी के दिन नेवतहार सगा मन बिहतरा घर पहुंच जय रहिथे। चुरमाटी झोंके बर ममा-मामी मन लुगरा लानथे। इही लुगरा म चुरमाटी झोंके जाथे। फूफू ह तेल चघनी कपड़ा लानथे। इही कपड़ा (सादा) ल पहिरा के तेल हरदी चघाथे। चुरमाटी कार्यक्रम म संघरे बर गांव भर ल नेवता देथे। पिसान के घोल, भात के मुठिया अउ गोबर धर के चुरमाटी बर सगा सोदर मन बाजा गाजा के संग जाथे। साबर म धोती ल खोंच के खांध म बोहे रहिथे। ओला ढेड़हा कहिथन। बजनिया मन रेंगनी पार बाजा बजाथे ताहन सब चुरमाटी लाने बर आगु तनी बढ़थे। बीच-बीच म देवी देवता  मन करा पिसान के घोल के आचमन कर के दू-दू ठन भात अउ गोबर के मुठिया मड़ा के हुम धूप देथे। कार्यक्रम ल सिद्ध पारे बर बिनती करथे। चुरमाटी ठउर म हुम धूप दे के सुवासा सहित पांच झिन साबर ल हाथ लगा के माटी कोड़थे जेला ममा मामी डहर ले लाने लुगरा म झोंक के पर्रा म राखथे, माटी कोड़े के बेर ढेड़हा ल भड़थे -


तोला साबर धरे ल नइ आवय मीर

धीरे-धीरे तोर पागा ल तीर

तोला माटी कोड़े ल नइ आवय मीर

धीरे-धीरे अपन कनिहा ल तीर

तोला माटी जोरे ल नइ आवय मीर

धीरे-धीरे तोर धोती ल तीर


चुरमाटी जोराए के बाद चिला अउ फरा ल सेकलाए जन समूह ल बांटथे। घर तनी गाना गावत जाथे - तंय बलाए अउ मंय आयेंव, तोर घर के मुहाटी ल पुछत आयेंव होरे-होरे...। बाजा रे बाजे डमऊ नइ हे, तोर घर के मुहाटी म समऊ नइ हे होरे-होरे...। डेरौठी म लोटा के पानी ल ओरछ के स्वागत करथे। चुरमाटी ले आए के बाद तेल पियाए के नेंग होथे। इही ल तेलमाटी-चुरमाटी कहीथन।

मायन के दिन डूमर के डारा, आमा के पाना के मड़वा छाथे। एक बिहाव म दू मड़वा। गड्ढा करके तांबा, रूपिया डार के एक जोड़ी बांस ल एक-एक जघा गड़ियाए जाथे। घर के मुहाटी के दूनो ओर मड़वा गड़ियाथे जेखर उपर कांसी बंधाए रहिथे जेमा पापड़, मिरी, छेना, बरा, सोंहारी, आलू अउ गोंदली ह गुंथाए रहिथे। चुरमाटी ल बढ़िया सान के मड़वा म चबुतरा कस बना के धान ल खोंच-खोंच के सुग्घर सजा लेथे। करसी म छींद के मऊंर ल बांधे जाथे। मड़वा म सील ल ओधा देथे। इही सील  म हरदी ल पीस के हरदी चढ़ाए के क्रम के सुरूआत हो जथे। ढेड़हीन के अंगरी ल वर/वधु धर के मड़वा के चारो मुड़ा किंजरथे ओखर पीछू - पीछू पर्रा म हरदी धर के बेटी माई मन किंजरथे। भांवर पूरा होय के बाद फूफू/दाई/डोकरी दाई के आघु माड़े पीढ़हा म उखरू बइठ जथे। फूफू ह अपन लुगरा के अचरा ल वर/वधु के मुड़ी म टेका के असीस देथे। बिहाव के निपटत ले वर/वधु ल सुता पहिराए के परम्परा ह पहिलीच ले चले आवत हे।

बइगा घर दतेला नाचे बर जाथे। एखर बाद डूमर के मंगरोहन परघाथे। धोबी घर ले आगी लान के चुल जला के भात रांधथे ताहन फेर मैन मांदी परथे। नेंग ह चलते रहिथे। तेल उतारथे। पर्रा म बइठार के मुड़ी उपर पर्रा राख के उपर म पानी रिको के वर/वधु ल असनान कराथे। नहवाए के बाद दूल्हा ल चद्दर ओढ़ा के सात भांवर नाचत गावत किंजारथे।

बरतिया भात खाए बर नेवतहार मन ल बलाथे। सेर चाऊंर झोंका के घलो बरात जाय बर अपन स्वीकृति दे सकथे। गाड़ा बाजा वाले मन सम्हर के नाचथे-कूदथे। ओती खवई पोरसई चलत रहिथे एती दूल्हा के सवांगा करथे। धोती कुरता पहिरा के मोजा जूता पहिरा देथे। आंखी ल काजर म आंज के माई मऊंर ल पहिरा देथे। मऊंर सऊंपे के क्रम चलथे। दुल्हा के हाथ ल माथ म टेका के अउ दीया म हाथ ल सेंक के मऊंर सऊंपथे। बरात निकले के बखत महतारी ह थनौरी देथे। वधु बिहाय के बात  ह जतका बढ़िहा लोक गीत म मिलही ओहा अउ कोनो जघा सुने बर नइ मिलय जइसे -


दे तो दाई, दे तो दाई

असी ओ रूपइया कि असी ओ रूपइया

कि सुंदरी ल लानिहौं बिहाय


जवाब म महतारी कथे -


'सुंदरी - सुंदरी तुम झन रटव बेटा

कि सुंदरी के देस बड़ दूर

कि अरे बाबू सुन्दरी के देस बड़ दूरÓ


बरात बिदा के बाद माइलोगन मन खुशी के मारे नाचे कूदे बर धर लेथे। इही ल नकटा नाच के नाव ले जानथन। बरात के निकलती म भरे हण्डा म रूपया - दू रूपया सगुन के रूप म डारथे। बइला गाड़ी के डाड़ी म झांपी बंधाए रहिथे। जेन गाड़ी म दुल्हा राजा ह बइठथे ओहा कोनो रथ ले कम नइ दिखय। बरात ह जनकपुर पहुंच जथे। बराती मन के भारी सुआगत सतकार होथे। बाजा - गाजा के संग परघाए बर आथे। समधी भेंट होथे ताहन फेर लड़की के ददा ह लड़का के ददा के अंगरी ल धर के घरतिया मन बरतिया ल लेगथे। ओती मड़वा छुआए के कार्यक्रम होथे। जेवनास म पहुंचते भार घरतिया मन बरतिया मन के गोड़ धोथे ताहन दुल्हा राजा ल जेनवास म लेग जथे। एखर बाद नेगेंच-नेंग। लाल भाजी खवाथे। लड़की के सिंगार के सामान ल घरतिया मन लेगथे। गोधूली बेला म पाणिग्रहण होथे। भांवर परे के बाद टिकावन के कार्यक्रम होथे। टिकावन के बखत गाना गवइया मन ल घलो रूपया - दू रूपया देथे। तभे तो उमन नता देख के बने गीद गाथे -


इही धरम ले धरम हे ग

अ ग मोर ददा फेर धरम नइ तो पाबे ग

लागत रेहे छूटी डारे ग

अ ग मोर ददा

चना खाए बर पइसा देबे ग -


जनम-जनम गांठ जोरि दे, ए जोतसी जनम-जनम गांठ जोर दे। गांठे के बंधना झनि छूटे, ए जोतसी जनम-जनम गांठ जोरि दे। इही गीत के चलतेच घरतिया के आंखी ह डबडबा जय रहिथे फेर बेटी बिदाई के समय तो आंखी के आंसू ह दुख के गंगा बोहा देथे। महतारी जब मऊंर सऊंप के भेंट लागथे ततका बेरा के दृश्य जिनगी भर म सब ले भारी लागथे। बेटी अपन बात कहि के रोथे-मोला सगा आवत हे कहिबे दाई ए हें हें...। अइसने कतनो बात के सुरता करथे। महतारी तो बियाकुल हो जथे, जब अपन करेजा के टुकड़ा ल घर ले बिदा करथे। फेर एक तो प्रकृति के नियम आय निभाएच ल परथे। लड़की के भाई सगुन स्वरूप गुर पानी पिया के बिदा देथे। दुल्हा दुल्हिन चाउंर ल पीछू डाहर फेंकत घर ले निकल जथे। एकर बाद तो ए बात ह सिरतोन लागथे कि बेटी ह तो पर के धन हरे ग।

बरतिया मन हंसी-खुशी दुल्हिन ल बिहा के अपन गांव आथे। परघाथे ताहन संझा कना धरम टीका के कार्यक्रम होथे। ओइसे तो आजकल गरजरावन के नेंग ल बिहाव बखत टोर देथे। बिहान दिन लड़की ल लेगे बर चौथिया आथे। उहें समधीन भेंट के नेंग ह निपट जथे। मान ले कोनो कारण समधीन भेंट ह रूक जथे त फेर छ_ी के बखत समधीन भेंट ह होथे। ओइसे तो बिहाव तीन किसम के होथे : (1) ठीका बिहाव (2) मंझली बिहाव (3) बड़े बिहाव। ठीका बिहाव म सबो कार्यक्रम ह लड़का वाले घर निपटथे। मंझली बिहाव म चद्दर ओढ़ के लगिन लागथे अउ बड़े बिहाव म साखोचार पढ़ाए जाथे। छत्तीसगढ़ के जन जीवन म बिहाव संस्कार के पद्धति ह श्रीराम कथा उपर आधारित हे। तभे तो बिहाव बखत वर ल राम अउ वधु ल सीता माने गे हे। ससुरार ल जनकपुर के नाव ले संबोधित करके गर्व महसूस करथे। युग-युग के वातावरण भले बदल जही फेर संस्कृति के मूल भावना ह नइ बदले। ओखर वातावरण भले बदल सकथे फेर ओखर भीतरी निहित भाव इही रही एला स्वीकार करे ल परही।

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दुर्गा प्रसाद पारकर

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