Tuesday 15 March 2022

विकास बनाम सिमटत मनखे*

 *विकास बनाम सिमटत मनखे*


       मनखे विकास के घोड़ा म सवार सरलग आगू बढ़तेच जात हे। विकास के घोड़ा कति मेर थिराही, तेकर न कोनो ठिकाना हे अउ न पता हे। विकास के घोड़ा अपन धुन म दउँड़त चले जावत हे।   कहूँ मेर थक के सुरताय के एकर बानी नइ दिखत हे। कहूँ मेर ए फाइल ले ओ फाइल अउ ए आफिस ले ओ आफिस दउँड़ थे। कहूँ-कहूँ तो सिरिफ कागज म दउड़े के आरो मिलथे। रावन धरती ले सरग के जात ले निसैनी बनाय के सोचे रहिन, फेर ओकर निसैनी के आगू मया बाधा परगिस। ओकर विकास के रथ भटक गिस। हाँ! रावण के बात ह त्रेतायुग के बात आय। अब कलजुग आगे हे। कलजुग के मया ह रूप बदल डरे हे। सबो हाय पइसा हाय पइसा काहत रपोटो-रपोटो करे म भिंड़ें हवँय। 

        अइसे तो विकास विनाश ल संग म लेके आथे। चौतरफा विकास के जादा चक्कर ह कभू कभू समूल विनाश के खाई म ढकेल देथे अउ कभू-कभू मानवता ल दँदोर डरथे। जेकर ले मनखे जिनगी भर उबर नइ पाय। दूधो जाथे अउ दूहनो जाथे। अपन विकास के खातिर शार्ट कट रस्ता म रेंगइया मन के हालत बड़ खराब हो जथे। कतको मन अतेक पैडगरी चले के कोशिश करथें कि जेल म चक्की पीसे के पारी आ जथे। ओकर सकेले धन दोगानी जपती चल देथे अउ सँघरा मान-सम्मान घलव लुटा जथे।

        मनखे चंदा ल छू के आगे हे। अउ अब मंगल म मंगल मनाय के उदिम करते हे। सागर कतेक गहिर हे, एकरो थाह लगातेच हे। कहे भर बर मनखे एक दूसर ले दूरिहा रहिथे, फेर दुख पीरा अउ मन के गोठ ल तुरते गोठिया डरथे। लइका लागे न सियान, नोनी लागे न बाबू, सब मोबाइल धरे दिन लागे न रात गोठियात्ते रहिथें। चिट्ठी-पाती के जमाना तो सिराइच गे। अब तो अगोरा के सवालेच नइ हे, जब सुर लामिस तब गोठिया लेथे। लंका म रहवइया हितु पिरीतु मन के दर्शन कर लेवत हें। ए सब विकास के कमाल आय। विकास जउन विज्ञान के पेट म सँचरिस अउ भ्रष्टाचार के खातू-पानी पाके चारों मुड़ा दउड़त हे। जेन ठउर भ्रष्टाचार हे, उही ठउर विकास हे। जिहाँ भ्रष्टाचार नइ हे, उहाँ दुरिहा-दुरिहा ले विकास के न गोठ हे, अउ न ओकर परछो हे। 

        सड़क तो मेकरा के जाला कस चारों कोति बनगे हे। जेती देखबे, तेती सड़क के जाल बिछगे हवय। चार घंटा के पहुँचइया पहुना दूए घंटा म हबर जवत हे। 

        विकास के अइसन गोठ ल अपन सुआरी संग गोठियावत मनसुख ह पक्की सड़क म फटफटी चलावत पहुनई म जावत हे। ए अलगे बात आय कि बछर दू बछर म जम्मो सड़क म थूक पालिस लगते रहिथे। सड़क म लगे थूक पालिस मरहम के काट करथे। मनखे चरदिनिया चकचकी सड़क ल देख अपन जम्मो जुन्ना पीरा ल भुला जथे। अच्छा दिन के आरो पा के बड़ खुश नजर आथे। 

     मनसुख के ए गोठ मन ल सुन के ओकर सुआरी बुधियारिन ह  ओकर सुर म सुर मिलावत कहे लगिस - 'हबरही कइसे नहीं, सबो तिर फटफटी होगे हे त। भुर्र के चालू करथे, अउ...चिरई मन सहीं हब ले जिहाँ जाना हे तिहाँ हबर जथे, .... एती मुँहाचाही बर खुले गोठ ह बरोबर पूर नइ पाय। मया के पाग ले पगाय ठिठोली घलव करिस अउ कहिस जइसे हमी मन अभीकुन जात्तेच हन। हव न? इही तो आय विकास।

         दूनो परानी धीरे बाँधे आगू बढ़ते जावत हे। दूनो के गोठ दूनो झिन ल बड़ नीक लागत राहय । मुँहाचाही गोठियावत रस्ता कतेक चल डरिन आरो नइ पाइस। चार कोस रस्ता नाप डरे रहिन हे। दूनो के गोठ चलते रहिस। बीच-बीच म दूनो मया परेम के गोठ घलव कर लेवत रहिन हे। थोक थोक म बिहाव पाछू के जिनगी ल सुरता करत राहँय। मया ले भरे सुरता के गठरी के एक एक गोठ बात बड़ नीक लागत रहिस। 

          चार कोस रस्ता ल नाप डरिन। रस्ता भर सइकिल म तो स्कूल अवइया-जवइया नोनी-बाबू भर मन दिखिस। कोनो जवनहा तो सइकिल म दिखबे नइ करिस ओमन ल। 

           दिखतिस कइसे? जब लइका मन दाई-ददा मन ल गोहरा के फटफटी लेवा डरथें। दाई ददा मन घलो अपन औलाद ल चिटिक दुख पीरा झन पहुँचय सोचथे। हम रेंगे हन त का होगे? हमर लइका काबर तकलीफ झेलही? पइसा कउड़ी हे, तेन कति दिन काम आही। बैंक म माढ़े भर ले का होही। पइसा गलाबो तभे तो सुख पाही। लइका मन तो खुश रइहीं। पिटरोल पुरतन कमावत हन कि नइ, नइ देखँय। कतको लइका मन देखा-देखी म फटफटी गाड़ी बर रोंनहिया देथें। दाई ददा के मास ल चीथ डरथें। अउ फटफटी लेवा के मानथें। 

       हव! पिटरोल के बाढ़त भाव बर विपक्षी मन सरकार के खिलाफ आए दिन धरना देतेच रहिथें। सबो चिल्लात रहिथें... पिटरोल के भाव बाढ़गे। पिटरोल के भाव बाढ़गे। बिन चिल्लाय बात बनबे नइ करय। विपक्ष के बूता ए चिल्लाना। बिन चिल्लाय ओकर पेट के पानी नइ पचय। विपक्षी मन चिल्ला के आरो देथें। जनता ल बताथें कि हम जागत हन। सुते नइ हन। हम सेवा बजावत हन अउ धरम निभावत हन। सरकार विपक्ष के चिल्लई ल एको नइ सुनय। कुकुर भूँके हजार, हाथी चले बजार। कहिनउ सरकार ह कान म ठेठा बोजे भैरा बने चुप्प बइठे रहिथे। जब जनता ह हजारों रुपिया गला के फटफटी ले सकत हे, त एक सैकड़ा म पिटरोल कइसे नइ बिसा सकही। ए बात सरकार ल मालूम हवय। उही सरकार जउन ह लाखों खरचा करके जनता के विश्वास जीते हे। आनी-बानी के आश्वासन दे के कुरसी दउड़ म अव्वल आय हे। कोनो होवय अव्वल आय के पूरती करे खरचा ल वसूलबे करही। इही ह अव्वल आय के बड़का इनाम होथे। अउ इही इनाम ल लेके पारी सरकार के हवय। जतका दे हे ओला ब्याज सुद्धा वसूले के पारी हे। तभे तो टेस्ट किरकेट के शतक सहीं टुच-टुच करके पिटरोल ल शतक तक पहुँचाय हे। जनता घलो मन मार के कलेचुप पिटरोल भरवाथें अउ धुंगिया उड़ावत अपन रस्ता म रेंग देथें। करय त करय का? आखिर। ओमन जानथें कि हमन अपन पावर ल चेपटी अद्धी अउ पउवा के संग कुकरा-बोकरा के माँस म बेच पारें हन। हमर हाथ म अब पाँच साल बर कुछुच नइ हे। टुकुर-टुकुर देखई भर हमर बस म हे। इही हाल राज के पढ़े लिखे नवजुवान मन के हे जउन मन बेरोजगारी भत्ता के बाट जोहत सरकार के मुँहू ताकत हें। सरकार के मुँहू ताके के चक्कर म बेरोजगार मन के लिस्ट लम्बा होवत हे। सरकार धरम संकट म पड़ गेहे कि लिस्ट ल कति मेर ले काटे के शुरु करन कहिके।

       बुधियारिन बीच-बीच म हुँकारुँ देवत जाय। उहू कहे लगिस- 'विकास के चलत दूरी जतके समटावत हें, मनखे ओतके दुरियावत हें? भाई-भाई ले बाँटा माँगिस कि कोनो एक-दूसर ल देखन नइ भावँय। कोन जनी चीज के अतेक का मोह हो जथे मनखे ल ? लहू के नता ल घला खूँटी म टाँग देथे।'

         विकास के घोड़ा गाँव ल रनपिट्टा चगलत हे। सड़क तिर के धनहा ल लीलत बड़े-बड़े बिल्डिंग कारखाना मन धनहा के रस्ता ल पगुरावत हें। धनहा जाय के रस्ता बिगन किसान मन माथा पिटत दिन रात रोवत हें। औने-पौने म बेच जम्मो अचल संपत्ति ल फूँकावत हें। खेत-खार के बेंचाय ले संसो फिकर के गहिर खचका म बूड़े संझौती बेरा अपन खिसा ल खाली करत सरकारी खजाना ल भरत हें। अउ सरकार के विकास यात्रा म अपन सहयोग करे म एको कदम पीछू नइ रहत हे।

       सबो उत्ताधुर्रा भागत हें, कति जाना हे, कोनो ल पता नइ हे। काखरो तिर अतका बेरा नइ हे कि काखरो सुध लेवय। आवत जात एक दूसर के आरो ले सकय। ईंटा पथरा के बने घर कुरिया म रहिते मनखे के हिरदे घलो सीमेंट जस जम के पथरा लहुटे लगे हे। लोहा लहुटतिस त बात बन जतिस। नता के चुंबक मया ले थोरको झिंकातिस तो। पथरा भला कब पझरे हे, जउन अब पझरे बर जानही। चार आँगुर के मोबाइल ल टपड़त मनखे अपन कुरिया म धँधाय दिखथे। तिर म बइठे मनखे बर दू मिनट नइ हे अउ लंका म बइठे बर मया पलपलाय हे। व्हाट्सएप व्हाट्सएप खेलत रहिथे। सोशल मीडिया म मया के पूरा दिखथे। विकास के पाछू भागत मनखे अतेक सुध भूलहा होगे हे कि मया के जोरे मोटरा ह कोन मेर गिर गे, ओकरो आरो नइ पाइस। विकास के घोड़ा चरी ऊपर चरी करते जावत हे। फेर विकास के घोड़ा ले उतरे के नाँव नइ लेवत हे। अइसन विकास जेन मनखे ल अकेल्ला करत जावत हे। अइसन अकेल्ला जिहाँ मनखे सुख दुख म घलो सुलिनहा बइठे के सोंच नइ सकत हे। दउँड़त हे दउँड़त हे अउ सिरिफ दउँड़त हे कति जाना हे? कहाँ थिराना हे? एकर ठिकाना नइ हे। विकास के फाँदा म फँदाय मनखे  सिमटत जावत हे। अउ कतका सिमटही भगवान जानय। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार

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