Sunday 13 March 2022

छत्तीसगढ़ी म पढ़व - वियोग अउ सिंगार के संग खेलत होली के रंग गुलाल

 छत्तीसगढ़ी म पढ़व -

वियोग अउ सिंगार के संग खेलत होली के रंग गुलाल


- दुर्गा प्रसाद पारकर 

 

फागुन मस्त महीना। कोन जनी फागुन महीना ह का जादू डार देथे ते चिरई-चिरगुन रुख राई मन घलो मउहा पानी पीए कस झूमरत रहिथे। त फेर मनखे मन के तो बाते अलग हे रे भई। फागुन के फाग सब ल चिभोर देथे। बोथ बोथ ले लाली गुलाली म रचे तन मन ल बइहा देथे। देवर, भउजई, नाती अउ डोकरी दाई मन बर तो होली एक-दूसर बर बतासा कस मीठ मया बन के आय। प्रेमी अउ प्रेमिका मन बर होली ह ओखी बन के आथे। जादा झन बिजराए कर, जादा झन इतराए कर, अब तक ले तो तोला अपनेच जानत रेहेंव फेर मोर बर तंय काबर बईमान होगे फागुन। तभे तो जवान नोनी बाबू मन के सपना ह आमा मउर कस घोफ्फा-घोफ्फा मंउरे बर धर लेथे। काकरो बर होली सिंगार बन के आथे त काकरो बर होली बियोग बनके। छत्तीसगढ़ म पहिली होली ह नवा-नवा जुग जोड़ी मन बर जुलुम हो जथे। काबर कि नवा बहुरिया ह पहिली होली ल अपन मइके म मनाथे। बहुरिया ल वियोग ह तो मइके म संगी संगवारी मन के हांसी ठिठोली म जियाने नहीं फेर लड़का बर तो अपन गांव के ताना मरई ह बिच्छी के झार हो जथे फागुन ह। वियोग के पीरा ल कोनो नई बता सकय अहसास तो करे जा सकत हे। जउन मन जानत हे ओमन बनेच समझ सकथे। पहिली होली तिहार ल जुग जोड़ी संग मनाबो कहिके कतको उदीम कर डर फेर परम्परा के आधु म मुड़ी ल गड़ियाए बर पर जथे। वियोग ल झेलत लड़का लोक लाज के डर म ससुरार जा सकय न कोनो परोसी ल जोहार भेंट करे के हिम्मत सकेल सकय। काबर ओकर बर तो बिजली के तार होगे फागुन ह। बहुरिया जब घरबंधी (स्थायी) होइस त दुसर साल होली तिहार ल अपन ससुरार म मनइस। गांव के सुग्घर होली ल देख के अकबकागे। अकबकाबे करही काबर गांव के होली कस आनंद सहर म कहां ले पाबे। एक जघा सेकलाके होली मनई न डंडा नचई। छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के असली रुप तो गांवे म देखे बर मिलथे। सहर के तिहार तो मन मड़उना ताय।


डोंगरी के तेंदु अउ चार होगे फागुन,

मउहा ल देख के मतवार होगे फागुन,

राधा के गघरी ल गोंटी झन मारव,

आज दफा चौतीस में गिरफ्तार होगे, फागुन।


फाग गीत के आनंद हमु मन लेवन-


मन हर लियो रे, दिल हर लियो रे

छोटे से स्याम कन्हैया

छोटे छोटे रुखवा कदम के लहसे जाय

उपर म बइठे कन्हैया...


पौराणिक कथा के मुताबिक हिरण्य कश्यप के बात ल मान के होलिका ह अपन भतीजा भक्त प्रहलाद ल आगी म स्वाहा करे के उदीम करीस। भगवान के किरपा ले होलिका ह जर के राख होगे अउ प्रहलाद ह बांचगे। गिनहा के जरे के खुशी म होली तिहार मनाए के परम्परा चले आवत हे। होली म राधा किसन के पिरीत तो जग जाहिर हे। हिन्दी कलेण्डर के मुताबिक साल के विदाई अउ नवा बच्छर के सुवागत करथे होली ह। तभे तो केहे गेहे फागुन के रांधे तेला चइत म खाबे। फागुन पुन्नी म होली जला अउ चइत एकम के रंग गुलाल खेल। साल के आखिरी उत्सव के प्रतीक मड़ई ल तरिया नदिया म सरो दे जाथे। होली खातिर लकड़ी सेकलई ह बसंत पंचमी ले सुरू हो जथे। होली ठउर म बइगा ह हूम धूप दे के पवित्र करथे ताहन उही जघा लकड़ी गंजई के काम चलत रहिथे। दइहान के आस पास जघा नई राहय ते गांव ले लगे खेत खार म होलिका जलाए जाथे। कतको गांव म दूरिहा म जलाए जाथे ताकि आंए-बांए बोली ह गांव तक झन आवन पावय। पूजा पाठ करके गड्ढा खनथे। इही गड्ढा म कुकरी अंडा, पांच ठन हरदी, तांबा के पइसा अउ चांउर डार के बइगा ह मंत्र पढ़थे। मंत्र पढ़े के बाद इही गड्ढा म अण्डी अउ तेंदू डारा ल गड़िया दे जाथे ताहन बइगा ह मंत्र जाप करके देवी-देवता मन के सुमरनी कर के नरियर चढ़ाथे। कतको जघा अतेक पिचकाट नइ करय, नेंग भर कर देथे। कभू-कभू ए बूता के बखत बइगा नई राहय ते दू-चार झिन टूरा टानका मन अण्डी पेड़ गड़ियाए के बूता ल निपटा डरथे। अण्डी अउ तेंदू डारा के बदला म अब दूसरा डारा के घलो उपयोग कर डरथे। पहिली तो टूरा मन अघात अलवइन राहय बियारा के राचर तक ल नइ बचावय। कतको मन इही डर म अपन लकड़ी के रखवारी करय।

जीयत रुख ल काट के होलिका म झपा देवत रीहिन हे। अब सरकारी कानून बने ले पर्यावरण के सुरक्षा होइस हे अउ अन्धाधून पेड़ कटाई रुक गे हे। काबर कि अब तो अपने पेड़ ल कांटे बर घलो स्वीकृति ले बर परथे। सरकार ह नियम बनाथे वहू ल होली के दिन ठेंगवा देथे जइसे कि होली के एक दिन पहिली दारू भट्टी बंद हो जय रहिथे फेर पता नही होली के दिन बर कतेक पहिली दारू के बेवस्था कर ले रहिथे ते। जेन ल देखबे लड़बड़ावत रहिथे। फागुन ह पहुना बन के आथे कहि के पान खा के फाग गाथे-


पान खा के चले रे कहां के जवान

रायपुर के चूना अउ भिलाई के खैर

नांदगांव के सुपारी अउ दुरुग के पान

पान खा के चले रे कहां के जवान


होली तिहार अउ नंगारा के बात नइ होवय अइसे हो नइ सकय नंगारा संग नचइया ह तो बेनी म फूंदरी कस लगाथे। अइसे केहे जाथे कि टोनही मन मंत्र ल फागुन म दुहराथे। तभे तो जउन देवारी म बांच जय रहिथे ओहा फागुन म जाथे। नंगारा (डाहकी) कटोरा के आकार के रहिथे। एक छोटे (ठीन) अउ एक बड़े (गद) नंगारा ल आधु म मड़ा के बठेना के सहारा बजाथे। पहिली जमाना म राजा महाराजा के महल म नंगारा धातु के राहय। अब माटी के नंगारा चलन म हे। नंगारा ल गाय नही ते भंइस के चमड़ा ले छा के चमड़ा के पातर बांधी ले कस देथे ताहन फेर सरा ररा सुन ले मोर कबीर ले फाग के मुहतुर होथे ताहन गांव के चौपाल म गांव वाले मन बइठ के फाग अउ डंडा के मजा लेवत रहीथे -


तरी हरी नाना मोर ना हरि नाना

एहो भला

उही, उही, उही (कुहकी पारथे)

सुरहिन गइया के गोबर मंगवाय

अंगना ल दे लिपवाय जो भला

उही, उही, उही (कुहकी पारथे)


फागुन पुन्नी के रतिहा सुभ मुहूर्त म बइगा ह गांव वाले मन के आधु म नरियर फोरथे, पूजा पाठ करथे। लकड़ी ल छेना आगी या माचिस म नइ सुलगाए जाए। होलिका जलाए खातिर सेकलाए लकड़ी ल सेमर पोनी ल चकमक पथरा ले सिपचा के पैरा ल जलाथे ताहन इही पैरा ले रचाए लकड़ी ल बारथे। अइसन आगी ल कुंवारी आगी के नाव ले जाने जाथे। अइसे तो ओ रात होली ठउर म करिया रंग के कुकरी ढीले के घलो नेंग हे। एकर बाद आगी के चारों मुड़ा पांच या सात भांवर किंजर के आगी म चांडर छिंटक देथे, राख के टीका घलो लगाए जाथे।

बिहनिया गांव वाले मन घरों घर छेना लकड़ी लेग के डारथे। छेना लकड़ी ल डार के जय करके टीका लगाथे ताकि काकरो नजर डिठ झन लगय ताकि अवइया बछर सुख, शान्ति ले बीतय। हमु मन देस म बाढ़त साम्प्रदायिकता के ढेकना ल बरो के होली ठउर म टीका लगा के भारत भुइयां के उज्जवल भविष्य खातिर संकल्प लेवन। इही म हम सब के भलाई हे।


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