Friday 31 July 2020

शकुन्तला शर्मा लघुकथा

शकुन्तला शर्मा
           लघुकथा
मीन मेख झन निकाल
"मीन मेख झन निकालव बहुरिया! आँखी कान हर नइ दिखय तभो ले, घर के कतको बुता ला सलटावत हावन। सास अन फेर बहुरिया बरोबर रहिथन। ए झन सोचिहव कि हमपढ़े लिखे नइ अन। हमुँ ग्यारहवीं पास हावन। गाँव म कालेज नइ रहिस तेकर सेती आगे नइ
पढ़े पाएन। तुँहर बाबूजी आज रहितिन तव, समय म हमर आँखी के आपरेशन घला हो जाए रहितिस, अउ हमला कहूँ के परबस नइ रहना परतिस।" कहिके दुर्गा हर जोर - जोर से रोए लागिस।

आलू ल निछ के मढ़ाए रहिस,तेला वोकर बहू कहि दिहिस,"कइसे नीछे हावस माँ! फोकला हर रहि गए हे।कइसे पौले हावस, कहूँ छोटे, कहूँ बड़े, कहिके निनास देथे।कइसे बहारेस ओ! कचरा हर रहि गय हावय।"

"अई!ओकर आँखी नइ दिखय कहिके जानत हावस! तभो पथरा कचारे कस बोलत हावस, तौन हर फभत हे नोनी?" बहू के महतारी हर अपन बेटी ला कहिस!

      शकुन्तला शर्मा 🙏🏻

वृक्षारोपण होत हवय ते फोटोसेशन*

*वृक्षारोपण होत हवय ते फोटोसेशन*

अबड़ समझे के कोशिश करेंव फेर समझे मा नइ आवत हे।मनखे मन पउँधा लगाथे ते फोटो खिचाथे।एक झन ला पूछ परेंव काय होवत हे बड़ेक जान पंडाल लगे हे गाड़ी मोटर गर्र गर्र दउँड़य हे।त ओमेर सकलाय रिहिन तेन मन बताथे वृक्षारोपण होही।मँय सोचेंव पेड़ लगाय बर अतेक ताम झाम बाजा गाजा अउ भाषण बाजी तको होथे।फेर मन मा बिचार आइस कहूँ भारी बड़े बड़े पेड़ लगाही तेकरे सेती सब ला मिठई,नाश्ता चाय पानी खवावत होही।फेर देख परेंव चार पाँच ठन कार रुकिस अउ ओमे ले सादा सादा कुरता पहिने मनखे मन उतरिस अउ मंच मा जाके बैइठिस।मोला लगिस नेता असन।मँय बड़ खुश होगेंव चलव हमर राज के नेता मन ला परकिरति अउ परयावरन के बिकट चिंता हवय।अउ होना भी चाही काबर बरसात मा ही पउँधा हा जल्दी लगथे अउ ओकर बढवार दिनों दिन होत रहिथे।अउ हमर सदियों से चलत आवत हे हमर पुरखा मन हा तको बरसात के समे ही पेड़ लगावय।जेकरे परताप ये गाँव मा जगा जगा बड़े बड़े पेड़ लगे हे अउ सालों से हमन ला अपन छइयाँ के साथे साथ फल फूल देत हवय।बड़ खुशी होइस हमर पुरखा के नाँव ला  इहूँ मन आगू बढ़ाय के दिशा मा काम करत हे।
फेर देख के दंग खागेंव कइ झन मनखे भाषण सुनके अउ नाश्ता पानी करके जाय बर धर लिस।नेता जी कहिते रिहिन अभी पेड़ लगाय के काम ला करना हे,धरती ला हरा भरा बना के,परयावरन ला साफ सुथरा रखना हे।फेर कतको झन मनखे मन अनसुनी करके चल दिन।तभो ले नेता हा तो नेताच होथे ओकर एक आवाज मा दरदिर ले मनखे फेर सकला जथे।सब पहिलीअपनेच दाँदर ला भरिन तब कहूँ जा के पेड़ लगाय बर तैयार होइन।बड़ बिकट स्थिति पइदा हो जथे जब एक ठन पेड़ ला घेर के पचासों मनखे खड़ा हो जथे।अउ पेड़ लगेच नइ राहय तभो ले फोटो खिचाये बर एक दूसर ऊपर झपाय पड़थे।लेद बरेद दस बीस ठीन पेड़ लगाथे अउ सौ ठक फोटो खिचाथे।अब कहूँ नेता जी के जाय के बेर होथे ते बाँचे खुचे मिठई अउ नाश्ता ला फेर झोरथे।अउ कुड़ा करकट रद्दी ला उँहे फेक सब फुर्र हो जथे।सवाल अब मन मा ये उठत हे कि लोगन मन खाय पीये बर गेहे ते कचरा फइलाय बर, ते नेताजी ला सकल देखाय बर, ते फोटो खिंचाय बर।पेड़ लगाय के नाँव तो येकर बादे आही।फेर शुरू होथे पत्र पत्रिकाओं मा मनमाड़े पेड़ लगाय के रिकाड।दस पन्द्रही दिन बाद जाके देखबे ते कतको पेड़ ला गाय गरु छेरी पठरु मन हा खा डरे रहिथे।बाँचे रीथे सिर्फ अउ सिर्फ फोटो खिंचाय रहिथे तेन हा जतनिया के मोबाइल नइते फोटो एलबम मा सजा के फोटो ला रखे रहिथे।ये फोटो सेशन हा आज एक परथा अउ फेशन बन गेहे,काबर कि फोटो खिचाना बहुते जरूरी हे,तभे मनखे मन जानही अउ एक होड़ बने रइही पौधारोपण के।
हमन ला आज चाही बिना ताम झाम के अउ सीमित संसाधन मा भी वृक्षारोपण अभियान ला अमलीजामा पहिनाय के।जेकर से अवैया पीढ़ी बर एक सबक होवय अउ शुद्ध वातावरण के संग परयावन भी शुद्ध होवय।
✍️
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव जिला-रायपुर

किरिया-चोवाराम वर्मा बादल

किरिया-चोवाराम वर्मा बादल

(कहानी)


आज के ग्राम सभा विशेष रूप ले शिक्षा व्यवस्था उपर चर्चा करे बर बलाये गे रिहिस।ग्राम पंचायत भवन मा पंच सरपंच अउ पालक मन खचाखच बइठे हें।प्रायमरी स्कूल से लेके हाई स्कूल तक के जम्मों गुरुजी मन ल घलो बलाये गे हे। विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी तको आय हें। सब आपस म गलबल गइया करत हें।कोनो लइका मन के चौपट पढ़ई लिखई बर गुरुजी मन ल दोष देवत हें ,त कोनो सरकारी व्यवस्था ल। गुरुजी मन के अपन अलग अलग तर्क हे।
    सरपंच ह हल्ला गुल्ला ल शांत करावत गुरुजी मन ल सम्बोधित करत कहिच--हमर गाँव के लइका मन के पढ़ई लिखई एकदम कमजोर हे।अनुशासन नाम के चीज नइये।जेती देखबे तेती लइका मन घूमत रहिथें। तूमन स्कूल म बइठे-बइठे का करथव समझ म नइ आवय। पाँचवी के लइका ल अपन नाम तक लिखे ल नइ आवय।हेड मास्टर शर्मा जी ,ले तैं बता अइसन स्थिति काबर हे? गाँव के पालक मन तोर अबड़े शिकायत करथें। तैं तो स्कूल आबेच नइ करच।
    शर्मा जी अतका ल सुनके तमतमाये खड़ा होगे अउ पछीना ल पोंछत-पोंछत कहिच--ए बात ल सरकार ल पूछव मैं ह स्कूल काबर कम आथवँ।मैं स्कूल नइ आववँ ,अइसे बात नइये।रोज आथवँ,फेर आज इहाँ मीटिंग काल उहाँ मीटिंग।आज बर ए कागज बना के पहुँचाना हे ,काल वो कागज बना के पहुँचाना हे।मैं तो इही म चकरघिन्नी कस घूमत रहिथवँ।मोर स्कूल के गुरुजी मन शिक्षाकर्मी आँय ऊँखर हड़ताल चलत  रहिथे। अकेल्ला मैं का करवँ। जब जब पढ़ाई लिखाई के बेरा आथे  उँकर हड़ताल चालू हो जाथे। हेड मास्टर के बात ल सुनके एक झन जवान शिक्षाकर्मी गुरुजी ह नराज होगे अउ खड़ा होके कहिच-- हड़ताल करना हमर अधिकार ए। जतका दाम तकका काम। तीन चार महीना ले तनखा नइ मिले राहय।  कर्जा में डूबे रहिथन तेकर अलग टेंशन। काला पढ़ाबे काला लिखाबे। हमर संग भारी अन्याय हे। हेड मास्टर जी के तनखा हमर ले पाँच गुना जादा हे त ओला पाँच गुना जादा पढ़ाना चाही। अउ ए बतावव- पालक मन घर म कभू अपन लइका मन ल  पढ़े बर कहिथव। बस थारी  ल बजावत मध्यान भोजन ख़वाये बर भेज के छुट्टी पा लेथव।अतका ल सुनके एक झन पालक तमतमा के खड़ा होगे अउ कहे लगिच- नाच न जाने आँगन  टेढ़ा। पढ़ाये लिखाये ल आवय नहीं अउ हमला दोष देवत हच।तूमन ल तो रात दिन मोबाइल ले फुर्सत नइये।भेंडी कस मूँड़ी ल गड़ियाये उही म भुलाये रहिथव।
  सरपंच ह तू-तू , मैं-मैं ल बन्द करावत मिडिल स्कूल के है  हेड मास्टर साहू जी ल पूछिच--कस  साहू जी तोरो स्कूल के अब्बड़ शिकायत हे।गुरुजी मन कक्षा म जावयँ नहीं। ऑफिस में बइठे-बइठे पेपर पढ़त दिन ल पहा देथें। आठवीं कक्षा के लइका ल जोड़ घटाना तको बनाये ल नइ आवय।
 साहू गुरुजी खड़ा होके कहिच- अइसे बात नइये सरपंच जी । गुरुजी मन तो पढ़ाथें फेर लइके मन ल पढ़े ल नइ आवय। अतका ल सुनकें ,गुरुजी के बुद्धि उपर तरस खावत सब खिलखिला के हाँस डरिन।साहू गुरुजी ह थोकुन झेंपत कहिच--बिन परीक्षा के फोकट के पास होना हे त कोन पढ़ाही अउ कोन पढ़ही ।अउ दूसर बात जेन हाल ऊधो के तेन हाल माधो के।मोरो स्कूल के जम्मों आदरणीय गुरुजी मन शिक्षाकर्मी आयँ। सब बेहाल हें, बिगड़े चाल हे।कुछु बोलबे तहाँ ले जीव के काल हे, बस जंजाल म जंजाल हे।मैं तो मीटिंग, जनगणना अउ छेरी पठरू गिनइ म अधमरा होगे हँव।
       एक झन पंच खड़ा होके कहिच --ले बंद कर तोर भासन ल। दिनभर होटल म बइठे भजिया झोरत गपसप मारे बर तुँहर करा समे हे बस लइका मन ल पढ़ाये बर टाइम नइये।
        साहू जी बइठिच तहाँ ले हाई स्कूल के प्रचार्य सेंडरे जी के पारी आगे।सरपंच कहिच--ले सेंडरे जी तहूँ अपन रोना रोडर। ए अतराफ म हमरे हाई स्कूल के रिजल्ट पन्द्रा प्रतिशत आय हे। एकर मतलब हे तूमन एक चवन्नी के लायक नइ अव।तूमन ल तो चुल्लू भर पानी म डूब मरना चाही।
    सेंडरे जी ह पानी-पानी होवत कहिच--आदरणीय जी। मैं ह परसान हवँ। दस झन के स्टाफ हे।तेमा नव झन बाहिर ले आना जाना करथें।आइन तहाँ ले जाये के जल्दी रहिथे। नौ झन म पाँच झन महिला शिक्षाकर्मी हें, तेमा के चार झन मातृत्व अवकाश म हें। मैं का  करवँ ।गणित विषय के शिक्षके नइये।कई दिन तो स्कूल ल महीं ह खोलथवँ। चपरासी तको नइये। घण्टी ल तको मोही ल बजाये ल परथे। सरपंच कहिच--ए सब  बहाना बाजी नइ चलय सेंडरे जी। खूँटा में दम नइये अउ गेरवा ल दोष। आन स्कूल मन के रिजल्ट अच्छा आये हे,एकर मतलब हे,तोर व्यवस्था ठीक नइये।
     इही बीच एक झन सियान ह खड़ा होके कहिच-- देखव तूमन आपस म वाद-विवाद झन करव। ताली दूनों हाथ ले बाजथे। शिक्षक, पालक, बालक सबो झन मिलजुल के प्रयास करबो त हमरो गाँव के शिक्षा व्यवस्था सुधर जही। गुरुजी मन घलो सोंचयँ- गुरु ल भगवान कहे जाथे। वो मन ल अपन मर्यादा अउ मान सम्मान ल बँचाके रखना चाही। समस्या कहाँ नइये? सब जगा हाबय। ज्ञान दान सबसे बड़े दान आय ।ए पुण्य कमाये के अवसर भवगान ह गुरुजी मन ल देये हे।  चलव आज हम सब किरिया खाबो कि- अपन लइका मन के भविष्य ला बने गढ़े बर जी जान ले प्रयास करबो।
         सियान के बात सबो झन ल बढ़िया लागिच। सरपंच कहिच- कका ह बढ़िया सुझाव देहे। सब झन खड़ा होके अपन छाती म हाथ रखके किरिया खाबो कि मिलजुल के लइका मन ल पढ़ाबो लिखबो अउ उँकर भविष्य ल बने बनाबो।
        सबो झन किरिया खाइन अउ सभा समाप्त होगे ।
 एकेच साल म स्कूल के हालत सुधरगे ।जोरदार पढ़ाई लिखाई होये ल धरलिच।हाई स्कूल के रिजल्ट आइच त पता चलिच जिला म प्रथम आये हे।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"*

*"छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"*

*$ सुरता - "अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ? $*

आज सुप्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी के पुण्यतिथि हे। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संग उनकर मया के नाता रहिस। सन् 1965 मा मोहम्मद रफी के आवाज मा पहिली छत्तीसगढ़ी गीत - 

"झमकत नदिया बहिनी लागे परबत मोर मितान",  

फ़िल्म कहि देबे संदेश बर रिकॉर्ड होए रहिस। इही फ़िल्म मा रफी साहेब के आवाज मा दूसर गीत 

"तोर पैरी के झनर झनर, तोर चूरी के खनर खनर" 

रिकॉर्ड होए रहिस। कहि देबे संदेश फ़िल्म के निर्माता मनु नायक आँय। गीत ला लिखे रहिन हनुमन्त नायडू जी अउ संगीतकार रहिन मलय चक्रवर्ती। ये फ़िल्म 1965 मा रिलीज होइस अउ कहि देबे संदेश के गाना मन जम्मो छत्तीसगढ़ मा धूम मचाइन। 1965 के दौर मा मोहम्मद रफी, गायिकी के सुपर स्टार रहिन। उनकर रेट घलो ज्यादा रहिस। मनु नायक जी जब मलय चक्रवर्ती के संग छत्तीसगढ़ी गीत गाये के अनुरोध कर बर रफी साहेब से संपर्क करके बताइन कि कहि देबे संदेश, छत्तीसगढ़ी भाषा मा पहिली फ़िल्म बनत हे, बजट बहुत छोटकुन हे। अगर आप मोर फ़िल्म मा गाना गाहू त ये आंचलिक भाषा के फ़िल्म ला नवा रद्दा दिखाए खातिर कदम साबित होही। उदार हिरदे के मालिक मो. रफी हाँस के कहिन - आप मन रिकार्डिंग के तैयारी करव, मँय जरूर गाहूँ। स्वीकृति मिले के बाद पहिली गीत के रिकार्डिंग होइस। ये गीत मोहम्मद रफी के गाए पहिली छत्तीसगढ़ी गीत के संगेसंग पहिली छत्तीसगढ़ी फिल्मी गीत बन गिस। तेकर बाद दूसर गीत के रिकार्डिंग होइस। मनु नायक जी अपन बजट के मुताबिक नाम-मात्र राशि के चेक सौंपिन जेला रफी साहब सहर्ष स्वीकार कर लिन। रफी साहेब के कारण मन्नाडे, महेंद्र कपूर आदि गायक कलाकार मन ला घलो मनु नायक जी के बजट अनुसार पारिश्रमिक मा संतोष करना पडिस। 

1965 मा कहि देबे संदेश के रिलीज होए के बाद घर-द्वार फ़िल्म के तैयारी चालू होइस जेमा मोहम्मद रफी के एक सोलो अउ दू ठन डुएट गीत के रिकार्डिंग होइस। गायिका रहिन सुमन कल्याणपुरी। ये फ़िल्म 1971 मा रिलीज होए रहिस। घर द्वार फ़िल्म के निर्माता विजय कुमार पांडेय रहिन। कवि, गीतकार हरि ठाकुर के लिखे गीत ला संगीत मा सँवारे रहिन संगीतकार जमाल सेन। घर द्वार मा रफी साहब के आवाज मा ये गीत मन रहिन। 

गोंदा फुलगे मोरे राजा
आज अधरतिहा मोर सून बगिया मा
सुन सुन मोर मया पीरा के सँगवारी रे

कहि देबे संदेश अउ घरद्वार फ़िल्म के गीत आकाशवाणी ले घलो सुने बर मिल जाथें। 

26 अप्रैल 1980 के दल्लीराजहरा के पं. जवाहरलाल नेहरू फुटबॉल स्टेडियम मा "शंकर जयकिशन नाइट" के आयोजन होए रहिस। ये कार्यक्रम मा संगीतकार शंकर, गायक मोहम्मद रफी, मन्नाडे, गायिका शारदा अउ उषा तिमोथी आये रहिन। चरित्र अभिनेत्री सोनिया साहनी कार्यक्रम के एंकरिंग करे रहिन। कार्यक्रम के शुरुआत मा स्वागत भाषण के औपचारिकता भिलाई निवासी राकेश मोहन विरमानी हर निभाये रहिन। भारत के भुइयाँ मा मोहम्मद रफी के ये आखरी स्टेज शो रहिस। ये कार्यक्रम के बाद 18 मई 1980 के श्रीलंका मा उनकर एक स्टेज शो घलो होए रहिस जेन हर रफी साहब के जिनगी के अंतिम स्टेज शो रहिस। दल्लीराजहरा मा आयोजित "शंकर जयकिशन नाइट" देखे के सौभाग्य मोला मिले रहिस। ये कार्यक्रम मा उनकर गाए दू गीत के सुरता करथंव तब अइसे लगथे कि ए गीत मन मा अंतिम विदाई के संदेश छुपे रहिस। एक गाना रहिस - बड़ी दूर से आये हैं, प्यार का तोहफा लाए हैं"। छत्तीसगढ़ के वासी मन बर मोहम्मद रफी ला साक्षात देखना अउ सुनना, कोनो अनमोल तोहफा ले कम नइ रहिस। दूसर गीत रहिस - अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा, हमारे जैसा दिल कहाँ मिलेगा। ये गीत के बोल अटल सत्य बनगें। वइसन मौका फेर दल्लीराजहरा का, भारत के कोनो शहर मा नइ आइस अउ न मोहम्मद रफी के दिल असन कोनो दूसरा दिल मिल पाइस। दल्लीराजहरा के स्टेज शो, भारत के भुइयाँ मा रफी साहब के आखरी स्टेज शो बनके रहिगे। 31 जुलाई 1980 के ये महान गायक अपन पंचतत्व के काया ला पंचतत्व मा मिलाके रेंग दिस अउ दुनिया बर छोड़ दिस अपन अमर आवाज। 

*आलेख - अरुण कुमार निगम*

गुरुजी के दुलार- संस्मरण

गुरुजी के दुलार- संस्मरण


         बच्छर 1984 के वो दिन के सुरता आथे तब मोर आँखी, गुरुजी के पाय दुलार मा आज घलाव डबडबा जाथय। मँय ओ बखत दल्ली राजहरा मा बीएसपी इस्कूल नं 33 मा चौंथी कक्षा मा पढ़त रहेंव।हमर कक्षा मा दू झन हीरालाल साहू रहेन।दूनो झन अपन अपन घर के बड़का बेटा अउ दूनों के दाई ददा अप्पड़ रहिन।फेर हमन दूनों पढ़ई मा हुँसियार ,कोनों एक दूसर ले ओन्नाइस नइ रहेन।एक अंतर रहिस कि ओखर देहें पाव मोर ले बीस एक्कईस, जेकर ओला फायदा मिलय।इस्कूल मा मोर भर्ती घलाव एकरे सेती देरी मा होय रहिस। कुछु बूता बर गुरुजी मन उही ला आगू कहय।

       एक घाँव स्कूल मा सांस्कृतिक कार्यक्रम के नेवता आइस जेमा सामान्य ज्ञान परीक्छा, भाषण,वाद विवाद अउ नाच गाना के सबो कार्यक्रम मा स्कूल ला भाग लेना रहिस।चयन होय मा भिलाई मा ओखर प्रस्तुति होना रहिस। ओ बखत के हमर गुरुजी मन भारी कलाकार रहय।सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाव मा तो अउ आगू। पन्दरा दिन बाँचे रहय तेकर सेती लइका मन के चुनाव करके कोन-कोन कते-कते कार्यक्रम मा रही ,छाँट के अलग कर दीन। मोर नाम मीना, चैती, संतोषी,गांधीराम अउ कोमल संग समूह नाच वाले मन संग रहिस।सहिनाव के नाम सामान्य ज्ञान परीक्छा अउ वाद विवाद मा। काबर कि मैं भाषण देय बर खड़े होय मा लजकुरहा रहेंव। गुरुजी मन हमन ला खाना छुट्टी के पाछू नाचेबर सिखोवय। छत्तीसगढ़ी गीत "का तैं मोला मोंहनी डार दिये गोंदा फूल" मा तीन झन टूरा अउ तीनझन टूरी ला नाचना रहिस। हमर सबोझन के मटकई नचई ला देख के गुरुजी मन खुश हो जायव। उन ला भरोसा रहिस कि हमर चयन भिलाई बर हो जही।

      भिलाई मा भाग लेय के चयन बर कार्यक्रम दल्ली राजहरा मा होइस जेमा हमर इस्कूल ले छत्तीसगढ़ी समूह नाच अऊ सहिनाव के वाद विवाद विषय के चुनई होइस। सात दिन पाछू भिलाई जाना रहिस। गुरुजी मन अबड़ खुश रहिस।दूसर दिन साहू गुरुजी हा नाचेबर सिंगार करे के अउ नवा नवा जिनिस लाइस।भिलाई जायबर अउ जादा रिहलसल करवाबो कहिन। दू दिन बीतेच रहिस कि सहिनाव के तबियत बिगड़गे। गुरुजीमन परसान होगे।नाम तो ओखर भिलाई भेजा गे रहय।ओखर नाव दल्ली राजहरा के सबो इस्कूल के सेती रहय। एक दिन अउ बीत गे।अब वाद विवाद मा भिलाई जायबर कइसे गुरुजी मन ला करन कहिके चिंता होगे। आगू दिन हाजिरी होय के पाछू आफिस मा मोला बलाइन अउ एकठन कागज के पन्ना मा लिखाय शबदमन ला पढ़ेबर कहिस।बिना अटके सरसरात पूरा पढ़ देंव। मेश्राम गुरुजी हा साहू गुरुजी ला कहिस के एहा ठीक हे।

         साहू गुरुजी हा मोला दू दिन मा रट के बिन देखे सुनाबे कहि दिस। मैं सुकुड़दुम होगेंव। गुरुजी मन कर कुछू कही नइ सकेंव। छुट्टी पाछू घर जाके के रटे के तियारी करेंव।रतिहा कंडील अंजोर मा स्लेटपट्टी मा लिख लिख के आधा ले जादा ला रट डारेंव। ओ बखत हमर पारा बिजली नइ आय रहिस। दूसर दिन फेर हाजिरी के पाछू मेश्राम गुरुजी बला लीस अउ उही ला सुनाय ला कहिस। रात भर रटे वो वाद विवाद के शबद मन गुरुजी के आगू मा कहाँ उड़ागे समझ नइ आइस। ओतकीच बेर साहू गुरुजी आगे, सुनीस ता गुसिया के मोर गाल अउ पीठ ला अतका मारिस कि मोर सबो हुँसियारी के दही मही होगे। मेश्राम सर हा छोड़ा के मोला कक्षा मा भेज दिस।ओ दिन  नाच के रिहलसल मा मोर मन नइ लगिस तेला मेश्राम गुरुजी समझ गे।

        दू दिन बाँचे रहय तीसर दिन भिलाई जाना रहय।सहिनाव बनेच नइ होय रहय। आज मोर फेर पेसी रहय।मार के डर मा दिन रात एक करके सबो रटे ला साहू गुरुजी ला सुना देंव।सुनके कुछ नइ कहिस,अब मोला कते कर रुकना हे, कते करा जोर से बोलना हे एला बताइन।पाछू साहू गुरुजी हा मोला उही भाषण ला मोर डर भगाय बर तीसरी कक्षा के आगू मा सुनाय बर लेगीस। आगू मा खड़े हो के सुनाय बर खड़े होयेंव ता मोर टोंटा सुखागे, बक्का नइ फुटिस।अब साहू गुरुजी के थपरा फेर मोर गाल मा परिस,आँसू घलाव निकलगे।रोनहू होके भुलात भुलात आधा ला सुनाएंव। अब एक दिन रहय फेर नाच मा घलाव धियान लगाना रहय। 

     भिलाई जाय के दिन बिहनिया ले सर्बिस(बस) इस्कूल मा खड़े होगे।पहिली घाँव भिलाई सब लइका मन संग जावत रहँव।बड़ खुशी लगत रहय। बेरा मा भिलाई पहुंच गयेन। चहा पानी पीये के पाछू मंच ठऊर मा पहुंच गेन। उहाँ नाच के बीच बीच मा भाषण, वाद विवाद घलाव होही कहिके बताइन। हमन समूह नाच के पोषाग मा तियार होगेन। बनेच देरी पाछू हमरो नंबर आ गे।सबोमन बने थपरी(ताली) बजाइन। फेर ये का ! एक झन के पाछू वाद विवाद मा नाव घलाव चिल्ला दिस। साहू गुरुजी दउड़त मोर कर आ गे।मोर हिम्मत ला बढ़ावत कहिस- अब दूसर कपड़ा बदले के समय नइ हे, इहीच पोषाग मा मंच मा जाबे अउ बिना अटके जतका आही ओला बोलबे। भुलाबे तभो रुकबे झन समझे। मँय समझगे रहँव ए दरी भुलाहूँ तब कोन जनी कतका अउ कहाँ कहाँ मार परही।

       नांव पुकारिस तब साहू गुरुजी हा मंच के सीढ़िया तक अमरायबर गिस। मंच मा एक घाँव आ गे रहँव तभो ले अकेला खड़े होयेंव ता गोड़ काँपे लगीस।फेर हिम्मत बाँध के अपन विषय ला जोर जोर से पढ़ेंव।माइक मा अकेल्ला बोले के पहिली अनुभव रहय वहू आन गाँव मा। स्कूल मा कविता घलाव नइ बोले रहेंव।पूरा होय के पाछू जय हिन्द कहिके जब मंच के सीढ़िया ला उतरत रहेंव ता साहू गुरुजी हा आधच बीच ले मोला पा के उठा लीस अउ पीठ मा शबासी के थपरी पीटिस। ओतका बेर ओखर दुलार ला पाके मँय पाछू दिन के ओखर मार ला भुलागेंव।अउ काय काय कहिस ते सुरता नइ हे।भात खाय के बेरा कतको गुरुजी मन साहू गुरुजी ला पोटार पोटार के मोर डाहर अंगरी देखावत ओला कुछु काहय अउ हाँसय।
    भिलाई ले दल्ली राजहरा बर हमर सर्बिस हा चले लागिस तब साहू गुरुजी हा बस मा बइठे जम्मो लइका मन करा फेर एक घाँव मोर प्रस्तुति ला बढ़िया कहिस। एक हफ्ता के गुस्सा हा दुलार मा बदलगे रहय। भिलाई के ओ कार्यक्रम के नानपन के  सुरता मोला आज घलाव अपन इस्कूल के लइका मन ला देख आँखी मा झूलथे। सहिनाँव अउ गाँधीराम संग मा बच्छर दू बच्छर मा भेंट हो जाथय।ओमन नाती नतरा वाला हो गय हे। 

हीरालाल साहू "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद 



मुंसी प्रेमचंद जयंती विशेष-आलेख

मुंसी प्रेमचंद जयंती विशेष-आलेख

 अजय अमृतांसु: *प्रेमचंद के साहित्य म नारी विमर्श*

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहिन। समाज म शोषित हर वर्ग के प्रति उँकर साहित्य म खुला विद्रोह मिलथे। गरीब, मजदूर, किसान, दुखित, पीड़ित,शोषित मन के पहरेदार के रूप मा प्रेमचन्द जी खड़े हुए नजर आथे । कई विद्वान के ये मानना हवय कि यदि भारतीय समाज अउ  संस्कृति के दशा ल यदि जानना हवय त प्रेमचंद के साहित्य के अध्ययन कर लय ।

20 वी सदी म प्रेमचंद जी स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ नारी उत्थान अउ नारी जागरण के दोहरी भूमिका मा रहिन ये कहना अतिशयोक्ति नइ होही । प्रेमचन्द के कथा साहित्य में बाल विवाह, पर्दा प्रथा, कन्या हत्या, बेमेल विवाह, बहु विवाह  आदि अनेक प्रकार के कुरीति द्वारा नारी शोषण के यथार्थ चित्रण मिलथे । प्रेमचंद जी पुरुष के समान ही नारी शिक्षा अउ पुरुष के समान अधिकार के प्रबल पक्षधर रहिन । 

प्रेमचन्द के कथा साहित्य म नारी विमर्श के अलग स्थान हवय । उँकर साहित्य में नारी दयनीय नइ हे, बल्कि त्याग, निष्ठा, तपस्या, नैतिक मूल्य के प्रति जवाबदार अउ भावुक हवय।  नारी के संघर्ष ला उमन बखूबी चित्रित करे हवय । भारतीय समाज के सामाजिक संरचना म प्रेमचन्द जी स्त्री ल विशेष स्थान दे हवय। 

दहेज प्रथा के खिलाफ प्रेमचंद मुखर हो के लिखिन, उँकरे शब्द मा- 
"दहेज बुरा विवाह है बेहद बुरा" ( निर्मला पृ-29)
ये बात के सबूत है कि उन दहेज प्रथा के घोर विरोधी रहिन ।

"गबन" म प्रेमचन्द जी के भावना नारी के प्रति उदार हवय। उँकर मानना हवय की यदि स्त्री ला जीवन जीये के उचित अवसर मिलही ता देह व्यापार जइसन घृणित काम उन कभू नइ करय ।

प्रेमचंद के मानना रहिस कि मातृत्व नारी जीवन के सब ले बड़े साधना आय - 
"नारी केवल माता है और उसके उपरांत वह जो कुछ है वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र है। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या और सबसे महान विषय हैं ।" (गोदान)

"नारी चरित्र में अवस्था के साथ मातृत्व का भाव दृढ़ होता जाता है यहां तक कि एक समय ऐसा आता है कि जब नारी की दृष्टि में युवक मात्र पुत्र तुल्य हो जाते हैं।"  (मानसरोवर)

राजा राम मोहनराय 1829 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवा दिन । येकर बाद नारी हक बर लड़ने वाला  बड़े बड़े समाज सुधारक म आइन जेमा- ईश्वर चंद्र विद्यासागर, देवेंद्र नाथ टैगोर अउ विवेकानंद के नाम उल्लेखनीय हवय । विवेकानंद जी भी नारी उत्थान ला मजबूत आधार दिन । आर्य समाज के स्थापना के बाद स्त्री विमर्श के नवा दौर सुरु होइस। 

प्रेमचन्द जी के कथा साहित्य म नारी के प्रति सम्मान के दृष्टिकोण हवय वो चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित । गोदान, गबन ,वरदान, कायाकल्प, मंगलसूत्र , सेवा सदन उपन्यास के माध्यम से प्रेमचन्द जी नारी चरित्र के विभिन्न आदर्श ला स्थापित करे के भगीरथ प्रयास करे हवय ।
प्रेमचंद्र जी के नारी पात्र मा - प्रेमिका, विधवा, माता, कुशल गृहणी, मेहनतकश, बाल वधु, समाज सेविका, वेश्या आदि मिलथे। 

आज सोंचे के विषय ये हवय कि प्रेमचन्द जी के कालजयी संदेश ला वर्तमान पीढ़ी कहाँ तक आत्मसात करथे । उँकर लिखे हरेक बात आज भी  प्रासंगिक हवय । 

अजय अमृतांशु
भाटापारा
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 मीता अग्रवाल: *प्रेमचंद के रचना मा सहानुभूति* 

प्रेमचंद, धनपतराय,नवाबराय नाव ले अपन रचनाधर्मीता के अंजोर ले हिन्दी गद्य साहित्य के अकास के ध्रुवतारा हवे।
प्रेमचंद के सब ले प्रमुख गुन उंकर व्यापक सहानूभूति रिहिस,जेकर कारण साहित्य मा मनुख के सहज अधिकार लगथे।अपन जुग के आदर्श ला जब लानथे, तव वो जनवाद के बिसेषता ला धर के रेगथे,इही पाय के वो भाव खाली जुग अउ आदर्श धरे नइ हे,बल्कि वो परिवेश के वोमा संस्कार के संगति अउ चेतना के सामंजस्य दिखाई देथे।उकर कथा कहानी मा सहानुभूति के एक घमंड दिखथा,जेमा राजनीतिक बुद्धि वाद चघय नइ,वो पापी ल क्षमा  नइ करय,अपराधी, शासन के  उपेक्षा घलो नइ करय, वोला छोड के, मार के उपवास करके दण्ड देथे। ये सहानुभूति उकर साहित्य मा विस्तार ले बगेर हवे।जिनगी के सभी समस्या के जतका सुग्घर चित्रण,प्रेमचंद ला पढ के मिलथे,जिनगी के सबो राग,ममता,सबो जाति धर्म,  संस्कार, समाज ब्यवस्था के परिचय व्यापक रुप  मा देखे बर मिलथे।बहुतेच सावचेत होके अपन साहित्य ला जुग जिनगी के माध्यम अउ संबंध बनाय मा प्रेमचंद हा जागरूक रहिन।
 प्रेमचंद जी के पूरा साहित्य मा,सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्या के बाढ हे,जउन अपन ढ़ग ले समस्या के  समाधान  बतावत दिखथे।किसान मजदूर के प्रति उकर दृष्टि अगाध सहानुभूति मा बुढे हवे, उही जमीदार पूंजीपति ला बखान करे मा ये कलाकार अपन संतुलन नइ खोय,उंकर कमी,गुन ला उजागर करे मा पीछे नइ हटे।सबो वर्ग ला अपन रचना मा स्थान देके वोला कालजयी पात्र बना दिस-उपन्यास मा निर्मला ,गोदान के  होरी -धनिया गबन के रमानाथ।कहानी मा पंच परमेश्वर, बुढ़ी काकी,नमक के दारोगा, सौत,बड़े  घर की बेटी, कफन के घीसु माधव धनीया सबो रचना मा दैनिक जिनगी के, पास- परोस के व्यवहारिक समस्या उजागर करत दिखथे।जउन संगे-संग आदर्श अउ यथार्थ के धरातल ले जुर के समाधान ला घलो बताथे,अउ अपन रचना के प्रति  एक राग अउ विचार के विश्वास पैदा करथे।
प्रेमचंद जी के व्यवहारिक सहानुभूति  व्यापकता के  गुन साहित्य ला सरल सहज जोर के, पाठक के चिंतन के दुवारी ला खोल के ,अपन उपादेयता  सिद्ध  करथे।

 *डाॅ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़*

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 हीरा गुरुजी समय: प्रेमचंद के काहनी अऊ छत्तीसगढ़

प्रेमचंद ल छत्तीसगढ़ के लईका सियान सबो जानथे उखर काहनी इस्कूल अऊ कालेज म पढ़ाय जाथे।प्रेमचंद ल हिन्दी कहिनी के सम्राट कहे जाथे काबर कि वो हा 300 ले आगर कहिनी लिखे हावय ओला उपन्यास सम्राट घलाव कहिथे सेवासदन प्रेमाश्रम रंगभूमि कर्मभूमि गोदान गबन कफन अईसने अड़बड़ अकन उपन्यास लिखे हावय उही किसम ले बूढ़ीकाकी, ईदगाह, पूस की रात, नशा ,गुल्ली डंडा, नमक का दरोगा, आत्माराम, गृहदाह, जूलुस, भाड़े का टट्टू, सत्याग्रह, सवा सेर गेहूं प्रेरणा  ,बाबा जी भोग, पशु से मनुष्य, रामलीला, दुस्साहस ,शतरंज के खिलाड़, डिक्री के रुपये ,नैराश्य लीला  काहनी मन परसिध हावय । फेर वो हा हमर छत्तीसगढ़ के रहईया नोहय उखर जनम 31अक्टूबर 1880 बच्छर म बनारस के लक्ठा गांव लमही म होय रहिस बचपना म उखर नांव धनपत राय रहिस पाछु ये नांव ल छोड़ के अपन नांव प्रेमचंद राखिन 1914-15 बच्छर म अपन लिखई ल चालू करिन 20-21 बच्छर के लिखई बुता म अपन नांव दुनियाभर म बगरइस उखर लिखे काहनी उपन्यास मा  छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाज खान-पान रहन-सहन देसहा संस्कृति गांव-गंवई मीत-मितानी खेल- खेलई सेठ गरीब मजदूर किसान करमचारी नत्ता-गोत्ता कुकूर-बिलइ गाय-बइला के झलक देखे बर मिलथे उंखर काहनी के पात्र हमर छत्तीसगढ़िया मन से मिलथे 
नाती बूढ़ी के काहनी *बूढ़ी काकी* म दरसाय हे भतीजा बहू सास के खेत खार ल अपन नांव म करके पानी पसिया बर तसाईस फेर आकरे बेटी ह मया करिस अऊ पतरी ल चटवाय तक लेगिस। *ईदगाह* म अपन ककादाई के हाथ जरे ले बचाय बर नाती अपन खई खाय के पईसा के चिमटा बिसा के लाथे *महातीर्थ* म नान्हे लइका राखेबर रखे दाई अऊ नाती बराबर मया करइया लइका के मया के काहनी हे एक दुसर ले दुरिहाय ले दुनो झन ल जर धर लेथे फेर लइका के जीव बचायभर अपन तीरथ यातरा ल छोड़ देथे हमर छत्तीसगढ़ म घलाव नाती पोता संग अड़बड़ मया करथे नौकरी चाकरी मा जायके सेती नातीबूढ़ी के मया दुरिहा होवत है मोसीदाई के उही परभाव हमर छत्तीसगढ़ म घलाव देखे जाथे जौन प्रेमचंद के काहनी "गृहदाह" मा लिखाय हावय मोसी महतारी ह आतेसात ले छोटकन सउत बेटा ल बईरी मानथे जेखर सेती दुनो के नत्ता बन नई सकय दूजहा बेवहार करथे फेर ओखरे सगे लईका अपन सउत भाई संग मया करथे ओला बड़का भाई मानथे मोसी महतारी के अईसने पकतको बेवहार देखेबर सुनेबर मिलथे
समाज म सेठ साहूकार मन के अइताचार के किस्सा भरे हे प्रेमचंद यहू ल अपन काहनी म जगा देहे *सवा सेर गेहूँ* म साहूकार ह बियाज  के बाढ़त ले कुछु नई बोलय फेर करजा नंगत बाढ़थे तब तगादा उदेली  भेजथे करजा नई छुटाय त ओला बंधुवा बनाके करजा छुटवाथे मरे के बाद ओकर लइका ल बंधुवा बना लेथे अइसने छत्तीसगढ़ के गांव सहर म घलो गऊंटिया मन करे अऊ गरीब ल लूटत हे ऊंखर खेतखार घरकुरिया ल नंगावत हे *नशा* काहनी म गरीब ल अमीर बनथे त ओखर बेहवार कैइसे बदलथे अपने आदमी ऊपर हुकूम चलाथे चरवाहा पनिहारा रंधइया ल छोटे समझथे अइसने हमर छत्तीसगढ़िया अधिकरी बन जाथे त गांव परवार म हुकूम चलाथे बेटा बहू के बेवहार दाईददा  बर बदल जाथे *ईश्वरीय न्याय* , *दुस्साहस* , *पशु से मनुष्य*  काहनी म अइसने अइताचार ल लिखे हावय। मितानी के किस्सा मितानसंग संग- संगवारी संग बेवहार दगा-देना नत्ता-निभाना ल अपन काहनी म सुघ्घर बताय हे *डिक्री के रुपये* म लिखे हावय दुनों संगवारी रथे फेर एकझन संपादक अऊ दुसर अधिकारी संपादक सच के संग देवइया रहाय एक घांव अधिकारी घूंस लेके फंस जाथे संपादक संग भेंट होथे तब सच बता देथे संगवारी दुबिधा म फंस जाथे पाछू सच छापथे कचेरी म अधिकारी मुकर जाथे दांड़ संपादक ल होथे फेर ओखर हैसियत नई रहाय त अधिकारीच ह पइसा भरके अपन मितानी निभाथे अइसने "शतरंज के खिलाड़ी" मा दू संगवारी अपन अलग दुनिया म रहाथे परवार मन ताना मारथे त मंदिर म बैइठ के शतरंज खेलथे कतको बेर झगरा होथे फेरे खेलेबर नई छोड़य *गिल्ली डंडा* म नानपन म बने संगवारी  ले अड़बड़ बच्छर म भेंट अऊ उही दिन के सुरता फेर सब बदल जाय रथे एक अधिकारी दुसर गरीब अब उही खेल म मजा नई आय छत्तीसगढ़ म घलाव नानपन अऊ इस्कूल के संगवारी कोनों जगा मिलथे देवारी मनाय गांव जाथे त सब बदल जाय रथे प्रेमचंद के काहनी म कुकुर बिलई गाय बइला मिट्ठू के संग मितानी अऊ परेम के कथा हावय  दो बैलों की कथा मा बइला जोड़ी हीरा मोती ल मालिक अपन सारा घर भेजथे एक घांव भाग के आ जाथे पाछू फेर लेग के जांगर के टोरत ले कमवाथै खायपिये बर ढंग से देवय नहीं वोमन उहां ले भाग जाथे बड़ दुख पाथे आखिर म मालिक करा जाथे उखर बिना मालिक घलाव बिमार हो जाथे सबो मिलथे तब मया दुलार  बाटथे *आत्माराम* मिट्ठू संग लइका असन परेम राखधे ओकर उड़ा जायले खायपिये ल तियाग देथे *पूस की रात* म कुकुर संग रातभर कटकट्टा जाड़ म रखवारी अऊ ओखरो हियाव रखेबर पत्ता सकेल के जलाइस जेमा खेत म आगी लग जाथे अइसने मालिकभक्त कुकुर के मंदिर छत्तीसगढ़ म बालोद जिला के मालीघोरी गांव म बने हावय छत्तीसगढ़िया मन गायगरू के संग मुसवा,बिलई , कुकुर ,गदहा,घोड़ा पोसथे प्रेमचंद के काहनी म सामाजिक परवारिक के संग धारमिक ढोंग ल आगू लाय हे *रामलीला* म धरम के नांव लेके चंदा मांग के ओ पइसा के अपन सेखी म खरचा कर बिरथा म फूंकना अऊ कलाकार मन के शोसन ल दरसाय हावय *बाबा जी का भोग* काहनी म कामचोर ह साधू बन बरा सोंहारी खाथे कमइया मनल लांघन भूखन रहिथे धरम के नांव लेके लूटत हे इहां घलाव आज जगा जगा रामायण प्रतियोगिता,भागवत होवत हे बाहिर ले महराज आके लूट के लेगत हे ईहां के गवइया बजइया मन जुच्छा हो जाथे। प्रेमचंद नेता मनके कथनी करनी अऊ राजनीति ल अपन काहनी म जगा दे हावय *सत्याग्रह* म नेता मनके हड़ताल तोड़े खातिर पुलिस अऊ सरकार किसम किसम के उदीम करथे धरम करम के आसरा लेके भड़काते एकदुसर ल लड़ाथे  वसने *जुलूस* म नेता ऊपर दरोगा डंडा चलाथे जुलूस ल रोकथे ओला ऊपर ले बड़े साहब डर रथे छोटे पुलिस ल अपन नऊकरी बचाय बर रथे नेता इही बीच म मर जाथे सब दोस दरोगा ऊपर आथे ओकर मऊद माटी म शहर भर के जनता जाथे ओमा दरोगा के घरवाली चलाव रथे ओ अपन दरोगा ल गारी सुनाथे पाछू नेता के  गोसाईन ले दरोगिन मिलेबर जाथे त ऊहां अपन दरोगा ल देखके ओकर मति हर जाथे अपन दरोगा लगलत समझेंव अईसने हमर छत्तीसगढ म अपन मांग बर धरना देवइया मन ऊपर आज घलाव पुलिस अइताचार करथे कतकोझन शहीद हो जाथे नेतामन जाति, धरम,समाज म बांट के अपन रोटी सेंकत हावय  *मुक्ति के  मार्ग* म प्रेमचंद बताय हावय भेड़ी चरवाहा ल किसान खेत म होके भेड़ी लेजायबर मना करथे त ईरसाद्वेश म दुनो मन बैरी हो जाथे एक दूसर के नकसान करथे दूनों के घर राख हो जाथे पाछू मितान बन जाथे फेर का फायदा *डिक्री के रुपये*  म घलाव हावय हमर छत्तीसगढ़िया मन अपने भाई सगासोदर परोसी  ले बैरी बनथे दूसर के बाढ़त ल नई देख सकय कपट राखथे उही किसम ले खेलकुद के मया दुलार ल प्रेमचंद बहुतेच सुघ्घर लिखे हावय *गिल्ली डंडा* म देशी अऊ परदेशी खेल के अंतर बताहे खेल जातपात धरम गरीबीअमीरी छुआछुत नई चिनहै देशी खेल कम  खरचा कम खेलाड़ी म जादा मजा के संग खेले जाथे देखावा कम रथे फेर आज के लईका एला नई मानय छत्तीसगढ़िया लईका मन ल घलाव परदेसिया खेल के निशा चढ़ गेहे अऊ  मोबाइल के खेल एकठन मुड़ीपीरा बन गेहे दाईददा के बरजे नई मानय ।प्रेमचंद छत्तीसगढ़िया नई रहिके छत्तीसगढ़िया म मिले हावय अवधी मगधी के भाखा रहन-सहन हमर छत्तीसगढ़ी ले मिलथे ।वो बहुतेच बड़का लिखईया रहिन ऊखल लिखे काहनी उपन्यास हमर देस संग दुनियाभर म अंजोर बगरावत हे ।छत्तीसगढ़ सरकार ह ऊंखर जनमदिन ल एसो सब इस्कूल म मनायबर आदेश दे हावय।

लेख एवं संकलन
हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा जिला गरियाबंद
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Tuesday 28 July 2020

छत्तीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

*छत्तीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

दुनिया हा विज्ञान के क्षेत्र मा अब्बड़ तरक्क़ी करे हवय। फिल्म (चलचित्र) जमाना के हिसाब ले अलग अलग रूप मा सदा चले आवत हे। कभू नाटक लील्ला के रूप मा तौ कभू नाचा गम्मत के रूप मा, हमर छत्तीसगढ़ मा देवार, मदारी, डनचगहा मन घलो चलचित्र ही आयँ। ए अलग बात हे के येमन सोझे सोझ प्रस्तुत होवँय। हमर ए जम्मों पुराना विधा मन के एक उद्देश्य जरूर रहय। कोनो हर नारी सम्मान बर, कोनो हर बेटी बचाओ बर, कोनो हर शिक्षा बर, या दूसर ढंग के कुरीति के बिरोध मा जागरण बर प्रस्तुत होवँय। लोकप्रियता अउ सराहना घलव उन मन ला उनकर उदेश्य के हिसाब ले मिलय। ए जुन्ना समय के प्रस्तुति मन मा एक खास बात रहय के येमन फूहड़ता ले दूर शुद्ध साहित्यिक रहय।

जान लोगी बेयर्ड टीवी के अविष्कार करिस अउ कैमरा के अविष्कार जोसेफ नीप्से हर करिस। ए अविष्कार मन के उन्नत रूप आइस। मनखे के मस्तिष्क नवाचारी होथे अउ अपन नवाचारी गतिविधि ले मंच के गतिविधि या रियल ला रील मा बदले ल धरलिन। धीरे धीरे फिल्मी दुनिया बढ़वार होइस। कम्प्यूटर के आय ले एमन अउ आकर्षक, सँउहे अउ कल्पना ला साकार करलिन। 

दुनिया के सबो भाषा मा फिल्म बनत होही। फिल्म बनइया मन कोनों साहित्यकार के रचना एकांकी नाटक उपन्यास लोककथा जीवनी ला ही विषय के रूप मा चुनथें अउ फिल्म बनाथें। अपन संस्कृति, रिवाज, परम्परा अउ मान्यता ला जन जन तक पहुँचाथें, कुरीति मन के विरोध करके जनमानस ला सचेत अच जागरूक करथें। पहिली पहिली के फिल्म मन मा उद्देश्य मजबूत रहत रहिन। ए फिल्म मन ला पूरा परिवार एकसँघरा बइठ के देख सकत रहेन।

अब अउ तब के फिल्म मा अंतर स्पष्ट करे जाय तौ बहुत अकन अंतर देखे बर मिलथे। तब उद्देश्य स्पष्ट रहय अउ अब उद्देश्य भ्रामक हे। तब फिल्म जागरण बर होवय अब खाली मनोरंजन रहिगे हे। तब शालीनता रहय अब नग्नता आगे हे। तब वास्तविकता के नजदीक रहय, अब कल्पना के भंडार भरे हे।

अब हमर छत्तीसगढ़ी फिल्म के बात करथन, हमर पहिली फिल्म "कहि देबे संदेश" जेन ओ समय के समाज मा रहे विसंगति ला उजागर करे हवय। छुआछूत जेन ला गांधी जी मानवता के सबसे बड़े पाप कहे हे ओखर बिरोध मा ए फिल्म बने हे। भाषा शैली, गीत संगीत सब साहित्यिक हवय। फूहड़ता के नाँव नहीं हे। अब ओ समय छत्तीसगढ़ मा भारी गरीबी रहिस हे, न लोगन कर टीवी रहिस हे न सिनेमा देखे बर पइसा अउ न समय तब कतनो अच्छा फिल्म बना ले देखइया तो मिलबे नि करे। ऊपर से जाति पाति के कट्टरता रहिस हे। छत्तीसगढ़ राज्य बनिस तब पहिली रंगीन फिल्म "छइयाँ भुँइया" बनिस जेकर संवाद, गीत सबो साहित्यिक दृष्टि ले स्तरीय हे। ए फिल्म के संयोग वियोग श्रृंगार के गीत अउ फिल्मांकन घलव अतेक सुग्घर हवय के एला पूरा परिवार सहित देखे अउ समझे जा सकत हे। ए फिल्म के मूल उद्देश्य जहाँ तक मँय समझे अउ पाये हँव के एमा अपन माटी के प्रति हमर का व्यवहार अउ संस्कार होना चाही। मनखे के सम्मान कहाँ हाबे देखाय अउ बताय गे हवय। एखर बाद "मया दे दे मया ले ले" "अँगना" जइसे फिल्म बनिस। यहू मन साहित्यिक दृष्टि ले स्तरीय हे। "झन भूलौ माँ बाप ला" भोजपुरी फिल्म के नकल हवय भाषा शैली गीत मन येखरो साहित्यिक हवय। एखर बाद के बने अधिकांश फिल्म मन भोजपुरी फिल्म, हिन्दी फिल्म मन के नकल बने हें। एमन मा धीरे धीरे वार्तालाप के शैली अउ गीत मन मा फूड़हता आवत गिन हे! आज इही प्रयोग के सेती छत्तीसगढ़ी फिल्म मन ले साहित्यिक संस्कार नँदावत हे। 

आज जरूरत हे के हम फिल्म मन मा हमर एतिहासिक पुरुष मन के जीवनी ला, हमर संस्कृति हमर परम्परा ला अउ हमर मान्यता ला विषय बना के एक सादा उद्देश्य लेके फिल्म बनावन, हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के सरसता मिठास ला वार्तालाप के शैली मा ढालन, गीत मा हमर राज के नजरिया, वैचारिक सम्पन्नता ला दर्शावन, हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य के उन्नत होय के संदेश दुनिया ला देवन। ए उदिम ले सुग्घर साहित्यबद्ध फिल्म बनही। नकल ले बचके अपन मूल मा केन्द्रित होके फिल्म बनावन। नकल अगर करत भी हन तौ हमर छत्तीसगढ़ के मान्यता मा अतिक्रमण झन होवय।

विरेन्द्र कुमार साहू (छंद साधक सत्र - 9)
ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम)

छत्तीसगढ़ मा फिलिम के रद्दा कब बदलही

छत्तीसगढ़ मा फिलिम के रद्दा कब बदलही


     आजकल जौन ला देखबे तौन हा फिलिम, सिरियल अउ बजरहा जिनिस बेचइया विज्ञापन करइया मनके नकल करेबर अउ वइसने दिखेबर रिकिम रिकिम के उदिम करत हे।सियान मन कहिते रहिगे कि फिलिम विलिम ला देखव झिन,ये समाज अउ संस्कृति के लीलइया अजगर आय जौन सबो ला लील देही। आज वइसनेच होत हावय। हमर पहिराव ओढ़ाव, खाना पीना,रहना  बसना,संस्कृति, परंपरा ,तीज तिहार, बर बिहाव सबो फिल्मी होगे। 
         आजकल जतका प्रांतीय भाखा मा फिलिम बनत हे ओमा जादा अइसने प्यार मोहब्बती वाला फिलिम हावय जौन ला परिवारिक फिलिम के नाम मा परोसत हे।नान्हे नान्हे कपड़ा लत्ता,देह उघार के रेंगना, नाचना, घुमना, पढ़ेबर जाना सब फैसन होगे।जेठ हा भैया अउ डेड़सास हा दीदी इही फिलिम मनके देय नत्ता होगे।मुड़ी ढाँक के रेंगना अब तइहा के बात होगे नवा नवा गाड़ी मोटर भर्र भर्र चलाय बर हमर नवछटहा लाइकामन ला फिलिम हा देखावत अउ सिखावत हे ।अइसने बनत फिलिम मन हमर जात, समाज, संस्कृति, धरम बर खतरा होवत हे। दाई ददा मन जाँगर टोर मेहनत करके लइका मनला पढ़ाई करे बर,नउकरी करेबर आने जगा अपन ले दूरिहा भेजथे।फेर ओमन पढ़ाई करे के जगा अपन भविष्य ला इही फिलिम कस प्यार मोहब्बती मा झिंंगरा कस फाँस लेथे। अउ अपने गोड़ मा टंगिया मारथे।

               अब देस दुनिया मा नवा रद्दा के फिलिम बनाय के जरुरत हे।बहुत होगे संस्कृति ला बिगाड़े, परिवार ला टोरे फोरे के फिलिम।देस अउ प्रांत मा बेरोजगारी, बिमारी, भ्रष्टाचार, समिलहा परिवार के पुरखौती परंपरा के बिनास हा हाथ गोड़ लमावत हे। एला बने करे के जरुरत हे।व्यावसायिक फिलिम के नाव मा हमर लइकामन करा काय काय परोसत हे एला देखे समझे के जरुरत हे। नवा जुग के नवा किसिम के फिलिम बनत हे जेमा रोबोट, कम्प्युटर , रिमोट हे। फेर एमा घलाव प्यार मोहब्बती , नारी हिनमान, ला मिंझार देवत हे। जनता ला काय मिलत हे। अब बेरोजगार बर रोजगार के उदिम वाला, देस मा डाक्टर के कमती ला दूर करे के उदिम, घर घर मा पानी बचाय के उदिम, खेती किसानी ले दुरिहात पढ़े लिखे चेलिक ला जोड़े के उदिम, पर्यावरण ला सुधारे मा चेलिक मन के सहयोग के उदिम वाला फिलिम बनाय के जरुरत हे।
       कहे जाथे फिलिम हा समाज ला रद्दा देखाय के बूता करथे।फेर आज के फिलिम मनके रद्दा खुदे भुलवाही,भुवन कांदा खुंद डरे हे।एक्कइसवीं सदी मा हमर चेलिक लइका मन ला काय देना हे,ओला फिलिम बनाइया मन बिचार नइ कर पावत हे। प्यार मोहब्बती मा फाँस के राख दे हावय। समाज मा बदलाव अउ नवा  रद्दा देखाय के बूता  फिलिम हा घलाव करथे। तब ये फिलिम मन अपन रद्दा कब बदलही, कब तक दूसर के जात धरम ला मोहबती के नाम मा बिगाड़े के बूता चलते रही,नवा पीढ़ी के चेलिक मन ला कब उबारही इही अगोरा हे।

हीरालाल गुरुजी"समय"
छुरा, जिला-गरियाबंद 

         


          

छत्तीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

*छत्तीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य* 

हम तो अभी के लइका आन , हमला तो इहु पता नइ रहिस की हमर छत्तीसगढ़ी के पहिली फिल्म "कहि देबे संदेश" रहिस । अउ दूसरैया फिल्म "घर दुवार" जउन मन मा हमर छत्तीसगढ़ के पुरखा कवि अउ प्रख्यात साहित्यकार मन के रचे गीत मन हर शामिल रहिन । जउन मन ला हमन आज ले घलव सुनथन अउ जानथन , साठ के दशक मा बने हमर छत्तीसगढ़ी फिल्म मन के बारे मा चर्चा आज के समय मा अइसन कोनो जानकार मन हर नइ करत रहिस अउ ना काही बतावत रहिस । तेपाय के हमर छत्तीसगढ़ ओतका सुग्घर समय जउन ला हम ओ समे के "स्वर्णकाल" कहि सकथन , जउन मा हमर छत्तीसगढ़ के सुग्घर अउ गौरवशाली इतिहास हर लुकाय हावय । 

आज कहूँ अइसन विमर्श के विषय बना के ये सब गोठ बात मन ला नइ रखे जातिस ता , शायद आज हमन ला अउ हमर जइसन कतको अउ साहित्यकार हावय जउन मन ला अइसन सुग्घर जानकारी संग इन सब के बारे मा जाने बर नइ मिलतीच । हम तो साहित्य के छोटकुन साधक अन जउन आज आप सबो के मार्गदर्शन मा सिखत हन अउ टूटे - फूटे थोड़ बहुत लिखन हन । हमर अपन जानकारी मा हम नब्बे के दशक मा जब छत्तीसगढ़ राज बने के बाद जउन छत्तीसगढ़ी फिल्म बनिस "मोर छइँहा भुइँया" मेर ले छत्तीसगढ़ी फिल्म ला जाने हन । ओ समे हम भले साहित्य का होथे ओला नइ जानत रहेन अउ ना समझत रहेन , फेर ओ समे ओ जउन फिल्म रहिस हे ओहर पूरा गाँव देहात के परिवेश मा बने रहिस , अउ जेखर गीत हर सिरतोन मा पूरा देखइया मनखे मन ला झकझोर के रख देवत रहिस हे । तेपाय के ओ फिल्म के एक ठन गीत "छइंहा भुइँया ला छोड़ जवइया , तँय थिराबे कहाँ रे" गीत हर लइका ले लेके सियान मन के अन्तस् मा आज ले घलव रच बसगे हवै , अउ सबो दिन अइसने  रही । आज ये जान के बड़ सुग्घर लगथे की हमर माटी महतारी के संगे संग हमर छत्तीसगढ़ी अस्मिता अउ धरोहर के जउन गीत हे उनकर मन के गीतकार हमर छत्तीसगढ़ के हमर पुरखा जनकवि अउ साहित्यकार मन हर रहिन हे , जिंकर मन के सुग्घर गीत मन ला हमन आज ले घलव जानथन सुनथन ।

आज के समय मा हमर मन के बीच मा कतकोन फिल्म बनके आय हे , अउ बनत हावय । जउन फिल्म मन मा ना तो पहिली के फिल्म मन के जइसन ओखर पटकथा संवाद मन हर राहय अउ ना ओइसन परिवेश मन हर राहय , अउ ना पहिली जइसन ओ गीत मन हर राहय जउन लोगन मन के अन्तस् ला छु दय । अइसे बात नइ हे की आज बने गीत नइ लिखे जावत हे , आज घलव बने गीत लिखे जावत हे , फेर हमर पहिली के गीत मन असन मनभाव गीत जादा नइ लिखे जावत हे । पहिली के गीत मन मा जउन गाँव गली संग खेती खार अउ मया पिरित के गोठ बात के संग सुग्घर साहित्य के जउन सालीनता सादगी रहिस हे । ओहर आज के फिल्म मन मा हमन ला देखे बर नइ मिलय , आज के जउन फिल्म हे अउ उनकर मन के जउन गीत हे , ओमन केवल आज के हमर जउन दर्शक हे उनकर मन के मनोरंजन खातिर बनथे । ओ मन मा ना तो हमला कोनो संदेश दिखय , अउ ना हमर छत्तीसगढ़ के कोनो धरोहर अउ अस्मिता मन हर दिखय ।  तेखर ऊपर तो आगी कस लगे आज कल के गीत मन हर हावय , जउन मन सब फूहड़ता के सबो हद मन ला पार कर देवत हे , अउ ओइसने हे आज कल के फूहड़ता ले भरे ओ फिल्म मन के किसम किसम के नाम मन हर हे । 

जिंकर मन के ना तो हमर छत्तीसगढ़ के माटी अउ हमर इहाँ के कोनो संस्कृति मन ले दुरिहा दुरिहा तक कोनो नता राहय , अइसन तो आज कल के हमर फिल्म अउ उनकर मन के गीत मन हर हे । जउन मन मा साहित्य अउ सालीनता सादगी नाम के कोनो जिनिस नइ दिखय । आज कल के फिल्म मन के उद्धेश्य केवल लोगन मन के मनोरंजन करना बस रहिगे हे , अउ आज एँखरे चलती मा मँय कहिथव ता आज हमर छत्तीसगढ़ के जउन फिल्म हे ओमन हर , दूसर परदेश मन के तुलना मा पछुवाय हवय । ये आज कल के हमर फिल्म निर्माता मन हर कतकोन फिल्म बना लेवँय , अउ कतको गीत मन ला उतार दय , फेर हमर पुरखा मन के जउन साहित्य ले भरे हमर छत्तीसगढ़ के माटी अउ महतारी के संग हमर   संस्कृति माटी अउ अस्मिता मन ले जुड़े फिल्म अउ गीत मन के बराबरी कभू नइ कर सकय अउ ना कभू हमर पहिली के कलाकार मन के कला गीत अउ ओइसन फिल्म मन के जगा ले सकय । ।

 (येमन मोर अपन निजी विचार ये जरूरी नइये आपमन सहमत होहव , कोनो भी किसम के गलती खातिर हम क्षमाप्रार्थी हन)

              मयारू मोहन कुमार निषाद 
               गाँव - लमती , भाटापारा , 
             जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
         छंद साधक सदस्य सत्र कक्षा - 4

छत्तीसगढ़ी सिनेमा अउ साहित्य*

*छत्तीसगढ़ी सिनेमा अउ साहित्य*

सिनेमा अउ साहित्य के गहरा नाता आये। बने कहिनी अउ गीत ले बने फिल्म मा लोगन मन बड़ पसंद करथें। फेर छत्तीसगढ़ी भाखा के सिनेमा अउ साहित्य के तालमेल वइसे नइ हे जइसे होना चाही। हमर राज मा स्थापित कहानीकार अउ गीतकार मन हें। जेमन ला बने मौका नइ मिलत हें। येकर प्रमुख कारण हे, बहुत से निर्माता निर्देशक मन के उदासीनता। ओमन बाॅलीवुड के अंधानुकरण के सेती राज के प्रतिभाशाली लोगन मन सन नियाव नइ करत हें। ओमन आजकल जे फिल्म बनाथें ओमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति के झलक बने ढंग ले नइ दिखावय। कुछ लोगन ही ईमानदारी ले प्रयास करें हें जइसे मनु नायक, प्रेम चंद्राकर, सतीश जैन आदि मन। फेर अतके ले काम नइ बनय। नवा निर्माता निर्देशक मन ला राज के संस्कृति ले जुड़े अउ इहाँ के प्रचलित लोककथा मन ला आधार बनाके फिल्म बनाना चाही। सुग्घर कथानक के खोज कर सार्थक फिल्म बनाये के प्रयास करना चाही। हमर राज के जाने-माने साहित्यकार मन के लिखे कहानी ला परदा मा उतारे के प्रयास करना चाही। लोकगीत लिखइया मन ला घला उचित सम्मान मिलना चाही। काबर कि लोकगीत हमर संस्कृति के पहिचान आये। ये फिल्म रही ता हमर नवा पीढ़ी घला अपन पुरखा मन के सुग्घर काम ला जान पाही।
आजकल जे छत्तीसगढ़ी फिल्म बनत हे ओमन के कहानी कमजोर रहिथे या बाॅलीवुड ले प्रेरित रहिथे, नवापन के अभाव हे। संवाद भी खास नइ राहय। गीत मन के बातेच छोड़ दव। द्विअर्थी शब्द के भरमार रहिथे, सुनन नइ भाये। ये बखत के माँग या जादा पइसा कमाय के लालसा के कारण हो सकथे। फेर ये स्वीकार्य नइ हे। बने कहानी ला लेके बनाये फिल्म के जादू हमेशा कायम रहिथे। वइसने अच्छा गीत मन ला लोगन कभू नइ भूलय। आज के हमर छत्तीसगढ के नवा रचनाकार मन बढ़िया कहानी लिखत हे, सुग्घर छंदबद्ध गीत लिखत हे। येमन ला भी फिल्म बनइया मन ला मौका देना चाही। तभे समाज ला संदेश देवत सुग्घर फिल्म बन पाही। अइसे फिल्म मन दर्शक मन के दिल दिमाग के सदा नजदीक रहिथे।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Monday 27 July 2020

सुरता तुलसी दास -सरला शर्मा *****

सुरता तुलसी दास -सरला शर्मा
  ***** 
       सावन के अंजोरी पाख साते संवत 1554 के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र मं तुलसीदास के जनम होये रहिस आज हमन उनकर जयंती मनावत हन । उनकर जीवन से जुरे बहुत कन दंत कथा लोगन के बीच  कहे सुने जाथे । 
वो समय हमर देश मं मुगल शासन रहिस हे ते पाय के राजनैतिक , सामाजिक , धर्मिक , आर्थिक के संगे संग साहित्यिक दशा भी अनुकूल नई रहिस । संस्कृत पंडिताई भाषा बन गये रहिस आम आदमी ले  दुरिहा के मठ , मंदिर , विद्वान  मन के शास्त्रार्थ अउ पूजा पाठ तक सिमटा गये रहिस । राज काज के भाषा मुगल मन के अरबी फारसी रहिस फेर उर्दू के आरो सुनाये लग गये रहिस । आम आदमी के बीच क्षेत्रीय बोली , उपबोली , भाषा के बोलबाला रहिस ...बृज भाषा मं साहित्य रचना  शुरू होइस त  गोस्वामी जी संवत 1631 रामनवमी के दिन " रामचरित मानस "" लिखे बर शुरू करिन जेहर संवत 1633 रामसीता बिहाव के दिन खतम होइस । 
     " स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।" ....
काबर ..? गुनी , मानी , बुधियार , सियान सामरथ , संस्कृत के गम्भीर जानकार तुलसीदास के मन मं रामचरित मानस के भाषा के मान्यता के विषय मं कॉनो  दुविधा रहिस , अवधि क्षेत्रीय जन के बोल चाल के अधार रहिस ते पाय के कोनो किसिम के संसो , डर  रहिस ? काबर के वो समय भी भाषाई लड़ाई झगड़ा तो चलते रहिस हे , तुलसीदास असन उम्मरवाला सियान कवि ल भी अवधि के द्वारा खुद ल स्थापित करना कठिन रहिस । भाषाई द्वंद तो आज भी चलत हे  विशेषकर हमर छत्तीसगढ़ी  ल लेके । 
   उन संस्कृत के उपेक्षा नई करिन फेर अवधि लिखे के पहिली रामचरित मानस के सुरुवात बालकांड  म संस्कृत के प्रयोग करिन 
" वर्णानाम  अर्थसंघानाम रसानाम छ्न्दसामपि ......। " 
           हरेक कांड के सुरुवात  श्लोक मन से ही करिन ...बीच बीच मं भी श्लोक दिहिन ...उत्तर कांड मं कथा के समापन करिन ...
" श्रीमद्रामचरितमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये ......। " 
         वर्तमान सन्दर्भ ल देखिन त हिंदी आज भी राष्ट्र भाषा के पद मं नई बिराजे पाये हे त  दूसर डहर देश के कई ठन क्षेत्रीय बोली , भाषा , उपभाषा मन भी साहित्य रचना मं पिछुवाये नइहें । प्रश्न हे अइसनहा लेखन अउ लेखक मन साहित्य मं कब जघा बनाये सकहीँ ? सुरता करिन के 77 साल के उम्मर मं बाबा जब मंच ले मानस गान करत रहिन होहिं त कतका संघर्ष उनला करे बर परे रहिस । वो तो लाला भगवानदीन , आचार्य रामचन्द शुक्ल असन गुन गाहक मन के नज़र परिस अउ आम जनता राम कथा ल सहज , सरल भाषा मं पाके अंर्तमन से अपना लिहिस ।    मानस के कालजयी होये के पाछू जन मन के श्रद्धा विश्वास के जब्बर हाथ हे । 

रामकथा आम आदमी के गौरवशाली अतीत , समस्या मन से उबारने वाला मर्यादित आचार संहिता अउ रामराज के सपना देखाने वाला भविष्य बन गिस ..। मनसे वाल्मीकि रामायण ल भुला के रामचरित मानस ल रमायन कहे माने लगिन । आज हमन राम शलाका प्रश्नावली के द्वारा अपन भविष्य जाने के उदिम करथन एकर ले जादा लोकप्रियता आने कोनो किताब पोथी ल नई मील हे तभे तो " श्रद्धा विश्वास रुपिणौ ..." कहिथन ।
   आज गुनत हंव बाबा तुलसीदास कभू सोचे रहिन होहिं के उनकर लिखे रामचरित मानस एक दिन हिंदी साहित्य के कालजयी रचना सिद्ध होही ...?  अवधि बर उनकर प्रेम , मेहनत , संघर्ष हर हमन बर पटन्तर आय , प्रेरणा आय के हमन अपन छत्तीसगढ़ी बर ओतके सेवाभाव , गरब गुमान मन मं रख के साहित्य रचना करिन । 
    तुलसी अउ तुलसी के राम ल प्रणाम 
          सरला शर्मा 
          दुर्ग

छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य*-अरुण निगम

*छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य*-अरुण निगम

कोनो फ़िल्म मा साहित्य के प्रयोग दुये जघा हो सकथे। एक तो फ़िल्म के कहानी (पटकथा) के आधार कोनो साहित्यिक कहानी या उपन्यास मा अउ दूसर वो फ़िल्म के गाना मा। छत्तीसगढ़ी भाषा के पहिली फ़िल्म "कहि देबे संदेश" रहिस। दूसर फ़िल्म "घर-द्वार" रहिस। ये दुनों फ़िल्म श्वेत-श्याम रहिन। साठ में दशक के ये दू फ़िल्म के बाद सन् 2000 तक अउ कोनो छत्तीसगढ़ी फ़िल्म के निर्माण नइ होइस। नवा राज्य छत्तीसगढ़ बने के संगेसंग "मोर छइयाँ भुइयाँ" बनिस अउ सुपर हिट होके कतको रिकॉर्ड बना डारिस। ये पहिली रंगीन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म रहिस। मोर छइयाँ भुइयाँ के सफलता ला देख के  अनेक मन फ़िल्म निर्माण कर डारिन फेर अधिकांश फ़िल्म मन अइसन सफलता नइ पा सकिन। आज घलो बहुत अकन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनत हें फेर मोर जानकारी मा कोनो साहित्यिक उपन्यास या कहानी ऊपर शायद अभी तक एको फ़िल्म नइ बनिस हे। मोर ये जानकारी अधूरा घलो हो सकथे। 

अब छत्तीसगढ़ी फ़िल्म मा साहित्य के चर्चा करे बर फिल्मी गाना रहि जाथे। कहि देबे संदेश फ़िल्म के गीतकार हनुमंत नायडू "राजदीप" रहिन जउन मन साहित्यकार घलो रहिन। उनकर लिखे फिल्मी गाना मा साहित्य देखे बर मिलथे। 

झमकत नदिया बहिनी लागे, परबत मोर मितान 
मोर अँगना के सोन चिरैया ओ नोनी
तरी हरी नाहना
तोर पैरी के छनर छनर 
होरे होरे होरे
दुनिया के मन आघू बढ़ गें
बिहिनिया ले ऊगत सुरुज देवता
कहि देबे संदेश फ़िल्म के एको गीत मा फिल्मी मसाला के तड़का नइये। हर गीत साहित्य के श्रेणी मा खरा उतरे हे। 

फ़िल्म घर-द्वार के गीतकार प्रखर साहित्यकार हरि ठाकुर रहिन। फ़िल्म बर इनकर लिखे गीत रहिन - 

गोंदा फुलगे मोर राजा
झन मारो गुलेल
सुन सुन मोर मया पीरा के सँगवारी
जउन भुइयाँ खेले
आज अधरतिहा 

इन गीत मन मा घलो फिल्मी मसाला के तड़का नइ दिखै। ये गीत मन घलो साहित्यिक के श्रेणी मा आहीं।

मोर छइयाँ भुइयाँ, मा चार गीत लक्ष्मण मस्तुरिया के अउ बाकी आने गीतकार मन के रहिन। छइयाँ भुइयाँ ला छोड़ जवइया तँय थिराबे कहाँ रे, ये गीत के साहित्यिक ऊँचाई अइसन हे कि आज बीस बछर बाद इही गीत के कारण मोर छइयाँ भुइयाँ फ़िल्म ला सुरता करे जाथे। सतीष जैन के फ़िल्म रहिस "मोर छइयाँ भुइयाँ"। अभी हाल मा उनकर "हँस झन पगली, फँस जाबे" भले हिट होइस फेर साहित्यिक कसौटी मा फ़िल्म के गीत मन निराश करिन। बहुत अकन फ़िल्म बनिस, बहुत अकन गीत बनिन फेर अधिकांश गीत मन साहित्य के कसौटी मा खरा उतरे के लाइक नइ माने जा सकें। छत्तीसगढ़ी फिल्मी गीत मा हनुमंत नायडू, हरि ठाकुर अउ लक्ष्मण मस्तुरिया जइसे साहित्यिक स्तर दूसर गीत मन मा देखे बर नइ मिलिस। ये मोर निजी आकलन आय। हो सकथे आप के आकलन कुछु अउ हो।

*अरुण कुमार निगम*

जन जन के कवि: तुलसीदास*

,*जन जन के कवि: तुलसीदास*


भक्ति काल के महाकवि तुलसीदास के नाम हा हिन्दी साहित्य मा सोन के आखर मा लिखाय हावय।आदि कवि महर्षि बाल्मीकि के महाकाव्य रामायण हा संस्कृत मा रिहिस हे जेहा आम आदमी के समझ ले बाहिर के रिहिस हे ।रामायण ला अधार बना के तुलसीदास जी जन सामान्य के भाषा अवधी मा रामचरित मानस के रचना करिन अउ भगवान राम के गाथा ला घर घर पहुँचाइन।आज ले कइ ठन घर मा बिहनिया ,बिहनिया रामचरित मानस के पाठ करे जाथे। मोला सुरता हे मोर नाना बबा हा रोज मानस के पाठ करय। बिना पाठ करे कुछु नइ खावय मँय हा ओखरे मुँह ले सुने रहेंव-

चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर ।
तुलसीदास चंंदन घिसे तिलक लेत रघुवीर।।

आज घलौ हमर छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव मा नवधा रमायन होथे
।नव दिन ले रात दिन मानस के पाठ होथे,दूरिहा दूरिहा गाँव ले मंडली आके मानस के पाठ करथे।नवधा मा एक ठिन गीत जेला अक्सर गाये जाथे मोला घात पसंद हे-

रच के तुलसीदास ने गंगा बहा दिया।
भवसागर से उतरने का नौका बना दिया ।।

 ये गीत हा मानस के महत्ता ला अउ जनमानस मा ओखर लोकप्रियता ला बतावत हे।

सावन महिना अंजोरी पाख साते के दिन सन् पंदरा सौ चउवन मा तुलसीदास के जनम राजापुर गाँव मा होय रहिस ।उँखर ददा के नाँव आत्माराम अउ दाई के नाँव हुलसी बाई रिहिस।कहे जाथे कि अपन सुवारी रत्नावली के उलाहना ले तुलसीदास ला ठेस लगीस अउ तुलसीदास घर दुवार छोड़ के प्रयाग,फेर काशी आगे।

कारी अंधियारी पानी बरसत रात मा यमुना नदी ला पार करके रत्नावली ले मिले बर आधा रात के ससुरार पहुंचे ले रत्नावली हा अपन स्वरचित दोहा मा कहे रहिन-

अस्थि चर्म मय देह यह,ता सो ऐसी प्रीति।
नेह जो होती राम से,तो काहे भव भीति।।

काशी ले तुलसीदास चित्रकूट आगे  ।चित्रकूट ले अवधपुर आके राम के किरपा ले रामचरित मानस के रचना करिन अउ राम नाम रूपी गंगा के धार बोहाइन जेमा आज घलौ जनमानस बुड़के के डुबकी लगाथे।।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य :एक विमर्श*

*छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य :एक विमर्श* 

      अइसे तो मँय कोनो समीक्षक अउ फिलिम मन के जानकार नोहँव,अउ न मोर पास छत्तीसगढ़ी फिलिम के इतिहास के कोनों पोठलगहा जानकारी हवै।तब ले *अधजल गगरी छलकत जाय* सरीख ए विषय म अपन बिचार लिखे के जोखिम उठात हँव।
      फिलिम अउ साहित्य के जुड़ाव(संबंध)ल जाने के पहिली फिलिम अउ साहित्य ल अलगे अलगे जानना घलुक जरूरी हे मानथँव।
*फिलिम मोर नजर म*
          बहुत पहिली लोगन मन अपन मनोरंजन खातिर पारा परोस म अउ गाँव म नाचा-पेखन अउ लीला मन के आयोजन करत रहिन।बेरा के बदलत नवा नवा उदीम आइन।खोज होइस।इही खोज ले एके ठन कार्यक्रम ल दसो जगा दिखावत कलाकार मन के कला ल फिलिम बना के एके संग सबो जगा पहुँचाय के उदीम करे गिस। इही उदीम फिलिम कहे गिस।लोगन अपन अपन खरचा ले देखे लगिन।चलन बाढ़े लगिस।पहिली बड़े शहर फेर छोटे शहर म सिनेमा घर खुल गे।गाँव गँवई म बिजली नइ पहुँचे ले एकर पहुँचे म देरी होइस।तब गाँव-गाँव म राम लीला कृष्ण लीला जइसे कतको पौराणिक लीला अउ नाचा पेखन चलै।नाचा पेखन अउ साँस्कृतिक कार्यक्रम म सामाजिक चेतना, लोकपरम्परा अउ रिवाज मन के दर्शन होय। समे के संग प्रहसन ले कलाकार मन सामाजिक बेवस्था ऊपर प्रहार घलुक करै।एखर आयोजन गाँव भर मिल के करै अउ खरचा के बेवस्था घलुक गाँव ले होय।आज इही ह फिलिम के रूप म देखे बर मिलथे।
    सार म कहन त फिलिम मनोरंजन बर बड़का उदीम आय।जउन ल मनोरंजन के संग सामाजिक चेतना, साँस्कृतिक विरासत अउ  समाज सुधारक पौराणिक अउ आधुनिक नायक महापुरुष मन के चरित्र चित्रण समाज के उत्थान बर बनाय जाय।
 
*साहित्य मोर नजर म*
        साहित्य कोनो देश-परदेश के रहवइया  लोकजीवन के रीति-रिवाज,परम्परा, वेशभूषा,सँस्कृति,लोक व्यवहार मन के मनोरंजन के रूप म लिखित रपट ह साहित्य आय।जेमा किस्सा-कहिनी, गीत अउ पुरखौती गोठ-बात (संस्मरण) होथे।जेमा अपन समय के समाज के दर्शन होथे।
       आधुनिक समय म साहित्य सामाजिक चेतना, लोक हित के संगेसंग आज के जम्मो परकार के विसंगति मन ऊपर लिखे जात हे।चाहे साहित्य गद्य होय ते पद्य।सबो चुनौती ले निपटे बर साहित्य लेखन सरलग होवत हे।
*फिलिम अउ साहित्य म जुड़ाव*
     ऊपर के बात ले साफ हे के फिलिम अउ साहित्य दूनो के क्षेत्र एके हवै। दूनो के मूल म समाज के उत्थान हे।
        पहिली के फिलिम मन ह पौराणिक कथा अउ उपन्यास मन ऊपर फिल्माय गे हे।आजो कतको फिलिम बनथे जउन आज के आने-आने क्षेत्र के नायक ऊपर बनथे।जउन ह समाज बर प्रेरक होथे।फेर गिनती के।गीत मन ह नवा फिलिम के आत ले दर्शक ल याद रहिथे तहाँ सबो भुला जथें।जुन्ना फिलिम के अधिकतर गीत साहित्य के गुन म खरा उतरथें।
       इही ढंग ले छत्तीसगढ़ी फिलिम मन म भी इही गोठ लागू होथे। छत्तीसगढ़ी के पहिली फिलिम *कहि देबे संदेश* अउ दूसर फिलिम *घर-द्वार*  जउन बहुते पसंद करे गिस।गीत आज भी लोगन ल याद हे।जउन मन बहुत पहिली के आय।गीत अउ कहिनी मिलके फिलिम पूरा होथे।जउन ढंग ले कबीर,तुलसी,मीरा,रहीम,सूरदास जी के रचना लोगन ल मुखाग्र याद हे या राहय।वइसने याद रहना उँखर साहित्यिक होना साबित करथे।
      छत्तीसगढ़ राज के बने के बाद जउन भी फिलिम आय हे मोर छइयाँ भुइयाँ के छोड़ कोनो ह अपन छाप नइ छोड़ पाइस। सबो फिलिम आइस अउ दू चार दिन म मनखे (दर्शक) मन के मन ले उतरगे।गीत कोनो ल गुनगुनावत न देखेंव न सुनेंव।भलुक लोगन छत्तीसगढ़ी के पारंपरिक अउ लोकगीत ल गुनगुनाथे।छत्तीसगढ़ी म एको फिलिम उपन्यास मन ले नइ बने हे।या फिर कोनो बड़े घटना या पौराणिक कथा मन ले बनाय नइ गे हे।भले हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य म उपन्यास के कमी होही पर अनुवाद कर फिलिम तो बनाय जा रहिस हे।ए ढंग ले हमर छत्तीसगढ़ी फिलिम मन म साहित्य के दर्शन नइ होय। अभी बहुत पाछू हवै अउ भविष्य ह घलो मोला उजास ले भरे नइ दिखत हे काबर के इहाँ के निर्माता मन म व्यावसायिकता ल आगू रखे  हे । जिंकर ले दर्शक मन के मन ल जीत नइ पावत हें।उँखर पसंद के फिलिम नइ आवत हे।दूसर बड़े समस्या इहाँ शासन तरफ ले कलाकार अउ निर्माता निर्देशक मन ल भरपूर प्रोत्साहन तको नइ मिल पावत हे।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार भाटापारछत्तीसगढ़

छतीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

*छतीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

 हिन्दी सिनेमा के आधार रंगमंच आय। रंगमंच के बहुत अकन कलाकार मन,हिन्दी सिनेमा मा उतरिन,त कला फिल्म देखे ला मिलिस।जौन बुद्धिजीवी दर्शक मन ला बहुत भाय।साहित्यिक कहानी उपर आधारित ये कला फिल्म मन ला तृप्त कर दे। जैसे बाजार, कथा, जाने भी दो यारो, उमराव जान, पार, अर्थ, चिरूथा आदि आदि।
क्षेत्रिय भाखा के जौन फिल्म हे चाहे वो मराठी होय के गुजराती पंजाबी। सफलता के कारण रंगमंचीय कलाकार आय। साहित्यिक कहानी अउ माटी ले जुड़े लोकगीत आय।

छतीसगढ़ी सिनेमा मा, मंचीय कलाकार के संगे संग छतीसगढ़ के लोककला, संस्कृति संवाद वातावरण कथावस्तु आदि जादा नजर नइ आय। मंचीय कलाकार मा भैयालाल हेड़ाउ, फिल्म सदगति( हिन्दी) अउ श्री शिवकुमार दीपक कहि देबे संदेश, घर द्वार, रहिन हे।  बाद के सिनेमा मा "मोर छइहाँ भुइयाँ" एक लम्बा  अंतराल मा राज बने के बाद आइस। बड़े पर्दा मा अपन बोली भाखा  अउ गीत, संवाद ला सुन के युवा मन पगला गे। महीनो हाउसफुल चले लागिस।
एखर बाद तो जइसे छतीसगढी सिनेमा के बाढ़ आगे। फेर साहित्यिक कहानी अउ गीत के नितांत अभाव। प्रेम चन्द्राकर जी के तीन फिल्म हिट होगे। गीत अउ कामेडी हिट होय के कारन ये। चन्द्राकर जी अपन तीनो फिल्म मा मंचीयकलाकार मन ला ले हे।

छतीसगढ़ी सिनेमा के जनम 1965 मा होइस। जेकर श्रेय श्री मनु नायक जी ला जाथे। अउ यहाँ तक भी कहे जाथे की कहि देबे संदेश अउ घर द्वार हर, छतीसगढ़ राज्य निर्माण के आधार बनिस। मनु नायक जी हर छतीसगढ़ी सिनेमा के भागीरथी आय।कहे मा अतिश्योक्ति नइ होही।
"कहि देबे संदेश" ले जब छतीसगढ़ी सिनेमा के शुरूवात होइस तब डाँ हनुमंत नायडू, रमाकांत बख्शी, मलय चक्रवर्ती मन पहिली छतीसगढ़ी सिनेमा के आधार स्तंभ बनिस।

गीत हर सिनेमा के मुख्य भाग आय। जब छतीसगढ़ी गीत मन ला भारतीय सिनेमा के सुर मिलिस,तब वो गीत पारस होगे। मोहम्मद रफी,महेन्द्र कपूर, सुमन कल्याणपुर जब छतीसगढ़ी गीत गाइन। तब सुनइया मन अवाक रहिगे। आज भी जेन मन ये गीत ला सुनथे। गीत के सुर मा आकंठ डूब जथे।

बाद मा कुछ अच्छा सिनेमा आइस फेर कहि देबे संदेश अउ घर द्वार कस मुकाम हासिल नइ कर पाइस। 

शशि साहू कोरबा

दूरदर्शी तुलसीदास-हीरा गुरुजी समय



दूरदर्शी तुलसीदास-हीरा गुरुजी समय

          रामचरित मानस के रचयिता रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास वाजिब मा दुरदर्शी मनखे रहिस।एक साहित्यकार के रुप मा ओखर रचित छंद महाकाव्य के एक एक शबद के मोल बर हीरा मोती हा कमती हो जाथय।छंद के एक एक शब्द ला छाँट निमार के अप्पड़ अउ ज्ञानी दूनो के गुने के लइक बनाइस।कोन छंद ला कते जगा बउरे जावय उही बखत मा बता दिन। ओखर एक कृति हा ओला देव रूप बना दिस। जौन बखत उँखर जनम होइस,पालन पोषण होइस, शिक्षा पाइन पाछू बर बिहाव होइस। आज चार- पाँच सौ बच्छर पाछू तुलसीदास के ओ बखत के दूरदर्शी बिचार फलित दिखत हे। 

         बाबा तुलसीदास जी अइसे तो रामचरित मानस मा सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग के संगे संग कलियुग के हाल के सुग्घर बखान करे हावय।कलयुग मा आगू आगू काय काय होही एला अपन दूरदर्शी बिचार मा लिख दिस। भले ओहा दूसर कल्प डहर अंगरी देखावत लिखिस फेर ओहा आज हमन ला देखेबर मिलत हे- जइसे 

"नर अरु नारी अधर्मरत सकल निगम प्रतिकूल" 

            माने कलियुग मा आदमी अउ नारी परानी अधरम करइया अऊ वेद मा बताय नीत के बिरोधी होही। आज मनखे विज्ञान के नाव लेके अंधविश्वासी होगे। दूरदर्शी तुलसीदास जी बताइन कि कलजुग मा धनवान ला धन के घमंड,बलवान ला बल के अउ गुनवान ला गुण के घमंड होही। सब धर्म के ग्रंथ मन लुका जाही अउ कतको अकन नवा नवा पंथ बन जाही। पढ़े लिखे गुनवान मन से भ्रष्टाचार बाढ़ही माने उही मन धन के हरण(शोषण) करहीं।धरम के रद्दा देखाइया मन खुदे रद्दा भटक जाही। साधू संत घर अउ मंदिर मा धन भरे रही अउ गृहस्थ हा गरीब रही।

         आज तलाक, बहुविवाह, लिव इन रिलेशन सिप, के जौन गोठ बात करथन ओला तुलसीदास हा उही बखत कहि दे रहिस।"भजहिं नारी पर पुरुष अभागी"। वइसने आदमी हा नारी के बस मा रही।" नारी बिबश नर सकल गोसाई"। आदमी मन ससुरार के बस मा हो जाही। अइसे तो नारी मन बर धरम, मर्यादा के अबड़ अकन गोठ लिखे हवय फेर सबो ला इहा फरियाय नइ सकव। गुरु चेला बर कहिन कि गुरु मन चेला के धन ला हरण करही, अउ चेला मन गुरु के बातेच ला नइ सुनही।आज सँउहत  उही हा दिखत हे।ईर्ष्या द्वेष, लालच, कामना, पाखंडीपन, जिद्दीपन के संख्या बाढ़ही।

            कवि साहित्य कार तो बहुत होहीं फेर उँखर मानगउन करइया, समझइया, आसरा देवइया नइ मिलय।लबरा अउ बतंगड़ ला गुनवान समझे जाही जाही। जे अपन आप ला दूसर ले आगर बताही ओखरे पूजा होही। अउ कतको बात लिखे हावय जेला आज हमन सँउहत देखत सुनत हन। भूत , वर्तमान अउ भविष्य के दूरदर्शी बिचार ला अपन छंदबद्ध रचना रामचरित मानस मा लिख के बाबा तुलसीदास हा देव रुप मा अमर होके सीख देवत हे।


हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद 

मानवतावादी संत गोस्वामी तुलसीदास जी-मोहन निषाद

गोस्वामी तुलसी दास जी मन ला उनकर जयंती परब मा सादर शत् शत् नमन  .

     मानवतावादी संत गोस्वामी तुलसीदास जी-मोहन निषाद

आज परम् पूज्य संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास जी मन ला कोन नइ जानत हे , जउन मन रामायण जइसन महाकाव्य ले रामचरित मानस जइसन महाकाव्य के रचना करिन हे । आज गोस्वामी जी मन जन मानस मा अमर हावय । गोस्वामी तुलसी दास जी मन के जिनगी के जुड़े अब्बड़ अकन गोठ बात हमन ला पढ़े अउ सुने बर मिलथे ।  कइसे गोस्वामी जी मन हर अपन गृहस्थ जीवन ले बैराग्य लेके सन्यासी बनीन , अउ भगवान श्री राम जी मन के गाथा ला गाँवत । महर्षि वाल्मीकि जी मन के रचित महाकाव्य रामायण , जउन हर संस्कृत भाखा मा रहिस हे ओला ब्रज अउ अवधि भाखा मा पहिली बेर गोस्वामी तुलसी दास जी मन हर लिखिन , जउन महाकाव्य हर आज हमर मन के बीच मा रामचरित मानस के नाँव ले विख्यात हे ।

आज गोसाइ तुलसी दास जी मन हमर मानव जाति संग हमर साहित्य अउ समाज ला घलव अइसन अनमोल रचना ला देके अपन संग धन्य करिन हे । गोस्वामी तुलसी दास जी मन हर अपन परिवार ले वैराग्य लेय के बाद भगवान के भक्ति मा अइसे मगन होइन हे , ओमन तो बस अब भगवान राम के नाम ला ही अपन जिनगी के आधार बना ले रहिन हे । ओमन अपन मानस रचना मा एक जघा कहे घलव हावय -: तुलसी केवल नाम आधारा । सुमरि सुमरि नर उतरै पारा ।। गोस्वामी तुलसीदास जी मन हर अपन पूरा जिनगी ला भगवान के चरण मा अर्पण कर दे रहिन हे । ओमन अपन रामचरित मानस के माध्यम ले लोगन मन ला अइसन अइसन अउ सुग्घर सुग्घर सन्देश देवत रहिन हे । जिंकर मन के कतकोन दोहा अउ चौपाई मन हर आज ले घलव लोगन मन के अन्तस् मा रच बस के रहिथे । गोसाइ तुलसी दास जी मन हर ओ पहिली अइसन मानस रचनाकार रहिन जउन मन कहिन : - परहित सरिस धर्म नही भाई । परपीड़ा सम नही अधमाई ।।

 गोसाइ तुलसी दास जी मन के जिनगी ले जुड़े एक ठन अउ अइसने कथा हमन ला सुने बर मिलथे कहे जाथे :- चित्रकूट के घाट में , है संतन की भीड़ । तुलसी दास चंदन घसे , तिलक देत रघुबीर ।। कहिथे भगवान मर्यादा पुर्षोत्तम श्री रामचन्द्र जी मन हर खुदे गोसाइ जी मन ला दर्शन दे रहिन हे कहिके । गोसाइ जी मन रामचरित मानस के संगे संग हमर समाज ला विनय पत्रिका , दोहावली , गीतावली अउ कवितावली जइसन कइ ठन काव्य रचना मन ला घलव दिन हवै । गोस्वामी तुलसी दास जी मन ला ये युग मा महर्षि वाल्मीकि जी मन के अवतार घलव कहे गे हावय । अइसन कइ ठन मानक पद अउ उपाधि मन ले गोसाइ जी मन ला विभूषित करे गीन हे । गोस्वामी तुलसी दास जी मन हर अइसन ओ पहिली कवि रहिन जउन मन हमर साहित्य के गौरव ला अउ भगवान श्री राम जी के कथा अउ यशगान ला हमर पूरा देश दुनिया संग ये संसार भर मा बगराइन हे ।

 गोसाइ जी मन के जउन व्यक्तित्व रहिन हे ओ हर उनकर रचना मन मा घलव देखे बर मिलथे गोसाइ जी मन कहँत रहिन : - कवि नही मैं चतुर कहाँउ , मतिअनुसार राम गुन गाउँ ।। गोसाइ जी मन के मन मा कभू भी अहम के भाव नइ आइस । गोस्वामी जी मन के कहना रहिस जिनगी मा संगत के असर अब्बड़ पड़थे काबर उनकर मन के कहना रहिस - : बिनु सत्संग विवेक ना होइ , राम कृपा बिना सुलभ ना सोई । अइसन कइ किसम के कथा अउ गोठ बात मन हर गोसाइ जी मन के जिनगी ले जुड़े हावय , जउन मन अगाध हे । उनकर मन के बारे मा जतेक चर्चा अउ परिचर्चा करे जावय कम पड़थे , गोस्वामी तुलसी दास जी मन हर , आज अपन जम्मो कृति काव्य महाकाव्य जइसन रचना मन के सेती ही ये संसार के संगे संग हमर साहित्य मा घलव अजर - अमर हावय अउ सबो दिन रही । आज उनकर जयंती परब मा उनला सादर काव्यंजलि शत् शत् नमन करत अउ प्रणाम हँव ।

           *मयारू मोहन कुमार निषाद*
            *गाँव - लमती , भाटापारा ,*
          *जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*

Friday 24 July 2020

महाकाव्य, खंडकाव्य कइसे होना चाही*

*महाकाव्य, खंडकाव्य कइसे होना चाही*

वरिष्ठ मन महाकाव्य, खण्ड काव्य के परिभाषा अउ लक्षण ला बने असन जानथें। इहाँ कुछ नवा रचनाकार मन घलो जुड़े हें उँकर जानकारी बर……...

*महाकाव्य*

अइसन बड़का(दीर्घ) प्रबन्ध ला महाकाव्य कहे जाथे जेमा उत्कृष्ट गुण-सम्पन्न कोनो नायक के घटना-प्रधान अखंड जीवन चरित केविस्तृत वर्णन होथे। काव्यादर्श (दण्डी) अउ काव्यालंकार (रुद्रट) मा वर्णित महाकाव्य के 6 ठन मुख्य लक्षण बताए गेहे - 

(1) महाकाव्य के नायक कोनो देउँता या कोनो सम्राट या कोनो उत्तम गुण-सम्पन्न मनखे हो।

(2) कथानक, इतिहास या लोक मा प्रसिद्ध हो।

(3) वीर, श्रृंगार या शान्त रस गौण हो।

(4) मँझोला आकार के आठ ले ज्यादा सर्ग हो। एक सर्ग, एके छन्द मा रचे गए हो फिर सर्ग के आखिरी मा आने छन्द के धत्ता हो अउ अगला सर्ग के कथानक बर संकेत हो।
(5) सौंदर्य बढ़ाये बर प्रसंग अनुसार प्राकृतिक दृश्य अउ युद्ध जइसन विषय के वर्णन हो।

(6) महाकाव्य के मुख्य उद्देश्य : न्याय, धरम के जीत अउ अन्याय अधरम के नाश हो।

*खण्ड-काव्य*

महाकाव्य के कोनो हिस्सा ला खण्ड काव्य नइ कहे जाय। महाकाव्य मा नायक के जम्मो जिनगी के कई किसम के रूप के चित्रण होथे फेर खंडकाव्य मा ओकर जिनगी के कोनो एक हिस्सा के चित्रण होथे अउ ये चित्रण अपनआप मा पूर्ण होथे।

*उपजीव्य काव्य*

अइसन बहुत बड़े (विशाल) व्यापक प्रभाव-सम्पन्न मर्मस्पर्शी महाकाव्य ला उपजीव्य काव्य कहे जाथे जेकर ले प्रेरणा, भाव, कथा-वस्तु लेके बाद के पीढ़ी के कवि मन अपन काव्य के रचना करथें। रामायण, महाभारत अउ श्रीमद् भागवत अइसने उपजीव्य काव्य आँय। 

*धत्ता*

बड़े काव्य के रचना मा कवि अपन पसंद के या विषय अनुरूप भाव उजागर करे बर उपयुक्त छन्द के प्रयोग करथें। सर्ग लंबा रहे के कारण एक्के किसम के छन्द सुने/पढ़े मा नीरसता झन आ जाए तेपाय के बीच बीच मा आने छन्द डारे जाथे। रस परिवर्तन बर आने छन्द के प्रयोग करई ला धत्ता देना कहे जाथे। रामचरित मानस मा गोस्वामी तुलसीदास जी चौपाई के संग दोहा या सोरठा के धत्ता देइन हें। 

*कड़वक*

धत्ता अउ मुख्य छन्द के गुच्छा ला कड़वक कहे जाथे।

*अरुण कुमार निगम*

हम तो लिखबो -सरला शर्मा

हम तो लिखबो -सरला शर्मा
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   स्वागत हे संगवारी मन ! जरूर लिखव ...महूं तो लिखते च हंव । हमर देश मं अपन विचार ल अभिव्यक्त करे के आज़ादी तो सबो झन ल  मिले हे ..ये जरूर हे के अभिव्यक्ति के तरीका अलग अलग होथे फेर साहित्यकार के अधार तो कलम हर आय सुरता राखे के बात एहु हर तो आय के साहित्यकार के अपन जिनगी के सुख - दुख भी तो होथे जेकर प्रभाव ओकर लेखन ऊपर परबे करही । तभो मन मं राखे बर परही के एक झन के आज़ादी कहूं दूसर के गुलामी झन बन जावय एकर बर ध्यान देहे के जरूरत हे कि रचना के प्रकाश परिधि माने सोच के सीमाना अतका बड़े रहय के साहित्यकार के निजी जिनगी ओमा लुकाये रहि सकय । दूसर बात मत , विचार , चिंतन , मनन ल लिखे के बेर लेखन शैली ऊपर चिटिकुन ध्यान देहे बर परही नहीं त कलात्मकता के बिना सीधा सपाट लेखन हर अपन सोला आना सच्चाई के रहते भी कोनहा - कतरा मं  ढकेल देहे जाही ...अंधऱा ल घलो तो नैनसुख कहे के रिवाज हे ...। 
  एक पक्ष अउ हे सीधा सपाट कहे के चक्कर मं पर के निजी जिनगी के  कथा - बिथा लिख के थोरिक बेर बर सहानुभूति मिली जाही ..या बड़ाई मिल जाही , चार झन वाह ..वाह कहि के ताली च बजा देहीं तेकर बाद सबो झन भुला जाहीं काबर के अइसन घटना तो सबो के जिनगी मं थोर बहुत घट बढ़ के घटते रहिथे । साहित्यकार के कलम जब देश , राज , समाज , संसार के सुख दुख के बिथा - पीरा , जय -  पराजय के गाथा लिखथे तब साहित्य -  संसार मं जघा बनाये सकथे । वाल्मीकि ऋषि हर अपन नहीं क्रौंची के रोवाई ल अधार बना के पहिली श्लोक लिखे रहिस ,  अउ बहुत अकन उदाहरण हे आप सबो झन जानथव ...। 
   थोरकुन अलगे रस्ता ल भी देख लेतेन का ? लिखत तो हन  फेर थोरकिन बिलम के आने मन काय लिखे हें , काय लिखत हें एहू  डहर एक नज़र डार लेबो त हमर लेखन हर जगर -  मगर हो जाही काबर के आने मन के सोच विचार के लाभ मिलही , सर्वज्ञानी तो हम नई हन , पढ़ लेन न ..पेट परे गुने करही बड़का फायदा होही के " मैं " ले उबरे सकबो ।

संस्मरण* बेटा के ननपन

*संस्मरण*
       बेटा के ननपन

 ननपन कहाँ लहुट के आथे? फेर ननपन के सुरता हर मन के झिरी ले घेरी बेरी झाँकत रथे। बात तब के आय, जब हमर बेटा सृजन हर 8 बछर के रिहिस होही। बेट अउ मँय दुरूग ले कोरबा आवत रहन।फेर गाड़ी बिलासपुर तक रिहिसे। उहाँ से हमन ला कोरबा बर गाड़ी बदलना रिहिसे। जेखर समय 3 बजे रिहिसे। समान जादा रहय।मोर महतारी के समान जोरइ  ला का कहिबे। बरी जिमीकांदा अथान बाँटल मे मही।रद्दा बर आलू सोहारी के जेंवन। लदे फँदे,हालत डोलत बिलासपुर मा उतरेन। भीड़ बहुत रहय,पता करेन कोरबा वाले गाड़ी कोन से प्लेटफार्म मे आथे। पता चलिस हमन ला सीढ़ी चढ़ के ओ पार जाय ला परही। मँय भारी बैग ला धरेवँ अउ सृजन ला हल्का समान पकड़ा देव। धीरे धीरे भीड़ के संगे संग आघू बढ़त गेन। सबो सीढ़ी ला चढ़ के उपर पहुँचेन, तइसने मे सृजन हर सब समान ला छोड़ के धड़धड़ा के सीढ़ी उतरत खाल्हे चल दिस।

मँय कंउवा गेंव।चिल्लायेव--- बेटा कहाँ जा रहा है। वापस आ-- समान ला छोड़ के ओखर पीछू भागत नइ बनिस। का देखथँव सृजन हर एक झन टूरी करा गिस ।ओ टूरी हर एक कोती भाई ला पाय रहय, एक हाथ मे अपन बहिनी ला धरे रेंगत रहे। सृजन हर वो टूरी करा गिस -गिस  अउ अपन मुड़ी ला वोकर मुड़ी मा टेका के ठिकी मारिस, अउ लहुट हे।बपरी टूरी हर बछरू हकाले कस हे हे करत गुस्सा करत रहिगे। तीर में अइस टूरा ह त घुड़केव।कहाँ गया था? "चलो बताता हूँ" कहत समान ला धर के अगुवा गे।
गाड़ी आय मा बेर रिहिसे ।प्लेटफार्म के कुर्सी मा समान ला रखेन अउ हाथ मुहुँ धो के, महतारी बेटा खाय के तियारी करेन। खात खात बेटा के माथ मा बगरे चूँदी ला पीछू करत पूछेव।" मेरे को छोड़ के कहाँ गया था बेटा,अगर तू गुम जाता तो मै अकेली क्या करती"  वोकर मासूम उत्तर हर आज घलो मन ला गुदगुदाथे।
वो बताइस " मै समान ले के चल रहा था ना तो उस लड़की का सिर मेरे सिर से टकरा गया, अगर मै  अपने सिर को उसके सिर से डबल नही टकराता ना, तो मुझे काला कुत्ता काट देता" 
 मँय केहेव - - तो तू डबल ठिकी मारने गया था। उसने कहाँ - हाँ--। 

भरम भूत के पाठ ला वो हर स्कूल मा संगवारी मन सन पढे़। तभे तो एक घव अपन टूटे दाँत ला तकिया के नीचे रख के सुते लगिस। पूछेव त कथे"देखना मम्मी सुबह तक डबल हो जायेगा"। 

ननपन ले बहुत चंचल अउ जिज्ञासु मोर सृजन हर 22 बछर के होगे हे। फेर वोकर भरम भूत के बात ला बता के आजो हमन बहुत मजा लेथन। 

शशि साहू

आज लाचार हे बेटी (चिंतन)*

*आज लाचार हे बेटी (चिंतन)*

बेटी बहू मन ला आज हमर समाज मा , लक्ष्मी के रूप कहे जाथे । अउ आज हमर समाज मा जतेक हकदार बेटा मन हावय , कोन्हों चीज के ओतके हकदार बेटी मन घलव हावय । फेर कहिथे ना बेटी मन हर तो पराया धन होथे , ओमन ला तो एक दिन अपन ससुराल जाएँ ला पड़थे । ये हर तो दुनिया के रीत हे , अउ इही हर सबो दिन चलत आवत हे । की बेटी मन ला तो एक ना एक दिन अपन माई मइके ला , छोड़ के ससुराल जाएँच ला पड़थे । पहिली हमर समाज मा शिक्षा के बहुते कमी रहिस , तेपाय के ओ समे के लोगन मन के अपन सोच अउ समझ । मन हर घलव छोटे - छोटे राहत रहिस ,  अउ लोगन मन हर ओ समे बेटी अउ बेटा मा अंतर  (भेद) करत रहिन हे । फेर आज तो हम सबो झन पढ़े लिखे , अउ शिक्षित संग जागरूक समाज के बीच मा रहिथन । जिहा आज बेटी अउ बेटा दुनो झन ला बराबर के अधिकार हवै , आज हमन हर कहिथन की अब नारी मन हर अबला नइ रहिगे हे सबला होंगे हावय । फेर कहाँ तक ? आज हम भले कहाथन , की बेटी मन के अब्बड़ सुनइ हे कहिके । अउ आज बेटी मन हर घलव सबो जिनिस मा सबो क्षेत्र मा बेटा मन संग खाँध मा खाँध मिलाके चलत हवै कहिके । फेर हमर समाज मा आज ले घलव छोटे अउ गंदा सोच के , कुछ अइसन लोगन मन हर हावय । जउन मन आज ले उही सब जुन्ना रीत रिवाज , अउ अपन सब जुन्ना गोठ बात मन ला धरके बइठे हावय । अउ आज अइसन लोगन मन के चलते ही , समाज के हर घर मा ,  आज ले घलव दहेज के झगड़ा , बेटी मन के भ्रूण के हत्या । अउ अइसन कइ प्रकार के परिवार मा रोज के झगड़ा झंझट मन सब होवत रहिथे ।
आज समे के संगे संग सबो जिनिस मन हर बदलगे हवै , फेर ओइसन सोच वाले लोगन मन हर कभू नइ बदलीन ।
आज अइसन कतकोन घटना मन के , बारे मा हमला  रोजे पढ़े अउ सुने बर मिलत रहिथे । अइसे एको दिन नइ बीतत होही , जउन दिन अइसन कोनो घटना के बारे मा हम नइ पढ़त अउ सुनत होबो । आज अतका जागरूक अउ शिक्षित समाज होय के बाद भी , हमन हर आज हमर बेटी मन के संग होवत अत्याचार मन ला नइ रोक सकत हन । येहर हम सबो झीन बर बड़ सोचे वाला बात ये , आज कतकोन पढ़े लिखे अउ अनपढ़ बेटी मन हर सब , अपन ससुराल जाके कतकोन परशानी मन ला झेलत सहत रहिथे । ता उही कतकोन बेटी मन ला दहेज के लालच मा , दहेज के लोभी लोगन मन हर दहेज के भेट चढ़ा देवत हवै , ता कतकोन बेटी मन हर रोज - रोज मारत ताना लड़ई झगड़ा अउ मारपीट ले तंग आके खुदे अपन आत्महत्या कर लेवत हावय । जउन सब गोठ बात मन हर आज हमर समाज बर ,  बड़का भारी समस्या बनत जावत हवै । आज हमन हर भले कहिथन बेटी के मइके अउ ससुराल दू ठन घर होथे कहिके , फेर आज कल ये बात हर घलव बस कहे भर के होंगे हावय । बेटी जब बिहाव करके बिदा होके अपन मइके ले ससुराल मा जाथे , ता मइके वाला मन हर सब सुसिन्त्र हो जथे । की बेटी अपन ससुराल गय हमर मन के मुड़ मा बोझा उतरगे कहिके , अउ ओमन हर सब हरहिंसा होके अपन बेटी के सुध ल ले बर भुला जथे । अब बेटी हर नवाँ नवाँ अपन ससुराल मा आय आथे , ता का ओला सुख मिलथे अउ का दुख मिलथे ।  बेटी मन हर अपन ससुराल वाले मन के , जम्मो अत्याचार मन ला चुपे चाप सहत रही जाथे , फेर एको कनीक ।  काही बात ला अउ अपन दुख तकलीफ मन ला । अपन मइके वाले मन ला नइ बतावय , काबर दाई ददा अउ भइया मन ला मोर खातिर परशानी झन होवय कहिके । अउ उही बेटी हर आज अपन माई मइके मा कहूँ अपन भउजी मन ला दू शब्द का कहि देथे । भउजी मन के तो अन्तस् मा आगी लग जथे । अउ ओइसन भउजी मन हर घर परिवार ला घलव तोड़ देथे । का बेटी मन के अपन माई मइके मा कोनो हक नइ राहय का , आज ससुराल वाले मन ले रोज के दुख अउ तकलीफ ला झेलत सहत । एक झन बेटी के आखरी आसरा अपन मइके हर ही होथे , अउ कहूँ मइके वाले मन हर घलव बेटी संग अइसने कर के अपन मुंह  ला फेर लेही । ता का बेटी मन के अपन कोनो घर नइ होवय का । सिरतोन मा आज हमर बेटी मन के ये दयनीय हाल हा ,  हमर समाज बर बड़ चिंता के विषय बनगे हावय । अउ ये सब गोठ बात मन ला देखे जावय ता हमर समाज मा , बेटी अउ बहू दुनो झन मन । आज अब्बड़ लाचार दिखत हावय , जउन मन हर न तो अपन मइके के होवत हे अउ ना ससुराल के ।  

          मयारू मोहन कुमार निषाद 
            गाँव - लमती , भाटापारा , 
       जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

सबके भला करय

सबके भला करय
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सूत के उठे नइ रहेंव। बड़े बिहिनिया ले राम राम के बेरा म खोर के कपाट के संकरी ल बाजत सुनके कपाट ल खोलेंव त उहाँ मुहल्ला के छाँटे चार झन झगराहा मन खड़े राहयँ। ओ मन ल बरवँट के बाजवट म बइठे ल कहिके घर कोती चाय बनाये कहे बर चल देंव। तहाँ ले उँकर सो बइठ के पूछेंव-- ले बतावव भाई हो कइसे आये हव ते? एक झन कहिच --कुछु नहीं तोला बलाये ल आये हन। संग म जाही कहिके। हमर मुहल्ला म  चार पाँच दिन होगे हे एक झन आन देश के मनखे आये हे अउ किराया लेके राहत हे। ओला इहाँ ले भगाना हे।अइसने मन धीरे धीरे चोरी चकारी, गुंडा गर्दी करथें अउ माहौल ल खराब करथें। मैं मने मन कहेंव--गुंडा गर्दी अउ झगरा लड़ाई करके इही मन माहौल खराब करथें अउ बड़ सिधवा सहीं गोठियावत हें। फेर मुँह म नइ कहि सकेंव। बात ल आगू बढ़ावत पूछेंव --वो कोन ए, काय करथे ? इंग्लैंड ,चीन, अमेरिका ,पाकिस्तान या कोन आन देश ले आये हे? ओमा के एक झन थोकुन गुसियावत कहिच-- तहूँ टेंचरही गोठियाथच जी। ओहा अमेरिका ,चीन ले नइ बिहार ले आये हे। बिहारी लाल नाम हे।संग म तीन झन बच्चा अउ ओकर महिला हे।टिगड्डा म गुपचुप के ठेला लगाथे। हमला ओला इहाँ नइ राहन देना हे। संग म जाबे धन नहीं तेला बता ?
मैं कहेंव भाई हो काबर नइ जाहूँ ग। फेर थोकुन सोंचव--ओहा कोनो आन देश के नोहय ।हमरे भारत महतारी के बेटा ए। भले बिहार म पैदा होये हे। हमर देश के कानून के अनुसार कोनो भी कहूँ जाके अपन जिनगी ल मेहनत मजदूरी करके जी सकथे। तभे तो हम छत्तीसगढ़िया मन घलो दिल्ली ,बाम्बे ,कलकत्ता ,कश्मीर अउ नइ जाने कहाँ कहाँ जाके मेहनत ,मजदूरी ,नौकरी चाकरी करथन। ओमन हमन ल अइसने भगाही त बतावव का होही? एक झन के दुखती रग म हाथ रखत कहेंव--कइसे ग मोहन, तोरो भइया ह चार साल होगे पुणे म कमावत खावत ।ओला के पइत उहाँ के मनखे मन बाहिरि अच कहिके भगाये हे? अतका ल सुनके सब झन मूँड़ ल खजवाये ल धरलिन।मोहन के मुँह सिलागे। सबो कोई खुसुर फुसुर गोठियाके एक सुर म कहिन --ले त तैं काहत हच त ओला अभी राहन देथन। फेर कुछु गड़बड़ी करही त तोर जिम्मेदारी रइही। मैं कहेंव मोरे भर काबर सबो के जिम्मेदारी रइही। गड़बड़ी करही ,गुंडा गर्दी करही त थाना जाके शिकायत करबोअउ ओला इहाँ ले बाहिर कर देबो।
अतका म लाल चाय बनके आगे।चाय पीइन तहाँ ले गोड़ हाथ पटकत चल दिन।
          ओ बेचारा बिहारी लाल अच्छा आदमी रहिसे। अपन काम ले काम रखय।सब संग हिलमिल के राहय। उनला चारे महीना होये रहिसे राहत । कोरोना के सेती पूरा देश म लाकडाउन लगगे ।काम बूता , दुकान पानी ,आना जाना टोटल बंद होगे। लाकडाउन लगे उही पन्द्रा, बीस दिन होये रहिच होही ।एक दिन बिहारी लाल आइच अउ हाथ जोर के कहिच--भैया जी बहुत तकलीफ हे। मोर ठेला ल ले लेते या कोनो ल लेये ल कहि देते। मैं पूछेंव--का होगे बिहारी लाल?
का बताववँ भइया ।जेब में फूटी कउड़ी अउ घर मे एक दाना नइये। बच्चा मन दू दिन ले भूँखन मरत हें।अइसे कहिके ओहा मोर गोड़ ल धरलिच।सुनके मोर आँसू टपकगे । ओला धीर धराके बइठारेवँ अउ कहेंव--तैं चिंता मत कर भगवान सब ठीक करही। नोनी के दाई ल  बलाके सबले पहिली ओकर घर चाउँर दार भेजवायेंव ।थोकुन पाछू बिहारी लाल ल कहेंव --ले अभी तैं घर जा ।चिंता झन कर, मैँ साँझ के तोर घर आहूँ। ओ चल दिच तहाँ ले मैं ह उही चार झन ल खोजे ल चल देंव जेन मन एक दिन बिहारी लाल ल निकाले बर आये रहिन हें। एक झन सियान के मुँह ले सुने रहेंव--जेन मन ल हम बदमाश समझथन ,कभू कभू ओ मन बहुत अच्छा अच्छा काम ल करके देखा देथें। फेर छत्तीसगढ़िया आदमी कतको पथरा रइही, जल्दी पिघल जथे।
ओमन चौंक म बइठे मिलगे। सरी बात ल बतावत कहेंव--ओ बिहारी के लइका मन भूख मरत हें। अलहन हो जही। कुछु दया करव। ओमन कहिच--फिकर मत कर भइया, हमन सब व्यवस्था कर देबो। चल हमर संग। देखते देखत चंदा म बहुत कस दार चाउँर,नून तेल, साग भाजी अउ तीन हजार रुपिया सकलागे। सब ल सकेल के उही मन बिहारी लाल  करा दे बर गेइन। ओ बेचारा ह झोंकत नइ रहिसे। लटपट म समान मन ल रखिच।
               समे बीते ल धरलिच । अभी कुछ दिन पहिली सरकार ह रेल अउ बस म प्रवासी मन ल ऊँकर पैदायसी गाँव म भेजे के व्यवस्था करे हे। बिहारी लाल ह घलो जात हे। मुहल्ला के मन सकलाय हन। कोनो ओकर लइका मन ल रस्ता बर रोटी पीठा देवत हे त कोनो पइसा धरावत हे। बिहारी लाल सब ला जय जोहार करत हे। ओकर आँखी छलछलाये हे। मंगलू अउ ओकर साथी मन बस म समान ल चढ़ावत हें। एक झन ह बिहारी लाल के मोबाइल ल रिचार्ज करवा के लाये हे। बिहारी लाल ह अपन ठेला ल एक झन गरीब ल दान कर दे हाबय।
   पाँच दिन पाछू फोन करेन त पता चलिच वो ह हली भली अपन गाँव घर पहुँचगे हावय।
इही असली इंसानियत ए। मनखे के हिरदे म बइठे भगवान जागय अउ सबके भला करय।

चोवा राम 'बादल '
हथबन्द, छत्तीसगढ़

विधा- एकांकी

विधा- एकांकी(नानकुन उदीम,पहिली घाँव)

बेटी बर सीख

पात्र- 
मोनी- 14 बच्छर के नोनी
कमला- मोनी के महतारी
समारीन- मोनी के ककादाई

*परदा उठथे*

(बिहनिया के 7:30 बजे के बेरा, सुत उठ के मोनी मोबाइल धर के खेलत दुवार मा बइठे हे, कमला दुवार बुहारत हे)

समारीन -(भीतरी ले खटिया में सुते सुते हुँत करावत) कोनों एक गिलास मा पानी देवव ओ...! दवई खाहूँ....!

कमला- मोनी! जा तो ओ, तोर ककादाई ला एक गिलास पानी दे दे।
मोनी -( चुप ,मोबाइल मा खेलत रहिथे )

(थोकिन देर पाछू )

समारीन - अरे कोनों सुनत हव वो...। एक गिलास पानी देवव...! दवई खाहूँ....!

कमला- अरे जा ना ओ!  फेंक तोर मोबाइल ला, मराइया मर जाही फेर तुहंर मोबाइल.....

मोनी - मय नइ जावँव,तहीं हा दे दे।डोकरी हा दिन भर बोरोर बोरोर चिचियात रथय।

कमला - (खिसियावत )अतका बड़ बाढ़गे हस, एक गिलास पानी देय लइक नाइ हस।कतका बेरा होगे सियानिन ला पानी मांगत।

(खुद पानी ला के देइस)

समारीन - ( पानी पियत कमला ला बोलत) अरे तोर बेटी बाढ़गे हे ओ, घर के थोकिन घर के बूता ला करे बल सीखो, नइते तुही ला सुनेबर परही।

कमला -  कइसे करँव नइच मानय ता ? अरदली हो गे हे।

समारीन - कुछु तो करेबर परही लइका ला सुधारे बर।सुन ...( कमला के कान मा कुछु कहिथे)

(कमला बाहिर आ के )

कमला - मोनी ! जा जल्दी नहा ले ओ , नल बंद हो जाही। मँय  रोटी साग बनावत हँव।नहा के खा लेबे।

मोनी- हव।(मोबाइल खेलत भीतरी डहर नहानी कुरिया मा गइस)

(कमला रँधनी कुरिया मा जाके रोटी अउ साग बना के मोनी बर अलग से निकाल दिस,ओखर कटोरी के साग मा दू चम्मच आगर पिसाय मिर्चा ला डार दिस )

मोनी - (नहाय के पाछू ) दाई मँय नहा डारेंव। रोटी दे दे । मोबाइल ला एक हाथ मा धरके निकलिस।

कमला -  रंधनी कुरिया मा तोर बर रोटी अउ कटोरी मा साग निकाल दे हँव। लान के खा ले। मँय नहाय बर जावत हँव।

( डेरी हाथ मा मोबाइल ला धरके देखत अउ जेवनी हाथ मा रोटी संग साग ला धरके पहिली काँवरा मुँह मा लेगते साट)

मोनी - ए दई ओ! हाय मिर्चा ! साग हा अब्बड़ चुरपुर हे। दाई पानी! एक गिलास पानी !

(कपाट के ओधा ले देखत, सुनत )

कमला - पानी नइ निकाले का ओ! तहीं ले जा बेटी मँय तोर ओन्हा ला धोवत हँव। नइते          मोबाइल ले निकाल के पी ले।

मोनी - (जोर जोर सेचिल्लावत) ये दाई ओ ! ए ककादाई, मर गेंव ओ। साग मा अबड़ मिर्चा। हाय ! हाय! पानी...! पानी... ! दाई पानी दे ओ।एक गिलास पानी जल्दी....। दाई....!

कमला - (हाँसत अउ गिलास मा पानी देवत) पानी ला निकाल के नइ बइठतेच ओ।

(मोबाइल ला फेंकत दूनो हाथ मा गिलास धरके एकसस्सी पानी पियत)

मोनी - हाय ! साग मा अतेक मिर्चा काबर डारे हस।मुँहू हा जरगे।आँसू निकलगे।

कमला - (हाँसत हाँसत) अब समझ मा अइस ओ , कोनों ला पानी नइ मिलय ता कइसे परान छुटे बरोबर लागथे।तोर ककादाई हा बिहाने पानी माँगत रहिस ता तँय मोबाइल खेलत रहे।

मोनी - अब समझगेव दाई।ककादाई ला अब ले कभू  नइ तरसावँव।जौन जिनिस माँगही लघियाँत दे देहँव।

( कमला हाँसत हाँसत कटोरी के साग ला धरके नहायबर चल दिस)
*परदा गिरथे*

हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद 

सुख के नवा बिहान

सुख के नवा बिहान

कहे जाथे खेती अपन सेती। ये बात हा सोला आना सच हे। फेर कर्जा मा लदे किसान ,फसल के पाँच दाना ल अपन ळ्हे मा  थरमरा जथे। आज के बदलत मौसम अउ नवा नवा बिमारी  किसानी बूता ला कोनो युद्ध ले कमती नई बनाये हे। उन्नत तकनिक  अउ सही दवा के उपयोग । बहुते लाभ कारी होथे।
      कोन जनी कते कन कर्जा उठाये रहिस  बिसेसर ह पुरखा के सब खेती लागा छूटई मा सिरागे रधिया बताथे के साहूकार हा कई बार पैसा लेये के बाद भी पैसा नई देये  के आरोप लगाथे।साहूकार दूनो बाप बेटा चतुरा हे।ओसरी पारी   लेन देन के गद्दी मा बइठथे पैसा लेलेथे फेर कर्जा काटै नही। आज बिसेसर रधिया अउ  बेटा रतन  कर्जा पटाये ल गेहे ।साहूकार अमीर चंद बतावत हे के तोर कर्जा  तीन साल होगे नई पटे हे ,बिसेसर कथे दाउ जी पीछू साल धान अउ चना सब ल बेंच के पटाये रहेव आपके बेटा गुलाब चंद जी ह पैसा ले २हीस ।कतेकन  हजार भर के पूरता अउ बाँचे हे बताये रहिस। नही बिसेसर ये खाता मा  आपके लागा नई कटे हे अउ जमा तक नई लिखाय हे ।तै हमन ला बईमान बनावत हस। बिसेसर ळ्सम किरीया खाये लगिस ।साहुकार जोर जबरदस्ती कर के स्टाम मा अंगूठा लगवा गाँस गाँसा नाट  के पाँच एकड़ खेत ल अपन नाम करवा लेथे।  ले अब कर्जा कटगे कहीके बही खाता मा कर्जा ल काट देथे।
पुरखा ळे पाँच एकड़ खेत के हाथ ले जाना बिसेसर के आत्मा कलपा देथे ओला हाय होगे।दू दिन बात हाट अटेक मा देह त्याग देथे। रतन नवोदय विद्यालय मा पढ़थे।उँहा  रतन के संगवारी सूरज हे।जिंखर पिता जी नारायण प्रसाद ग्रामिण कृषि विस्तार अधिकारी हे जब बाते बात मा पता चलिस  के रतन के पिता के साथ धोखा होये है।ओखर दिल पसीज जथे।अउ ठान लेथे के शासन के योजना के लाभ रतन के परिवार ल देवाय के रईहूँ।पूछे मा पता चलिस  के रतन के  गाँव बेमेतरा जिला मा ही ओकर प्रभार  के गाँव छिरहा म हे ।फे२ का  नारायण प्रसाद  रतन के  माँ से मिल के आवेदन मा दस्तखत लिस   बोर खनन ,अउ सोलर पैनल ,स्पींगलर पाइप,  तार घेरा अउ फसल बीमा के ळाम सब ल अधिकारी से विशेष  मिल के  करवा दिस।
रतन के महतारी सपना मा नई सोंचे रहिस तउन बूता होगे। इलाका  मा अकाल परीस  फेर रतन के फसल  ल उन्नत तकनिक के कारन  फरक नई परिस ।जनम जनम के प्यासे धरती मा सौर उर्जा वाले ट्यूबवेल ळे पानी धरती ल सोना उगले बर मजबूर कर दिस।
पहिली बार मंडी मा धान  बेचीस अच्छा भाव मिलीस।नवा पद्धति के एक पईत के फसल ल के पूरता रधिया अपन पूरा उमर मा नई कमाये रहिस।
धन अउ अवर्दा के छाँव आज रतन रधिया सफल किसान है।
रतन के सपना हे गरिबी से सबके  मुक्ति  हो।किसानी देश के रीढ़ आय खेती ल सफल करे खातीर रतन सबल प्रेरित करथे।ओकर सपना कृषि विस्तार अधिकारी बनना हे।अभी वोहा पढ़त हे।
 रधिया नव तकनिक के साथ पाँच एकड़ मा सब्जी उत्पादन करवाथे  आज खेत 15 एकड़ होगे हे।जन जन  ला रतन नवा पद्धति ले खेती करे बर प्रेरित करत रईथे।हर किसान के दुख दूर होवय  सबके जीनगी मा सुख के नवा बिहान होवय इही कामना संग जय जवान जय किसान जयविज्ञान
          जुगेश कुमार बंजारे
        9981882618

तीजा पोरा के पीड़ा*

*तीजा पोरा के पीड़ा*

       आज आठे ला मनाय चार दिन होगे हावय देख तीजा लिहैया मन के अवई जवई चलत हावय। तिजहारिन दीदी बहनी मन आत जात हावय। मोटर बस के भीड़ के ठिकाना नई हावय भर भर आवत जावत हावय। तीजा पोरा के तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बड़का तिहार आय। इहि तिहार में गाँव भरके बेटी माई एक जगह सकलाथे। अपन अपन दुःख सुख ला मिलके गोठियाथे। धन्य हवै हमर गाँव धन्य हवन हमन तीजा पोरा के तिहार मा गाँव भरके बेटी माई सकलाही। जय हो मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर महिमा अपरम्पार हावय।

       फुलमतिया अपन नोनी के मुड़ी ला कोरत बइठे हावय। नोनी दाई ला कहत हवय जल्दी मुड़ ला कोर न  दाई स्कूल जाय बर देरी होत हावय, मोर सहेली मन गोरत होही। नोनी सात बछर के होगे हावय अउ दूसरी  कक्षा मा पढ़त हावय। नोनी बड़ चंचल स्वभाव के हावय।अपन संगवारी धनिया संग मुड़ ला कोरा के स्कूल जावत हावय। स्कूल मा जाथे त पता चलथे की ओकर एकझन संगवारी महेश्वरी हा ममा गाँव चल दे हावय। धनिया से नोनी पूछत हावय कस संगी ममा गाँव काय होथे जी अउ मोर घर तो एको साल मोर ममा नाव के कोनो नई आवय। धनिया हाँसत हाँसत बतावत हावय ममा गाँव माने दाई के ममा गाँव जिहाँ ममा मामी, ममादाई बाबू, मौसी अउ भाई बहनी रथे। नोनी झट से अरे वाह मजा आत होही न, धनिया हव बहनी ममा गाँव जाबे त कोनो मारे न पिटे चारो मुड़ा ले मया दुलार मिलथे। रंग रंग के खाय ला अउ पहिरे ला मिलथे। नोनी धनिया के बात ला सुनके ओकर मन में ममा गाँव के लालसा जाग जथे। स्कूल के छुट्टी होगय नोनी घर आके संगवारी मन संग खेलइ के धुन मा हावय। थोरक सँझवति बेरा धनिया ला ओकर दाई बुलाथत हावय चल बेटी तोर ममा गाँव जाबो। ये गोठ ला सुनके नोनी ला तको अपन ममा गाँव के सुध लग जथे अउ अपन घर डहर जावत मन मा सोचत हावय सबके ममा बबा मन लेगे ला आवत हावय मोर ममा, बबा मन काबर हमन ला लेगे ला नई आवय। नोनी घर में आके अपन दाई ला पूछत हावय दाई हमर ममा मन एको साल काबर नई आवय तीजा मा लेगे बर। सबके ममा मन अपन दीदी बहनी के संग मा भांची भाचा ला लेगे आथे। एतका बात ला सुनके नोनी के दाई के आँखी ले आँसू तरतर तरत बोहाय ला धरलिस ओकर आँखी मा दाई बाबू, भाई बहनी, संगी संगवारी के चेहरा झुले ल लागिस। ओकर जवानी के घांव हा ताजा फेर ताजा होंगे हावय। चुपकन आँसू ला दबाके मन मा ढाढ़स बाँधत नोनी ला कहिथे कइसे करबो बेटी तोर ममा मन लेगे ल नई आवय त, बरपेली कइसे चल देबो। नोनी कहत हावय हमर जम्मो संगवारी मन ममा गाँव जावत हावय अउ महूँ ला ममा गाँव देखे के सउख लागत हावय दाई। ममा गाँव मा मोर ममा दाई, बबा, ममा-मामी अउ उकर लइका मोर भाई बहनी होही न दाई। फुलमतिया बेटी के बात ला सुनके सिसक परथे अउ ओकर आँखी ले आँसू धर धर धर बोहाय धर लेथे। नोनी अपन महतारी ला कहत हावय देखले हमर महतारी ला मइके के नाव लेतव ही मया हा पलपलावत हावय अउ सुरता मा रोवत हावय। महतारी ला देख नोनी तको रोय ला धर लेथे अउ कथे का होगे दाई हमर ममा मन ला मया नई लागय का ओ। महतारी हा बेटी ला पोटार बोम फाड़के रो डरथे। ओतके बेरा नोनी के ददा चैतू आ जथे अउ कहिथे तुमन काबर रोवत हव मोर रहत ले तुमन ला का के चिंता हावय कुछ कमी हावय त बताव दूनो झन के आँसू ला पोछत अउ चुप करावत हे।  चैतू समझ जाथे तीजा पोरा आवत हावय त दाई बाबू दीदी बहनी भाई मन के सुरता में रोवत हावय कहिके। नोनी रोवत रोवत सुत जाथे चैतू कहिथे फुलमितया में जान डरेव तोर दरद ला ओ 8 बछर होगे हमन ला अपन गाँव से अलग करे। भगवान के दया से येदे रइपुर शहर में जियत खात हन बढ़िया से नौकरी करके। फेर अपन जनम भुइँया अउ महतारी के सुरता नई भुला पावत हन, हा सही कहत हव जी ओतेक दिन ले अपन मन ला मारके रहत रहेंव फेर आज नोनी ममा गाँव जाय बर कहत रहिस हावय त अपन आप ला नई रोक पायेंव।  तीजा पोरा के तिहार बेटी मन बर बड़का तिहार आये कौन बेटी अपन दाई ददा के घर ये तिहार मा जाये बर छोड़  होही। बारह महिना के ये तिहार मा गाँव के जम्मो संगी संगवारी, गाँव भर के बेटी माई सकलाही अउ अपन सुख दुःख ला गोठीयाही। जेन किस्मत के अभागा रही तेने हर ये तिहार मा मइके नई जात होही या नई जाही।  फुलमितया खाना खाय बर चैतू ला देवत हावय फेर चैतू ला अपन गाँव के सुरता आ जथे अपन दाई ददा भाई बहनी के चेहरा मा झूलत रहिथे अउ भात के कौरा मुँह में जाबे नई करय चैतू भात ला छोड़ उठके रेंग देथे। फुलमतिया तको बिन खाय सो जथे। फुलमितया चैतू ला कहिथे हमर करम के भोगना आज हमर लइका भोगत हवे बपरी ककरो का बिगाड़े हावय ओकर का दोष हावय। बस एतके न की ओहर हमर लइका बनके आये हावय अउ बपरी इहि गलती कर परे हावय। चैतू फुलमतिया ला कहिथे हमर लइका के ये सउख हमन पूरा नई कर सकन ओला कोन समझाही की हमन अपन समाज अपन गाँव ले बाहिर हन। चैतू मन ला मार दसना ले उठके गली डहर चल देथे ओकर मनके दरद ओला सहन नई होय अउ रो परथे। फुलमिया के मन मा आज कई ठन सवाल उठत हावय अपन आप ला कोसत हावय मँय बहुत बड़े गलती कर परेव मोला भाग के दूसर जात मेर बिहाव नई करना रहिस हावय। मोला अपन दाई ददा के मान मर्यादा रखना रहिस हावय। मोर दाई बाबू उपर का बीतिस होही कइसे 7 बछर उकर कटिस होही। फेर  फुलमतिया मन के पीड़ा ला उधेड़त कहिथे फेर मोर गलती का रहिस हावय मँय तो अपन साथ में पढ़े लिखे लड़का मेर बिहाव करे हव। महूँ हा पढ़ै लिखे अउ महूँ ला समझ हावय। फेर कहिथे वाह रे मोर समाज अपन दाई ददा अउ मया जार ले तँय दूर कर दे। तोला थोरको दया नई आइस हावय। फेर नोनी ला देख कथे मँय अपन बेटी ला का बताहू, कइसे ओला समझाहू तोर ममा घर नई जा सकन कहिके। नोनी बाड़ जाही त  मोर बारे में का सोचही आज फुलमितया ला अपन गलती के पछतावा होत हावय ओकर जी हा आज कचोटत हावय। अपन समाज मेर चीख चीख के पूछत हावय मोर गलती के सजा मोर बेटी ला काबर मिलत हावय। बपरी ममा गाँव जाहू कहत हे तीजा पोरा मनाय ओला कोन लेगही। फेर हर बछर के तीजा पोरा मा ये घांव हा हरियावत रही संग में मोर बेटी ला पीड़ा देवत रही। फेर कहिथे धन्य हे नियाव करने वाला भगवान अउ धन्य हे हमर समाज जेन अइसन नियम बनाय हावय। सबला सोये सोये ला हर गुनत हावय।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

मया अमोल होगे-

मया अमोल होगे-
-----------------------------राधेश्याम पटेल
भाग--2

पहिली भाग में आप पढ़ेव के शहर मा रिक्सा चलावत बैजू के एक्सीडेंट हो जाथे ...ए खबर नवाँपरहिन ला मिलथे तव बिचारी गिरत हपटत बैजू कोती भागथे...तब तक बैजू अस्पताल पहुँच जाय रथे...!
       अब आगू के हाल...
नवाँपरहिन अस्पताल तो पहँच जाथे लकिन आवत ले बहुँत अबेर हो जाय रथे .... इहाँ बैजू के जघा ओखर लहास मेर भेंट होथे.! ऐ का होगे भगवान ..?
नवाँपरहिन के ऊपर मानो पहाड़ टूट परे होय ... वोला समझ मा नई आवय के का करँव का नही...!
वोखर घर मालिक हा बैजू के पुरा काठी माटी के व्यवस्था करवाथे ...पर चिंता तो ऐ बात के रथे के अब शहर मा भला अकेल्ला टूरी परानी बिना चिन पहिचान के आँखिर दिन काटही तव कईसे ...? अऊ आँखिर जाय त जाय काहाँ .?   कोनो कोती रस्ता नई दिखत रहय..ससुरार तो जायेच नई  सकय...उहें सुख पातिस तव अईसन उदिम करतिचे काबर  अऊ न मईके जा सकय .. बने  बने मा तो ददा अऊ मउसी दाई पूछत नई रहिन हे अब  बिगड़गे तव का वोला घर मा घुसरन देहीं..?
बिचारी बर अब कोनो कोत के रद्दा खुल्ला नई दिखत रहय..!कहिथें के बुड़ईया बर तिनका के सहारा घलोक  हा बहुँत होथे... ओखर हाल ला देख के  जेखर घर काम करय तेने हा वोला अपने घर रहे  बर जघा दे दिस तव वोला घर किराया के चिंता ले मुक्ति मिलगे...खाना पीना घलो के व्यवस्था उहें होगे ...उँखर घर के बूता करय उहें खाय उहें रहय..!
धीरे धीरे दू महिना बितगे.. नवाँपरहिन अब अपन दुख ला भुलाय लागिस...लकिन जेखर करम मा भगवान दुखे दुख लिखे होय वोला भला सुख कईसे मिल सकत हे ....!
एक दिन नवाँपरहिन के मालकिन हा अपन बीमार भाई ला देखे बर मइके चल दिस ...घर मा ओखर गोसइया दू ठन लईका अउ अपन हा रहय..! वोला मालकिन के नई रहे ले भीतरे भीतर डरो लगय..एक दिन
अपन कुरिया मा रात के सोय रहय-- एका एक चमक के जाग  उठिस...देखथे के मालिक हा दबे पाँव ओकरे कोती आवत रहय चुपे चाप. कुरिया मा थोर थोर अँजोर रहय तेखर सेती नवाँपरहिन हा चिन्ह डारिस.. उठगे अउ हड़बड़ा के पुछ बइठिस --
"मालिक तु मन मोर कुरिया म...अतेक रात के...?"
--मालिक कुछू उत्तर देहे बिना नवाँपरहिन कती बढ़ते रहिस  नवाँपरहिन हा मालिक के मंसा ल समझ गे...खटिया ले उतर के मुड़सरिया कोती पिछघुंच्चा घुंचे लागिस...फेर कतेक बेर ले अपन आप ल बंचातिस..जवान मालिक के पोठहा पकड़ मा नवाँपरहिन हा छटपटाय लागिस....! आँखिर मा वोला का सुझिस तव मालिक के हाँथ ल जोर से कटकटा के चाब दिस ... एका एक हाँथ के पकड़ ढीला होगे अऊ नवाँपरहिन बर अतके बेरा काफी रहिस... पीरा मा भुलाय वो राक्षस कुछू सोचतिस समझतिस तेखर पहिलीच नवाँपरहिन बोचक के भागते भागिस.. ओखर कमरे के तीर रसोई हा रहय..ओही कोत भागिस ओखर मालिक घलो पाछू पाछू   दउँड़िस ...तब तक नवाँपरहीन रंधनही खोली मा घुसरगे अऊ बेंड़ी ल लगाके पल्ला मा पीठ ला टेंका के जोरहा सांस लेवत फफक फफक के रोय लागिस मन मा जरुर थोरक बर हाय के जीव होईस लकिन चिटिक बेर मा फेर जीव हा धक धक करे लागिस ...!
ओखर मालिक फईका ला जोर जोर से ढँपेलत रहय
नवाँपरहिन ल लगिस के अब ओखर बाँचना मुस्कुल हे.. मन करिस के गर मा फाँसी डार के छान्ही मा ओरम जाँव  फेर एका एक ओखर नँजर हा घनऊची मा माढ़े आमा काटे के बड़का सरँवता  मा परगे..  एक झन मा का सोचिस का नही अऊ सरँवता ला दूनो हाँथ मा उठा के किड़किड़ ले धरके फइका के बाजू डहर भिथिहा मा सपटके खड़ा होगे .... छाती के धकधकाई हा सल्लूग बाढ़त जात रहय. 
मालिक के ढँपलई मा फईका हा जादा बेर ला नई सहे पाईस अऊ मामूली बेंड़ी छटक गे ...नवाँपरहिन के हाँथ सरँवता मा आऊ जमगे रहय ...एती ओखर मालिक फईका के संगे संग हद्दक ले भीतर मा पेलाके गिरे असन मुड़भरसा तउलागे ...ऐती नवाँपरहिन दुहत्था सरँवता ओखर चेथी ल पागे ..
ओखर मालिक फईका के झपास ले उबरे नई पाय  रहय सरँवता के परते नकडेरा के भार जाके भिथिहा मा ठोंकागे अऊ कटाय रुखवा असन पाछू डहर फटिका के एकंगू जेउनी हाँथ कोती बरतन भंड़वा ऊपर गिरगे ...!
नवाँपरहिन सरँवता ला धरेच के धरे थर थर काँपत उहिच मेरन खड़े रहिस अऊ फेर  थोरकून मा उहिच मेरन धम्म ले बईठगे अब्बक ...!
ओखर मालिक के तो राम नाम सत्त होगे रहय...!
----नवाँपरहिन अपन सम्मान बँचाय खातिर का ले का कर डारिस...एकाएक जईसे सोय ले जाग परे होय ....
उठिस उठिस सरँवता ला मुँईया मा फटरस ले फेकत मानो कोनो बहुँत निरघिन जिनिस ला धर ले होय ...
मालिक के तीर मा गईस .... देखथे लहू हा भुईयाँ मा हँउला कस पानी गवाँय  रहय जेन कमसलहा रोशनी मा नवाँपरहिन ला लीले लेत रहय... नवाँपरहिन दूनो हाँथ मा मुँह ला छपक के रोय लागिस...वो जान गे मैं बहुत बड़े अपराध कर डारेंव ....! तब तक दूनो लईकन जाग गे रहँय अऊ अपन पापा ल चिल्लावत रंधनही खोली कोती आवत रहँय..!
---सब कुछ ऐके घरी मा सुवाहा होगे ...नवाँपरहिन ला खून के जुरुम मा बीस बछर के सजा होगे...!
बीस साल के सजा ला तो नवाँपरहिन जिंयत लहास बनके काट डारिस...अऊ जब छुटिस तव ओखर आँखी के आघू म फेर उही अंधियार  काहाँ जावय अपन ऐ बोजहा जिनगी ला धर के...जेल मा अईसनहेच बिमार होगे रहय. शरीर हा बांस बरोबर होगे रहय ..फेर सोच बिचार करके अपन मईके के रद्दा धरिस..
लकिन उहों वोला पाँव भर भुईयाँ नई मिलिस जेमा चिटको थिरबाँव ले पातिस.! 
कई पईत सोंचय के जीव ला हेर डारँव...फेर कऊन जनी अईसन का शक्ति रहिस जेनहाँ वोला अईसन करे ले रोकय...!
नवाँपरहिन ला कोनो कोनो बताईन के ओखर बेटी जेला छोंड़ के बैजू संग भाग गय रहिस...आज बाल बच्चा बाले हो गय हे अऊ लकठे के गाँव मा ओखर ससुरार हे...!
नवाँपरहिन अपन बेटी ल एक नजर देखे के आसा मा बेटी के ससुरार कोती के रद्दा धरिस..!ओखर बेटी तो अपन महतारी ल तो नई  चिन्हिस फेर महतारी हा जरुर मुहरन मा अपन लईका ला चिन्ह लेईस...!
 सास के हालत ला देख के ओखर दमाँद के आत्मा रो डारिस..! नवाँपरहिन के बेटी दमाँद वोला अपने तीर राख लीन ...वोला अलग कुरिया दे देहे रहिन.. नवाँपरहिन ला मानो एक बेर फेर जिऐं के 
बहाना मिल गे रहय...! 
बेटी दमाँद ले अलग तो रहय जरुर ...बेटी दमाँद ओखर पूरा परबस्ती करँय .... नवाँपरहिन अनसुहात 
जिनगी भर कभू सुख नई पाईस...अऊ आज जब जिनगी के बुढ़त काल मा कुछ ठहराव आबो करिस तव ओखर अपने मन उदास रहे लागिस...दिन रात अपन किस्मत ला सोंचय ..गुनय .. अपन बेटी दमाँद ल बोजहा हो गयेंव..मोर खातिर बेटी दमाँद काखर काखर बात ल नई सुनत होहीं..?
--अईसने चिंता सोंच मा अरझे नवाँपरहिन खाय पीये बर ढेरी ढारा करे लागिस... बेटी दमाँद खूब समझावँय ... फेर मन मानँय काहाँ... आँखिर बीमार परगे...अबके बिमारी अईसे लगिस के बने होय के नाँवे नई लेत रहय..!
सुसक सुसक के रोवय अऊ भगवान मेरन पुछय--
---
    मोला काबर बनाये देंवता 
    मोला काबर बनाये ना$$$
    मन मोर टूटगे किस्मत फुटगे
    काबर जीव कलपाये ना$$$
              मोला काबर..........!   

    जनम लेवत मा दाई ल लूटे
         बालापन मा ददा  ला छोड़ाये
    जोंड़ी  मोरे रहिस  निरमोहीं
         जिनगी भर मोर आँसू बोहाये
     देके जनम मोला ऐ धरती मा...
     काबर भुलाये ना$$$
               मोला काबर..........!

      कऊन  जनम  के मोर  करनी ऐ
              भरत हँव भरनी मैं ऐ जनम में
      कतका गरू होगेंव मैं दुनियाँ ला
              का  लिखा लिखे मोर करम में 
      बसाके अलग तैं मोर नगरिया
      काबर उजारे ना$$$$
               मोला काबर..........!
      
नवाँपरहिन अनसुहात बिमारी के मारे दिनों दिन आऊ कमजोर होत चले गय...खाय पीये तक ला तियाग दिस..!
अपन बेटी दमाँद घर मुस्कुल मा छै महिना जिंये के बाद अनसुहात नवाँपरहीन ऐ निरमोंही संसार ल छोंड़के बिदा होगे..!
अनसुहात जिंयत भर सुख नई पाईस ..एक बूंद मयाँ बर तरसत रहिगे...मयाँ मिलबो करिस तव भगवान ल नई सुहाईस..!
आन जात ल लेके भाग गय रहिस तेखर सेती वोखर लहास ला घलो कोनो नई छुईन ..ओखर बेटी दमाँद घलोक...! सगा मन कहिन नवाँपरहिन के लहास ला छूहव त तुहूँ मन ला सगा ले बाहिर होय बर परही..! नवाँपरहिन जानबूझ के अपन तीथ ला बिगाड़ डरे हे --!
---बेटी दमाँद का करँय ...महतारी के मयाँ होय के बाद घलव महतारी के लहास ला खाँधा नई देहे सकिन..आँखिर मा गाँव के मन  नवापरहिन के माटी शरीर ला गऊँटिया के भईंसा मा झिंकवावत गाँव के कुवाँरा लईकन मन सो मरघटिया लेगवाईन...!
धन रे भगवान अनसुहात के किस्मत अईसे लिखे के बिचारी के मरे के बाद घलो गति नई बनिस..!
आज नवाँपरहिन तो नई ये फेर ओखर किस्सा गाँव मा कतको आदमी समय परे मा सुनावत रहिथें ....के बिचारी के मरे के बाद जात पात के बंधना के नाँव लेके ओखर लहास के अपमान होईस...!
अनसुहात नवाँपरहिन ल जिंयत भर मयाँ नई मिलिस त कोई बात नही...वोखर बर तो मरे के बाद घलोक एक बूंद  "मयाँ अमोल होगे"...!
---अतका कहिके बबा हा कथे---" अब दार भात चुरगे 
अऊ मोर किस्सा पुरगे"  नोनी होवा..,!
कोनो के मुँह ले कुछू नई सुनाईस ... हाँ ...सबो के आँखी ले आँसू जरुर टपकत रहय....!
                                              *****
                                            -----कहानी 
                                   राधेश्याम पटेल 
                                 तोरवा बिलासपुर

कइसे मनाबो तीजा तिहार-चित्रा श्रीवास

कइसे मनाबो तीजा तिहार-चित्रा श्रीवास


सावन ले हमर छत्तीसगढ़ के तिहार मन शुरू हो जाथें।अभी अमावस के हरेली मनाय हन।पंदरा दिन के गये ले पुन्नी के दिन राखी।फेर खमरछठ, आठे कन्हैया, पोरा, तीजा,के बाद बिराजहीं गजानन जी उँखर जाये के बाद पितर देवता मनाब,फेर दुर्गा दाई आहीं।दशहरा ,देवारी,देउठनी अकादशी,छेरछेरा, मकर संक्रांत,होरी के जात ले तिहारे तिहार।अतेक तिहार मन मा तीन ठन तिहार हा हम माई लोगन बर बिशेष महत्तम राखथे राखी ,खमरछठ अउ तीजा ।खमरछठ ला तो अपन घर मा मना लेथन अउ लइकन के खुशहाली बर छठ दाई ला बिनती बिनोथन।राखी हा भाई बहिनी के तिहार ये येमा भाई बहिनी मन अपन सुविधा ला देख एक दूसर के घर चल देंथें।दूरिहा मा रहे ले बहिनी हा डाक ले घलौ राखी ला भेज देथे।फेर तीजा हा तो मइकेच के तिहार ये।बेटी बहिनी मन साल भर ये तिहार के रद्दा जोहथें।बेटी के बिहाव के बाद अंगना सुन्ना हो जथे ।दाई के जीव हा कुलकत रहिथे बेटी तीजा मा आही ता सुख दुख ला गोठियाहव कहिके।एती बेटी घलो कब मोर लेवाल आही सोचत रहिथे। आजकल मोबाइल के जमाना आय रोज दाई बहिनी करा गोठ बात कर लेबे हाल चाल पूछ लेबे फेर परगट मिले के बाते अलग हे।नानपन के सुरता आ जाथे।अउ संगी संगवारी करा भेंट घलो हो जाथे।पारा मोहल्ला के काकी,बड़ी दाई मन घलो कहिथे बने करे बेटी आ गय ता।मइके ला माई लोगन अपन जीयत भर नइ भुलाय सकयँ।
               बहिनी हो राखी तीजा लकठा गय हेअउ मोर मन मा एके बिचार आवत हे ए दरी तिहार कइसे मनाबो।अभी के समय मा कोरोना के बीमारी हा दुनिया भर मा फइले हावय।संक्रमित अउ मरइया के गिनती बाढ़त जात हे।अनलाक मा थोरिक छूट का मिल गिस लोगन  लापरवाही करे लगीन तभे फेर लाकडाउन लगाना पर गिस । बहिनी हो जिनगी सबले बड़े ये ।जिनगी बाँच जाही ता सालो साल तिहार मना लेब ।गाड़ी मोटर ठीक से चलत नइहे ।चले मा घलो सुरक्षा के सवाल हे।कई झिन बहिनी मन अपन साधन ले घलो मइके जा सकत हे ।मइके जाके सोशल डिस्टेडिंग,मास्क, सेनेटाइजर ला झन भुलाहू बहिनी हो।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़

Thursday 23 July 2020

आलेख:-वैश्विक महामारी कोरोना पर छंद परिवार के साधकों का विचार

आलेख:-वैश्विक महामारी कोरोना पर छंद परिवार के साधकों का विचार


 कवि बादल: *वर्तमान के ज्वलंत समस्या--कोरोना वायरस*
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आज सरी दुनिया म सबले बड़े ज्वलंत समस्या कोरोना महामारी ह हाबय। ए कोरोना वायरस रूपी भस्मासुर ह सब ला भसम करे बर तुले हे।जइसे बघवा के आगू म हिरना ह थरथर काँपत खड़े रहिथे ओइसने पूरा संसार ए बैरी कोरोना वायरस के सामने काँपत हे। बड़े-बड़े शक्तिशाली राष्ट्र मन के तको घिग्घी बँधागे हे।चूँ चाँ तक नइ कर सकत हें। ए नानकुन वायरस जेन दिखय तक नहीं के सामने अरबो-खरबो रुपिया काम नइ आवत हे। अंतरिक्ष म जाके रोज तहलका मचइया, रंग रंग के खोज करइया, समुंदर ल मही कस बिलोइया ,चंदा म घर बसाबो कहइया ,मंगल म घलो अमंगल करे म तुले , एटम बम अउ आनी बानी के हथियार बनइया ,विज्ञान तको  अभी ए वायरस के आगू म हाथ जोरे नतमस्तक होगे हे। मनखे के सरी अंग ल रिपेरिंग करे म अउ हिरदे ,गुरदा तक ल बदल के आने लगाये म सक्षम चिकित्सा विज्ञान तको एकर आगू म फेल होगे हे।पूछबे त कहिथे एकर दवा नइये। जिहाँ देख तिहाँ बस लचारी भरे हे।
       ए कोरोना वायरस ह रक्त बीज कस बाढ़त बाढ़त विकराल रूप लेवत हे।लॉक डाउन उपर लाकडाउन होवत हे। कोनो मेर खुल जा सिमसिम कहिके ताला खुलथे तहाँ ले बन्द होजा सिमसिम कहिके तुरत बंद हो जथे।
    ए  डर डरावन कोरोना के वर्णन करे बर शब्द घलो कम पर जही। एकर छइहाँ जेमा जेमा  परत हे वो सब जिनिस मुरझा जवत हे।ए कोरोना के समस्या ह समस्या उपर समस्या पैदा करत जात हे।जइसे--
*रोजगार के समस्या*---कल कारखाना मन एकर मारे बंद परे हें। आर्थिक गतिविधि  पूरा ठप्प होगे हे।तेकर सेती लाखों श्रमिक मन बेरोजगार होगे हें।गरीबी म आँटा गिल्ला के स्थिति आगे हे। कतेक झन ल  दाना दाना बर तरसे ल परत हे। सरकारी सहायता ह ऊँट के मुँह म जीरा बरोबर साबित होवत हे।
*मँहगाई के समस्या*---ए कोरोना के सेती फेक्ट्री मन बंद हें। उत्पादन होवत नइये। समान के पूर्ति नइ हो पावत ए। रेल, ट्रक ,बस, मोटर कार सब बंद हें। पेट्रोल अउ डीजल के भाव आसमान छूवत हे तेकर सेती मँहगाई ह रात दिन सुरसा के मुँह सहीं बाढ़त हे। अइसे लागत हे कि ए हा आम जनता ,गरीब गुरबा मन ला सइघो लील के रइही।
*कालाबाजारी के समस्या*--ए कोरोना के समस्या ह काला बाजारी करइया मन बर सीका के टूटती अउ बिलइया के झपटती सही होगे हे। दू रुपिया के समान ल पचासों रुपिया म बेंच के पापी मन अपन तिजोरी भरत हें। मजबूर मनखे के खून ल जोंक असन पियत हें।अउ काला गिनाबे।नमक हरामी मन --दस रुपिया के नून तको ल सौ ,दू सौ म बेंचे हें। लूट सको तो लूट के धूम मचे हे।
*चिकित्सा के समस्या*-- प्राइवेट अस्पताल मन बंद हें। सरकारी अस्पताल मन खुलें हें तेनो म कोरोना के अलावा आन बीमारी मन के इलाज नइ होवत ए।आम जनता बर तो एहा दुब्बर बर दू असाड़ सहीं होगे हे। एक कोती खाई हे त एक कोती कुँआ हे। बिन इलाज के मरना परत हे।
         सरकारी अस्पताल मन मा मरीज मन बर बिस्तर अउ दवई के बहुतेच कमी हे।
 कुछ पाइवेट अस्पताल मन सरकारी अनुमति ले खुले हें त उँकर इलाज करे के खर्चा ल सुनके हमर जइसे के जीव अइसने छूट जही।शायद इहाँ डॉक्टर रूपी भगवान नइ राहयँ, मौत के सौदागर मन रहिथें।
*समाजिक अउ पारिवारिक समस्या*---कोरोना के सेती कहूँ आना जाना बंद हे। घरे म खुसरे खुसरे रहे ल परत हे। मनखे ह समाजिक प्राणी आय। हिलमिल के प्रेम , भाई चारा ले रहिथे तब ओला अच्छा लागथे ।आज एमा गिरावट हे। ककरो सुख दुख म कोनो शामिल नइ हो सकत हे।
  कोरोना मरीज भले वो पूरा ठीक होगे हे ओकर संग पारा मोहल्ला अउ गाँव परिवार के मनखे मन निर्दयी होके अछूत बरोबर व्यवहार करत हें। तीर में आना जाना ते दूर कोनो दू ठन मीठ बोली गोठियाये बर तइयार नइयें।
    अइसे भी देखे म आवत हे कि बाहर ले लहुटे श्रमिक मन ल गाँव वाले मन बस्ती म आवन नइ देवत एँ।
         काम धंधा बंद हे।घर के खर्चा चलाना मुश्किल होगे हे तेकर सेती परिवार म घलो कलह बाढ़त हे।
*अवसाद के समस्या*-- घर म धँधाय अबड़े दिन होगे तेकर सेती मनमाड़े असकट लागे ल धर लेहे। बाग बगइचा, टाकीज, मेला मड़ई, माल,खेल कूद जइसे मनोरंजन के साधन सब बंद हे ।
   लइका मन सुतंत्र होके बाहिर म खेल नइ सकत एँ, सियान मन बाहिर म घूम फिर नइ सकत हें तेकर सेती अवसाद के बीमारी बाढ़त जात हे। सुने म आथे कई झन आत्महत्या कर लेवत हें।
*शिक्षा के समस्या*-- स्कूल ,कालेज सब बंद हे। परीक्षा होवत नइये। भगवान जानै का होही ते। लइका मन के पढ़ाई लिखाई पूरा चौपट हे।
       *हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता*  सहीं ए कोरोना  महामारी ले उतपन्न समस्या मन हें।गिनाबे त सिराबे नइ करही।
      कोरोना महामारी के बहुत अकन सकारात्मक पक्ष घलो हे। पर्यावरण बहुत शुद्ध होये हे, लोगन मन म सेवा भाव बाढ़े हे आदि फेर समस्या के भयावहता के सामने ए मन कुछ फीका हें।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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सभ्यता अउ सँस्कृति बर बड़का खतरा हे : कोरोना*

       कोरोना के नाँव सरी दुनिया म लइका, सियान अउ जवान सबो के मुँहेच ऊपर हे।सबो इहीच कहिथे पूछथे अउ कतेक दिन ले घालही ए ह? फेर एकर जुवाब अभी काखरो मेर नइ हे।न बइद-बइगा, न डॉक्टर, न वैज्ञानिक मन जगा हे।सबो अपन-अपन कोति ले कोशिश करत हें।एक बात हे के आज सबो एकर ले हलकान हे।सबो के जिनगी एक ठउर म ठहर गे हावै।दोखहा बरोबर सब ल परेशान करत हे।नेता, व्यापारी, सेठ-साहूकार,मजदूर सबो के चैन छीनागे।कोरोना लाहो लेत हे।चार झन बरोबर बइठ के सुख-दुख ल गोठिया नइ सकत हे।चार छै दिन बाद नइ दिखैया संग बइठे बर सोचे ल पड़गे हे ,कहूँ यहू ल ....।चिन्हार ह अनचिन्हार बने के उदीम करत हे।मन म शक होय धर ले हे।मन कोरोना के डर म मिलत नइ हे।
        ओनहारी मिंजत किसान मन बइला के मुँह म टोपा बाँधय ,ओनहारी जादा झन खाय कहिके।फेर वाह रे कोरोना तोर आय ले सब ल मुँह छुपाय बर होगे।सियान मन केहे हे - हड़िया के मुँह तोपबे, मनखे के मुँह काला तोपबे।फेर कोरोना के चलत वहू ह तोपा गे।चार मनखे एक जगा बइठे बर भुला जही,अइसन लागत हवै।
       अरस्तू ह कहे हे- मनखे सामाजिक जीव हरे, समूह म रहिके अपन जीवन बसर करथे,उही ह मनखे आय।फेर याहा का जमाना आगे।समूह या भीड़ ले दूर भागे ल परत हे।
         आज कोरोना ले  बाँचे अउ सावचेती के जम्मो जतन होवत हे,तब ले कोरोना भारी परत हे।दिनोंदिन देश दुनिया म रोग बाढ़तेच हे।ए बड़का समस्या बन, डॉक्टर अउ वैज्ञानिक मन बर बड़े चुनौती बने हे।
        संक्रमण ल देखत बाँचे के उपाय ह आज बड़े इलाज हे।फेर ए उपाय के चलत सामाजिक दूरी के लम्बा होय ले,मनखे अउ मनखे के बीच के नता-रिश्ता अउ आपसी संबंध ह कमजोर होही।कतको संबंध मन के खतम होय के डर घलुक हे।जेखर ले भविष्य म परम्परा,रीत-रिवाज अउ सँस्कार के मिटे के खतरा घलुक हे।ए रीत-रिवाज अउ परम्परा मनखे ल मनखे ले जोरे राखथे। अइसन म रीत-रिवाज,सँस्कार अउ सभ्यता के धीरे-धीरे विनाश होय के डर हे।सामाजिक आयोजन जइसे के गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, मँड़ई-मेला, हाट-बजार अइसन अउ कोनो भी आयोजन समाज ल आर्थिक, साँस्कृतिक, पारम्परिक,सहकारिता मजबूती देथे।ए ह कोरोना के जादा समय रहे ले बिखर सकत हे।चार एक महीना ले सामाजिक दूरी के चलत छोटे छोटे गँवई-रोजगार जउन बजार-हाट म चलै, बंद हे।एखर ले परिवार के आगू जीए खाए के संकट घलुक खड़ा होवत हे।
       ए संकट के चलत समाज म अपराध बाढ़े के खतरा भी हावै, जेखर चिंता आजकल मनोवैज्ञानिक अउ समाजशास्त्री मन करत हावैं।
     जइसे जइसे समय आगू बढ़त जावत हे कोरोना ले मनखे के मन डर भागत हे। ए ह रोग ले लड़े म फायदा के बात आय।फेर जउन ढंग ले मनखे अपन दिनचर्या जीयत हे ओखर ले संक्रमण फइले के चाँस जादा हे।जउन ठीक बात नोहय।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी ,जि.बलौदाबाजार भाटापारा छत्तीसगढ़

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 मनीराम साहू: करोना मातादाई

येदे एक अठोरिया के बात ये मोर स्कूल गाँव के आश्रित गाँव भोथीडीह ले स्कूल मा बइगा बबा अइस, कहिस मास्टर बाबू मोला दाखिल खारिज के फोटू कापी देदे एकर बिना मोर काम अटक गेहे। मैं कहेव थोरके बइठ बना के दे देहूँ अउ फोटू कापी करवा के प्राप्त कर्ता मा दसकत करे बर केहेवँ। बइगा बबा कहिस- बाबू मोला दसकत करे बर नइ आवय अँगठा लगाहूँ, काबर मैं स्कूल मा भर्ती बस होय रहेवँ एको दिन पढ़े बर नइ आय रहेवँ। मैं केहेवँ ठीक हे। अँगठा लगावत बइगा बबा पूछिस- स्कूल कब खुलही मास्टर बाबू अबड़ दिन होगे खुलतेच नइहे। मैं कहेवँ अभी तो काँही पता नइये बबा फेर जल्दी खुलही अइसे लागथे। मोर बात ला सुनके बइगा बबा कहिस- सब बिगड़ गे मास्टर ये माता दाई के सेती। मैं पूछेवँ- कोन माता दाई ? कहिस इही करोना माता दाई के सेती। आगू कहिस- कुछ दिन पहिली माता दाई मोला सपना मा दरसन दे रहिस अउ काहत रहिस कि अभी मैं देवारी के आवत ले रइहूँ।  मैं तिखार के फेर पूछेवँ- अउ का का काहत रहिस माता दाई हा बबा?  बइगा बबा कहिस- माता दाई तो कहे बर बहुत कुछ केहे हे फेर बताहूँ तव तैं नइ मानस। मैं केहेवँ- माने बर तो परही बताना बबा। बबा कहिस- माता दाई काहत रहिस गाँव-गाँव मा मोर मान गउँन नइ होही तव मैं बिकराल हो जहूँ अउ गाँव के गाँव उजार देहूँ । मैं केहेवँ- का मान गउँन? कहिस जब मोला खटकरम करे बर बलाबे तव फोरियाके बताहूँ। मैं कहेवँ- ठीक हे फेर महूँ पँदरही पहिली देबी दाई अउ देवता ददा के दरसन पाय रेहेवँ, मोटर मा बइठ का हमर गाँव मा आय रहिन तव ओमन आने बतावत रहिन। बइगा बबा अकचका के कहिस- अच्छा! मैं केहेवँ अच्छा नही एकदम अच्छा, मैं अपन आँखी मा टकटक ले देखे हँव। काहत रहिन कोरोना ले बाँचे के उदीम हमर हाथ मा हे धियान देके सुनव- पहिली सरकार कुती ले रोग ले बँचाय बर जेन नियम बनाय हे ओकर पालन करव। दूसर मनखे ले मनखे के दूरी दू गज होना चाही। तिसर  मुँह मा मुँह तोपना होना जरूरी हे। चौथइया घेरी बेरी अपन हाथ ला साबून मा धोते रहना हे। पँचवइया फोकटे फोकटे बाहिर मा किंजरना नइहेअउ कहूँ कोना ला जुड़ जर खाँसी लेके एके संग आवय अस्पताल जाके डाँक्टर ला बतावव, ये सब करे ले कोरोना रोग दुनिया छोड़ के भाग जाही।
               बइगा महराज थोरकुन बर गुने ला धर लिस अउ कहिस-  तैं मोला अच्छा धँवाथस मास्टर बाबू , ये सब बात टीबी मा बताथे तेन ला मोला बताथस। मैं केहेवँ मै नइ धँवावत हँव बबा धँवावत तो तैं हस, भले टीबी बतावत होही फेर इही बात मोला देबी दाई अउ देवता ददा बताय हे। बइगा बबा कहिस- मैं अतका दिन होगे पूजा पाठ करत तेन ला देबी दाई दरसन नइ देये तव तोला कइसे दरसन दे देही। मैं केहेवँ- अब आगेस लाइन मा, सुन जिंकर किरपा ले मनखे मन कोरोना ले बने होवत हें वो देबी दाई नर्स अउ देवता ददा डाक्टर हर आय। मातादाई जीव लेवय नही जीव बँचाथे, कोरोना कोनो माता दाई नोहय ये बिसानु ले होवइया, एक दुसर मा बगरइया अजार आय अजार। कोरोना माता दाई होतिस तव दाखिल खारिज के फोटू कापी बिन तोर काम नइ अटकतिस तोर करोना माता दाई सब ला बना देतिस। अतका सब ला सुन के बइगा बबा सुटुर सुटुर अपन घर कोती रेंग दिस।

              मनीराम साहू मितान

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हीरा गुरुजी समय:  विषय- वर्तमान के ज्वलंत समस्या "कोरोना वाइरस "

कोरोना करत हे तन मन धन धर्म संस्कृति परंपरा शिक्षा रोजगार के नास

     अइसे तो हर महामारी हा मनखे के नास करे रहिस फेर कोरोना महामारी हा पहिली पइत जन धन के संगे संग शिक्षा, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक ,बेवहारिक नत्ता गोत्ता सबो किसम के नास करिस। मनखे ला सामाजिक प्राणी कहे जाथे।ओहा समाज ले कभू दुरिहाय नइ रहि सकय। फेर कोरोना के सेती सुरक्षा बर सरकार हा मनखे ला मनखे बाहिर कर दिस। घर मा घुसरे रहेबर मजबूर कर दिस।

         मनखे के जनम ले मरन तक किसम किसम के संस्कार होथय जेमा घर परिवार, सगा सोदर,अरोस परोस अऊ चिन पहिचान मन ला संघेरे जाथे।फेर कोरोना महामारी हा सब संस्कार, दुख सुख मा राहू केतू बरोबर गरहन लगा दिस। मंदिर देवाला के पूजा पाठ बंद होगे। तीज तिहार , मड़ई मेला, बजार हाट , होटल के उछाह गँवागे। जेखर आर्थिक घाटा अड़बड़ होइस।

          आर्थिक मंदी बर जतका गोठियाबो कम हे, घर , गाँव, जिला, प्रांत अउ देश ला कतका घाटा होइस एखर आकब नइ करे जा सकय। जब देश के एक मनखे के आवक बाढ़थे तब देश के आवक अउ विकास बाढ़थे। कोरोना हा बनिहार, किसान, बेपारी, ठेकादार, उद्योगपति अउ सबो किसम के कमइया मन के आवक मा कमती कर दिस, बेरोजगार करदिस।कोरोना हा उत्पादन ला कमती करिस अउ एखर सेती मँहगई बाढ़गे। मनखे के घर मा खुसरे रहे ले जिनिस के खपत तो बाढ़िस फेर जिनिस के कमती होगे।गाड़ी, मोटर, बस, रेलगाड़ी, के चलना बंद होय ले कतको मालिक, नउकर बेरोजगार होगे। संस्था मन बंद होय के पारी आ गे। होटल ,ठेला , साग भाजी बेचइया मन ठलहा होगे।

        कोरोना ले बाँचेबर घर मा परिवार मन के संघरा अबड़ दिन ले रहे मा लोग लइका अउ बड़े मन मा हिजगा पारी, मन मुटाव होय लगिस। अइसने बर बिहाव, छठ्ठी , कत्था पूजा अउ मरनी मा जादा सगा सोदर ला नइ पूछे , बलाय ,नेवता हिकारी नइ देय मा वहू मन मुहूँ फूलालिन। उछाह मंगल मा डीजे, बाजा सामियाना बंद होगे। सब उछाह हा सुन्ना सुन्ना होगे। हाय हाय रे कोरोना।

         कोरोना ले राजनीति करइया राजनीतिक मन ला घलाव अबड़ घाटा होइस। गाँव ,शहर, क्षेत्र के विकास के मुद्दा बर  रैली,धरना,हड़ताल करके अपन धाक ला जमाय रखय ओहा रुक गे। सामुदायिक विकास के सबो उदिम फेल होगे। आनलाइन ले सब गोठ बात होवत हे फेर एखर से कोनों बूता पास होथे?

          कोरोना हा सबले बड़े घाटा अउ करिस, वो हमर देश के भविष्य पढ़इया लिखइया मन के इस्कूल, कालेज, ट्रेनिंग सेंटर, सब ला बंद करवा दिस। कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक आयोजन बंद होगे। ठेलहा मनखे के ताकत ला अइसने नास कर दिस। रीता दिमाग मशान के डेरा, ज्ञान अउ बुद्धि के नास कर दिस।आज के उर्जा ला काली बर नइ बउरे जा सकय हमला रोज नवा उर्जा मिलथे।वइसने बीते समय के पा सकत ज्ञान ला आगू अवइया दिन मा पाय बर दुगुना मिहनत करेबर परही।

       सब बात के एक बात कि कोरोना हा मनखे के तन मन, धन ,घर ,परिवार, समाज , गाँव , रोजी रोजगार, बेपार , आवक सब ला मारीच सुबाहू बरोबर विधंस करत हे अउ अपन मुँह मा सुरसा बरोबर लिलत हे।तब का घर मा बइठे बइठे हमर देश के विकास हो जाही ? सब मिलके गुनबो अउ नवा रद्दा खोजबो।


हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद

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 मीता अग्रवाल: "कोरोना वायरस के आतंक"

फागुन के फाग ला गावत गावत हांक सुनाई परिस,कोरोना बीमारी फइलत हे,जउन लाइलाज हे,सोझे मनखे ल धरे तव प्राण लेके दम लेथे।सुनतेच अंतस मा डर के मारे पूरा गाँव  ,सहर,देश  मा हडकंप मचगे,जगह- जगह लाँकडाउन शुरु होगे।नवा नवा बीमारी हवे वहू लाइलाज?
सबो के काम जिहा के तिहा परे रहिगे।
मनखे के जनम मरन परन सब्बो संस्कार ला अपने बस मा करके मोहनी मार दिस कोरोना हा,कि सगा- नता गोतियार सबला दूरिहा दिस।बपुरा वायरस हाअपन दबदबा एइसन जमाय हे,जनो मानो संसार के बडका आंतकी संगठन।नेता, अभिनेता,अमीर- गरीब,वासी प्रवासी,सब ला घरघुसरा बना के अपन अड्डा जमा के कुंडली मार केनाग अस फुफकारथेअउ,अजगर कस रद्दा मा पडे हवय।
आज सरी करोबार, अवई जवाई,गोठ सुरता बर  एकमात्र अधार अउ संगी होगे हवय मोबाइल।सोचथव ये नइ रहितिस तव काय होतिस।सब्बो जानकारी घर मा घुसरे घुसरेइकरे ले मिलत हे,काम-धंधा के साधन कतको इही बने हवय।कोरोना ले बचाव उपाय,सुझाव सोझे इही मा मिल जथे।
देश विदेश मा टीका दवई खोजे बर कतको झिन लगे हे,का होही कोई नई जानय।फेर शासन के उपाय ला बराबर मानते चलत हवय।सब ले पहिली "जान हे तव जहान" वाक्य ला सुरता राख के
आम जनता चुपेचाप बइठे हे।चार महीना होगे अब सबो खेती बारी के काम मा लग गिन, अउ अगोरत रथे,आघुअब अउ का हो ही?
 ये आतंक तो एइसन आय कि जागरूकता के सिवा कोनो किसिम के मदद करे मा मनखे अब अपन ला असहाय महसूस करे लगिन।आर्थिक तंगी ले आज मनखे मनखे जूझते हे,काम-धंधा ठप्प परे ले ,बेरोजगारी बढीस,कोन झन ला नौकरी ले निकाल दिस,कतको बाहिर कमाय खाय ले गये मनखे के घर वापसी ह, कतको झिन के मऊत के कारण बनगे।
शिक्षा, उद्योग,राजनीति, चिकित्सा, सामाजिकता छोटे- बड़े मध्यम वर्ग सबो ये मार अउ समस्या ले जूझते हे,इही आस संग कि एक दिन अइसे आही जहाँ हमर जिनगी मा ये समस्या के उपाय जरुर होही।इही आसा मा जिनगीअउ मनखे चलत हे,देर सबेर सब ठीक होही भगवान ।
फेर तब तक का का छूटही कोन जनी।

मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़

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निबंध- कोरोना वाइरस

*प्रस्तावना*
               एकठन अइसन वाइरस जेला हमन अपन खुले आँखी ले देख नई पावन, नानकुन गोटी ले कई गुना छोटे हावय। एकर सम्पर्क भोजन आय जेकर कारण तेजी ले फैलत हावय। एकर वैज्ञानिक नाम कोरोना वाइरस (कोविड नाइन्टिन) हावय। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हा एला महामारी घोषित कर दे हावय।

*कोरोना वाइरस काय हरे?*
                 कोरोना वाइरस अइसन वाइरस आय जेकर संक्रमण ले संक्रमित ला जोर के बुखार, सर्दी अउ सूखा खाँसी के संग साँस ले मा तकलीफ होथे। अइसन वाइरस पहली कभू नई देखे गे रहिस हावय। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तेज बुखार, सर्दी, सूखा खाँसी अउ साँस ले मा तकलीफ एकर लक्षण आय। ए वाइरस ला रोके बर कोनो प्रकार के टिका (वैक्सीन) नई बन पाय हावय, विश्व के सबो देश एकर ऊपर अपन टिका बनाय के प्रयोग करत हावय। कोरोना वाइरस संक्रामक रोग होय के कारण सम्पर्क आय ले एक दूसर ऊपर तेजी ले फैलत हावय। ये वाइरस सबले पहली चीन के वुहान मा पाय गे रहिस हावय, ते पाय के एकर जन्म दाता या जन्म स्थान चीन के वुहान शहर ला माने गे हावय। आज ये रोग हा सरी देश ला अपन चपेट मा ले ले हावय।

*कोरोना वाइरस के लक्षण*
              कोविड नाइन्टिन बीमारी के शुरुआती समय मा कोनो प्रकार ले लक्षण नई दिखय। 14 दिन बाद लक्षण एकर दिखथे जेकर कारण संक्रमित मनखे के  पहचान तुरन्ते नई हो पाय। कोरोना रोग मा सबले पहली तेज बुखार फेर सूखा खाँसी, सर्दी अउ साँस ले मा तकलीफ होथे। कोरोना वाइरस के रोग ज्यादा बढ़े  ले साँस ले मा ज्यादा परेशानी, निमोनिया अउ मनखे के मौत तको हो जाथे। सियान-समारत, छोटे-छोटे लइका, गर्भवती महिला अउ  अस्थमा, मधुमेह, हिरदय के बीमारी वाला मन ला ज्यादा खतरा रहिथे। अइसने लक्षण जुकाम अउ फ्लू मा तको पाय जाथे।

*कोरोनो वाइरस ले संक्रमित होगेंव त ?*
          कोरोना वाइरस के ईलाज नइहे एकर बीमारी ला कम करे बर दवाई दे जाथे। आप जब तक ठीक नई होय हव तब तक सबले दूर रहव, ककरो सम्पर्क मा झन आँव। अमेरिका, रूस, इटली, जापान जइसे विकसित देश मन हार खा गे हावय। कोरोनो बीमारी के वैक्सीन बनाय बर काम चलत हावय अउ एंटीवाइरल दवा के परीक्षण तको चलत हावय।

*कोरोनो वाइरस ले बचाव के उपाय*
            कोरोना वाइरस बीमारी महामारी के रूप ले ले  हावय अउ सरी जगत मा अपन पाँव ला पसार सब ला लिलत हावय। कोरोना वाइरस के कोनों ईलाज नइहे एकर बचाव हमर सावधानी ले ही हो सकथे। बचाव के उपाय-
1) घर के बाहिर जावत खानी सदा मास्क ला पहिन के निकलव बिना कारण के घर ले बाहिर झन जाव।
2) अपन आप ला भीड़- भाड़, सावर्जनिक जगह जइसे- हॉस्पिटल, ऑफिस, हाट, दुकान, पारा मोहल्ला के सभा ले दूर रहव।
3) खांसत अउ झिकत खानी मुँह ला तोप के ख़ाँसव झिकव अउ  सार्वजनिक जगह मा झन थुकव।
5) अपन हाथ ला बार बार साबुन पानी ले धोवव अउ एल्कोहल आधारित सेनेटाइजर के उपयोग करव।
6) सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट ( बस, ऑटो- टैक्सी, ट्रेन, रिक्शा ) के उपयोग झन करव।
7) सरकारी आदेश अउ दिशा निर्देश के पालन करव, शासन के गाइड लाइन के अनदेखी झन करव।
8) कोरोना के लक्षण अपन आप मा दिखाई देवत  हावय त शासन ला सूचित करव।
9) कोनो शहर या संक्रमित जगह ले आवत हव त 14 दिन तक अपन आप ला कोरनटाइन करव।
10) अपन मास्क ला सार्वजनिक जगह में झन फेकव ओला जला दव या कचरा पेटी में डार देवव।

*कोरोना वाइरस के दुष्प्रभाव*
           कोरोना वाइरस के गम्भीर दुष्परिणाम निकलिस हावय। आज सरी जगत के अर्थव्यवस्था चरमरा गे हावय अउ कईठिन समस्या ला उजागर कर दे हावय। आज भारत देश मा कोरोना ले लाखो करोड़ो मनखे के रोजगार ला छीन ले हावय। कोरोना के फइले ले दूसर प्रदेश मा जाके कमइया बनिहार अउ मजदूर मन बेरोजगारी अउ गरीबी मा दिन ला काटत हावय।  फैक्टी, बस, ऑफिस, छोटे बड़े दुकान लॉकडाउन मा बन्द होंगे जेकर ले आर्थिक मंदी आगे हावय अउ विकास हा एकदम से ठप होंगे हावय। विद्यालय, महाविद्यालय के बन्द होय ले पढ़ाई लिखाई तको ठप होंगे हावय। लाखो विद्यार्थी मन के भविष्य खराब होवत हावय। कोरोना महाकाल कई ठिन समस्या ला पनपात हावय जइसे- गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य समस्या, सामाजिक अउ परिवारिक जइसन समस्या।

*प्रकृति बर वरदान*
            कोरोना वाइरस के महाकाल मनखे मन बर अभिशाप बनिस त प्रकृति बर वरदान घलो बनिस हावय साबित। कोरोना के चलते सरी जगत मा लॉक डाउन रहिस। मोटर गाड़ी फैक्ट्री मन सब बन्द रहिस जेकर चलते प्रदूषण में कमी आइस। एक रिपोर्ट के हिसाब ले कई बच्छर बाद ये बच्छर प्रदूषण मा 50% गिरावट आइस हावय। आज वातारवरण पहली ले साफ अउ स्वच्छ होंगे हावय। प्रदूषित नदिया मन के पानी मन तको साफ होइस हावय।

*उपसंहार*
              जल्दी से जल्दी कोरोना के फैलत वाइरस ला रोके बर उपाय करें जावय। कोरोना के अइसने मामला बढ़त रही त हमर विकास के गति 50 बछर पछवा जही अउ अइसन दिन आही की कोरोना के महामारी समचे मनखे ला चट कर जाही। मनखे हाथ मा हाथ धरे देखते रह जाही। आज हमन कोरोना ले सीख लेवन अउ प्रकृति से छेड़ छाड़ झन करन। मनखे ले भगवान बने के चक्कर मा अति उपद्रव झन करन, सबो ला अपन समझत मानवता रखिन।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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