Friday 31 July 2020

मुंसी प्रेमचंद जयंती विशेष-आलेख

मुंसी प्रेमचंद जयंती विशेष-आलेख

 अजय अमृतांसु: *प्रेमचंद के साहित्य म नारी विमर्श*

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहिन। समाज म शोषित हर वर्ग के प्रति उँकर साहित्य म खुला विद्रोह मिलथे। गरीब, मजदूर, किसान, दुखित, पीड़ित,शोषित मन के पहरेदार के रूप मा प्रेमचन्द जी खड़े हुए नजर आथे । कई विद्वान के ये मानना हवय कि यदि भारतीय समाज अउ  संस्कृति के दशा ल यदि जानना हवय त प्रेमचंद के साहित्य के अध्ययन कर लय ।

20 वी सदी म प्रेमचंद जी स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ नारी उत्थान अउ नारी जागरण के दोहरी भूमिका मा रहिन ये कहना अतिशयोक्ति नइ होही । प्रेमचन्द के कथा साहित्य में बाल विवाह, पर्दा प्रथा, कन्या हत्या, बेमेल विवाह, बहु विवाह  आदि अनेक प्रकार के कुरीति द्वारा नारी शोषण के यथार्थ चित्रण मिलथे । प्रेमचंद जी पुरुष के समान ही नारी शिक्षा अउ पुरुष के समान अधिकार के प्रबल पक्षधर रहिन । 

प्रेमचन्द के कथा साहित्य म नारी विमर्श के अलग स्थान हवय । उँकर साहित्य में नारी दयनीय नइ हे, बल्कि त्याग, निष्ठा, तपस्या, नैतिक मूल्य के प्रति जवाबदार अउ भावुक हवय।  नारी के संघर्ष ला उमन बखूबी चित्रित करे हवय । भारतीय समाज के सामाजिक संरचना म प्रेमचन्द जी स्त्री ल विशेष स्थान दे हवय। 

दहेज प्रथा के खिलाफ प्रेमचंद मुखर हो के लिखिन, उँकरे शब्द मा- 
"दहेज बुरा विवाह है बेहद बुरा" ( निर्मला पृ-29)
ये बात के सबूत है कि उन दहेज प्रथा के घोर विरोधी रहिन ।

"गबन" म प्रेमचन्द जी के भावना नारी के प्रति उदार हवय। उँकर मानना हवय की यदि स्त्री ला जीवन जीये के उचित अवसर मिलही ता देह व्यापार जइसन घृणित काम उन कभू नइ करय ।

प्रेमचंद के मानना रहिस कि मातृत्व नारी जीवन के सब ले बड़े साधना आय - 
"नारी केवल माता है और उसके उपरांत वह जो कुछ है वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र है। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या और सबसे महान विषय हैं ।" (गोदान)

"नारी चरित्र में अवस्था के साथ मातृत्व का भाव दृढ़ होता जाता है यहां तक कि एक समय ऐसा आता है कि जब नारी की दृष्टि में युवक मात्र पुत्र तुल्य हो जाते हैं।"  (मानसरोवर)

राजा राम मोहनराय 1829 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवा दिन । येकर बाद नारी हक बर लड़ने वाला  बड़े बड़े समाज सुधारक म आइन जेमा- ईश्वर चंद्र विद्यासागर, देवेंद्र नाथ टैगोर अउ विवेकानंद के नाम उल्लेखनीय हवय । विवेकानंद जी भी नारी उत्थान ला मजबूत आधार दिन । आर्य समाज के स्थापना के बाद स्त्री विमर्श के नवा दौर सुरु होइस। 

प्रेमचन्द जी के कथा साहित्य म नारी के प्रति सम्मान के दृष्टिकोण हवय वो चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित । गोदान, गबन ,वरदान, कायाकल्प, मंगलसूत्र , सेवा सदन उपन्यास के माध्यम से प्रेमचन्द जी नारी चरित्र के विभिन्न आदर्श ला स्थापित करे के भगीरथ प्रयास करे हवय ।
प्रेमचंद्र जी के नारी पात्र मा - प्रेमिका, विधवा, माता, कुशल गृहणी, मेहनतकश, बाल वधु, समाज सेविका, वेश्या आदि मिलथे। 

आज सोंचे के विषय ये हवय कि प्रेमचन्द जी के कालजयी संदेश ला वर्तमान पीढ़ी कहाँ तक आत्मसात करथे । उँकर लिखे हरेक बात आज भी  प्रासंगिक हवय । 

अजय अमृतांशु
भाटापारा
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 मीता अग्रवाल: *प्रेमचंद के रचना मा सहानुभूति* 

प्रेमचंद, धनपतराय,नवाबराय नाव ले अपन रचनाधर्मीता के अंजोर ले हिन्दी गद्य साहित्य के अकास के ध्रुवतारा हवे।
प्रेमचंद के सब ले प्रमुख गुन उंकर व्यापक सहानूभूति रिहिस,जेकर कारण साहित्य मा मनुख के सहज अधिकार लगथे।अपन जुग के आदर्श ला जब लानथे, तव वो जनवाद के बिसेषता ला धर के रेगथे,इही पाय के वो भाव खाली जुग अउ आदर्श धरे नइ हे,बल्कि वो परिवेश के वोमा संस्कार के संगति अउ चेतना के सामंजस्य दिखाई देथे।उकर कथा कहानी मा सहानुभूति के एक घमंड दिखथा,जेमा राजनीतिक बुद्धि वाद चघय नइ,वो पापी ल क्षमा  नइ करय,अपराधी, शासन के  उपेक्षा घलो नइ करय, वोला छोड के, मार के उपवास करके दण्ड देथे। ये सहानुभूति उकर साहित्य मा विस्तार ले बगेर हवे।जिनगी के सभी समस्या के जतका सुग्घर चित्रण,प्रेमचंद ला पढ के मिलथे,जिनगी के सबो राग,ममता,सबो जाति धर्म,  संस्कार, समाज ब्यवस्था के परिचय व्यापक रुप  मा देखे बर मिलथे।बहुतेच सावचेत होके अपन साहित्य ला जुग जिनगी के माध्यम अउ संबंध बनाय मा प्रेमचंद हा जागरूक रहिन।
 प्रेमचंद जी के पूरा साहित्य मा,सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्या के बाढ हे,जउन अपन ढ़ग ले समस्या के  समाधान  बतावत दिखथे।किसान मजदूर के प्रति उकर दृष्टि अगाध सहानुभूति मा बुढे हवे, उही जमीदार पूंजीपति ला बखान करे मा ये कलाकार अपन संतुलन नइ खोय,उंकर कमी,गुन ला उजागर करे मा पीछे नइ हटे।सबो वर्ग ला अपन रचना मा स्थान देके वोला कालजयी पात्र बना दिस-उपन्यास मा निर्मला ,गोदान के  होरी -धनिया गबन के रमानाथ।कहानी मा पंच परमेश्वर, बुढ़ी काकी,नमक के दारोगा, सौत,बड़े  घर की बेटी, कफन के घीसु माधव धनीया सबो रचना मा दैनिक जिनगी के, पास- परोस के व्यवहारिक समस्या उजागर करत दिखथे।जउन संगे-संग आदर्श अउ यथार्थ के धरातल ले जुर के समाधान ला घलो बताथे,अउ अपन रचना के प्रति  एक राग अउ विचार के विश्वास पैदा करथे।
प्रेमचंद जी के व्यवहारिक सहानुभूति  व्यापकता के  गुन साहित्य ला सरल सहज जोर के, पाठक के चिंतन के दुवारी ला खोल के ,अपन उपादेयता  सिद्ध  करथे।

 *डाॅ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़*

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 हीरा गुरुजी समय: प्रेमचंद के काहनी अऊ छत्तीसगढ़

प्रेमचंद ल छत्तीसगढ़ के लईका सियान सबो जानथे उखर काहनी इस्कूल अऊ कालेज म पढ़ाय जाथे।प्रेमचंद ल हिन्दी कहिनी के सम्राट कहे जाथे काबर कि वो हा 300 ले आगर कहिनी लिखे हावय ओला उपन्यास सम्राट घलाव कहिथे सेवासदन प्रेमाश्रम रंगभूमि कर्मभूमि गोदान गबन कफन अईसने अड़बड़ अकन उपन्यास लिखे हावय उही किसम ले बूढ़ीकाकी, ईदगाह, पूस की रात, नशा ,गुल्ली डंडा, नमक का दरोगा, आत्माराम, गृहदाह, जूलुस, भाड़े का टट्टू, सत्याग्रह, सवा सेर गेहूं प्रेरणा  ,बाबा जी भोग, पशु से मनुष्य, रामलीला, दुस्साहस ,शतरंज के खिलाड़, डिक्री के रुपये ,नैराश्य लीला  काहनी मन परसिध हावय । फेर वो हा हमर छत्तीसगढ़ के रहईया नोहय उखर जनम 31अक्टूबर 1880 बच्छर म बनारस के लक्ठा गांव लमही म होय रहिस बचपना म उखर नांव धनपत राय रहिस पाछु ये नांव ल छोड़ के अपन नांव प्रेमचंद राखिन 1914-15 बच्छर म अपन लिखई ल चालू करिन 20-21 बच्छर के लिखई बुता म अपन नांव दुनियाभर म बगरइस उखर लिखे काहनी उपन्यास मा  छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाज खान-पान रहन-सहन देसहा संस्कृति गांव-गंवई मीत-मितानी खेल- खेलई सेठ गरीब मजदूर किसान करमचारी नत्ता-गोत्ता कुकूर-बिलइ गाय-बइला के झलक देखे बर मिलथे उंखर काहनी के पात्र हमर छत्तीसगढ़िया मन से मिलथे 
नाती बूढ़ी के काहनी *बूढ़ी काकी* म दरसाय हे भतीजा बहू सास के खेत खार ल अपन नांव म करके पानी पसिया बर तसाईस फेर आकरे बेटी ह मया करिस अऊ पतरी ल चटवाय तक लेगिस। *ईदगाह* म अपन ककादाई के हाथ जरे ले बचाय बर नाती अपन खई खाय के पईसा के चिमटा बिसा के लाथे *महातीर्थ* म नान्हे लइका राखेबर रखे दाई अऊ नाती बराबर मया करइया लइका के मया के काहनी हे एक दुसर ले दुरिहाय ले दुनो झन ल जर धर लेथे फेर लइका के जीव बचायभर अपन तीरथ यातरा ल छोड़ देथे हमर छत्तीसगढ़ म घलाव नाती पोता संग अड़बड़ मया करथे नौकरी चाकरी मा जायके सेती नातीबूढ़ी के मया दुरिहा होवत है मोसीदाई के उही परभाव हमर छत्तीसगढ़ म घलाव देखे जाथे जौन प्रेमचंद के काहनी "गृहदाह" मा लिखाय हावय मोसी महतारी ह आतेसात ले छोटकन सउत बेटा ल बईरी मानथे जेखर सेती दुनो के नत्ता बन नई सकय दूजहा बेवहार करथे फेर ओखरे सगे लईका अपन सउत भाई संग मया करथे ओला बड़का भाई मानथे मोसी महतारी के अईसने पकतको बेवहार देखेबर सुनेबर मिलथे
समाज म सेठ साहूकार मन के अइताचार के किस्सा भरे हे प्रेमचंद यहू ल अपन काहनी म जगा देहे *सवा सेर गेहूँ* म साहूकार ह बियाज  के बाढ़त ले कुछु नई बोलय फेर करजा नंगत बाढ़थे तब तगादा उदेली  भेजथे करजा नई छुटाय त ओला बंधुवा बनाके करजा छुटवाथे मरे के बाद ओकर लइका ल बंधुवा बना लेथे अइसने छत्तीसगढ़ के गांव सहर म घलो गऊंटिया मन करे अऊ गरीब ल लूटत हे ऊंखर खेतखार घरकुरिया ल नंगावत हे *नशा* काहनी म गरीब ल अमीर बनथे त ओखर बेहवार कैइसे बदलथे अपने आदमी ऊपर हुकूम चलाथे चरवाहा पनिहारा रंधइया ल छोटे समझथे अइसने हमर छत्तीसगढ़िया अधिकरी बन जाथे त गांव परवार म हुकूम चलाथे बेटा बहू के बेवहार दाईददा  बर बदल जाथे *ईश्वरीय न्याय* , *दुस्साहस* , *पशु से मनुष्य*  काहनी म अइसने अइताचार ल लिखे हावय। मितानी के किस्सा मितानसंग संग- संगवारी संग बेवहार दगा-देना नत्ता-निभाना ल अपन काहनी म सुघ्घर बताय हे *डिक्री के रुपये* म लिखे हावय दुनों संगवारी रथे फेर एकझन संपादक अऊ दुसर अधिकारी संपादक सच के संग देवइया रहाय एक घांव अधिकारी घूंस लेके फंस जाथे संपादक संग भेंट होथे तब सच बता देथे संगवारी दुबिधा म फंस जाथे पाछू सच छापथे कचेरी म अधिकारी मुकर जाथे दांड़ संपादक ल होथे फेर ओखर हैसियत नई रहाय त अधिकारीच ह पइसा भरके अपन मितानी निभाथे अइसने "शतरंज के खिलाड़ी" मा दू संगवारी अपन अलग दुनिया म रहाथे परवार मन ताना मारथे त मंदिर म बैइठ के शतरंज खेलथे कतको बेर झगरा होथे फेरे खेलेबर नई छोड़य *गिल्ली डंडा* म नानपन म बने संगवारी  ले अड़बड़ बच्छर म भेंट अऊ उही दिन के सुरता फेर सब बदल जाय रथे एक अधिकारी दुसर गरीब अब उही खेल म मजा नई आय छत्तीसगढ़ म घलाव नानपन अऊ इस्कूल के संगवारी कोनों जगा मिलथे देवारी मनाय गांव जाथे त सब बदल जाय रथे प्रेमचंद के काहनी म कुकुर बिलई गाय बइला मिट्ठू के संग मितानी अऊ परेम के कथा हावय  दो बैलों की कथा मा बइला जोड़ी हीरा मोती ल मालिक अपन सारा घर भेजथे एक घांव भाग के आ जाथे पाछू फेर लेग के जांगर के टोरत ले कमवाथै खायपिये बर ढंग से देवय नहीं वोमन उहां ले भाग जाथे बड़ दुख पाथे आखिर म मालिक करा जाथे उखर बिना मालिक घलाव बिमार हो जाथे सबो मिलथे तब मया दुलार  बाटथे *आत्माराम* मिट्ठू संग लइका असन परेम राखधे ओकर उड़ा जायले खायपिये ल तियाग देथे *पूस की रात* म कुकुर संग रातभर कटकट्टा जाड़ म रखवारी अऊ ओखरो हियाव रखेबर पत्ता सकेल के जलाइस जेमा खेत म आगी लग जाथे अइसने मालिकभक्त कुकुर के मंदिर छत्तीसगढ़ म बालोद जिला के मालीघोरी गांव म बने हावय छत्तीसगढ़िया मन गायगरू के संग मुसवा,बिलई , कुकुर ,गदहा,घोड़ा पोसथे प्रेमचंद के काहनी म सामाजिक परवारिक के संग धारमिक ढोंग ल आगू लाय हे *रामलीला* म धरम के नांव लेके चंदा मांग के ओ पइसा के अपन सेखी म खरचा कर बिरथा म फूंकना अऊ कलाकार मन के शोसन ल दरसाय हावय *बाबा जी का भोग* काहनी म कामचोर ह साधू बन बरा सोंहारी खाथे कमइया मनल लांघन भूखन रहिथे धरम के नांव लेके लूटत हे इहां घलाव आज जगा जगा रामायण प्रतियोगिता,भागवत होवत हे बाहिर ले महराज आके लूट के लेगत हे ईहां के गवइया बजइया मन जुच्छा हो जाथे। प्रेमचंद नेता मनके कथनी करनी अऊ राजनीति ल अपन काहनी म जगा दे हावय *सत्याग्रह* म नेता मनके हड़ताल तोड़े खातिर पुलिस अऊ सरकार किसम किसम के उदीम करथे धरम करम के आसरा लेके भड़काते एकदुसर ल लड़ाथे  वसने *जुलूस* म नेता ऊपर दरोगा डंडा चलाथे जुलूस ल रोकथे ओला ऊपर ले बड़े साहब डर रथे छोटे पुलिस ल अपन नऊकरी बचाय बर रथे नेता इही बीच म मर जाथे सब दोस दरोगा ऊपर आथे ओकर मऊद माटी म शहर भर के जनता जाथे ओमा दरोगा के घरवाली चलाव रथे ओ अपन दरोगा ल गारी सुनाथे पाछू नेता के  गोसाईन ले दरोगिन मिलेबर जाथे त ऊहां अपन दरोगा ल देखके ओकर मति हर जाथे अपन दरोगा लगलत समझेंव अईसने हमर छत्तीसगढ म अपन मांग बर धरना देवइया मन ऊपर आज घलाव पुलिस अइताचार करथे कतकोझन शहीद हो जाथे नेतामन जाति, धरम,समाज म बांट के अपन रोटी सेंकत हावय  *मुक्ति के  मार्ग* म प्रेमचंद बताय हावय भेड़ी चरवाहा ल किसान खेत म होके भेड़ी लेजायबर मना करथे त ईरसाद्वेश म दुनो मन बैरी हो जाथे एक दूसर के नकसान करथे दूनों के घर राख हो जाथे पाछू मितान बन जाथे फेर का फायदा *डिक्री के रुपये*  म घलाव हावय हमर छत्तीसगढ़िया मन अपने भाई सगासोदर परोसी  ले बैरी बनथे दूसर के बाढ़त ल नई देख सकय कपट राखथे उही किसम ले खेलकुद के मया दुलार ल प्रेमचंद बहुतेच सुघ्घर लिखे हावय *गिल्ली डंडा* म देशी अऊ परदेशी खेल के अंतर बताहे खेल जातपात धरम गरीबीअमीरी छुआछुत नई चिनहै देशी खेल कम  खरचा कम खेलाड़ी म जादा मजा के संग खेले जाथे देखावा कम रथे फेर आज के लईका एला नई मानय छत्तीसगढ़िया लईका मन ल घलाव परदेसिया खेल के निशा चढ़ गेहे अऊ  मोबाइल के खेल एकठन मुड़ीपीरा बन गेहे दाईददा के बरजे नई मानय ।प्रेमचंद छत्तीसगढ़िया नई रहिके छत्तीसगढ़िया म मिले हावय अवधी मगधी के भाखा रहन-सहन हमर छत्तीसगढ़ी ले मिलथे ।वो बहुतेच बड़का लिखईया रहिन ऊखल लिखे काहनी उपन्यास हमर देस संग दुनियाभर म अंजोर बगरावत हे ।छत्तीसगढ़ सरकार ह ऊंखर जनमदिन ल एसो सब इस्कूल म मनायबर आदेश दे हावय।

लेख एवं संकलन
हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा जिला गरियाबंद
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