Friday 17 July 2020

दाई के पीरा* मिनेश कुमार

दाई के पीरा* मिनेश कुमार

हँसा बड़ सिधवा अउ शिक्षित मनखे रहय।जौन पढ़ई-लिखई करिन अउ इँजीनियरिंग के डिग्री लिस, कुछ महिना के बाद म बर-बिहाव अउ सरकारी दफ्तर म नौकरी लगिस,हँसा के गोंसईन लक्ष्मी जेहर घलो बड़ पढ़े-लिखे अउ गउ राहय बिचारी ह।
          नौकरी लगे के तुरते बाद शहर आईन!हँसा ह बुता म रोज दफ्तर जाय लगिस,२ बच्छर बाद म हँसा के घर म बेटी (सुरभि)अवतरिस घर परिवार म बड़ उछाह आ गिस। देखते-देखत सुरभि ५-६ बच्छर के हो गिस अउ स्कूल पढ़े बर जाय लगिस, दिन भर स्कूल के पढ़ई-लिखई अउ बिहना-सँझा खेलत-कूदत दाई के बुता म हाथ बटावत बाढ़त गिस अउ सुरभि म दाई ददा के सँस्कार दिखत रिहिस।
         कुछ बच्छर बाद घर म एक ठन अउ उछाह के बेरा उईस,हँसा अउ लक्ष्मी के बेटा बेटा (विजय)अवतरिस । बेटा के जतन-पानी बड़ सुघ्घर ढंग ले करत रिहिन।
    नौकरी लगे के १५ बच्छर बाद एक दिन हँसा ल हृदयाघात (हार्ट अटैक) के पीरा उठिस अउ अस्पताल लेगत-लेगत हँसा के परान छूट गे!अब तो भईगे लक्ष्मी बर पहाड़ टूट गिस, बेटी बेटा के पढ़ई-लिखई के सँसो संग मा घर के कमईया के बिते के दुःख।
कुछ महिना बाद हँसा के दफ्तर ले पाती पहुँचिस कि हँसा के बिते के बाद (अनुकंपा)हँसा के जगहा म लक्ष्मी ल उहि दफ्तर म वोखर योग्यता ल देखत वोला पद मिलिस।
         एक डाहर लक्ष्मी के सँसो कमती होबे नइ करय, बेटा ल पढ़ा लिखा के डाक्टर बनाए के सपना रिहिस! बेटी ल संग मा राख के पढ़ाई-लिखाई कराईस अउ बेटा ल एकठन बहुते बड़े कान्वेंट स्कूल म भर्ती करादिस जिहाँ छात्रावास के घलो सोसलियत रिहिस,विजय उँहे रहय अउ पढ़य लिखय कभु १५ दिन ते कभु महिना म लक्ष्मी भेंटे बर जावय।
     ऐ डाहर सुरभि ह कालेज तक के पढ़ई पूरा कर डरिस हे..... लक्ष्मी अपन बेटी सुरभि के बिहाव घलो करदिस बिचारी ससुरार चल दिस।ऐ डाहर विजय के उमर घलो बाढ़त गिस अउ डाक्टरी के पढ़ई करे बर बिदेश चल दिस अउ कुछ बच्छर बाद डाक्टरी के डिग्री धर के घर आईस।अब ऐ डाहर लक्ष्मी के उमर घलो घटत रिहिस हवय संगे- संग बेटा के बिहाव के सँसो अउ चौंथा पन के सुख ल पाय के आस देखत बेटा ल बिहाव बर जोजियाईस! बेटा ह तो बिदेशी रंग अउ संस्कार म रँगे राहय । बेटा बिदेश जाके बिहाव करलिस ! बेटा के बिहाव अउ बहू ल देख के लक्ष्मी के खुशी ल का कहिबे,विजय अपन बिहई ल घर लाईस!दाई तो बड़ खुश होवत रिहिस लेकिन बहू ल सास के घर के रहन सहन नइ जमिस बहू ह विजय ले कहिन हमन अपन देश जाबो मँय ईहाँ नइ रहि सकँव।तोर महतारी ल वृद्धाश्रम म दे!विजय अपन गोसईन के बात ल मान के दाई ल वृद्धाश्रम म छोड़ दिस अपन मन बिदेश चल दिस।....... दाई के पीरा... पहाड़ होगे...अँतस के आस टूटगे!रोवत-रोवत दिन ल गुजारय अउ गुनय बेटा ल तो अतका पढ़ाए- लिखायेंव फेर का कमी रहिगे भगवान कहिके लक्ष्मी ह अपन बेटा ले आस टोर दिस......!अउ बेटी डाहर आखरी आस ल जोर के पाती पठोईस!जेमा बेटी ल कहिस...........

घर मा पहुना बना के,
                          बला लेबे बेटी..
एक कोन्हा मा राख के,
                      चला लेबे बेटी.....
चढ़:- घिरलत हँव,
               बेटा-बहु के दुःख मा...
   मोर अँतस के पीरा ल गला देबे बेटी
         घर मा पहुना बना के.......

बड़ गरब करेंव मँय बेटा ला पाके,
पालेंव पोसेंव मँय बड़ दुख ला खाके।
करदेंव बिहाव मँय बड़ सुख पाँहू,
हाथ के काँवरा लेगे बहु नँगाके।।

चढ़:- जिनगी के गाड़ी,
               अड़चन मा अटके हे....
बने रददा मा लाके,ढुला लेबे बेटी
       घर मा पहुना बना के....०१

उतरगे चुरी उतरगे हवय अँईठी,
अब तो भरोसा हवय तोरे डेरौठी।
लईकासही सरेख के राख लेबे  तैंहा,
दाई के लाज रखदे ऐ दुलौरिन बेटी

चढ़:-दाई के आस हवय,
                      तोरे उपर मा.....
जिनगी के काँटा ल ऊला देते बेटी
        घर मा पहुना बना के.....०२


धन हे बिधाता महतारी जनम ल,
सिरतोन निभाथे वोहा दाई के धरम ल।
सुनले समझ ले दाई के पीरा,
झन तँय बिचारबे लाज सरम ल।

चढ़:-जावत बेरा मोर,
                     अरजी हे छोटकुन
बेटा बनके मोर लाश ला,जला देबे
            बेटी....................
    घर मा पहुना बना के........

अईसे कहिके बेटी ल गोहरावत रहय।अउ पीरा म चुरत राहय।


मिनेश कुमार साहू
भुरभुसी गंडई

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