Wednesday 22 July 2020

संस्मरण : दूसरी कक्षा के एक दिन

संस्मरण : दूसरी कक्षा के एक दिन

मोर नाँव विरेन्द्र साहू हे, मँय अपन दूसरी कक्षा के शुरुआती दिन के घटना ला बतावत हँव। पहिली ले दूसरी तो चढ़गे रहेंव फेर न अ लिखे बर आवय न पढ़े बर। पट्टी के एक डहर अ दूसर डहर आ लटपट लिख लँव ता इ, ई बर जगा नइ बाँचे। गुरुजी ले मार खाय के आकब कर के रोय लगँव। आकब हा रोआई के सेती तुरते सिरतो हो जाय। एक दिन उधोराम चंदनिहा नाँव के गुरुजी जेन हा साहित्यकार घलव रहिस मोला जोरपरहा, अउहा-झउहा नंगते मारदिस। दूसर दिन स्कूल नइ जाँव कहिके पट्टी पोथी ला फेंक देंव ता ददा हा मना बुझा के, खजानी धराके मोला स्कूल लेगिस। ददा हा गुरुजी के आघू हाथ जोर के कहिस के गुरुजी मोर लइका के मन मा डर समा गेहे, थोकिन सहातू मारिहव, मोर डहर ले जतेक बन परही पढ़ाय के कोशिश करहूँ। दाई तो स्कूल के मुहुँ नइ देखे हे, ददा चौथी तक पढ़े हे। निच्चट गरीबी के सेती मोर बाप हा आन गांव के दाऊ घर बुढ़ियार लगे, बिहना छै बजे के निकले रात सात बजे तक ले घर आवय। हप्ता दिन ले मोला रतिहा कुन पढ़ाइस, वर्णमाला चिन्हवाइस, लिखे बर सिखाइस अउ सोला तक पहाड़ा याद करवाइस। माने के मोर बनौकी बनाइस। ददा भले चौथी पढ़े हे फेर ओखर अक्कल, अक्षर अउ गोठबात हा अच्छा खासा पढ़े-लिखे मनखे मन के बरोबर हे। सबला सीखे के बाद स्कूल के प्रति मोर लगाव बाढ़गे, दूसर डहर हीरक के नइ देखेंव। आज सरकारी स्कूल जिंहा मँय पढ़ेव उँहेच गुरुजी हँव।

विरेन्द्र कुमार साहू (छंद साधक सत्र 9)
बोड़राबाँधा (राजिम)

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