Monday 27 July 2020

छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य :एक विमर्श*

*छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य :एक विमर्श* 

      अइसे तो मँय कोनो समीक्षक अउ फिलिम मन के जानकार नोहँव,अउ न मोर पास छत्तीसगढ़ी फिलिम के इतिहास के कोनों पोठलगहा जानकारी हवै।तब ले *अधजल गगरी छलकत जाय* सरीख ए विषय म अपन बिचार लिखे के जोखिम उठात हँव।
      फिलिम अउ साहित्य के जुड़ाव(संबंध)ल जाने के पहिली फिलिम अउ साहित्य ल अलगे अलगे जानना घलुक जरूरी हे मानथँव।
*फिलिम मोर नजर म*
          बहुत पहिली लोगन मन अपन मनोरंजन खातिर पारा परोस म अउ गाँव म नाचा-पेखन अउ लीला मन के आयोजन करत रहिन।बेरा के बदलत नवा नवा उदीम आइन।खोज होइस।इही खोज ले एके ठन कार्यक्रम ल दसो जगा दिखावत कलाकार मन के कला ल फिलिम बना के एके संग सबो जगा पहुँचाय के उदीम करे गिस। इही उदीम फिलिम कहे गिस।लोगन अपन अपन खरचा ले देखे लगिन।चलन बाढ़े लगिस।पहिली बड़े शहर फेर छोटे शहर म सिनेमा घर खुल गे।गाँव गँवई म बिजली नइ पहुँचे ले एकर पहुँचे म देरी होइस।तब गाँव-गाँव म राम लीला कृष्ण लीला जइसे कतको पौराणिक लीला अउ नाचा पेखन चलै।नाचा पेखन अउ साँस्कृतिक कार्यक्रम म सामाजिक चेतना, लोकपरम्परा अउ रिवाज मन के दर्शन होय। समे के संग प्रहसन ले कलाकार मन सामाजिक बेवस्था ऊपर प्रहार घलुक करै।एखर आयोजन गाँव भर मिल के करै अउ खरचा के बेवस्था घलुक गाँव ले होय।आज इही ह फिलिम के रूप म देखे बर मिलथे।
    सार म कहन त फिलिम मनोरंजन बर बड़का उदीम आय।जउन ल मनोरंजन के संग सामाजिक चेतना, साँस्कृतिक विरासत अउ  समाज सुधारक पौराणिक अउ आधुनिक नायक महापुरुष मन के चरित्र चित्रण समाज के उत्थान बर बनाय जाय।
 
*साहित्य मोर नजर म*
        साहित्य कोनो देश-परदेश के रहवइया  लोकजीवन के रीति-रिवाज,परम्परा, वेशभूषा,सँस्कृति,लोक व्यवहार मन के मनोरंजन के रूप म लिखित रपट ह साहित्य आय।जेमा किस्सा-कहिनी, गीत अउ पुरखौती गोठ-बात (संस्मरण) होथे।जेमा अपन समय के समाज के दर्शन होथे।
       आधुनिक समय म साहित्य सामाजिक चेतना, लोक हित के संगेसंग आज के जम्मो परकार के विसंगति मन ऊपर लिखे जात हे।चाहे साहित्य गद्य होय ते पद्य।सबो चुनौती ले निपटे बर साहित्य लेखन सरलग होवत हे।
*फिलिम अउ साहित्य म जुड़ाव*
     ऊपर के बात ले साफ हे के फिलिम अउ साहित्य दूनो के क्षेत्र एके हवै। दूनो के मूल म समाज के उत्थान हे।
        पहिली के फिलिम मन ह पौराणिक कथा अउ उपन्यास मन ऊपर फिल्माय गे हे।आजो कतको फिलिम बनथे जउन आज के आने-आने क्षेत्र के नायक ऊपर बनथे।जउन ह समाज बर प्रेरक होथे।फेर गिनती के।गीत मन ह नवा फिलिम के आत ले दर्शक ल याद रहिथे तहाँ सबो भुला जथें।जुन्ना फिलिम के अधिकतर गीत साहित्य के गुन म खरा उतरथें।
       इही ढंग ले छत्तीसगढ़ी फिलिम मन म भी इही गोठ लागू होथे। छत्तीसगढ़ी के पहिली फिलिम *कहि देबे संदेश* अउ दूसर फिलिम *घर-द्वार*  जउन बहुते पसंद करे गिस।गीत आज भी लोगन ल याद हे।जउन मन बहुत पहिली के आय।गीत अउ कहिनी मिलके फिलिम पूरा होथे।जउन ढंग ले कबीर,तुलसी,मीरा,रहीम,सूरदास जी के रचना लोगन ल मुखाग्र याद हे या राहय।वइसने याद रहना उँखर साहित्यिक होना साबित करथे।
      छत्तीसगढ़ राज के बने के बाद जउन भी फिलिम आय हे मोर छइयाँ भुइयाँ के छोड़ कोनो ह अपन छाप नइ छोड़ पाइस। सबो फिलिम आइस अउ दू चार दिन म मनखे (दर्शक) मन के मन ले उतरगे।गीत कोनो ल गुनगुनावत न देखेंव न सुनेंव।भलुक लोगन छत्तीसगढ़ी के पारंपरिक अउ लोकगीत ल गुनगुनाथे।छत्तीसगढ़ी म एको फिलिम उपन्यास मन ले नइ बने हे।या फिर कोनो बड़े घटना या पौराणिक कथा मन ले बनाय नइ गे हे।भले हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य म उपन्यास के कमी होही पर अनुवाद कर फिलिम तो बनाय जा रहिस हे।ए ढंग ले हमर छत्तीसगढ़ी फिलिम मन म साहित्य के दर्शन नइ होय। अभी बहुत पाछू हवै अउ भविष्य ह घलो मोला उजास ले भरे नइ दिखत हे काबर के इहाँ के निर्माता मन म व्यावसायिकता ल आगू रखे  हे । जिंकर ले दर्शक मन के मन ल जीत नइ पावत हें।उँखर पसंद के फिलिम नइ आवत हे।दूसर बड़े समस्या इहाँ शासन तरफ ले कलाकार अउ निर्माता निर्देशक मन ल भरपूर प्रोत्साहन तको नइ मिल पावत हे।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार भाटापारछत्तीसगढ़

2 comments: