Friday 17 July 2020

(कहानी)-महेंद्र बघेल

कहानी)-महेंद्र बघेल

        *रुऑं ठाढ़ होगे*

           बड़े बिहनिया सुरसुर सुरसुर हवा चलत हे , सवाना हा बर्तन भाॅंड़ा ला माॅंज माॅंज के धोवत हे।
    "बियारी मा बउरे लोटा थारी हा आज चाॅंदी कस चमकय लगिस , राते भर मा बरतन भाॅंड़ा सब पटपटा जथे, बड़ हियाव करे बर लागथे " - सवाना हा कहिस।
सुन के सुखलाल कहिस - "तन के होय ,मन के होय चाहे कोनो जिनिस के होय समय समय मा वोला साफ करना च पड़थे सवाना।"
      सबो दिन बरोबर आजो बातें बात मा सहज भाव ले जीवन के उतार चढ़ाव के गोठ गोठियावत दिन के शुरुआत होवत रहिस।
           का भइस सुखलाल अउ सवाना हा आठवीं तक पढ़े लिखे रिहिन ते, जिनगी ला जाने समझे बर कोन से मार भारी पढ़ई लिखई के जरवत पड़थे ,ये बात तो अगम हे अउ कुछ जादा कहना उचित नइहे फेर जिनगी ला सवाॅंरे बर शिक्षा के महत्व तो होबे करथे।अउ ये जुग जोड़ी मन येकर महत्व ला बड़ नजीक ले समझे।
तभे तो सवाना हा सुखलाल ला सुरता करावत कहिस -" अनु हर तो पाॅंचवीं मा पहुॅंच गय हे , अभी असन मा  कापी पेन घलव ले देतेव। घरे मा रहिके थोर बहुत चेत लगाके लिखतिन पढ़तिन ।"
      सुन के सुखलाल हा मने मन मा गुनान करे लगिस - तॅंय सही कहत हस सवाना, अब तब स्कूल हा खुलइया हे,
अनु के पढ़ई लिखई बर अब मोला कोनों संशो नइहे,ओला चार साल पूरा होगे पढ़त पढ़त आज तक मोला कोनो शिकायत के मौका नइ दिस।
   अउ ये चतुर, येला तो अब हर हाल मा पहिली कक्षा मा भरती करना पड़ही, दू साल ले अपन जिद अउ महतारी के कलोली के सेती आंगनबाड़ी मा जाबे नइ करिस, पर अब अइसन होवन नइ दॅंव।"
     
        हाॅंड़ी के सीथा कस दुलरवा बेटा चतुर बर सुखलाल और सवाना के मया दुलार अतिक के वोहा अपन हाथ मा काॅंवरा उठाके खाय बर घटकारी करय, महतारी सवाना हा खवातिस तभे चतुर हा मन भर खातिस।
अनु हा पढ़ई लिखई मा अब्बड़ हुशियार एक घाॅंव के  समझाय पाठ ला सिरबिस नइ भुलाय अपन दिमाग में गम्पलास बरोबर चटका डरे।
पहली कक्षा ले लेके चौथी कक्षा तक हमेशा पहिली नंबर मा पास होवत रहिस ,तभे तो अपन गुरुजी मन के बड़ दुलउरीन रहीस।
मन मा कुलबुलात अपन जिज्ञासा ला बेझिझक गुरु जी मन ले पूछय, अउ गृहकारज ला हमेशा सपूरन करके हर रोज दिखातिस।

    एती काम बुता मा चिभके सवाना के चित मा बड़ उथल पुथल होवत हे ,नाना प्रकार के विचार रहि रहि के आवत-जावत हे अउ मने मन मा विनती करत हे - " बेटी अनु कस चेत बुध देके, बेटा चतुर ला घलव बने हुसियार अउ गुणवान बना देतेस भगवान ।"
     महतारी के सॅंशो फिकर ला महतारी च हर जाने फेर अनु के सुभाव हा तो कुछ हट के हवय, पढ़ई लिखई के संगे संग अपन बाप महतारी के कामकाज मा सहयोग करे बर हरदम आगू।  होनहार बेटी के अइसनहा गुणी सुभाव ला देखके कते दाई ददा के मन हा गदगद नइ होत होही।
        बेटी अनु हा जनम धरे रहिस उही पईंत सुखलाल सवाना दूनो सोच डरे रहिन हे के जब अनु हा पाॅंच साल के हो जही तभे दूसरइया लइका के बारे मा सोचे जही। बने तो सोचे रहिन फेर का कहिबे बेटा के मोह हा घलव अब्बड़ होथे। सवाना हा असनांद करके हर दिन तुलसी चौरा मा पानी रितोवत इही विनती करें , "हे भगवान अब के दरी मोर कोरा मा डीही रखवार बेटा ला पठो देतेस।"
     संजोग अइसन के पाॅंच साल पूरे पूरे मा सवाना के विनती हा पूरा हो गय,उॅंकर ॲंगना मा राजा बेटा के किलकारी गूॅंजे लगिस।

सवाना के घर मा जब बेटा लइका जनम धरिस उही पईंत कोनों पाॅंचक साल के होय रहिस होही अनु ला।
 
      अपन नानकुन भाई ला देख देखके अनु हा बड़ खुश रहय, अपन सब खिलौना ला खटिया मा मढ़ा के कहय "ले खेल न मोर भाई रे" लइकुसहा बुध मा का जाने बपरी हर के अभी तो भाई हा नानेचकुन हे ,अबोध हे।

एती लइका के छ्ट्ठी ला बड़ उछाह मंगल ले मनावत रमायण मंडली वाले रमइनिक मन सुग्घर मंगल सोहर गीत गावत लइका के नाव चतुर धर दिन।
अइसने हॅंसी खुशी ले दिन हा पहावत पाॅंच साल कइसे निकलिस गम नइ मिल पइस।
     एती अड़बड़ मया दुलार मा चतुर हा पलिस बाढ़िस अउ सुखियार होगे। खेलई-कूदई ,खई-खजानी के छोड़ चतुर ला आन चीज ले कोनों मतलबे नइ रिहिस।
   ये डहर अनु हा पढ़ई लिखई संगे संग खेलकूद में भाग लेवत संकुल अउ विकास खंड मा चैम्पियन के पदक अउ पुरस्कार पाइस।
  रंगोली भाषण सामान्य ज्ञान जइसे कार्यक्रम मा भाग लेवत हमेशा पहला स्थान मा आइस।
अइसन होनहार गुणिक बेटी बर कोन ला गुमान नइ होही।

             खेल प्रतियोगिता के आखिरी दिन सरपंच हा कार्यक्रम के पगरईत रहिस, वो तो खुदे अनु ला चैम्पियन के पदक पहिरा के प्रमाण-पत्र सौंपे रहिस।
 दूसरइया दिन सरपंच हर उही वार्ड के पंच ला धरके पहुॅंचगे सुखलाल घर अउ कहे लगिस - " तोर अनु हा पढ़ई के संगे संग खेलकूद मा घलव बड़ हुशियार हे जी, हम तो अपन अढ़हा बुध मा इही सोचत रहेन के पढ़न्ता मन खेलकूद मा कमजोर होथें, अब हमर सोच हा बदलगे । बहुत गरब के बात आय के ये नोनी हर प्राइवेट स्कूल बरोबर अपन अउ हमर गाॅंव के नाम ला रोशन करत हे।"
   सुखलाल अउ सवाना के बढ़िया संस्कार हा अनु बेटी पर वरदान होगे ,तभे तो ओकर नाम के गुहार गांव- गांव मा गली-खोर मा गूॅंजत हे।
सही मा लइका के आगू बढ़े मा घर के शुद्ध वातावरण, बढ़िया संस्कार , सोला-आना संगी साथी और समर्पित गुरु के जरवत पड़थे।
         
पहली कक्षा मा भरती होय ले चतुर के खेलई-कूदई बिसरगे, स्कूल मा खई-खजानी के सुरता कर कर के रोनहू हो जाय, बोटबिटा जाय। मॅंझनिया छुट्टी मा घर जाय अउ महतारी ला खई खजानी बिसाय बर रूंग-रूंग के पइसा माॅंगय।
   दाई ददा मन चेत नइ कर पईन के लाड़ दुलार मा पले बढ़े लइका हा अइसन मा बिगड़ जही। घर मा पइसा नइ रहितिस ता कहूॅं कोति ले माॅंग झाॅंग के ओकर जिद ला पूरा करें। चतुर हा अइसने ढंग ले अपन महतारी ला ठग जग के पैसा माॅंगय अउ अपन मितान मन संग फुटानी मारे।

अषाढ़ के महिना रहय उही दिन के कहूॅं तीन बजत रिहिस होही, भंडार डहर ले बिरबिट करिया बादर उठिस अउ मूसलाधार पानी गिरन लगिस , गरज चमक के संग चकोर चकोर के जब बरसिस ते चार घलव बजगे फेर पानी छोड़े के कोई आसरा नइ दिखय। स्कूल मा लइका मन असकटागे अउ  सब अपन अपन घर भगागें ।
  सब्बो मन तो गिदगिद ले फिलगे रहिन अउ एती भागत भागत फिसल के अनु हा बोहावत पानी मा चभरंग ले गिरगे।
अनु के तबियत खराब होय सेती तीन चार दिन स्कूल नइ गिस।
    अउ चतुर के आदत अइसे बिगड़िस के स्कूल जाय बर सिरबिस ले छोड़ दिस ।एती कतको दिन ले न अनु हर न दाई ददा मन गम पईन।
       सुखलाल अउ सवाना तो इही सोचय के चतुर हर रोज स्कूल जावत होही, पढ़ई लिखई मा ध्यान लगावत होही ।ओमन का जाने चतुर के काम तो पीपर तरी मा घाम छइयाॅं खेलना, घरघुंदिया बनाना अउ घर जाके पइसा माॅंग फुटानी मारना हवय।
         तबियत ठीक होय के बाद जब अनु स्कूल जाना शुरू करिस तब चतुर के चतुराई कम घटकारी हा समझ मा आवत गिस ।
     अनु हा भाई चतुर ला कतको समझाईस ,हर रोज स्कूल जाबे ते धीरे धीरे सबला सीख जबे। फेर चतुर नइ मानिस ।
    जब सुखलाल ला चतुर के घटकारी के बारे मा पता चलिस  ,सवाना ला कानों-कान खबर नइ होवन दिस, काबर कि सवाना हर बड़ सॅंशो फिकर करतिस।
     आगू दिन सुखलाल हा चतुर ला मना भूरियार के स्कूल मा पहुॅंचाईस।
   गुरूजी पूछिस "  स्कूल काबर नइ आवत रहेस जी चतुर " अउ सबो लइका मन ला खड़ी लकीर,आड़ी लकीर, आधा गोल,पूरा गोल लिख लिख के देखाय बर बोलिस।

गुरुजी के बात चतुर ला कइसे लगिस ,उही जाने ,फेर खेलई कुदई ,खई खजानी भॅंवरा बाॅंटी गिल्ली डंडा के सुरता कर करके ओकर ऑंखी ले तरतर तरतर ऑंसू चुचवाय लगिस।
   बिहान दिन ले अइसन ढेरियाइस के स्कूल जाय बर चुकता छोड़ दिस।
बपरी अनु हा समझावत समझावत थकगे-" जा भाई पढ़-लिख ,धीरे-धीरे पढ़बे लिखबे तभे तो आगू बढ़बे।"
  न तो बहिनी के बात मानिस न गुरूजी के सुझाव ल गुनीस।
     अउ एती वार्षिक परीक्षा के समय घलव आगे तभो चतुर के इच्छा नइ बदलिस।
अप्रैल में परीक्षा परिणाम घलव घोषित होगे,फेर चतुर हा खेलई कूदई,घुमई फिरई, के मोह ला नइ छोड़ पाईस।
 समझावात समझावात दाई ददा मन खार खागे।
        एती अनु हा पाॅंचवीं बोर्ड के परीक्षा में जिला भर में पहला स्थान पाके अपन महतारी बाप के छाती ला चाकर अउ माथ ला उॅंच कर दिस। ओकर मेहनत अतिक सुग्घर कि अनु के चयन नवोदय स्कूल बर होगय।
      परीक्षा परिणाम ला सुनके अनु ,सुखलाल अउ सवाना के पाॅंव हा खुशी के मारे भुॅंइया मा नइ माढ़त रहिस।

घर मा अतिक खुशियाली आय  के बाद घलो चतुर ला कोई फरक नइ पड़िस। अउ एती अनु ला आशीर्वाद दे बर सबसे पहली गुरुजी मन आईन,गांव के पंच सरपंच सगा सोदर ,संगी साथी ,जान पहिचान वाले सब मन ओरी पारी ले आ-आके बधाई अउ आशीर्वाद देवत गिन।
  दू दिन बाद सबो दैनिक अखबार मन मा बधाई संदेश देवत कलेक्टर अउ जिला शिक्षा अधिकारी के संग अनु के फोटो छपिस। पेपर मा छपे अनु बेटी के फोटू अउ नाव ल पढ़के सरपंच हा  आज अउ पेपर के संग मिठई  धरके पहुचगे सुखलाल घर। अउ जोर जोर ले उॅंचहा अवाज मा पढ़ पढ़के सुनावन लगिस- "सुखलाल अउ सवाना के  बेटी कु.अनुमति हर नवोदय चयन परीक्षा के संगे संग जिला प्राथमिक प्रमाण पत्र के परीक्षा मा प्रथम स्थान प्राप्त करके गाॅंव के साथ पूरा जिला के नाम रोशन करे हे।
कु. अनुमति के उज्जवल भविष्य के कामना करत उकर माता पिता ला बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।"
    दूरिहा मा बइठे चतुर हा बधाई संदेश के एकेक शब्द ला बड़ ध्यान लगाके सुनत रहिस। अनु बर लोगन मन के ये बधाई अउ आशीर्वाद के क्रम ला देखके सुनके ,शिक्षा के महत्व ला जानके ओकर अंतर्मन मा हलचल होवत रहिस।
अनु दीदी कस आगू बढ़े बर अउ अपन आप ल गढ़े बर चतुर के पूरा तन बदन मा बिजली कस उमंग भरगे, मुॅंदाय ऑंखी उघरन लगिस।
 अच जल्दी ले जल्दी स्कूल मा जाके भरती हो जातेव इही सोचत सोचत ओकर रुऑं ठाढ़ होगे।

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

No comments:

Post a Comment