Thursday 16 July 2020

विमर्श-छत्तीसगढ़ी भाषा मा --गणित ,विज्ञान, समाजिक अध्ययन,भूगोल, होंदी आदि विषय के अनुवाद के जरूरत*




विमर्श-छत्तीसगढ़ी भाषा मा --गणित ,विज्ञान, समाजिक अध्ययन,भूगोल, हिदी आदि विषय के अनुवाद के जरूरत*


     अनुवाद के जरूरत परथे  अपन भाषा के भंडार भरे बर , ज्ञान , विज्ञान , धर्म , राजनीति , सामयिक सन्दर्भ के जांनकारी बढोये बर ..।   संसार के जतका भाषा हे समय , सुजोग , जरूरत के मुताबिक आने  भाषा के कृति मन के अनुवाद करथें  एहर ज्ञान के विस्तार के तरीका आय ।
   अनुवाद के तीन प्रकार  माने गये हे ....
  1 भावानुवाद ....विषय वस्तु उही रहिथे भाषा अपन रहिथे
 2  शब्दानुवाद ....समानार्थी शब्द के अनुसार अनुवाद
 3 छायानुवाद  .....मूल भाव ल अपन भाषा मं अभिव्यक्त करना ..।
        छत्तीसगढ़ी मं तीनों तरह के अनुवाद के जरूरत हे , अभियो जौन अनुवाद होवत हे हमर भाषा भंडार ल बढ़ावत हे फेर सुरता राखे बर परही के जेन भाषा के लिपि , कथन  शैली , विषयवस्तु सब कुछ ल हम बने बने समझ सकत हन ओकर अनुवाद के जरूरत काबर पर गे ?
रहिस बात पाठ्यक्रम के विषय मन के छत्तीसगढ़ी मं अनुवाद करे के ...त ...
1 ...विषय विशेषज्ञ मन के सहायता लेना परही काबर के तकनीकी शब्दावली मन के छत्तीसगढ़ी शब्द नई मिलय ..जोर जबरन आने भाषा के शब्द ल तोड़ मरोड़ के छत्तीसगढ़ी बनाना बेमानी हे ...प्रतिदिन ...परतीदिन ।  स्टेशन ...इसटेसन ..
नहीं वो शब्द ल स्वीकार करव ...हिंदी हर कई भाषा के शब्द मन ल अपनाये हे ...।
2 गणित बर तो संसार हर मीट्रिक प्रणाली  ,  अंग्रेजी के गणना  ल अपना ही  लिये है ...कॉस , थीटा , दशमलव आदि त छत्तीसगढ़ी मं भी तो अपनाये च ल परही ।
3 विज्ञान के शब्द कोशिका , मेटाबॉलिजम , ओज़ोन , ऊर्जा अउ बहुत अकन शब्द हे अनुवाद करत समय  जस के तस लिखे बर परही ।
4  अनुवाद कोनो भी भाषा ले छत्तीसगढ़ी मं करे जावय ...मूल रचना के विषय वस्तु ल जस के तस रहन देवव ।

सरला शर्मा

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मोर खियाल मा कोनो भी विषय के अनुवाद कराई हा मुश्किल बूता नईये...! बात
अतका जरुर हे के अनुवाद करईया कोन हे....? अनुवाद ओखर मेर नई हो सकय जेन बचपन ले अपन
पिता के सँग गाँव ला छोड़ सहर मा बसगे ....माता पिता सहर मा आतेच छत्तीसगढ़ी ले लाज के मारे परहेज करे लागिस अऊ लईका घलो के नता अपन महतारी भाखा ले टूट गे..कहूँ थोर बहुत सुरतो रहिगे तव हिंन्दी लहजा के सँग मिंझरके ....! पढ़ाई लिखाई तो फेर छत्तीसगढ़ी ले दुरिहा रहेच हे...भगवान सहरे मा ओखरो नउकरी लगवा दिस ...अब छत्तीगढ़ी
से कोनो मतलबे नई रहिगे..
जरुर नाव करे बर छत्तीसगढ़ी मा कई बछर ले लिखत हे ...कतको किताब छपगे लकिन वो सिरजन मा छत्तीसगढ़ीहा रस नई रहिगे
अब अईसन के अनुवाद कईसे रईही ...?
चाहे कोनो भी विषय होय ...
कोई दिक्कत नई ये ...
दिक्कत उहें आही जिहाँ हमर अपन कमजोरी रईही ....
फेर अनुवादेच मा हम काबर अँटके रहिबो ....जईसे गुरुदेव कहिन के ...नवाँ भी तो लिखे जा सकत हे ...!

राधेेशयाम पटेेेल
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शोभमोहन श्रीवास्तव: छत्तीसगढ़ी भाषा मा विज्ञान भूगोल अउ तकनीकी विषय के अनुवाद ऊपर बने गुनान होवत हे ।

फेर कुछ प्रश्न जेन मोर मन मा हे ।

1/ हमन तकनीकी विषय के अनुवाद काबर करना चाहथन ?
2/अनुवाद के उद्देश्य अउ आवश्यकता का हे?
3/तकनीकी विषय के अनुवाद  करके हमन छत्तीसगढ़ी के विकास कइसे कर सकथन ?
4/ छत्तीसगढ़ी मा श्रेष्ठ साहित्य अउ परिष्कृत शब्दभंडार के बिना  प्रभावी अनुवाद कइसे संभव होही ?
5/का सबले आगू छत्तीसगढ़ी ला स्कूली शिक्षा मा पहिली ले 12वीं तक एक अनिवार्य विषय के रूप मा शामिल करे के उरथी (शूरुआत)बर प्रयास नहीं करना चाही ?

काली कुछ अनुवादित साहित्य पढ़े बर मिलिस जेन मा आदरणीय भाई सुशील भोले जी के द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी जी के रचना के अनुवाद मा छत्तीसगढ़ी के लहजा संग सार्थक अनुवाद बन पड़िस हे, छत्तीसगढ़ी मा अइसने अनुवाद होना चाही तभे छत्तीसगढ़ी के शब्दसामर्थ्य के पता लगही ।

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 संज्ञा के अनुसार ही क्रिया के उपयोग पूरा छत्तीसगढ़ मं होथे ...क्रिया विशेषण के उपयोग  करत बेर आंचलिकता के प्रभाव दिखथे विशेषकर बस्तर यानि दंडकारण्य के छत्तीसगढ़ी हल्बी , गोंडी , भतरी  मन मं ...साहित्य के सबो विधा मं  अनुवाद ल जगह देवव ...धीरे बाने छत्तीसगढ़ी भाषा के परिष्कृत रूप उभर आही ।
   अभी ध्यान देहे लाइक जरूरी बात एहर हे के पाठ्क्रम के विषयानुसार अनुवाद सरकार के जिम्मे करना चाही फेर हमरो तो योगदान जरूरी हे जेकर से जतका बनय ..संगवारी मन जब सेतुबंध बांधे गिस त गिलहरी अपन पूछी मं कुधरा लपेट के डारत रहिस ...। हमर बीच मं कई झन बुधियार साहित्यकार हें जिनमन आने भाषा के  अच्छा अध्ययन करें हंवय त  उनमन से मोर निवेदन हे कि गम्भीर लेखन के अनुवाद करयं , कई झन सक्षम हें विषयवार अनुवाद करे के त उनमन से भी निवेदन हे ...।
   आज अनुवाद ऊपर विचार विमर्श हर नवा दिशा डहर इशारा करत है , बिनती हे सबो झन अपन विचार लिखव ...। आठवीं अनुसूची , पाठ्यक्रम आदि ले अलग हटके सोचव के छत्तीसगढ़ी भाषा के भंडार भरे बर अनुवाद के महत्ता कतका हे , काबर  हे ?

सरला शर्मा
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जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया- छत्तीसगढ़ी भाखाँ म अनुवाद

            छत्तीसगढ़ के धर्म संस्कृति, नाचा, गम्मत, गीत कविता, खेत खार, काम बुता के कोनो सानी नइहे। अउ एखर लिखित पोथी के घलो कमी नइहे। चाहे पुरखा मनके कलम होय, चाहे नवा कलमकार संगी मनके, सबके कलम ये सब म खूब चले हे। अउ अभो चलत हे। हम सबके ध्यान  साहित्य कोती हे, अउ साहित्य म गद्य अउ पद्य के रचना चलत हे, अब हर विधा(कथा,नाटक, यात्रा) म रचना घलो होवत हे। फेर विज्ञान, गणित, भूगोल म नही।
*का छत्तीसगढिहा बिन हिसाब किताब के जिथे, का उँखर जिनगी म गणित नइ होय, का ओमन विज्ञान, भूगोल, सामाजिक विज्ञान बिन रथे? त आज तक ये मन म लिखित समाग्री काबर नइ आइस? एखर एके जवाब हे जरूरत नइ पडिस। फेर आज जरूरत महसूस होवत हे। मनोरंजन बर गीत कविता कहानी कन्थली भरे पड़े हे, फेर पाठ्यक्रम या ज्ञान विज्ञान के पोथी कमती हे। लिखई पढ़ई बर सबे विषय जरूरी हे। *हमर कलमकार संगी मन सशक्त हे, ज्ञान विज्ञान भूगोल गणित सबे ल अपन महतारी भाँखा म अनुवाद कर सकथे, अउ मौलिक घलो परोस सकथे।* हमर छत्तीसगढिहा समाज विस्तृत अउ विशाल हे, जेखर जीवन म गणित भूगोल विज्ञान  अर्थेशास्त्र, राजनीति सबे समाहित हे, त सबे म लिखई हो सकथे, बशर्ते ओखर मांग होय, उपयोग होय, सरकार निर्देशित करय, लिखइया मान सम्मान पाय।

*विज्ञान के एक उदाहरण* - गोलू पतंग ल अगास म उड़त देख अपन ददा ल पूछिस, ददा ये पतंग हवा म कइसे उड़थे? का एखर जवाब हमर भाँखा म अलग हो सकथे का, उही विज्ञान के नियम लागू होही। त लिखे म कोनो परेसानी कइसे होही? *हाँ कुछ टेक्निकल शब्द मन हिंदी अँग्रेजी हो सकते। अब येमा घलो ठेंठ ठेंठ रटत रहिबो, त हँसिया के बेंठ हो जबों, कहे के मतलब भाँखा के प्रति उदारवादी होय बर पड़ही*।

          हमर जुबान म सबे चीज हे,  अब जरूरत हे त ओला लिखित रूप म लाने के। एखर बर एक घाँव अउ दोहरात काहत हँव, ओखर माँग होय। *मैं स्वार्थी होत अपन बात काहत हँव, मैं काबर गणित ,विज्ञान, भूगोल लिखँव? का ये लिख मैं साहित्यकार, या कवि कहलाहूं? का कोनो मोर, लिखे गणित, विज्ञान,भूगोल ल मंच ले सुनही? का मोर नाम गाँव घलो होही? नही न, त मैं काबर 10,15 हजार खर्चा करके एखर पुस्तक छपवाँव ददा? हाँ कोनो कही त जरूर महिनत करहूँ?*
        शिक्षा आयोग,या सरकार छत्तीसगढ़ी ल बढ़ावा देय,ये भाँखा के ज्ञानी गुनी मनके मान सम्मान करें, पद पदवी(नोकरी चाकरी) घलो छत्तीसगढ़ी लिखइय्या पढइय्या ल मिले। ताहन देख कइसे नइ बाढ़ही, हमर छत्तीसगढ़ी। *आज हम सब मनखे मन स्वार्थी हो गे हन ,मैं जानत हँव मोर, अउ मोर असन कतको झन के लइका मन छत्तीसगढ़ी लिख पढ़ डारही, तभो वोला नोकरी चाकरी या जीवन यापन में मदद बर कुछु नइ मिलय, त काबर वोला जबरजस्ती पढ़ाय लिखाय। हाँ यदि सरकार या सभ्य समाज रोजगार या मान धन देतिस त मार पीट के पढ़ातिस।* फेर अइसनो नइहे । ददा दाई के बोली भाँखा ल लइका मन बरोबर सीखत हे, लिखत हे, अब जरूरत हे, त ये भाँखा के सरकारी अउ व्यवसायिक क्षेत्र म पहल करे के। ताकि माँग अउ बढ़े।

  मोर विचार से जमे विषय के अनुवाद करे जा सकथे, फेर आँख कान मूँद के नही, बने जांच परख अउ गुण ज्ञान ल सकेल के भिड़े बर पड़ही। थोरिक उदारवादी भाँखा म दिखाये बर पड़ही। कोनो भी भाखाँ के अनुवाद बर वो दुनो भाँखा के जानकारी अउ जानकार  होना दुनो जरूरी हे। तभे सही अनुवाद सफल होही। *एक बात अउ कि ऐसी के आघु म बइठ के जेठ के घाम के वर्णन करई अउ जेठ के घाम म तप के लिखई बतई, दुनो म अंतर होबेच करही।* केहे के मतलब मोती पाय बर पइसा खरचना नही बल्कि समुंदर म डुबकी लगाय बर पड़ही।



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा

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*विषय--छत्तीसगढ़ी भाषा मा --गणित ,विज्ञान, समाजिक अध्ययन,भूगोल, होंदी आदि विषय के अनुवाद के जरूरत*

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आज पूरा देश मा स्कूली शिक्षा बर NCF 2005 के प्रावधान लागू हे। जेकर मुख्य   तीन ठन मुख्य बिंदु हे--
1 बिना बोझ के शिक्षा (लर्निंग विदाउट बर्डन)
2 प्राथमिक शिक्षा ल बच्चा के मातृभाषा म देना
3 बच्चा के स्कूली शिक्षा ल बाहर के जीवन ले जोड़ना

   इन प्रावधान के बिंदू क्रमाक 2  म विचार करे जाय त साफ हे कि जब *मातृभाषा म शिक्षा देना हे* त कोनो विषय (गणित, हिंदी ----आदि) बर अनुवाद के जरूरत बिल्कुल नइये। इन विषय मन के पाठ *मौलिक रूप से लिखे जा सकथे।*
पाठ मन मा का का रहना चाही एहू बात ल NCF 2005 म बताये गे हावय। इहाँ दू समस्या के चर्चा होथे--
1  का वैज्ञानिक शब्दावली ल छत्तीसगढ़ी म लिखे जाय?
     मोर विचार ले वो शब्द मन ल ओइसने के ओइसने रखे जाय अउ ओला छत्तीसगढ़ी म समझाये जाय ।जइसे *चुम्बकत्व*(चुम्बक के इँचे के ताकत)
*गुणन फल*(गुना करे के बाद मिले उत्तर)----------आदि।
*माँ*( एला माता , दाई, दई, महतारी----- आदि घलो कहिथन । लइका अपन परिवेश के शब्द म समझ जही।
पूरा संसार म कोनो भाषा होवय *एके वैज्ञानिक शब्दावली के प्रयोग करे जाथे।* भले वोला सम्बंधित देश/जगा अनुसार भाषा म विश्लेषित करे जाथे।
2  छत्तीसगढ़ी के मानक रूप नइये------
हाँ अभी तक सिरतोन म नइये। फेर एकर *तत्कालिक निदान हे।* *छत्तीसगढ़ी के जेन रूप ह जादा ले जादा क्षेत्र म बोले अउ समझे जाथे ओला अपनाये जाय*
    *अभी रेडियो , टीवी म छत्तीसगढ़ी के जेन रूप के प्रयोग करे जावत हे। वो ए खाँचा म फिट हो सकथे।*
          NCF 2005 के एहू कहना हे कि उच्चतर माध्यमिक/ कालेज स्तर म बच्चा चाहे त अपन *रुचि अनुसार* अन्य भाषा सीख सकथे।
   ए स्तर म जाके अन्य भाषा म व्यक्त ज्ञान ल(किताब मन ल ) अनुवाद करे जा सकथे।

    *जब हम छाती ठोंक के कहिथन कि-हमर महतारी भाषा कोनो ले कमतर नइये। सब भाव ल व्यक्त कर सकथे त हिम्मत देखाके अउ मेहनत करके छत्तीसगढ़ी भाषा म पाठ्यक्रम गढ़े जा सकथे। अनुवाद के जरूरत नइये।*

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी भाषा में पुरा पुरा पढ़ाई अभी नइ होय के परमुख कारण सबो दर्जा बर पढ़े के साधन समागरी के अभाव हरे|
विषय वस्तु भरपुर मातरा में नइ लिखाए ले | पाठ्यक्रम कैसे बन सकही |ओकर बर मूल भाषा साहित्य, भूगोल , विज्ञान , गणीत , सामाजिक विज्ञान, सबो ल लिखे बर परही चाहे अनुवादित करे बर लगही|
   *शिक्षा विभाग ले जुड़े हवन 13 बछर होगे भौतिक पढ़ावत हवन*, गाँव म  हवन | जिला म अपन बिषय म परबोधक हँवन| जरूरत पड़े ले न्यूटन ,आइंस्टीन फैराडे के नियम , सिद्दांत ल छत्तीसगढ़ी म घलो समझाथन| जादा अनुभव तो नइ हे फेर कुछ बदले ले बदल सकत हे संभावना भर पुर हे| टैलेंट के कमी नइ हे |
पर सरकारी , परशासनीक सिस्टम म बैठे लोगन नइ चाहँय |
राज भाषा के दरजा कैसे दे दे गए हे| *छत्तीसगढ़ी बोली के ज्ञान हे के नी लोक सेवा आयोग के परीक्षा म 100 अंक के पुछे जावत हे ऐखर ले आप  छत्तीसगढ़ी भाखा* के  महत्ता ल जान सकत हव| आमने सामने पूछे वाले *साक्षात्कार म घलो* छत्तीसगढी़ भाखा ले जानकारी ,गोठ बात ले प्रश्न ,सवाल जवाब ,पुछे जथे| मानक छत्तीसगढ़ी के संगरहन घलो करे जा चुके हे|
मानक उत्तर के परकासन होथे|

 *नवमी, दसमी गियारवी, बारवी म हिन्दी भाषा संग मिझरा छत्तीसगढ़ी पढ़ाय जावत हे|*
पहली ले पाँचवी तक घलो महतारी भाखा ले पढ़ई होवत हे| छेत्र बिशेष म हलबी,भतरी , डोरली स्थानीय बोली भाख म घलो पहली ले आठवी तक पढाय जावत हे|
ये मा विज्ञान, गणित  ल घलो महतारी भाखा ले पढा़य जावत हे|
  *बिग्यानिक अउ तकनीकी बिषय मन* ल जस के तस रख के महतारी भाखा म समझाय सीखाये जावत हे|
  संसाधन ल बढा़य के जरूरत हे|
 *बस्तर संभाग म भासा *सीखाये के ** *तकनीकी ले समरिद्ध भाषा केन्द्र* घलो* खोले* जा चुके हे|
    कुछ अच्छा काम तो होय हे ,पर आप मन सुने हव जानत हव **कुछ जिलाधीश मन छत्तीसगढ़ी* म समस्या सुने के, अवेदन देके घलो सुरुआत करे रहीन |
 धीरे धीरे सबो बिसय के लेखन अउ जरूरत होय ले अनुवाद करे जा सकत हे| *मजबूत मानसिकता अउ नीयत के* बात हे|
    *आई एस के परीक्षा म अपन भाषा म लिखइया तेलगू , मलयाली ,तमील* अउ अभी अभी हिन्दी भाषी परीक्षारथी मन के* जादा अवसर बने हे| त *का छत्तीसगढ़ी भाखा ल* व्यापक होय ले अइसने सफलता नइ मिलही |
अभी संघर्ष के समे काल हे|
अवइया बेरा बहुत उज्जर हे|

 अश्वनी कोसरे
 कवर्धा कबीरधाम
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*छत्तीसगढ़ी भाषा मा "गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, भूगोल, हिन्दी आदि विषय" के अनुवाद के जरूरत*

       छत्तीसगढ़ी भाखा अपन आप मा पूर्ण हावय अउ एला हम मूल रूप मा गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, भूगोल, हिन्दी आदि विषय"  ला लिखे जा सकथे। *मन चंगा त कठौती मा गंगा* अगर हमन प्रयास करबो ता काबर पूरा नई होही। सरकार ला जरूत हे ता लिखइया मन ला उचित मान सम्मान अउ मेहनत के उचित मान देय। अनुवाद के जरूरत " परत हावय त ओहू काम ला करे जा सकत हावय। फेर मूल शब्द ला जस के तस रखना या लेना हावय। मँय आदरणीय सरला दीदी जी के बात मा सहमत हावय। हमन आ तकनीकी नाम, वैज्ञानिक नाम अउ मूल नाम न बिगाड़के जौ के त्यौ रख बाकी ला छत्तीसगढ़ी भाखा मा मौलिक लिखे जाय। सब्बो ला अनुवाद जैसे के तैसे करे मा बनावटी लगही।

          हमर छत्तीसगढ़ी मा गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, भूगोल, हिन्दी आदि विषय" तैयार नई होही ता पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी भाखा ला कइसे सामिल करही एहू एकठन सवाल हवे। सबले पहली पाठ्यक्रम बर सब्बो विषय ला छत्तीसगढ़ी भाखा मा तैयार करे बर परही। फेर सरकारी सहयोग के बिना सम्भव नई हावय।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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सबो विषय के छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद के जरूरत बिल्कुल नइ हे,ये व्यवहारिक भी नइ हे। आदरणीय श्री रामनाथ साहूजी के विचार ले मैं पूर्णतः सहमत हँव कि-

*छत्तीसगढ़ी म अनुवाद करके पाठ्यपुस्तक नइ बनाय जा सके। वोकर बर पाठ्यपुस्तक के नवा रचना करना पडही*

छत्तीसगढ़ी विषय ल पाठ्यक्रम म ये प्रकार से लागू करे मा सहूलियत होही -

*1) कक्षा पहली ले स्नातक स्तर तक केवल एक विषय छत्तीसगढ़ी (विशिष्ट) पढ़ाये बर पाठ्यक्रम तैयार करके अनिवार्य रूप से पढ़ाय जाय। येमा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण भी शामिल रहय*

*लइका मन जइसे अंग्रेजी (विशिष्ट) ,हिंदी (विशिष्ट) संस्कृत (विशिष्ट) पढ़थे वइसने एक विषय छत्तीसगढ़ी (विशिष्ट) पहली ले स्नातक स्तर तक पढाय जाय। स्नातकोत्तर म तो पढ़ई होबे करत हवय*

*2)  प्राथमिक स्तर मा पढ़ाई के माध्यम छत्तीसगढ़ी होना चाही (मौखिक रूप में) ।  ताकि लइका मन छत्तीसगढ़ी ल बोले बर सीख जाय खासकर  हिन्दी या अन्य भाषी लइका मन। गणित,विज्ञान आदि पुस्तक के अनुवाद के कतई जरूरत नइ हे।*


*3) माध्यमिक से हायर सेकेंडरी तक स्कूल के स्टाफ अउ क्लासरूम मा बोलचाल के भाखा अनिवार्य रूप से छत्तीसगढ़ी करे जाय पाठ्यक्रम जेन भाखा म हवय वोला उही भाखा म रहन दव लेकिन कन्वर्सेशन (गोठ बात) अउ समझाय के पूरा काम छत्तीसगढ़ मा होना चाही*

अजय अमृतांशु
भाटापारा

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प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा मा दिये जाय ये NCF 2005 के प्रावधान मा हे।मोरो इही विचार हे कि हमर राज छत्तीसगढ़ मा घलो प्राथमिक शिक्षा हमर राज भाषा छत्तीसगढ़ी मा ही दिये जाय लेकिन येखर बर अनुवाद न करके
पाठ्यक्रम ला छत्तीसगढ़ी मा ही मौलिक रूप मा लिखे जाय ।संगे संग इहू बात के धियान रखे जाय कि टेक्निकल शब्द मन ला उही रूप मा अपना लिये जाय।माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बर छत्तीसगढ़ी माध्यम के अनिवार्यता नइ होना चाही काबर कि लइकन ला नीट ,जेईई जइसे कठिन काम्पटिटिव परीक्षा के तैयारी बारहवीं मा ही करे बर परथे अइसन मा छत्तीसगढ़ी माध्यम रहे ले हमर लइकन मन के पिछड़े के डर रइही।आज भी सरकारी स्कूल मा दूर दराज गाँव के या फेर गरीब घर के लइका पढ़त हे ।अइसन मा अतिक बड़े परीक्षा मा सफल होना उखँर बर अउ मुश्किल हो जही।रोजगार के समस्या, सरकारी नौकरी के कमी, प्राइवेट कंपनी मा नौकरी, रोजगार बर दूसर राज इहाँ तक विदेश घलो जाय ला परत हे त फेर सिर्फ छत्तीसगढ़ी मा शिक्षा दिये ले हमर गाँव गंवई के ,गरीब के लइकन मन के पछुवाय के डर बने रही काबर कि शहर के, अमीर घर के लइका तो तभो अंग्रेजी मीडियम पब्लिक स्कूलमा पढ़ही।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

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सरला शर्मा: भाषा अउ अनुवाद के संबंध
  
        मनसे के सुभाव होथे बने जिनिस , बने विचार , उपयोगी ज्ञान -  विज्ञान जहां ले मिलय सकेलथे ...आज के नहीं तइहा दिन ले ये चलागत चलत आवत हे ....।  आज हमन चिटिकन सुरता तो करिन अनुवाद के
  1 जर्मन साहित्यकार गेटे  कालिदास के संस्कृत कृति के अनुवाद करे रहिस ।
  2 रांगेय राघव हर शेक्सपीयर के हेमलेट , मैकबेथ असन कृति के हिंदी अनुवाद करे रहिस ।
 3 दारा शिकोह हर उपनिषद मन के फ़ारसी मं अनुवाद करे रहिस
4  गीतांजलि पहिली अंग्रेजी मं लिखे गये रहिस बाद मं बंगला मं गुरुदेव खुद अनुवाद करे  रहिन ।
 5 धन्य कुमार जैन पूरा रवींद्र साहित्य के हिंदी अनुवाद करे हंवय
 6 मिर्जा गालिब के दीवान के हिंदी अनुवाद हर ग़ज़ल के लोकप्रियता के अधार बनिस ...
  7 वैदिक ऋचा मन के अनुवाद स्वामी दयानंद
        छत्तीसगढ़ी मं भी संस्कृत से करे गये अनुवाद मिलत हे खुशी के बात आय इही पटल मं शकुंतला शर्मा द्वारा  करे गये अनुवाद हमन पढ़े  हन ।अनुवाद सिर्फ साहित्य के होवत आवत हे ये बात नोहय सुरता करव सर यदुनाथ सरकार के इतिहास के हिंदी अनुवाद , डिस्कव्हरी ऑफ इंडिया के अनुवाद  अउ बहुत अकन हवय ..गुने बर ये हंवय के हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के भंडार भरे बर हमन ल कोन तरह के किताब में के अनुवाद करना चाही अउ ओकर महत्ता का हे ?
छायावाद के संस्थापक मुकुटधर पांडे असन गुनी -   मानी साहित्यकार जब मेघदूत के छत्तीसगढ़ी अनुवाद करिन त कहे रहिन के ये अनुवाद हर " छायानुवाद " आय काबर के छ्न्द बदले हे त प्रसंगानुसार शैली भी बदले हे फेर ये अनुवाद हर तो छत्तीसगढ़ी भाषा के भंडार भरबे  करीस न ?
अनुवाद  उपर विमर्श करत समय  एहू डहर धियान देहे बर परही ...ताकि महत्वपूर्ण  , ज्ञानवर्धक किताब - पोथी मन के छत्तीसगढ़ी मं अनुवाद करे जा सकय ।

सरला शर्मा

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अरुण कुमार निगम -छत्तीसगढ़ के शकुंतला शर्मा जी के कुछ किताब -
अभिज्ञान शाकुंतलम् के भाव-पद्यानुवाद,
रघुवंश के भाव-पद्यानुवाद, चाणक्य नीति के भाव-पद्यानुवाद,
विदुर नीति के भाव-पद्यानुवाद, ऋग्वेद सप्तम् अष्टम् नवम् अउ दशम् मण्डलम् के भाव-पद्यानुवाद (कुछ हिन्दी मा, कुछ हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी मा)

पढ़े के बादे पता चलथे कि अनुवाद बर गहन अध्ययन जरूरी होथे। हर वाक्य के भाव मा उतरे बर पड़थे, मेहनत करना पड़थे तब जाके वो अनुवाद एक धरोहर बन पाथे। ये सब ग्रंथ संस्कृत भाषा मा हें जिन ला मोर असन अल्प ज्ञानी न पढ़ सके अउ न समझ सके। हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा मा अनुवाद होए के कारण अब ये ग्रंथ मन पढ़े अउ समझे मा सरल होगें। ये जम्मो अनुवाद, पाठ्यक्रम मा शामिल होए के स्वार्थ मा नइ बल्कि साहित्य अनुरागी जम्मो आम मनखे के हित बर करे गेहे। हिन्दी कहानी के अनुवाद बर ज्यादा मेहनत के जरूरत नइ पड़े। छत्तीसगढ़ी जानने वाला मन ला हिन्दी भाषा पढ़े अउ समझे मा वइसे भी दिक्कत नइ होय।

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        *तकनीकी शब्द अउ उच्च शिक्षा बर छत्तीसगढ़ी उपयुक्त नइ*   
           गणित विज्ञान सामाजिक अध्ययन भूगोल हिंदी ए सब के नाँव सुनतेच साठ स्कूल अउ पढ़ई के गोठ बात चलत हे,अइसन समझे म कोनो देरी नइ होय।शिक्षा ह मनखे के विकास के जम्मो दुवार ल खोल देथे।विकास चाहे आर्थिक होय,सामाजिक होय, साँस्कृतिक होय,जम्मो किसिम के विकास शिक्षा ले ही हासिल होथे।शिक्षा देश अउ राज के नीति निर्धारण करइया सरकार अउ सरकारी तँत्र के मुताबिक दे जाथे।एक एक कक्षा बर उमर मुताबिक पाठ्यक्रम बनाके शिक्षा के योजना बने रहिथे।जइसन जइसन विषय तइसन तइसन उँखर अपन शबद रहिथें।हर विषय के शिक्षा बर अपन अपन मानक शब्द होथे।अउ बात ल स्पष्ट करे खातिर सरल भाषा अउ बोली के उपयोग लइका के स्तर म करे ले शिक्षा के उद्देश्य ल हासिल करे जा सकत हे।
      पाठ्यक्रम निर्धारण केन्द्र सरकार अउ राज्य सरकार के साझा योजना ले बनथे।अइसन म कोनो राज्य सरकार अपन भाखा बोली ल महत्तम दे  एमा जम्मो विषय ल अनुवाद कर तो सकत हें। अइसन करे ले उच्च शिक्षा खातिर बड़े सँस्थान जाय म दिक्कत हो सकत हे। जम्मो विषय के तकनीकी शब्दावली मन के अनुवाद नइ करे जा सके। अइसन म जम्मो विषय के छत्तीसगढ़ी अनुवाद ल मँय सही नइ मानँव।
*अनुवाद का अउ काखर होय*
        अनुवाद कहे ले समझ म आथे के एक भाखा के गोठ-बात ल दूसर भाखा म कहना।ए गोठ-बात तुरते होवत गोठ-बात के हो सकथे अउ लिखाय कोनो भी जरुरी दस्तावेज अउ जानकारी मन के घलुक। अनुवाद ले उन भाखा बोली ल नइ जनइया मन तक वो भाखा के गोठ-बात ल पहुँचाना ए। जानकारी कहे के मतलब लोकजीवन के साँस्कृतिक,पारम्परिक, रीत-रिवाज अउ मान्यता ले हे।जेखर से कोनो अउ क्षेत्र के लोकजीवन के अच्छाई के संग लोक साहित्य मन ल अपनाय म समाज के विकास के नवा रस्ता मिलथे।अनुवाद म ए बात घलुक हे कि ए हर मौलिक नइ होय।कोनो आने भाखा के मूल बात अउ विचार ल अपन भाखा-बोली म लिखे ले अपन भाखा बोली के साहित्य अउ खजाना बाढ़थे संगेसंग अपन भाखा बोली म वइसन लिखे बर प्रेरणा मिलथे।विषय अउ नवा उदीम घलुक सोचे बर मिलथे।बढ़िया बढ़िया भाव आथे।
         भाषाविद् मन  डाहर ले अनुवाद घला लोकहित ल ध्यान दे के होना चाही।मोर बिचार म समे अउ आज के माँग के मुताबिक साहित्य सिरजन होना चाही अउ अनुवाद घलुक।
*शिक्षा के उद्देश्य सिरीफ नौकरी होगे हे*
         आज शिक्षा के उद्देश्य सिरीफ अउ सिरीफ रोजगार रहिगे हे।रोजगार सबो ल जरूरी हे,फेर स्वरोजगार अउ पैतृक ल छोड़ सब ल सरकारी नौकरी चाही।एकर सेती सब अपन लइका ल आज अँग्रेजी माध्यम म पढ़ाय धर ले हे।पूरा समाज के सोच अँग्रेजी पढ़े ले नौकरी मिलही अइसन बनगे हवै।इही सोच के चलत छत्तीसगढ़ी के उपेक्षा होवत हे।भले अपन अँग्रेजी पढ़े मत जानय।जेन जानथे तेने अपन लोग लइका ल दुरिहा राखत हें।आज समय हे लोगन ल समझाय के कि नौकरी सबो ल नइ मिल सकै।शिक्षा के उद्देश्य सिरीफ नौकरी मत सोचव।आत्मनिर्भर बने के उदीम के आय।अपन सोच ल समय के संग सही रद्दा म बदले बर ए।
        *छत्तीसगढ़ी के संरक्षण प्राथमिक शिक्षा ले हे*
       अपन राज के लोक सँस्कृति परम्परा अउ भाखा-बोली के संरक्षण वो राज के जनता के भरोसा रहिथे।लोक व्यवहार ले भाखा जिंदा रहिथे।लोक व्यवहार म मया पिरीत के निर्वाह करत भाखा-बोली पोट्ठाथे।इही बात ल ध्यान रखत सरकार ल चाही कि प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा अनिवार्य ढंग ले राज के भाखा-बोली म करे जाय।जेखर से लइकापन ले छत्तीसगढ़ी ल बालमन म रोपे जा सकय।एखर बर त्रिभाषी म छत्तीसगढ़ी ल स्थान दिए जा सकत हे।
       अइसे भी बहुत समे ले अँग्रेजी पढ़ई छठवीं म शुरु होवत रहिस।आजो अइसन करके छत्तीसगढ़ी ल शामिल करे म कोनो दिक्कत नइ होही।जादा हे त एक विषय अउ पढ़ाय जा सकत हे।मोर मानना हे इही ढंग ले छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे जा सकत हे।
   
*पोखन लाल जायसवाल*
पलारी बलौदाबाजार छग

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 मीता अग्रवाल:

छत्तीसगढ़ी मातृभाषा ला प्राथमिक शिक्षा  ले अनिवार्य विषय के रुप मा उच्च शिक्षा तक सामिल करे जा ही, तभे प्रभावी भाषा साहित्य के साहित्य कार के सबो पक्ष के ज्ञानात्मक  समग्र जानकारी जन जन ला सुलभ हो पाही।सकारात्मक प्रभाव ले छत्तीसगढ़ी भाषा के गंगा ,बरोबर प्रवाहित हो अपन महत्ता ला स्थापित  करही।लडकपन के बुद्धि मा सीखे ज्ञान स्थायी होथे।
कोई भी भाषा ला बोलना लिखना व्याकरण ज्ञान, साहित्य ज्ञान अपन उपादेयता ला सिद्ध  करथे।यदि अनिवार्य कर दे जाही तव वो राज के भाषा के अलग पहचान बनथे,रचनात्मकता घलव बाढथे।
पढते पढते माआसनी से प्रश्न उत्तर शैली के विकास मा सहायक  हो जाथे।भाषा के महत्व सिद्ध होथे।

मीता अग्रवाल रायपुर

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शोभमोहन श्रीवास्तव:

छत्तीसगढ़ी ला माध्यम बनाय बर भावुक अपील अउ सतही चिंतन ले काम नहीं बन सकै , पहिली एक अनिवार्य विषय के रूप मा तो स्थापित करे बर प्रयास करना चाही , मैं आपके बात से सहमत हौं चित्रा जी आप स्वय प्रोफेसर हौं  शिक्षण प्रक्रिया ला बारीकी से जानथौ । छत्तीसगढ़ी ले अवइया पीढ़ी ला जोड़ना ही प्राथमिक उद्देश्य होना चाही । जेन मन घर मा अपन लोग ल इका मन संग छत्तीसगढ़ी नहीं बोलै तेने मन छत्तीसगढ़ी भाषा के अस्मिता बर व्याख्यान देथें । आज साहित्यकार  गँवइहा अउ अनपढ़ मनके सेती छत्तीसगढ़ी बाँचे हे । छत्तीसगढ़ी भाषा के सेवा करइया बहुत हे तेकर सेती छत्तीसगढ़ी हर बढ़वार करत हे जबकि विश्व में हर  दिन कोई न कोई भाषा मरत हे ।

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सरला शर्मा
: बोली हर जब भाषा के रूप धारण करथे वो समय वाचिक अउ शिष्ट दूनों तरह के साहित्य हर सहायक होथें  त क्षेत्रीय शब्द मन के प्रयोग  मं भिन्नता पाये जाथे काबर के कोस कोस पर बदलय पानी , चार कोस मं बदलय बानी कहे गये है , ये बदलाव मं  पत्र पत्रिका , अखबार , किताब  मन के भी प्रमुख भूमिका रहिथे संगवारी मन ! इही तथ्य ल ध्यान मं रख के हमन  आज लोकाक्षर पत्रिका के सम्पादक वरिष्ठ साहित्यकार श्री नन्दकिशोर तिवारी जी के योगदान के सुरता करत हन । उनला प्रणाम करके मोर छोटकुन प्रयास .....

               जिनगी के सुख -  दुख ल लिखत समाज के विसंगति मन ल उजागर करत वरिष्ठ साहित्यकार , लोकाक्षर के सम्पादक श्री नन्दकिशोर तिवारी जी के कलम पचास साल ले जादा समय होगिस सरलग चलत हवय फेर अभियो भोथराये नई हे । चीटिक देखव न उनकर लिखे " मोर कुंआ गंवा गे "  नाटक ल ....ये दे रे ...अभी कइसे देखिहव ? त चलव पढ़ लेवव ...।
  " इंकर सेवा ल कर अउ गोठ बात भर नहीं मार ल घलो खा ..। " देवकी के आरो आइस  तइसने नारी परानी के हाल पता चल गिस , नारी उत्थान के सबो पोल पट्टी खुल गिस ।  निरक्षरता के बोझा ढोवत तिहारु ल पढ़े लिखे पटवारी बुद्धू बना दिहिस बपुरा ह जाने च नई पाइस के कोन मनसे कब , कइसे , कतका पइसा झोंकिस ओहू कुंआ खनवाये के सरकारी अनुदान के रूप मं फेर कर्जा के सम्मन तो सही समय म  हबर गिस अब तुरूवा ठठावत हे ....दूबर बर दू असाढ़ काला कहिथें तेला जानिस सतवंती हर काबर के रिपोर्ट लिख़ौनी थानेदार साहेब हर ओकर एकलौता पचास के नोट ल मांग लिहिस । तिवारी जी सुरता करवा दिहिन के साहित्य हर समाज के दरपन आय  लेखक के ईमानदारी समाज के अनाचार के प्रति करतब घलो हर जग  -  जग ले उजागर हो गये हवय ।
 पटवारी के चरित्र चित्रण करत समय लेखक के कलम के धार  देखे लाइक हे , सोझुवा तिहारु के खेत ऊपर  भी नज़र गड़ाये रहिथे तभे तो कारखाना के मालिक के तरफदारी करत भुइयां महतारी ल बेचे के प्रस्ताव ले के तिहारु के दुआर मं हाजिर होये सकथे ...सफ़ल चरित्र चित्रण इही ल कहिथें ।
   माटी के मितान मन अपन हक बर , अन्याय के विरोध करे बर सकेलाथे " हम अपन भुइयां नई देवन , हमला न काम चाही न नौकरी चाही , हम जांगरटोर  कमाबो , फसल उपजाबो , हमला कारखाना नई चाही , जेकर चिमनी के कुहीऱा मं आंखी धुँधऱा जाथे ।"
     नाटक के सन्देस  /  उद्देश्य डहर तिवारी जी आघू चलिन भुइंहार मन के मन मां भुइयां बर प्रेम उमड़े लगिस । लचर -  पचर शासन व्यवस्था के पोल खुलिस । बेधड़क कलम चले हे जेकर बर तिवारी जी के कलम के जय बोले च बर परही ।
   नाटक  मं सूत्रधार अवई हर नाटक परम्परा ल आघू बढ़ाथे । रहिस बात भाषा के त तिवारी जी भाषा के धनी तो आय फेर पात्र के अनुकूल भाषा के प्रयोग उनकर विशेषता आय ।  छोटे छोटे , सार्थक संवाद मन कथानक ल ठीक दिशा मं आघू बढ़ावत चले हे । नाटक पढ़इया , देखइया मनसे के मनोभाव जुरत चले हे जेला साधारणीकरण कहिथें इही मेर सार्थक , सफ़ल होये हे ।
   प्रशासन के असहयोग ,  सुरसा के मुंह कस बढ़त  घूसखोरी , कारखाना के चौहद्दी मं समावत खेत खार ये सबो सामयिक
प्रसंग के उल्लेख ,  नाटक ल सफ़ल , सार्थक  बनाथे ।
  चलत हंव ..देखे ल तो परही के फेर कोनो पटवारी कोनो तिहारु तीर  अनुदान पत्र मं दस्तखत / अंगूठा तो नई लगवात हे ।।
अरे हां ...दूबर - पातर , चिक्कन चांदो " मोर कुंआ गंवा गे । "  नाटक मिले के जगह हे " वैभव प्रकाशन रायपुर
   धन्यवाद

सरला शर्मा
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5 comments:

  1. अब्बड़ सुग्घर संकलन भइया जी 🙏🙏

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  2. गज़ब सुग्घर शिक्षाप्रद संकलन

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  3. बढिया संकलन ।

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  4. सुग्घर संकलन।हार्दिक बधाई जितेंद्र जी।

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