Wednesday 22 July 2020

मन के डर* चोवाराम वर्मा बादल

मन के डर* चोवाराम वर्मा बादल

मनखे ल अपन जिनगी म अच्छा आदमी मन ले संगति जरूर करना चाही । सियान मन सिरतो कहे हें-- जइसन संग तइसन रंग।
     सन 1987-88 के बात होही जब मैं बी. टी. आई. महासमुंद म शिक्षा विभाग के तरफ ले दू साल के अध्यापकीय  प्रशिक्षण लेवत रहेंव । हॉस्टल म जगा नइ मिले के कारण बरोंडा चौक म एक ठन कमरा लेके राहत रहेंव। ओ समय जम्मों प्रशिक्षु  गुरुजी मन ल छै बजे पी टी क्लास म अनिवार्य रूप ले उपस्थित होना पड़य।उहाँ रोज हाजरी घलो होवय।अब तो सबो नँदागे।
        एक दिन पी टी क्लास के बाद उही मेर के होटल म चाय पियत बइठे राहवँ । तीर म बइठे एक झन सहपाठी गुरुजी डड़सेना जी ह पूछथे --वर्मा जी छुट्टी होये के बाद तैं हा का करथच?
मैं कहेव अउ का करहूँ मित्र। इहाँ दिनभर पिरेड उपर पिरेड में अइसे भी थक ज रहीथवँ।
राँधे खाये के बाद पाठ योजना बना के  नव, दस बजे सूत जथवँ। वो कहिच उहिच काम तो महूँ करथवँ फेर मैं एक ठन हुनर सीखे ल घलो जाथवँ। तैं चाहबे त तहूँ सीख सकथच। पचास रुपिया महीना के फीस हवय। छै महीना के कोर्स हे। मैं मने मन सोंचेंव --संगीत या चित्रकारी सीखे ल जात होही। तभो ले जिज्ञासा वश पूछ परेवँ--का सीखथच भाई। वो कहिच --रेडियो ,टीवी , सी डी प्लेयर आदि बनाये बर। अतका ल सुनके मोर भीतर के विज्ञान जागगे काबर के मैं अपन विद्यार्थी जीवन म साइंस के छात्र रहेंव। मैं तुरते तैयार होगेंव।अउ बिहान भर शाम के सात बजे ले नौ बजे ले *मोरे रेडियो सेंटर* महासमुंद म  रेडियो, टी वी (श्याम श्वेत, वो समे रंगीन टी वी चलन म नइ रहिसे) बनाये ल सीखे ल धरलेंव। वो डड़सेना जी अउ मैं अपन लगन अउ मोरे जी के दिये ज्ञान म अन्य मन के तुलना म बहुत जल्दी दक्ष होगेंन। छै महीना के बाद मोरे जी हम दूनों ल निशुल्क बला लिच। ओकर दुकान म आये अधिकांश बिगड़े रेडियो ,टी वी ल हम दूनो बनावन।
            ट्रेंनिग खतम होये के बाद वो मित्र के पोस्टिंग सराईपाली अउ मोर हथबन्द (रेल्वे स्टेशन) के नजदीक के गाँव नवापारा म होगे। हाथ म हुनर तो रहिसे। हथबन्द म एक छोटे से दुकान किराया म लेके वो एरिया के वो समे के एक मात्र रेडियो ,टीवी रिपेरिंग दुकान ' गुरुदेव रेडियो' खोल डरेंव। स्कूल जाए के पहिली अउ आये के बाद रिपेरिंग करवँ। गिरे ले गिरे हालत म रोज दू ,ढाई सौ रुपया कमा डरवँ। पइसा आये ल धरलिच तहाँ ले गाँव ले भतीजा ल बलाके साइकिल रिपेरिंग अउ किराया के काम बढ़ा डरेंव।
         एक दिन संझा के बेरा एक झन के बिगड़े टीवी ल बनावत रहेंव अउ  बगल म भतीजा ह सायकल के का चीज ल ठोंक ठोंक के बनावत राहय। ग्राहक मन घलो बइठे रहिन। अचानक एक ठन नट हा आके उही हाथ के कोहनी म , जेमा सालडर ल धरे काम करत रहेंव , कस के परगे। हा दाई काहत झन्नागेंव। सालडर फेंकागे अउ हाथ ह टीवी के पावर सेक्शन म जिहाँ डीसी कई गुना बुस्ट होथे जाके परगे। अतका जोर के झटका मारिच के कुर्सी सुद्धा फेकागेंव। देखो देखो होगे। भतीजा डर म रोये ल धरलिच। कहूँ जूता नइ पहिने रहितेंव त मैं वो दिन निपट ज रहितेंव। भगवान कृपा ले अइसे कुछु नइ होइच।
        वो हुनर  अभो जिंदा हे फेर अब जब जब कोनो बिजली के काम करे ल धरथवँ तहाँ ले पता नहीं काबर ते वो घटना के सुरता आ जथे अउ माईं हाथ काँपे ल धरलेथे।शायद डर ह मन म बइठ गे हे।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छग
(छंद साधक, व्याख्याता शास उच्च मा वि केसदा, सिमगा)

4 comments:

  1. गज़ब सुग्घर गुरुजी

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    1. हार्दिक आभार आपके बंधुवर।

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  2. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद चन्द्राकर जी।

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