Wednesday 22 July 2020

सरला शर्मा: " बड़े फूफू !

 सरला शर्मा: " बड़े फूफू  !

हमन किस्सा सुनबो "  ...आठ दस लइकन सबो झन कका बड़ा के भाई बहिनी चिचियाये लगिन ...।  बड़े फूफू तखत मं बइठे के इशारा करिस ....पढ़त रहिस तेन पोथी ल बन्द करके हाथ जोरके माथा मं छुवाइस ...। छोटे बाबू मोर कान मेर फुसफुसाइस " एमेरन तो कोनो भगवान नईये फूफू   काला हाथ जोरत हे ? " फूफू भगवार देही त किस्सा कइसे सुनबो एडर लगिस त मैं छोटे बाबू ल  चुप कराये बर ओंठ मं अंगरी रख के चुप रहे के इशारा करें । हं त लइका मन ! छुट्टी के दिन फेर पानी बादर ..चला सुना फेर गोठ बात बन्द ..ठीक हे ...सब लइका सरोत्तर बइठ गिन ..।
 फूफू कहिस " कथा कहै कन्थरी , जरै  पेट के अंतरी ......। " उषा नोनी धीरे कुन कहिस " कन्थरी कोन ए फेर पेट के अंतरी काबर जरही ? " बहुत रिस लगिस ये मोटल्ली कभू चुपचाप नई बइठय ...। बड़े फूफू तो कभू गुसियाबे नई करय त धीरे बाने समझाये लगिस "" लइका मन ! राम सीता , राधा कृष्ण , नल दमयंती , राजा भरथरी , ढोला मारू , लोरिक चन्दा कतका नांव गनाव , कथा चाहे देवी देवता के होवय , चाहे राजा राठी के चाहे हमर , तुंहर , एकर ओकर होयं कथा तो कथा आय ,सबो कथा के जरी अंतरी मं तो  जामथे , अंतस के पेट भर दुख पीरा रथे उही हर डाऱा पाना मेल के कथा रूप मं लहलहाथे , हरियराथे , जुग जुग ले कतका आंखी के आंसू कथा के जरी ल पलोवत आवत हे तभे तो कथा आजो हरियर हे । " झरत रहय ये आंसू अउ अमर रहै ये कथा ।
    मैं आज गुनत हंव कथा कहइया के भी तो जब्बर गुन रहते होही ... ओकर इही गुन के चलते तो कथा प्रसंग मं आवत मनोभाव मन ल ओहर स्वर के उतार , चढ़ाव संग बरनन करत होही ...। बड़े फूफू मं ये गुन रहिस हे काबर बीस  बरिस के उम्मर मं साल भर के बेटी ल कोरा मं लेके जुच्छा हाथ , सादा लुगरा  पहिरे मइके लहुटे रहिस त 70 साल के उम्मर मइके मं  पहाये सकिस ...। मिशन स्कूल मं दूसरी पढ़े फूफू  रामायण , भागवत , गीता असन किताब  ल शुद्ध उच्चारण सहित पढ़ लेवय ....तुलसी वंदना खुदे लिख के गावय ..  । कहे रहिस .".पढ़ना , लिखना अपन रुचि के बात होथे ओकर बर कोनो  परीक्षा पास करना जरूरी नई होवय  ।"
    बड़ सुरता आवत हे फूफू .....पांव परत हंव , असीस देबे भाई कि महूं जियत  भर पढ़त , लिखत रहंव ।

      झमाझम पानी बरसत हे , अंगना मं  घुंठुवा बुडाउ पानी भर गयें हे , परछी घलो भींज गये हे । रहि रहि के बादर गरजत हे बिजली लउकत हे ,  देंह -  मन जुड़ावत हे तभे तो बड़े फूफू कहिथें " मघा के बरसे अउ माता के परसे । "
  ये दे रे ..बड़े फूफू ल तो तुमन चिन्हबे नई करव त हमर बड़े फूफू ..करिया कोर के सादा लुगरा पहिरे , संवरेलही , मंझोलन कद काठी , बड़े बड़े डबडबाये आंखी अब बरसही के तब बरसही फेर मुंह ले गोठ हर पाछू निकलथे पातर ओंठ मं हांसी हर आघू दिखथे । घर भर के रिसाये , बौछाये लइका मन ल  मना -  पथा के , गीत -  गोविंद  सुना के दू कौंर खवा के कोरा मं सुता लेह के गुन हर ही ओकर चिन्हारी आय ....ओकर भैया मन सावित्री कहैं त पारा परोस के मन मखनी कहि के हुंत करावय हमन के तो बड़े फूफू ...जनमे  हन तब ले देखत हन ।
    ओहो ....मंझोत कुरिया मं सेसू भैया हरमुनिया बजावत गावत हे " बरु ये बदराउ बरसन आये ....। " लखन मिसिर तबला अउ मकरन्द महाराज  चिकारा धरे हे ...इतवार आय न त संगीत सभा जमे हे फेर सांझ  के विद्या भूषण मिश्र , नरेंद्र श्रीवास्तव , नाजिर साहब , दराज बाबा अउ जमो साहित्यकार मन जुरहीं उही  कविता उविता , साहित्यिक चर्चा होही ।
उहूं ...ओइच बादर बरसा के गीत मोला एक्को नई भावय । अंगना , परछी , ओसारी कोनो मेर खेले के ठौर  नईये .कहां जाई ..का करी ?
पटौहां मं जातेन त बड़े फूफू खिथे उहां ढाबा तीर के बड़का धनबोड़ा सांप हावय ...का करी ..? मनु बाबू आइस  " बड़े नोनी ! चला बड़े फूफू तीर चलिन किस्सा सुनबो ...सुनत देरी रहिस के सबो लइका चला ..चला कहत भींजे के डर ल छोड़ के बड़े फूफू के कुरिया डहर दौडेन ..।

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