Friday 10 July 2020

*पिंजरा के मिट्ठू* जगदीश साहू,हीरा

*पिंजरा के मिट्ठू* जगदीश साहू,हीरा

एक समय के बात हे, पूरा संसार कोरोना के महामारी ले व्याकुल होगे रहय। सब प्रयास करके शासन प्रशासन थकगे, फेर एकर उपचार के कोनो रद्दा नइ मिलिच। सबके मन मा चिंता के लकीर बाढ़े लागिस। अइसन बेरा मा देश के सरकार एकर ले बाँचे खातिर 21 दिन के लॉकडाउन के घोषणा कर दिच, काबर ये कोरोना के बाढ़े के एके कारण रहय एक दूसरे ले मेल जोल। लॉकडाउन में कोनो ला घर ले बाहिर निकलना सख्त मना रहय। कोनो विशेष जरूरी काम ला छोड़के जेन बिना काम के घर ले बाहिर जेन निकलय ओला पुलिस वाला मन खूब छरय। अच्छा भी करय, काबर ये लॉकडाउन मनखे मन के खुद के सुरक्षा बर आय ताकि इँहा कम से कम आदमी एकर ले प्रभावित होवय अउ एकर फायदा घलो दिखिस। दूसर देश मा ये महामारी ले लाखो आदमी प्रभावित होइस, उँहा भारत मा हजारों के संख्या मा। सब मनखे घर मा खुसरे-खुसरे असकटाय लागिस। कभू घर मा रहे के आदत नइ रहय। जब तक चार जगा घूम फिर नइ लेतिच मन नइ माढ़य। फेर ए बेर मा घर ले बाहिर निकलना छोड़ घर मा रहेच ला पड़त हे। धँ अँगना, धँ दुवारी, धँ कोला, धँ बारी।
एला देख के दूठन मिट्ठू आपस में गोठियावत रहय। अब ये मनखे मन ला समझ आवत हे कि एक जगा बंद रहना कतका तकलीफ होथे। हमन ला पिंजरा मा बंद करके रखथे, दूध भात देथे, अउ समझथे हम खुश रहिबो। बने-बने गोठियाबो। अब समझ आवत हे ये मनखे मन ला। अरे अभी तुँहर घर में रहना तो तुँहरे फायदा बरे तेमा तकलीफ होवत हे, छटपटावत हावय। हमन ला तो जबरदस्ती नानकुन पिंजरा मा बंद करके रखथे। हम खुल्ला रहईया, का हमर मन घलो होवत होही कि हमू स्वतंत्र घुमतेन, अपन मन चाहे जगा मा जातेन अउ खुश रहितेन। मनखे मनला अभी के समय ले सीख लेना चाही अउ हमन ला भी आज़ाद कर देना चाही। फेर ये मनखे मन बड़ स्वार्थी होथे। जइसे इकर ये दुख के बेरा टर ही सब भूला जाही। एमन हमर दुख ला कभू नइ समझ सकय। हमेशा प्रकृति के विरुद्ध खवई, पियई करथे तेकरे खामियाजा एमन ला भुगते बर पड़थे अउ प्रकृति समय-समय मे अपन हिसाब-किताब बराबर करत रहिथे।
ओतके बेरा मालिक दूधभात लेके पिंजरा तीर मा आथे अउ कइथे-
आज हम दूनों के एक हाल हे, तैं पिंजरा मा धंधाये, अउ मैं अपन घर मा।
अब मैं जान डरेंव दुख होथे का, थोरके दिन भर मा।
मालिक के आँखी मा आँखी डाल के मिट्ठू देखे लागिस अउ सोंचथे का हमरो दिन बहुरही।
जइसे ही ये कोरोना के संकट खतम होथे। ए लॉकडाउन हटथे। मालिक घलो पिंजरा के दूनों मिट्ठू के लॉकडाउन खतम कर देथे अउ मिट्ठू ला पिंजरा ले आजाद कर देथे। दूनों मिट्ठू मन बहुत खुश होके ओकर हाथ मा आके बइठे जथे अउ खुश होके देखे लगथे। मालिक कहिथे जावव आज ले तुँहू मन आजाद हव। मैं प्रकृति के विरुद्ध अब कोनो काम नइ करँव ये वादा हे।
मिट्ठू मन पाँख फैला के उड़ जाथे.....।

जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

3 comments:

  1. सुग्घर कहानी सर

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  2. गद्य खजाना में शामिल करे बर धन्यवाद भैया जी

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