Monday 20 July 2020

हरेली तिहार'-ज्ञानु

'हरेली तिहार'-ज्ञानु
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             हरेली हमर छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार आय।गाँव गंवई म ये तिहार ल बड़ हर्षोल्लास के संग मनाथे।सावन महिना म अँधियारी पाँख के अमावस के दिन ये तिहार ल मनाये जाथे।बिहना ले गाँव म चहल पहल दिखथे, मेला मड़ई बरोबर लगथे।
              बड़े बिहना ले किसान मन पिसान ल सान के सुग्घर लोंदी बनाथे।खम्हार पत्ता म नून ल बाँधते। एक थारी म शेर समान(दार चाउँर ) अउ लोंदी ल धर के दइहान म सब सकला जथे। गाँव के सियान मन, बइगा अउ राउत हा दइहान म हूम धूप देथे।तहाँ ले सब अपन अपन गाय गरुवा ल लोंदी खवाथे ।संगे संग राउत  जड़ी बूटी के रस बनाये रहिथे तेला पियाथे। ओ जड़ी के नाम अउ काबर पियाय जाथे मैं आज राउत ल पूछेंव त  बताइस ।जड़ी के नाम पताल कोहड़ा अउ डोकोर कांदा जेन मवेशी ल मउसमी रोगराई ले बचाथे अइसे बताइन ।
                     तहाँ ले सब अपन अपन नाँगर -बख्खर, रापा- कुदरा, बसूला- बिंधना अउ हँसिया- टँगीया जतका भी अवजार रहिथे सुग्घर धो माँज के अँगना म मुरमी ऊपर रख देथे।मिलजुल सब पूजा पाठ करथे, नरियर अउ चीला चढ़ाते।बने सुम्मत बर  अरजी बिनती करथे।फेर घर म बने आनी बानी पकवान के मजा उड़ाथे।
            ऐती बर राउत ह घरोघर नीम डारा अउ दशमूल डारा ल खोचत जाथे अउ लोहार घलो मुहाटी चौखट म खीला ठोकत जाथे।एखर ले ये मान्यता हे अनिष्ट ले बचाथे, घर म घुसरन नइ देवय।बइगा महराज गाँव के जम्मो देवी- देवता ल मनाथे अउ गाँव के सुख -शांति बर अरजी बिनती करथे।आज के दिन कतको मन अपन कुलदेवी या देवता के घलो पूजा पाठ करथे।
             हरेली के पहिली रात ले तंत्र मंत्र विद्या सिखाये के परम्परा घलो शुरु होथे जेन नागपंचमी के दिन तक चलथे अउ गुरु-शिष्य बनाये जाथे।
        लइका मन गेड़ी चढ़े बड़ इतरावत रहिथे। गेड़ी दउँड़ घलो खेलथे। नोनी मन खो खो- कबड्डी, छुवउला- फुगड़ी आनी बानी के खेल दिन भर खेलत रहिथे।कतको गाँव म तो बइला दउँड़ घलो होथे।
           कई महिना बाद चारों मूड़ा हरियर हरियर दिखथे।खेतीखार म धान अउ फसल लहलहावत सुग्घर मनभावन लगथे।अइसे लगथे मानो धरती दाई हरियर रंग म अपन सिंगार करे हे।मोला लगथे एखरे सेती ये तिहार के नाँव हरेली पड़े हे।लगातार काम करत किसान अउ बनिहार मन थक जाथे।इही बहाना थिराये बर मिल जथे।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक (सत्र-3)
चंदेनी(कवर्धा)
छत्तीसगढ़

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