Friday 10 July 2020

पेड़ के छाँव (नान्हे कहिनी)*

*पेड़ के छाँव (नान्हे कहिनी)*

एक ठन गाँव मा महेत्तर नाँव के , एक झन आदमी अपन परिवार संग राहत रहिस । महेत्तर के परिवार मा ओखर गोसइन , बेटा - बहू , अउ नान - नान ओखर नाती नतनिन मन रहिन । महेत्तर जी मन के घर के तीर मा , आमा के एक ठन बड़का जनिक पेड़ रहिस । जउन पेड़ ल महेत्तर जी मन के ददा हर लगाय रहिन । ओ पेड़ हर जुन्ना होय के संगे संग बुढ़वा घलव होंगे रहिस , तभो ले छइंहा ला बराबर देवत रहिस । जेखर छइंहा मा कतकोन अवइयाँ - जवइयाँ लोगन मन हर , बइठ के बने थिराय अउ सुरतालय ओखर बाद आघू जावत रहिन । ता उही गरमी अउ बरसात के दिन मा , गाय - गरुवा मन संग चिरई - चिरगुन मन बसेरा घलव उही रुखवा मा करत रहिन। अउ बाबू महेत्तर जी मन हर , घलव अपन नाती नतनिन मन ला उही पेड़ के छइंहा  तरी बइठार के खेलावत रहिन । बाबू महेत्तर जी मन के एके झन बेटा रहिस  रामु , जेखर बिहाव होंगे रहिस , रामु अउ ओखर बाई सोनमती दुनो झीन बने पढ़े लिखे रहिन । घर तीर मा रुखराइ होय के सेती कचरा मन हर घर के अँगना मा अब्बड़ कन हो जवत रहिस , जीखर मन  के साफ सफाई करत - करत सोनमती हर , परशान हो जवत रहिस हे ।
सोनमती हर एक दिन खिसियाके रामु ला कहिस :- यहाँ काय सब रुखराइ मन ला घर अँगना मा राखे हावव जी । दिन भर मार घर अँगना म कचरा मन हर बस बगरत रहिथे , एक ठन फल के ना फूल के तेला मार घर के मोहाटी मा राखे हावय । येला झटकुन काटव भइ हम हक खागे हन , येखर रोज के कचरा मन ला साफ करत करत , रामु कहिस ठीक हे भइ काट देहँव । एक दिन बिहनियाँ ले रामु हर दू झीन गाँव के , पेड़ कटइयाँ आदमी मन ला बला के लान डरिस । अउ ओमन ला कहिस की ये आमा के पेड़ ला काटना हे , तब दुनो आदमी काटे बर जइसे ही तइयार रहिन । की ओतके बेर बाबू महेत्तर जी मन हर आगे , अउ ये सब ला देख के , अपन बेटा रामु ला कहिन : - रामु ये पेड़ ला काबर कटवावत हवस बेटा । ता रामु हर कहिथे : - बाबू ये पेड़ हर अब्बड़ जुन्ना होंगे हवै , अउ अब फरय फूलय घलव नही , बस अँगना अउ गली खोर मा कचरा भर ला बगराथे , तेपाय के येला कटवावत हावव । तब बाबू महेत्तर जी मन अपन बेटा रामु ला , समझावत कहिन : - बेटा ये आमा के पेड़ हर , मोर ददा के लगाय ये , अउ आज ददा हर तो नइये , फेर ओखर चिन्हारी असन ये पेड़ हर , तो हमर अँगना मा हावय । जउन हर भले हमला अब फल नइ देवत हावय , फेर छइंहा तो देवत हे , येला झन कटवा बेटा । तभो ले रामु अउ सोनमती ला बाबू महेत्तर जी के गोठ हर समझ मा नइ आइस , अउ ओमन ओला कटवायेच बर सोंच ले रहिन । तब आखिर मा बाबू महेत्तर जी मन खिसिया के कहिन : - काली हमन हर कहूँ डोकरी डोकरा हो जबोन ता का तुमन हा हमु मन ला , अइसने हे घर ले निकाल देहव का । की अब येमन हर कमाय धमाय के लइक नइये कहिके , कहत कहत बाबू महेत्तर जी मन के आँखी म आँसू आगे । आघू बाबू महेत्तर जी मन कहिन की बेटा : - भले घर मा सियान हर हमला कांही कमा के झन दे सकय , फेर ओखर आशीर्वाद के छइंहा हर तो हमर ऊपर बने रहिथे , ता घर म परिवार हर सुग्घर सुख अउ शान्ति ले सुग्घर फुलथे अउ फरथे गा । अउ आज ये पेड़ हर हमन ला , हमर उही पुरखा मन के आशीर्वाद असन छाँव देवत आवत हे बेटा । येला झन काटव , अतका सुनके रामु अउ सोनमती के आँखी हर खुलगे , अउ ओमन ला अपन गलती के एहसास होइस , ओमन बाबू महेत्तर जी मन ले छिमा माँगीन , अउ कहिन : - सिरतोन बात ला कहत हव बाबू जी , हमन तो एक ठन पेड़ ला लगाय नइ सकन , अउ बेटा बरोबर घर के सियान असन छइंहा देवइयाँ पेड़ - पउधा अउ रुखराइ मन ला काटत रहिथन । अब रामु अउ सोनमती दुनो झीन किरिया खाइन , की अब हमन कभू कोनो पेड़ पउधा मन ला नइ काटन , अउ बने पेड़ पउधा लगाके उंकर सुग्घर जतन करबोन कहिके । सिरतोन मा संगवारी हो आज पेड़ पउधा मन ला बचाना , हम सबो के जुमेदारी ये । काबर इही रुखराइ मन हर सब , हमर जिनगी के आधार आय । ता आवव हम सबो मिलके , किरिया खाइन अउ हमर परियावरण ला सुग्घर बनाके बचाइन । 

          मयारू मोहन कुमार निषाद
           गाँव - लमती , भाटापारा ,
       जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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