Wednesday 8 July 2020

छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य उपलब्धता:विमर्श-छंद परिवार


छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य उपलब्धता:विमर्श-छंद परिवार


1, चोवा राम वर्मा बादल

वर्तमान समे म देखन तो छत्तीसगढ़ी भाषा म बहुत कस पुस्तक मन के सृजन होगे हे अउ लगातार होवत हे। छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद, राज भाषा आयोग के अनुदान अउ प्रोत्साहन पाके ग्रामीण अंचल के रहवइया रचनाकार मन के पुस्तक घलो बनेच तदात म प्रकाशित होवत हे।
     जब हम छत्तीसगढ़ी साहित्य के आम जन तक उपलब्धता उपर विचार करथन तब पाथन कि  ए नहीं के बरोबर हे। बड़ दुख के साथ कहना पड़त हे कि बुक स्टाल अउ मेला ठेला  म ददरिया, भजन ,चुटकुला के सिवाय ,उहू ह खोजे ढूंढे के पाछू अउ कोनो छत्तीसगढ़ी साहित्य के पुस्तक नइ मिलय। सब झन कहिथें कि कोनो छत्तीसगढ़ी साहित्य के खरीदइया ,पढ़इया नइये। ए सोला आना सच बात नोहय। समान रहही तब तो कोनो खरीदही ?
  त हमर पुरखा साहित्यकार मन केअतेक पुस्तक छपे हे अउ अभी के रचनाकार मन के सरलग छपत हे तेन मन कहाँ हे? सब राजभाषा आयोग के , सरकारी लाइब्रेरी के, प्रकाशक के ,रचनाकार के अउ जेला विमोचन समारोह म मिले हे तिंकर आलमारी म गंजाय हे।
*उपलब्धता कइसे म होही*-- ए हा बड़ विचारणीय प्रश्न हे। आम पाठक तक छत्तीसगढ़ी साहित्य ल उपलब्ध कराना कठिन तो हे फेर असम्भव नइये।एकर बर सब झन ल मिलजुल के प्रयास करे बर परही। कुछ उपाय अउ सुझाव अइसे हो सकथे--
1 सरकारी तंत्र ह एक जोरदार जागरूकता अभियान चलावय अउ गाँव गाँव के पंचायत भवन के लाइब्रेरी म विपुल मात्रा म छत्तीसगढ़ी भाखा म छपे साहित्य ल रखय।
2 आजकल जम्मों स्कूल मन ल लइका मन के पढ़े बर कम से कम 10 हजार रुपिया पुस्तक खरीदे बर अनुदान मिलथे।  ए अनुदान के संग एक ठन सूची आथे कि दे दे अउ देकर देकर किताब ल खरीदना हे। ए सूची म 98%,99% आन प्रांत के लेखक मन के पुस्तक रहिथे।  गुरुजी मन ल मजबूरी म ए किताब ल लेये बर परथे।
    सरकार ल चाही --दू चार साल सिर्फ छत्तीसगढ़ के कलमकार मन के छत्तीसगढ़ी भाखा म छपे किताब मन ल स्कूल म भेजय।
2 प्रकाशक मन घलो जेन किताब वो प्रकाशित करे हे वोकर मार्केटिंग करय भले रचनाकार ल कमीशन झन दय। अधिकांश  रचनाकार मन सहमत रइहीं।
3 छूट पूट एक -दू ठन पाठ ल कोर्स म शामिल करें ले बात नइ बनय। पूरा 100 अंक के पेपर के लायक विषय राहय। फेर  देखव गुरुजी मन  पढ़हीं अउ लइका मन संग उँकर दाई- ददा मन तको पढ़हीं।
कोर्स म शामिल किताब मन बिके ल धर लेही।

4 हम रचनाकार मन ल घलो गाँव गाँव म छत्तीसगढ़ी साहित्य के पठन पाठन के माहौल बनाये म अपन निस्वार्थ योगदान देये ल परही। अपन किताब ल आम जनता ल निः शुल्क देके पढ़े बर प्रेरित करे बर लागही।

5 देश के जम्मों बस स्टैंड अउ   रेल्वे स्टेशन म छतीसगढ़ी साहित्य ल पहुंचाये ल परही।
     खासकर छत्तीसगढ़ म तो सरकार ल लाइसेंस देये के पहिली शर्त लगाके कि दे दे किताब ल हम तोला फोकट म देवत हन एला तोर दुकान म रखे ल परही। ए उपाय ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के उपलब्धता बढ़ाये जा सकथे।

चोवा राम 'बादल'
  हथबन्द, छत्तीसगढ़

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2, पोखनलाल जायसवाल

      भाषा हे त साहित्य हे,ए अलग बात आय कि साहित्य लिखित हवै कि मौखिक।अइसे साहित्य कहे ले लिखित सरूप के ही भाव निकलथे।बात छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ ओखर उपलब्धता के हे।मोर मानना हे छत्तीसगढ़ी म साहित्य के उपलब्धता का हे ,अउ कइसन हे ,छत्तीसगढ़ी साहित्य बर ओतका चुनौती नइ हे,जतका बड़े आज छत्तीसगढ़ी म छपत किताब के गुणवत्ता हर हे।ए कोनो भी भाषा के साहित्य बर भी कहे जा सकत हे।
        छत्तीसगढ़ी म जउन ढंग ले साहित्य लेखन होय हे अउ अभी हाल फिलहाल जउन लेखन म गति दिखत हे,ओखर ले तो कहे जा सकत हे कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के उपलब्धता चिंता करे के लइक तो नइ हे ,फेर कलेचुप बइठे के लइक घला नइ हे।पर्याप्त साहित्य हे ,जरुरत हे पढ़े के।पठेरा अलमारी म रखाय ले ओखर शोभा नइ हे।जउन हे ओखर पढ़ई होवय त समाज अउ साहित्य जगत ल फायदा मिलही।कोनो भाषा ल बराबर मान सम्मान ओ भाषा के साहित्य ले मिलथे।छत्तीसगढ़ी ल बराबर मान मिलै एखर बर सरलग साहित्य लेखन सबो विधा म होय अउ गुणवत्ता वाला होय तब बात बनही।
        साहित्य सिरीफ मनोरंजन के साधन झन बनै।यहू सुरता राखे लागही।आज बहुते किताब छपत हवै,कतको के चरचा नइ होय अउ गम(आरो) नइ मिलै।आज मनखे के पास पइसा के कमी नइ हे,प्रकाशन करइया (प्रकाशक) के कमी घला नइ हे।बहुत अकन किताब आजकल तीर-तार के प्रिंटर्स मन जगा छपवा रचनाकार कोनो भी प्रकाशन के नाम छपवा देथे।किताब म छपे रचना मन के न तो बरोबर प्रूफ रीडिंग होय राहय न जाँच होय राहय।बने जानकार मन ले जाँच के बात ल दूरिहा जानौ।बस अपन क्षेत्र म नाँव चलाय,किताब छपवा शेखी बघारे वाला उदीम घलुक देखे मिलथे।अइसन किताब अउ छपास के बीमारी ह छत्तीसगढ़ी साहित्य ल चूना लगात हे।छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के चाहे फिलिम जगत के सदाबहार गीत के गोठ करँन त,पाथँन तब ले आज भी सबो के मन सुने के करथे।पर इही बीच कतको चरदिनिया गीत आइस अउ श्रोता मन के दिल दिमाग ले उतर गे।वइसने सिरीफ मनोरंजन के साहित्य के संग होथे।
        साहित्य अपन समय के समाज के दर्शन कराथे।जेमा रीत-रिवाज, परम्परा, सँस्कृति,सामाजिक, राजनीतिक सबो परकार के घटना के जानकारी मिलथे।अइसन सब ला साहित्य म जगा देके जब साहित्य सिरजन होही त पाठक के कमी नइ होही।अइसन मानथौं।।     
         पाठक म रुचि बढ़ाय खातिर समाचार पत्र के भूमिका बहुतेच जरूरी हे।मनखे समाचार पेपर पढ़थे जरूर,चाहे घर म हो चाहे कोनो भी दूकान म।गिनती के समाचार पेपर म एक दिन एक पेज देथे।ओला कहूँ रोज एके पेज दै त पाठक के मन छत्तीसगढ़ी पढ़े कोति लगही। बहुत झन मन ले सुने मिलथे छत्तीसगढ़ी पढ़े म कठिन हे।यहू ह पाठक ल छत्तीसगढ़ी ले दूरिहा करथे।उन ल बताय के जरूरत हे कि जउन ल बोलथच ओहर कठिन नइ हे,पढ़े के आदत नइ होय के सेती अइसन लागथे।
       सोशल मीडिया ले छत्तीसगढ़ी ल घला बढ़ावा मिले हे।एखर ले सरलग पढ़ई लिखई होवत हे।गोठ बात होत हे।रचना पाठ कोरोना काल म होवत हे।
      एक ठन कहावत हवै- *जेन दिखथे तेन बिकथे* वइसने छत्तीसगढ़ी साहित्य के जउन भंडार हे वोहर पुस्तक दुकान म आय ले बिक जही अइसन आशा करथौं।

*पोखन लाल जायसवाल*
पलारी,बलौदाबाजार छग.
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3,राधेश्याम पटेल

छत्तीसगढ़ी साहित्य के उपलब्धता अगर देखे जाय तव ना पहिली रहिस ना अभी हे .... काबर के कहुँ शहर भर मा एकाक ठन  दुकान मा चार किसम के पुस्तक मिल जथे तव वोला सहीं मायने मा उपलब्धता नई कहे जाय ...हाँ कहूँ ऐही हा चार दुकान मा मिल जाय तव कहे जा सकत हे...!
       अब सवाल उठथे के आँखिर छत्तीसगढ़ी साहित्य बजार मा उपलब्ध काबर नई ये... तव सबले बड़े बात आथे के बिक्रेता कोनो भी किताब ला तभे राखही जब वोहा कमाई दिही ....मतलब बेंकाही ....! अब बात आथे के छत्तीसगढ़ी किताब बेंकावय काबर नही? तव मैं सबले पहिली कहिहूँ के छत्तीसगढ़ी के बहुत अकन पुस्तक बिना मुड़गोड़ के लिखाय हे ... जेखर सेती समान्य पाठक के पल्ले नई परय...अऊ फेर  अईसनेच हमर छत्तीसगढ़ी भासा के पढईया कम हें...
चाहे किस्सा कहानी के बात
होय चाहे  गीत कविता के ... सब मा छत्तीसगढ़ी के मजाक बना देहे गय हे ...ठीक ओईसनहे जईसे मोला एक गीत के सुरता आवत हे बड़ सुग्घर गीत हे---
*सुग्घर दिखत हावय रमकेरिया चानी ..*
 *राखे हावँव बईहा ऐमा*
*छींच छींच के पानी*
ऐ गीत बहुत सुने गय हे पर ऐ गीत संदेश का देवत हे..?  ऐ बजार मा रमकेरिया बेचे के बात तो हे लकिन का रमकेरिया चान पउल के कोहँड़ा कटहर असन बेंचे जाथे ? या फेर भाजी भाँटा असन पानी छींच छींच के बेंचे जाथे...?
एक गीत --
*पहिराहूँ तोला ओ नवलखिया के हार*
जबके ऐला होना रहिस --
*पहिराहूँ तोला ओ मैं नवलखिया हार*  या फेर *नवलख्खा हार*  काबर के
नवलखिया शब्द अपन आप मा पूर्ण हे फेर  *के* ल जबरन बईठारे के जरुरत काबर आईस ...ऐ सोचे के बात हे...
 अब काय सोच के अईसन लिखे अऊ गाय गय हे ... ऐ तो ओही मन जानँय लकिन  पहिली गीत मा तो एकदमेच उल्टा बताय गय हे।
अगर सही गीत रचना रहे हे तव वो सिरिप अऊ सिरिप सूरसिंगार मा बाजे गीत ही रहे हे ओखर बाद जैन भी गीत सुने हन ओमा के हर तीसरा चौथा गीत मा कमीच ही देखाऊ देहे हे..।
राजभाषा आयोग ले छपे कतको किताब देखे जाय तव
अपन भीतर कतको कमी ल चटकाय दिखथे फेर प्राईवेट परकासन के तो बाते अलग हे...आँखिर अईसन हडबडी काबर...? का छत्तीसगढ़ी भासा के अपमान हमर अधिकार होगे हे ? जईसन बनय तईसन लिखी अऊ वोला परकासित करी...?
साधे साध मा लिखईया मन
उल्टा सीधा रचना परकाशित करके महौल ला कँचरा बना डारें हें जेखर सेती घलाव किताब बेंकाय नही..।
अब बात आथे के का करे जाय ...तव सबले पहिली मोला अईसे लगथे के  गलत रचना मा बिरेक लगय ..ऐखर बर छेंका बेंड़ा के तियारी करे जाय ...गीत कविता कहानी सनीमा नाटक सब मा काबर के आज जऊन सिरिप पईसा के लालच मा हमर मयारुक छत्तीसगढ़ी के नाका कान छोलावत हे इन तमाम माध्यम ले  ....वोला रोक के  मलहम लगाय जाय ताके साहित्य अपन सहीं सुघराई मा पाठक श्रोता अऊ दर्शक तक सहीं ढंग ले  पहुँचय ..।
दूसर मा शासन कोती ले पुस्तक प्रकाशन के जघा मा या फेर ओखर सँगे सँग पुस्तक ला बेंचवाय के परयास करे जाय..काबर के प्रकाशन मुस्कुल बूता नोहँय मुस्कुल बूता तो वोला बेंचना हर आय ...।
तीसर मा जेन सबले जादा जरुरी बूता हे ....पहिली कक्षा ले ही छत्तीसगढ़ी मा पाठ्यक्रम ला लागू करे जाय ....ताके अपन भासा बर लईकन के मयाँ पहिलीच ले उबजय..।
ऐ सब के बिना छत्तीसगढ़ी साहित्य के थिरबाँव नई दिखत हे....।

                  राधेश्याम पटेल
               तोरवा  बिलासपुर

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4, ज्ञानु

              छत्तीसगढ़ी बोले अउ सुने म मोला गज़ब निक लगथे।मन्दरस बरोबर मिठास भरे हे ये भाखा म।छत्तीसगढ़ी साहित्य म भारतीय संस्कृति के साक्षात दर्शन होथे।इही पाय के छत्तीसगढ़ के भारत के साथ पूरा विश्व म पहचान अलग हे।इहाँ के साहित्य अउ संस्कृति म जेन विविधता हे वास्तविक म ओहा धरोहर आय।
              मोला लगथे छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य के कोनो कमी न पहिली रिहिस न अभी हे।पहिली हमर सियान मन मुँह अखरा साहित्य ल कहानी -कन्थली अउ हाना के रूप म जिंदा रखे रिहिन।अब तो साहित्यकार मन किताब छपवाय के उदिम करत हे।
          छतीसगढ़ राज  बने के पहिली घलो छत्तीसगढ़ी भाषा म रचना होवत रिहिस , किताब छपत रिहिस हे।अउ जबले छत्तीसगढ़ राज बनिस तबले तो मत पूछ साहित्यकार अउ किताब छपई बढ़ गेहे।पहिली अउ अबके साहित्यकार म एक अंतर दिखथे मोला। अउ वो ये आवय पहिली के साहित्यकार मन एक दूसर के रचना , किताब ल पढ़य ।फेर अभी के साहित्यकार मन मा ये बात नइ दिखय।बस उत्ताधुर्रा लिखई, बहुत कम साहियतकार मन ही हे जौन पढ़थे। जब साहित्यकार मन ही एक दूसर के रचना, किताब ल नइ पढ़ी त काखर भरोसा करी।
               हम ला पढ़े के आदत डालें बर परही ।तब  जाके छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य के प्रचार-प्रसार हो सकत हे।हम ला खुद सबो जगह घर, ऑफिस, दुकानदारी चाहे कहू मेर होय अपन महतारी भाखा म बोले बताय के जरूरत हे।अब शासन-प्रशासन ल दोष देना छोड़के हम सबो साहित्यकार ये कदम उठाए बर परही।
          कोनो साहित्यकार के किताब ल भेंट म लेय के आदत छोड़ बिसा के पढ़े के आदत डालें बर परही।नहिते हमर अवइया पीढ़ी एक दिन ये जरूर कहत मिलही- 'व्हाट इज छत्तीसगढ़ी'? काबर आजकल अपन लइका मन ल अंग्रेजी मीडियम म पढ़ाए के चलन बढ़ गेहे।


ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक
चंदेनी(कवर्धा)
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5, हेम साहू
           
             
             छत्तीसगढ़ माटी मा अनेक कवि, लेखक मन अपन कविता, लेख, कहनी ला रचे हावय। हमर पुरखा के कतको कवि लेखक मन के रचना आज तक प्रकाशित नई हो पाइस, फेर जन मानस मा लोक प्रचलित हावय। आज कतको ददरिया, सुवा, कर्मा, भरथरी गीत, लोक गाथा, पंथी गीत, किसम किसम हाना, रंग रंग के कहनी सुने ला मिलथे अउ मिलत रहिस। ये सब्बो के एकोठिन पुस्तक नई छपे रहिस ते पाय के एकर रचनाकार मन के नाम ला नई जानन। फेर अपन उच्च कोटि के रचना होय के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी मुख पोथी ले बगरत आत रहिस हावय। आज एमा के बहुत अकन रचना ला संग्रहित करके रखे हावय। फेर आज भी ए रचना मन हमर बीच मुख पोथी जन मानस मा बगरत रहिथे अउ सुने बर मिलथे।

            देखते देखत जवाना बदलत गिस अउ प्रिंट मीडिया अउ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आइस। प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाना मा हमर पुरखा कवि लेखक मन कतको रचना करिन अउ किताब तको छपवाइस। फेर ये समय मा छत्तीसगढ़ी भाखा के किताब जन मानस तक नई पहुँच पाइस। जेन  कविता, कहनी, गीत मन पहुँच त ओमन या तो लोक कला के माध्यम ले पहुँच या फेर रेडिया प्रसारण के जरिये से पहुँच पाइस। एकर कई ठन कारण हो सकथे, पहली बात ये की छत्तीसगढ़ राज नई बने के कारण ओ समय मध्यप्रदेश शासन हा छत्तीसगढ़ी भाखा ला महत्व नई देवत रहिस होही। दूसर बात ओ समय मा गाँव के अधिकतर मनखे मन अनपढ़ रहिस हावय, ओकर करा किताब भी रहितिस ता पढ़ नई पातिस। फेर धीरे धीरे लोग बाग मन शिक्षित होय लागिस अउ पढ़ लिख के बड़े बड़े बाबू तको बनिस। फेर हमर ये शिक्षित मनखे मन हमर साहित्य अउ भाखा ला महत्व नई दिस। इमन ला लगय की छत्तीसगढ़ी बोली ला बोले अउ पढ़े मा लोगन उनला गंवार समझही। एकर कारण इमन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पढ़े बर तको रुचि नई लेत रहिस हावय अउ पढ़े लिखे मनखे के अपन साहित्य के प्रति विमुख होना हमर भाखा के पतन के कारण तको रहिस हावय। ए शिक्षित मनखे मन गाँव गाँव मा ओ समय छत्तीसगढ़ भाखा मा साहित्य ला पढ़ लिख अउ सुनाके छत्तीसगढ़ी साहित्य के परचम लहरा सकत रहिस हावय।  ये सब कारण ले ओ समय हमर पुरखा के किताब मन जन मानस के बीच नई पहुँच पाइस।

              अब आज के युग ले लेथन आज प्रिंट मीडिया अउ  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद आज आज संचार क्रांति हा मोबाइल अउ इंटरनेट के माध्यम ले सोसल में मीडिया छाय हावय। सोसल मीडिया आज हर वर्ग के बीच मा उपलब्ध हावय। फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर, ब्लॉगर के माध्यम ले। बात करन हमर साहित्य उपलब्ध आज के दौर मा त सबके बीच मा उपलब्ध हावय। भले ओ प्रिंट जइसे छपे किताब नो हय, फेर कोनो किताब ले कम नई हावय। आज हमर कतको लेखक कवि मन के ब्लागर चलत हावय, ब्लागर मा हमन अपन रचना ला सदा सदा के लिए सुरक्षित रख सकत हावन। मनखे जेन मेर पाही तेन मेर पढ़ सकत  हावय। एकर ले बड़का उलब्ध साहित्य ला अउ कहाँ मिलही? *आदरणीय संजीव तिवारी जी के ब्लॉग गुरतुर गोठ डॉट कॉम* मा कतको नवा जुन्ना रचनाकर मन के रचना उपलब्ध हावय। *आदरणीय रमेश सिंह चौहान* जी के सुरता मा तको रचना मन ला संग्रहित कर ऑनलाइन करे हावय अउ ऑनलाइन किताब मन ला बेचत तको हावय। का फेर आज के किताब के बिक्री हो पावत हावय अब आगे चलके सोच भी नई सकन कि किताब के बिक्री होही अउ हमर किताब ला पाठक खरीदही। आज डिजिटल युग चलत हावय, सब्बो जिनिस ऑनलाइन मिलत हावय त हमन ला भी डिटीजल बने पा परही अउ ऑनलाइन जम्मो लेख कविता ला उपलब्ध कराय ल परही। एमा हमर छंद परिवार हा बढ़िया काम  करत हावय। *छंद खजाना* नाम के ब्लॉग मा लगभग 80 कवि मन के कविता ला ऑनलाइन उपलब्ध कराय हावय अउ देश दुनिया के लोग बाग ऑनलाइन कविता ला पढ़त हावय। एकर ले बड़का छत्तीसगढ़ साहित्य भाषा मा साहित्य के उपलब्धि का हो सकत हावय। आज हमर राज के भाखा ला पूरा देश दुनिया पढ़त हावय।

                  आज हमला किताब छपवाय के लालसा ले निकल के डिटीजल बने ला परही। संचार क्रांति के माध्यम ले मोबाइल ला पेन कॉपी मानके हमला ब्लॉगर मा उच्च कोटि के रचना उपलब्ध कराय ल परही। फेसबुक अउ व्हाट्सएप ला प्रचार प्रसार के माध्यम बनाके के साहित्य ला जन जन तक पहुचाये ला परही। समय समय मा प्रिंट मीडिया में तको उपलब्ध होना चाही। आज हमला छत्तीसगढ़ साहित्य ला सरल अउ सुगम बनाना हावय, हमर रचना ला उच्च कोटि के जन भाषा के हिसाब ले बनाना हावय। तभे जन जन हमर भाखा मा रुचि लेहि अउ  हमर साहित्य पोठ हो पाही।


-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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6, अजय अमृतांशु

गोस्वामी तुलसीदास जी जेन *अवधी* म रामचरितमानस जइसन महाकाव्य लिखिन अउ संसार भर मा लोकप्रिय होइन वो अवधी ला आज पर्यन्त भाखा के दर्जा नइ मिले हे। छत्तीसगढ़ी तो फिर भी राजभाषा बन गे हवय। तुलसीदास ल कभू राजाश्रय के जरूरत नइ परिस फेर हमन काबर शासन के मुँह ताकथन।
सूरदास,कबीरदास, मीरा,रैदास, प्रेमचंद,निराला, जयशंकर प्रसाद आदि.... अइसन कतको उदाहरण हवय जेन ला कभू राजाश्रय के जरूरत नइ परिस । इमन अपन कलम के दम मा लोहा मनवाईन । अइसने हमर छत्तीसगढ़ी के पुरोधा साहित्यकार मन रहिन जेन अपन कलम के दम मा स्वयं ला स्थापित करिन। तब जब साहित्य प्रकाशन के अतका सुविधा भी नइ रहिस जतका आज हवय ।
          मोर कहे के मतलब अतके हवय कि आज वो उत्कृष्ट साहित्य के लेखन नइ हो पात हे जेन पहिली होय रहिस, न तो हिन्दी म अउ न तो छत्तीसगढ़ी मा। पाठक तो आज भी मिल जाही यदि सृजन उत्कृष्ट होही । फेर बार बार सरकार के नाव ले के बैशाखी के बात करना बेमानी हवय। एक कहानी लिख के बाद चन्द्रधर शर्मा गुलेरी अमर होगे कुछ तो बात हवय । किताब ल पढ़इया नइ हे ये पीरा केवल छतीसगढ़ी भर के नइ हे, हिन्दी मा भी वो पाठक वर्ग अब नइ रहिस जउन पहिली रहय । पढ़ने वाला मन 300 पेज के उपन्यास ल किराया ले के तीन घन्टा म पढ़ के खत्म कर दय। आज न तो वो उपन्यास दिखय,न कॉमिक्स ।

*रहिस बात साहित्य के उपलब्धता के*- आज के युग डिजिटल युग आय । अब सब कुछ पेपरलेस होवत जात हे। आने वाला दिन म प्रिंट मीडिया   ऊपर घलो खतरा के बादर मंडरात हवय । अब हमन ल पूर्ण रूप से डिजिटल होय ल परही । ये दिशा मा अच्छा प्रयास *गुरतुर गोठ* सहित कुछ अन्य ब्लॉगर मन घलो प्रयास करत हवय। छन्द के छ घलो ह *छन्द खजाना* अउ *गद्य खजाना* के नाम से ब्लॉग संचालित करत हवय ये ब्लॉग मा भारत सहित 45 देश पाठक   हवय। छत्तीसगढ़ी साहित्य बर ये एक शुभ संकेत हवय। सोशल मीडिया आज के तारीख मा अच्छा प्लेटफार्म हवय जेमा 1 घन्टा के भीतर आपके लेखन सामग्री  दुनिया भर मा वायरल हो जाथे । अउ अगर ककरो मा कोई प्रतिभा हवय त ओला लोकप्रिय होय मा घलो बेरा नइ लगय ।

अब सवाल ये हवय कि -  *डिजिटल मीडिया मा छत्तीसगढ़ी के उत्कृष्ट किताब/साहित्य के संग्रहण कइसे करे जाय .?*

का एकर लिए एक विशेष प्लेटफार्म/ब्लाग/डॉट कॉम तैयार किया जाय...?

ये विशेष ब्लाग मा लेखक/कवि  मन के उत्कृष्ट साहित्य संग्रहित किया जाय ।

का एक जुरिक कमेटी बनाया जाय जेन मन उत्कृष्ट साहित्य के चयन करय जेला ब्लॉग मा संग्रहित करे जाय.?

ये ब्लॉग के गुणवत्ता अइसन होवय कि येमा कोनो भी लेखक ला अपन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला स्थान पाय मा गौरव के अनुभव होय । या कहन कि उही साहित्य ल स्थान मिलय जेन संग्रहित करे लायक हवय।

ये ब्लॉग के आर्थिक व्यय के वहन कहाँ ले होही ..?
             आदि आदि...?

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छात्तीसगढ़)
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7, मोहन निषाद

हमर छत्तीसगढ़ी भाखा मा साहित्य हर अब्बड़ पोठ हे , काबर हमर छत्तीसगढ़ मा पहिली भी कतकोन नामी अउ बड़े बड़े हमर पुरखा अउ सियान साहित्यकार मन होइन हावय , अउ आज ले घलव होवत हावय । जिंकर मन के किताब मन के बारे मा बस आज हमन जानथन अउ जिंकर मन के किताब के चर्चा ला अपन वरिष्ठ साहित्यकार मन ले मुंह ले सुनथन । फेर ओ किताब मन ला हम ना एको बेर देख सकत अउ ना पढ़ सकत हन , काबर ओ किताब मन हर हमन ला सहजता ले मिल ही नइ पावत हे । जब हमन छोटे छोटे राहत रहेन अउ स्कुल मा चौथी पाँचवी कक्षा मा पढ़त रहेन , ता ओ समे हमर सरकार के आदेश के हिसाब ला स्कुल मा , पढ़इया लइका मन बर छत्तीसगढ़ी साहित्य के किताब "हमारा छत्तीसगढ़" के नाव ले स्कुल के पढ़ई लिखई मा ओला शामिल करे रहिन , जउन ला लइका मन हर पढ़य अउ हमर छत्तीसगढ़ मा का का हावय , अउ उंकर मन के अपन का का विशेषता हावय । ओ सब के बारे मा हमन ला पढ़े अउ जाने बर मिलत रहिस । फेर उहू हर थोड़े दिन चलिस अउ बन्द होंगे । सरकार हर अगर उही समे ये विषय मा थोड़ीक चेत लगा के गम्भीरता ले चिंता करके ओला स्कुल के पढ़ई लिखई मा अनिवार्य करके शामिल कर दे रहीतीच , ता आज ओहर हमर छत्तीसगढ़ सरकार अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य दुनो बर सोना मा सुहागा असन हो जतीस । आज हमर पुरखा अउ सियान  साहित्यकार मन के कतकोन किताब मन हर प्रकाशित होय हवै , जिंकर मन के कालजयी रचना मन के बारे म हमन हर अपन वरिष्ठ अउ सियान साहित्यकार मन ले सुनथन ।  ता उही कतकोन किताब मन हर आज ले घलव प्रकाशित नइ हो पाइन हवै । हमर छत्तीसगढ़ी भाखा मा बहुत अकन किताब पहिली ले लिखे गे हावय अउ अभी तक घलव कतकोन किताब लिखे जावत हे , फेर सरकार हर आज किताब ला छपवाय खातिर , साहित्यकार मन ला सहयोग तो देवत हावय । लेकिन ओखर प्रचार अउ प्रसार बर काही उदीम नइ करत हावय , का अपन किताब के प्रचार अउ प्रसार करना , बस अपन खुदे एक साहित्यकार भर के ही जिम्मेदारी आय का । का सरकार के कुछू काम नइये , इहु सब विषय मन के बारे मा हमर सरकार ला सोचना चाही , खाली राजभाषा आयोग बना दे ले अउ किताब छपवाय बर पइसा भर दे ले नइ होवय । तभे हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ हमर छत्तीसगढ़ी भाखा के जानकार साहित्यकार मन हर जनमानस अउ लोगन मन के बीच म पहुँच पाही । नइतो जइसन चलत हे बस ओइसने हे चलत रही जही , अभी शासन हर एक ठन बुता सुग्घर करिस हे ,  की हमर छत्तीसगढ़ी भाखा ला स्कुल के पढ़ई लिखई मा शामिल करिन हे । येखर ले हमर छत्तीसगढ़ी भाखा संग हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ साहित्यकार मन ला बहुत अकन फायदा मिलही ।
अउ हमर सरकार ला घलो हमर इहाँ के साहित्यकार मन के , हमर अपन प्रदेश के संगे संग पूरा देश भर मा , उंकर मन के किताब के प्रचार अउ प्रसार करे मा सहयोग करना चाही । जेखर ले हमर अपन भाखा बोली अउ हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य के , विशेषता के बारे मा पूरा देश विदेश के लोगन मन हर जान सकय ।

(येमन हर मोर अपन निजी विचार ये , काही होय गलती खातिर मैं आप मन ले क्षमाप्रार्थी हँव)

              मोहन कुमार निषाद
               लमती , भाटापारा
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8, अरुण कुमार निगम

साहित्य अउ संस्कृति कोनो क्षेत्र-विशेष के पहचान होथे। छत्तीसगढ़ साहित्य अउ संस्कृति के मामला मा सम्पन्न हे। संस्कृति मा संगीत, लोक संगीत, रंग मंच, लोक कला मंच, सांस्कृतिक समारोह आदि शामिल हे। ये अब के आयोजन सार्वजनिक होथे। व्यक्तिगत प्रयोग बर ऑडियो अउ वीडियो काम आथें। संगीत के बात करे जाय तो तवा वाले रिकॉर्ड, ऑडियो कैसेट, वीडियो कैसेट, सी.डी के खरीदी करके लोगन अपन मनपसंद गीत संगीत आनंद लेवत रहिन। अब ये सब माध्यम के बजार खतम होगे। पेन ड्राइव अउ यूट्यूब के जमाना आगे। कोनो अपन खर्चा करके स्टूडियो मा रिकार्डिंग करवा भी लेही तो आज कैसेट,सी डी बनाके बेच नइ सके। यूट्यूब मा डारे के मजबूरी होगे। भविष्य मा अउ का साधन आ जाही, सोचे नइ जा सके।

अब साहित्य के बात करे जाय। गद्य अउ पद्य विधा के साहित्य वाचिक परम्परा ले चालू होइस। प्रिंट मीडिया मा आइस। प्रिंट मीडिया के वर्चस्व आज घलो कायम हे। इंटरनेट आये के बाद ब्लॉग, सोशल-मीडिया, ई-बुक्स आदि के नवा दौर आ चुके हे तभो साहित्यिक किताब के प्रकाशन मा कोनो फरक नइ आइस, बल्कि अब पहिली ले ज्यादा किताब छपत हे, पूरा असन आगे। आज लिखने वाला ज्यादा होगे, पढ़ने वाला के संख्या कम होगे। ज्यादातर लिखने वाला अइसे हें जेमन कभू ककरो किताब ला नइ पढ़िन। फलाना हर लिखत हे त महूँ लिखहूँ। कुछ अइसनो मन हें जेन मन टाइम टेबल बना डारिन हें कि रोज एक घंटा लिखना हे। बिना पढ़े, लिखे के कारण गुणवत्ता मा गिरावट बाढ़त हे। अइसन किताब ला कोन बिसाही अउ काबर बिसाही ? नाम कमाए बर छपाये किताब के का मतलब ?

एक जमाना मा देवकीनंदन खत्री के किताब चंद्रकांता संतति के अलग अलग अध्याय छपत रहिस तब छपे के पहिलिच किताब के एडवांस बुकिंग हो जात रहै। चंद्रकांता संतति पढ़े बर कई झन हिन्दी पढ़ना सीखिन। कहे के मतलब जब कलम मा ताकत रहिथे तब मांग बढ़ जाथे। मांग बाढ़थे त प्रकाशक खुदे अगला संस्करण छापे बर तैयार हो जाथे। 
लेखिका सरला शर्मा जी के किताब "पंडवानी और तीजन बाई" के पहिली संस्करण मा 300 प्रति छपिस। पर साल वैभव प्रकाशन इही किताब के अपन खर्चा मा दूसर संस्करण छापिस। पहिली संस्करण बिके होही तभे तो दूसर संस्करण छापे के विचार आइस होही। सर्वप्रिय प्रकाशन ले मोर किताब "छन्द के छ" 2015 मा प्रकाशित होइस। 200 प्रति मोला मिले रहिस। 50 प्रति बँटा गे। 150 प्रति बिक गे। नवागढ़ के रमेश चौहान घलो ऑनलाइन बेचिन, मोला ओला मना करना पड़गे कि अब स्टॉक मा नइये। ऑनलाइन मा स्टॉक शून्य बता देवव। प्रकाशक घलो पुस्तक मेला मा एला उपलब्ध कराइस, अब उहाँ भी स्टॉक खत्म हो चुके हे।  ये किताब के मांग आज भी बने हुए हे फेर ऑनलाइन छन्द के छ, नाम के वाट्सएप समूह मा छन्द लिखे बर सिखाये जाsथे तेपाय के अगला संस्करण छपाये के जरूरते महसूस नइ होवत हे।

डॉ. सुधीर शर्मा, वैभव प्रकाशन अउ सर्वप्रिय प्रकाशन के बैनर मा सब ले ज्यादा किताब उपलब्ध कराइन हें, घाटा घलो सहिन हें, तभो हार नइ मानिन अउ सरलग पुस्तक मेला , साहित्य महोत्सव जइसे आयोजन करके अपन उदिम करत हें।

छन्द के छ परिवार के स्थापना दिवस, मिलन समारोह अउ नवागढ़ मा रमेश चौहान जी के आयोजन मा बहुत छोटे स्तर के बुक स्टॉल लगाके देखेन, उपलब्धता के कारण किताब के बिक्री होइस हे।

मोर सलाह हे कि छत्तीसगढ़ के हर साहित्यिक आयोजन मा आयोजन एक बुक स्टाल बर घलो व्यस्था रखे। जउन मन वो कार्यक्रम मा जावैं अपन 5-10 प्रति, वो स्टाल मा जमा करवा देवँय। एक जिम्मेदार सदस्य स्टाल मा रजिस्टर ले के बइठे। बिकने वाला किताब के नाम नोट करत जाय अउ जउन मन के किताब बिकिस तउन मन ला किताब के पइसा दे देवय। ये तरीका मा आयोजन स्थल के स्थानीय साहित्यकार मन के किताब ला प्रचार मिलही अउ इच्छुक मनखे ला किताब उपलब्ध हो जाही। ये प्रयोग हम करके देखे हन, सफलता भी मिलिस हे। आप मन भी एला आजमा के देख सकथव।

*अरुण कुमार निगम*

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9, धनराज साहू

छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी भाखा बर सरी-सरी जिनगी लहू अँउटइया कतेक साहित्यकार मन ल हम नवा पीढ़ी जानथन ? या जुन्ना सियान अउ विद्वान लेखक मन कतेक झन ल निमगा उँकर लेखनी बर उन ल मान देथें येहर चिंता करे के विषय हावय।
   जेन जमाना म साधन-संसाधन के जोखा जादा नइ रहिस, ओ बेरा म भी छत्तीसगढ़ के कतको दुलरुवा बेटा मन, मन लगाके रचना धर्मिता ल करे हावय। फेर ये दुर्भाग्य आय जौन उँकर रचना अउ उन महान पुरखा मन के बारे म बहुत कम झन मन जानथन , जौन जानथे वहू मन कभू कोनो साहित्यिक सम्मेलन अउ अवसर म उन ल बिसरा देथन। अभी तक जतेक पुरखा मन के नाम आय हावे ओमा भी उही-उही मन के नाव देखे बर मिलथे, उँकर सम्मान हे , उँकर हक हावय फेर अलग से अउ कइ नाम ल जाने के बाद भी अपन पुस्तक  म शासकीय आयोजन म उन मन ल बिसरा दिए जाथे , अइसन काबर ये तो उही मन जानय ? ये लाँछन नइ हे भलुक वास्तविकता आय। अउ शायद आज भी इहिच्च हाल हावय ।
     गाँव म रहैय्या अइसन रचनाकार जौन पत्र-पत्रिका म नइ छप पाइन , ओकर मन बर पुस्तक तो सपना रिहिस। ले देके दु जुवार के जोखा करइया , अपन भुखाय पेट के अगिन ल बुझाय की अउ कुछु सोंचय ?
   मोर मानना हे कि छत्तीसगढ़ म अभी भी जौन शोध अउ रचनाकार के खोज  होय हे ओहर   न के बराबर होय हावय। अउ कतको तो इही पाय के हमर साहित्यिक बिरादरी म नइ जाने जाय , काबर की कतको मर-खप के माटी म समागे , सँगे-सँग उँकर रचना घलो उँकर सँग पटागे। जौन छत्तीसगढ़ के साहित्य थाती के बहुत बड़े नुकसान आय। कइ तो लिखे पढ़े नइ जानय , मुँह अखरा कतोक जिनिस उन मन ल सुरता राहय। ओला लिपिबद्ध करइया नइ रिहिस। कतको के परिवार वाले मन अज्ञानता अउ रूढ़ि वादी रेहे के चक्कर म कॉपी किताब घलो ल मरे के बाद उँकर सँगे-सँग जला दें। कइ तो उही रचना मन ल चालबाजी करके बड़े साहित्यकार बन गिन , अइसन भी देखे सुने म मिल जाही ।
    अभी के बेरा म हम जतेक पुरखा मन ऊपर , उँकर कृति ऊपर चर्चा करथन , जानथन ओतकी म छत्तीसगढ़ के साहित्य सिरा नइ जाय । ये दिशा म बहुत झन आदरणीय मन चिंता करिन अउ अइसन गुमनाम साहित्यकार मन ल उँकर रचना ल आघु लाने के उदिम करिन , फेर वहु हर कम हावय। शासन डाहर हर बात ल ले जाना घलो उचित नइ हे , शासन के बुता ल सब जानत हन। यदि आज भी जतेक साहित्यकार मन , चाहें तो बहुत कुछ हो सकत हावय। बस जरूरत हे , समर्पण भाव अउ स्वनाम धन्यता से बाहिर आके कुछ समय अइसन दबे परे पुरखा मन के खोजाव बर उदिम करे।
हर जिला म साहित्यिक संस्था हे, संस्था से जुड़े सबो रचनाकार मन अपन आजू-बाजू गाँव , गली म थोड़कुन मिहनत करें तो बहुत कुछ हाथ आही। ये उदिम हम शासन के सहयोग बिना भी कर सकत हवन। अइसन मन के रचना , लोक गीत , कहानी कंथली , नाटक-प्रहसन , लोक गाथा , जनउला, बिस्कुटक ,साखी अउ अन्य विधा ल हमन सकेल के एक अच्छा बुता कर सकत हन। एकर से कुछ तो लाभ छत्तीसगढ़ी भाखा ल मिलही अउ कोठी दून्ना होही। सँग म उँकर बारे म जाने-समझे के अवसर घलो मिलही।
    उँकर जिनगी भर के मिहनत अउ साहित्य म  योगदान ल उँकर जयंती या पुण्य तिथी म सुरता करे जा सकत हे। इही ओ पुण्यात्मा मन बर सही श्रद्धांजली होही। जम्मो अइसन रचना मन ल प्रकाशित करके या आजकल सोशल मीडिया के ब्लॉग या अन्य माध्यम म डाले जा सकत हावय, जेकर से नवा-नेवरिया रचनाकार मन ल दिशा मिलही सँग म हमर साहित्यिक कोठी घलो भरही।
    एकर लिए सबला फरहर मन ले , बिगन भेदभाव के , उँकर मिहनत के मान देय बर परही जौन बड़  मुश्किल बुता आय।

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10, अश्वनी कोसरे

छत्तीसगढ़ी साहित्य के सृजन १०००बरस पहली ले होय हे
येला कुछ अइसे बांटे गेहे

 *१.आदि काल या गाथा*      *युग-950ई.से 1450 ई.*
 *
 *२.मध्य काल या भक्ति ** *युग-1450ई.-1850ई.***

 *३.आधुनिक काल* *1850से आगे*

वीरगाथा काल -ये जुग म हिन्दी भाषा साहित्य परंपरा के अनुरुप
छत्तीसगढ़ी म घलो प्रेम अउ वीरता के बरनन करे वाले बीर गाथा काव्य मन के सिरजन होइस|
 *प्रेम गाथा अउ बीर गाथा काव्य* -अहिमन रानी,
            - केवला रानी,
             - रेखा रानी,

 *धार्मिक पौराणिक गाथा मन हे-*
फूल बासन गाथा: सीता अउ लक्षिमन के गोठ बात(सम्वाद)

पण्डवानी: दुरपति(द्रोपदी) के तीजा गाथा

ये जुग के पर *मुख साहितकार*
खैरा गढ़ के राजा लक्षमी नीधि कर्णराय पर *कवि दलराम राव की* प्रशस्ति छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी उपर परकास पारत पहली कविता माने जथे|

 **लक्ष्मी निधि राय सुनो चित्त देय, गढ़* *छत्तीस में न कोनो गढ़ैया रही,*
 *मरदुमी रही नहिं मरदन के फेर, हिम्मत से न लड़ैया रही**


 आने चारण कवि घलो रहिन-
दलवीर राव, मानिक राव सुन्दर राव, हरिनाथ राव, धनसिंह राव
बिसाहू राव ,कमल राव, अउ बिकट झन|

ये समय के कवि मन गाँव के गली म घुम के वाचिक मौखिक कविता गीत गाँवय
कुछ मन राज दरबार म अपन  राजा के बीर गाथा गावँय |
इही उँखर परचार राहय | पथरा म खुदा के लिखँय |

 *मध्य काल भक्ति युग*

 *धरमदास-१५२० ले सुरुआत* होथे मत-कबीर पंथ
कबीर दास जी के शिष्य रहीन
स्थान -कबीरधाम (कवर्धा कबीरधाम): छत्तीसगढ़ी के पहिला सशक्तकवि
भोज पतर म लिखँय


 *पद- जमुनिया की डार मोर टोर* *देव हो*
 *एक जमुनिया के चौदा डारा*
 *सबद लेके मोड़देव हो*

 *गुरुघासी दास(१७५६-१८३६)*
मत- सतनाम पंथ के संस्थापक,
 परवरतक
विशुद्ध कवि नोहय फेर बाणी ले गियान उपदेश के  अमरित सबद निकरय
सिद्धांत -7
बाणी(सतनाम वाणी) -22
बाणी- चलो चलो हंसा अमर लोक ज इबो|
इहाँ हमर कोनो नइये||

 *बीर गाथा रचना*
:फूलकुँवर देवी गाथा
:कल्याण साय की गाथा
: ढोला मारू के गाथा
: नंगेसर कइना

 *छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी के मध्य कालीन साहित्यकार:*
गोपाल मिश्र: रतनपुर के राज कवि दिवान
इनकर जादा तर रचना खड़ी हिन्दी म रहिच छत्तीसगढ़िया परभाव कमती रहिस फेर कई बात  छत्तीसगढी म  लिखेहें|
रचना:खूब तमाशा,
          सुदामा चरित,
         भक्ति चिंता मणी,
           रामपरताप

बाबू रेवा राम: संस्कृत ,हिन्दी संग छत्तीसगढ़ी म लिखँय ,गीता माधव,गंगा लहरी,रामयण सार

विक्रम बिलास
कृष्ण लीला

लक्षमण कवि: भोसला वंश प्रशस्ति

प्रहलाद दुबे: जयचंद्रिका

ये समे के कवि मन ल राजा के आसरा मिले लगे रहिस| संगे संग
जनमन म घलो स्थान बनाय लगे रहिर पर राज परभाव म लेखन होवय| ये समे म कपड़ा कागज म लिखँय |

 *आधुनिक काल-१८५०*
सुरुआती साहित्यकार अउ साहित्य

नरसिंह दास वैष्णव-शिवायन(1904)

पं.सुन्दर लाल शर्मा-दानलीला(1912),दुलरवा पतरिका,छत्तीसगढ़ी रामयण

गोविंद राव विट्ठल-नाग लीला

लोचन प्रसाद पांडे -भूतहा मंडल

मुकुटधर पाण्डे-मेघदूत के छत्तीसगढ़ी अनुआद

दानेश्वर शर्मा : उखरे बरसनमान

 *राष्ट्रीय आंदोलन के साहित्यकार* 
बहुत से कवि लेखक मन जुलुस रैली अउ क्रांतीकारी गतिविधि बर लिखय , जेल म लिखँय
छत्तीसगढ़ी सुराज(गिरिवरदास वैष्णव),कांग्रेसी आल्हा (पुरुषोत्तम दास),खुसरा चिरई के बिहाव (कपिलनाथ मिश्र),लड़ई के गीत (किशन लाल) अनगिनत नाम हे | पं सुंदर लाल शर्मा जी दानलीला कृषण लीला जेल म लिखिन|

 *उपलब्धता के विमर्श*

येखर से पता चलथे साहित्य के लेखन बर पोठ धरातल , परिस्थिति, समेकाल घलो मायने रखथे| आजादी बर ,गरीबी बर ,शोषण बर , महिला उत्पीड़न बर , ये बिसय म होय रचना मन गहरा परभाव डारे हवँय आज बरतमान म परिस्थिति संग बिसय बदल गे हवय कचरा अ इसन नइ लिख के , जन मानस के पीरा ल लिखे के जरुरत हे| जेन साहित्यकार के  गहरा छाप  समाज उपर छोड़ सकत हे |
ये कुछ रचना कार मन के नाम व रचना ल संजोय के राखे अउ नवा पीढी ल नवा तकनीक ले बताये के जरुरत हे | आज के माध्यम बदल गे हे त साहित्यकार ल घलो अपन तरिका ल बदल के सोसल मिडिया, नेट , आनलाईन संवाद , ब्लाग , मेल साइट के निरमान कर यू ट्यूब,  टवीटर ,आने वाले हर एक वेभ वरजन ले जुड़े ल परही|
 इखर तिर केवल जनसमुदाय कलम कागज रहिस तभो इन आम आदमी तक पहूचे हे| अब जादा साधन संपन्न होय के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य के दायरा कम झन होवय येखर बर पुरखा कवि लेखक रचना कार के साहित ल संरक्षित करे के जरुरत हवय |
वइसे शासन ले कुछ परयास होय रहिस, बिजहा अ उ माई कोठी के नाम से | फेर सरकारी उदिम सफल कम होथे|
येखर बर कुछ विश्व विद्यालय मन ग्रंथालय के निरमान करे हवँय जिहा छत्तीसगढ़ी साहित्य उपलब्ध हवय , लिंग्विष्टिक के शोधार्थी मन येखर उपयोग करत हे | गाँव मन म पुस्तकालय के योजना अ उ नगर मन मा वाचनालय के उदिम भ्ष्सटाचार के भेंट चढ गे हवय |स्कूल शिक्षा विभाग म घलो साहब गिरी हे मनमानी हे त कबाड़ वाले रददी किताब पुस्तकालय बर खरीद ले जाथे| नियत साफ वाले मन कुछ बने काम करे हवँय ,  छंद परिवार द्वारा पुस्तक मेला ,साहित्यकार मन के सम्मेलन स्थल म  बुक स्टाल  लगथे|
कुछ साहित्यकार मन के अमर कृति के नाम ये परकार हवय

 *बियाकरण और शोध *ग्रंथ*मौलिक रचना , कृति ,काव्य साहित्य*

 *हीरा लाल कावयोपाध्याय: छत्तीसगढ़ी बोली के व्याकरण*

 *ग्रियर्सन: ए ग्रामर आफ छत्तीसगढ़ी डायलक्ट*
भारत के भाषा सरवेछण म छत्तीसगढ़ी बोली ल बिशेष स्थान

डाॕ *नरेन्द्र देव वर्मा: छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास*

डॉ शंकर शेष:छत्तीसगढ़ी का भाषा शास्तरीय अध्ययन

डॉ काति कुमार : छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण और कोश

प्यारे लाल गुप्त: प्राचीन छत्तीसगढ़ी बोली, हयर कतका सुंदर गाँव( कविता)

द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र -कुछू कही धमनी हाट

 *कोदूराम दलित-गांधी वादी विचार* धारा के कवि
बाल साहित्य, व्यंग रचना म दक्ष
सियानी गोठ, कनवा समधी ,अलहन,हमर देस,बाल निबंध, कथाकहानी

भालचंद्र राव तैलंग- छत्तीसगढ़ी,हलबी ,भतरी भाषाओं का भाषा अध्ययन|

डाॕ बलदेव प्रसाद मिश्र:छत्तीसगढ़ परिचय

सुशील यदु : छत्तीसगढ़ी के सुराजी वीर

 डॉ. शकुन्तला वर्मा:छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और लोक साहित्य का अध्ययन

डॉ *नरेंद्र देव वर्मा के अपूर्वा* , सुबह की तलाश
लक्षमण मस्तुरिया:हमू बेटा भुइँया के, गवई गंगा, माटी (छत्तीसगढ़ के माटी अँव)
पवन दीवान:खेतखार म गहिरागे सांझ
केयूर भूषण: लहर (कविता), बनिहार,कुल के मरजाद, राणी बाहमन के दूरदशा (निबंध)
शिवशंकर शुक्ल:दियना के अँजोर ,मोंगरा,
डाॕखूबचंद बघेल:करम छड़हा

नंदकिशोर तिवारी:छत्तीसगढ़ी साहित्य का ऐतिहासीक अध्ययन,
परेमा(एकांकी)
 डाॕ विनय कुमार पाठक:छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यकार,एक रूख एकेच शाखा,

डाॕ *सुधीर शर्मा:छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर* ,छत्तीसगढ़ का सास्कृतिक पुरा वैभव
  *डाॕ.निरुपमाशर्मा:पतरेंगी ,बूंदो का* *सागर* पहली छत्तीसगढ़ी कवयित्री

परदेशी राम वर्मा -आवा( उपन्यास) ,आरुग फूल,मै ब इला नोहव

 रामेश्वर वैष्णव जी:अस्पताल बीमार हे

 डॉ.सत्य भामा आडिल: धर्मदास,
सउत कथा

लखनलाल गुप्त -चन्दा अमरित बर साइस,
सरग ले डोलॎ आइस,
सोनपान
जाग छत्तीसगढ़ जाग

हरिठाकुर:धान के कटोरा, छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता,
जय छत्तीसगढ़

पं श्याम लाल चतुरवेदी:बेटी के बिदा,पर्रा भर लाई
 डॉ. चितरंजन कर भाषा विज्ञान , साक्षात्कार गीत|

 नारायण लाल परमार:सोन के बाली, मतवार, सुरुज नइ मरे

 *छंद के छ -अरूण निगम*
छंद बिरवा- चोवा राम  वर्मा बादल
 डॉ विनोद वर्मा- व्याकरण  कोश, 
रमेश चौहान जी के संग छंदबद्ध उदाहरण के संकलन और संपादन होह हे|


 *शब्द कोश*
डाॕ पालेश्वर शर्मा :छत्तीसगढ़ी शब्द कोश
 डॉ चन्द्रकुमार चंद्राकर: छत्तीसगढ़ी शब्द कोश

 *पत्र/ पतरिका*
लोकाक्षर - नंदकिशोर तिवारी
छत्तीसगढ़ी सेवक- जागेश्वर प्रसाद
मड़ई विशेषांक
धरोहर
भोजली
चौपाल




संकलन अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
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