Friday 28 May 2021

सुरता"* *श्री शंभुलाल शर्मा वसंत जी* ---अजय अमृतांशु


 

*"सुरता"*

*श्री शंभुलाल शर्मा वसंत जी*

                ---अजय अमृतांशु



श्री शंभुलाल शर्मा "वसंत जी" बाल साहित्य मा जाने पहचाने नाम रिहिन। सादा जीवन, मृदुभाषी अउ व्यवहार कुशलता उँकर व्यक्तित्व म चार चाँद लगाये के काम करय। हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो म समान अधिकार रखइया वसंत जी न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि राष्ट्रीय स्तर के पत्र पत्रिका मा भी सरलग छपत रहिन। 


वसन्त जी के जन्म आजाद हिन्दुस्तान मा 11 अप्रैल 1948 के रायगढ़ जिला के गोर्रा गाँव मा होय रहिस अउ करमागढ़ म उन निवासरत रहिन।  साहित्यकार के सँग एक कुशल शिक्षक भी रहिन जेकर प्रभाव उँकर रचना म भी दिखाई देथे। उँकर  रचना म साक्षरता के साथ बालिका शिक्षा के संदेश भी मिलथे। एक बाल रचनाकार के साहित्य म जेन खास बात होना चाही वो सब वसन्त जी के बाल कविता म मिलथे यथा- सहजता, सरलता,प्रवाह अउ कौतूहल ।

अपन जीवनकाल मा वसंत जी देश अनेक नामी पत्र पत्रिका मा छपिन। आकाशवाणी से बाल कविता के प्रसारण के संग 'कविता कोश' म भी उँकर बाल रचना संग्रहित हवय। 


हिन्दी म उँकर 12 कृति प्रकाशित होइस - 

1. सतरंगी कलियाँ   2. मामा जी की अमराई 3.चंदा मामा के आंगन में,  4.-बरखा ले आई पुरवईया  5. मेरा रोबोट  6. है ना मुझे कहानी याद  7. जंगल में बजा नगाड़ा,  8. कोयल आई धूम मचाई 9. इक्यावन नन्हें गीत  10 जमाना रोबो का 11. शेरु की सभा।  12 मैना की दुकान।


छत्तीसगढ़ी म वसन्त जी के 4  कृति प्रकाशित होय हवय-  1. बादर के मांदर  2. नोनी बर फूल  3.आजा परेवा कुरु - कुरु  4. शंभूलाल शर्मा 'वसंत' के छत्तीसगढ़ी शिशुगीत ।


एक बाल साहित्यकार लइका मन के केवल मनोरंजन करे के काम नइ करयँ बल्कि अपन दायित्व के निर्वहन करत संदेश भी देथे। जंगल के होत विनाश ला "वसन्त जी" अपन बाल कविता के माध्यम ले लइका मन ला जागरूक करे कइसे प्रयास करथे देखव :- 

    डोंगरी म नइ मिलय

    खोजे तेंदू चार,

    बेंदरा भालू भूखन मरें

    करथें गोहार।

जंगल के वनोपज जेला आज के शहरी लइका मन जानबे नइ करयँ उन ला "वसन्त जी" अपन बाल रचना मा बड़ सुग्घर ढंग से अवगत करा देथे- 

    कांदा,कोसम,चार,तेंदू

    अउ हावय बेल

    खा-पीके चिरई- चिरगुन

    चढ़ावत हे तेल।

वसन्त जी माटी ले जुड़े रचनाकार रहिन। उँकर बाल साहित्य मा गाँव-गँवई अउ प्रकृति के सुग्घर चित्रण मिलथे - 

    कोइली हर हाँकत हावय,

    रद्दा हमर ताकत हवय,

    अउ आमा के झुंझकुर ले

    टुकुर-टुकर झाँकत हवय।।


अइसन अनेक बाल कविता अउ बाल गीत के रचनाकार वसंत जी से छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी ल अभी बहुत कुछ सीखे बर मिलतिस,फेर विधि के विधान म उँकर साथ अतके दिन के रहिस। निश्चित रूप से उँकर रचे साहित्य ले नवा पीढ़ी ला बहुत कुछ सीखे बर मिलही। एक अप्रतिम बाल साहित्यकार वसंत जी के सुरता हमेशा आही।


*अजय अमृतांशु*

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

कहिनी : प्रण* पोखन लाल जायसवाल

 *कहिनी : प्रण*

                    पोखन लाल जायसवाल


        जब मनखे ऊपर दुख के पहाड़ गिरथे। जिनगी ल कोनो मुसीबत घेर लेथे। चारों मुड़ा अँधियार छा जथे। आशा के सुरुज ल निराशा के बादर कुलुप ढाँक लेथे। मन धीर नइ धर पाय। तब मनखे ल का करय अउ का नइ? समझ नइ आय। कोनो सहारा नइ दिखे त बिपत के अइसन बेरा म अपन इष्टदेव के शरण जाथे। सुमन घलव अइसनहे मुश्किल के घड़ी म फँसगे राहय। बीते रतिहा आँखीं आँखीं म गुजरगे। बिहनिया नहा धो के अपन इष्टदेव के आगू दूनो हाथ जोरे खड़े हवै। 

        सुमन जेकर पुन्नी के चंदा कस गोलमटोल उज्जर चेहरा हे। परसा के लाली बरोबर लाल-लाल गाल हे। कनिहा के आवत ले लामे बिरबिट करिया बेनी हे। कोयली कस मीठ बोली हे। जेकर झूल-झूल के रेंगना, सब ल मोह लेथे। फूल जइसे खिलथे सब ल मोह लेथे, वइसने सुमन सब ल मोह लय। कभू कभू तो लागथे, ओकर नाँव मोहनी रहना रहिस। जेन देखय तेने, ओला देखते च रही जय, मोहा जय। कोनो मेर आतिच-जातिच सबो एक नजर लहुट के खच्चित देखँय ओला। सगा पहुना आय सियान मन घलव सुघर रंग रूप के बहू के अपन साध पूरा करे ओकर घर दुआर अउ दाई ददा के विचार जाने ले लग जवय। 

          गाँव मन म अभियो कतको नोनी पिला मन के हाथ अठारा बछर पूरे के पहिलीच हरदी म रंग जथे। कतको दाई ददा सजन मन के बने चीज बस अउ सुजानिक लइका देख के नोनी जिनगी भर खुश रही कहिके ओकर हाड़ म हरदी रचा देथें। कतको लोक-लाज के डर म जादा नइ पढ़ावँय अउ झटकुन.....। फेर सुमन के दाई ददा जादा पढ़े लिखे तो नइ हे। ...तब ले पढ़ई के महत्तम ल जानथे। ओमन ओला ओकर मन मुताबिक पढ़ाबो कहिके सोचे हावँय।

        सोलवाँ बसंत के रंग चढ़े ले सुमन अउ घात सुघर दिखे लगिस। सोलवाँ बसंत के छाँव म ओकर सुभाव बदले बदले लागय। सुमन चिटकुलिया के आगू चौदह घँव ठाड़ होवय, अपनेअपन मुच ले हाँस दय, त कभू खुदे ले लजा घलव जय। ...अकेल्ला म रकम-रकम के परेम गीत मन ल गुनगुनात रहय.. रतिहा सूते दसना म बडबड़ाय। ....वोला गम नइ मिलिस कि ओकरे संग पढ़इया सुरेश कब ओकर सपना म आय जाय धर लिस। ....सँघरा सवाल बनावत सँघरा जिनगी जिएँ मरे के कसम खा डरिन। सपना घलव सँजो डरिन....पढ़ लिख के कुछ करबो तभे सात फेरा के बँधना म बँधाबो।... सोला-सतरा बछर के काँचा उमर...। ए... उमर के परेम... काँचा परेम। तभो ले अटूट परेम। फेर उँखर परेम राधा-किसन के परेम सही पबरित रहिस हे। एक दूसर ल मन ले मया करत रहिन हे ...दूनो झिन। तन के लालसा अउ भूख नइ दिखिन हे.. दूनो म... अउ दूनो के परेम म। कुल अउ परिवार के मरजाद ल बचाय रहिन हें दूनो झिन। परेम ल परेम रहन दिन। परेम म दाग नइ लगन दिन। ए अलग बात आय कि हँड़िया के मुँह तोप लेबे, फेर मनखे के मुँह नइ तोपे जा सकय। ...उँखर परेम टीवी सिनेमा म दिखाय परेम ले बिल्कुल अलगेच जनात रहिस। मन ले परेम करत रहिन हे, तन ले नइ। स्कूल भर म जंगल के आगी सहीं उँकर परेम के बात फइल गे। दूनो एक-दूसर ले परेम करथें। चर्चा सबो कोति होय लगिस। इँखर परेम तन ले नइ मन ले हे। तन ले होय परेम तन के भूख मिटाय के मौका देखथे। अइसन परेम तन के सुघरई के राहत भर रहिथे। तन ह उमर के संग ममहाना छोड़ देथे। जुवानी उमर के रंग चढ़त ममहाथे अउ उतरती म ...। चढ़त बेरा ल सबो देखथे, उतरती बेरा ल कोन जोहारथे। 

       बारहवीं पास करे के बाद दूनो अलगे-अलगे कालेज म भर्ती हो गिन। दूनो आठ कोस दूर रहे लगिन फेर... ओमन मन ले कभू नइ दूरिहाइन, भलुक अउ नजदीक आइन। रोजेच मोबाइल म बात करते रहिन।

     "...मोला कभू दगा झन देबे, नइ तो मैं मरी च जहूँ।"

"का तोला मोर परेम म भरोसा नइ हे?" 

 "तोर परेम म तो भरोसा हे, फेर...."

"फेर का ?"

" तैं भँवरा के जात, ए फूल ले वो फूल...."

"...फूल आखिर दू दिन म मुरझाबे च करथे का?... त भला कइसे नइ जाही दूसर फूल तिर भँवरा ह।" सुरेश ठठ्ठा दिल्लगी मढ़ावत कहिस।

जानथँव ..जानथँव

"अच्छा तहीं बता? .. कइसे के तोला भरोसा देवावँव।"

"मोला भरोसा हे तोर ऊपर ...अउ तोर परेम म घलव।" 

अउ मया दिखावत सुमन हाँसत कहिस।

"ले, रतिहा जादा होगे हे, अब सूत जा, जा। सुबे जल्दी उठना हे मोला।"

"काबर?" 

"भुलागेच का?"

"काला?"

"काली च बताय रेहेंव, पेपर हावय कहिके। निचट सुरत भुलहा हस" सुमन खिसिया बानीक कहिस। "तोर मया म भुला जथँव का करबे?..तोर मया के मारे..." सुरेश मस्का लगावत कहिस।

"मया ले पेट नइ भरय, कुछु करे पड़थे।..पेट चलाय बर।" 

"तब के तब देखे जाही..."

सुमन बीचे च म टोकत किहिस-"त परीक्षा नइ दिलाँव का?"

"परीक्षा तो दे हे ल परही भई। तभे तो हमर सपना पूरा होही अउ सच घलव।"

"हव, बने कहे सपना हमर आय त हमी ल पूरा करना हे।"

"ले तैं पढ़ई कर।"

"तैं मोबाइल रखबे तव न..।"  ए पइत सुमन मगन भाव ले कहिस।

     

       समय हाथ म समाय रेती कस निकलत गिस। दूनो के कालेज के पढ़ई पूरा होगे। जतका उँकर मन रहिस ततका दूनो पढ़ डरिन। नउकरी मिले के अगोरा दूनो ल रहिस। फेर... सरकारी नउकरी अपन हाथ के बात तो नोहय। अब तो मेरिट लिस्ट ले भर्ती के दिन तइहा के बात होगे हे। तइहा के बात, बइहा लेगे। ए अलगे बात रहिन कि रुपया अउ जाली प्रमाण पत्र मन ले कतको झन के नौकरी लग जावत रहिस। सब सेटिंग हो जात रहिस।कतको योग्य मनखे पहुँच अउ पइसा के भेंट चढ़गे। अब तो कम्पीटिशन के जमाना आगे हवय। मेरिट म परीक्षा पास करे ले नउकरी मिलना सहज होगे हे। मेरिट म आना खेल तमाशा नोहय फेर। भर्ती के नियम भले बदले हे, नइ बदले हे त रुपया ले दे के रिवाज। रुपया नइ देबे त लंका म पोस्टिंग कर देथे। दाई ददा अउ घर परिवार ले दूरिहा कर देथे। आखिर परेशान हो के पइसा दे बर परीच जथे। 

         दूनो के ल नौकरी लगे के ठिकाना नइ रहिस हे। अभी नवा सरकार भर्ती करे के मूड म नइ हे। कोनो विभाग म कोनो भर्ती विज्ञापन जारी नइ होय हे। सरकार अपन हिसाब-किताब जमाय के पाछू भर्ती करही सहीं लागथे।

         नौकरी के अगोरा करत दू साल के समय कलेचुप बुलक गे। अब तो सुमन सुरेश ल मन के संगेसंग अपन तन सउँप डरिस। आखिर संग जिए-मरे के उँकर सपना पूरा जउन होगे रहिस। सपना बाँचगे रहिस त अपन पाँव म खड़ा होय के सपना। मया परेम के बँधान सात फेरा ले सजोर होगे रहिस। दूनो सात फेरा के बँधना म बँधा गे रहिन हे। काँचा उमर के काँचा परेम... तन ले कोस भर दूरिहा रहिस, तउन परेम साँचा परेम म बदल गिस। दूनो के मरजी ले घर वाले मन बड़ धूम धाम ले दूनो के बिहाव कर दिन। 

         सुमन अपन नवा घर ससुराल म बड़ खुश रहिस। हरदी पानी के रंग ले सुमन के सुघरई अउ बाढ़गे रहिस। पारा परोस के मन रूप रंग अउ सुघरई के बड़ बखान करे लगिन। सगा पहुना मन घलव ओकर बेवहार ले खुश रहिन।... फेर कोन जनी सुमन के खुशी ल काखर नजर लग्गे। तन म चढ़े हरदी के रंग मन म भरे नइ रहिस। सास-बहू म खिटपिट होय लगिस। सास बात-बात म वोला पटंतर देवय। पढ़े लिखे सुमन अप्पड़ सास ल पूछ के सबो बूता करे के कोशिश करय। साग-पान बर पूछत कहे- "माँ ! सब्जी कौन-सी बनाऊँ?" 

          सास रहय तेन हूकँय न भूकँय।

"माँ! घर में सब्जी नहीं है, पापा से सब्जी मँगवा लीजिए।" सुरेश घर म हिंदी म बोले बर कहे रहिस ते पाय के सुमन हिंदी म गोठियावय।

    अभी तक घर म सब्जी रोज ओकर ससुर लानत रहिस। अइसन म सुमन, सुरेश ल कही सब्जी मँगाना अच्छा नइ समझिस।  

     "तोर घरवाला ल बोल ले अउ मन मुताबिक सब्जी मँगा डर।"  ओकर सास हुरसे सहीं कहिस।

       कोन जनी का बात रहिस कि ससुर घलव बात-बात म उटकापारी करे धर लिस। सुमन ल सुनावत ओकर ददा ल जइसन पाय तइसन कहय-"अपन मुड़ के पीरा ल हमर मुड़ म खपलदिस...। एके झन बेटी.... वहू म बने ढंग के दाइज-डोर जानेन न बराती मन के बरोबर स्वागत देखेन। कंजूस गतर के ह...." 

      सुमन सब ल सुन के कलेचुप रहिगे। बपुरी सुमन जुवाब देना नइ चाही। ओला अइसन संस्कार मिले नइ रहिस।

      सास अउ ससुर आए दिन ओसरी-पारी इहीच राग गावँय। सुमन ल रोज-रोज के कंझट म खाय अंग नइ लगत रहिस। सुरेश घलव दाई-ददा ल चुप नइ करात रहिस। अइसन म सुमन गुने लगिस- "का ए उही सुरेश हरे जेकर ले मैं परेम करेंव, जेन मोर सुख-दुख के खियाल रखहूँ कहे रहिस?"

    सुमन ल आजे पता चलिस के सुरेश ल ओकर ले नहीं, ओकर ददा के धन ले मतलब रहिस। जब सुरेश कहिस- "मोर दाई-ददा मन काय गलत काहत हे, ओतेक धन-दौलत के राहत ले काय दे हे मोला?"

सुमन कहिस- "अपन बेटी दे हे तोला, जेकर ले...."

सुमन पूरा कहे नइ पाय रहिस सुरेश बीच म अपन भड़ास निकालत बोलिस - "मया तो लइकई मति के आय ....तोला काय करहूँ? तैं मोर काय काम के?" 

"अउ सुन... मनखे के उमर के संग जरूरत बदलत जाथे, मोर जरूरत अब पइसा हे। जेकर ले जिनगी के जम्मो सुविधा बिसाए जा सकथे। परेम ले तो....."

      सुमन ल जोरदरहा झटका लगिस। सोचे नइ रहिस कि ओला सुरेश दगा दिही। आज जनाइस के ओकर साँचा परेम ह सुरेश के मोहजाल म मेंकरा कस फँस गेहे।

          सुमन रतिहा सुते के उदीम करिस, फेर अइसन म नींद कति ले आवय। अलथी-कलथी करत ओकर रात बीतिस। 

         ओला दाई ददा के बरजई ह सुरता आत रहिस। 'बेटी! अभी तैं दुनिया ल नइ देखे हस। तोर परेम ह जवानी के एक रंग आय। जउन जवानी के पूरा आवत देह के भटकाव भर आय। घर छोड़े के बाद का परेम ले तोर जिनगी चल जही? बेटी! ए परेम ले पेट नइ भरय, ए परेम ले छाँव नइ मिलय अउ ए परेम.... रोटी कपड़ा मकान तो मनखे के पहिली जरूरत होथे। तब पाछू परेम जउन ल तैं पहिली जरूरत बतावत हस। ए मया तुँहर लइकई मति हरे बेटी।'

    'नइ दाई ! सुरेश के मया अउ मन म कोनो खोट नइ हे। मँय ओकर छोड़ दूसर संग बिहाए ले मरना पसंद करहूँ।' अपन जिद घलव सुरता आइस।

        अतका ल सुन दूनो परानी सुमन के सुरेश संग बिहाव करे बर राजी होगे। दूनो परिवार के सियान मन जुरियाइन। सियानी गोठ चलिस। दूनो परिवार दुनिया वाला मन बर एक दूसर ल समझे के दिखावा करिन। 

         रिश्ता पक्का करे के पहिली सुमन के ददा भीतरी कुरिया म आ के, ओला एक पइत अउ समझाय के कोशिश करत कहिस- ...सुमन मोला लइका के ददा के बेवहार बने नइ लागत हे। ओला सिरीफ पइसा कौड़ी के मोह हे। पइसा ले बढ़के ओकर बर अउ कुछु नइ हे। अइसन म बिन काम काज के बेटा बहू ल नइ सहे सकय। एक पइत अउ सोच ले। अभियो कुछु नइ बिगड़े हे। सुमन अपन बात म अड़े रहिगे। सुरेश के छोड़ अउ काकरो ले बिहाव नइ करँव कहिके। आज अपन जिद..नइ गलती ल सुरता कर सुमन रोना चाहीस फेर रो नइ सकत हे। 

           सुमन ल ससुराल म आय छै महीना नइ होय रहिस, मन करिस कि मइके जाके रहि जाँव। फेर कोख म संचरे जीव के सुरता आगिस। 

    'अभी मइके चल देहूँ त दू-तीन महीना म एमन मोला चरित्रहीन कहे लग जही। फेर मैं ए दाग ल कइसे मिटा पाहूँ। मोर परेम के निशानी ल घलव ए पापी....।'

   सुमन मनेमन सोचिस अउ इही बिचार करत भगवान ले बिनती करे लगिस--"हे भगवान!  तैं मोला नोनीच देबे। जे नारी के दुख-पीरा समझ सकय, मैं ओला समझा सकँव कि नारी मन के उद्धार बर तोला लड़ई लड़ना हे।"

      सुमन भगवान के फोटो के आगू खड़ा हो के एक प्रण घलव करिस , कि नोनी के जनम होतेच मैं सुरेश ले अपन रिश्ता नइ रखँव। जउन ल मैं नइ मोर ददा ले धन चाही, ओकर संग का जिनगी बिताना?


पोखन लाल जायसवाल

पलारी जिला बलौदाबाजार छग.

Wednesday 26 May 2021

भगवान बुद्ध ला सादर नमन-बलराम चन्द्राकर


 भगवान बुद्ध ला सादर नमन-बलराम चन्द्राकर

*भगवान बुद्ध के जन्म अउ परिनिर्वाण दिवस के अवसर मा आप सब ला शुभकामना*

करीब 2684 साल पहिली भगवान बुद्ध के जन्म होय रहिस। संसार मा सत्य अहिंसा अउ न्याय के प्रकाश बगरइया भगवान बुद्ध भारत के प्रकाश स्तम्भ कहे जाथे। भगवान बुद्ध के कारण ही विश्व के 150 करोड़ अनुयाई के आस्था भारत भुइयाँ बर विशेष रहिथे।हम सब भारतवासी मन ला घलो सदैव उंकर *जीवन सिद्धांत* राह देखावत रहे हे। छत्तीसगढ़ मा सिरपुर बहुत बड़े आस्था के केंद्र हरे जिहाँ हमूमन ननपन ले मेला मा जा के भगवान बुद्ध के ध्यान मग्न अवस्थित प्रतिमा ला देख देख प्रभावित होवन। आज भी जन जन के पुजनीय हे।


*आज बुद्ध पुर्णिमा के अवसर मा भगवान बुद्ध के जीवन उपयोगी कुछ संदेश आप मन के बीच रखत हँव जेन ला आत्मसात करके हम ए दुनिया मा अपन जन्म ला सार्थक बना सकत हन-*


*1* तीन चीज जादा बेर नइ छूप सकै-सुरुज चंदा अउ सत्य।

*2.* वर्तमान मा जीना ही इंसान ला जीवंत बना के रखथे।

*3.* भविष्य के सपनेच मा झन बूड़े रहौ।भूतकाल के उलझन ले बाहिर आवौ। सिरिफ अउ सिरिफ वर्तमान मा ध्यान दौ।

*4.* जिनगी मा कतको अच्छा अच्छा किताब पढ़ लौ, कतको अच्छा अच्छा शब्द सुन लौ, जब तक इन ला अपन जिनगी मा नइ अपनाहू, कोनों फायदा नइ हे।

*5.* स्वास्थ्य सब ले बड़े उपहार हरे।

*6.* संतोष ले बड़े धन नइ हे।

*7.* वफादारी ले बड़े कोनों संबंध नइ हे।

*8.* बिना सेहत जिनगी मौत के छवि के सिवाय काहीं नोहय।

*9.* मनखे के करम हा, सिरिफ वो मनखे भर ला नहीं, ओकर अवइया पीढ़ी मन ला घलो प्रभावित करथें।

*10.* शक/शंका जहर- महुरा कस आय। पहिले - पहिले आदमी ला खुद मारथे फेर दूसरो मन ला।

*11.* इंसान के जिनगी मा जइसन विचार होथे, धीरे-धीरे वो हर वइसने बन जाथे।

*12.* क्रोध इंसान के विवेक ला नष्ट कर देथे। क्रोध अउ कोइला मा कोनों फरक नइ हे।

*13.* ईर्ष्या / घृणा ला खतम करे के एके उपाय हे प्रेम।

*14.* अपन मोक्ष अउ मंजिल के लिए खुदे करम करे बर पड़थे, दूसर उपर निर्भर झन रहौ।

*15.* मनखे ला कभू अपन बारे मा बढ़ा चढ़ा के नइ बताना चाही।

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पूरा विश्व मा भारत भूमि ला सम्मान देवइया भगवान बुद्ध ला सादर नमन् 


*आप सब ला बुद्ध जयंती के पुन: शुभकामना*


बलराम चंद्राकर भिलाई

7587041253

26/05/2021

Monday 24 May 2021

छत्तीसगढ़ मा पर्यटन के संभावना*


 *छत्तीसगढ़ मा पर्यटन के संभावना*



                           *पर्यटन* या भ्रमण जेला अंग्रेजी मा ट्रेवल कहे जाथे जेखर अर्थ होथे दर्शनीय जगह ला देखे बर दूसर जगह मा जाना।ये दर्शनीय जगह के अगर धार्मिक महत्तम हे तव अइसन पर्यटन तीर्थाटन कहे जाथे।हमर धर्मप्रिय भारतीय समाज प्राचीन समय ले तीर्थाटन करत आवत हे।चार धाम यात्रा, कैलाश मानसरोवर यात्रा, वैष्णो देवी यात्रा,स्वर्ण मंदिर यात्रा, हज यात्रा सदियों से चले आवत है  येखर अलावा आने छोटे बड़े तीरिथ धाम के यात्रा।

      आवागमन के साधन के विकास के संगे संग अब दुनिया हा छोटे होगे हावय।कम समय मा एक जगह ले दूसर जगह पहुँचे जा सकत हवय।तब मनखे के ध्यान प्राकृतिक,जगह के तरफ गइस जिहा के दृश्य ला देख के मनखे थोरिक बेरा बर अपन  बाकी सांसारिक दुःख ला बिसरा जाथे।संचार के साधन,आर्थिक विकास ले धीरे धीरे पर्यटन हा एक उद्योग के रूप ले लिस।अब पर्यटन के उद्देश्य सिर्फ प्राकृतिक,सांस्कृतिक,ऐतिहासिक स्थल के दर्शन न होके आर्थिक विकास घलौ होंगे हावय। सिंगापुर साइपस,जइसे कई देश के संगे संग गोवा जइसे राज्य के आमदनी के साधन पर्यटन हा हावय।

                हमर छत्तीसगढ़ राज्य प्राकृतिक दृष्टि से सम्पन्न राज्य ये।इहाँ के ऐतिहासिक सांस्कृतिक पौराणिक धरोहर हा अनमोल हे।इहाँ एक कोती कलकल छलछल करत महानदी ,शिवनाथ,हसदो, इन्द्रावती, पैरी, सोंढूर,जोंक,जइसे नदी हे।ता भारत के नियाग्रा के नाम ले प्रसिद्ध चित्रकूट,अउ तीरथगढ़, सात धारा,अमृत धारा जइसे अठखेली करत जलप्रपात हे।राजिम मल्हार, शिवरीनारायण,रतनपुर, चैतुरगढ़ डोंगरगढ़,दंतेवाड़ा, कुदुरमाल, गिरोदपुरी,सिरपुर  खरोद,जइसे धार्मिक जगह घला हवे।विश्व के सबले जुन्ना नाट्यशाला सीताबेंगरा हवे त रामगढ़ के पहाड़ी के अनुपम सुंदरता हवे जेखर सुंदरता ला देख के महाकवि कालिदास हा अपन मेघदूतम महाकाव्य के रचना करिस।बस्तर के कुटुंबसर के गुफा घलौ मन मुग्ध कर देथे।तीन राष्ट्रीय उद्यान अउ ग्यारह अभ्यारण्य मा अनेक प्रकार के जंगली जीव जंतु हावयँ।रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन, जंगल सफारी, कोकोडाईल पार्क कोटमी सुनार जाँजगीर जिला। छत्तीसगढ़ के खजुराहो भोरमदेव, तालागाँव,मदकूद्वीप, मैनपाट, बारसूर,

अउ कई दर्शनीय जगह,जुन्ना किला,ऐतिहासिक पौराणिक जगह हवे जेखर कारण से हमर छत्तीसगढ़ मा पर्यटन के अपार संभावना हवे । उपरोक्त जगह मन मा आवागमन के

 साधन बढ़ा दिये जाय अउ उहाँ रहे के बढ़िया साधन होवय

अउ बने ढंग के ओखर प्रचार प्रसार होवय त देश के अन्य भाग के ही नही बल्कि विदेशी पर्यटक मन  घलौ आकर्षित होंही अउ इहाँ पर्यटन बर आहीं ।येखर से प्रदेश के आमदनी बाढ़ही।होटल लाँज खुले ले स्थानीय बेरोजगार मन ला रोजगार घलौ मिलही।स्थानीय मन ला गाइड के ट्रेनिंग घलौ दिये जा सकत हवय जेखर से वोला रोजगार मिलही अउ हमर संस्कृति खासकर के जनजातीय संस्कृति ला विदेशी पर्यटक मन ला समझे मा सरलता जाही।आजकल एडवेंचर टूरिज्म अउ वाटर टूरिज्म के घलौ चलन बाढ़े हवय इहूँ ला बढ़ा के छत्तीसगढ़ मा पर्यटन ला बढ़ाये जा सकत हे।

              पर्यटन के महत्व ला समझ के संयुक्त राष्ट्र संघ हा 1997 ले हर साल 27 सितंबर ला पर्यटन दिवस मनाय के घोषणा करिस।छत्तीसगढ़ सरकार के महत्वाकांक्षी परियोजना रामवन पथ गमन के प्रथम चरण मा सीतामढ़ी, हरचौका,रामगढ़, शिवरीनारायण, तुरतुरिया, चंद्रखुरी,राजिम, सिहावा, जगदलपुर जइसे नौ जगह के चयन करे गय हे जेमा चार जगह मा काम शुरू घलौ होगे हावय येखर ले छत्तीसगढ़ मा पर्यटन ला बढ़ावा मिलही।माडमसिल्ली धमतरी, हसदेव बाँगो सतरेंगा कोरबा,संजय गाँधी जलाशय खुँटाघाट रतनपुर बिलासपुर, सरोधा डैम कबीरधाम,समोधा बैराज रायपुर मा वाटर टूरिज्म के सुविधा पर्यटक मन बर हावे।छत्तीसगढ़ मा तीन जगह मा चिल्फी घाटी कबीर धाम मा बैगा एथनिक रिसार्ट,कोंडागांव मा धनकुल एथनिक रिसार्ट अउ बिलासपुर मा कुरदर एथनिक रिसार्ट खुले हवे जेमा बढ़िया सुविधा के संगे संग जनजातीय जीवनशैली के अनुभव घलौ होही।स्वदेश दर्शन योजना मा ट्राइवल टूरिज्म ला बढ़ावा दिये जावत हे।अब वो दिन दूरिहा नइ हे जब पर्यटन के क्षेत्र मा छत्तीसगढ़ के नाम हा सोनहा अक्षर मा लिखे जाही अउ विदेशी पर्यटक घलौ बड़ संख्या मा इहाँ आही।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़ मा पर्यटन के संभावना* महेंद्र कुमार बघेल


 

 *छत्तीसगढ़ मा पर्यटन के संभावना* 

             महेंद्र कुमार बघेल


हमर छत्तीसगढ राज्य म पर्यटन के अपार संभावना हवय।हम सब जानथन छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर हे, जेमा वन क्षेत्र 59,722 वर्ग किलोमीटर हे,जे राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल के 44.21% आय।

       जिहाॅं नदी ,पहाड़,घाटी , दलदली जमीन,झरना (जलप्रपात) , गुफा, शैलचित्र जैसे प्राकृतिक संसाधन हे , मंदिर , प्राचीन स्मारक,बौद्ध स्थल,मठ जइसन धार्मिक आस्था के केन्द्र हे,जगा-जगा  राजमहल, कीला जइसन ऐतिहासिक स्थल हे , शेर ,भालू,चीता, वनभैंसा अउ नीलगाय जइसन  दुर्लभ जंगली पशु (वन्य प्राणी) मन के विचरण करे बर आठ ठन ( पहिली 11 रहिस ) बड़े- छोटे अउ मॅंझोलन अभयारण्य हे, तीन ठन राष्ट्रीय वन उद्यान , चार ठन टाइगर रिजर्व अउ एक ठन अचानकमार बायोस्फीयर (जीवमंडल) हे। हमर जंगल मा अनेक जीव जंतु, साल ,सइगोना  संग असंख्य पेड़ पौधा हे जेन वायु मंडल संग जैव विविधता ल सन्तुलन मा बनाय रखें हे, चारों मुड़ा बड़े-बड़े बाॅंध-बॅंधिया घलव हे।

छत्तीसगढ़ मा रतनपुर, चंद्रहासिनी, बम्लेश्वरी, दंतेवाड़ा जइसन जग प्रसिद्ध शक्तिपीठ हे, राजीम अउ शिवरीनारायण के मंदिर मन हर स्थापत्यकला के सुन्दर कहानी स्वयं बखान करत हे। त एती महानदी, सोंढूर अउ पैरी के संगम मा माघी पुन्नी ले महाशिवरात्रि तक लगने वाला पखवाड़ा भर के मेला हर कुंभ के रूप मा विख्यात होवत हे।

        भारत के हृदय स्थल म बसे छत्तीसगढ़ हर पर्यटन के क्षेत्र मा बड़ समृद्ध राज्य आय।

उत्तर दिशा म सतपुड़ा के बड़ ऊॅंच ऊॅंच जंगल-पहाड़, बीचोबीच महानदी संग मैदानी भाग म बोहावत कईयों ठन नदियाॅं हे। बस्तर के पठार, जनजाति संस्कृति, प्राचीन लोक संस्कृति, प्रस्तर अउ काष्ठ शिल्प कला, नृत्य संगीत संग धरम जात के आपसी संघर्ष ले कोसों दूर गउ बरोबर एकदम सीधा-सादा सरल इहाॅं के मूल  निवासी हें, ये सब महीन विशेषता ल देख-सून के हम कहि सकथन कि सम्पूर्ण भारत म छत्तीसगढ़ हर पर्यटन के संगे संग सांस्कृतिक एकता अउ अखंडता के परिचायक हे।


सुविधा अउ समझ बर छत्तीसगढ़ के पर्यटक स्थल मन ला मुख्य रूप ले अलग-अलग बिंदु मा वर्गीकरण कर सकथन :-

( *स्थापत्य कला, पुरातात्विक महत्व, धार्मिक स्थल, सांस्कृतिक , प्राकृतिक स्त्रोत, ऐतिहासिक, मानव निर्मित आदि।*)


 1. *स्थापत्य कला* :-  (सिरपुर, भोरमदेव, बारसुर)


स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूना के रूप म सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर, भोरमदेव के शिव मन्दिर अउ बारसुर के मामा-भांचा मंदिर हर प्रस्तर नक्कासी के उत्कृष्ट उदाहरण आय।

2. *पुरातात्विक महत्व के स्थल*:- 

(पचराही, आरंग, तरीघाट, पुजारी पाली, डमरू, महेशपुर)


*पचराही*:-

कबीरधाम जिला म स्थित पचराही हर एक नैसर्गिक अउ पुरातात्विक स्थल हवय,हाल के उत्खनन म प्राचीन मंदिर, बैल,लोहा के चूल्हा समेत कई ठन सिक्का मिले हे।


*आरंग*:- आरंग ल मंदिर के नगरी कहे जाथे, ये शहर ल लोरिक अउ चंदा के घर घलव माने जाथे।


*तरीघाट*:- दुर्ग जिला के पाटन क्षेत्र मा स्थित तरीघाट म 2020 के उत्खनन म इहाॅं जगपाल वंश के स्वर्ण मुद्रा, ताम्बा के सिक्का , आभूषण अउ बरतन मिले हे।


*पुजारी पाली*:- सरायपाली के निकट 

पुजारी पाली के मंदिर म गांव वाले के संरक्षण म छठवीं शताब्दी के सैकड़ों पुरातात्विक समान रखाय हे।पथरा म उकेर के विष्णु, शिव व काली ले लेके भगवान के कई ठन रूप हे।


*डमरू*:-

बलौदा बाजार के डमरू नाम के गांव म उत्खनन ले भगवान बुद्ध के पैर मन के चिन्ह मिले हे।


*महेशपुर*:- सरगुजा जिला के महेशपुर म स्थित प्राचीन मंदिर मन वास्तुकला के बेजोड़ नमूना हे। जिहां 8वी शताब्दी के तीर्थंकर वृषभनाथ प्रतिमा अउ दसवीं शताब्दी के शिव मंदिर अउ विष्णु मंदिर विख्यात हे।


इनकर छोड़ अउ कई ठन जगा हे जिहाॅं पुरातात्विक महत्व के चीस-बस हे।


 3. *प्रमुख धार्मिक स्थल*:-

(राम वनगमन क्षेत्र, दामाखेड़ा, गिरौदपुरी, बौद्ध सर्किट, कुनकुरी, लुतराशरीफ नगपुरा, चंपारण

    *राम वनगमन क्षेत्र* 

जेन रस्ता म भगवान श्री राम जी हर आय- गय रहिस उही सब रस्ता मन ल राम वनगमन क्षेत्र के रूप में विकसित करे जात हे। अउ पहली चरण म नव ठन जगह ला चिन्हित करे गेहे जेमा सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया) रामगढ़ (अंबिकापुर), शिवरीनारायण(जांजगीर चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंद्रखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा- शृंगीऋषि आश्रम ( धमतरी), जगदलपुर (बस्तर), रामाराम (सुकमा)  

*दामाखेड़ा*:- दामाचंस्थि कबीर पंथ के अनुयायी मन के सबले बड़े आस्था अउ श्रद्धा के केन्द्र आय। इहा देश विदेश ले श्रद्धालु मन दर्शन करे बर आथें। मान्यता हे कि लगभग सौ साल पहली कबीर पंथ के 12 वाॅं गुरू, गुरु अग्रदास स्वामी द्वारा कबीर मठ के स्थापना करे गीस।


*गिरौदपुरी*:- महानदी अउ जोक नदी के संगम मा स्थित गिरौदपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सम्मानित तीर्थ स्थल में से एक हरे। ये हर छत्तीसगढ़ के सतनामी पंथ के प्रवर्तक के जन्म स्थली आय। ये पावन धाम हर गुरु घासीदास के अनुयाई अउ श्रद्धालु मन के पावन स्थली आय।


*बौद्ध सर्किट* :-

 ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थल सिरपुर ला बौद्ध सर्किट 3 में शामिल कर ले गय हे , येला डोंगरगढ़ अउ मैनपाट के संग जोड़े के भावी योजना हवय। अइसे लगथे कि भविष्य मा डमरू,तुरतुरिया (बलौदाबाजार), भोंगापाल (बस्तर), कोटाडोल (कोरिया) ला बौद्ध सर्किट म भी जोड़े जा सकथे।


*कुनकुरी*:-

 जशपुर जिला में स्थित कुनकुरी एशिया के सबसे बड़े दूसरा नंबर के चर्च (महा गिरजाघर )के नाम से जग प्रसिद्ध हवय।


*लूतराशरीफ*:-

बिलासपुर जिला में स्थित हजरत बाबा सैयद अली के प्रसिद्ध दरगाह हे जिहां उनकर अनुयायी मन अपन मन्नत मांगे बर बड़ दूर-दूर ले आथे।


*नगपुरा* :-

दुर्ग जिला के नगपुरा नाम के गांव म जैन धर्मावलंबी मन के सबसे बड़े तीर्थ स्थल हवय।जिहां देश विदेश के पर्यटक मन दर्शन लाभ लेय बर आथे।

*चम्पारण*:-

रायपुर ले 55 किलोमीटर और राजिम ले 15 किलोमीटर दूर म स्थित चंपारण गांव चंपेश्वर महादेव मंदिर अउ महाप्रभु वल्लभाचार्य के जन्म स्थली( वैष्णव पीठ) के रूप में प्रसिद्ध हे।


4. *सांस्कृतिक महत्व के स्थल* :-

(पुरखौती मुक्तांगन, बस्तर दशहरा , राजीम मेला )


*पुरखौती मुक्तांगन*:- 

200 एकड़ के क्षेत्रफल मा फैले पुरखौती मुक्तांगन हर छत्तीसगढ़ के समृद्ध संस्कृति के दर्शन कराथे,येहा लोक कला के संग विविध आयाम ल रेखांकित करत आदिवासी मन के कला संस्कृति अउ जीवन ले जुड़े हुए दस्तावेज आय।


*बस्तर दशहरा*:-

बस्तर के दशहरा के अपन अलग पहचान हे, ये असत्य के ऊपर सत्य के विजय के  तिहार दशहरा राम के युद्ध में विजय के रूप में दशहरा  मनाय जाथे। फेर ये दशहरा उत्सव म रावण ला मारे नइ जाय ।बल्कि येकर सीधा संबंध बस्तर के आराध्य देवी दंतेश्वरी के संग अन्य देवी देवता मन के अबड़ दिन ले चलने वाला पूजा अर्चना से हावय।


*राजीम मेला* :-

महानदी सोंढूर अउ पैरी त्रिवेणी  संगम मा स्थित राजीम म हर साल माघी पुन्नी  में लगने वाला मेला हर एक पखवाड़ा तक आयोजित होथे। येला कुंभ के रूप म भी पहचान दिलाय के प्रयास होत हवय।



क्रमश: ...




*5 प्राकृतिक स्त्रोत* :-

( जलप्रपात, गुफा, घाटी, राष्ट्रीय वन उद्यान, अभयारण्य , मैनपाट, तातापानी)

   *(क)जलप्रपात*:- 

            *चित्रकोट*:- जगदलपुर से 39 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी में बने ये प्राकृतिक झरना 90 फीट ऊंचाई ले गिरथे, येहा छत्तीसगढ़ के सबले जादा चौड़ाई वाले झरना हरे ।येला  छत्तीसगढ़ के नियाग्रा घलव कहे जाथे।

*सातधारा* :- बारसूर (बीजापुर) ले सात किमी दूर म स्थित सातधारा हर भेड़ाघाट जइसन दर्शनीय स्थल आय।

*तीरथगढ़*:- मुनगाबहार ( बस्तर) छत्तीसगढ़ म स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात लगभग

300 फिट ऊपर ले नीचे गिरथे।

*मकरभंजा जलप्रपात*:- जशपुर जिला के मकरभंजा जलप्रपात हर उंचाई म तीरथगढ़ (300 फिट) जलप्रपात ले घलो ज्यादा ऊंचाई ( लगभग 450 फिट) ले गिरथे ।

*चर्रे-मर्रे जलप्रपात*:- चर्रे मर्रे हर नारायणपुर जिला मा बंजारिन घाटी में स्थित है, ये कल- कल करत झरना हर पर्यटक मन ला जुलाई ले फरवरी महीना तक आकर्षित करथे।

छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल के 44% भाग म जंगल पहाड़ होय के कारण चित्रधारा, राक्सगंड़ा,अमृतधारा ,कोटली सरभंजा, मलाजकुंडम, रानीदाह ,केंदई ,गुप्तेश्वर अउ रानीदरहा जइसन कई ठन जलप्रपात हे जेन पर्यटक मन ला अपन तरफ आकर्षित करे म सक्षम हे।


*(ख) गुफा* :-(जोगीमार , कैलाश गुफा ,लाफ़ागढ़ , सिंघनपुर, कुटुमसर, सीताबेंगरा ,कबरा पहाड़ )

*जोगीमार गुफा*:- अंबिकापुर जिला के पहाड़ में स्थित ये गुफा लगभग 300 ईसा पूर्व के बताए जाथे, ये गुफा मन के दीवार म प्राचीन चित्रकारी अउ कलाकृति उकेरे गेहे। पशु-पक्षी, फूल अउ आदमी मन के चित्र के संग कुछ शिलालेख घलो मिले हे।


*कैलाश गुफा*:- जशपुर जिला के बगीचा तहसील ले 29 किलोमीटर म कैलाश गुफा स्थित हे, इहां प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर घनघोर जंगल हवय, साथ ही इहां बहुत अधिक संख्या म बंदर भी पाये जाथे।


*चैतुरगढ़ (लाफ़ागढ़) गुफा*:- कोरबा जिला के तहसील मा लाफ़ागढ़ हर ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल आय, इहां के गुफा हर सुरंग बरोबर 25 फीट लंबा हे। येला शंकर गुफा कहे जाथे। सकरा होय के कारण एक घाॅंव म एकेच आदमी हर अंदर बाहर आ जा सकथे।


*सिंघनपुर गुफा*:- रायगढ़ जिला म स्थित सिंघनपुर के प्रागैतिहासिक कालीन तीन ठन गुफा मन लगभग 300 मीटर लंबा और 7 फुट ऊंचा हे। बाहर के दीवार मन मा जानवर, आदमी अउ शिकार के आकृति बने हे।ये गुफा ल लगभग 30 हजार साल पुराना माने गेहे।


*कुटुमसर गुफा*:-  कुटुमसर गुफा हर जगदलपुर ले 35 किलोमीटर दूर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हे। ये भारत के सबले जादा गहराई वाले गुफा हरे ,येकर लंबाई लगभग 4500 फीट हे ।इहां रंग बिरंग के ॲंधरी मछरी पाए जाथे।


*रामगढ़ (सीता बेंगरा)गुफा*:-

 अंबिकापुर-बिलासपुर के रस्ता मा ये प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रामगढ़ हवय, रामगढ़ पर्वत हर टोपी के आकार म हवय। इहिंचे ल विश्व के प्राचीनतम नाट्यशाला घलव कहे जाथे जिहां महाकवि कालिदास हर मेघदूत के रचना करे रहिस।


*कबरा पहाड़ गुफा*:- जिला रायगढ़ ले लगभग 8 किलोमीटर दूर म कबरा पहाड़ गुफा स्थित हे, जिहां प्राचीन मानव आवास के प्रमाण मिले हे, दीवार म पाषाण कालीन मानव के द्वारा रंगीन चित्रकारी मौजूद हे। इहाॅं हिरण, घोड़ा ,कछुआ के संग जंगली भैंसा के बहुत बड़े चित्र घलव हे।

 

ये सब  गुफा मन के अलावा छत्तीसगढ़ में अउ कई ठन गुफा हे, जिहां पर्यटन के अपार संभावना हे।


*(ग) घाटी*:- (केशकाल,चिल्फी, कांगेर, लोरोघाटी)

*केशकाल घाटी*:- कोंडागांव जिला के राष्ट्रीय राजमार्ग म केशकाल ह स्थित हे, इहां ले बस्तर पहुॅंचे बर केशकाल के घाटी ले होके जाना पड़थे।ये घाटी म बड़े बड़े पहाड़ी मोड़  हे, तभे येला बारा भाॅंवर के नाम ले घलव जाने जाथे।

*चिल्फी घाटी*:- कबीरधाम जिला म स्थित चिल्फी घाटी हर मिनी कश्मीर के नाम से घलव जाने जाथे। पहाड़ के चारों तरफ  चिल्फी घाटी के घुमावदार रास्ता बड़ खतरनाक हे। इहां दिसंबर जनवरी के महीना मा अतिक ज्यादा ठंड पड़थे कि भुॅंइया म बरफ के चादर बिछ जथे।


*कांगेर घाटी*:- बड़ ऊंच-ऊंच पहाड़ ,गहुॅंरी-गहुॅंरी खाई ,बड़े-बड़े पेड़, जंगली फल फूल ले भरपूर ये घाटी हर जीव-जंतु  मन बर  अनुकूल जगह हे। तेकर सेती येला राष्ट्रीय वन उद्यान बनाय गेहे।


*लोरो घाटी*:- जशपुर जिला म नगर ले 15 किलोमीटर दूर म स्थित  हरियर पेड़-पौधा अउ फूल ले भरे लोरो घाटी हर प्राकृतिक मनोरम स्थल आय।जेन हर अपन सुंदरता के कारण आसपास म बड़ प्रसिद्ध हे। घाटी से मतलब इहां दू ठन पहाड़ के बीच तीन घाॅंव मोड़दार चट्टान से हे।


*(घ) राष्ट्रीय वन उद्यान*:- (गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान)

*गुरु घासीदास राष्ट्रीय वन उद्यान*:- ये कोरिया और सूरजपुर जिला में स्थित है, इहां नीलगाय ,बाघ अउ तेंदुआ आदि  पाय जाथे।


*इंद्रावती राष्ट्रीय वन उद्यान*:- ये बीजापुर जिला में स्थित हे, ये राष्ट्रीय वन उद्यान ले होके इंद्रावती नदी हर बहथे।


*कांगेर घाटी राष्ट्रीय वन उद्यान*:- ये राज्य के सबसे छोटे राष्ट्रीय उद्यान आय, इहां पहाड़ी मैना ला संरक्षित करे जाथे, कांगेर नदी मा भैसादरहा नाम के जगह म *मगरमच्छ मन* के प्राकृतिक निवास हवय।


*(ङ) अभ्यारण्य*:- 

सामान्यत: छत्तीसगढ़ म 11ठन अभयारण्य माने जाथे, 

तमोर पिंगला (सूरजपुर) सीतानदी (धमतरी), अचानकमार (मुंगेली), सेमरसोत (बलरामपुर), गोमरदा (रायगढ़), पामेड़ (बीजापुर), बारनवापारा (बलोदाबाजार),उदंती (गरियाबंद)' भोरमदेव (कबीरधाम), भैरमगढ़ (बीजापुर), बादल खोल(जशपुर)।

   फेर उदंती- सीतानदी, तमोरा पिंगला ल अब टाइगर रिजर्व बना दिए गए हे। जेकर कारण वर्तमान मा अभयारण्य के संख्या 8 हे।


*(च) मैनपाट* :- (दलदली, उल्टा पानी) 

अंबिकापुर ले 75 किलोमीटर दूर विंध्य पर्वत माला में स्थित मैनपाट हर छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाथे। येकर नजदीक मा सरभंजा जलप्रपात, टाइगर प्वाइंट मछली प्वाइंट मुख्य दर्शनीय स्थल हे।

 *दलदली*:-  भूकंप के समय जइसे जमीन हिलथे वइसनेच ढंग ले इहां के दलदली क्षेत्र म कूदे ले जमीन ह हिलथे ।

*उल्टा पानी*:-  प्रकृति के नियम के उलट इहां के खेत ले निकलत पानी के धार हर ढलउ डहर नइ बोहा के उल्टा दिशा में बोहाथे , जेकर सेती येकर नाम उल्टा पानी पड़ गेहे।


*(छ) तातापानी*:-

बलरामपुर जिला मुख्यालय ले 12 किलोमीटर दूर म स्थित तातापानी ह गरम पानी के लिए प्रदेश भर में प्रसिद्ध हे। इहां गरम पानी के कुंड हे जिहां ले साल भर डबकत पानी हर बोहावत रहिथे। ये मान्यता हे कि कुंड के पानी म औषधि गुण हे जेकर ले त्वचा रोग हर ठीक हो जथे।


*6 मानव निर्मित* :-  (गंगरेल बांध , मैत्री गार्डन भिलाई,सौर ऊर्जा पार्क रायपुर , सतरेंगा, जंगल सफारी)

*गंगरेल ( रविशंकर) बांध*:-  धमतरी जिला मुख्यालय ले लगभग 13 किलोमीटर दूर म स्थित गंगरेल ह पर्यटन के क्षेत्र म तेजी से उभरत नाम आय ।इहां वाटर स्पोर्ट्स के अलावा श्रद्धालु मन बर अंगारमोती मंदिर हे। चारों तरफ के  हरियाली ह सबके मन लला मोह लेथे। इहां जल विद्युत परियोजना भी संचालित हे।


*मैत्री गार्डन भिलाई*:-

भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित मैत्री गार्डन ह  चिड़ियाघर के संग लइका मन के गार्डन आय। इहा कृत्रिम झील के अलावा शेर,भालू चीता,बाघ के संग दुर्लभ पशु पक्षी देखे बर मिलथे।


*सौर ऊर्जा पार्क रायपुर*:- 

पूरा भारत भर में सौर ऊर्जा पार्क रायपुर के अपन अलग पहचान हे। क्रेड़ा द्वारा स्थापित ऊर्जा शिक्षा पार्क ह नवीकरणीय उर्जा स्रोत मन के अलग-अलग रूप के बारे म जागरूकता पैदा करके लोगन मन ला शिक्षित करे के काम करते हे। पार्क म हरा भरा पेड़ पौधा ,रंग बिरंग के फूल, फव्वारा ,कृत्रिम झरना के संग सुंदर उद्यान हर येकर शोभा ल बढ़ावत हे।


*सतरेंगा*:- कोरबा जिला म बांगो बांध के तीर मा बसे सतरंगा प्राकृतिक मनोरम दृश्य लिए भरपूर दर्शनीय स्थल आय। इहाॅं 1400 साल पुराना महासाल के पेड़ हर छत्तीसगढ़ के सबले जुन्ना पेड़ में से एक आय। इहां वाटर स्पोर्ट्स के साथ पानी मा तॅंउरत फ्लोटिंग रेस्टोरेंट अउ रिसार्ट के भी व्यवस्था हे।


*जंगल सफारी*:-

रायपुर ले 15 किलोमीटर दूर स्थित नंदनवन म 800 एकड़ क्षेत्र म जंगल सफारी ह फैले हुए हे। इहां कई प्रजाति के पेड़-पौधा के संग जल निकाय बर 130 एकड़ के खांडवा जलाशय हवय। इहां चार ठन सफारी जेमा शाकाहारी पशु, भालू ,बाघ अउ शेर बर प्राकृतिक आवास के व्यवस्था करे गेहे।


येकर अलावा छत्तीसगढ़ म अउ कई ठन बाॅंध अउ गार्डन हवय जिहाॅं पर्यटन के आनन्द उठाय जा सकथे।

*पर्यटन म पिछवाय के कारण*:- 

 *1 नक्सलवाद* :- छत्तीसगढ़ के शहरी  अउ नगरी क्षेत्र के तुलना मा ग्रामीण इलाका म खासकर जनजाति क्षेत्र म 80% ले जादा पर्यटन स्थल हावय ।छत्तीसगढ़ के इही क्षेत्र म नक्सलवाद हर पर्यटन बर एक खास समस्या बने हुए हे। कतरो पर्यटक मन डर के मारे पर्यटन म नइ आय।

*2.आवागमन/ पहुॅंच मार्ग*:-

छत्तीसगढ़ के कई ठन पर्यटक स्थल म पहुंचे बर सड़क के सुविधा घलव नइहे, जेकर कारण आवागमन म परेशानी उठाय बर पड़थे।

*3जुम्मेदारी के अभाव* :-

पर्यटक स्थल म नियुक्त जुम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी मन के सुस्त रवैया अउ लापरवाही के कारण पर्यटक मन ला पर्याप्त सुविधा नइ मिल पाय।जेकर ओमन ह हकदार रहिथे।आय दिन अइसन जगह म साफ-सफाई  अउ रखरखाव के भारी कमी घलव दिखाई देथे।


*सुझाव*

*1प्रचार प्रसार के जरवत*:-  छत्तीसगढ़  म कई ठन अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटन स्थल हवय।फेर प्रचार-प्रसार म कमी के कारण विदेशी मन के ध्यान इहां केंद्रित नइ हो पावत हे।

गुजरात प्रदेश के तर्ज म इहां घलव बड़े रूप मा प्रचार प्रसार करें के जरवत हे, जेकर ले पर्यटन के क्षेत्र म निश्चित रूप से तेज़ी आही।

*2आयोजन के रूपरेखा* :-

छत्तीसगढ़ के पर्यटन मंडल ल चाही कि वोमन समय समय म देश-विदेश म सेमीनार आयोजित करे, पर्यटन पुस्तक , ब्रोशर , पर्यटन एप, के दिशा म सार्थक काम करे जाय।

*3रोजगार के अवसर*:-  स्थानीय निवासी मन ल होटल, मोटल म रोजगार उपलब्ध कराय जाय, स्थानीय युवा मन ला गाइड के रूप म प्रशिक्षित करके सेवा लिए जाय। येकर से  समय म काम होही, भाषा बोली संबंधित अड़चन नइ आही।

*अंतस के बात*:- 

छत्तीसगढ़ ह पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक अउ व्यावहारिक दृष्टिकोण ले समृद्ध प्रदेश आय, येमा कोई संदेह नइहे। सरकार अउ पर्यटन मंडल के विशेष रूचि ले पर्यटन के क्षेत्र म आमूलचूल परिवर्तन हो सकथे।इहाॅं के बोली-भाषा, संस्कृति, खानपान ल देशी-विदेशी पर्यटक मनके प्रवास ले पूरा दुनिया म स्थापित करे जा सकथे। निश्चित रूप से वर्तमान सरकार ह राम वनगमन क्षेत्र, बौद्ध सर्किट ,सतरेंगा जइसे महात्वाकांक्षी योजना ले  ये स्थल मन ल अंतर्राष्ट्रीय पटल म लाय के भरपूर कोशिश करत हे ।फेर ये क्षेत्र से संबंधित अधोसंरचना ल तेजी से विकसित करे बर अउ कला, संस्कृति भाषा बोली अउ खेलकूद ल प्रोत्साहित करे बर निजी निवेशक मन ल प्रोत्साहित करे के भी आवश्यकता हे।जेकर ले ये क्षेत्र म प्रतिस्पर्धा बाढ़ही अउ पर्यटक मन हआकर्षित होहीं।

कहे बोले के मतलब इही हे कि पर्यटन स्थल मन म जादा से जादा सुविधा उपलब्ध होय अउ अधिक ले अधिक संख्या म पर्यटक मन आय, सरी दुनिया म छत्तीसगढ़ के मान सम्मान बढ़े, छत्तीसगढ़ ह आर्थिक रूप ले सक्षम प्रदेश बने।

*प्रकृति ह अपन दूनो हाथ ले हमन ला छप्पर फाड़ के दे हावय। तेकर सेती हम कहि सकथन हमर छत्तीसगढ़ म पर्यटन के अपार संभावना हे।*

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महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

Friday 14 May 2021

कृषि संस्कृति ले जुड़े परब हरे अक्ती -अंकुर





 

लेख 

कृषि संस्कृति ले जुड़े परब हरे अक्ती -अंकुर

हमर देश हा कृषि प्रधान देश हरे. किसान हा देश के रीढ़ के हड्डी हरे. किसान ह जांगर टोर के कमाथे अउ भुंइयाँ के संग मितानी बध के खूब सेवा जतन करथे. वइसने हमर छत्तीसगढ़ हा घलो कृषि प्रधान होय के कारण" धान के कटोरा " कहलाथे. हमर देश अउ प्रदेश के कतको तिहार हा खेती किसानी ले जुड़े रहिथे. अक्ती तिहार के संबंध घलो खेती किसानी से जुड़े हवय. 

    ठाकुर देव मा नेंग जोग करे जाथे 
   अक्ती तिहार बैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) के दिन मनाय जाथे. येहा किसान मन के द्वारा मनाय जाने वाला पहिली तिहार हरे. अक्ती दिन किसान मन परसा पान मा धान भरके ठाकुर देव मा ले जाथे. फेर ऊहाँ गाँव भर के प्रमुख सियान मन के उपस्थिति मा बइगा हा विधि विधान ले पूजा करथे. येकर पाछू कारण हे कि साल भर किसान मन ऊपर कोनो ढंग परेसानी झन आवय. ठाकुर देव मा चढ़ाय परसा पान के धान ला किसान मन खेत मा जाके सींच देथे अऊ कुदारी मा खन के ढक देथे. ये प्रकार ले अक्ती परब हा खेती किसानी शुरु होय के संकेत देथे. 

किसान मन हा खेत के कांटा खूटी ला रापा, टंगिया के माध्यम ले साफ करे के शुरु कर देथे. येकर ले जऊन दिन नंगरिहा हा नांगर जोतही त बने बने जोत सकय अऊ बइला मन के खूर ला घलो झन गड़य. खेत के कांद बूटा ला रापा, कुदाली मा खन के चतराथे. 
  किसान हा बइला गाड़ी मा अऊ अब बदलत जमाना मा ट्रेक्टर ले घुरुवा के खातू (खाद) ला खेत मा लेगके कुढ़ी गांज देथे. जउन ला धान बोय के पहिली बगराय जाथे. 
     किसान मन खेती किसानी ले जुड़े औजार नांगर बख्खर के बने तइयारी कर लेथे. बढ़ई अउ लोहार कर ले जाके बनवाथे. येकर ले जब बरसा चालू होथे ता धथवाय ला नई पड़य. किसान मन अपन कच्चा मकान के खपरा ला जानकार मन ला बुला के खपरा लहुँटाय के काम करवा लेथे जेकर 
ले बरसात मा परेशानी झन होवय. 

 पुतरा -पुतरी के बिहाव होथे 

   अक्ती के दिन सुग्घर ढंग ले लईका मन पुतरा -पुतरी के बिहाव 
करथे. येकर तइयारी लइका मन हा दू -चार दिन पहिली ले करत रहिथे. येमा बड़का मन लईका मन ला सहयोग करथे और ऊंकर खुसी मा  सामिल होथे शादी- बिहाव मा अक्ती भांवर हा गजब शुभ माने गेहे. दू साल ले कोरोना बीमारी के कारण शादी बिहाव हा रुक गेहे. जिंकर मन के लोग लईका के सगाई होगे हे अऊ शादी के तारीख जम गे रिहिस तेहा लाक डाउन के कारण अटक गेहे. सब झन परेशान होगे हे. कतको मन जइसे भी करके कोरोना के गाइड लाईन ला पालन करत शादी ला निपटात हवय. कोनो जगह दुल्हा- दुल्हिन  मन खुदे हरदी लगा थे ता कोनो जगह दुल्हा हा खुदे बाजा बजाथे. घरे- घर के दूये चार झन नाचत हवय. पर का करबे समय अड़बड़ बलवान होथे कहे गेहे. 
 अक्ती के दिन के अड़बड़ महत्तम हावय  . इही दिन माँ गंगा हा धरती मा अवतरित होइस. महर्षि परशुराम, माँ  अन्नपूर्णा के जनम होय रिहिस. कुबेर ला खजाना मिले रिहिस अऊ सुर्य भगवान हा पांडव मन ला अक्षय पात्र देय रिहिस. संगे संग महाभारत के लड़ाई के अन्त होय रिहिस. महर्शि वेद व्यास हा महाभारत के रचना के शुरुआक अक्ती के दिन भगवान गणेश जी के साथ करे रिहिस. अऊ कतको प्रसंग अक्ती तिहार ले जुड़े हावय. ये ढंग ले अक्ती तिहार के अड़बड़ महत्तम हे. 

       जय जवान, जय किसान .
       जय छत्तीसगढ़ महतारी .
       आप जम्मो झन ला अक्ती तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ  शुभ कामना हे .

                ओमप्रकाश साहू" अंकुर"  
 सुरगी, राजनांदगाँव

अक्ति तिहार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"


 

अक्ति तिहार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"


*।। अक्ति तिहार (अक्षय तृतीया) ।।*


वैशाख अँजोरी पाख के तीज तिथि ल अक्ति तिहार कहे जाथे। ये तिहार हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख मांगलिक तिहार में से एक आय। आज के दिन लईका मन पुतरी- पुतरा के बिहाव करथें। एकर पाछू धार्मिक कारण ये हे कि अक्ति के दिन जेन भी काम करे जाथे वोहा अक्षय हो जाथे। एकरे सेती ये ला अक्षय तृतीया घलो कहे जाथे। पुतरी- पुतरा के बिहाव मा पुतरी के कन्यादान घलो करथें। तब वो दानी ला कन्यादान के बरोबर पुन फल मिलथे। जतका झन मन टिकावन टिकथे उहूमन के पुन फल हा अक्षय हो जाथे। ये दिन हा स्वत: सिद्ध अउ शुभ योग होथे। बिना कोई मुहूर्त देखे कुछ भी शुभ काम करे जा सकथे। जैसे बिहाव, गृह -प्रवेश, कपड़ा -लत्ता लेना, जेवर, गहना- गूठा, घर, वाहन, जमीन आदि खरीदना, किसानी के काम शुरू करना आदि कईठन काम ला करे जाथे । जेकर फल शुभ अउ अक्षय होथे। येकरे  सेती किसान मन दोना मा धान भर के गाँव के ठाकुर देव, शीतला, महामाई अउ सांहड़ा देव मा चढ़ाथे। खेती करे बर शुरू करथे। कतको मन खेत मा खातू पालथे। कोनो मन अकरसहा जोतई करथे। कोनो मन खेत मा हूम -धूप जला के नरियर फोर के दू- चार कुदारी खन कोड़ के नेंग करथे।

कतको मन करसा -करसी के गुलाल- सिंदूर लगा के पूजा -पाठ करथे अउ  इही दिन ले करसी- करसा के ठंडा पानी पिये बर शुरू करथे। कतको मन पीपर, बर, लीम अउ बेल के पेड़ के घलो पूजा करथें,पानी डारथे। काबर कि ये पेड़ मन हा हमन ला जीये बर ऑक्सीजन देवत रहिथे। जिनगी के देवइया समझ के वोकर पूजा करके अक्षय पुन के भागी बनथे ।

अक्ति के दिन के पौराणिक महत्व अब्बड़ हे। जइसे

1. आजेच के दिन महर्षि परशुराम जी के जन्म होय रिहिस।

2. बद्रीनाथ भगवान के मंदिर के कपाट आजेच के दिन खोले जाथे।

3.  कुबेर जी ला आजेच के दिन देव खजाना के अधिपति बनाय गे रिहिस ।

4. कृष्ण अउ सुदामा के महा -मिलन घलो आजेच के दिन होय रिहिस।

5. महारानी दुरपती के चीरहरण घलो आजेच के दिन होय रिहिस।6. मांँ गंगा के घलो आज के दिन अवतरण होय रिहिस। 

7. सतयुग -त्रेता युग के शुरुआत आजेच के दिन होय रिहिस।

8. भगवान विष्णु के नर-नारायण, हयग्रीव अउ परशुराम जी के रूप मा अवतरण दिन घलो आय।

9. महाभारत के लड़ई आजेच के दिन खतम होय रिहिस ।


अउ कतको महत्व अउ विशेषता हवय। फेर मोला सुरता नइ आवत हे। वइसे ये दिन सर्व - सौभाग्य तिथी आय। 

आज के दिन कतको झन अपन पितर मन के तर्पण घलो करथे।करिया तिली अउ खड़ी चाऊँर (अक्षत) मा विष्णु भगवान अउ ब्रह्मा जी ला तत्व रूप मा आय बर मानसिक आवाहन करथे। तिली अउ चाऊंँर ला पानी मा मिला के दूनों हाथ उठाके पानी ला धीरे-धीरे गिराके सद्गति, शांति अउ मोक्ष बर प्रार्थना करथे। 

आज के दिन ला महा पुण्य समझ के विधि-विधान ले दिनचर्या बना के दैनिक क्रिया करे के बाद अपन शरीर में सप्तधान्य ( तिली, गहूं, चाऊँर, उरिद, मूंग, जवाँअउ चना)के उबटन लगाके नहाथे अउ  जप- तप -प्राणायाम करथे। त ओकर स्नान हा गंगा स्नान सहित सब्बो तीरथ करे के फल देते। ये दिन सत्पात्र ला करसी, पंखा, जूता-चप्पल, छतरी, कपड़ा- लत्ता, अन्न (भोजन) अउ गाय के दान करना चाही।

    भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण,

 अउ स्कंद पुराण में अक्ति तिथि के बनेच वर्णन मिलथे।


अक्ति तिहार के तात्विक संदेश इही है कि आज के दिन सबो करम के फल हा अक्षय (न मिटने वाला) हो जाथे त सब ला अच्छा करम करना चाही। अक्षय सुख, अक्षय शांति, अक्षय स्वास्थ्य, अक्षय शिक्षा, अक्षय समृद्धि, अक्षय सम्मान, अक्षय सद्बुद्धि, अक्षय शक्ति, अक्षय सुंदरता, अक्षय संपत्ति, अक्षय सुयश, अक्षय स्नेह, अक्षय सद्कर्म, अक्षय मंगल कामना करंय। ताकि अक्षय सुख, अक्षय आनंद अउ अक्षय सद्गति के प्राप्ति होवय।


रचनाकार-अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

Tuesday 11 May 2021

गुरु घासीदास जी अउ छत्तीसगढ़

 

गुरु घासीदास जी अउ छत्तीसगढ़


 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सन्त गुरु घासीदास अउ छत्तीसगढ़


                       "मनखे मनखे एक कहिके"  मानुष मन ल एक धागा म पिरोइया, संत गुरु घासीदास के पावन पग चिन्ह पाके हमर छत्तीसगढ़ धन्य हे। जब समाज म ऊँच नीच अउ छुवाछुत चरम सीमा म रहिस, ते समय हमर राज के  बलोदाबाजार जिला के गिरौदपुरी नाम के गाँव म महगू दास अउ माता अमरौतिन के कोरा म दीन दुखिया मनके सहारा बनके, 18 दिसम्बर सन 1756 म, सन्त घासीदास जी प्रगट होइस। गुरु घासीदास जी मानुष समाज म फइले बुराई ल देख के बहुत दुखी होइस। बलौदा बाजार जिला के छाता पहाड़ म औरा धौरा पेड़ तरी अखण्ड साधना म लीन होके, सदज्ञान पाके, अपन जिनगी ल संत घासीदास जी ह दीन हीन मनके नाम करदिस। चोरी, मद्यपान, अंधविश्वास, व्यभिचारी, झूठ अउ जीव हत्या जइसन समाज म व्याप्त सबे बुराई ल घासीदास जी दुरिहाय के प्रण लिस अउ समाज सेवा म सतत लग गे। घासीदास जी के सतुपदेश के मनखे मन म अतका प्रभाव पड़िस कि, एक नवा पंथ सतनाम पंथ, वो बेरा ले चले ल लगिस। अउ आजो घलो छत्तीसगढ़ के कोना कोना म सतनाम पंथ चलत हे। 

                          संत घासीदास जी के उपदेश हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म रहय, जेखर कारण जनमानस के अन्तस् म जस के तस समा जावव। गुरु घासीदास जी हमर छत्तीसगढ़ के आन बान शान आय। हमर छत्तीसगढ़ म भारी संख्या म सतनाम समाज उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो दिशा म विद्यमान हे। करमा सुवा ददरिया कस पंथी(गुरुमहिमा ज्ञान) घलो हमर लोक नृत्य आय। पंथी नृत्य म कई कलाकार मन सन्त घासीदास जी के महिमा गान न सिर्फ भारत बल्कि विदेश म घलो कर चुके हे। जेमा स्व मोहनदास बंजारे जी के नाम पहली पंक्ति म आथे। 

                       वइसे तो हर शहर गाँव गली म सन्त घासीदास जी के पावन स्तम्भ जैत खाम रिहिथे, फेर गिरौदपुरी म बने बड़ ऊँच जैत खाम न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि हमर भारत देश के धरोहर आय। छत्तीसगढ़ अउ गुरु घासीदास जी के बात जब होथे, त हमर बिलासपुर जिला म बने क्रेंदीय विश्वविद्यालय नजर आघू झूल जथे।  छत्तीसगढ़ सरकार संत घासीदास जी के नाम म हर बछर पुरुस्कार घलो देथे। गुरु घासीदास जी छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो घर, गाँव गली खोर के नाम तको बाबा जी के सतविचार ल अन्तस् म जगा देथे। 

                        हमर राज के गिरौदपुरी, छाता पहाड़, भंडारपुरी, तेलासी पुरी, खपरीपुरी आदि सतनाम पंथ के पावन तीर्थ  आजो मनखे मन ल आकर्षित करथें। संत घासीदास जी सतनाम पंथ के प्रथम गुरु होइस। आजो बाबा जी के वंशज अउ  गुरु परम्परा शुशोभित हे। बालक दास जी महराज, अगम दास जी महराज अउ मिनीमाता जइसे कई महान विभूति बाबा जी के ही वंशज आय, जिंखर ऊपर हम सब छत्तीगढ़िया मन ल गर्व हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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 अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास*


           छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी म संदेश देने वाला एक मात्र महान संत बाबा गुरु घासीदास रहिन। आपके जन्मभूमि अउ कर्मभूमि दूनो छत्तीसगढ़ रहिस। महान संत मन कोनो विशेष जाति या धर्म के नइ होवय अउ न ही ओकर उपदेश कोनो विशेष वर्ग के लिये होवय। उन तो विश्व कल्याण खातिर अवतरित होथे। उँकर बानी वचन घलो विश्व कल्याण बर होथे। येकर सेती बाबा ल हम केवल सतनामी समाज के दायरा म बाँध के नइ रख सकन। 

          सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास जी अइसन समय म अवतरित होइन जब देश मा सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गे रहिस। छुआछूत अउ वर्ण भेद समाज म कोढ़ बन के फैल गे रहिस। झूठ, कपट, फरेब समाज ला घुन बनके चगलत रहिस। समाज म गरीब अमीर, जाति म ऊँच-नीच के रेखा खीँचागे रहिस। अइसन बेरा म बाबा घासीदास जी कहिन- 

     *मनखे मनखे एक समान*

अर्थात मनखे अउ मनखे के बीच म कोई भेद नइ होना चाही। एक हाड़ माँस अउ एक रक्त ले बने मनखे अलग-अलग कइसे होही? उँकर ये संदेश ले शोषित वर्ग ल बल मिलिस। समाज मा अधिकार के साथ जीये के उम्मीद जागिस,अपन हक, बर लड़े खातिर उन जागृत होइस। शोषित वर्ग जेन सदियों ले सामाजिक रूप ले तिरस्कृत रहिन उँकर अंतस मा ऊर्जा के संचार होइस। छत्तीसगढ़ के इतिहास म उन पहिली संत रहिन जेन मनखे मनखे मा विभेद के खुल के विरोध करिन अउ शोषित वर्ग बर रास्ता खोलिन। निर्धन,असहाय अउ समाज ले तिरस्कृत मनखे बर बाबा घासीदास जी सहारा बनिन। लाखों लोगन उँकर अनुयायी बनगे। 

          उन छत्तीसगढ़ मा अवतरित एकमात्र संत आय जेन सामाजिक अउ आध्यात्मिक जागरण के आधारशिला रखिन । कठोर तपस्या ले प्राप्त ऊर्जा के उपयोग मानव कल्याण खातिर करिन। उँकर दूरदर्शिता देखव कि - जब तक समाज नशामुक्त नइ होही तब तक समाज ले बुराई मिटाना सम्भव नइ हे येकर सेती बाबा गुरु घासीदास जी कहिन- 

         *नशापान झन करव*

काबर नशा ही नाश के जड़ होथे। नशापान करने वाला मनखे के बर्बादी निश्चित हे। ये संदेश आज ले लगभग 250 बछर पहिली बाबा मन दे रहिन जे आज भी प्रासंगिक हवय। निश्चित रूप से बाबाजी युगदृष्टा रहिन तभे तो उन जतका भी बात कहिन आज पर्यन्त अक्षरशः लागू होवत हे। 

        कबीरपंथ के भांति सतनाम पंथ मा घलो मूर्ति पूजा के कोनो जघा नइ हे। मतलब कि बाबा घासीदास जी के बेरा मा घलो बाह्य आडंबरवाद अउ मूर्तिपूजा अपन चरम मा रहिस। तभे बाबाजी ल खुल के कहे बर परिस कि -

          *मूर्ति पूजा झन करव*

मंदिरवा मा का करे जइबो...

अपन घट के ही देवता मनइबो...

ये भजन सतनाम पंथ के जन-जन मा समाय हवय अउ बाह्य आडम्बर ले दूर रहिके केवल अउ केवल बाबा के बानी बचन मा रेंगत हवय। 


*बाबा गुरु घासीदास जी के संदेश मा वैज्ञानिकता-*


महान संत मन के चिंता केवल मानव जाति बर नइ होवय उन सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण बर सोंचथे। उँकर लिए मनुष्य के साथ साथ पशु पक्षी सबो जीव जंतु बर एक समान होथे। तभे तो बाबा अपन संदेश मा कहिथे- 

      *हिंसा मत करव। मांसाहार बंद करव*

उँकर ये संदेश मा वैज्ञानिकता हवय। सृष्टि मा समस्त जीव जन्तु के होना अनिवार्य हवय तभे संतुलन रइही। यदि मनखे मन अन्य जीव जन्तु ला मार के खाये लगही त सृष्टि के संतुलन बिगड़ जाही जेन सम्पूर्ण सृष्टि बर खतरा हवय। विधाता समस्त प्राणी ल धरती मा यथोचित संख्या म भेजे हवय। तभे वैज्ञानिक मन कई जीव जंतु के विलुप्ति ला धरती के लिए खतरा मानत हवय। ये बात ल बाबा सदियों पहिली ही भाँप ले रहिन। बाबा के सच्चा अनुयायी मन मांसाहार ले कोसो दूर रहिथे अउ जेन मांसाहारी हवय वो बाबा के अनुयायी नइ हो सकय। 


*सतनामी कोन...?*

बाबा घासीदास जी के सत्य के प्रति अटूट आस्था रहिस। सत्य अउ अहिंसा उँकर संदेश मा प्रमुखता से मिलथे। *वो हर मनखे जे सत के रद्दा मा रेंगत हवय सतनामी आय। सतनामी के अर्थ केवल एक विशेष जाति या वर्ग ले नइ हो के येकर अर्थ व्यापक हवय । अपन आचार विचार मा सात्विकता, सत्य अउ अहिंसा के पालन करने वाला हर मनखे सतनामी आय।*  जे मनखे सत्य अउ अहिंसा के पालन नइ करय वोला हम कइसे सतनामी कहिबों ...?


*बाबा गुरु घासीदास जी अउ पंथी*

बाबाजी के संदेश ल न केवल उँकर अनुयायी बल्कि हर वर्ग के लोगन महत्व देथे। छत्तीसगढ़ के लोक पारंपरिक *पंथी नृत्य* के माध्यम ले बाबा के संदेश अब पूरा हिंदुस्तान मा बगर गे हे । अब तो सात समुन्दर पर भी बाबाजी के संदेश पंथी के माध्यम ले जावत हवय। पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ के पहिचान आय। 


*पशु के प्रति बाबा के प्रेम*


सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ तब भी कृषि प्रधान रहिस अउ आज भी हवय। निश्चित रूप से वो समय खेती कार्य मा पशु के स्तेमाल होवत रहिस। जमीन के जुताई से ले के ढुलाई, मिजाई तक पशु ऊपर ही मानव निर्भर रहिन। नांगर जोते मा बैल या भैंसा के प्रयोग होवत रहिस। मवेशी मन ला घलो बेरा बेरा म आराम के जरूरत होथे खासकर दोपहर के बेरा मा। बाबा कहिन- 

       *दोपहर बाद नांगर झन चलाव*

उँकर त तात्पर्य ये रहिस कि दोपहर मा पशु मन ला भी आराम के जरूरत होथे दोपहर के बाद नागर चलाये ले मनखे भी तकलीफ पाथे अउ पशु भी तकलीफ पाथे। 

           बाबा गुरु घासीदास स्वस्थ समाज के पक्षधर रहिन जिहाँ न जाति के भेद हो ना गरीब अमीर के। स्वस्थ समाज के लिए जरुरी हवय कि मनखे के मानसिकता भी स्वस्थ होवय। अपन उपदेश मा *बाबाजी मनखे ला चोरी, जुआ अउ व्यभविचार ले दूर रहे बात कहिन*। ये तीनो व्यसन मनखे ल बर्बाद तो करथे ही साथ ही स्वस्थ समाज मा भी वैमनस्य फैलथे। बाबा गुरु घासीदास हा समाज के लोगों ल सात्विक जीवन के साथ सत्य अउ अहिंसा ला जीवन म उतारे के शिक्षा दिन। उन मनखे ला प्रेम अउ मानवता के संदेश दिन। 


जय सतनाम🙏

*अजय अमृतांशु*

भाटापारा ( छतीसगढ़)

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 *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास*


देश समाज मा जब चारों तरफ जाति- पाति ऊँच नीच भेदभाव अपन चरम सीमा मा रहिस जब मनखे ला मनखे नइ समझे जात रहिस वो समय छत्तीसगढ़ के पावन धरा रायपुर जिला( तत्कालीन) के एक छोटे से गाँव गिरौदपुर में सन 1756 में संत गुरु घासीदास जी मानव समाज के उद्धारक में रूप में अवतरित होइस।

माता के नाम अमरौतिन अउ पिता के नाम महंगू दास रहिस। जे सत्य के अनुगामी अउ सात्विक जीवन व्यतीत करत रहिस। सतनाम पिता मा अटूट लगन विश्वास रहिस। गुरु घासीदास जी बालकपन से ही सत के मारग मा चलते हुए सत्य अहिंसा परोपकार के राह, ज्ञान के दिशा देवत लोक कल्याणकारी काम करिस। जेमा साथी बुधारू ला साँप काटिस त जीवनदान दिस। औंरा धौंरा पेड़ के छाँव तरी प्रथम सतनाम के ज्ञान प्राप्त करिस। वइसे तो गुरु घासीदास जी सांसारिक मोह माया से दूर रह सत के संदेश दिए बर समाज मा व्याप्त कुरीति ला मिटाये बर अवतरित हो रहिस फेर गुरु वंशज ला आगे बढ़ाए खातिर सतपुरुष पिता के भविष्यवाणी अनुरूप माता सफुरा (सिरपुर मायके) संग शादी करके चार पुत्र गुरु बालकदास, गुरु अमरदास, गुरु आगरदास,गुरु अड़गढ़िहा दास अउ एक पुत्री माता सहोदरा के साथ पारिवारिक दुनिया मा बँध गइस। फेर मन मा तो समाज मा व्याप्त कुरीति ला मिटाये के अकुलाहट अउ सतज्ञान ला पाये बर छटपटाहट रहिस। तभे सांसारिक मोह माया ला विरक्त हो छाता पहाड़ी म सत्यज्ञान ला पाये खातिर तप धुनी रमा बैठिस। उहाँ से सतनाम शबद आत्मज्ञान पाये के बाद माता सफुरा जीवन दान, गौ जीवन दान के महिमा दिखाइस।

गुरु घासीदास बाबा जी अपन सात संदेश- *कज्जल छंद*


घपटे राहय जात पात ।

झूठ पाप के घोर रात ।

गुरु घासी के सात बात ।

तब मनखे ला दिस निजात ।।1


सतगुरु मा रखव आस ।

सार सार हे बात ख़ास ।

करे बुराई काल नास ।

काटे यम के नार फाँस ।।2


नशा - पान से रहव दूर ।

तन मन घर सब जाय चूर ।

मिटगे कतको बीर शूर ।

मउत बुलावय आँख घूर ।।3


मानवता के रखव नींव ।

एक बरोबर सबो जीव ।

दया धरम के अमृत पीव ।

मांस छोड़ तुम खाव घीव ।।4


जुआ जरे चोरी बिगाड़ ।

देथे घर के खुशी फाड़ ।

देखव हो के तुमन ठाड़ ।

बिकगे कुरिया खेत झाड़ ।।5


घासी गुरु के धर लौ ज्ञान ।

पर नारी माता समान ।

इँहला बेटी बहिन जान ।

ममता के तो इन खदान ।।6


उतरें सब झन एक घाट ।

देइस सबला कोंन बाँट ।

ऊँच नीच के भेद पाट ।

चलव लगाबो प्रेम हाट  ।।7


*✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


के माध्यम ले जन जन मा जन चेतना के नव बीज बोइस। 

अपन बयालिस अमृत वाणी के माध्यम ले जिनगी के सार्थकता ला भी बताइस। उँखर 42 अमृत वाणी मैं अपन मनहरण घनाक्षरी के माध्यम ले पटल मा रखत हौं-


सतनाम  घट   घट, बसे  हवै  मन  पट

भरौ  ज्ञान  पनघट, कहे  घासीदास  हे

सबो संत मोरे आव,महिनत रोटी खाव

जिनगी  सुफल पाव, करम  विश्वास हे

ओतकेच तोर  पीरा,जतकेच मोर पीरा

लोभ मोह  क्रोध कीरा,करे तन नाश हे

सेवा कर दीन दुखी,दाई ददा रख सुखी

धर  ज्ञान  गुरुमुखी ,घट   देव  वास  हे।।


ऊँचा  पीढ़ा  बैरी बर,मया  बंधना ला धर

अन्याय  विरोध  बर,रहौ  सीना  तान  के

निंदा  अउ  चारि हरे,घर  के  उजार  करे

रहौ  दया   मया  धरे,कहना  सुजान  के

झगरा ना जड़ होय,ओखी के तो खोखी होय

सच ला ना  आँच  आय, मान  ले तैं  जान के

धन  ला  उड़ाव  झन,खरचा बढ़ाव  झन

काँटा  ला  गढ़ाव झन,पाँव  अनजान के।।


पानी पीयव छान के,बनावौ गुरु जान के

पहुना  संत  मान  के,आसन  लगाव  जी

मोला देख तोला देख,बेरा ग कुबेरा  देख

कर सबो  के सरेख, मिल  बाँट खाव जी

सगा के हे सगा बैरी,सगा होथे चना खैरी

अटके  हे देख  नरी,सगा  का बताँव  जी

मोर  हर   संत  बर, तोर   हीरा  मोर  बर

हे  कीरा के  बरोबर,मैं  तो समझाँव  जी।।


दाई हा तो दाई आय,मया कोरा बरसाय

दूध  झन  निकराय,मुरही  जी  गाय  के

गाय  भैंस नाँगर  मा,इखर गा जाँगर मा

ना रख  हल  गर  मा ,नोहय  फँदाय के

नारी  के सम्मान बर,विधवा  बिहाव बर

रीत  नवा  चालू  कर, चूरी  पहिराय  के

पितर  मनई   लगे,मरे   दाई   ददा  ठगे

जीयत  मा  दूर   भगे,मोह   बइहाय  के।।


सोवै   तेन  सब  खोवै ,जागै  तेन  सब पावै

सब्र  फल  मीठा  होवै,चख  चख  खाव जी

रोस  भरम  त्याग   के,सोये  नींद  जाग  के

ये  धरती  के  भाग  ला,खूब  सिरजाव  जी

कारन ला जाने बिना,झन न्याय ला जी सुना

ज्ञान   रसदा  ना  कभू , उरभट   पाव   जी

मन  ला हे  हार जीत,बाँटौ  जग मया  प्रीत

फिर  सब  मिल  गीत,सुमता  के  गाव  जी।।


दान  देवइया  पापी,दान  लेवइया  पापी

भक्ति भर  मन झाँपी,मूर्ति  पूजा छोड़ दे

जइसे खाबे  अन्न ला,वइसे पाबे  मन ला

सजा झन  ये तन ला,मोह  घड़ा फोड़ दे

ये  मस्जिद   मन्दिर , चर्च अउ  संतद्वार

बना  झन  गा बेकार, मन  सेवा  मोड़ दे

गरीब  बर  निवाला ,तरिया   धरमशाला

बना कुआँ  पाठशाला ,हित  ईंट जोड़ दे।।


आँख होय जब चूक,अँगरा कस जस लूख

फोकट  के  सुख  करे,जिनगी  ला  राख हे

पर  के भरोसा  झन,खा तीन  परोसा  झन

मास  मद  बसौ  झन,नाश  के  सलाख  हे

एक  धूवा   मारे  तेनो , बराबर खुद  गिनो

जान  के मरई  जानौ,पाप  के  तो शाख़ हे

गुरु घासीदास  कहे ,कहौ  झन  मोला बड़े

सत  सूर्य   चाँद  खड़े, उजियारी  पाख  हे।।

   *✍🏻 रचना- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


जे मानव समाज गुरु घासीदास जी के बताये मार्ग के अनुसरण करथे वो सुखी जिनगी बितावत मोक्ष के प्राप्ति करथे।

वइसे तो गुरु जी के उपदेश मा मानव कल्याण के कोई पहलू नइ छूटे हे। गुरु जी 52 उपदेश ला मैं अपन छोट कलम के माध्य ले चौपाई छंद के माध्यम ले पटल मा रखत हौं, एक एक वर्ण मा गुरु जी के उपदेश समाहित हे-


(गुरु घासीदास जी के 52 उपदेश)

*अ*

अमर नही संतो ये चोला, काल उठा ले जाही तोला|

हिरदे मा सतनाम बसा ले, गुरु के महिमा मनुवा गा ले||1


*आ*

आवव आवव सतगुरु चरना, नाम-पान हे गुरु के धरना|

भवसागर ले तब तर जाहू, सबद सबद जब ज्ञान लखाहू||2


*इ* 

इरखा लिग़री-चारी त्यागौ, मीठ बोल मा अंतस पागौ|

दूर बुराई पर के रहना, सत मारग धर निस दिन चलना||3


*ई*

सत ईमान धरम हे गहना, संत गुनी गुरु जन के कहना|

सत ला जानौ सत ला मानौ, सत रक्षा बर मन मा ठानौ||4


*उ*

उल्लू चाहत घपटे रतिया, हम ला भावत सतगुरु बतिया|

सत्य प्रकाश करे उजियारा, झूठ करे जग मन अँधियारा||5


*ऊ*

ऊँचा जग मा इंखर दर्जा, चुका कभू नइ पावन कर्जा|

दाई ददा जनम देवइया, गुरु हे जिनगी के सिरजइया||6


*ए*

एक नाम हे सार जगत मा, रमे बसे सतनाम भगत मा|

घट घट कण कण जीव चराचर, चाँद सुरुज अउ पर्वत सागर||7


*ऐ*

ऐंठ गोठ झन ऐंठत रहिबे, दया मया झन मेंटत रहिबे|

धन दौलत के छोड़ गुमाना, जुच्छा आना जुच्छा जाना||8


*ओ*

ओढ़ चलौ गुरु नाम चदरिया, छाय नही तब दुःख बदरिया|

नार फाँस ला काटे यम के, खुशहाली से जिनगी दमके||9


*औ*

और नही मन रंग रँगावव, अजर नाम सतनाम लखावव|

दया दान जन पर हित सेवा, कर्म नेक रख पावव मेवा||10


*अं*

अंत अनंत अनादि हवे सच, लोभ मोह ले रइहौ बच बच|

क्रोध अगन ले तन मन जलथे, धीर धरे सुख जिनगी चलथे||11


*अः*

छः आगर छः कोरी सुमिरन, करके तन मन गुरु ला अर्पन|

बन सत हंसा गुरु गुन गावय, जनम दुबारा जग मा पावय||12


*ऋ*

ऋषि मुनि गुरु जन के बानी, सत्य प्रेम ले सत पहचानी|

कर्मयोग जिनगी के शाखा, जग कल्याण करे नित भाखा||13


*क*

कपट द्वेष झन रार करौ जी, सत्य काम मा ध्यान धरौ जी|

नजर गड़े झन पर धन नारी, अपन करम फल कर निस्तारी||14


*ख*

खान-पान सादा रख भाई, काम असुर हे मांस खवाई|

स्वस्थ दिमाक बसे चतुराई, बात कहे सच गुरु गोसाई||15


*ग*

गला लगा ले दीन दुखी ला, हँसी खुशी दे बाँट सुखी ला|

मान असल जग मान खजाना, दुख बिपदा मा हाथ बँटाना||16


*घ*

घर घर मंगल चौका गावव, सत के मांदर झाँझ बजावव|

महानाम सतनाम जपौ सब, सत्य करम मा पाँव नपौ सब||17


*ङ*

गङ्गा जल कस गुरु के बानी, ध्यान लगा उर बनबे ज्ञानी|

बुरा भला के राह बतावय, भटकत हंसा पार लगावय||18


*च*

चाल चलन रख नेक करम ला, थाम सदा सतनाम धरम ला|

जनम धरे हस कुल सतनामी, सत्य अहिंसा बन अनुगामी||19


*छ*

छोड़ बुराई जी सुख जिनगी, नशा पान हे दुख के तिलगी|

हँसी खुशी घर तन जर जाये, पद इज्जत धन मान गँवाये||20


*ज*

जल जंगल के रक्षा कर लौ, मातृभूमि बर जी लौ मर लौ|

जिनगी के आधार हवय ये, सतगुरु उद्गार हवय ये||21


*झ*

झगरा झंझट ला तुम टारौ, द्वेष अहम ला आगी बारौ|

आपस मा हम भाई भाई, सुमता के मिल बीज उगाईं||22


*ञ*

पञ्च तत्व ले बने शरीरा, अग्नि भूमि जल गगन समीरा|

नाम तभे भगवान पड़े हे, सत्यनाम संसार खड़े हे||23


*ट*

टल जाथे दुख बिपदा आये, महामंत्र सतनाम लखाये|

मनुज मनोरथ सुफल सुहाये, पद निर्वान सुगम पथ पाये||24


*ठ*

ठगनी हे ये काया माया, मोह धरे जग जन इतराया|

अंत घड़ी मिट्टी मिल जाना, फिर मनुवा काहे पछताना||25


*ड*

डर डर के नइ जिनगी जीना, सुख दुख के हे बिछे बिछौना|

दुख दिन बाद मिले सुख रैना, कतका सुग्घर गुरु के बैना||26


*ढ*

ढोंग रूढ़िवादी ला छोड़व, ज्ञान राह मा मन ला मोड़व|

सही गलत के कर करौ सरेखा, कर्म बनाये सब के लेखा||27


*ण*

प्राण भले जावय सच खातिर, पर जीते ना कपटी शातिर|

ध्यान धरौ सतगुरु के कहना, सत्य सदा हो सबके गहना||28


*त*

तरी तरी तन घुन्ना खाये, जे सतनाम सबद दुरिहाये|29

धरे नही जे गुरु के बैना, पाय नही वो सुख दिन रैना||


*थ*

थाह मिले ना ज्ञान समुंदर, खोज मनुज मन खुद के अंदर|

सबद सबद धर गुरु के बानी, बनबे मनुवा परम सुजानी||30


*द*

दान ज्ञान के मोल अनोखा, बिना ज्ञान के जिनगी खोखा|

सच ला थाम मढ़ा ले जोखा, नइ खाबे तब मनुवा धोखा||31


*ध*

धरम करम दू नाँव बने हे, सतगुरु किरपा छाँव बने हे|

धरम बिना हे करम अधूरा, करम लेख ला कर लौ पूरा||32


*न*

नमन करौ गुरु संत चरन मा, ध्यान लगा सतनाम भजन मा|

नाम सबद जग मुक्ति बँधे हे, हर प्राणी के साँस छँदे हे||33


*प*

पाटव जाति- पाति के खाई, एक रंग तन लहू समाई|

मनखे मनखे एक समाना, सीखव सब ला गले लगाना||34


*फ*

फाँस फँसौ ना जाति धरम के, पाठ पढ़व सब नेक करम के|

कर्म बड़े हे मानव जग मा, बाँध सुमत चल हर पग पग मा||35


*ब*

बैर खैर के दाग न छूटे, प्रेम भाव के घड़ा न फूटे|

बात ध्यान ये रख के चलना, झूल सबो लौ सुमता पलना||36


*भ*

भरम-भूत के तोड़व जाला, सत्य प्रेम के पी लौ प्याला|

बाँध मया परिवार रखौ जी, सुख जिनगी आधार रखौ जी||37


*म*

मन के जीते जीत हवे जग, मन के हारे हार हवे पग|

धीर धरे सुख जिनगी मिलथे, रात गये ही भोर निकलथे||38


*य*

यज्ञ बरोबर मारग सच के, चलिहौ संतो तुम बच बच के|

कठिन परीक्षा पग पग मिलथे, फूल सफलता के तब खिलथे||39


*र*

रंग रचे बस सादा तन मा, नाम सुमर गुरु के जीवन मा|

अइसे कर लौ खुद के करनी, तर जाहू संतो बैतरनी||40


*ल*

लगन लगा कर माटी सेवा, मिलही धाम परम सुख मेवा|

येखर गोदी सरग समाना, संत गुनी गुन करे बखाना||41


*व*

वाणी गुरु के अमरित जइसे, सत्य ज्ञान हे पबरित जइसे|

जग जन हित संदेश दिये हे, मानवता परिवेश दिये हे||42


*श*

शंख बजे सतनाम सबद जब, मिट जाये दुख संत दरद सब|

मन कर चंगा भरे उमंगा, जब जब बाजे झाँझ मृदंगा||43


*ष*

षड़यंत्र करे जे सगा बिरादर, नइ पावय वो जग मा आदर|

छल कपटी ले बच के रइहू, नइ तो पग पग दुख ला सइहू||44


*स*

समय बड़ा बलवान हवे जी, सुख दुख के पहिचान हवे जी|

कदर करे जे मान कमाये, समय गवायें वो पछताये||45


*ह*

हँसी खुशी धर जिनगी जीना, चमके श्रम के माथ पसीना|

हीन भाव तज आगू बढ़ना, नव विकास के सिढ़ही गढ़ना||46


*क्ष*

क्षमा प्रेम ज्ञानी के गहना, दूर द्वेष कुंठा ले रहना|

समरसता के पाठ पढ़ावय, भला करे जग पाँव बढ़ावय||47


*त्र*

त्रास मिटे सतनाम जपन मा, फूल खिले सुख हिया चमन मा|

गा लौ संतो सतगुरु महिमा, जेन बढ़ावय जग जन गरिमा||48


*ज्ञ*

ज्ञान कभू नइ बिरथा जावय, मान सदा वो जग मा पावय|

धीर विवेक रखे ये मनखे, सच ला जाने सच ला परखे||49


*ढ़*

ढूँढ़ फिरे मन अंदर बाहिर, सत के महिमा जग हे जाहिर|

सत मा धरती खड़े अकासा, बात कहे गुरु घासीदासा||50


*ड़*

हाड़ मांस के देह बने हे, छुआछूत धर लोग सने हे|

खून अलग नइ बहे शरीरा, एक सबो के सुख अउ पीरा||51


*श्र*

श्रवण करौ सतगुरु के बानी, सँवर जही मानुष जिनगानी|

धर चलिहौ बावन उपदेशा, मिट जाही संतो सब क्लेशा||52


सतनामी कोई जाति विषय नोहय सत के मानने वाला गुरु जी के बताये राह मा चलने वाला हर कोई सतनामी ये। वइसने ही अभिवादन में सतनाम बोले से कोई व्यक्तिगत इष्ट के सम्बोधन नइ होवय। सत के अभिवादन ही सतनाम ये। गुरु घासीदास जी ढ़ोंग आडम्बर रूढ़िवाद के पक्षधर नइ रहिस। ये सब कुरीति ला गुरु जी घुन्ना के समान समझत रहिस जे मानव समाज ला धीरे धीरे नष्ट कर देथे।

आज भी गुरु घासीदासा जी के अनुयायी सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नही वरन देश के कोना कोना मा निवास करथे। गुरु घासीदास जी ला गुरु के दर्जा प्राप्त हे अउ गुरु के दर्जा तो सब ले श्रेष्ठ हे। आज भी उँखर वंशज गुरु रूप मा विराजमान हे।

अइसे श्री गुरु के चरण में कोटि कोटि नमन हे।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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संत गुरु घासीदास जी अ उ छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के माटी संत महात्मा ऋषि मुनि तपस्वी मन के धरती आय ईही माटी म आज से करीब ढाई सौ बच्छर पहले जोंक नदी के तीर बसे एक छोटे से गांव गिरौदपुरी म सन सत्रह सौ छप्पन

माता अमरौतिन के कोख़ से पैदा होए है पिता के नाम महगू दास दादा मेदनी दास रहीस वो समय गिरौदपुरी घोर जंगल के बीच बसे रहीस  आज भी बारनवापारा अभ्यारण्य म आ थे इतिहास म पढे से पता चल थे की बाबा गुरु घासीदास के पूर्वज उत्तर भारत से आए रहिन प्राचीन भारत के इतिहास ल खोल के देख थन त पता चल की सन सोलह सौ बहत्तर म औरंगजेब के साथ सतनामी यो का विद्रोह हुआ था औरंगजेब इस्लाम धर्म स्वीकार करने दबाव डाला जिसका सतनामी यो ने विरोध किया बहुत सारे सतनामी मारे गए अतः विद्रोह के बाद जो बचे सतनामी अन्य प्रांतों में शरण लेने लगे लिहाजा आज सतनामी उ,प्र, हरियाणा गुजरात राजस्थान पंजाब गुजरात एवं छत्तीसगढ़ में बस गए अन्य प्रांतों म रहिया सतनामी साध सतनामी कहलाथे सतनामी साध सतनामी दोनों मन के खान पान वेशभूषा पूजा पाठ म समानता हावय

गुरु घासीदास जी के ऊपर माता अमरौतिन के संस्कार के प्रभाव खूब पड़िस गुरू बाबा के मन गृहस्थी म नहीं लगे गृहस्थ जीवन ल त्याग करके बाबाजी छाता पहाड़ म विशाल शीला म बैठ के तपस्या करिन अवू सतनाम के ज्ञान प्राप्त होए हे  बाबाजी के समय छुआ छूत ढोंग आडंबर बहुत रहीस जैला देख के बाबाजी के मन विचलीत होगे ओ कुरूती ल दूर करे के बीड़ा उठाया

बाबाजी सतनाम पंथ चलाया सत के रस्ता म चलने वाला जो सत म नामी हे सतनामी कहलाए  

बाबाजी के सात प्रमुख संदेश हे

,१. मन खे मन खे एक हे

मन खे मन खे एक हे मन खे हो त समान,

रकत रंग सब एक हे सब म एक ही जान

२ सदा सच बोलो

३. नशा पान मत करो

४. दोपहर म नागर मत जोतो

५. पराई नारी को माता समझो

६. मूर्ति पूजा मत करो

७. जीव हत्या मत करो

बाबाजी का ये सात संदेश प्रमुख हे

बाबाजी को मानने वाले सतनामी समाज के अलावा अन्य जाति के लोगन मन पूजा करथे

गुरु घासीदास जी धरम के प्रचार पूरा छत्तीसगढ़ अवी उड़ीसा म करीस 

बाबाजी कहिन

मंदिरावा का करे ल जाबो

आपन घट ही देव ल मनाबो

कहवा ल लावव हो आरूग फुलवा

गाय के दूध ल बछुरा जूठारे

नदिया के पानी ल मछरी जुठारे

गुरु घासीदास जी ने हमे सत्य अहिंसा प्रेम भाई चारा का पाठ पढ़ाया

ऐसे छत्तीसगढ़ के महान संत के चरणों को मै नमन करता हू

मोहन डहरिया

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*छत्तीसगढ़ अउ गुरु घासीदास*


धरम करम अउ मानवता के जिहाँ जुग जुग ले जोत जलथे वो पावन महतारी छत्तीसगढ़ के कोरा म *सतनाम धर्म* के अलख जगइया  ,सतनाम धर्य के प्रवर्तक संत गुरु घासीदास बाबा खेले हे।

     विद्वान मन बताथें के सन् 1672 म हरियाणा के नारनौर म वीरभान अउ जोगीदास नाम के दू भाई रहिन जेन मन सतनामी साध मत के सिद्धांत बनाइन अउ वोकर प्रचार-प्रसार करिन। सतनामी साध मत के अनुसार सत्य ह सर्वोत्तम अउ सर्वोपरि होथे। साधमत के मानने वाला मन स्वाभिमानी अउ जुझारू होथें।वोमन सबके सम्मान करथें फेर गुलामी म ककरो आगू सिर नइ झुकावयँ। ये विशेष गुण आज तको सतनामी म देखे जाथे।

   वो समे मुगल शासक औरंगजेब के शासन रहिस। वो सतनामी मन ल अपन गुलामी स्वीकार करे ल कहिस फेर सतनामी साध मत के अनुयायी मन स्वीकार नइ करिन अउ भारी लड़ाई छिड़गे। वीरभान अउ जोगीदास के अगुवाई म सतनामी मन मुगल सेना के छक्का छुड़ा दिन। बहुत दिन ले लड़ाई होइस।वीरभान अउ अधिकांश सतनामी मन वीरगति ल प्राप्त कर लिन। बाँचे मन नारनौल ल छोड़ के पंजाब, उड़ीसा, मध्यप्रदेश मा बगरगें।

    उही में के कुछ परिवार तत्कालीन मध्यप्रदेश अउ वर्तमान छत्तीसगढ़ के चंद्रपुर होवत सोनाखान के डोंगरी,पहाड़ ,जंगल म आके बसगें। जेमा गुरुघासीदास के दादा (बबा) मेदिनीदास गोंसाई के परिवार तको रहिस। सोनखान के दयालु जमींदार रामराय (वीर नारायण सिंग के पिताजी) ह वोमन ल बसन दिस।

*गुरु घासीदास जी के जन्म*----- सोनाखान जमींदारी वर्तमान म बलौदाबाजार जिला के पावन भुइयाँ  गिरौदपुरी धाम म पिता मंहगूदास अउ माता अमरौतिन  के कोरा म 18 दिसम्बर सन् 1756 म दिव्य बालक के जन्म (अवतार) होइस जेन आगू जागे सतपुरुष संत गुरु बाबा घासीदास के नाम ले जग विख्यात होइस।

     पूत के पाँव पालना म दिखे ल धर लेथे। बालक घासीदास बड़ चमत्कारी अउ अध्यात्मिक प्रवृत्ति के रहिसे।बिना कोनो स्कूली शिक्षा के तको वोकर मेधा तेज रहिसे।

  वो समे समाज म व्याप्त छुआछूत, जाति प्रथा, ऊँच-नीच (मनखे-मनखे म भेद), शोषण अउ अत्याचार ल देख के वो ह विचलित हो जवय। मन में विचार करके वो घर त्याग दिस अउ सोनाखान के घन जंगल म ध्यान लगा के घोर तपस्या करे लगिस। एक दिन  गिरौदपुरी के नजदीक छाता पहाड़ म औंरा-धौंरा बिरछा के तरी दिव्य सत्य ज्ञान के दर्शन अउ प्राप्ति होइस।

     जइसे के हर संत अउ अवतार के जन्म के सार्थकता   समाज म व्याप्त बुराई, असत्य अउ अधर्म के नाश करके सत्य धर्म के स्थापना करे बर ,मनखे के बीच जाके शिक्षा देये म,जागृति लाये म होथे। 

  इही सेती सत्य ज्ञान ल प्राप्त करके गुरु घासीदास ह जन मानस के बीच आके सन् 1820 म ए सृष्टि म , छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया म *सतनाम धर्म(सतनामी पंथ)* के स्थापना करके सत के अँजोर बगराइस। गुरु बाबा के सत के संदेश जेन सब ग्रंथ अउ धर्म के सार ये देखते देखत फइल गे ।जात-पात के बँधना ल छोड़के सत्य प्रेमी मन गुरु घासीदास के अनुयायी बनगें।

   वो समे सन्1901 के जनगणना अनुसार लगभग 4 लाख सतनामी छत्तीसगढ़ म रहिन अब तो लगभग 15-18% आबादी सतनामी होहीं। ये सत के प्रभाव तेजी ले बगरत हे।

     गुरुघासीदास के कहना रहिस के सत्य(सत) ल घर गृहस्थी म तको पाये जा सकथे ।शर्त अतके हे के सतनामी धर्म के सात मूल सिद्धांत अउ बिंयालिस अमृतवाणी के पालन करे जाय। बौद्ध धर्म के समान उन मूर्ति पूजा ल त्यागे के शिक्षा देवत संन्यास के अपेक्षा गृहस्थ जीवन ल तको श्रेष्ठ बतावत गृहस्थी म रहिन।

*मंदिरवा म का करे जइबो, हम घट ही के देव ल मनइबो*

      गुरु घासीदास के अर्धांगिनी के नाम माता सफुराबाई रहिस।जेकर ले  पाँच गुरुवंशी संतान --सहोद्रा माता,गुरु अमरदास, गुरु बालकदास,गुरु आगरदास ,गुरु अड़गड़िहा दास होइन।

     गुरु बाबा घासीदास ह ये धरती म सतनामी धर्म(सतनाम पंथ) के स्थापना करके, जन जन म सत के अलख जगाके सन् 1850 (कोनो-कोनो विद्वान मन सन्1830 म कहिथें) भंडारपुरी धाम म समाधि ले लिन।


*गुरु घासीदास बाबा के उपदेश, सतनाम पंथ के सार* ,----

कहे गे हे--

*सत्यं सम: नास्ति तप:।*

      अउ

सत्यहीना वृथा पूजा,  सत्यहीनो वृथा जप:।

सत्यहीनं तपो व्यर्थ,मूषरे वपनं यथा।

       छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया म जन्मे(अवतरे) महान संत, सत्यदृष्टा,युग प्रवर्तक गुरु बाबा घासी दास जेन *मनखे-मनखे एक समान* के अटल सत्य के जयघोष करिन के शिक्षा ल सतनामी के सात सिद्धांत अउ बियालिस अमृतवाणी ल, जेन हजारो हजार विश्व प्रसिद्ध *पंथी गीत अउ नृत्य* म समाये हे, ग्रहण करे जा सकथे। सतनाम पंथ के केंद्र गिरौदपुरी, भंडार पुरानी ,तेलासीधाम , खँड़ुवा धाम ( सिमगा, दामाखेड़ा के पास जिहाँ ले मिनीमाता संबंधित रहिन) आदि म जाके  सत के उर्जा ग्रहण करे जा सकथे।

   पंथी गीत के अमर गायक *(स्व०) देवदास बंजारे* जी के गाये  पंथी गीत ले ,सतनामी चौका आरती ले, सत के महिमा अउ  गुरु बाबा घासीदास के शिक्षा ल जाने जा सकथे। सादा झंडा अउ सादा जैतखाम ले सादगीपूर्ण जिनगी जिये के सार तत्व प्राप्त करे जा सकथे

*सतनामी धर्म(सतनाम पंथ) के सात वचन*---

1सतनाम म विश्वास करना।

*सत मा धरती टिके, सत मा टँगे अगास हो*

2जीव हत्या नइ करना(अहिंसा)---सबो हंसा एक समान होथे।सत्य ह ईश्वर ये अउ ईश्वर ह सत्य ये।

3 मांसाहार नइ करना।

4चोरी जुआ ले दूर रहना।

5 नशा सेवन नइ करना।

6 जात-पात अउ ऊँच-नीच ल नइ मानना--भेदभाव अउ शोषण के विरोध।

7 व्यभिचार नइ करना।

*सार संक्षेप*--

      धन्य हे परम पूज्य संत गुरुघासीदास बाबा। इही ह तो असली धर्म के सार ये। अभो संसार के कोनो भी तथाकथित धर्म मन  ये सत्य सार के ही बखान करे हें। इही असली मानव  धर्म ये।इही असली मानवता ये।  सत्यमेव जयते के उद्घोष ये।

   कलजुगिहा मनखे ह गुरु बाबा के बताये रास्ता म चलके, *सादा जीवन अउ उ्च्च विचार* ल अपनाके, पाखंड ल त्याग के जीते जी असीम सुख- शांति ल पा सकथे।अपन जिनगी म राम राज(सत के राज) ला सकथे।

 *होत है सकल पाप के क्षय, एक बार सब प्रेम से बोलो सत्यनाम के जय।*

*सत्यमेव जयते*।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 वासन्ती: *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास* 

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     संत सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासीदास के जनम  अठारह दिसम्बर सतरा सौ छप्पन(1756) मा बलौदाबाजार जिला के गिरौदपुरी नामक गाँव म होय रहिस। एही कारण हे कि उँकर अवतरण दिवस के दिन 18 दिसम्बर के-  छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्य म राजकीय अवकाश रहिथे। पूरा भारत म गुरु घासीदास के लाखों-करोड़ों अनुयायी हें।

    *संत परंपरा ला आघू बढ़ाय म अनेक महापुरूष मन के योगदान हे, जइसे संत गुरु नानक, संत गुरु घासीदास, सद्गुरु कबीर आदि।* संत मन हमर मानव समाज बर काबर महत्वपूर्ण हें?- काबर कि ओमन गिरे-कुचले, दलित-शोषित, अन्याय के शिकार, असहाय अउ समाज के कमजोर मन के संग खड़े होइन अउ उन मन मा आत्मविश्वास अउ अपन व्यक्तित्व के पहिचान बर अन्याय ले जुझे के शक्ति के संचार करिन। *गुरु घासीदास सन् 1820 ईस्वी म सतनाम पंथ के स्थापना करिन* अउ जीवन-पर्यन्त अपन लाखों अनुयायी मन ला मानव धर्म के पालन करे के संदेश दीन। संत गुरुघासीदास के संदेश मा निम्न सात उपदेश प्रमुख रूप से शामिल हे-

1) मादक पदार्थ ले परहेज करव।

2) माँस अउ माँस जइसन वस्तु ले परहेज करव।

3) सामाजिक एकता के आचार संहिता के पालन करव।

4) मूर्ति पूजा बंद करव।

5) दोपहर के बाद गाय-बैल से हल जोतना बंद करव।( अइसे कहे जाथे कि ओ-समय गाय-मन ले घलो हल जोते के परंपरा रहिस।)

6) परनारी के मातृतुल्य सम्मान करव।

7) एकमात्र सतपुरूष सतनाम के निराकार रूप के उपासना, भजन अउ ध्यान करव।

    सदगुरु कबीर घलो प्रकाश रूपी सतपुरूष के निराकार रूप के उपासना के संदेश दे रहिन। *ए तरा कहि सकत हन कि सदगुरु कबीर के परंपरा ला गुरु घासीदास आघू बढ़ोइन अउ सतनाम पंथ के स्थापना करिन।*


संत गुरु घासीदास ला समर्पित मोर दोहा के कुछ लाइन मैं नीचे प्रस्तुत करत हौं-


   🌷🌷बाबा घासीदास🌷🌷

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माता अमरौतिन हवे,ददा महंगूदास ।

गिरौदपुरी मा जनमें,बाबा घासीदास ।।


जनमें दिसंबर अठरा,पंथ प्रवर सतनाम ।

घासीदास प्रसिध हुए,गिरौदपुरी म धाम ।।


औंरा धौंरा पेड़ के,तरी म पाइन ज्ञान ।

घासीदास बनिन गुरू,देइन सत के ज्ञान ।।


बाबा घासीदास जी,देंवय सत उपदेश ।

छोड़व मदिरा माँस ला,कहिन बने संदेश ।।


जैतखाम बड़का बने,गिरौदपुरी म धाम।

सादा झंडा ह फहरे,मान बढ़े सतनाम ।।


गुरूधाम गिरौदपुरी,भक्तन के हे भीड़ ।

पूजैं घासीदास ला,चेला मन के नीड़ ।।


👏👏👏वसन्ती वर्मा👏👏

                 बिलासपुर

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Friday 7 May 2021

पंख (व्यंग्य)- हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 पंख (व्यंग्य)-

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

          खोर म कुछ चिरई चिरगुन ला धीरे धीरे रेंगत देखेंव त थोकिन अचरज कस लागिस । गाड़ी मोटर आये ले कुछ चिरई चिरगुन मन चपकाके मरगे फेर कन्हो उड़ियइन निही । चिरई मन के दुर्दशा देख के मन थोकिन व्याकुल होगिस । तिर म जाके पूछे के सोंचेंव । तिर म गेंव घला ... फेर मोर भाखा ला ओमन काला समझही ... ? मानलो ... ओमन समझगे अऊ जवाब दिस तब ... में उंकर भाखा ला का समझहूं ... ? तभो ले पूछे के हिम्मत करेंव । एक ठिन चिरई उल्टा मुहीं ला पूछे लगिस – चुनाव लकठियागे हे का बाबू ... ? मोरे कस अवाज सुनके दंग रहि गेंव अऊ सन खाके पटवा म दत गेंव ... । में केहेंव – चुनाव मुनाव नइ आहे जी .... । में तूमन ला केवल इही पूछे बर आये हंव .... के तूमन गाड़ी मोटर म चपका के ढोर डांगर कस काबर मरत हव .... उड़िहातेव निही गा .... ? सियान चिरई किथे – उड़िहा सकतेन त काबर नइ उड़िहातेन बाबू .... ? हमर तिर पंख कहां हे तेमा ... ? में हाँसेव ... तुंहर पंख कहां गे तेमा ... ? चिरई किथे – हमर पंख ला लेगके ... नान नान हुर्रा कोलिहा से लेके बड़े बड़े छत्रप बघवा मन उड़िहाथे जी । में हाँसत केहेंव – बघवा मन उड़िहाही तेमा ? बड़ अलकरहा गोठियाथव । चिरई किथे – हमर पंख म अतेक ताकत हे के ... पूरा जंगल एक संघरा उड़िहा सकत हे ।  

          में पूछेंव – तब असन म .... पंख ला कन्हो ला काबर लेगन देथव तूमन ... अऊ पंख ला जबरदस्ती कन्हो लेगिचगे त तुंहंर तिर गोड़ निये का .... तेमा रेंगे नइ सकत हव .... ? चिरई मन किथे – हमन ला पांच बछर तक मुफ्त के राशन बांटे के योजना बनाके .... हमन ला अकर्मन्य बनाके हमर हांथ गोड़ म जंग लगा देथव .... हमर हांथ अऊ गोड़ हा बिगन काम करे अइलाके लरघिया जथे ... त हमर हांथ गोड़ का चलही ..... ओमा कुछ ताकत नइ बांचे .... तब कइसे रेंग डरबो । रिहीस बात उड़े के ..... हमर देंहे म .... पांच बछर म एक बेर पंख जामथे ..... फेर का करबे नानुक लोभ म परके बेंच पारथन ..... उही पंख के जोर म कुछ बघवा मन दिल्ली म , कुछ मन बंगाल म अऊ कुछ मन केरल म .... कुछ मन गुजरात म .... त कुछ मन .... असम म उड़त मेछरावत रहिथे । 

          मोर मन म एक सवाल उपजगे । में पूछेंव – मोला तूमन चुनाव लकठियागे हे का .... अइसे काबर केहेव अऊ तूमन मोर बात ला कइसे समझ गेव ... ? चिरई किथे – चुनाव लकठियाथे तब हमर तिर मोहलो मोहलो करइया के संख्या बाढ़ जथे ..... हमर हाल चाल पुछइया के उदुपले वृद्धि हो जथे .... तुंहर आये ले हमन उही समझेन ... । रिहीस बात , तुंहर बात समझे के .... तुंहर बात ला तो हमन सबर दिन समझथन .... फेर हमर बात ला तहूंमन समझ गेव .... एकर मतलबे इही आय के , चुनाव बिल्कुल ठंई म आगे हे .... ।   

          में समझ गेंव के येमन जनता चिरई आय ..... जेमन पांच बछर म एक बेर जामे ... अपन पंख ला बेंचके गंवा डरथे अऊ दूसर ला उड़हाये के मजा दे देथे । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

दू मिनट(व्यंग्य)-चोवराम वर्मा"बादल"

 दू मिनट(व्यंग्य)-चोवराम वर्मा"बादल"

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ये कालजयी दू शब्द 'दू मिनट' के महिमा अगम अपार हे। ये ह महाकथा,महाकाव्य या फेर महानाटक ले कोनो मामला म कमसल नइये। दुनियाभर के कोनो भाषा के कोनो भाषी अइसे नइ होही जेन अपन भाषा में एकर पाठ नइ करत होही।

 खाली दिमाग शैतान के कहे गे हे त भरे दिमाग काकर होवत होही? सोंचे म बस दूये मिनट म उत्तर मिलगे---आदमी के।

   एक दिन हमर दिमाग सावन महिना के ढोड़गा कस लबालब छलकत भरे रहिस त हम सोंचे ल धरलेन। ये दू मिनट शब्द के पहिली बार कोन ईजाद करे होही? बेद, पुराण, शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान सबला टमड़ डरेन फेर गम मिलबे नइ करिस।एखर उत्तर तो वोकरो ले कठिन होगे के--अंडा पहिली अइस होही के मुरगी?

     कोनो भी पहिली अइस होही।माथा पिरवाये से का मतलब?आमा खाये से मतलब हे।पेंड गिने के का काम? जेन भी ये 'दू मिनट' शब्द ल खोजिस होही वो अरस्तु, सुकरात जइसे दार्शनिक अइ न्यूटन, आइंस्टीन जइसे महान वैज्ञानिक,सूरदास, गोस्वामी तुलसीदास ,सदगुरु कबीर दास जइसे महाकवि रहिस होही।

  " हरि अनंत हरि कथा अनंता" कहे जाथे ओइसने 'दू मिनट' के कथा तको अनंत हे। काला गँठियाबे, काला छोड़बे। एक दिन ट्रेन चढ़के हमला कहूँ जाना रहिसे।लकर-धकर स्टेशन पहुँचगेंव।थोकुन पाछू माइक म नोनी के मीठ अवाज सुनई दिस---यात्री मन ध्यान दव। फलाना कोती ले ढेकाना कोती जवइया सवारी गाड़ी दू नम्बर प्लेटफार्म म दू मिनट म अवइया हे। आप मन के यात्रा सफल होवय।

  हम दू नम्बर के प्लेटफॉर्म म पहुँचगेन। दस मिनट होगे, ट्रेन आबे नइ करिस तहाँ ले अउ मनखे मन सहीं ,जेती ले ट्रेन आतिच तेती ल निहर- निहर के निहारे ल धरलेन। कनिहा अउ आँखी दूनो पिरागे फेर वो दिखबेच नइ करिस।इही समे पाँचवी पढ़त मोबाइल एक्सपर्ट नाती के बताये ज्ञान सुरता आगे। मोबाइल ल निकाल के 'वेयर इज माय ट्रेन ' ल चपकबे करेंव। पता चलिस ट्रेन ह आउटर म अँड़ियाये खड़े हे। थोकुन देरी म ,माइक म उही नोनी के अवाज दुख के चासनी म बूड़े सुनई दिस--यात्री मन कृपया ध्यान दव। दू नम्बर म अवइया गाड़ी के इंजन फेल होगे हे। आउटर म खड़े हे --दू घंटा लाग जही। हम ये सोंच के मन ल बोध लेन के-नवा गढ़े इंडिया म बड़े-बड़े चीज फेल हे त ये ट्रेन के इंजन कोन खेत के मूली ये? तहाँ ले चुपचाप कुंडली मारके अगोरत बइठगेन।

    आज ले पँदरही पहिली के घटना ये। हमला अर्जेंट काम ले रायपुर जाना राहय।कोरोना के कहर के कारण हमर छोटकुन स्टेशन म ,जिहाँ अब एके ठन गाड़ी रुकथे,हम वोकर आये के टाइम ले आधा घंटा पहिली स्टेशन पहुँचगे रहेन।फेर टिकटे खिड़की खुलबे नइ करिस। पूछे म पता चलिस--वो ट्रेन रद्द होगे हे। स्टेशन मास्टर कहिस--अब दू दिन बाद वो ट्रेन आही।खैर हम दू दिन बाद स्टेशन पहुँचेन त उहाँ मरे रोवइया मनखे नइ राहय। हम सोंचे ल धरलेन-कोनो ल इहाँ कोरोना सपड़ा लिस होही अउ स्टेशन ल कंटेनमेंट जोन बना दे होहीं। टिकट खिड़की ल झाँक परेंव त एक झन बाबू होम आइसोलेशन म बइठे सहीं दिखिस। हम पूछेन --बाबू गाड़ी कतका बेर आही? वो चश्मा ल उतार के गुर्री-गुर्री देखत कहिस --  अब कहाँ से आएगी।वो दो मिनट पहले चली गई है।

हम चुरमुरावत घर आगेन।

    काला गोठियाबे----। एक दिन हम कसके भूँखागे राहन त अपन बाई ल कहेन-- जल्दी भात दे वो नोनी के दाई। वो ह जँजियावत कहिस--भात ल पसाये हँव--'दू मिनट 'तको अगोर नइ सकच--कतेक कलकलाये हस ते?अब हम कहूँ कहि देतेन के तैं ह अपन मइके जाये के बेरा कइसे 'दू मिनट' के लेट ल नइ सहच त महभारत हो जतिच--तेकर सेती चुप रहिगेन। वो ह बताये म थोड़े समझतिस के हमर पेट म भुर्री बरत हे ।

   कतेक ल बताबे कई ठन किस्सा हे। हमर बबा ह एक दिन परछी म बइठे रद्दा म अपन चश्मा ल मढ़ा दे राहय। हम नाहकत रहेन त वो खुँदाके कुचकुचागे।बबा भड़क के कहिस--अरे मूल नछत्तर के। आँखी नइ दिखय का ?तैं कहूँ 'दू मिनट' पहिली पैदा होये रहिते त शुभ नछत्तर म आये रहिते। हम कहेन --बबा तैं जानत रहे त 'दू मिनट' पहिली आपरेशन करवाके नइ निकलवा दे रहितेच। वो चुप होगे।

 एक ठन अउ सुरता आगे।पाछू महिना एक ठन आफिस म नाम सुधारे के कागज म साहेब के दस्खत करवाये बर हम गेन त उहाँ माई लोगिन साहब बइठे राहय। वोकर टेबल म कागज ल मढ़ा के --'साहेब जी --अतके बस बोले पाय रहेन ,वो हमला बिन देखे कहि दिस- चलो जाओ दो मिनट बाद में आना। देख नहीं रहे हो बात कर रही हूँ। पता नहीं कैसे-कैसे लोग चले आते हैं, बिल्कुल भी सेंस नहीं है।

   वो ह मोबाइल म गोठियावत राहय। हम समझगेन का सीन हे अउ का सेंस हे तेला।बाहिर निकलेंव त चार-पाँच झन अउ बइठे राहयँ। पूछ परेंव--तुँहर काम होगे का भाई हो? वो मन बोलिस-कहाँ काम होही।साहब देवी ह तो 'दू मिनट-दू मिनट ' काहत दू घंटा ले मोबाइल ल कान म दँताये हे। अब तो लंच के बेरा होवत हे। हम घूमे ल चल देन।

  एक पइत का होइस--हमर फूलददा परिवार  के बड़े साहब जेन दू -तीन पइत सस्पेंड होये रहिसे वोकर इंतकाल होगे। हम वोकर दशगात्र म सँघरेन त उहाँ खमाखम मनखे सकलाय राहयँ। मंत्री जी घलो आय राहयँ।श्रद्धांजलि सभा के आयोजन होइस। कई झन पारी-पारी सुमन अर्पित करके भाव सुमन तको अर्पित करिन। अब भला सुमन के बाद भाव सुमन अर्पण के का जरूरत रहिसे?खैर होथे। मंत्री जी ह बड़ाई करत कहिस--मिस्टर ठाकुर साहब बहुत ही कर्मठ, ईमानदार अउ मिलनसार आदमी रहिस हे। भगवान वोकर आत्मा ल शांति दय। हम मन में जोड़-तोड़ करके समझगेन। मंत्री जी ल साहब ले कसके खुरचन पानी मिलत रहिस होही त मिलनसार कइसे नइ कइही। 

      एकाध घंटा भावांजलि के बाद पंडित जी ह 'दू मिनट' मौन श्रद्धांजलि के घोषणा करिस। हम  चुपचाप खड़ा होके आँखी मूँद लेन। दू मिनट बुलकगे। शायद पंडित जी भुलागे। पाँच मिनट पाछू ओम शांति शांति होइस। ये बीच म कई झन बइठके मोबाइल म गोठियाये ल धरले राहयँ।

    एक ठन अउ श्रद्धांजलि सभा म शामिल होये के सौभाग्य मिले रहिस। नवयुवक आचार्य ह शोक सभा के संचालन करत रहिस। वो ह 'दू मिनट' मौन श्रद्धांजलि के घोषणा करिस फेर एके मिनट म ओम शांति कर दिस। ये बीच म कई झन खड़ेच नइ हो पाये रहिन। फेर जेन भी होइस अच्छा होइस। 'शुभस्य शीघ्रम ' कहे गे हे। हमला तो बड़ निक लागिस।फेर कतकोन गोठियावत रहिन--- ये नवयुवक मन में जोश रहिथे फेर होश नइ राहय। अरे 'दू मिनट' ल तो पूरा होवन दे रहितिस।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*


 

अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*

              (भाग-1)


               विश्व वंदनीय सद्गुरु कबीर के जन्म विक्रम संवत १४५५ (सन १३९८ ई ० ) के काशी (वाराणसी) मा माने जाथे। कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित कवि आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला मानेच ल परही, काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात कहिन। कोरा कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म कोमो मेर नइ मिलय। 

            छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा जब हम कबीर के बात करथन तब धनी धर्मदास के नाम सबले पहिली आथे। वइसे तो कबीर के सैकड़ों शिष्य होइन जेमन अपन अपन हिसाब से कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार करिन फेर धर्मदास के नाम के छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सबले जादा मायने रखथे। माने जाथे कि धर्मदास जी वैष्णव सम्प्रदाय के रहिंन परन्तु जब उँकर मुलाकात कबीर से होइस तब कबीर के उपदेश ले उन बहुत जादा प्रभावित होइन अउ कबीर के शरण मा आगिन। तदुपरांत धर्मदास अपन सारा संपत्ति (तब लगभग 64 करोड़) ल कबीर पंथ के विस्तार खातिर लगा दिन। कबीर पंथ म ये मान्यता हवय कि धनी धर्मदास के द्वितीय पुत्र मुक्तामणिनाम ल संत कबीर अटल 42 वंश होय के आशीर्वाद दे रहिन जेकर कारण प्रथम वंश गुरु के रूप मा पंथ श्री मुक्तामणिनाम साहब कुदुरमाल म सुशोभित होइन अउ छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के विस्तार होय लगिन। अब तक के वंश गुरु ये होइन -


1. पंथ श्री मुक्तामणिनाम  (वि.सं 1570 से वि.सं. 1638 कुदुरमाल)


2. पंथ श्री सुदर्शन नाम (वि.सं 1630 से वि.सं. 1690 रतनपुर)


3. पंथ श्री कुलपतिनाम ( वि.सं 1690 से वि.सं. 1750 कुदुरमाल)


4. पंथ श्री प्रबोधगुरु (बालापीर) नाम ( वि.सं 1750 से वि.सं. 1775 मंडला)


5. पंथ श्री केवलनाम ( वि.सं 1775 से वि.सं. 1800 धमधा)


6. पंथ श्री अमोलनाम (वि.सं 1800 से वि.सं. 1825 मंडला)


7. पंथ श्री सुरतिसनेहीनाम (वि.सं 1825 से वि.सं. 1853 सिंघोड़ी)


8. पंथ श्री हक्कनाम (वि.सं 1853 से वि.सं. 1890 कवर्धा)


9/ पंथ श्री पाकनाम (वि.सं 1890 से वि.सं. 1912 कवर्धा)


10/ पंथ श्री प्रगटनाम ( 1912 से वि.सं. 1939 कवर्धा)


11. पंथ श्री धीरजनाम (1936 में गद्दीशीन होय के पूर्व लोक गमन)


12. पंथ श्री उग्रनाम  ( वि.सं 1939 से वि.सं. 1971 दामाखेड़ा)


13. पंथ श्री दयानाम ( वि.सं 1971 से वि.सं. 1984 दामाखेड़ा)


14. पंथ श्री गृन्धमुनिनाम साहब ( वि.सं 1995 से वि.सं. 2048 दामाखेड़ा)


15. पंथ श्री प्रकाशमुनिनाम ( वि.सं 2046 से आज पर्यन्त....)


           उपर उल्लेखित समस्त वंश गुरु मन धर्मदास के वंशज रहिन अउ अपन अपन कार्यकाल मा के कबीर पंथ के खूब प्रचार प्रसार छत्तीसगढ़ मा करिन। छत्तीसगढ़ के कुदुरमाल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा अउ दामाखेड़ा कबीर पंथ के प्रमुख केन्द्र बनिस । 


अजय अमृतांशु, भाटापारा


                   

              (  भाग-2  )


           निःसंदेह छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के सबले जादा अनुयायी दामाखेड़ा गद्दी से हवय। इहाँ के अधिकांश आश्रम दामाखेड़ा ले ही सम्बद्ध हवय  परन्तु  फिर भी दामाखेड़ा ले इतर भी कई कबीर आश्रम के निर्माण होइस अउ कबीर के ज्ञान के खूब प्रचार छत्तीसगढ़ मा होइस। गला मा कंठी, माथा म सफेद तिलक अउ श्वेत वस्त्रधारी साधु, संत,महंत साध्वी मन कबीर के विचार ला समूर्ण छत्तीसगढ़ मा फैलाइन। 

            कबीर पंथ मा वंश परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र वंश गद्दी के हकदार होथे अउ बाकी पुत्र ल गुरु गोसाई के दर्जा मिलथे। गुरु गोसाई मन ला चौका आरती करें के पूरा अधिकार होथे।  वंश विस्तार के सँग गुरु गोसाई मन घलो कबीर पंथ के विस्तार खातिर जघा-जघा कबीर आश्रम बनाइन अउ पंथ के विधान के अनुसार चौका आरती करिन अउ आजौ करत हवय। दामाखेड़ा मा वंशगुरू दयानाम साहेब के जब कोई संतान नइ होइस तब दयानाम साहेब के सतलोक गमन के बाद गुरुमाता कलाप देवी ह गृन्धमुनि नाम साहेब ल गोद लिन जो कि गुरु गोसाई के सुपुत्र अर्थात वंशज ही रहिन। लेकिन तत्कालीन कबीरपंथी समाज,कुछ साधु महंत मन येकर विरोध करिन अउ नाराज होके काशीदास जी ल  गृन्धमुनि नाम निरूपित करके खरसिया मा गुरु गद्दी बना के बइठार दिन। तब से ले के आज पर्यन्त खरसिया मा भी वंश परंपरा चले आते हे । 

         लेकिन खरसिया के गद्दी मा जो भी वंश गुरु विराजमान होथे वो योग्यता के अनुसार होथे न कि दामखेड़ा सरिक वंश कुल मा जन्म के अनुसार। वर्तमान में अर्धनाम साहब खरसिया गद्दी मा हवय।  ये गद्दी मा विराजमान वंशगुरु निहंग होथे येमन धर्मदासी नादवंश कहे जाथे। खरसिया गद्दी से उदितमुनी नाम साहेब काशी म भव्य सतगुरु कबीर प्राकट्य  धाम के निर्माण करे हवय अउ कबीर पंथ के प्रचार छत्तीसगढ़ ले बाहिर घलो करत हवय जे हमर बर गरब के बात हवय। 

              दामाखेड़ा मा वंश परम्परा टूट गे ये मान के कई महंत अपन अपन अलग-अलग कबीर आश्रम बना लिन जेमा- पंचमदास जी ग्राम-किरवई में कबीर आश्रम के स्थापना करिन। अइसने ग्राम-नादिया (राजनाँदगाँव/दुर्ग)  मा घलो

कबीर आश्रम की स्थापना कर उत्तराधिकारी मन  प्रचार प्रसार करत हवय।

           

*छत्तीसगढ़ म बीजक अउ पारख सिद्धांत*

              

          मूलतः बीजक ही कबीर के सर्वमान्य ग्रंथ माने गे हवय जेमा निहित कबीर के वाणी (मूलतः साखी,सबद,रमैनी ) के रूप म संग्रहित हवय। कबीर के शिष्य मा अनेक संत हवय जेन 42 बंश के मान्यता ला एक सिरा से खारिज करथे। इमन बीजक के सिद्धांत ल ही मानथे अउ बीजक के प्रचार प्रसार करथे। येकर मानने वाला संत मन पारखी संत कहे जाथे। चौका आरती के परंपरा पारख सिद्धांत मा कहीं नइ हे। पारख मा चरण बन्दग़ी के मनाही हवय बंदगी दूर से ही करे जाथे। 

पारखी संत परंपरा मा अभिलाष दास जी प्रकाण्ड विद्वान होइन । लगभग 80 किताब के रचना उन करिन । महासमुंद, राजिम आदि जघा मा पारखी संत के कबीर आश्रम बने हवय जिहाँ कबीर साहित्य के अध्ययन के सुविधा हवय। 

            अभिलाष दास जी कबीर के संदेश के प्रचार प्रसार खातिर इलाहाबाद में भव्य कबीर आश्रम बनाइन जिहाँ अध्ययन अउ अध्यापन दूनो के व्यवस्था हवय। अभिलाष दास जी मन छत्तीसगढ़ के पोटियाडीह में भी कबीर आश्रम के स्थापना करिन जिहाँ केवल साध्वी महिला मन ही रहिथे अउ कबीर के उपदेश के प्रचार करथें। 


             संत असंग साहेब (खीरी, उ.प्र) घलो छत्तीसगढ़ आइन अउ ग्राम-सरखोर मा नदी किनारे कबीर आश्रम बना के आज पर्यन्त कबीर वाणी के प्रचार प्रसार करत हवँय। इँकर अनुयायी काफी संख्या मा हवय।

               *सरलग...3...*



              ( भाग-3)


 *कबीर पंथ अउ चौका आरती*       

       

       यद्यपि कबीरदास जी के गुरु रामानंद स्वामी सगुण उपासक रहिन फेर कबीरदास जी अपन गुरु ले इतर निर्गुण ब्रम्ह के उपासना म जोर दिन अउ निर्गुण पंथ के स्थापना करिन। निर्गुण भक्तिधारा के उन प्रंथम कवि रहिन। चौका आरती के संबंध म अलग अलग विद्वान मन के अलग अलग मान्यता हवय। कुछ के मतानुसार तात्कालीन समय म हिन्दू समाज मे बलि प्रथा चरम मा रहिस। 

कबीर के विचारधारा ले जब मनखे मन प्रभावित होके कबीर पंथ अपनाये लगन तब उँकर मन ले बलि प्रथा ल हटाये खातिर चौका आरती के विधान शुरु करे गिस, जेमा बलि के जगह नारियल आहुति दे गिस। 


           एक मान्यता यहू हवय कि धर्मदास के सतलोक वासी होय के उपरांत संत कबीर स्वयं धर्मदास जी के सुपुत्र मुक्तामणि नाम ल 42 वंश के आशीर्वाद दे के अउ चौका आरती करके गुरुगद्दी मा बिठाईन। लेकिन पारखी संत येकर खण्डन करथे। उँकर कहना हवय कि एक महान संत जेन निर्गुण ब्रह्न के उपासना करें के बात कहिथें उन चौका आरती के बात कइसे कहि सकथे। जो भी हो चौका आरती के परंपरा छत्तीसगढ़ मा सैकड़ो साल ले चले आवत हे अउ हजारों महंत वंशगुरु ले पंजा ले के चौका आरती अउ कबीर पंथ के प्रचार करत हवय। 


*उलटबासी अउ कबीर*


उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलटबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे। पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े पंडित मन घलो बूझ नइ पात रहिन । कबीर अउ गुरु गोरखनाथ समकालीन रहिन। गोरखनाथ के अहंकार ल कबीरदास जी टोरिन अउ अंत मा गुरु गोरखनाथ ला हार माने ल परिस। छत्तीसग़ढ़ी के वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत ल आप सबे जानत हव जेन कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय - 

        बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

        बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....

ये गीत के लोकप्रियता ये बताथे कि कबीर के सन्देश छत्तीसगढ़िया जनमानस मा कतका लोकप्रिय हवय। 


*कबीर के संबंध म मान्यता*


पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।

अन्नहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।। 


कबीर पंथ के अनुयायी मन के ये मान्यता विधि के विधान के विपरीत प्रतीत होथे। येमा कहीं न कहीं भक्ति भाव के अधिकता के कारण अतिसंयोक्ति वर्णन होय प्रतीत होथे। ठीक वइसने काशी के लहरताल मा कमलपुष्प मा कबीर साहेब के प्रकट होना भी कहीं न कहीं भक्तिभाव के अधिकता दर्शाथे। 

          

*गुरु शिष्य के सुग्घर परंपरा*


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥


कबीर कहिथे कि वो मनखे जेन गुरु के महिमा ला नइ संमझ सकय तेन अंधवा अउ मूरख दोनों हवय, काबर यदि भगवान ह रिसागे त गुरु सो जाय के जघा हवय । फेर कहूँ गुरु रिसागे तब फेर कोनो मेर जघा नइ हे। न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के कबीरपंथी समुदाय मा भगवान ले पहिली दर्जा गुरु ल दे गए हवय। छत्तीसगढ़ मा चौका आरती के उपरांत कान फूंका के कंठी माला धारण करे जाथे, संगे संग शुद्ध सात्विकता के पालन के वचन गुरु ल दे जाथे। गुरु बनाये के सुग्घर परम्परा आज भी हमर इँहा प्रचलित हवय।दुख अउ दुःख के समस्त काम गुरु के द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। 


*उपसंहार -* 

कबीर के अर्थ महान होथे। कबीर के संदेश हा दोहा,साखी,सबद,रमैनी अउ निर्गुणी भजन के रूप मा  छत्तीसगढिया जन मानस म रचे बसे हे।  छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के अनुयायी लगभग 50 लाख हवय जेमा ज्यादातर पिछड़ा,अउ शोषित वर्ग के हवय। अभी भी अभिजात्य वर्ग में कबीर के उपासक कम ही मिलथे । धर्मदास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि अउ उँकर पत्नी आमीन माता ल प्रथम कवियित्री माने गे हे। उँकर लिखे पद मन आज भी छत्तीसगढ़ मा श्रद्घा के संग गाये जाथे।  कबीर के अनुयायी मन में गजब के सहजता, सरलता अउ एक दूसर के प्रति सम्मान देखे बर मिलथे। आडम्बर अउ कर्मकांड ले कोसों दूर कबीरपंथी मन उपर ये दोहा सटीक बइठथे- 


चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।

जिसको कुछ ना चाहिए, वो ही शहंशाह।।

             

          सद्गुरु कबीर युग प्रवर्तक रहिन। हिंदी साहित्य के 1200 बछर के  इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात सब ल स्वीकारे बर परही ।

अजय अमृतांशु

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---: *छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी मन के रीति रिवाज*


*चौका आरती -* 

        छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी समाज म चौका आरती के परंपरा सैकड़ो साल से चले आवत हे। यह भी सत्य हवय कि कबीर पंथ म आये के बाद व्यक्ति निर्गुण विचारधारा के हो जाथे अउ सगुण विचारधारा के परम्परा जइसे - भागवत, कथा,  रामायण, जग जँवारा आदि दूरिहा जाथे। कहीं न कहीं येकर भरपाई चौका आरती से होथे काबर की ये पंथ म चौका आरती ल सात्विक यज्ञ के संज्ञा दे गे हवय । इही कारण से सुख/ दुख के बेरा म चौका आरती के विधान हवय। चौका आरती कराये ले घर के शुद्धि होथे अउ आस पास के वातावरण घलो सकारात्मक होथे। चौका आरती ल महंत के द्वारा ही सपन्न कराये जाथे।


*महंत* - 

वंश गुरु द्वारा जेन व्यक्ति ला चौका आरती के विधि विधान बताके पूर्णतः प्रशिक्षित करे के उपरांत ही अधिकृत करे जाथे वो व्यक्ति महंत (कड़िहार) कहलाथे। अर्थात वंशगुरु के दरबार में पूर्ण रूप से प्रशिक्षण के उपरांत चौका आरती के लिए अधिकृत करना ला  *पंजा देना* कहिथे। पंजा मिले के उपरांत व्यक्ति ला *महंत* के दर्जा मिलथे अउ चौका आरती के साथ साथ पंथ के प्रचार प्रसार के जिम्मा भी होथे। महंत के द्वारा पंजा के दुरुपयोग / कबीर पंथ विरोधी गतिविधि/ अनैतिक कार्य के शिकायत मिले म पंजा वंश गुरु द्वारा छीन लिए जाथे। हालांकि अइसन स्थिति नहीं के बराबर ही आथे। 


*देवान* - 

चौका आरती ल कबीर पंथ मा सात्विक यज्ञ माने गे हवय। महंत के सहयोगी ला *देवान* कहे जाथे। चौका पूरे के काम देवान के होथे। चौका म जो भी सामग्री लगना हवय, चौका के दौरान यजमान मन ल दिशा निर्देश दे के काम देवान के होथे। चौका के दौरान अन्य साधु संत भी सहयोग करथे। 


*नारियल भेंट करना*

चौका आरती के दौरान उपस्थित लोगन नारियल अउ पान ले के यथासंभव रुपिया पइसा के संग महंत ला भेंट करके सतगुरु से कामना करे जाथे। बाद में इही नारियल ल तोड़ के प्रसाद वितरित करे जाथे।


*कान फूँकवाना*-  

चौका आरती के समय जेन ला भी गुरु बनाना हवय वो नारियल अउ पान ले के महंत के पास जाथे। महंत द्वारा वो मनखे ला तिनका धराये जाथे।  महंत द्वारा व्यक्ति के कान मा मंत्रोच्चार के साथ वचन लिये जाथे। दोनों हाथ से तिनका टोर के गुरु बना लिए जाथे अउ महन्त द्वारा कंठी पहिरा के आशीर्वाव दे जाथे। ये पूरा प्रक्रिया ला कान फूँकवाना कहे जाथे। 


*बन्दग़ी*  -

बन्दग़ी मतलब प्रार्थना ले हवय, साहेब के संबंध सीधा सतगुरु कबीर ले हवय अर्थात जब कोनो एक दूसर ल *साहेब बन्दग़ी* कहिथे माने अभिवादन के संग सीधा सतगुरु ला सुरता करथे। जहाँ जहाँ कबीरपंथी मन समूह मिलथे साहेब बन्दग़ी के स्वर चारो डहर गूँजत रहिथे। 


*परघाना*

जब भी कोई वंश गुरु के आगमन होथे तब उनला सीधा सीधा कार्यक्रम स्थल तक नइ ला के शहर/गाँव के बाहिर ही रोक लिये जाथे । वहीं से उनला परघाट हुए लाये जाथे।  समाज के मनखे मन फूल,गुलाल अउ फटाका के संग पहिली स्वागत करथे । उपरांत सबसे आगे पुरुष वर्ग मन बाजा-गाजा,झाँझ,मृदंग के साथ आघु बढ़थे। महिला मन वंशगुरु /महंत के काफिला के ठीक आघु म आरती सजा के सोहर मंगल गात हुए सतगुरु के आराधना करथे। विशेष बात ये रहिथे कि सात्विक यज्ञ स्थल के आत तक महिला मन वंशगुरु ला पीठ नइ देखावय, अउ पाछू सरकत गुरु ल सामने देखत हुये सोहर गीत/भजन गात आथे । परघाये के प्रक्रिया कोनो कम गौरवशाली नइ रहय। ये दौरान लइका,सियान अउ युवा जबो उत्साहित नजर आथे। आजकल परघाये के बेरा महिला/युवती मन के द्वारा भारी संख्या मे रास्ता के दोनों ओर कलश ले के चले के शुरुआत घलो होगे हवय।


 *कबीर पंथ म चौका आरती के प्रकार -*


 *1.   आनंदी चौका-*

जब भी घर परिवार म खुशी के माहौल बनथे, बर,बिहाव, छठी आदि अवसर मा आनंदी चौका के विधान हवय। कभू कभू खुशी के अवसर नइ भी रहय तभो लोगन परिवार के सुख शांति बर आनंदी चौका कराथे। आंनदी चौका के लिए सोम, बुध,गुरु,शुक्र ये दिन ला उपयुक्त माने जाथे। 


*2.  चलावा चौका -*

परिवार म जब ककरो निधन हो जाथे तब दिवंगत आत्मा के शांति खातिर जेन चौका आरती होथे वोला चलावा चौका कहिथें । शनि,रवि,मंगल के दिन ल चलावा चौका के लिए उपयुक्त बताय गे हे। 


*3  सोला सूत चौका -*

ये आनंदी चौका के ही बड़े रूप आय जेला परिवार के सुख शांति के लिये करे जाथे। ये चौका मा 16 महंत बइठथे, 16 जोत के स्थापना होथे अउ 16 भजन गाये जाथे। 


*4  एकोत्तरी चौका*

आनंदी चौका के ही ये दूसरा बड़े रूप आय लेकिन एकोत्तरी चौका ल केवल वंशाचार्य ही कर सकथे। ये चौका करे के अधिकार महंत या गुरु गोसाई ल नइ हे।  चौका आरती के समय 101 महन्त बइठथे, 101 जोत के स्थापना होथे अउ 101 भजन के गायन होथे। एकोत्तरी चौका गुरुगद्दी स्थल या कहीं बड़े भारी सार्वजनिक स्थल म ही सम्पन्न होथे काबर कि येमा खर्च भी काफी आथे।  


*जन्म संस्कार* -

लइका के जन्म मा नामकरण संस्कार गुरु के द्वारा ही करे जाथे। हर परिवार/खाप के कोई न कोई गुरु अवश्य होथे जेन अइसन अवसर मा नवागन्तुक शिशु के नामकरण करथे। छठी म चौका आरती, भजन अउ ग्रंथ के आयोजन भी होथे। माई मन के द्वारा सोहर मंगल अउ ग्रंथ मण्डली के द्वारा कबीर के निर्गुणी भजन उत्साह के संग गाये जाथे। 


*विवाह संस्कार -* 

विवाह के समय कबीरपंथी मन 7 फेरा तो जरूर लेथे लेकिन फेरा के बेरा अग्निकुंड रखे  विधान नइ हे। अग्निकुंड के जघा चौका के आरती (जोत) ही होथे जेकर फेरा लिए जाथे।  महंत के द्वारा नव दम्पत्ति ल 7 फेरा करवाये जाथे। आरती ल ही अग्नि के रूप मा साक्षी माने जाथे अउ सात फेरा ले जाथे।  विवाह के समय महंत द्वारा वर -बधु के कान फूँके जाथे याने वर वधु द्वारा गुरु बनाये जाथे। सुखी  दाम्पत्य जीवन के लिए साकोचार के पाठ महंत ही करथे अउ 7 भाँवर में 7 वचन एक दूसर ल वर-वधु द्वारा दिए जाथे । ये प्रकार ले विवाह संपन्न होथे।


*मृत्यु संस्कार*-  

मृत्यु मतलब जीवन के अंतिम सत्य। कोई भी कबीरपंथी मृत्यु ले नइ डराय काबर कबीर साहब पहली से ही उन ल आगाह कर चुके हवय - 

आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । 

एक सिंहासन चढ़ि चले,एक बँधे जंजीर ॥


दिवंगत मनखे ल *सतलोकवासी* कहे जाथे। मृत्यु उपरांत कबीर पंथ मा मृत शरीर ला दफनाये के परम्परा हवय। मृतक ला देवान अउ संत समाज के द्वारा भजन गात हुए झाँझ मजीरा के साथ श्मशान घाट ले जाये जाथे जिहाँ विधि विधान के साथ दफना दिए जाथे। मृत्यु संस्कार भी महंत द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। कबीर के ये मानना रहिस कि शरीर ले आत्मा निकले के उपरांत शरीर के कोई औचित्य नइ हे। जलाव, दफ़नाव या गंगा म बहाव येकर ले कोनो फरक नइ परय। आत्मा तो तुरते दूसर देह धारण कर लेथे। 

               नहावन के अंतिम दिन महिला मन तालाब ले स्नान के बाद भजन गावत हुए घर आथे ये परम्परा केवल छत्तीसगढ़ म देखे बर मिलथे अउ केवल कबीरपंथ मा । प्यारेलाल गुप्त जी अपन किताब म ये बात के उल्लेख करत हुए लिखे हवय कि "कबीरपंथ ने एक नया संस्कार दिया है मृत्यु संस्कार।" 


*सात्विकता के गारंटी*- 

कोनो भी कबीरपंथी परिवार माने सौ प्रतिशत सात्विकता के गारंटी। कबीरपंथी परिवार म माँस मदिरा के सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित होथे। कोनो भी व्यक्ति के शिकायत मिले मा वो मनखे ल परिवार/समाज से बहिष्कृत कर दे जाथे। आचार विचार खान पान म सात्विकता के पालन करने वाला मनखे ही विशुद्ध रूप कबीरपंथी माने जाथे। ये बात अलग हवय कि ग्लोबिलजेशन अउ उपभोकतावादी संस्कृति के चलते कबीरपंथी परिवार म घलो कुछ विकृति आ गे हवय लेकिन येकर संख्या बहुत कम हवय ।


*माघी पुन्नी मेला के उत्तपत्ति कबीर पंथ ले*


कबीर पंथ में माघी पुन्नी मेला के शुरुआत 15 वीं शताब्दी म ही कुदुरमाल मा होगे रहिस। बाद म पुन्नी मेला छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सा म बगरिस।  

येकर उल्लेख भोजली गीत म घलो मिलथे- 

      जल्दी जल्दी बाढ़व भोजली 

      जाबों मेला कुदुरमाले....

कुदुरुमाल म बकायदा पुन्नी मेला भरावत रहिस जिहाँ कबीरपंथी मन सकलाय। वइसे भी कबीरपंथ मा पूर्णिमा के खासा महत्व हवय।


छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी समाज के रीति-रिवाज,परम्परा अउ संस्कृति तो विस्तृत हवय येला केवल एक प्रारम्भिक परिचय ही कहि सकथंव । 


*सादर साहेब बन्दग़ी साहेब*

🙏🙏🙏

अजय अमृतांशु,भाटापारा

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: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर*


        छत्तीसगढ़िया मन के नस नस म कबीर समाय हवय कइहँव त ये बात अतिशंयोक्ति नइ होही। जेन छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के लगभग 50 लाख अनुयायी हो उँहा कबीर के लोकप्रियता के अंदाजा आप अइसने लगा सकथव। कबीर के दोहा, साखी, सबद रमैनी, निर्गुण भजन, उलटबासी छत्तीसगढ़ म सैकड़ों बछर ले अनवरत प्रवाहित होत हवय। 

        एक डहर कबीर भजन के हजारों ऑडियो, वीडियो उपलब्ध हवय उन्हें दूसर डहर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जुग म यू ट्यूब म आप घर बइठे कबीर के अमृतवाणी के पान कर सकथव। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया जी अपन जीवनकाल में कबीर उपर बहुत काम करिन। कबीर उपर उँकर कई आडियो /वीडियो आप मन ला मिल जाही। सही मायने म उन कबीर के बहुत बड़े फालोवर रहिन येकरे कारण उँकर वाणी भी कबीर के जइसे खरा रहय। उन जब भी बात करय बिना लाग लपेट के खरी खरा कहँय। उँकर एक प्रसिद्ध गीत जेन आज भी लोगन के मुँह ले निकल जाथे  - 

      हम तोरे संगवारी कबीरा हो ...

येकर अलावा - माया तजि ना जाय.....

करम गति टारे नहीं टरे...., बीजक मत परवाना... आदि कई कबीर भजन के गायन मस्तुरिया जी करिन। हालांकि येकर मूल्यांकन आज पर्यन्त जतका होना रहिस नइ हो पाय हवय। 

           छत्तीसगढ़ के गीतकार मन कबीर के महत्ता ल न केवल स्वीकार करिन बल्कि अँगीकार भी करिन। बेरा-बेरा अलग-अलग गीतकार मन अपन-अपन हिसाब से कबीर के साखी,दोहा अउ भजन ल अपन गीत मा उतारिन। कबीर के कई कालजयी भजन मूल रूप म मिलथे त कई छत्तीसगढ़ी म अनुदित भी । अइसने एक भजन देखव- 

      रहना नहीं देश बिराना हो रहना नहीं...

      यह संसार कागज के पुड़िया 

      बून्द परे घुर जाना हे, रहना नहीं ......


ये भजन ल छत्तीसगढ़ मा आज पर्यन्त न जाने कतका गायक गाइन होही अउ आज भी गावत हे येकर गिनती संभव नइ हे।अइसन अनेकों भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हे। कभू भी मुँह से अनायास कोनो भी भजन प्रवाहित होय लगथे। 


          पण्डवानी के नाम सुनते साठ हमर आँखी के आघू म पाँचो पाण्डव के कथा चलचित्र सरिक चले लागथे । पण्डवानी मा आप पाँच पाण्डव /महाभारत के ही कथा सुने होहू फेर अब विगत कम से कम 40 बछर ले पण्डवानी शैली म कबीर के जीवन दर्शन भी गाये जावत हे। येहू ला श्रोता मन ओतके आनन्दित होके सुनथे जतका उन महाभारत के कथा ल सुनथे।  पण्डवानी शैली मा कबीर भजन के गायन म त्रिवेणी साहू काफी लोकप्रिय होइन। पहिली इंकर माँ गायन करत रहिन। 

          खंझेरी तो नंदागे फेर पहिली खंझेरी मा कबीर के निर्गुण भजन के लॉजवाब भजन मन सुने ल मिलय। आकाशवाणी से कबीर निर्गुण भजन के प्रसारण भी होवय। लोगन अपन कामकाज निपटात रहय अउ दूसर डहर भजन चलत रहय। 

          छत्तीसगढ़ लोकगायक मन कबीर के कई भजन ल ज्यों के त्यों गाइन त उँहे दूसर डहर भजन के छत्तीसगढ़ी /अपभ्रंश रूप घलो मिलथे। बावजूद ओकर लोकप्रियता म कोनो कमी नइ आइस।  

     झीनी झीनी रे झीनी बीनी चदरिया...

     झीनी रे झीनी रे....

     कि राम नाम रस भीनी चदरिया .....


कबीर के हजारों दोहा में से सैंकड़ो लोकप्रिय दोहा मन इँहा के मनखे ल मुँहजुबानी याद रहिथे अउ जेन मनखे यदि ये कहि दिस के ये दोहा ल मैं नइ सुने हँव तो वो हँसी के पात्र भी बनथे। कबीरपंथी समाज म एक अनूठी परम्परा हवय - जब भी सामूहिक पंगत होथे त खाना पोरसे के बाद भोजन पोरसने वाला ह कबीर के दू-तीन ठिन साखी पढ़थे ओकर उपरांत ही खाये के शुरुआत करे जाथे। मतलब खाना से लेके सोये तक कबीर के साखी/भजन इँहा के लोक जीवन म आज भी देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन मा रचे बसे कुछ प्रसिद्ध भजन देखव - 


   कुछ लेना ना देना मगन रहना....

   मोर हीरा गँवागे कचरा में ........

   तोर गठरी मा लागय चोर बटोहिया....

   कैसा नाता रे फुला फुला फिरे जगत में..

   कोन ठगवा नगरिया लूटल हो .....

   मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे......         

   मन लागा मेरो यार फकीरी में ....

   पानी बीच मीन पियासी संतो....

   संतो देखत जग बौराना ......


अइसन अनेक भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हवय। ये भजन ल आप कोनो भी मनखे करा पूछ लव न केवल बता दिही बल्कि व्याख्या भी कर देही। 

         कबीर के शिष्य धनी धर्मदास के पद- 

आज मोरे घर मा साहेब आइन हो.......

         अउ आमीन माता के पद - 

उठो हो सुहागिन नारी झारि डारो अँगना.....

जइसन कर्णप्रिय भजन मन इँहा के नर-नारी मन ला कंठस्थ रहिथे। कोनो भी सुअवसर मा गाये बर तियार रहिथे। 


          छत्तीसगढ़ के आम जनमानस म दोहा के लोकप्रियता के का कहना। हर अवसर मा हर प्रकार के कबीर के दोहा मनखे मन चल-फिरत बोल देथे। देवारी मा राउत मन के दोहा काय कहना । होली मा फाग गीत बेरा कबीर के दोहा कहे बाते कुछ अलग रहिथे। कबीर के दोहा हा फाग गीत म चार चाँद लगाए के काम करथे।


         रामायण के मंच मा भी कबीर भजन प्रस्तुत करके बड़े बड़े भजनहा मन मनखे मन के दिल जीत लेथे,ये कबीर के लोकप्रियता के ही परिचायक हवय। 

           वरिष्ठ गीतकार सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत जेला लइका सियान सबो जानत हवय ये कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय - 

   बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

   बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....


*नाचा म कबीर के संदेश*

नाचा छत्तीसगढ़ के पहिचान आय अउ नाचा म कबीर के संदेश नाचा म प्राण फूँके काम करथे।जोक्कड़ मन के द्वारा एक दूसर से नोक झोंक करत हुए कबीर के दोहा/साखी के माध्यम ले संदेश देना नाचा के प्रमुख प्रस्तुत्ति होथे। जोक्कड़ मन धारदार व्यंग्य के साथ कबीर के दोहा भी कहिथे। कबीर के उलटबासी ल छत्तीसगढ़ी मा मजेदार अंदाज म प्रश्न करथे अउ जब दूसरा जोक्कड़ वोकर उत्तर नइ जानय तब मजेदार अंदाज मा सही उत्तर बताथे। ये दौरान दर्शक मन आनन्दित होके देखथे अउ कबीर के कहे बात सीधा उँकर अंतस मा उतरथे।  


माटी कहे मोला धीरे धीरे रौंदबे जी कुम्हरा....

एक दिन अवसर बीतही रे कुम्हरा...

जब मैं रौंदहँव तोला ... 

अरे बिरना बिरना रे चोला...


साखी (दोहा) की परंपरा नाचा में खड़े साज से प्रारंभ होकर आज भी बैठक साज में विद्यमान है। ऐसा भी नहीं है कि साखी की यह परंपरा नाचा में ही है - डॉ. पी.सी.लाल यादव। 


सादा वस्त्र, सात्विक विचार, सात्विक भोजन अउ मृत्यु उपरांत कफ़न भी सादा। ये कबीर के ही देन आय जेन छत्तीसगढ़ मा सदियों से चले आत हे। 

कुल मिला के कबीर के रचे साहित्य के धारा छत्तीसग़ढ़ के लोक जीवन मा अनेक रूप मा बोहावत हे। कहूँ उपदेश या प्रवचन के रूप मा त कोनो मेर भजन/साखी/दोहा के रूप म। कबीर के साहित्य छत्तीसग़ढ़ मा आसानी से उपलब्ध हवय।दामाखेड़ा के साथ साथ अनेक कबीर आश्रम में कबीर साहित्य के विशाल संग्रह मिल जथे। समय समय म अनेक विद्वान ये पावन धरा मा कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए आवत रहिथे जिंकर वाणी के श्रवणपान यहाँ के लोगन करत रहिथे। सीधा सादा जीवन छत्तीसगढ़िया मनखे के पहिचान बन गे हे। 


साहेब बन्दग़ी साहेब🙏 

*अजय अमृतांशु*,भाटापारा

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: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म संत कबीर*

        

*लोक व्यवहार मा साहेब शब्द के व्यापकता*


           छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में "साहेब" अउ "साहेब बन्दग़ी" ये दूनो शब्द वोतके व्यापक हवय जतका  "जय राम", सीता-राम या राम-राम हवँय। कबीर पंथी मन जब भी एक दूसर ले मुलाकात करही तब अभिवादन म सबले पहिली "साहेब बंदगी" कहिथे । जवाब में दूसर डहर ले भी साहेब बन्दग़ी मिलही। येकर उपरांत ही सुख दुख, अन्य हाल चाल पूछे जाथे। आम बोलचाल में मनखे मन एक दूसर के नाम भी नइ लेवय बल्कि नाम के जघा "साहेब" शब्द के ही प्रयोग होथे। उदाहरणार्थ - 

   कहाँ जाथव साहेब ?  घर जाथंव साहेब।

   सब बने बने साहेब ? 

   उत्तर-हव साहेब! सब साहेब के कृपा हवय। 

   हमर डहर आहू त दरस देहू साहेब..।


चौका आरती या बड़े बड़े सत्संग मा जब हजारों के संख्या मा साधु संत,महात्मा अउ आम मनखे मन सकलाथे तब चारो डहर साहेब अउ साहेब बन्दग़ी कान म गूँजत रहिथे। स्वेत वस्त्रधारी साधु संत के विहंगम दृश्य देखते ही बनथे। इँहा साधु संत मन एक दूसर ला "साहेब" शब्द से संबोधित करथेच इंकर अलावा आम आदमी अउ सत्संग के वालेंटियर मन घलो एक दूसर ल साहेब शब्द से ही संबोधित करथे। कभू कोनो ल पुकारना हवय तभो वोकर नाम नइ लेवय। जैसे - 

     आगे चलिये  साहेब... आगे चलिये

     आप मन ला का चाही साहेब ?

     ये मेर भीड़ मत बढ़ाव साहेब?

     साहेब के दर्शन अभी नइ हो सकय साहेब आदि...


"साहेब" शब्द म विनम्रता के भाव के संग सब कुछ समाय हे। साहेब कहे ले सीधा संबंध सद्गुरु कबीर ले होथे। जइसे "राम" ल आज तक कोनो परिभाषित नइ कर पाइन वइसने "साहेब" ल घलो आज पर्यंत कोनो परिभाषित नइ कर पाय हे। कहे जाथे न- हरि अनन्त हरि कथा अनंता।


*प्रसाद के अर्थ*


कबीरपंथ में प्रसाद के दू अर्थ होथे -

1 -प्रसाद माने चौका आरती के बाद, या सत्संग के बाद महंत द्वारा जो बाँटे जाथे। ये आटा से बनाये जाथे जेमा चौका के दौरान चढ़ाए गे नारियल, पान, काजू किसमिश आदि ल घलो मिक्स करके बनाये जाथे येला "प्रसाद" कहिथे। 


 2. - सत्संग मा पहुँचे जबो मनखे के लिए शुद्ध सात्विक भोजन के व्यवस्था रहिथे जेला प्रसाद कहे जाथे। कोनो ला भी भोजन कर लव कहिके नइ कहय। चलव प्रसाद पा लव कहिथे। कबीर पंथ से इतर इही ला प्रसादी कहे जाथे । 


*चरन पखारना*

 

छत्तीसगढ़ म ये परंपरा सदियों से चले आवत हे।घर मा जब भी कोनो साधु,संत, महंत आथे तब सबले पहिली चरण धोये जाथे। तदुपरांत साधु/ संत के अंगूठा ल धोये जाथे अउ धुले पानी ल थारी मा एकत्रित करे जाथे। ये एकत्रित जल चरनामृत (चरण से निकले अमृत)  कहलाथे जेला घर परिवार के मन थोड़ा थोड़ा पीथे । 


*पंगत* 

कबीरपंथ मा प्रसादी में रूप मा सामूहिक भोजन कराये जाथे जेला पंगत कहिथन। पंगत में भोजन जमीन म कतारबद्ध बइठार के ही खिलाये जाथे। पंगत मा खाना मनखे मन अपन सौभाग्य समझथे। 


*दैनिक पूजा पाठ में संत कबीर*


छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन अपन घर मा अनुराग सागर अउ मूल संध्या पाठ जरूर रखथे। धनी धर्मदास द्वारा संत कबीर से जीवन दर्शन के संबंध मे प्रश्न पूछे गिस, कबीर साहब द्वारा धर्मदास जी के प्रश्न के उत्तर दे गिस। धर्मदास के जबो शंका के समाधान संत कबीर के द्वारा करे गे हवय, ये समस्त बात पद्य रूप मा अनुराग सागर म संकलित हवय। धर्मदास ला पूरा जीवन दर्शन, आत्मा परमात्मा के बारे म विस्तृत उपदेश कबीर साहब द्वारा दे गे हवय ये समस्त बात अनुराग सागर म हवय। कबीरपंथ के धार्मिक आयोजन जइसे प्रवचन /ग्रन्थ पाठ मा अनुराग सागर म निहित संदेश ल बताये जाथे। लेकिन पारख सिद्धान्त वाले अनुयायी मन बीजक के पाठ करथे अउ प्रवचनकर्ता मन भी बीजक म निहित बात ल ही बताथे। 


*मूल संध्या पाठ*

पंथ मा सद्गुरु कबीर के आराधना हेतु प्रतिदिन संध्या पूजा पाठ होथे। पूजा पाठ हेतु "मूल संध्या पाठ" पुस्तक के पाठ करे जाथे।  मूल संध्या पाठ में अलग अलग छन्द में छन्दबद्ध पद हवय। प्रतिदिन संझा के आरती जलाये के उपरांत संध्या पाठ के साथ ही संत कबीर के आरती पूजा होथे। 


*साधु संत के सत्कार*


साईं इतना दीजिए,जामे कुटुम्ब समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।


कबीर के ये साखी छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सटीक बइठथे। इँहा के मनखे जतका मिलगे वतका मा खुश रहिथे,जादा के चाह बिल्कुल नइ करय। छत्तीसगढ़ म साधु मन के सत्कार के अनुपम उदाहरण मिलथे। ककरो घर कहूँ 12 बजे रात के भी कोनो साधु आगे तभो वोकर स्वागत सत्कार करे जाथी । यथाशक्ति भोजन कराके विश्रांम के व्यवस्था करथे। साधु जतका दिन रइही खुशी-खुशी वोकर सेवा-सत्कार करथें अउ जाय के बेरा यथाशक्ति रुपिया पइसा दे के बिदागरी करथे। संगे संग निवेदन भी करथे कि अइसने दर्शन देवत रहू साहेब। 


*सद्गुरु कबीर अउ गुरु गोरखनाथ प्रसंग*


छत्तीसगढ़ म संत कबीर ले जुड़े हुये कई क्षेपक कथा मिलथे जेमा एक कथा गुरु गोरखनाथ के  मिलथे। गुरु गोरखनानाथ, नाथ परंपरा के गुरु मच्छेंद्र नाथ के शिष्य रहिन। गुरु गोरखनाथ महान सिद्ध योगी रहिन। येकर नाम से गोरखपुर शहर हवय। गोरखनाथ एक बार संत कबीर से शास्त्रार्थ करे खातिर गिन। संत कबीर से शास्त्रार्थ मन उन पराजित होगे। अब चूँकि उन हठी भी रहिन, तब पराजित होय के उपरांत गोरखनाथ जी कबीर ले कहिन कि मैं  तालाब के पानी म जा के छिपत हँव मोला खोज के बताव। गोरखनाथ मेचका के रूप धारण करके हजारों मेचका के बीच जा के बइठगे। फेर संत कबीर अन्तर्यामी रहिन गोरखनाथ जी ल आसानी ले खोज लिन। अब बारी संत कबीर के रहिस, कबीर साहब पानी के रुप धारण करके पानी म जा के मिलगे। गुरु गोरखनाथ लाख उपाय करें के बाद भी कबीर ल नइ खोज पाइन अउ अंत मा संत कबीर से हार मान लिन। 


छत्तीसगढ़ म संत कबीर के साखी, संदेश के रुप मा जघा जघा बगरे हवय। सबके उल्लेख करना तो संभव नइ हे फेर एक साखी जो मोला अंदर तक झकझोर देथे वो ये हवय - 


तीन लोक नौ खंड में, गुरु से बड़ा न कोय्।

करता जो ना करि सकै, गुरु करे सो होय।।


भावार्थ:-  तीनों लोक अउ नौ ग्रह मा  गुरू ले बड़का कोनो नइ हे। करता (विधाता ) भी अपन विधान म बँधे होय के कारण कर्मफल ला बदल नइ सकय लेकिन सद्गुरु प्रारब्ध के कर्मफल ल घलो सुकृति में बदल देते हैं।


साहेब बन्दग़ी साहेब🙏

*अजय अमृतांशु* भाटापारा