Friday 7 May 2021

अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*


 

अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*

              (भाग-1)


               विश्व वंदनीय सद्गुरु कबीर के जन्म विक्रम संवत १४५५ (सन १३९८ ई ० ) के काशी (वाराणसी) मा माने जाथे। कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित कवि आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला मानेच ल परही, काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात कहिन। कोरा कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म कोमो मेर नइ मिलय। 

            छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा जब हम कबीर के बात करथन तब धनी धर्मदास के नाम सबले पहिली आथे। वइसे तो कबीर के सैकड़ों शिष्य होइन जेमन अपन अपन हिसाब से कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार करिन फेर धर्मदास के नाम के छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सबले जादा मायने रखथे। माने जाथे कि धर्मदास जी वैष्णव सम्प्रदाय के रहिंन परन्तु जब उँकर मुलाकात कबीर से होइस तब कबीर के उपदेश ले उन बहुत जादा प्रभावित होइन अउ कबीर के शरण मा आगिन। तदुपरांत धर्मदास अपन सारा संपत्ति (तब लगभग 64 करोड़) ल कबीर पंथ के विस्तार खातिर लगा दिन। कबीर पंथ म ये मान्यता हवय कि धनी धर्मदास के द्वितीय पुत्र मुक्तामणिनाम ल संत कबीर अटल 42 वंश होय के आशीर्वाद दे रहिन जेकर कारण प्रथम वंश गुरु के रूप मा पंथ श्री मुक्तामणिनाम साहब कुदुरमाल म सुशोभित होइन अउ छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के विस्तार होय लगिन। अब तक के वंश गुरु ये होइन -


1. पंथ श्री मुक्तामणिनाम  (वि.सं 1570 से वि.सं. 1638 कुदुरमाल)


2. पंथ श्री सुदर्शन नाम (वि.सं 1630 से वि.सं. 1690 रतनपुर)


3. पंथ श्री कुलपतिनाम ( वि.सं 1690 से वि.सं. 1750 कुदुरमाल)


4. पंथ श्री प्रबोधगुरु (बालापीर) नाम ( वि.सं 1750 से वि.सं. 1775 मंडला)


5. पंथ श्री केवलनाम ( वि.सं 1775 से वि.सं. 1800 धमधा)


6. पंथ श्री अमोलनाम (वि.सं 1800 से वि.सं. 1825 मंडला)


7. पंथ श्री सुरतिसनेहीनाम (वि.सं 1825 से वि.सं. 1853 सिंघोड़ी)


8. पंथ श्री हक्कनाम (वि.सं 1853 से वि.सं. 1890 कवर्धा)


9/ पंथ श्री पाकनाम (वि.सं 1890 से वि.सं. 1912 कवर्धा)


10/ पंथ श्री प्रगटनाम ( 1912 से वि.सं. 1939 कवर्धा)


11. पंथ श्री धीरजनाम (1936 में गद्दीशीन होय के पूर्व लोक गमन)


12. पंथ श्री उग्रनाम  ( वि.सं 1939 से वि.सं. 1971 दामाखेड़ा)


13. पंथ श्री दयानाम ( वि.सं 1971 से वि.सं. 1984 दामाखेड़ा)


14. पंथ श्री गृन्धमुनिनाम साहब ( वि.सं 1995 से वि.सं. 2048 दामाखेड़ा)


15. पंथ श्री प्रकाशमुनिनाम ( वि.सं 2046 से आज पर्यन्त....)


           उपर उल्लेखित समस्त वंश गुरु मन धर्मदास के वंशज रहिन अउ अपन अपन कार्यकाल मा के कबीर पंथ के खूब प्रचार प्रसार छत्तीसगढ़ मा करिन। छत्तीसगढ़ के कुदुरमाल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा अउ दामाखेड़ा कबीर पंथ के प्रमुख केन्द्र बनिस । 


अजय अमृतांशु, भाटापारा


                   

              (  भाग-2  )


           निःसंदेह छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के सबले जादा अनुयायी दामाखेड़ा गद्दी से हवय। इहाँ के अधिकांश आश्रम दामाखेड़ा ले ही सम्बद्ध हवय  परन्तु  फिर भी दामाखेड़ा ले इतर भी कई कबीर आश्रम के निर्माण होइस अउ कबीर के ज्ञान के खूब प्रचार छत्तीसगढ़ मा होइस। गला मा कंठी, माथा म सफेद तिलक अउ श्वेत वस्त्रधारी साधु, संत,महंत साध्वी मन कबीर के विचार ला समूर्ण छत्तीसगढ़ मा फैलाइन। 

            कबीर पंथ मा वंश परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र वंश गद्दी के हकदार होथे अउ बाकी पुत्र ल गुरु गोसाई के दर्जा मिलथे। गुरु गोसाई मन ला चौका आरती करें के पूरा अधिकार होथे।  वंश विस्तार के सँग गुरु गोसाई मन घलो कबीर पंथ के विस्तार खातिर जघा-जघा कबीर आश्रम बनाइन अउ पंथ के विधान के अनुसार चौका आरती करिन अउ आजौ करत हवय। दामाखेड़ा मा वंशगुरू दयानाम साहेब के जब कोई संतान नइ होइस तब दयानाम साहेब के सतलोक गमन के बाद गुरुमाता कलाप देवी ह गृन्धमुनि नाम साहेब ल गोद लिन जो कि गुरु गोसाई के सुपुत्र अर्थात वंशज ही रहिन। लेकिन तत्कालीन कबीरपंथी समाज,कुछ साधु महंत मन येकर विरोध करिन अउ नाराज होके काशीदास जी ल  गृन्धमुनि नाम निरूपित करके खरसिया मा गुरु गद्दी बना के बइठार दिन। तब से ले के आज पर्यन्त खरसिया मा भी वंश परंपरा चले आते हे । 

         लेकिन खरसिया के गद्दी मा जो भी वंश गुरु विराजमान होथे वो योग्यता के अनुसार होथे न कि दामखेड़ा सरिक वंश कुल मा जन्म के अनुसार। वर्तमान में अर्धनाम साहब खरसिया गद्दी मा हवय।  ये गद्दी मा विराजमान वंशगुरु निहंग होथे येमन धर्मदासी नादवंश कहे जाथे। खरसिया गद्दी से उदितमुनी नाम साहेब काशी म भव्य सतगुरु कबीर प्राकट्य  धाम के निर्माण करे हवय अउ कबीर पंथ के प्रचार छत्तीसगढ़ ले बाहिर घलो करत हवय जे हमर बर गरब के बात हवय। 

              दामाखेड़ा मा वंश परम्परा टूट गे ये मान के कई महंत अपन अपन अलग-अलग कबीर आश्रम बना लिन जेमा- पंचमदास जी ग्राम-किरवई में कबीर आश्रम के स्थापना करिन। अइसने ग्राम-नादिया (राजनाँदगाँव/दुर्ग)  मा घलो

कबीर आश्रम की स्थापना कर उत्तराधिकारी मन  प्रचार प्रसार करत हवय।

           

*छत्तीसगढ़ म बीजक अउ पारख सिद्धांत*

              

          मूलतः बीजक ही कबीर के सर्वमान्य ग्रंथ माने गे हवय जेमा निहित कबीर के वाणी (मूलतः साखी,सबद,रमैनी ) के रूप म संग्रहित हवय। कबीर के शिष्य मा अनेक संत हवय जेन 42 बंश के मान्यता ला एक सिरा से खारिज करथे। इमन बीजक के सिद्धांत ल ही मानथे अउ बीजक के प्रचार प्रसार करथे। येकर मानने वाला संत मन पारखी संत कहे जाथे। चौका आरती के परंपरा पारख सिद्धांत मा कहीं नइ हे। पारख मा चरण बन्दग़ी के मनाही हवय बंदगी दूर से ही करे जाथे। 

पारखी संत परंपरा मा अभिलाष दास जी प्रकाण्ड विद्वान होइन । लगभग 80 किताब के रचना उन करिन । महासमुंद, राजिम आदि जघा मा पारखी संत के कबीर आश्रम बने हवय जिहाँ कबीर साहित्य के अध्ययन के सुविधा हवय। 

            अभिलाष दास जी कबीर के संदेश के प्रचार प्रसार खातिर इलाहाबाद में भव्य कबीर आश्रम बनाइन जिहाँ अध्ययन अउ अध्यापन दूनो के व्यवस्था हवय। अभिलाष दास जी मन छत्तीसगढ़ के पोटियाडीह में भी कबीर आश्रम के स्थापना करिन जिहाँ केवल साध्वी महिला मन ही रहिथे अउ कबीर के उपदेश के प्रचार करथें। 


             संत असंग साहेब (खीरी, उ.प्र) घलो छत्तीसगढ़ आइन अउ ग्राम-सरखोर मा नदी किनारे कबीर आश्रम बना के आज पर्यन्त कबीर वाणी के प्रचार प्रसार करत हवँय। इँकर अनुयायी काफी संख्या मा हवय।

               *सरलग...3...*



              ( भाग-3)


 *कबीर पंथ अउ चौका आरती*       

       

       यद्यपि कबीरदास जी के गुरु रामानंद स्वामी सगुण उपासक रहिन फेर कबीरदास जी अपन गुरु ले इतर निर्गुण ब्रम्ह के उपासना म जोर दिन अउ निर्गुण पंथ के स्थापना करिन। निर्गुण भक्तिधारा के उन प्रंथम कवि रहिन। चौका आरती के संबंध म अलग अलग विद्वान मन के अलग अलग मान्यता हवय। कुछ के मतानुसार तात्कालीन समय म हिन्दू समाज मे बलि प्रथा चरम मा रहिस। 

कबीर के विचारधारा ले जब मनखे मन प्रभावित होके कबीर पंथ अपनाये लगन तब उँकर मन ले बलि प्रथा ल हटाये खातिर चौका आरती के विधान शुरु करे गिस, जेमा बलि के जगह नारियल आहुति दे गिस। 


           एक मान्यता यहू हवय कि धर्मदास के सतलोक वासी होय के उपरांत संत कबीर स्वयं धर्मदास जी के सुपुत्र मुक्तामणि नाम ल 42 वंश के आशीर्वाद दे के अउ चौका आरती करके गुरुगद्दी मा बिठाईन। लेकिन पारखी संत येकर खण्डन करथे। उँकर कहना हवय कि एक महान संत जेन निर्गुण ब्रह्न के उपासना करें के बात कहिथें उन चौका आरती के बात कइसे कहि सकथे। जो भी हो चौका आरती के परंपरा छत्तीसगढ़ मा सैकड़ो साल ले चले आवत हे अउ हजारों महंत वंशगुरु ले पंजा ले के चौका आरती अउ कबीर पंथ के प्रचार करत हवय। 


*उलटबासी अउ कबीर*


उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलटबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे। पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े पंडित मन घलो बूझ नइ पात रहिन । कबीर अउ गुरु गोरखनाथ समकालीन रहिन। गोरखनाथ के अहंकार ल कबीरदास जी टोरिन अउ अंत मा गुरु गोरखनाथ ला हार माने ल परिस। छत्तीसग़ढ़ी के वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत ल आप सबे जानत हव जेन कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय - 

        बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

        बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....

ये गीत के लोकप्रियता ये बताथे कि कबीर के सन्देश छत्तीसगढ़िया जनमानस मा कतका लोकप्रिय हवय। 


*कबीर के संबंध म मान्यता*


पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।

अन्नहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।। 


कबीर पंथ के अनुयायी मन के ये मान्यता विधि के विधान के विपरीत प्रतीत होथे। येमा कहीं न कहीं भक्ति भाव के अधिकता के कारण अतिसंयोक्ति वर्णन होय प्रतीत होथे। ठीक वइसने काशी के लहरताल मा कमलपुष्प मा कबीर साहेब के प्रकट होना भी कहीं न कहीं भक्तिभाव के अधिकता दर्शाथे। 

          

*गुरु शिष्य के सुग्घर परंपरा*


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥


कबीर कहिथे कि वो मनखे जेन गुरु के महिमा ला नइ संमझ सकय तेन अंधवा अउ मूरख दोनों हवय, काबर यदि भगवान ह रिसागे त गुरु सो जाय के जघा हवय । फेर कहूँ गुरु रिसागे तब फेर कोनो मेर जघा नइ हे। न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के कबीरपंथी समुदाय मा भगवान ले पहिली दर्जा गुरु ल दे गए हवय। छत्तीसगढ़ मा चौका आरती के उपरांत कान फूंका के कंठी माला धारण करे जाथे, संगे संग शुद्ध सात्विकता के पालन के वचन गुरु ल दे जाथे। गुरु बनाये के सुग्घर परम्परा आज भी हमर इँहा प्रचलित हवय।दुख अउ दुःख के समस्त काम गुरु के द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। 


*उपसंहार -* 

कबीर के अर्थ महान होथे। कबीर के संदेश हा दोहा,साखी,सबद,रमैनी अउ निर्गुणी भजन के रूप मा  छत्तीसगढिया जन मानस म रचे बसे हे।  छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के अनुयायी लगभग 50 लाख हवय जेमा ज्यादातर पिछड़ा,अउ शोषित वर्ग के हवय। अभी भी अभिजात्य वर्ग में कबीर के उपासक कम ही मिलथे । धर्मदास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि अउ उँकर पत्नी आमीन माता ल प्रथम कवियित्री माने गे हे। उँकर लिखे पद मन आज भी छत्तीसगढ़ मा श्रद्घा के संग गाये जाथे।  कबीर के अनुयायी मन में गजब के सहजता, सरलता अउ एक दूसर के प्रति सम्मान देखे बर मिलथे। आडम्बर अउ कर्मकांड ले कोसों दूर कबीरपंथी मन उपर ये दोहा सटीक बइठथे- 


चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।

जिसको कुछ ना चाहिए, वो ही शहंशाह।।

             

          सद्गुरु कबीर युग प्रवर्तक रहिन। हिंदी साहित्य के 1200 बछर के  इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात सब ल स्वीकारे बर परही ।

अजय अमृतांशु

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---: *छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी मन के रीति रिवाज*


*चौका आरती -* 

        छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी समाज म चौका आरती के परंपरा सैकड़ो साल से चले आवत हे। यह भी सत्य हवय कि कबीर पंथ म आये के बाद व्यक्ति निर्गुण विचारधारा के हो जाथे अउ सगुण विचारधारा के परम्परा जइसे - भागवत, कथा,  रामायण, जग जँवारा आदि दूरिहा जाथे। कहीं न कहीं येकर भरपाई चौका आरती से होथे काबर की ये पंथ म चौका आरती ल सात्विक यज्ञ के संज्ञा दे गे हवय । इही कारण से सुख/ दुख के बेरा म चौका आरती के विधान हवय। चौका आरती कराये ले घर के शुद्धि होथे अउ आस पास के वातावरण घलो सकारात्मक होथे। चौका आरती ल महंत के द्वारा ही सपन्न कराये जाथे।


*महंत* - 

वंश गुरु द्वारा जेन व्यक्ति ला चौका आरती के विधि विधान बताके पूर्णतः प्रशिक्षित करे के उपरांत ही अधिकृत करे जाथे वो व्यक्ति महंत (कड़िहार) कहलाथे। अर्थात वंशगुरु के दरबार में पूर्ण रूप से प्रशिक्षण के उपरांत चौका आरती के लिए अधिकृत करना ला  *पंजा देना* कहिथे। पंजा मिले के उपरांत व्यक्ति ला *महंत* के दर्जा मिलथे अउ चौका आरती के साथ साथ पंथ के प्रचार प्रसार के जिम्मा भी होथे। महंत के द्वारा पंजा के दुरुपयोग / कबीर पंथ विरोधी गतिविधि/ अनैतिक कार्य के शिकायत मिले म पंजा वंश गुरु द्वारा छीन लिए जाथे। हालांकि अइसन स्थिति नहीं के बराबर ही आथे। 


*देवान* - 

चौका आरती ल कबीर पंथ मा सात्विक यज्ञ माने गे हवय। महंत के सहयोगी ला *देवान* कहे जाथे। चौका पूरे के काम देवान के होथे। चौका म जो भी सामग्री लगना हवय, चौका के दौरान यजमान मन ल दिशा निर्देश दे के काम देवान के होथे। चौका के दौरान अन्य साधु संत भी सहयोग करथे। 


*नारियल भेंट करना*

चौका आरती के दौरान उपस्थित लोगन नारियल अउ पान ले के यथासंभव रुपिया पइसा के संग महंत ला भेंट करके सतगुरु से कामना करे जाथे। बाद में इही नारियल ल तोड़ के प्रसाद वितरित करे जाथे।


*कान फूँकवाना*-  

चौका आरती के समय जेन ला भी गुरु बनाना हवय वो नारियल अउ पान ले के महंत के पास जाथे। महंत द्वारा वो मनखे ला तिनका धराये जाथे।  महंत द्वारा व्यक्ति के कान मा मंत्रोच्चार के साथ वचन लिये जाथे। दोनों हाथ से तिनका टोर के गुरु बना लिए जाथे अउ महन्त द्वारा कंठी पहिरा के आशीर्वाव दे जाथे। ये पूरा प्रक्रिया ला कान फूँकवाना कहे जाथे। 


*बन्दग़ी*  -

बन्दग़ी मतलब प्रार्थना ले हवय, साहेब के संबंध सीधा सतगुरु कबीर ले हवय अर्थात जब कोनो एक दूसर ल *साहेब बन्दग़ी* कहिथे माने अभिवादन के संग सीधा सतगुरु ला सुरता करथे। जहाँ जहाँ कबीरपंथी मन समूह मिलथे साहेब बन्दग़ी के स्वर चारो डहर गूँजत रहिथे। 


*परघाना*

जब भी कोई वंश गुरु के आगमन होथे तब उनला सीधा सीधा कार्यक्रम स्थल तक नइ ला के शहर/गाँव के बाहिर ही रोक लिये जाथे । वहीं से उनला परघाट हुए लाये जाथे।  समाज के मनखे मन फूल,गुलाल अउ फटाका के संग पहिली स्वागत करथे । उपरांत सबसे आगे पुरुष वर्ग मन बाजा-गाजा,झाँझ,मृदंग के साथ आघु बढ़थे। महिला मन वंशगुरु /महंत के काफिला के ठीक आघु म आरती सजा के सोहर मंगल गात हुए सतगुरु के आराधना करथे। विशेष बात ये रहिथे कि सात्विक यज्ञ स्थल के आत तक महिला मन वंशगुरु ला पीठ नइ देखावय, अउ पाछू सरकत गुरु ल सामने देखत हुये सोहर गीत/भजन गात आथे । परघाये के प्रक्रिया कोनो कम गौरवशाली नइ रहय। ये दौरान लइका,सियान अउ युवा जबो उत्साहित नजर आथे। आजकल परघाये के बेरा महिला/युवती मन के द्वारा भारी संख्या मे रास्ता के दोनों ओर कलश ले के चले के शुरुआत घलो होगे हवय।


 *कबीर पंथ म चौका आरती के प्रकार -*


 *1.   आनंदी चौका-*

जब भी घर परिवार म खुशी के माहौल बनथे, बर,बिहाव, छठी आदि अवसर मा आनंदी चौका के विधान हवय। कभू कभू खुशी के अवसर नइ भी रहय तभो लोगन परिवार के सुख शांति बर आनंदी चौका कराथे। आंनदी चौका के लिए सोम, बुध,गुरु,शुक्र ये दिन ला उपयुक्त माने जाथे। 


*2.  चलावा चौका -*

परिवार म जब ककरो निधन हो जाथे तब दिवंगत आत्मा के शांति खातिर जेन चौका आरती होथे वोला चलावा चौका कहिथें । शनि,रवि,मंगल के दिन ल चलावा चौका के लिए उपयुक्त बताय गे हे। 


*3  सोला सूत चौका -*

ये आनंदी चौका के ही बड़े रूप आय जेला परिवार के सुख शांति के लिये करे जाथे। ये चौका मा 16 महंत बइठथे, 16 जोत के स्थापना होथे अउ 16 भजन गाये जाथे। 


*4  एकोत्तरी चौका*

आनंदी चौका के ही ये दूसरा बड़े रूप आय लेकिन एकोत्तरी चौका ल केवल वंशाचार्य ही कर सकथे। ये चौका करे के अधिकार महंत या गुरु गोसाई ल नइ हे।  चौका आरती के समय 101 महन्त बइठथे, 101 जोत के स्थापना होथे अउ 101 भजन के गायन होथे। एकोत्तरी चौका गुरुगद्दी स्थल या कहीं बड़े भारी सार्वजनिक स्थल म ही सम्पन्न होथे काबर कि येमा खर्च भी काफी आथे।  


*जन्म संस्कार* -

लइका के जन्म मा नामकरण संस्कार गुरु के द्वारा ही करे जाथे। हर परिवार/खाप के कोई न कोई गुरु अवश्य होथे जेन अइसन अवसर मा नवागन्तुक शिशु के नामकरण करथे। छठी म चौका आरती, भजन अउ ग्रंथ के आयोजन भी होथे। माई मन के द्वारा सोहर मंगल अउ ग्रंथ मण्डली के द्वारा कबीर के निर्गुणी भजन उत्साह के संग गाये जाथे। 


*विवाह संस्कार -* 

विवाह के समय कबीरपंथी मन 7 फेरा तो जरूर लेथे लेकिन फेरा के बेरा अग्निकुंड रखे  विधान नइ हे। अग्निकुंड के जघा चौका के आरती (जोत) ही होथे जेकर फेरा लिए जाथे।  महंत के द्वारा नव दम्पत्ति ल 7 फेरा करवाये जाथे। आरती ल ही अग्नि के रूप मा साक्षी माने जाथे अउ सात फेरा ले जाथे।  विवाह के समय महंत द्वारा वर -बधु के कान फूँके जाथे याने वर वधु द्वारा गुरु बनाये जाथे। सुखी  दाम्पत्य जीवन के लिए साकोचार के पाठ महंत ही करथे अउ 7 भाँवर में 7 वचन एक दूसर ल वर-वधु द्वारा दिए जाथे । ये प्रकार ले विवाह संपन्न होथे।


*मृत्यु संस्कार*-  

मृत्यु मतलब जीवन के अंतिम सत्य। कोई भी कबीरपंथी मृत्यु ले नइ डराय काबर कबीर साहब पहली से ही उन ल आगाह कर चुके हवय - 

आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । 

एक सिंहासन चढ़ि चले,एक बँधे जंजीर ॥


दिवंगत मनखे ल *सतलोकवासी* कहे जाथे। मृत्यु उपरांत कबीर पंथ मा मृत शरीर ला दफनाये के परम्परा हवय। मृतक ला देवान अउ संत समाज के द्वारा भजन गात हुए झाँझ मजीरा के साथ श्मशान घाट ले जाये जाथे जिहाँ विधि विधान के साथ दफना दिए जाथे। मृत्यु संस्कार भी महंत द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। कबीर के ये मानना रहिस कि शरीर ले आत्मा निकले के उपरांत शरीर के कोई औचित्य नइ हे। जलाव, दफ़नाव या गंगा म बहाव येकर ले कोनो फरक नइ परय। आत्मा तो तुरते दूसर देह धारण कर लेथे। 

               नहावन के अंतिम दिन महिला मन तालाब ले स्नान के बाद भजन गावत हुए घर आथे ये परम्परा केवल छत्तीसगढ़ म देखे बर मिलथे अउ केवल कबीरपंथ मा । प्यारेलाल गुप्त जी अपन किताब म ये बात के उल्लेख करत हुए लिखे हवय कि "कबीरपंथ ने एक नया संस्कार दिया है मृत्यु संस्कार।" 


*सात्विकता के गारंटी*- 

कोनो भी कबीरपंथी परिवार माने सौ प्रतिशत सात्विकता के गारंटी। कबीरपंथी परिवार म माँस मदिरा के सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित होथे। कोनो भी व्यक्ति के शिकायत मिले मा वो मनखे ल परिवार/समाज से बहिष्कृत कर दे जाथे। आचार विचार खान पान म सात्विकता के पालन करने वाला मनखे ही विशुद्ध रूप कबीरपंथी माने जाथे। ये बात अलग हवय कि ग्लोबिलजेशन अउ उपभोकतावादी संस्कृति के चलते कबीरपंथी परिवार म घलो कुछ विकृति आ गे हवय लेकिन येकर संख्या बहुत कम हवय ।


*माघी पुन्नी मेला के उत्तपत्ति कबीर पंथ ले*


कबीर पंथ में माघी पुन्नी मेला के शुरुआत 15 वीं शताब्दी म ही कुदुरमाल मा होगे रहिस। बाद म पुन्नी मेला छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सा म बगरिस।  

येकर उल्लेख भोजली गीत म घलो मिलथे- 

      जल्दी जल्दी बाढ़व भोजली 

      जाबों मेला कुदुरमाले....

कुदुरुमाल म बकायदा पुन्नी मेला भरावत रहिस जिहाँ कबीरपंथी मन सकलाय। वइसे भी कबीरपंथ मा पूर्णिमा के खासा महत्व हवय।


छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी समाज के रीति-रिवाज,परम्परा अउ संस्कृति तो विस्तृत हवय येला केवल एक प्रारम्भिक परिचय ही कहि सकथंव । 


*सादर साहेब बन्दग़ी साहेब*

🙏🙏🙏

अजय अमृतांशु,भाटापारा

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: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर*


        छत्तीसगढ़िया मन के नस नस म कबीर समाय हवय कइहँव त ये बात अतिशंयोक्ति नइ होही। जेन छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के लगभग 50 लाख अनुयायी हो उँहा कबीर के लोकप्रियता के अंदाजा आप अइसने लगा सकथव। कबीर के दोहा, साखी, सबद रमैनी, निर्गुण भजन, उलटबासी छत्तीसगढ़ म सैकड़ों बछर ले अनवरत प्रवाहित होत हवय। 

        एक डहर कबीर भजन के हजारों ऑडियो, वीडियो उपलब्ध हवय उन्हें दूसर डहर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जुग म यू ट्यूब म आप घर बइठे कबीर के अमृतवाणी के पान कर सकथव। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया जी अपन जीवनकाल में कबीर उपर बहुत काम करिन। कबीर उपर उँकर कई आडियो /वीडियो आप मन ला मिल जाही। सही मायने म उन कबीर के बहुत बड़े फालोवर रहिन येकरे कारण उँकर वाणी भी कबीर के जइसे खरा रहय। उन जब भी बात करय बिना लाग लपेट के खरी खरा कहँय। उँकर एक प्रसिद्ध गीत जेन आज भी लोगन के मुँह ले निकल जाथे  - 

      हम तोरे संगवारी कबीरा हो ...

येकर अलावा - माया तजि ना जाय.....

करम गति टारे नहीं टरे...., बीजक मत परवाना... आदि कई कबीर भजन के गायन मस्तुरिया जी करिन। हालांकि येकर मूल्यांकन आज पर्यन्त जतका होना रहिस नइ हो पाय हवय। 

           छत्तीसगढ़ के गीतकार मन कबीर के महत्ता ल न केवल स्वीकार करिन बल्कि अँगीकार भी करिन। बेरा-बेरा अलग-अलग गीतकार मन अपन-अपन हिसाब से कबीर के साखी,दोहा अउ भजन ल अपन गीत मा उतारिन। कबीर के कई कालजयी भजन मूल रूप म मिलथे त कई छत्तीसगढ़ी म अनुदित भी । अइसने एक भजन देखव- 

      रहना नहीं देश बिराना हो रहना नहीं...

      यह संसार कागज के पुड़िया 

      बून्द परे घुर जाना हे, रहना नहीं ......


ये भजन ल छत्तीसगढ़ मा आज पर्यन्त न जाने कतका गायक गाइन होही अउ आज भी गावत हे येकर गिनती संभव नइ हे।अइसन अनेकों भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हे। कभू भी मुँह से अनायास कोनो भी भजन प्रवाहित होय लगथे। 


          पण्डवानी के नाम सुनते साठ हमर आँखी के आघू म पाँचो पाण्डव के कथा चलचित्र सरिक चले लागथे । पण्डवानी मा आप पाँच पाण्डव /महाभारत के ही कथा सुने होहू फेर अब विगत कम से कम 40 बछर ले पण्डवानी शैली म कबीर के जीवन दर्शन भी गाये जावत हे। येहू ला श्रोता मन ओतके आनन्दित होके सुनथे जतका उन महाभारत के कथा ल सुनथे।  पण्डवानी शैली मा कबीर भजन के गायन म त्रिवेणी साहू काफी लोकप्रिय होइन। पहिली इंकर माँ गायन करत रहिन। 

          खंझेरी तो नंदागे फेर पहिली खंझेरी मा कबीर के निर्गुण भजन के लॉजवाब भजन मन सुने ल मिलय। आकाशवाणी से कबीर निर्गुण भजन के प्रसारण भी होवय। लोगन अपन कामकाज निपटात रहय अउ दूसर डहर भजन चलत रहय। 

          छत्तीसगढ़ लोकगायक मन कबीर के कई भजन ल ज्यों के त्यों गाइन त उँहे दूसर डहर भजन के छत्तीसगढ़ी /अपभ्रंश रूप घलो मिलथे। बावजूद ओकर लोकप्रियता म कोनो कमी नइ आइस।  

     झीनी झीनी रे झीनी बीनी चदरिया...

     झीनी रे झीनी रे....

     कि राम नाम रस भीनी चदरिया .....


कबीर के हजारों दोहा में से सैंकड़ो लोकप्रिय दोहा मन इँहा के मनखे ल मुँहजुबानी याद रहिथे अउ जेन मनखे यदि ये कहि दिस के ये दोहा ल मैं नइ सुने हँव तो वो हँसी के पात्र भी बनथे। कबीरपंथी समाज म एक अनूठी परम्परा हवय - जब भी सामूहिक पंगत होथे त खाना पोरसे के बाद भोजन पोरसने वाला ह कबीर के दू-तीन ठिन साखी पढ़थे ओकर उपरांत ही खाये के शुरुआत करे जाथे। मतलब खाना से लेके सोये तक कबीर के साखी/भजन इँहा के लोक जीवन म आज भी देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन मा रचे बसे कुछ प्रसिद्ध भजन देखव - 


   कुछ लेना ना देना मगन रहना....

   मोर हीरा गँवागे कचरा में ........

   तोर गठरी मा लागय चोर बटोहिया....

   कैसा नाता रे फुला फुला फिरे जगत में..

   कोन ठगवा नगरिया लूटल हो .....

   मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे......         

   मन लागा मेरो यार फकीरी में ....

   पानी बीच मीन पियासी संतो....

   संतो देखत जग बौराना ......


अइसन अनेक भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हवय। ये भजन ल आप कोनो भी मनखे करा पूछ लव न केवल बता दिही बल्कि व्याख्या भी कर देही। 

         कबीर के शिष्य धनी धर्मदास के पद- 

आज मोरे घर मा साहेब आइन हो.......

         अउ आमीन माता के पद - 

उठो हो सुहागिन नारी झारि डारो अँगना.....

जइसन कर्णप्रिय भजन मन इँहा के नर-नारी मन ला कंठस्थ रहिथे। कोनो भी सुअवसर मा गाये बर तियार रहिथे। 


          छत्तीसगढ़ के आम जनमानस म दोहा के लोकप्रियता के का कहना। हर अवसर मा हर प्रकार के कबीर के दोहा मनखे मन चल-फिरत बोल देथे। देवारी मा राउत मन के दोहा काय कहना । होली मा फाग गीत बेरा कबीर के दोहा कहे बाते कुछ अलग रहिथे। कबीर के दोहा हा फाग गीत म चार चाँद लगाए के काम करथे।


         रामायण के मंच मा भी कबीर भजन प्रस्तुत करके बड़े बड़े भजनहा मन मनखे मन के दिल जीत लेथे,ये कबीर के लोकप्रियता के ही परिचायक हवय। 

           वरिष्ठ गीतकार सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत जेला लइका सियान सबो जानत हवय ये कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय - 

   बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

   बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....


*नाचा म कबीर के संदेश*

नाचा छत्तीसगढ़ के पहिचान आय अउ नाचा म कबीर के संदेश नाचा म प्राण फूँके काम करथे।जोक्कड़ मन के द्वारा एक दूसर से नोक झोंक करत हुए कबीर के दोहा/साखी के माध्यम ले संदेश देना नाचा के प्रमुख प्रस्तुत्ति होथे। जोक्कड़ मन धारदार व्यंग्य के साथ कबीर के दोहा भी कहिथे। कबीर के उलटबासी ल छत्तीसगढ़ी मा मजेदार अंदाज म प्रश्न करथे अउ जब दूसरा जोक्कड़ वोकर उत्तर नइ जानय तब मजेदार अंदाज मा सही उत्तर बताथे। ये दौरान दर्शक मन आनन्दित होके देखथे अउ कबीर के कहे बात सीधा उँकर अंतस मा उतरथे।  


माटी कहे मोला धीरे धीरे रौंदबे जी कुम्हरा....

एक दिन अवसर बीतही रे कुम्हरा...

जब मैं रौंदहँव तोला ... 

अरे बिरना बिरना रे चोला...


साखी (दोहा) की परंपरा नाचा में खड़े साज से प्रारंभ होकर आज भी बैठक साज में विद्यमान है। ऐसा भी नहीं है कि साखी की यह परंपरा नाचा में ही है - डॉ. पी.सी.लाल यादव। 


सादा वस्त्र, सात्विक विचार, सात्विक भोजन अउ मृत्यु उपरांत कफ़न भी सादा। ये कबीर के ही देन आय जेन छत्तीसगढ़ मा सदियों से चले आत हे। 

कुल मिला के कबीर के रचे साहित्य के धारा छत्तीसग़ढ़ के लोक जीवन मा अनेक रूप मा बोहावत हे। कहूँ उपदेश या प्रवचन के रूप मा त कोनो मेर भजन/साखी/दोहा के रूप म। कबीर के साहित्य छत्तीसग़ढ़ मा आसानी से उपलब्ध हवय।दामाखेड़ा के साथ साथ अनेक कबीर आश्रम में कबीर साहित्य के विशाल संग्रह मिल जथे। समय समय म अनेक विद्वान ये पावन धरा मा कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए आवत रहिथे जिंकर वाणी के श्रवणपान यहाँ के लोगन करत रहिथे। सीधा सादा जीवन छत्तीसगढ़िया मनखे के पहिचान बन गे हे। 


साहेब बन्दग़ी साहेब🙏 

*अजय अमृतांशु*,भाटापारा

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: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म संत कबीर*

        

*लोक व्यवहार मा साहेब शब्द के व्यापकता*


           छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में "साहेब" अउ "साहेब बन्दग़ी" ये दूनो शब्द वोतके व्यापक हवय जतका  "जय राम", सीता-राम या राम-राम हवँय। कबीर पंथी मन जब भी एक दूसर ले मुलाकात करही तब अभिवादन म सबले पहिली "साहेब बंदगी" कहिथे । जवाब में दूसर डहर ले भी साहेब बन्दग़ी मिलही। येकर उपरांत ही सुख दुख, अन्य हाल चाल पूछे जाथे। आम बोलचाल में मनखे मन एक दूसर के नाम भी नइ लेवय बल्कि नाम के जघा "साहेब" शब्द के ही प्रयोग होथे। उदाहरणार्थ - 

   कहाँ जाथव साहेब ?  घर जाथंव साहेब।

   सब बने बने साहेब ? 

   उत्तर-हव साहेब! सब साहेब के कृपा हवय। 

   हमर डहर आहू त दरस देहू साहेब..।


चौका आरती या बड़े बड़े सत्संग मा जब हजारों के संख्या मा साधु संत,महात्मा अउ आम मनखे मन सकलाथे तब चारो डहर साहेब अउ साहेब बन्दग़ी कान म गूँजत रहिथे। स्वेत वस्त्रधारी साधु संत के विहंगम दृश्य देखते ही बनथे। इँहा साधु संत मन एक दूसर ला "साहेब" शब्द से संबोधित करथेच इंकर अलावा आम आदमी अउ सत्संग के वालेंटियर मन घलो एक दूसर ल साहेब शब्द से ही संबोधित करथे। कभू कोनो ल पुकारना हवय तभो वोकर नाम नइ लेवय। जैसे - 

     आगे चलिये  साहेब... आगे चलिये

     आप मन ला का चाही साहेब ?

     ये मेर भीड़ मत बढ़ाव साहेब?

     साहेब के दर्शन अभी नइ हो सकय साहेब आदि...


"साहेब" शब्द म विनम्रता के भाव के संग सब कुछ समाय हे। साहेब कहे ले सीधा संबंध सद्गुरु कबीर ले होथे। जइसे "राम" ल आज तक कोनो परिभाषित नइ कर पाइन वइसने "साहेब" ल घलो आज पर्यंत कोनो परिभाषित नइ कर पाय हे। कहे जाथे न- हरि अनन्त हरि कथा अनंता।


*प्रसाद के अर्थ*


कबीरपंथ में प्रसाद के दू अर्थ होथे -

1 -प्रसाद माने चौका आरती के बाद, या सत्संग के बाद महंत द्वारा जो बाँटे जाथे। ये आटा से बनाये जाथे जेमा चौका के दौरान चढ़ाए गे नारियल, पान, काजू किसमिश आदि ल घलो मिक्स करके बनाये जाथे येला "प्रसाद" कहिथे। 


 2. - सत्संग मा पहुँचे जबो मनखे के लिए शुद्ध सात्विक भोजन के व्यवस्था रहिथे जेला प्रसाद कहे जाथे। कोनो ला भी भोजन कर लव कहिके नइ कहय। चलव प्रसाद पा लव कहिथे। कबीर पंथ से इतर इही ला प्रसादी कहे जाथे । 


*चरन पखारना*

 

छत्तीसगढ़ म ये परंपरा सदियों से चले आवत हे।घर मा जब भी कोनो साधु,संत, महंत आथे तब सबले पहिली चरण धोये जाथे। तदुपरांत साधु/ संत के अंगूठा ल धोये जाथे अउ धुले पानी ल थारी मा एकत्रित करे जाथे। ये एकत्रित जल चरनामृत (चरण से निकले अमृत)  कहलाथे जेला घर परिवार के मन थोड़ा थोड़ा पीथे । 


*पंगत* 

कबीरपंथ मा प्रसादी में रूप मा सामूहिक भोजन कराये जाथे जेला पंगत कहिथन। पंगत में भोजन जमीन म कतारबद्ध बइठार के ही खिलाये जाथे। पंगत मा खाना मनखे मन अपन सौभाग्य समझथे। 


*दैनिक पूजा पाठ में संत कबीर*


छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन अपन घर मा अनुराग सागर अउ मूल संध्या पाठ जरूर रखथे। धनी धर्मदास द्वारा संत कबीर से जीवन दर्शन के संबंध मे प्रश्न पूछे गिस, कबीर साहब द्वारा धर्मदास जी के प्रश्न के उत्तर दे गिस। धर्मदास के जबो शंका के समाधान संत कबीर के द्वारा करे गे हवय, ये समस्त बात पद्य रूप मा अनुराग सागर म संकलित हवय। धर्मदास ला पूरा जीवन दर्शन, आत्मा परमात्मा के बारे म विस्तृत उपदेश कबीर साहब द्वारा दे गे हवय ये समस्त बात अनुराग सागर म हवय। कबीरपंथ के धार्मिक आयोजन जइसे प्रवचन /ग्रन्थ पाठ मा अनुराग सागर म निहित संदेश ल बताये जाथे। लेकिन पारख सिद्धान्त वाले अनुयायी मन बीजक के पाठ करथे अउ प्रवचनकर्ता मन भी बीजक म निहित बात ल ही बताथे। 


*मूल संध्या पाठ*

पंथ मा सद्गुरु कबीर के आराधना हेतु प्रतिदिन संध्या पूजा पाठ होथे। पूजा पाठ हेतु "मूल संध्या पाठ" पुस्तक के पाठ करे जाथे।  मूल संध्या पाठ में अलग अलग छन्द में छन्दबद्ध पद हवय। प्रतिदिन संझा के आरती जलाये के उपरांत संध्या पाठ के साथ ही संत कबीर के आरती पूजा होथे। 


*साधु संत के सत्कार*


साईं इतना दीजिए,जामे कुटुम्ब समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।


कबीर के ये साखी छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सटीक बइठथे। इँहा के मनखे जतका मिलगे वतका मा खुश रहिथे,जादा के चाह बिल्कुल नइ करय। छत्तीसगढ़ म साधु मन के सत्कार के अनुपम उदाहरण मिलथे। ककरो घर कहूँ 12 बजे रात के भी कोनो साधु आगे तभो वोकर स्वागत सत्कार करे जाथी । यथाशक्ति भोजन कराके विश्रांम के व्यवस्था करथे। साधु जतका दिन रइही खुशी-खुशी वोकर सेवा-सत्कार करथें अउ जाय के बेरा यथाशक्ति रुपिया पइसा दे के बिदागरी करथे। संगे संग निवेदन भी करथे कि अइसने दर्शन देवत रहू साहेब। 


*सद्गुरु कबीर अउ गुरु गोरखनाथ प्रसंग*


छत्तीसगढ़ म संत कबीर ले जुड़े हुये कई क्षेपक कथा मिलथे जेमा एक कथा गुरु गोरखनाथ के  मिलथे। गुरु गोरखनानाथ, नाथ परंपरा के गुरु मच्छेंद्र नाथ के शिष्य रहिन। गुरु गोरखनाथ महान सिद्ध योगी रहिन। येकर नाम से गोरखपुर शहर हवय। गोरखनाथ एक बार संत कबीर से शास्त्रार्थ करे खातिर गिन। संत कबीर से शास्त्रार्थ मन उन पराजित होगे। अब चूँकि उन हठी भी रहिन, तब पराजित होय के उपरांत गोरखनाथ जी कबीर ले कहिन कि मैं  तालाब के पानी म जा के छिपत हँव मोला खोज के बताव। गोरखनाथ मेचका के रूप धारण करके हजारों मेचका के बीच जा के बइठगे। फेर संत कबीर अन्तर्यामी रहिन गोरखनाथ जी ल आसानी ले खोज लिन। अब बारी संत कबीर के रहिस, कबीर साहब पानी के रुप धारण करके पानी म जा के मिलगे। गुरु गोरखनाथ लाख उपाय करें के बाद भी कबीर ल नइ खोज पाइन अउ अंत मा संत कबीर से हार मान लिन। 


छत्तीसगढ़ म संत कबीर के साखी, संदेश के रुप मा जघा जघा बगरे हवय। सबके उल्लेख करना तो संभव नइ हे फेर एक साखी जो मोला अंदर तक झकझोर देथे वो ये हवय - 


तीन लोक नौ खंड में, गुरु से बड़ा न कोय्।

करता जो ना करि सकै, गुरु करे सो होय।।


भावार्थ:-  तीनों लोक अउ नौ ग्रह मा  गुरू ले बड़का कोनो नइ हे। करता (विधाता ) भी अपन विधान म बँधे होय के कारण कर्मफल ला बदल नइ सकय लेकिन सद्गुरु प्रारब्ध के कर्मफल ल घलो सुकृति में बदल देते हैं।


साहेब बन्दग़ी साहेब🙏

*अजय अमृतांशु* भाटापारा

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