*छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी तुलसीदास*
पोखन लाल जायसवाल
गोस्वामी तुलसीदास जी अउ रामचरित मानस ल एक-दूसर के पर्याय आय कहे जा सकथे, काबर कि तुलसीदास जी के नाँव लेते जन-जन रामचरित मानस ग्रंथ ल सुरता करथे। उँकर अउ कृति मन ल अइसन ढंग ले स्वीकृति नइ मिले हे। भारतीय जनमानस म रामचरित मानस ल जउन ख्याति मिले हे, वो तुलसीदास जी ल अमर कर दे हे। छत्तीसगढ़ भारत के एक ठन अंग आय, त ए बात छत्तीसगढ़ म घलव लागू होथे। छत्तीसगढ़ म शिक्षा के स्तर तब बहुतेच कम रहे हे। संगेसंग इहाँ के मनखे के आर्थिक अउ सामाजिक स्तर घलो बहुत कमजोर रहे हे। इही कारण रिहिस कि इहाँ के लोगन पढ़ई म पिछुवाय रहे हे। पेट के आगी बुझावय कि अक्षर ज्ञान ले जिनगी म अंजोर लावय, ए दुविधा रहिस। पेट के नाँव जग जीता, बिहाने भरे संझा रीता। जिनगी बर पेट के जुगाड़ पहिली जरूरत आय, तव पाछू ज्ञान(शिक्षा)। ज्ञान के सुरूज जंगल-झाड़ी अउ डोंगरी-पहाड़ म अपन अंजोर नइ पहुँचा पाइस। अबूझमाड़ के आड़ म सामाजिक बेवस्था के चलत चतुरा मन ज्ञान के सुरूज ल पोटार के रख लिन। ज्ञान के सुरूज धीरे बाँधे चतुरा मन के कब्जा ले छूटत गिस।
थके-हारे अउ काम-बुता ले लहुटे मनखे दुख-पीरा बाँटे गुड़ी चउँक अउ चौपाल म जुरियाय। बड़े-बुजुर्ग बइठाँगुर मन घलव जुरियाय गप्प मारँय। बुधियार मनखे मन रोजेच रामचरित मानस के पाठ इही ठउर म करँय। ए पहिली रोज के किस्सा रहे हे। इही गुड़ी चउँक ले रामचरित मानस के कतको दोहा-चौपाई समाज म वाचिक परंपरा ले आगू बढ़त गिस। रामचरित मानस के प्रभाव हरे, कि समाज म चरित्रवान मनखे के कोनो कमी नइ होइस। समाज सेवी, मानवतावादी अउ नैतिकता ले भरे मनखे समाज ल सरलग नवा दिशा दिन। तुलसीदास जी के दोहा चौपाई रामचरित मानस ले निकल छत्तीसगढ़ के जन-जन तक पहुँचे लगिस।
...इहाँ के मनखे मन के आदर्श बनिन तुलसीदास जी अउ रामचरित मानस म लिखे उँखर विचार। तभे तो इहाँ के मेहनतकश मनखे दिन भर लहू-पछीना म नहात्ते रहय तभो बड़ संतोषी होइस।
*करम प्रधान विश्व करि राखा।*
*जो जस करई सो फलु चाखा।*
मनखे मन ले साफ रहिके सोचय जे "जइसन करही, तइसन भरही।" कभू काकरो जिनीस के न लालच करे जानिन अउ न छीने के उदीम करिन।
तुलसीदास जी के ए आदर्श वचन ल जीयत अपन कर्म म लीन रहिथे, अउ निष्ठा ले पूरा काम करथे। निश्चिंत रहिथे। कहिथे...
*सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए।*
*जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए।*
इही शरणागत भाव इहाँ के जनमानस ल भगवत परेम अउ भक्ति भाव ले सराबोर कर दिस। राम के ममा घर होय ले छत्तीसगढ़ राम ल अइसे अपनाइस कि भाँचा के पाँव परना इहाँ के रिवाज बनगे, परम्परा होगे। अउ राम के भक्ति म गोता लगइया तुलसीदास जी हाथों हाथ उठा लिन। ए सिरीफ राम के भक्ति नइ, उँकर रचना म मानवता, दर्शन, समता, सामाजिक समभाव के सुग्घर समन्वय के प्रभाव आय।
मोर परोसी एक झन सियान रहिन जउन स्कूल के मुख देखे नइ रिहिस, उन ल घलव कतको दोहा अउ चौपाई मुँअखरा याद रिहिस हे। पारा भर के सियान-सियानिन मन के कहे म किस्सा कहिनी सुनावय। स्कूल ले आके कभू-कभू किस्सा-कहिनी महूँ सुनव। उन कहय बेटा! सत्संग करे अउ मन लगाय ले सीख पाय हँव। उँखर दूघरा गाँव म रोज रामचरित मानस के पाठ होवय, जिहाँ हुँकारू देवत रोज सुनय। रामचरित मानस के पाठ सुन-सुन के वोहर गुनी बनगे रिहिस। कहे के मतलब हे तुलसीदास जी के प्रभाव म अप्पढ़ घलव बहुत कुछ सीख लगगे। समाज ल एक जुट करे म यहू ल तुलसीदास जी के योगदान कहे जा सकत हे। दू चार झन अउ सियान रहिन हे जे मन अटक अटक के पढ़े ल जानय, फेर गोठ बात म चुन के दोहा चौपाई ले लोगन ल सीख देवय। परोसी गाँव सिसदेवरी म आजो रोज संझा बेरा आठ दस झन मन रामचरितमानस के सामूहिक पाठ करथे। टीका कहिथे।
हम छत्तीसगढ़िया जानथन कि हमर प्रदेश म कई किसम ले रामायण(रामचरित मानस के पाठ)करे जाथे। नवधा रामायण, एक दिवसीय, तीन दिवसीय अखंड रामायण, छट्ठी छेवारी अउ सावनाही रामायण के आयोजन सरलग होते रहिथे। ए आयोजन के पाछू तुलसीदास जी के रामचरित मानस के भाषा के सरल सहज अउ प्रवाहमय होना ए। जउन जिनगी म आनंद के संचार करथे। एक अलौकिक सुख के अनभो कराथे।
लौकिक सुख के प्राप्ति म घलव एला नजरअंदाज नइ करे जा सकय। आपसी संबंध ल सजोर करे अउ परेम भाव के संग सुख शांति के ले रहे बर दोहा सुने जा सकथे-
*तुलसी मीठे वचन ते,सुख उपजत चहुंओर।*
*बसीकरण यह मंत्र है, परिहरु बचन कठोर।*
अपन गुरतुर वचन ले कोनो भी मनखे ल अपन हितवा बनाय जा सकथे, अपन वश म करे जा सकथे।
छत्तीसगढ़ जिहाँ समिलहा(संयुक्त) परिवार जादा देखे म मिलत रहे हे, उहाँ परिवार ल सँभाले बर प्रेरणा तुलसीदास जी के ए दोहा ले मिलथे।
*मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान सब एक।*
*पालय पोषय सकल अँग, तुलसी सहित विवेक।*
हरेक छत्तीसगढ़िया के मन अभिमान बर कोनो जगहा नइ देखे मिलय। अइसे लगथे कि छत्तीसगढ़िया के हिरदे म सबो बर दया-मया के अथाह सागर हे, ए सागर तुलसीदास जी के विचार रूपी जल ले भरे हे।
*दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।*
*तुलसी दया न छोड़िए, जब तक घट में प्राण।।*
आजकल गाँव-गाँव म प्रवेश द्वार बनाय जाथे, ए स्वागत द्वार म तुलसी जी के प्रभाव सहज ढंग ले देखे ल मिलथे।
*प्रविसि नगर कीजै सब काजा।*
*हृदय राँखि कोसलपुर राजा।।*
होली तिहार म फगुआरा मन के फाग गीत राम जी ल सुमिरन करत तुलसीदास जी ल घलो हर बछर अपन हिरदे म धारण करथे।
*चित्रकूट के घाट में, भइ संतन के भीर।*
*तुलसी दास चंदन घिसे, तिलक लेत रघुवीर।।
ए तरा कहे जा सकथे कि तुलसीदास जी छत्तीसगढ़ के जन जन के हिरदे म भगवान श्री राम जी के अलख जगा अपन बर घलव जगा बना डरे हे।
पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार (छग)
बहुत सुन्दर
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