Friday 7 May 2021

दू मिनट(व्यंग्य)-चोवराम वर्मा"बादल"

 दू मिनट(व्यंग्य)-चोवराम वर्मा"बादल"

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ये कालजयी दू शब्द 'दू मिनट' के महिमा अगम अपार हे। ये ह महाकथा,महाकाव्य या फेर महानाटक ले कोनो मामला म कमसल नइये। दुनियाभर के कोनो भाषा के कोनो भाषी अइसे नइ होही जेन अपन भाषा में एकर पाठ नइ करत होही।

 खाली दिमाग शैतान के कहे गे हे त भरे दिमाग काकर होवत होही? सोंचे म बस दूये मिनट म उत्तर मिलगे---आदमी के।

   एक दिन हमर दिमाग सावन महिना के ढोड़गा कस लबालब छलकत भरे रहिस त हम सोंचे ल धरलेन। ये दू मिनट शब्द के पहिली बार कोन ईजाद करे होही? बेद, पुराण, शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान सबला टमड़ डरेन फेर गम मिलबे नइ करिस।एखर उत्तर तो वोकरो ले कठिन होगे के--अंडा पहिली अइस होही के मुरगी?

     कोनो भी पहिली अइस होही।माथा पिरवाये से का मतलब?आमा खाये से मतलब हे।पेंड गिने के का काम? जेन भी ये 'दू मिनट' शब्द ल खोजिस होही वो अरस्तु, सुकरात जइसे दार्शनिक अइ न्यूटन, आइंस्टीन जइसे महान वैज्ञानिक,सूरदास, गोस्वामी तुलसीदास ,सदगुरु कबीर दास जइसे महाकवि रहिस होही।

  " हरि अनंत हरि कथा अनंता" कहे जाथे ओइसने 'दू मिनट' के कथा तको अनंत हे। काला गँठियाबे, काला छोड़बे। एक दिन ट्रेन चढ़के हमला कहूँ जाना रहिसे।लकर-धकर स्टेशन पहुँचगेंव।थोकुन पाछू माइक म नोनी के मीठ अवाज सुनई दिस---यात्री मन ध्यान दव। फलाना कोती ले ढेकाना कोती जवइया सवारी गाड़ी दू नम्बर प्लेटफार्म म दू मिनट म अवइया हे। आप मन के यात्रा सफल होवय।

  हम दू नम्बर के प्लेटफॉर्म म पहुँचगेन। दस मिनट होगे, ट्रेन आबे नइ करिस तहाँ ले अउ मनखे मन सहीं ,जेती ले ट्रेन आतिच तेती ल निहर- निहर के निहारे ल धरलेन। कनिहा अउ आँखी दूनो पिरागे फेर वो दिखबेच नइ करिस।इही समे पाँचवी पढ़त मोबाइल एक्सपर्ट नाती के बताये ज्ञान सुरता आगे। मोबाइल ल निकाल के 'वेयर इज माय ट्रेन ' ल चपकबे करेंव। पता चलिस ट्रेन ह आउटर म अँड़ियाये खड़े हे। थोकुन देरी म ,माइक म उही नोनी के अवाज दुख के चासनी म बूड़े सुनई दिस--यात्री मन कृपया ध्यान दव। दू नम्बर म अवइया गाड़ी के इंजन फेल होगे हे। आउटर म खड़े हे --दू घंटा लाग जही। हम ये सोंच के मन ल बोध लेन के-नवा गढ़े इंडिया म बड़े-बड़े चीज फेल हे त ये ट्रेन के इंजन कोन खेत के मूली ये? तहाँ ले चुपचाप कुंडली मारके अगोरत बइठगेन।

    आज ले पँदरही पहिली के घटना ये। हमला अर्जेंट काम ले रायपुर जाना राहय।कोरोना के कहर के कारण हमर छोटकुन स्टेशन म ,जिहाँ अब एके ठन गाड़ी रुकथे,हम वोकर आये के टाइम ले आधा घंटा पहिली स्टेशन पहुँचगे रहेन।फेर टिकटे खिड़की खुलबे नइ करिस। पूछे म पता चलिस--वो ट्रेन रद्द होगे हे। स्टेशन मास्टर कहिस--अब दू दिन बाद वो ट्रेन आही।खैर हम दू दिन बाद स्टेशन पहुँचेन त उहाँ मरे रोवइया मनखे नइ राहय। हम सोंचे ल धरलेन-कोनो ल इहाँ कोरोना सपड़ा लिस होही अउ स्टेशन ल कंटेनमेंट जोन बना दे होहीं। टिकट खिड़की ल झाँक परेंव त एक झन बाबू होम आइसोलेशन म बइठे सहीं दिखिस। हम पूछेन --बाबू गाड़ी कतका बेर आही? वो चश्मा ल उतार के गुर्री-गुर्री देखत कहिस --  अब कहाँ से आएगी।वो दो मिनट पहले चली गई है।

हम चुरमुरावत घर आगेन।

    काला गोठियाबे----। एक दिन हम कसके भूँखागे राहन त अपन बाई ल कहेन-- जल्दी भात दे वो नोनी के दाई। वो ह जँजियावत कहिस--भात ल पसाये हँव--'दू मिनट 'तको अगोर नइ सकच--कतेक कलकलाये हस ते?अब हम कहूँ कहि देतेन के तैं ह अपन मइके जाये के बेरा कइसे 'दू मिनट' के लेट ल नइ सहच त महभारत हो जतिच--तेकर सेती चुप रहिगेन। वो ह बताये म थोड़े समझतिस के हमर पेट म भुर्री बरत हे ।

   कतेक ल बताबे कई ठन किस्सा हे। हमर बबा ह एक दिन परछी म बइठे रद्दा म अपन चश्मा ल मढ़ा दे राहय। हम नाहकत रहेन त वो खुँदाके कुचकुचागे।बबा भड़क के कहिस--अरे मूल नछत्तर के। आँखी नइ दिखय का ?तैं कहूँ 'दू मिनट' पहिली पैदा होये रहिते त शुभ नछत्तर म आये रहिते। हम कहेन --बबा तैं जानत रहे त 'दू मिनट' पहिली आपरेशन करवाके नइ निकलवा दे रहितेच। वो चुप होगे।

 एक ठन अउ सुरता आगे।पाछू महिना एक ठन आफिस म नाम सुधारे के कागज म साहेब के दस्खत करवाये बर हम गेन त उहाँ माई लोगिन साहब बइठे राहय। वोकर टेबल म कागज ल मढ़ा के --'साहेब जी --अतके बस बोले पाय रहेन ,वो हमला बिन देखे कहि दिस- चलो जाओ दो मिनट बाद में आना। देख नहीं रहे हो बात कर रही हूँ। पता नहीं कैसे-कैसे लोग चले आते हैं, बिल्कुल भी सेंस नहीं है।

   वो ह मोबाइल म गोठियावत राहय। हम समझगेन का सीन हे अउ का सेंस हे तेला।बाहिर निकलेंव त चार-पाँच झन अउ बइठे राहयँ। पूछ परेंव--तुँहर काम होगे का भाई हो? वो मन बोलिस-कहाँ काम होही।साहब देवी ह तो 'दू मिनट-दू मिनट ' काहत दू घंटा ले मोबाइल ल कान म दँताये हे। अब तो लंच के बेरा होवत हे। हम घूमे ल चल देन।

  एक पइत का होइस--हमर फूलददा परिवार  के बड़े साहब जेन दू -तीन पइत सस्पेंड होये रहिसे वोकर इंतकाल होगे। हम वोकर दशगात्र म सँघरेन त उहाँ खमाखम मनखे सकलाय राहयँ। मंत्री जी घलो आय राहयँ।श्रद्धांजलि सभा के आयोजन होइस। कई झन पारी-पारी सुमन अर्पित करके भाव सुमन तको अर्पित करिन। अब भला सुमन के बाद भाव सुमन अर्पण के का जरूरत रहिसे?खैर होथे। मंत्री जी ह बड़ाई करत कहिस--मिस्टर ठाकुर साहब बहुत ही कर्मठ, ईमानदार अउ मिलनसार आदमी रहिस हे। भगवान वोकर आत्मा ल शांति दय। हम मन में जोड़-तोड़ करके समझगेन। मंत्री जी ल साहब ले कसके खुरचन पानी मिलत रहिस होही त मिलनसार कइसे नइ कइही। 

      एकाध घंटा भावांजलि के बाद पंडित जी ह 'दू मिनट' मौन श्रद्धांजलि के घोषणा करिस। हम  चुपचाप खड़ा होके आँखी मूँद लेन। दू मिनट बुलकगे। शायद पंडित जी भुलागे। पाँच मिनट पाछू ओम शांति शांति होइस। ये बीच म कई झन बइठके मोबाइल म गोठियाये ल धरले राहयँ।

    एक ठन अउ श्रद्धांजलि सभा म शामिल होये के सौभाग्य मिले रहिस। नवयुवक आचार्य ह शोक सभा के संचालन करत रहिस। वो ह 'दू मिनट' मौन श्रद्धांजलि के घोषणा करिस फेर एके मिनट म ओम शांति कर दिस। ये बीच म कई झन खड़ेच नइ हो पाये रहिन। फेर जेन भी होइस अच्छा होइस। 'शुभस्य शीघ्रम ' कहे गे हे। हमला तो बड़ निक लागिस।फेर कतकोन गोठियावत रहिन--- ये नवयुवक मन में जोश रहिथे फेर होश नइ राहय। अरे 'दू मिनट' ल तो पूरा होवन दे रहितिस।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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