Monday 3 May 2021

छत्तीसगढ़ अउ तुलसीदास*

 *छत्तीसगढ़ अउ तुलसीदास*

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भारतीय साहित्य म गोस्वामी तुलसी दास जी ह समाज अउ संस्कृति ल एक सूँत म पिरोवत महापुरुष के रूप म हवे।आज कई बछर बाद उंकर लिखे ग्रंथ मन मनखे के अन्तस ल साव चेत करत जिनगी के रद्दा देखावत हवे।

      गोस्वामी तुलसीदास के रचनाकाल दु संस्कृति  बीच उपजे मन मुटाव अउ समाज म असन्तोष ,ढोंग, अउ जुलुम के बीच के हवय। तभे तो तुलसी कवितावली म लिखथे...

    खेती न किसान को,भिखारी को न भीख बलि,

बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी।

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    दारिद-दसानन दबाई दूनी,दीनबन्धु!

दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।

      समाज म आये अइसन विपत के बेरा म तुलसीदास जी ह  अपन रचना म संस्कृत के जगा अवध के अवधी  बोली म करिन ।वो समाज के दीन-हीन ,छोटे-बड़े के ल राम के लीला ले जिनगी के आने -आने रूप के ,नता-गोत्ता,राज-धरम के दरस कराना चाहत रिहिस।

  अवध (उत्तर कोशल)ले छत्तीसगढ़ (दक्षिण कौशल)के जुड़ाव सदा दिन ले  राज-धरम,बेटी-रोटी, भाखा-बोली अउ संस्कृति के हवय।एकरे सीधा प्रभाव गोस्वामी जी के साहित्य म पड़े हवय।अवधी छत्तीसगढ़ी असन हिंदी के बोली होय के कारण तुलसी के साहित्य म कतको शब्द मन छत्तीसगढ़ी के तीर हवे।

     तुलसी के आराध्य प्रभु राम छत्तीसगढ़ के भांचा आय।एकर छाप हमर संस्कृति म आज घला दिखथे।हमन भांचा ल आज पांव छूके आदर देथन।विद्वान मनले सुने बात आय की रामबनवास के कई बछर हमर इहि माटी म बीते हवय सरगुजा, सबरी आश्रम,श्रृंगी,राजिम,सिहावा,कांकेर,नारायण पुर,दंतेवाड़ा म एकर कतकों सउहत प्रमाण हवय।सप्तऋषि के तप भूमि,श्रृंगी के डेरा, सबरी के नवधा भक्ति के सन्देश इहि माटी म मिले हवय। राम के मर्यादा रूप जात पात के भेद के दुरिहा ,निषाद,भीलनी शबरी के जूठा बोइर खाना असन कतको उदाहरण ह इंहा के समाज उत्थान बर सन्त परमपरा ल रद्दा देखाथे।राम जब शबरी तीर जाथे तब शबरी के ये भाव-

  "केहि विधि अस्तुति करौ तुम्हारी।

अधम जात मैं जड़मति भारी।

     तब राम के उत्तर...

"कह रघुपति सुनु भामिनी बाता।मानऊ एक भगत कर नाता।।

जाती पाती कुल धर्म बड़ाई।

धन बल परिजन गुण चतुराई।।

भगत हीन नर सोहइ कैसा बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।

    रामायण काल के ही हमर छत्तीसगढ़ म गुरु परम्परा के वर्णन मिलथे  विश्रवा, मतंग,अत्रि,वाल्मीकि, श्रृंग,लोमश ,कंक असन कतको मुनि मन के इंहा बसेरा रहिस।राम के दुनो बेटा मन के जन्म इहेंच माने जाथे।ये सब बात ह हमर सामाजिक रचना म रच बस गए हवे। रामनवमीं, दशरहा,देवारी म हनुमान जयंती म राम अउ रमायन के पात्र मन पूजाथे।बस्तर दशहरा,रामलीला,चौमास म अखण्ड रमायन पाठ, रामधुनी,रमायन सम्मेलन,अउ छट्ठी बरही,नवा काम कारज म रमायन पाठ करत गांव गांव म रमायन पार्टी में तुलसी के सन्देश ल बगरावत हवे।

     भाखा बोली म घला राम के रूप समागे हवे  हमर दिन राम राम ले चालू होथे ।ककरो सँग मिले भेंट म राम राम के जोहार, त जिनगी के आखिर म राम नाम सत्य हे...।

   हमर जिनगी म हाना भाँजरा के रूप म घला तुलसी के राम के रूप ह समा गए हवे जइसे-

चार बेटा राम के ,कौड़ी न काम के..

लेगही तेन ल बचाहि कोंन रामअउ 

बचाहि तेल लेगही कोंन राम..

उप्पर म राम -राम तरी म कसाई..

राम बिन दुख कोन हरे,बरखा बिन सागर कोन भरे..

जिहा राम रमायन,तिहा कुकुर कटान..

    इंहा जिनगी म तुलसी दास जी के सन्देश मन सामाजिक जीवन ल मजबूत करथे तभे तो इंहा के घर -घर म रामायण पूजाथे अउ गुनी मन सांझे बिहाने चौपाई पढ़थे।एकरे प्रभाव आय के इहा दाऊद खान असन मुस्लिम मन घला रमायन के सन्देश जनता के बीच देथय।अउ छत्तीसगढ़ के मधुर कंठ जनाब मीर अली मीर जी ह रमई पाठ के सुंदरता के बखान करथे।

    गांव-गांव रमायन मंडली रमायन पढे भर के काम नई करय फेर महिला मंडल, समाज हित के काम म घला सहयोगी बनथे।गाँव- गाँव म राम कोठी ले जरूरत म धान, रुपया के मदद मिल जाथे।

      आज घला हमर छत्तीसगढ़ी समाज मे तुलसी के साहित्य के बड़का प्रभाव हे।  तुलसी दास जी सबल नारी के पक्षधर आय।

नारी बर पराधीन सपनेहु सुख नाही संसार म तुलसी ह लिखे हवय। 

    तुलसी के सन्देश आज घला जन मानस के बीच हवय ।।       आखिर म आज के समय म होवत अनाचार के बीच दुर्ग न्यायालय म अनाचार के अपराधी ल सजा सुनावत बेरा सत्र जज  के डहर ले फैसला म लिखे रमायन के चौपाई


‘अनुज वधु भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।। इन्हहि कृदृष्टि विलोकई जोई। ताहि बधे कछु पाप न होई।’  

  न्यायाधीश ह चौपाई के अर्थ ल घला समझाय हे। ओमन बताइस कि ए छंद रामचरित मानस के किष्किंधा कांड मेंं बाली वध के बेरा के आय। एकर अर्थ आय छोटे भाई के गोसाई, बहन, बहू अउ बेटी ये चारों समान आय।एकर  उपर बुरी नजर रखइया वाले मनके संहार ह पाप नइहे ।

               🙏

        द्रोणकुमार सार्वा

        मोखा(गुंडरदेही)

             बालोद

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