Monday 3 May 2021

व्यंग्य(महाकुंभ) - हरिशंकर देवांगन

 व्यंग्य(महाकुंभ) - हरिशंकर देवांगन


लोकतंत्र के घाट में है नेतन कौ भीड़ ।

अनुयायी चंदन मलय मुंहुं ताके रघुबीर । 


                    राम राम के बेरा म सजनी भऊजी ला मोटरा धरके निकलत देखेंव त अचरज म परगेंव । भऊजी ला पूंछेंव – कस या बिहिनिया बिहिनिया ले कहां जावत हस ? काकरो संग उड़रिया तो नइ भागत हस या भउजी ? भऊजी किथे – कुम्भ जावत हन बाबू कुम्भ । में पूछेंव – कती तिर कुम्भ होवत हे या  तेमा कुम्भ जावथन कहिथव । फोकट लबारी मारथस ।  कुम्भ तो कबले सिरागे हे । भऊजी किथे – तोरे भइया हा कुम्भ कुम्भ रटत हे तेकर सेती जावत हन डोकरा डोकरी । में मजाक करत केहेंव - अइसे नइ कहस या भऊजी के काली सिनेमा देखे हन ….. सिनेमा कस हनीमून मनाये बर जावत हन । तारा संकरी लगावत कुची ला कनिहा म खोंचत भऊजी किथे - हमन सहींच के कुम्भ जावत बाबू ....... । तोला लाज नइ लागे ... हमर उमर हे उइसने करे के तेमा । तइसना म भइया दिखगे । ओला पूछेंव तब उहू कुम्भ जाये के बात बतइस । मोटर स्टेंड डहर मोटरा सम्हालत सुटुर सुटुर रेंग दिस । मोला लगिस भइया हा अपन ससुरार ला कुम्भ कहिथे .... काबर के ….. उहां ले जब आथे तब ….. एकदम तरके आथे ….. ओहा जरूर अपन ससुरार जावत होही । 

                    एक डेढ़ महिना बाद दुनों झिन ला फटेहाल वापिस आवत देखेंव । उंकर हालत देखके अच्छा नइ लागिस । घर म बलायेंव । चहा पानी पियायेंव । गरम गरम भात , उरिद के दार अऊ अमारी भाजी रंधवायेंव । कब के नइ खाये कस सरपट झेलिन दुनों झिन । थोकिन थिराये जुड़ाये के पाछू पूछ पारेंव – कइसे रिहीस तुंहर कुम्भ यात्रा । भऊजी किथे – झिन पूछ बाबू ..... बड़ भीड़ या । जेती देख तेती मनखेच मनखे । गारी बखाना सुरू होगे । में पूंछेव – कुम्भ ले आके मुहुं ला काबर बिगाड़त हस या भउजी ? का तूमन ला कुम्भ स्नान बर ठीक ठाक जगा अऊ समे नइ मिलिस का ? भऊजी बतइस – जगा मिलिस .. समे घला मिलिस बाबू फेर बैरी मन के सेती नहाये नइ पायेन । कुम्भ गरीब के नहाये बर नोहे बाबू ....... सिर्फ देखे बर आय । अतेक धुर गेन फोकट कस होगे । न नहा सकेन न छींटा ले सकेन । में केहेंव – हमर संगवारी मन तो अबड़ मजा मारेन कुम्भ म अइसन कहत रिहिन भऊजी | ओमन भारी डुबकेन कहत रिहिस । तूमन ला कइसे छींटा तको नइ मिलिस ? 

                    भइया बतइस – हमन कुम्भ तो गेन भाई फेर थोकिन दूसर कुम्भ जा पारेन । बारा बछर म एक बेर होवइया कुम्भ म जातेन त हमू मन मजा पाये रहितेन । हमन पांच बछर म एक बेर होवइया कुम्भ म जा पारेन । में केहेंव – मोर संगवारी मन घला पांच बछरिया कुम्भ म गे रिहीन भइया अऊ उहें मजा मारे हे । मोला लगथे तूमन गलत घाट चुन पारेव । भइया किथे – नही भाई । पांच बछर म होवइया कुम्भ म सिर्फ एके घाट होथे जेला लोकतंत्र के घाट कहिथे । हमन उहींचे गे रेहेन । मे बतायेंव – हमर संगवारी मन घला पांच बछरिया चुनावी कुम्भ के लोकतंत्र के घाट म गे रिहिन । ओमन कइसे मजा मारिन होही भलुक । भइया किथे – ओमन सवांगा रचके गे रिहिन होही । में केहेंव – हां कन्हो नेता के सवांग रचे रिहिन कन्हो कार्यकर्ता अऊ अनुयायी के । भइया बतइस – इहीच तिर अंतर होगे हमर अऊ ओकर म । हमन जनता बनके चलदे रेहेन भाई । हमन सोंचत रेहेन के लोकतंत्र के घाट म सब झिन एक समान होवत होही । जम्मो झिन एके संघरा डुबकी लगावत लहरा लेवत होही । फेर हमर सोंच गलत निकलगे । कुम्भ के होवत ले जेती देख तेती ... हमन ला .... तैं हमर भगवान अस .... तैं हमर खेवनहार अस ..... अइसे कहत .... हमर बर करइया बेवस्था के कागज म लिस्ट बनाके धरा दिन । कुम्भ के सिरात ले तिरे तिर म बड़ मोहलो मोहलो करिन बैरी मन ..... फेर आखिर तक नहाये बर अऊ मजा लेहे बर लोकतंत्र के घाट म उतरन नइ दिन । 

                    मे पूछेंव – कुम्भ म कतेक मनखे जमा होय रिहिन भइया तेमा तूमन ला नहाये बर नइ मिलीस ? भइया किथे - बड़ अकन मनखे जमा होय रिहिन । फेर मजा सिर्फ कुछ उही मन पइन .... जेमन अपन आप ला नेता अऊ कार्यकर्ता अनुयायी किहिन ... बाकी मन हमरे कस चुचुवावत लहुंटिन । रंग रंग के टोपी म ... खादी कुरता धोती म .... कतको झिन ला खुरसी म बइठके मजा करत देखेन अऊ कतको झिन ला खुरसी धारी के जै बोलाके चंदन मलत अमरायेन । फेर हमर कस कन्हो मनखे ला न चंदन के सुगंध मिलिस ... न ओकर परछो मिलिस । जइसे कुम्भ सिरइस तइसे हमूमन नहाये बर कूदे के तियारी म लग गेन । तब तक लोकतंत्र के घाट सुखा चुके रिहिस । घाट म दुबारा पानी आये के अगोरा करेन फेर निर्रथक होगे । हमन धोखा खागेन भाई ….. हमन नइ जानत रेहेन के …. लोकतंत्र के घाट केवल चुनाव के समे बनथे जेमा डुबकी लगाये के अधिकार जनता ला नइ रहय । जनता ला केवल लोकतंत्र के घाट म रघुबीर बनाके जगा जगा .... आस्वासनी पूजा अऊ बंडल बंडल कागज के भेंट चढ़थे । कुम्भ सिराये के पाछू .... हमर कस मनखे ला अइसे तिरिया के लतियइन के झन पूछ ..... । तभे तो हमर कस जनता के होवत दुर्दशा ला देख .... तुलसीदास के तोरे कस चेला मन के कलम घला लहूलुहान होके लिखे बर मजबूर हो जथे – 

लोकतंत्र के घाट म है नेतन कौ भीड़ ।

अनुयायी चंदन मलय मुंहुं ताके रघुबीर । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा .

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