Friday 28 May 2021

कहिनी : प्रण* पोखन लाल जायसवाल

 *कहिनी : प्रण*

                    पोखन लाल जायसवाल


        जब मनखे ऊपर दुख के पहाड़ गिरथे। जिनगी ल कोनो मुसीबत घेर लेथे। चारों मुड़ा अँधियार छा जथे। आशा के सुरुज ल निराशा के बादर कुलुप ढाँक लेथे। मन धीर नइ धर पाय। तब मनखे ल का करय अउ का नइ? समझ नइ आय। कोनो सहारा नइ दिखे त बिपत के अइसन बेरा म अपन इष्टदेव के शरण जाथे। सुमन घलव अइसनहे मुश्किल के घड़ी म फँसगे राहय। बीते रतिहा आँखीं आँखीं म गुजरगे। बिहनिया नहा धो के अपन इष्टदेव के आगू दूनो हाथ जोरे खड़े हवै। 

        सुमन जेकर पुन्नी के चंदा कस गोलमटोल उज्जर चेहरा हे। परसा के लाली बरोबर लाल-लाल गाल हे। कनिहा के आवत ले लामे बिरबिट करिया बेनी हे। कोयली कस मीठ बोली हे। जेकर झूल-झूल के रेंगना, सब ल मोह लेथे। फूल जइसे खिलथे सब ल मोह लेथे, वइसने सुमन सब ल मोह लय। कभू कभू तो लागथे, ओकर नाँव मोहनी रहना रहिस। जेन देखय तेने, ओला देखते च रही जय, मोहा जय। कोनो मेर आतिच-जातिच सबो एक नजर लहुट के खच्चित देखँय ओला। सगा पहुना आय सियान मन घलव सुघर रंग रूप के बहू के अपन साध पूरा करे ओकर घर दुआर अउ दाई ददा के विचार जाने ले लग जवय। 

          गाँव मन म अभियो कतको नोनी पिला मन के हाथ अठारा बछर पूरे के पहिलीच हरदी म रंग जथे। कतको दाई ददा सजन मन के बने चीज बस अउ सुजानिक लइका देख के नोनी जिनगी भर खुश रही कहिके ओकर हाड़ म हरदी रचा देथें। कतको लोक-लाज के डर म जादा नइ पढ़ावँय अउ झटकुन.....। फेर सुमन के दाई ददा जादा पढ़े लिखे तो नइ हे। ...तब ले पढ़ई के महत्तम ल जानथे। ओमन ओला ओकर मन मुताबिक पढ़ाबो कहिके सोचे हावँय।

        सोलवाँ बसंत के रंग चढ़े ले सुमन अउ घात सुघर दिखे लगिस। सोलवाँ बसंत के छाँव म ओकर सुभाव बदले बदले लागय। सुमन चिटकुलिया के आगू चौदह घँव ठाड़ होवय, अपनेअपन मुच ले हाँस दय, त कभू खुदे ले लजा घलव जय। ...अकेल्ला म रकम-रकम के परेम गीत मन ल गुनगुनात रहय.. रतिहा सूते दसना म बडबड़ाय। ....वोला गम नइ मिलिस कि ओकरे संग पढ़इया सुरेश कब ओकर सपना म आय जाय धर लिस। ....सँघरा सवाल बनावत सँघरा जिनगी जिएँ मरे के कसम खा डरिन। सपना घलव सँजो डरिन....पढ़ लिख के कुछ करबो तभे सात फेरा के बँधना म बँधाबो।... सोला-सतरा बछर के काँचा उमर...। ए... उमर के परेम... काँचा परेम। तभो ले अटूट परेम। फेर उँखर परेम राधा-किसन के परेम सही पबरित रहिस हे। एक दूसर ल मन ले मया करत रहिन हे ...दूनो झिन। तन के लालसा अउ भूख नइ दिखिन हे.. दूनो म... अउ दूनो के परेम म। कुल अउ परिवार के मरजाद ल बचाय रहिन हें दूनो झिन। परेम ल परेम रहन दिन। परेम म दाग नइ लगन दिन। ए अलग बात आय कि हँड़िया के मुँह तोप लेबे, फेर मनखे के मुँह नइ तोपे जा सकय। ...उँखर परेम टीवी सिनेमा म दिखाय परेम ले बिल्कुल अलगेच जनात रहिस। मन ले परेम करत रहिन हे, तन ले नइ। स्कूल भर म जंगल के आगी सहीं उँकर परेम के बात फइल गे। दूनो एक-दूसर ले परेम करथें। चर्चा सबो कोति होय लगिस। इँखर परेम तन ले नइ मन ले हे। तन ले होय परेम तन के भूख मिटाय के मौका देखथे। अइसन परेम तन के सुघरई के राहत भर रहिथे। तन ह उमर के संग ममहाना छोड़ देथे। जुवानी उमर के रंग चढ़त ममहाथे अउ उतरती म ...। चढ़त बेरा ल सबो देखथे, उतरती बेरा ल कोन जोहारथे। 

       बारहवीं पास करे के बाद दूनो अलगे-अलगे कालेज म भर्ती हो गिन। दूनो आठ कोस दूर रहे लगिन फेर... ओमन मन ले कभू नइ दूरिहाइन, भलुक अउ नजदीक आइन। रोजेच मोबाइल म बात करते रहिन।

     "...मोला कभू दगा झन देबे, नइ तो मैं मरी च जहूँ।"

"का तोला मोर परेम म भरोसा नइ हे?" 

 "तोर परेम म तो भरोसा हे, फेर...."

"फेर का ?"

" तैं भँवरा के जात, ए फूल ले वो फूल...."

"...फूल आखिर दू दिन म मुरझाबे च करथे का?... त भला कइसे नइ जाही दूसर फूल तिर भँवरा ह।" सुरेश ठठ्ठा दिल्लगी मढ़ावत कहिस।

जानथँव ..जानथँव

"अच्छा तहीं बता? .. कइसे के तोला भरोसा देवावँव।"

"मोला भरोसा हे तोर ऊपर ...अउ तोर परेम म घलव।" 

अउ मया दिखावत सुमन हाँसत कहिस।

"ले, रतिहा जादा होगे हे, अब सूत जा, जा। सुबे जल्दी उठना हे मोला।"

"काबर?" 

"भुलागेच का?"

"काला?"

"काली च बताय रेहेंव, पेपर हावय कहिके। निचट सुरत भुलहा हस" सुमन खिसिया बानीक कहिस। "तोर मया म भुला जथँव का करबे?..तोर मया के मारे..." सुरेश मस्का लगावत कहिस।

"मया ले पेट नइ भरय, कुछु करे पड़थे।..पेट चलाय बर।" 

"तब के तब देखे जाही..."

सुमन बीचे च म टोकत किहिस-"त परीक्षा नइ दिलाँव का?"

"परीक्षा तो दे हे ल परही भई। तभे तो हमर सपना पूरा होही अउ सच घलव।"

"हव, बने कहे सपना हमर आय त हमी ल पूरा करना हे।"

"ले तैं पढ़ई कर।"

"तैं मोबाइल रखबे तव न..।"  ए पइत सुमन मगन भाव ले कहिस।

     

       समय हाथ म समाय रेती कस निकलत गिस। दूनो के कालेज के पढ़ई पूरा होगे। जतका उँकर मन रहिस ततका दूनो पढ़ डरिन। नउकरी मिले के अगोरा दूनो ल रहिस। फेर... सरकारी नउकरी अपन हाथ के बात तो नोहय। अब तो मेरिट लिस्ट ले भर्ती के दिन तइहा के बात होगे हे। तइहा के बात, बइहा लेगे। ए अलगे बात रहिन कि रुपया अउ जाली प्रमाण पत्र मन ले कतको झन के नौकरी लग जावत रहिस। सब सेटिंग हो जात रहिस।कतको योग्य मनखे पहुँच अउ पइसा के भेंट चढ़गे। अब तो कम्पीटिशन के जमाना आगे हवय। मेरिट म परीक्षा पास करे ले नउकरी मिलना सहज होगे हे। मेरिट म आना खेल तमाशा नोहय फेर। भर्ती के नियम भले बदले हे, नइ बदले हे त रुपया ले दे के रिवाज। रुपया नइ देबे त लंका म पोस्टिंग कर देथे। दाई ददा अउ घर परिवार ले दूरिहा कर देथे। आखिर परेशान हो के पइसा दे बर परीच जथे। 

         दूनो के ल नौकरी लगे के ठिकाना नइ रहिस हे। अभी नवा सरकार भर्ती करे के मूड म नइ हे। कोनो विभाग म कोनो भर्ती विज्ञापन जारी नइ होय हे। सरकार अपन हिसाब-किताब जमाय के पाछू भर्ती करही सहीं लागथे।

         नौकरी के अगोरा करत दू साल के समय कलेचुप बुलक गे। अब तो सुमन सुरेश ल मन के संगेसंग अपन तन सउँप डरिस। आखिर संग जिए-मरे के उँकर सपना पूरा जउन होगे रहिस। सपना बाँचगे रहिस त अपन पाँव म खड़ा होय के सपना। मया परेम के बँधान सात फेरा ले सजोर होगे रहिस। दूनो सात फेरा के बँधना म बँधा गे रहिन हे। काँचा उमर के काँचा परेम... तन ले कोस भर दूरिहा रहिस, तउन परेम साँचा परेम म बदल गिस। दूनो के मरजी ले घर वाले मन बड़ धूम धाम ले दूनो के बिहाव कर दिन। 

         सुमन अपन नवा घर ससुराल म बड़ खुश रहिस। हरदी पानी के रंग ले सुमन के सुघरई अउ बाढ़गे रहिस। पारा परोस के मन रूप रंग अउ सुघरई के बड़ बखान करे लगिन। सगा पहुना मन घलव ओकर बेवहार ले खुश रहिन।... फेर कोन जनी सुमन के खुशी ल काखर नजर लग्गे। तन म चढ़े हरदी के रंग मन म भरे नइ रहिस। सास-बहू म खिटपिट होय लगिस। सास बात-बात म वोला पटंतर देवय। पढ़े लिखे सुमन अप्पड़ सास ल पूछ के सबो बूता करे के कोशिश करय। साग-पान बर पूछत कहे- "माँ ! सब्जी कौन-सी बनाऊँ?" 

          सास रहय तेन हूकँय न भूकँय।

"माँ! घर में सब्जी नहीं है, पापा से सब्जी मँगवा लीजिए।" सुरेश घर म हिंदी म बोले बर कहे रहिस ते पाय के सुमन हिंदी म गोठियावय।

    अभी तक घर म सब्जी रोज ओकर ससुर लानत रहिस। अइसन म सुमन, सुरेश ल कही सब्जी मँगाना अच्छा नइ समझिस।  

     "तोर घरवाला ल बोल ले अउ मन मुताबिक सब्जी मँगा डर।"  ओकर सास हुरसे सहीं कहिस।

       कोन जनी का बात रहिस कि ससुर घलव बात-बात म उटकापारी करे धर लिस। सुमन ल सुनावत ओकर ददा ल जइसन पाय तइसन कहय-"अपन मुड़ के पीरा ल हमर मुड़ म खपलदिस...। एके झन बेटी.... वहू म बने ढंग के दाइज-डोर जानेन न बराती मन के बरोबर स्वागत देखेन। कंजूस गतर के ह...." 

      सुमन सब ल सुन के कलेचुप रहिगे। बपुरी सुमन जुवाब देना नइ चाही। ओला अइसन संस्कार मिले नइ रहिस।

      सास अउ ससुर आए दिन ओसरी-पारी इहीच राग गावँय। सुमन ल रोज-रोज के कंझट म खाय अंग नइ लगत रहिस। सुरेश घलव दाई-ददा ल चुप नइ करात रहिस। अइसन म सुमन गुने लगिस- "का ए उही सुरेश हरे जेकर ले मैं परेम करेंव, जेन मोर सुख-दुख के खियाल रखहूँ कहे रहिस?"

    सुमन ल आजे पता चलिस के सुरेश ल ओकर ले नहीं, ओकर ददा के धन ले मतलब रहिस। जब सुरेश कहिस- "मोर दाई-ददा मन काय गलत काहत हे, ओतेक धन-दौलत के राहत ले काय दे हे मोला?"

सुमन कहिस- "अपन बेटी दे हे तोला, जेकर ले...."

सुमन पूरा कहे नइ पाय रहिस सुरेश बीच म अपन भड़ास निकालत बोलिस - "मया तो लइकई मति के आय ....तोला काय करहूँ? तैं मोर काय काम के?" 

"अउ सुन... मनखे के उमर के संग जरूरत बदलत जाथे, मोर जरूरत अब पइसा हे। जेकर ले जिनगी के जम्मो सुविधा बिसाए जा सकथे। परेम ले तो....."

      सुमन ल जोरदरहा झटका लगिस। सोचे नइ रहिस कि ओला सुरेश दगा दिही। आज जनाइस के ओकर साँचा परेम ह सुरेश के मोहजाल म मेंकरा कस फँस गेहे।

          सुमन रतिहा सुते के उदीम करिस, फेर अइसन म नींद कति ले आवय। अलथी-कलथी करत ओकर रात बीतिस। 

         ओला दाई ददा के बरजई ह सुरता आत रहिस। 'बेटी! अभी तैं दुनिया ल नइ देखे हस। तोर परेम ह जवानी के एक रंग आय। जउन जवानी के पूरा आवत देह के भटकाव भर आय। घर छोड़े के बाद का परेम ले तोर जिनगी चल जही? बेटी! ए परेम ले पेट नइ भरय, ए परेम ले छाँव नइ मिलय अउ ए परेम.... रोटी कपड़ा मकान तो मनखे के पहिली जरूरत होथे। तब पाछू परेम जउन ल तैं पहिली जरूरत बतावत हस। ए मया तुँहर लइकई मति हरे बेटी।'

    'नइ दाई ! सुरेश के मया अउ मन म कोनो खोट नइ हे। मँय ओकर छोड़ दूसर संग बिहाए ले मरना पसंद करहूँ।' अपन जिद घलव सुरता आइस।

        अतका ल सुन दूनो परानी सुमन के सुरेश संग बिहाव करे बर राजी होगे। दूनो परिवार के सियान मन जुरियाइन। सियानी गोठ चलिस। दूनो परिवार दुनिया वाला मन बर एक दूसर ल समझे के दिखावा करिन। 

         रिश्ता पक्का करे के पहिली सुमन के ददा भीतरी कुरिया म आ के, ओला एक पइत अउ समझाय के कोशिश करत कहिस- ...सुमन मोला लइका के ददा के बेवहार बने नइ लागत हे। ओला सिरीफ पइसा कौड़ी के मोह हे। पइसा ले बढ़के ओकर बर अउ कुछु नइ हे। अइसन म बिन काम काज के बेटा बहू ल नइ सहे सकय। एक पइत अउ सोच ले। अभियो कुछु नइ बिगड़े हे। सुमन अपन बात म अड़े रहिगे। सुरेश के छोड़ अउ काकरो ले बिहाव नइ करँव कहिके। आज अपन जिद..नइ गलती ल सुरता कर सुमन रोना चाहीस फेर रो नइ सकत हे। 

           सुमन ल ससुराल म आय छै महीना नइ होय रहिस, मन करिस कि मइके जाके रहि जाँव। फेर कोख म संचरे जीव के सुरता आगिस। 

    'अभी मइके चल देहूँ त दू-तीन महीना म एमन मोला चरित्रहीन कहे लग जही। फेर मैं ए दाग ल कइसे मिटा पाहूँ। मोर परेम के निशानी ल घलव ए पापी....।'

   सुमन मनेमन सोचिस अउ इही बिचार करत भगवान ले बिनती करे लगिस--"हे भगवान!  तैं मोला नोनीच देबे। जे नारी के दुख-पीरा समझ सकय, मैं ओला समझा सकँव कि नारी मन के उद्धार बर तोला लड़ई लड़ना हे।"

      सुमन भगवान के फोटो के आगू खड़ा हो के एक प्रण घलव करिस , कि नोनी के जनम होतेच मैं सुरेश ले अपन रिश्ता नइ रखँव। जउन ल मैं नइ मोर ददा ले धन चाही, ओकर संग का जिनगी बिताना?


पोखन लाल जायसवाल

पलारी जिला बलौदाबाजार छग.

6 comments:

  1. सुग्घर कहानी सर जी

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  2. Replies
    1. धन्यवाद ज्ञानू भाई जी

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  3. कहानी बहुत गजब हे
    आखिर तक बांध के राखे हे
    बधाई भइया जी

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