Tuesday 25 October 2022

आज 106 वीं जयंती म विशेष... चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख



 


आज 106 वीं जयंती म विशेष...


चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख 


जब मोर जनम होइस वोकर ले दू साल पहिली “चन्दैनी गोंदा “के जनम होगे रहिस हे. अउ जब येखर सर्जक श्रद्धेय दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह जब येला कोनो कारन ले आगू नइ चलइस त मात्र 

आठ साल के रहेंव. मेहा दाउ राम चन्द्र देशमुख जी द्वारा संचालित” चन्दैनी गोंदा “ल कभू नइ देखेंव. दाउ जी ले घलो कभू आमने- सामने भेंट नइ कर पायेंव. मोर अइसन सौभाग्य नइ रीहिस हे. पर 

मोर डायरी म दैनिक सबेरा संकेत 

राजनांदगांव के “आपके पत्र “स्तंभ के पेपर कटिंग हे. वोखर मुताबिक मेहा 21 मार्च 1996 म दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के कार्यक्रम “एक मुलाकात “ के तहत जब  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ले “गोठ बात “करे रीहिस हे वोला मेहा गजब रुचि लेके सुने रेहेंव. काबर कि मेहा कई ठक अखबार म श्रद्धेय दाऊ जी के जीवन परिचय, चन्दैनी गोंदा अउ “कारी” के बारे म पढ़े रेहेंव.  उद्भट विद्वान डॉ. गणेश खरे जी के लेख के सँगे सँग  कुछ अउ विद्वान मन के लेख ल पढ़े रेहेंव. जब दूरदर्शन केन्द्र रायपुर ले ये भेंटवार्ता ह शुरु होइस त मेहा आखिरी होत तक टस से मस नइ होयेंव.  ये भेंटवार्ता ले मोला छत्तीसगढ़ लोक कला मंच के विकास यात्रा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के योगदान के सुग्घर जानकारी मिले रीहिस  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी गजब अकन सवाल करिन कि देहाती कला विकास मंडल अउ चन्दैनी गोंदा के गठन अउ कारी के मंचन के का उद्देश्य रीहिस  हे. चन्दैनी गोंदा के पहिली इहां के नाचा अउ लोक कला मंच के कइसन दशा अउ दिशा रीहिस हे .चन्दैनी गोंदा ल आप  विसर्जित करे जइसे कठिन निर्णय काबर लेंव. अइसे का परीस्थिति अइस!  ये सवाल तिवारी जी ह श्रद्धेय दाऊ जी ले करिस त वोहा एकदम भावुक  होगे. वर्तमान म लोक कला मंच के दशा अउ दिशा उपर जब चर्चा चलिस तब दाऊ जी ह गजब उदास होगे अउ कहिस कि हमर छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ल जगाय बर काम नइ हो पावत हे. लोक कला मंच के नाम म सिनेमा संस्कृति के जोर होगे हे. अइसे कहत -कहत दाउ जी ह एकदम गंभीर होगे. 


  दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के जनम  25 अक्टूबर 1916 म बालोद जिला के डौंडीलोहारा विकासखंड के गाँव पिनकापार म होय रीहिस हे. वोकर पिता गोविंद प्रसाद बड़का किसान रिहिन.  उंकर प्राथमिक शिक्षा गांव म  होइस. फेर नागपुर विश्वविद्यालय ले बीएससी (कृषि) म स्नातक  अउ वकालत के पढ़ाई करिन.  ऊंकर बिहाव छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा खूबचंद बघेल के बेटी राधा बाई ले होइस.बचपना ले वोहा दार्शनिक अउ चिंतक प्रवृत्ति के रिहिन.ननपन ले नाचा अउ नाटक देखे के शउक रिहिन.  शादी के बाद बघेरा म रहिके उन्नत ढंग ले  किसानी करिन. दाऊ जी ह आयुर्वेदिक पद्धति ले अपन गांव बघेरा म लकवा अउ पोलियो मरीज मन के ईलाज करके जन सेवा करिन. 


  शुरु म पिनकापार म राम लीला मंडली के गठन करिन. वोहा खुद नाटक अउ राम लीला म भाग लेय. 


. वोहा 1950  म देहाती कला विकास मंडल के गठन करिन .  येकर माध्यम ले अंचल म प्रचलित नाचा के प्रस्तुति म परिष्कार करिन. दाऊ जी कलाकार मन के खोज म गांव- गांव भटकिन.


. येमा लाला फूलचंद श्रीवास्तव  जी चिकारावाला (रायगढ़), ठाकुर राम जी , भुलवा (रिंगनी साज),  रवेली साज के मदन निषाद जी (गुंगेरी नवागाँव, डोंगरगॉव, राजनांदगांव) जइसे बड़का कलाकार शामिल होगे. दाऊ जी ह ये कलाकार मन ल लेके काली माटी, बंगाल का अकाल, सरग अउ नरक, राय साहब मि. भोंदू खान साहब नालायक अली खां, मिस मैरी का डांस जइसे प्रहसन खेल के मनोरंजन के सँगे सँग जनता ल संदेश घलो दिस.  दाऊ की मंडली ले जुड़े कुछ बड़का कलाकार मन प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीर तनवीर के नया थियेटर दिल्ली म शामिल होगे.  सन् 1954 ले 1969 तक  दाऊ जी ह अपन सबो समय ल जन सेवा अउ समाज सुधार म लगा दिन. कई साल तक

शांत अउ गुमनामी के जिनगी गुजारिस.  फेर अपन माटी के करजा ल छूटे के प्रेरणा ऊंकर अंतस म सदा ले भराय रिहिस.अउ वोहा प्रस्फुटित होइस 20 साल बाद चंदैनी गोंदा के रूप म. 


  अउ 7 नवंबर 1971 म अपन गाँव बघेरा (दुर्ग)  मा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य लेके लोक सांस्कृतिक संस्था “चन्दैनी गोंदा “के गठन करिस. बघेरा के बाद  येकर प्रस्तुति पैरी, भिलाई, राजनांदगांव,धमधा,नंदिनी, धमतरी,झोला,टेमरी अउ जंजगिरी जइसन जगह म 50-50 हजार दर्शक मन के सामने होइस. चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन छत्तीसगढ़‌ के संगे संग उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली अउ मध्य प्रदेश म घलो सफलतापूर्वक होइस. अखिल भारतीय लोक कला महोत्सव यूनेस्को द्वारा आयोजित भोपाल सम्मेलन म कार्यक्रम के गजब प्रशंसा होइस. 


 चंदैनी गोंदा ह हमर छत्तीसगढ के कवि मन के लिखे गीत ले सजगे. दाऊ जी ह चंदैनी गोंदा के बड़का कार्यक्रम म इहां के साहित्यकार मन के सम्मान करके एक नवा उदिम करिन. 



दाउ जी ह चन्दैनी गोंदा, कारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के पीरा ल सामने लाइस. इहां के रहवासी मन के स्वाभिमान ल जगाइस.किसान,मजदूर अउ नारी मन के दयनीय दशा ल सामने लाके शोषक वर्ग मन के बखिया उधेड़िन . चन्दैनी गोंदा के माध्यम ले  लक्ष्मण मस्तुरिया जी,  खुमान साव जी, गिरिजा सिन्हा, महेश ठाकुर,मदन चौहान, संतोष कुमार टांक,रामरतन सारथी, केदार यादव जी, साधना यादव जी, भैया लाल हेड़ाऊ, शेख़ हुसैन,रवि शंकर शुक्ला, संतोष झांझी, मंजूला बनर्जी,शिव कुमार दीपक, जगन्नाथ,राम दयाल, ठाकुर राम, मुकुंदी राम, हीरा सिंह गौतम चित्रकार, बसंत दीवान छायाकार,



कविता हिरकने (वासनिक ), संगीता चौबे, अनुराग ठाकुर,  डा. सुरेश देशमुख प्रथम उद्घोषक, जइसे उम्दा कलाकार सामने आइन. 


  मेहा दाऊ जी द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा ल कभू नइ देखेंव पर 

बाद म लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय खुमान साव जी द्वारा संचालित चंदैनी गोंदा ल घलो मात्र दो बार देख पायेंव .पर श्रद्धेय खुमान साव जी ले भेंट नौ बार होइस हे. येखर संस्मरण घलो लिखे हवँ. 

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ये  रखवार  ह 13 जनवरी 1998 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्ग लोक चले गिस. दाऊ जी ह अपन यश रुपी शरीर ले सदैव जीवित रहि. श्रद्धेय दाउ जी ल उंकर 106 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


          ओमप्रकाश साहू “अंकुर” 


      सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)


 मो. 7974666840

Sunday 23 October 2022

सुरता// देवारी अउ जिमीकांदा के साग

 



सुरता//
देवारी अउ जिमीकांदा के साग... 
    वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ म जिमीकांदा के साग खाए बर बारों महीना मिल जाथे, फेर देवरिहा सुरहुत्ती के बिहान दिन, जे दिन गरुवा मनला खिचरी खवाए जाथे वो दिन अवस करके खाए बर मिल जाथे. ए परंपरा लगभग सबो घर देखे बर मिल जाथे. हमन मैदानी भाग म एला अन्नकूट के रूप म 'नवा खाई' घलो कहिथन. 
    घर के सियान ए दिन चुरे जिमीकांदा के साग अउ खिचरी ल घर के देवता म चढ़ाए के बाद गरुवा मनला खवाथे, तहाँ ले खुद घलो खाथे. लइका राहन त हमर बबा हमू मनला खाए बर देवय. पहिली तो छिनमिनावन. काला-काला खवाथे कहिके बिदके असन करन, तभो ले खाएच बर लागय, काबर ते ए दिन घर के जम्मो सदस्य खातिर जिमीकांदा के साग चुरे राहय. संग म दूसर साग घलो चुरे राहय, फेर जिमीकांदा ल खाना अनिवार्य राहय.
    आज जब बड़े बाढ़ेन अउ जिमीकांदा के आयुर्वेदिक महत्व ल जानेन त लागथे, के हमर पुरखा मन कतेक वैज्ञानिक सोच के रिहिन हें, जेन विविध परंपरा के नाम म कतेक महत्वपूर्ण जिनिस मनला हमर स्वास्थ्य खातिर जोड़ दिए रिहिन हें.
    आज वैज्ञानिक शोध के माध्यम ले जानकारी पाएन, के जिमीकांदा म फास्फोरस के गजबे मात्रा पाए जाथे. सिरिफ ए देवारी के दिन ही एके पइत जिमीकांदा खा लेइन त हमर शरीर म कई महीना तक फास्फोरस के कमी नइ होही. ए ह बवासीर ले लेके कैंसर जइसन कतकों जबर रोग के बचाके राखथे. एमा फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी 1 अउ फोलिक एसिड होथे. संगे-संग पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम अउ कैल्शियम घलो पाए जाथे.
    संगी हो आजकल बजार म हाइब्रिड वाले जिमीकांदा घलो देखे बर मिलथे, फेर एमा आयुर्वेदिक तत्व के थोर कमी होथे. अच्छा हे, के देशी किसम के ही जिमीकांदा के उपयोग करे जाय.
    हमर छत्तीसगढ़ म तो वइसे घरों घर जिमीकांदा बोए अउ खाए जाथे. एकर कनसइया (पोंगा) के घलो कतकों झन साग रांध के खाथें. कतकों झन एकर ले बरी घलो बनाथें, जे ह 'लेड़गा बरी' के रूप म जगप्रसिद्ध हे. ए सबो ल खाना चाही. कभू-कभार मुंह खजवाए असन लागथे, फेर एकर ले डर्राना घबराना या छिनमिनाना नइ चाही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

 

बरेंडी म ईमानदारी महेंद्र बघेल

 बरेंडी म ईमानदारी

                महेंद्र बघेल


ये भुॅंइया के किसान, बनिहार, मजदूर , ईमानदार कर्मचारी-अधिकारी , राष्ट्रवादी बेपारी अउ देश के जम्मों जनता-जनार्दन के तिहार देवारी ह अपन कोरा म खुशियाली धर के आथे।तेकर सेती लोगन मन सुरहुत्ती अउ गोरधन तिहार के जोरा म चिभके रहिथें।

एती-ओती चारो कोती, जे डहर देखबे तिही कोती सइमो-सइमो करत ..,

बाजार म रौनक.., भीड़-भड़क्का म लुटियन बेपारी मन के लूट-खसोट घलव जारी रहिथे। डब्बा म छपाय रेट ल मिटाके अपन हिसाब ले मनमाने रेट चिपकाके समान बेचे के खुलेआम खेल चलथे।

         यहू सीजन म बोतल म बंद कुंभकरण के जिपरहा जीजा मन.., जिन्न सही बोतल ले फेर भुस्स ले निकलही।ऑंखी रॅंमजत मिठई दुकान म जाके हलवई ल बमकावत धमकी-चमकी लगाही -" कइसे तोला सुरता नइहे का तिहार आ गेहे तेला, मिठई म थोरको भी मिलावट नइ होना चाही , का समझे...? अउ कहुॅं चलाकी करेस बेटा त तोला बहुत माहॅंगी पड़ही। " 

    जिन्न के टाॅंठ-टाॅंठ बोली भाखा ल सुनके हलवई राजा के खोपड़ी म बुध के तागा ह फसत जही ।तहां अपन अंतस के राष्ट्रीय भावना ल लहरावत गुनान करे लगही- " लगथे पाछू तिहार सही यहू साल के बेवहार ल निभाना पड़ही।"

     फेर सामाजिक समरसता के वातावरण म जिन्न अउ हलवई के बीच म पहिली छेमाही के शिखर-वार्ता शुरू हो जथे। ओकर बाद दूनो महानुभाव मन के बीच म भुगतान संतुलन के मामला ह वर्चुअली ढंग ले सेट हो जाथे।                           

        एती महंगाई म लेसावत -भूॅंजावत जनता ल बेमझाय बर मिलावट जाॅंच करे के नौटंकी घलव करना पडथे..! ये उदीम म जिन्न ह बसनाहा-दिन्नाहा मिठई के जप्तीनामा बनावत मामला ल ठंडा बस्ता म डारे के कोशिश करथे।  उनकर झोला छाप फोटू खिचईया मन चक चका-चक फोटू खिंचथें।

बिहान दिन थुकलू मीडिया के जम्मो राष्ट्रवादी चैनल म भारी सक्रियता दिखना शुरू हो जथे। अउ मिलावटी मिठई के भंडा फोड़, भंडा फोड़ ...! कूद-कूद के  बोमियावत प्रसारण शुरू हो जथे।

   पेपर के ब्रेकिंग न्यूज म छपके दिन्नी मिठई ह पढ़ंता (पाठक) मन के मुहुं के सवाद ल बसिया घलव देथे । 

   तब लगथे सिरिफ तीज-तिहार म ये महान ईमानदार अधिकारी-कर्मचारी मन कई-कई ठन दुकान म जा-जाके लरहा लहवई मनके हलवा टाईट करे के सरकारी प्रर्दशन भर करथें।

अउ इही उदीम करत महंगाई के वायरस म हफरत जनता ल ये जिन्न मन अपन विभाग के जीवित होय के आभासी प्रमाण सौपथें।

   चारो मुड़ा हो-हल्ला होथे, देश म ये का होवथे कहिके नेता-अधिकारी मन ऑंखी तरेरत हाड़ा प्रूफ खड्डा ल पहिरके अपन-अपन छाती ल पिटना शुरू करथे।

    येती भारतीय होय के धरम निभावत देश-प्रेमी खाद्य निरीक्षक ह अवईया फागुन तिहार तक जिन्न बनके फेर बोतल म खुसर जाथे।

  एक लेब ले दूसर लेब, दूसर ले तीसर ,तीसर ले चौथा करत-करत बसनाहा-दिन्नाहा मिठई ह खुदे अपन राज धर्म गवाॅं देथे। ये तो गुनान करे के बात आय..,जब जिन्न के जेब ह गरम हो जही त टेंशन म लेब के केमिकल ह पथरा ल रिएक्शन करही। इहाॅं-उहाॅं भटकत ये मिठई के लकड़ाय-सुखड़ाय सरूप म मिलावट के डी एन ए खोजत-खोजत बपरी केमिकल के जोश-खरोश ह खुदे कुटी-कुटी हो जथे।

        देवारी के चार महिना पाछू फागुन तिहार म ये जाॅंच रिपोट के सादर आगमन होथे।पेपर के आखिरी पन्ना के कोन्टा म नानकुन छपके सुधवा जनता ल बिजराथे..। जेमा लिखाय रथे मिठई म मिलावट के सिरबिस अभाव..!

         शोध करईया विशेषज्ञ मन कहिथें- मिलावट ल सोज्झे मिठई म नइ मिलाय जाय भलुक जेन जिनिस (दूध, मंदरस, दार, मेवा, शक्कर, घीव, केसर ,वर्क) ले मिठई ह बनथे ओमे मिलाय जाथे।

वर्क म एल्युमिनियम.., दूध म यूरिया अउ वाशिंग पाउडर.., घीव म चर्बी.., दार म टेलकम पाउडर अउ ..  अउ का का जति..!

                     भोरहा घलव हो जथे.., देश म उभरत ये नेवरिया अर्थशास्त्री मन के हिसाब ले अमला-दीपादमन प्रभाव तो नोहे - " मिठई म मिलावट नइ रहय भलुक समान ह ओरिजनल नइ आय।"

     त सिरिफ मिठई च म नहीं खाय-पीये के कतको चीज म ये मिलावट ह अपन घुसपैठ कर डरे हे। चहापत्ती म डबके चहापत्ती.., धनिया म घोड़ा के लीद.., मरीच म पपई बीजा..,हरदी म  घोड़ा लीद अउ पींवरी छुही.., मिरचा म ईटा पाउडर.., बेसन म बटरी पिसान अउ .., अउ का का ..। तेल के तो कोई दाई-ददा च नइहे.. !

        अउ हमन बड़ शुद्ध सात्विक बरोबर घमंड म बोमियावत हन - "हमर सीमा म ककरो अतिक्रमण नइ होय हे!" अपन बुध के खइपा ल उघार के देख गोतियार.., "मिलावट खोर मन हमर रॅंधनी खोली तक मिलावट के पक्की सड़क बना डरे हे।"

         संझा-बिहनिया हमर बहिनी-महतारी मन घर ॲंगना ल बहारथे...। झिल्ली, पाउच-डिस्पोजल के बउरे कचरा ला ओंटा-कोंटा म लोर देथें। तहां एकेच दिन ले डस्टबिन म राखथे अउ पाई-परिया, सड़क-तरिया.., नाली-घुरवा म बरो देथें।

देश म इकरे भरोसा म स्वच्छ भारत अभियान ह जिंदा हे। चुकचुकहा छपास नेता मन देश के राजधानी म इही सकलाय कचरा ल एती-ओती बगरा देथे। अउ चटक-मटक करत अलग-अलग एंगल म फोटू खिचवाय बर झपाय परथें..।

      इही छपास नेता मन के किरपा ले सनपना-झिल्ली परिवार के लोग-लइका मन कूड़ा-कचरा के भाव-भजन म लगे रहिथें।आजादी अउ गांधी दिवस के आघू-पाछू छेमसिया जिन्न के लगवार मन, सनपना के विरोध म नारा लगावत अभियान चलाथें।

     बजार अउ रद्दा-बाट म नान्हे दुकानदार मन के झिल्ली ल झटकके चलान काट देथें।फेर बड़े-बड़े दुकानदार के आघू म इकर गतर नइ चले..., सू-सू निकल जथे। येला देख के झिल्ली-सनपना के जी ह कउव्वाबे करही।

मने एक ल माई अउ एक ल मोसी।

              पूजनीय जिन्न महोदय जी के फुरसदहा घटर- घटर सूते के फायदा जम्मो लुटियन बेपारी समाज ल सदा मिलते आय हे ।आप मन के गुण के कतिक बखान करन। सबले पहली धान-गहूॅं, साग-भाजी डहर ले हैप्पी दिवाली ,आपे मन के किरपा ले आजकल बड़े-बड़े फारम म.., खेत-खार अउ बखरी-कछार म.., बिना डिग्री के ॲंखमुंदा जहरीला दवई-खातू छींचे के कंपिटीशन चलत हवय। 

    जेन दवई के असर ह बीस-बाईस दिन ले फसल म रहिथे।उही दवई ल रमकलिया म छींचे जाथे अउ तीसरइया दिन वोला बजार म ले आथें। झोरा म चढ़के उही हरियर-कोंवर रमकलिया ह रॅंधनी घर म पहुॅंच जथे। त मसलहा मा चुरे इही ठाढ़ रमकलिया के सवाद म दू काॅंवरा उपराहा खाय के मजा कुछ अलगेच रथे न .., कइसे गोतियार..।

            सब्जी बजार म फेकाय सब्जी के छालटी ल गरवा तक ह नइ सूॅंघे अउ भोरहा म कहुॅं वो खा परीस ते खूने-खून के उल्टी करत माटी म समा जथे। फाफा-मिरगा, कीरा-मकोरा के मरे के बाद अनाज अउ साग-भाजी ह मनखे नाव के जीव के लईक उपयोगी समझे जाथे।

  उही साग के सवाद ह मनखे समाज ल बड़ सुग्घर लगथे। हाईटेक अउ डिजिटल युग म ये कोनो जादू ले कम हे का..।

     छेमसिया चित्रगुप्त मन तो खुदे नींद भाॅंजत हे। त खड़े फसल अउ बेचावत अनाज म कतिक हानिकारक दवई-खातू मिंझरे हे , तेकर कहाॅं-के लेखा-जोखा..।

            सरकार अउ खाद्य विभाग के बीच म कंपिटीशन चलत हे.., कोन जादा लापरवाह..। ईंखर परसादे बिना डर भाव के खाय-पीये के चीज ह बिन मानक के खुल्लमखुल्ला बेचावत हे। बेपारी अउ अधिकारी के दूनो पाट म सुधवा जनता मन पिसावत हे। जेकर ले माटी, हवा, पानी , फसल अउ अनाज सबो म मिलावट के बसेरा होगे। दिनों-दिन बिमारी बढ़त हे, उमर घटत हे .., डाक्टर अउ पैथोलॉजी वाले मन मनमाने नोट गिनत हें।

           यहू तिहारी सीजन म .., अल्लर परे अंतस के पीरा ल सरेखत हम अउ का कहि सकथन.., नेता-अधिकारी ,बेपारी मतलब हुसियार अउ जनता मने खुसियार..। जेन ल जतना चुहकना हे, बिंदास चुहको.., पउल-पउल के चुहको..!


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

धान भारा के किसिम-किसिम के डोरी......

 



धान भारा के किसिम-किसिम के डोरी......


समे के संगे संग भइगे सबो जिनिस ल घलो बदल जथे। हमर छत्तीसगढ़ में किसानी काम मे धान, कोदो, कुटकी,तीली,अमारी पटवा,रहेर म बांधे बर जेन पैरा अउ छिंदी डोरी के उपयोग करत रेहेंन वहु अब जमाना के संग बदल गे। अब तो रंग-रंग के डोरी आगे। मशीन के डोरी,पुराना नेवार के डोरी,चुंगड़ी के डोरी अब जादा छा गेहे।


ये डोरी बनाय के तैयारी किसान भाई मन धान लुये के महीना भर पहिली ले शुरू कर डारे रथे। चौक मे बैठ के गप मारत, कोई लइका राखत,कोई टीवी देखत,कोई पान ठेला होटल मेर बैठके बनात दिख जाथे। 


1.छिंदी के डोरी--- 

ये डोरी बनाय बर जंगल ल छिंदी के पाना सुद्धा लुके के घर मे लाय ल पड़थे। बाद में जड़ डहन के कांटा मन ल हंसिया ले काट के निकाले ल लगथे। फेर उही मेर ल पखरा, लकड़ी ले कुचर के नरम बनाके बांध देथे। जेला हमर गांव डहन जुमा के डोरी घलो केहे जाथे। ये ह अब्बड़ मजबूत होथे अउ साल भर के भारा लाय तक काम देथे। एक किसान के घर के काम होय के बाद दूसर किसान भाई मांग के घलो ले जाथे। जुमा डोरी म मया के डोरी सही गांव के मनखे मन के गांठ बंधाय रथे।


2.पैरा के डोरी--- 

पैरा के डोरी अब्बड़ मजबूत होथे, ये कई साल ले चलथे। येला एक साल पहिली के मिजाई के समे भारा सहित धान ल लवठी म पीट के रख दे रथे। फेर महीना भर पहिली पानी मे नरम करके रात-रात के जेवन के पहिली ले घर के सबो झन मन बर के बनाये जाथे। फेर भारा भांधे के पहिली अउ पानी में  नरम करके भारा बांधे जाथे।


3.मशीन के डोरी---

अब समे के संग डोरी घलो बदल गे। छिंदी अउ पैरा के बाद अब मशीन ले घलो डोरी बनत हे। ये डोरी घलो अब्बड़ मजबूत होथे। मशीन में आंट चघाय जाथे जेकर ले जादा मजबूती हो जाथे। येला चुंगड़ी ले नान-नान चिरके रंगीन-रंगीन कपड़ा के चिन्द्री ल मिला के बनाये जाथे, जेहर देखे मे घलो अब्बड़ सुंदर लगथे। ये डोरी कई साल ले काम देथे। 


4.चुंगड़ी के डोरी---

सीमेंट बोरी,शक्कर बोरी,खातू बोरी ल पातर-पातर चिरके घलो भारा बांधे के काम बनथे। ये सबले सस्ता डोरी हरे जेला बनाये बर जादा मेहनत के घलो जरूरत नई होय। चातर राज के मन येकर जादा उपयोग करथे।


5.जुन्ना नेवार के डोरी--- 

कई-कई झन मन जादा झंझट म नई पड़के अपन घर के जुन्ना सूती के नेवार जेहर टूट जाये रथे, ओला नान-नान काट के भारा बांधे के लाइक बना के बांध डारथे। यहु अच्छा काम देथे अउ मजबूत घलो रथे।


6.जुन्ना कपड़ा के डोरी---

गांव में जुन्ना-जुन्ना कपड़ा ल पातर-पातर चिर-चिर के आँट चघा के बरके बनाये जाथे। ये अलग-अलग रंग के होथे,जेकर ले अब्बड़ सुंदर दिखथे। कपड़ा के डोरी अब्बड़ दिन ले पुरथे, येहा बिना खर्चा के डोरी हरे, बनाये में जादा मेहनत घलो नई लगे।


अब दिनों दिन समय बदलत हे अउ अपन संग सबो जिनिस ल घलो बदल डरिस। अब धान लुवे-मिंझे के मशीन हार्वेस्टर-थ्रेसर गांव-गांव में पहुँच गेहे तेकर सेती किसान मन मशीन म लुवाये के शुरू कर देहे। जेमे भारा-भुसाड़ा,डोरी-दांवा के काम घलो नई परत हे। सबो काम एकट्ठा होवत हे। किसान मन अब पुराना ढंग ले खेती किसानी के बुता ल तियागे ल धर लेहे। काबर के समे अउ आदमी के जादा जरूरत नई पड़े। फेर आज घलो कई झन लोगन मन मशीन ल छोड़ अपन चलत आत रीति ले काम करत हे। डोरी के काम आज घलो एकदम कम नई होय हे। छोटे किसान भाई मन आज घलो बैलागाडी में डोरी म भारा बांध के लावत हे अउ गाड़ी-बैला बेलन म मिजत हे।


अब डोरी ले काम छोटे किसान, जेकर खेत म मशीन नई जाय, जेहा मशीन नई लगा सके,जेकर घर अभी तक बैलागाडी हावे वोमन डोरी ले ही धान,कोदो,कुटकी,आमारी पटवा,तीली,रहेर, ल बांध के अभी घलो लाथे। जेकर खेती काम उरक गेहे वोमन ल डोरी मांग के दूसर किसान मन बिना कुछु देय सिरफ आपसी प्रेम-भाव,सहयोग के कारण लेत-देत हावे।


                     हेमलाल सहारे

                   मोहगांव(छुरिया)

बेरा के बात// अंधविश्वास के जुआ...


 

बेरा के बात//

अंधविश्वास के जुआ... 

    बिन गुने-बिचारे ककरो भी बात ल या कोनो किताब के लेखा ल आंखी मूंद के पतिया लेना ह जिनगी बर जुआ बरोबर हो जाथे. ए अंखमुंदा मनई के रद्दा म पढ़े लिखे लोगन ल घलो अभरत देखेब म आथे. फेर एकर जादा चलागन कमती पढ़े अउ निचट निरक्षर मन म जादा देखे बर मिलथे. एमा आस्था एक अइसन रद्दा आय, जेमा एकर सबले जादा बढ़वार देखब म आथे.

    तंत्र मंत्र, जादू टोना, बिलई के रद्दा कटई जइसन कतकों किसम के टोटका मन सब एकरे अलग अलग रूप आय. मोला सुरता हे, जब हमन लइका राहन, गाँव म पढ़त राहन, त देवारी तिहार बखत जुआ म जीते खातिर किसम किसम के उपई करन. हमर मनले दू चार बछर के आगर लइका मन जइसन कहि देवंय, तइसन करन. 

    देवारी आए के पंदरहीच आगू ले जुआ म जीते के जोखा मढ़ाए लागन. किसम किसम के टोटका करन. फेर अब समझ म आथे के वो सब कतका निरर्थक रिहिसे. सबले पहिली बात तो ए के देवारी म जुआ के खेलइच ह कोनो किसम के संहराय के लाइक बात नोहय, लइका ले लेके सियान तक इहिच काहंय के जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छूछू बन जबे. घर के सियान मन घलो हमन ल समझाए ल छोड़ के ये अंधविश्वास के आगी म घी डारे के बुता करंय. भले उन अइसन ठट्ठा मढ़ा के मजा ले खातिर कहि देवत रिहिन होहीं, फेर एकरे चलते देवारी जइसन मयारुक तिहार म गाँव गाँव म जुआ अड्डा के रूप धर लेथे. लोगन अपन संगी संगवारी, रिश्ता नता संग मेल भेंट करे ले छोड़के जुआ चित्ती म बूड़े रहिथे. हार हुरा के घर परिवार म कलह करथे तेन अलगेच. कतकों झन तो एकर चक्कर म पुरखौती चीज बस ल घलो बोर डारथें. जीवन भर बर जुआड़ी अउ वोकर संग म शराबी घलो लहुट जाथें.

 अइसन अंधविश्वास के जुआ ले न सिरिफ बांचना जरूरी हे, भलुक लोगन ल घलोक बंचाना जरूरी हे. देवारी के दिन जुआ नई खेलहू त न छूछू बनव न मुसवा, ए सब बिरथा के बात आय. मनखे जो भी बनथे अपन सत्करम के सेती बनथे. 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


Thursday 20 October 2022

चिठ्ठी पाती

चिठ्ठी पाती

 श्री गणेशाय नमः        

इंहा कुशल राखे रघुराई, उॅहा कुशल सब भाॅति सुहाई।


मयारू बेटा, 

               शुभ आशिष        

बेटा धनीराम हम सब इंहा कुशल मंगल से हावन ।आसा करथवॅ कि तहूं मन उपर वाले का किरपा ले बने बने होहू। अब्बड़ दिन होगे तोर एक्को ठन चिट्ठी पाती नइ आय हे । लइका मन के पढई लिखई कइसे चलत हे। तबियत पानी कइसे हे। काम धाम के का हाल हे । संसो करत चिट्ठी के अगोरा मा रेहे रथन। काम के भार होही तभो ले समे निकाल के खबर भेजे कर। 

         आगू के हाल अइसन हे कि तोर दाई ला एक डेढ हप्ता ले बुखर धर ले रिहिस। तेकर सेती कमजोरी आ गेहे। देवारी तिहार लक्ठा गेहे खोजे बनिहार नइ मिलत हे। घर के सबो काम बूता बगरे परे हे। बड़े गाय हर बछवा बियाय रिहिस। पॅदरा दिन ले बने रिहिस अउ अपने अपन बिमार होगे ढोर डाक्टर ला घलो देखायेंव फेर नइ बाॅचिस। तीन ठन टेपरी के हरूना धान देवारी बर लुए के लाइक हो गेहे । एसो हमर कोती रहि रहि के पानी पेरत हे तेकर सेती बियारा बखरी बनाय बर दिक्कत होवत हे। बइला कोठा पानी के मारे जोरंग गेहे । सबो काम बुता के सेती चेत हरा गेहे। चिट्ठी लिखे के अतके कारन हे बेटा कि बहुरिया कौशिला ला देवारी के अठुरिया पहिली भेज देते बेटा, ते तोर दाई सॅग काम बुता मा हाथ लगातिस। तैं तो जानतेच हस बने रहय त कतको काम ला खुदे हपाट डरे।अब सियाना शरीर अउ जर बुखार मा अइसने लथर गेहे।आसा करथवॅ कि मोर बात ला भरोसी ले चेत करबे।

         सरलग तीन चार साल के देवारी बर तोर लानल कपड़ा मन एके दू बेर बउराय हे । ताहने सबो धराय हे। एसो देवारी बर मोर बर नवा कपड़ा लत्ता झन लेबे। धान पान बेंच के एसो ओदरे भसके कोठा ला बनाना जरूरी हे ओमा थोर बहुत तहूं मदद करबे। बोनस के पइसा ला जादा खरचबे झन।

        बाकी सब तो बने बने हे। तिहार बर घर आबे तब घरू गोठ अउ गोठियाबो। फेर बहुरिया ला पहिली भेज देबे इही अरजी हे। हमर दुनो झन के डहर ले मयारू नतनिन अउ नाती कोमल ला गंज अकन मया दुलार बहू अउ तोला शुभ आशिरवाद । सदा सुखी रहव।

 

                    तोर बाबू जी

                     जोखूराम

                  ग्राम--जरहा भाजी।

चिट्ठी पाती

चिट्ठी पाती


 *// श्री गणेशाय नम: //*

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      करगीरोड कोटा

   दिनांक-18.10.2022


मयारू संगी-मितान

     श्री जनक राम साहू जी

   (प्रसिद्ध लोकगायक)

रतनपुर

जिला बिलासपुर (छ.ग.)


मितान-  सीताराम,जोहार पांयलागी |

    

    *आप के संग मिल-भेंट होय अब्बड़ दिन हो गए हे , भले ही मोबाईल म गोठ-बात होतेच रहिथे | तभो ले संउहें मुलाकात के आनंद अलगेच होथे मितान |*

    *लगभग दू महीना पहिली मोर सुवारी के असामयिक इंतकाल हो गे ! तब मैं खूब व्याकुल अउ असामान्य हो गए रहेंव ! अइसे लागत रहिस -अत्तेक महान सती नारी अउ हुकूम के हाजिर जीवन जोड़ी के विछोह म कईसे जीए सकहूं ? फेर आप जम्मो हितू-पिरीतू संगी-साथी मन मोर दु:ख के बेरा म आ के  मोर दु:ख ल बांटेंव,मोला खूब ढाढस बंधायेव, मोर व्याकुल मन ल  समझायेव-बोधेव | तब मोला जीए के थोकुन थेघा मिलीस!*

    *एसों  हमर घर का दसहरा ? का देवारी ? कुछु तीज-तिहार  उछाह सब दुलुम अउ पराय हो गए हे !*

     *तभो ले दू-चार ठन दीया लक्ष्मी दाई के अगवानी म बार देबो!*

     *एसों कार्तिक महीना म घलो मेघ देवता खूब पानी बरसावत हवय, अइसे भान होवत हवय -जाना "सावन-भादो फेर लहुट के आ गे !" रोज संझा-मुंधियार के बेरा मूसलाधार बारीस हो जाथे ! अत्तेक पानी बरसा म अंगना-द्वार गली-खोर ल लीप-पोत के का करबो? सब बिरथा हो जाही !*

     

    *देवारी तिहार म राऊत मन गाय-बछरू ला सुहई बांधे आथैं अउ राऊत नाचे के बेरा अशीष देथें-" अरे हो $$$ घर लीपे चकचंदन, तुलसी चौरा लीपे, लीपे-पोते घर-अंगना देख लक्ष्मी दाई रीझे"*

      *एसों लगथे राऊत मन के  ए अशीष ह अधूरा हो जाही का ? काबर के रोज झोर -झोर के पानी बरसाई म कोनो मनसे अपन अंगना गली -खोर ल लीपेच नइ पावत हवंय!*

   *मितान एसों देवारी तिहार के दिन तुंहर घर रतनपुर आहूं, सुरहुत्ती दीया बारे के बाद तुंहरे घर गाबो -बजाबो, मोर लिखे कई ठन लोकगीत हवंय,तऊन ल धीरे-धीरे तुंहरे घर म संगीतबद्ध करबो | अच्छा-अच्छा तबला वादक,बासुरी-बेंजो वादक अउ कोकिल कंठी गायिका ल बुलाबो | ठीक हे ? तुंहर मंसूबा का हवय ? खच्चित चिट्ठी लिखिहा आंय |*

   

   *बेटी-बेटा मन ल मया-दुलार अउ आशीर्वाद देवत हौं*

     *बाकी सब गोठबात ल तुंहरे घर आ के गोठियाबो*

   

     *लक्ष्मी दाई अउ भगवान श्री हरि से कामना करत हौं-सब ल कुशल-मंगल राखैं*


     *चिट्ठी पाते ही तुहूं मन चिट्ठी लिखिहा भाई,भुलाहा झन |*

       सादर मया-दुलार


         तुंहरेच मितान

       

    *गया प्रसाद साहू*

  "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

पिन कोड -495113


🙏☝️✍️❓✍️💐🌹🌷❤️❤️❤️🤝👏

चिट्ठी पाती-*मितान बर चिठ्ठी*

 चिट्ठी पाती-*मितान बर चिठ्ठी*


                 श्री हरि


 मितान सीताराम, 

                        भगवान राम के असीम कृपा ले हमन कुशल पूर्वक हावन | उहाँ तहूँ मन  सकुशल होहू | लिखना समाचार ये हे मितान की देवारी तिहार ह लकठीयागेहे फेर इंद्रदेव हा उच्छाह मंगल मनावत हे | बनी -भूति तको नइ चलत हे | घेरी-बेरी पानी गिरे ले हरहुना धान के माथ ओरमाय ह सुते ल धर ले हे | देवारी म " दुब्बर ल दू आषाढ़ होगे, ये जिनगी पहाड़ होगे मितान "  करोना काल के बाद ये साल बने दिवारी मनाबो काहत रेहेन फेर "पइसा ना कौड़ी हुदर दे लौवड़ी " कामा का बिसाबो अउ का तिहार मनाबो | बाई घलो छिन छिन म आँखी गुड़ेरथे ,लईका ह पदोथे | ऐसो के देवारी तिहार म तो दिवाला निकल जाही तइसे लागत हे | आगु के समाचार येहे  मितान बोनस के पैसा मिले हे त किश्त म मोटर साइकिल बिसाहूँ कहिके सोंचे हँव |हमर घर के मण्डलिन हा छत्तीसगढ़ीया ओलंपिक फुगड़ी खेल म भाग ले रहिसे | फस्ट आईस हे बड़ खुश हे | 

अउ बता मितान फूल दाई के तबियत कइसना हे,बपरी घातेच तकलीफ ल सहत हे | तुँहर घर लोग लइका के का हाल चाल हे | देवारी तिहार म गौरी गौरा विसर्जन के बेरा अखाड़ा खेलथव  कि नही |हमर इहाँ तो गौरा परघाय अउ विसर्जन ल अखाड़ा खेलत करथन | अउ आवत खानी राउत नाचत दोहा पारत आथन |संगवारी मन दोहा पारत गढ़वा बाजा म ददरिया तको गाथे | 

फेर मितान तिहार म मंद मउहा नशा के सेवन झन करहु काबर कि ये नुकसान देय चीज आय |


 बाकी समाचार तो ठीक हे आगु का लिखँव आप तो खुद समझदार हव बेरा निकाल के हमरो गाँव घूमे ल आहू त गोठ बात ह होही |

अपना ख्याल रखहू मितान |        

    तुँहर मितान

अशोक जायसवाल भाटापारा

सत्र - 13

चिट्ठी पाती-मितान के नांव चिट्ठी

 









मितान के नांव चिट्ठी 

                    मां भानेश्वरी की जय
                                               शुभ स्थान- सुरगी 

              तारीख -  २०-१०-२०२२, दिन -गुरुवार ( कार्तिक कृष्ण १०, विक्रम संवत २०७९)

          मयारूक मितान शिव प्रसाद लहरे 
          नारायणपुर
   जिला- नारायणपुर (बस्तर)
         छत्तीसगढ़ 

                                    जय जोहार...

       लिखना समाचार मालूम हो कि मां भानेश्वरी के कृपा ले मंय बने हवं.मोर परिवार ह ठीक- ठाक हे.आपो मन मां दंतेश्वरी के कृपा ले बने -बने होहू अइसन मोला पूरा बिश्वास हे. काका - काकी ल चरन छूके पायलागी करत हवं . मितानिन ल मोर डहन ले सीता- राम. नोनी -बाबू मन ल मोर डहन ले आशीर्बाद पहुंचे.सबो संगवारी मन ल जय जोहार कहि देहू.

            मितान आप ल बतावत मोला गजब उछाह होवत हे  कि चौदह बरस बाद मोर ट्रान्सफर गांव के नजदीक शासकीय प्राथमिक शाला भोथीपारकला म होगे हवय. ये गांव ह मां भानेश्वरी के पावन धाम सिंघोला के तीर हावय. अपन घर,अपन गांव,अपन क्षेत्र अउ अपन लोगन मन के बाते अलग होथे. ये सब ले दूरिहा रहिना कत्तिक पीरा देथे वोला उही मनखे ह जान सकथे जौन ह अपन घर- परिवार अउ अपन गांव/ शहर ले कोनो कारन ले दूरिहा रहे हे. घर -परिवार ले दूरिहा रहे ले कतको काम अटके पड़े रहिथे. मोरो वइसने दशा हे मितान. कई ठन काज करना रहि. भगवान उपर मोला पूरा बिस्वास हे कि मोर कारज मन धीरे धीरे पूरा होवत जाही. 

मेहा सोचथो मितान कि वोमन कोन से माटी ल बने रहत होही जौन मन अपन घर- परिवार अउ देश ल छोड़ के विदेश म बस जाथे. फेर धीरे ले अपन घर- परिवार, गांव/ शहर अउ अपन देश ल भुला जाथे! दाई -ददा के आंखी ह इंकर बाट जोहत पथरा जाथे. पर ये निष्ठुर चोला मन ह तो पथरा के देवता बन जा रहिथे जौन मन हाले न डोले! एक झन सियान के इही पीरा हे मितान कि अपन लइका ल अत्तिक पढ़ाईस कि अमेरिका म नौकरी मिलगे. पहिली एके झन नौकरी करत रिहिन अब वोकर सुवारी ल घलो ऊंहचे नौकरी मिलगे हावय. अउ दाई -ददा ह नंगत किलोली करत हावय कि बेटा अपन देश के कोनो राज्य म नौकरी कर लेबे तोला नइ रोकन पर विदेश ले अपन देश तो आजा बेटा. तुंहर बिना हमर का होरी! अउ का देवारी रे! 

 आगू समाचार हे कि घर म देवारी बूता चलत हे मितान.  तोर भौजी ह  कहिस कि कार्यक्रम के नांव म झार एती -वोती घूमत रहिथो. देवारी तिहार तीर आगे हावय. थोरकुन घर दुवार के काम म  घलो हाथ बटाहू तब तो बनही जी.त महू ह माटी के घर ल छाबे बर माटी मता हंव. तोर भौजी हर दीवार ल बरंड के लिपई -पोतई के काम करत हे.  एक झन बनिहार घलो लगाय हे.घर -दुवार के साफ -सफाई के काम ह जमगरहा चलत हे. राउत मन ह सुग्घर सुहई बनात हे. मातर तिहार बर नाचा/ सांस्कृतिक कार्यक्रम होही वोकरो बर चन्दा करत हे.

   येती देवारी ह लकठा गे हावय अउ बादर महराज ह घलो बरसत हे. येकर सेति किसान मन चिंतित होगे हे मितान.बरसात होय ले धान के फसल ल नुकसान पहुंचत हे. नंगत हवा- गरेर अउ पानी गिरे ले धान के फसल ह ढोलंग गेहे. अब्बड़ मिहनत ले फसल तैयार होय रिहिस त अब इन्द्र देवता ह छल करत हे! का करबे हाना बने हे न - खेती अपन सेती,  नइ ते नदिया के रेती. किसान मन ह मरो जियो कोशिश करत हे कि ये मिहनत ह रेती झन बनय.! ये बीच म बने खबर मिलिस कि किसान मन के खाता म धान के बोनस राशि भेज दे गे हावय. किसान मन ल थोरकुन राहत मिलिस. बारिश ले घलो राहत मिल जाय त बने हो जाही.
     एती लइका मन बर नवा कपड़ा बिसा हवं. मोरो बर कपड़ा ले हवं वोला दर्जी ल देय बर हफ्ता भर देरी कर परेंव. दर्जी ह कपड़ा ल इही शर्त म राखिस कि देवारी के बाद म ही तोर कपड़ा ल सिल पाहूं. २९ अक्टूबर २०२२ शनिच्चर के दिन हमर गांव सुरगी के मड़ई  होही अउ ३० अक्टूबर २०२२ ईतवार के दिन मंझनिया १२ बजे साकेत साहित्य परिषद सुरगी डहन ले साकेत साहित्य भवन सुरगी म दीपावली मिलन समारोह रखे गे हावय. आप ल ये दूनों  कार्यक्रम के सादर नेवता हे.

 बाकी सब बने -बने हे मितान. अउ कत्तिक बात ल लमावं . आप मन खुदे समझदार हव.

      आप मन के अउ आपके गांव डहन  के का हाल -चाल हे मितान . येला चिट्ठी लिख के जरुर बताहू . आपके चिट्ठी के अगोरा रहि.

                             तुंहर मितान

                     ओमप्रकाश साहू अंकुर

        गांव -  सुरगी

        डाक घर - सुरगी 

          तहसील अउ जिला - राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़)

पिनकोड -४९१४४३

मो. नं. - ७९७४६६६८४०
    
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Saturday 15 October 2022

छत्तीसगढ़ी कविता मा देवारी


 

*"छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*


                            कातिक अमावस्या के होवइया दीपावली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बड़का तिहार मा एक हे, जेखर जोरा बर जम्मो छत्तीसगढ़िया मन पाख भर पहली ले लग जथें। ये तिहार मा बरसा के पानी मा चोरो बोरो होय घर-कोठा, बारी-बखरी, गली-खोर जम्मों साफ सफाई होके, लीपा पोता के मुचमुच मुचमुच करत दिखथें। छोटे बड़े जम्मों मनखे अपन अपन घर अंगना के सुघराई ला बढ़ाये बर उछाह मा बूता करथें। ये तिहार के आरो पाके बरसा लगभग थम जाय रथे, जाड़ दस्तक देय बर लग जथे,खेत खार के पके धान पान छभाये मुंदाये कोठार मा सकलाय बर हवा संग दोहा पारके नाचत दिखथे। धनतेरस, नरक चौदस, सुरहोत्ती, गोवर्धन पूजा अउ भाई दूज ये प्रकार के देवारी पांच दिन के परब होथे। उज्जर उज्जर घर दुवार, नवा नवा ओनहा कपड़ा, किसम किसम के रंग- रंगोली, दाई लक्ष्मी अउ गोवर्धन महराज के घरों घर डेरा, आगास मा बरत गियास, रिगबिगावत दीया, फटाफट फूटत फटाका, दफड़ा दमउ मा मनमोहक राउत भाई मन के दोहा, गौरा गौरी अउ सुवा गीत, सबके मन ला मोह लेथे। अइसन मा कलमकार कवि मन ये समा ला अपन शब्द मा बाँधे बिना कइसे रही सकथे। आवन कवि मन के गीत कविता मा देवारी तिहार के दर्शन करत, ये पावन परब के आनन्द लेवन–

              कवि मनके कलम ले निकले आखर वो बेरा ला परिभाषित करथे। पड़ोसी देश मन संग छिड़े युध्द के आरो लेवत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, देश के रक्षा खातिर बलिदान दें चुके, सैनिक मन ला देवारी तिहार मा अपन श्रद्धा सुमन अर्पित करत लिखथें-

आइस सुग्घर परब सुरहुती अउ देवारी

चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो

जउन सिपाही जी-परान होमिन स्वदेश बर

पहिली उँकरे आज आरती हम उतारबो।


           देवारी तिहार के दिन राउत भाई मन घरो घर जोहार करत, गोधन ऊपर सोहाई बाँधत दफड़ा दमउ मा दोहा पारथे, उही दोहा मा देशभक्ति के रंग घोरे के किलौली करत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, राउत भाई मन ले कहिथें–

राउत भइया चलो आज सब्बो झन मिलके

देश जागरण के दोहा हम खूब पारबो

सेना मा जाये खातिर जे राजी होही

आज उही भइया ला हम मन तिलक सारबो।


                       हमर जम्मो परब तिहार सुख समृद्धि के कामना अउ दया मया के संगे संग जिनगी जिये के तको सीख देथे, तभे तो अंजोरी बगरावत दीया ला देख के *डाँ पीसी लाल यादव जी*  लिखथें-

दिया ले सिखो मनखे

पीरित गीत लिखो मनखे

तन-मन ले एक रूप

सिरतोन म दिखो मनखे।।


                  देवारी के सुघराई अउ लइका मन के उछाह उमंग ला अपन शब्द मा बाँधत *मोहन डहरिया जी* लिखथें-

आगे देवारी के दिन रे संगी

गली-गली उजियारा हे

फोरत लइका फटाफट फटाका

सबो के मन उजियारा हे


                  सुरहोत्ती के दिन घरो घर माता लक्ष्मी के पूजा होथे, फेर कुछ मनखे मन ये दिन जुवा चित्ती तको खेलत दिखथें, जे बने बात नोहे, उही ला उजागर करत, मनखे मन ला अइसन बुराई ले दूर रहे बर काहत *राजेश चौहान* जी लिखथें-

जुआ अउ चित्ती के मेटव बुराई

एमा नइये सुन काखरो भलाई

ऐई ए नरक दुवारी

सुन सँगवारी,सुन सँगवारी,आगे देवारी,आगे देवारी


           लगभग हमर सबो परब तिहार खेती किसानी ले जुड़े  हे, खेती बने बने होथे तभे तिहार बार रंग पकड़थे। अंकाल दुकाल तिहार बार के रंग ला फीका कर देथे। देवारी उछाह मंगल के परब आय, तभो अंकाल दुकाल के बेरा मा कभू कभू मुड़ धरके,मन मार बइठे रहे बर पड़ जथे, उही दुख ला देखत, *दानेश्वर शर्मा जी अउ सुशील यदु जी* कहिथें-

कइसे दसेरा अउ कइसे देवारी

रिसागे हम्मर भुइँया महतारी।

कइसे के लइका बर कुरता सियाबो

कइसे फटाका-दनाका चलाबो

*(दानेश्वर शर्मा जी)*


बादर घलो दगा देइस अब,आँखी होगे सुन्ना

लइका मन करहीं करलाई,हो जाही दुख दुन्ना

*(सुशील यदु जी)*

             

        वइसे तो देवारी तिहार के पांचों दिन धूम रथे, तभो शहर मा सुरहोती ला ता गांव मा गोवर्धन पूजा(अन्न कूट या देवारी) ला जोर शोर ले मनाये जाथे, गोधन महिमा बतावत *दुष्यन्त कुमार साहू* जी लिखथें-

देवारी तिहार म गाँव भर, गऊ माता के पूजा घलो करथन

पूजापाठ के बाद खिचड़ी खवाथन, पाछू हमन जूठा खाथन।।

                 मया मीत सुख समृद्धि के रद्दा मा कतको बुराई जेन रीत बनके जबरदस्ती बइठे रथे, तेन बाधक होथे। मनखे मन नेंग जोग हरे कहिके वो बाट मा रेंगत घलो दिख जथे। वइसने एक बुराई आय भरे सुरहोती मा जुवा के फड़ जमना, उही बात ला वरिष्ट कवि अउ छंदकार *अरुण निगम जी* सोरठा छंद मा कहिथें-

सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस।

आज जुआ के नेंग, जग्गू घर-मा फड़ जमिस।।


                 देवारी तिहार बर हनहुना धान पक के कोठार बियारा मा, दाई लक्ष्मी बनके आय बर लग जथे, उही ला *बरवै छंद मा,आशा देशमुख* जी लिखथें-

सोन बरोबर चमके,खेती खार।

खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।

अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।

ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।


             दीया माटी के होके घलो अंजोर बगराथे, मनखे काया घलो माटी आय अउ आखिर मा माटी मा मिलना हे, अइसने आध्यात्म के बाती बरके दया मया के जोत मा, कुमत,इरसा,द्वेष रूपी अँधियारी ला दुरिहावत *अजय अमृतांशु जी* लिखथें-

माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।

देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।

जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।

सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।

आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।

आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।


                ज्यादातर तिहार बार मा मनखे मन अपन हैसियत के हिसाब ले जोरा जाँगर करत चीज बस खरीदथें, फेर कतको झन देख देखावा अउ लालच मा घलो आ जथे, भेदभाव के फेर मा पड़ जथे, उही ला देखत *अनुज छत्तीसगढ़िया जी* लिखथें-

करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।

चीज अगरहा अब झन लेवव,जेकर नइ हे काम।। 

मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।

बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


              पाँच दिन के पावन परब के वर्णन करत *सरसी छंद मा,संगीता वर्मा* जी लिखथें-

धन तेरस मा यम के दियना,जुरमिल सुघर जलाव।

चौदस मा सब बड़े बिहनिया,चंदन माथ लगाव।।

माँ लक्ष्मी के कृपा बरसही, करव आरती गान।

अन्न कूट भाई दूज परब, दिही मया धन धान।


        हमर कोनो भी परब तिहार के संग कोई ना कोई धार्मिक आस्था जुड़े रथे, वइसने देवारी तिहार मा भगवान राम चौदह बछर वनवास काट के अयोध्या लौटे रिहिस, अउ जम्मो नरनारी मन वो रतिहा ला दीया बार के उजराये रिहिस, उही प्रसंग मा *दुर्मिल सवैया के माध्यम ले गुमान प्रसाद साहू* जी कहिथे-

सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।

बनवास बिता रघुनंदन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।

खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।

सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।। 


          रिगबिगावत दीया गली घर खोर के अँधियारी ला दुरिहाथे, मन के अँधियारी ला भगाय बर ज्ञान जे जोत जलाये बर पड़ते,देवारी के परब ला इही भाव मा देखत *विजेन्द्र वर्मा जी, सरसी छंद मा कहिथे*-

परब आय हे सुघर देवारी,बाँटव सब ला प्यार।

परहित सेवा मा अरपन हो,जिनगी के दिन चार।।

जले ज्ञान के दीप सुघर जी,होय जगत उजियार।

येकर लौ मा सबो जघा ले,भागय द्वेष विकार।।


             सुरहोती मा माता लक्ष्मी धन दौलत संग दया मया अउ राग रंग के बरसा करथे। मया दया के पाग सबर दिन लाड़ू कस आपस मा बंधाये रहे, इही कामना करत *कुंडलिया छंद मा मनीराम साहू 'मितान'* जी लिखथें-

सुरहुत्ती मा सुर मिलय, मिलय सबो के राग।

चिटिक कनो छरियाय झन, रहय मया के पाग।

रहय मया के पाग,करी के लाड़ू जइसन।

मिलय खुशी भरमार,नँगत उत्साह भरे मन।

लक्ष्मी आय दुवार, सुरुज सुख लावय उत्ती

धन दौलत शुभ लाभ,दून देवय सुरहुत्ती।


                सुरहोती के दिन जगमगावत रतिहा ला शब्द मा पिरोवत *महेंद्र बघेल जी* लिखथें-

सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।

रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।


          परब तिहार,धर्म-आस्था के संगे संग संस्कार अउ संस्कृति के तको संवाहक होथे। देवारी मा छोटे बड़े नोनी मन कोस्टउँहा लुगरा पहिरे,गोल घेरा बनाके,थपड़ी पीटत, सुवा नाचथें, उही ला *जगदीश "हीरा" साहू* जी अउ *अरुण कुमार निगम जी* लिखथें-

नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।

लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।

देखत मन  भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।

सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।

*(जगदीश हीरा साहू)*


तरि नरि नाना गाँय, नान-नान नोनी मनन। 

सबके मन हरसाँय, सुआ-गीत मा नाच के।।

*(अरुण कुमार निगम)*


             सुवा के संगे संग गांव गांव मा बैगा बैगिन घर अउ गौरा चौरा मा महराज इसर देव के बिहाव संग गौरी गौरा गीत सहज सुने बर मिल जथे उही ला देखत अमृतध्वनि छंद मा *बोधनराम निषादराज* जी लिखथें-

गौरी गौरा के परब, सुग्घर  रीत  रिवाज।

परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।

छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।

शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।

रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।

होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।


              परब तिहार दया मया के संगे संगे मनखे ला जन्मभूमि ले घलो जोड़े के बूता करथे। देवारी तिहार के आरो पाके आन राज मा कमाए खाय बर गय जम्मो मनखे मन अपन गाँव मा सकलाये बर लग जथे, उही ला *परमानंद बृजलाल दावना* जी दोहा पारत कहिथें-

गांव छोड़ परदेस मा ,  बसे रहे सब आय।

अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।

                  

          आज मनखे के मन तिहार बार मा घलो स्वार्थ के घोड़ा मा चढ़े लाभ हानि के फेर मा पड़े देख देखावा अउ देखमरी ला पोटारे दिखथें, पहली कस निःस्वार्थ मया-दया अउ सुनता दुर्लभ होवत जावत हे, उही बात के चिंता करत *जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"* लिखथें-

अँगसा-सँगसा म दीया,कोन जलाय?

बरपेली   जिया  , कोन    मिलाय?

कोन हटाय, काँदी  -  कचरा    ल?

कोन  पाटे,खोंचका -  डबरा     ल?

मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।

देख  देवारी,दिनों - दिन , दुबरात    हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday 14 October 2022

सुरता---हमर गाँव नगरगाँव...


 


सुरता---हमर गाँव नगरगाँव...

तैं झुमर जाबे रे संगी, आ के हमर गाँव, तैं झुमर जाबे..

उत्ती म कोल्हान के धारा बोहत हे

बोहरही दाई जिहां मया बांटत हे

जिहां बिराजे ठाकुरदेव-महादेव के पांव...


    लइकई पन के सुरता करत अपन गाँव नगरगाँव के अंगना म बिताए कुछ दृश्य ल गीत के रूप देवत रेहेंव.

    वइसे गाँव म मोर जादा दिन रहना नइ हो पाइस. काबर ते हमर सियान रामचंद्र वर्मा जी शिक्षक रिहिन. जब मोर जनम होइस, त उन भाठापारा के मेन हिन्दी स्कूल म पढ़ावत रिहिन. एकरे सेती मोरो जनम ले लेके चौथी तक के स्कूल जवई भाठापारा म होइस. 

   मैं जब चौथी कक्षा म पढ़त रेहेंव, उही बखत हमर कका देवचरण वर्मा जी, जेन वो बखत कुर्रा-बंगोली म शिक्षक रिहिन, एक सड़क दुर्घटना म देवलोक गमन होगे. ए भारी हादसा के सेती हमर सियान हमर मन के परीक्षा देवई ल छोड़ा के गाँव ले आइन, अउ ए काहत गाँवेच म हमर डोकरी दाई अउ बबा जगा छोड़ देइन, के इही लइका मनला देख के डोकरी डोकरा दू मुठा अन्न ल खा पाहीं. नइते जवान बेटा के परलोक सिधारे के दुख म उन अन्न पानी ल छूहीं घलोक नहीं.

    अइसे किसम मैं कक्षा चौथी ल फेर पढ़ेंव गाँव म. चौथी ले सातवीं तक, वोकर बाद फेर रायपुर आगेन, काबर ते हमर सियान ह भाठापारा ले रायपुर अपन ट्रांसफर करवा डारे राहंय. 

   गाँव म छात्र के जिनगी मैं सिरिफ चारेच बछर भर जीएंव, फेर वो चार बछर ह आज घलो मोर आंखी म मोहनी कस छापा झूल जथे.

     हमर गाँव नगरगाँव थाना धरसींवा, जिला रायपुर के अन्तर्गत आथे. राजधानी रायपुर म अभी जेन विधानसभा भवन हे, उहाँ ले उत्तर दिशा म सिरिफ दस-ग्यारह कि. मी. के दुरिहा होही. अभी जेन विधानसभा भवन हे, वो ह गाँव बरौदा के पटपर भांठा आय. मोला सुरता हे, जब हमन मिडिल स्कूल म रेहेन, त इही भांठा म ब्लॉक स्तरीय खेल कूद होए रिहिसे. हमन ए आयोजन के सेती उहाँ दू दिन ले रेहेन, अउ चैम्पियन ट्राफी ल जीत के लेगे रेहेन.

    वो बखत नगरगाँव खेल कूद के संगे संग पढ़ई लिखई म घलो आसपास के गाँव मन म अगुवा रिहिस. हमर गुरुजी मन घलो भारी समर्पित अउ गुनिक रिहिन. मोला कक्षा पांचवी के ठउका सुरता हे. हमर गाँवेच के गुरुजी लखनलाल दुबे जी वो बखत प्रधान पाठक रिहिन हें, वोमन पांचवीं बोर्ड परीक्षा होथे, हमर गाँव के रिजल्ट पूरा ब्लॉक म पहला आना चाही कहिके खुदे पांचवीं कक्षा ल पढ़ावंय. दिन भर स्कूल म तो पढ़ाबेच करंय, रतिहा जुवर अपन घर म घलोक हमन ल पढ़े बर बलावंय. हमर गाँव म उही बखत नवा नवा बिजली आए रिहिसे, फेर सबो घर बिजली के अंजोर नइ बगर पाए रिहिसे. एकरे सेती हमन  पांचवीं कक्षा के जम्मो लइका  कंडिल धर के गुरुजी घर पढ़े बर जावन. रतिहा जब पढ़ के लहुटन त टूरी मनके कंडिल ल फूंक के बुता देवन, अउ एदे गली म भूत हे कहिके वो मन ल डरवावन.

      पढ़ई लिखई के प्रतिशत आज घलो हमर गाँव म बहुत अच्छा हे, जइसे पहिली रिहिसे. सियान मन बतावंय के हमर गाँव म जेन प्राथमिक शाला हे, वो ह अंगरेज मन के शासन काल ले हे. वो बखत आसपास के अउ कोनो गाँव म स्कूल नइ रिहिस, एकरे सेती मांढर ले लेके सिलयारी तक के लइका मन हमर इहाँ पढ़े बर आवंय. फेर मिडिल स्कूल हमर इहाँ पाछू खुलिस. हमर गाँव के लइका मन मिडिल पढ़े बर कोनो मोहदी, कोनो मांढर त कोनो सिलयारी तक जावंय.

    हमन जब कक्षा पांचवीं म रेहेन, तेने बछर छठवीं कक्षा चालू होइस, उहू म शर्त रिहिसे, के वोकर खातिर कमरा गाँव वाले मन ल बनाए बर लागही. शासन सिरिफ गुरुजी भर मन के व्यवस्था करही. वो बखत नगरगाँव के सरपंच बुद्धूराम वर्मा जी रिहिन, उन छठवीं कक्षा खातिर अपन डहार ले कमरा बनवाए बर तैयार होगें. अउ बाकी दू कमरा ल पाछू देख लेबो कहिके छठवीं के पढ़ई ल चालू करवाईन.

     मोला सुरता हे, हमन वो मिडिल स्कूल खातिर कमरा बनई म भारी श्रमदान करन. मुरमी खदान ले मुरमी लानन, वोला कुरिया म पटक के पथरा म कुचर के बरोबर करन. अउ सबले मजेदार बात गुरुजी मन उंकर खातिर पइसा (धन) सकेले खातिर हमन ल हर बछर  छेरछेरा परब म गाँव भर बेंडबाजा बजावत किंजारंय. अइसे तइसे म मिडिल स्कूल के सपना पूरा होइस.

    मैं सिरिफ सातवीं तक ही गाँव म पढेंव वोकर बाद आठवीं ले रायपुर आगेंव. रायपुर आए के बाद गाँव जवई घलो कमतियागे. वो बखत रायपुर आए जाए खातिर मांढर ले रेल म चढ़ के आना जाना परय. तब टिकिट 30 पइसा लागय. घेरी भेरी टिकिट खातिर घर ले पइसा मांगे ले बांचे खातिर तब मैं साइकिल चलाए बर सीखेंव. अउ साइकिल के सीखते हर हफ्ता के छुट्टी म गाँव जवई हो जावय. हाईस्कूल के पढ़त ले अइसन चलिस. 

    हमन जब गाँव जावन त बस्ती भीतर कभू नइ राहन. हमर गाँव के उत्ती मुड़ा म कोल्हान नरवा हे, अउ वोकरे खंड़ म बोहरही दाई के मंदिर देवाला हे. एक किसम के दर्शनीय स्थल हे. अब तो ए ह एक पर्यटन स्थल के रूप म विकसित होवत हे, जिहां लोगन के आना जाना हमेशा लगे रहिथे. फेर जब हमन लइका रेहेन त वो अतेक विकसित नइ होए रिहिसे. तभो हमर मन के किंजरई फिरई नरवा के आसपास ही जादा होवय. तब वोमा बारों महीना पानी राहय. हमर मन के गरमी के छुट्टी ह उहेंच पहावय.

   वो बखत कोल्हान के दूनों मुड़ा भारी जाम बगीचा राहय. बारी मन म कांदा, कुसियार, मूंगफली, चना सब बोवावय. वइसे बस्ती घलो गद बोलय, बड़े बस्ती आय, संग म शिक्षित लोगन के बसेरा हे, फेर हमन खोरकिंजरा होगे राहन. 

   हमर गाँव शिक्षित बस्ती होए के सेती इहाँ साहित्य, कला अउ संस्कृति खातिर लोगन के रुझान घलो अच्छा देखे बर मिलय. हमन हर बछर शरद पूर्णिमा म इहाँ कवि सम्मेलन के मजा लेवन.  डॉ. ध्रुव कुमार वर्मा के एमा बड़का योगदान हे. वोकर संग उहाँ एक सूरदास कवि घलो रिहिन, रंगू प्रसाद नामदेव जी. नामदेव जी कुंडली लेखन के जबरदस्त हस्ताक्षर रिहिन. उंकर कुंडली मन के एक संकलन ल रायपुर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति डहर ले 'हपट परे तो हर गंगे' नांव ले छपवाए गे हे. डॉ. ध्रुव कुमार वर्मा अउ रंगू प्रसाद नामदेव ले चले साहित्यिक परंपरा ल मोर संग  म भाई विजेंद्र वर्मा अउ उंकर सुवारी संगीता वर्मा आगू बढ़ावत हवंय.

   हमर गाँव के लीला मंडली के घलो अबड़ सोर रिहिसे. आसपास के गाँव के मन हमर गाँव लीला देखे बर आवंय. हमर इहाँ नवधा रामायण के घलो हर बछर आयोजन होवय. ए आयोजन के आखिरी दिन भिंभौरी वाले सुप्रसिद्ध शब्दभेदी बाण संधानकर्ता कोदूराम वर्मा जी के शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन होवय.

     फेर अब ये सब बात तइहा ल बइहा लेगे, तइसन किसम के होगे हे. एकर सबले बड़े कारण गाँव म होवत अंध शहरीकरण के असर. एकर एक बड़का कारण रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र के अंधाधुंध फैलाव घलो आय. रायपुर औद्योगिक क्षेत्र जेन सिलतरा ले होवत धीरे धीरे चारों खुंट बगरत हे, एकर दुष्प्रभाव हमर गाँव तक पहुँचगे हे.

      औद्योगिक क्षेत्र के प्रदूषण अउ धुंगिया ह हमरो गाँव म पट्टाए ले धर लिए हे. एकर सेती गाँव के तरिया मन के पानी म राख के पपड़ी जम जाथे. कुंआ बावली के पानी पीए के खातिर उपयोगी नइ रहिगे. अउ एकरो ले बड़े खराबी, सांस्कृतिक पतन के रूप म देखे ले मिलत हे.

    ए क्षेत्र के जम्मो फेक्टरी मन म आने आने क्षेत्र ले काम करइया लाने जाथे, जे मन ठकठक ले अकेल्ला आथें, तहांले आसपास के गाँव मन म किराया के घर  खोजथें, वोकर बाद गाँव के बेटी बहू मन खातिर उंकर नीयत म गंदगी अमा जाथे. 

   ए औद्योगिक क्षेत्र के बने ले जुआ, शराब अउ गुंडागर्दी घलो अबड़ बाढ़गे हे. एकर सेती अब ए तीर के गाँव मन म खेतिहर मजदूर घलो नइ मिल पावय, तेकर सेती किसानी के काम ह भारी तकलीफ दायक होगे हे. जे मन अपन जांगर भरोसा थोर बहुत खेती कर सकथें, ते मन तो अलवा जलवा खेती कर लेथें, फेर जे मन बनिहार भरोसा होथें तेकर मन के मरे बिहान हे.

      अब तो गाँव डहर जाए बर पांव घलो उसले ले नइ धरय. वइसे मोर साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि म जादा सक्रिय होए के बाद गाँव जवई कमतियागे रिहिसे, जेन ह औद्योगिक प्रदूषण के सेती नहीं के बराबर होगे हे. भगवान शासन प्रशासन म बइठे लोगन ल सद्बुद्धि देवय, तेमा हमर गाँव जइसन कतकों गाँव के अस्तित्व अपन संस्कार ल जीवित रखे के लायक बांच सकय.

-सुशील वर्मा 'भोले'

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


कहानी-खिचरी

 कहानी-खिचरी

                                                                    

                                     चन्द्रहास साहू

                               मो - 8120578897

आज लुहुंग-लुहुंग तरिया गिस। तरिया अमरके झटपित-झटपित कपड़ा लत्ता ला कुढ़ोइस। खबल-खबल नहा धो डारिस। अब लकर-लकर मंदिर अमरगे राधाकिशन के अउ उत्ता-धुर्रा पूजा करके खन-खन करत सिक्का ला चढ़ाके दंडासरन होइस। हबर-हबर बासी खाइस अउ सटर-पटर जोरिस-जंगारिस टिफिन लेगे बर। तनतीन-तनतीन साईकल ला कुरिया ले निकालिस। पम्प निकालके सुर्र-सुर्र हवा भरिस। अब हफर-हफर साईकल चलावत हाबे। भुर्रुर-भुर्रुर साईकल दउड़त हे अउ सुरुर-सुरुर हवा चलत हाबे। काया के पसीना घला सुखावत-अटावत हे।  घड़ी चौक अमरगे। घड़ी ला देखिस नौ पैतालीस। मुचमुच-मुचमुच मुचकाये लागिस। ओगरे पसीना ला पोछिस। अब तीर के राइसमिल अमरगे। स्टैंड करिस साईकल ला तीर-तार मा अउ सुटुर-सुटुर  राइसमिल मा खुसरगे। गड़गिड़-गड़गिड़ लोटा भर पानी ला पी डारिस अउ सुकुरदुम होगे। आगू मा सांगर-मोंगर जवनहा ठाड़े हाबे। 

"कइसे बे, मनराखन ! अभिन बेरा ये आय के ? दस बजे आये के नेमाये हाबे अउ सवा दस बजे आवत हस मार टेस-टास मा। जाए के बेर कइसे हड़बड़-हड़बड़ करथो ..? एक बुता उपराहा नइ होना चाही ? घड़ी देख के कमाथो ...अउ कोनो एकोकन उपराहा होगे तब आगर के घाघर पइसा लेथो जांगर-चोट्टा हो।''

सेठ आय। कर्रस-कर्रस कर डारिस। अगिया-बेताल होगे। मनराखन अब सुटुर-सुटुर अपन बुता मा लग गे। पहिली मिल मा माड़े चाउर के छल्ली ला गिनही वोकर पाछु आज के  बुता के योजना बनाही। भलुक मनराखन तो बेरा मा आइस रामबगस दुलार कातिक मन तो अउ बिलम ले आइस, अब्बड़ झँझेटिस। फेर मटर-मटर करइया मटमटही मन गियारा बजे आइस तभो ले चिट- न पोट करिस। आय के बेरा ला देखथे दस बजे ले थोड़को आगर होगे तब एड़ी के रिस तरवा मा चढ़ जाथे सेठ पिला के अउ जाये के घण्टा भर ले जादा हो जाही तभो ले आँखी नइ उघरे। 

जम्मो ला गुनत-गुनत राइसमिल के चाउर बोरी ला गिन डारिस मनराखन हा।

"दू हजार एक सौ चालीस बोरी हाबे सेठ टोटल। मोट्ठा चाउर वाला चार सौ बोरी के एक रेक, उसना छे सौ के दू रेक, ममहाती चाउर तीन सौ बोरी के एक रेक। अरवा चाउर सिरागे काली नौ ट्रक माल नागपुर कटनी गुंटूर हैदराबाद बागबाहरा अउ राजिम गिस हाबे।''

मनराखन सेठ ला बताये लागिस।

"आज बस्तर भेजबे पुराना गोदाम के मोट्ठा चाउर ला। पूरा दस हजार नौ सौ पैतीस बोरी हाबे सबो ला उही कोती खपा देबे।''

"फेर सेठ जी ! वो तो रिजेक्ट मॉल आय ओमा इल्ली घला लगत हाबे।''

"वोकर से तोला का मतलब ..? कोनो लंदर-फंदर मा झन पर तेहां। जतकी काहत हँव ओतकी कर।''

सेठ टीरटीर-टीरटीर करे लागिस।

"..…. छत्तीसगढ़ मा ही तो खपही रे ! मोट्ठा अउ अलवा-जलवा चाउर हा। आदत घला होगे हाबे इहाँ के मइनखे मन ला सरहा चाउर खाये के। पाँच ट्रक ममहाती चाउर ला लहुटा देये रिहिन अधिकारी हा पाछु दरी। ममहाती चाउर मा कमीशन कमती जाथे अउ मोट्ठा, सरहा चाउर में तो सर-बसर कमीशन देये ला परथे-फिफ्टी फिफ्टी। घुरवा मा फेंकाये वाला जिनिस बेचा जाथे हमर अउ अधिकारी के तिजोरी घला भर जाथे-दुनो कोई उछाह मा रहिथन।''

दीवार मा लगे किशन भगवान के फोटो मा माथ नवावत सेठ  बतावत हाबे अउ हाँसत हे।

मनराखन सेठ के मुँहू-मुँहू ला देखे लागिस। कतका दोगला हाबे येमन। लोटा धरके आये रिहिन अउ लबारी मार के अतका जिनिस बना डारिन। स्कूल कॉलेज फैक्टरी जम्मो के मालिक बनगे अउ हमर छत्तीसगढ़िया भाई बहिनी मन अभिन घला दारू पीके लट-लटाये रहिथे, खोर्रा गोड़ में चार तेंदू खोजत हे। वाह रे चतरा परदेसिया हो। रूपरंग बोली भाखा जम्मो ला हथिया डारेव।

मनराखन गुनत हाबे वोकरो मुँहू करू हो जाथे।

"अरे मनराखन तेहां जानथस ये जतका चाउर जाथे न ट्रको-ट्रक वोकर आधा माल लहुट के आ जाथे हमरे करा। वोला फेर दुबारा तिबारा बेचथन।''

मनराखन के मुँहू उघरा होगे। संसो मा घला पर जाथे सेठ कइसे आज भकरस-भँइया गोठियावत हाबे।

"कइसे सेठ ?''

"ये छत्तीसगढ़िया मन घला चतुरा हाबे रे ! तरी उप्पर कारड बना लेहे। दू रुपिया किलो मा चाउर बिसाथे अउ बीस रुपिया मा कोचिया करा फेर बेच देथे। कोचिया करा लें बाइस रुपिया मा हमन फेर बिसाथन ताहन सरकार ला चवालीस रुपिया मा फेर बेचथन। अब सरकार हा सोसायटी मा मयारुक जनता मन ला फेर दू रुपिया किलो मा बेच देथे। कहावत बरोबर होगे ये चाउर हा, हाय रे मोर बोरे बरा घूम फिरके मोरेच करा हा....हा....हा....!''

मनराखन ला अइसे लागिस जइसे वोकरे ऊप्पर हाँसत हाबे। मनराखन अब ट्रक मन के हियाव करे लागिस।

                     मिल के बॉयलर मा धान ओईरावत हाबे,भाँप मा उसनावत हे, सुखत हे दरावत हे कोड़हा भूसा अलग-बिलग होके साबुत चाउर निकलत हे। ऐति-वोती जम्मो कोती कमइया मन पसीना ओगरा के बुता करत हाबे। चाँउर के हिसाब-किताब करिस मनराखन हा। कहाँ ले कतका मॉल आइस-गिस जम्मो के हियाव करिस। मनराखन हा मुंशी बुता ला अभिन सीखत हाबे। .... अउ अब अपन संगी-संगवारी मन संग जेवन करे ला बइठ गे। 

चना के घुघरी साग संग भात ला लपेटे लागिस अउ उदुप ले सुध आगे दाई के। जब ड्यूटी आइस तब घर मा नइ रिहिन दाई हा। की पेड मोबाइल मा नम्बर डायल करिस। 

"हलो छोटू ! कहाँ हे भाई दाई हा ?''

छोटू, मनराखन के कका के बेटा आवय। कुछु उच्च -नीच होथे तब उही ला सोरिया लेथे। 

"दाई ! सोसायटी गेये रेहेस नही ओ चाँउर छोड़ाये बर?''

"हांव बेटा ! गे रेहेंव गा।  मोट्ठा चाँउर मिलिस बेटा सबरदिन बरोबर फेर चाँउर हा ठिकाना नइ हाबे अब्बड़ जलियाहा हाबे। अब्बड़ छीने-चाले ला लागही। पतारी कीरा घला बिलबिलावत हाबे।  तोर आजा घर कोती ममहाती मासरी चाँउर देथे अउ हमर कोती सबरदिन मोट्ठा ?''

"कइसे करबो दाई ! सरकार वइसने चाँउर ला पठोथे तब। फुन-फान लेबे, छीन-चाल लेबे ओ।'' 

"हांव बेटा ! फोकटे-फोकट बिचारा सेल्स मेन अब्बड़ गारी-बखाना खाथे गा।''

सेल्समैन बर सोग मरत किहिस दाई अहिल्या हा।

 ले झटकुन घर आबे सांझकुन मंदिर लेगबे मोला।'' 

"हांव दाई !''

"बेटा! लाली बेटी के कुछु सोर मिलिस गा। कब आहू किहिस ? कहाँ हाबे ? बने सुघ्घर हाबे न गा ? कोन गाँव मा हाबे ?''

दाई के नरी बइठ गे रो डारिस पूछत ले। 

"हांव दाई ! पुलिस वाला साहब करा जाके पूछहु का होवत हाबे केस के तेला। हफ्ता दिन मा आके पता करबे केहे रिहिन, जानबा करहु पइसा लागही ते अउ चढ़ाहु चढ़ोत्तरी।''

मनराखन उदास होगे। दाई तो अब बम्फाड़ के रो डारिस। फोन कटगे टू....टू....टू.... के आरो के संग।

                  शहर तीर के गाँव-तेलीनसत्ती। दाई अहिल्या अउ बेटा मनराखन इही गाँव मा रहिथे। दाई घर राखथे अउ बेटा हा शहर के राइसमिल मा बुता करथे-मुंशी बुता। मनराखन के छोटे बहिनी लाली हा पांचवी मा रिहिस तब ददा बितगे रिहिन। एक भाई एक बहिनी अउ दाई अहिल्या, अतकी तो परिवार आय मनराखन के। अब्बड़ पढ़ाहू बहिनी तोला ! तोर जम्मो साध ला पूरा करहुँ। तोर सपना के जम्मो रंग ला भरहू। अब ददा नइ हाबे ते का होइस ? भलुक बड़का भाई आवव फेर ददा बरोबर जम्मो जिम्मेदारी ला उठाहु। मनराखन मने-मन किरिया खा डारिस। पढ़ई छोड़के अब राइसमिल मा रेजा-कुली के बुता करे लागिस।

           ......फेर मनराखन के चेहरा मा जतका उछाह रहिथे वोकर ले जादा संसो होथे लाली बर। काबर संसो नइ करही ? निर्भया ला कोन नइ जाने ? महराजिन के एकलौती बेटी के का गत कर डारिस होस्टल मा रही के पढ़त रिहिन तब। अउ..... पुलिस वाला सिन्हा जी के बेटी ? हे भगवान ! न कोनो जात धरम लागत हाबे न पद-प्रतिष्ठा। मइलाहा मइनखे मन बेरा के अगोरा मा रहिथे। पेपर अखबार टीवी मा तो बस, इही अनित हा ब्रेकिंग न्यूज रहिथे। नेशनल क्राइम रिपोर्ट के आकड़ा तो कहिथे सिरिफ तिरालीस प्रतिशत क्राइम ला पुलिस रजिस्टर करथे। ......अउ बाकी सत्त्तावन प्रतिशत क्राइम के का होथे ?  मनराखन मुड़ी ला धर लेथे। अउ सुध लमाये लागथे अखबार मा पढ़े रिहिन तेला। कोनो मन लोक-लाज के भय ले, कोट-कछेरी ले बाचे बर तब कोनो डर्रा के आगू नइ आवय अउ कोनो-कोनो तो खुद मर जाथे फेर कोनो ला जानबा नइ होवन देय।

मोर बहिनी ला काकरो मइलाहा नजर नइ लगन देंव। बचा के राखहु बैरी मन ले। छइयां बनके संगे-संग रहू फेर बहिनी लाली ला टिक्की लगन नइ देंवव। मनराखन फेर किरिया खा डारिस-मनेमन मा। 

        नानकुन रिहिन लाली हा चिरई बरोबर उड़ियावय फेर अब बड़का होइस तब तो बेड़ी लगगे। इहाँ नइ जाना, उहाँ नइ जाना। जादा नइ गोठियाना-बतराना। हाँसी-ठिठोली जम्मो बर पाबंदी लगगे। वोकरो तो आसमान आवय। पाँख हाबे तब काबर नइ उड़ियाही लाली हा।

"दाई ,भाई हो ! बेंगलोर जाहू पढ़े बर।''

लाली आज किहिस।

"बैंगलोर....? जानथस कोन कोती परथे तौनो ला ?''

"अउ पइसा कहा ले आही टूरी  ?''

"न बाप के सगा न दाई के लरा-जरा, नइ पठोवन।''

दाई बरजत हाबे। भाई मनराखन घला बम्बियागे । घर मा रहा। भलुक कमती पढ़ फेर हमर राज ला छोड़ के झन जा। जतका पढ़बे ओतका पढ़ाहू फेर परदेस नइ पठोवव।'' मनराखन अउ दाई दुनो कोई के ब्रम्हवाक्य होगे।

"मोरो सपना हाबे कुछु करे के । .....अउ बिन सपना के नइ जी सकव मेंहा।''

लाली किहिस अउ रो डारिस गोहार पार के। अब्बड़ उदास राहय लाली हा। दू दिन ....चार दिन ..... अब्बड़ मनाइस दाई अउ अउ भाई ला।

.....नइ मानिस अउ एक दिन ...? कोनो नइ जाने कहाँ गिस लाली हा तेला। मरत हाबे धुन जीयत हाबे तेखरो सोर-संदेश नइ हाबे। मनराखन तो थाना कछेरी जम्मो के डेरउठी ला खुंद डारिस। फेर बिन पइसा के का होही ? नत्ता-गोत्ता संगी-संगवारी जम्मो ला पूछ डारिस फेर लाली के कोनो आरो नइ हाबे। 

                    दाई अहिल्या हा अगोरा करत हाबे भगवान राम के। बेटी के दुख मा पथरा होगे हाबे। लाली आही तभे जीवन मिलही वोकरे सेती किशन भगवान के डेरउठी मा अर्जी  लगाथे। ...अब उही तो आसरा हाबे। 

                      चाँउर लाने हाबे कोटा ले। आज घला कुछु बनावत हाबे भोग लगाये बर। जम्मो पारी रिकम- रिकम के जिनिस बनाथे दूध-मही लेगथे अउ राधा किशन मंदिर मा चढ़ाथे फेर मंदिर के परदेसिया पुजारी मन ला का भाही ठेठरी-खुरमी फरा-दुधफरा हा। ....कभु नइ झोंकिस अहिल्या के कलेवा ला, सबरदिन दुतकार दिस।

                 अहिल्या आय कभु हार नइ माने। राहेर दार मूंग दार अउ चाँउर ला छांट-निमार डारिस उत्ता-धुर्रा। खबल-खबल बरतन ला धोके हबर-हबर जम्मो तियारी कर डारिस। भरर-भरर आगी ला बारिस अउ खबले कड़ाही ला चढ़ा डारिस। गाय के घीव मा जम्मो मसाला ला भुंजत हाबे। खर्रस-खर्रस चम्मच चला के बनावत हाबे करमा दाई के खिचरी। डबडब-डबडब डबके लागिस अउ घर भर भरगे  माहर-माहर करत दुबराज चाँउर के खिचरी हा। आरुग खिचरी अब अगोरा करत हाबे भगवान के अउ दाई अगोरा करत हाबे अपन बेटा मनराखन के।   

                    घर लुहटिस मनराखन हा। सटर-पटर तियार होइस अउ अमरगे शहर के सबले बड़का मंदिर मा अपन दाई संग। भलुक शहर के बड़का मंदिर आय चमचमावत संगमरमर वाला फेर वोला अउ जादा बड़का बनाये बर बड़का दान पेटी राखे हाबे। मनराखन हा जानथे मंदिर मा चढ़ोत्तरी चढ़ाये ले लाली लहुट के नइ आवय फेर दाई के मन राखे बर  सौ पचास रुपिया ला चढ़ा के रसीद माँगथे। 

"हूं....... ये पचास रुपिया ले जादा महंगा तो रसीद कागज के हाबे। रसीद देके का करहुँ ...? देख ये जम्मो कोई हा दस हजार ले आगर चढ़ोत्तरी चढ़ावत हे। दस हजार दे अउ रसीद ले।''

उदुप ले पाछु दरी के घटना के सुरता आगे मनराखन ला। सात हजार महिना कमाथो तब दस हजार ला का चढ़ोत्तरी चढ़ाहू। गुनत-गुनत सीढ़िया के पैलगी कर के मंदिर मा गिस। आरती के बेरा अमरिस। अब्बड़ भीड़ लगे हाबे भक्त मन के। राधाकिशन के मूर्ति अब्बड़ सुघ्घर लागत हाबे। गाना बजाना के संग आरती होइस। राधाकिशन के मूर्ति के आगू मा  लड्डू खोवा मेवा मालपुवा ढ़ोकला फाफड़ा धनिया पंजीरी  नरियर फल-फलहरी छप्पन भोग माड़े हाबे-भोग के बेरा आय अब। 

                         अहिल्या घला संसो करत हाबे आज तक कभु कोनो जिनिस लाने रिहिन, तौन ला कभु नइ झोंकिस पुजारी हा। सबरदिन दुतकारिन। कभु कलेवा ला लहुटा के लानीन तब कभु गरीब मन ला बांट के अवसोसी पूरा करिस अहिल्या हा। फेर कभु राधाकिशन ला भोग नइ चड़ीस अहिल्या के बनाये कलेवा के। 

आज तो पीतल के बटलोही मा खिचरी धरे हाबे -आरुग खिचरी। तेली समाज के आराध्य दाई कर्मामाता के खिचरी खाये बर भगवान जगन्नाथ हा रोज जावय माता कर्मा घर। अउ कर्मा दाई हा सौहत भगवान ला खिचरी खवाये। 

"बाल रूप कृष्ण, नटखट कृष्ण सबके दुख दूर करइया किशन। आज मोरो बिपत ला टार दे मोर बंशीबजइया ! मोर खिचरी ला खा ले अउ मोर दुख ला टार दे। नोनी लाली कहाँ हाबे तेखर सोर बता दे।''

अहिल्या के आँखी छलके लागथे गदगद-गदगद ऑंसू निकलथे। भलल-भलल रो डारथे।

                    अब गीत-संगीत बाजा मोहरी मा आरती होइस। अब भोग लगाये के तियारी करत हाबे। आज उदुप ले अलहन होगे छत में चिपके छिपकली हा जम्मो छप्पन भोग मा गिरगे। अउ पीड़हा मा माड़े जम्मो परसाद ला अशुद्ध कर दिस। 

पुजारी मुड़ धरके ठाड़े होगे। अब का करही कृष्ण के लीला आय-छलिया किशन। अशुद्ध चढ़ावा ला थोरे चड़ाही। 

खुदुर- फुसुर होये लागिस। लाखो रुपिया के रसीद कटइया अउ छप्पनभोग के चढ़इया के मन उदास होगे। अहिल्या खिचड़ी ला धरे हाबे। पाछु दिन बरोबर झन दुतकारे कोनो हा अभिन घला  डर्रावत हाबे। भगवान जानथे अहिल्या भलुक घीव नइ खावय फेर खिचरी ला घीव डार के बनाये हाबे। मोट्ठा चाँउर ला खा लेथे फेर भगवान बर दुबराज के खिचरी लाने हे।

"ये दे मेंहा लाने हँव आरुग खिचरी ।'' 

अहिल्या किहिस अउ भीड़ ला चीरत भगवान के आगू मा आके ठाड़े होगे। पुजारी के मन होइस भगाये के फेर सोना बरोबर चमकत पीतल के बटलोही मा ममहावत खिचरी हाबे सुनिस अउ चेहरा मुचकाये लागिस।

माता कर्मा के खिचरी कृष्ण बरन धरे जगन्नाथ ला अमरगे रिहिन अब। पाँच बच्छर के साध पूरा होगे। आँखी ले तरतर-तरतर आँसू आवत हाबे अब अहिल्या के। भलभल-भलभल अउ रोवत हे। 

"मोर बेटी !''

"मोर लाली !''

"मोर किशनभगवान !'' 

अंतस कलपत हाबे अउ पडपीड़-पडपीड़ पढ़त हाबे अहिल्या हा। 

"ले दाई ! अब चुप रहा। जम्मो भीड़ अब खलखल ले झर गे। चल हमू मन अब घर जाबो।''

मनराखन समझावत हे हलु-हलु पीठ मा थपकी देके। सुडुक-सुडुक करिस दाई हा अउ फेर रोये लागिस कलप-कलप के। चारो खूंट ला देखिस अब कोनो नइ हावय।एक्का दुक्का मइनखे बाचीस। 

उदुप ले अपन सेठ ला देखिस। चमचमावत गाड़ी ले उतर के आवत हाबे। चढ़ोत्तरी के जम्मो पइसा ला बैंक मा जमा करही सेठ हा।

"दान दक्षिणा कर बे मनराखन तभे सुनही भगवान हा ! बिनती ला फोकट नइ सुने।''

सेठ आय। रटफिट- रटफिट सोज्झे जोत देंव अइसे लागिस मनराखन ला फेर कलेचुप होगे। एक बेर पांव-पैलगी, जोहार-भेट अउ करिस दुनो कोई। अउ अब जुच्छा बटलोही ला धरके  लहुटत हाबे अपन घर जाये बर। सीढ़ियां उतरत हाबे कि  गुरतुर आरो ला सुनिस।

"दाई...!''

"भाई....!''

वोहा तीर मा आगे अब लकर-धकर रेंगत दउड़त। देखिस अब ससन भर ते देखते रहिगे मनराखन अउ दाई अहिल्या हा। मोटियारी लाली आवय खाकी ड्रेस पहिरे। खाँध मा सितारा चमकत हाबे अउ माथ मा शेर बिराजे हे। इंडियन आर्मी के सिपाही लाली अब सौहत ठाड़े हाबे आगू मा

"मोर बेटी ...!''

"मोर बहिनी ...''

पोटार लिस अपन बहिनी,अपन बेटी ला मनराखन अउ अहिल्या हा। 

"बिन बताये काबर चल देये रेहेस टूरी ! 

"कहाँ चल दे रेहेस बहिनी !

".....अउ कोन ड्रामा के ड्रेस ला पहिर डारे हस रे ?''

आनी-बानी के सवाल सुन के मुचकावत रिहिस लाली हा।

मेंहा तुंहर मन ले भलुक दुरिहा गेये रेहेंव फेर दुरियाये नइ रेहेंव। मोर सहेली रंजना संग  गोठ बात करत रेहेंव बेरा-बेरा मा। हाल चाल जान डारव तुंहर मन के। इंडियन आर्मी के ट्रेनिंग मा गेये रेहेंव अट्ठारा  महीना के। पूरा कोर्स करे में ढ़ाई बच्छर होगे। तुमन ला तो बताये रेहेंव बेंगलोर जाहू कहिके। तूही मन नइ भेजेव। वोकरे सेती तुमन ला थोकिन बिसरा के भारत माता ला मया करत रेहेंव।''

मुचुर-मुचुर मुचकावत किहिस लाली हा। अहिल्या गुर्री-गुर्री देखत रिहिस।

"जादा झन खिसिया दाई ! परसाद खवा अब ।''

लाली किहिस अउ बटलोही ला धर लिस। बटलोही तो जुच्छा हाबे। अउ बने देखिस अँजोर मा एक दाना खिचरी चिपके रिहिस। लाली निकालिस अउ खा लिस। तृप्त होगे भगवान किशन बरोबर। वहुँ तो द्रोपदी के एक दाना चाउर मा पेट भरे रिहिन। सिरतोन कतका सुघ्घर दिखत हाबे मुचकावत लाली हा । दाई अघा जाथे। कभु लहरावत पिंयर धजा पताका ला देखथे तब पिंयर ओन्हा पहिरे खिचरी खाके मुचकावत बाके-बिहारी बंशी बजईया ला। सिरतोन माता कर्मा के खिचरी ला खा के अघा गे दुलरवा कान्हा जी हा। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

सुवा गीत-नृत्य के संदेश... * गौरा-ईसरदेव बिहाव के आरो कराथे

 * सुवा गीत-नृत्य के संदेश...

* गौरा-ईसरदेव बिहाव के आरो कराथे

     छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के नांव म आज जतका भी किताब, शोध ग्रंथ या आलेख उपलब्ध हे, सबो म कातिक महीना म गाये जाने वाला सुवा नृत्य-गीत ल "नारी-विरह" के गीत के रूप म उल्लेख करे गे हे। मोर प्रश्न हे- सुवा गीत सिरतोन म नारी विरह के गीत होतीस, त एला आने गीत मन सहीं बारों महीना काबर नइ गाये जाय? सिरिफ कातिक महीना म उहू म अंधियारी पाख भर म कुल मिला के सिरिफ दस-पंदरा दिन भर काबर गाये जाथे? गाये जाथे इहाँ तक तो ठीक हे, फेर माटी के बने सुवा ल टोपली म बइठार के ओकर आंवर-भांवर ताली पीट-पीट के काबर नाचे जाथे? का बिरहा गीत म अउ कोनो जगा अइसन देखे या सुने बर मिलथे? अउ नइ मिलय त फेर एला नारी विरह के गीत काबर कहे जाथे? का ये हमर इहाँ के धरम अउ संस्कृति ल अपमानित करे के, भ्रमित करे के या फेर वोला दूसर रूप अउ सरूप दे के चाल नोहय?


     ये बात तो जरूर जानना चाही के छत्तीसगढ़ म जतका भी पारंपरिक गीत-नृत्य हे सबके संबंध अध्यात्म आधारित संस्कृति संग जरूर हे। चाहे वो फुगड़ी के गीत हो, चाहे करमा के नृत्य हो, सबके संबंध विशुद्ध अध्यात्म संग हे। हमर इहाँ जब भी संस्कृति के बात होथे, त वोहर सिरिफ नाचा-गम्मत या मनोरंजन के बात नइ होय, अइसन जिनिस ल हमन कला-कौशल के अंतर्गत गिनथन, संस्कृति के अंतर्गत नहीं। ये बात ल बने फोरिया के समझना जरूरी हे, संस्कृति वो होथे जेला हम जीथन, आत्मसात करथन, जबकि कला मंच आदि म प्रदर्शन करना, जनरंजन के माध्यम बनना होथे। जे मन बाहिर के संस्कृति-परंपरा संग संघार-मिंझार के, अपन पोगरी बना के इहाँ के धरम अउ संस्कृति ल कुटिर उद्योग के रूप म पोगरा डारे हें, वो मन जान लेवंय के अब इहाँ के मूल निवासी खुद अपन धरम, संस्कृति अउ कला वैभव ल सजाए-संवारे अउ चारों खुंट वास्तविक रूप म बगराए के बुता ल सीख-पढ़ डारे हें। अब  ए मन ल ठगे, भरमाए अउ लूटे नइ जा सकय। इंकर अस्मिता ल बिगाड़े, भरमाए अउ सिरवाए नइ जा सकय।


     सुवा गीत असल म गौरा-ईसरदेव बिहाव के संदेशा दे के गीत-नृत्य आय। हमर इहाँ जेन कातिक अमावस के गौरा-गौरी या कहिन गौरा-ईसरदेव के पूजा या बिहाव के परब मनाए जाथे, वोकर संदेश या नेवता दे के कारज ल सुवा के माध्यम ले करे जाथे। हमर इहाँ कातिक नहाए के घलो रिवाज हे। मुंदरहा ले नोनी मन (कुंवारी मन जादा) नहा-धो के भगवान भोलेनाथ के बेलपत्ता, फूल, चंदन अउ धोवा चांउर ले पूजा करथें, ताकि उहू मनला उंकरे असन योग्य वर मिल सकय। अउ फेर तहाँ ले संझा के बेरा जम्मो झन जुरिया के सुवा नाचे बर जाथें। सुवा नाचे के बुता पूरा गांव भर चलथे, एकर बदला म वोमन ल जम्मो घर ले सेर-चांउर या पइसा-रुपिया मिलथे, जे हा कातिक अमवस्या के दिन होने वाला गौरा-ईसरदेव के बिहाव के परब ल विधि विधान अउ गरिमापूर्ण ढंग ले पूरा करे के काम आथे। उंकर जम्मो व्यवस्था एकर ले ठउका पूर जाथे।


    कातिक अंधियारी पाख के पंचमी के दिन फूल कुचरे के नेंग पूरा करे के संग शुरू होय ए गौरा-ईसरदेव परब ह कातिक अमावस के पूरा नेंग-जोंग के साथ ईसरदेव के संग गौरा के बिहाव करत ले चलथे। इही ल हमर इहाँ गौरा-गौरी पूजा परब घलो कहे जाथे। सुवा गीत के संबंध ह एकरे संग हे, जेन ह एक प्रकार ले नेवता या संदेश दे के काम आथे। एला अइसनो कहे जा सकथे के गौरा-ईसरदेव के बिहाव-नेवता ल माईलोगिन मन घरों-घर जाके सुवा गीत-नृत्य के माध्यम ले देथें, अउ बिहाव-भांवर म होने वाला खर्चा के व्यवस्था खातिर सेर-चांउर या रुपिया-पइसा लेथें।


     इहाँ इहू जाने अउ गुने के बात आय, के ये गौरा-गौरी परब ह कातिक अमावस के होथे। माने जेठउनी (देव उठनी) के दस दिन पहिली। माने हमर परंपरा म भगवान के बिहाव ह देवउठनी के दस दिन पहिली हो जाथे, त फेर वो चार महीना के चातुर्मास के व्यवस्था, सावन, भादो, कुंवार, कातिक म कोनो किसम के मांगलिक कारज या बर-बिहाव के बंधना कइसे लागू होइस? वइसे भी मैं ये बात ले सहमत नइहौं के कोनो भगवान ह चार महीना ले सूतथे या कोनो दिन, पक्ष या महीना ह कोनो शुभ कारज खातिर अशुभ होथे। हमर संस्कृति निरंतर जागृत देवता मन के संस्कृति आय। एकरे सेती मैं कहिथौं के हर कारज ल कोनो भी दिन करे जा सकथे। भलुक मैं तो कहिथौं के हमर संस्कृति म इही चार महीना (सावन, भादो, कुंवार, कातिक) सबले शुभ अउ पवित्र होथे, तेकर सेती जतका भी शुभ कारज हे इही चार महीना म करे जाना चाही। ए विषय म पहिली के आलेख म जबर चर्चा करे गे हे, तेकर सेती फेर उही सबला ओरियाना वाजिब नइए. 


-सुशील भोले

 संजय नगर , रायपुर 

मो/व्हा. 98269 92811

Monday 10 October 2022

कहानी-बहुरिया

 कहानी-बहुरिया


बेटी अउ बहुरिया कतको कहौ थोरिक भाव हर आनें आइच जाथे ।कतको मन देखावा बर बिटिया बिटिया बहुरिया ल कहि फेर बखत परे म भेद करि देथे अइसन कहत आँट म बइठे सालिक के दई ह कहत रहय मालिक के दई ल दूनों परोसी बड़ मया के जिनगी जीयत रहै सहेली असन कटत हवै अभी तक झगरा कभू नई जानिन सुख दुख ला बाँटत दूनों परिवार आँखी के लिकठा बनगे  हे । चाय पीये बर कलबलावत सालिक के ददा चिचियावत रहय कोनों चाय देवइया नई हे घर म अतेक मनखे हावय फेर सब ऐस करत बइठे हे। ये मनखे कमा कमा के जुता खिया जात हे ।काला फिकर हे पइसा खोसखोस ले पावत तभो कदर नइये ।चल तो आघू ले आघू चाय दे देंव। देख तो कइसे बखुलाय हवय बहुरिया बर । नही रे सुधा ओसने करथे फेर रानी बहुरिया ल बड़ मया करथे कलीच ओखर बर तीन तोला के झुमका लानीस हे ।त मया बघारत हे मोर सेवा अउ डबल होवय कहि के अपन बहुरिया ल दबकारि त कछु नइ होवय फेर हमन कछु कहि तो देबो सब ठीक हे ठीक करिस कहि देथे हमर घर बेटी कस मया करथे कोनो जान नी पाँवय बेटी आय की बहु।पर भगवान के दया ले रानी घलो ओतकेच मयारू हावय सबो ल बड़ मया करथे भाग पुन के बात आय रेखा बहुरिया पाना अउ समझदार पाना घलो करम के मेवा आय महू अपन सासरे मा आज तक सबो ल मया करत अउ घर संसार ल संस्कार के माला मा पिरोवत मया के गुर म पागत आयें हाँवव सब ल रानी देखथे मोर सेवा समरपन तभे उहू हर घर के चलागत ल सीख गे हवय बने घर के संस्कार म चासनी मिठास में डूब गे हे सिज हे ,रेखा चार बरतन जेमेर रहिथे टकराथे ओला सब सम्हाल लेते महू बेटी कस सबल सीखों दारें ,अपन दई ले मया मोला करथे काबर ओखर सुख के सब जिम्मेदारी मोर आय ,कनि अकन दुख नइ पाय घर म ओखर करा सब बर बाढ़त हवय बस सास अउ बहू म एक नाजूक डोर होथे जेला विश्वास के गठरी म  बाँधे ल परथे रेखा तोर बहुरिया ल तहूँ सिखोय कर जवाव झीन दय काय बताव रात दिन अपन मइके के गोठ हमन ल नीचे दिखावत रहिथे । नौकरी के पाती आय हे मइके ले पइसा माँगत रहिस नइ दिन कोनों तब समझ आइस सोझे घर फोरे ल जानथें बखत म काय नइ फरय कहिके काल साँटी अउ माला ल बेच के देहे हौ मोहनी त ओदे गइसे नौकरी म गोड छुके माँफी माँगीस हे दई आप ल गलत समझत रहेव फेर आपे काम परे हव । चल देर आइस दुरुस्त आइस । सुबे के भूले शाम के लौटे तव ओला भूले नइ कहंय मोर बहुरिया समझगे बेटी बनगे मोहनी अउ कि चाही चल जा कका ल चाय देबे बडबडावत हे... कहत दूनों उठके अपन काम करे लागिन।।



धनेश्वरी सोनी गुल✍️

व्यंग्य-नाव दोष

 व्यंग्य-नाव दोष


          एक झन राजा रिहिस । राजा हा बिहाव नइ करे के परन कर डरे रिहिस । ओकर मन हा नियम धरम पोथी पतरा कोति जादा रहय .. राज काज म नइ लगय । देश कइसे चलही .. जम्मो झन के मन म फिकर हमागे रहय । विचारवान मन भविष्य म देश चलाये बर .. राजा ला .. एक झन बेटा गोद लेहे के सलाह दिन । राजा हा हव कहत एक झन बेटा गोद ले लिस । बेटा बड़ चंचल सुभाव के रिहिस .. ओहा राजा के नियंत्रण म नइ रहय । बेटा सम्हलत नइ रहय .. तेकर सेती .. बेटा ला अऊ देश ला सम्हाले बर .. प्रजा हा राजा ला बिहाव करे के सलाह दिस । हाँ ना करत राजा हा .. देश खातिर अपन परन ला तिलांजलि देवत .. बिहाव करे बर तैयार होगे । शुभ मुहूरत देख बहुत जोर शोर से राजा के बिहाव होगे । बिहाव होतेच साठ .. पूरा राज ला रानी हा कब्जिया डरिस .. । ओहा प्रजा के बीच म लोकप्रिय होय लगिस । सबो झन अपन आवश्यकता बर रानी कोति निहारत गिन । कुछ दिन म .. प्रजा ला राजा के आवश्यकता नइ रहिगे । राजा के बेटा कति किंजरत हे तेकर खोज खबर के कोनो जरूरत नइ रहिगे । रानी बहुत दुष्टिन रहय । ओहा एक कोति राजा के बारा हाल करय त दूसर कोति ओकर बेटा ला घेरी बेरी मारे के प्रयास घला करय । राजा हा बहुत दुखी रहय .. फेर कोन ला अपन दुखड़ा सुनावय .. । ओकर तो आँखी बिहाव होतेच साठ फूट चुके रहय .. कान म परदा नइ रहय .. जबान ला तो अतेक थुथरवा डरे रहय के .. बोले नइ सकय । राजा अऊ रानी के बीच कोनो अच्छा सम्बंध नइ रहय । रानी बहुतेच उच्छृंखल रहय । राजा के इशारा मानना तो धूर .. ओला देखय सुनय तको निही । जब पाये तब .. राजा ला अपन हिसाब से तैयार करत सुधार देवय । जे इच्छा रानी के रहय .. उही म राजा के हामी दिखय । राजा ला बने राखे हे कहिके सबो कहँय .. इही बताये देखाये बर .. रानी हा राजा के मुहुँ कान म .. आडम्बर छबड़ देवय । जब पाये तब .. ओकर जेला पाये तेला बदल देवय । बपरा राजा हा अतेक आतंक के बावजूद कुछ नइ कर सकय । ओहा कलेचुप रानी के सरी आतंक ला सहत रहय । 

          एक दिन रानी उपर .. राजा ला दुख दे के अऊ ओकर बेटा ला मार डरे के आरोप लगिस । चारों मुड़ा म हल्ला होय लगिस । अच्छा सम्बंध नइ होये के बावजूद .. राजा हा बदनामी के डर म ...  रानी ला खूब संरक्षण दिस अऊ ओकर उपर लगे सरी इल्जाम ले ओला बरी कराके दम लिस । अतका के बावजूद ... रानी हा .. राजा के उपर अत्याचार बंद नइ करिस । जब पाये तब ओला आहत करत रिहिस । एक दिन प्रजा ला असलियत पता लगिस .. राजा के उपर दया आ गिस । ओमन रानी ला बदले के उपाय खोज डरिस अऊ शुभ मुहुरत म .. ओकर जगा म दूसर रानी लान के खड़ा कर दिस । जुन्ना रानी हा बहुत हाथ गोड़ मारिस फेर प्रजा घला ... रानी बदले के कसम खा चुके रिहिस । 

          नावा रानी .. जुन्ना ले जादा खतरनाक रिहिस । ओहा आते साठ .. सउत बेटा के सीधा हत्या के प्रयास करे लगिस .. ओला घेरी बेरी आहत करे लगिस .. ओकर देंहें ला केऊ बेर आगी म दागे लगिस । अपन रहन सहन के हिसाब से राजा के रंगा ढंगा बदल दिस । ओला पेंट के जगा धोती पहिरा दिस । राजा बहुत आहत रहय ... । ओकर मुड़ से लेके गोड़ तक .. चोट के निशान बन चुके रिहिस । तभो ले बपरा हा आह नइ बोलय .. कोनो ला अपन अपन दुर्दशा देखा बता नइ सकय । 

          प्रजा जागरूक हो चुके रिहिस .. ओमन जान डरिन .. ये पइत तो ओकरो ले जादा निर्दयी रानी मिलगे ... फेर अब ओला बदले कइसे .. ? जब तक मुहुरत नइ आही तब तक ... बदल नइ सकय । तब तक ... जुन्ना अऊ नावा रानी हा .. प्रजा ला दू फाँकी कर डरे रिहिन । कुछ मन जुन्ना रानी ला गद्दी देवाये बर मुहुरत के अगोरा करय .. अऊ कुछ मन .. नावा रानी के उपकार म भीतर तक अतेक आल्हादित .. आच्छादित अऊ प्रभावित रहय के .. ओमन अलग रद्दा अख्तियार कर ले रहय । 

          एक दिन प्रजा के हिम्मत जोर मारिस । शुभ मुहुरत म अइसन उपकार पवइया के विरोध ला दरकिनार करत ... रानी ला बदल दिन ... जुन्ना रानी हा फेर आगे । ये पइत जुन्ना रानी हा जम्मो झन ला खमाखम आश्वासन दे के आये रहय के .. ओहा राजा के हिसाब से चलही ... ओकर बेटा ला सुखे सुख म राखही ... फेर रानी बनते साठ .. सरी आश्वासन ला कोंटा म त्याग .. राजा अऊ ओकर बेटा के बारा हाल करे लगिस । 

          देश विदेश के नामी पंडित मन .. राजा अऊ ओकर बेटा के उपर घेरी बेरी आवत संकट के निवारण बर ... बहुत विचार विमर्श खोजबीन करिन ... पोथी पतरा अऊ कुंडली के अध्ययन मनन ले पता लगिस .. सरी दोष हा नाव के आय । राजा के नाव संविधान रहय .. ओकर बेटा के नाव लोकतंत्र .. अऊ राजा संविधान के कुंडली म लिखाये रहय के ... उही हा ओकर पत्नि बनही .. जेकर नाव सरकार रइहि । नाव के सेती जिनगी भर .. न केवल ओकर घर म बल्कि देश म घला कलह माते रहय अऊ बपरा बाप संविधान अऊ बेटा लोकतंत्र हा .. दुख पाये बर मजबूर रहय .. अऊ सरकार नाव के रानी हा .. देश म राज करत मजा मारत रहय ..  ।  


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

खावव अउ खावन दो*(व्यंग्य)

 *खावव अउ खावन दो*(व्यंग्य)


खाय बर ही मनखे आनी बानी के उदीम करत रथे।तइहा बेरा मा दू बीता पेट ला भरे के चक्कर रिहिस।उही उदीम में मनखे मर खप जाय।हमर पुरखा कतको जांगर टोर कमावय फेर कभू दुनों जुवार भरपेट नी खा सकय।फेर आजकल मनखे के पेट अतेक बाढ़ गे हवै कि ओकर भूख नइ मेटावत हे।जेती देख तेती हदराहा भरे हे।आजकल के मंतर हरे पचे चाहे झन पचे फेर खाय में कमी नइ करना चाहिए।बफे सिस्टम में कभू जाबे त देख लेबे एक झन मनखे के पिलेट में चार झन के जेवन रथे।बरा हा पिलेट ले कूदे परथे,गुलाब जामुन कढ़ी में बूढ़े रहिथे।सोंहारी हा बघारे भात तरी चपकाय रोवत रहिथे।फेर मनखे मुंहु भर सीथा छबडाय ए कोती ले ओ कोती घूमत रहिथे कि कोनो आइटम चीखे बर झन बांचे।

अपन खरचा मा खाय मा सुख मिलथे अउ फोकट के खाय मा परमानंद।ये मोर व्यक्तिगत अनुभव हरे।हो सकथे आपमन के  घलो हो।

खाय के सबले ज्यादा मजा कोनो पद में मुखिया बने के बाद आथे। फेर मुखिया बनना घलो बड़ हलाकानी वाले बुता हरे।अगर मनखे ईमानदार रहे तब।मुखिया बने के बाद बिकट जिम्मेदारी आ जथे।बने बुता करबे तब गारी खाबे अउ घिनहा बुता करबे तब गारी खाबे।माने काम जइसन भी रहे गारी खाएच ल परथे।तभे मनखे सोच लेथे कि फोकट में गारी खाय के सेती खा के गारी खाना चाहिए।

आम आदमी हा मुखिया के काम में दोष निकालना अपन धरम समझथे अउ मुखिया हा गारी खा खा के अपन करम करथे।जे हा गारी खा के टकराहा हो जथे ताहन वो समाज अउ शासन के पैसा कौड़ी ला खाना घलो अपन करम समझथे।धीरलगहा उही हा ओकर धरम घलो बन जथे।

फेर आजकल मुखिया बनना घलो कहां सुभित्ता बुता हरे।मुखिया बने बर पैसा पानी कस बोहाय बर परथे।पसर भर लुटाबे तब टुकना भर कमाबे वाले परंपरा चलत हे हमर देश में।गांव के सरपंच बने बर घलो आजकल तीन चार लाख रुपया नी बांचे।सेवा करहूं किके सोच के ईमानदार मनखे फारम भरथे अउ चुनाव प्रचार के करत अउ जीतत ले पैसा के खरचा ला देख के तुरते हिसाब बना डारथे कि सालाना कतेक खाना हे।

एती गांव वाले मन जिताय के बाद चिचियावत रहिथे ताहन फलाना हा सड़क ला खादिस, ढेंकाना गौठान ला लील डरिस।अरे!!जब फलाना अउ ढेकाना ला मुखिया बनात रेहेव तब उंकर बोकरा पार्टी ला परिवार समेत झड़के के बेरा सोचना रिहिस।खावन की नइ खावन।जब वो खवाय हे त अपनो खाबे करही।

कुछु कांही होय फेर मुखिया बने के बाद पावर अबड आ जथे।गोसाइन सरपंच बनते साठ ओकार हा गोसान सरपंच प्रतिनिधि के नेम प्लेट अपन किस्ताहा फटफटी के आगू मा बड़े बड़े अक्षर में लिखवा डारथे।

ओकर परिवार भर रोजगार गारंटी स्कीम के तरी ऊपर के अधिकारी बन जथे।

कोनो महात्मा कभू केहे रिहिस जीओ और जीने दो।फेर आजकल अघोषित रूप ले सिस्टम बन गेहे खाओ अउ खाने दो।काकर बाप के का जही।सरकारी माल मुफ्त उडाव वाले बात हे।कोनो जादा सवाल जवाब करिस त ओला खवा दो।कोनो गैरकानूनी काम ला कानूनी रुप ले करना हे तभो खवाना हे अउ गैरकानूनी रुप ले करना हे तभो खवाना हे।

खाल्हे वाले ला खवई पियई में खुश नी रखबे ताहन ऊपर वाले कना शिकायत करथे।ताहन ओला खवाना परथे।कुल मिलाके एती बूचकबे त ओती फंसबे या तरी में नइ खवाबे त ऊपर कोती खवाना जरुरीच हे।

जे जतका खवाथे जनता ओकर ओतकी गुन गाथे।आम जनता फोकट के खाय मारे अतका टकराहा होगे हवै कि भूखन लांघन भले मर जही फेर कमा के नइ खावय।वा रे मनखे!!अउ वा रे सरकार!!!

राजनीतिक दल वाले मन कार्यकर्ता ले लेके वोटर तक ला भरपूर खवाथे।अउ जे खवाथे उही अघुवाथे।अब चुनाव जीते बर खवाना जरुरी हे।अउ खवाथे काबर??चार खवा के आठ खाय बर!!फेर धन्य हे हमर जनता।एकर अक्कल में कोन जनी का पथरा परे ही थोरको चेत बुध नइहे।अइसन खावत खावत कोन जनी पूरा देश झन खवा जाय?


रीझे यादव

टेंगनाबासा(छुरा)

नान्हें कहिनी सहर के लोगनमन

 नान्हें कहिनी

                सहर के लोगनमन

                सुरुजा दाई ल जर आवत रहिस ।गांव के डॉक्टर ल देखाइस त डॉक्टर ह रइपुर के बड़े अस्पताल म दिखाए बर कहिस।आज सुरुजा दाई ह अपन  गोसई संग  रइपुर के अस्पताल म आये रहे। अस्पताल के लम्बा -लम्बा लाइन म खड़े-खड़े कब दिन बुढ़गे पता नी चलिस। जैसे-तैसे डॉक्टर ह ओला देखिस अऊ पर्ची म दवाई लिखिस।

          ओमन अस्पताल ले निकीलीन त रतिहा होगे रहय। उखर गांव के आखिरी बस निकल गे रहिस।"अब कईसे करबो?"सुरुजा दाई ह चिंता म परे पूछिस।

        सुरुजा दाई के गोसई  कहिस-"तैं चिंता झन कर। हमर छोटका भाई के बड़का बेटा कब काम आही।इहिं रइपुर म ओहा बड़े साहब हे।अरे  हमर बल्लू ह। बस ओखरे घर आज रतिहा रुक जाबो ।बिहिनिया के पहली बस ले हमन गांव निकल जाबो।रात भर के बात ताय।"

      सुरुजा दाई कहिस-"बने कहत हंव।बल्लू ह पर बछर हमर घर आये रहिस त बने पन्दरा दिन ले रुके रहिस। मोर हाथ के चीला ,फरा अऊ अंग्गाकर रोटी ल बने खुस होके खाये।" अइसन कहत दुनो झन  डोकरी-डोकरा बल्लू के घर पहुँचीन ।त का देखथे दुवार म एक ठिंन बड़का जनिक करिया कुकुर बंधाये रहय।ओमन देख के कुकुर ह भुकेल लागिस। सुरुजा दाई डरा गे। तभे  दुवार  म एक झिन  नोनी झाँकत कहिस-"कौन हैं आप लोग?किससे मिलना है?"

       सुरुजा दाई ह कहिस-"हमन ओ बेटी, बल्लू बलराम के बड़े दाई अऊ बड़े ददा।"

       तभे बल्लू उर्फ बलराम आइस।ओमन ल देखिस अऊ कहिस-"कईसे आये हो बड़े दाई?"

         सुरुजा दाई ह जम्मो हाल ल बताइस। त बल्लू कहिस-"का बतावव दाई,तोर बहु ल गांव वाला मन सन एडजस्ट करे म बड़ दिक्कत होथे।त तुमन ल एकोदिन  मैं अपन घर म नी राखय सँकव। तुमन एक काम करव इहि मेर एक ठिंन मंदिर हे।मंदिर के धर्मशाला म एक रात रुक जाओ अऊ उहिच मेर एक ठी सस्ता सही होटल हे ।उहाँ खाना खा लुहु।"अइसन कहत बल्लू ह घर भीतरी खुसर गिस।

         सुरुजा दाई अऊ ओखर गोसई दुनों एक दूसर के मुँहू ल देखत रहिगिन ।

             डॉ. शैल चन्द्रा

             रावण भाठा,नगरी

             जिला-धमतरी

             छत्तीसगढ़

सम्प्रति

प्राचार्या

शासकीय हाई स्कूल टाँगापानी

तहसील-नगरी

कहानी-आरूग फूल

 कहानी-आरूग फूल


                                   चन्द्रहास साहू

                                 मो 8120578897


"दुरगा !''

"...ये बेटी दुरगा  ! आतो नोनी...... आना बेटी ! झन बिटोये कर ओ ! नहा खोर ले...।''

गोमती हा अपन पांच बच्छर के बेटी ला आरो करिस।

"......नही दाई अब्बड़ उंघासी लागत हावे ओ ! बिहनिया ले नाहहू तब अब्बड़ जाड़ घला लागही दाई।

सात बच्छर के दुरगा हा किहिस।

"आज देबी दुरगा पूजा करे ला जाबो ना बेटी !''

गोमती के गोठ ला जइसे सुनिस दुरगा हा उठगे अऊ तरिया ले नहा खोर के आगे। लइका मन ला सियान ले जादा उछाह रहिथे पूजा पाठ के। दुरगा ला कभू बिलम नइ होइस तब आज कइसे होही। ओहा तो जम्मो संगी संगवारी मन ला जुरियाये। अपन बाबू कका मन ला उठाये। बारी के आरुग फूल ला टोरके  थारी ला सजाके देबी दुरगा पूजा करे ला चल दिस नोनी दुरगा अऊ संगी मन।

                         कुंवार महिना चौमासा के झरती अऊ जाड़ के समाती। दू घरी के जुरियाव अगास हा चांदी के चद्दर ओढ़े हावय अऊ ओमा लकलकावत हावय चंदा चंदेनी। कुंवार अऊ चइत इही दुनो महिना मा भगवान सौहत ये भुंइयां मा उतर जाये रहिथे सुख शान्ति बाटे बर,मया अऊ दुलार बाटे बर। जम्मो मइनखे अपन मनौती मनावत हावय। जम्मो शक्ति पीठ मा जोत बरत हावय मया के, उछाह के,आस के अऊ बिसवास के। गांव-गांव मा देबी बिराजे हावय।

सरद्धा अऊ बिसवास हा माटी,पथरा के मुरती मा जान डार देथे। सुम्मत के चिन्हा संग उछाह के चिन्हारी आये हमर गांव के देबी हा। गांव भर के मन नौ दिन अरचना करथे।

" ......दाई उठना ओ।''

आज नोनी दुरगा हा अपन दाई ला  उठावत किहिस।  गोमती  थोकिन कुसमुसाइस अऊ घड़ी ला देखिस।                  

"अभिन सुत जा बेटी ! अभिन तो तीन बजे हावे। पहाही ताहन उठा दिहू।''

गोमती जमहावत किहिस। दुरगा के अंतस मा अब्बड़ उछाह रहिथे । काबर नइ रही....? आज दुरगा अस्टमी रिहिस। अब्बड बुता रिहिस। गोठियावत बतावत तब कभु सुतत पहागे रात हा। दुरगा हा नहाइस अऊ फूल टोरत किहिस।

"पीवरी कनेर फूल भगवान किसन जी मा,दसमत हा दुरगा देवी मा अऊ फुड़हर हा शिव जी मा चढ़थे।''

नानकून लइका अतका सुघ्घर गोठ गोठियावत हावय। गोमती आज अपन बेटी के मुँहू ला देखे लागिस ।

"दाई ये फूल के भाग जब्बर आये। इही फूल मा माता हा अपन सिंगार करथे। दाई दुरगा के माथ मा चढ़थे गोड़ ला चुमथे अऊ छाती मा मया पाथे। अपन ममहई ले जम्मो दुनिया ला पबित्तर कर डारथे। अपन आनी- बानी के रंग ले जम्मो के मन मोहो डारथे इही फूल हा। चवरासी लाख योनी मा मानुस चोला ला सुघ्घर कहिथे फेर मानुस हा तो इरखा मा बुड़े रहिथे, अनीत करथे। काबर करथे दाई अइसने........?''

 दुरगा पुछथे। 

गोमती हड़बड़ा गिस ओहा तो अपन नान्हे लइका के गोठ ला सुनके अचरज मा पड़ जाथे। अइसन गोठ तो जोगी बैरागी मन गोठियाथे। 

"मोर बेटी...!''

 गोमती अपन लइका के माथ ला चुमके विदा करथे दुरगा दाई के पूजा करे बर। गोमती घर दुवार ला लिपत - लिपत सुरता मा बूड़ जाथे।

                       ओ दिन जब गोमती के एकोझन लइका नइ रिहिस अब्बड़ पूजा-पाठ,तीरथ-बरत करे। जोत -जेवारा बइठारे। आज घलो रिहिस दुरगा अष्टमी । पूजा-पाठ उपास धास के फल पाये के दिन,देबी रूप मा बिराजे नौ कन्या भोज। शीतला दाई के सोला सिंगार होवत रिहिस। आज गाँव के दाऊ हा अपन नतनीन मन ला बलाइस । ओखर गोड़ धोइस। गोड़ मा माहूर लगाइस। काजर आंजिस। मुहरंगी फीता अऊ चुन्नी लगाके लइकामन ला देबी बना डारिस। पटइल घला अपन नतनीन ला बलाइस। गांव मा इही दूनो के तो चलथे। जम्मो कोई आठ झन होइस नोनीमन।

"एकझन नोनी ला अऊ लानव।''

 दाऊ किहिस। 

ऑखी लाल लाल। मइलाहा कुरता, चिरहा फराक पहिने। गोड़ मा घांव अऊ ओ घांव मा माछी भनकत पीप....।

 "छी छी .....कोन घवही टूरी आगे रे ? कोन हरे येहॉ ?''

 दाऊ खिसियावत किहिस तीन बच्छर के नोनी ला बइठे देखके।

 "कोन जन दाऊ कोन आए ते ? ये गॉव मा ऐ नोनी ला कभू नइ देखे रेहे हन....?'' 

दाऊ अतकी ला सुनिस ते ओखर रिस तरवा मा चढ़गे अऊ ओखर हाथ हा लइका के बाहा मा जमगे । चेचकार के उठाइस।

 "जा तोर बुता नोहे येहॉ कोनो दुवारी मा मांगबे अऊ खाबे ।''

खिसियावत किहिस दाऊ हा। जौन जगा लइका के घांव रिहिस अऊ लाग गे। लहू के धार फुटगे। लइका रोये लागिस अऊ किहिस

 "महू दुध भात खाहू। महू हा सोहारी खाहू.....महू हा सोहारी खाहू.....।''

लइका रोये लागिस।

"बाचही तभे तो बोजवाहू रे टूरी  ! जास नहीं आने कोती।''

अब पटइल हा चेचकारे लागिस अऊ खिसिया के किहिस। छोटे दाऊ के नतनीन ला बइठारिस तब नौ झन देवी होइस नोनी मन। दाऊ ,पटइल संग जम्मो गांव के मन  नौ कन्याभोज करवाइस उछाह संग अब्बड भक्ति भाव मा बुड़ के। पूजा करिस अऊ आसीस लिन।

                        लइका हरे ते का होइस। वहु हा तो मानुस आए अतका बेज्जती मा कोन ठाढ़े रही ? छिन भर नइ रूकिस अऊ कोलकी कोती रेंग दिस। गोमती जम्मो ला देखत रिहिस। छाती मा मया पलपलाये लागिस गोमती के। ओ लइका ला अपन घर लेगिस गोमती हा। गोड़ हाथ ला धोइस घांव मा मलहम पट्टी करिस। गोड़ मा माहूर  लगाइस अऊ लाली चुन्नी डारके देवी बना दिस। दूध भात सोहारी खवाइस पूजा अरचना के पाछू । लइका हा अइसे खाये लागिस जइसे जनम भरके लांघन हे। हाथ मुँहू ला धोवाइस अऊ जम्मो देवी के बिदा करिस फेर ये लइका कहान्चो नइ गिस। कांहा जाही बपरी हा अभी....? न कोनो पता....न कोनो ठिकाना....?

        "का नाव हावे बेटी ! कोन गांव रहिथस तेहॉ ?

गोमती पुछिस। फेर लइका कुछू नइ किहिस। मुचले मुचका दिस। गोमती हा लइका ला खटिया मा सुता दिस। गोमती घर के आने बुता करे लागिस। लइका हा आज गोमती घर सुरताये लागिस । सुरूजनारायेन बुड़ती मा गिस अऊ सांझ ले रात होगे। 

बिहनियां ले देखिस गोमती हा ।

"कहाँ चल दिस लइका हा...?''

बिहनियां ले देखिस ओ खटिया ला जेनमा लइका सुते रिहिस, नइ रिहिस। बारी.बखरी,दुवार.अंगना,जम्मो ला खोजे लागिस फेर नइ मिलिस लइका हा। गोमती संसो करे लागिस।

गोमती हा सुरता करे लागिस रात के सपना के। धमतरी के बिलई माता गोमती के घर आये रिहिन अऊ गोमती ला आसीस दिस देबी हा। बस अतकी तो देखे रिहिस गोमती हा सपना मा अऊ आगू के सुरता नइ आइस। गोमती हा इही ला गुनत-गुनत गली खोर बखरी बारी ला एक परत देख डारिस । 

"कहान्चो गेये होही ते आ जाही ।''

फुसफुसाइस अऊ कथरी चद्दर ला उरसाये लागिस गोमती हा ।

"ये दाई येहॉ का हरे ..?''

गोमती के मुँहू ले अचरज ले निकलगे।  चद्दर मा तोपाये जिनिस ला देखे लागिस।

आरूग फूल दसमत के। एक दो ...तीन....नौ ठन आरूग फूल । कोन जन कहां ले आइस ते ये आरूग फूल हा। लइका हा टोर के तो नइ मढ़ा दे होही.......? सौहत देवी हा तो फूल बनगे का.....? कहां  ले आये ये फूल ..... विश्वास अऊ अंधविश्वास के फेर मा नइ परिस भलुक गोमती उछाह मा कूदे लागिस। मुचकाये लागिस। हांसे लागिस अऊ हाँसत मुचकावत ऑखी ले ऑसू के धार फूटगें। गोमती गुने लागिस। ओखर घर मा बइठिस सुतिस तेन हा देवी आए कि कोनो गरीबीन टुरी आवय । कोनो राहय ? आस्था मा कोनो सवाल नही अऊ विज्ञान मा कोनो उत्तर नही .....? फेर रातकुन के सपना......., सपना मा बिलई माता के आसीस......., सपना होवय कि सिरतोन देबी होवय की मइनखे काखरो आसीस अबिरथा नइ जावय!      

गोमती जान डारिस देबी हा तो कोनो बरन मा आ जाथे। अऊ देबी दरस बर कोनो मंदिर के डेरउठी ला खुंदे ला नइ परे भलुक नान्हे लइका हा तो देबी के बरन आवय जेखर मन मा कोनो छल कपट अऊ इरखा नइ राहय। ओखरे सेवा कर अऊ मान दे...। गोमती अपन गुने लागिस।

          सिरतोन गोमती के आस पुरा होगे। बिंध्यवासिनी के आसीस अबिरथा जाही का ?  नही ..। दाई ला एक दरी आरो लगाये ला परथे दाई के किरपा तो जम्मो परानी ऊपर रहिथे।

      बच्छर भर नइ बितन पाइस गोमती के कोरा भरगे। गोमती ला दुरगा मिलगे तब ओखर गोसाइयां ला फूल बरोबर बेटी मिलिस।

"दाई......दाई....!''

नोनी दुरगा के आरो ला सुनिस तब गोमती हा सुरता ले उबरिस। ये दे दाई परसाद दुरगा अपन दाई अऊ ददा ला परसाद दिस। दुनो कोई उछाह अऊ श्रद्धा ले परसाद ला झोकिस अऊ किहिस ।

"जय विंध्यवासिनी मॉ !''

"जय बिलई माता !''

............000.................


चन्द्रहास साहू

द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब के पास

श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़

493773

मो. 8120578897

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समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल: *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवता रमन्ते।*

      अर्थात् जिहाँ नारी मन के पूजा होथे, उहाँ देवता मन के वास होथे, या देवता मन विचरण करथें। अइसन हमर भारतीय संस्कृति म मानता हे। अइसन बिसवास हे। अउ देखब म घलो आथे कि जिहाँ नारी मन के मान-सम्मान होथे, उहाँ कोनो किसम के बाधा-बिपत नइ आय। एकर मतलब होथे कि उहाँ देव कृपा जरूर बरसथे। देव कृपा तभे बरसही जब देवता मन उहाँ रइहीं। इही कारण होही कि लक्ष्मी, सरस्वती अउ दुर्गा के पूजा करे के चलन बनिस होही। नारी लक्ष्मी रूप म धन-धान्य, सरस्वती रूप म ज्ञान अउ दुर्गा रूप म शक्ति दे के मनखे के जम्मो दुख पीरा हरथें। धन, बुद्धि अउ शक्ति जिहाँ सकेला जथे उहाँ कोनो किसम के बाधा के टिक नइ पावय। इँकरे असीस ले मनखे के जिनगी म खुशहाली आथे।

       नारी मन के हिरदे ममता के गहिर सागर ए, जउन ल नापे नइ जा सकय। ममता के धार उलचे नइ उलचाय। लइका ल सिरिफ लइका मानथे, अपन-बिरान नइ चिह्ने, सबो ल मया लुटाथे। दूसर कोती पुरुष के गोठ करन त उँकर हिरदे पखरा होथे। पझरे जानय न रोये बर जानय। निच्चट पथरा हिरदे के होथें पुरुष मन। पद अउ पैसा कहूँ होगे त अउ जब्बर कठोर बन जथे। घर परिवार ले बाहिर के दुख-पीरा अउ मजबूरी ल समझ के नासमझ बनथे। तभे तो दाऊ अउ रसूखदार मन कहिथें-- "जा तोर बुता नोहे येहा,कोनो दुवारी म माँगबे अउ खाबे।" 

     अउ बाँचे खोंचे कसर ल पूरा करत पटइल ह हुरसे सहीं कहिथे- "बाँचही तभे तो बोजवाहूँ रे टूरी! जास नहीं आने कोती।" 

     वाह रे! सभ्य समाज के अगुवा हो...। वहू ल नौ कन्या के भोज के पावन बेरा म अइसन दुत्कार... वहू ल एक नव कन्या ल...।  उहें दूसर कोती गोमती उही नोनी ल बने नहवा-खोरा के ओकर भूख मिटाथे। इही तो आय भगवान के लीला अउ करतब। एक के हिरदे ल मया ले भर दे हे अउ दूसर के हिरदे.... अइसन काबर भगवान जाने... अउ पुरुष जात...। फेर नारी धरती सहीं सब ल अपन हिरदे म जघा देथे। अपन -बिरान नइ चिह्ने। अपन हिरदे म सागर सहीं सब ल समोवत रहिथे।

      आज समाज म पुरुष के चलती हे। नारीमन पुरुष प्रधान समाज म डर-डर के जीथें। घर-परिवार चाहे मइके होय ते ससुरार दूनो जघा मुँह नइ उलाय सकँय। अपन ममता के बलि चढ़ावत अपन कोख भीतरी नोनी ल मारे बर तियार हो जथे। रोजेच चार आँसू रोथे।फेर मुँह नइ उलाँय। वाह रे नारी... तभे तो लिखे गे हे "हाय अबला! तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।" 

      तइहा के मनखे मन नोनी जनम होय ले लक्ष्मी आय हे कहि के नारी के पूरा सम्मान करँय। फेर आज विज्ञान के जुग म लोगन मानवता ल ताक म रख सरी हद ल पार कर डरे हे। पता चलतेच साठ कोख भीतर नारी ल मुरकेट डरथे। 

       चंद्रहास साहू जी संस्कृति अउ परम्परा के बहाना तथाकथित सभ्य समाज ल बढ़िया संदेश दे के कोशिश करे हें। बेटा-बेटी म दुवाभेदी के गहिर खाई म गिरत समाज ल चिंतन के अवसर दे हे। आज नवरात्र म नौ कन्या भोज के बेरा म गाँव म नौ झन कन्या खोजे ल परत हे, संसो के बात आय। अइसन काबर? ए समाज ल सोचे ल परही।

     आरूग फूल कहानी एक मनोवैज्ञानिक पक्ष ल समोय कहानी कहे जा सकत हे। ए कहानी म आस्था अउ विज्ञान के सुग्घर समन्वय दिखथे। इही समन्वय म मनोविज्ञान समाय हे। विज्ञान के मानना हे कि नारी विशेष हार्मोन के कमी के चलत महतारी सुख ले वंचित रहि जथे। अउ हार्मोनल ग्रंथि मन एक प्रेरण ले सक्रिय हो जथे। वइसने आस्था के पक्षधर समाज के मानता हे कि देवी माँ सब के अरजी ल सुनथे, कभू कोनो ल निराश नइ करय। असीस जरूर देथे। एकर परछो घलो देथे। गोमती ल लइका के मिलना अउचले जाय म सपना आना उही प्रेरण अउ परछो आय जउन ओला महतारी सुख पहुँचाथे। मनखे चाहे जेन समझय फेर अतका तो माने ल परही कि समाज नर अउ नारी बिगन आघू नइ बढ़य। 

      कहर-महर महकत फूल जइसे सरी दुनिया ल महकाथे, वइसने गोमती के अँगना म खिले फूल ओकर जिनगी ल महकावत हे। आनी-बानी बरन फूल मन ल हरसाथे, वइसने हमर संस्कृति अउ परम्परा के जम्मो फूल जिनगी म नवा उछाह भरथे। खुशहाली के नवा रस्ता गढ़थे। 

      सुग्घर भाषाशैली संग छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ परम्परा म पगाय कहानी 'आरूग फूल' बर कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल अंतस् ले बधाई💐💐


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला- बलौदाबाजार छग.