Monday 10 October 2022

खावव अउ खावन दो*(व्यंग्य)

 *खावव अउ खावन दो*(व्यंग्य)


खाय बर ही मनखे आनी बानी के उदीम करत रथे।तइहा बेरा मा दू बीता पेट ला भरे के चक्कर रिहिस।उही उदीम में मनखे मर खप जाय।हमर पुरखा कतको जांगर टोर कमावय फेर कभू दुनों जुवार भरपेट नी खा सकय।फेर आजकल मनखे के पेट अतेक बाढ़ गे हवै कि ओकर भूख नइ मेटावत हे।जेती देख तेती हदराहा भरे हे।आजकल के मंतर हरे पचे चाहे झन पचे फेर खाय में कमी नइ करना चाहिए।बफे सिस्टम में कभू जाबे त देख लेबे एक झन मनखे के पिलेट में चार झन के जेवन रथे।बरा हा पिलेट ले कूदे परथे,गुलाब जामुन कढ़ी में बूढ़े रहिथे।सोंहारी हा बघारे भात तरी चपकाय रोवत रहिथे।फेर मनखे मुंहु भर सीथा छबडाय ए कोती ले ओ कोती घूमत रहिथे कि कोनो आइटम चीखे बर झन बांचे।

अपन खरचा मा खाय मा सुख मिलथे अउ फोकट के खाय मा परमानंद।ये मोर व्यक्तिगत अनुभव हरे।हो सकथे आपमन के  घलो हो।

खाय के सबले ज्यादा मजा कोनो पद में मुखिया बने के बाद आथे। फेर मुखिया बनना घलो बड़ हलाकानी वाले बुता हरे।अगर मनखे ईमानदार रहे तब।मुखिया बने के बाद बिकट जिम्मेदारी आ जथे।बने बुता करबे तब गारी खाबे अउ घिनहा बुता करबे तब गारी खाबे।माने काम जइसन भी रहे गारी खाएच ल परथे।तभे मनखे सोच लेथे कि फोकट में गारी खाय के सेती खा के गारी खाना चाहिए।

आम आदमी हा मुखिया के काम में दोष निकालना अपन धरम समझथे अउ मुखिया हा गारी खा खा के अपन करम करथे।जे हा गारी खा के टकराहा हो जथे ताहन वो समाज अउ शासन के पैसा कौड़ी ला खाना घलो अपन करम समझथे।धीरलगहा उही हा ओकर धरम घलो बन जथे।

फेर आजकल मुखिया बनना घलो कहां सुभित्ता बुता हरे।मुखिया बने बर पैसा पानी कस बोहाय बर परथे।पसर भर लुटाबे तब टुकना भर कमाबे वाले परंपरा चलत हे हमर देश में।गांव के सरपंच बने बर घलो आजकल तीन चार लाख रुपया नी बांचे।सेवा करहूं किके सोच के ईमानदार मनखे फारम भरथे अउ चुनाव प्रचार के करत अउ जीतत ले पैसा के खरचा ला देख के तुरते हिसाब बना डारथे कि सालाना कतेक खाना हे।

एती गांव वाले मन जिताय के बाद चिचियावत रहिथे ताहन फलाना हा सड़क ला खादिस, ढेंकाना गौठान ला लील डरिस।अरे!!जब फलाना अउ ढेकाना ला मुखिया बनात रेहेव तब उंकर बोकरा पार्टी ला परिवार समेत झड़के के बेरा सोचना रिहिस।खावन की नइ खावन।जब वो खवाय हे त अपनो खाबे करही।

कुछु कांही होय फेर मुखिया बने के बाद पावर अबड आ जथे।गोसाइन सरपंच बनते साठ ओकार हा गोसान सरपंच प्रतिनिधि के नेम प्लेट अपन किस्ताहा फटफटी के आगू मा बड़े बड़े अक्षर में लिखवा डारथे।

ओकर परिवार भर रोजगार गारंटी स्कीम के तरी ऊपर के अधिकारी बन जथे।

कोनो महात्मा कभू केहे रिहिस जीओ और जीने दो।फेर आजकल अघोषित रूप ले सिस्टम बन गेहे खाओ अउ खाने दो।काकर बाप के का जही।सरकारी माल मुफ्त उडाव वाले बात हे।कोनो जादा सवाल जवाब करिस त ओला खवा दो।कोनो गैरकानूनी काम ला कानूनी रुप ले करना हे तभो खवाना हे अउ गैरकानूनी रुप ले करना हे तभो खवाना हे।

खाल्हे वाले ला खवई पियई में खुश नी रखबे ताहन ऊपर वाले कना शिकायत करथे।ताहन ओला खवाना परथे।कुल मिलाके एती बूचकबे त ओती फंसबे या तरी में नइ खवाबे त ऊपर कोती खवाना जरुरीच हे।

जे जतका खवाथे जनता ओकर ओतकी गुन गाथे।आम जनता फोकट के खाय मारे अतका टकराहा होगे हवै कि भूखन लांघन भले मर जही फेर कमा के नइ खावय।वा रे मनखे!!अउ वा रे सरकार!!!

राजनीतिक दल वाले मन कार्यकर्ता ले लेके वोटर तक ला भरपूर खवाथे।अउ जे खवाथे उही अघुवाथे।अब चुनाव जीते बर खवाना जरुरी हे।अउ खवाथे काबर??चार खवा के आठ खाय बर!!फेर धन्य हे हमर जनता।एकर अक्कल में कोन जनी का पथरा परे ही थोरको चेत बुध नइहे।अइसन खावत खावत कोन जनी पूरा देश झन खवा जाय?


रीझे यादव

टेंगनाबासा(छुरा)

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