Saturday 1 October 2022

ग्रामीण अर्थशास्त्र मा छत्तीसगढ़ के नारी के भूमिका- हीरा गुरुजी

  ग्रामीण अर्थशास्त्र मा छत्तीसगढ़ के नारी के भूमिका- हीरा गुरुजी


     नारी परानी ला गृहस्थी के गाड़ी के दू चक्का मा एक चक्का माने गय हे जौन बबा जात संग खांध मा खांध जोर के अपन गृहस्थी ला आगू बढ़ाथे। एमा गाँव के नारीमन के कोनो किसम के सहयोग ला कमती नइ कहे जा सकय। घर के बढ़ती मा जतका बबा जात के सहभागिता होथय ओतका माइलोगिन के होथय।

          अर्थशास्त्र दू शब्द ले बने हावय, अर्थ माने पइसा कउड़ी, सोन चांदी, धन दोगानी, उपज देवइया जगा भुइयां, खेत खार अउ आवक के जिनिस ला अर्थ मान सकत हन।शास्त्र माने ज्ञान, ओखर बउरे, बचाय,लगाय अउ बढ़ाय के तरीका ला मान सकत हन।एमा बजार हाट, लेन देन, साग भाजी, होटल गिटल, बनी भूती ला घलाव अर्थशास्त्र मा संघेरे जाथय।

          पहिली तो गाँव मा समिलहा परिवार रहय अउ घर मा अर्थ लायबर सबोझन मिलके बूता करय।एमा बेटी मन मइके मा संग देवय।बिहाव होय पाछू बहू बन के जावय ता नवा बहू ला चार छे महीना घर मा रँधई गढ़ई, लिपई बहरई,बारी बखरी बूता मा फांदे रहय।निच्चट गरिबहा घर के बहू हा झांपी उतारय अउ खेत जावय। एक झन बाल गोपाल के आय पाछू घर के आर्थिक जिम्मेदारी मा संघरे बर सीख जावय। सास, जेठानी के रहे ले कतको घर के बेवस्था मा इही नारी परानी मन के आर्थिक मामला मा दखल रहय। छोटकी मन ला कभू कभार मउका मिलय नइते सबो लेन देन ला सास,नइते जेठानी करय।

        अर्थशास्त्र के पांच भागा होथय एमा उपभोग माने बउरना, उत्पादन माने उपजाना, विनिमय माने लेन देन, वितरण माने आवक के बँटवारा, अउ राजस्व। एमा राजस्व हा ग्रामीण गृहस्थी मा नइ आवय अइसे मैं मानथँव। गाँव मा जब बेटी के जनम होथय ता वो हा मइके के जिनिस ला बउरथे। बहू बनके ससुरार जाथे ता सास, जेठानी, ननद संग उहाँ के जिनिस, पइसा कउड़ी ला बउरथे, खाय पीये, पहिरे ओढ़े सिंगार के अउ जतका बउरे के जिनिस रहिथय ओमा ओखरो हिस्सा होथय।अइसने बेटी रहिथय ता मइके मा उत्पादन माने उपज माने बउरे के जिनिस अउ धन लाय,बढ़ाय मा संग देथय।बहू बनके जाथय ता सास, जेठानी, ननद संग मिलके ससुरार बर धन उपजाथय।खेत खार के संगे संग बारी बखरी मा साग भाजी उपजाय मा बिहनिया ले संझा तक सहयोग करथे। खेत खार मा कांटा बिनई ले शूरू होय बूता हा रोपा निंदई होवत लुवई मिंजई तक चलथे। एमा नारी परानी मन दू किसम के रूप धरथे। घर के खेत मा बूता करथे ता पइसा बचाथे अउ पर घर के खेत मा बनी जाते ता पइसा लाथय। नारीमन किसानी उपज धान,गहूँ, चना, राहेर,मूँग जइसन के संग वनोपज तेदू,चार,महुवा, तेंदूपत्ता, लाख जइसन ले बचत अउ आवक करथँय जौन अर्थशास्त्र के बड़का सिद्धांत हरय। जौन घर मा जतका बचत होथय अउ आवक होथय उही घर के समृद्धि अउ उन्नति ला देखाथे। नारी मन बचत करे मा हुसियार होथय, अउ बिपत बेरा मा ओ बचाय धन ला आगू लान के बउरथे।

     अर्थशास्त्र के तीसर भागा आवय विनिमय माने लेन देन। लेन देन मा नारी मन के ज्ञान ला पढ़े लिखे ज्ञानिक मन नइ जान सकय। घर मा काय जिनिस चाही, कोन जिनिस कतका दिन पूरही, कतका खंगही,कतका बचाना हे,कतका बिसाना हे ये सब नारी मन जानथे।सस्ता सुग्घर अउ टिकाउ के संगे संग अपन हैसियत के मान से लेन देन अउ भाव बियाना करे मा नारी मन अबड़ हुसियार होथय। गाँव मा बजार हाट, सगा सोदर,अरोसी परोसी के लेन देन के बउग ला घर के माइलोगिन जानथे। अर्थशास्त्र के चउथा भाग वितरण माने बँटवारा होथय। घर के आवक ला कहां, कतका अउ कब देना हे,उधारी बाढ़ी के लेन देन, लोग लइका के पढ़ई लिखई, बेटी के बिहाव, नवा जगा भुइयां बिसाना अउ भविष्य बर कतका सँइत के रखना हे यहू ला नारी परानी के बात मान के पूछ परख के करे जाथय।

     गाँव मा पहिली वर्णव्यवस्था रहिस ता रऊत, कोष्टा, तेली, कुम्हार, लोहार,कलार,मरार,केंवट,नाउ जइसन सबो जात के अलग अलग बूता रहिस ता उहू मा उन घर के नारीमन संग मा मिलके आवक के रद्दा बनाथे अउ अर्थबेवस्था मा संग देथय, फेर धीरे धीरे बजार वाद के बेरा आगय, अब गांव के नारी मन होटल, दुकान, ब्यूटीपार्लर, मनिहारी, सिंगार के दुकान, लुगरा कपड़ा के दुकान मा, बजार हाट मा सागभाजी के दुकान मा बइठत हे अउ घर मा अर्थ के बेवस्था मा जुड़े लगे हावय। गांव के कतको नारी अब शहर मा बूता अउ नउकरी करे बर निकलगे हावय अउ अपन घर परिवार के आवक बढ़ावत हावय।

     गांव के बबा जात मन के आचरण, बेवहार, संगत मन बिगड़त हावय ता घर के अर्थव्यवस्था ला अब नारी मन अपन हाथ मा धरत हावय। अउ उनला खरचा करेबर गिनवा पइसा कउड़ी देवत हावय।

         नारी ला लक्ष्मी के रूप माने जाथय, जेन घर मा नारी के मान होथय उहां लक्ष्मी हा सहयोग करथे अउ धन बरसथे।ग्रामीण अर्थबेवस्था मा नारी परानी धारन बनत हे।


हीरालाल गुरुजी "समय"      

छुरा, जिला- गरियाबंद

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