Saturday 31 July 2021

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"


 

"छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"

-अरुण कुमार निगम

$ अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ? $


आज सुप्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी के पुण्यतिथि हे। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संग उनकर मया के नाता रहिस। सन् 1965 मा मोहम्मद रफी के आवाज मा पहिली छत्तीसगढ़ी गीत - 


"झमकत नदिया बहिनी लागे परबत मोर मितान",  


फ़िल्म कहि देबे संदेश बर रिकॉर्ड होए रहिस। इही फ़िल्म मा रफी साहेब के आवाज मा दूसर गीत 


"तोर पैरी के झनर झनर, तोर चूरी के खनर खनर" 


रिकॉर्ड होए रहिस। कहि देबे संदेश फ़िल्म के निर्माता मनु नायक आँय। गीत ला लिखे रहिन हनुमन्त नायडू जी अउ संगीतकार रहिन मलय चक्रवर्ती। ये फ़िल्म 1965 मा रिलीज होइस अउ कहि देबे संदेश के गाना मन जम्मो छत्तीसगढ़ मा धूम मचाइन। 1965 के दौर मा मोहम्मद रफी, गायिकी के सुपर स्टार रहिन। उनकर रेट घलो ज्यादा रहिस। मनु नायक जी जब मलय चक्रवर्ती के संग छत्तीसगढ़ी गीत गाये के अनुरोध कर बर रफी साहेब से संपर्क करके बताइन कि कहि देबे संदेश, छत्तीसगढ़ी भाषा मा पहिली फ़िल्म बनत हे, बजट बहुत छोटकुन हे। अगर आप मोर फ़िल्म मा गाना गाहू त ये आंचलिक भाषा के फ़िल्म ला नवा रद्दा दिखाए खातिर कदम साबित होही। उदार हिरदे के मालिक मो. रफी हाँस के कहिन - आप मन रिकार्डिंग के तैयारी करव, मँय जरूर गाहूँ। स्वीकृति मिले के बाद पहिली गीत के रिकार्डिंग होइस। ये गीत मोहम्मद रफी के गाए पहिली छत्तीसगढ़ी गीत के संगेसंग पहिली छत्तीसगढ़ी फिल्मी गीत बन गिस। तेकर बाद दूसर गीत के रिकार्डिंग होइस। मनु नायक जी अपन बजट के मुताबिक नाम-मात्र राशि के चेक सौंपिन जेला रफी साहब सहर्ष स्वीकार कर लिन। रफी साहेब के कारण मन्नाडे, महेंद्र कपूर आदि गायक कलाकार मन ला घलो मनु नायक जी के बजट अनुसार पारिश्रमिक मा संतोष करना पडिस। 


1965 मा कहि देबे संदेश के रिलीज होए के बाद घर-द्वार फ़िल्म के तैयारी चालू होइस जेमा मोहम्मद रफी के एक सोलो अउ दू ठन डुएट गीत के रिकार्डिंग होइस। गायिका रहिन सुमन कल्याणपुरी। ये फ़िल्म 1971 मा रिलीज होए रहिस। घर द्वार फ़िल्म के निर्माता विजय कुमार पांडेय रहिन। कवि, गीतकार हरि ठाकुर के लिखे गीत ला संगीत मा सँवारे रहिन संगीतकार जमाल सेन। घर द्वार मा रफी साहब के आवाज मा ये गीत मन रहिन। 


गोंदा फुलगे मोरे राजा

आज अधरतिहा मोर सून बगिया मा

सुन सुन मोर मया पीरा के सँगवारी रे


कहि देबे संदेश अउ घरद्वार फ़िल्म के गीत आकाशवाणी ले घलो सुने बर मिल जाथें। 


26 अप्रैल 1980 के दल्लीराजहरा के पं. जवाहरलाल नेहरू फुटबॉल स्टेडियम मा "शंकर जयकिशन नाइट" के आयोजन होए रहिस। ये कार्यक्रम मा संगीतकार शंकर, गायक मोहम्मद रफी, मन्नाडे, गायिका शारदा अउ उषा तिमोथी आये रहिन। चरित्र अभिनेत्री सोनिया साहनी कार्यक्रम के एंकरिंग करे रहिन। कार्यक्रम के शुरुआत मा स्वागत भाषण के औपचारिकता भिलाई निवासी राकेश मोहन विरमानी हर निभाये रहिन। भारत के भुइयाँ मा मोहम्मद रफी के ये आखरी स्टेज शो रहिस***। ये कार्यक्रम के बाद 18 मई 1980 के श्रीलंका मा उनकर एक स्टेज शो घलो होए रहिस जेन हर रफी साहब के जिनगी के अंतिम स्टेज शो रहिस। दल्लीराजहरा मा आयोजित "शंकर जयकिशन नाइट" देखे के सौभाग्य मोला मिले रहिस। ये कार्यक्रम मा उनकर गाए दू गीत के सुरता करथंव तब अइसे लगथे कि ए गीत मन मा अंतिम विदाई के संदेश छुपे रहिस। एक गाना रहिस - बड़ी दूर से आये हैं, प्यार का तोहफा लाए हैं"। छत्तीसगढ़ के वासी मन बर मोहम्मद रफी ला साक्षात देखना अउ सुनना, कोनो अनमोल तोहफा ले कम नइ रहिस। दूसर गीत रहिस - अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा, हमारे जैसा दिल कहाँ मिलेगा। ये गीत के बोल अटल सत्य बनगें। वइसन मौका फेर दल्लीराजहरा का, भारत के कोनो शहर मा नइ आइस अउ न मोहम्मद रफी के दिल असन कोनो दूसरा दिल मिल पाइस। दल्लीराजहरा के स्टेज शो, भारत के भुइयाँ मा रफी साहब के आखरी स्टेज शो बनके रहिगे। 31 जुलाई 1980 के ये महान गायक अपन पंचतत्व के काया ला पंचतत्व मा मिलाके रेंग दिस अउ दुनिया बर छोड़ दिस अपन अमर आवाज। 


(***ए लेख लिखे के बाद मा जाकिर हुसैन भाई डहर ले जानकारी मिलिस कि दल्लीराजहरा के बाद बम्बई मा एक शो अउ होए रहिस) 


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Thursday 29 July 2021

धान के नाम


 

 छत्तीसगढ़ में उगइया धान के नाम


सफरी

मासुरी

गुरमटिया

कल्चर

सरोना

दुबराज

विष्णुभोग

सांभा

बाहुबली

आइ आर छत्तीस

डंकल

महामाया

फाल्गुना

गर्राकाट

साठिया

सोनम 

आर बी गोल्ड

केकरा कोड़ा

नंकेशर

नर-नारी

कलम लुचई (बहुते जुन्ना किस्म जेला हमर सियान मन बोवै)

झिल्ली 

आइ आर 64

1010

1008

कनक सरोना

S49सरोना

28,28

828

बासाभोग

चिन्नउर

पूर्णिमा

जंवाफूल

रानी काजर 

एक हजार दस

एच एम टी

चेपटी

सोना मासुरी

लुचई

बीडी सफरी

टेड़गी सफरी

ककेरा

नाग पोहा

मनी गुरमटिया

तुलसी मंजरी

लौंग फूल

परी

काली मूँछ

मुंदरिया

माकड़ो

हरदी

नंदउर

जयफूल

बाँको

बइकोनी

गंगा परसाद

रायश्री

जय श्री

जगन्नाथ

बासमती 

आई आर 36

1003

बंगला 

कंठभुलउ

सोनाकाठी

श्री राम

क्रांति

रामकली

भांठाअंजान

भाठा सफरी

बाँको

नंदनी

अराइज 6444

एक हजार एक

सादा सरना

नरेंन्द्र धान 97

इंदिरा सोना

सहभागी धान

गटवन

क्रांति

टेड़गी सफरी

भेजरी

पूर्णिमा

राजेश्वरी

लोंहदी

चीनी शक्कर

करिया दँवर

पँडरी दँवर

अंजनी

बलवान 

डी आर आर 39व

साँटिओ

जोंधरा धान

प्रसन्ना

कावेरी 90,90

गाँजा गुड़ा

सुरमटिया

हरदी गाभा

तुलसी मँजरी

हँसा



संग्रह-छ्न्द के छ परिवार

Saturday 24 July 2021

ननपन के सुरता

 ननपन के सुरता 


     हमर जिनगी में ननपन  के गजब महत्व हे. बचपन वो उमर होथे जेमा कोनो फिकर नइ रहय.जिनगी ह राग -द्वेष ले दूर रहिथे. बचपन म खुशी पाय के कतको साधन रहिथे. छोटे -छोटे चीज ले मन ह खुश हो जथे. एकदम जादा सुविधा नइ रहय तभो ले लईका मन आस -पास के वातावरण ले अपन बर खुशी खोज लेथे. सियान मन के गजब दुश्मनी रहि वहू परिवार के लईका मन एक -दूसरा सँग सुग्घर मिल -जुल के खेलथे. 

  ननपन म हमन खूब खेलन -कूदन. पारा -मोहल्ला म सँगवारी मन सँग गिल्ली -डंडा, भौंरा, बाटी, बिल्लस, चोर-पुलिस खेल, दौड़ई, अँधियारी -अँजोरी, लुका -छुपी, रेस टीप, रिले रेस, कबड्डी,क्रिकेट, रस्सा खींच, लंबी कूद, रहचुली के सँगे- सँग तरिया म जाके तउँरना (तैरना) अउ बरगद पेड़ म चढ़के पानी म कूदे के अलगे मजा रहय . जब पानी गिरे त कागज के डोंगा बना के गली म बोहावन. पानी म भीगत-भीगत गली म गिद -गिद दउँड़न. दाई -दीदी मन सँग खेत -खार जाके किसिम -किसिम के भाजी -पाला सिल्होके लावन. खेत म करमत्ता भाजी, मेंड़ म बोहार भाजी रहय वहू ल तोड़न. हमन तरिया -नदियां म जाके तउँरना सीखना ननपन म ही सिखथन.बचपन सीखे के सब ले बढ़िया उमर होथे. सँगी मन सँग तरिया जाके पहिली हमन घाट तीर -तीर तउँरे बर सीखथन. फेर धीरे धीरे अभ्यास ले गड्ढा डहर जाके तउँरे ल सीख जाथन. फेर उदिम करत -करत अइसन दक्ष हो जथन कि तरिया ल ए पार ले वो पार तउँर के पार कर लेथन. महू ह अपन गाँव के दर्री तरिया, मतवा तरिया, खमर्री तरिया, चंडी तरिया, सरग बुंदिया तरिया के सँगे सँग खरखरा नदी के "दहरा घाट " म जाके तउँरव अउ गजब मजा लेवव. तरिया -नदियां म छुवउल खेले म नंगत मजा आय. तरिया -नदियां के तीर म बरगद अउ दूसरा पेड़ म चढ़ के पानी म कूदे के अलगे मजा रहिथे. सँगवारी मन सँग मिल -जुल के तरिया -नदियां म तउँरना अउ पेड़ म चढ़के पानी म कूदे ले जउन खुशी मिलथे वोकर वर्णन करे बर शब्द ह कम पड़थे. तउँरे ले हमर  शरीर के सुग्घर व्यायाम हो जथे.येकर ले हमर शरीर के सँगे सँग मन म घलो स्फूर्ति आथे.जिनगी म तउँरना के गजब महत्व हे. विपरीत परिस्थिति म हमन तउँरना जानत हन त अपन जिनगी ल बचा सकथन. कोनो डूबत हे तहू ल बचा सकथन. ननपन म महू सँगी मन सँग खेत -खार डहर जाके पेड़ मन ले लाशा निकालव .ननपन म सँगी मन ले खेले -कूदे ले सामूहिकता के भावना म बढ़ोत्तरी होथे. येहर जब हमन ह जिनगी म आगू बढ़थन त निक ढंग ले काम देथे. येकर सीख हमन ल ननपन ले मिले रहिथे.

              

         ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

         सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़) 

    मो.  7974666840

मोर गांव के मड़ई -गीता साहू

 मोर गांव के मड़ई -गीता साहू

         कोई ईही हजार दू हजार मनखे मन के छोटकुन गांव , न कोई नदिया- न कोई पहाड़ ,सपाट मैदानी  इलाका , जिंहा भूले से भी कोन्हों  बघवा -भालू कभू नइ भटके, न कोन्हो चोर-डाकू के डर ,जइसे कि सिनेमा मन म देखथन, अऊ न ही जाति- पांति या ऊंच-नीच  के  कोन्हों झगड़ा । गांव म बईठारे सीतला माई अऊ माता कौशिल्या  के नानकुन मंदिर ,वहू ह चारों कोती ले खुल्ला तेकरे आशीष म इंहा सबे अपन -अपन जगह  म राजी-खुशी से हावे । नवा पीढ़ी के लइका मन ,जय गुरुदेव कहिके गांव ल सुघ्घर आदर्श ग्राम घलो बना डरे हे ,जेकर नांव बंगलौर तक म लिखाय हवे । नांदगांव शहर ले बीस किमी म बसे ए गांव मोर खुशी के घर आए , इंहा के माटी म पले -बढ़े मैं ,माटी म मिले के  बेरा तक इंहा के सुरता म ममहावत रही ।

        मोर गांव कहत हंव त आज मोला एक कनिक ठिठके  ला पड़ीस, काबर मैं तो बेटी अंव, इंहा ले बिदा होय तो तीस साल होवत हे  ,ता मोर गांव कइसे ? अब तो ससुराल ही मोर गांव आय । नहीं , आप मन ल जौन कहना हे , कहत रहंव ,मोर तो दूनो गाँव आय ,जिंहा मैं सुघ्घर सुघ्घर सपना देखेंव ,वो सपना म, मोर सबो अपन ह रिहिस ,वो अपन के ही तो आशीष आय कि मैं आज हांसत गोठियात इंहा के गाँव म घर परिवार संग अपन सपना ल सुघ्घर जियत हंव , त दूनों मोरेच गांव तो आय का ?  पर बात मड़ई के होत हे ,ता आज तक अपन ससुराल के ना तो हाट बाजार गे हन और ना ही इंहा के मड़ई  देखे के समय निकाल पाए हन ,न कभु सोच पाए हन ,त बाच गे मोर मइके के गाँव के मड़ई ,आने मोर गांव के मड़ई ।

        मोर गांव के मड़ई काय ये एक ठन बड़े कस्बा के बाजार तो रहिस हे,पर हां मिठई दुकान अऊ रहटोली अऊ एक ठन झूला ,जे गोल गोल घुमे ,बस उपराहा राहय । आज सोचत हंव कि ये मड़ई म का अइसे बात रहीस है कि हमन सब झन गांव पहिली ले ही अमर जान ,चाहे परीक्षा हो या कुछु और , इंहा तक कि नौकरी में आय के बाद भी डेढ़ -दो सौ किलोमीटर के सफर ला करके अपन गांव के मड़ई  ल देखे बर आय- आय हन। सबर दिन गांव ले बाहिर रहे हन त गांव के मड़ई ह घर आय के बढ़िया बहाना रहे ,दाई ददा के संग म सबो सियान मन सन भी मिलई जुलई हो जाय । घर सगा सोदर से भरे राहय ,ऊपर ले नाचा वाले मन अऊ पुलिस दरोगा मन के कबीरपंथी भोजन भी हमरे घर म रहे काबर कि हमर बाबूजी ह गांव के पटेल रहिस हे , वतका बड़ घर ,तभो ले अंगना-द्वार तक ह भरे रहे । 

        गांव के मड़ई एके दिन के का ,एके जुवार के ही राहय ,फेर हमन ह दू तीन घांव ले किंजर डारन  , काबर कि दुकान मन ह सबेरे ले लगे के शुरु हो जाय रहे , विश्राम भैय्या के मिठई -दुकान लग चुके रहे , ये विही विश्राम भैय्या आय जेन ह नांदगांव म भोले कुल्फी वाले के नाम से फेमस राहय ,वोकर कुल्फी के मिठास,आज भी  मुंह म भरे हवे । ऊंहा बईठ  के हमन चाय भी पीयन,अऊ निकलत गरमागरम जलेबी ल भी खाय हन । जेन भैया खर्चा कर सके वोकर जेब ल खाली करवावन  । भैय्या मन के संगवारी मन संग हमरो सहेली मन  भी आय -आय हे । मनियारी ल भी हमन दिने म ही खंगाल डरन । दिनमान के मड़ई लईका -लईका जान त साझकुन सबो भाभी -काकी मन संग जान , पहाती जुवार  नाचा  दिखाय बर हमर बड़े भैय्या भाभी हमन सबो लोग लईका ल उठा के लेगे ,मटेवा वाले नाचा के हमर गाँव म बहुत मांग रहे ऊहू म चरण दास चोर के ही गम्मत ल सब जादा पसंद करे ।आज के धांधली ल देखावत बड़ सुघ्घर गम्मत ,पर सबो ल भुला गे रेहेव कि भाई घनश्याम के नाटक ल देखेव  , त सोचे ल पड़ीस कि कतिक उद्देश्य परक रहिस नाचा संस्कृति के गम्मत  मन ह ।  

              आज भी गांव -मड़ई के नेवता आथे ,पर अतका दूरिहा मैं अब कहां जा पाहूं , अऊ जांहू भी तो अपन बीते कल ल सुरता करत रही जहूं ,तेकर ले इंही कर ले सुरता कर लेवत हंव ।

              श्रीमती गीता साहू

                 21.07.2021

कहिनी - हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 कहिनी   - हरिशंकर गजानन्द देवांगन

           सबले बढ़िया – छत्तीसगढ़िया         

       नानकुन गाँव धौराभाठा के गौंटिया के एके झिन बेटा – रमेसर , पढ़ लिख के साहेब बनगे रहय रायपुर म । जतका सुघ्घर दिखम म , ततकेच सुघ्घर आदत बेवहार म घला रहय ओखर सुआरी मंजू हा । दू झिन बाबू – मोनू अउ चीनू  , डोकरी दई अउ बबा के बड़ सेवा करय । बड़े जिनीस घर कुरिया के रहवइया मनखे मन ल , नानुक सरकारी घर काला पोसाही , नावा रायपुर म घर ले डारिन अउ उंहीचे रेहे लागिन । 

              कालोनी म , किसिम किसिम के , अलग अलग राज ले आय मनखे रहंय ।‍ धीरे धीरे मन माढ़े लागिस , लोगन मन ले परिचय होवन लागिस , तइसने म घाम के महीना बईसाख आगे । लइकामन के स्कूल के छुट्टी के समे आगे । दूरिहा – दूरिहा के रहवइया मनखे मन , अपन अपन देसराज जाए के तियारी करे लागिन । रमेसर पूछत रहय , जम्मो झिन छुट्टी म चल दिहीं त हमन कइसे करबो मंजू ? मंजू किथे - का करबोन जी ? हमूमन माईपिल्ला , अपन गाँव जाबोन अउ अपन घर दुआर के मराम्मत कराबोन , अउ अपन खेतखार ल दुरूस्त करवाबोन , उँहीचे अपन लोग लइका ल किंजारबो  , अउ खेतखार के जानकारी देबोन । रमेसर किथे - तेकर ले कहाँचो दूसर ठउर जातेन का , थोरकुन समे बर ? गाँव म लइकामन बोरिया जथे , दाई-बाबू मन के किंजरे के सउँख घला पूरा हो जही । एक काम करे जाय मंजू , जम्मो परोसी मन ल घला किथौं , अपन अपन देसराज त हर बछर जाथौ , ये बखत जुरमिल के अलग अलग परदेस जाबोन , इही बहाना परिचय घला पोट्ठ हो जही । जम्मो योजना घरे म  बनगे ओतकिच बेरा ।

                 तिर तखार के जम्मो लइका सियान तियार होगे , बइठका सकलागे ,  तारीख तिथि निच्चित होगे । मराठी बाबू ठाकरे ल पूरा यात्रा के प्रभारी बना दिन । बड़े जिनीस बस किराया कर डारिन । कोन कोन जाहीं , कतका संख्या होही – तेकर हिसाब होए लागिस । संख्या अउ सीट के हिसाब ले , रमेसर के महतारी-बाप छूटत रहय । रमेसर – मंजू के बनाए योजना , ओकरे महतारी बाप के जाए के मनाही म , इँखर दिल टूटगे । यहूमन , नइ जाए के घोसना कर दिन । एमन ल ठाकरे साहेब बड़ समझाइस , फेर एमन नइ मानिन ! मंजू के कहना अतकेच रिहिस के बिगन सास ससुर के , नइ जावन । एडवांस पईसा डूबे के घला फिकर नइ करिन । तारीख लकठियागे , उही समे भाटिया साहेब के छुट्टी निरस्त होगे , पइसा घला जमा नइ करे रहय ओमन । भाटिया साहेब हा बिगन जाय , फोकट फोकट पइसा देबर मना कर दिस । आर्थिक बोझा जवइया मन उप्पर बाढ़हे लागिस । जाए के एक दिन पहिली , ठाकरे साहेब हा मजबूरी म , रमेसर करा पहुँच गिस । ओला महतारी बाप सम्मेत जाए बर मनाए लागिस । रमेसर गाँव जाए के तियारी करत रहंय । ददा के आदेश ले , इंखरे संग यात्रा निच्चित होगे ।

                   बड़े जिनीस बस ईँखर घर के आगू म आके ठाढ़ होइस । रमेसर मन जम्मो झिन , आगू ले चइघ के सीट पोगरा डारिन । धीरे धीरे मोहल्ला भर के मनखे जुरिआए लागिन , अउ अपन अपन सीट म बइठे लागिन । राव साहेब आतेचसाट , रमेसर अउ ओखर परिवार ल देखके , बम होगे । राव साहेब बग्यावत केहे लगिस - आगू के दूनों सीट मोर नाव ले बुक हे , ओकर पाछू बेहरा बाबू के नाव ले । तूमन ल अपन सीट के होश हवाश नइये का ? डोकरा डोकरी ल झिन लेगहू केहे रेहेन , उहू मन ला धर के ले आने । रद्दा म इँखर नाव लेके कहीं तकलीफ होही त तुंहर मजा ल बताहौं , घुचो हमर सीट ले । रमेसर के चेहरा तमतमागे , कुछु बोलतिस तेकर पहिली , ओकर ददा केहे लागिस – तुँहरे संगवारी मन जाय बर किहिन , तब जावथन बेटा । रिहिस बात सीट के , हमन ल जनाकारी नइ रिहिस के , सीट म जम्मो यात्री मन के नाव लिखाहे । ले तूमन तुँहर सीट म बइठव , पाछू कोती के सीट खाली दिखत हे उही हमर होही - कहिके माई पिल्ला अपन सूटकेस मोटरी - चोटरी ल धर के पाछू डहर रेंग दिन । रमेसर अपमान के घूँट पीके रहि गिस , फेर अपन ददा के सेती मुहूँ नइ खोलिस । 

                  गाड़ी चले लागिस । रद्दा म जगा-जगा बोर्ड टँगाए रहय , जेमे लिखे रहय , छत्तीसगढिया सबले बढिया । राव के लइका जइसे देखय , जोर जोर ले पढ़य । बेहरा बाबू – राव साहेब आपस में गोठिआए लागिस – हुँह , का खाक बढ़िया ? केवल नारा आय एहा , न लोक में ठिकाना , न रंग में , न संस्कृति में दम , न सभ्यता म । दई-ददा ल चिपका के घूमत हे आनंद मनाए के दिन म । हमर दाई ददा नइहे का । बहाना बना के छोड़ देतिन , घर के रखवारी घला हो जतिस । इँकर तिर कायेच हे तेकर रखवाली बर कन्हो ल छोड़ही । रहितीस तभ्भो , एमन काहीं के इज्जत करे ल नइ जानय । ये छत्तीसगढिया मन , कतको बड़ पद पा जांए भाई साहेब , फेर रही अड़हा के अड़हा । साले परबुधिया मन यहा उम्मर म दई ददा के अँचरा ल धरके घूमथें । खाली दुनिया भर में प्रचार प्रसार हाबे कि – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । फेर मोला लागथे इंहा काँहीच बढ़िया नइये , तेकर सेती प्रचार प्रसार  के जरूरत परथे ।

                  एक झिन कहत रहय - हमन अपन अपन प्रदेश ल देखथन त , अइसे लागथे के एमन अभी घला पथरा जुग म जियत हे । कोन्हो अपन प्रदेश के लोक  , रंग  , संस्कृति के गुन गावत नई अघात हे , त कोन्हो अपन समृद्धि के । कोन्हो अपन राज के , दूध दही के नदिया के , बखान करत हे , त कोन्हो मंदिर देवाला के  । कोन्हो अपन देशराज ल अनाज के भंडार बतावत नइ अघावत हे , त कन्हो खनिज के । चरचा चलत हे जात्रा संग , फेर रहि रहि के छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के ऊप्पर व्यंग्य घला । अपन देस राज के गुन गवइ ले जादा , लोगन ल इहां के हाँसी उड़ाए म मजा आवत रहय । कुछ मन कहय - हमर देस राज ल आवन दव , तब देखाबो – काला किथे सबले बढ़िया । सफर के पहिली पड़ाव म पुरी पहुंचगे जात्रा दल । सफर के थकान उतरे के पाछू , जगन्नाथ भगवान के दर्शन बर तैयार होवत हे जम्मो झिन । उड़ीसा निवासी बेहरा सेठ भारी उत्साहित रहय । अपन प्रदेश के गौरव के भारी बखान करत रिहिस । थोरेच समे में एकर सहयोग ले मंदिर के बड़ सुघ्घर दर्शन घला पागिन । बेहरा के छाती फूलत रिहिस घेरी बेरी । थोरेच पाछू ओकर पूरा हवा निकल गे । कोन जनी कोन पंडा बनके बेहरा बाबू ल अइसे लूटिस के , पूरा जेबेच सफाचट होगे । जतका डिंगरई मारत रिहिस , जम्मो घुसड़गे । मजाक या हाँसी उड़ई तो धूर .. बोलती तको कमतियागे | रमेसर ह , ओला बहुत अकन पइसा देके मदद कर दिस ।   

                  भगवान तिरूपति के दर्शन बर अबड़ उछाह रिहिस जम्मो के मन म । जइसे जइसे मंदिर लकठियाये लागिस , मनखे मन के उछाह सरसरऊँवा बाढ़तेच गिस । कन्हो अपन मनौती के बिसे सोंचत रहय , त कन्हो भगवान ल मने मन धन्यवाद देवत रहय । मंदिर तिरेच आये के उमीद म एक जगा बिलमके पूजा गाजा के समान बिसाये लागिन । इही म देरी होगे । थोकिन आगू गिन तहन .. उदुप ले आंधी तूफान बरोड़ा सुरू होगे । पानी के बड़े बड़े बूँद चुचुवाये ल धर लिस । ड्राइबर हा आघू गाड़ी चलाये म अपन समस्या बताइस । मजबूरी होगे , तिर के गाँव म समे काटे के । बस के मैनेजर हा समय बचाये बर , इही गाँव म खाना पीना , सोंच डरिस । स्कूल के छपरी देख के बस ल ठाड़ करिस । गाँव के जवान मन स्कूल के परछी म तास खेलत रहय । मैनेजर ह राव साहेब ल , इही लइका मन के मदद माँगे बर भेजिस । मदद त दूर , लइका मन अस डरवइस ओला के , तुरते हाँफत हाँफत आके , बस ला जल्दी चलाये बर केहे लागिस ला । ड्राइबर घला ओकर हालत ल देखिस , त पूछिस न गँवछिस , सटासट गेयर लगइस अऊ गाड़ी ल भगइस इहाँ ले । थोरकुन बेर म राव साहेब बतइस - वो टूरा मन असमाजिक मनखे कस लागिस , उहाँ थोरकुन बिलमतेन ते लूट पाट हो सकत रिहिस । साले मन मदद त दूर , मुँही ल लूटे बर कुदाये ल धरत रिहिन । रमेसर के बाबू हा ओकर तिर म आके .. ओकर गिला चूंदी ल पोंछिस अऊ समझइस । जम्मो झिन बस म , भगवान तिरूपति के प्रार्थना शुरू करिन , सहींच म देखते देखत बादर कते कोती छँटागे , सुरूज के चमक दिखे लागिस । पानी के बेवस्था देख के खाये पिये के उदिम पूरा करिन , तेकर पाछू भगवान तिरूपति के दर्शन बर मई पिल्ला आगू बढ़ गिन । 

                 सफर के अगले पड़ाव म बेंगलूरू शहर म प्रवेश कर डरिन । एक ठिन होटल म रूके के बेवस्था रहय । सफर के थकान नइ जियानत रहय कन्हो ल । वृन्दावन गार्डन , भव्य बजार जाये के सऊँख म लकर धकर तैयार होवत हे । रमेसर कभू देखे नइ रहय । वोहा कन्नड़ शेषाद्रि भाई के संगत ल धरिस । दूनों झिन घूम के आबो , तंहंले अपन परिवार ल घुमाहूँ सोंच के चल दिस शेषाद्रि संग । गार्डन म शेषाद्रि हा एक झिन सुघ्घर नोनी के हाथ ल धर दिस । मार परिस रमेसर ल । काबर के उही गलती करिस तइसे सारी बोल पारिस । पछीना छूटगे – रमेसर के । घेरी बेरी छमा माँगिस तब बड़ मुश्किल ले छूटिन । वापिस होटल आये के पाछू शेषाद्रि हा , रमेसर अइसे करिस तेकर सेती मार परिस अऊ में बचायेंव , कहत रहय । कतको झिन रमेसर ल गारी दिन । अपन गलती नोहे - बताये के कतको कोशिस करिस फेर , रमेसर के गोठ सुने बर कन्हो तियार नइ होइस । कन्हो कन्हो तुरते उलाहना दे बर सुरू कर दिन – इही ल कथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । 

                बहुत कष्टदायी होगे यात्रा हा इँकर मन बर । देश के व्यवसायिक राजधानी मुम्बई जाये के कन्हो उछाह नइ रहिगे मन म अभू । अऊ मनखे मन हीरो – हीरोइन ले मिले बर उत्साहित रहय , त कन्हो चोर बजार ले जिनीस बिसाये बर । कन्हो चौपाटी म मजा ले के सपना देखत रहय , त कन्हो फिलिम सिटी म समे बिताये के । तेकर ले ठाकरे साहेब अऊ जादा उत्साहित रहय । अऊ रहिबेच करही – अपन प्रदेश के गरब देखाना हे । बड़ घूमिन फिरिन । रंग रंग के जिनीस बिसा डरिन । फेर घूम के आये के पाछू , ठाकरे के बाई के मुहूँ तूमा बरोबर लटके रहय । न हूँके न भूँके । पता चलिस – पैसा के थैली चोरी होगे । अऊ ते अऊ , उही म ठाकरे के पर्स , ए टी एम कार्ड , मोबाइल जम्मो गे । कहींच नइ बांचिस । दूनो परानी रोवत बइठे रहय । मंजू अबड़ समझइस । ठाकरे भाऊ भड़कगे – तोर होये रहितिस त जानते , तेंहा हमन ला लान के दे देबे का , बड़ समझइया बने हस ? मंजू बड़ दायसी ले गोठियात , अपन ए. टी. एम. ल देवत किहिस - जतका जरूरत हे ततका निकाल सकत हव । ठाकरे हा , मंजू के बेवहार ले अवाक रहिगे । 

                यात्रा चलत हे । रमेसर के परिवार , हरेक दारी काकरो काकरो मदद करके , अपन आप ल धन्य अनुभौ करय । तभ्भो ले छत्तीसगढिया सबले बढिया कहिके , कन्हो कन्हो बेर कमेंट सुने ल मिलीच जावत रिहिस । मध्यप्रदेश पार करत उत्तरप्रदेश पहुंचगे । इलाहाबाद के संगम म खल खल ले नहा धोके बिहार कति जावत रहय बस । रात के दू बजे । नींद अपन बांहाँ म पोटारे हे सबो मनखे ल । बिधुन चलत बस , उदुप ले ठाड़ होगे । सुनसान जगा , हड़बड़ागे जम्मो झिन , सुकुरदुम होगे । कुछू समझतिस तेकर आगू , चारो मुड़ा ले कोलिहा के निही , बल्कि मनखे के भाखा सुनई दे लागिस । कन्हो ड्राइबर या मैनेजर ल पूछतिन तेकर पहिली समझगे , डाकू मन छेंके रहय । बस ले उतार दिन जम्मो झिन ल , बस म चढ़के तलासी ले डरिन । मोबाइल , पइसा , ए टी एम कहींच नइ बाँचिस । गहना गुठा तको उतरवा लिन । पूरा लुटागे । सुसवाये धीरे धीरे बस म चघत हे फेर । लोग लइका के हियाव करत , अपन अपन सीट म बइठगे । जइसे तइसे बस रेंगे लागिस । पोहाये के अगोरा म रथिया बीतत नइ रहय । दू पहर बाँचे रथिया , जुग ले बड़का होगिस । बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , भात बासी खाबो अऊ निकलबो – इही योजना बाँचे रहय । कोन जनी कइसे पूरा होही । तभे मालिक बतइस के सिर्फ एक टेम के रासन बांचे हे , अभू काये करना हे बतावव । बिहारी बाबू श्रीवास्तव जी केहे लागिस – इहीच तिर हमर भाई के घर हे , चलो उंहे जाबोन , खाये पिये अऊ आघू जाये बर पइसा कौड़ी के बेवस्था हो जही । मई पिल्ला खुस होगिन । सिर्फ छत्तीसगढ़िया थोरेन बढ़िया होथे जी ‌- श्रीवास्तव के व्यंग्य बान रमेसर कोती चलगे । रमेसर हरेक दारी मन ला मार के रहि जाये , कहींच जवाब नइ देवय । रमेसर के दई पोलखा म लुका के धरे पइसा ल हेरत , श्रीवास्तव बाबू ला देवत किहिस – तुंहर भई घर जाबोन त , दुच्छा थोरिन जाबो , ये पइसा के खई खजाना बिसा डरव , सगा जाबे त लइका मन झोला ला निहारथे  । पइसा धरके , श्रीवास्तव उतरगे , ओकर संग कतको झिन उतर गिन पानी पिये बर । खई लेवत उदुपले भेंट होगे इंकर भई संग । सबो गोठ घला होगे इहीच तिर । अपन घर लेगही कहिके , खई ल घला दे डरिस , फेर वोहा एक्को घाँव अपन घर जाये बर नइ किहिस , खई ल धरिस  , अऊ जरूरी बूता म जाना हे – कहिके , टरक दिस । चुचुवागे सबो । 

               भगवान परीक्षा लेवत हे बेटा , तूमन फिकर झिन करव , बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , उही हमर वापसी ल सरल बनाही ‌- रमेसर के ददा के अइसन गोठ कन्हो ल नइ सुहावत रहय । एक झिन कहत रहय - पइसा कौड़ी कहींच निये , खाये पीये बर रासन निये , लइका मन तरस जही , तोला काहे डोकरा ....... याहा उम्मर म घूमे के उसरथे । सियान किथे - तूमन चलव तो , भगवान सब पूरा करही । बस के मैनेजर घला उनिस न गुनिस , सियान के बात मान के चल दिस । बाबा के दर्शन होगे । एक टेम के बाँचे रासन ले कलर कलर करत पेट कहाँ भरही । काकरो पेट नइ भरिस । झारखंड नहाके के समे डीजल सिरागे । अभू अऊ बड़े समस्या ...... । मुड़ धरके बइठगे । मैनेजर बतावत हे - पेट्रोल पँप तिरेच म हाबे बबा , फेर का काम के ? पइसा निये एको कनिक । सियान ला बखाने लागिन कतको झिन मई लोगन मन .. । तोरे सेती वो पार गेन , वोती नइ जातेन त , कइसनो करके छत्तीसगढ पहुँच जतेन । अभू का करे जाये ........ । मुड़ी खजवात सोंचत , पेट्रोल पँप के मालिक करा गोठियाये अऊ किलौली करे बर चल दिन । नान - नान नोनी बाबू के रोवई गवई ल बताबो तंहले , पँप मालिक पसीज जही अऊ जरूर हमर मदद करही । पँप मालिक किथे - तुंहर कस कतको झिन तीरथ यात्री मन रोजेच आवत - जावत रिथे , मेंहा खैरात म बाँटे धर लुंहूँ , त धंधा कइसे करहूं । कहींच किलौली काम नइ अइस । पंप मालिक किथे - तुंहर करा सोन चांदी होही तिही ल दे दव । राव बतइस - कहां ले देबो बाबू , सब ल लूटके लेगे हे डाकू मन । रमेसर के छोटे बेटा अपन बबा संग पाछू पाछू पेट्रोल पँप म पहुंचे रहय । पेट्रोल पँप मालिक के गोठ सुनके , नानुक लइका अपन गला ले सोन के चैन उतारिस अऊ अपन दादू ल देवत डीजल भराये बर केहे लागिस । डीजल भरागे , फेर ये चैन कइसे बांचिस सोंचत रहय , तभे दादू ला सुरता अइस , डाका के बेरा लइका , बस म सुते रिहिस , अऊ डाकू मन , सुते लइका के गला के खाना तलासी नइ करिन होही ।  

               गाड़ी म डीजल भरागे । तब तक मनखे के पेट म मुसवा हमागे । भूख के मारे हाल बेहाल हे । पोट पोट करत हे । रमेसर के दई , अपन मोटरी ल डर्रा - डर्रा के हेरिस । दस बारा दिन पहिली , कतको झिन ल खवाये बर , दे के प्रयास करे रिहिस , तब कोन्हो नइ खइन अऊ नाक मुंहूँ ल एती वोती करिन । एक झिन मई लोगिन खिसियात केहे रिहिस – अतेक मइलहा फरिया म लपेट के धरे हस , कोन खाही ऐला । टीपा म आने आने फरिया म ठेठरी , खुरमी , कटवा , खाजा , बिड़िया रोटी ल लपेट के धरे रहय । दई के उही खई अभू अतेक मिठावत रहय ..... झिन पूछ । पेट भरगे , जी जुड़ागे । गाड़ी निर्बाध चले लगिस । रोटी नइ चलिस । फेर हमागे भूख बैरी हा । 

               छत्तीसगढ़ के सीमा लकठियाये लागिस । पेट के मुसवा के पदोना अऊ बाढ़गे । झारखंड पार करत अऊ कतको गाँव गँवई परिस । फेर काकरो हिम्मत नइ होइस , सहायता मांगे के । तभे , बड़े जिनीस बोर्ड दिखिस – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । रमेसर के ददा हा , ड्राइबर के बाजू म आके बइठगे , अऊ ड्राइबर ला केहे लागिस – पहिली जे गाँव परही , तिहींचे ठाड़ करबे , कुछु न कुछु वेवस्था करबो । हाँसिन कुछ मन , गजब वेवस्था कर डरही तइसे गोठियाथे डोकरा हा । रसता भर अतेक प्यार अऊ सहयोग करे के पाछू घला , कतको झिन रमेसर के परिवार ल नइ समझ पइन । दम ले पहुंचगे एक ठिन नानुक गाँव । सियान किथे - रोक ... रोक .... इही करा । इंहीचे बेवस्था होही । अऊ यात्री मन सोंचत रहय - नान नान झोपड़ पट्टी के बने घर कुरिया म रहवइया मनखे मन , काये मदद करही । खुदे मरत होही खाये पीये बर , हमन ल काला दिही – कानाफूसी गोठियाथे लोगन मन ।

               बर रूख करा छाँव देख , बस ल ठाढ़ करिस । बर रूख के तरी म , ग्राम सभा के बईसका सकलाये रहय । बस ल ठाढ़ होवत देखिस त उहू मन अपन अपन जगा म ठाढ़ होगिन । मनखे मन ल , बस ले उतर के अपन कोती आवत देखिस , त उहू मन बस कोती अइन । कुछ यात्री मन के मन म डर हमागे , जतका बाँचे हे तहू झिन लुटा जाये कहिके । जइसे तिर म गिन , गाँव वाला मन हाथ जोर के जोहारिन जम्मो झिन ल । रमेसर के बाबू के उमर देख के पाँव घला परिन । पानी पियइन , लिमऊ के शर्बत घोर डरिन । गोठियात बतात जइसे पता चलिस के , एमन तीरथ बरथ करके आवत हें – मई लोगिन मन घला जुरियागे , चरन पखारत अपन भाग ल सँहराये लागिन । तिर के स्कूल म माई मन के नहाये बर पानी के बेवस्था कर डारिन । पुरूष मन तरिया म नहा डरिन । इँकर नहा धो के तियार होवत ले , बर तरी , दार – भात - साग सब चुरगे । मसूर संग सेमी भांटा अऊ आमा के खुला , डुबकी कढ़ही , उरिद के दार लसून धनिया संग , रसहा चेंच भाजी अदौरी बरी मिंझरा , माड़ी भर झोर में मुनगा - रखिया बरी .... काला खाये काला बचाये तइसे होगे । ररूहा सपनाए दार भात – कस स्थिति होगे । पेट के फूटत ले कसके झेलिन । अऊ ले लौ ..... एक कनिक अऊ ले लौ ...... थोर कुन मोर कोती ले ....... कहिके अतेक प्रेम से आग्रह करके खवइन पियइन के , यात्रा के जम्मो दुख कोन जनी कते करा हरागे , पता नइ चलिस । इँकर भात ह एक कोती पेट ल छकाबोर करिस , त दूसर कोती प्रेम – मया हा , इँकर हिरदे ल सराबोर कर दिस ।   

                    भात खाये के पाछू जानिन के , रमेसर के बड़े बाबू निये । खोजा खोज माचगे । तभे लइका आमा चुचरत आवत दिखिस । पोटार के रो डरिस मंजू हा । लइका किथे - मां , अब्बड़ भूख लागत हे । गाँव के एक झन डोकरी दाई खाये बर पछवाये रहय , ओकरे बाँटा के आधा ल दिस , तइसने म एक झिन मंगइया , घोसरत घोसरत भूख म बिलबिलावत पहुँचगे तिर म । डोकरी दाई शुरू कर डरे रहय । लइका हाथ गोड़ धो के जइसे बइठिस , देख पारिस मंगइया के करलई ला .. । तुरते किथे - मोला भूख नइये मां .... मेंहा बगीच्चा म बड़ अकन आमा चुचरे हँव । अपन भात साग ला मंगइया ल देवा दिस । यात्री मन के आँखी ले आँसू धार बनके निथरे लागिस । रमेसर के परिवार के त्याग , सेवा समर्पण अऊ तपस्या के कायल होगिन जम्मो झिन । मुड़ी ल गड़ियाये , अपन करनी के पश्चाताप करत सुबकत रिहिन । रमेसर के पूरा परिवार के प्रति कृतज्ञता के भाव रहि रहि के हिलोर मारे लागिस । ठाकरे के मन के बात जुबान तक पहुंचगे । केहे लागिस – हमन रद्दा भर तुंहर हाँसी उड़ाएन , तूमन ल परेशान करेन । अपन प्रदेश के बड़ तारीफ करेन , फेर असलियत इही आय , जेला सबो देखेन , अऊ अभू देखत हन । इहां के मान सम्मान आदर सत्कार ल जिनगी भर नइ भुला सकन । गाँव के गरीब मनखे मन जेन आत्मीयता ले हमर स्वागत करिन , तेला मरत ले नइ भुलावन । वाजिम म छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया आय । फकत नारा नोहे , सचाई इही आय । समर्थन म थपड़ी पीटे लागिन बाकी यात्री मन । सरपंच खड़ा होके केहे लागिस – हमर फर्ज आय भइया , सगा के सेवा करना । फेर तूमन तो तीरथ बरथ ले घला आवत हव । तुँहर चरन धोके हमूमन तरगेन । बल्कि तुंहर स्वागत म कोन्हो गलती होगिस होही ते ... हमन ल क्षमा करहू ।    

                    बर रूख के छाँव म थोकिन आराम के पाछू बिदाई के समे आगे । यात्री मन बड़ भावुक रिहिन । लाल चहा अगोरत , गोठ बात चलत रहय । गाँव के सरपंच , रमेसर के बाबू ल अपन सम्बोधन म , ममा कहत रहय । एक झिन ला भ्रम होगे के , येहा सहीच म एकर भांचा आये का ? रेहे नइ गिस , पूछ पारिस । सियान किथे – मोर भांचा नोहे बेटा , फेर येहा हमर छत्तीसगढ़ राज के रिवाज आय , दुनिया के हरेक मानुस संग अपन रिश्तेदारी बना डरथन । ये बाबू ला , न कभू देखे हँव , न जानत हंव । अऊ यहू मोला कभू नइ देखे या जानत हे । फेर मनखे यहू आय अऊ मनखे महू आँव , इही ल दूनो झिन जानत अऊ देखत हाबन । सरपंच बीच म बोलत , बताये लागिस – ये फकत हमर प्रदेश के संस्कार नोहे ममा । में हा बतावथौं आप मन ल , आप मन बर पानी डोहरइया तेलगू आय , लिमऊ के सरबत घोरत रिहिस ते कन्नड़ आय । तुँहर चरन पखरइया कतको झिन महतारी मन उड़ीसा , झारखंड अऊ उत्तरप्रदेश बिहार के रहवइया आय । तुँहर बर साग भात रंधइया मराठी आय । तुँहर जूठा उठइया , बरतन मंजइया घला इहां के मूल निवासी मनखे नोहे । फेर ईँकर संस्कार अतका सुंदर हे के , एमन ल अतिथि के सेवा करे बर , कन्हो काम म लाज बिज निये । सियान किथे - हां भांचा , तैं सिरतोन कहत हस । मोर जम्मो संगवारी मन घला , बहुतेच संस्कारी प्रदेश के निवासी आय । यात्रा के बेरा म जेन गलती होइस या जेन बुरा बात होइस , ओमे वो प्रदेश के संस्कार के कन्हो दोष निये । उड़ीसा म लुटइया पंडा उड़िया होइच नइ सकय । तूफान म हमन ल अपन ठऊर म रूकन नइ देवइया हो सकत हे हमरे हितवा तेलगू भाइ होही । ओहा हमन ल सावधान करिस होही । बंगलोर म अपन गलती के सजा पाये हन हमन । बम्बई म हमर लापरवाही आय , कन्हो लूटे बर नइ आये रिहिस हमन ल । बिहार – उत्तरप्रदेश के सीमा म लुटइया मनखे उहां के नोहे , ओमन बाहिर के आये जेमन ओ प्रदेश ल बदनाम करके राखे हे । वाजिम म देखे जाये , त उन प्रदेश हा , हमर प्रदेश ले कतको अगुवा अऊ बेहतर घला हे । फेर असमाजिक मनखे मन के जमावड़ा उन ला बदनाम करे हे । येहा हिंदुस्थान के माटी आय भांचा – जिंहा प्रेम , भाईचारा अऊ सौहार्द - नदिया कस बोहावत हे , जेन ल जतका मन ततका झोंक लौ । हाँ एक बात जरूर कहूँ के मोर छत्तीसगढ़ म रहवइया संगवारी मन , अभू जेन सेवा करिन , ओकर बर मय कृतज्ञ हंव । येहा कन्हो एहसान थोरेन आय ममा , हमर परम्परा अऊ फर्ज आय – सरपंच जवाब दिस । 

               चहा चुँहक डरिन । जाये के समे होगे । फेर काकरो गोड़ नइ उचत रहय । इँहींचे बस जतिस तइसे लागत रहय जम्मो ला । गाँव के मई लोगिन मन , माथ म तिलक लगा के , नरियर अऊ द्रव्य दक्षिणा घला भेंट करिन । बस में बइठे अऊ सीट पोगराये के होड़ परागे । अभू नावा होड़ माचगे – रमेसर अऊ ओकर परिवार के तिर बइठे के । रमेसर के दाई ददा मन , डोकरी डोकरा ले कका – काकी होगे । जम्मो मनखे , अपन करनी बर , माफी मांग मांग के अपन पाप धोवत रहंय । अभू घला चर्चा चलत रहय ... छत्तीसगढ़िया के ... फेर चर्चा के स्वरूप बदलगे । कन्हो कहत हे – वाजिम म इहाँ के मनखे बढ़िया होथें , एमन केवल अपन प्रदेश के निही , जम्मो देश के बात करथें । कन्हो कहत रहय – इहाँ के मनखे भारत ला , छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ ल भारत समझथें , अऊ कन्हो भी गिरे परे अटके भटके ल अँगिया लेथें , तभे कन्हो प्रदेश के मनखे , इहां आसानी ले घुल मिल जथें । अभू बोर्ड , सड़क ले जादा इंकर दिल म जगजगाये लागिस - सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया । 

                                                    हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

होम करत हाथ जरे-चोवाराम वर्मा बादल -------------------------------

 होम करत हाथ जरे-चोवाराम वर्मा बादल

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बिहनिया- बिहनिया  पेपर पढ़त , अंग्रेजी अमृत ,चाय के चुस्की के आनंद के का कहना ? एक दिन अइसने मनभावन-पावन बिहनिया जुवर मैं चाय पियत आनंद के डबरा म बूड़े रहेंव ओतके बेर  पड़ोसी जी हा अंगना मा अराम फरमावत मोर मोटर साइकिल ल प्यार से कन्नेखी देखत मदमस्त चाल से आइस अउ बिना कोनो लाग लपेट के सीधा मुद्दा के बात म आवत पूछिस-- भैया जी गाड़ी खाली हे का? मैं समझगेंव, आगू म साक्षात वामन अवतार खड़े हे। ओकर गोठ ल सुनके मोर माथा ठनकगे। अचानक वो घटना, सुरता के झरोखा ले मूँड़ निकालके बिजरावत झाँके ल धरलिस जब मोहल्ला के एक झन भतीजा ह मोर असन ये अकल के दुश्मन अंकल ले बड़ शिष्टाचार देखावत , पंद्रा मिनट बर गाड़ी ल मांँग के लेगे रहिसे। कई घंटा पाछू पता चले रहिसे के भतीजा  ह अस्पताल म कल्हरत भर्ती हे अउ मोर दुलरवा गाड़ी ह थाना म धँधाये हे। अबड़ेच अनुनय बिनय करे अउ बिसेस   दान-दक्षिणा देके पाछू मोर दगदग ले नवा मोटर साइकिल ह फूटे मूँड़ अउ टूटे हाथ गोड़ के संग खोरावत वो थाना रूपी नरक ले निकल के घर आए रहिस।

     खैर हमर बिगड़े आदत कहाँ छुटही। लोगन हमला फोकट के बुद्धिजीवी थोरे कहिथें?  वो खराब अनुभव ले आज तक हम एको अक्षर नइ सीखेंन। पड़ोसी जी बर चाय मंँगाके पूछेंव-- कहूँ जाबे का ? अँधवा ल का चाही दू आँखी। वोहा चहक के,मुस्कावत कहिस-- दमाँद ह मोबाइल करे हे के  मोर बिटिया के तबीयत खराब हे । उही ल देखके आधा घंटा म आ जतेंव , तेकेरे सेती गाड़ी ल माँगे बर आए हँव।

   अब आप एला मोर संस्कार समझव चाहे कुसंस्कार। अइसने बखत होम करे के भावना मोर हिरदे म मेंचका कस टिंग-टिंग कूदे ल धर लेथे।कभू- कभू तो समुंदर कस लहरा तको उफान मारे ल धर लेथे। मैं सोचेंव-- एक तो राम राम के बेरा, दूसर म परोपकार करे के अवसर --पुण्य कमा लेनेच चाही। अति प्रसन्न होके गाड़ी के चाबी ल देवत, हाथ जोड़के विनती करत कहेंव-- अभी छै बजे हे।दस बजे तक खच्चित सकुशल लहुट जबे ।मोला ड्यूटी जाना हे। वोहा कहिस--आदरणीय आप  थोरको चिंता झन करव। वोकर नेक सलाह बड़ अच्छा लागिस। वोहा गाड़ी ल निकालिस अउ देखते-देखत फुर्र ले उड़ागे।

         फेर उही होना हे जेन होना रहिसे। अगोरा--अगोरा बस अगोरा। जइसने दस बजे लकठियाइस  मोर तन लेओगरा खेत के पानी कस पछीना ओगरे ल धरलिस।   ग्यारा बजत-बजत मोर तबियत के बारा बजगे।मोर ब्लड प्रेशर अतका डाउन होगे के डाक्टर  बलाये ल परगे।घर म रोना-गाना मातगे। वो तो डाक्टर नइ आये रइतिस त ए दुनिया ले मोर टिकिट कटगे रइतिस।

     पड़ोसी जी संझाकुन गोधूलि बेला म प्रगट होइस अउ चाबी ल झपले मोर हाथ म धरावत, एक्के साँस म कई पइत ,एक्के लय म कारज सिद्धि मंत्र असन रटत- देरी बर छिमा करबे आदरणीय  काहत पल्ला होगे। हम तो बोकवाय देखत रहिगेन।

      सतयुग ,त्रेता अउ द्वापर युग म होम करे के फल भले देरी ले सरग म मिलत रहिस होही फेर ये  कलयुग के घोर पुण्य-प्रताप हे के अब झोफ्फा-झोफ्फा फर तुरंत मिल जथे।कलजुग के घर अंधेर हे फेर देर बिल्कुल नइये।

   थोकुन पाछू बाई जी ह साग-भाजी ला लेबे तब कहूँ जाबे कहिके आडर फरमाइस त हम डरत-डरत फटफटी कोती ओधेन तहाँ ले बड़ बाय होगे। टंकी म एको बूँद पेट्रोल नइ रहिसे।

    दूसर दिन आफिस ,ड्यूटी म गेंव त पता चलिस --मोर दूनो हाथ जरगे राहय। चेहरा म केंरवछ कस दाग अउ छाती म फोरा परगे राहय।पता चलिस के  कलेक्टर महोदय ह औचक निरीक्षण म आये रहिसे। वोहा मोला बिना आवेदन के अनुपस्थित पाके निलंबित कर दे रहिस।

     मोर तो होम करत हाथ के संगे संग सरी अंग जरगे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

बदरहा घाम- दिलीप कुमार वर्मा

 बदरहा घाम- दिलीप कुमार वर्मा


झुनिया के रद्दा ल जोहत झँगलु भूख प्यास के मारे तिलमिलवत राहय।बिहिनिया के निकले दोपहरी के बेरा म ये सुरुज घलो हर मुड़ी म चमकत राहय। बदरहा घाम के का कहना।आसमान म न धुर्रा न धुँआ।सुरुज के ताप हर तीर मारे कस सीधा देह म परथे।अउ ये उही घाम हरे जेन हर शरीर ल घोड़ा करैत कस चितकबरा कर देथे। देह हर चप-चप करत रहिथे।बदरहा घाम के ताप हर गर्मी के दिन ले ज्यादा जनाथे।

              पछीना ले तरबतर झँगलु बिचारा सुसताये बर पेंड़ के छाँव खोजय, फेर खार म एक्को ठन पेंड़ नइ राहय।सब अपन-अपन सुवारथ पूरा करे बर जम्मो पेंड़ ल काट डरे राहय। जिहाँ एक ठन पेंड़ नइ राहय उहाँ चिरई चिरगुन कहाँ रइही।

                बीते बछर झँगलु के खेत म अबड़ पेंड़ रहिस, फेर का दुख ल कहिबे।ये दे एसो के गर्मी म भाई-भाई बंटवारा होइस, त ददा के कुछ कर्जा ल चुकाये खातिर, जम्मो पेंड़ के सौदा कर दिस। तेखरे सेती जम्मो पेंड़ हर कटा गे राहय। 

                नानकन ठुड्गा हर एसो के पहिली पानी पाय के दू चार ठन ठाँगा फेंके राहय, ओखरे खाल्हे खेत म झँगलु हर थक हार के बइठ गे। 

                  झँगलु बिचारा,अंग्गाकर रोटी के चार टुकड़ा कर एक टुकड़ा ल खा के, बिहिनिया ले नाँगर  बइला धरे जून के महीना मा खेत जोते बर आये राहय। बाँगा भर पानी तको हर सिरा गे राहय। दू पाही के जोंतत चिलचिलावत बदरहा घाम के देखे झँगलु के तरवा सूखा गे। 

                   मनेमन मा अपन बाई बर झुझलावत झँगलु धरे लौठी ल भुइयाँ म फटरस-फटरस मारत राहय। उही मेंड़ म केकरा हर बिला बनावत, भीतर ले माटी ल डाढ़ा म दबाए बाहिर निकल राहय।जइसे ही फटरस ले सुनिस त झकनका के येती ओती ल देखिस। एक झन मनखे बड़का लाठी धरे गुस्सा के मारे धरती ल पीटत राहय। केकरा बिचारा कुछ सोंच पातिस ओखर पहिली एक लाठी अउ फटरस ले परिस। मारे डर के केकरा बपुरा बिला म लकरधकर खुसर गे। फिर बाहिर नइ निकलिस। 

                येती झँगलु भूख पियास म ब्याकुल रहय अउ ओती एक ठन बइला हर चारा के लालच म दूसर खेत कोती जात राहय। झँगलु जइसे देखिस मारे गुस्सा के धरे लौठी तंगतिंग-तंगतिंग दउड़त बइला तिर पहुँच गे।धरिस काँसड़ा ल अउ अन्ते के गुस्सा ल अन्ते उतार दिस, बपुरा बइला ल टेम्पा म चार पाँच टेम्पा मार दिस। बइला घलो हर बक खाय रहिगे। अपन सँगवारी के मुँह ल देखत रहिगे। कुछ देर तक दूनो बइला चारा चरइ ल छोंड़ पगुराय घलो ल छोड़ दिस। दूनो ल कुछु समझ नइ आइस। 

    झँगलु फेर उही मेंड़ कोती आवत राहय त देखिस ओखर बाई झुनिया हर मुड़ मा झउहाँ बोहे आवत राहय। झँगलु के जी अउ तिलमिला गे। जोर से आवाज लगाके कहिस! "अरे जल्दी आना ओ, भूख प्यास म मोर जीव छूटत हे अउ तँय हर धीरे-धीरे आवत हस।थोरिक जल्दी चल नहीं ते मोर जीव छूट जही"।काहत-काहत लाठी ल उबाये राहय। झुनिया देखिस त ओखर हालत खराब होगे। "ये दई कतेक देरी होगे, लाठी ल उबाये बहुत चिल्लावत हे। आज लगथे मोर जीव नइ बाँचय"। गुनत-गुनत अउ डर्रावत-डर्रावत झुनिया हर झँगलु तीर म आइस। 

     " ले जल्दी निकाल भूँख म मोर जीव छूटत हे", झँगलु कड़क के कहिस। 

          झुनिया लकर-धकर गमछा ल हटा के गरम-गरम भात अउ कढ़ी साग परोस दिस। झँगलु न हाथ धोइस न मुँह हबर-हबर खाये ल धर लिस त खात-खात अटक गे। झुनिया हर जल्दी से लोटा के पानी ल दिस अउ झँगलु के मुड़ी ल ठोकिस। मुँह ले कुछु नइ कहिस अउ मने मन म सोंचे लागिस।"आज अतेक कइसे खँखाय हे" त सुरता आइस की काली बटकी भर बासी खा के आये रहिस अउ आज नान कुन रोटी बस खाये हे, तेकरे सेती जल्दी भूँखा गे हवय। तहाँ ले झुनिया हर गमछा ल हला-हला के झँगलु ल हवा दे ल धर लिस। 

                  झँगलु अउ झुनिया के मया ल देखत सुरुज घलो हर खड़ा होगे।ये बात दुरिहा म खड़े बादर ल अच्छा नइ लागिस। "कखरो मया ल अइसन निटोरत देख के नजर लगाना अच्छा बात नोहय"। करिया बादर हर लकर-धकर तीर म आइस अउ झँगलु अउ झुनिया के ऊपर म छागे। सुरुज तको हर झुंझला के रहिगे। 

     बादर ल छावत देख हवा तको हर धीरे-धीरे चले लागिस। अइसन पुरवाही पा के झँगलु जमीन म सूत गे। 

             कुछ देर म उठ के झँगलु बइला करा गिस अउ ओखर पीठ ल सहलाइस। अइसे लागिस जइसे गलती के छमा माँगत हे। 

                 नाँगर फाँद के झँगलु तीसरा हरियर धरे ददरिया तान छेड़े का काहत हे।


      कारी बदरिया, छाइगे आसी..मा……..न 

पुरवाही ह चलथे सँगवारी  

तँय सुनादे कोनो तान ओ चले आबे। 

    झुनिया हर झउहाँ ल धरे काँटा खूंटी बीनत झँगलु के सुर म सुर मिलावत काहत हे। 


काली के बेरा, मँय आजो आये... हँव 

तोर गुस्सा म भुलागेंव सँगवारी 

बिरोपान मँय लाये हँव गा आना खाले। 


अम्मटहा कढ़ी, मोर मन ला भाई….गे 

तोर मया म खवाये सँगवारी 

गुस्सा हर उड़ागे ओ चले आबे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

हिम्मत के पुन्नी-चोवाराम वर्मा बादल ------------------

 हिम्मत के पुन्नी-चोवाराम वर्मा बादल

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चंदा------सच मा जइसन नाम तइसन रूप के खजाना।कोनो राजकुमारी कस चमकत गोल चेहरा के चुकचुक ले गोरी-नारी।धनुष कस भौंह, हिरनी कस आँखी, सुवा चोंच कस नाक अउ सुराही कस घेंच। कनिहा ले ओरमे कारी रेशम डोरी कस चमकत घन बेनी। बिन सिंगार करे तको डिकटो कोनो अप्सरा कस। खलखला के हाँसय त अइसे लागय के फूल झरत हे। आदत-सुभाव ले एकदम निश्छल अउ निर्मल।पढ़ई लिखई म बड़ हुशियार ,गुनवंतीन बेटी।काम-बुता म बिजुरी कस चंचल। 

   ये चंदा म दाग अउ नइ दाग अतकेच हे के वो हा दू काठा के बनिहार सुखराम घर जनम लेये हे।  भगवानों के लीला बड़ विचित्र होथे, तभे तो वो चिखला म कमल फूलो देथे।पथरा म रतन भर देथे, कतको काँदी कचरा ल संजीवन बूटी बना देथे।

      सुखराम ह कइसनो करके अपन दुलौरिन बेटी ला 12वीं तक पढ़ईच तहाँ ले आगू पढ़ाये बर हिम्मत हारगे।चंदा ह सज्ञान तो होगेच रहिस।  मां-बाप ल वोकर हाड़ म हरदी रचाये के चिंता खाये ल धरलिस।

       सगा बिरादरी म बात फइलत देरी नइ लगिस के सुखराम ह अपन बेटी के बिहाव करइया हे। रोज सगा उतरे ल धरलिन। गरीब ले लेके अमीर, नौकरी वाले ले लेके धंधा पानी वाले तको मन चंदा ल एके नजर म पास कर देवयँ। सुखराम ल तको एक-दू  लइका पसंद आइस फेर पता करे म ऊँखर बिगड़े आदत अउ दारु पानी के चश्का ल जान के बात आगू नइ बाढ़िस।

        पिछू पंद्रा दिन म परोसी गाँव के पचास एकड़ के जोंतनदार गौंटिया ह अपन सरकारी ऑफिस म क्लर्क के नौकरी करत बेटा रत्नेश बर चंदा के हाथ माँगे बर तीन  पइत आगे हे। सुखराम ह गौंटिया ल हाथ जोड़के  कइ डरे हे के  दाऊजी मैं तो तोर कटकरा-बदरा  के पूर्ति नइ अँव। तोर पाँव ल पखारे के  तको मोर हैसियत नइये। जमीन अउ आसमान के फरक हे---।  तभो ले आज  गौंटिया ह,जात बिरादरी के मुखिया संग चँवथा पइत आये हे।

    गौंटिया ह सुखराम ल समझावत कहिस-- देख सगा   तैं ह अपन नोनी ल हमर घर हारे बर संकोच झन कर। हम ले बर तइयार हन त तैंहा काबर  आनाकानी करत हस। तोर बेटी ह हमर घर रानी बरोबर सुख पाही ।मोर बेटा तको  नौकरी मा हे । उहू चंदा ला पसंद कर डरे हे। वोकर कोती  ले हाँ हे। हम तो एक ठन लुगरा म बहू बिहाये बर तइयार हन।हम खुद अपन बराती के भोजन-पानी के इंतजाम कर देबो। हमर कोती कुछु कमी होही त बता भला?

       नहीं दाऊ जी अइसे कोनो बात नइये--सुखराम ह कहिस। गौंटिया के संग आये  बिरादरी के मुखिया ह सुखराम ल समझाय के आड़ म धमकावत कहिस-- तैं कइसे मुरुखपना करथस जी सुखराम। अतेक बड़ नामी गौंटिया ह तोला घेरी-बेरी  गोहरावत हे।अरे तोर बेटी के भाग सँवर जही। जादा सोच झन अउ हाँ काह।

     ठीक हे मुखिया जी मोला आज भर के अउ समे दे दव। नोनी अउ वोकर महतारी ल पूछके काली बर हाँ -नहीं ल बता देहूँ-- सुखराम ह कहिस।

      ले का होही ।काली बर जरूर बता देबे कहिके, गौंटिया ह  अपन घर लहुटगे।

   रतिहा कुन भोजन होये के बाद  सुखराम ह अपन सियान मितनहा ददा ल बलाके ले आइस अउ सबो झन बइठके विचार करे ल धरलिन।  सुखराम के मितनहा ददा ह कहिस-- देख बाबू रिश्ता तो बने हे। हमर चंदा बेटी ल उहाँ कुछु चीज के कमी नइ राहय फेर वोमन गौंटिया अउ हमन निच्चट गरीब ।समधी सजन बरोबरी म बनाना चाही तभे मान गउन होथे। कहूँ ऊँच-नीच बात होगे त?

     वोमन रिश्ता जोड़े बर तइयार हें। लड़का ह तको  हमर बेटी संग फभित म हे ।सरकारी नौकरी तको हे तेकर सेती मोर विचार ले रिश्ता जोड़े में बने होतिस तइसे लागते हो --चंदा के महतारी ह कहिस।

      हाँ-- तोरो कहना ठीक हे बहू ।चंदा के का मन हे तेनो ल जानना जरूरी हे। ले बेटी चंदा तोर का मन हे तेला बता डर ।

      चंदा ह मूँड़ नँवा के लजावत कहिस-- तुमन जेन कइहू वो मोला मंजूर हे बबा।

   ले बने कहे बेटी। तोर भाग म गौंटिया घर सुख पाये के लिखाये होही, तेला भला कोन टार सकथे--सियान ह कहिस। सुखराम तको हामी भर दिस।

         बिहान दिन गौंटिया ल खबर होगे के रिश्ता मंजूर हे। वोमन दू दिन पाछू चार झन आके , नेवता-हिकारी खाके अउ चंदा ल पइसा धराके रिश्ता पक्का कर देइन। अक्ति के दिन भाँवर परे के लगिन धरागे।

      गौंटिया घर बेटी के रिश्ता जुड़े हे सोच के सुखराम ह अपन पुरखौती आधा एकड़ खेत ल बेंच के, डरे-डर म अपन हैसियत ले कई गुना जादा दाइज-डोर के बर्तन- भाड़ा अउ समान ले डरिस। भाँवर के दिन सौ ले आगर आये बरतिया मन के खाना-पीना अउर स्वागत म कोनो कमी नइ करिस। बने उच्छल-मंगल ले भाँवर परिस  अउ वोकर करेजा के चानी दुलौरिन बेटी चंदा के बिदा होइस।

      सुख के दिन चिरई कस कब फुर्र ले उड़ा जथे पतेच नइ चलय अउ दुख के एक दिन तको  जुग बरोबर हो जथे। सास-ससुर, देवर ,नँनद के मोहलो-मोहलो अउ रूप के भँवरा रत्नेश के मया म बहुरिया चंदा ह दिन-दुनिया ल भुलाके ,सरग कस सुख के सपना देखत ससुराल म खोगे। अइसे लगिस के अब तो वोकर जिनगी म बस अंँजोरी पाख हे। फेर अँधियारी पाख तको होथे, वो कर पता तो वोला तब चलिस जब वोकर बाबू सुखराम ह तीजा पोरा म लिह के लेगे बर आइस त वोकर ससुर गौंटिया   ह ये कहिके नइ भेजिस के-- दू-चार सौ के लुगरा बर का मइके जाही। हम इहें चार हजार के लुगरा ले देबो। सुखराम ह  केलौली करत कहिस- एक दिन बर भेज देते समधी महराज। वोकर महतारी के मन माढ़ जतिस।

     नइ जाय कहि देंव न---समझ नइ आवत ये का ? गौंटिया के कर्कश अवाज, सुखराम के कान म परिस त वोकर आतमा काँप गे। अपन सुसकत खड़े बेटी चंदा ल आँसू भरे आँखी ले निहार के सुखराम भारी मन ले लहुट गे।

       रतिहा चंदा ह रत्नेश ल  प्रेम से कहिस --मोला एक दिन बर---, बस एक दिन बर मइके अमरा देते। दाई ल देख के आ जतेंव।

      मैं  पिताजी के बात ल नइ काट सकवँ।नइ जाना हे मतलब नइ जाना हे।तोला पता नइये का? हम खानदानी  गौंटिया आन , जेन एक पइत कइ देथन वो पथरा म खींचे लकीर बरोबर हो जथे। हाँ-- तोला कइसे पता रइही ।तैं तो बनिहार घर के बेटी अस न । निर्दयी रत्नेश ह  उल्टा ताना मारत कहिस।रूप के भँवरा ल भला का पता के फूल के हिरदे ल तको चोट पहुँचथे।          वोकर गोठ ल सुनके पढ़े-लिखे चंदा समझगे के वोकर जिनगी ह सोन के पिंजरा म कैद चिरई कस होगे हे। वो समझगे के साँप के पिलवा तको साँप होथे। वो जान डरिस के ये मन सिरिफ रूप ल देखके बिहाव करे हें। बेचारी  ह रो -गाके मन मसोस के रइगे। 

          देवारी तिहार म तको सुखराम ह लेगे बर आइस फेर इहू दरी गौंटिया ह चंदा ल नइ भेजिस, उल्टा दू-चार ठन अइली-सुधी सुनादिस। बपुरा सुखराम ह का करय अउ का कहय।  साले भर म ग्रहण धरे कस अइलाय, दुबराके काँटा होये अपन बेटी चंदा ल धीर धराके, आंँसू ढारत, बिना खाए पिए उल्टा पाँव लुटगे।

      तब तो चंदा के अंतस के खउलत लावा फूटगे।वो अपन बेग ल धरके कुरिया ले निकलिस अउ कहिस मैं अपन मइके जावत हँव ।कोनो पहुँचाहू त पहुँचा दव नहीं ते रेंगत चल देहूँ।

     वोतका ल सुनके वोकर सास गौंटनिन ह नागिन कस फोसरत कहिस-- जा जा तोला जाये के सउँख हे त फेर  दुबारा लहुट के इहाँ सुरत झन देखाबे---भिखमंगिन घर के----

गौंटिया ह भन्नावत कहिस--जा जा तोला नइ रोंकन। पाँव हे त हमर बर पनही के दुकाल नइये।

रत्नेश ह तो मारे बर हाथ उठावत कहिस-- तोर अतका हिम्मत --जबान लड़ाथस---

 चंदा ह शेरनी कस दहाड़त कहिस- हाथ उठाबे त अच्छा नइ होगी। महूँ हा पढ़े लिखे हँव। सीधा थाना जाहूँ अउ दहेज प्रताड़ना के रिपोर्ट लिखवा के सब झन ला अंदर करवा देहूँ। अइसे भी घरेलू हिंसा के रिपोट तो करबे करहूँ।

      वोतका ल सुनके सब झन सन्न होगें अउ चंदा ह ससुराल के देहरी लाँघ के संझौती बेरा मइके पहुँचगे।           

    छै महिना के भीतर चंदा ल मइके गांँव म आंँगनबाड़ी सहायिका के नौकरी मिलगे। रूप के भंँवरा रत्नेश ह दू-चार पइत लुहुर-टुपुर करिस फेर चंदा ह दुत्कार के खेद दिस।

चार पइत थाना रेंगिस त गौंटिया के हेकड़ी निकलगे।

   धीरे-धीरे चंदा के जिनगी म अंँजोरी पाख आये ल धरलिस।अँजोरी पाख हे त पुन्नी तो आबे करही।फेर ये हा हिम्मत के पुन्नी होही जेमा अत्याचार ले लड़े के छक-छक ले अँजोर होही जेकर पाछू अँधियारी पाख  होबे नइ करही।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Thursday 22 July 2021

मोर गाँव के मँड़ई -ओमप्रकाश साहू अंकुर


 

मोर गाँव के मँड़ई -ओमप्रकाश साहू अंकुर


 मनखे ह सामाजिक परानी(प्राणी) हरे .समाज म रहिके मनखे ह अपन सुख -दु:ख रुपी जिनगी के गाड़ी ल चलाथे. हमर जिनगी म मँड़ई -मेला के गजब महत्व हे. मड़ई के माध्यम ले हमन सगा -सोदर अउ सँगी -साथी मन ले मिलथन. अपन जिनगी ल चलाय बर हमन अपन- अपन काम- बुता म लगे रहिथन. घर -दुवार तक सीमित रहिथन. काम -बुता अउ घर -गृहस्थी के सँगे सँग समाज म मेल जोल घलो जरुरी हे.  हमन ह सिरीफ घर -गृहस्थी तक ही सीमित रहिके अपन जिनगी ल बने ढंग ले नइ चला सकन. सुग्घर जिनगी जीये बर चार झन सँग  बइठे- उठे ल पड़थे. हमन समाज म रहिके अपन जरूरी चीज मन ल पूरा करथन. मँड़ई के माध्यम ले हमर कतको जरुरी चीज ह पूरा होथे. 


  सुरगी - एक नजर 


 हमर गाँव सुरगी ह राजनांदगॉव ले अर्जुन्दा मार्ग म राजनांदगॉव ले 13 किलोमीटर दूर हे. खरखरा नदी के किनारे म बसे हे हमर गाँव सुरगी ह. येहा राजनांदगांव जिला के बड़का गाँव मन म शामिल हवय . येहा विधायक आदर्श गाँव हरे. हमर छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुखिया डॉ. रमण सिंह जी ह ये गाँव ल विधायक आदर्श गाँव के रुप म गोद ले रीहिस. सुरगी म राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र ,कृषि अनुसंधान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, दू ठक पेट्रोल पम्म अउ पुलिस चौकी हे. इहां अंग्रेज जमाना म प्राथमिक स्कूल खुल गे रीहिस हे. सन 1961 म हाईस्कूल शुरु होगे रीहिस हे. हमर गाँव ह" छै आगर छै कोरी" तरिया बर प्रसिद्ध रेहे हे . दसमत कैना प्रसंग के संबंध ये गाँव ले जुड़े हवय. आजो इहां दर्जन भर तरिया हवय. सुरगी साहित्य अउ कला बर घलो प्रसिद्ध हे. साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के मंच म प्रदेश के दर्जन भर बड़का साहित्यकार मन इहां पहुंच के अपन विचार ल साझा कर चुके हे. "सुरंग" रहे ले  हमर गाँव के नाँव "सुरगी "पड़े हे. ओड़ार बांध (टप्पा) ले सुरंग के स्रोत कहे जथे. अइसन जन श्रुति हे. एक बार साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के वार्षिक सम्मान समारोह म पहुंचे माई पहुना श्रद्धेय संत कवि पवन दीवान जी ह "सुरगी " के व्याख्या अइसन करे रीहिस हे - "सुर" माने "देवता "अउ "गी "माने "गाँव". मतलब" देवताओं का गाँव सुरगी " .


अँचल के पहिली मँड़ई 


कोनो भी गाँव -शहर के मँड़ई -मेला एक तय दिन म होथे. हमर गाँव सुरगी (राजनांदगॉव) के मँड़ई देवारी तिहार मनाय के बाद जे पहिली शनिवार पड़थे वोमा मनाय जथे. ये दृष्टि ले हमर गाँव के मँड़ई ह अँचल के पहिली मँड़ई होथे. मोंहदी(बालोद जिला) मड़ई ह  देवारी तिहार मनाय के बाद पहिली इतवार के होथे. 

देवारी तिहार मनाय के बाद हमन ल मँड़ई के अगोरा रहिथे. अपन सगा -सोदर मन ल नेवता देथन. सगा मन ल घलो हमर गाँव के मड़ई के गजब अगोरा रहिथे. काबर कि देवारी तिहार मनाय के बाद शनिवार के मनाय जाथे. ये समय सब के मन अपन सगा संबंधी से मिले -जुले बर होथे. सुग्घर ढंग ले देवारी -मिलन हो जथे. मँड़ई के बहाना एक दूसरा ले मिल के सुख -दु:ख के बात ल आपस म बाँटथे. 

हमर गाँव के शनिच्चर मड़ई ह पुराना बस स्टेण्ड के उत्तर दिशा म बाजार चौक म होथे. इही जगह हमर गाँव के मुख्य सांस्कृतिक मंच घलो हे जेमा नाचा, सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन होथे. फेर कोरोना के चलते ये बार के मड़ई ह मंगल बाजार चौक अउ स्टेडियम म रखे गे रीहिस  .हमर गाँव के राउत मन ह मोंहदी मड़ई माने के बाद गरुवा मन ल फिर से चराय बर जाथे. 


मँड़ई - 


मँड़ई -मेला म मँडई के गजब महत्व हे. येखर बिना मँड़ई ह पूरा नइ होवय. मँड़ई ह बड़का बाँस ले बनाय जथे. येला तोरन -पताका, मयूर पंख, घुंघरु, कौड़ी जइसन जीनिस ले सजाय जथे. राउत अउ गोंड समाज के मन ह ईष्ट देवता के पूजा करके मँड़ई ल लाथे. अपन समाज के मुखिया घर सकलाथे. फेर सबो झन सुग्घर नाचत अउ दोहा पारत गाँव के सरपंच, पटेल अउ दू -चार झन मुखिया के अँगना म जाके परघाथे.  मुखिया मन ह राउत समाज ल स्वेच्छा से रुपया -पैसा दान देथे. फेर मँड़ई म आके नँगत नाचथे -गाथे. दुकान दार मन ल जोहारथे अउ खुसी -खुसी वहू मन राउत समाज ल पैसा देथे. राउत मन सुग्घर दोहा पारके दान दाता मन ल आशीष देथे.


राउत मन के पहनावा -


राउत मन के पहनावा ह गजब सुग्घर लगथे. धोती -कुर्ता पहने ,मूंड़ म पागा बाँधे ,कलगी लगाय, कमर ल पटका मा बांधे, अपन शरीर म रस्सी के माध्यम ले मयूर पंख, कौड़ी, घुंघरू ल पिरो के पहने रहिथे. पांव म घलो घुंघरु पहनथे. लौठी ल घलो बढ़िया किसिम -किसिम ढंग ले सजाय रहिथे. राउत मन ह लाठी के माध्यम ले अपन शौर्य के प्रदर्शन घलो करथे. बिधुन होके बाजा बजावत, दोहा पारत, नाचत जब लउठी ल घूमाथे अउ मँडई ल लहराथे त देखइया मन के मन ह घलो झूमे ल लगथे. 


  नाना प्रकार के दुकान -


  हमर गाँव के मँड़ई म मिठाई दुकान वाले अउ कुछ दूसरा व्यापारी मन ह शुक्रवार के संझा -रात तक पहुंच के अपन बर ठीहा पोगरा लेथे. मिठाई  दुकान के संगे सँग कपड़ा -लत्ता,  बर्तन दुकान,सोना चाँदी  के दुकान मनियारी दुकान,जूता- चप्पल दुकान ,लईका मन के खिलौना दुकान,  नाश्ता-चाय दुकान, फल दुकान, झूला, रहचुली, फुग्गा वाले, चॉट -गुपचुप दुकान, गन्ना वाला, सूपा, चरिहा, टुकनी, झाड़ू, के सँगे सँग साग -सब्जी के पसरा लगे रहिथे. बाजार ठेकेदार ह दुकानदार मन ले पैसा वसूलथे. हमर गाँव के सँगे आस- पास के गाँव के मनखे मन अउ दूर -दराज ले रिश्तेदार मन ह आके मँड़ई के शोभा बढ़ाथे. जरूरत मुताबिक मनखे मन किसिम -किसिम के चीज खरीदथे. नान्हें लइका मन झूला अउ जवान मन रहचुली के मजा लेथे. माई लोगन मन के मनियारी अउ सोना चांदी के दुकान डहर गजब भीड़ रहिथे. वोमन ह माला,खिनवा,बिछिया ,सांटी, करधन के सँगे सँगे टिकली -फुंदरी खरीदथे.

मँड़ई म दुकान वाले मन किसिम -किसिम ढंग ले चिल्लाके अपन सामान ल बेचथे. कुछ दुकान वाले मन पोंगा रेडियो के माध्यम ले घलो रिझाथे. एक्का -दुक्का  दुकान वाले मन विशेष रुप से उद्घोषक घलो रखथे. रँग -रँग के बात बताके, लोक गीत अउ फिल्मी गीत सुना के अपन दुकान के सामान ल बेचे के कोशिश करथे. मँडई म सब मन ल उछाह रहिथे. पर जवान अउ लईका मन के बाते अलग रहिथे. ऊंकर मन के खुशी ह देखते बनथे. 

 मँडई म आस -पास के सँगे सँग दूर रहवईया सँगी -साथी अउ जान -पहिचान वाले मन सँग भेंट होथे त गजब खुशी होथे.रात होथे त  मँड़ई म जवान लईका मन के भीड़ ह बढ़ जथे. ये समय सियान मन ह घूम -घाम के घर आ गे रहिथे. 


  मनोरंजक कार्यक्रम -


  रात म मनखे मन के मनोरंजन करे बर मुख्य सांस्कृतिक मंच म कोनो साल नाचा त कोनो साल लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन करे जथे. नाचा अउ लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम ले जनता जनार्दन के जिहां मनोरंजन होथे. त दूसर कोति अपन समृद्ध लोक संस्कृति ले परीचित घलो होथे. ये प्रकार ले 

मँड़ई के बहुतेच महत्व हे. येहा खुशी के प्रतीक हरे. 


              ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

     सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़) 

  मो.  7974666840

मोर गाँव के मड़ई-खैरझिटिया


 मोर गाँव के मड़ई-खैरझिटिया


               किनकिन किनकिन जनावत जाड़ के समय दिसम्बर के सर्दी म ज्यादातर आखरी सोमवार के होथे, मोर गाँव खैरझिटी के मड़ई। हाड़ ल कपावत जाड़ म घलो मनखे सइमो सइमो करथे। राजनांदगांव- घुमका-जालबांधा रोड म लगे गौठान म, मड़ई के दिन गाय गरुवा के नही, बल्कि मनखे मनके भीड़ रथे। मड़ई के दू दिन पहली ले रामायण के आयोजन घलो होथे, ते पाय के सगा सादर घरो घर हबरे रइथे। लगभग दू हजार के जनसंख्या अउ तीर तखार 2-3 किलोमीटर के दुरिहा म चारो दिशा म बसे गाँव के मनखे मन, जब संझा बेरा मड़ई म सकलाथे, त पाँव रखे के जघा घलो नइ रहय। अउ जब मड़ई के बीचों बीच यादव भाई मन बैरंग धरके दोहा पारत,  दफड़ा दमउ संग नाचथे कुदथे त अउ का कहना। बिहना ले रंग रंग के समान, साग भाजी अउ मेवा मिठाई के बेचइया मन अपन अपन पसरा म ग्राहक मनके अगोरा करत दिखथें। एक जुवरिहा भीड़ बढ़त जथे, अउ संझौती 4-5 बजे तो झन पूछ। दुकानदार मनके बोली, रइचुली के चीं चा, लइका सियान मनके शोर अउ यादव भाई मनके दोहा दफड़ा दमउ के आवाज म पूरा गाँव का तीर तखार घलो गूँज जथे। मड़ई के सइमो सइमो भीड़ अउ शोर सबके मन ल मोह लेथे।

                        मड़ई म सबले जादा भीड़ भाड़ दिखथे, मिठई वाले मन कर। वइसे तो हमर गाँव म तीन चार झन मिठई वाले हे, तभो दुरिहा दुरिहा के मिठई बेचइया मन आथे, अउ रतिहा सबके मिठई घलो उरक जाथे। साग भाजी के पसरा म सबले जादा शोर रथे, उंखरो सबो भाजी पाला चुकता सिरा जथे। खेलौना, टिकली फुँदरी, झूला सबे चीज के एक लाइन म पसरा रहिथे। सबे बेचइया मन  भारी खुश रइथे,अउ अपन अपन अंदाज म हाँक पारथे। होटल के गरम भजिया-बड़ा, मिठई वाले के गरम जलेबी, लइका सियान सबे ल अपन कोती खीच लेथे।मड़ई म लगभग सबे समान के बेचइया आथे, चाहे फोटू वाला होय, चाहे साग-भाजी या फेर मनियारी समान। नवा नवा कपड़ा लत्ता म सजे सँवरे मनखे मन, चारो कोती दसो बेर घूम घूम के मजा उड़ावत समान लेथे। रंग रंग के फुग्गा, गाड़ी घोड़ा म लइका मन त, टिकली फुँदरी म दाई दीदी मनके मन रमे रइथे।

                   मड़ई के दिन मोर का, सबे के खुशी के ठिकाना नइ रहय।  ननपन ले अपन गाँव के मड़ई ल देखत घूमत आये हँव, आजो घलो घुमथों। पहली पक्की सड़क के जघा मुरूम वाले सड़क रिहिस, तीर तखार के मनखे मन रेंगत अउ गाड़ी बैला म घलो हमर गांव के मड़ई म आवँय, सड़क अउ जेन मेर मड़ई होय उँहा के धुर्रा के लाली आगास म छा जावय, अइसे लगय कि डहर बाट म आगी लग गेहे, जेखर लपट ऊपर उठत हे, अइसनेच हाल मड़ई ठिहा के घलो रहय। फेर सीमेंट क्रांकीट के जमाना म ये दृश्य अब नइ दिखे। चना चरपट्टी के जघा अब कोरी कोरी गुपचुप चाँट के ठेला दिखथे, संगे संग अंडा चीला अउ एगरोल के ठेला घलो जघा जघा मड़ई म अब लगे रहिथे। अब तो बेचइया मन माइक घलो धरे रइथे, उही म चिल्ला चिल्लाके अपन समान बेचत दिखथे। नवा नवा  किसम के झूलना घलो आथे, फेर अइसे घलो नइहे कि पुराना झूलना नइ आय। रात होवत साँठ पहली मड़ई लगभग उसल जावत रिहिस, फेर अब लाइट के सेती 7-8 बजे तक घलो मड़ई म चहल पहल रहिथे। होटल के भजिया बड़ा पहली घलो पुर नइ पावत रहिस से अउ आजो घलो नइ पुरे। पान ठेला के पान अउ गरम जलेबी बर पहली कस आजो लाइन लगाए बर पड़थे। मिठई वाले मन पहली गाड़ा म आवंय, अब टेक्कर,मेटाडोर म आथें। मड़ई के दिन बिहना ले गाँव म पहली खेल मदारी वाले वाले घलो आवत रिहिस फेर अब लगभग नइ आवय। पहली कस दूसर गाँव के मनखे मन घलो नइ दिखे। 

                कभू कभू कोनो बछर दरुहा मंदहा अउ मजनू मनके उत्लंग घलो देखे बर मिलय, उनला बनेच मार घलो पड़े। गाँव के कोटवार, पंच पटइल के संग अब पुलिस वाला घलो दिखथे, ते पाय के झगड़ा लड़ई पहली कस जादा नइ होय। मैं मड़ई म नानकुन रेहेंव त दाई  मन संग घूमँव, अउ बड़े म संगी मन  संग, अब लइका लोग ल घुमावत घुमथों। संगी संगवारी मन संग पान खाना, होटल म भजिया बड़ा खाना, एकात घाँव रयचूली झूलना, फोटू वाले ले फोटू लेना, मेहंदी लगवाना अउ आखिर म मिठई लेवत घर चल देना, मड़ई म लगभग मोर सँउक रहय। स्कूल के गुरुजी मन संग बिहना घूमँव अउ संझा संगी संगवारी मन संग। पहली घर म जतेक भी सगा आय रहय, मड़ई के दिन सब 2-4 रुपिया देवय,ताहन का कहना दाई ददा के पैसा मिलाके 10, 20 रुपिया हो जावत रिहिस, जेमा मन भर खावन अउ खेलोना घलो लेवन, आज 500-600 घलो नइ पूरे। समय बदलगे तभो मोर गाँव के मड़ई लगभग नइ बदले हे, आजो गाँव भर जुरियाथे, कतको ब्रांड, मॉल-होटल आ जाय छा जाय, तभो गाँव भर अउ तीर तखार के मनखें मड़ई के बरोबर आंनद लेथे। मड़ई के दिन रतिहा बेरा नाचा पहली कस आजो होथे। *जिहाँ मन माड़ जाय, उही मड़ई आय।* जब मड़ई भीतर रबे, त मजाल कखरो मन मड़ई ले बाहिर भटकय। आप सब ल मोर  गाँव के मड़ई के नेवता हे।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


Saturday 17 July 2021

थोरकुन सुरता कर लिन जी

 थोरकुन सुरता कर लिन  जी 

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    24 जनवरी 1950 के वो दिन बड़ सुभ रहिस होही काबर के उही दिन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सदन के अध्यक्ष के आसन मं बइठे  माननीय घनश्याम सिंह गुप्ता जी ल संविधान के हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करे बर कहे रहिन । आज्ञा के पालन होइस अउ हम छत्तीसगढ़िया मन बर गरब गुमान करे लाइक प्रसंग आय के आदरणीय घनश्याम सिंह गुप्ता हिंदी अनुवाद के प्रति सदन मं उंकर हाथ मं राखिन । भारत के पहिली राष्ट्रपति डॉ . राजेन्द्र प्रसाद के ईच्छा के मुताबिक 2साल 6 महीना के अवधि मं गुप्ता जी के अगुआई मं संविधान के हिंदी अनुवाद के ड्राफ्ट प्रस्तुत होए रहिस जेमा उन अपन पूरा पूरी ताकत लगा देहे रहिन । अनुवाद समिति के सदस्य मन संग तालमेल बइठार के कठिन , दुरुह संवैधानिक शब्द मन के हिंदी मं अनुवाद हर लइका खेलवारी तो रहिस नहीं , एक एक ठन शब्द के सटीक अनुवाद बर बुधियार मन ल कई , कई बेर उलट पलट के गुने बर परत रहिस अतका कठिन मेहनत के बाद भारत के संविधान के ये स्वरूप हर सामने आइस जेला भारत के बहुभाषी , बहुसंख्यक जनता पढ़े , समझे , जाने , गुने मं समर्थ होइस । हिंदी जनमानस मं आज भी संविधान के इही हिंदी पाठ हर बिराजमान हे अउ सदा दिन रहिही घलाय । " वी द पीपुल ऑफ़ इंडिया " के जघा हमर जीभ जल्दी अउ जादा सहजता से कहिथे " हम भारत के मनसे " । संविधान जैसे तकनीकी ग्रन्थ ल अतेक सहज , सरल , बनाने वाला बुधियार मनसे मन जउन कठिन काम करिन तेमन के मध्य मणि घनश्याम सिंह गुप्ता के नांव ल हमेशा भुला काबर जाथें लोगन ? जबकि उन्हीं तो समिति के अध्यक्ष , विद्वान , विधिवेत्ता रहिन हें । उन तो कभू पद , प्रतिष्ठा , नांव , जस के फ़िकर नइ करिन , न ही कभू अपन नांव के प्रचार प्रसार करिन । ओ समय के सरकार उंकर प्रतिभा ल पहिचान के ही आगे चल के इंडिया कोड के अनुवाद के जिम्मेदारी देहे रहिस ,  अंग्रेजीमय सरकारी काम काज के हिन्दीकरण के अउ कई ठन महत्वपूर्ण काम पूरा करे के जिम्मेदारी भी उनला देहे गये रहिस । फेर दुख के बात एहर आय के उन गांव के जोगी जोगड़ा बने रहि गिन ...दुरिहा के बात तो जाए देवव उंकरे घर , अंगना दुर्ग नगर मं लोगन ए नइ जानत रहिन के घनश्याम दाउ देश के कतका महत्वपूर्ण काम करत हें । न तो उन कोनों ल बताइन न कोनो जाने बूझे के कोसिस करिन । बाद के पीढ़ी हर आर्य समाज के परंपरानुसार स्वर्गवासी मनसे के अवदान मन ऊपर चर्चा ल औचित्यहीन समझिन । एतरह उनला न गांव गिराम , न उंकर जन्मभूमि छत्तीसगढ़ हर उंकर काम के लाइक आदर , जतन , सनमान समय रहत देहे सकिस । छत्तीसगढ़ी भाषा ल सबले पहिली सी . पी . एंड बरार विधान सभा मं प्रयोग के अनुमति देहे गए  रहिस उंकरे प्रयास से ...। देश के संविधान निर्माण मं सक्रिय योगदान देवइया घनश्याम सिंह गुप्ता के संवैधानिक अवदान मन के चर्चा कभू भी  छत्तीसगढ़ मं समंगल होए च नइ पाइस , कभू अनाचकरित होइस भी त बदरहा दिन के घाम कस तुरते बिला गिस । 

   हमर अवइया पीढ़ी ल ए बात मन ल , तइहा दिन के स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी , राजनीतिज्ञ मन के देश बर करे अवदान मन ल जानना जरूरी हे । बैरिस्टर ठाकुर छेदी लाल , गजानन प्रसाद शर्मा , भास्कर सिंह जी अउ बहुत झन छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत देश निर्माण मं महत्वपूर्ण योगदान देहे हंवय । 

    नोट ---

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       सरला शर्मा

विषय-- कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस*


*विषय-- कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस*


पटल म रखे गे आज के विषय बहुतेच खास हे जेन बहुत कुछ सोचे बर प्रेरित करत हे। मन-मस्तिष्क म नाना प्रकार के विचार असाड़ के बादर कस उमड़त -घुमड़त हे। कोन ल पकड़े जाय अउ कोन ल छोड़े जाय ।ये ठीक-ठीक समझ म नइ आये ल धरत ये।

          कला के बरगद हम काला काहन या मानन ---उही ला न जेन हा कला के कोनो भी क्षेत्र जइसे संगीत, चित्रकारी ,नृत्य , स्थापत्य, मूर्ति निर्माण,गायन अउ साहित्य लेखन  आदि म महारत हासिल कर चुके हे।जेखर सो अपन कला के श्रेष्ठ अउ पूर्ण ज्ञान हे।जेखर वो कला के कारण समाज म ख्याति हे अउ जेखर  अबड़े चाहने वाला या अनुयायी या शिष्य तको हें।

   अइसे माने जाथे के बड़े  बरगद के पेंड़वरा ह मोठ होथे  ,वोकर डारा -शाखा ह लम्बा -लम्बा,दूर-दूर ले बाँह पसारे फइले रहिथे जेमा अनेक जीव-जंतु मन आसरा पाथे।चिरई-चिरगुन मन सुग्घर खोंधरा बनाके हली-भली रहिथें। घमघम ले घन छवाये हरियर-हरियर पाना के छाँव म राहगीर मन बइठ के सुरताथें - थिराथें। कभू बरसत पानी म भिंजे ले बँचाय बर बरगद ह छाता कस बन जाथे। 

        कभू-कभू तो कुँवर-कुँवर, नार-बियार मन ये बरगद के सहारा लेके ,ओकर पीठ म चढ़के थिलिंग ल तको अमरे ल धर लेथेंं। कुल मिलाके ये रूप म देखे जाय त बरगद ह सच म देव स्वरूप होथे।

      इही ढंग ले जेन मनखे सच म कला के बरगद होथे वो ह नवा नवेरिया कला साधक ल आसरा देथे। अपन कृपा छँइहा म अभ्यास करे के, ज्ञान पाये के अवसर देथे।अपन शिष्य ल स्नेह करके गुरु रूप म सच्चा मार्गदर्शन देथे। कभू-कभू अपन शिष्य के कल्याण बर अपन बड़प्पन अउ बड़े ज्ञानी होये के अभिमान ल छोड़के ,थोकुन झुके असन होके हाथ पकड़ के उपर उठा के हिरदे ले लगा लेथे। लता सहीं कोनो विनम्र ज्ञान पिपासु ल सहारा देके यश के अगास ल झँका देथे।

          फेर अइसनो देखे-सुने म आथे के कुछ कला के बरगद मन अपन तरी कोनो नवा पौधा ल जामन नइ देवयँ। हो सकथे उन डर्रावत होहीं के कोनो पौधा हमरे तरी जामके ,हमर ले बड़े झन हो जावय। वोकर मान गउन हमर ले जादा झन होजय। 

     कुछ नवा कलाकार ,साहित्य के क्षेत्र म नवोदित कलमकार ह अइसन कोनो बरगद के तरी म जामके ईमानदारी ले जोर लगा के एको बीता बाढ़ जथे त वो बरगद ह फूटे आँखी नइ  भावय। कई ठन लांछन लगाके, सृजन म फोकटे-फोकट गलती निकाल के निंदा अउ चारी-चुगरी करे ल धर लेथे। कइसनो करके वो नवा कलाकार, कलमकार के बढ़वार ल रोक के मुरकेटे के उदिम करे ल धर लेथे।

    अइसन अनदेखना अउ बस मैं-मैं हाँकने वाला बरगद मन ,बरगद के नाम म कलंक आयँ।

    अब तो बोनसाई कद म ठेमना बरगद तको हें। नाम भर के बरगद ,जेमा बरगद के कोनो गुन नहीं। ये मन ल खुदे सहारा के जरूरत रहिथे।ये मन भला नवांकुर ल का सहारा देही फेर घमंड म अँइठ के बरगद कहाये ल नइ छोड़यँ। अधजल गगरी ह जइसे छलक-छलक के बाजे ल अपन शान समझथे ओइसने ये कला के बरगद मन अपन गुण के ढिंढोरा पीटत रहिंथे। इखँर जाँच करे म ठोल के भीतर बड़े-बड़े पोल मिलथे।

      फेर ये बात सोला आना सहीं हे के जेन कला के सच्चा बरगद होथे वो ह अपन तरी के नवा कलाकार रूपी पौधा ल एक पिता कस सहारा देके अपन क्षत्र-छाया म बाढ़े के ,फले-फूले के भरपूर अवसर देथे।

           नवा कलाकार मन अइसन बरगद कलाकार मन ले अबड़ेच आशा लगाये रहिथें। उन चाहथें के कलाकार बरगद सो जतका गुण हे वोला पूरा-पूरा दे दय। मँदरस के एको बूँद झारे म झन बाँचय। पूरा-पूरा तो मिलबे करय उहू म झटपट मिलय।  जादा कठिन अभ्यास करे ल झन परय। एको कनी घाम-पियास ल झन सहे ल परय। रातों रात स्टार बने के सपना----। कभू -कभू तो कोनो नवा कलाकार, कलमकार  ह  कला के बरगद के पीठ म चढ़के वोला नँवा के छम-छम नाचे ल धर लेथे भले ताल मिलय चाहे झन मिलय, मिटमिटाये म कोनो कमी झन राहय। बखत म अइसन नौसिखिया, शेखिया मन अपन  ज्ञान देवइया के बुढ़ना झर्राये म थोरको कमी अउ संकोच नइ करयँ। कुछ नवा कलाकार मन तो चाटुकारिता के समुंदर म गोतामार के कीर्ति  के मोती पाये के आशा करत रथें । अइसन मन चाहथें के मीठे-मीठ, गुप-गुप झड़के ल मिलय। कला के बरगद कोती ल एको कनी करू-कसा मत मिलय।

     कुछ झन तो पाँच गाँठ हरदी ल पाके थोक समान के दुकानदार बन जथें। सहीं माल अउ सहीं दाम के बड़े बड़े विज्ञापन वाला बोर्ड टाँग देथें। एको जिनिस खरीदे के पिछू पता चलथे---अरे ये तो ऊँचा दुकान फीका पकवान वाले बात हे। कोनो-कोनो कला के बरगद ल अइसन नवा चाटुकार कलाकार बहुतेच भाथे।

      हमर विचार ले नवा कलाकार मन ल ,कला के बरगद मन सो विनम्र होके ज्ञान पाये के आशा करना चाही। कठिन अभ्यास के बल-बूता म उन्नति के सिढ़िया म चढ़के मान-सम्मान के मीठ फर ल तोड़ना चाही। चाटुकारिता के जहर ले दूरिहा रहिके जादा ले जादा अध्ययन करना चाही। दुनिया ले अनुभव लेना चाही।

             एक हाथ ले  सिरिफ चुटकी बाज सकथे।ताली बजाये बर दुनों हाथ के जरूरत परथे। कला के क्षेत्र म बने ताली बजाये बर कला के बरगद अउ नवांकुर कलाकार मन ल अपन -अपन कर्तव्य अउ जिम्मेदारी के बढ़िया निर्वाह करे बर लागही।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

कला के बरगद अउ नवा कलाकार-खैरझिटिया

 कला के बरगद अउ नवा कलाकार-खैरझिटिया




*कला*- कला के कई प्रकार हे, गायन,वादन, लेखन, चित्रकला, मूर्तिकला, सिलाई, कढाई, बुनाई, कारीगरी आदि आदि। सबे कला ल लिख पाना सम्भव नइ हे। जीवन जीना घलो एक कला ये। कला जीवन म रंग घोरथे, अन्तस् के टूटे तार ला जोड़थे। कोनो भी कला ला बिना साधना अउ कखरो पंदोली के बने ढंग ले साध पाना सम्भव नइहे। कला समर्पण अउ साधना के पर्याय ये।




*बरगद*- बरगद एक विशाल पेड़ ये। जेखर जड़, डारा अउ पाना बनेच दुरिहा तक फइले रहिथे। बर तरी के जुड़ छाँव, बर म बइठे चिरई चिरगुन के चाँव चाँव, सबके मन ला मोह लेथे। बर  अपन बर कम फेर दूसर बर जादा उपयोगी होथे। तेखरे सेती तो बर पेड़ के उपमा कोनो महान व्यक्ति ल देय जाथे। बर सब बर होथे, हाथी ले लेके चाँटी तक सबके काम आथे। गाँव मा,बर खाल्हे कोनो एक मनखे या फेर कोनो एक जीव नही, बल्कि पूरा गाँव पलथे। अउ कहूँ कोनो बाहिर ले भटकत पहुँच जथे त उहू ल थेभा बर पेड़ ही देथे। सियान मनके पासा, लइका मनके गिल्ली भौरा-बाँटी, पंच मनके बइठका -पंचायत, बाजार हाट, खेल मदारी, बरात, नाचा गम्मत सबे बर तरी निपट जथे। चिटरा, चिरई,कुकुर, बिलई, गाय गरुवा सबके थेभा होथे बर। छोटे छोटे नार बियार, बेला घलो बर के उप्पर चढ़के मछराथे। बर के विशालता बर खाल्हे जाके बइठे मा सहज पता लगथे।




*नवा कलाकार*- कला के रद्दा मा नवा रेंगइया कलाकार। नवा कलाकार के अन्तस् मा नव आसा अउ विश्वास के संगे संग सीखे के ललक अउ साधना करे के शक्ति होथे। गरब गुमान ले परे होके, कुछु भी नवा मिल जाय, वोला अपनाय के कला नवा कलाकार मा होना जरूरी हे। नवा कलाकार मा साधना अउ समर्पण के संगे संग सबले गुण ज्ञान ग्रहण करे के कला होना चाही। नवा कलाकार उम्मर मा नवा होय यहू जरूरी नइहे, वो हर व्यक्तिव जेन कोनो भी कला के क्षेत्र मा नेवरिया हे, नवा कलाकार आय।




*कला के बरगद अउ नवा कलाकार*


         नवा कलाकार भले नवा या कम उम्मर के हो सकथे, फेर  *कला के बरगद* बने बर कलाकार ल अपन अनुभव अउ गुण ज्ञान के डारा खांधा ले सजके विशाल अउ विस्तृत बने बर पड़थे। जइसे बरगद छोटे बड़े अउ तोर मोर नइ चिन्हे वइसने कला के बरगद के व्यक्तिव होना चाही। कला के बरगद उही आय जेन अन्य कलाकार मन बर थेभा बने, उँखर कला ल निखारे, उहू मन ल अपन कस बनाये। कला के बरगद कहे ले महानता के संगे संग गुरुत्व के बोध घलो होथे। काबर कि गुरु घलो अपन चेला ला सदा बढ़ाये बर समर्पित रहिथे। अंतर सिर्फ अतकी हे गुरु के छाँव ओखर शिष्य भर बर होथे, फेर बरगद के छाँव ठाँव, डहर चलत राहगीर बर घलो होथे। बरगद जइसन विशाल हिरदय वाले कलाकार, कला के जतन अउ बढ़वार बर सदा समर्पित रहिथे।




*कला के बरगद कस दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी*- वइसे तो हमर राज मा एक ले बढ़के एक कलाकार अउ महान हस्ती होइन, जिंखर उदिम ले कला जगत आज सरलग जगमगावत हे। आज घलो बरगद कस विशाल हिरदय वाले कलाकार हें, जेमन सतत रूप ले कला के बढ़वार मा लगे हे, तभो एक नाम सुरता आथे, दाऊ रामचन्द देशमुख जी के। जेन कला बर अपन तन मन अउ धन सबो ल समर्पित कर दिन। उँखर बरगद कस विशाल हिरदय के तरी मा कतको कलाकार मन फलिन फुलिन। देखमुख जी बचपन ले नाचा मा रुचि रखत रहिन, अउ  छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति ल जगर मगर करे बर नाचा बर बिकट उदिम करिन। उँखरे प्रयास ले बड़े बड़े कलाकार मन एक मंच मा जुरियाइन, अउ कला के अलख जगाइन। कला के बरगद बने बर   कलाकार होना जरूरी नइहे, जरूरी हे त वो विशाल हिरदय जे कला ल पूजे, अपन सोच ले वोला बढ़ाये अउ बने कलाकार ल पहिचाने। देशमुख जी खुद नाचिस न गाइस, पर चँदैनी गोंदा के स्थापना करके सरी दुनिया ला नाचाइस अउ गवाइस। देशमुख जी के कल्पना ला साकार करे बर छहत्तीसगढ़ भर के कलाकार मन उँखर साथ दिन। आज घलो उँखर योगदान ल नइ भुलाये जा सके।


          


                    यदि घर मा ददा ल बर के संज्ञा देबो त कोनो अतिशयोक्ति नइ होही। काबर कि घर बर ददा सदा बर पेड़ कस उपकार करथे। लइका लोग के हर सुख दुख के ध्यान रखथे। भले ददा पढ़े बर नइ जाने फेर लइका मनला ज्ञानवान बनाये बर सतत महिनत करथे। वइसने कला के बरगद  घलो कोनो बड़का कलाकार होय, ये जरूरी नइहे। ओखर समर्पण अउ पावन सोच ही काफी हे।जेखर ले नान्हे बड़े जम्मो कला साधक लाभांवित होथे।




               कलाकार, कला पाके एक महान व्यक्तिव या कलाकार बन सकथे, फेर कला के बरगद बने बर वोला कला के क्षेत्र मा पूरा समर्पित होय बर पड़थे, सतत कला के बढ़वार बर उदिम करेल लगथे, अउ अन्य कलाकार मन ल घलो बढ़ाये बर पड़थे। आज घलो सबे कला ह बराबर फलत फुलत हे। सबे कला के गुरु मन सतत रूप ले गुण अउ ज्ञान बाँटत हें। बर पेड़ कतको विशाल हो जाय जस के तस रहिथे अउ परोपकार करथे, वइसने कला म सिद्धहस्त बरगद कस विशाल हृदय वाले कलाकार ल कला के बढ़वार मा समर्पित रहना चाही। 




                वइसे तो बरगद के छाँव मा अउ बरगद तो का कोनो आने पेड़ घलो नइ पनपे, फेर ओहर अतिक विशाल  अउ कालजयी रथे कि जनम जनम सबके काम आ सकथे। ओखर तना घलो जड़ बनके धरती मा गड़थे। अब कहूँ बरगद के ये स्थिति ला आधार बनाके कहिबों कि, कला के बरगद तरी घलो अइसने कुछु नइ पनपे, त हमर नादानी होही। बरगद एक प्रतीक आय जे मनखे के विशाल निर्मल हिरदय, अउ परोकारी सुभाव अउ समर्पण ल देखाथे। जे सिर्फ अपने तक सिमित हे, त वो बरगद कइसे होइस। वोला वो क्षेत्र मा बरगद के उपमा देना ही बेकार हे, हाँ भले वो महान कलाकार हो सकथे, फेर कला के बरगद नही। 




जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को, कोरबा(छग)

कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस : पोखन लाल जायसवाल

 कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस : पोखन लाल जायसवाल 

         

        मनखे अउ कला एक-दूसर के बिगन अधूरा जनाथे। मनखे जनम ले कला प्रेमी होथे। लइकापन म लोरी सुनत गहिर नींद म सुतना गायन के प्रति हमर प्रेम ल बताथे। लोरी गावत थपकी मारना वादन के सरूप माने जा सकत हे। खेल खेलौना लइका मन के मनोरंजन बर घात जरूरी आय। रकम रकम के खेलौना बनाना घलव कला के बात आय। मनखे अपन रुचि के मुताबिक कोनो भी काम ल बड़ मन लगा के करथे, अउ सरलग करे ले ओला महारत हासिल हो जथे। मनोरंजन अउ जरूरत के कारज ल बने सफई ले करना तो कला आय। कला एक साधना ए कहे जा सकत हे। जे सबो ले सध जय जरूरी नइ हे। कोनो ले कोनो कला सधथे, त कोनो अउ ले कोनो दूसर कला ह सध पाथे। जिनगी जीना घलव कला च आय। कतको दुख के पहाड़ राहय, कई मनखे जिनगी ल हाँसत-हाँसत गुजार देथें। ओकर जिनगी म कतका दुख हे बाजू वाले ल गम नइ मिलय। आरो नइ लगन दय। खैर ए तो जिनगी के बात ए। सबके अपन जिएँ के तरीका होथे। कोनो काहूँ म मगन सहीं, सब कुछु न कुछु म मगन रहिथें। 

       हमर तिरतखार म कतको कला साधक हें, जउन मन ल चित्रकारी, गायकी, संगीत, नाच (नृत्य), मूर्ति बनई, लेखन, अभिनय, जइसन कतको कला म पहचान मिले हे अउ नवा मन पहचान बनाय के उदिम करत हावँय। 

        कतको झन अइसे घलव हे जेन मन ल कला के दम ले अतेक पहचान मिले हवँय कि उँकर शोर दुरिहा दुरिहा तक अइसे बगरे हवँय म, जइसे बटोही मन ल रद्दा बाट के बर (बरगद) के आरो रहिथे। उँकर पहचान उँकर कला के पूर्णता ले होथे। कला के प्रति समर्पण होथे।उँकर बेवहार ले होथे। जउन उन ल कला के बरगद माने बर मजबूर करथें। उही बरगद जउन अपन विशालता ले अपन तिर अवइया जम्मो जीव ल आसरा देथे। थके-हारे बटोही ल घाम-प्यास म जुड़ छाँव देथे। चिरई-चिरगुन मन के हरियर डारा-पाना के बाँह पसारे सुवागत करथे। उन ल अपन विशाल हिरदे म अपन विस्तार करे बर पूरा जगहा देथे। कतको छोटे बड़े चिरई-चिरगुन एकर विशाल छाती म जगहा पा बड़ प्रेम ले अपन डेरा बनाके रहिथें। चिटरा मन पुच-पुच कूदत-छाँदत फिलिंग म चढ़ के अपन खुशी के इजहार करथे। इही तरहा कला के बरगद अपन विशालता ले सबो छोटे-बड़े नवा कलाकार मन ल समोखे पूरा उड़ान भरे के मौका देथे। कला के बारिकी सिखाथे। कला म माहिर होय के आस जगाथे। कोशिश करथे कि नवा कलाकार मन ल कला के खुल्ला अगास मिले। जिहाँ नवा तारा (सितारा) बन के अपन चमक बिखेर सकँय। नवा पीढ़ी बर नवा आसरा के बरगद बन सकँय। उँकर कला ल आगू बढ़ा सँकय। कला के बरगद अउ नवा कलाकार दूनो ल चाही कि दूनो समभाव ले एक-दूसर के कला के सम्मान करँय। गुरु के गुरुता रहय अउ दूनो के मन म कोनो तरहा के गुमान झन आय।

       अइसे देखब म आथे कि बरगद के छाँव तरी कोनो अउ किसम के पौधा नइ पनपे। जउन ल लोगन मन बने नइ मानँय, जउन ठीक नोहय। हो सकत हे बरगद के विशालता ले नवा पौधा ल भरपूर घाम-पानी नइ मिल पावत होही, जउन पौधा के बाढ़ खातिर जरूरी आय। यहू हो सकत हे कि बरगद अपन विशाल छाँव ल कोनो एक दू ठन/झन ल नइ देना चाहय। इही पाय के आने पौधा रोप नइ पावय। बरगद के छाँव बरसा पानी अउ घाम म गाय-गरवा मन बर बरदान साबित होथे। एकरे आसरा पा के गाय-गरू मन इहें सुरताय के उदिम करथे। लइका मन एकरे छाँव म गिल्ली-डंडा, भँवरा-बाँटी, बिल्लस खेलथे अउ अपन जिनगी म आनंद के मदरस घोरथें। कतको घुमंतू जाति के लोगन भूलत भटकत इही छाँव तरी रात बिताए के थिर बाँह पाथे। दिनभर अपन पुस्तैनी मेहनत मंजूरी कर जीविका चलाथे। अइसन ढंग ले बरगद दीन-हीन अउ उपेक्षित मन के हित खातिर समर्पित लागथे। अइसन परोपकार के भाव कला बरगद म होना बहुते जरूरी हे। तभे नँदावत जात कतकोन कला ल नवा जिनगी मिलही। संरक्षण के संग बढ़ावा मिले ही नेवरिया कलाकार के आस पूरा होही। छोटे-बड़े कला साधक के आत्मविश्वास बाढ़ही। जेन ए भरोसा नइ दे पाही, जेन सिरिफ अपन चिंता करहीं, अइसन कला के बरगद के होना अउ नइ होना, कोनो काम के नोहय।

           बरगद डारा-पाना ले जतका विशालता पाथे, ओतके मजबूत जड़ ले भुइँया म दम दम ले खड़े रहि के सब ल सहारा देथे। जउन किसम ले नान्हें लइका बाप के छाती म खेलत, पीठ म घुड़सवारी करत इतराथे अउ बाप लइका ल बाँह म उठा अपन छाती चौड़ा करथे, लइका अउ इतराँय लगथे, अपन भाग ल संहराँथे। बाप अपन अशीष दुलार के छाँव म लइका ल सजोर करत आगू बढ़ाय के उदिम करथे। वइसने बरगद अपन तरी आसरा पवइया ल बरोबर अशीष देथे। कला के बरगद कला संसार के बाप ए त नवा कलाकार उँकर अशीष दुलार के छाँव म सजोर होवत अउ छाती म नचइया कुदइया लइका आय, जउन बिधुन होके खुशी मनाथे। ओला अतका आस रहिथे कि बाप ओला कभू गिरन नइ देवय। यहू देखब म मिलथे कि एकाध बाप अइसे घलव मिलथे जउन बाप धरम ल बरोबर नइ निभाय। त का लइका जिनगी रुक जथे? नइ न? वइसने कला के बरगद म एकाध बरगद धान के खेती म उपजे काँद-दूबी सहीं होथे। जउन धान के बढ़वार ल बाधित तो करथे फेर जादा प्रभावित नइ कर पाय। जरूरी हावय कि धान के जतन सहीं नवा कलाकार अउ उँकर कला के पोषण करे जाय। कला के बरगद के संग कला प्रेमी समाज ल घलव अपन भूमिका निभाय ल परही, तभे नवा कलाकार के आस पूरा होही अउ खुल्ला अगास म अपन उड़ान भर पाही।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस* अश्वनी कोशरे

*कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस* अश्वनी कोशरे


प्रकृति हर सबो जीव ल जनमाय हे | नैसर्गिक आनंद के देवइया अउ कला के मूल स्त्रोत घलो हें|

प्रकृति सर्वगुण सम्पन्न हे| सबले  पहली अऊ सबले बुधियार कला के बिजहा ल अंकुरित करत, सेवत , विशाल बिरछा के रूप म घलो उही सिरजाय हे | आदी रूप म सबो प्रकार के कलाबरगद मन के जननी प्रकृति हरे | जउन ,हर परिस्थति म सबले बड़े कला उत्सव के आयोजन और प्रयोजन करथे| 


 *मैं हर कण हर पात में,* 

 *मैं हय पल हर छिन|* 

 *फिर भी मैं ना मैं हूँ* 

 *ब्रम्ह गुरु के बिन* 

 ए पंक्ति मन जिनगी म बड़े बड़े दर्शन ल दू चार करा देथें| विशाल प्रकृति ल समझना मानवीय चेतन बर अगम विषय वस्तु आए | अपन परिवेश ले संजोय मनसा म जतिक समा सके हे धरे सइँथे अउ सकेले हवन| फेर ऐमा भी पहिली हक पव इया के हवय|

बादर, पानी,अगास, पुरवई, धरती कखरो ले भेद नइ करे हें| इही मन प्रकृति के प्रतिरुप आएँ| इँखरे कला ह निखरे हे|

         इँखर कला साधक मन पुरा सिद्दस्त हें| उंखर सुर, ताल, लय, टेक, रिदम, उठाव, पटक , झनकार, खनक, तान ,ठहराव के जोड़ म सबो फिका हें| उंखर नाद ,वितत हर पल झनकृत करत रहिथे| दशो दिशा म गुंजन करत रहिथे| जब वोकर चित शांत रहिथे तव पवन-पुरवइ नामक कला साधक हर बाँसुरी कस सुमधुर, सुरमयी तान छेड़ देथे, उंकर सबले सुकोमल और प्रियवर कला साधिका अपन प्राण पियारे ल मिले बर जउन हर आस लगाये अगोरा म जलतरंगिनी मन संग राग मेघ मलहार गावत हे| मनमोहनी,सरलग बोहावत , छल- छल छलकत ,कल-कल नाद करथे अउ मिल जाथे पिय के हिय मा|

         | तव कभु भँवरा बन के कलियन म  फूल - पाना म मँडरावत रहिथे ,कोयल पपिहा मैना बनके गीत गावत रहिथे|

ऊँचाई ले अपन यौवन बिखेरत झरना मन के झरझर गरजना अऊ उज्जर निर्मल सौंदर्य ले सबो परिचित हें|उकर साज- सिंगार दुध बरोबर धवँरा धार हर घलो मन ला मोह लेथे | 

घनघोर जटा सजाय, कभु कपासी, श्याम कभु सुघ्घर चित्त हिय ल झकोरत अगास म हवन के अग्नि कुंड म होम करत| बादर बिजुरी मन अठखेली करत रहिथें| तव उल्लास ले भरे मृगी मन कस 

तेज अ उ कभु मंथिर पाँव धरे रहिथे| सबो तो अद्भूत हे | 

 *ता आगे मै पीछे* 

 *गुरु सदाऊपर चेला नीचे* 

 *चेला का हाँथ पकड़ि* 

 *गुरु सदा ही खींचे* 


        एकझिन  एखर उपजाय सबो जीव म जंतु म सबले बड़का कलावंत , गुनवंता बने कई  पीढ़ी ले इतरावत हे|ए प्रजाति मनखे हरे, जउन हर मेधावान तो हवय | फेर कभू ए गुनझरहा हर अपन पालक के कला ले कुछ नइ सीख सकिस| केवल मैं बडका अउ तँय नान्हे के फेर म, तीन लाख चौरासी हजार भावँर घूमत हे |का कभू सोंचे हें, के इँखरो ले बड़े कोनो ललितकला,गीत- संगीत ,मुर्ति कला, साहित्य चित्रकला नृत्य कला म पारंगत हवँय| कोनौ चौमासी हे , कौनो छमासी तव कोनो बरमसिया हें| एला केवल अकारत जिनगी खुवार करइ कहि सकथन|काबर का ले के आए हन अउ  का ले जाबोन| सब तो इँहें ले अर्जित हे|तव जतका दिन बर पारी बँधाय हे|पलिया म पानी रिकोवत रहि| जेन पौधा ल बढ़ना हे तव निश्चित हे वोकर  बढ़वार होही|

पुरखा मन कहें हे-

 *गुरु को ऐसा चाहिए,* *सब कुछ शिष्य पठोय|* 

 *शिष को ऐसा चाहिए,* *सब कुछ गुरु का होय|* |


सबो अपन धून म मगन रहइया आँए| आज तक अपन जिनगी ल गवाँ डारिन तभो कोनो सिकायत नइ हे| फेर मस्त सुघ्घर सुडोल काया तन अउ मन मस्तिष्क पाय के अभिमान म चूर होना पुरखा के अनादर आए|

नेम निमित्त सबो कलाविषय,  जिनिस के व्यापार स्वतंत्र हे फेर अड़चन स्वारथ हर लादे हे|  उपकार के उदाहरण सबो कला के उत्थान म समाहित हे| ए बेरा म कलाबरगद के अवदान बर बड़ कुँदे अउ रतन जड़े आदर्श शबद  मन  के भंडार हे|


 *मुखिया मुख सो चाहिए खान पान सो एक* 

 *पालय पोसय सकल अंग तुलसी सहीत विवेक|* 

कलाबरगद अपन विराट रुप ,विशालता के संग अपन सुदृढ़ जरवा ,जड़ और सुकोमल डारा पाना, मिठ पिकरी, और गुरतुर रसाबर घलो जाने जाथे| जेकर हरियर विकास मान गोदी म खेले बर कला साधक मन नान्हे बालपन  ,शीशु रुप के लीला करत अपन महतारी के स्तन पान करत रथें|

      तब ममताभरे महतारी के वात्सल्य ले कलाबरगद हर सहलावत साधकमन ल कलाज्ञान के जल  ले सींचत रहिथे|

और संगे संग अपन अनुभव रुपी शाखा ले बाजू चूहर जड़ जमावत खुद ला भी स्थापित करत अपन जिनगी के मिशाल देथे|

मानव सभ्यता के विकास क्रम ले लेके आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी सबो कला हर हस्तांतरित होय हे| 

रुद्र तांडव, विश्वमोहनी ,नरतकी रुप , अपसरा मन के विलक्षण भाव भंगीमा , गंधर्व मन के कला इहाँ तक चंद्रमा के सोलह कला घलो हर मनखे जोनी बर कला बरगद कस सीख आए|

लाखों देववाणी ,दिव्य मंत्र , अमर श्लोक और स्त्रोत मन मौखिक- वाचिक और अनुगामी परंपरा ले हाथों हाथ आए हें| मुख मंडल ले उद्गारित हो शास्त्र के रुप म सुगम उपलब्ध हे|देवइया देवता ,महाऋषि और कलापूरण मनीषि मन अपन योग्य और समर्थ कला साहित्य के साधकमन  ल सौंपे हवँय|उपकार करे हवँय|

सम्हारे धरे लइक सामर्थ्य पैदा करे हवँय|

तव वोतके जिम्मेदारी और साहस ले कला साहित्य के साधक मन पाँव जमाये मान राखे हें|


        सरलग चलत ए परंपरा म अब दोष काखर कारण समावत हे|

नवीनता लिए परिवेश हर ए कर बर जादा जिम्मे दार हे| झटकुन सीखे सीधोय,सिद्धिप्राप्ति के भाव हर साधक ल सतत् विचलित करत हे |

ए मा कलावान बरगद के कोनो दोष नजर मा नइ आवत हे | 

हाँ धन ऐश्वर्य के प्रचुरता और तृष्णा हर कोनो कोनो ल अँधरा जरुर कर देहे|

संयम और नीति के बात ल धता बता आज कलाबरगद ल उपहास करे के कुत्सित प्रयास जरुर होय हे|


विश्व कला विरासत म भारत ल महाकलागुरु कहे गे हवय| तव महतारी छत्तीसगढ़ ल कला के माता माने जाथे | मनखे जोनी म इहाँ जनम धरे जीव मन आनंद और सुख बर कला के सबो रंग ल सिरजाये हवँय , पोठ खमिया गाड़े हवँय | उंकर अवदान ल जुग जुग ले सुमरे जाही ,भुलाय न इ भुलँय|

एमन हें  नाचा के भीष्म पितामह दाऊ राम चंद्र देशमुखजी, लकनाचा के अहम किरदार दाऊ दुलार सिंह मंदरा जी, लोक नाट्य अउ नवा थियेटर के निदेशक हबीब तनवीर जी, पंडवानी गुरु झाडू राम देवांगन जी,  पूना राम निषाद जी ,हारमोनियम के बाजा मास्टर पंचकौड़ , गोविंद राम निर्मल कर ,सतपंथी देवादास बंजारे जी,  सुरुज बाई खाण्डे जी, | 

छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति बर बरगद- पीपर और साल -सरई के महत्तम ,आदीम परंपरा के हलबी -भतरी ,गोंडी के चर्चा करे बिना ए पाठ अधुरा रही जही|

ककसार, हुलकी ,माँदरी थापटी रीलो ,लेंजा , गेड़ी , गौर ,बार सरहुल ,करमा ददरिया मन भी एक पीढ़ी ले दुसर पीढ़ी म हस्तांतरित होय हे | ए कला विषय मन मनखे के जिनगी साधना आए|पर ए कला संस्कृति के कलावाहक अऊ कलाबरगद के पहिचान आजो ले नइ  हो पाय हे | एमन भी समृद्ध अउ पोठ परंपरा के द्योतक आएँ|

आज कला बरगद अउ कलासाधक मन ऊपर माँय -मोसी के व्यवहार नइ होना चाही| 

आजो के जुग मा आरूणी और एकलव्य कस शिष्य कला साधना बर आसलगाए घलो मिलथें| लेकिन उंकर संग अँगूठा माँग के शोषन अउ दमन के डरभर  घलो दे हें|


  हमर प्रदेश म तो विश्वयके सबले बड़े और प्राचीन नाट्य शाला हे, सीता बेंइरा, जोगी मरा ,नाटक कार भी रहीन, चित्रकार भी रहिन| सजीवता प्रदानय करव इया नायक देवदत्त और देवदासी सुतनका रहिन|

नाट्य मंचन भी होय हे||

क इ उदाहरण इतिहास म दफन हे|

अउ वर्तमान म पद्म विभूषण तीजन बाई जी हे जऊन मन गुरु शिष्य परंपरा ल ढोवत  हें| पंडवानी सीखावत हें|

एशिया के एकमात्र संगीत विश्व विद्यालय हे ,जिहाँ गायन ,वादन नृत्य, अभिनय, ललितकला साहित्य और व्यक्तित्वय विकास बरसो ले चले आवत हे| छत्तीसगढ़ी भाखा बोली के विकास और महतारी भाखा के अस्मिता ल संजोय संवारे खातिर गुरुकुल भी संचालित हे|

जिनकर साधक मन दिनोदिन निखरत हवें|

साहित्य,संगीत ,चित्र कला सबो क्षेत्र म कला साधक मन अपन  बड़ गहिर आस लगाय हें के उनला दानवीर और समर्थ कलाबरगद मिलँय| 

गुरुदेव श्री अरुण निगम जी के  कविता के एक पंक्ति समर विशेष के याद करवाथे...


 *हाँसत गावत जीयत जावौ, पालौ नहीं झमेला* 

 *छोड़ जगत के मेला ठेला ,पंछी उड़े अकेला.....* 


 *कोन इहाँ का ले के आइस, लेगिस* **कोन खजाना* 

 *जुच्छा जाना,सुक्खा आना* *का सेती इतराना*



🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


अश्वनी कोसरे कवर्धा कबीरधाम

सुरता// चरडबिया गाड़ी के मजा..

 सुरता//

चरडबिया गाड़ी के मजा..

   हमर देश म 16 अप्रैल 1853 के सबले पहिली रेल गाड़ी मुंबई अउ ठाणे के बीच 33.8 कि. मी. के दूरी ल 57 मिनट म पूरा करे रिहिस हे. उही दिन ह इहाँ के इतिहास म रेलगाड़ी के शुरुआत के दिन के रूप म शामिल होगे. तब ले चालू होए सफर ह आज पौने दू सौ साल अकन के अपन बड़का यात्रा ल पूरा करत कतकों हजारों किमी के लंबाई म विस्तारित होगे हवय. भाप इंजन ले डीजल इंजन अउ फेर बिजली इंजन के रूप म गौरव गाथा गावत हे. आज हमर देश के अइसन कोनो राज्य या क्षेत्र नइहे जिहां रेल के पहुँच नइ हो सके होही, अइसे कहे जाय. तभो ले आजो कुछ अइसन लोगन मिल जाथें, जे ए कहिथें के हमन अभी तक रेलगाड़ी के सवारी नइ करे हन, त बड़ा अलकर लागथे. एकदम पहुँच विहीन जगा के लोगन के मुंह ले अइसन सुनई ह एक बखत पतियाए असन लाग घलो जथे. फेर कोनों पढ़े लिखे, नौकरी पेशा मनखे जे शहर असन जगा म राहत होवय, उंकर मुंह ले अइसन गोठ के सुनई ह मुंह फार के देखे के छोड़ अउ कुछु असन नइ लागय.

   बात 2014-15 के आय. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के जिला सम्मेलन जिला मुख्यालय गरियाबंद म होवत रिहिसे. तब के अध्यक्ष दानेश्वर शर्मा जी के नेवतई म हमन कविता पाठ खातिर उहाँ पहुंचे रेहेन. कवि सम्मेलन के संचालन मुकुंद कौशल जी करत रिहिन हें. मंच म मोर बगल म उही क्षेत्र के एक नवा कवयित्री रीता जी बइठे रिहिन हें. वो मोर जगा पूछिस- सर, आपमन रायपुर म रहिथव त रेलगाड़ी म अबड़ चढ़त होहू ना? मैं हां कहेंव. त वो बताइस- मैं दुरिहा ले देखे तो हंव, फेर अभी तक चढ़े के मौका नइ मिल पाए हे. मैं वोला कहेंव- ये कार्यक्रम ल झरन दे. मंच ले उतरे के बाद गोठियाबो.

  कार्यक्रम के झरे के बाद वो मोला कहिस- सर जी, इहें मोर भाई घलो रहिथे. तीरेच के एक गाँव म शिक्षक हे. मैं रात के उहें रइहू. आपो मन रुक जावव न. इही बहाना मैं गरियाबंद के तीरेच म बिराजे भकुर्रा (भूतेश्वर) महादेव के दरस करे करे के मनसुभा बनावत हव कहि देंव. रतिहा म उंकर घर फेर रेलगाड़ी ऊपर चर्चा होइस. त वोला बताएंव- अभी भिलाई म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के प्रदेश स्तरीय वार्षिक जलसा होवइया हे. तैं वो दिन रायपुर म मोर घर आ जाबे. मैं तोला रायपुर ले भिलाई तक के यात्रा ल रेलगाड़ी म करवा दुहूं. वो हव सर कहिके, तुरते तैयार होगे. वइसे तो मैं दुरुग भिलाई जब कभू जावंव त सड़क के रद्दा जावंव. फेर वो दिन वो नोनी के रेलगाड़ी म बइठे के साध पूरा करे खातिर रेलगाड़ी म भिलाई गेंव.

   जिहां तक मोर बात हे, त मैं तो नानपन ले रेलगाड़ी के मजा लेवत हंव. काबर ते हमर गाँव नगरगांव ह दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अन्तर्गत मुंबई हावड़ा मार्ग म हावय. पहिली हमन भाठापारा म राहत रेहेन त सिलयारी स्टेशन ले रेलगाड़ी चढ़-उतर के आवन-जावन. बाद म हमर सियान के बदली भाठापारा ले रायपुर होगे, त मांढर रेलवे स्टेशन ले रायपुर आना-जाना होवय. चाहे सिलयारी स्टेशन ले उतर के आ, चाहे मांढर स्टेशन ले जा हमर गाँव ह दूनों जगा ले एकेच कोस परथे.

  रायपुर म आए के बाद जब गाँव जावन त वो बखत मांढर ले रायपुर के टिकिट किराया 30 पइसा लागय अउ कुल 12 मिनट के सफर म रायपुर ले मांढर पहुँच जावत रेहेन. मांढर म उतरन अउ रेलवाही के तीरे-तीर बरबंदा फाटक तीर जावन, उहाँ ले गिधौरी के बस्ती होवत नगरगांव पहुंचन. 

   हमर गाँव के तीर ले कोलहान नरवा बोहाथे. वोमा रेलगाड़ी नाहके खातिर जबर पुलिया बने हे. वोकर बाजूच म एक अउ पुलिया हे, जेला हम सब बंगाली पुलिया के नांव ले जानथन. ए पुलिया के नांव बंगाली पुलिया कइसे परिस? एकर संबंध म हमर बबा बतावय- जब ए मुंबई हावड़ा रेल लाईन बनत रिहिसे, तब ए पुलिया ह घेरी-भेरी भरभरा के गिर जावय. 

  वो पुलिया के निर्माण कारज एक बंगाली इंजीनियर के देखरेख म होवत रिहिसे. पुलिया के बार बार गिरई म वो हलाकान होगे रिहिसे. तब एक रतिहा वोला सपना आइस के, उहिच तीर म बोहरही दाई के ठउर हे, तेकरे आसपास म एक मंदिर के निर्माण करवा तब वो पुलिया ह पूरा बन पाही. बंगाली इंजीनियर ह सपना के बात ल मान के बोहरही दाई के जेवनी मुड़ा म थोरिक दुरिहा म एक शिव जी के मंदिर बनवाइस. तब जाके वो पुलिया के निर्माण कारज ह सिध पर पाइस. अउ फेर उही बंगाली इंजीनियर के सुरता म वो पुलिया के नांव बंगाली पुलिया परगे. 

    वो बखत बिहनिया जुवर जेन लोकल गाड़ी आवय, वो ह दुर्ग ले मांढर तक ही चलय. मांढर ले फेर वापस लहुट जावय. अब तो ये गाड़ी ह एती डोंगरगढ़ तक बाढ़गे हे, अउ वोती कोरबा तक. तब ए लोकल गाड़ी ल "चरडबिया गाड़ी" काहन, काबर ते वोमा मुड़ी के छोड़ चारेच ठन डब्बा राहय.

   हमर ए मुंबई हावड़ा लाईन म जतका गाड़ी आथे सब बड़े लाईन वाला आय. फेर छोटे लाईन के गाड़ी म चघे के घलो जबर मजा आवय. एक तो रायपुर ले राजिम जावय, तेमा सिरिफ सउंख खातिर चढ़ परन. फेर एक बार के छोटे लाईन के गाड़ी म चघे के जबर सुरता हे.

  तब मैं आईटीआई म रेहेंव. उहाँ हर बछर खेलकूद प्रतियोगिता होवय. वोमा जेन मन पोठ प्रदर्शन करयं वोकर मन के चयन प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता खातिर होवय. मोर स्कूली बेरा ले ही कबड्डी अउ बालीबाल के खेलई म चयन होवत राहय. आईटीआई म घलो प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता खातिर मोर चयन होगे. ए प्रतियोगिता ल जबलपुर म होना राहय. 

  हम सबो प्रतिभागी मनला जबलपुर लेगे-लाने के जवाबदारी उहाँ एक खत्री सर रिहिसे, तेन ल सौंपे गिस. वो ह सब लइका मन संग बइठ के जोंगिस के जबलपुर हमन गोंदिया-बालाघाट होवत जाबो अउ लहुटती म बिलासपुर डहार ले आबो. सबो लइका वोकर बात म सहमत होगेन.

   निश्चित तिथि म रायपुर ले बड़े लाईन वाले गाड़ी म चढ़के गोंदिया पहुंचेन. तहाँ ले उहाँ ले गाड़ी बदलेन. उहाँ देखेन ते छोटे लाईन वाले 'धकपकहा गाड़ी'. ए ह छोटे लाईन वाले गाड़ी म चढ़े के जबर अनुभव रिहिसे. वइसे तो रायपुर ले राजिम वाले गाड़ी म चढ़े रेहेन, फेर ए दूनों के अनुभव म भारी अंतर. रायपुर ले राजिम वाले रद्दा ह मैदानी भाग म होए के सेती वतेक जीवलेवा नइ रिहिसे, जतका गोंदिया वाले रद्दा ह  रिहिसे.

   गोंदिया ले बालाघाट तक तो अलवा-जलवा बनेच रेंगिस. फेर जइसे उहाँ ले आगू बढ़ेन अउ डोंगरी-पहाड़ मन के बीच म हबरेन तहाँ ले वो सफर ह मुड़पीरवा असन लागे लागिस. वो जगा के पहुंचत ले बेरा पंगपंगाए असन होगे राहय, त हमन गाड़ी ले उतर के रेंगत जावन तभो ले गाड़ी ले अगुवा जावन. तहाँ ले फेर कोन जगा बइठ के सुरतावन. गाड़ी जब हमर मन जगा आ जावय त फेर वोमा बइठन. वो गाड़ी ह भाप इंजन म चलय, तेकर सेती जगा-जगा वोमा पानी भरे खातिर जुगाड़ लगे राहय. हमन गाड़ी के दंतनिपोरई के सेती उही पानी भरे के जगा मन म दतवन-मंजन अउ नहाना-धोना घलो कर डारे राहन. वो दिन तो अतिच होगे रिहिसे. हमन ल लेगइया खत्री सर ल अबड़ गारी देवन. बाद म पता चलिस, के खत्री सर के ससुरार गोंदिया म रिहिसे तेकर सेती वो ह उहाँ थोकन बिलमे खातिर अइसन जाए के रद्दा जोंगे रिहिसे. सही म जब हमन गोंदिया म गाड़ी बदले खातिर रगड़ के तीन-चार घंटा स्टेशन म बइठे रेहेन, तब तक खत्री सर ससुरारी मान के लहुट आए रिहिसे.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

गोदी के महिमा-हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 गोदी के महिमा-हरिशंकर गजानन्द देवांगन

                        अपन करनी के माफी मांगे बर अऊ जनता के आशीर्वाद झोंके बर , गाँव गाँव म नेता मनके रेम लगे रहय । नेता मन के चमचा मन , काकरो घर के छ्ट्ठी बरही , मरनी हरनी , बर बिहाव , मकान दुकान के पूजा पाठ ला ताकत रहय । जतका डाक्टर नइ जानय तेकर ले पहिली अऊ ओकर ले जादा , येमन ला पता रहय के , फलाना घर नावा सगा अवइया हे या फलाना के डोकरी दई मरइया हे ........। जइसे कुछू होवय तुरते बधई दे बर या संतावना दे बर , अपन नेता ला बलवा डरे । जनता के तिर म जाके , ओकर आशीर्वाद पाये के एकर ले अऊ काये अच्छा मौका दिही भगवान घला ........। 

                         एक ठिन गाँव म , एक झिन सियान के बहू खोसकिस खोसकिस करत रहय । ओकर घर समे म नवा सगा आगे । नावा सगा हा आये के पहिली , जानो मानो फोन करके चमचा मन ला बता दिस के .. मेहा आवत हंव , तूमन पहुँचव , तइसे चमचा मन हाजिर होगे । छट्ठी के दिन तिथि तै होगे । ओकर नेता तक बात पहुंचगे । सियान हा , अतेक बड़ नेता , ओकर नाती के छट्ठी म आवत हे कहिके , बिकट खुस रहय । जगा जगा उहीच गोठ गोठियावय । बड़ उमेंद म तैयारी करत रहय । 

                         सियान के उछाह ला देख , ओकर बेटा किथे – नेता के स्वागत सत्कार तो ठीक हे बाबू  , फेर नानुक बाबू ला नेता के गोदी म झिन धराबे । सियान पूछथे – काबर ? बेटा किथे – ओकर गोदी अच्छा निये बाबू , शापित हे कस लागथे । जेला गोदी लेथे तेहा कतको बछर ले गोदी के लइक रहि जथे , ओकर बिकास रूक जथे । अऊ तो अऊ बाबू , ओकर हाथ गोड़ मुड़ी कान अपने अपन , खियाये बर धर लेथे , ओहा अपंग विकलांग हो जथे । सियान पचारथे – कइसे गोठियाथस बेटा , काकरो गोदी ले म , काकरो बिकास रूके हे का ? कन्हो बिकलांग कइसे हो सकत हे ? बेटा किथे – हमर गाँव ला इही नेता हा चार बछर पहिली गोदी ले रिहीस हे । आज ओकर का हाल हे तेला तैं खुदे जानत हस । तरिया खनइस डिपरा म , पानी नइ भरय । स्कूल खोलइस बिगन मास्टर के । स्कूल बर नावा बिल्डिंग बने के पाछू ..... उदघाटन के पहिली , तीन बेर रिपेरिंग हो चुके हे , तभो ले छत चुचुवावत रहिथे । जबले सड़क बनिस तबले गिट्टी पखना के मारे , शहर जाना मुश्किल होगे , ओकर पहिली पैडगरी ले शहर पहुंचना कतेक आसान रिहीस हे । घर घर म जे शौचालय बनिस तेमा , एक घर सीट गड़े हे , दूसर घर दिवाल खड़े हे , काकरो शौचालय म टांकी निये , काकरो घर केवल टांकी बने हे । एकर पहिली लोटा धरके दिशा मैदान जावत रेहे हन , कन्हो तकलीफ नइ रिहीस , ओ समे गंदगी दूरिहा म रहय ... अभू घरों घर गंदगी पसरगे ..... । गाँव कती करा बढ़िस बाबू , बल्कि ओहा बिकलांग होगे । सियान किथे – ओला नेता का करही बेटा , ओहा तो गाँव ला इही पायके गोदी ले रिहीस के , येकर बिकास करना हे । गाँव के मनखे मनला फोकट म गैस देवइस , रासन कार्ड दिस , इलाज बर स्मार्ट कार्ड बनवा दिस , फोकट म चऊँर दार देवत हे अऊ का चाही ......... ? बेटा किथे – गाँव के मनखे ला फोकट म देवत हन कहिके .. कोढ़िया बनाके , देश ला कमजोर करे के काम के नाव , इँकर नजर म बिकास आय बाबू । गाँव म राजनीति के भुसड़ी बगराके , गाँव के हरेक मनखे ला चबवा दिस । देख ओकर असर , परोसी हा परोसी संग नइ बनय , भई भई के बीच झगरा मातगे । हमर कका संग तोला कोन लड़इस , तिंही बता भलुक ...........। तैं झिन फँसबे ओकर बात म ये दारी ........... अऊ नानुक लइका ला ओकर गोदी म झिन दे देबे , निही ते मोरो लइका हा , हमर गाँव कस , जिनगी भर सिर्फ गोदी म रेहे लइक रहि जहि । सियान घबरागे अऊ सोंचत बइठगे , अतेक बड़ मनखे ......... यदि नाती ला गोदी दे कहिके माँग पारिस त ............., कइसे करहूँ भगवान ? 

                           छट्ठी के दिन बिहाने ले , रझरझ रझरझ अस पानी पिटीस के , गाँव के खुसरती म , नेता के बनवाये नावा पुलिया टूटगे , कन्हो नइ अइन , ओकर नाती हा गोदी के महिमा ले बाँचगे । 

    हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

बादर/नान्हे कहिनी*-रामनाथ साहू

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         *बादर/नान्हे कहिनी*-रामनाथ साहू

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रामनाथ साहू

          


     अगास म रंग- रंग के बादल मन दिखत  रहिन ।थोर -थोर कुटी- कुटी तहदार बादल मन त, कनहुँ -कनहुँ जगह म घोड़ा पूछी जइसन दिखत घुड़पुच्छ बादल...


             फिर यह सब बन के ऊपर म, पोनी के बड़े-बड़े ढेरी मन असन कपसिला बादल मन के कतेक न कतेक खेप ।नील वरन चिलकत अगास म ये सादा बादर मन के नाचा-कुदा हर देखे के लइक रहिस। ये बादर मन कभु इतरात येती जाँय, त कभु वोती । कभु हाथी -घोड़ा असन दिखें त कभु महला- सतमहला बन जाँय। वोमन तो  कभु - कभु सुरुज ल घलव तोप देंय । दिन भर येमन के अइसन येती -वोती धमा- चौकड़ी चलत रहिस ।

" हरे ये झिथरा!  हट जा हमर डहर ले !" कपसिला बादल ,घुड़पुच्छ बादल ल कहिस,तब बोपरा घुड़पुच्छ बादल, सिरतोन वोमन के डहर ले तिरिया गय ।

"अरे टुटहा ! तँय फेर दिखऊ देय रे  !" कपसिला बादल, मन अबके पइत तहदार बादल मन ल ललकारे रहिन । तब वोहु बोपरा वो जगहा ले परा गय ।अब तो कपसिला बादल मन सुछिंधा होके, अगास म दिन भर, रंग -रंग के भेवा-स्वांग करत फिरत रहिन । 


            बेरा ढरक गय...दिन हर खसल गय ,तब अगास के एकठन कोनहा ले भृंग -करिया वर्षा मेघ बादल हर उदगरिस ।

" तहुँ आ गय रे कल्लू !"कपसिला बादल हर ललकारिस ।

"अरे चुप !ये कोनहा म दिन भर संकलात, मंय हर तुमन के ये ही ही बक बक ल देख लेय हँव। अब खिसको इहाँ ले,नहीं त मंय तुमन ल तोपत हँव ।" वर्षा मेघ बादल हर कहिस ,अउ सिरतोन म वो सब ल तोप दिस ।

टप टप तड़ तड़ तड़... तहाँ ले फेर रद  रद रद गिर के वर्षा मेघ मन धरती के पियास ल बुझाइन। नदिया -नरवा, ताल -तलैया मन ल भरत ,वोमन ल कई दिन लग गय ।


        अउ जब वोमन रुकिन, तब नानकुन नोनी नैना हर अपन,खोर मुँहाटी के खँचवा म कागज के डोंगा ल चलाइस ! बबा हर तो  घलव रमायन गाय के शुरू कर देय रहिस ।


           ... फेर ददा हर तो बड़ भिनसरहा ले उठ के नांगर अउ बईला मन ल लेके चल देय रहिस ।



*रामनाथ साहू*


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Saturday 10 July 2021

ममा गाँव अउ मोर गरमी के छुट्टी*-बलराम चंद्राकर

 *ममा गाँव अउ मोर गरमी के छुट्टी*-बलराम चंद्राकर


ममा गाँव के नाँव मा मुँह मा मँदरस घुरे बर धर लेथे।समय बहुत आगू सरक गेहे फेर सुरता पाछू खींचत रहिथे।नानकुन अमेठी गाँव। एक ठन तरिया। एकरे तीन मुड़ा पारे पार गाँव बसे हे। बीच मा कुर्मी यादव गोड़ अउ दोनों बाजू मा सतनामी समाज के आबादी के बहुलता। दाई के गुराँवट बिहाव होय रहिस।यानि फूफू हर मामी होय रहिस त दीदी काहन।गुराँवट वाले मामा हर, दाई के कका के अकेला बेटा। ये बात ला मैं थोकन बड़े होयेंव तब जानेंव। तीन झन मामा अउ रहिन दाई के सहोदर।सब के अलग अलग घर।हमर बड़े दाई घलो ममा गाँव मा बसगे रहिन अपन चार झन बेटा संग। सबो ले बरोबर प्रेम व्यवहार। फेर हमर आना- जाना गुराँवट वाले ममा घर ही होवय। मोर बर पूरा अमेठी गाँव  ममा मामी मन के बस्ती रहै।चाहे वो कोनों जात के होय। कई झन मामी मन केलौली करै देखै तहाँ, "थोकन ठड़ा हो भाँचा, पाँव परन दे।" अउ मैं भागँव। अब सुरता हा भावुक कर देथे। ममा गाँव मोर बर प्रेम के पिटारा रहे हे। कतको भूल-चूक ला बिसार के मया करैं। फेर समय बदल गेहे। जाना कम होथे। नवा पीढ़ी आ गेहे। बबा, ममा दाई, ममा, दुनिया मा नइ हे।आज सुरता के गंगा बोहावत हे। धन्य हे गुरुदेव! अइसन विषय मा लिखे बर प्रेरित करिन। 


ममा गाँव अउ गरमी के छुट्टी । सोच के सुरता के डोरी लाम गेहे। गरमी के छुट्टी मा ममा घर जाय बर लुकलुकाय रहन।मोर गाँव सड़कविहीन रहिस - सिसदेवरी।पथरिला अउ चिखलहा। चार पाँच महीना केवल पैडगरी रस्ता काम आवय। नहर के तीरेतीर। बड़ बिच्छलहा माटी ।अइसन मा ममा गाँव के बात निराला। आरिंग शहर ले लगे नरवा तीर अमेठी गाँव। महानदी गांव के खार ले लगे। बैलगाड़ी के जमाना रहिस। चउमास छोड़ के बाकी दिन मन मा साईकल घलो साधन बन जाय। कभू दाई सँन अउ कभू अवइया जवइया घर परिवार सँग ममा गाँव जाना होवय। सुंदर सपना के गाँव रहै ममा गाँव।बस ट्रक मोटर गाड़ी देखे बर मिलय। आरिंग सहर जाय बर मिलय।तरिया मा डुबकना अउ दिन भर बटन - चित्ती, तिरी- पासा, अट्ठा चंगा, रेसटिप, बिल्लस, आमा अमली,डंडा पचरंगा, भौंरा बाँटी, इही मन मा समय बितय।  ममा गाँव पहुंच के मोला बड़ हरहिंछा लगै ।आजाद हो जाँव। दू महीना बितै इहाँ ।बिट्टा घलो जाय कभू कभू ।काबर गजब पदोवँव। कूर्ता के बटन नइ बाँचय। बबा गोटानी धर के निकलय।"करम छाँड़ दिस, रोगहा- सारा , सफो बटन ला पूदक देहे।" हसिहा मा काटे के कारण सुतरी के सँग कूर्ता तको कतरा जवय।

कभू भगवान के फोटो के नकल करौं शीश मा। कभू तेल चुपरँव बबा ला। बबा ढेरा डोरी करै ।साथ देवँव ता खुश हो जाय। उन ला लगै कि मैं सीखत हँव बने पटवा ला आँटे बर। ममा दाई हँसमुख रहै हमेशा। बोलै कम फेर दिन भर घर के काम कमई अउ बबा के सेवा जतन के खियाल रखना। ममेरा भाई मन सब बड़े। पिठैंहा चढ़ना, तरिया मा डुबकना,भैया मन के कन्धा मा बइठ तरिया के आरपार होना। खजरी - वजरी के डर नइ रहै। मार मँझनिया भर गाँव भर के लइका मन सँग डुबकईच रहै।

एक दिन भैया मन आठ दस झिन सांझ कन आरिंग गिन महूँ उँकरे मन सन साईकिल मा बइठेंव। सब झन पइसा सकेल के टिकट खरीदिन फिलिम देखे बर। मोला रोवाय बर हरे कि सिरतोन ते, कहिंन "तैं बाहिर मा बइठे रहि, हमन पिक्चर देख के आवत हन।मैं रोये ला धर लेंव तब महूँ ला भितर लेगिन टाकिज के । मैं अचकचागेंव। पिक्चर परदा मा चलत हे कहिके नइ समझ मा आइस।सब साक्षात लगिस। आगू मा पटनी के लम्मा सीट रहिस उही मा बइठे रहेंन।जीयो और जीने दो - पहिली फिल्म देखेंव टाकिज मा अउ जिंनगी मा। इही मन ममा गाँव के विस्मित ना होने वाला सुरता हरे।


ममा के चार बेटा एक बेटी अउ वोकर मन के बीच मा मैं नानचुन। वो मन झगरा होय तो कभू नइ सुनें रहन तइसन गारी देवय।हमर गांव अउ ममा गांव के बोली मा थोरक अंतर रहै।कोनों कोनों ला परई कहै त कोनों कोनो ला कुरेड़ा ।गुड़ - शक्कर वाले पठेरा के तारा खुलै तब शक्कर खाय बर झगरा मातय।बुआ रोवय।


ममा के बड़े बेटा के बिहाव बखत के बात आय। पूरा घर सगा सोदर ले भरे रहै।महूँ दाई संघ गेंव अमेठी। आरंग खरोरा रोड ला डामर करे बर नरवा तीर मा डामर भरे ड्रम मन रखाय रहै। गरमी मा पिघल के बोहाय  रहै। घर लेगहूँ डामर ला कहिके दोनों हाथ ले डामर ला उठायेंव। नान नान कोंवर हाथ।दोनों हाथ हर फदफदागे अउ एक दूसर ले चिपकगे । रोवत  घर आयेंव। खूब गारी मार खायेंव।माटी तेल मा रगड़ रगड़ के बड़ मेहनत ले डामर ला निकालिन।नवा- नवा भौजी आय रहिन,  अभो मोर उपदरो ला सुरता कर के हाँसथे।बाद मा दू झन भइया के बिहाव एक साथ होइस। भौजी मन के मया घलो महतारी कस रहे हे। बड़ सुखद। 


बड़े होवत ले गरमी मा आना जाना रहै मामा घर।घर मा बहुत अकन भँइसी रहै।दूध निकलै वोला धर के आरिंग जाँव होटल मा दे बर। तुरंत पइसा नइ मिलै तब रोज एक शो विडियो देखँव। या टाकिज मा पिक्चर। कभू - कभू घर मा जेंन भौजी ला पइसा के जरूरत होवय आधा चुमड़ी धान ला अउ लाद दँय साइकिल मा। होटल मा नाश्ता पानी घलो पक्का हो जाय। गरमी के दिन हा अइसनो गुजरे हे।ममा के अपन दुनिया रहै। रोज आरिंग जाना अउ सांझ ले आना। पोठ किसानी रहिस ।नौकर चाकर के भरोसा खेती बारी। बबा अउ बुआ के जिम्मा ज्यादा रहै खेतखार अउ ब्यारा कोठार।

गांव के माहौल बड़ सुग्घर लगै। एक दूसर के घर उठना बइठना, हर दुख सुख मा साझीदार होना। दुआभेद हमर नजर मा कभू नइ देखेंन।एकर सेती ममा गांव के मधुर स्मृति आज भी मन मस्तिष्क मा अंकित हे। ममा गांव के सुरता हा मन ला सुख देथे, प्रफुल्लित कर देथे।  वो समय ला याद करे ले मन ला संजीवनी मिलथे।जिहाँ अभाव के नामोनिशान नहीं। उतयईल लइका रहेंव ।कोनों कोनों गलती अउ वो बेरा के पीरा दायक बात घलो अब मधुर स्मृति कस लागथे।

मँझला मामा के बड़े बेटा गांव के प्रभावशाली व्यक्ति रहिन। विजय गुरु मंत्री रहिन तब खूब चलै।जनपद सदस्य अउ सरपंच रहे हें। बारहवीं के परीक्षा के बाद ममा गांव मा मेंट के काम घलो करेंव।मस्टरोल बनावँव। मोर खर्चा के इंतजाम बढ़िया रहै।


बात बहुत अकन हे।गर्मी के छुट्टी मा ममा गांव के मजा मोर जिनगी के सुग्घर अनुभव हरे। जेन हमेशा मोला सुख देवत रइही।आजो सब ले सुंदर रिश्ता हे। फेर जाना आना कम हो गेहे। पीढ़ी बदल गेहे।बँटवारा- बँटवारा मा घर मन घलो बँट गेहे। सब ला रोजी रोटी के संसो। दुनिया के भागदौड के हिस्सा बन गेहें। कम पढ़े लिखे गांव फेर होनहार ममा के बड़े लड़का आज रायपुर शहर के बड़े उद्यमी मा गिनती आथे। जेन हा हमर लिए गौरव अउ ताकत हरे। मामा अउ मामा परिवार ला प्रणाम।  राजा मोरध्वज के नगरी अउ कौशल्या माता के मइके आरिंग- राम के ममा गांव, अउ ओकर सरहद मा अमेठी-मोर ममा गांव, सिरतोन मा मोर बर सुंदर सौभाग्यधाम।


*बलराम चंद्राकर भिलाई*