Sunday 4 July 2021

मोर प्राथमिक शाला के सुरता*-,नीलम जायसवाल

 *मोर प्राथमिक शाला के सुरता*-,नीलम जायसवाल


  *केम्प-एक* भिलाई के मशहूर 'बसंत टाकीज' के पाछू के बस्ती म एक,दू खोली के लकड़ी के घर म मँय आँखी खोलेंव। मोर बचपन भिलाई शहर के बीच मा शुरू होइस। बचपन बहुत साधन रहित रहिस, बड़े भाई ल पानी टंकी मेर बाल मंदिर पढ़े जावत देख के महूँ ल स्कूल जाए के सऊँख लगय। उही बाल मंदिर म मोर पिताजी घलो पढ़े रिहिन। मगर मोला उहाँ पढ़े के सौभाग्य नइ मिलिस। एक घाँव भाई संग एनुअल फंक्शन म गे रेहेंव, अउ उहाँ के चकाचौंध देख के मोहा गे रहेंव,तबले पढ़े जाय के जिद धर ले रहें हों। मगर मैं कभू बाल मंदिर नइ पढ़ेंव।

       मोर प्रथम गुरु मोर मांँ हरे, जे हा मोला घरे मा स्लेट पट्टी अउ कलम म हिंदी वर्णमाला अउ गिनती सिखो दे रिहीसे। ते पाय के मँय हर स्कूल जाय के आघू एक एक कन पढ़े-लिखे बर सीख गे रहे हौं।

  सब दाई-ददा कस, मोर् मां-बाप घलो हमन ल अच्छा स्कूल म पढ़ाए के सपना देखत रिहिन। मोला सुरता हे कि पिताजी मोला अउ भइया ल बड़े स्कूल में भर्ती कराय बर लेगे रिहिन, जिहांँ एक झन गुरुजी हमन ल अखबार के मोटे अक्षर म लिखाय शब्द ल पढ़े बर दीस, जेला हम पढ़ेन - 'नवभारत' अउ 'देशबन्धु', फेर अंग्रेजी वाले ल नि पढ़ पाएन। गुरुजी हा पिताजी सन का बोलिस नी जानव, मगर पिताजी हा, हमन ल घर ले आनिस अउ उहाँ भरती नइ करिस।

   ओखर बाद हमला तीन दर्शन मंदिर करा गवर्नमेंट स्कूल के पहिली कक्षा म भर्ती कराइस। एक घाँव रस्ता देखाए के बाद हमन दूनों भाई बहिनी एक दूसर के हाथ ला धरके अकेल्ला घर ले स्कूल अउ स्कूल ले घर आ जावन।

   नवा-नवा स्कूल जाए के खुशी अउ बने असन पढ़ई-लिखई के उत्साह बहुत जल्दी सिरागे। काबर कि स्कूल के कही ठिकाना नी रिहिस, पहिली ले पांँचवी तक के सबो लाइका मन एके ठन कुरिया म बइठँय,एके ठन श्यामपट्ट म सबो झन ल एके गुरुजी हा पढ़ावय।

  उहाँ एक झन गुरुजी, एक झिन बहिन जी अउ एक झिन बड़े गुरु जी रहँय, जे हर कभू-कभू दर्शन देवँय, गुरुजी आवँय त बहिन जी नदारद, बहिन जी आवँय त गुरुजी घूमे बर चल दँय।

  गुरुजी मन बर कुर्सी रहय, लइका मन भुइयां मां टाट पट्टी ऊपर बइठन। पढ़ई के त पता नहीं मगर घर काम करके जे नइ आवय ओला बेंत के डंडा म मार पड़़य, अउ मुर्गा घलो बनाए जाय।

  आधा छुट्टी मा खाए बर घर ले रोटी लावन, कभू कभू दस पइसा मिलय जे मा गुड़ पापड़ी,अउ नड्डा बिसा के खावन।

   पिताजी मिठई बेचे के धंधा करँय, हमर बड़े गुरुजी(झा गुरुजी),बिक्कट लालची रिहिन। उन हर हमर मन ले पूछँय कि आज घर मा का बने हवय अउ कोन से मिठई लाने हें, तहन संझा कुन घर पहुंँच जावँय, अउ माँग माँग के मिठई खावँय, अइसने ढंग के पहली दूसरी के दू साल पहागे।

    एखर बाद सन उन्नीस सौ चौरासी (1984) के गर्मी छुट्टी म हमर जिनगी म एक बड़े बदलाव आइस। पिताजी भिलाई के दूसरा छोर मरौदा में घर खरीदिन अउ हमन सब झन उहें रहे बर चल देन, घर माटी के रहिस छानी खपरा के, हाँ पहली ले ज्यादा बड़े अउ रोड ऊपर, मगर मरौदा म ज्यादा घर नी रिहिस, चारो कोती खुल्ला मैदान रहय। बिजली पानी के व्यवस्था नइ रहिस, पूरा गर्मी छुट्टी नवा घर के छबाई सफाई म नहक गे। स्कूल खुले के बेरा नवा स्कूल म मरोदा च म भर्ती होएन।

    ए दरी स्कूल प्राइवेट रहय, दू ठन फट्टा के कक्षा रहय,अउ दू-तीन ठन माटी के खपरैल वाले कुरिया। अउ बड़े जन खेल के मैदान रहय। उहां हमन दूनों भाई बहिनी तीसरी कक्षा म भर्ती होएन, अउ मोर छोटे भाई पहिली मा। नवा स्कूल म बइठे बर बेंच अउ बस्ता धरे बर टेबल रहय। हमन तीनो भाई बहन रेंगत एक किलोमीटर दूर स्कूल जावन।

   इहांँ एको झन बहिनजी नइ रहिन।अउ गुरुजी मन ल 'सर' कहे जाय। स्कूल म गुरुकुल सहीं माहौल रहै,अउ जम्मो सर मन अपन-अपन कक्षा ल शिक्षा सँग संस्कार घलो देवंँय‌। इहांँ खेलकूद के संगे संग सांस्कृतिक कार्यक्रम, नैतिक शिक्षा, धार्मिक अउ ऐतिहासिक जानकारी तको मिलय।

  ये स्कूल हर हमर जिनगी के नीँव ल गढ़े के काम करिस, जेन शिक्षा इहांँ मिलिस ओ ह जिनगी सँवारे बर रहिस।मँय आज जेन ज्ञान पा सके हंँव, ओखर बर मोर स्कूल "शहीद स्मारक प्राथमिक शाला मरोदा" के बहुत बड़े योगदान हे।

   मोर कक्षा शिक्षक राजा राम यादव जी, पीटी अउ खेलकूद प्रभारी चौधरी सर, सांस्कृतिक विभाग के बघेल सर, अउ मोर पसंदीदा गुरुजी मौर्या सर जी मन के शिक्षा मोर जिंदगी ला गढ़े बर महत्वपूर्ण भूमिका निभाइस। मँय अपन प्राथमिक शाला अउ प्राथमिक शिक्षक मन ल कभू नइ भुला सकँव।जिंँखर छत्र-छाया म शिक्षा के संग प्रतिभा निखारे के सुखद संयोग घलो मिलिस।

        बिजली पंखा नइ होय के सेती, हमन बड़े फजर चार बजे उठन अउ माटी तेल के दीया के अंजोर म पढ़न।दू घंटा सुबे,अउ दू घंटा रतिहा कुन सूते के पहिली पढ़ई करना हमर रोज

  के काम रहय। मंँय पढ़े-लिखे मं हुसियार रहेंव,अउ दूसर कृयाकलाप म घलो भाग लेवँव। माँ-पिताजी के सहयोग अउ गुरु मन के शिक्षा ले, मोर जेन रूप बनिस तेखर ले सब झन बहुत प्रभावित होंय,अउ मँय ह सबके लाडली रहंँव। 

     हस्तकला के परीक्षा म,मांँ के सिखोए माटी के आमा-अमली बना के देखावँव। छब्बीस जनवरी,पन्द्रह अगस्त म पिताजी के सिखोए चुटकुला सुनावँव,त सब झन बहुत तारीफ करंँय। इही पाय के गुरुजी मन के संगे-संग हमर सीनियर विद्यार्थी मन घलो मोला बड़ दुलार करँय।

    मोर जिनगी म स्कूल के सुनहरी याद के बहुत प्रभाव हे। हमर पढ़़ते-पढ़त स्कूल के बड़े बिल्डिंग बनिस। आज तको जब भी ओ रद्दा ले नहकथौं त स्कूल के दर्शन करके मोला बहुत खुशी मिलथे।

     अब हमर स्कूल हिंदी माध्यम के 'शहीद स्मारक' ले बदल के अंग्रेजी माध्यम के 'भिलाई पब्लिक स्कूल' बन गे हवय। मगर हमर प्राथमिक शाला के याद हमर मन म हरदम रही।


नीलम जायसवाल, भिलाई,दुर्ग, छत्तीसगढ़।

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