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*बादर/नान्हे कहिनी*-रामनाथ साहू
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रामनाथ साहू
अगास म रंग- रंग के बादल मन दिखत रहिन ।थोर -थोर कुटी- कुटी तहदार बादल मन त, कनहुँ -कनहुँ जगह म घोड़ा पूछी जइसन दिखत घुड़पुच्छ बादल...
फिर यह सब बन के ऊपर म, पोनी के बड़े-बड़े ढेरी मन असन कपसिला बादल मन के कतेक न कतेक खेप ।नील वरन चिलकत अगास म ये सादा बादर मन के नाचा-कुदा हर देखे के लइक रहिस। ये बादर मन कभु इतरात येती जाँय, त कभु वोती । कभु हाथी -घोड़ा असन दिखें त कभु महला- सतमहला बन जाँय। वोमन तो कभु - कभु सुरुज ल घलव तोप देंय । दिन भर येमन के अइसन येती -वोती धमा- चौकड़ी चलत रहिस ।
" हरे ये झिथरा! हट जा हमर डहर ले !" कपसिला बादल ,घुड़पुच्छ बादल ल कहिस,तब बोपरा घुड़पुच्छ बादल, सिरतोन वोमन के डहर ले तिरिया गय ।
"अरे टुटहा ! तँय फेर दिखऊ देय रे !" कपसिला बादल, मन अबके पइत तहदार बादल मन ल ललकारे रहिन । तब वोहु बोपरा वो जगहा ले परा गय ।अब तो कपसिला बादल मन सुछिंधा होके, अगास म दिन भर, रंग -रंग के भेवा-स्वांग करत फिरत रहिन ।
बेरा ढरक गय...दिन हर खसल गय ,तब अगास के एकठन कोनहा ले भृंग -करिया वर्षा मेघ बादल हर उदगरिस ।
" तहुँ आ गय रे कल्लू !"कपसिला बादल हर ललकारिस ।
"अरे चुप !ये कोनहा म दिन भर संकलात, मंय हर तुमन के ये ही ही बक बक ल देख लेय हँव। अब खिसको इहाँ ले,नहीं त मंय तुमन ल तोपत हँव ।" वर्षा मेघ बादल हर कहिस ,अउ सिरतोन म वो सब ल तोप दिस ।
टप टप तड़ तड़ तड़... तहाँ ले फेर रद रद रद गिर के वर्षा मेघ मन धरती के पियास ल बुझाइन। नदिया -नरवा, ताल -तलैया मन ल भरत ,वोमन ल कई दिन लग गय ।
अउ जब वोमन रुकिन, तब नानकुन नोनी नैना हर अपन,खोर मुँहाटी के खँचवा म कागज के डोंगा ल चलाइस ! बबा हर तो घलव रमायन गाय के शुरू कर देय रहिस ।
... फेर ददा हर तो बड़ भिनसरहा ले उठ के नांगर अउ बईला मन ल लेके चल देय रहिस ।
*रामनाथ साहू*
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