Saturday 17 July 2021

बादर/नान्हे कहिनी*-रामनाथ साहू

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         *बादर/नान्हे कहिनी*-रामनाथ साहू

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रामनाथ साहू

          


     अगास म रंग- रंग के बादल मन दिखत  रहिन ।थोर -थोर कुटी- कुटी तहदार बादल मन त, कनहुँ -कनहुँ जगह म घोड़ा पूछी जइसन दिखत घुड़पुच्छ बादल...


             फिर यह सब बन के ऊपर म, पोनी के बड़े-बड़े ढेरी मन असन कपसिला बादल मन के कतेक न कतेक खेप ।नील वरन चिलकत अगास म ये सादा बादर मन के नाचा-कुदा हर देखे के लइक रहिस। ये बादर मन कभु इतरात येती जाँय, त कभु वोती । कभु हाथी -घोड़ा असन दिखें त कभु महला- सतमहला बन जाँय। वोमन तो  कभु - कभु सुरुज ल घलव तोप देंय । दिन भर येमन के अइसन येती -वोती धमा- चौकड़ी चलत रहिस ।

" हरे ये झिथरा!  हट जा हमर डहर ले !" कपसिला बादल ,घुड़पुच्छ बादल ल कहिस,तब बोपरा घुड़पुच्छ बादल, सिरतोन वोमन के डहर ले तिरिया गय ।

"अरे टुटहा ! तँय फेर दिखऊ देय रे  !" कपसिला बादल, मन अबके पइत तहदार बादल मन ल ललकारे रहिन । तब वोहु बोपरा वो जगहा ले परा गय ।अब तो कपसिला बादल मन सुछिंधा होके, अगास म दिन भर, रंग -रंग के भेवा-स्वांग करत फिरत रहिन । 


            बेरा ढरक गय...दिन हर खसल गय ,तब अगास के एकठन कोनहा ले भृंग -करिया वर्षा मेघ बादल हर उदगरिस ।

" तहुँ आ गय रे कल्लू !"कपसिला बादल हर ललकारिस ।

"अरे चुप !ये कोनहा म दिन भर संकलात, मंय हर तुमन के ये ही ही बक बक ल देख लेय हँव। अब खिसको इहाँ ले,नहीं त मंय तुमन ल तोपत हँव ।" वर्षा मेघ बादल हर कहिस ,अउ सिरतोन म वो सब ल तोप दिस ।

टप टप तड़ तड़ तड़... तहाँ ले फेर रद  रद रद गिर के वर्षा मेघ मन धरती के पियास ल बुझाइन। नदिया -नरवा, ताल -तलैया मन ल भरत ,वोमन ल कई दिन लग गय ।


        अउ जब वोमन रुकिन, तब नानकुन नोनी नैना हर अपन,खोर मुँहाटी के खँचवा म कागज के डोंगा ल चलाइस ! बबा हर तो  घलव रमायन गाय के शुरू कर देय रहिस ।


           ... फेर ददा हर तो बड़ भिनसरहा ले उठ के नांगर अउ बईला मन ल लेके चल देय रहिस ।



*रामनाथ साहू*


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