Saturday 24 July 2021

मोर गांव के मड़ई -गीता साहू

 मोर गांव के मड़ई -गीता साहू

         कोई ईही हजार दू हजार मनखे मन के छोटकुन गांव , न कोई नदिया- न कोई पहाड़ ,सपाट मैदानी  इलाका , जिंहा भूले से भी कोन्हों  बघवा -भालू कभू नइ भटके, न कोन्हो चोर-डाकू के डर ,जइसे कि सिनेमा मन म देखथन, अऊ न ही जाति- पांति या ऊंच-नीच  के  कोन्हों झगड़ा । गांव म बईठारे सीतला माई अऊ माता कौशिल्या  के नानकुन मंदिर ,वहू ह चारों कोती ले खुल्ला तेकरे आशीष म इंहा सबे अपन -अपन जगह  म राजी-खुशी से हावे । नवा पीढ़ी के लइका मन ,जय गुरुदेव कहिके गांव ल सुघ्घर आदर्श ग्राम घलो बना डरे हे ,जेकर नांव बंगलौर तक म लिखाय हवे । नांदगांव शहर ले बीस किमी म बसे ए गांव मोर खुशी के घर आए , इंहा के माटी म पले -बढ़े मैं ,माटी म मिले के  बेरा तक इंहा के सुरता म ममहावत रही ।

        मोर गांव कहत हंव त आज मोला एक कनिक ठिठके  ला पड़ीस, काबर मैं तो बेटी अंव, इंहा ले बिदा होय तो तीस साल होवत हे  ,ता मोर गांव कइसे ? अब तो ससुराल ही मोर गांव आय । नहीं , आप मन ल जौन कहना हे , कहत रहंव ,मोर तो दूनो गाँव आय ,जिंहा मैं सुघ्घर सुघ्घर सपना देखेंव ,वो सपना म, मोर सबो अपन ह रिहिस ,वो अपन के ही तो आशीष आय कि मैं आज हांसत गोठियात इंहा के गाँव म घर परिवार संग अपन सपना ल सुघ्घर जियत हंव , त दूनों मोरेच गांव तो आय का ?  पर बात मड़ई के होत हे ,ता आज तक अपन ससुराल के ना तो हाट बाजार गे हन और ना ही इंहा के मड़ई  देखे के समय निकाल पाए हन ,न कभु सोच पाए हन ,त बाच गे मोर मइके के गाँव के मड़ई ,आने मोर गांव के मड़ई ।

        मोर गांव के मड़ई काय ये एक ठन बड़े कस्बा के बाजार तो रहिस हे,पर हां मिठई दुकान अऊ रहटोली अऊ एक ठन झूला ,जे गोल गोल घुमे ,बस उपराहा राहय । आज सोचत हंव कि ये मड़ई म का अइसे बात रहीस है कि हमन सब झन गांव पहिली ले ही अमर जान ,चाहे परीक्षा हो या कुछु और , इंहा तक कि नौकरी में आय के बाद भी डेढ़ -दो सौ किलोमीटर के सफर ला करके अपन गांव के मड़ई  ल देखे बर आय- आय हन। सबर दिन गांव ले बाहिर रहे हन त गांव के मड़ई ह घर आय के बढ़िया बहाना रहे ,दाई ददा के संग म सबो सियान मन सन भी मिलई जुलई हो जाय । घर सगा सोदर से भरे राहय ,ऊपर ले नाचा वाले मन अऊ पुलिस दरोगा मन के कबीरपंथी भोजन भी हमरे घर म रहे काबर कि हमर बाबूजी ह गांव के पटेल रहिस हे , वतका बड़ घर ,तभो ले अंगना-द्वार तक ह भरे रहे । 

        गांव के मड़ई एके दिन के का ,एके जुवार के ही राहय ,फेर हमन ह दू तीन घांव ले किंजर डारन  , काबर कि दुकान मन ह सबेरे ले लगे के शुरु हो जाय रहे , विश्राम भैय्या के मिठई -दुकान लग चुके रहे , ये विही विश्राम भैय्या आय जेन ह नांदगांव म भोले कुल्फी वाले के नाम से फेमस राहय ,वोकर कुल्फी के मिठास,आज भी  मुंह म भरे हवे । ऊंहा बईठ  के हमन चाय भी पीयन,अऊ निकलत गरमागरम जलेबी ल भी खाय हन । जेन भैया खर्चा कर सके वोकर जेब ल खाली करवावन  । भैय्या मन के संगवारी मन संग हमरो सहेली मन  भी आय -आय हे । मनियारी ल भी हमन दिने म ही खंगाल डरन । दिनमान के मड़ई लईका -लईका जान त साझकुन सबो भाभी -काकी मन संग जान , पहाती जुवार  नाचा  दिखाय बर हमर बड़े भैय्या भाभी हमन सबो लोग लईका ल उठा के लेगे ,मटेवा वाले नाचा के हमर गाँव म बहुत मांग रहे ऊहू म चरण दास चोर के ही गम्मत ल सब जादा पसंद करे ।आज के धांधली ल देखावत बड़ सुघ्घर गम्मत ,पर सबो ल भुला गे रेहेव कि भाई घनश्याम के नाटक ल देखेव  , त सोचे ल पड़ीस कि कतिक उद्देश्य परक रहिस नाचा संस्कृति के गम्मत  मन ह ।  

              आज भी गांव -मड़ई के नेवता आथे ,पर अतका दूरिहा मैं अब कहां जा पाहूं , अऊ जांहू भी तो अपन बीते कल ल सुरता करत रही जहूं ,तेकर ले इंही कर ले सुरता कर लेवत हंव ।

              श्रीमती गीता साहू

                 21.07.2021

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