Saturday 17 July 2021

कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस : पोखन लाल जायसवाल

 कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस : पोखन लाल जायसवाल 

         

        मनखे अउ कला एक-दूसर के बिगन अधूरा जनाथे। मनखे जनम ले कला प्रेमी होथे। लइकापन म लोरी सुनत गहिर नींद म सुतना गायन के प्रति हमर प्रेम ल बताथे। लोरी गावत थपकी मारना वादन के सरूप माने जा सकत हे। खेल खेलौना लइका मन के मनोरंजन बर घात जरूरी आय। रकम रकम के खेलौना बनाना घलव कला के बात आय। मनखे अपन रुचि के मुताबिक कोनो भी काम ल बड़ मन लगा के करथे, अउ सरलग करे ले ओला महारत हासिल हो जथे। मनोरंजन अउ जरूरत के कारज ल बने सफई ले करना तो कला आय। कला एक साधना ए कहे जा सकत हे। जे सबो ले सध जय जरूरी नइ हे। कोनो ले कोनो कला सधथे, त कोनो अउ ले कोनो दूसर कला ह सध पाथे। जिनगी जीना घलव कला च आय। कतको दुख के पहाड़ राहय, कई मनखे जिनगी ल हाँसत-हाँसत गुजार देथें। ओकर जिनगी म कतका दुख हे बाजू वाले ल गम नइ मिलय। आरो नइ लगन दय। खैर ए तो जिनगी के बात ए। सबके अपन जिएँ के तरीका होथे। कोनो काहूँ म मगन सहीं, सब कुछु न कुछु म मगन रहिथें। 

       हमर तिरतखार म कतको कला साधक हें, जउन मन ल चित्रकारी, गायकी, संगीत, नाच (नृत्य), मूर्ति बनई, लेखन, अभिनय, जइसन कतको कला म पहचान मिले हे अउ नवा मन पहचान बनाय के उदिम करत हावँय। 

        कतको झन अइसे घलव हे जेन मन ल कला के दम ले अतेक पहचान मिले हवँय कि उँकर शोर दुरिहा दुरिहा तक अइसे बगरे हवँय म, जइसे बटोही मन ल रद्दा बाट के बर (बरगद) के आरो रहिथे। उँकर पहचान उँकर कला के पूर्णता ले होथे। कला के प्रति समर्पण होथे।उँकर बेवहार ले होथे। जउन उन ल कला के बरगद माने बर मजबूर करथें। उही बरगद जउन अपन विशालता ले अपन तिर अवइया जम्मो जीव ल आसरा देथे। थके-हारे बटोही ल घाम-प्यास म जुड़ छाँव देथे। चिरई-चिरगुन मन के हरियर डारा-पाना के बाँह पसारे सुवागत करथे। उन ल अपन विशाल हिरदे म अपन विस्तार करे बर पूरा जगहा देथे। कतको छोटे बड़े चिरई-चिरगुन एकर विशाल छाती म जगहा पा बड़ प्रेम ले अपन डेरा बनाके रहिथें। चिटरा मन पुच-पुच कूदत-छाँदत फिलिंग म चढ़ के अपन खुशी के इजहार करथे। इही तरहा कला के बरगद अपन विशालता ले सबो छोटे-बड़े नवा कलाकार मन ल समोखे पूरा उड़ान भरे के मौका देथे। कला के बारिकी सिखाथे। कला म माहिर होय के आस जगाथे। कोशिश करथे कि नवा कलाकार मन ल कला के खुल्ला अगास मिले। जिहाँ नवा तारा (सितारा) बन के अपन चमक बिखेर सकँय। नवा पीढ़ी बर नवा आसरा के बरगद बन सकँय। उँकर कला ल आगू बढ़ा सँकय। कला के बरगद अउ नवा कलाकार दूनो ल चाही कि दूनो समभाव ले एक-दूसर के कला के सम्मान करँय। गुरु के गुरुता रहय अउ दूनो के मन म कोनो तरहा के गुमान झन आय।

       अइसे देखब म आथे कि बरगद के छाँव तरी कोनो अउ किसम के पौधा नइ पनपे। जउन ल लोगन मन बने नइ मानँय, जउन ठीक नोहय। हो सकत हे बरगद के विशालता ले नवा पौधा ल भरपूर घाम-पानी नइ मिल पावत होही, जउन पौधा के बाढ़ खातिर जरूरी आय। यहू हो सकत हे कि बरगद अपन विशाल छाँव ल कोनो एक दू ठन/झन ल नइ देना चाहय। इही पाय के आने पौधा रोप नइ पावय। बरगद के छाँव बरसा पानी अउ घाम म गाय-गरवा मन बर बरदान साबित होथे। एकरे आसरा पा के गाय-गरू मन इहें सुरताय के उदिम करथे। लइका मन एकरे छाँव म गिल्ली-डंडा, भँवरा-बाँटी, बिल्लस खेलथे अउ अपन जिनगी म आनंद के मदरस घोरथें। कतको घुमंतू जाति के लोगन भूलत भटकत इही छाँव तरी रात बिताए के थिर बाँह पाथे। दिनभर अपन पुस्तैनी मेहनत मंजूरी कर जीविका चलाथे। अइसन ढंग ले बरगद दीन-हीन अउ उपेक्षित मन के हित खातिर समर्पित लागथे। अइसन परोपकार के भाव कला बरगद म होना बहुते जरूरी हे। तभे नँदावत जात कतकोन कला ल नवा जिनगी मिलही। संरक्षण के संग बढ़ावा मिले ही नेवरिया कलाकार के आस पूरा होही। छोटे-बड़े कला साधक के आत्मविश्वास बाढ़ही। जेन ए भरोसा नइ दे पाही, जेन सिरिफ अपन चिंता करहीं, अइसन कला के बरगद के होना अउ नइ होना, कोनो काम के नोहय।

           बरगद डारा-पाना ले जतका विशालता पाथे, ओतके मजबूत जड़ ले भुइँया म दम दम ले खड़े रहि के सब ल सहारा देथे। जउन किसम ले नान्हें लइका बाप के छाती म खेलत, पीठ म घुड़सवारी करत इतराथे अउ बाप लइका ल बाँह म उठा अपन छाती चौड़ा करथे, लइका अउ इतराँय लगथे, अपन भाग ल संहराँथे। बाप अपन अशीष दुलार के छाँव म लइका ल सजोर करत आगू बढ़ाय के उदिम करथे। वइसने बरगद अपन तरी आसरा पवइया ल बरोबर अशीष देथे। कला के बरगद कला संसार के बाप ए त नवा कलाकार उँकर अशीष दुलार के छाँव म सजोर होवत अउ छाती म नचइया कुदइया लइका आय, जउन बिधुन होके खुशी मनाथे। ओला अतका आस रहिथे कि बाप ओला कभू गिरन नइ देवय। यहू देखब म मिलथे कि एकाध बाप अइसे घलव मिलथे जउन बाप धरम ल बरोबर नइ निभाय। त का लइका जिनगी रुक जथे? नइ न? वइसने कला के बरगद म एकाध बरगद धान के खेती म उपजे काँद-दूबी सहीं होथे। जउन धान के बढ़वार ल बाधित तो करथे फेर जादा प्रभावित नइ कर पाय। जरूरी हावय कि धान के जतन सहीं नवा कलाकार अउ उँकर कला के पोषण करे जाय। कला के बरगद के संग कला प्रेमी समाज ल घलव अपन भूमिका निभाय ल परही, तभे नवा कलाकार के आस पूरा होही अउ खुल्ला अगास म अपन उड़ान भर पाही।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

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