Thursday 22 July 2021

मोर गाँव के मँड़ई -ओमप्रकाश साहू अंकुर


 

मोर गाँव के मँड़ई -ओमप्रकाश साहू अंकुर


 मनखे ह सामाजिक परानी(प्राणी) हरे .समाज म रहिके मनखे ह अपन सुख -दु:ख रुपी जिनगी के गाड़ी ल चलाथे. हमर जिनगी म मँड़ई -मेला के गजब महत्व हे. मड़ई के माध्यम ले हमन सगा -सोदर अउ सँगी -साथी मन ले मिलथन. अपन जिनगी ल चलाय बर हमन अपन- अपन काम- बुता म लगे रहिथन. घर -दुवार तक सीमित रहिथन. काम -बुता अउ घर -गृहस्थी के सँगे सँग समाज म मेल जोल घलो जरुरी हे.  हमन ह सिरीफ घर -गृहस्थी तक ही सीमित रहिके अपन जिनगी ल बने ढंग ले नइ चला सकन. सुग्घर जिनगी जीये बर चार झन सँग  बइठे- उठे ल पड़थे. हमन समाज म रहिके अपन जरूरी चीज मन ल पूरा करथन. मँड़ई के माध्यम ले हमर कतको जरुरी चीज ह पूरा होथे. 


  सुरगी - एक नजर 


 हमर गाँव सुरगी ह राजनांदगॉव ले अर्जुन्दा मार्ग म राजनांदगॉव ले 13 किलोमीटर दूर हे. खरखरा नदी के किनारे म बसे हे हमर गाँव सुरगी ह. येहा राजनांदगांव जिला के बड़का गाँव मन म शामिल हवय . येहा विधायक आदर्श गाँव हरे. हमर छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुखिया डॉ. रमण सिंह जी ह ये गाँव ल विधायक आदर्श गाँव के रुप म गोद ले रीहिस. सुरगी म राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र ,कृषि अनुसंधान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, दू ठक पेट्रोल पम्म अउ पुलिस चौकी हे. इहां अंग्रेज जमाना म प्राथमिक स्कूल खुल गे रीहिस हे. सन 1961 म हाईस्कूल शुरु होगे रीहिस हे. हमर गाँव ह" छै आगर छै कोरी" तरिया बर प्रसिद्ध रेहे हे . दसमत कैना प्रसंग के संबंध ये गाँव ले जुड़े हवय. आजो इहां दर्जन भर तरिया हवय. सुरगी साहित्य अउ कला बर घलो प्रसिद्ध हे. साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के मंच म प्रदेश के दर्जन भर बड़का साहित्यकार मन इहां पहुंच के अपन विचार ल साझा कर चुके हे. "सुरंग" रहे ले  हमर गाँव के नाँव "सुरगी "पड़े हे. ओड़ार बांध (टप्पा) ले सुरंग के स्रोत कहे जथे. अइसन जन श्रुति हे. एक बार साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के वार्षिक सम्मान समारोह म पहुंचे माई पहुना श्रद्धेय संत कवि पवन दीवान जी ह "सुरगी " के व्याख्या अइसन करे रीहिस हे - "सुर" माने "देवता "अउ "गी "माने "गाँव". मतलब" देवताओं का गाँव सुरगी " .


अँचल के पहिली मँड़ई 


कोनो भी गाँव -शहर के मँड़ई -मेला एक तय दिन म होथे. हमर गाँव सुरगी (राजनांदगॉव) के मँड़ई देवारी तिहार मनाय के बाद जे पहिली शनिवार पड़थे वोमा मनाय जथे. ये दृष्टि ले हमर गाँव के मँड़ई ह अँचल के पहिली मँड़ई होथे. मोंहदी(बालोद जिला) मड़ई ह  देवारी तिहार मनाय के बाद पहिली इतवार के होथे. 

देवारी तिहार मनाय के बाद हमन ल मँड़ई के अगोरा रहिथे. अपन सगा -सोदर मन ल नेवता देथन. सगा मन ल घलो हमर गाँव के मड़ई के गजब अगोरा रहिथे. काबर कि देवारी तिहार मनाय के बाद शनिवार के मनाय जाथे. ये समय सब के मन अपन सगा संबंधी से मिले -जुले बर होथे. सुग्घर ढंग ले देवारी -मिलन हो जथे. मँड़ई के बहाना एक दूसरा ले मिल के सुख -दु:ख के बात ल आपस म बाँटथे. 

हमर गाँव के शनिच्चर मड़ई ह पुराना बस स्टेण्ड के उत्तर दिशा म बाजार चौक म होथे. इही जगह हमर गाँव के मुख्य सांस्कृतिक मंच घलो हे जेमा नाचा, सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन होथे. फेर कोरोना के चलते ये बार के मड़ई ह मंगल बाजार चौक अउ स्टेडियम म रखे गे रीहिस  .हमर गाँव के राउत मन ह मोंहदी मड़ई माने के बाद गरुवा मन ल फिर से चराय बर जाथे. 


मँड़ई - 


मँड़ई -मेला म मँडई के गजब महत्व हे. येखर बिना मँड़ई ह पूरा नइ होवय. मँड़ई ह बड़का बाँस ले बनाय जथे. येला तोरन -पताका, मयूर पंख, घुंघरु, कौड़ी जइसन जीनिस ले सजाय जथे. राउत अउ गोंड समाज के मन ह ईष्ट देवता के पूजा करके मँड़ई ल लाथे. अपन समाज के मुखिया घर सकलाथे. फेर सबो झन सुग्घर नाचत अउ दोहा पारत गाँव के सरपंच, पटेल अउ दू -चार झन मुखिया के अँगना म जाके परघाथे.  मुखिया मन ह राउत समाज ल स्वेच्छा से रुपया -पैसा दान देथे. फेर मँड़ई म आके नँगत नाचथे -गाथे. दुकान दार मन ल जोहारथे अउ खुसी -खुसी वहू मन राउत समाज ल पैसा देथे. राउत मन सुग्घर दोहा पारके दान दाता मन ल आशीष देथे.


राउत मन के पहनावा -


राउत मन के पहनावा ह गजब सुग्घर लगथे. धोती -कुर्ता पहने ,मूंड़ म पागा बाँधे ,कलगी लगाय, कमर ल पटका मा बांधे, अपन शरीर म रस्सी के माध्यम ले मयूर पंख, कौड़ी, घुंघरू ल पिरो के पहने रहिथे. पांव म घलो घुंघरु पहनथे. लौठी ल घलो बढ़िया किसिम -किसिम ढंग ले सजाय रहिथे. राउत मन ह लाठी के माध्यम ले अपन शौर्य के प्रदर्शन घलो करथे. बिधुन होके बाजा बजावत, दोहा पारत, नाचत जब लउठी ल घूमाथे अउ मँडई ल लहराथे त देखइया मन के मन ह घलो झूमे ल लगथे. 


  नाना प्रकार के दुकान -


  हमर गाँव के मँड़ई म मिठाई दुकान वाले अउ कुछ दूसरा व्यापारी मन ह शुक्रवार के संझा -रात तक पहुंच के अपन बर ठीहा पोगरा लेथे. मिठाई  दुकान के संगे सँग कपड़ा -लत्ता,  बर्तन दुकान,सोना चाँदी  के दुकान मनियारी दुकान,जूता- चप्पल दुकान ,लईका मन के खिलौना दुकान,  नाश्ता-चाय दुकान, फल दुकान, झूला, रहचुली, फुग्गा वाले, चॉट -गुपचुप दुकान, गन्ना वाला, सूपा, चरिहा, टुकनी, झाड़ू, के सँगे सँग साग -सब्जी के पसरा लगे रहिथे. बाजार ठेकेदार ह दुकानदार मन ले पैसा वसूलथे. हमर गाँव के सँगे आस- पास के गाँव के मनखे मन अउ दूर -दराज ले रिश्तेदार मन ह आके मँड़ई के शोभा बढ़ाथे. जरूरत मुताबिक मनखे मन किसिम -किसिम के चीज खरीदथे. नान्हें लइका मन झूला अउ जवान मन रहचुली के मजा लेथे. माई लोगन मन के मनियारी अउ सोना चांदी के दुकान डहर गजब भीड़ रहिथे. वोमन ह माला,खिनवा,बिछिया ,सांटी, करधन के सँगे सँगे टिकली -फुंदरी खरीदथे.

मँड़ई म दुकान वाले मन किसिम -किसिम ढंग ले चिल्लाके अपन सामान ल बेचथे. कुछ दुकान वाले मन पोंगा रेडियो के माध्यम ले घलो रिझाथे. एक्का -दुक्का  दुकान वाले मन विशेष रुप से उद्घोषक घलो रखथे. रँग -रँग के बात बताके, लोक गीत अउ फिल्मी गीत सुना के अपन दुकान के सामान ल बेचे के कोशिश करथे. मँडई म सब मन ल उछाह रहिथे. पर जवान अउ लईका मन के बाते अलग रहिथे. ऊंकर मन के खुशी ह देखते बनथे. 

 मँडई म आस -पास के सँगे सँग दूर रहवईया सँगी -साथी अउ जान -पहिचान वाले मन सँग भेंट होथे त गजब खुशी होथे.रात होथे त  मँड़ई म जवान लईका मन के भीड़ ह बढ़ जथे. ये समय सियान मन ह घूम -घाम के घर आ गे रहिथे. 


  मनोरंजक कार्यक्रम -


  रात म मनखे मन के मनोरंजन करे बर मुख्य सांस्कृतिक मंच म कोनो साल नाचा त कोनो साल लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन करे जथे. नाचा अउ लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम ले जनता जनार्दन के जिहां मनोरंजन होथे. त दूसर कोति अपन समृद्ध लोक संस्कृति ले परीचित घलो होथे. ये प्रकार ले 

मँड़ई के बहुतेच महत्व हे. येहा खुशी के प्रतीक हरे. 


              ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

     सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़) 

  मो.  7974666840

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