ममा गांव अऊ मोर गर्मी के छुट्टी -गीता साहू
छत्तीसगढ़ मां शिवनाथ अऊ पैरी नदी जे कना मिलथे, ऊंहा ले मोर ममा गांव तीरेच म ही हावे । बाढ़ -पुरा ल देखे मोर ममा- परिवार मा सुमित्रा, लक्ष्मण ,शंभू ,शाम के संग म अयोध्या ह घलो नांव के रुप म सुघ्घर धराय हवे । जइसन नांव वइसन गुण ला समोय नियम धरम अऊ मेहनत के संग आगू बढ़े मोर ममा- परिवार के नांव घलो पहिली ले बड़ बाढ़िस हे । बेरा मा कोन्हों काम ला कइसे सकेलना हे ऐला हमर ममा परिवार म सीखे ला मिलथे । ऊंकर बइठई -उठई ला छोड़ दे ,खवई -पीयई अऊ संझा पाठ तक ह बेरा मा होय । जिंहां संझा पाठ म बईठना सब ला जरूरी रहे, वहीं खाय के बेरा गोठियाना एकदम मना रहीस हे । लीम के दातुन करे हमर नाना -नानी ला खाए पिए में आखिरी बेरा तक कुछू समस्या नई आईस ।भाई बहिनी में सब ले नान्हे मैं , तभो ले अपन नाना नानी ला जानथव ,काबर कि उमन सौ बछर ले जादा जिये -जिये हे, उपर ले दुनो परिवार के अवइ- जवइ लगे रहे त, सबो सुरता ह अइसे हे ,जइसे अभी अभी के बात आय ।
गर्मी के छुट्टी बिताए बर ममा गांव हमन कभू कभार ही गे हन ,फेर अइसे अवई-जवई ह हरदम लगे रहे , काबर कि दू चार साल ल छोड़ के बाकी सबो पढ़ई ह नांदगांव म ही होय हे , अऊ इंहा ले मोर ममा गांव ह कोई आठ दस किमी ही होही ,ममा के बेटा मन ह भी पढ़े बर रोज नांदगांव आय -जाय । हमर घर ह चौके ऊपर रहिस हे ,तेकर सती मेल मिलाप भी कुछ जादा ही रहिस हे ।
गांव वाले दर्जी ममा के पांच झन बेटाच बेटा रहीस हे।हर राखी म ममा मन के राखी संग म मोरो राखी सबो भैया मन बर तिहार के पहिली पहुचावो । कोई चौदस पुन्नी के दिन होगे त राखी ल बांध के घलो आय -आय हो ,या फेर कभू -कभु कोई भैया ह राखी म हमर गांव घलो आ जाए ,पर ऐ सब बीते दिन के बात आए पर ऐ अइसन सोनहा तिहार आय जेमे मोर भैया मन के संग मे ईहु भैया मन के मया के सुगंध ह भरे हवय ।
जइसे इंहा सबे अपन ममा -मामी बर भगवान के दरजा रखथे वइसने एकर अनुभूति अंतस म हमू ल कभू -कभू होय हे। सुरता आथे मृत्यु -शय्या म पड़े अपन एक झन ममा के ,जेन वो हालात मे भी मोर गोड़ ल अपन खटिया म रखवा के अपन नियम धरम के पालन करे रहीस, सिहर जथो आज भी ,कि कोई अइसे -कइसे भगवान हो जथे । अपन से कतको नान्हे के पाँव परई संग म गोंड धो के वो पानी के पीअई ,अमृत बतावत हे । नहीं-नहीं ये परम्परा म बदलाव जरुरी हे ।बहिनी के लइका भी लइका ए , मानथो बहिनी आने बड़ मयारु ,अऊ ओकर लइका आने मयारु के मयारु आये ,ओला मयाच बर राखो मयाच बर राखो , रिश्ता कोन्हो होय अपन ले नान्हे के पांव परई एको कनिक शोभा नइ पाय।
इंहा हर लइका जहां अपन ममा मामी करा ले भगवान सही मान गौन ल पाथे तभो ले लइका मन ममा घर जाके अपने महतारी ले एक कनिक अलगा जथे । काबर कि मइके के मया म बिलराय महतारी ल अपन पाछू ओधियाय लइका जेन ह नवां नवां मुंह कान ल देख के संशो म हे ,ओकर गोठ बात म एक कनिक हरु नई होन दे ,त लईका के भाग म आरुग खिसिअई ह आथे , ऊपर ले ऐला देख के ममा मन ल लगथे सही म ओकर बहिनी ल लईका बड़ पदोथे त बात-बात म कैंची मा कान ल काटे के गोठ ममा मन करे ल लगथे । मोर दरजी ममा अइसनेच रहिस हे,पर अब महतारी के संग म वहू ह सुरता म ही समा गे हे ।
मोर छोटे ममा-मामी मन आज रिटायर होय के बाद भी भिलाई म रहिथे तेकर सेती उंकर मन से मुलाकात होत रहिथे ,बीएड ल इंकरे मन कर रहिके करे हंव ,त सुरता मन घलो सुघ्घर-सुघ्घर हावे। मामी जब दुलहन बन के आय रहिस हे तब मेहा झांक के देखत केहे रेहेव कि बड़ सुन्दर हे ,पांच साल के उमर म केहे बात ,मामी आज भी सुरता कर बताथे , अइसे -जइसे कले के बात आय ,फेर वोकर ये सुरता मोला सब ल सहराय के शिक्षा देथे अऊ सबो सुरता ल सुघ्घर बनाथे ।।प्रणाम।।
श्रीमती गीता साहू
17.07.2021
आपके कलम ले निकले बात आँखी आघू झूल जावत हे, नाना नानी अउ ममा मामी के मया दुलार के सुघ्घर वर्णन हे। तीज तिहार संग नाना नानी घर के सहजता अउ संस्कार घलो झलकत हे। *सुरता ह अइसे हे, जइसे अभी अभी के बात आय* येखर से स्पस्ट होथे कि आपके अन्तस् म ननिहाल के सुरता कोनो पक्का रंग बरोबर रचे बसे हे।
ReplyDeleteममा मामी मन भाँचा भाँची मनके चरण पखारे,, जे आजो चलत हे, ये हमर छहत्तीसगढ़ के विशेष पहिचान ये, अइसन देखत मन म संकोच होना आपके शैक्षिक अउ सहजता ल देखावत हे। सरल सहज भाषा शैली म सृजित, बढ़िया संस्मरण, ननिहाल के मया के सुरता के सुघ्घर गठरी, आपके माध्यम ले पढ़े बर मिलिस,, एखर बर सादर बधाई अउ सादर नमन,,💐💐💐🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
खैरझिटिया
छत्तीसगढ़ी गद्य के मोर नवा कलम ल सराहे बर धन्यवाद खैरझिटिया जी
Deleteबहुत सुग्घर लिखे हव ममा गाँव के सुरता ल। ओरिया के
ReplyDeleteबढिया छतीसगढ़ी शब्द के प्रयोग करे हव।
छतीसगढ़ी गद्य लेखन आप मन के ही देन आए सादर धन्यवाद
Deleteबड़ सुग्घर, ममा गांव के सुग्घर बरनन करे हवा. आप मन के लेखनी अइसन हे चलत रहय.
ReplyDeleteउत्साहवर्धन बर सादर धन्यवाद सर
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