Saturday 24 July 2021

कहिनी - हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 कहिनी   - हरिशंकर गजानन्द देवांगन

           सबले बढ़िया – छत्तीसगढ़िया         

       नानकुन गाँव धौराभाठा के गौंटिया के एके झिन बेटा – रमेसर , पढ़ लिख के साहेब बनगे रहय रायपुर म । जतका सुघ्घर दिखम म , ततकेच सुघ्घर आदत बेवहार म घला रहय ओखर सुआरी मंजू हा । दू झिन बाबू – मोनू अउ चीनू  , डोकरी दई अउ बबा के बड़ सेवा करय । बड़े जिनीस घर कुरिया के रहवइया मनखे मन ल , नानुक सरकारी घर काला पोसाही , नावा रायपुर म घर ले डारिन अउ उंहीचे रेहे लागिन । 

              कालोनी म , किसिम किसिम के , अलग अलग राज ले आय मनखे रहंय ।‍ धीरे धीरे मन माढ़े लागिस , लोगन मन ले परिचय होवन लागिस , तइसने म घाम के महीना बईसाख आगे । लइकामन के स्कूल के छुट्टी के समे आगे । दूरिहा – दूरिहा के रहवइया मनखे मन , अपन अपन देसराज जाए के तियारी करे लागिन । रमेसर पूछत रहय , जम्मो झिन छुट्टी म चल दिहीं त हमन कइसे करबो मंजू ? मंजू किथे - का करबोन जी ? हमूमन माईपिल्ला , अपन गाँव जाबोन अउ अपन घर दुआर के मराम्मत कराबोन , अउ अपन खेतखार ल दुरूस्त करवाबोन , उँहीचे अपन लोग लइका ल किंजारबो  , अउ खेतखार के जानकारी देबोन । रमेसर किथे - तेकर ले कहाँचो दूसर ठउर जातेन का , थोरकुन समे बर ? गाँव म लइकामन बोरिया जथे , दाई-बाबू मन के किंजरे के सउँख घला पूरा हो जही । एक काम करे जाय मंजू , जम्मो परोसी मन ल घला किथौं , अपन अपन देसराज त हर बछर जाथौ , ये बखत जुरमिल के अलग अलग परदेस जाबोन , इही बहाना परिचय घला पोट्ठ हो जही । जम्मो योजना घरे म  बनगे ओतकिच बेरा ।

                 तिर तखार के जम्मो लइका सियान तियार होगे , बइठका सकलागे ,  तारीख तिथि निच्चित होगे । मराठी बाबू ठाकरे ल पूरा यात्रा के प्रभारी बना दिन । बड़े जिनीस बस किराया कर डारिन । कोन कोन जाहीं , कतका संख्या होही – तेकर हिसाब होए लागिस । संख्या अउ सीट के हिसाब ले , रमेसर के महतारी-बाप छूटत रहय । रमेसर – मंजू के बनाए योजना , ओकरे महतारी बाप के जाए के मनाही म , इँखर दिल टूटगे । यहूमन , नइ जाए के घोसना कर दिन । एमन ल ठाकरे साहेब बड़ समझाइस , फेर एमन नइ मानिन ! मंजू के कहना अतकेच रिहिस के बिगन सास ससुर के , नइ जावन । एडवांस पईसा डूबे के घला फिकर नइ करिन । तारीख लकठियागे , उही समे भाटिया साहेब के छुट्टी निरस्त होगे , पइसा घला जमा नइ करे रहय ओमन । भाटिया साहेब हा बिगन जाय , फोकट फोकट पइसा देबर मना कर दिस । आर्थिक बोझा जवइया मन उप्पर बाढ़हे लागिस । जाए के एक दिन पहिली , ठाकरे साहेब हा मजबूरी म , रमेसर करा पहुँच गिस । ओला महतारी बाप सम्मेत जाए बर मनाए लागिस । रमेसर गाँव जाए के तियारी करत रहंय । ददा के आदेश ले , इंखरे संग यात्रा निच्चित होगे ।

                   बड़े जिनीस बस ईँखर घर के आगू म आके ठाढ़ होइस । रमेसर मन जम्मो झिन , आगू ले चइघ के सीट पोगरा डारिन । धीरे धीरे मोहल्ला भर के मनखे जुरिआए लागिन , अउ अपन अपन सीट म बइठे लागिन । राव साहेब आतेचसाट , रमेसर अउ ओखर परिवार ल देखके , बम होगे । राव साहेब बग्यावत केहे लगिस - आगू के दूनों सीट मोर नाव ले बुक हे , ओकर पाछू बेहरा बाबू के नाव ले । तूमन ल अपन सीट के होश हवाश नइये का ? डोकरा डोकरी ल झिन लेगहू केहे रेहेन , उहू मन ला धर के ले आने । रद्दा म इँखर नाव लेके कहीं तकलीफ होही त तुंहर मजा ल बताहौं , घुचो हमर सीट ले । रमेसर के चेहरा तमतमागे , कुछु बोलतिस तेकर पहिली , ओकर ददा केहे लागिस – तुँहरे संगवारी मन जाय बर किहिन , तब जावथन बेटा । रिहिस बात सीट के , हमन ल जनाकारी नइ रिहिस के , सीट म जम्मो यात्री मन के नाव लिखाहे । ले तूमन तुँहर सीट म बइठव , पाछू कोती के सीट खाली दिखत हे उही हमर होही - कहिके माई पिल्ला अपन सूटकेस मोटरी - चोटरी ल धर के पाछू डहर रेंग दिन । रमेसर अपमान के घूँट पीके रहि गिस , फेर अपन ददा के सेती मुहूँ नइ खोलिस । 

                  गाड़ी चले लागिस । रद्दा म जगा-जगा बोर्ड टँगाए रहय , जेमे लिखे रहय , छत्तीसगढिया सबले बढिया । राव के लइका जइसे देखय , जोर जोर ले पढ़य । बेहरा बाबू – राव साहेब आपस में गोठिआए लागिस – हुँह , का खाक बढ़िया ? केवल नारा आय एहा , न लोक में ठिकाना , न रंग में , न संस्कृति में दम , न सभ्यता म । दई-ददा ल चिपका के घूमत हे आनंद मनाए के दिन म । हमर दाई ददा नइहे का । बहाना बना के छोड़ देतिन , घर के रखवारी घला हो जतिस । इँकर तिर कायेच हे तेकर रखवाली बर कन्हो ल छोड़ही । रहितीस तभ्भो , एमन काहीं के इज्जत करे ल नइ जानय । ये छत्तीसगढिया मन , कतको बड़ पद पा जांए भाई साहेब , फेर रही अड़हा के अड़हा । साले परबुधिया मन यहा उम्मर म दई ददा के अँचरा ल धरके घूमथें । खाली दुनिया भर में प्रचार प्रसार हाबे कि – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । फेर मोला लागथे इंहा काँहीच बढ़िया नइये , तेकर सेती प्रचार प्रसार  के जरूरत परथे ।

                  एक झिन कहत रहय - हमन अपन अपन प्रदेश ल देखथन त , अइसे लागथे के एमन अभी घला पथरा जुग म जियत हे । कोन्हो अपन प्रदेश के लोक  , रंग  , संस्कृति के गुन गावत नई अघात हे , त कोन्हो अपन समृद्धि के । कोन्हो अपन राज के , दूध दही के नदिया के , बखान करत हे , त कोन्हो मंदिर देवाला के  । कोन्हो अपन देशराज ल अनाज के भंडार बतावत नइ अघावत हे , त कन्हो खनिज के । चरचा चलत हे जात्रा संग , फेर रहि रहि के छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के ऊप्पर व्यंग्य घला । अपन देस राज के गुन गवइ ले जादा , लोगन ल इहां के हाँसी उड़ाए म मजा आवत रहय । कुछ मन कहय - हमर देस राज ल आवन दव , तब देखाबो – काला किथे सबले बढ़िया । सफर के पहिली पड़ाव म पुरी पहुंचगे जात्रा दल । सफर के थकान उतरे के पाछू , जगन्नाथ भगवान के दर्शन बर तैयार होवत हे जम्मो झिन । उड़ीसा निवासी बेहरा सेठ भारी उत्साहित रहय । अपन प्रदेश के गौरव के भारी बखान करत रिहिस । थोरेच समे में एकर सहयोग ले मंदिर के बड़ सुघ्घर दर्शन घला पागिन । बेहरा के छाती फूलत रिहिस घेरी बेरी । थोरेच पाछू ओकर पूरा हवा निकल गे । कोन जनी कोन पंडा बनके बेहरा बाबू ल अइसे लूटिस के , पूरा जेबेच सफाचट होगे । जतका डिंगरई मारत रिहिस , जम्मो घुसड़गे । मजाक या हाँसी उड़ई तो धूर .. बोलती तको कमतियागे | रमेसर ह , ओला बहुत अकन पइसा देके मदद कर दिस ।   

                  भगवान तिरूपति के दर्शन बर अबड़ उछाह रिहिस जम्मो के मन म । जइसे जइसे मंदिर लकठियाये लागिस , मनखे मन के उछाह सरसरऊँवा बाढ़तेच गिस । कन्हो अपन मनौती के बिसे सोंचत रहय , त कन्हो भगवान ल मने मन धन्यवाद देवत रहय । मंदिर तिरेच आये के उमीद म एक जगा बिलमके पूजा गाजा के समान बिसाये लागिन । इही म देरी होगे । थोकिन आगू गिन तहन .. उदुप ले आंधी तूफान बरोड़ा सुरू होगे । पानी के बड़े बड़े बूँद चुचुवाये ल धर लिस । ड्राइबर हा आघू गाड़ी चलाये म अपन समस्या बताइस । मजबूरी होगे , तिर के गाँव म समे काटे के । बस के मैनेजर हा समय बचाये बर , इही गाँव म खाना पीना , सोंच डरिस । स्कूल के छपरी देख के बस ल ठाड़ करिस । गाँव के जवान मन स्कूल के परछी म तास खेलत रहय । मैनेजर ह राव साहेब ल , इही लइका मन के मदद माँगे बर भेजिस । मदद त दूर , लइका मन अस डरवइस ओला के , तुरते हाँफत हाँफत आके , बस ला जल्दी चलाये बर केहे लागिस ला । ड्राइबर घला ओकर हालत ल देखिस , त पूछिस न गँवछिस , सटासट गेयर लगइस अऊ गाड़ी ल भगइस इहाँ ले । थोरकुन बेर म राव साहेब बतइस - वो टूरा मन असमाजिक मनखे कस लागिस , उहाँ थोरकुन बिलमतेन ते लूट पाट हो सकत रिहिस । साले मन मदद त दूर , मुँही ल लूटे बर कुदाये ल धरत रिहिन । रमेसर के बाबू हा ओकर तिर म आके .. ओकर गिला चूंदी ल पोंछिस अऊ समझइस । जम्मो झिन बस म , भगवान तिरूपति के प्रार्थना शुरू करिन , सहींच म देखते देखत बादर कते कोती छँटागे , सुरूज के चमक दिखे लागिस । पानी के बेवस्था देख के खाये पिये के उदिम पूरा करिन , तेकर पाछू भगवान तिरूपति के दर्शन बर मई पिल्ला आगू बढ़ गिन । 

                 सफर के अगले पड़ाव म बेंगलूरू शहर म प्रवेश कर डरिन । एक ठिन होटल म रूके के बेवस्था रहय । सफर के थकान नइ जियानत रहय कन्हो ल । वृन्दावन गार्डन , भव्य बजार जाये के सऊँख म लकर धकर तैयार होवत हे । रमेसर कभू देखे नइ रहय । वोहा कन्नड़ शेषाद्रि भाई के संगत ल धरिस । दूनों झिन घूम के आबो , तंहंले अपन परिवार ल घुमाहूँ सोंच के चल दिस शेषाद्रि संग । गार्डन म शेषाद्रि हा एक झिन सुघ्घर नोनी के हाथ ल धर दिस । मार परिस रमेसर ल । काबर के उही गलती करिस तइसे सारी बोल पारिस । पछीना छूटगे – रमेसर के । घेरी बेरी छमा माँगिस तब बड़ मुश्किल ले छूटिन । वापिस होटल आये के पाछू शेषाद्रि हा , रमेसर अइसे करिस तेकर सेती मार परिस अऊ में बचायेंव , कहत रहय । कतको झिन रमेसर ल गारी दिन । अपन गलती नोहे - बताये के कतको कोशिस करिस फेर , रमेसर के गोठ सुने बर कन्हो तियार नइ होइस । कन्हो कन्हो तुरते उलाहना दे बर सुरू कर दिन – इही ल कथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । 

                बहुत कष्टदायी होगे यात्रा हा इँकर मन बर । देश के व्यवसायिक राजधानी मुम्बई जाये के कन्हो उछाह नइ रहिगे मन म अभू । अऊ मनखे मन हीरो – हीरोइन ले मिले बर उत्साहित रहय , त कन्हो चोर बजार ले जिनीस बिसाये बर । कन्हो चौपाटी म मजा ले के सपना देखत रहय , त कन्हो फिलिम सिटी म समे बिताये के । तेकर ले ठाकरे साहेब अऊ जादा उत्साहित रहय । अऊ रहिबेच करही – अपन प्रदेश के गरब देखाना हे । बड़ घूमिन फिरिन । रंग रंग के जिनीस बिसा डरिन । फेर घूम के आये के पाछू , ठाकरे के बाई के मुहूँ तूमा बरोबर लटके रहय । न हूँके न भूँके । पता चलिस – पैसा के थैली चोरी होगे । अऊ ते अऊ , उही म ठाकरे के पर्स , ए टी एम कार्ड , मोबाइल जम्मो गे । कहींच नइ बांचिस । दूनो परानी रोवत बइठे रहय । मंजू अबड़ समझइस । ठाकरे भाऊ भड़कगे – तोर होये रहितिस त जानते , तेंहा हमन ला लान के दे देबे का , बड़ समझइया बने हस ? मंजू बड़ दायसी ले गोठियात , अपन ए. टी. एम. ल देवत किहिस - जतका जरूरत हे ततका निकाल सकत हव । ठाकरे हा , मंजू के बेवहार ले अवाक रहिगे । 

                यात्रा चलत हे । रमेसर के परिवार , हरेक दारी काकरो काकरो मदद करके , अपन आप ल धन्य अनुभौ करय । तभ्भो ले छत्तीसगढिया सबले बढिया कहिके , कन्हो कन्हो बेर कमेंट सुने ल मिलीच जावत रिहिस । मध्यप्रदेश पार करत उत्तरप्रदेश पहुंचगे । इलाहाबाद के संगम म खल खल ले नहा धोके बिहार कति जावत रहय बस । रात के दू बजे । नींद अपन बांहाँ म पोटारे हे सबो मनखे ल । बिधुन चलत बस , उदुप ले ठाड़ होगे । सुनसान जगा , हड़बड़ागे जम्मो झिन , सुकुरदुम होगे । कुछू समझतिस तेकर आगू , चारो मुड़ा ले कोलिहा के निही , बल्कि मनखे के भाखा सुनई दे लागिस । कन्हो ड्राइबर या मैनेजर ल पूछतिन तेकर पहिली समझगे , डाकू मन छेंके रहय । बस ले उतार दिन जम्मो झिन ल , बस म चढ़के तलासी ले डरिन । मोबाइल , पइसा , ए टी एम कहींच नइ बाँचिस । गहना गुठा तको उतरवा लिन । पूरा लुटागे । सुसवाये धीरे धीरे बस म चघत हे फेर । लोग लइका के हियाव करत , अपन अपन सीट म बइठगे । जइसे तइसे बस रेंगे लागिस । पोहाये के अगोरा म रथिया बीतत नइ रहय । दू पहर बाँचे रथिया , जुग ले बड़का होगिस । बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , भात बासी खाबो अऊ निकलबो – इही योजना बाँचे रहय । कोन जनी कइसे पूरा होही । तभे मालिक बतइस के सिर्फ एक टेम के रासन बांचे हे , अभू काये करना हे बतावव । बिहारी बाबू श्रीवास्तव जी केहे लागिस – इहीच तिर हमर भाई के घर हे , चलो उंहे जाबोन , खाये पिये अऊ आघू जाये बर पइसा कौड़ी के बेवस्था हो जही । मई पिल्ला खुस होगिन । सिर्फ छत्तीसगढ़िया थोरेन बढ़िया होथे जी ‌- श्रीवास्तव के व्यंग्य बान रमेसर कोती चलगे । रमेसर हरेक दारी मन ला मार के रहि जाये , कहींच जवाब नइ देवय । रमेसर के दई पोलखा म लुका के धरे पइसा ल हेरत , श्रीवास्तव बाबू ला देवत किहिस – तुंहर भई घर जाबोन त , दुच्छा थोरिन जाबो , ये पइसा के खई खजाना बिसा डरव , सगा जाबे त लइका मन झोला ला निहारथे  । पइसा धरके , श्रीवास्तव उतरगे , ओकर संग कतको झिन उतर गिन पानी पिये बर । खई लेवत उदुपले भेंट होगे इंकर भई संग । सबो गोठ घला होगे इहीच तिर । अपन घर लेगही कहिके , खई ल घला दे डरिस , फेर वोहा एक्को घाँव अपन घर जाये बर नइ किहिस , खई ल धरिस  , अऊ जरूरी बूता म जाना हे – कहिके , टरक दिस । चुचुवागे सबो । 

               भगवान परीक्षा लेवत हे बेटा , तूमन फिकर झिन करव , बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , उही हमर वापसी ल सरल बनाही ‌- रमेसर के ददा के अइसन गोठ कन्हो ल नइ सुहावत रहय । एक झिन कहत रहय - पइसा कौड़ी कहींच निये , खाये पीये बर रासन निये , लइका मन तरस जही , तोला काहे डोकरा ....... याहा उम्मर म घूमे के उसरथे । सियान किथे - तूमन चलव तो , भगवान सब पूरा करही । बस के मैनेजर घला उनिस न गुनिस , सियान के बात मान के चल दिस । बाबा के दर्शन होगे । एक टेम के बाँचे रासन ले कलर कलर करत पेट कहाँ भरही । काकरो पेट नइ भरिस । झारखंड नहाके के समे डीजल सिरागे । अभू अऊ बड़े समस्या ...... । मुड़ धरके बइठगे । मैनेजर बतावत हे - पेट्रोल पँप तिरेच म हाबे बबा , फेर का काम के ? पइसा निये एको कनिक । सियान ला बखाने लागिन कतको झिन मई लोगन मन .. । तोरे सेती वो पार गेन , वोती नइ जातेन त , कइसनो करके छत्तीसगढ पहुँच जतेन । अभू का करे जाये ........ । मुड़ी खजवात सोंचत , पेट्रोल पँप के मालिक करा गोठियाये अऊ किलौली करे बर चल दिन । नान - नान नोनी बाबू के रोवई गवई ल बताबो तंहले , पँप मालिक पसीज जही अऊ जरूर हमर मदद करही । पँप मालिक किथे - तुंहर कस कतको झिन तीरथ यात्री मन रोजेच आवत - जावत रिथे , मेंहा खैरात म बाँटे धर लुंहूँ , त धंधा कइसे करहूं । कहींच किलौली काम नइ अइस । पंप मालिक किथे - तुंहर करा सोन चांदी होही तिही ल दे दव । राव बतइस - कहां ले देबो बाबू , सब ल लूटके लेगे हे डाकू मन । रमेसर के छोटे बेटा अपन बबा संग पाछू पाछू पेट्रोल पँप म पहुंचे रहय । पेट्रोल पँप मालिक के गोठ सुनके , नानुक लइका अपन गला ले सोन के चैन उतारिस अऊ अपन दादू ल देवत डीजल भराये बर केहे लागिस । डीजल भरागे , फेर ये चैन कइसे बांचिस सोंचत रहय , तभे दादू ला सुरता अइस , डाका के बेरा लइका , बस म सुते रिहिस , अऊ डाकू मन , सुते लइका के गला के खाना तलासी नइ करिन होही ।  

               गाड़ी म डीजल भरागे । तब तक मनखे के पेट म मुसवा हमागे । भूख के मारे हाल बेहाल हे । पोट पोट करत हे । रमेसर के दई , अपन मोटरी ल डर्रा - डर्रा के हेरिस । दस बारा दिन पहिली , कतको झिन ल खवाये बर , दे के प्रयास करे रिहिस , तब कोन्हो नइ खइन अऊ नाक मुंहूँ ल एती वोती करिन । एक झिन मई लोगिन खिसियात केहे रिहिस – अतेक मइलहा फरिया म लपेट के धरे हस , कोन खाही ऐला । टीपा म आने आने फरिया म ठेठरी , खुरमी , कटवा , खाजा , बिड़िया रोटी ल लपेट के धरे रहय । दई के उही खई अभू अतेक मिठावत रहय ..... झिन पूछ । पेट भरगे , जी जुड़ागे । गाड़ी निर्बाध चले लगिस । रोटी नइ चलिस । फेर हमागे भूख बैरी हा । 

               छत्तीसगढ़ के सीमा लकठियाये लागिस । पेट के मुसवा के पदोना अऊ बाढ़गे । झारखंड पार करत अऊ कतको गाँव गँवई परिस । फेर काकरो हिम्मत नइ होइस , सहायता मांगे के । तभे , बड़े जिनीस बोर्ड दिखिस – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । रमेसर के ददा हा , ड्राइबर के बाजू म आके बइठगे , अऊ ड्राइबर ला केहे लागिस – पहिली जे गाँव परही , तिहींचे ठाड़ करबे , कुछु न कुछु वेवस्था करबो । हाँसिन कुछ मन , गजब वेवस्था कर डरही तइसे गोठियाथे डोकरा हा । रसता भर अतेक प्यार अऊ सहयोग करे के पाछू घला , कतको झिन रमेसर के परिवार ल नइ समझ पइन । दम ले पहुंचगे एक ठिन नानुक गाँव । सियान किथे - रोक ... रोक .... इही करा । इंहीचे बेवस्था होही । अऊ यात्री मन सोंचत रहय - नान नान झोपड़ पट्टी के बने घर कुरिया म रहवइया मनखे मन , काये मदद करही । खुदे मरत होही खाये पीये बर , हमन ल काला दिही – कानाफूसी गोठियाथे लोगन मन ।

               बर रूख करा छाँव देख , बस ल ठाढ़ करिस । बर रूख के तरी म , ग्राम सभा के बईसका सकलाये रहय । बस ल ठाढ़ होवत देखिस त उहू मन अपन अपन जगा म ठाढ़ होगिन । मनखे मन ल , बस ले उतर के अपन कोती आवत देखिस , त उहू मन बस कोती अइन । कुछ यात्री मन के मन म डर हमागे , जतका बाँचे हे तहू झिन लुटा जाये कहिके । जइसे तिर म गिन , गाँव वाला मन हाथ जोर के जोहारिन जम्मो झिन ल । रमेसर के बाबू के उमर देख के पाँव घला परिन । पानी पियइन , लिमऊ के शर्बत घोर डरिन । गोठियात बतात जइसे पता चलिस के , एमन तीरथ बरथ करके आवत हें – मई लोगिन मन घला जुरियागे , चरन पखारत अपन भाग ल सँहराये लागिन । तिर के स्कूल म माई मन के नहाये बर पानी के बेवस्था कर डारिन । पुरूष मन तरिया म नहा डरिन । इँकर नहा धो के तियार होवत ले , बर तरी , दार – भात - साग सब चुरगे । मसूर संग सेमी भांटा अऊ आमा के खुला , डुबकी कढ़ही , उरिद के दार लसून धनिया संग , रसहा चेंच भाजी अदौरी बरी मिंझरा , माड़ी भर झोर में मुनगा - रखिया बरी .... काला खाये काला बचाये तइसे होगे । ररूहा सपनाए दार भात – कस स्थिति होगे । पेट के फूटत ले कसके झेलिन । अऊ ले लौ ..... एक कनिक अऊ ले लौ ...... थोर कुन मोर कोती ले ....... कहिके अतेक प्रेम से आग्रह करके खवइन पियइन के , यात्रा के जम्मो दुख कोन जनी कते करा हरागे , पता नइ चलिस । इँकर भात ह एक कोती पेट ल छकाबोर करिस , त दूसर कोती प्रेम – मया हा , इँकर हिरदे ल सराबोर कर दिस ।   

                    भात खाये के पाछू जानिन के , रमेसर के बड़े बाबू निये । खोजा खोज माचगे । तभे लइका आमा चुचरत आवत दिखिस । पोटार के रो डरिस मंजू हा । लइका किथे - मां , अब्बड़ भूख लागत हे । गाँव के एक झन डोकरी दाई खाये बर पछवाये रहय , ओकरे बाँटा के आधा ल दिस , तइसने म एक झिन मंगइया , घोसरत घोसरत भूख म बिलबिलावत पहुँचगे तिर म । डोकरी दाई शुरू कर डरे रहय । लइका हाथ गोड़ धो के जइसे बइठिस , देख पारिस मंगइया के करलई ला .. । तुरते किथे - मोला भूख नइये मां .... मेंहा बगीच्चा म बड़ अकन आमा चुचरे हँव । अपन भात साग ला मंगइया ल देवा दिस । यात्री मन के आँखी ले आँसू धार बनके निथरे लागिस । रमेसर के परिवार के त्याग , सेवा समर्पण अऊ तपस्या के कायल होगिन जम्मो झिन । मुड़ी ल गड़ियाये , अपन करनी के पश्चाताप करत सुबकत रिहिन । रमेसर के पूरा परिवार के प्रति कृतज्ञता के भाव रहि रहि के हिलोर मारे लागिस । ठाकरे के मन के बात जुबान तक पहुंचगे । केहे लागिस – हमन रद्दा भर तुंहर हाँसी उड़ाएन , तूमन ल परेशान करेन । अपन प्रदेश के बड़ तारीफ करेन , फेर असलियत इही आय , जेला सबो देखेन , अऊ अभू देखत हन । इहां के मान सम्मान आदर सत्कार ल जिनगी भर नइ भुला सकन । गाँव के गरीब मनखे मन जेन आत्मीयता ले हमर स्वागत करिन , तेला मरत ले नइ भुलावन । वाजिम म छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया आय । फकत नारा नोहे , सचाई इही आय । समर्थन म थपड़ी पीटे लागिन बाकी यात्री मन । सरपंच खड़ा होके केहे लागिस – हमर फर्ज आय भइया , सगा के सेवा करना । फेर तूमन तो तीरथ बरथ ले घला आवत हव । तुँहर चरन धोके हमूमन तरगेन । बल्कि तुंहर स्वागत म कोन्हो गलती होगिस होही ते ... हमन ल क्षमा करहू ।    

                    बर रूख के छाँव म थोकिन आराम के पाछू बिदाई के समे आगे । यात्री मन बड़ भावुक रिहिन । लाल चहा अगोरत , गोठ बात चलत रहय । गाँव के सरपंच , रमेसर के बाबू ल अपन सम्बोधन म , ममा कहत रहय । एक झिन ला भ्रम होगे के , येहा सहीच म एकर भांचा आये का ? रेहे नइ गिस , पूछ पारिस । सियान किथे – मोर भांचा नोहे बेटा , फेर येहा हमर छत्तीसगढ़ राज के रिवाज आय , दुनिया के हरेक मानुस संग अपन रिश्तेदारी बना डरथन । ये बाबू ला , न कभू देखे हँव , न जानत हंव । अऊ यहू मोला कभू नइ देखे या जानत हे । फेर मनखे यहू आय अऊ मनखे महू आँव , इही ल दूनो झिन जानत अऊ देखत हाबन । सरपंच बीच म बोलत , बताये लागिस – ये फकत हमर प्रदेश के संस्कार नोहे ममा । में हा बतावथौं आप मन ल , आप मन बर पानी डोहरइया तेलगू आय , लिमऊ के सरबत घोरत रिहिस ते कन्नड़ आय । तुँहर चरन पखरइया कतको झिन महतारी मन उड़ीसा , झारखंड अऊ उत्तरप्रदेश बिहार के रहवइया आय । तुँहर बर साग भात रंधइया मराठी आय । तुँहर जूठा उठइया , बरतन मंजइया घला इहां के मूल निवासी मनखे नोहे । फेर ईँकर संस्कार अतका सुंदर हे के , एमन ल अतिथि के सेवा करे बर , कन्हो काम म लाज बिज निये । सियान किथे - हां भांचा , तैं सिरतोन कहत हस । मोर जम्मो संगवारी मन घला , बहुतेच संस्कारी प्रदेश के निवासी आय । यात्रा के बेरा म जेन गलती होइस या जेन बुरा बात होइस , ओमे वो प्रदेश के संस्कार के कन्हो दोष निये । उड़ीसा म लुटइया पंडा उड़िया होइच नइ सकय । तूफान म हमन ल अपन ठऊर म रूकन नइ देवइया हो सकत हे हमरे हितवा तेलगू भाइ होही । ओहा हमन ल सावधान करिस होही । बंगलोर म अपन गलती के सजा पाये हन हमन । बम्बई म हमर लापरवाही आय , कन्हो लूटे बर नइ आये रिहिस हमन ल । बिहार – उत्तरप्रदेश के सीमा म लुटइया मनखे उहां के नोहे , ओमन बाहिर के आये जेमन ओ प्रदेश ल बदनाम करके राखे हे । वाजिम म देखे जाये , त उन प्रदेश हा , हमर प्रदेश ले कतको अगुवा अऊ बेहतर घला हे । फेर असमाजिक मनखे मन के जमावड़ा उन ला बदनाम करे हे । येहा हिंदुस्थान के माटी आय भांचा – जिंहा प्रेम , भाईचारा अऊ सौहार्द - नदिया कस बोहावत हे , जेन ल जतका मन ततका झोंक लौ । हाँ एक बात जरूर कहूँ के मोर छत्तीसगढ़ म रहवइया संगवारी मन , अभू जेन सेवा करिन , ओकर बर मय कृतज्ञ हंव । येहा कन्हो एहसान थोरेन आय ममा , हमर परम्परा अऊ फर्ज आय – सरपंच जवाब दिस । 

               चहा चुँहक डरिन । जाये के समे होगे । फेर काकरो गोड़ नइ उचत रहय । इँहींचे बस जतिस तइसे लागत रहय जम्मो ला । गाँव के मई लोगिन मन , माथ म तिलक लगा के , नरियर अऊ द्रव्य दक्षिणा घला भेंट करिन । बस में बइठे अऊ सीट पोगराये के होड़ परागे । अभू नावा होड़ माचगे – रमेसर अऊ ओकर परिवार के तिर बइठे के । रमेसर के दाई ददा मन , डोकरी डोकरा ले कका – काकी होगे । जम्मो मनखे , अपन करनी बर , माफी मांग मांग के अपन पाप धोवत रहंय । अभू घला चर्चा चलत रहय ... छत्तीसगढ़िया के ... फेर चर्चा के स्वरूप बदलगे । कन्हो कहत हे – वाजिम म इहाँ के मनखे बढ़िया होथें , एमन केवल अपन प्रदेश के निही , जम्मो देश के बात करथें । कन्हो कहत रहय – इहाँ के मनखे भारत ला , छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ ल भारत समझथें , अऊ कन्हो भी गिरे परे अटके भटके ल अँगिया लेथें , तभे कन्हो प्रदेश के मनखे , इहां आसानी ले घुल मिल जथें । अभू बोर्ड , सड़क ले जादा इंकर दिल म जगजगाये लागिस - सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया । 

                                                    हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

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