Wednesday 13 May 2020

मुहाचाही : गुड़ाखू अउ नून (धनराज साहू, खोपली बागबाहरा)


मुहाचाही ....गुड़ाखु अउ नून...

परन दिन साँझकुन नोनी के दाई के मोबाइल घनघनाइस...अपन आदत अनसार दँवड़त आइस।मैहर हर बार के जइसे टोकेंव,देख के बाई बिछल-बिछली जाबे।फेर वहु हर घाँव जइसे मोरो बात ला अनदेखी करके, सड़दंग आँट म रखे मोबाइल के घेंचउरी ला दबाइस कहिस...हलो.. हलो &&&....हाँ बहिनी अब्बड़ दिन म लगाय या।अउ का-का करत हो,अभी तो घरे म होहू... लोग लइका अउ दमांद बने हे।का बताँव बहिनी काली के हावा-गरेरा म हमर जम्मो आमा झरगे.. पेंड़वा फरकके बहिनी।पारा के गढ़ऊना टुरा मन लाहो लिन, अउ अब बाँचे-खोंचे ला दुखाही धूंका खा डारिस।सबो ला सकेल के लटपट बने-बने ला काट-पऊल के अथान डारेंव अउ गिरे-फूटे ला खुला कर दे हों।
      अब ओती ले ...हाँ दीदी सब बने-बने ओ...बस दुखाही कोरोना हा घर खुसरी बना देहे।घरे के काम बुता हा बाढ़गे बहिनी..दिन रात रँधइ -गढ़ई ...कपड़ा लत्ता, धोवइ-पोंछइ तो...अउ हमर भाँटो कइसे हे.. लइका मन बने तो हावे।भाँटो तो लॉक डाउन में घोस-घोस ले होगे होही ,खा-खा के।महुँ गाँवे म आमा लेके अथान डारे हौं।ये रोगही कोरोना तो सबो जिनीस ला महँगी कर देहे।अउ ये दुकान वाला मन के बरवाही आगे हे।असमान ले उप्पर बेचत हे गड़ऊना मन हा।आलू गतर ला 30 रुपिया,गोंदली तो रोवा डारिस बहिनी।हमर पारा के दुकान वाला तो लाहो लेथे बहिनी...अई सुन न दीदी तुँहर डाहर गुड़ाखु मिलत हे या।
   अरे नहीं रे बहिनी तोला का दुख ला बताँव ,गाँव भर के दुकान में खोजवा डारेंव फेर काकरो करा नइये।होही नहीं ओ आधा तो जलन खोरी म नई दे बहिनी महीना के राशन ला बागबाहरा ले लानथन ।ओकरे चीड़ म हमन ला नई दे।अउ भीतरे-भीतर अपन ग्राहिक मन ला  60-60 रुपिया म देवत हें कथे। अरे हमला 65 में दे देतिस...फेर उही जलन खोरी...त तोर भाँटो ला बागबाहरा भेजेंव ,काकर करा लें दू पुड़ा आनिसे... काहत रिहिस...36-36 रुपिया परे हे एक ठन हा... अउ गाँव वाला मन ला देख कइसे लूट मचाय हे दोखहा हा।अब गाँव वाला मन ^मरता का न करता^..बिचारा-बिचारी मन लेवत हवें।हम तो अउ नई रही सकन बहिनी ..हमला दु बेर चहा अउ 4 बेर मँजन होना..भले खाय बर मिले मत मिले दाई।
    हव दीदी हमरो घर तोर दमाँद उड़ीसा बार्डर जाके सराबोंग ले बड़े 5 किलो वाला डब्बा ला आने हे।ओतो ओकर सँगवारी उहें बुता करथे कहिके जुगाड़ होगे।भले बपरा रेट लिस तो लिस फेर अपन समझके दे दिस, नई ते ओमन दुकान वाला मन ला ही देवत हे।हमर गाँव के एक दुकान वाला तो उही डब्बा वाला गुड़ाखु ला जुन्ना सकेले डबिया म डारके 20-20 रुपिया म बेचत हे, तभो सबो झपा परत हे।
  अई हव बहिनी का गोठ ला गोठियाबे मोला तो धुक-धुकी धर डारे रिहिस,गुड़ाखू के नाम में।फेर ओकर पापा फिकर करके खोज-ढूँढ़ के आनिसे।हमर परोसिन गुलापा ला जानथस न...उही तोरई मुँहू के...बहिनी वहू ला माँग डारेंव ..होही तो एको डबिया दे न बहिनी कहिके..फेर बइरी चनचनही हा मुँहू ओथारे नई ये कहिस।अउ साँझ कुन वहा मार घँसर-घँसर के गुड़ाखु करत रिहिस।में नइ भूलों बहिनी ओकर ठेसरा मरई ला।
   ले दीदी कूछु नई होय,भाँटो तो अब्बड़ असन लान देहे तोर बर... अब ते देखाबे टूहूँ ।
टूहूँ निहि बहिनी मेंहा उधार नी राखों, कालिच्चे सब पारा भर बता देंव,मोरो करा आगे गुड़ाखू...&&&..हिहिहिहि...देख न बहिनी मोला नइये किहिस।
  अई सुन तो बहिनी गोठ बात म भुलागेंव हमर इँहा तोर दमांद कहत रिहिस की नून घला बजार म सिरागे हे, कँहुचो नई मिलत हे।ले देके 5 पाकिट ला चुपे चाप दुकान वाला चूतिया बनाके आने हे, अभी गाँव म कोनों ला पता नइये न।गाय-गरवा के पसिया बर 1 बोरी घला लानिसे.... फेर ओ दुकान वाला जान गे लागथे...1 किलो के 100 रुपिया लिसे।अब कइसे करबे बहिनी बिगन नून के
साग-डार अउ पानी-पसिया कूछुच नई मिठाय।तंहुँ हा कलेचुप भाँटो ला कहिके गाँव के दुकान ले काकरो करा जतका मिले लेइच ले।एकर पहिली की कोई अउ जाने ,मँगवाईच ले,रेट ला झन देख बहिनी।
   अई हाय नोनी बने करे दाई बता देस,एकर पापा तो निच्चट भोकवा आय ओ,दुनियादारी ला नई जाने।बस अपन मस्त राम परे रहिथे।घर के चिंता मोर बोझा बहिनी... नई बतांव बहिनी कोनो ला अउ झटकुन नून मँगवाथों।

कहानीकार:- धनराज साहू,खोपली बागबाहरा

Wednesday 6 May 2020

आलेख कोरोना संकट अउ पर्यावरण



कोरोना संकट अउ पर्यावरण

आज कोरोना वायरस ले जनमिस महामारी हा वैश्विक समाज अउ प्रशासन के जम्मो कमजोरी ला उजागर कर दिहिस हे अउ संगे संग ए खतरनाक संकट ले आधू बढ़े के डहर घलो देखाइस हे ।कोविड 19 के ये खतरनाक बीमारी जेन समय के पहिली मनखे के जिनगी मा हावी होगे हावै,अइसन संकट जेन मानव जाति ला क्षिन भर मा नष्ट कर सकत हे ये संकट मानव जिनगी ला आर्थिक विकास,सामाजिक,राजनीतिक जम्मो डहर ले प्रभावित करत जात हे।ते पाय लाकडाउन हा लंबा समय तक अइसनहे बने रहि त दुनिया मा निराशा,तनाव,चिंता जइसन गंभीर मानसिक बीमारी के बाढ़ आ जाही जेन व्यक्तिगत के साथ साथ दुनिया मा सामाजिक, आर्थिक विकास मा बाधा उत्पन्न हो जाही।कोरोना बीमारी के प्रभाव ले कम अउ आर्थिक समस्या के भार ले मानुष के मनोदशा बिगड़ जाही।
ये कोरोना काल विश्व बर एक अइसे संकट हे जेन भविष्य ला सोचे बर मजबूर कर दिये हे, कोरोना वायरस के संक्रमण ले पूरा दुनिया मानो थम से गये हे स्कूल-कॉलेज अउ यात्रा मा पाबंदी, मनखे के एक जगा इकट्ठा होय मा पाबंदी,ए जम्मो पाबंदी ले मनखे कोनो न कोनो रुप मा प्रभावित होत हे। एहा एक बीमारी के खिलाफ बेजोड़ वैश्विक प्रतिक्रिया हे। प्रश्न ये उठत हे के का लाकडाउन हा खतम हो जाही ओखर बाद भी मनखे हा का अपन पुराना दिनचर्या अउ कोरोना के डर ले साधारण जिनगी ला अपना पाही....?
का लाकडाउन ले जेन अर्थव्यवस्था आज मानो थम गये हे ओला भुलाके सुग्घर जिनगी जी पाही..?
दूसर पक्ष मा ए लंबा समय तक अइसे स्थिति बने रही अउ पाबंदी लगे रही त सामाजिक और आर्थिक नुकसान विध्वंसकारी हो जाही। प्रतिबंध समाप्त होय म घलो मानव जिनगी मा ये संकट बरोबर बने रही। संकट ले संक्रमित होय के कारण अनजान मनखे के रोग प्रतिरोधक शक्ति घलो बढ़ सकत हे फेर अइसन होय मा बहुत समय लग सकत हे। एखर लिए हमला सतर्कता के ध्यान रखके हमला दूसर के स्वास्थ्य मा घलो ध्यान देहे ला परही जेखर ले हम ए संकट ले लड़े बर कुछ भागीदारी निभा सकथन।
ये संकट हा अतका जल्दी समाप्त होय के कगार म नइ दिखत हे एखर लिए वैक्सीन बन जाही तभो ले हमला सावधानी अपनाये ल परही,सावधानी ले जिनगी बिताना परही। फेर दू साल तक ए लाकडाउन रही त देश के एक बड़े हिस्सा संक्रमित हो जाही।

विकास के अंधा दउड़ मा भुइँया अउ पर्यावरण के हमन जेन हाल करे हन ओ बीते चार दशक मा चिंता के विषय बने हुए हे फेर विकसित देश अपन जिम्मेदारी निभाये के अलावा विकासशील देश मन बर हावी होवत हे अउ विकासशील देश घलोक विकसित देश मन के डहर मा रेंगत हे अउ पर्यावरण ला नष्ट करत जात हे। पृथ्वी सम्मेलन के 28 साल बाद भी हालात जस के तस रहिस। अइसन लागथे फेर कोरोना महामारी ह विश्व के मनखे मन ला स्वस्थ होय के अवसर दे दिये हे।हवा के जहर कम होगे हावै अउ नदियाँ के जल निर्मल होगे हे।भारत मा जेन गंगा ला साफ करे के अभियान कई साल ले चलत आत हे बीते 5 साल मा लगभग 20000 करोड़ रुपया खर्च करिन हावै तभो ले साधारण सफलता तक नइ दिख पाइस हे। उही गंगा हा लॉकडाउन मा निर्मल बना दिहिस हे।वइसनहे चंडीगढ़ के हिमाचल मा हिमालय के चोटी घलोक दिखे लागे हे । औद्योगिक आय के दर हा जरूर सात फ़ीसदी ले दू फ़ीसदी मा आ गिरीस हे, अर्थव्यवस्था खतरा मा हे,लेकिन इही समय हे के पूरा दुनिया पर्यावरण अउ विकास के संतुलन बर उतके गंभीरता अउ गहराई ले सोचही जतका आज कोरोना संकट ले निपटे के सोचत हावै।

आलेख - आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Saturday 2 May 2020

पुरखा के सुरता - श्रद्धेय केयूर भूषण



पुरखा के सुरता - श्रद्धेय केयूर भूषण

जुन्ना पुराना चिट्ठी मन घलो अपन आप मा एक इतिहास होथें। बाबूजी के नाम मा श्रध्देय केयूर भूषण जी के दू पोस्ट कार्ड मोर तीर रखाए हे। एक चिट्ठी मा 19 मार्च 1957 के डाकघर के ठप्पा लगे हे। प्रेषक मा आदरणीय खूबचन्द बघेल जी के नाम घलो हावय। "छत्तीसगढ़ी महा सभा" के एक बछर बाद खास मुद्दा ऊपर चर्चा करे खातिर कार्यकर्ता मन बर दू दिवसीय बैठक के सूचना आय। ये चिट्ठी बतावत हे कि "छत्तीसगढ़ महा सभा"के गठन 1956 मा होय रहिस। ये सभा के कार्यकर्ता जम्मो छत्तीसगढ़ के रहिस।

दूसर चिट्ठी 29 जनवरी 1966 के लिखे आय जेमा डॉ. खूबचन्द बघेल जी के निवास स्थान मा छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन के अस्थाई बैठक के सूचना दे गेहे। ये बैठक मा सदस्य के अलावा 22 झन विशेष व्यक्ति मन ला घलो आमंत्रित करे गे रहिस। ये दुनों चिट्ठी मन मोर बर अनमोल धरोहर आँय।

स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, पूर्व सांसद, पत्रकार, छत्तीसगढ़ी साहित्यकार केयूर भूषण जी के जनम 01 मार्च 1928 के अउ दू बछर पहिली आजे के दिन माने 03 मई 2018 के उनकर निधन होए रहिस।

छत्तीसगढ़ी साहित्य मा उनकर योगदान ला कभू भुलाए नइ जा सके। उनकर कृति के विवरण -

सोना कैना (नाटक) मोंगरा (कहानी) बनिहार (गीत) कुल के मरजाद (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)  कहाँ बिलम गे मोर धान के कटोरा (उपन्यास) लोक लाज (उपन्यास) समे के बलिहारी (जाति व्यवस्था आधारित उपन्यास)  नित्य प्रवाह (प्रार्थना और भजन) लहर (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह) कालू भगत (कहानी संग्रह) आँसू मा फिले अँचरा (कहानी संग्रह) हीरा के पीरा (निबंध संग्रह) डोंगराही रद्दा (कहानी संग्रह) छत्तीसगढ़ के नारी रत्न, मोर मयारुक।

केयूर भूषण जी साप्ताहिक छत्तीसगढ़, साप्ताहिक छत्तीसगढ़ सन्देश, त्रैमासिक हरिजन सेवा (नई दिल्ली) मासिक अंत्योदय (इंदौर) के संपादन घलो करिन।

छत्तीसगढ़ी भाषा मा उनकर लिखे एक सुप्रसिद्ध गीत -

तैंहर छोटे झन जानबे भइया एक ला।
एकक जब जुरियाथें लग जाथे मेला॥

एक्के भगवान ह जग ला सिरजाये हे
एक ठन सुराज ह, अँजोर बन के छाये हे
सौ बक्का ले बढ़ के होथे एक लिख्खा
गठिया के धरे रिबो मोरो ये गोठ ला।

भिन्ना फूटी ले होथे एक मती
कोटिक लबरा ले बढ़ के होथे एक जती
सब दिन के पानी तब एक दिन के घाम
बाटुर उलकुहा ले बढके एक दिन के काम
खाँडी भर बदरा अऊ एक पोठ धान।

रस्ता बना लेथे अकेल्ला सुजान
सौ सोनार के तब लोहार के होथे एक
सौ भेंड़ी ला चरा लेथे गडरिया एक
एक एक बूँद सकला के भर जाथे तरिया
एकक हरिया जोत टूट जाथे परिया

एक मा गुन अनलेख भरे हे कतेल ला मैं गिनावँव
सूवा होय तेला रटन कराबे मनखे ला कतेक लखावँव

(रचनाकार - श्री केयूर भूषण)

आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़
03 मई 2020