Saturday 30 September 2023

रामकृष्ण मिशन आश्रम" गोठ नारायणपुर (बस्तर )के।।

शिवप्रसाद लहरे: Date: 18-Aug-2023

Subject: "रामकृष्ण मिशन आश्रम" गोठ नारायणपुर (बस्तर )के।।


"रामकृष्ण मिशन आश्रम " गोठ नारायणपुर (बस्तर) के।

                 हमर छत्तीसगढ़ माटी के सोंध ह दुनिया के जन -जन करा जावाथे।आप मन ह जानत होहू कि हमर छत्तीसगढ़ महतारी म डोंगरी, पहाडी़,नदिया,नरवा समाय अउ घेराय हे।इही हमर पहिचान आय,हमर धरोहर आय।जेकर बर हमला चेत करे ल पड़ही। त आवव अइसने ढंग के डोंगरी भितरी बसे छत्तीसगढ़ के छोटकुन जिला -नारायणपुर (बस्तर) म बने अऊ बसे रामकृष्ण मिशन के बारे म जानन -------

                  संगी हो जिला -नारायणपुर ( बस्तर ) के सुंदरता अऊ विशेषता,रंग -रंग के कलाकृति ल का सुना पाहूं।फेर छोटकुन अपन भाखा मा जउन ल देखे हवं,सुने हवं तेला आपमन करा परोसे के प्रयास करत हववं।

                    इहां के पुरखा आदिवासी अउ स्वामी जी मन के कहे अनुसार बस्तर के जंगल भितरी म बसे नारायणपुर ह छोटकुन नगर आय।जिहां आदिवासी मन के पुरखा अबुझमाड़ म अपन जिनगी ल चलावाथे।ये उही आदिवासी अबुझमाड़ आय जउन मन कोनो प्रकार के लालच लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आपस म मार -पीट असन दोष ले दुरिहा हे।ये बात सन् -१९८५के पहिली के आय।जेकर करा न तो चाउंर -दार,न बने घर - दुवार,न तो तन ढाके बर बने कपड़ा।न चिकित्सा रहिस न चिकित्सक। बिजली ले तो अउ कोनों नाता रहिस हे।रहिस संग म जंगल के, पेट भरे बर फर -फूल,कांदा, अउ ईलाज बर खुदे बैध जंगल के जड़ी -बुटी।उकर घर रहिस पाना -डारा,लाटा -बुटा संग जोर के खुंटा -खांभर गड़ा के अपन छोटकुन झोपड़ी बना के जिनगी जीयत रहिस हे।जंगल भितरी म बसे अइसन -अइसन गांव हे, जिहां पैडगरी रद्दा घलो बने नइ हे। सायकील घलो बने नइ चल पाय।कतको मील दुरिहा ले रेंग के आथे, नारायणपुर म। नारायणपुर के बाजार ह घलो मड़ई -मेला असन लगथे, इकर आय ले।

               इकर जिनगी म सुविधा के सुख ह कई फरलांग दुरिहा रहिस होही,अइसने लागत रहिस हे।फेर कोनों महापुरुष मन के नजर ह इकर ऊपर पड़िस।अउ उंकर रख -रखा�

[9/28, 10:58 AM] शिवप्रसाद लहरे: "रामकृष्ण मिशन आश्रम " गोठ नारायणपुर (बस्तर) के।

                 हमर छत्तीसगढ़ माटी के सोंध ह दुनिया के जन -जन करा जावाथे।आप मन ह जानत होहू कि हमर छत्तीसगढ़ महतारी म डोंगरी, पहाडी़,नदिया,नरवा समाय अउ घेराय हे।इही हमर पहिचान आय,हमर धरोहर आय।जेकर बर हमला चेत करे ल पड़ही। त आवव अइसने ढंग के डोंगरी भितरी बसे छत्तीसगढ़ के छोटकुन जिला -नारायणपुर (बस्तर) म बने अऊ बसे रामकृष्ण मिशन के बारे म जानन -------

                  संगी हो जिला -नारायणपुर ( बस्तर ) के सुंदरता अऊ विशेषता,रंग -रंग के कलाकृति ल का सुना पाहूं।फेर छोटकुन अपन भाखा मा जउन ल देखे हवं,सुने हवं तेला आपमन करा परोसे के प्रयास करत हववं।

                    इहां के पुरखा आदिवासी अउ स्वामी जी मन के कहे अनुसार बस्तर के जंगल भितरी म बसे नारायणपुर ह छोटकुन नगर आय।जिहां आदिवासी मन के पुरखा अबुझमाड़ म अपन जिनगी ल चलावाथे।ये उही आदिवासी अबुझमाड़ आय जउन मन कोनो प्रकार के लालच लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आपस म मार -पीट असन दोष ले दुरिहा हे।ये बात सन् -१९८५के पहिली के आय।जेकर करा न तो चाउंर -दार,न बने घर - दुवार,न तो तन ढाके बर बने कपड़ा।न चिकित्सा रहिस न चिकित्सक। बिजली ले तो अउ कोनों नाता रहिस हे।रहिस संग म जंगल के, पेट भरे बर फर -फूल,कांदा, अउ ईलाज बर खुदे बैध जंगल के जड़ी -बुटी।उकर घर रहिस पाना -डारा,लाटा -बुटा संग जोर के खुंटा -खांभर गड़ा के अपन छोटकुन झोपड़ी बना के जिनगी जीयत रहिस हे।जंगल भितरी म बसे अइसन -अइसन गांव हे, जिहां पैडगरी रद्दा घलो बने नइ हे। सायकील घलो बने नइ चल पाय।कतको मील दुरिहा ले रेंग के आथे, नारायणपुर म। नारायणपुर के बाजार ह घलो मड़ई -मेला असन लगथे, इकर आय ले।

               इकर जिनगी म सुविधा के सुख ह कई फरलांग दुरिहा रहिस होही,अइसने लागत रहिस हे।फेर कोनों महापुरुष मन के नजर ह इकर ऊपर पड़िस।अउ उंकर रख -रखाव म बदलाव करे के बारे म सोंचिस हे।ये बदलाव तभे आही जब हमन इकर संग बइठबो - उठबो अउ संगे -संग इकर अवइया पीढ़ी ल शिक्षित बनाबो।त येकर बर बने असन स्कूल सुख सुविधा के संग खोले बर पड़ही।ये सोच रखइया अउ कोनों दूसर नो हरे हमर पुरखा परम आदरणीय स्वामी आत्मानंद जी हरे।जउन ह रामकृष्ण परमहंस मिशन आश्रम बेलुड़ मठ भारत के पश्चिम बंगाल म हुगली नदी के पश्चिमी डहर के बेलुड़ म बने हे। रामकृष्ण मिशन आश्रम जउन ल हमर युवा मन के प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी ह अपन गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के नाव ले आश्रम बनाय हे।ओकर प्रेरणा पाके स्वामी आत्मानंद जी ह रायपुर मुख्यालय के माध्यम ले २ अगस्त सन् -१९८५ म छत्तीसगढ़ के अबुझमाड़ मन के सोर करत जिला -नारायणपुर बस्तर म स्थापना करिन। जिहां जंगल भितरी के अबूझ -अंजान ।मन के लईका मन ल उचित शिक्षा देय बर आश्रम म भर्ती लिन।येकर संगे - संग  किसानी बुता के नियम ल घलो ओ लईका के दाई -ददा मन ल प्रशिक्षण दे के काम करिन।आज हमरे असन वहू मन ह खेती करे के काम - काज ल धरे हे।

                  स्वामी आत्मानंद जी ह पिछड़े विकास के रद्दा म आदिवासी मन के सेवा करे बर स्थापना करिन हे,जेन ह आज लग - भग २०० एकड़ म विस्तारित हे।सन् -२००९ म २५वां "इंदिरा गांधी अवार्ड फार नेशनल इंट्रीगेसन " पुरस्कार जुन्ना (पूर्व) राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी जी द्वारा दे गिस हे। इहां के आश्रम म राष्ट्रपति जी के आगमन ७ नवंबर सन् -२०१२ म होइस हे।येकर जादा खुशी के अउ का बात हो सकाथे।जेकर सोर ह दिल्ली तक नहीं वरन पूरा दुनिया मा बगरे हे।इही करा ले आज येकर पांच ठन " सब सेंटर " होगे हे। जउन ह जंगल भितरी म आदिवासी मन के सुविधा ल बढा़य के सरलग काम चलाथे।जेमा पहिली आश्रम हे------

(१)अकाबेड़ा ----नारायणपुर ले लग - भग १८ किलोमीटर के दुरिहा जंगल भितरी म एकरे नाम के आश्रम ह शाखा के रूप म हे। इहां आवासीय उच्च विद्यालय, स्वास्थ्य पोस्ट,पोषण पुनर्वास केन्द्र, उचित मूल्य के दुकान अउ कल्याण कार्यालय हे।जेन ह ये क्षेत्र म अड़बड़ विकास कराइन हे।

(२) इरकभट्ठी ------ ये ह नारायणपुर जिला ले लग-भग ३५ किलोमीटर जंगल भितरी म हे। इहां घलो अकाबेड़ा असन सुविधा हे।

(३)कच्चापाल ----- नारायणपुर जिला ले लग-भग ४० किलोमीटर दुरिहा हे

(४) कुंदला -------- नारायणपुर जिला ले लग - भग २० किलोमीटर हे।

(५)कुतूल ------ नारायणपुर जिला ले लग - भग ४० किलोमीटर दुरिहा हे। जम्मों सब सेंटर मन के काम अउ उद्देश्य ह एके हे। संगी हो जंगल के भितरी- भितरी म कतको गांव हे परिवार हे जेकर बर सुविधा पहुंचाय के स्टेशन माने जा सकाथे।

                        नारायणपुर के आश्रम म आवासीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हे जेमा ११९८ आवासीय लईका मन पढ़ई कराथे। इहां बहुद्देशीय कर्मचारी प्रशिक्षण केंद्र हे।जेन ह २४ झन ग्रामीण मन ल हर साल मोटर मैकेनिक, ड्रायविंग,काष्ठकारी म प्रशिक्षित करके ओला रोजगार दे के प्रयास करे जाथे।येकर संगे- संग कृषि प्रशिक्षण अउ प्रदर्शनी केन्द्र हे,जेमा आस-पास के ग्रामीण किसान मन ल बने - बने उन्नत खेती करे के जानकारी समय-समय म देवत रहिथे।अउ इकर बर किसान मेला के आयोजन घलो कराय जाथे।इहां एक ठन अउ केन्द्र बने हे पुस्तकालय जिहां नवा -जुन्ना करे लग-भग १३४८१ किताब अउ ६७ समसामयिक पुस्तक मन ल घलो रखे जाथे।एकर संग अखबार के संग्रह घलो हे।

                       इहां बिना पईसा के (नि:शुल्क) पढा़य -लिखाय अउ प्रशिक्षण दे जाथे।आश्रम म कोचिंग सेंटर घलो संचालित हे, जिहां लग - भग २००७ झन लईका मन के पढ़ई -लिखई अउ जुड़े सामान जइसे कपड़ा,खाना,मोटर-गाड़ी (स्कूल बस) के सुविधा बिना पईसा के हे।आश्रम के अंदर एक ठन अस्पताल घलो बने हे जेकर नाव विवेकानंद आरोग्य धाम हे। जिहां ३० ठन बिस्तर हे।

जम्मों सुविधा के अस्पताल हे। इहां लग-भग ३४०५ आंतरिक अउ ५७६५८बाह्य मरीज मन के इलाज हो चुके हे।एकर छोंड़ एक ठन मोबाइल मेडिकल यूनिट घलो हे,जउन ह दूरिहा क्षेत्र के मरीज मन ल लाय जाथे। अबूझमाड़ के लईका मन ल तकनीकी शिक्षा दे खातिर आई.टी.आई. के स्थापना ०१ अक्टूबर सन् २०१२ ले करिन हे,जउन ह आज इकर मन बर रोजगार के साधन बनिस हे।एकर संगे - संग १० ठन अलग-अलग व्यवसाय के प्रशिक्षण केन्द्र हे।जेमा बिना पईसा के सिखाए अउ पढा़य जाथे। अबूझमाड़ के लग -भग ३०० लईका मन ल तकनीकी शिक्षा दे जाथे।अउ ये आश्रम म लगभग १५०० कर्मचारी मन अपन सेवा देवाथे।

                संगी हो इहां एक ठन उचित मूल्य के दुकान घलो हे, जिहां सबो जिनिस अपन दिनचर्या के सामान ह मिल जथे।सुघ्घर बगीचा हे, सुघ्घर बारी - बखरी हे, जिहां किसम - किसम‌‌‌ के साग सब्जी बोय जाथे, अउ आवासीय लईका मन ल बने - बने पौष्टिक भोजन दे जाथे। इहां के देख-रेख करइया जम्मों काम -काज के स्वामी जी मन ह करथे।संगी हो आश्रम के बने ले भारी तेजी के संग अबुझमाड़ म विकास के प्रकाश ह बगरीस हे। पहिनावा से रख-रखाव म घलो बदलाव आइस हे। इहां पशुपालन घलो सुघ्घर ढंग ले करे जाथे।गाय गरुवा मन के देख रेख कइसे करना हे दूध -दही कइसे निकालना हे,उंकर उपयोगी काहे ये जम्मों विषय म प्रशिक्षण के माध्यम ले अबुझमाड़ आदिवासी मन ल बताय जाथे।जेकर ले आज जम्मों जिनिस के बारे म अब ज्ञान रखथे।पढ़ई-लिखई के संगे संग खेल- कूद म घलो आगे आवाथे।मलखम से ले के बॉस शिल्प -कला,चित्र कला, गीत-संगीत,हर प्रकार के प्रतिभा धराके लईका मन ल आघू बढा़य के उदिम कराथे,हमर नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन आश्रम ह।

                   आज अपन पहिचान छत्तीसगढ़ के गौरव ल विदेश म घलो बगरावाथे।बाहिर देश के मनखे मन घलो ये आश्रम ल देखे बर आथे।एक प्रकार के हमर छत्तीसगढ़ के ज्ञानास्थल आय।एकर स्थापना ले अबुझमाड़ के रहवइया आदिवासी मन के एक ठन अलादीन के चिराग कहे म कोनो गलत नइ होही अइसे मोला लगथे।

                           

                                 

                                   स्थायी पता 

                        नाम -शिवप्रसाद लहरे "सागर"

                    ग्राम -रानीतालाब पो./थाना-चिचोला

                तह.-छुरिया,जिला - राजनांदगांव (छ०ग०)

                                                         

                   मो. 7974431501,8878822647

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वर्तमान पता

नाम -शिवप्रसाद लहरे "सागर"

शहर- नारायणपुर

जिला- नारायणपुर (बस्तर)

              (छ०ग०)

56 वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन.........


 

56 वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन.........

                                                                                                       

छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगइया - जनकवि कोदूराम "दलित" 


छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के हर मंच ले दुनिया मा कविता के सब ले छोटे परिभाषा ला सुरता करे जाथे “जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले” अउ एकरे संग सुरता करे जाथे ये परिभाषा देवइया जनकवि कोदूराम “दलित” जी ला. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी (अर्जुन्दा) मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले शुरू होईस. छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा उनकर बराबर अधिकार रहिस. गाँव मा बचपना बीते के कारन उनकर कविता मा प्रकृति चित्रण देखे ले लाइक रथे. दलित जी अपन जिनगी मा भारत के गुलामी के बेरा ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन. अंग्रेज मन के शासन काल मा सरकार के विरोध मा बोले के मनाही रहिस, आन्दोलन करइया मन ला पुलिसवाला मन जेल मा बंद कर देवत रहिन. अइसन बेरा मा दलित जी गाँव गाँव मा जा के अपन कविता के माध्यम ले देशवासी मन हे हिरदे मा देशभक्ति के भाव ला जगावत रहिन. दोहा मा देशभक्ति के सन्देश दे के राउत नाचा के माध्यम ले आजादी के आन्दोलन ला मजबूत करत रहिन. आजादी के पहिली के उनकर कविता मन आजादी के आव्हान रहिन. आजादी के बाद दलित जी अपन कविता के माध्यम ले सरकारी योजना मन के भरपूर प्रचार करिन. समाज मा फइले अन्धविश्वास, छुआछूत, अशिक्षा  जइसन कुरीति ला दूर करे बर उनकर कलम मशाल के काम करिस. 

जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पहचान छत्तीसगढ़ी कवि के रूप मा होइस हे फेर उनकर हिन्दी भाषा ऊपर घलो समान अधिकार रहिस. लइका मन बर सरल भाषा मा बाल कविता, जनउला, बाल नाटक, क्रिया गीत रचिन. तइहा के ज़माना मा ( सन् पचास के दशक) जब छत्तीसगढ़ी भाषा गाँव देहात के भाषा रहिस कोदूराम दलित जी आकाशवाणी नागपुर, भोपाल, इंदौर मा जा के छत्तीसगढ़ी भाषा मा कविता  अउ कहानी सुनावत रहिन. छत्तीसगढ़ी भाषा ला कविसम्मेलन के मंच मा स्थापित करइया शुरुवाती दौर के कवि मन मा उनला सुरता करे जाही. दलित जी के भाषा सरल, सरस औ सुबोध रहिस. व्याकरण के शुद्धता ऊपर वोमन ज्यादा ध्यान देवत रहिन इही पाय के उनकर ज्यादातर कविता मन मा छन्द के दर्शन होथे. दलित जी के हिन्दी रचना मन घलो छन्दबद्ध हें.   पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। दलित जी के छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।

 

दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -


संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।

दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।


दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव - 


ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगाँय।

मनखे ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खाँय।।


बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें – 


फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।

बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।


टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव –


गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।

खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।


छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन – 


बासी मा गुन हे गजब, येला सब मन खाव।

ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।


दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे – 


बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।

धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी नवा अविष्कार ला अपनाये के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे – 


आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।

सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।


सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।


बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।

पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।


उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण  या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।


खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।

आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।। 

 

सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे –


चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।

महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।


गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव –

 

जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।

कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।


दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय – 


जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।

तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।


रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।

दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे –


जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।

बाते मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावैं।।

करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।

बने-बुनाये काम,सबो ला  बात  बिगाड़य।।


आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द – 


डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।

छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावैं-खावैं।।

धरम - करम सब भूल, जाँय भकला मन भाई।

बनँय ददा-दाई बर ये कपूत दुखदाई।।


छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे। गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव –


गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।

माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।

मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।

खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।

गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।

गुरु के आदर नित करो, गुरु हर आय महान जी।।


चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें। 


धन धन रे न्यायी भगवान। कहाँ हवय जी आँखी कान।।

नइये ककरो सुरता-चेत। देव आस के भूत-परेत।।

एक्के भारत माँ के पूत। तब कइसे कुछ भइन अछूत।।

दिखगे समदरसीपन तोर। हवस निचट निरदई कठोर।।


चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे। चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के  आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई – 


सुनव सुनव सब बहिनी भाई। तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।

गपसप मा झन समय गँवावव। सुरता करके इसकुल आवव।।

दू दू अक्छर के सीखे मा। दू-दू अक्छर के लीखे मा।।

मूरख हर पंडित हो जाथे। नाम कमाथे आदर पाथे।।

अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।

आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।


पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे। दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें – 


झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।

अड़बड़ दिन मा होइस बिहान। सुबरन बिखेर के उइस भान।।

घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।

वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।। 


मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें। कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय – 


सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय

बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।

हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी

बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।

फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी

बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।

चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन

मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।


जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव - 


चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)


अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला

परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।

का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन

डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।

बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर

दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।

लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो

रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।। 


अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा –

 

चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो

फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।

कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला

पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।

सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब

आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।

धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके

करो खूब मदद अपन सरकार के।।


गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव – 


बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,

झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।

पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,

केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।

अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,

बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।

कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोहे,

मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।


जनकवि कोदूराम "दलित" के एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे – 


एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,

ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।

पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,

मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।

खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,

फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।

रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,

थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।


कुण्डलिया छन्द – ये छै डांड़ के छन्द होथे. पहिली दू  डांड़ दोहा के होथे ओखर बाद एक रोला छन्द रखे जथे. दोहा के चौथा चरण रोला के पहिली चरण बनथे. शुरू के शब्द या शब्द-समूह वइसने के वइसने कुण्डलिया के आखिर मा आना अनिवार्य होते. कोदूराम "दलित" जी  आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव – 


नीतिपरक कुण्डलिया – राख


नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।

परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।

गजब  अन्न  उपजाय, राख मां  फूँको-झारो।

राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर  कर  डारो।।

राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।

राख  दवाई  आय, राख –ला नष्ट करो झन।।


सम सामयिक  - पेपर

पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।

पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।

मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।

स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।

पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।

सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।


पँचसाला योजना  (सरकारी योजना) - 

 

पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।

बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।

बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।

अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।

देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।

होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।


अल्प बचत योजना - (जन जागरण)

अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।

सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।

पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।

अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।

दिही काम के बेरा मा, ठउँका  आफत के।

बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।


विज्ञान – (आधुनिक विचार)

आइस जुग विज्ञान के , सीखो  सब  विज्ञान।

सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान।।

करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।

तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।

ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।

सीखो सब  विज्ञान,   येकरे जुग अब आइस।।


टेटका – (व्यंग्य) 


मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।

जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।

तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।

लिलय  गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।

भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।

ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।


खटारा साइकिल – (हास्य)


अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।

बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।

कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।

सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।

लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।

पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।


अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -

नाम -

रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।

अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।

है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।

अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।

काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।

किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।


छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967) मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें। स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें। ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"। 


उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन गुरुकुल मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 200 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें। 


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़


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 जनकवि कोदूराम "दलित" जी को समर्पित काव्यांजलि


आल्हा छन्द - शकुन्तला शर्मा


(1) कोदूराम "दलित"


छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ

वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।


कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस  ज्ञान

भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।


देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद

आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।


अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल

गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।


शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत

मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।


मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान

ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।


जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार

सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।


दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात

सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।


रचयिता - शकुन्तला शर्मा, भिलाई

 जजनकवि कोदूराम “दलित” की साहित्य साधना : शकुन्तला शर्मा 


मनुष्य भगवान की अद्भुत रचना है, जो कर्म की तलवार और कोशिश की ढाल से, असंभव को संभव कर सकता है । मन और मति के साथ जब उद्यम जुड जाता है तब बड़े बड़े  तानाशाह को झुका देता है और लंगोटी वाले बापू गाँधी की हिम्मत को देख कर, फिरंगियों को हिन्दुस्तान छोड़ कर भागना पड़ता है । मनुष्य की सबसे बड़ी पूञ्जी है उसकी आज़ादी, जिसे वह प्राण देकर भी पाना चाहता है, तभी तो तुलसी ने कहा है - ' पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं ।' तिलक ने कहा - ' स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे ।' सुभाषचन्द्र बोस ने कहा - ' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।' सम्पूर्ण देश में आन्दोलन हो रहा था, तो भला छत्तीसगढ़ स्थिर कैसे रहता ? छत्तीसगढ़ के भगतसिंह वीर नारायण सिंह को फिरंगियों ने सरेआम फाँसी पर लटका दिया और छत्तीसगढ़ ' इंकलाब ज़िंदाबाद ' के निनाद से भर गया, ऐसे समय में ' वंदे मातरम् ' की अलख जगाने के लिए, कोदूराम 'दलित' जी आए और उनकी छंद - बद्ध रचना को सुनकर जनता मंत्र – मुग्ध हो गई  -


" अपन - देश आज़ाद  करे -  बर, चलो  जेल - सँगवारी

 कतको झिन मन चल देइन, आइस अब - हम रो- बारी।

जिहाँ लिहिस अवतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस

दुष्ट- जनन ला मारिस अउ,   भुइयाँ के भार - उतारिस।

उही  किसम जुर - मिल के हम, गोरा - मन ला खेदारी

अपन - देश आज़ाद  करे  बर,  चलो - जेल - सँगवारी।"


15 अगस्त सन् 1947 को हमें आज़ादी मिल गई, तो गाँधी जी की अगुवाई में दलित जी ने जन - जागरण को संदेश दिया –


" झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग

सत अउर अहिंसा सफल रहिस, हिंसा के मुँह मा लगिस आग ।

जुट - मातृ - भूमि के सेवा मा, खा - चटनी बासी - बरी - साग

झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग ।

उज्जर हे तोर- भविष्य - मीत,फटकार - ददरिया सुवा - राग

झन सुत सँगवारी जाग - जाग अब तोर देश के खुलिस भाग ।"


हमारे देश की पूँजी को लूट कर, लुटेरे फिरंगी ले गए, अब देश को सबल बनाना ज़रूरी था, तब दलित ने जन -जन से, देश की रक्षा के लिए, धन इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया –


कवित्त – 


" देने का समय आया, देओ दिल खोल कर, बंधुओं बनो उदार बदला ज़माना है

देने में ही भला है हमारा औ’ तुम्हारा अब, नहीं देना याने नई आफत बुलाना है।

देश की सुरक्षा हेतु स्वर्ण दे के आज हमें, नए- नए कई अस्त्र- शस्त्र मँगवाना है

समय को परखो औ’ बनो भामाशाह अब, दाम नहीं अरे सिर्फ़ नाम रह जाना है।"


छत्तीसगढ़ के ठेठ देहाती कवि कोदूराम दलित ने विविध छंदों में छत्तीसगढ़ की महिमा गाई है। भाव - भाषा और छंद का सामञ्जस्य देखिए –


चौपाई छंद


"बन्दौं छत्तीसगढ़ शुचिधामा, परम - मनोहर सुखद ललामा

जहाँ सिहावादिक गिरिमाला, महानदी जहँ बहति विशाला।

जहँ तीरथ राजिम अति पावन, शबरीनारायण मन भावन

अति - उर्वरा - भूमि जहँ केरी, लौहादिक जहँ खान घनेरी ।"


कुण्डलिया छन्द -


" छत्तीसगढ़ पैदा - करय अड़बड़ चाँउर - दार

हवयँ इहाँ के लोग मन, सिधवा अऊ उदार ।

सिधवा अऊ उदार हवयँ दिन रात कमावयँ

दे - दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ ।

ठगथें ए बपुरा- मन ला बंचक मन अड़बड़

पिछड़े हावय अतेक इही कारण छत्तीसगढ़ ।"


सार  छंद -

" छन्नर छन्नर चूरी बाजय खन्नर खन्नर पइरी

हाँसत कुलकत मटकत रेंगय बेलबेलहिन टूरी ।

काट काट के धान - मढ़ावय ओरी - ओरी करपा

देखब मा बड़ निक लागय सुंदर चरपा के चरपा ।

लकर धकर बपरी लइकोरी समधिन के घर जावै

चुकुर - चुकुर नान्हें बाबू ला दुदू पिया के आवय।

दीदी - लूवय धान खबा-खब भाँटो बाँधय - भारा

अउहाँ झउहाँ बोहि - बोहि के भौजी लेगय ब्यारा।"


खेती का काम बहुत श्रम - साध्य होता है, किंतु दलित जी की कलम का क़माल है कि वे इस दृश्य का वर्णन, त्यौहार की तरह कर रहे हैं। इन आठ पंक्तियों से सुसज्जित सार छंद में बारह दृश्य हैं, मुझे ऐसा लगता है कि दलित जी की क़लम में एक तरफ निब है और दूसरी ओर तूलिका है, तभी तो उनकी क़लम से लगातार शब्द - चित्र बनते रहते है और पाठक भाव - विभोर हो जाता है, मुग्ध हो जाता है ।


निराला की तरह दलित भी प्रगतिवादी कवि हैं । वे समाज की विषमता को देखकर हैरान हैं, परेशान हैं और सोच रहें हैं कि हम सब, एक दूसरे के सुख - दुःख को बाँट लें तो विषमता मिट जाए –


मानव की


" जल पवन अगिन जल के समान यह धरती है सब मानव की

हैं  किन्तु कई - धरनी - विहींन यह करनी है सब - मानव की ।

कर - सफल - यज्ञ  भू - दान विषमता हरनी है सब मानव की

अविलम्ब - आपदायें - निश्चित ही हरनी - है सब- मानव की ।"


श्रम का सूरज (कवित्त)


" जाग रे भगीरथ - किसान धरती के लाल, आज तुझे ऋण मातृभूमि का चुकाना है

आराम - हराम वाले मंत्र को न भूल तुझे, आज़ादी की - गंगा घर - घर पहुँचाना है ।

सहकारिता से काम करने का वक्त आया, क़दम - मिला के अब चलना - चलाना है

मिल - जुल कर उत्पादन बढ़ाना है औ’, एक - एक दाना बाँट - बाँट - कर खाना है ।"


सवैया - 


" भूखों - मरै उत्पन्न करै जो अनाज पसीना - बहा करके

बे - घर हैं  महलों को बनावैं जो धूप में लोहू - सुखा करके ।

पा रहे कष्ट स्वराज - लिया जिनने तकलीफ उठा - करके

हैं कुछ चराट चलाक उड़ा रहे मौज स्वराज्य को पा करके ।"


गरीबी की आँच को क़रीब से अनुभव करने वाला एक सहृदय कवि ही इस तरह, गरीबी को अपने साथ रखने की बात कर रहा है । आशय यह है कि - " गरीबी ! तुम यहाँ से नहीं जाओगी, जो हमारा शोषण कर रहे हैं, वे तुम्हें यहाँ से जाने नहीं देंगे और जो भूखे हैं वे भूखे ही रहेंगे ।" जब कवि समझ जाता है कि हालात् सुधर नहीं सकते तो कवि चुप हो जाता है और उसकी क़लम उसके मन की बात को चिल्ला - चिल्ला कर कहती है -


 गरीबी – 


" सारे गरीब नंगे - रह कर दुख पाते हों तो पाने दे

दाने दाने के लिए तरस मर जाते हों मर जाने दे ।

यदि मरे - जिए कोई तो इसमें तेरी गलती - क्या

गरीबी तू न यहाँ से जा ।"


कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि गाय जो हमारे जीवन की सेतु है, जो ' अवध्या' है, उसी की हत्या होगी और सम्पूर्ण गो - वंश का अस्तित्व ही खतरे में पड जाएगा । दलित जी ने गो - माता की महिमा गाई है । बैलों की वज़ह से हमें अन्न - धान मिल जाता है और गो -रस की मिठास तो अमृत -तुल्य होती है। दलित जी ने समाज को यह बात बताई है कि-"गो-वर को केवल खाद ही बनाओ,उसे छेना बना कर अप-व्यय मत करो" -


 गो - वध बंद करो


" गो - वध बंद करो जल्दी अब, गो - वध बंद करो

भाई इस - स्वतंत्र - भारत में, गो - वध बंद करो ।

महा - पुरुष उस बाल कृष्ण का याद करो तुम गोचारण

नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का याद करो तुम किस कारण ?

माखन- चोर उसे कहते हो याद करो तुम किस कारण

जग सिरमौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण ?

मान रहे हो देव - तुल्य उससे तो तनिक-- डरो ॥


समझाया ऋषि - दयानंद ने, गो - वध भारी पातक है

समझाया बापू ने गो - वध राम राज्य का घातक है ।

सब  - जीवों को स्वतंत्रता से जीने - का पूरा - हक़ है

नर पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक हैं।

सत्य अहिंसा का अब तो जन - जन में भाव - भरो ॥


जिस - माता के बैलों- द्वारा अन्न - वस्त्र तुम पाते हो

जिसके दही- दूध मक्खन से बलशाली बन जाते हो ।

जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो मौज - उड़ाते हो

अरे उसी - माता के गर्दन- पर तुम छुरी - चलाते हो।

गो - हत्यारों चुल्लू - भर - पानी में  डूब - मरो

गो -रक्षा गो - सेवा कर भारत का कष्ट - हरो ॥"


शिक्षक की नज़र पैनी होती है । वह समाज के हर वर्ग के लिए सञ्जीवनी दे - कर जाता है । दलित जी ने बाल - साहित्य की रचना की है, बच्चे ही तो भारत के भविष्य हैं -


वीर बालक


"उठ जाग हिन्द के बाल - वीर तेरा भविष्य उज्ज्वल है रे ।

मत हो अधीर बन कर्मवीर उठ जाग हिन्द के बाल - वीर।"


अच्छा बालक पढ़ - लिख कर बन जाता है विद्वान

अच्छा बालक सदा - बड़ों का करता  है सम्मान ।

अच्छा बालक रोज़ - अखाड़ा जा - कर बनता शेर

अच्छा बालक मचने - देता कभी नहीं - अन्धेर ।

अच्छा बालक ही बनता है राम लखन या श्याम

अच्छा बालक रख जाता है अमर विश्व में नाम ।"


अब मैं अपनी रचना की इति की ओर जा रही हूँ, पर दलित जी की रचनायें मुझे नेति - नेति कहकर रोक रही हैं । दलित जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । समरस साहित्यकार, प्रखर पत्रकार, सजग प्रहरी, विवेकी वक्ता, गंभीर गुरु, वरेण्य विज्ञानी, चतुर चित्रकार और कुशल किसान ये सभी उनके व्यक्तित्व में विद्यमान हैं, जिसे काल का प्रवाह कभी धूमिल नहीं कर सकता । 

हरि ठाकुर जी के शब्दों में -

" दलित जी ने सन् -1926 से लिखना आरम्भ किया उन्होंने लगभग 800 कवितायें लिखीं,जिनमें कुछ कवितायें तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और कुछ कविताओं का  प्रसारण आकाशवाणी से हुआ । आज छत्तीसगढ़ी में लिखने वाले निष्ठावान साहित्यकारों की पूरी पीढ़ी सामने आ चुकी है किंतु इस वट - वृक्ष को अपने लहू - पसीने से सींचने वाले, खाद बन कर, उनकी जड़ों में मिल जाने वाले साहित्यकारों को हम न भूलें।"


साहित्य का सृजन, उस परम की प्राप्ति के पूर्व का सोपान है । जब वह अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है तो अपना परिचय कुछ इस तरह देता है, और यहीं पर उसकी साधना सम्पन्न होती है -


आत्म परिचय


" मुझमें - तुझमें सब ही में रमा वह राम हूँ- मैं जगदात्मा हूँ

सबको उपजाता हूँ पालता- हूँ करता सबका फिर खात्मा हूँ।

कोई मुझको दलित भले ही कहे पर वास्तव में परमात्मा हूँ

तुम ढूँढो मुझे मन मंदिर में मैं मिलूँगा तुम्हारी ही आत्मा हूँ।"


शकुन्तला शर्मा, भिलाई                                                    

मो. 93028 30030

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*28 सितम्बर, पुण्यतिथि विशेष*


*संघर्ष ले उपजे जनकवि : कोदूराम "दलित"*

                               

छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाम ले मशहूर जनकवि कोदूराम "दलित" जी के जन्म 5 मार्च 1910 के ग्राम-टिकरी (अर्जुन्दा) जिला दुर्ग के  साधारण किसान परिवार म होय रहिस। किसान परिवार म पालन पोषण होय के कारण पूरा बचपन किसान अउ बनिहार के बीच म बीतिस।  ।आजादी के पहिली अउ बाद उन कालजयी सृजन करिन। समतावादी विचार,मानवतावादी दृष्टिकोण अउ यथार्थवादी सोंच के कारण आज पर्यन्त उन प्रासंगिक बने हवय।


दलित जी के कृतित्व मा खेती किसानी के अदभुत चित्रण मिलथे। खेती किसानी ल करीब से देखे अउ जिये हवय येकर सेती उँकर गीत म जीवंत चित्रण मिलथे :- 

पाकिस धान-अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,

कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी।

धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,

वो जग-पालनहार बिछाइस,ये सुनहरा बिछौना।

दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,

आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के।


स्वतंत्रता आंदोलन के बेरा लिखे उँकर प्रेरणादायी छन्द -

अपन देश आजाद करे बर,चलो जेल सँगवारी,

कतको झिन मन चल देइन,आइस अब हमरो बारी। 

गाँधीजी के विचारधारा ले प्रभावित अंग्रेजी हुकूमत  खिलाफ साहित्य ल अपन हथियार बनाईन शिक्षक रहिन तभो ले लइका मनके मन मे स्वतंत्रता के अलख जगाय खातिर राउत दोहा लिख-लिख के प्रेरित करिन :-

हमर तिरंगा झंडा भैया, फहरावै असमान।

येकर शान रखे खातिर हम,देबो अपन परान।


अपन मन के उद्गार ल बेबाक लिखइया दलित जी के रचना मन कबीर के काफी नजदीक मिलथे। जइसन फक्कड़ अउ निडर कबीर रहिन वइसने कोदूराम दलित जी। समाज म व्याप्त पाखण्ड के उन जमके विरोध करिन। एक कुण्डलिया देखव :- 

ढोंगी मन माला जपैं, लम्हा तिलक लगायँ ।

हरिजन ला छीययँ नहीं,चिंगरी मछरी खायँ।।

चिंगरी मछरी खायँ, दलित मन ला दुत्कारैं।

कुकुर – बिलाई ला  चूमयँ – चाटयँ पुचकारैं।

छोड़ - छाँड़ के गाँधी के, सुग्घर रसदा ला।

भेद-भाव पनपायँ , जपयँ ढोंगी मन माला। 


कोदूराम "दलित" ला जनकवि कहे के पाछू खास वजह ये भी हवय कि उँकर रचना म आम जनता के पीरा हे,आँसू हे,समस्या हे। उँकर कविता सुने के बाद आम अउ खास दूनो मनखे प्रभावित होय बिना नइ रह सकिस। उँकर कविता लोगन मन ला मुँह जुबानी याद रहय । उँकर रचना  समाज म व्याप्त बुराई उपर सीधा चोट करय। जेन भी बात उन लिखिन बिना कोई लाग लपेट के सीधा-सीधा कहिन। छत्तीसगढ़िया के पीरा ल दलित जी अपन जीवनकाल म उकेरिन जेन आज भी प्रासंगिक हवय। उँकर लिखे एक एक शब्द छत्तीसगढ़िया मनखे के हक के बात करथे :-

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार।

हवय लोग मन इहाँ के, सिधवा अउ उदार।।

सिधवा अउ उदार, हवयँ दिन रात कमावयँ।

दे दूसर ला भात , अपन मन बासी खावयँ।

ठगथयँ बपुरा मन ला , बंचक मन अड़बड़।

पिछड़े हवय अतेक, इही करन छत्तीसगढ़।


कवि हृदय मनखे प्रकृति के प्रति उदात्त भाव रखथे काबर कि उँकर मन बहुत कोमल होथे । दलित जी के प्रकृति प्रेम घलो ककरो ले छुपे नइ रहिस। उँकर घनाक्षरी मा प्रकृति के अदभुत चित्रण अउ संदेश मिलथे:-

बन के बिरिच्छ मन, जड़ी-बूटी, कांदा-कुसा

फल-फूल, लकड़ी अउ देयं डारा-पाना जी ।

हाड़ा-गोड़ा, माँस-चाम, चरबी, सुरा के बाल

मौहां औ मंजूर पाँखी देय मनमाना जी ।

लासा, कोसा, मंदरस, तेल बर बीजा देयं

जभे काम पड़े, तभे जंगल में जाना जी ।

बाँस, ठारा, बांख, कोयला, मयाल कांदी औ

खादर, ला-ला के तुम काम निपटाना जी ।


विद्यालय कइसन होना चाही दलित जी जे सपना रहिस उँकर कविता मा साफ झलकथे-

अपन गाँव मा शाला-भवन, जुरमिल के बनाव

ओकर हाता के भितरी मा, कुँआ घलो खनाव

फुलवारी अउ रुख लगाके, अच्छा बने सजाव

सुन्दर-सुन्दर पोथी-पुस्तक, बाँचे बर मंगवाव ।


खादी के कुर्ता, पायजामा,गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता देख के कोनो भी मनखे दुरिहा ले दलित जी ल पहिचान लय। हँसमुख अउ मिलनसार दलित जी के रचना संसार व्यापक रहिस। गांधीवादी विचार ले प्रेरित होय के कारण सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के संदेश अक्सर अपन रचना म दँय। हास्य व्यंग्य के स्थापति कवि होय के कारण समाज के विसंगति ल अपन व्यंग्य के हिस्सा बनावय। राजनीति उपर उँकर धारदार व्यंग्य देखव- 

तब के नेता जन हितकारी ।

अब के नेता पदवीधारी ।।

तब के नेता काटे जेल ।

अब के नेता चौथी फेल ।।

तब के नेता लिये सुराज ।

अब के पूरा भोगैं राज ।।


दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा प्रस्तुत करके घला खूब नाव बटोरिन। अपन बेरा मा मंच के सरताज कवि रहिन। सटीक शब्द चयन, परिष्कृत भाखा अउ रचना मन व्याकरण सम्मत रहय जेकर कारण उँकर हर प्रस्तुति प्रभावशाली अउ अमिट छाप छोड़य ।कविता काला कहिथे येकर सबसे बढ़िया अउ सटीक परिभाषा दलित जी के ये मात्र दू लाइन ल पढ़ के आप समझ सकथव : - 

जइसे मुसुवा निकलथे बिल से,

वइसने कविता निकलथे दिल से।


छत्तीसगढ़ी कविता ल मंचीय रूप दे के श्रेय पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी "विप्र" अउ कोदूराम "दलित" ला जाथे। 50 के दशक म दलित जी के छत्तीसगढ़ी कविता के सरलग प्रसारण आकाशवाणी भोपाल, इंदौर,ग्वालियर अउ नागपुर ले होइस जेकर ले छत्तीसगढ़ी कविता ल नवा ऊँचाई मिलिस। समाज सुधारक के रूप में दलित जी के संदेश अतुलनीय /अनुकरणीय हवय :-

भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय।

कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय।।

कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के।

खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के।

चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही।

तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।।


दलित जी के कुल 13 कृति के उल्लेख मिलथे जेमा- (१) सियानी गोठ (२) हमर देश (३) कनवा समधी (४) दू-मितान (५) प्रकृति वर्णन (६)बाल-कविता - ये सभी पद्य में हैं. गद्य में उन्होंने जो पुस्तकें लिखी हैं वे हैं (७) अलहन (८) कथा-कहानी (९) प्रहसन (१०) छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ (११) बाल-निबंध (१२) छत्तीसगढ़ी शब्द-भंडार (13) कृष्ण-जन्म (हिंदी पद्य) फेर दुर्भाग्य से उँकर जीवनकाल में केवल एक कृति- "सियानी-गोठ" ही प्रकाशित हो सकिस जेमा  ७६ हास्य-व्यंग्य के कुण्डलियाँ संकलित हवय। बाद में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छन्नर छन्नर पैरी बाजे‘ के प्रकाशन होइस। विलक्षण प्रतिभा के धनी लगभग 800 ले आगर रचना करे के उपरांत भी दलित जी आज भी उपेक्षित हवय ये छत्तीसगढ़ी साहित्य बर दुर्भाग्य के बात आय।  प्रचुर मात्रा म साहित्य उपलब्ध होय के उपरांत भी  दलित जी उपर जतका काम होना रहिस वो आज पर्यन्त नइ हो पाय हवय। कभू कभू तो अइसन भी महसूस होथे कि पिछड़ा दलित समुदाय हा सदियों से जेन उपेक्षा के शिकार रहे हे उही उपेक्षा के शिकार दलित जी भी होगे । 


दलित जी साहित्यकार के संग एक आदर्श शिक्षक, समाज सुधारक, अउ संस्कृत के विद्वान भी रहिन । उमन छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी के घलो शसक्त हस्ताक्षर रहिन दलित जी साक्षरता अउ प्रौढ़ शिक्षा के प्रबल पक्षधर रहिन। दबे कुचले मनखे मन के पीरा  लिखत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के नश्वर देह ल त्याग के परमात्मा म विलीन होगे,फेर अपन रचना के माध्यम ले आज भी अपन मौजूदगी के अहसास कराथें । दलित जी के जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण अउ अभाव म बीतीस ,शायद येकरे कारण उमन अपन रचना के प्रकाशन नइ करवा पाइन। आज जरूरत ये बात के हवय कि नवा पीढ़ी उँकर साहित्य के प्रकाशन करवा के गहन अध्ययन भी करयँ। 


अजय साहू "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

मो. 9926160451

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*जनकवि कोदूराम 'दलित' के काव्य मा गाँधी जी-*


(पुण्यतिथि विशेष- 28 सितंबर 💐💐💐)


छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाव ले प्रसिद्ध गाँधीवादी भावधारा के कवि कोदूराम 'दलित' हास्य व्यंग्य के बेजोड़ कवि रिहिन। गाँधी जी ले प्रभावित होय के सेती उँकर काव्य मा गाँधी जी के विचारधारा बनेच समाहित हे। 'दलित' जी के लेखन 1926 के शुरू होके 1967 तक चलिस। लेखन के शुरुआत मा देश मा सुराज बर लड़ाई जारी रिहिस। उन अपन कविता के माध्यम ले जन-जन मा गाँधी जी के विचार ला लेके देशप्रेम, राष्ट्रीय भाव, मद्य निषेध बर सजग करत खादी के प्रचार-प्रसार ला गाँव तक पहुँचाइस।


'दलित' जी आजादी बर अपन काव्य के माध्यम ले लोगन मन ला जगाय के काम करिस। उन किसान, मजदूर अउ जवान मन ला प्रेरित करत सुराज के लड़ाई मा संग देय बर तैयार करँय। अपनेच बोली मा ठेठ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके लोगन मन आनंदित अउ प्रभावित हो जाये।


'दलित' जी के काव्य कला के कमाल आय कि ओमन हिंदी के छन्द मा छत्तीसगढ़ी कविता लिखय। उँकर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो मा बरोबर अधिकार रिहिस। फेर उँकर छत्तीसगढ़ी मा काव्य रचना ज्यादा हे। कवि के काव्य मा राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता भावना, देशप्रेम, जनजागरण, अनिवार्य शिक्षा, खादी ग्रामोद्योग, विदेशी जिनिस के बहिष्कार, सहकारिता, मद्य निषेध, खेती-किसानी, बाल कविता के संग प्रकृति वर्णन के दर्शन घलो होथे।


कोदूराम 'दलित' सरल स्वभाव के शिक्षक कवि रिहिन। उन परतंत्र भारत अउ स्वतंत्र भारत दूनो के समय ला देखे हें। लोगन ला सुराजी लड़ाई बर जगाइस अउ आजादी के बाद देश के नवनिर्माण बर घलो घातेच जतन करिस। देश ला आजाद कराय के भाव धरे गाँव-गाँव मा सुराज के अलख जगाय अउ गाँधी जी के सत्याग्रह बर लोगन ला प्रेरित करय-


"अब हम सत्याग्रह करबो,

कसो कसौटी-मा अउ देखो।

हम्मन खरा उतरबो, 

अब हम सत्याग्रह करबो...

जाबो जेल, देस खातिर अब,

हम्मन जीबो मरबो।

बात मानबो बापू के तब्भे,

हम सब झन तरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो...."


गाँधी जी अउ क्रांतिकारी योद्धा मन सही सुराज बर जेल जाय बर जनमानस ला आग्रह करत उँकर सार छन्द के एक बानगी देखव-


"अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।

कतको झिन मन चल देइन, आइस अब हमरो बारी।

कृष्ण-भवन-मा हमु मनन गाँधी जी साहीं रहिबो।

कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।"


देश गाँधी जी के नेतृत्व मा सुराज के लड़ाई लड़ीन। जेमे हमर कतको क्रांतिकारी मन अपन बलिदान देइन। अब्बड़ मुसकुल मा ये सुराज मिले हे। बापू के वंदन करत कवि चौपाई छन्द मा कहिथे-


"जय-जय राष्ट्रपिता अवतारीं।

जय निज मातृभूमि मय हारीं।।

जय-जय सत्य अहिन्सा-धारी।

विश्व-प्रेम के परम पुजारी।।"


गाँधी जी मा स्वावलंबी के गुण कुट-कुटके भरे रिहिस। उन अपन काम खुद करय। चरखा चलाके खादी के कपड़ा बुने अउ पहिने। दूसर लोगन मन ला घलो चरखा चलाए बर कहाय। कवि बापूजी के धन्यवाद करत कहिथे-


"चरखा-तकली, चला-चला के खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।"


सत्य अहिंसा के पुजारी बापू जी के बताये रद्दा आज घलो प्रासंगिक हे। गाँधी जी के बिचार लेके 'दलित' जी अपन स्कूल के लइका मन ला छत्तीसगढ़ी पारंपरिक राउत दोहा बनाके सुनाय अउ राष्ट्र प्रेम के अलख जगाय- 


 "गाँधी जी देवाइस भैया, हमला सुखद सुराज।

ओकर मारग में हम सबला, चलना चाही आज।।"


कवि गाँधी जी ला अवतारीं पुरुष कहिके सम्बोधित करे हवय। उन कहिथे उँकर जप, तप के बल ले सुराज मिलिस। अब बापूजी के विचार ला लेके हमर भारत देश ला बैकुंठ असन बनाबो-


"अँवतारी गाँधी जी आइन, 

जप तप करिन सुराज देवाइन।

हमर देस ला हमर बनाइन,

सुग्घर रसदा घलो देखाइन।

उँखरे मारग ला अपनाबो,

भारत ला बैकुण्ठ बनाबो।"


सुराज के बाद 'दलित' जी नवभारत के निर्माण बर जुट जाथे। गाँव ला सुंदर बनाए बर लोगन ला चेत कराय। उन मंदहा मन ला बड़ फटकारय। मंद सभ्य समाज बर घातक बीमारी आय। पियइया मन ला व्यंग्य करत कहय-


"मंद पीए बर बरजिस गाँधी, 

महाराज, जउन लाइस सुराज।

ओकर रसदा ला तज के तैं,

झन रेंग आज, झन रेंग आज।


पियइ में तोर लगे आगी, 

जर जाय तोर ये जिनगानी।

पीथस निपोर तैं ढकर-धकर,

ये सरहा मौंहा के पानी।"



गाँधी सुराज के बाद गाँव ला सुग्घर बनाये बर सबो झन ला जुड़े बर कहय। गाँव के मन ला कर्मशील बनाना चाहत रिहिस। उन चरखा चलाय बर, खादी पहिने बर अउ गाँव के खेती-खार ला अपनाए बर चेताइस। गाँव मा उद्योग-धंधा चालू करे बर सपना देखिस। सहकारिता के लाभ ले बर बताइस। ताकि गाँव के मनखे पलायन के समस्या ले बांचे। गाँधी जी के भारत अइसनेच तो बनही। गाँव के जनजीवन के चित्रण करत कवि के पंक्ति देखव-


"गाँधी जी के गोठ ला भुलावो झन  भैया हो रे,

हाथ के कुटे-पीसे, चाँउर, दार, आटा खाव।

ठेलहा बेरा में रोज, चरखा चलाव अउ,

खादी बुनवा के पहिनव अउ ओढ़त जाव।

गाँव-गोढ़ा छोड़ के सहर जाके बसो झन,

गाँव के खेती-बारी, उद्योग-धंधा पनपाव।"


'दलित' जी सुराज के बाद लोगन ला सजग रेहे बर कहिथे। हमर असंख्य वीर-बलिदानी मन के कुर्बानी ले आजादी मिले हे। येला कोई भी कीमत ले संभाल के रखना हमर कर्तव्य हे। गजब दिन बाद हमर देश के भाग खुले हे, अब सुते के बेरा नइ हे।


"झन सुत सँगवारी जाग-जाग।

अब तोर देश के खुलिस भाग।

सत अउर अहिंसा राम-बान।

बापूजी मारिस तान-तान।

सँहराले संगी अपन भाग।

झन सुत सँगवारी जाग-जाग।

अब तोर देश के खुलिस भाग।"


बापू जी के सपना देश मा मंगलमय रामराज के रिहिस। मनखे मन समाज के सुख के कारण बनय। दीन-दुखी, असहाय मन के काम आय। स्वारथ, भेदभाव अउ ऊँच-नीच के बड़का खाई पटा के नवा समाज के निर्माण होय। तभे हमर स्वराज के महत्व हे। 'दलित' जी के सुग्घर राज बनाये के कल्पना अइसन हवय-


"लाने हन जुरमिल के जइसे हम्मन सुराज।

तइसे येला अब सुग्घर राज बनाबो जी।

कतको झन अब तक ले जस का तस परे हवँय।

उन बपुरा मन के सब दुःख दरद मिटाबो जी।


हम संत विनोबा गाँधी अउ नेहरु जी के।

मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चली आज।

तज अपस्वारथ कायरी फूट अउ भेद-भाव।

पनपाई जल्दी अब समाजवादी समाज।"


कोदूराम 'दलित' समाज अउ देश बर सचेत करइया कवि रिहिन। उन आजादी के पहली लोगन ला लड़ाई बर प्रेरित करिन, अउ आजादी के बाद देश के नवा निर्माण करे बर रद्दा देखाइस। बापूजी के बिचार ला धरके गाँव, समाज अउ देश ला आघु लाय के सपना  देखिस। अउ ओला पूरा करे बर सही रद्दा घलो बताइस। किसान, मजदूर मन ला खेती के काम बने चेत लगाके करे बर, संगे-संग खदान अउ कारखाना मा उत्पादन बढ़ाय बर जोर देइस। ताकि कड़ी मेहनत के उदिम ले देश के उत्तरोत्तर विकास होवय।


जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा डंडासरन पैलगी।


हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया)

राजनांदगाँव


झपली ले झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ (महेंद्र बघेल)

 झपली ले झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ

                       (महेंद्र बघेल)


बेरा -कुबेरा ल देखत येमा जादा बेर ले गोठियाना फबित नइहे,अभी बहुत अकन वक्ता मन ल सुने के बाचे हवय। इही ओरियावत पुस्तक विमोचन के पहिली वक्ता डहर ले जब गोठ ल लमियाॅंय के बोहनी होथे।तब अइसन माहौल म दूसर वक्ता मन ल सुने के आस म बइठे बपरा श्रोता मन के सबर के संग होवत खुलेआम बलात्कार ल समझे जा सकथे।अउ एती अपन पारी के आवत ले श्रोता मन ह इहाॅं रूक पाहीं कि भाग जाहीं..,इही फिकर म बाकी वक्ता मन के टेंशन ह बढ़के अटेंशन मोड म चले जाय रहिथे।बीच-बीच म बोहनियार (बोहनी करइया) वक्ता ह कोरा पन्ना म लिखे पोथी अउ पुस्तक के पन्ना म खोंच के राखे चिनहा ल देखावत बफलथे:- " मॅंय  चाहॅंव ते अभी येमा दू घंटा ले अउ बोल सकथॅंव फेर समय के अपन सीमा हे,समय के मान रखना हमर जइसे वरिष्ठ मन के तो पहली धरम आय।" येमन हर दस मिनट म इही कहि-कहि के माइक के प्राण पुदक डार रहिथें। माईक ह अपन अंतरात्मा के साफ्ट साईट म जाके मनन घलो करत  होही, ये मोला कब छोड़य त जी भरके सहाॅंस लेंव..।अइसन झेलमझेल वक्ता मन अपन सूसी के पूरत ले बोलथें अउ अभी बहुत कुछ बोलना बाकी हे बोलत- बोलत ले-देके माइक ल छोड़थें..।येमन बपरा श्रोता मन के दिमाग ल चाॅंट -चुॅंटाके अपन स्वरोजगार ल बढ़ावा देथें, येहा श्रोता संग इमोशनल अत्याचार नोहे त अउ का हरे..।

             शुरू म जब अतिथि राखे बर ये वरिष्ठ मन ल पूछबे, तब येमन बड़ भाव खाथें।मोला इहाॅं जाना हे, उहाॅं जाना हे कहिके अपन कद ल कद्दावर बनाय के कोशिश म लग जथें।सही कहिबे त येमन ल काहॅंचो आना-जाना नइ रहय, बस फोकट म फेंक-फेंक के अपन वजन ल बढ़ाना रहिथें। दुनिया जानथे हमर असन के छोड़ येमन ल कन्हो खर्रू तक नइ पूछें। पहुना बनई लेबे त आधा घंटा के समय सीमा में बीस मिनट ले मॅंय -मॅंय ,मॅंय.. के स्टोरी सुनावत विषय अउ समय के दही-मही कर देथें।

                 बोलक्कड़ समाज के सियान मन के कहना हे कि जी भरके माईक म बोलई ह एक ठन तपस्या घलो आय,वो अलग बात आय कि ये तपस्या ह श्रोता मन बर घनघोर समस्या बनके रहि जथे।बोलई अउ सुनई के बीच के साहित्यिक संघर्ष ह जब असकटई के लक्ष्मण रेखा ल छू लेथे तब लफरगंजू मन के बल्ले-बल्ले हो जथे।ये  रसायनिक अभिक्रिया ले निकले दुष्परिणाम ल बिचारा श्रोता मन के तरवा म साफ-साफ पढ़े जा सकथे फेर आयोजक मन ल येकर थोरको गम नइ रहय। जब बोलक्कड़ ह वंदे भारत के रफ्तार म दउड़ना शुरू करथे ते रूकई के नाम नइ लेय।वो तो भला होय गाय -भैंसी के जिनकर हुमेले ले थोकिन सहाॅंस लेय के मौका मिल जथे। भलुक सुनईया मन ल घलव कोई हुमेले के विद्या सिखो पातिन। जिहाॅं एक झन बोलक्कड़ ल सहि पाना बड़ मुश्कुल रहिथे उहाॅं चार-पांच झन ल झेलना (सुनना) मने लंगोट पहिरके दक्षिणी ध्रुव म भ्रामरी प्राणायाम करना।

                  बपरा ह ननपन अउ जवानी ल साहित्य के सेवा म लगा दिस, जिहाॅं -जिहाॅं गोष्ठी होय पानी -पसिया धर-धरके जाय, दरी बिछाय,पानी पीयाय..।तभो ले बर रूख कस वरिष्ठ साहित्यकार मन थोरको भाव नइ दिन।ये तो एकलव्य कहानी के असर आय कि साहित्य ल सुने-समझे के लइक खोपड़ी म बुध आगे।वरिष्ठ साहित्यकार के मकुट पहिरे कहुॅं द्रोणाचार्य मन के चलतिस ते दशा-दिशा के बाते ल छोड़ दरी बिछवाय अउ पानी पीलवाय के बूता म येमन पीएचडी करवा के मानतिन। मने बर रूख के छइहाॅं म थिरा तो सकथस, कभू जाम नइ सकस।राजा बाबू कस सिरिफ अपन चेहरा चमकाय वाले ये गुरूवारी दुनिया म सावित्रीबाई फूले कस पर (दूसर) बर दरी बिछाके रद्दा बतईया भला अब कहाॅं मिल पाहीं।

          अइसन महात्मा मन ल खोजत- खोजत तॅंय खुद सीनियर सिटीजन के शिकार हो जबे अउ जादा खोज-बीन करे के चक्कर म एक दिन आखिर इही बरे रूख म झपाबे। तेकर सेती वरिष्ठ बोलक्कड़ मन के आगू म नेवरिया मन ल सुनक्कड़ बने के साहित्यिक अभ्यास करना मजबूरी हो जथे।दरी बिछइय्या के पदवी पाय के एवज म बरगदाचार्य मन ल कम से कम अंगठा के जगा घंटा दू घंटा सूने के गुरू दक्षिणा तो दिए जा सकथे।हाथ म अंगठा तो दूवे ठन रहिथे ना..,वहू म जेवनी के पूछन्ता हे।जब चार ले पांच झन महा बोलक्कड़ मन ल अतिथि बनाके बइठारबे तब इनला सूने के छोड़ बुचके के कन्हो रद्दा बचिस कहाॅं..।ये दशा म चारों -पाॅंचो झन ल गुरु दक्षिणा देय के उदीम म अंगठा के भला कतिक कुटका कर डारबे।तेकर ले अच्छा हे सुनक्कड़ बरोबर सून अपन पीत ल मार -मार के सून।

             जब पहली नंबर के वक्ता ह चिकमिक- चिकमिक पोठ-पोठ ल निमार- निमार के सुनक्कड़ मन के मगज ल चाटके अपन झंडा फहरा डरथे।तब बाकी वक्ता मन बर भला का बाचिस।वहू मन तो उहीच ल गुरमेट के लाय रहिथें ना..। बाकी वक्ता मन,पूर्व वक्ता ह अइसे कहिस वइसे कहिस के चीख-पुकार करत अपन वक्ता धरम ल निभाथें।अउ जजमान के इज्जत म मान सम्मान के दूबी जमा देथे। देखे जाय तो साहित्य जगत म हर वक्ता के अपन अलग पहचान होथे, जादा पूछ-परख वाले मन के पूछी जामें रहिथे..।कम पूछ-परख वाले मन ह पूछी ट्रांसप्लांट करवाय के जुगाड़ म आयोजक मन ले संपर्क बनाके रखना अपन राष्ट्रीय धरम समझथें।इही अनुशासन ले तो स्वस्थ पूछी जामें के गुंजाइश ह जिंदा रहिथे।

             साहित्य जगत म पूछी वाले अउ भावी पूछी मन ल एक -दूसर के कट्टर आलोचक माने जाथे।फेर कुछ मन बाड़ू (बिन पूछी वाले वक्ता) टाइप के अपवाद घलव होथें, जेन दूनो के माॅंद म खुसरके अपन पुरतिन राॅंध लेथें। इनकर दुनिया म वाद वाले थोरको विवाद नइ रहय तेकर सेती आयोजक मन इनला सिरिफ धन्यवाद दे-दे के आबाद करत रहिथें।कोनो भी कार्यक्रम के कारड म अपन नाम छपे के शर्त म पूछी अउ भावी पूछी वाले मन ह आयोजन म सॅंघरे  बर सहमति देथें।कारड म एक के  नाम ल राखे अउ दूसर ल छोड़े म दूसर ह तुरतेच पूछी उठाके भाग जथे।पूछी वाले के पगरइती म भावी पूछी वाले ह भोरहा म कहुं श्रोता बनके पहुंचगे.., त पूछी वाले ह विषय के चरचा ल बिसराके भावी पूछी वाले ल निपटाय म अपन जिनगी भरके वरिष्ठता ल खपा देथे। साहित्य के खरदरहा मैदान म ये उल्टी-पल्टी वाले खेल ल फेमस करे म दूनो मन के भारी योगदान ह जग-जाहिर हे।एक तो येमन मंच म एक-दूसर के छइहाॅं नइ खूॅंदे अउ कहुॅं ओरभेट्टा होइगे त येमन एक-दूसर के शास्त्रीय ढंग ले बारा बजाय बर थोरको पाछू नइ घूॅंचे।

             एक ठन कार्यक्रम बर भावी पूछी वाले ल माईपहुना बनायेन।अउ पूछी वाले ल मुअखरा नेवता देय बर गेन।सबले पहिली तो वोहा आहूॅं कहिस फेर मोर डहर गुगली फेंकत पूछिस-" कोन-कोन पहुना मन आवत हे।" जुवाब म कलई ल घुमाके स्वीप शाॅट खेले कस मॅंय कहेंव - "भावी पूछी वाले ह माईपहुना हे।" अतका सुनते साट पूछी वाले के हाव-भाव ह हवा -हवई होय लगिस।जनो-मनो ये पिच म भावी पूछी वाले ह तिहरा शतक ठोंक डरे हे।

            पूछी वाले अउ भावी पूछी वाले मन के पुचपुचई ल देखके कभू-कभू बाड़ू मन ल घलव इही पीच म बैटिंग करे के शौक चर्राय रहिथे।फेर जब हिट विकेट हो जथे तब औकात ह तुरते समझ म आ जथे।

कई झन वरिष्ठ साहित्यकार मन अपन जिनगी के अनुभो ल बतावत सावचेत रहे बर कहिथे कि ये साहित्य के दुनिया म कई ठन नमूना एती-ओती मेड़रात रहिथें। जिनकर ले जरा बच के रहना चाही।

             फेर वाह रे दुर्भाग्य.., एक घाॅंव हमर संगवारी के अइसने नमूना ले भेंट होगे। संगवारी ह बेवहार निभाय बर उही नेवता कारड ल भावी पूछी वाले नमूना ल सौप परिस। तहाॅं नमूना के नमूनागिरी शुरू होगे। सबले पहिली ओहा कारड ल उलट-पलट के घेरी-बेरी देखिस फेर अपन अंतस के करू-कासा ल बीखहर जबान डहर ले फेकिस-" येमा हमर का रोल हे, ये..,येमन ह तुॅंहर मंच के कुरसी म बैठहीं अउ हम खाल्हे म बैठे के लइक दिखथन, साहित्य के स मालूम नइहे अउ जुच्छा कारड बाटे बर आगेस, बिना पद नाम लिखे अइसने नेवता दे जाथे का..।" भावी पूछी वाले नमूना ह कारड बटइया के सात पूरखा म पानी रितो दिस। ओकर करू जबान वाले दू सौ चालीस वोल्ट के झटका म संगवारी के टोंटा सूखागे।

            अनुभवी मन बताथें कि सुवारथ के झपली ले निकले अइसन खतरनाक नमूना मन सरकारी साहित्यिक संस्था के पद ल हड़पे बर बिलई कस तुकत रहिथें।अउ मसगिदहा बरोबर झपट्टा मारके पद ल लाइफटाइम बर बुक कर लेथें। पद के मिलते साट ईंखर मन के उपर छपास नाम के वायरस अउ दिखास नाम के बैक्टीरिया ह हमला कर देथे। अब इहाॅं ले शुरू होथे इंखर दिखास, छपास नाम के साहित्यिक यात्रा..।बिहान दिन ले हर साहित्यिक कार्यक्रम के खबर म सिरिफ ईंखर छपे फोटू अउ नाम ल देखे पढ़े जा सकथे। अखबार के खबर म ईंखर नाम के संग दूसर के नाम अउ फोटू छपे म ईंखर अंतस म खस्सू खजरी  अवतरित हो जथे अउ खसर-खसर खजवा- खजवा के येमन हलाकान हो जथें। जानकार मन बताथें कि चार-चउहट म इही खस्सू खजरी के अलहन ले बचे बर दूसर के फोटू ल लतियाके येमन अपने बड़े-बड़े फोटू ल छपवाय के कूटनी चाल चलथें।

        ये नमूना छाप साहित्यकार के झपली म खधवन टाइप के कुछ खास आइटम घलो पाय जाथे। ये आइटम मन के नजर ह हर समय कुरसी म अटके रथे अउ फलास के दमदम ले बइठे बर ईंखर खलपट आत्मा ह कुरसी के एक-भाॅंवर भटकत रहिथे।अउ मान-गउन नइ करबे त जगा-जगा झपली म खुसरे साहित्यात्मा मन झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ करे के जुगाड़ म फस्स -फस्स करत रहिथें।

         बड़े -बड़े कार्यक्रम के मंच संचालक मनके बाते झन पूछ..,येमन खुद वक्ता बने के चक्कर म दुनिया भर के ज्ञान बाॅंटना शुरू कर देथें अउ वक्ता ल जल्दी-जल्दी समेट कहिके चुक्ता करे म अपन शान समझथें।

        एती काव्य गोष्ठी म अपन कविता ल सब झन ल सुनाय के सपना संजोय पुचपुचहा कवि मनके चाल चरित्तर ह काकरो ले कम रहिथे का..।जब देखबे तब येमन ह पहली नंबर म कविता सुनाय बर बुकबुकात रहिथें।येमन ह दूसर ल कभू नइ सुन सके, फकत अपन ल सुनाथें अउ तुरते टसक के अपन महाकवि होय के धरम ल निभाथें। हद तो तब हो जथे जब संयोजक कवि के कविता ल सुने बर एक मात्र हुमदेवा श्रोता माईक वाले ह बाच जथे।वहू ह सबला सुन-सुन के अब -तब वेंटिलेटर म डारे के लइक हो जाय रहिथे।

             कुलमिलाके काव्य गोष्ठी, परिचर्चा, पुस्तक विमोचन, समीक्षा जइसन कार्यक्रम ह ये पूछी वाले अउ नमूना छाप आइटम मनके छपास, दिखास अउ बोलास के तीन- तिकड़ी म अरहज के रहि जथें। ईंखर चक्कर म आयोजक अउ श्रोता समाज के भाग म घंटा बजाय के छोड़ अउ कुछु बचथे..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

जीवन क्षणभंगुर हे-पल्लवन

 भाव पल्लवन-




जीवन क्षणभंगुर हे।

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मनुष्य के जिनगी के कोनो ठिकाना नइ राहय।ये क्षणभंगुर होथे।एक पल पहिली हे ता दूसर पल खतम तको हो जथे। कभू-कभू अइसे देखे-सुने मा तको आथे के फलाना हा एक-दू मिनट पहिली हली-भली हाँसत-गोठियावत रहिसे अउ ये दे वोकर काठी के खबर आगे। कबीरदास जी जिनगी के मरम ला उजागर करत कहे हें--

पानी केरा बुदबुदा अस मानुस के जात।

देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात।

          जिनगी पानी के फोटका कस ताय ,देखते- देखत क्षण भर मा फूट जथे। जिनगी हा साँस के चलत भर ले आय ।साँसा के डोरी ह कभू न कभू रट ले टूट जथे।कब कतका बेर जीव रूपी पंछी ये तन के घोसला ला तियाग के उड़ जही तेला कोनो नइ बता सकय। ये जीव अइसे बिचित्र होथे के उड़िच तहाँ ले दुबारा लहुट के नइ आवय। ये सम्बंध मा कवि नाथू राम शास्त्री 'नम्र' जी हा कतका सटीक बात कहे हें--

क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,

कल प्रात को जाने खिली न खिली।

मलयाचल की शुचि शीतल मन्द

सुगन्ध समीर मिली न मिली।

      मनखे के मरना अटल होथे।मौत ल कोनो नइ रोक सकय।बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी,बलवान,धन कुबेर मन कोशिश करके हारगें फेर मौत ले पार नइ पा सकिन। इहाँ जेन जन्म लेथे वोला एक न एक दिन मरे ला तको परथे।एक बात अउ सत्य हे के--मनखे हा ये दुनिया मा खाली हाथ जनम लेथे अउ खाली हाथ चल देथे।धन-दोगानी,महल-अटारी,कुटुम-कबीला सब इही मृत्यु लोक मा छूट जथे।संत- महात्मा मन के तेकरे सेती कहना हे के मनखे ला कुछु चीज के घमंड नइ करना चाही। ये जीवन ला ईश्वर के देये अनमोल भेंट कहे गेहे।जतका मिलगे वोतके काफी हे मानके चलना चाही अउ एला सदकर्म मा खपाना चाही। ए हीरा ला छल-कपट, इरखा अउ नाना प्रकार के माया के कचरा मा नइ फेंकना चाही।भूत-भविष्य के चिंता ला छोड़के ,वर्तमान के आनंद मा बूड़के हरिनाम सुमिरन करना चाही।        मनुष्य के मरना-मरना मा फरक होथे।ए हा वोकर करम के अनुसार होथे।कबीर दास जी के कहना हे--

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।

इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

प्रसंग


                      *प्रसंग*


       (ये नान्हें रचना मन कविता के क्षणिका मन असन गद्यात्मक 'क्षण' यें। येमन लघु कथा  नई होइन।



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                      *1.नावा शब्द*


         


                   राठिया गुरुजी अउ उँकर घर के गुरुआइन बनेच बेर ल ची -चांव होय रहिन। अब तो गुरु उठके ,काहीं जाय लगिन-

"अब अउ कोन कोती...?" गुरुआइन के मुख ले निकल गय।फेर येला सुनके गुरूजी, एक पइत फेर भड़क गिन अउ तड़क के कहिन -

"अब राहन दे न...तोर ये *थोथनावली* ल !"


          येला मंय सुनें अउ भक्क का गंय। घर आके पुनीत गुरुवंश कृत विराट शब्द सागर म खोजें । नई पाँय।


           राठिया गुरुजी के बरन ल देखत, उँकर से पूछे  के  हिम्मत नई होइस।


            थोथनावली -प्रश्नावली-रत्नावली...

फेर साहित्यकार मन बर एकठन नावा लइका एकठन नावा शब्द जनम गय रहिस।



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                    *2.कार्यकर्ता*



         दीनानाथ अउ मंय, दुनों के दुनों छट्ठी नेवता ले फिरत रहेंन। तभे सड़क तीर म एकझन मनखे हर परे दिखिस। मंय तुरतेच वाहन ल रोकें अउ दीना कोती ल देखें। दीना मोर इशारा ल समझ गिस अउ कूदत वोकर तीर म पहुँच गय देखे बर। अतका बेर ले एकझन अउ सायकिलिहा वो जगहा म आ के  खड़ा हो गय रहिस।


          दीना किंजर के वो मनखे ल बने आँखी गड़ा के देखिस।छाती धुक- धुकी ल बढ़िया के वो कहिस - भैया कार्यकर्ता तो आय ग...


          अउ वो वापिस आ गिस अउ चले बर कहिस।फेर वो सायकिलिहा के मुंहूं फरा गय रहिस। वो पूछ बईठिस - का जिनिस के कार्यकर्ता भैया...?

"येहर पी.पी.आंदोलन के कार्यकर्ता ये।"

"पी.पी. आंदोलन...!ये कोन से आंदोलन आय?असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन असन बने निक लागत हे।"

"पी.पी.आंदोलन माने 'पउआ -पानी आंदोलन' होथे,भईराम! ये हमर बड़े भई, अइसन कहथे।" दीना मोर कोती ल इशारा करत कहिस।

" वाह...!बहुत सुंदर...!! फेर  अतेक बड़े सम्मानित अउ जन जन बियापे ,ये आंदोलन के अतेक सम्मानित कार्यकर्ता ल अइसन छोड़  देबो?नही...!" वो सायकिलिहा कहिस अउ वो   कार्यकर्ता कोती गिस।


          अब के पइत दीना फिर गिस अउ वो दुनों मिलके वोला ,कईसनों भी करत,तीर के छपरी म ले आनिन। फेर तब तक ले,वो कार्यकर्ता के श्री मुख ले आंदोलन के नारा बाजी शुरू हो गय रहिस।


               छपरी तरी म वोला देखके वो सायकिलिहा के चेहरा म सन्तोष के भाव आ गे... चल कूछु रूप म हमू मन , आंदोलन के अंश बन गेन।इंदल राजा के बरखा ले बाँचे के उपाय तो हमन कर देय हांवन।अउ कूछु आन मन बरसहीं येकर उप्पर तब का करबो!

"बने कहे...अभी देवशयनी चलत हे, देवउठनी के समे म, येहर उठ जाही।"मंय कहें अउ हमन  एक दूसर के राम जोहार करत ,अपन -अपन रस्ता म चल देन।


*रामनाथ साहू*



कहानी : माटी-महतारी*

 *कहानी : माटी-महतारी*


             घर के माली हालत बने नइ रहे ले रघुनाथ कमाय खाय बर अपन जनम भुइयाँ ल छोड़ के शहर के रस्ता नापत हवय। ओकर सुआरी कुंती घलव ओकर संग म जावत हे। पहिली घँव गाँव के मेड़ो ल छोड़ के जावत हवँय दूनो परानी। पाँव उसलत नइ हे, अउ पेट म परे छाला ओला गाँव म रहन घलव नइ देवत हे। का करय? पेट के नाँव जग जीता, बिहना खाये संझा रीता। एकर पहिली रघुनाथ कतको ल अइसने खाय कमाय बर जावत देखे हे। फेर गाँव छोड़े के पीरा पहिली घँव जनावत हे। आँखी ले बोहावत धार थिरकत नइ हे। मनेमन बिनती घलव करत हे, भगवान! अपन माटी अउ अपन गाँव छूटे के अइसन पीरा अउ कोनो ल झन देबे।

          भारी मन संग पाँव आगू बढ़त जावत हे अउ गाँव पीछू छुटत जात हे। महतारी संग माटी ले बने घर म सात परानी रहिथें। ददा ल दू बछर होवत हे, माटी के तन ल माटी म छोड़ सरग सिधारे। ददा के बड़ दवा-दारू करिस फेर ददा हाथ नइ आइस। लकवा के चलत छे महीना ले इलाज कराइस। जे काहय तिही डॉक्टर अउ बइद करा गिस रघुनाथ ह। फेर दूधो गिस अउ दुहनओ गय। ददा दम नइ लिस अउ एक दिन सुते दसना ले उठे के नाँव नइ लिस। सुते च सुते सदा दिन बर सुत गे। इलाज-पानी अउ खात-खवई म करजा ह रघुनाथ के मुड़ म छानी म चढ़े रखिया-तुमा के नार सहीं चढ़ते गिस। उतरे के नाँव नइ लिस। खेती के नाँव म सवा एकड़ हावय। पुरखौती कहे बर पुरखा मन के इही एक ठन चिन्हारी हवय। माटी के घर के छोड़े। वहू भुइँया ह नाँवभर के तो अपासी हरे, फेर तीन गाँव ल पार करत आय नाहर नाली ले खार के छेवर म खेत राहय। बरसा के एक पानी टूटे ले बीजहा के पुरती हो जवय। अइसन म लइका-पिचका सुद्धा सात परानी के पेट पलई ह मुश्किल होवत रहिस। बीते बछर इही हाल हो राहय। अइसन म रघुनाथ के करजा बेरा के चढ़त घाम बरोबर दिन के दिन बाढ़त गिस। मूल ऊपर सूद बाढ़तेच रहिस। ओकर जिनगी दूब्बर बर दू असाढ़ होगे राहय। जग अँधियार लागे। सुतय त नींद नइ परय, साहूकार ह नजरे नजर म झूलय अउ ओकर गोठ ले हिरदे म पीरा उठय।

         साहूकार के नजर खेत म गड़े रहिस। जे पइत आय ते पइत इही कहय- ''रघुनाथ ! एक ठन टेपरी ल करजा के बलदा म मोला दे दे। मोर करजा ल तें ह कमा कमा के छूटे च नइ सकस।"

         साहूकार के तगादा ले हलाकान रघुनाथ करजा छूटय कि सातो परानी के मुँह म पैरा डारय, कुछु समझ नइ आवत हे ओला। चार झन नोनी च नोनी हे। बेटा के आस म एक-एक कर दू झन नोनी ह अउ आगे रहिस। वो तो भला होवय ओकर महतारी के जउन ओला नोनी-बाबू म फरक करे ले झँझेट के ओकर बाढ़त परिवार म ब्रेक लगाइस। कुंती बपुरी ह तो हम दू, हमर दू के गिनती गिनत रहिगे। बपुरी के चलती रहतिस त परिवार ...। पर कोठा के लक्ष्मी ल अभियो बरोबर मान कहाँ मिल पाय हे? जिनगी भर अपन ठीहा ह खोजत रहि जथे बपुरी मन। लक्ष्मी अवतरे हे कहिके बड़ मान देथें नान्हेपन म। घर म सबो बड़ खुश होथें। कोरा म लेके घुमत रहिथें। फेर हाथी के दाँत जनाइ जथे। खाय के आने अउ दिखाय के आने। नोनी बड़े होवत जाथे अउ ओकर भरम टूटत जाथे कि ओकर तो घर कहूँ अउ हे? लोगन यहू ल भुला जथें कि वहू ह नारी च के कोख ले अवतरे हे। कोन जनी कोन जुग म बरोबर दरजा अउ मान पाही ते नारी ह? त्रेता म घलव सुख के घरी आइस त अग्निपरीक्षा दे ल परगिस। बनवास के बेरा राम के छइहाँ बनके संगे तो निकले रहिस सीता माई ह। फेर वाह रे जमाना! तोला नारी के मान करे नइ आइस।

         आजो घलव घर के लक्ष्मी लाँघन पेट के जतन करे रघुनाथ संग शहर पहुँचाय के सड़क तक रेंगत जावत हे। मुड़ म बड़े जान मोटरा हावय। जेमा बरतन भाड़ा अउ कपड़ा-लत्ता भराय हे। मन के पीरा ल अँछरा म बाँध के कनिहा म खोंचे हावय। चारो पिला ल घर म छोड़ के जावत हे। सास के जतन बर एक झन ल छोड़त हे, त दूसर ल ओकर बुता म हाथ बटाय बर। छोटकी अभी छठवीं कक्षा म हवय। कुंती पढ़े बर आठवीं पास हवय, जउन पढ़ई के मरम अउ महत्तम ल जानथे। तभे तो बेटी मन ल पढ़ाय बर चेत करथे, अउ ओमन ले पढ़े के नाँव ले घर के सरी बुता ल अपने ह कर लेथे। ओमन ल काहय- "बने पढ़ लिख लेहू त जिनगी सँवर जही। पढ़े ले अपन हाथ म हुनर आ जथे। तहाँ ले कखरो मेर हाथ फइलाय के जरूरत नइ पड़य।" फेर आज ओकर सपना सपना रहि जही जस लागत हे। बखत के सुरसा लीले बर लुहुर-तुहुर करत हावय। बेटी मन ल घर म छोड़ शहर जाय ल परत हे। इही हर समय के खेला आय। समय के आगू बड़े-बड़े के बोलती बंद हो जथे। 

         शहर म दूनो परानी बुता म जाही त बाढ़त बेटी ल अनजान जघा म काखर भरोसा छोड़ही। शहर लागे न गाँव गिधवा मन सबे जघा नजर गड़ाय रहिथे। राखी जइसन पबरित तिहार के दिन घलव बेटी-बहिनी के लाज नइ बाँचिस। मनचलहा गिधवा मन दू बहिनी ल नोंच डरिन। अपन हाथ म पहिने राखी के मान नइ रख पाइन। राखी सिरिफ अपने बहिनी के लाज रखे के नोहय, कब समझहिं? नशा म बिधुन ए गिधवा मन। कोन जनी अउ कोन दिन साबुत बाँचही ते नोनी जात के अस्मिता ह? कानून तो बने हे फेर मन के करिया मन कब कानून ल मानथे। धन बल के गरब म रोजेच नंगा नाच नाचथें। कतको ह तो गरीबी के ओनहा म लपटाय मान मरजाद खातिर थाना के मुहाँटी ल झाँके नइ। दूसर कोति जादा ले जादा अपराधी मन कोन जन कइसे बोचक जथे? इही सब ल गुनान करत दूनो परानी घर रखवार महतारी तिर चारो बेटी ल छोड़े के मन बनाइन अउ चल दिन शहर डहर।

           कुंती ह करजा के बलदा म दू काठा के टेपरी ल साहूकार ल सउँपे बर काहत थकगे। अइसन करे ले बाढ़त ब्याज ले घलव मुक्ति मिल जही। सुलिनहा मन भय कमाबो। एके जघा रही के नोनी मन ल पढ़ाय के जतन करबो। घेरी-भेरी जोजियाइस, फेर रघुनाथ ओकर गोठ ल न कभू सुनिस अउ न कभू गुनिस। कुंती ह कलेचुप रघुनाथ के छइहाँ सहीं ओकर संगसंगे चले म अपन भलई समझिस। ओकर ले अलगे अउ कति मुँह म समातिस। घर के भेद ल दूसर तिर कभू नइ जनवाइस। 

           गाँव म रोजगार गारंटी म काम तो खुलथे फेर सब ल काम के गारंटी नइ देवय। कभू नाली निर्माण, त कभू वन विभाग म पेड़ लगाय बर गढ्ढा खनई अउ पानी डरई, त कभू धरसा रेंगान म मुरुम के बुता। सरपंच अउ पंच मन अपने हितवा अउ गिनवा मनखे मन ल ही नवटिप्पा बुता देवँय। गरमी घरी तीन महीना के नब्बे दिन म नौ दिन बुता मिलगे त बहुत आय। अब तो अबड़ अकन बुता बर मशीन आगे हवय। सड़क बुता तो बड़ेच मनखे ल मिलय। सबो किसम के मशीन उँकर, गिट्टी रेती लाय बर डम्फर अउ बगराय बर जेसीबी घलव उँकरे। अइसे लागथे कि बड़का मनखे के पेट जादा उन्ना रहिथे। गरीब ल भूख लागबे नइ करय सहीं। 

          बस के अगोरा म बइठे कुंती रोजगार गारंटी योजना ल सुरता करत हताश हो जथे। ओहर यहू सुरता करथे कि एकरे आय ले मनखे अलाल होगे हवँय। खेती बुता ले कइसे दुरिहावत हें? मेड़ म ढेलवानी तो नँदाई च गेहे। बेंदरा के नाँव ले राहेर तिंवरा बोवई छोड़ दे हें, त दार के भाव सरग काबर नइ चढ़ही? मनखे अपन दोस ल नि देखय, दूसरे ऊपर पटक देथे।

            घर रखवार महतारी बरजत हावय, "तोर बाप पुरखा मन इही माटी म कमा के मर खप गें, तें ए भुइयाँ ल छोड़ के झन जा बेटा। दू मुठा खा के अपने डीह डोंगर म रही। एकर ले जादा कहूँ मेर सुख नइ ए? तोर पुरखा मन के अशीष तोला इहें मिलहि। ए भुइयाँ ल छोड़ कहूँ झन जा बेटा! बुढ़त काल म मोला कोन पानी दिही बेटा!!"  अइसन काहत बोम फार के रो डरिस। सुसकत-सुसकत आगू कहे लगिस- "कोन जनी मोर साँसा अउ कतेक बाँचे हे ते...। परदेश म कोन हवँय जे बिपत परे तोर अँगना म ठाड़ होही।" महतारी के आँसू के पुरा अतका नइ रहिस कि रघुनाथ अउ कुंती के गोड़ ल बाँध पातिस। लइकामन दाई ददा ल जावत सिरिफ देखत भर रहिगे। सबोझिन अपन-अपन गंगा-जमुना के धार ल कति मेर बाँध के रखे रहिन, उही मन जानँय। जब दूनो झिन नइ दिखिन त उँखर छाती म लदाय पथरा ल फोरत आँसू बहे लगिस। एक-दूसर ल चारो कोई पोटार के रोय लगिन। सियानिन ह चुप राहा.. नोनी हो, चुप राहा कहत रहिगे, चारो बहिनी दाई-ददा ल सुरता करत रोतेच राहय। छोटकी ह तो घेरी-भेरी रोवईच करिस दिनभर।

           बस म चढ़ के दूनो परानी शहर हबर गे। रिक्शा म बइठ उही ठिहा म पहुँचगे। जिहाँ उन ल बुता मिले रहिस। 

          रघुनाथ बर शहर अनजान तो नइ रहिस फेर शहरिया मन अनजान जरूर रहिन। सुने रहिस जिहाँ बुता करबे, उहें रहे बर कुँदरा मिल जथे। उँकर तिर कुछु आने जिनिस तो रहिस नहीं, जेकर ओमन ल चोरी होय के डर रहितिस। चार दिन पहिली काम खोज के गे रहिस हे, उहें रघुनाथ अमरगे। चार पहर रतिहा ले दे के कटिस। चार दिन बीते पाय रहिस हे। चार मंजिल ऊपर पोते बर चढ़े रहिस। एकर पहिली अतेक ऊपर कभू चढ़े नइ रेहे हे। अइसन बुता ल करें घलव नइ रहिस। पोतत-पोतत खाल्हे कोति ल देख परिस अउ चक्कर खा के गिर गिस। देखो देखो होगे। तुरते ताही ओला अउ कमइया मन सरकारी गाड़ी म भर के अस्पताल लेगिन। राम लेगही तेन ल बचाही कोन, राम बचाही तेन ल लेगही कोन? सहीं रघुनाथ ल कुछु तो नइ होइस। जेवनी हाथ बस थोरिक फ्रेक्चर होय रहिस।

           रघुनाथ अस्पताल म पीरा ले कलहरत बेड म परे हे। दाई के बरजना गोठ रघुनाथ ल सुरता आवत हे। दवई के असर म नींद आय लगिस। थोरके बेर म नींद म ओहर बड़बड़ाय धर लिस। 'दाई! तोर कहना सही रहिस। मोर गाँव मोर माटी ले जादा कहूँ अउ सुख नइ हे। मोर गाँव म मोर हितवा हे। मोर माटी मोर देश आय। मैं भुलागे रेहेंव, सोचत रेहेंव कि शहर जाके जादा पैसा कमा लेहूँ। फेर ए पइसा तो मोला मोर गाँव मोर माटी संग मोर परिवार ले दुरिहा कर देहे। मोर जम्मो सुख तो मोर माटी, मोर गाँव म हे। मोर माटी ले बड़का कुछु नइ हे।' भगवान राम ल घलव सुमिर डरिस रघुनाथ ह। अउ नींद म बुदबुदाय लगिस 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।'

         नींद उमचते साठ लइकापन म ददा के बिसाय रेडियो म सुने गीत घलव गाँव के माटी के सुरता संग ओकर अंतस् म गुँजे लागिस- जतन करौ रे, धरती के जतन करौ...जतन करौ रे, भुइयाँ के जतन करौ....मैं माटी महतारी अँव। इही बेरा ओकर तिर म ओकर महतारी आके ठाड़ होइस। रघुनाथ के आँखी तर-तर बोहाय लगथे। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग

9977252202

30 सितम्बर जयंती म सुरता//


 

30 सितम्बर जयंती म सुरता//

हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अमर रचनाकार पद्मश्री मुकुटधर जी पाण्डेय

    भीड़ ले अलग हट के कुछ मौलिक अउ आरुग अंतस के गोठ लिखने वाला साहित्यकार ल एती-तेती के गाड़ा-गाड़ा रचना लिख के खरही गाँजे के जरूरत नइ परय. वो वतकेच म ही अमर अउ कालजयी रचनाकार हो जाथे.

    जांजगीर-चांपा जिला (अब सक्ती) के गाँव बालपुर म 30 सितम्बर 1895 म महतारी देवहुती देवी अउ सियान पं. चिंतामणि जी के घर जनमे पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय जी अइसने साहित्यकार रिहिन हें, जेन मन दू-चार रचना म ही साहित्य जगत म अमर हो गय हें. एकर खातिर 'सरस्वती' के संपादक रहे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के वो पाती उंकर बर रस्ता देखाए के बुता करे रिहिसे, जेमा लिखाय रिहिसे- 'आप साल भर म तीन रचना ही भेजे करौ. उंकर सीख रिहिसे के, कम लिखौ फेर पोठ लिखौ. अच्छा लिखे म रचनाकार दू-चार रचना म ही अमर हो जाथे. जबकि जादा लिखे म घलो लोगन उनला चालीस-पचास बछर म बिसर डारथें.' आचार्य द्विवेदी जी के ए पाती ह मुकुटधर पाण्डेय जी खातिर गुरु मंत्र साबित होए रिहिसे.

    मोला पं. मुकुटधर पाण्डेय जी के दर्शन अउ घंटा भर बइठ के उंकर संग मुंहाचाही करे के सौभाग्य तब मिले रिहिसे, जब हमन सन् 1988 के दिसंबर महीना म 'छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य प्रचार समिति' के प्रदेश स्तरीय जलसा रायपुर के रामदयाल तिवारी स्कूल म करवाए रेहेन. 

    असल म ए जलसा म छत्तीसगढ़ी के सियान साहित्यकार मन के सम्मान घलो होना रिहिसे, जेमा मुकुटधर पाण्डेय जी के नॉंव घलो शामिल रिहिसे, फेर उन स्वास्थ्य गत कारण के सेती रायपुर नइ आ पाए रिहिन हें. तब हमन डाॅ. व्यास नारायण दुबे जी, जागेश्वर प्रसाद जी अउ मैं, हम तीनों रायगढ़ जाके उंकर घर म ही समिति के डहार ले सम्मान करे रेहेन. ए कारज म डाॅ. बलदेव साव के संगे-संग रायगढ़ के अउ साहित्यकार मन के अच्छा सहयोग मिले रिहिसे. ए बेरा म श्रद्धेय पाण्डेय जी ह रायपुर ले गए हम तीनों झनला महाकवि कालिदास के अमरकृति 'मेघदूतम्' के छत्तीसगढ़ी अनुवाद के प्रति ल अपन हस्ताक्षर कर के दिए रिहिन हें. उही छत्तीसगढ़ी कृति के माध्यम ले ही मैं 'मेघदूत' ल पढ़ पाए रेहेंव, अउ वोकर ले प्रभावित होके छत्तीसगढ़ी म एक गीत लिखे रेहेंव-

अरे कालिदास के सोरिहा बादर, कहाँ जाथस संदेशा लेके

हमरो गाँव म धान बोवागे, नंगत बरस तैं इहाँ बिलम के

थोरिक बिलम जाबे त का यक्ष के सुवारी रिसा जाही

ते तोर सोरिहा के चोला म कोनो किसम के दागी लगही

तोला पठोवत बेर चेताय हे, जोते भुइयाॅं म बरसबे कहिके

अरे कालिदास के सोरिहा बादर...


    छत्तीसगढ़ी मेघदूत के  भाषा ल पढ़ के अइसे नइ जनावय, के ए ह अनुवाद आय. वोला पढ़े म अइसे जनाथे, के एहि ह मूल प्रति आय. देखव छत्तीसगढ़ी मेघदूत के दू डांड़-

बता मित्र के काम करे बर तैं हर मन म ठाने? 

उत्तर देबे तभे तोर स्वीकृति का जाही जाने? 

बिन गरजे याचक चातक ला देथस तैं जल, जलधर, 

काम कर दिहिन जन के पूरा, यही सुजन के उत्तर..

 

    मुकुटधर पाण्डेय जी ल छायावाद के प्रवर्तक के रूप म जेन कविता 'कुररी के प्रति' ह स्थापित करिस, वो ह जुलाई 1920 के 'सरस्वती' के अंक म छपे रिहिसे-

बता मुझे, हे विहग विदेशी, अपने जी की बात.

पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात? 

निद्रा में जा पड़े कभी के, ग्राम्य मनुज स्वच्छंद.

अन्य विहग भी निज खेतों में सोते हैं सानंद.

इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चित्रित गात.

पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात? 

    मुकुटधर पाण्डेय जी बतावंय के वोमन 'कुररी' ऊपर तीन कविता लिखे रहिन हें. शायद उंकर दूसर रचना 1917 म छपे रिहिसे-

सच पूछो तो तुममे मुझमे भेद नहीं कुछ भारी

मैं हूँ थल चारी तो तू है विस्तृत व्योम विहारी

    तीसर रचना शायद 1939 म लिखे गे रिहिसे-


सुना, स्वर्ण मय भूमि वहाँ की मणिमय है आकाश

वहाँ न तम का नाम, कहीं है रहता सदा प्रकाश


     मुकुटधर पाण्डेय जी रामायण के उत्तरा कांड ल घलो छत्तीसगढ़ी ल लिखे रिहिन हें. वोकर एक झलक देखौ-

अब तो करम के रहिस एक दिन बाकी

कब देखन पाबो राम लला के झांकी


हे भाल पांच में परिन सवेच नर नारी

देहे दुबराइस राम विरह मा भारी


दोहा - सगुन होय सुन्दर सकल सबके मन आनंद।

पुर सोभा जइसे कहे, आवत रघुकुल चंद॥


महतारी मन ला लग, अब पूरिस मन काम

कोनो अव कहतेव हवे, आवत्त वन ले राम


जेवनी आंखी औ भूजा, फरके बारंबार

भरत सगुन ला जनके मन मा करे विचार


अब तो करार के रहिस एक दिन बाकी

दुख भइस सोच हिरदे मंचल राम टांकी


कइसे का कारण भइस राम नई आईन

का जान पाखंडी मोला प्रभु बिसराईन


धन धन तैं लक्ष्मिन तैं हर अस बड़भागी

श्रीरामचंद्र के चरन कवल अनुरागी


चिन्हिन अड़बड़ कपटी पाखंडी चोला

ते कारन अपन संग नई लेईन मोला


करनी ला मोर कभू मन मा प्रभू धरही

तो कलप कलप के दास कभू नई तरही


जन के अवगुन ला कभू चित नई लावै

बड़ दयावंत प्रभु दीन दयाल कहावै


जी मा अब मोर भरोसा एकोच आवै

झट मिलहि राम सगुन सुभ मोला जनावै

 

बीते करार घर मा परान रह जाही

पापी ना मोर कस देखे मा कहूं आही


दोहा

राम विरह के सिन्धु मा, भरत मगन मत होत।

विप्र रूप धर पवन सुत, पहुंचिन जइसे पोत॥


    हर मनखे ल अपन माटी, अपन भाषा अउ संस्कृति खातिर गजब मया होथे. वो एकर बखान ल कोनो न कोनो रूप म जरूर करथे. तब छत्तीसगढ़ राज एक स्वतंत्र राज के चिन्हारी पा जाही या नइ पाही, तेकर कोनो भरोसा नइ रिहिसे. तभो ले इहाँ के गुनी साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ के एक स्वतंत्र अस्तित्व के कल्पना करत ओकर जोहार-पैलगी अउ वंदन जरूर करीन. मुकुटधर पाण्डेय जी के 'प्रशस्ति' शीर्षक ले लिखे ए रचना ल देखौ-

सरगुजा के रामगिरि ह मस्तक-मुकुट संवारे.

महानदी ह निरमल जल मा जेकर चरन पखारे.. 

राजिम अउ शिवरीनारायन क्षेत्र जहाँ छवि पावै.

ओ छत्तीसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै? 

हैहयवंशी राजा मन के रतनपुर रजधानी.

गाइस कवि गोपाल 'राम परताप' सुअमरित बानी.. 

जहाँ वीर गोपालराय का करो करय नइ संका.

जेकर नांव के जग जाहिर दिल्ली म बाजिस डंका.. 

मंदिर, देउर डहर-डहर आजो ले खड़े निसानी.

कारीगरी गजब के जेमा, मुरती आनी-बानी.. 

ये पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ शिवाला.

दान-धरम अउ बल-विकरम के देवत हवै हवाला..


    आचार्य द्विवेदी जी के बताए गुरुमंत्र ल धरे उन वाजिब म कम ही लिखिन, फेर गजब पोठ अउ अंतस ल छूने वाला साहित्य रचिन. उंकर प्रमुख लेखन म- पूजा फूल, लच्छमा अनूदित उपन्यास, हृदय दान कहानी, परिश्रम निबंध संग्रह, शैलबाला अनूदित उपन्यास, मामा अनूदित उपन्यास, छायावाद एवं अन्य निबंध, स्मृति पुंज, मेघदूत के छत्तीसगढ़ी अनुवाद, विश्वबोध काव्य संकलन आदि प्रमुख हे. एकर संगे-संग उंकर व्यक्तित्व-कृतित्व ले संबंधित अउ कतकों किताब प्रकाशन के अगोरा म हे. 


    मुकुटधर पाण्डेय जी के तीन किताब - पूजा फूल (काव्य संग्रह) अउ उड़िया ले अनुदित उपन्यास 'शैलबाला', अउ 'लच्छमा' के लेखक पं. मुकुटधर शर्मा (पाण्डेय) के संगे-संग उंकर बड़े भाई मुरलीधर शर्मा (पाण्डेय) घलो हे. रायगढ़ के साहित्यकार बसंत राघव (सुपुत्र डाॅ. बलदेव साव) ए बात ल प्रमाण सहित कहिन हें.


    मोर सौभाग्य आय मोर पहला कविता संकलन 'छितका कुरिया' खातिर वोमन छत्तीसगढ़ी म अपन शुभकामना संदेश दिए रिहिन हें, अउ कहे रिहिन हें- मैं अपन जिनगी म पहिली बेर ककरो खातिर छत्तीसगढ़ी म संदेश लिखे हौं. उंकर ए संदेश के पांडुलिपि ल तब मैं ब्लाक बनवा के अपन संग्रह म छपवाए रेहेंव. आज घलो उंकर वो पाती ह मोर बर धरोहर बने हुए हे.


    6 नवंबर 1989 के 94 बछर के उमर म वोमन ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. उंकर सुरता ल पैलगी- जोहार🙏

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

Sunday 17 September 2023

तीजा के लुगरा* ---------------------- (छत्तीसगढ़ी नाटक)


              *तीजा के लुगरा*

              ----------------------

          (छत्तीसगढ़ी नाटक)



रामनाथ साहू

नाटककार



पात्र-

बिसाहू -गांव के दाऊ

फुलबासन- दाऊ के परानी

चैतू - बेटा 1

बैसाखू-बेटा 2

जेठू- बेटा 3

सावनलाल -बेटा 4

भादो शंकर - बेटा 5

कातिक राम - बेटा 6

अगहन - बेटा 7

फागुनमती (चंपा)-  बेटी



                      *दृश्य -1*

                     ----------

     

ठउर - दाऊ के बारी


समय -संझाती के बेरा।


( सात भाई के एक बहिनी फागुन। अब्बड़ दुलौरिन। सब भाई वोला बड़ मया करथें। फागुन अपन बारी म , साग सब्जी छाँटत ,तितली बरोबर किंजरत हे।)


फागुन (स्वगत) -  मोर सात -सात भाई। सात भाई के अकेला बहिनी मंय फागुन।


        (आन ठउर म जाथे।)


फागुन - मोर नांव फागुन ,फेर मोर सब भाई, मोर अलग अलग नांव धर  राखे हें। बड़खा भइया कहथे ...


चैतू -  मोर बहिनी गोंदा ओ !

फागुन -भइया गा मोर।


बैशाखू -बहिनी सेवती ओ !

फागुन -हाँ ,भइया।


जेठू - नोनी मालती ओ !

फागुन - भइया गा।


सावनलाल - ननकी नोनी केंवरा ओ !

फागुन - मोर भइया।


भादो शंकर - बहिनी मोंगरा ओ !

फागुन -हाँ भइया ।


कातिक- ये पीला नोनी चमेली ओ !

फागुन - हाँ हाँ भइया गा ।


अगहन - मोर बहिनी चंपा ओ!

फागुन- काये ननकी भइया।


फागुन (स्वगत) -सब भइया मन ,मोला उपन मन के नांव धरके बलाथें । अइसन म मोर सात ठन नांव हे।फेर ननकी भई के धरे नांव -चंपा मोला ,सबले बने लागथे। सात भई के मंय ,एक बहिनी चंपा ।


   (सबो भाई हाथ म हाथ बांध के गोल हो जाथें । फागुन मंझ म रह जाथे। 



             पारंपरिक गीत- रुमझुम लोटा म पानी ल ,तँय दे दे न ओ सोनारिन दीदी बाजथे।



                     ( यवनिका पतन )




                        *दृश्य -2*


  (फागुन अपन बारी म एती -वोती किंजरथे।)


फागुन -  बड़खा भई ल लाल रकत बरन लाल भाजी बड़ सुहाथे। चल वोला टोर लेंव।


       (लाल भाजी टोरे लगथे )


फागुन -  वैशाखु भइया भाये बोहार के फूल अउ भाजी। चल वोकर बर , येला टोर लेंव।


        (बोहार के पेड़ म चढ़के ,फूल भाजी टोरे

के शुरू कर देथे)


 फागुन - जेठू भइया ल रुचथे हरियर लपलपात कांदा भाजी । येला वोकर बर टोर लेंव।


  ( फागुन कांदा भाजी ल टोरे के शुरू कर देथे।)


फागुन -सवनहा भैया ल बढ़िया  लागथे ये चेंच भाजी। वोकर बर येला घलव टोरे बर लागही जी।


(फागुन चेंच भाजी ल टोरथे।)


फागुन -भादो शंकर भइया तो ठहरिस बम भोले ! वोला भाथे ये खोटनी भाजी। चल वोला खोंट लंव मंय।


(फागुन खोटनी भाजी खोंटथे।)


फागुन- कातिक भइया के लार चुचवाय, जब वोहर नुनिया भाजी खटाई म पाय। वोकर बर मोला नुनिया भाजी टोरे बर हे जी।


(फागुन नुनिया भाजी ल सिलाथे।)


फागुन - अगहन भैया के ठाठ निराला फेर तिंवरा भाजी म वो कौरा उठाय। चल वोकर बर मंय ये तिंवरा भाजी टोर लेवत हंव।


(फागुन सब भाजी मन ल अलग अलग गठरी -मोटरी बना के वापिस होथे।


                  यवनिका पतन


                          *


                   *दृश्य 3*

                    -----------

(घर म दई -ददा तीर सबो लइका संकेलाय हें।)


फुलबासन- मोर सात बेटा अउ एक बेटी !


बिसाहू- मोर आठ ठन बेटा ।


फुलबासन -ए दाई !वो कईसन ओ ? एक ठन बेटा ,अउ कोन कती हे।


बिसाहू (फागुन ल तिरत अपन कोती लानथे )- ये दे हे मोर वो मोर छेवर बेटा हर।


फुलबासन -हाँ...!ये बेटा के गोठ करत हस। मंय तो  डराइच गंय रहें,दई ।


बिसाहू- मोर आठ ठन बेटा हे तब आठ ठन बेटी हे ।


फुलबासन - ये फिर का आंय- बांय गोठियात रहथस दई ! डर डर लागथे।


बिसाहू - तँय कुछु भी कहले फुलबासन ।


फुलबासन - मंय तो ये कोती ल बर -बिहाव करे के शुरू करहाँ।(बड़खा बेटा चैतू कोती इशारा करत) फेर सबला पहिली नोनी फागुन के।


सब भाई -बढ़िया दाई !बढ़िया !


चैतू -मंय नोनी गोंदा ल मांग टीका दिहां वोकर विहाव म।


बैशाखू- मंय कान म कर्णफूल।


जेठू - नाक म रानी फूली अउ नथुलिया भाई जेठू के।


सावन - घेंच म रानी हार सावन लाल के।


भादो शंकर - हाथ मन म सोन के कंगन भैया भादो शंकर के।


कातिक राम - सोन के चुटकी सोन के मुंदरी सबो के सब कातिक राम के।


अगहन -मंय सोन कहाँ पांहा?तुमन सब कमाथव ,तब तुमन सब पा जईहा। मंय बहिनी बर बनाहा मोंगरा फूल के गजरा,खोपा म लगाय बर।


फागुन -बस बस भई मन !मंय तो येती लदा मरें न। राखव अपन अपन जिनिस मन ल ।अवइया भौजी मन ल,पहिनाहा ।मोला बस दे सकंव,तो बस अइसन मया -दुलार गा।


बिसाहू -मोर चल- अचल अतका अचक संपति म सबो लइका के बराबर हक्क हे।सरकार कहत हे।कानून दरबार कहत हे...


फुलबासन -ना...ना बबा, न...ना ! नोनी परगोत्री होथे । वोकर हक्क मइके के एक लोटा पानी बस!


फागुन -अउ तीजा के लुगरा,दई ?


फुलबासन -अरे वोहू ल ले लेबे,जब तीजा रहे बर, तीजा बासी खाय बर आबे त।


               यवनिका पतन




                     *दृश्य 4*

                  --------------


         (बीस साल बाद के समय एकठन नांनकुन कुरिया म फुलबासन अउ  बिसाहू ,एकदम सिमट के बइठे हें।)


फुलबासन -फागुन के ददा!


बिसाहू -अब काबर फागुन के ददा कहके ओझियावत हस, फुलबासन? अब काबर चैतू के ददा,बैसाखू के ददा कातिक के ददा नई कहत अस,सियानीन ?


फुलबासन -जरे म नून मत घसरो न,गउँटिया!


बिसाहू -अब कहाँ के बिसाहू गउँटिया अब कहाँ के बिसाहू दाऊ, फुलबासन! तोर आगु म ,अभी जउन सांस लेवत हे, वोहर तो बस अब ये सात दुने चौदह झन प्राणी के बोझा भर ये।


फुलबासन -सच कहत हंव।एक नहीं दु झन बोझा। कइसे एक लोटा पानी बर तरसत हन।अउ सहाजी माल ,बनके रह गय हावन,हमन।


               (फागुन के प्रवेश। वो अपन गांव ल आवत हे। आके दई -ददा दुनों झन के पांव परथे )


बिसाहू -कोन ,फागुन बेटी!


फागुन -हाँ, ददा ।


फुलबासन- बेटी ,आ गय।


फागुन -हाँ,दाई !बने तो हावा न,तुमन?


(उत्तर म दई पलपल रोय लगथे।)


फागुन - बस मिल गय उत्तर । फेर तँय अब रो झन। तुमन चलव मोर संग । मंय भइया -भौजाई मन करा ,लड़े तो नई सकंव ,फेर तुमन ल अकेला मंय समोख लिहां।चला सदाकाल बर, मोर संग।


बिसाहू -काहीं कुछु नई होय ये ,बेटी।तोला देखत हे, तब येकर मया हर पलपलात हे, बस।


फागुन -मोर करा झन लुका,न मोला झन समझा ददा। महुँ घलव अब तीस बसन्त देख डारे हंव। बिसाहू गउँटिया अउ फुलबासन गंउटिन के ये हाल हे। चल तँय मोर संग। चल ददा चल ! चल दई चल!!


फुलबासन -सब बनही बेटी।फेर वोइच एके जिनिस भर हर नई बनय,जउन ल तँय कहत हस । सात दुने चौदह लात ,रोज खाबो, तबले भी हमन तोर संग नई जाय सकन।


बिसाहू -हमरो दई -ददा ,इन्हें संकेला गिन।हमु मन विसनहेच हो जाबो बेटी।


फागुन(रिस म)-फेर मोर संग नई जाय सकव भर न तुमन...


फागुन(रुक के )- पाछु होही गोठ बात।अभी तो मंय येमन के ओनहा -दसना ल परछर कांच देवत हंव।


              यवनिका पतन



                      *दृश्य 5*

                     -----------


             (फेर 10 बच्छर बाद )


फागुन (स्वगत :अपने आप)-चल भइया मन ,मोला लेवाय नई गिन, तब मंय खुद चलके आ गंय मइके, तीजा के बासी खाय बर। 

         (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन -चल कोई बात नहीं। काम बुता के चक्कर म , भइया मन ल मोर सुध नई आइस होही।


          (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन -मोर सुध तो आइस होही,फेर लेवाय बर समे नई मिल पाइस होही।


           (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन - चल कोई बात नहीं।भई -बहिनी म का जिनिस के अतेक भेद ?अतेक इरखा? मंय आ गय हंव,तब भेंट करत जांव, भइया- भौजाई मन के।


        (फागुन बड़े भइया के दरवाजा पहुँचत रहिथे,फेर वोला देख के बड़े भौजी दरवाजा ल बंद कर लेथे।)


फागुन (अबक्क हो जाथे) -अरे ! काहीं बड़की भौजी मोला देख नई पाइस का जी।देखतिस तब ,वोहर दरवाजा ल बंद थोरहे करतिस। चल मंझिला भइया ,घर चलंव।


              (फागुन मंच म रेंगथे। वोहर मंझिला भाई के दुआरी म पहुँचने वाली हे कि फिर वोला देखके मंझिली भौजी दरवाजा ल बंद कर देथे।)


फागुन -ये का होत हे। जेकर दुआर म जाबे, उहाँ के दरवाजा बंद हो जात हे। काहीं येमन जान -बुझके तो नई करत हें। अब मंय समझें... सब जान बूझ के करत हें। भईया मन  चुप भौजी मन के राज !बस सब समझ गंय मंय। सब समझ गंय मंय।


      (फागुन मंच म रेंगथे। फेर अब रिस म तमतमात छोटे भई के दरवाजा पहुँचथे। छोटे भौजी  दरवाजा ल बंद करत रहिथे कि फागुन वोला धकियात अंदर घुस जाथे।)


फागुन -कहाँ हस घर खुसरा भई मन? तुँहर नारी मन ,ननद ल देख के ,दरवाजा बंद करत हें। 


छोटे भई -आ बइठ नोनी।आईच गय,दरवाजा ल धकेल के तब। ले जाबे तोर तीजा के नेंग लुगरा मोर कोती ले।


फागुन- अरे टार तोर तिजाही लुगरा ल। दई -ददा मन महुँ ल घलव ,बने घर म देंय रहिन हें सोच समझ के।उहाँ तोर असन ल मंय कमियां ओधा के राखे हंव। परंपरा ये कहके मंय खुद होके तुमन के अँगना आ खड़ा होंय ये तीजा के नेंग म ,फेर तुमन औरत मन के बुध म चलके ,बहिनी ल भुला गय हा।


छोटे भाई - बहिनी...!


फागुन -  सच कहे गय हे भई -जेकर मां नहीं

,वोकर गांव नहीं। जेकर मां नहीं,वोकर कईसन मइके।


छोटे भाई -बहिनी सुन तो...


फागुन -अब अउ का सुनहाँ? आँखी म देख डारें।


भौजी -बड़ गोठियात हस ,फागुन। हमु मन ल तो ,हमर भई -भौजी नई पूछत यें, तब तोला हम काबर पुछबो?


फागुन -तोर करा तो बातेच नई ये, भौजी ! मंय तो मोर भई करा हिसाब मांगत हंव न।तोर मोर झगड़ा तो बस एक आय न।


छोटे भाई -फागुन...


फागुन -दई -ददा के दया ले,फागुन चार झन ल खवा के खात हे । वोला काकरो जलहा - फंदहा तीजा के लुगरा के भूख नइये। वोला तो मइके के एक लोटा पानी के पियास रहिस,जउन हर नई मिलिस। फेर...


छोटे भाई -अउ का फेर...?


फागुन - फेर बहिनी के जी ल कलवा के अतेक आसानी ले ,वोकर बांटा ल नई खाय सकंव तुमन। मोला बांटा चाहिए अपन बपौती पूंजी म...। मंय सरकार दुआर जाहाँ।


(सब भई अउ भौजाई जुड़ जाथें। विचार विमर्श करथें। माफी असन मांगे के मुद्रा बनाथें। )


फागुन -  येहर फागुन के ही लड़ाई नई होय।फागुन असन लाखों -करोड़ों फागुन हें।वो सबके लड़ाई ये। सावधान भइया ! सावधान भौजाई !!  ये फागुन अउ येकरे कस आन फागुन मन अब रकत आंसू चुहात , मइके ल नई फिरें। वोला मान दो वोला सम्मान दो। नहीं त राज -दरबार सरकार दुआर कानून -कचहरी बर तियार रहव।



फागुन -वइसे बड़े भौजी ! तोर देय,ये तीजा के लुगरा हर पोठ हे।


                  (यवनिका पतन )


                   *समाप्त*

                  


लेखक -

रामनाथ साहू

देवरघटा (डभरा )

जिला -सक्ती (छ. ग.)-495688

मो -9977362668

Email -rnsahu2005@gmail.com




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Friday 15 September 2023

सुरता - 5 सितंबर जयंती म विशेष

 सुरता - 5 सितंबर जयंती म विशेष 



लोक संगीत सम्राट - खुमान साव 


कोनो भी अंचल के संस्कृति वो क्षेत्र के पहिचान होथे. येमा वोकर आत्मा ह वास करथे. जब अपन संस्कृति ल जन मानस समाज ह कोनो मंच म प्रस्तुति के रूप म देखथे त ऊंकर हिरदे म गजब उछाह भर जाथे. ढाई करोड़ के आबादी वाला  हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के अलगे पहिचान हे. येला जन जन तक बिखेरे म जउन महान कलाकार मन के हाथ हे वोमन म स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. महासिंग चन्द्राकर, स्व. हबीब तनवीर, स्व. देव दास बंजारे, स्व. झाड़ू राम देवांगन, श्रीमती तीजन बाई, स्व. केदार यादव, स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया,स्व.शेख हुसैन, झुमुक दास बघेल, निहाई दास मानिकपुरी, ममता चन्द्राकार, कविता वासनिक, पूना राम निषाद, लालू राम साहू, स्व. मदन निषाद, स्व. गोविन्द निर्मलकर,माला मरकाम, फिदा बाई मरकाम, सूरुज बाई खांडे, चिन्ता दास बंजारे, रामाधार साहू, दीपक चन्द्राकार, शांति बाई चेलक, स्व. भैया लाल हेड़ाऊ,स्व.गंगा राम शिवारे, बद्री विशाल यदु परमानंद,शिव कुमार तिवारी, मिथलेश साहू, घुरवा राम मरकाम, डॉ. पीसी लाल यादव, शिव कुमार दीपक, नवल दास मानिकपुरी अउ संगीतकार श्रद्धेय स्व. खुमान साव के नांव ल आदर के साथ लेय जाथे. स्व. साव जी ह अपन साधना के बल म छत्तीसगढ़ी लोक संगीत ल खूब मांजिस. हमर लोक गीत ल पश्चिमी अउ फिल्मी संस्कृति ले बचा के माटी के खुशबू ल बिखेरिस. खुमान साव ह छत्तीसगढ़ के नामी कवि अउ गीतकार मन के गीत ल संगीतबद्ध कर के चंदैनी गोंदा के मंच म प्रस्तुति दिस. 

   छत्तीसगढ़ी गीत संगीत बर समर्पित खुमान साव के जनम 5 सितंबर 1929 म राजनांदगॉव के खुर्सीटिकुल (डोंगरगॉव) म होय रिहिस. बाद म ठेकवा (सोमनी )म बसगे. वोकर बाबू जी के नांव टीकमनाथ साव रिहिस. खुमान ल लोक गीत- संगीत के घर म सुग्घर वातावरण मिलिस काबर कि वोकर बाबू जी ह हारमोनियम बजाय. लइका खुमान ह घर म हारमोनियम बजाय म धियान लगाय. फेर वोहा रामायण मंडली म हारमोनियम बजाय ल शुरु करीस. खुमान ह नाचा के भीष्म पितामह स्व. मंदराजी दाऊ के मौसी के बेटा रिहिस .मंदरा जी दाऊ ह खुमान ल हारमोनियम बजाय बर प्रोत्साहित करे. खड़े साज म वोहा  पहिली बार 13 साल के उमर म बसन्तपुर (राजनांदगॉव) के नाचा कलाकार मन सँग हारमोनियम बजइस. मंदरा जी दाऊ द्वारा संचालित रवेली नाचा पार्टी म वोहा 14 साल के उमर म शामिल होगे. वो हर नाचा म हारमोनियम म लोक धुन के सृजन कर छत्तीसगढ़ के माटी के महक ल बिखेरे के जब्बर काम करिस. साव जी ह बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करे रिहिस. वोहर म्युनिसीपल स्कूल राजनांदगॉव म शिक्षक रिहिस. 

    साव जी ह सन 1950-51 म राजनांदगॉव म आर्केस्टा पार्टी घलो चलाइस. छत्तीसगढ़ के कतको शहर के सँगे सँग महाराष्ट्र अउ मध्यप्रदेश म आर्केस्टा के प्रस्तुति दिस. धीरे से वोकर मन ह आर्केस्टा डहर ले उचट गे. 1952 म सरस्वती कला मंडल के गठन करीस. खुमान साव जी के प्रतिभा ल देखके दाऊ रामचंद्र देशमुख ह अब्बड़ प्रभावित होगे रिहिस. 1952 म दाऊ रामचंद्र देशमुख के गांव पिनकापार (बालोद )म मंडई के समय म नाचा होइस. ये कार्यक्रम म देशमुख जी हा साव जी ल हारमोनियम बजाय बर बुलाइस.1953 म घलो अइसने होइस.ये कार्यक्रम के अइसे प्रभाव पड़िस कि रवेली अउ रिंगनी नाचा पार्टी के विलय होगे. काबर कि येमा रवेली अउ रिंगनी पार्टी के संचालक मन ल छोड़ के बाकी नामी कलाकार मन ह आमंत्रित होय रिहिस हे. लोक संगीत अउ कला डहर कुछ अलग काम करे के इच्छा के सेति वोहा 1960 म शिक्षक सांस्कृतिक मंडल के गठन करिस. येमा भैया लाल हेडाऊ, गिरिजा सिन्हा, रामनाथ सोनी जइसे बड़का कलाकार मन शामिल होइस. 

  साव जी ह सबले पहिली स्व. रामरतन सारथी के 3 गीत मोला मइके देखे के साध, सुनके मोर पठौनी परोसिन रोवन लागे, सोन के चिरइया बोले ल लयबद्ध करिस. 1971 म आकाशवाणी रायपुर म वोकर संगीत निर्देशन म गाना रिकार्ड होइस .भैया लाल हेड़ाऊ अउ दूसर कलाकार मन ह गीत गाइस. 

दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रेडियो म खुमान साव अउ ऊंकर कलाकार मन के गीत ल सुनिस त साव जी ल अपन गांव बघेरा बुलाइस. वो समय दाऊ जी ह छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार मन ल सकेल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उदिम करत रिहिस. साव जी ह दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित चंदैनी गोंदा म हारमोनियम वादक के रूप म जुड़गे. चंदैनी गोंदा म साव जी ल अपन प्रतिभा देखाय के सुग्घर मौका  मिलिस. चन्दैनी गोंदा के प्रसिद्धी म संगीत पक्ष के गजब रोल रेहे हे. येकर श्रेय खुमान साव ल जाथे जउन ह अपन साधना के बल म नामी कवि /गीतकार लाला फूलचंद, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, रविशंकर शुक्ल, पवन दीवान, प्यारे लाल गुप्त, कोदू राम दलित, राम रतन सारथी, लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ल संगीतबद्ध करके चंदैनी गोंदा म प्रस्तुति दिस. साव जी ह मोर संग चलव रे..., धन धन मोर किसान, घानी मुनी घोर दे, छन्नर छन्नर पैरी बाजे, चिटिक अंजोरी निर्मल छइंहा, मोर धरती मइया जय होवय तोर, पता ले जा रे गाड़ी वाला, बखरी के तुमा नार बरोबर, मोर खेती खार रुमझुम जइसे कतको छत्तीसगढ़ी गीत ल संगीत दिस. ये गीत मन हा अब्बड़ लोकप्रिय होइस अउ आजो जनता के जुबान म बसे हे. छत्तीसगढ़ी लोकगीत गौरा गीत, सुवा गीत, बिहाव गीत, करमा ये मन ला लयबद्ध करे म ऊंकर गजब योगदान हवय.


 लोक संगीत के ये महान

 कलाकार से मोर पहिली भेंट 17 मार्च 2002 म दिग्विजय स्टेडियम के सभागार म 

आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम म होय रिहिस. 

दूसरइया भेंट मानस भवन दुर्ग मा आयोजित छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अधिवेशन म होइस .इहां के एक संस्मरण बतावत हवँ. कार्यक्रम ह चालू नइ होय रिहिस. साहित्यकार /कलाकार मन के पहुंचना जारी रिहिस. नामी साहित्यकर दानेश्वर शर्मा जी, खुमान साव जी सहित पांच -छै साहित्यकार स्वागत द्वार के पास खड़े होके एक दूसर ला पयलगी /जय जोहार करत रेहेन. इही बीच एक नव जवान कवि ह अइस अउ साव जी ल नइ पहिचान पाइस. हमर मन ले वो नव जवान कवि ह पूछे लागिस कि ये सामने म खड़े हे वोहा कोन हरे. मेहा  साव जी के परिचय बताय बर अपन जबान खोलत रेहेंव त साव जी ह मोला रोक दिस अउ ओकर से पूछिस कि पहिली तँय ह बता तैंहा कोन गांव के हरस. नव जवान सँगवारी ह बोलिस - मेहा बघेरा (दुर्ग) के रहवइया अंव. 

साव जी ह बोलिस कि- तैंहा बघेरा के हरस तब तो मोला तोला जानेच ल पड़ही. अउ मोर नांव नइ बता पाबे त तोला मारहू किहिस ". ये बात ल सुनके वो नव जवान ह सकपकागे!

 वइसे मेहा साव जी के अख्खड़ स्वभाव ले परीचित रेहेन त देरी नइ करत वोला बतायेंव कि - यह महामानव चंदैनी गोंदा के संचालक आदरणीय खुमान साव जी हरे. अइसन सुनके वोहा तुरते साव जी ल पयलगी करिस. जे साव जी ह वोला मारहू केहे रिहिस वोहा वोकर मुड़ी म हाथ रखके आशीर्वाद प्रदान करिस. ये प्रसंग म हमन मुस्कात रहिगेन. 

  फेर साव जी ह नम्र स्वभाव ले वोकर से किहिस कि - तैंहा बघेरा रहिथो केहेस तेकर सेति केहेंव कि मोला जाने ल पड़ही .फेर वो नव जवान ल पूछिस कि दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल जानथस? श्री विश्वंभर यादव मरहा जी ल जानथस? त वोहा किहिस कि हव दूनों ल जानथव. 

साव जी ह बोलिस कि महू ह दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर रिहर्सल मा आंव जी .तेकर सेति तोला केहेंव रे बाबू कि मोला तोला जाने ल पड़ही. 

ये घटना ले पता चलथे कि साव जी ह नारियल जइसे ऊपर ले

कठोर जरूर दिखय पर अंदर ले गजब नरम स्वभाव के रिहिस. 


साव जी ह  हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के वार्षिक समारोह म चार बेर पहुंचिस. 2012 म करेला (खैरागढ़) भवानी मंदिर मा आयोजित कार्यक्रम म, 2013 म सुरगी के पंचायत भवन म, 2015 म सुरगी के कर्मा भवन म अउ 2016 म  सुरगी शनिवार बाजार चौक के मुख्य मंच मा आयोजित कार्यक्रम म पहुंच के हमन ल कृतार्थ करिस. 2015 म खुमान साव जी ह साकेत सम्मान स्वीकार कर हमन ल गौरवान्वित कर दिस. वर्ष 2016 म 87 साल के साव जी के चयन संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार -2015  बर चयनित होय के खुशी म  साकेत साहित्य परिषद् सुरगी द्वारा नागरिक अभिनंदन करे गिस. 

    2015 अउ 2016 म सम्मानित होय के बेरा म साव जी ह किहिस कि -" मोला जनता से जउन सम्मान मिलथे उही मोर बर सबले बड़का सम्मान हरे. आज तक मेहा राज्य सम्मान अउ पद्म श्री बर आवेदन नइ करे हवँ न अवइया बेरा म करव! हां शासन ह खुद मोला सम्मान देना चाहत हे त दे सकथे. छत्तीसगढ़ के लाखो जनता के प्रेम ह मोर बर सबसे बड़े पुरस्कार हरे. "

   हमर छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अइसन महान कलाकार ह 9 जून 2019 के दिन 89 साल के उमर म ये दुनियां ल छोड़ के स्वर्गवासी होगे. 

            

          ओमप्रकाश साहू "अँकुर "                सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)