Saturday 30 September 2023

कहानी : माटी-महतारी*

 *कहानी : माटी-महतारी*


             घर के माली हालत बने नइ रहे ले रघुनाथ कमाय खाय बर अपन जनम भुइयाँ ल छोड़ के शहर के रस्ता नापत हवय। ओकर सुआरी कुंती घलव ओकर संग म जावत हे। पहिली घँव गाँव के मेड़ो ल छोड़ के जावत हवँय दूनो परानी। पाँव उसलत नइ हे, अउ पेट म परे छाला ओला गाँव म रहन घलव नइ देवत हे। का करय? पेट के नाँव जग जीता, बिहना खाये संझा रीता। एकर पहिली रघुनाथ कतको ल अइसने खाय कमाय बर जावत देखे हे। फेर गाँव छोड़े के पीरा पहिली घँव जनावत हे। आँखी ले बोहावत धार थिरकत नइ हे। मनेमन बिनती घलव करत हे, भगवान! अपन माटी अउ अपन गाँव छूटे के अइसन पीरा अउ कोनो ल झन देबे।

          भारी मन संग पाँव आगू बढ़त जावत हे अउ गाँव पीछू छुटत जात हे। महतारी संग माटी ले बने घर म सात परानी रहिथें। ददा ल दू बछर होवत हे, माटी के तन ल माटी म छोड़ सरग सिधारे। ददा के बड़ दवा-दारू करिस फेर ददा हाथ नइ आइस। लकवा के चलत छे महीना ले इलाज कराइस। जे काहय तिही डॉक्टर अउ बइद करा गिस रघुनाथ ह। फेर दूधो गिस अउ दुहनओ गय। ददा दम नइ लिस अउ एक दिन सुते दसना ले उठे के नाँव नइ लिस। सुते च सुते सदा दिन बर सुत गे। इलाज-पानी अउ खात-खवई म करजा ह रघुनाथ के मुड़ म छानी म चढ़े रखिया-तुमा के नार सहीं चढ़ते गिस। उतरे के नाँव नइ लिस। खेती के नाँव म सवा एकड़ हावय। पुरखौती कहे बर पुरखा मन के इही एक ठन चिन्हारी हवय। माटी के घर के छोड़े। वहू भुइँया ह नाँवभर के तो अपासी हरे, फेर तीन गाँव ल पार करत आय नाहर नाली ले खार के छेवर म खेत राहय। बरसा के एक पानी टूटे ले बीजहा के पुरती हो जवय। अइसन म लइका-पिचका सुद्धा सात परानी के पेट पलई ह मुश्किल होवत रहिस। बीते बछर इही हाल हो राहय। अइसन म रघुनाथ के करजा बेरा के चढ़त घाम बरोबर दिन के दिन बाढ़त गिस। मूल ऊपर सूद बाढ़तेच रहिस। ओकर जिनगी दूब्बर बर दू असाढ़ होगे राहय। जग अँधियार लागे। सुतय त नींद नइ परय, साहूकार ह नजरे नजर म झूलय अउ ओकर गोठ ले हिरदे म पीरा उठय।

         साहूकार के नजर खेत म गड़े रहिस। जे पइत आय ते पइत इही कहय- ''रघुनाथ ! एक ठन टेपरी ल करजा के बलदा म मोला दे दे। मोर करजा ल तें ह कमा कमा के छूटे च नइ सकस।"

         साहूकार के तगादा ले हलाकान रघुनाथ करजा छूटय कि सातो परानी के मुँह म पैरा डारय, कुछु समझ नइ आवत हे ओला। चार झन नोनी च नोनी हे। बेटा के आस म एक-एक कर दू झन नोनी ह अउ आगे रहिस। वो तो भला होवय ओकर महतारी के जउन ओला नोनी-बाबू म फरक करे ले झँझेट के ओकर बाढ़त परिवार म ब्रेक लगाइस। कुंती बपुरी ह तो हम दू, हमर दू के गिनती गिनत रहिगे। बपुरी के चलती रहतिस त परिवार ...। पर कोठा के लक्ष्मी ल अभियो बरोबर मान कहाँ मिल पाय हे? जिनगी भर अपन ठीहा ह खोजत रहि जथे बपुरी मन। लक्ष्मी अवतरे हे कहिके बड़ मान देथें नान्हेपन म। घर म सबो बड़ खुश होथें। कोरा म लेके घुमत रहिथें। फेर हाथी के दाँत जनाइ जथे। खाय के आने अउ दिखाय के आने। नोनी बड़े होवत जाथे अउ ओकर भरम टूटत जाथे कि ओकर तो घर कहूँ अउ हे? लोगन यहू ल भुला जथें कि वहू ह नारी च के कोख ले अवतरे हे। कोन जनी कोन जुग म बरोबर दरजा अउ मान पाही ते नारी ह? त्रेता म घलव सुख के घरी आइस त अग्निपरीक्षा दे ल परगिस। बनवास के बेरा राम के छइहाँ बनके संगे तो निकले रहिस सीता माई ह। फेर वाह रे जमाना! तोला नारी के मान करे नइ आइस।

         आजो घलव घर के लक्ष्मी लाँघन पेट के जतन करे रघुनाथ संग शहर पहुँचाय के सड़क तक रेंगत जावत हे। मुड़ म बड़े जान मोटरा हावय। जेमा बरतन भाड़ा अउ कपड़ा-लत्ता भराय हे। मन के पीरा ल अँछरा म बाँध के कनिहा म खोंचे हावय। चारो पिला ल घर म छोड़ के जावत हे। सास के जतन बर एक झन ल छोड़त हे, त दूसर ल ओकर बुता म हाथ बटाय बर। छोटकी अभी छठवीं कक्षा म हवय। कुंती पढ़े बर आठवीं पास हवय, जउन पढ़ई के मरम अउ महत्तम ल जानथे। तभे तो बेटी मन ल पढ़ाय बर चेत करथे, अउ ओमन ले पढ़े के नाँव ले घर के सरी बुता ल अपने ह कर लेथे। ओमन ल काहय- "बने पढ़ लिख लेहू त जिनगी सँवर जही। पढ़े ले अपन हाथ म हुनर आ जथे। तहाँ ले कखरो मेर हाथ फइलाय के जरूरत नइ पड़य।" फेर आज ओकर सपना सपना रहि जही जस लागत हे। बखत के सुरसा लीले बर लुहुर-तुहुर करत हावय। बेटी मन ल घर म छोड़ शहर जाय ल परत हे। इही हर समय के खेला आय। समय के आगू बड़े-बड़े के बोलती बंद हो जथे। 

         शहर म दूनो परानी बुता म जाही त बाढ़त बेटी ल अनजान जघा म काखर भरोसा छोड़ही। शहर लागे न गाँव गिधवा मन सबे जघा नजर गड़ाय रहिथे। राखी जइसन पबरित तिहार के दिन घलव बेटी-बहिनी के लाज नइ बाँचिस। मनचलहा गिधवा मन दू बहिनी ल नोंच डरिन। अपन हाथ म पहिने राखी के मान नइ रख पाइन। राखी सिरिफ अपने बहिनी के लाज रखे के नोहय, कब समझहिं? नशा म बिधुन ए गिधवा मन। कोन जनी अउ कोन दिन साबुत बाँचही ते नोनी जात के अस्मिता ह? कानून तो बने हे फेर मन के करिया मन कब कानून ल मानथे। धन बल के गरब म रोजेच नंगा नाच नाचथें। कतको ह तो गरीबी के ओनहा म लपटाय मान मरजाद खातिर थाना के मुहाँटी ल झाँके नइ। दूसर कोति जादा ले जादा अपराधी मन कोन जन कइसे बोचक जथे? इही सब ल गुनान करत दूनो परानी घर रखवार महतारी तिर चारो बेटी ल छोड़े के मन बनाइन अउ चल दिन शहर डहर।

           कुंती ह करजा के बलदा म दू काठा के टेपरी ल साहूकार ल सउँपे बर काहत थकगे। अइसन करे ले बाढ़त ब्याज ले घलव मुक्ति मिल जही। सुलिनहा मन भय कमाबो। एके जघा रही के नोनी मन ल पढ़ाय के जतन करबो। घेरी-भेरी जोजियाइस, फेर रघुनाथ ओकर गोठ ल न कभू सुनिस अउ न कभू गुनिस। कुंती ह कलेचुप रघुनाथ के छइहाँ सहीं ओकर संगसंगे चले म अपन भलई समझिस। ओकर ले अलगे अउ कति मुँह म समातिस। घर के भेद ल दूसर तिर कभू नइ जनवाइस। 

           गाँव म रोजगार गारंटी म काम तो खुलथे फेर सब ल काम के गारंटी नइ देवय। कभू नाली निर्माण, त कभू वन विभाग म पेड़ लगाय बर गढ्ढा खनई अउ पानी डरई, त कभू धरसा रेंगान म मुरुम के बुता। सरपंच अउ पंच मन अपने हितवा अउ गिनवा मनखे मन ल ही नवटिप्पा बुता देवँय। गरमी घरी तीन महीना के नब्बे दिन म नौ दिन बुता मिलगे त बहुत आय। अब तो अबड़ अकन बुता बर मशीन आगे हवय। सड़क बुता तो बड़ेच मनखे ल मिलय। सबो किसम के मशीन उँकर, गिट्टी रेती लाय बर डम्फर अउ बगराय बर जेसीबी घलव उँकरे। अइसे लागथे कि बड़का मनखे के पेट जादा उन्ना रहिथे। गरीब ल भूख लागबे नइ करय सहीं। 

          बस के अगोरा म बइठे कुंती रोजगार गारंटी योजना ल सुरता करत हताश हो जथे। ओहर यहू सुरता करथे कि एकरे आय ले मनखे अलाल होगे हवँय। खेती बुता ले कइसे दुरिहावत हें? मेड़ म ढेलवानी तो नँदाई च गेहे। बेंदरा के नाँव ले राहेर तिंवरा बोवई छोड़ दे हें, त दार के भाव सरग काबर नइ चढ़ही? मनखे अपन दोस ल नि देखय, दूसरे ऊपर पटक देथे।

            घर रखवार महतारी बरजत हावय, "तोर बाप पुरखा मन इही माटी म कमा के मर खप गें, तें ए भुइयाँ ल छोड़ के झन जा बेटा। दू मुठा खा के अपने डीह डोंगर म रही। एकर ले जादा कहूँ मेर सुख नइ ए? तोर पुरखा मन के अशीष तोला इहें मिलहि। ए भुइयाँ ल छोड़ कहूँ झन जा बेटा! बुढ़त काल म मोला कोन पानी दिही बेटा!!"  अइसन काहत बोम फार के रो डरिस। सुसकत-सुसकत आगू कहे लगिस- "कोन जनी मोर साँसा अउ कतेक बाँचे हे ते...। परदेश म कोन हवँय जे बिपत परे तोर अँगना म ठाड़ होही।" महतारी के आँसू के पुरा अतका नइ रहिस कि रघुनाथ अउ कुंती के गोड़ ल बाँध पातिस। लइकामन दाई ददा ल जावत सिरिफ देखत भर रहिगे। सबोझिन अपन-अपन गंगा-जमुना के धार ल कति मेर बाँध के रखे रहिन, उही मन जानँय। जब दूनो झिन नइ दिखिन त उँखर छाती म लदाय पथरा ल फोरत आँसू बहे लगिस। एक-दूसर ल चारो कोई पोटार के रोय लगिन। सियानिन ह चुप राहा.. नोनी हो, चुप राहा कहत रहिगे, चारो बहिनी दाई-ददा ल सुरता करत रोतेच राहय। छोटकी ह तो घेरी-भेरी रोवईच करिस दिनभर।

           बस म चढ़ के दूनो परानी शहर हबर गे। रिक्शा म बइठ उही ठिहा म पहुँचगे। जिहाँ उन ल बुता मिले रहिस। 

          रघुनाथ बर शहर अनजान तो नइ रहिस फेर शहरिया मन अनजान जरूर रहिन। सुने रहिस जिहाँ बुता करबे, उहें रहे बर कुँदरा मिल जथे। उँकर तिर कुछु आने जिनिस तो रहिस नहीं, जेकर ओमन ल चोरी होय के डर रहितिस। चार दिन पहिली काम खोज के गे रहिस हे, उहें रघुनाथ अमरगे। चार पहर रतिहा ले दे के कटिस। चार दिन बीते पाय रहिस हे। चार मंजिल ऊपर पोते बर चढ़े रहिस। एकर पहिली अतेक ऊपर कभू चढ़े नइ रेहे हे। अइसन बुता ल करें घलव नइ रहिस। पोतत-पोतत खाल्हे कोति ल देख परिस अउ चक्कर खा के गिर गिस। देखो देखो होगे। तुरते ताही ओला अउ कमइया मन सरकारी गाड़ी म भर के अस्पताल लेगिन। राम लेगही तेन ल बचाही कोन, राम बचाही तेन ल लेगही कोन? सहीं रघुनाथ ल कुछु तो नइ होइस। जेवनी हाथ बस थोरिक फ्रेक्चर होय रहिस।

           रघुनाथ अस्पताल म पीरा ले कलहरत बेड म परे हे। दाई के बरजना गोठ रघुनाथ ल सुरता आवत हे। दवई के असर म नींद आय लगिस। थोरके बेर म नींद म ओहर बड़बड़ाय धर लिस। 'दाई! तोर कहना सही रहिस। मोर गाँव मोर माटी ले जादा कहूँ अउ सुख नइ हे। मोर गाँव म मोर हितवा हे। मोर माटी मोर देश आय। मैं भुलागे रेहेंव, सोचत रेहेंव कि शहर जाके जादा पैसा कमा लेहूँ। फेर ए पइसा तो मोला मोर गाँव मोर माटी संग मोर परिवार ले दुरिहा कर देहे। मोर जम्मो सुख तो मोर माटी, मोर गाँव म हे। मोर माटी ले बड़का कुछु नइ हे।' भगवान राम ल घलव सुमिर डरिस रघुनाथ ह। अउ नींद म बुदबुदाय लगिस 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।'

         नींद उमचते साठ लइकापन म ददा के बिसाय रेडियो म सुने गीत घलव गाँव के माटी के सुरता संग ओकर अंतस् म गुँजे लागिस- जतन करौ रे, धरती के जतन करौ...जतन करौ रे, भुइयाँ के जतन करौ....मैं माटी महतारी अँव। इही बेरा ओकर तिर म ओकर महतारी आके ठाड़ होइस। रघुनाथ के आँखी तर-तर बोहाय लगथे। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग

9977252202

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