Saturday 30 September 2023

प्रसंग


                      *प्रसंग*


       (ये नान्हें रचना मन कविता के क्षणिका मन असन गद्यात्मक 'क्षण' यें। येमन लघु कथा  नई होइन।



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                      *1.नावा शब्द*


         


                   राठिया गुरुजी अउ उँकर घर के गुरुआइन बनेच बेर ल ची -चांव होय रहिन। अब तो गुरु उठके ,काहीं जाय लगिन-

"अब अउ कोन कोती...?" गुरुआइन के मुख ले निकल गय।फेर येला सुनके गुरूजी, एक पइत फेर भड़क गिन अउ तड़क के कहिन -

"अब राहन दे न...तोर ये *थोथनावली* ल !"


          येला मंय सुनें अउ भक्क का गंय। घर आके पुनीत गुरुवंश कृत विराट शब्द सागर म खोजें । नई पाँय।


           राठिया गुरुजी के बरन ल देखत, उँकर से पूछे  के  हिम्मत नई होइस।


            थोथनावली -प्रश्नावली-रत्नावली...

फेर साहित्यकार मन बर एकठन नावा लइका एकठन नावा शब्द जनम गय रहिस।



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                    *2.कार्यकर्ता*



         दीनानाथ अउ मंय, दुनों के दुनों छट्ठी नेवता ले फिरत रहेंन। तभे सड़क तीर म एकझन मनखे हर परे दिखिस। मंय तुरतेच वाहन ल रोकें अउ दीना कोती ल देखें। दीना मोर इशारा ल समझ गिस अउ कूदत वोकर तीर म पहुँच गय देखे बर। अतका बेर ले एकझन अउ सायकिलिहा वो जगहा म आ के  खड़ा हो गय रहिस।


          दीना किंजर के वो मनखे ल बने आँखी गड़ा के देखिस।छाती धुक- धुकी ल बढ़िया के वो कहिस - भैया कार्यकर्ता तो आय ग...


          अउ वो वापिस आ गिस अउ चले बर कहिस।फेर वो सायकिलिहा के मुंहूं फरा गय रहिस। वो पूछ बईठिस - का जिनिस के कार्यकर्ता भैया...?

"येहर पी.पी.आंदोलन के कार्यकर्ता ये।"

"पी.पी. आंदोलन...!ये कोन से आंदोलन आय?असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन असन बने निक लागत हे।"

"पी.पी.आंदोलन माने 'पउआ -पानी आंदोलन' होथे,भईराम! ये हमर बड़े भई, अइसन कहथे।" दीना मोर कोती ल इशारा करत कहिस।

" वाह...!बहुत सुंदर...!! फेर  अतेक बड़े सम्मानित अउ जन जन बियापे ,ये आंदोलन के अतेक सम्मानित कार्यकर्ता ल अइसन छोड़  देबो?नही...!" वो सायकिलिहा कहिस अउ वो   कार्यकर्ता कोती गिस।


          अब के पइत दीना फिर गिस अउ वो दुनों मिलके वोला ,कईसनों भी करत,तीर के छपरी म ले आनिन। फेर तब तक ले,वो कार्यकर्ता के श्री मुख ले आंदोलन के नारा बाजी शुरू हो गय रहिस।


               छपरी तरी म वोला देखके वो सायकिलिहा के चेहरा म सन्तोष के भाव आ गे... चल कूछु रूप म हमू मन , आंदोलन के अंश बन गेन।इंदल राजा के बरखा ले बाँचे के उपाय तो हमन कर देय हांवन।अउ कूछु आन मन बरसहीं येकर उप्पर तब का करबो!

"बने कहे...अभी देवशयनी चलत हे, देवउठनी के समे म, येहर उठ जाही।"मंय कहें अउ हमन  एक दूसर के राम जोहार करत ,अपन -अपन रस्ता म चल देन।


*रामनाथ साहू*



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