Sunday 26 June 2022

नानकीन किस्सा बड़का सुख- डॉ शैल चन्द्रा

 नानकीन किस्सा

                बड़का सुख

               समारू ह नवा फसल के धान के बोरी मन ल कुरिया भीतरी कोठी म रखवावत रहाय। तभे ओखर मितान बुधारू आगे।

बुधारू ह घलोक धान के बोरी मन ल ट्रेक्टर ले उतारे म सहायता करे  ल लागिस।

      जम्मो धान के बोरी मन कोठी म भरागे त समारू ह फेर तीन ठिंन बोरी ल कोठी भीतर ले निकलवा बर कहिस।

     तब बुधारू कहिस-"अभिच्च त धान के बोरी मन ल लटपट राखे सके हवन फेर काबर तैंहा धान के बोरी मन ल निकलवावत हस?"

       समारू कहिस-"हव गा मितान, भुला गे रहेंव। मेंहा हर साल धान के तीन बोरी ल आरुग राखथंव।एक बोरी धान ल चिरई चिरगुन मन बर राखथंव,एक बोरी ल मंगइया भिखमंगा मन बर राखथंव अउ एक बोरी ल सगा-मितान मन ल चौऊर पिसान के रोटी खाये बर देथंव। अईसने अपन फसल के धान के तीन बोरी ल देथंव त मोला बड़ सुख मिलथे।देहे के सुख बड़का होथे मितान, अउ हमन कोनो ल का देहे सकथन ?"

        समारू के ये गोठ ल सुन के बुधारू  कहिस-" वाह!मितान, तैं तो बड़ सुघ्घर पुन्न के काम करथस।तैंहा छोटे किसान होके भी अपन फसल के कुछ हिस्सा ल बांट के खाथस।ये बहुत बढ़िया आय।आज बड़े-बड़े लोग मन बेईमानी करके दूसर के हक ल घलोक खा देथे। अईसे में तोर ये काम ह लोगन मन बर प्रेरणा हवय।"    अइसन कहत  बुधारू ह समारू के पीठ ठोकिस अउ ओखर गला ले लिपट गिस।

                 डॉ. शैल चन्द्रा

                 रावण भाठा,नगरी

                 जिला-धमतरी

                 छत्तीसगढ़

सम्प्रति

प्राचार्य

शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय टाँगापानी

तहसील-नगरी

जिला-धमतरी

छत्तीसगढ़

आदरणीय सम्पादक जी,   

                         सादर नमस्कार! 

            उक्त लघुकथा मौलिक अप्रकाशित है।

                     डॉ. शैल चन्द्रा

                     मोबाइल नंबर-9977834645

Saturday 25 June 2022

छत्तीसगढ़ी भाँखा मा सम्बोधन के लालित्य


छत्तीसगढ़ी भाँखा मा सम्बोधन के लालित्य

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भाषा हा कोनो विचार के अदान-प्रदान करे के साधन आय।

  भाषा के इकाई ला ध्वनि या वर्ण(अक्षर) कहिथन। इही अक्षर मन ले शब्द बनथे तहाँ ले सार्थक शब्द ले या सार्थक शब्द समूह ले वाक्य बन जथे। जभे वाक्य बनथे तभे विचार के अदान-प्रदान (संपेषण) संभव होथे।

      हिंदी व्याकरण के अनुसार  एक पूर्ण वाक्य मा प्रयोग के आधार मा आठ प्रकार के शब्द---संज्ञा ,सर्वनाम, क्रिया , विशेषण ,क्रिया विशेषण, सम्बंध बोधक , समुच्चय बोधक  अउ विस्मयादिबोधक  होथे  या फेर हो सकथे।

     वाक्य मा प्रयोग होये संज्ञा या सर्वनाम शब्द हा वो वाक्य मा आये आन शब्द मन ला आठ प्रकार ले जोड़थे (या आठ प्रकार ले जुड़थे ।जेला *कारक* कहे जाथे।

    कारक के आठ प्रकार--कर्ता, कर्म,करण,सम्प्रदान,अपादान,सम्बंध कारक,अधिकरण अउ संबोधन कारक होथे। 

संस्कृत मा सात कारक माने जाथे। वोमा संबोधन कारक ला नइ शामिल करे गेहे। संस्कृत व्याकरण के अनुसार *कर्ता के ही (कर्ता ला ही)* संबोधन करे जाथे ता अलग से सम्बोधन कारक काबर? ये तथ्य बहुत उल्लेखनीय हे।

 आठों कारक के अलग-अलग चिन्ह होथे जेला विभक्ति कहे जाथे।जइसे कर्ता कारक के विभक्ति *ने* हा आय। 

      ओइसने संबोधन कारक के विभक्ति चिन्ह हे, ऐ, अरे, अजी,वो मन आयँ। सम्बोधन कारक के विभक्ति वाले शब्द हा कर्ता के पहिली लगथे अउ कर्ता के बाद सम्बोधन कारक चिन्ह(!) लगाये जाथे । जइसे कि ---

*हे राम!रक्षा करो।*

(हे राम! रक्षा कर)

ए वाक्य मा---

हे (संबोधन कारक विभक्ति )

राम (कर्ता)

! (सम्बोधन कारक विभक्ति चिन्ह)

    कभू-कभू कर्ता छिपे रहिथे ता सम्बोधन कारक चिन्ह(!) हा ,सम्बोधन कारक विभक्ति के बाद लगे रहिथे। जइसे---

*अरे! कहाँ जा रहे ?*

(अरे! कहाँ जाथस?)

(कर्ता *तुम/तैं* छिपे हे)

     कभू-कभू वाक्य मा सम्बोधन कारक के विभक्ति शब्द तको छिपे रहिथे।जइसे---

*मोहन!इधर आओ।*

(मोहन!एती आव)

ये वाक्य मा विभक्ति वाले शब्द ऐ/अरे/अजी/ओ) छिपे हे।

      *सम्बोधन कारक के संदर्भ मा एक बात जानना बहुत जरूरी हे कि--कोनो ला बलाय बर, पुकारे बर, सावधान करे बर, आह्वान करे बर, संबोधित करे बर,समझाय बर,ककरो सँग बोले-गोठियाय बर ही  सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक ) के प्रयोग करे जाथे। आने भाव बर नइ करे जाय।*

         छत्तीसगढ़ी भाषा मा सम्बोधन के शब्द मन के लालित्य देखते बनथे। ए भाषा मा अनेक सम्बोधन के शब्द बउरे जाथे। 

*छत्तीसगढ़ी भाषा भा सम्बोधन चिन्ह(!) के प्रयोग होवत प्रायः नइ दिखय।* नीचे के

 कुछ सम्बोधन के शब्द ए प्रकार के हें--

*रे,अरे*--(कोनो ला गुस्सा मा कहे बर/पूछे बर/ बरजे बर/अपन बारे मा बताय बर)


*रे बइरी! ठहर जा।*

*अरे तैं! कहाँ जाथस?*

*अरे बाबू! मान तो जा ।*

*अरे गड़ौनी! अतलंग करत हस।*

*मैं छत्तीसगढ़िया अँव रे।*(मस्तुरिया जी के गीत)


*अरे*(कोनो ला बलाय बर--

*अरे मोहन!आतो।*

*अरे तैं!चिटिक सुन तो ।*


*अरे*(कोनो ला समझाय बर)

*अरे भाई! मान तो जा जी।*


सम्बोधन के शब्द-- *अवो*

ये सम्बोधन के शब्द हा केवल  महिला मन बर प्रयोग करे जाथे।


*अवो! सुन तो वो।*

*अवो! काय करत हस ,झटकुन एती आतो।*


सम्बोधन के शब्द-- *ए गा*/   *ए गो*/ *अ गा*/ *अ गो*

(केवल पुरुष मन बर)

*ए गो! सुन तो।*

*ए गो ! कहाँ रहिथस?*

*अ गा ! झँउहा ला बोहा देबे का?*

*अ गो! कहाँ जाबे?*


 सम्बोधन के शब्द- *ए वो/ए ओ*/ *अ वो*

(केवल महिला मन बर)

*ए वो!कहाँ जाथस?*

*ए वो! पानी दे तो।*

*अ वो! अगोर तो।*


सम्बोधन के शब्द--- *अजी* / *ए जी*

(प्रायः सँगवारी या पति-पत्नी बर)

*अजी(ए जी) !थोकुन अगोर लेना।*(सँगवारी बर)

*अजी(ए जी) काबर रिसाये हस।*(पति/पत्नी बर)


सम्बोधन के शब्द-- *ए हो*/ *हो*

(नारी द्वारा रिश्ता मा बड़े जइसे ससुर या जेठ बर सम्बोधन)

*ए हो! हटरी ले टमाटर लान देहू, सिरागे हे।*

*गाँव ले कब लहुटहू हो?*


सम्बोधन के शब्द-- *ये*

जँवारा, सँगवारी, मितान,सखी, महाप्रसाद, दाई ,दीदी अर्थात रिश्ता नाता वाले शब्द मन सँग जोड़ के।


*ये मितान! तैं बहुत उदाबादी करथस जी।थोकुन सुधर जा।*


*ये दाई झाँझ मा झन निकल ,लू धर लेही।* 


सम्बोधन के शब्द-- *गा, गो, जी*

(केवल पुरुष मन बर)


*कहाँ जाथस गा*?(प्रायः अपन ले उमर मा छोटे मन बर)

*का करत हस गो?*(अपन ले बड़े मन बर)

 *सुन तो ददा गो।*


*तोर का नाम हे जी?*(अनचिन्हार हमउम्र मन बर)


सम्बोधन के शब्द-- *या*/ *वो*

(महिला  के द्वारा ,महिला  बर)


*आना बइठ ले या।अबड़ दिन मा भेंट होवत हे।*(प्रायः हमउम्र बर)


*लकर-लकर झन रेंग वो बड़े दाई।*( वो सम्बोधन आदर सूचक भाव मा)


सम्बोधन के शब्द-- *वो*

(पुरुष द्वारा ,महिला बर)

*काय करत हस वो दीदी?*


सम्बोधन के शब्द --- *हो*

 रिश्ता-नाता वाले जातिवाचक संज्ञा मन संग जोड़ के प्रयोग।जइसे भाई हो, बहिनी हो, दीदी हो, महतारी हो, सँगवारी हो आदि।

      अइसन सम्बोधन के उपयोग प्रायः नेता या वक्ता मन करथें।


*भाई हो, बहिनी हो, दीदी हो, महतारी हो,सँगवारी हो---तुमन वोट डारे ला जरूर जाहू।*

       

विस्मयादिबोधक अउ सम्बोधन के शब्द

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विस्मयादिबोधक अव्वय शब्द अउ सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक) मा भले एके जइसे चिन्ह(!) के उपयोग करे जाथे फेर दुनों मा बहुतेच फरक हे।

     विस्मयादि बोधक शब्द के प्रयोग इच्छा, विस्मय(अचरज), शोक, हर्ष, आशिर्वाद, श्राप, वरदान जइसे भाव ला व्यक्त करे बर होथे। जइसे- ओ हो !, हे! भगवान, हाय!हाय, बहुत अच्छा !, शाबाश!, चुरी अम्मर राहय, सुखी रा, पाँव मा काँटा झन गड़य आदि। जबकि सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक) के प्रयोग --कोनो ला बलाय बर पुकारे बर, आह्वान करे बर, बोले-गोठियाय बर, समझाय बर, सम्बोधित करे बर होथे।

   विस्मयादिबोधक मा चिन्ह(!)  हा ,विस्मयादिबोधक शब्द के तुरंत बाद होथे। जइसे--

*हाय!राम, मैं मर गया।*

(हाय!मैं मर गेंव)

विस्मयादिबोधक मा कोनो वाक्य मा जे पइत(एक, दू, तीन--) विस्मयादिबोधक शब्द आथे वोतके संख्या मा विस्मयादिबोधक चिन्ह(!) लगाये जाथे।जइसे--

*हाय!हाय!!हाय !!! मैं मर गया।*

(हाय!हाय!!हाय!!!मैं मर गेंव)


जबकि सम्बोधन कारक मा सम्बोधन के चिन्ह(!) हा वाक्य के कर्ता के बाद लगथे अउ एके पइत लगथे।जइसे--

*हे भगवन! मेरी रक्षा करो।*

(हे भगवान!मोर रक्षा कर।

      दुनों मा एही मुख्य अंतर हे।

       ए तरह ले हम देखथन के  सम्बोधन के शब्द के मामला मा छत्तीसगढ़ी भाषा बहुते समृद्ध हे।


चोवा राम ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


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छत्तीसगढ़ी भाँखा मा सम्बोधन के लालित्य

सम्बोधन कारक के सम्बंध म जउन बहुमूल्य अउ सहेजे के लइक ,जउन जानकारी आपमन देय हव, वोहर खुद ही समग्र हे। बाँचे खोंचे बर ,डॉ. वर्मा भइया जी तो है ही।


सम्बोधन कारक के उपयोग-संस्कृत अउ हिंदी के विभक्ति अउ कारक विधान जइसन ही, छत्तीसगढ़ी म करे   जाही।जहाँ हमर ये छत्तीसगढ़ हर छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी के मया-दुलार  ले सिरझे हे, वहीं ये पुण्यभूमि हर -राष्ट्रभाषा हिन्दी के घलव *गढ़* आय। हमर हिंदी ,हिंदी के शुद्ध ,समग्र अउ सुन्दरतम रूप आय। छत्तीसगढ़ ल अपन हिंदी के ऊपर गर्व हे।छत्तीसगढ़ हर कटकट ले , हिंदी प्रदेश ये।छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के आवाजाही बहुत सहज अउ सरल हे , हमर बर।


येकर सेती हिंदी व्याकरण के हर विकल्प हर छत्तीसगढ़ी म समादृत होही। कनहुँ भी प्रकार के कोई छांदन-बांधन, येकर विकास ल छेंकही। अउ  वो छांदन -बांधन के वोई हाल होही,जउन आज _छोटे वर्णमाला(बिन 52 अक्षर वाला)_ के होवत हे। 


हिंदी के सब विधान -पाणिनि सम्मत हे,अउ पाणिनि ल त्याग के कोनो व्याकरण के अस्तित्व, प्राच्य भाषा में के नई ये।


रामनाथ साहू

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     *छत्तीसगढ़ी भाषा म सामान्य संबोधन के मतलब होथे-कोनो ल आरो देना,आवाज देना,पुकारना | ए संबंध म खूब अकन संबोधन शब्द हवंय जैसे- कस गा,कस ओ, ए बाबू,ए नोनी,ए गुइयां,ए संगी,ए संगवारी,ए गोई (बहुरिया मन ल संबोधन), कस मालिक,कस गौंटिया,कस दाऊ (गांव के प्रमुख किसान,मालगुजार बर संबोधन) नी गा दाऊ,ए दादू, ए दद्दू, मुन्नी-मुन्ना,गुड्डी-गुड्डा,गुड़िया, मोर छौना,मोर लाला,मोर हीरा,मोर करेज्जा के टुकड़ा (छोटे लईकन ल मया-दुलार,चोन्हा म संबोधन), बबा,बुढ़ी दाई,साहेब,साहेबाईन, जी सरकार (अधिकारी मन बर)कस रे, कस ओ ( कमिया,कमैलिन,बनिहार,बनिहारिन अउ छोटे उमर वाला बर संबोधन होथे) कस हो (ससुरार के रिश्ता बर संबोधन होथे), ए जी, ओ जी, कस जी (अभी-अभी बिहाव होए पति-पत्नी के संबोधन)*

      *छत्तीसगढ़ी भाषा म अब्बड़ेच कन शब्द ले सामान्य बोलचाल, सामान्य संबोधन के शब्द हवंय, जेला बोले से छत्तीसगढ़ी भाषा ह खूब गुरतुर,खूब मिठास भरे, खूब लालित्य भरे कहे जा सकथे | जैसे :-*

*१. हे , वोहा मोला अइसे कहत रहिसे ? मैं नइ जानत रहेंव गा -  पीठ-पीछू मोर चारी-चुगली करथे !*

*२. हे , तैं सिरतोन म ए बात ल  नइ जानस का, आजकल गौंटिया ह बिलासपुरिन संग सटर-पटर हवंय*

*३. हे ,ओकर सुवारी भाग गे का गा ?  सिरतोन म  वो ह  अड़बड़ेच मुंहबायेंड़ हवय, ओकर चाल-चलन ठीक नइ लागत रहिस* |

*४. हे , तैं सिरतोन म पास हो गए ? मोला तो यकीन नइ होवत हे | तोला पढ़ते कभू देखेच नइ हौं, दिन भर बहेरा कस भूत किंजरत रहिथस |*

*५. हे , ओमन दुनो भाई कैसे अलग हो गईन गा ? राम-लखन सहीं एक्के संग रहत रहिन,एक्के संग कोहों आवत-जावत रहिन ! ऊंकर मति कैसे छरिहा गे गा ? मोला लगथे- अब ओ मन  उऊकी बुध म  चलत हवंय, तभे अलग होईन |*

*६.  हे , अत्तेक बड़े कांदी के बोझा ल तैं अलगा डारबे  गा ? बाप रे !*

*७. हे , ओकर सुवारी मास्टरिन हो गे ? बड़बात, सिरतोन म ओ ह अबड़ेच हुसियार अउ करमैतीन हवय*

*७. हे , तोर टिकरा खेत म अत्तेक धान होईसे ? तोर तो किस्मत जाग गे गा |*

*८. हे ,अमटहा म आलू मिठाथे ? मैं तो कभू नइ खाए हौं गा, अब मोरो घर म रांधे बर कहिहौं*

*९. हे ,ओ रिक्सा चलैया के नोनी ह १२ वीं कक्षा म छत्तीसगढ़ म पहला आ गे ? बड़बात,ओ नोनी खूब हुसियार हवय गा,अपन कुल के नाव ल तार देहिस*|

*१०. हे , ओ बैसाखू ल लकवा मार दिस ? ओ तो खूब हट्टा-कट्टा हवय गा | ए नरतन के कोई भरोसा नइ हे भईया, कब, काकर साथ  का हो जाथे ? कहे नइ जा सकै* |

     लेकिन कोनो दुखद घटना के बात म संबोधन के लहजा, उच्चारण भाव अर्थ ह बदल जाथे | जैसे :-

*१. हे ! ओ रामू के एक्सीडेंट हो गे ! कत्तेक लाग दिस गा ? बांचीस के नहीं ददा ? भगवान बंचाय ओ ला* |

*२. हे ! ओ मनबोध कईसे खतम हो गे गा ? ओ तो खूब तगड़ा जवान रहिस | हे राम ! ओकर आत्मा ल शांति दे, ओम् शांति शांति शांति:*


     "कस हो" शब्द के प्रयोग ससुराती रिश्ता बर संबोधित करें जाथे | जैसे :-

*१ कस हो, तुंहर बेटी ल रथजुतिया के दिन भेजिया ? के हरेली तिहार मान के आही ? तुमन जैसे कहिहा, तैसे लेहे आहू* |


*२. कस हो बुढ़ी सास, का साग रांधौं बतावा ?*

    अपन ले छोटे लईकन, कमिया-कमैलिन, बनिहार-बनिहारिन, पहटिया बर "रे, अरे" शब्द ले संबोधित करें जाथे | जैसे :-

*१. कस रे, तैं अत्तेक अबेर कर के  आवत हस ? थोकुन जल्दी आए कर | ओतेक दूरिहा टिकरा खार जाना हे | कई किसान एक-दू हराई जोत डारिन होही, बदमाश कहीं के* |

*२ कस रे, तैं अभी तक सुतेच हस, नौ बज गे बेटा | जल्दी उठ के पढ़े-लिखे कर, घर के बूता म घलो थोकिन हाथ बंटाए कर | तेकर बाद जल्दी तैयार हो के स्कूल जाए कर | अच्छा विद्यार्थी के पांच लक्षन तोला मालूम नइ हे का ? ए पांच लक्षण ल गांठ बांध के धर ले,तेकर पूरा पालन करबे, तभेच तोला सफलता मिलही, चेत लगा के ए पांच लक्षण ल  इच्छित रट ले :-*

      

 *काग चेष्टा, बको ध्यानम्*

*स्वान निद्रा तथैव च*

*अल्प हारी, गृह त्यागी*

*विद्यार्थी पंच लक्षणम्*


     *ए प्रकार से छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य अउ बोलचाल म हिन्दी व्याकरण के कारक रचना के अनुसार आठवां प्रकार "संबोधन" के सामान्य संबोधन म अबड़ेच अकन शब्द के प्रयोग होथे, जेकर से छत्तीसगढ़ी भाषा ह  खूब गुरतुर,मिठास भरे, लालित्य भरे हवय | साथ ही व्याकरण के दृष्टिकोण से कारक रचना के आठवां प्रकार- हे, हो, अरे के शत-प्रतिशत उपयोग होथे अउ सदा  दिन एकर उपयोगिता बरकरार रहिही*


             *छत्तीसगढ़ी भाषा म "संबोधन के लालित्य" के भंडार हवंय, तेमा पति-पत्नी के संबोधन ल सुन के तन-मन गदगद हो जाथे,जब पत्नी ह पति ल आरो देथे-ए जी, कस जी, ए बाबू के ददा, नइ सुनत हौ का ?* 

     *पति ह सुनत रहिथे,तभो ले कनमटक करके आनंद लेवत रहिथे*

      *पत्नी ह फेर आरो देथे-ए गोलू के पापा*

        *पति ह अभी भी कुछु जवाब नइ देवय*

        *पत्नी ह फेर आरो देथे-ए चिंटू के चाचा, नइ सुनत हौ का जी ?*

      *पति ह मजा लेवत कहिथे-बने ढंग के नइ सुनावत हवय, थोकुन जोर से बोल न जी*

      *पत्नी -ए बाबू के ददा*

    *पति-हां, अब सुने हंव, बोल का कहत हस ?*

*मैं ए कहत रहेंव.......*

       *पति-का कहत रहेव जी?*

         *पत्नी-सुना न.......*

        *पति-हां सुना न ? साड़ी लेबे ? साया लेबे ? पोल्का लेबे के के कुछु चिन्हारी लेबे ?*

      *पत्नी-न मैं साड़ी लेंव, न साया लेंव, न पोल्का लेंव, न कुछु गहना-गुरिया चिन्हारी लेंव*

     *पति- तव का लेहा जी ?*

     *पत्नी-मइके जाए के साध लगत हे जी, चल न मोला दू दिन बर मइके पहुंचा दे*

      *पति-ओ हो ! तोर जउन सउंख ल पूरा नइ करे सकौं,तऊनेच ल काबर कहत हस ?*

       *पत्नी-ईमान से गऊ की कहत हौं- आजकल दिन-रात मोर मन मइके जाए बर भुकुर-भुकुर होवत रहिथे* |

       *पति-ले कालि जाबो तोर मन ल जादा नइ दुखांव,ससुरार जा के सारी हाथ के  बने खाए बर मिलही,चार कौरा आगरेच खवाही*

      *पत्नी-अच्छा जी, सारी हाथ के खाना जादा सुहाथे,मोर परोसे ह नइ सुहाय ?*

       *पति-अईसे कुछू  बात नइ हे जी,तोर परोसे म तो मैं मोटा गयेंव,दू बच्छर म १० किलो वजन बाढ़ गे | फेर कभू-कभार सारी हाथ के खाए ले कुछ जादेच मजा आथे, समझे के नहीं ?*

    *पत्नी-समझ गयेंव,फेर सारी म जादा इंटरेस्ट मत लेहे करौ समझे, ह ह ह ह ......*

      *भारतीय हिन्दू नारी ह अपन पति के नाव नइ लेवंय, कुछू संकेत म अपन पति के नाम ल बड़ा मुश्किल म बताथैं जैसे- हमर बड़की भौजी ह हमर भईया नाव अईसे बताथे-नवरात्रि के माता ल  जऊन कहिथैं, वोही नाम हवय*

      *दुर्गा,लक्ष्मी, काली ?*

      *नही जी, दुर्गा के साथ एक अउ शब्द कहिथें,वोही नाम हवय*

     *अच्छा, देवीप्रसाद ?*

     *,बड़की भौजी-हां हां, वोही नाम हवय*

     *हमर मंझली भौजाई ह हमर भईया के नाम ल अइसे बताथे-अयोध्या तीरथ के बाद जउन तीरथ के नाम लेथें, वोही नाम हवय*

     *मथुरा प्रसाद ?*

     *मंझली भौजी-हां हां, वोहीच नाम हवय*

      *मोर सुवारी तिर कोनो मोर नाम ल पूछथे, तव बताथे- "मनखे के मिरतू के बाद बिहार राज्य म जेन तीरथ म जा के पिण्ड दान करथें, वोही तीरथ के नाम हवय ऊंकर*

       *अच्छा-गया जी ?    *पत्नी-हां हां वोही नाम हवय*

      *तुलसीकृत रामचरित मानस म जब भगवान श्रीराम चंद्र जी,भईया लक्ष्मण अउ जगत जननी सीता जी  चौदह वर्ष के बनवास म  जाथैं, तव केवट प्रसंग गंगा पार के बाद भगवान श्रीराम चंद्र जी ह मुनि भरद्वाज के आश्रम म प्रयागराज पहुंचथें, तब आसपास के नर-नारी मन दर्शन करे बर आथैं अउ ऊंकर सुकोमल सुंदर मनोहारी  दिव्य स्वरूप ल देख के सीता जी से पूछथैं-आप के पति कौन हैं ?*

*चौ.- कोटि मनोज लजाव निहारे*

    *सुमुखि कहहु को आहि तुम्हारे ?*

   *सुनि सनेहमय मंजुल बानी,* 

    *सकुची सिय मन महुं मुसुकानी |*

   *सहज सुभाय सुभग तन गोरे*,

   *नामु लखनु लघु देवर मोरे |*

   *बहुरि बदनु बिधु अंचल ढांकी,*

   *पिय तन चितइ भौंह करि बांकी |*

    *खंजन मंजु तिरीछे नयननि,*

   *निज पति कहेउ तिन्हहि सिय सयननि |*


*दो. अति सप्रेम सिय पांय परि*


      *बहुबिधि देहि असीस* 

   *सदन सोहागिनि होहु तुम्ह*

    *जब लगि महि आहि सीस ||*

     *ए प्रकार से भारतीय हिन्दू नारी सतयुग,त्रेता, द्वापर अउ ए कलजुग म घलो अपन पति के नाम ले के नइ पुकारैं | अपन पति ल परमेश्वर मानथैं, पूजा करथैं अउ तीजा, बटसावित्री ब्रत के उपवास रहिथै, तेकरे सेती हमर भारतीय हिन्दू नारी मन दुनिया भर के सब नारी मन ले महान होथैं* |

     *भारतीय हिन्दू नारी मन के मैं कोटि-कोटि वंदन करथौं, सम्मान करथौं, पूजा करथौं*

     *छत्तीसगढ़ी भाषा म संबोधन के लालित्य एक अउ खूब सुग्घर सराहनीय हवय-छत्तीसगढ़ के बहुरिया मन जऊन गांव,शहर ले बिहाव हो के आए रहिथैं-ससुरार म ऊंकर नाव नइ लेवंय बल्कि जऊन गांव,शहर ले आए रहिथैं, तऊने नाम से आरो देथैं जैसे:- रतनपुरहीन, बिलासपुर हीन, रायपुरहीन, धमतरहीन आदि*

    *ए किसम से छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य, संबोधन, बोली-बतरस म संस्कृति, रहन-सहन म खूब लवलीन,गुरतूर अउ लालित्य भरे हवय*


    सर्वाधिक सुरक्षित

दि. २३.०६.२०२२


आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

उर्फ योगानंद

"रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

मो. ९९२६९८४६०६

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पुस्तक समीक्षा(चेतना के स्वर- डॉ पी सी लाल यादव)- पोखनलाल जायसवाल


 

पुस्तक समीक्षा(चेतना के स्वर- डॉ पी सी लाल यादव)- पोखनलाल जायसवाल

*साँस्कृतिक चेतना के स्वर 'लोक-मंगल' लोक-मंगलकारी हे*


      छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य ह अगास म चमकत चंदैनी मन सहीं इहाँ के लोक जीवन म चारों मुड़ा बगरे हे। इहाँ के लोक साहित्य लोक परंपरा, लोककथा, लोकगीत अउ लोकगाथा के रूप म बड़ समृद्ध हे। ए लोक साहित्य जुन्ना बेरा ले मुअखरा लोकजीवन के गंगा म सरलग तउँरत हे। बिन बाधा के आगू बढ़ते जावत हे। परंपरा अउ संस्कृति ल सजोर करे के बूता भाषा के आय। भाषा चूँकि लिपि बद्ध होके कोनो जिनिस ल नवा जिनगी देथे। लम्बा जिनगी देथे। भाषा पहलीच ले वाचिक/मुअखरा परंपरा ले पोठ होवत आगू बढ़े हे। फेर लिपिबद्ध होके एहर सांस्कृतिक चेतना ल अउ सजोर करथे। अइसने ढंग ले छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति अउ लोक साहित्य ल डॉ. पीसी लाल यादव मन पहिचान तो दे हें, ओला ठाड़ होय के मउका घलव दे हावँय। डॉ. पीसी लाल यादव छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य के मरम ल बड़ गहिर ले जानथें। ओला लोकसाहित्य के पोषइया कहे जाय, त एहर कोनो नवा बात नइ होही। उन मन बड़ गंभीर अउ गहिर ले लोक संस्कृति अउ परंपरा मन के अध्ययन करे हें। एकक तिनका ल सहेजे के उदिम करें हें। उँखर ऊप्पर शोध कर के कतको लेख लिखें हें अउ इहां के जम्मो साँस्कृतिक अस्मिता ल सहेजे के उदिम अउ बड़ जतन करें हें। अइसन श्रमसाध्य के बूता कोनो पालक दरी ही संभव हे। 'लोक मंगल' नाँव के अपन किताब ले डॉ. पीसी लाल यादव मन छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक मूल्य मन ल संरक्षित करे हें। एकर संग पाश्चात्य संस्कृति कोती दउड़त-भागत लोगन अपन संस्कृति ल मानँय, एकर बर बड़का बूता करे हें। जब वोमन पाश्चात्य संस्कृति ले असकटा के अपन अस्मिता कोती लहुँटही, त मानवीय मूल्य आधारित अपन अस्तित्व ल खोजत भटकहीं, 'आव अब लौट चलिन' सोचहीं त ओमन बर लोक साहित्य के इही किताब एक ठन आसरा रइही। जेन म सिरिफ छत्तीसगढ़ी हाना, जनौला लोकगीत, लोकपरंपरा अउ लोकगाथा के जानकारी नइ हे, बल्कि जिनगी म सामाजिकता के महत्तम ल बतावत मानवीय मूल्य मन ल सहेज के लिखे लेख हवँय।

           आज के भागदौड़ भरे जिनगी मनखे ल कुरिया भीतरी समेट दे हे। मनखे मन म अवसाद, चिड़चिड़ई, तनाव जइसन अउ कतको विकार मन दिन ब दिन घर करत जावत हें। मशीन के बीच राहत मनखे के व्यवहार मशीन सहीं हो गे हे। भावनात्मक विचार के क्षमता कमतियावत जावत हे। कतको कारण ले भीड़ म रहिके घलो अकेल्ला जिनगी जियई होवत हे। इही जीवन शैली के नवा टशन म लोगन के हँसी गँवावत जावत हे। एके छत के छाँव तरी रही के मनखे तिर म दू घड़ी बइठ के हाल-चाल पूछे ल तो कब के भुलागे हवय। मोबाइल टपड़त असल जिनगी जीना तो बोझा होगे हे। जम्मो मानवीय संवेग गायब होवत जात हे। थोक-थोक म चिल्लई अउ झगरा-झाँसी देखे ल मिलथे। अइसन म हमर संस्कृति ह हम ल मनखे के हद म रहे के संदेश देथे, काबर के हमर संस्कृति जोड़े के संस्कृति आय। एहर तोड़य नहीं। इही सब बात मन ल विचार करके डॉ. पीसी लाल यादव मन शायद ए दिशा म ए स्तुत्य कारज ल करे हे। पूरा भारत म अनूठा अउ निराला परंपरा 'मितान बदना' छत्तीसगढ़ के अपन खास चिन्हारी हरे। जेन बिखरत जावत परिवार ल एक सूत म पिरोय के बूता करथे। दू आने-आने परिवार ल मया के सुतरी म जोरे के बँधना आय मितानी।

       हाना मन ल सकेले अउ सहेजे गे हे। नाचा जे आज नँदावत हे। मंच ले गायब हे। सोशल मीडिया म सिमटा गे हे। ओकर ऊप्पर पीसी लाल जी बड़ विस्तार ले लिखे हें। लोक मंगल के प्रतीक भित्तिचित्र जे ल भितिया ले उतर के भुइयाँ म रंगोली बन के घर-अँगना के शोभा बनत हे। आज हर मंगल उछाह के बेला म रंगोली सजाय जावत हे। जे ह एकर अक्षुण्णता ल बताथे। लोकप्रियता ल बताथे। यहू बताथे के छत्तीसगढ़ आर्थिक रूप ले सजोर बनत जावत हे। नइ ते फूल अउ पाना ल रगड़ के भित्तिचित्र बनइया मनखे मन रकम-रकम के रंगोली नइ सजातिन। 

        बिसकुटक जनौला के जइसन तो होथे, लोकजीवन के तार्किक क्षमता ल समृद्ध करथे, गणितीय अभ्यास भी कराथे। वो ह मुअखरा फूले-फले हे। यहू बताय गे हे के बिसकुटक म गणित के मूल नियम सबो जगह लागू नइ होवय।

         गहना मनखे के सबले बड़े कमजोरी आय। नारी होवय ते नर सब ल गहना लुभाथे। मनखे गहना के मोह फाँस ले उबरेच नइ सकय। गहना-गुँठा तन के सुघरई भर नइ बढ़ाय, बल्कि वो हर हमर संस्कृति के एक ठन अंग आय। चिह्नारी आय। त संस्कृति म रचे-बसे गहना के आकर्षण ले भला लेखक कइसे आरुग बँच पाही।

        समाज सुधारक और संत, बाबा गुरु घासीदास जी छत्तीसगढ़ म प्रसिद्ध हें। उँकर जीवनदर्शन सतनाम पंथ के रूप म इहाँ के लोकजीवन ल जग-जग अंजोर बगरावत हे। लोकसंगीत म उँकर महिमा पंथी गीत के रूप म प्रचलित हे। अइसन सत्धर्मी सत्पुरुष के जीवन गाथा लोक बर मंगलकारी हे, लोक मंगल म उन ल जगह देना लोकहित म हे।

       डॉ. यादव के भाषा  गंगा के निर्मल जलधारा के जइसे बेरोकटोक बोहावत हे। सरल अउ सहज हे। अपन कथ्य के साखी बर लोक साहित्य ले उदाहरण बर जेन मोती चुने हे, ओमन अनमोल हें। 

     लोककला लोक बर होथे। लोक जम्मो जन समूह बर प्रयोग करे जाने वाला शब्द आय। अइसन म लोकसाहित्य म समाय जिनिस/विषय लोक मंगल के हित बर ही होथे। डॉ. पीसी लाल यादव द्वारा रचित 'लोक मंगल' सिरतोन म लोक मंगलकारी हे। एमा लोक चेतना के स्वर समाय हे। छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान अउ अस्मिता ल अक्षुण्ण रखे म लोक हितकर ए किताब ल पढ़े ले पाठक छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक मूल्य ले जुड़े रही पाही। छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक एकता के संवर्धन बर डॉ. पीसी लाल यादव के शोध ले भरे किताब लिखे के ए उपक्रम पाठक मन ल जरूर पसंद आही। ए किताब हिंदी म हे, अउ छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाज अउ संस्कृति ल समोय हे। अइसन किताब सबो छत्तीसगढ़िया ल पढ़ना चाही। इही सोच के सब तिर पहुँचाय के उदिम म ही महूँ ह ए लेख ल लिखे हँव। 

         लोक मंगल के प्रकाशन हेतु डॉ. पीसी लाल यादव जी ल मैं हार्दिक बधाई अउ शुभकामना पठोवत हँव। 

*रचना: लोक मंगल*

*रचनाकार: डॉ. पीसी लाल यादव*

*प्रकाशनः सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली*

*पृष्ठ : 128*

*मूल्य: 150/-*


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला-बलौदाबाजार छग.

9977252202

कहानी--गुरु बनावौ जान के

 कहानी--गुरु बनावौ जान के

    अपन डीह-डोंगर के संगे-संग जम्मो देवी-देंवता- ठाकुर देव, मारो देव, साड़हा देव, गौरा-चौंरा, शीतला दाई, बूढ़ा देव जम्मो म मूठ धरे के दिन आगे हे, अउ एती नांगर के संवागा ल कहिबे त एक ठन बइला के खोरई अभी माढ़े नइए अउ उप्पर ले दूसर बइला के लहकई चालू होगे हे... तेमा ए सरगनच्चा टूरा झिथरू... दिन न बादर अउ गेंड़ी चघहूं कहिके बेलबेली मढ़ाए हे. काला-काला करबे अउ काला नहीं गुनत बुधारू अपन सुवारी भगवंतीन ल कहिथे- 'बादर ह लिबलिबाए ले धरले हे, कतका जुवर गदगद-गदगद रितो दिही ते ठिकाना नइए. तैं बिजहा ल बने जोर-जंगार के राखबे कइसनो करके धरती महतारी के कोरा ल तो हरियाएच बर लागही न'.

    बुधारू के गोठ पूरे नइ रिहिसे अउ एती वोकर बेटा झिथरू फेर अपन ददा करा गोहराए लागिस- 'आंय ददा... खोरवा ह एकदम हमला देख-देख के मचत रिहिसे... हमूं वोला लुलुवावत ले ललचाबो गा..'

    -'राह न रे.. दिन न बादर अउ गेंड़ी चघबे, कुछू संसो हे तोला... ए लोगन के तरुवा धमकत हे, कइसे मूठ धरे के जोखा माड़ही कहिके अउ तोला गेंड़ी मचई सूझे हे. जा अभी हरेली म बना देबो.

    -उं... वोकर ह एकदम रचरिच-रचरिच बाजत रिहिसे गो... आंय ददा...

    -तोला कहि देंव न... हरेली म रचरचा लेबे... कभू नंदिया बइला म चघहूं कइही, कभू गेंड़ी मचमचाहूं कइही, कभू फिलफिली चलाहूं कइही, त कभू तुतरू बजाहूं कइही. इही एक झन लोखन के लइका ए. सिरतोन म एकलमुंडा लइका झन होवय कहिथे सियान मन तेन सिरतो ए. ए लोगन के मरना दिखत हे, अउ एला मसमोटी सूझे हे.

    -त का होगे... लइका के जात, खेलही-कूदही नहीं... एक छिन बना देबे त का हो जाही- काहत बुधारू के गोसईन भगवंतीन बाप-बेटा के गोठ म झपा परिस.

    -तहूं टूरा डहार गोठियाबे... लोखन के लइका बिया डारे हस तेला पंदोली देबे, कहिके बुधारू खिसियाय असन करीस.

    भगवंतीन घलो बेलबेलाय असन कहिस- 'अई... सबो अपन लइका बर मया करथे, फेर तहीं कइसन बाप अस ते... जब देखबे ते बपरा ल हुदेनेच असन गोठियाथस'.

    -नहीं त, मंदरस चंटाए अस गोठियाववौं वो तोर टूरा संग?'

    -त का हो जाही, अपन लइका संग मया-मंदरस कस गोठिया लेबे त? भगवंतीन अउ लमाए कस कहिस.

    -हहो-हहो तुंहरे दाई-बेटा बर तो मैं ह घानी फंदाए हौं ओ... ए लोगन ल जब देखबे ते हटरे-हटर. कभू गिरे-परे म तेल चुपर दे कहिबे... त हम वोतको के पुरती नइ होवन... अउ ए टूरा ह.. गोंहगोंह ले खाए रइही, तभो करोनी करो लेना बेटा कहिके सइघो दुहना ल वोकर आगू म मढ़ा देथस. 

    -हहो-हहो.. खवाबो, अउ खवाबो... कोन हमर चउदा झन खवइया हे तेमा... एक झन बेटा... मन भर के खवाबो.

    -तोर अइसने चरित्तर के सेती तो टूरा ह दिन के दिन लेड़ब्बा होवत जात हे. एकर जउंरिहा गाँव के अउ आने लइका मनला देख... कइसे बने स्कूल जाए बर धर लिए हें. नान-नान लइका मनला बस्ता धर के स्कूल जावत देखबे त मन ह भर जाथे... अघात सुग्घर लागथे... अउ हमर ए हुड़म्मा ह... अभी ले ठेठा चिचोरत किंजरत रहिथे. सब तोरे सेती ए... महूं ह कोनो पढ़े-लिखे ल गोसईन बना के लाने रहितेंव, तब वो ह जानतीस-समझतीस पढ़े लिखे के महत्व ल.

    -त लान ले नइ रहिते... मैं बरपेली थोरे आए हौं तोर घर म.

    -अरे का बतावौं... ददा ह मोला देखे बर नइ जावन दिस तेकरे सेती आय... नइते तोर असन छेपकी नाक के ठेमनी ल कोन लानतीस- काहत बुधारू ह घर ले निकल गे.

 * * * * *

    गाँव म हांका परत राहय- 'अब्बड़ दुरिहा ले संत-महात्मा मन आए हें, ए बछर के चौमासा ल हमरे गाँव म बिताहीं.. चलौ-चलौ परघाए बर.' बुधारू के कान म हांका के भाखा परिस, त उहू गुनिस- रात-दिन के किटिर-काटर ले चलव महूं संत-महात्मा मनके दरसन कर लेथौं.

    बस्ती बीच के लील्ला चौंरा मार सैमो-सैमो करत राहय. गाँव भर के परानी वो मेर जुरियागे राहंय. का लइका का सियान जम्मो अपन-अपन सख के पुरती वोकर मनके सेवा-जतन म भीड़े रहंय. वोती ले भजनहा मन घलो बाजा-रूंजी संग आगे राहंय, अउ परघउनी भजन गा-गा के उनला परघावत राहंय-

  ये भजन बोलो भगवान के

  तोर नइया ल लगाही,

  वो ह पार हो

  ये भजन बोलो...

    भजन पूरा सिराय घलो नइ रिहिसे अउ भंडार मुड़ा ले उठत बादर ह कड़कड़ाय  लगिस. बिजुरी झमाझम लउके लागिस तहाँ ले छिन भर म मूसर कस पानी ह दमोर दिस. जम्मो मनखे एती-तेती जिहां छइहां दिखिस तिहां ओधगें. कतकों मनखे बरखा के पानी म भिंजते-भिंजत अपन-अपन घर कोती भागिन- चल दाई छेना-पैरा ल सकेलबो काहत. बुधारू घलो घर कोती भागीस. वोकर दूनों बइला बाहिर म बंधाए रिहिसे, कोन जनी भगवंतीन ह वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस होही धुन नहीं ते? 

    घर आइस त सिरतोन म बइला मन पानी म घुरघुरावत खड़े राहंय. बुधारू वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस. तहाँ ले रंधनी खोली म चुनुन-चानन करत भगवंतीन ल कहिस- 'देख मैं तोला कहे रेहेंव न, बरखा दाई कतका जुवर बरस जाही तेकर भरोसा नइए कहिके, आजेच मोर बात ह सिरतो होगे. काल बिहंचे मैं मूठ धरहूं, तैं बिजहा के धान ल टुकना म तोप के मढ़ा दे रहिबे.

    भगवंतीन रंधनी खोली के भितरेच ले कहिस- 'फेर बइला मन तो बीमार हे काहत रेहेव न?

    देखबो, बनत भर ले बनाबो, नइते आन के बइला ल मांगबो... फेर कुछू होवय धरती के गरभ म बीजा तो छींचेच ले लागही न- काहत बुधारू फेर लील्ला चौंरा कोती चल देइस. उहाँ जम्मो मनखे अपन-अपन घर चलदे राहंय. पानी घलो थिरागे राहय. बुधारू एक झन सियान असन दिखत महात्मा के पैलगी करके वोकरे तीर बइठ गे. महात्मा वोकर नांव पूछिस, त बुधारू बताइस.

    बुधारू के हाव-भाव ल देख के महात्मा समझगे के ए ह वोकर संग गोठियाना चाहत हे. उन पूछिन- 'कइसे जी तुंहर गाँव म खेती-किसानी के का हालचाल हे?'

    -काला कहिबे महात्मा बबा. जबले ए बड़का-बड़का फेक्टरी मन गाँव के भांठा म रकसा बरोबर खड़ा होगे हें, तबले पानी हुल मारथे. ले देके एके फसल हो पाथे, उहू म धान के बाली ह ओकर मनके धुंगिया के मारे कोइला रचाए कस करिया-करिया दिखथे. सेवाद ल कहिबे त भसभस ले लागथे. भइगे भूंसा बरोबर पगुरावत रहिथन. 

    -अउ पहिली कइसे राहय जी?'

    -पहिली कहेस महात्मा बबा. पहिली चुरोए दूध कस गुरतुर लागय भात ह. धान के बाली मन मार सोन के गहना-गुरिया कस चमकत राहय, अउ नहीं-नहीं म साल म दू फसल तो लेबेच करन. फेल अब तो नंदिया-नरवा, कुआँ-बावली जम्मो के पानी ल इही भांठा म खड़े रकसा मन पी डारथें. अउ एकरो ले अभियावन बात हे महात्मा बबा...!

    -का बात हे जी- महात्मा अचरज ले पूछिस.

    ए रकसा मन संग बाहिर ले आवत मनखे मन तो हमर मनके जम्मो जिनिस के सइतानास करत हें. एक डहार जिहां दाई-बहिनी मनके मरजाद म नीयत खोरी होवत हे, उहें हमर मनके जम्मो कला-संस्कृति, साहित्य अउ भाखा के बरबादी करत हें, वोकर हिनमान करत हें, हमर गौरव-इतिहास ल अन्ते-तन्ते लिख-लिख के वोमा सेंधमारी अउ मिलावटखोरी करत हें. फेर थोरिक गुन के कहिस- अच्छा ए तो बतावौ महात्मा बबा, काली मैं मूठ धरहूं त सबले पहिली उही बाहिर ले रकसा संग आके भांठा म बसे पुरोहित घर धान अमराहूं?

    -नहीं तो... तैं कइसे गोठियाथस बुधारू.. देवी-देंवता, डीह-डोंगर ले बढ़के कोनो नइ होय. ए पेट-पोसवा मन जम्मो धरम-करम के रीत-नीत ल बिगाड़ डारे हें. अच्छा बता पहिली कइसे करत रेहे?

    -पहिली... पहिली तो गाँव के जम्मो देवी-देंवता मन म धान चढ़ावन, तहाँ ले बांचे धान मनला खेत म लेग के ओनार देवत रेहेन.

    -त अभी घलो वइसने करबे. अपन पुरखौती के परंपरा ल मानबे. बाहिर ले आए पेट-पोसवा मनके भभकी म मत आबे.

    -हौ काहत बुधारू अपन घर कोती रेंग दिस. रतिहा जादा नइ होए रिहिसे, फेर कतकों घर ले थारी-लोटा के ठुनुर-ठानर सुनाए ले धर ले रिहिसे. पढ़इया लइका वाले घर के मन जल्दी बियारी कर डारथें न. अओ भगवंतीन बेंस ल हेर न- कहिके बुधारू दरवाजा ल खटखटाइस. बेंस के हिटते वो घर भीतर चल दिस.

    पल्हरा मनके अवई-जवई म कभू-कभार चंदैनी मन जुगुर-जागर दिख घलो जायं, फेर चंदा कती मेर हे तेकर गम नइ मिलत रहय. भंइसा मुंहन अंधियार म घलो बुधारू के नींद नइ परत रिहिसे. बस वोला काल बिहंचे होत मूठ धरे के चिंता राहय... कब कुकरा बासही तेकर अगोरा राहय.

    आखिर बुधारू के अगोरा सिराइस. कुकरा बासे के भाखा सुनाइस. वो धरारपटा खटिया ले उठ के मुंह-कान धोए बर बारी कोती चल दिस. आज भगवंतीन घलो वोकर उठे के आरो पाते उठ के बुधारू बर चहा-पानी तिपो डारिस, तहाँ ले बिजहा ल टुकना म जोर-सकेल के परछी म मढ़ा दिस. बुधारू बारी कोती ले आइस तहाँ ले चहा पी के एक टुकना के धान ल उठाइस अउ देवता खोली म माढ़े कुल देवता के संग घर के जम्मो देवता मन म एकक मूठा धान चढ़ावत गाँव के जम्मो देवी-देंवता म धान चढ़ावत अपन खेत कोती चल दिस. भगवंतीन घलो दूसर टुकना के धान ल बोह के खेत के रद्दा धर लिस.

* * * * *

    गरुवा धरसत खेत ले लहुटिस बुधारू ह. दिन भर के जांगर-टोर मिहनत म थकगे राहय. भगवंतीन तुरते वोकर बर चहा तिपो डारिस अउ एक गिलास पानी संग वोकर आगू म मढ़ा आइस. बुधारू चाय पिइस तहाँ ले माखुर झर्रावत बाहिर कोती जाए बर धरिस, त भगवंतीन वोला बरजे असन करिस- 'दिन भर के थके-मांदे आए हौ... थोरिक सुरता लेतेव नहीं. भइगे तुंहर पांव तो घर म माढ़बे नइ करय, जब देखबे ते एती-तेती किंजरई.

    -अरे बही मैं एती-तेती थोरे जाथौं तेमा... ओ महात्मा मन आए हें न तेन कोती जाथौं... एक झन सियान मुढ़न ह अब्बड़ सुंदर गोठियाथे, बने-बने गियान के बात बताथे. 

    -का बताथे?

    -काहत रिहिसे... ये पेट-पोसवा मनके बात ल नइ मानना चाही. ए मन हमर धरम के मूल भाव ल मेंटत हें. वोकर सरूप ल बिगाड़त हें. महात्मा बबा काहत रिहिसे- बाहिर ले आए मनखे मन बरपेली हमर इहाँ 

ऊंच-नीच अउ छोटे-बड़े के बिजहा बो डारे हें. मनखे मन जम्मो एक बरोबर होथें. जम्मो के भीतर एक परमात्मा के अंश आत्मा के रूप म समाए हे, जेला हम जीव घलो कहि देथन. आज मैं ह बबा जगा चौमासा के बारे म पूछिहौं.

    -हाँ हाँ ले जवौ.. तहाँ ले महू ल बताहौ- काहत भगवंतीन रंधनी खोली डहार चल देथे.

    लील्ला चौंरा म अबड़ झन सकलाए राहंय. अपन-अपन ले महात्मा बबा मनके सेवा-जतन अउ गियान चरचा म लगे राहंय. बुधारू उही सियान बबा जगा जाके वोकर पैलगी करके बइठ गे. महात्मा बबा वोला देख के मुसकाइस, पूछिस-' फेर कोनो बिसय ऊपर तोला गोठियाए के साध लागत हे?

    -हौ महात्मा बबा... जब ले तुमन पेट-पोसवा मन के भरम जाल ले बाहिर निकले के बात बताए हौ, तबले मोला अबड़ अकन जाने-समझे के साध लागत हे. मैं जानना चाहत रेहे हौं के चौमासा म संत-महात्मा मन एके जगा काबर रहिथें, आने बखत सहीं एती-तेती काबर नइ आवयं-जावयं? 

    महात्मा बबा कहिस- कुछू नहीं, सिरिफ झड़ी-बादर के सेती. पहिली अब्बड़ पानी गिरय, चारों मुड़ा दलदली माते राहय, उप्पर ले आवागमन के कोनो साधन नइ रिहिसे, न तो आज असन चिक्कन-चांदन सड़क-डगर. बस एकरे सेती ए चौमासा ल एक जगा बइठ के पहावंय पहिली के संत-महात्मा मन.

    -फेर ए चार महीना म तो पूजा-पाठ, कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें... देवता मन सूते रहिथें कहिथें?

    परलोखिया मन अइसन कहिथें... देवता कभू सूतही भला? जेन सूतगे तेन फेर देवता कइसे होइस... अउ हां..! इही चार महीना म सबले जादा शुभ कारज अउ पूजा-पाठ करना चाही, काबर ते जम्मो विघ्न मनके हरइया गनपति महराज के जनम, मातेश्वरी के नवरात अउ महादेव के सावन पूजा तो इही चौमासा म आथे, दसरहा-देवारी आथे. तब भला तहीं बता, एकर ले बढ़के अउ कोनो शुभ बेरा हो सकथे?

    बुधारू अपन मुड़ ल खजवावत कहिस- फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें, वो भांठा म आके बसे पुरोहित मन.

    -ये बाहिर ले आके बसे जम्मो मन रकसा आयं... चाहे दू गोड़िया मनखे होवय... चाहे लोहा के बड़े-बड़े धुंगिया उगलत चिमनी वाले फेक्टरी होवय. हमर गाँव-घर अउ धरम-संस्कृति बर दूनों के दूनों भांठा के रकसा आयं... ये भांठा के रकसा मनला घर-परिवार म कभू झन संघरन देहू, तभे तुंहर पुरखा के परंपरा अउ संस्कृति बांचे रइही. नइते ए पेट-पोसवा मन वोकर गती-गती कर देहीं. वोकर मनके चिक्कन-चांदन रूप-रंग अउ गुरतुर-गुरतुर बोली-भाखा म झन आहू... ए हर सिरिफ ठगे खातिर आय. बनौका के बनते, इन अपन असली रूप ल देखाय लगथें. देखत हस नहीं तुंहर जम्मो जीए अउ राज करे के अधिकार म आज उही मन कइसे संचर गे हें! काबर ते धरम अउ संस्कृति ह असली होथे, जेकर नांव म उन तुंहर मुड़ी म बइठिन, तहाँ ले फेर उन सकल पदारथ म तुंहर मुड़ी म बइठे के उदिम करहीं. तेकरे सेती इही असली चीज ले उनला उतारे अउ खेदारे के जरूरत हे.

    -फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिके तो हमर गाँव-बस्ती म खुसरे पुरोहित मन घलो कहिथें महात्मा बबा?

    -अरे ए सब बदमासी के बात आय बेटा. अच्छा मोला बता- इहाँ तुमन गौरा अउ ईसरदेव के बिहाव ल कब करथौ... वोकर परब कब मनाथौ?

    -गौरा पूजा के दिन.

    -अउ गौरा पूजा कब होथे?

    -कातिक अमावस के.

    -अच्छा ए बता... जेठउनी पहिली आथे ते कातिक अमावस ह?

    -आए बर तो कातिक अमावस ह पहिली आथे महात्मा बबा.

    -हाँ... आथे न.. माने इहाँ के सबले बड़का भगवान के बिहाव ह जेठउनी के पहिली हो जाथे न.. त तहीं बता बेटा... जब भगवान के बिहाव ह जेठउनी ले पहिली हो जाथे, त हमर मनके बिहाव-भांवर के संगे-संग जम्मो किसम के शुभ कारज ह काबर पहिली नइ हो सकही?

    -केहे बर तो ठउका कहिथौ महात्मा बबा... जब भगवान के बिहाव जेठउनी ले पहिली हो सकथे, त हमर मनके काबर नइ हो सकय? एकदम  सिरतोन ए. ये पेट-पोसवा मन तो सिरतोन म हमन ल बिल्होरत हें. जइसे पावत हें तइसे धरम के नांव म बेलबेली करत हें... अउ हमूं मन बिन कुछू गुने-बुझे वोकर मनके भभकी म आवत जाथन. अब मैं जान डरेंव ददा ये पेट-पोसवा मनके भभकी म कभू नइ आवौं. तभे तो हमर सियान मन ठउका कहे हें-

   गुरु बनावौ जान के,

   अउ पानी पीयौ छान के.

(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


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समीक्षा- पोखनलाल जायसवाल

छत्तीसगढ़ एक कोती अपन संस्कृति, परम्परा अउ रीति-रिवाज ले  पहिचान रखथे, त दूसर कोती खनिज संपदा अउ वन्य संपदा बर घलो जाने जाथे। सबले बढ़का अउ खास पहिचान इहाँ के मनखे के सरल(सिधवा) अउ मिलनसार होना आय। सब ल अपन दया-मया के छाँव म रखथे। कोनो म फरक नइ करँय। अपन अउ बिरान नइ चिन्हे। छत्तीसगढ़िया के इही भाव ल उँखर कमजोरी मान चतुरा मनखे मन एखर फायदा उठाथें। हमन ल भुलवारे बर एमन हमर मुड़ म एक ठन पागा बाँध दे हें। छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया। कोनो मनखे अउ परानी अइसन नइ हे, जेन मया दुलार पाके मगन नइ होवत होहीं। मया के मीठ बानी पाके भला करु कसा जुबान कोन दिहीं। तभे तो मान पाय अउ मान दे बर छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहि दिन। साँप तो नोहय कि दूध पी के बीख उगलही।...फेर साँप घलव अपन बचाव म बीख उगलथे।

      वाह रे छत्तीसगढ़िया ! अउ कतेक दिन ले मया लुटात रहिबे? का मया के सँघरा सरबस लुटा जही त तोर चेत आही? तैं अपन धरती दाई के सेवा म दिन रात रेहड़त रहिथस अउ मलाई खाय बर पेट पोसवा मन बिलई कस सिका ल ताकत रहिथें। जल जंगल जमीन म सबो जीव के अधिकार होथे। ए मन तो सबो जीव के हियाव करथें। मनखे च आय जिंकर पेट अघावत नइ हे। जंगल ल उजारते जावत हे। अउ सरलग कारखाना फैक्ट्री के जंगल खड़ा करत जावत हे। 

       जमीन, जायदाद अउ पइसा के भूख अतेक बाढ़ गे हवय कि ए ल मिटाय बर कखरो मति भ्रम करे के उदिम करे लग जथे। अपन डीह डोंगर म जब पइती नइ जमय त छत्तीसगढ़ कोती दउड़त-भागत आथे। अउ छत्तीसगढ़िया के सिधवापन अउ भोलापन के फायदा उँचाथें। छत्तीसगढ़ याने सी जी। सी जी याने चरागाह। इही तो जानथें, मानथें सब।

         छत्तीसगढ़िया मन जादा तीन पाँच नइ जानँय। कमती पढ़े लिखे मनखे। परदेसिया मन के अंतस् ल का जानय? मन के बात गड़रिया जाने। कारखाना अउ फैक्ट्री बर भाठा टिकरा बिसावत इहेंच बसे ल धर लिन। हमन अपने म कमती विश्वास अउ भरोसा करत उँकर म जादा विश्वास करे धर लेन। अँगरी पकड़त उन मन बाँह धरे लगिन। अउ  हम कलेचुप रहिगेन। लोकलाज ल डरा गेन। लोक लाज ह तो हमर बड़े धन आय। इही सब के पड़ताल करत कहानी आय *गुरु बनावो जान के*। ए कहानी अपन संस्कृति अउ स्वाभिमान बर जागरण के कहानी आय। ए कहानी म पेट पोसवा कहिके आने प्रदेश के लोगन ऊपर फबती कसे गे हे। दूसर भाषा म कहँव त क्षेत्रीयता ऊपर जोर दे गेहे। भारत जइसे बड़े देश ल जोर के रखे म क्षेत्रीय एकता के जरूरत घलव हे। काबर कि इहाँ कतकोन भाषा-भाषी रहिथन। ए भाषा च ह हम ल जोर के रखे के सुतरी आय। नइ ते बिन सुतरी के मोती असन छरिया जबो अउ मतलबिहा मन अपन बूता कर जाहीं। 

      संत महात्मा मन कोनो संप्रदाय, जाति धरम के बपौती नइ होवय। ओमन मानवता के आँय अउ मानवता के कल्याण करथें। ओमन घूम घूम के जन कल्याण म लगे रहिथें। संत महात्मा के पात्र ल गढ़ के कहानीकार छत्तीसगढ़िया समाज ल जगाय के उदिम करे हे। अपन संस्कृति, रीत रिवाज, मरजाद, स्वाभिमान बर सावचेत रहय के संदेश दे हे।

     अपन उल्लू सीधा करइया मन के पोल खोले बर संत महात्मा जइसन पात्र ल गढ़ना अउ अपन उद्देश्य ल पूरा करना, कहानीकार के चतुराई आय। भाखा सरल सहज अउ पठनीय हे। कहानी के शुरुआत देशकाल अउ परिस्थिति के हालचाल बतावत हे।

संवाद मन पात्र मन के लइक लिखे गे हे। शीर्षक प्रासंगिकता ल समोय हे। आज जब हम अपन मूल संस्कृति अउ परम्परा ल ताक म रख के दूसर के लोकशैली मन ल अउ परम्परा ल अपनावत हन त अइसन म ए कहानी प्रासंगिक जान परत हे।

      अतेक सुग्घर कहानी बर सुशील भोले जी ल बधाई 💐🌹


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार छग.


कहानी - देवारी(धर्मेंद्र निर्मल)

 कहानी - देवारी(धर्मेंद्र निर्मल)

                                         देवारी


मोटर हँ दमदमावत आके सड़क के पाई म खड़ा होगे। चकरा सेठ अपन दूकान ले बइठे- बइठे देखत हे। खचाखच सवारी भरे हे। उतरे बर अपन- अपन ले कोलो -कोलो करत हे। 


चैमासा पानी के बरसत ले नरवा- झोरी जइसे उबुक- चुबुक होवत खलबल -खलबल बोहाथे। बरसा थमिस ताहेन भईगे, सुक्खा के सुक्खा। सुक्खा नरवा खल बहुराई। आए केे बेरा जम्मो हाँसत गोठियावत आइन। उतर के तैं कोन, मैं कोन। मोटर ठकठक ले खलिया गे।


सवारी मन ल उतरत देखके पसरा वाले, ठेला वाले दुकानदार सबो जोसियागे। कोनो फटाफट माखुर ल मारके दबाइन। कोनो पीयत बीड़ी ल फेंक के नरेटी भर- भर के चिल्लाए लगिन। झुनझुना, पोंगरी वाले मन बजा- बजा के लइका मन ल मोहाए म लगगे। दुकानदार मन दूकान के आगू म निकलके कहत हे - 


‘आ भाई, का लेबे ? का देववँ दीदी, बड़ सस्ता हे वो। ले ले।’ 


चकरा सेठ जस के तस फसकराय अपन दूकान म बइठे हे। अइसन - वइसन धंधा नई करय चकरा सेठ हँ। घर बइठे बारा घाट के पानी पीये हे। गिराहिक के नारी ल टमर डारथे। 


जम्मो सवारी बाजार म समागे।


वो मोटर ले उतर के अकर- जकर ल चकचकाए देखत हे। जानो मानो सोचत हे - ‘कती जाना चाही ?’ 


मन के बात गड़रिया जानय। चकरा सेठ के नजर ओकर हाव भाव ऊपर हे। उदुप ले ओकर नजर चकरा सेठ ऊपर परिस। चकरा सेठ बड़ प्यार से मुचमुचावत पुचकारे असन हाथ के इशारा म ओला बलाइस। वोह दूकान म घुसरे बर कनुवावत रिहिस हे। चप्पल ल दुवार म निकालते रिहिसे, सेठ टोकत कहिथे- ‘आजा, अइसने आजा, नई लागय गा चप्पल -उप्पल उतारे बर।’


कुछु कहे के पहिली - ’भारी भीड़ हे गा’ - सेठ बात म ओकर पीठ ल सहिला दिस।  


’काला कहिबे तिहरहा ताय सब’- ओह हाथ ल लमावत कहिस।


ओकर मुँह का उलिस, सेठ ल पाँव राखे बर ठऊर मिलगे। का पूछथस ताहने। बइठन दे त पीसन दे। सुर धरके मुड़ ल हलावत सेठ लमाईस -


’हौ भई, छिन म पूरा मोटर खाली होगे गा।’ 


ओला हाँ म हाँ मिलावत देखके सेठ तुरते फेर पासा फेंकिस - ’आ बइठ। पानी पियाववँ।’


सींका के टूटती बिलई के झपटती होगे। ओकरो मन कोंवरागे।


‘जम्मो तुँहरे गाँव के सवारी आय’- लकड़ी के बेंत लगे कपड़ा के झारा म ‘फट -फट’ कपड़ा मन के धूर्रा ल झर्रावत सेठ कहिस । 


‘वा ....! जम्मो खपरी केे ये ............. अऊ देखबे, जाए के बेरा इहाँ ले भरा के जाही, उहाँ फेर खाली। कहाँ गए कहूँ नहीं, का लाने कुछु नही’ - वोह हँ एके साँस म सबो बात ल झर्रा डारिस। 


चकरा सेठ ल चकराए बर जगा मिलगे - ‘अरे तोर बरेठ खपरी के चारो मुड़ा शोर उड़े हे भाई, दुरूग ले बइठ चाहे रइपुर ले, खपरी कहे ते फट्टे टिकिस कटा जथे।’ 


‘हहो सिरतोन काहत हस।’


‘मारका टेशन होगे हे गा, तुँहर गाँव हँ।’ -सेठ गोटारन कस बड़े -बड़े आँखी ल नटेरत कहिथे।


‘कंडेक्टर-डरावल मन तको गाँव के मनखे मन ल चीन्ह डारे हे।’- वोह हँ हाथ ल लमा -लमा के थूक छीटकारत-गिजगिजावत कहिस।


‘झन कहा, चीन्हत होही।’ सेठ अब धीर लगाके गेयर बदलिस- ‘तैं जादा बजार -उजार नई आवस का ?’  


वो कहिस - ‘मैं गाँवे म नई राहवँ न।’


‘अच्छा - अच्छा- अच्छा। तभे तो सोंचत रेहेंव, जादा दीखस नहीं कहिके।’ 


सेठ के गोठ खतम नई होए पाए रिहिस हे। 


वोहँ चार आँगुर आगू ले लमादिस - ‘मैं नागपुर म रहिथौं, गजब दिन होगे। भइगे तिहार -बार म आथवँ -जाथवँ। 


सेठ के मुड़ ल हुँकारू संग डोलावत देख, एकर मुँह उले के उले रहिगे। टेटका कस मुड़ ल हलावत कहे लगिस - ‘हमी भर मन दुई के दुआ रोजी मजूरी करथन उहाँ। लोग लइका मन गाँवे म रहिथे दाई -ददा तीर।’ 


जगहा मिलते साथ सेठ हँ मछरी बर मुँह मारत कोकड़ा कस टप ले जमाइस - ‘तुँहर इहाँ सियनहा के का नाम हे ?......... देख भुलावत हौं, मुँहेच ऊपर हे .......’ .अउ देखौटी अंगरी म अपन माथा ल ‘टुक-टुक’ मारत, जुवाब के अगोरा म ओकर मुँह ल देखे लगिस।


वोहँ तो मोहागे राहय। सेठ ल थोरको अगोरे बर नइ लागिस। बाँचा माने सुआ कस फट्ट ले अपन सियनहा के नाम ल बता दिस - 


‘अलेनी।’ 


हाँ, हाँ !! ठउँका कहे।’- सेठ अब मुड़हेरी साँप कस वोला लपेटा म ले डारिस - ‘मैं तोर चेहरा- मुँहरन ल देख के जान डारे रहेवँ। ओकरेच लइका आवस कहिके।’ 


वोह अब रतियाके बइठगे। 


सेठ अब टाप गेर म आगे -‘तोर का नाम हे ?’


वोहँ अपन नाम ‘लाला’ बताइस। अब सेठ के मन के मनसूभा अंटियावत खड़ा होगे। दूनो हंथेरी ल रगरत पूछथे - ‘ले का देखाववँ लाला ! पहिली लइका मन बर, के सियान मन बर ?’ 


पाके बीही के लाल -लाल गुदा कस मसूरा ल उघार के हाँसत लाला कहिस - ‘लइके मन बर पहिली देखा न भई, उंकरेच मन के तो तिहार ये।’ 


सेठ के मन अब गोठबात ले उचट गे । ओकर धियान धंधा म धँसगे हे। एके भाखा कहिस - ‘हौ।’ अउ ओसरी-पारी कपड़ा देखाए म लगगे।


लाला देख परख के परिवार के जम्मो झिन बर कपड़ा -लत्ता छाँट डारिस। कपड़ा देखाए के बेरा सेठ कीमत ल नई बतावय। लाला एक दू घाँव पूछिस-‘एकर का भाव हे सेठ !’ त सेठ कहि देवय - ‘ले न ते काबर फिकर करथस, तोर ले जादा थोरे ले लेहूँ।‘


‘तभो’ ।


‘घर के लइका होके तहूँ कइसे गोठियाथस लाला !’


मया के भूखाय अऊ मया के मराय मनखे के एके गत होथे।


लाला के मुँह बँधागे। वोला अकबकासी लगे लगिस। अइसे तो वोह कपड़ा के रंग ढंग ल देख के मने मन म कीमत के आकब कर डारे रहय। 


‘भइगे सेठ अब अतके ले जाना हे।’ - लाला कहिस। 


सेठ जानबूझ के ओकर गोठ ल अनसुना कर दीस। चुकचुक ले चमकदार लाल कमीज ल फरिहावत दाँव मारिस - ‘वा, सब झन नवा कपड़ा पहिरही अऊ तैं जुन्ने ल पहिरबे गा ? बारा महीना म एक पइत आए बर, जीयत रहिथे तेकर तिहार।’ 


‘नहीं, नहीं मैं पाछू लेहूँ। अभी तो नवा -नवा सिलवाए हववँ, महीना भर नई होय हे।’ -अपन आगू म रखाए कपड़ा मन ल सेठ कोति सरकाइस - ‘ले बता, येमन कतेक के होइस ?’ 


सेठ अब कापी कलम उठालिस। जोड़ घटा के बताइस - ‘एक्कइस सौ तीन रूपिया।’  


लाला धरम संकट म परगे। कुल एक्कइस सौ रूपिया तो खुदे धरके आए रिहिस हे। दू हजार कपड़ा - लत्ता अउ सौ रूपिया, मोटर -गाड़ी, साग-भाजी, बजरहा खरचा हिसाब के। 


सियनहा के कपड़ा ल अलगियावत कहिथे - ‘एला राहन दे, आन दिन ले जाहूँ।’ 


सेठ जान डारिस। सोचिस -‘लेवना हँ ससलत हे। सकेल के एकथई करे बर परही।’ 


बेचाय माल हँ वापस झन होए पावय, येहँ चकरा सेठ के गुपचुप, भीतरौंधा अउ अनकहा, अनछपा शर्त आवय। 


‘कतेक असन कम परत हे ?’ - सेठ ओकर आँखी म आँखी डारके तिखारिस। 


सब बात ल फोर -फरिहा के बता दिस लाला हँ। 


लाला के पीठ ल सहिलावत सेठ भुलवारथे - ‘बस ! अतके बात हे ?’


अब सेठ मालिस -पालिस वाले जात म उतर गे -‘अइसन लजाए- सकुचाए वाले काम झन करे कर भई ! मोला अच्छा नई लागत हे।’ - कहिते काहत कपड़ा ल झिल्ली म भर डारिस। लाला लजाए असन मुड़ी नवाए खड़ेच हे । सेठ ओला झोला ल बरपेली धरावत कहिस - ‘ले धर ! अभी दूए हजार ल दे दे, बाकी ल पाछू दे देबे, बस ! कहूँ भागे जावत हस गा ?’


सौ रूपट्टी के करजा हँ लाला के आखा- बाखा ल हुदरत -कोचकत रात भर खटिया तीर म खडे रहिगेे। वोहँ अलथी -कलथी मार -मार के रात ल आँखी म पहाइस हे। होवत बिहनिया पहिली गाड़ी म फेर खम्हरिया पहुँचगे। 


बलाइस -‘आ लाला आ।’ 


लाला ल उरमाल के अंटी ले पइसा निकालत देख सेठ के बाँछा खिलगे। घर कोति चाहा बर हूत कराइस। 


लाला मना करिस - ‘अहाँ.. अहाँ ! मैं चाहा -वाहा नइ पीयवँ।’


अभी तो लाला म अउ रसा बाँचें हे। सेठ के पियास तको नइ बुझाए हे।


पूछिस--‘त का मँगाववँ ?’


‘कुच्छु नई लागय कहि देवँ।’ 


सेठ कहिस - ‘तोर बर कमीज देखाववँ।’ 


लाला टोक दिस - ‘कमीज-उमीज ल मार गोली ददा ! ए तोर बाँचत पइसा ल धर अउ मोर हिसाब ल नक्की कर। करजा बोहई नई पोसावय, भारी बियापथे। न उधो के लेना, न माधो के देना बने लगथे मोला।’ अउ एक सौ दस रूपिया ल सेठ के हाथ म धरा दिस। 


बनिया बेटा जब हिसाब करे बर बइठथे त ओकर आँखी म रिश्ता -नता, सगा -संबंधी, चीन्ह-पहिचान नई दीखय, सिरिफ पइसा नजर आथे। 


‘अऊ गाँव -घर म सब बने बने लाला !’- हिसाब के बाँचे सात रूपिया ल लहुटावत सेठ पूछथे। 


लाला जुवाब दिस - ‘सब बढि़या हे सेठ ! अपन अपन करम किस्मत के हिसाब से सबो कमावत खावत हे।’ 


सेठ के तिकड़मी दिमाग ले छीनी हथौड़ी निकल के मुँह म आ गे । 


‘तुँहर गाँव म तुहीं भर मन ल देखथवँ लाला, सोला आना ईमानदार !’ 


लाला के छाती हँ बीता भर ले फूलके डेढ़ हाथ होगे। जना मना कुछु उपलक्ष्य म ओला मानद उपाधि मिलगे। ले दे के उपाधि ल संभालत अहम के हाँसी ल मुसकान म बदल लिस। मुँह ले एक भाखा नइ उलिस।


‘बाकी मन नइहे, सब के सब बइमान हे।’-सेठ आगू कहिस।


लाला दूनो हाथ ल झर्रावत कहिथे - ‘तुमन जानहू सेठ, लेन देन के गोठ बात ल। हम का जानिन।’ 


सेठ, लाला के मुँह ल पढ़ डरिस। हाथ ल हलावत आगू कहिथे - ‘तुँहर गाँव वाले मन अइसे हे ! खाये बर चूना माखुर के डबिया दे देबे, त खाथे कम ओंंिटयाथे जादा।’


लाला मुँह बाँधे चुप रहिगे। सेठ नराज झन हो जावय। जे मन ले बँधुवा हो जथे ओला तन ले बँधुआ होवत देरी नइ लागय। बाहिर जाके इही तो सीखिस हे छत्तिसगढि़या मन। हुसियार मनखे मंघार ल नई मारके मगज ल मारथे। मगज मरे मनखे घुरवा के कचरा बरोबर होथे। 


मुड़ ल हला भर दिस लाला हँ। दूकान ले निकल के बजार कोति रेंग दिस। ओकर कान म सेठ के गोठ गूँजे लगिस। लाला के नजर ले गाँव वाले मन गिरे -बिछले परत हे। अपन जनमें, खेले -खाए भूइँया ऊपर लाला के मन म घिन समागे।


बजार म किंजरत एक जगा ओकर पाँव ठिठक गे। 


‘अई हाय ! गजब दिन म दीखेस परलोखिया नइतो !’ 


लाला झकनका के देखथे - ‘पसरा म बइठे रमौतिन काकी भाजी बेचत हे। लाला ओकर तीर चल दिस। रमौतीन पाँव परत पूछथे - ‘सब बने बने बाबू ?’ 


लाला कहिस - ‘हहो ! का करबे काकी, पेट बिकाली म कुछु न कुछू उदीम करबे तभे तो बनथे।’


रमौतीन हूँकारू भरिस। 


खपरी तीर करमू गाँव हे। जिहाँ के रहइया ये रमौतीन मरारीन। रमौतीन बड़े बिहिनिया मुड़ म डलिया बोहे भाजी तरकारी बेचे बर खपरी पहुँच जावय । वोहँ भाजी बेचत तीर -तखार के सबो गाँव म मँुहाचाही नता जोर डारे रहय। ओकरे भर बात नइहे, जम्मो मनखे एक- दूसर ले अइसेनेहे नता म जुरे रहिथे। गाँव-आन गाँव वाले सबो संग हिल मिल के जिनगी पहाथे। 


मन मिले मनखे जिहाँ मिलथे उहाँ कतको बड़े दुख के बेरा घलो बिलम जथे। गोठ बात म घंटा भर कइसे बुलक गे, पतेच नइ चलिस। 


एमन गोठ बात म भूलाएच हे। ओतके बेरा दूनो के कान म भकरस ले भाखा सुनइस  - 


‘बजार होगे लाला !’ 


चकरा सेठ नारा वाले बड़े जनिक झोला ल हलावत आगू म खड़े हे। रमौतीन हड़बडा गे। काला खाववँ, काला बचाववँ कस किस्सा हो गे। चकरा सेठ के नजर हरियर -हरियर पाला अउ चैंलई म हे। रमौतिन मने मन गारी दे लगिस - ‘ए भड़ुवा कीच्चक कहाँ ले आगे। चाल म कीरा परे हे। हाथ ले पइसा छूटय नही सेठ कहावत हे रोगहा हँ।’ 


सेठ मुसकियावत बइठत पूछिस - ‘का भाव हे भाजी .........?’ 


रमौतीन बीचे म फट्ट ले बात ल काट दिस- ‘बेचागे हे ! जम्मो भाजी बेचागे हे।’ रमौतीन हड़बड़ाए लगिस। फेर का सोचिस- ‘ले न गा तहूँ हँ मोल भाव करके भाजी ल खुल्ला मड़ा दे हवस, बजरहा मन ल भोरहा हो जथे ’-काहत जम्मो भाजी ल सकेलत लाला के झोला म भरे लगिस । लाला ना -नुकुर करे बर धरते रिहिस हे, के रमौतीन मिलखिया दिस। 


लाला कुछू समझतिस तेकर पहिली सेठ कहिथे - ‘लाला हँ सबो भाजी ल थोरे लेही, खाएच के पूरति ल तो लेही, कइसे लाला ?’


लाला के मुँह न लीलत बनय न उलगत तइसे होगे। रमौतीन कउव्वा के कहिस - ‘पाँच रूपिया के दूए जूरी हे, ले बर हे ते ले।’ 


‘वा..हा...! सब जगा चार -चार जूरी देवत हे तेन हँ’ -काहत सेठ हँ चार जूरी भाजी ल झोला म डार लिस। 


‘जेन देवत हे तेकर तीरन जा के ले ले, मोला नइ पोसावय माने नइ पोसावय’ - रमौतीन हटकार दिस। 


लाला नान्हेपन के देखत आवत हे रमौतिन ल। मने मन मुसकाइस -‘ये रोगही ! काकी हँ अब ले जस के तस हे।’ सोचे लगिस -‘ पहिली तको अइसनेच काहय अउ मूठा भर भाजी ल झर्रावत बगरा देवय। नइ पूरावय, नइ पोसावय कहिते राहय, अउ सूपा ल भर डारय।’


तभे तो गाँव म कोनो रमौतीन मरारीन के छोड़ काकरो तीरन भाजी तरकारी नइ लेवय । ओमेर के चार ठन गाँव एकरे गॅँवई रिहिस हे । समे ढरक गे। गाँव -गाँव म बजार लगे लगिस। गाँव वाले मन खम्हरिया के बजार करे लगिन । जब मन होइस मोटर म चढ़के ‘भूर्र ले’ आ जथे अउ ‘फुर्र ले’ लहुट जथे। रमौतिन के गँवई खियागे। गँवई का खियातीस उमर के खसले ले सबो खिया जथे। अब काकी बइठाँगुर हो गे। दस बज्जी गाड़ी म आथे अउ संझौती बेच भाँज के बजार करत गाँव लहुट जथे। 


सेठ हँ पाँचे रूपट्टी ल धरावत राहय। रमौतीन बगियागे - ‘दस रूपिया होही ।’


सेठ कुटुर मुटुर करे लगिस। वो हँ अभीन अभी सरीफी अउ ईमानदारी के तमगा जेन ल पहिराए रहय उही लाला आगू म बइठे हे। हाथ म गुमेटेे धरे पइसा ल फरियाइस। दू घाँव अँगरी म सरका- टरका, टमर -मरोर के देख- परख लिस तेकर पीछू दस के नोट ल दिस। पइसा ल देके - ‘ले अब एक जूरी तो उपरहा देबे’ काहत रखाए भाजी ल धरे लगिस। 


रमौतीन टप ले सेठ के मुरूवा ल धर लिस - ‘जब देख तब अइसनेच करथस। तोर पइसा कमई के पइसा ये, हमर मिहनत फोकट के आए हे.. नहीं।’ सेठ अकबका गे। 


रमौतीन आगू कहिस- ‘ले तो मैं तोला काहत हौं, एक रूपिया उपरहा दे। तैं देबे का ?’ 


ओतका म लाला कहिथे- ‘बने तो काहत हे सेठ ! बपुरी अतेक घाम पियास म तन के लहू ल अँऊटावत- चुरोवत बइठे हे । 


लाला के पलौंदी पा रमौतीन के बल बाढ़गे-‘घर -दुवार, लोग- लइका ल छोड़ के चार पइसा कमाए बर चार कोस ले रेंग के आए हवन, फोकट हो जही का ? तुमन तो एकक ठन पइसा के हिसाब करथौ । ले न हमार मिहनत अउ पसीना के हिसाब लगा ।’ 


सेठ के आँखी चिपचापागे । मुँह पचपचाए लगिस। ओकर हाथ ले भाजी छूटके ‘भद्द ले’ गिर गे। ‘ले भई’ काहत सेठ उठगे। कुला झर्रावत सुटुर- सुटुर रेंगते बनिस।


रमौतीन पसरा सकेले लगिस। सरीफी अउ ईमानदारी के मुकुट ल पहिरे शान से लाला हँ सेठ ल जावत देखत हे। 


लाला अब काली ससन भर तिहार मनाही। आज वोहँ दानव ल मारके अजोध्या प्रवेश करइया हे। 


सुरूज अब तब करिया खुमरी ओढ़ ढलगइया हे। साँझ के पाहरा लग गे हे । गाँव म सुरहुत्ती के दीया जगमगाय बर धर लेहे । काली देवारी तिहार हे। 


लाला अउ रमौतीन मोटर चढ़े बर टेशन कोति जावत हे।


धर्मेन्द्र निर्मल 


9406096346

गोड़ आदिवासी मन के इष्टदेव आंगा देव* - *दुर्गा प्रसाद पारकर*


*गोड़ आदिवासी मन के इष्टदेव आंगा देव*

- *दुर्गा प्रसाद पारकर*


                        

छत्तीसगढ़ भर म नही बल्कि पूरा दुनिया म सबले जुन्ना गोड़वाना आय। यदि कोनो साढ़े सात सौ बरस ले राज करे हे त ओ गोड़वाना राज आय। गोड़वाना राज वाले मन ल इंकर भाषा, संस्कृति अऊ कला ले चिन्हारी करे जा सकत हे। तभे तो सुजानिक मन के कहना हे- गोड़वाना गोंड़ी धर्म अऊ संस्कृति के दाई आय जऊन ह प्राकृतिक अऊ वैज्ञानिक घलो हे। गोड़वाना राज के गोंड मन के इष्टदेव आंगा देव अऊ बड़ा देव आय। अपन कुल देव बड़ा देव देव के स्थापना नौ+दू दीया बार के करे के बाद कोनो भी कार्यक्रम के मुहतुर करथे। बड़ा देव के तीर पांच करसी , पांच झन देवी देवता जइसे बुड़ा देव लिंगो देव, डिहवारिन, दंतेश्वरी अऊ भूमिहार के सम्मान म मड़ाथे। पूजा पाठ करे के बाद कार्यक्रम के सफलता खातिर सबो देवी-देवता ले बिनती करथे अऊ आंगा देव ले असीस पाए बर ओकर बीच ले बुलके बर परथे। 

आखिर आंगा देव का आय ?

बस्तर जिला के अंतागढ़ वाले महेन्द्र सिंह दुग्गा के मुताबिक-लोक कल्याण करइया पूर्वज के जब जिवरांज (आत्मा) उतरथे ओला लिंगो देव के आदेश ले आंगा म पधराए जाथे।

गोत्र के मुताबिक अलग-अलग देवी-देवता के सम्मान म आंगादेव बनाए बर परथे। जइसे कि बालोद गहन वाले मन कुमरीन पाठ बस्तरहिन के, केशकाल वाले मन नत्तुर बगुण्डी देव के अऊ अंतागढ़ वाले मन सांप वाले आंगा देव सिरजाथे। इही किसम ले सोरी, सलाम अऊ टेकाम मन कछुवा वाले आंगा देव बना के पूजा पाठ करथे। बालोद गहन वाले संतोष कुर्राम ल जब सपना अइस तब हीरा पेड़ ल काट के आंगा देव बनइस।

आंगा देव बनाए खातिर दु ठन मोदगरहा लकड़ी ल छोइल चांच के चिक्कन कर के दुनो खम्भा ल बांस के सहारा ले जोड़े बर परथे। दुनो बांस के बीच म नवा कपड़ा बिछा के आंगा देव ल पहिरा देथे। गोड़ मन के मानना हे कि इही बांस के बीचो - बीच जीव बिराजमान रथे। घंटा के आगु  मंजुर छतराए कस मंजुर पीख ह शोभा ल बढ़ाथे।

जतके जादा दही ओतके जादा लेवना। जेकर ले पूर जथे उन मन चांदी के गाहना गुरिया पहिरा के आंगा देव के सिंगार करथे। सपना के मुताबिक जइसन-जइसन आंगा देव ओइसने-ओइसने उंकर मान गऊन। आंगादेव के पूजा खातिर दारू के जरूरत परथे। तीही पाए के दारू ल आदिवासी संस्कृति के देन माने गे हे। आजो घलो गोड़ मन बर सरकार डाहर ले दारू प्रतिबंधित नइ हे। आदिवासी मन बर दारू संस्कृति ल बरदान काहन ते अभिशाप। गोड़वाना मन के भल्ले दिन ले राज करे के बाद भी आज इंकर दशा ओतना नइ सुधरे हे जतना सुधरना चाही । एकर जिम्मेदार कोन हे ? इमन या दूसर। आज अपन विकास खातिर पर उपर दोस मढ़े ले बढ़िया बात अपन आप ल गुनना हे ताकि जय परसापेन, जय सगापेन, सल्ला गागरा मोद वेरची कस 750 गोत्र वाले गोड़ मन के गोड़ी धर्म, संस्कृति साहित्य अऊ कला ल जस के तस बचाए जा सके।


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अनुवाद- चौरा चौरी कहानी


 

चौरी-चौरा के कहानी

(छत्तीसगढ़ी म)

अनुवादक - दुर्गा प्रसाद पारकर

 

चौरी-चौरा के नाम ल तो हम्मन सुने हवन। चौरी-चौरा उत्तर प्रदेष के गोरखपुर जिला म स्थित हवय। माध्यमिक कक्षा मन के इतिहास के पाठ म महापुरूष मन के संस्मरण के संगे-संगे  कतनो राष्ट्रवादी लेख मन म महात्मा गाँधी अउ स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक बड़े सन्दर्भ (किस्सा) के रूप म चौरी-चौरा जरूर रहिथे। 4 फरवरी 1922 म उमिहाय (उग्र) भीड़ ह एक ठन थाना म आगी लाग दिन। जेमा 23 झिन पुलिस मन के इंतकाल (मृत्यु) हो गे रिहिस। एला सबो झिन जानत हव। ए घटना ल सुन के गाँधी जी ल भारी पीरा होइस। ओहा ए अपराध के भारी निंदा करिस। इही घटना के सेती साल भर पहिली ले सरलग चले आवत असहयोग आन्दोलनके रूकई (स्थगन) बर लिखाय प्रसंग म चौरी-चौरा के सुरता करे जाथे। 

चौरी-चौरा के घटना ह गाँधीवादी राजनीति बर, ओ बखत समाज के खाल्हे (निचले) स्तर के मनखे याने किसान अउ मजदूर मन करा पहंुचे के बाद उंकर समझदारी अउ सरलग बूता ल जारी रखे खातिर (क्रियान्वयन) एक अइसे नमूना पेष करथे जउन ह गाँधीवादी आन्दोलन के

 

चौरी-चौरा/3

स्वीकृत विचारधारा उपर प्रष्न लगाथे। स्पष्ट रूप ले इहां हमर उद्देष्य दूसर राष्ट्रवादी वर्णन मन के जइसे चौरी-चौरा के सन्दर्भ म गाँधी जी के सिद्धांत मन के व्याख्या करना नइ हे बल्कि 4 फरवरी 1922 के चौरी-चौरा म वाजिब म जउन कुछ होइस ओकर तइयारी अउ परिणाम मन के विवेचन करना भर हे।

    ओइसे भी गाँधी जी ह खुदे ए घटना ले अपन आप ल अलग कर ले रिहिस तभो ले गाँधी जी के नाम ले सकलाये गाँव वाले मन के अति उत्साह के सेती ए घटना घटिस। ए कहानी के सुरूआत उंकरे मन ले होथे।

असहयोग आन्दोलन बर बिगुल

सन् 1920के आखिरी म गाँधी जी ह असहयोग आन्दोलन के रूप म एक ठन क्रान्तिकारी कार्यक्रम के सुरूआत करिस। ए आन्दोलन के माध्यम ले ओ सबो जिनिस, संस्था अउ व्यवस्था मन के विरोध करना रिहिस जेकर माध्यम ले अंग्रेेज ह हमर मन उपर राज (षासन) करत रिहिस। ओहा देष म किंजर-किंजर (घूम-घूम) के बिदेसी जिनिस (खासकर विदेषी वस्त्र), अंग्रेजी कानून, षिक्षा अउ प्रतिनिधि सभा मन के बहिष्कार करे बर प्रचार करिस। भारतीय मुसलमान मन के चलाए जावत खिलाफत आन्दोलनके संगे-संग चलाए जावत ए आन्दोलन काफी सफल होइस।

राज ले स्वराजडाहर बढ़त बूता के ए दौर म कां    ग्रेस करा स्वदेषी अउ अहिंसा नाम के दू ठन बहुत महत्वपूर्ण अस्त्र रिहिस। ए आन्दोलन ल सरलग चला के सफल बनाए के जिम्मेदारी सत्याग्रही स्वयं सेवक मन उपर सिहिस। सन् 1919 के रौलेट एक्टबर करे गे 

 

4/चौरी-चौरा     

                   

 

 

 

 

सत्याग्रह के दौरान सबले पहिली कांग्रेस ह सत्याग्रही स्वयं सेवक मन ल संघेरे (षामिल) के मुहतुर (षुरू) करे रिहिस। जिंकर बूता सत्याग्रह ल सुचारू रूप ले चलाना अउ कांग्रेेस के कार्यक्रम म सकलाय मनखे मन के देख रेख करना अउ अनुषासन बनाए रखना रिहिस। ए बूता (कार्य) बर उमन ल प्रषिक्षण (ट्रेनिंग) घलो मिलत रिहिस। स्वयं सेवक बने बर मनखे (व्यक्ति) ल एक ठन किरिया शपथ (प्रतिज्ञा) पत्र मरे बर पड़े जेया ओहा भगवान के नाम के किरिया (सौगन्ध) लेवय कि ओहा सिरिफ खादी पहिरही, अहिंसा के पालन करही, अपन नेता मन के आज्ञा के पालन करही, हिन्दू धरम म व्याप्त जाति व्यवस्था के विरोध करही, साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए बर उदिय (कोषिष) करही, सबो किसम के तकलीफ (जेल आदि)

 

चौरी-चौरा/5

 

 

 

 

 

 

 

 

ल झेले बर तइयार रिही अउ गिरफ्तार होये के बाद अपन परिवार बर आर्थिक सहयोग नइ मांगही। अइसन शर्त मन के बावजूद घलो ओ समय राष्ट्रीयता के भावना अइसे फैले रिहिसे कि दिसम्बर 1921 तक हजारों के संख्या म लोगन मन ह कतनो स्वयं सेवक संघ मन म शामिल हो गे रिहिन।

 

दू गाँव: चौरी अउ चौरा

    आवव अब लहूट के चौरी-चौरा डाहर चलथन। चौरी अउ चौरा दू अलग-अलग गाँव मन के नाम रिहिस। जेला एक करे के बूता करे रिहिसे रेल्वे के एक झिन ट्रैफिक मैनेजर ह। जेहा जनवरी 1885 म उहां एक ठन रेल्वे स्टेषन के स्थापना करे रिहिस। अइसे किसम ले सुरू म रेल्वे प्लेटफार्म अउ माल गोदाम के अलावा चौरी-चौरा नाम के कोनो जघा (जगह) नइ रिहिस। सन् 1885 के बाद घलो जउन तीर तखार (आस-पास) म हाट बाजार बसिस वहू ह चौरा गाँव म बसिस। चौरा म ही ओ जाने माने (मषहूर) थाना घलो रिहिस जेला 4 फरवरी 1922 के जलाए गे रिहिस। ए थाना के स्थापना सन् 1857 के क्रान्ति के बाद करे गे रिहिसे।

 

6/ चौरी-चौरा

 

येहा तृतीय दर्जा के थाना के रूप म रिहिस।

    इहां के रहवइया मन म 11 प्रतिषत कलार जाति के मन रिहिन जिंकर धन्धा दारू (षराब) बनई अउ दूसरा नान मून (छोट मोटे) व्यापार करना रिहिस। इमन चौरा के अलावा मुँडेरा बाजार म घलो सबले जादा प्रभावषाली रिहिन। इहां के करीब दू तिहाई मनखे खेती किसानी उपर अउ एक तिहाई मनखे मन व्यापार उपर निर्भर रिहिन। चौरा अउ तीर तखार के बाजार जइसे मुँडेरा अउ भोपा के बाजार ले मरे जानवर के चमड़ा अउ हाडा (हड्डियाँ), दार, गेहूँ, अरसी, शक्कर अउ गुड़ के निर्यात होवय। जबकि मिट्टी तेल, माचिस अउ कपड़ा आदि बाहिर ले आवत रिहिस। सन् 1922 के सुरूआत म चौरा बाजार म तीन ठन तेल के मिल रिहिस, एक दू ठन चीनी (षक्कर) बनाए के कारखाना, चीनी अउ गुड़ के दू बड़े दलाल (आढ़त), कपड़ा के दू ठन छोटे दुकान अउ कलार मन के दू चार ठन किराना के दुकान रिहिस। रेल्वे स्टेषन करा बर्मा शेल कंपनीके एक ठन मिट्टी तेल (माटी तेल) के डिपो घलो रिहिस। 4 फरवरी 1922 के दंगाई मन हइें ले माटी तेल बिसा के (खरीद कर) थाना म आगी लगाए रिहिन। हर मंगलवार अउ शुक्रवार के इहां बाजार लगत रिहिस। जिहाँ तीर तखार के किसान अउ व्यापारी मन अपन दुकान लगावय अउ खरीददारी करय।

    सनिच्चर (षनिवार) के दिन तीर के भोपा बाजार म बाजार लगय। जिहां चमड़ा अउ हाड़ा मन के व्यापार होवय। बाजार के दिन इहां करीब तीन चार सौ लोगन मन बाजार करय। ये व्यापार ह ज्यादातर मुसलमान व्यापारी मन के हाथ म रिहिस। जउन मन कानपुर अउ कलकत्ता के बड़े बड़े बाजार मन म चमड़ा अउ हाड़ा के सप्लाई करय। 

    फेर ए सबो म सब ले बड़े अउ स्थापित (नामी) बाजार मुँडेरा के रिहिस।

 

चौरी-चौरा/7

 

 

मुँडेरा बाजार रेल्वे लाइन के दूसर डाहर रिहिसे। इहां मुख्य रूप ले दार (दाल), गुर (गुड़) अउ चाँउर (चावल) के बड़े बड़े दलाल मन राहत रिहिन। इहां के दुकान मन चाहे ओहा किराना के हो या कपड़ा के या दारू (षबरा), गांजा के, या मांस के ये सबो दुकान मन दूसर जघा के दुकान मन ले बड़का रिहिन। तभे तो इहां के मन इही बाजार ल असली बाजारकाहय। इहां हर सनिच्चर के बाजार लगय अउ अइसने एक दिन बाजार वाले के दिन चौरी-चौरा के घटना होय रिहिस।

    ये बाजार मन म चौरा बाजार ह बड़की डुमरी के जमींदार सरदार उमराव सिंह के क्षेत्र म अउ मुँडेरा बाजार ह बिषेनपुरा के जमींदार सन्त बक्स सिंह के क्षेत्र म आवत रिहिस। ये जमींदार मन अपन-अपन क्षेत्र के बाजार म दुकान लगइया दुकानदार मन उपर कर लगावत रिहिन। बाजार म कोनो भी किसम के अषान्ति या अव्यवस्था पैदा करइया मन संग बड़ सख्ती ले निपटय। ए बूता बर चौरा थाना के सिपाही अउ दरोगा मन साथ देवय जउन मन इन प्रभावषाली लोगन मन के काम आना अपना फर्ज समझे।

सामाजिक - राजनीतिक परिवर्तन

    अब सामाजिक अउ राजनैतिक परिक्षेत्र म होवत बदलाव ल देखथन। पूर्वी उत्तर प्रदेष के जम्मो जिला अउ खास कर के गोरखपुर जिला बिक्कट पिछड़ा इलाका रिहिस। फेर 20वीं सदी के सुरूआत ले कुछ सामाजिक अउ धार्मिक संगठन मन ह ए इलाका म बूता करना सुरू कर दे रिहिन। ये संगठन मन म - गौरक्षिणी सभा, सेवा समिति, ग्राम हितकारिणी सभा अउ ग्राम सुधारक सभा प्रमुख रिहिन। हालाँकि इंकर मन के कार्यक्षेत्र ह खास तौर ले धर्म अउ समाज म व्याप्त कुरीति मन ल दूर भगाना रिहिस तभो ले इमन

 

8/चौरी-चौरा

 

 

 

अपन बूता के माध्यम ले लोगन मन ल देष म होवत अऊ दूसर गतिविधि मन के बारे म घलो जनवइन। अइसे किसम ले सन् 1920 तक आवत आवत लोगन मन म थोर बहुत राजनीतिक चेतना घलो आए बर घर ले रिहिस। बहुत अकन जाति सभा मन अउन अभी तक ले सिरिफ जाति सुधार तक सीमित रिहिन अब वहू मन राजनीतिक मामला ल घलो उठाए बर धर लिन। उदाहरण के रूप म दिसम्बर 1920 म गोरखपुर के एक तहसील म भूमिहार राम लीला मण्डलके स्थापना होइस। जेकर उद्देष्य रिहिस-ग्रामीण समाज म एकता स्थापित करना अउ भगवान राम के बखान करत-करत सत्याग्रह के प्रचार करना रिहिस।

 

चौरी-चौरा/9

 

अइसने किसम ले बहुत अकन मामला मन म नीचे समझइया जाति मन के पंचायत ह घलो खवई-पियई अउ काम के तरीका मन म रोक लगाए बर सुरू करिन। अपन घर के माईलोगन मन ल जमींदार के घर म काम-बूता बर जाए खातिर मना करिन अउ यहू फैसला करिन कि अब कोनो भी मर्द जमींदार मन के घर बिना मजदूरी के काम नइ करय। उदाहरण बर गोरखपुर ले छपइया एक ठन हिन्दी अखबार स्वदेष6 फरवरी 1921 के लिखथे कि बस्ती के मेहत्तर, धोबी अउ नाऊ मन 27 जनवरी 1921 के अपन-अपन जात-बिरादरी के पंचायत मन म ए फैसला करिन कि कहूं उंकर मे से कोनो भी मनखे ह मांस, मछरी या दारू के सेवन करही ओला सजा दे जाही अउ साथ म ओला 51 रूपिया गौषाला बर चन्दा दे बर परही। अउ यहू फैसला करिन कि उमन ओ सबो जजमान मन के घर

 

10/चौरी-चौरा

 

 

 

 

 

म काम-बूता नइ करन जउन मन ए सब के सेवन करथे। ए पंचायत मन म होए फैसला ल बड़ा कड़ाई से पालन करे जावत रिहिस। सामाजिक रूप ले अषुद्ध समझइया जाति मन के अइसन ढंग ले अपन आप ल शुद्ध करे के कोषिष एक किसम ले उंकर अपन पराधिनता ल नकारे के उदिम (प्रक्रिया) दिखथे।

   

गँाधी बबा के चमत्कार

सन् 1920 के बाद गोरखपुर जिला के गाँव मन म गाँधी पंचायतघलो बिक्कट अकन दिखे बर धर लिस। ये पंचायत सिरिफ एक बिरादरी के नइ हो के पूरा गाँव के होवत रिहिस अउ इंकर मन के मुद्दा मन घलो व्यापक राहत रिहिस।

सन् 1921 के बाद इंकर संग एक अउ खास बात जुड़ गे। वो ए आय कि ये पंचायत मन के द्वारा अपराधी करार दे के बाद ओ मनखे मन ल कहूं कोनो भी कारन ले कोनो भी किसम के तकलीफ नही ते मानसिक पीरा होवय ते ओला गाँधी बाबाके चमत्कार समझे बर धर लिन। उमन कहाय कि गाँधी बबाह उंकर करनी के सजा देवत हवय। अतने भर नही ओ बखत गाँव मन म कोनो भी अनहोनी या आष्चर्यजनक घटना हो जतिस वहू ल गाँधी जी के चमत्कार मान लेवत रिहिन अउ उंकर गोठ स्थानीय अखबार तक म होवत रिहिस। उदाहरण बर मार्च 1921 के एक अंक म स्वदेष अखबार ह अइसने चमत्कारिक घटना मन के जिक्र करे हे। एक ठन गाँव म देखिस कि अचानक सबो कुआँ मन ले धुआँ निकले बर धर लिस, जब उमन कुआँ के पानी ल पी के देखिन त ओमा केवड़ा फूल के सुगंध आवत रिहिस। कोनो गाँव म एक ठन घर ह करीब एक बच्छर ले बंद परे रिहिस। जब ओला खोलिन त उहां ले पवित्र कुरान के 

चौरी-चौरा/11

के एक प्रति मिलिस। एक जघा (जगह) अहीर ह एक झिन साधु ल, जउन गाँधी जी के नाम म भीख मांगत रिहिस, ओला भीख दे ले मना कर दिस तहान ओकर सब्बो गुर (गुड़) अउ एक जोड़ी बइला (दो बैल) ह जर के खतम हो गे। अउ एक झिन बांम्हन (ब्राह्मण) ह गाँधी जी के चमत्कार ल नइ मानिस तहान ओहा पागल हो गे अउ ओहा तभे बने होइस जब गाँधी जी के नाम के जाप करना सुरू करिस।

    अइसने किसम के कतनो कहानी मन ओ बखत गोरखपुर के गाँव मन म चलन म रिहिस। एमा कतना सच्चाई हे येला तो कोनो भी समझ सकथे फेर ये

 

 

14/चौरी-चौरा

 

 

 

 

 

अफवाह मन ले गाँव के मनखे मन उपर असर परत रिहिस। कांग्रेस के स्थानीय नेता मन ल घलो एकर ले गाँव के जनता ल गाँधी जी के नाम म संगठित करे बर बहुत मदद मिलत रिहिस। अब उमन कोनो भी सभा के आयोजन करय त ओला गाँधी सभाके नाम दे देवत रिहिन तहान ओमा अपने आप भारी भीड़ सकला जावत रिहिस।

    फेर ए कहानी अउ अफवाह मन के सेती गाँधी जी के बाढ़त प्रभाव के कारन ए इलाका के जमींदार मन काफी परेसान रिहिन। सबले पहिली तो इमन गँवई इलाका म एकता बनइस तिही पाय के जमींदार मन के दबदबा ही नही बल्कि उंकर अधिकार क्षेत्र म घलो हमला होय बर धर लिस। 

    गोरखपुर ले प्रकाषित, जमींदार मन के गुनगान करइया अखबार ज्ञान शक्तिह अप्रेल 1921 म लिखिस कि सब्बो गाँव म रात के समय लोगन ढोल, तासक अउ मंजीरा बजावत गाँधी जी के गीत गाथे अउ नारा लगाथे। ए बूता ल येमन स्वराज के डंकाबजाना काहय। येमन अपना यात्रा के दौरान लोगन मन ल बतावय कि अंग्रेज मन ह गाँधी जी ले ए शर्त लगाये रिहिन हवय कि कहूं उमन आगी ले बिना जले नहाक दिही ते उमन ल स्वराज मिल जही। गाँधी जी ह एक ठन बछरू के पूछी ल धर के आगी ल नहाक दे हे तिही पाय के स्वराज आ गे हे। गाँधी जी के स्वराज म सिरिफ चार आना अउ आठ आना प्रति बीघा के दर ले लगान लगही। इही पाय के कोनो भी मनखे एकर ले जादा लगान जमींदार मन ल झन देवय। ज्ञान शक्तिअखबार ह आगू चिंता जतइस कि अइसन हरकत मन ले स्वराज आय म देरी होही अउ देष ल बड़े नुकसान होही।

 

चौरी-चौरा/15

 

 

 

 

हालाँकि ये सबो बात ह कांग्रेस के स्थापित विचार अउ कार्यक्रम मन के उल्टा रिहिसे, तभो ले कांग्रेस के नेता मन ए गाँव वाले मन ल स्वराज पाये के बाद अपन बर आदर्ष शासन के कल्पना करे ले नइ रोक पइन। एक गाँव वाले मन बर शासन या दमन के स्थापित प्रतिनिधि मन ल उखाड़ फेकना ही स्वराज रिहिस।

    उदाहरण के तौर म चौरी-चौरा थाना के थानादार के घरेलु नौकर सरजु कहार ह बाद म मुकदमा के दौरान कोर्ट ल ए बतइस कि घटना के दू-चार दिन पहिली ओहा लोगन मन ल ए कहात सुने रिहिस कि गाँधी महात्माके स्वराज आ गे हे अउ अब चौरा थाना ल बन्द कर दे जाही। उंकर जगह स्वयं सेवक (वॉलिण्टियर) मन अपन थाना ल खोलही। एकर अलावा माँगपट्टी गाँव के हरवंष कुर्मी ह ए बतइस कि ओकर गाँव के नारायण, बालेष्वर अउ चमरू ह ओ घटना के बाद ओला बतइस कि मनखे मन चौरा थाना ल जला दे हे अउ अब स्वराज आ गे हे। अइसने बयान उही गाँव के फेंकु चमार ह घलो कोर्ट म दे रिहिस।

 

गाँधी जी गोरखपुर म

अइसन आर्थिक, सामाजिक अउ राजनीतिक माहोल म 8 फरवरी 1921 म गाँधी जी ह गोरखपुर के दौरा करिस। अखबार स्वदेषके मुताबिक गाँधी जी जउन रेलगाड़ी (ट्रेन) ले गोरखपुर आवत रिहिस ओहा हर स्टेषन म रूकत रिहिस जिहां हजारो के संख्या म ओकर दर्षन बर खड़े राहय। ये मन गाँधी जी के दर्षन करे के संगे-संग ओला कुछ भेंट (रूपिया पइसा) घलो देना चाहत रिहिन। मगर उमन ल केहे जावत रिहिस कि ए भेंट ल गोरखपुर म देवय।

 

16/चौरी-चौरा

 

 

 

 

    चौरी-चौरा स्टेषन म एक झिन मनखे ह कुछ दे म सफल हो गे। ओकर बाद तो कोनो ल रोकना मुष्किल हो गे। उही प्लेटफार्म म एक ठन चद्दर जठा दिन, जेमा लोगन रूपिया पइसा के बरसात कर दिन। कोनो भी ये नइ सांेचे रिहिसे कि चौरी-चौरा जइसे साधारण स्टेषन म अतेक अकन पइसा सेकला जही।

    गोरखपुर म गाँधी जी के सभा म करीब 2.5 लाख मनखे उपस्थित रिहिन बहुत अकन मन चौरा थाना के तीर-तखर के गाँव वाले मन रिहिन। गाँधी जी ह अपन भाषण म अंग्रेजी शासन के असहयोग करे के अलावा छै अउ मुख्य बात उपर जोर दिस।

 

चौरी-चौरा/17

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1.    हिन्दू - मुस्लिम एकता।

2.    लोगन ल का नइ करना हे - लउठी के प्रयोग, हाट बाजार के लूट, सामाजिक बहिष्कार।

3.    अपन विचार के मनइया मन ले ए अपेक्षा करिस कि उमन जुआ खेले बर छोड़ देवय, गाँजा शराब झन पीयय, वेष्या मन करा झन जावय।

4.    वकील अउ अभिकर्ता अपन प्रैक्टिस छोड़ देवय, सरकारी स्कूल मन के बायकाट करे जाये, सरकारी उपाधि मन ल छोड़ दे जाये।

5.    लोगन सूत कातना सुरू करय अउ बुनकर सिरिफ हाथ ले बने सूत ल ही बिसावय।

6.    स्वराज के मिलई ह हमर संख्या, अंतस के मजबूती, भगवान के असीस, शान्ति, त्याग आदि उपर निर्भर हवय।

        इही बात मन ल गाँधी जी ह उत्तर प्रदेष अउ बिहार के अउ सभा मन म काहत आवत रिहिस। दरअसल ए आन्दोलन के दौरान कतनो जघा म लूटमार अउ आगजनी के कतनो घटना हो चुके रिहिस। मिसाल के तौर म बिहार के दरभंगा, मुजफ्फरपुर अउ संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेष) के रायबरेली, सुल्तानपुर, फैजाबाद कस जिला म कतनो जघा के हाट बाजार ल लूट ले रिहिन हे। अउ सरकारी सम्पत्ति ल नुकसान घलो पहुंचाये रिहिन। अइसन घटना ल रोके बर ही गाँधी जी ह अपन सभा मन म अइसन बात मन म जोर देवत रिहिसे। एकर लोगन मन उपर दरअसल कतना असर होइस होही, ओहा आगु के घटना मन से ही पता चलथे।

        गाँधी जी के गोरखपुर यात्रा ह उहां के राजनीतिक जीवन म एक नवा  

 

20/चौरी-चौरा

 

 

 

परान अउ एक नवा उत्साह भर दिस। 13 फरवरी 1921 म स्वदेष म छपे एक कविता ल देखवः

    परान डारही इहां आप के आना अब तो,

    लोगन देखही कि बदले हे जमाना अब तो।

    आप आये हव इहाँ परान आये हे समझव,

    जइसे गोरख धुनी फिर से रमाये हे समझव।

   

ओकर आय के उत्साह, ओकर आये ले जागे उम्मीद अउ ओकर द्वारा करे गे अंग्रेजी शासन उपर प्रहार ह उहां स्थानीय स्तर म होवत बदलाव के संग मिल के एक अइसे माहोल पैदा कर दे रिहिसे जेकर ले उहां के साधारण जनता के जीवन उपर भारी फरक परिस। गाँधी जी के यात्रा ह उहां एक अइसन राजनीतिक चेतना ल जनम दिस जेहा बरसो ले चले आवत शक्ति सबम्ध मन ल जइसे अंग्रेजी - हिन्दुस्तानी, जमींदार - किसान, छोटे बड़े जाति वाले मन ल पलटना सुरू कर दिस।

घटना की पृष्ठभूमि (घटना के भूमिका)

जनवरी 1921 के मध्य म ही चौरा थाना ले एक मील के दूरिहा म बसे छोटकी डुमरी गाँव म कांग्रेस स्वयं सेवक मन के एक मण्डल (ग्रामीण इकाई) के स्थापना हो चुके रिहिस। वॉलिण्टियर (स्वयंसवेक) मन के भरती म बहुत तेजी नइ आय रिहिस। असहयोग आन्दोलनल मुसलमान मन के खिलाफत आन्दोलन के संग मिलाय के गाँधी जी के निर्णय इहाँ के संगठनात्मक रूप ले काफी महत्वपूर्ण साबित होइस। अब बहुत अकन मुसलमान मन ए राष्ट्रीय आन्दोलन म संघरे (षामिल) बर धर लिन।

 

चौरी-चौरा/21

 

 

 

 

जनवरी 1922 म चौरा के लाल मुहम्मद सांई ह गोरखपुर कांग्रेस खिलाफत कमेटी के एक कार्यकर्ता हकीम आरीफ ल डुमरी मण्डल के लोगन मन ल सम्बोधित करे बर बलइस। हकीम आरिफ ह लोगन मन ल किहिस कि उमन पोनी (रूई) के खेती करय, ओकर सूत कातें अउ ओकरे ले बने कपड़ा ल पहिरय। ओहा आपस के झगरा लड़ई ल आपस म सुलझाए बर किहिस अउ थाना या जमींदार मन करा जाये बर मना करिस। ओहा ताड़ी अउ दारू (षराब) पीये बर घलो मना करिस अउ यहू किहिस कि स्वराज मिले के बाद लोगन ल सिरिफ चार अउ आठ आना प्रति बीघा के दर ले लगान दे बर परही। हकीम आरिफ ह डुमरी मण्डल बर कुछ पदाधिकारी मन के नियुक्ति घलो करिस। लाल मुहम्मद सांई ल सचिव नियुक्त करे गिस, भगवान बनिया

 

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ल उपसचिव अउ खजांची, मीर षिकारी ल संयुक्त सचिव अउ नजर अली ल उप संयुक्त सचिव नियुक्त करे गिस। ओकर बाद ओहा कार्यकर्ता मन ल चन्दाअउ चुटकीजमा करत रेहे बर जिम्मेदारी सौंप के चले गे।(चन्दातो आजो घलो काफी प्रचलित तरीका आय पइसा जमा करे बर, मगर चुटकीके चलन अब नइ हे। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय गाँधी जी ह सबो देषवासी मन ले ये सलाह दे रिहिस कि उमन रोज खाए के अनाज म एक मुठा (मुट्ठि) अनाज देष बर निकाले। येला कांग्रेस के स्वयं सेवक घर-घर जा के सकेले। इही ल चुटकीकाहय। अइसन तरीका ले जमा करे अनाज आन्दोलन के समय स्वयं सेवक मन बर काम आवय।)

    हकीम आरिफ के जाए के बिहान दिन (दूसरा दिन) ले स्वयंसेवक बनाये के काम सुरू कर दिन। सरकारी गवाह मीर षिकारी के मुताबिक, “बिहान दिन ही ओहा 8-9 मनखे मन ल वॉलिण्टियर (स्वयंसेवक) बनइस जेमा चिंगी तेली, बिहारी पासी, फेंकु पासी, सुकदेव पासी, बिन्देष्वरी सैन्थवार, जंगी अहीर, दुधई चमार आदि शमिल रिहिन।एक बूता म ओकर साथ दिस 10-12 बच्छर के लड़का नकछेद ह। नकछेद ह स्कूल म पढ़इया लड़का रिहिस अउ षिकारी ह ओला अपन संग एकर सेती रखिस कि ओहा खुद अनपढ़ रिहिस तिही पाये के प्रतिज्ञा पत्रभरे के बूता ल नइ कर सकत रिहिस। वॉलिण्टियर बनाये के अलावा दूसर महत्वपूर्ण बूता जेला ए कार्यकर्ता मन अपन हाथ म लिन ओ रिहिस मांस, मछरी (मछली), दारू (षराब) अउ बिदेसी (विदेषी) कपड़ा के दुकान मन म धरना (पिकेटिंग) देना। 4 फरवरी 1922 म होय पुलिस ले मुठभेड़ ह इही बूता के नतीजा आय।

    4 फरवरी के घटना के 10-12 दिन पहली डुमरी मण्डल म 30-35 स्वयंसेवक मन मुँडेरा बाजार म धरना दे रिहिन। धरना के दौरान

 

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उंकर जादा धियान मांस अउ मछरी बेचइया मन के दुकान उपर रिहिस। एकर सेती नही कि इंकर बिक्री रोकना कांग्रेस के कार्यक्रम म रिहिस बल्कि एकर सेती कि दुकानदार मांस, मछरी ल महँगी म बेचत रिहिनअउ उमन चाहत रिहिन कि कीमत कम हो। थोकिन घटना के बाद बाजार के मालिक सन्त बक्स सिंह के एक कर्मचारी (कारिंदे) ह उमन ल धरना बंद करके बाजार ले जाये बर कहि दिस अउ तहान उमन ल उहां ले जाये बर पर गे। ए पइत (इस समय) के असफलता के बाद स्वयंसेवक मन ए फैसला करिन कि एकर बाद जादा संख्या म अइँगे अउ कर्मचारी के बात ल नइ मानिंगे।

    अब तक ले स्वयंसेवक मन के संख्या 300 से जादा पहुंच गे रिहिसे उंकर शारीरिक प्रषिक्षण (ड्रिल आदि) घलो सुरू हो गे रिहिसे। प्रषिक्षण के जिम्मेदारी ले रिहिस एक झिन रिटायर्ड फौजी भगवान अहीर ह। भगवान अहीर ह विष्वयुद्ध म अंग्रेेज मन के डाहर ले इराक म लड़ई लड़े रिहिस अउ कवायद (कार्यविधि) ल करना कराना जानत रिहिसे।

    मुख्य घटना के करीब चार दिन पहिली कांग्रेस कार्यकर्ता मन डुमरी म एक बड़े सभा करिन। सब्बो वॅालिण्टियर मन ल ए निर्देष दे गिस कि अपन संग बहुत अकन मनखे ल लाहू नही ते कम होय ले पुलिस उंकर पिटाई कर सकथे या गिरफ्तार कर सकथे। अब उमन ल भीड़ के शक्ति के अंदाजा हो गे रिहिसे। शायद उमन ल संयुक्त प्रान्त के अवध क्षेत्र के जिला (रायबरेली, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बाराबंकी आदि) मन म चलत किसान आन्दोलन मन के बारे म जानकारी होही जिहां कई हजार किसान मन के भीड़ ह जुलूस अउ घटना ले सरकारी कर्मचारी मन ल झूके बर मजबूर कर दे रिहिन।

 

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ओ सभा म करीब 400 मनखे उपस्थित रिहिन। गोरखपुर ले आये कुछ नेता मन अपन भाषण म गाँधी जी अउ मुहम्मद अली के गुनगान करिन अउ लोगन मन ले उंकर बताये रद्दा म चले बर बिनती करिन। सभा के बाद एक ठन बड़े जन चरखा के संग जुलूस निकाले गिस जउन ह तहसील दफ्तर, थाना अउ बाजार म घुमिस। कोनो ह उमन ल रोके-टोके के कोसिस नइ करिन।

    ए सभा अउ जुलूस के सफलता ले उत्साहित हो के डुमरी के कार्यकर्ता मन दूसर दिन याने 1 फरवरी बुधवार के फिर से मुँडेरा बाजार म धरना दे बर तय करिन। ओ दिन करीब 60-65 वॉलिण्टियर नजर अली,

 

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लाल मुहम्मद साई अउ मीर षिकारी के नेतृत्व म मुँडेरा बाजार पहँुचिन। फेर बाजार के अन्दर जाय बर पहिली ले सन्त बक्स सिंह के आदमी मन उमन ल डाँट डपट के भगा दिन। तभो ले उहां ले वापिस जाये के पहिली ए कार्यकर्ता मन ह ओ कर्मचारी मन ल ए चेतावनी दे दिन कि सनिच्चर के उमन अऊ जादा लोगन मन के संग आबोन तहान गोठियाबोन।

    उही दिन संझा कन आगु के कार्यक्रम ल तय करे बर मीर षिकारी के घर म एक ठन मीटिंग बलाये गिस। मीटिंग सुरूच्च भर होय रिहिसे कि भगवान अहीर, रामरूप बरई अउ महोदव आ के बतइन कि जब उमन बाजार म धरना म बइठे रिहिन तब दरोगा गुप्तेष्वर सिंह ह उंकर बिक्कर पिटई करे हे। ए घटना ह आगी म घीं के बूता करिस ओकर बाद सबो झिन ए फैसला करिन कि दूसर स्वयंसेवक मण्डल मन ल घलो चिट्ठी लिख के बलाय जाय। ओकर बाद सब के संग जा के दरोगा ले पूछताछ करे जाये कि उमन हमर आदमी के पिटाई काबर करे हे ? उंकर सब के मन म ए संकल्प रिहिस कि जउन किसम ले दरोगा ह उंकर पिटई करे हे उही किसम ले दरोगा के घलो पिटई होना चाही।

    दूसर दिन फिर से नकछेद के सहायता लिन अउ अलग-अलग मण्डल मन बर पाँच-पाँच चिट्ठी लिखवाए गिस। सबो बात ल बताये के बाद उंकर मन ले ए बिनती करे गिस कि उमन सनिच्चर के दिन बिहनिया ले डुमरी म बिहारी पासी के घर के आघु के बियारा (खलिहान) म कम से कम 100-150 लोगन के संग जमा होंवय। तहान ओ सभा बर तइयाही करिन। लोगन मन बर गुड़पानी के इंतजाम करे गिस। बइठे बर बोरा अउ नेता मन के स्वागत बर फूल माला मंगवाए गिस।

 

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सनिच्चर याने 4 फरवरी के बिहनिया 8 बजे लेे ही 800 ले जादा लोगन खलिहान म जमा हो चुके रिहिन। मीटिंग सुरू हो गे अउ ए बात बर सुरू हो गे कि बदला कइसे ले जाये। एती दरोगा (थानेदार) गुप्तेष्वर सिंह ल मीटिंग के खबर लग गे रिहिसे। ओला अपन मुखबिर मन ले ए खबर मिल चुके रिहिसे कि मीटिंग म कुछ खास फैसला लिए जा सकथे। इही पाये के ओहा गोरखपुर ले अतिरिक्त पुलिस बल के रूप म बन्दूकधारी सिपाही मन ल बला ले रिहिसे। ओहा मीटिंग म लोगन मन ल कोनो आक्रामक फैसला ले रोके खातिर अपन कुछ आदमी मन ल भेजिस। फेर लोगन मन उंकर एक नइ सुनिन अउ ए फैसला करिन कि उमन उहें दरोगा ले सवाल जवाब करबोन अउ मुँडेरा बजार ल घलो बन्द कराबोन। ए बूता म अवइया खतरा मन ल झेले बर सब तइयार रिहिन। सब्बो झिन अपन दाई-बहिनी के नाम ले किरिया खईन कि पुलिस के गोली चलही तभो ले नइ भागन।

    एकर बाद सभा ह एक जुलूस के रूप ले लिस अउ महात्मा गाँधी की जयके नारा लगावत चौरा थाना डाहर चल दिन। भोपा बाजार तक आवत-आवत उंकर मन के संख्या ह ढाई से तीन हजार तक पहुँच गे रिहिन। भोपा बाजार म उमन ल संत बक्स सिंह के कर्मचारी अवधु तिवारी मिलिस जेहा उमन ल एकर पहिली भगाये रिहिस। ए दरी उमन ल पुलिस के बन्दूक के डर देखइस, फेर जुलूस के नेता मन ओमे धियान नइ दिन। थोकिन आगु जाए के बाद उमन ल अपन बन्दूकधारी सिपाही अउ चौकीदार मन के संग खड़े दिखिस। नेता मन पहिली तो थोकिन डरिन फेर ए हिम्मत ले आगु बढ़त रिहिन कि उंकर संख्या अतना जादा हे कि दरोगा कुछु नइ किही। ए जघा म बीच-बचाव करिस हरचरण सिंह ह। ओहा जमींदार

 

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सरदार उमराव सिंह के मैनेजर रिहिस। ओहा जुलूस ने नेता मन संग गोठबात करिस ओकर बाद जब नेता मन ओला आष्वासन दिस कि उमन शान्तिपूर्वक चुपचाप मुँडेरा बाजार चल देबोन कहिके तहान दरोगा अउ सिपाही मन ल रद्दा ले हटा लिस। विजयी जुलूस आगु डाहर बढ़त रिहिस अउ बहुत अकन मन भोपा अउ मुँडेरा बाजार करे बर आये रिहिन वहू मन जुलूस म सामिल होवत गिन।

    जब जुलूस थाना के आगु वाले सड़क म पहुँचिस त एक घांव फेर पुलिस मन ले सामना होइस। यहां दरोगा गुप्तेषवर सिंह जुलूस के नेता लाल मुहम्मद सांई, नजर अली, श्याम सुन्दर, मीर षिकारी, रामरूप मन संग गोठियाना चाहत रिहिसे। भीड़ ह एला अपन आखिरी विजय मानिस अउ जोर जोर से थपरी (तालियाँ) बजा-बजा के पुलिस वाले मन के मजाक उड़ाय बर घर लिन। जेखर ले बौखला के कुछ पुलिस मन लउठी (लाठियाँ) चलाना सुरू कर दिस जेकर

 

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जवाब भीड़ ह पथराव ले दिस। तीर म रेल्वे लाइन रिहिस जेकर ले उमन ल पथरा (पत्थर) खोजे बर नइ परिस। तब पुलिस वाले मन चेतावनी के तौर बर हवा म गोली चलइन फेर जब कोनो घायल नइ होइस न ये अफवाह उड़िस कि गाँधी जी के परताप ले गोली मन पानी हो गे।

    एकर ले भीड़ के मनोबल अऊ बाढ़ गे। तहान पथराव घलो तेज हो गे। एकर बाद पुलिस बाले मन सही म फायरिंगकरिस जेकर ले तीन झिन मारे गिस अउ कतनो झिन घायल हो गे। फेर एकर ले भीड़ ह संात होय के बदला अउ जादा आक्रामक हो गे। पुलिस वाले मन करा गोली कम रिहिस अउ पथराव सरलग जारी रिहिस तहान एकर ले बाँचे खातिर उमन थाना म सरन लिन। तहान भीड़ ह थाना ल घेर लिन ओकर बाद खिड़की-दरवाजा ल तोड़ना सुरू कर दिन। इही समय कुछ लोगन मन तीर के डिपो ले माटी (मिट्टी) तेल लान लिन तहान 

 

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ओला छिड़क के थाना म आगी लगा दिन। लूट-पाट के ए दौर ह काफी देर तक चलत रिहिस। पहिली मुँडेरा बाजार म, तहान रेल्वे स्टेषन, पोस्ट अउ टेलिग्राफ म। रेल्वे स्टेषन के दुनो डाहर करीब तक मील तक के रेल्वे लाइन ल उखाड़ दे गिस अउ टेलिग्राफ  के तार ल काट दे गिस। सरकार या शासन ले सम्बन्धित हर जिनिस ल नष्ट कर दे गिस। ओकर बाद जब संझा कन घर लहुँटिन त उमन ल भरोसा रिहिस कि उमन ह सरकार ल उखाड़ फेके हे। तहान अब स्वराज आ गे हे। फेर उंकर भीतरी एक ठन डर घलो रिहिस कि पुलिस ओकर बदला जरूर लिही। तिही पाय के डर के मारे अपन-अपन गाँव नइ लहूट के दूर दराज के सगा सोदर (रिष्तेदारों) मन के घर चल दिन।

 

जवाबी कार्यवाही

पुलिस के जवाबी कार्यवाही काफी तेज हो गे। बिहान दिन बिहनिया (सुबह-सुबह) ले छोटकी डुमरी म पुलिस मन छापा मारिन फेर कोनो नेता हाथ नइ अइस। तब वॉलिण्टियर मन के नाम अउ उंकर खिलाफ सबूत सकेले के बूता सुरू

 

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होसइ। उही दिन गोरखपुर के सदर कोतवाल ह कांग्रेस-खिलाफत कमेटी के दफ्तर म छापा मारे के बाद सबो कागजात ल जप्त कर लिस। उही कागजात मन म डुमरी मण्डल के वॉलिण्टियर मन के प्रतिज्ञा पत्र घलो रिहिस जेकर आधार म पुलिस ह गिरफ्तार करिस। महीना भर के भीतर लगभग सबो प्रमुख वॉलिण्टियर पकड़ा गे।

पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक ए दंगा म करीब 6000 लोगन सामिल रिहिन हे जेमा से लगभग एक हजार लोगन ले पूछताछ करे गिस तहान आखिर म 225 मन के उपर मुकदमा चलाये गिस। स्वयंसेवक मन के एक प्रमुख नेता मीर षिकारी सरकारी  गवाही बन गे। तहान ओकर बयान के आधार म गोरखपुर के डिस्ट्रिक्ट जज एच.ई. होम्स ह 9 जनवरी 1923 के 172 लोगन मन ल

 

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फांसी के सजा सुनइस अउ 50 झिन ल बरी कर दिस (3 झिन के मौत मुकदमा के सुनवाई के चलत हो गे रिहिस।) मगर इलाहाबाद हाई कोर्ट ह अपन 30 अप्रेल, 1923 के फैसला म 110 झिन लोगन मन के फाँसी के सजा ल आजीवन कारावास म बदल दिस। 38 झिन मन ल बरी कर दिस अउ सिरिफ 19 झिन मन के फांसी के सजा ल बहाल रहिस।

    दंगा के तुरन्त बाद पुलिस मन जइसे गोरखपुर कांग्रेस खिलाफत कमेटी के लोगन मन घलो हरकत म आ गे। उमन एक ठन आपात बइठक बलवा के चौरा थाना के तीर तखार के गाँव के वॉलिण्टियर मण्डल मन ल भंग कर दिन अउ अपन आप ल ए घटना ले बिल्कुल अगल कर लिन। एती गाँधी जी ह अपन बेटा देवदास गाँधी ल अपन खास दूत के रूप म घटना के पूरा जानकारी बर चौरी-चौरा भेजिस। मगर प्रषासन ह ओला चौरी-चौरा जाए बर रोक दिस।

    12 फरवरी 1922 के दिन गाँधी जी ह असहयोग आन्दोलन वापसी के घोषणा कर दिस। दरअसल पिछले कुछ महीना ले देष के बाकी हिस्सा म आंदोलन ठंडा पड़त जावत रिहिस अउ अइसन स्थिति म जबकि गाँधी जी ह देष ल एक बच्छर के भीतर स्वराज देवाये बर वादा कर दे रिहिस। फेर स्वराज मिले के कोनो आसार दिखाई नइ देवत रिहिसे। ए आन्दोलन ल वापिस ले बर एकर ले बढ़िया मौका कोनो अउ नइ हो सकत रिहिसे। मगर 16 फरवरी 1922 म लिखे अपन लेख चौरी-चौरा के अपराधम गाँधी जी ह आन्दोलन ल वापिस ले के कारन देस म कोनो भी किसम के अहिंसक आंदोलन छोड़े बर तइयार नइ होना ल बतइस। ओकर मुताबिक ये आन्दोलन ल वापिस नइ लेतिस ते दूसर जघा मन म घलो अइसने घटना होतिस।

 

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गँाधी जी अपन लेख म एक डाहर ले एक घटना बर पुलिस वाले मन ल जिम्मेदार ठहरइस काबर कि उंकरे उकसाये ले भीड़ ह अइसन कदम उठाये रिहिन। दूसर डाहर ए घटना म सामिल सबो झिन ल पुलिस के हवाला करे बर सलाह दिस काबर कि उमन अपराध करे रिहिन।

    ओती गोरखपुर म बइठे देवदास गाँधी ह मृत पुलिस वाले मन के परिवार मन के सहायता बर एक चौरी-चौरा सहायता कोषके स्थापना करिस। ओकर बाद संयुक्त प्रांत यू. पी. के तमाम जिला कांग्रेस कमेटी मन ल आदेस दिस कि एक कोष बर दू-दू हजार रूपिया जमा करय। गोरखपुर जिला ल सजा स्वरूप दस हजार रूपिया जमा करना रिहिस। ए सहायता कोष ले मृत या सजायापता वॉलिण्टियर मन के परिवार वाले मन ल कुछु नइ मिलना रिहिस काबर कि उमन अपराध करे रिहिन।

 

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आन्दोलन के प्रनेता होय के सेती थोर बहुत जिम्मेदारी गाँधी जी के घलो रिहिस तभे तो प्रायष्चित करे बर पाँच दिन ले उपास रिहिस। तहान चौरी-चौरा काण्ड के सजायापता वॉलिण्टियर (स्वंयसेवक) मन के परिवार वाले मन के सुधार तो सरी जिनगी भर चलत रिहिस।

सन्दर्भ सामग्री

दिल्ली विष्वविद्यालय के प्रोफेसर शहिद अमीन की पुस्तक Event, Mataphor, Memory: Chauri-Chaura, 1922-1992, Oxford University Press (OUP), New Delhi, 1995 

और उनके लेख, Small Peasant Commodity Production and Rural Indebtedness : The Culture of Sugar cane in Eastern U.P. 1880-1920. Subaltern Studies (SS), Vol.-I, OUP, New Delhi, 1982.

Gandhi As Mahatma : Gorakhpur District, Eastern U.P. 1921-22, SS, Vol.-III, OUP, New Delhi, 1984.

Approver’s Testimony, Judicial Descourse : The Case of Chauri-Chaura, SS, Vol.-V, OUP, New Delhi, 1987. 

प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र पाण्डेय के लेख Peasant Revolt and Indian Nationalism : The Peasant Movement in Awadh, 1919-22, SS, Vol.-I, OUP, New Delhi, 1982 पर आधारित।

 

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