Wednesday 1 June 2022

पारिवारिक पृष्ठभूमि के उपन्यास बहू हाथ के पानी (छत्तीसगढ़ी) - दुर्गा प्रसाद पारकर


 





पारिवारिक पृष्ठभूमि के उपन्यास


बहू हाथ के पानी


(छत्तीसगढ़ी)



- दुर्गा प्रसाद पारकर









एक


रामनाथ ह अपन गोसाइन केकती संग दिन रात मिहनत करके अब्बड़ अकन पंूजी सकेल डरे रिहिस। एती-ओती बगरे धनहा-डोली ल अदला-बदली करके नवागांव म आठ दस एकड़ के चक बना डरे रिहिस। केकती ह बिक्कट किटकिटहीन राहय। काम-बूता बर तरतीर-तरतीर अउ बोले गोठियाय बर घलो झरझरा। भइगे जब देखबे तब किटिर-किटिर करत राहय। तिही पारा के रामनाथ ह केकती के कोचई नाम धर दे रिहिसे। बोले-गोठियाथे बर केकती के मुंह ह कोचई कस खजुवाते राहय। रामनाथ के घांठा परगे रिहिसे केकती के गोठ ल सुनत-सुनत। केकती के झरझरा पन ह ओकर स्वभाव रिहिसे। ओकर खिसियई म मया लुकाय राहय।

अन्न-धन भण्डार रिहिसे। अपन प्लाट म बोर करवाय रिहिसे। गांव म बिजली ओ गे रिहिस। बोर म समरसीबल पंप धलो लगा डरे रिहिस। पांच हार्स पावर के पंप ल जब चालू करय ते फरफीर-फरफीर टंकी ह लघिंयात भरा के नाली म आगू डाहर फसल के पिपाय बुझाय बर निकल जाय। जब फसल ह लहरावय त रामनाथ अउ केकती के चेहरा म उछाह छा जाय। धान गहंू के संगे-संग, साग-सब्जी घलो लगा लेवय। घर खाय ले उबर जय ते नौकर-चाकर मन करा ले हाट-बाजार घलो भेजवा देवय। कोठा म गाय-गरूवा के भरमार राहय। गरूवा मन के गोबर ले बढ़िया कम्पोस्ट खातू बन जावय। इही खातू ले बढ़िया फसल उपजावय। शुद्ध हवा-पानी अउ शुद्ध खाना ले रामनाथ के परिवार स्वस्थ रिहिस। रामनाथ के तीन झन बेटी अउ एक झन बेटा रिहिस। बड़े बेटी के नाम सरला, मंझली बेटी के नाम दुलारी, छोटे बेटी के नाम हंसा अउ बेटा के नाव कुबेर रिहिस हे। कुबेर ह बहिनी मन ले सबले बड़े रिहिसे। कुबेर सीधवा अउ समझदार रिहिस।

केकती ह खेत ले आवत-आवत पानी म भींग गे रिहिसे। खेत गीस त बादर ह साफ दिखत रिहिस फेर एकाएक बादर गढ़िया दिस अऊ झमाझम पानी ह झोर दिस। केकती ल जुड़ सर्दी धर लिस। आज पनकप्पड़ ल नइ धर पाय रिहिसे। घर के सबो बूता ल केकती ह करय। अभी सरला ल रांधे गढ़े बर नई सिखोय रिहिस। सरला ल अंगना दुआरी ल बाहरे बटोर बर सीख गे रिहिसे। थोर बहुत गोबर कचरा घलो कर लेवय। केकती ह बुखार के मारे हकरत रिहिस हे। रामनाथ ह ओकर हालत ल देख के डॉक्टर ल बलवाय बर कुबेर ल भेजीस। कुबेर ह सरला ल किहिस-देख तो बेटी तोर दाई बर गरम पानी मड़ा दे। सरला हव ददा कहिके चुल्हा म पानी तिपोय बर धर लिस। डॉक्टर के घर ह तीर म रिहिस हेे तिही पाय के तुरते आ गे। आ के केकती ल देख के किहिस-घबराये के कोनो बात नइहे। ए पुतकी के दवई ल गरम पानी म अभी एक खुराक अउ काली दिन म तीन घांव खवा दुहू ताहन जर ह उतर जही। रामनाथ ह डॉक्टर ल फीस दे के बिदा करिस। उही दिन बारी ले भांटा घलो टोरे रिहिस हे, एक साग के पुरतीन भांटा घलो डॉक्टर बर जोर दिस। सरला ल बने पढ़ाय लिखाये बर ओकर बबा ह कहिके भगवान घर चल दे रिहिस हे। तिही पाय के सरला ल पढ़ावत रिहिन। सरला ह हल्का उमर म अपन ददा कस डंगडंग ले बाढ़ गे रिहिस। रामनाथ ह अपन बेटी सरला ल किहिस-बेटी सरला!

सरला-काये

रामनाथ-भांटा आलू ल पोइल डर।

सरला-हव, कहिके भांटा-आलू ल पोइले बर धर लिस।

रामनाथ-कुबेर।

कुबेर-हं ददा।

रामनाथ-तोर दाई ल दवई खवा दे।

कुबेर-खाना खाय के बाद खवाय बर केहे हे।

रामनाथ-अच्छा ले त तंय रोटी बर पिसान ल सान।

कुबेर-हव ददा।

सरला-(चिल्ला के) ए दाई वो।

रामनाथ-का होगे?

सरला-अंगरी ह कटागे

केकती-ससुराल जाबे तिंहा कइसे करबे?

रामनाथ-(दउंड़त जाथे) कइसे काट डरे बेटी?

केकती-तिही पाय के तोला घेरी-बेरी बरजत रेहेंव। बेटी मन ल पढ़ई-लिखई के संगे-संग, चूल्हा-चाकी घलो आना चाही बेटी। केकती ह लकर-धकर खटिया ले उठत-उठत काहत रिहिसे-''दे लान मंय पउल देथंव।ÓÓ

सरला-नही दाई! तंय सुते राह। मंय तो दिल्लगी करत रेहेंव।

रामनाथ-मंय तो डर्रा गे रहेंवे बेटी, तहंू ह सरला। केकती ल रोटी अउ दवई खवाय के बाद सबो झन जेवन कर के सुतगे।

कुबेर ह अपन ददा संग किसानी म हाथ बंटावय। बिहनिया ले गरूवा ल ढिल के खइरखा डाढ़ लेगना। आय के बाद एक परत चक ल घूमय। जेमा पानी नइ राहय ओ डोली के मुही ल फोर के आ के पंप ल चालू कर देवय। ताहन भकभक-भकभक पानी ह टंकी म गिरय। पानी के धार ह खेत डाहर जावय। उही पानी म कुबेर ह नहा खोर के बटकी भर बासी खा के खेत डाहर निकल जय। तब तक ले बनिहार मन घलो पहुंच जय। कुबेर ल घलो रामनाथ ह बिक्कट पढ़ाय के सपना देखे रिहिसे। हर साल तो ले दे के परीक्षा म पास होवय तिही पाय के नौकरी चाकरी घलो नइ लग पइस। कुबेर के पढ़ई म ठीकाना नई देख के ओला खेती किसानी के जिम्मेदारी ल दे दिस। रामनाथ ह अपन बेटा ल समझा दिस-''सुन कुबेर जब पढ़ई-लिखई म ठीकाना नइ परत हे त खेती किसानी म ठीकाना पार।ÓÓ अब तो खेती किसानी ल बने चेत लगा के करे बर धर लिस। रामनाथ ह घलो पुरा सियानी कुबेर ल दे दिस।

रामनाथ अउ केकती दुनो झन खेत के मेड़ो म गोठियावत बइठे रिहिन हे।

रामनाथ-केकती।

केकती-का होगे?

रामनाथ-देखते-देखत कइसे हमर चूंदी ह पाक गे।

जिम्मेदारी ला पूरा करत-करत उमर के पता नइ चलिस। कइसे हम्मन बुढ़ा गेन।

केकती-हव कुबेर के ददा। कब हम्मन सियान हो गेन तेह पतच नइ चलिस। अब तो दरपन देखे के मन घलो नइ करय।

रामनाथ-त मोला देख ले कर।

केकती-अब का तोला देखहंू डोकरा। अब तो नाती नतरा देखे के मन ह।

रामनाथ-महंू इही बात ल तोला कहंू काहत रेहेंव।

केकती-त कुबेर ल बिहाव बर पुछते नही? का कथे ते।

रामनाथ-मंय ह बाप हो के कइसे पुछंव। तिंही पूछ डर न।

केकती-सरला घलो तो सज्ञान होगे हे। सगा उतरतीस ते दुनो झिन के बिहाव ल निपटा देतेन। खरचा घलो बांच जतिस।

रामनाथ-बने तो काहत हस।

केकती-अभी तो सरला ह रांधे गढ़े बर घलो नइ सीखे हवय।

रामनाथ-केकती! जब जिम्मेदारी मुड़ी म आथे त सब सीख जाथे। तिंही ह कोन से मार मइके ले सीख-पढ़ के आय रेहे। मोर दाई ह सिखोइसे।

केकती-(लजा के) तहंू ह कुबेर के ददा।

रामनाथ-ले त फेर मउंका देख के कुबेर करा बिहाव करे बर गोठियाबे।

केकती-हव। ले मंय पुछहंू, का कथे ते।

रामनाथ ह अब थके बर धर ले रिहिसे तिही पाय के जीयत-जीयत अपन जिम्मेदारी ल पूरा कर देतेंव कहिके गुनत रिहिसे। सरला ह अपन ममा गांव गे रिहिसे। बिहनिया महतारी बेटा ह खेत डाहर जावत-जावत केकती ह हपट के गीरे के नाटक करिस। हपट के गिरिस ताहन कुबेर ह अपन महतारी ल उठा के घर म लानिस। केकती ह ठट्ठा करत रिहिस हे फेर सिरतोन होगे। पांव ह मुरकुटागे। पीरा के मारे कहरे बर धर लिस। घर म लान के कुबेर ह अपन महतारी के पांव म बाम लगावत रिहिसे। केकती ह कथे-मोर हाथ पांव के सेवा तो करत हस बेटा फेर घर दुवार के बूता ल कोन करही? अब तो तोर बाप के संगे-संग महंू थके बर धर ले हवं। अब तो बस हमर दुनो झिन के एके ठन इच्छा हे तोर बिहाव कर के ''बहू हाथ के पानीÓÓ पी लेतेन कहिके।

कुबेर-तंय कइसे गोठियाथस दाई, ए तो एक दू दिन के बात आय। मंय रांध गढ़ दुहूं, बाहर बटोर दुहूं अउ गोबर कचरा ल घलो कर दुहूं।

केकती-बेटा! दुआर के बूता ह बेटी-माई ल फभथे।

कुबेर-त रांधे गढ़े बर सरला बहिनी तो हवय दाई।

केकती-बेटी पर घर के धन आय बेटा। अब तो वहू सज्ञान होगे हवय। सगा उतर जही त ओकरो घर ल बसा दिंगे कहिके गुनत हवन। घर सम्हलइया तो चाही न। अब तिंही बता ऊंच-नीच म तंय हमर सेवा करत रहिबे त खेती किसानी ल कोन सम्हालही?

कुबेर-दाई! फेर अभी तो सरला के बिहाव करे बर हे। पहिली सरला के घर ल बसा देथन तहान देखबोन।

केकती-त का एसो हम्मन ल बहू हाथ के पानी पीये बर मिल जही?

कुबेर-वइसे बिहाव करे के मोर मन नइहे फेर हां मंय तुमन ल नराज नइ कर सकंव। तुंहर खुसी बर मंय राजी हंव। फेर

केकती-का फेर?

कुबेर-पहिली सरला के रिसता तय हो जही ताहन फेर मोर बर खोजहू।

कुबेर के हामी भरे ले केकती के गोड़ के पीरा कम होय बर धर लिस। चेहरा म खुसी झलके बर धर लिस। कुबेर ह अब रांधे गढ़े के तइयारी म लग गे। केकती ह खटिया म बइठे-बइठे लफरा-लफरा लाली चेंच ल टोरे बर धर लिस।

रामनाथ ल अपन ससुरार ले लहुटत रतिहा हो गे रिहिसे। घर म जब आ के देखथे कि केकती ह खटिया म बइठे-बइठे चेंच भाजी ल टोरत-हवय। ओ डाहर कुबेर ह चूल्हा म आगी ल फूंकत रिहस। रामनाथ ह इंकर मन के बूता ल देख के कथे-कइसे केकती का होगे? कुबेर ह चूल्हा फूंकत हे।

केकती-(ताना मारत) चूल्हा नइ फूंकही त का करही। कुंवारा रहंू कथे।

रामनाथ-बने फोर के बात ल बता का हो गे तेला। तंय कइसे रांधे-गढ़े बर छोड़ के खटिया म बइठे-बइठे भाजी टोरत हवस?

केकती-डोली डाहर जावत रेहेन, रद्दा म हपट गेंव। गोड़ म मोच आ गे हे।

केकती-सियानी उमर म काला-काला देख के रेंगबे। भइगे गोठियाते रहिबे ते हाथ-गोड़ घलो धोबे।

रामनाथ-(मोटरी ल देखत) ए दे तोर दाई ह उरीद बरी जोरे हे।

केकती-बने बेरा म आय। चेंच भाजी म बरी मिला के रांधहूं।

रामनाथ-त तोर गोड़ ह तो मोंच धर ले हे न? पिरावत होही।

केकती-ओतको नइ पिरावत हे मंय साग ल भंूज बघार नइ पाहंू।

रामनाथ-(कलेचूप) कुबेर ले कुछु बात होइस का?

केकती-(इसारा करत) चूप, बाद म बताहंू कहिके मुड़ी ल हव कहिके हला देथे।

रामनाथ-(इसारा ल समझ के खुस हो जथे) चलो इसवर के मरजी आय। एसो नवा लछमी आही तइसे लागत हे। इही साल ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बर मिल जही कहिके।

सरला अपन ममा घर गे रिहिसे अउ कुबेर ह नहाय खोरे बर चल दे रिहिस हे। मौका देख के रामनाथ ह केकती ल पूछथे-''कइसे कुबेर से कुछु बात होइस का?ÓÓ

केकती-हव होइसे।

रामनाथ-का काहत रिहिस हे?

केकती-काहत रिहिसे, पहिली सरला के बिहाव कर देथन तहान देखबोन कहिके फेर।

रामनाथ-का फेर?

केकती-बिहाव करे के ओकर मन नइ हे।

रामनाथ-त मनाते नही। लइका मन थोरे कही अपने मुंहु ले, बिहाव करहंू कही।

केकती-मनाय तो हवं।

रामनाथ-त मानिस?

केकती-माने बर तो मानिस फेर कहि दिस मोर मन ह तो बिहाव करे के तो नइ हे फेर तुंहर खुसी खातिर सोंच हंू।

ओतके बेर कुबेर ह नहा खोर के घर पहुंच गे। कपड़ा-लत्था ल सुखा के अइस त अपन दाई के गोठ ल सुन डरिस। सुन के कुबेर ह पूछीस-''काकर खुसी बर सोंचत हव दाई?ÓÓ

केकती-तोर खुसी बर तो हम्मन सोंचत हवन बेटा।

कुबेर-तहंू दाई, बस रात दिन बहू-बहू रट लगा दे हस। चल बासी दे, मोला भूख लागत हे।

केकती-बासी तो नइ हे। बासी रिहिसे तेला अंगाकर रोटी पो दे हवं।

कुबेर-त अंगाकर रोटी ल दे।

केकती-त खिसियाथस काबर?

कुबेर-नइ खिसियाहंू त का करहंू?

केकती-तोर तो मुंहु फुलोई ह ननपन के आदते आय। बहू आही न तब समझ आही, कतना मुंहु फुलोबे तेह।

रामनाथ-चूप राह न केकती।

केकती-का चूप रहिबे। तुंहर बाप-बेटा के मुंहु फुलोई के मारे मंय हक खागे हवं।

रामनाथ-अब हक नइ खावस। एसो बहू आ जही ताहन सुख पाबे सुख।

केकती-(फुनफुनावत-फुनफुनावत) नान-नान सरकी ल जठा के कहिथे-''चलव बइठव रोटी खा लव।ÓÓ

कुबेर-(अपन दाई ल मनाय के कोसिस करथे।) अंगाकर रोटी म घींव घलो लगा देबे दाई।

केकती-बड़ा घींव खवइया अस त घींव चुपरइया लान ले। मंय कतेक दिन ले घींव ल तोर रोटी म चूपरत रहंू।

रामनाथ-(केकती ल गुस्सावत देख के) तोर पांव के पीरा कइसे हे?

केकती-पांव के पीरा के तुमन ल संसो हे?

रामनाथ-संसो हवे तभे तो पूछत हवं।

केकती-फेर कुबेर ल कहां संसो हे?

रामनाथ-वहू ल संसो हे केकती, वहू ल संसो हवय।

केकती-संसो रहितीस ते बिहाव बर हव नइ कहि देतीस।

कुबेर-ले दाई तंय जइसन कहिबे ओइसने करहूं। तोला बहू चाही। त लान डरव बहू।

रामनाथ-तहूं केकती, लइका जवान हो गे। अब खिसियाय के उमर नइ हे। मनाय के उमर आय, समझाय के उमर आय।

केकती-अब तक ले का करत रेहेंव त?

रामनाथ-का करत रेहेस?

केकती-अब तक ले समझाए के बूता तो करत रेहेंव।

रामनाथ-अच्छा समझ गेंव, सोज म घींव नइ निकलत रिहिस त अंगरी ल टेड़गा करके निकालत रेहे।

केकती-हव, चूंदी ह अइसने नइ पाके हे डोकरा।

रामनाथ-अच्छा त मंय ह डोकरा हो गे हवं अउ तंय ह।

इंकर दुनो झिन के झगरा ल देख के कुबेर ह समझइस-''तुमन काबर झगरा ल बढ़ावत हव। तुंहर खुसी मोर खुसी आय। जइसन चाहहू ओइसने करहंू। फेर एक ठन शर्त हे।ÓÓ

केकती-का शर्त आय?

कुबेर-सरला के रिसता पहिली तय हो जय।

रामनाथ-ठीक हे न। पहिली सरला बेटी के रिसता तय हो जही तहान तोर बर देखे के सुरू करबोन।

केकती-ए ले अउ रोटी खाबे?

रामनाथ-नही केकती कुबेर के बात ल सुन के पेट ह भरगे।

केकती-बने काहत हस कुबेर के ददा।

अपन महतारी-बाप के गोठ ल सुन के रोटी ल जल्दी खा के कुबेर ह उठ के चल दिस। रामनाथ ह केकती ल किहिस-''अच्छा नाटक करे।ÓÓ

केकती-का नाटक?

रामनाथ-गोड़ पीरा के।

केकती-नाटक नो हे। हपटे के नाटक करत-करत सिरतोन के हपट गेंव अउ गोड़ ह मोच खा गे।

रामनाथ-तोर गोड़ ह मोच भले खइस फेर हमर दुनो झिन के सपना ह तो पूरा होही।

केकती-सरला घलो बने पढ़ लिख डरे हे। नौकरी वाले दमांद मिल जतिस ते बने हो जतिस।

रामनाथ-बने काहत हस केकती, खेती किसानी के कोनो ठीकाना नइ राहय।


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दू


रामनाथ गायत्री परिवार ले जुड़े रिहिस। बड़े बिहनिया ले नहा खोर के पूजा-पाठ करय ताहन बासी खा के खेत डाहर चल देवय। सरला ह सज्ञान हो गे रिहिस हे। रोज गायत्री माता ले बिनती करय। हे माता! सरला बर बने कस नउकराहा दमांद मिल जतिस ते बने होतिस। रामनाथ ह ओग्गर रिहिसे फेर केकती ह सांवली रिहिस। रंग ह भले करिया रिहिस हे फेर मन ह ओग्गर रिहिस। कुबेर ह अपन ददा के अंगोछ म ओग्गर रिहिसे। फेर सरला ह अपन महतारी के अंगोछ म करिया रूपस रिहिस। पढ़ई लिखई म भारी हुसियार फेर रंग-रूप ह करिया। सरला के संगवारी मन ओकर नाव कारी धर दे रिहिन हे।

धीरे-धीरे संजे-संवरे के मन ह घलो उतरत गिस। पाउडर लगाय त अलग ले दिखत राहय पड़री-पड़री। हं फेर काम बूता, पढ़ई-लिखई म अव्वल नम्बर के रिहिस हवय। अब रामनाथ अउ केकती ह सरला बर लड़का देखत-देखत हलाकान हो गे। सामाजिक पत्रिका म घलो छपवाय राहय। सरला ह पढ़ई लिखई भर ल नइ छोड़िस। अब तो सरला ह एम.ए. (हिन्दी) कर डरे रिहिस।

सामाजिक पत्रिका ल देख के नौकरी वाले लड़का मन सरला ल देखे बर आवय जरूर फेर रंग रूप ल देख के जबान देबे नइ करय। सरला ओतेक जादा बिलई नइ रिहिसे। सुन्दर रूपस करिया रिहिस। फेर बिलवा-बिलवा टूरा मन ल घलो गोरी लड़की चाही। साल के साल दसो लड़का देखे बर आवय। सरला ह अब तक ले दसो-बीसों लड़का वाले मन ल चाहा दे के पांव परत-परत असकटा गे रिहिस। एक दिन तो अपन दाई ल कहि दिस-''दाई तुमन मोर बर जादा चिंता-फिकर झन करव। मंय अब बिहाव नइ करंव। मंय एम.ए. पढ़ डरे हवं। अब बी.एड. के पढ़ई करहंू।ÓÓ केकती ह काय कहितिस। वोह तो अपन बेटी के खिसियाई के कारन ल जानत रिहिस हे। केकती ह भुलवारत किहिस-अइसन काबर कहिथस बेटी?

सरला-का मंय तुंहर बर गरू हो गे हवं का?

केकती-तंय कइसे गोठियाथस बेटी। लइका ह महतारी-बाप बर कहूं गरू होही? तभो ले।

सरला-का तभो ले?

केकती-बेटी ह ससुरारे म सोभा आथे बेटी।

सरला-ठीक हे दाई, त का मोर बिहाव नइ होही ते, तुंहर सोभा बिगड़ जही का?

केकती-नही बेटी।

सरला-का नही, मंय तुंहर सोभा ल नइ बिगाड़ंव। बस मोला बी.एड. भर करन दे तहान मंय अपन गोड़ म खड़ा हो जहूं।

केकती-ओला तो हम्मन जानत हवन बेटी।

सरला-जानत हव त बड़े भइया के बिहाव ल काबर नइ कर देतेव।

केकती-वहू तो अड़े हे बिहाव नइ करंव कहिके।

सरला-काबर अड़े हे भइया ह?

केकती-वो ह कथे पहिली सरला के बिहाव करबोन ताहन मंय करहंू कहिके।

सरला-त मोर बर तो सगा उतरते नइ हे त कइसे करबे? अउ उतरत हे तेन मन जवाब देबे नइ करय।

केकती-का करबे बेटी, आजकाल के लड़का मन गुन ले नही बल्कि रूप के जादा पूजा करथे, भले ओकर चाल म कीरा परय।

सरला-नही दाई हम्मन कोनो ल दोस नइ लगावन। भगवान घर देर हे फेर अन्धेर नइ हे।

केकती-बहुत समझदार हो गे हस बेटी।

सरला-अब तहूं मन समझदार हो जव। बड़े भइया ल बिहाव बर मनावव। ओतके बेर रामनाथ ह आथे त महतारी-बेटी के होखा-बादी चलत रहिथे। सुन के रामनाथ ह कथे-''तुंहर मन के का कीटिर-काटर चलत हवय?ÓÓ

केकती-कुछु नइ चलत हे।

रामनाथ-कइसे कुछु नइ चलत हे। बिहाव-उहाव काहत रेहेव।

केकती-हं। सरला काहत हे, मोर बर रिसता नइ आवत हे त कुबेर भइया के बिहाव कर देव।

रामनाथ-ले न सोंचथन। गायत्री माता हमर बिनती ल जरूर सुनही अउ हमर मनोकामना ल पूरा करही तहान कन्यादान के धरम ल घलो निभाबोन अउ ''बहू हाथ के पानीÓÓ घलो पिबोन।

रामनाथ ह गायत्री मिसन से जुड़े रिहिस। ए साल रामनाथ के सियानी म नवागांव म एक सौ ग्यारा कुण्डीय गायत्री यज्ञ के योजना बनिस। रामनाथ ह अब गायत्री महायज्ञ के तइयारी म भीड़ गे। गायत्री परिवार घलो प्रचार-प्रसार म लग गे।

कांकेर के भुवन घलो गायत्री परिवार वाले रिहिस हे। काम बूता ल छोड़-छोड़ के मिसन के बूता म लगे राहय। भुवन ह गायत्री माता के सोर ल बगरा के आदर्श समाज गढ़े बर लगे राहय। पं. रामचंद्र शर्मा के स्वस्थ समाज के निर्माण के सपना ल सिरतोन करे बर दिन-रात लगे राहय। एती भुवन के गोसइन अपन नोनी बाबू ल पढ़ा-लिखा के बड़े मनखे बनाय के मिसन म लगे राहय। भुवन के दू झिन बाबू अउ एक झिन नोनी रिहिस। बड़े बेटा के नाम खुमान अउ नान्हे बेटा के नाम दीपक रिहिस। दुलौरिन बेटी ह मंझली रिहिस। बेटी के नाम कविता धरे रिहिन। भुवन के गोसइन निर्मला ह परिवार ल शिक्षा बर जोर दिस। मध्यम वर्गीय परिवार रिहिस। गायत्री परिवार ले जुड़े रेहे के सेती कोनो किसम के दुरगुन ह ओधन नइ पाय रिहिस। भुवन अउ निर्मला के कद-काठी ह एके बरोबर रिहिस हवय अउ रंग रूप ह चिरई जाम कस बिरबीट करिया। तिही पाय के लइका मन घलो करियच्च-करियच्च दाई ददा के अंगोठ म रिहिन हे।

भुवन के बड़े बेटा खुमान ह पढ़ई के संगे-संग बीच बीच म ननपन ले अपन ददा संग गायत्री परिवार के मिसन म जाय बर धर ले रिहिस। कविता बेटी ह घलो घर म अखण्ड ज्योति पत्रिका आवय तेला पढ़य। दीपक ह ननपन ले तुलमुलहा रिहिस हवय। ओकर धियान ह संगीत डाहर जादा राहय। एक दिन लकड़ी ल धर के किसन कन्हैया कस बांसुरी बजाय के अभ्यास करत रिहिस। भुवन ह ओला देख डरिस। तहाने बजार ले बांसुरी बिसा के लान के दिस। तहान उही ल दीपक ह फूंके बर धर लिस। गायत्री मिसन म भजन खातिर हारमोनियम अउ तबला घलो रामनाथ घर राहय। रामनाथ ह हारमोनियम बजावय। उर्मिला ह गायत्री यज्ञ बर करसी सजा के, चाउंर सकेले खातिर गांव म करसी बांटे अउ सकेले के बूता करय। पींयर-पींयर कपड़ा पहिर के जब दुनो झिन जुग-जोड़ी निकलै त लोगन मन जान डरय कि इमन कोनो करा गायत्री यज्ञ म जावत होही।

भुवन ह अपन बड़े बेटा खुमान ल बिक्कट पढ़ाय के सपना देखे रिहिस। फेर ले दे के ग्रेजुएट पढ़ पइस वहू थर्ड डिवजन। घर वाले मन काहय-नौकरी बर फारम ल भरते नही बेटा। खुमान ह भरे फेर लिखित परीक्षा म पास होबे नइ करय। क्लर्क बने बर लिखित परीक्षा देवाय बर टेम्पो म बइठे बर चढ़त रिहिसे त देखथे कि खुमान के हाईस्कूल के संगवारी पहिली ले बइठे हे। कोट टाई पहिरे सूटकेस रखे बड़ा ताव के संग बल्दाऊ बइठे राहय। बल्दाऊ खुमान ल देख के कथे-आ बइठ खुमान।

खुमान-अरे तंय!

बल्दाऊ-हव मंय।

खुमान-कहां जाथस?

बल्दाऊ-''मनी फंडÓÓ कंपनी के मिटिंग म जावत हवं। अउ तंय कहां जाथस?

खुमान-क्लर्क बने बर लिखित परीक्षा देवाय बर जावत हवं।

बल्दाऊ-छत्तीसगढ़िया मन मालिक बने बर जानबे नइ करव। बस नौकरी-नौकरी।

खुमान-नौकरी नइ करबोन त अउ का करबोन बल्दाऊ?

बल्दाऊ-तंय मोला देखत हस।

खुमान-हव।

बल्दाऊ-कइसे दिखत हवं?

खुमान-साहब कस।

बल्दाऊ-तहंू ल साहब बनना हे?

खुमान-हव। फेर कतेक मिल जही?

बल्दाऊ-जतना जादा मेहनत करबे ओतके जादा आमदनी होही।

खुमान-ओ कइसे?

बल्दाऊ-तंय ''मनी फंडÓÓ  कंपनी म जतने जादा रूपिया जमा करबे ओतने तोला फायदा होही। का रखे हे नौकरी म। साहब कस टीप-टाप पहिर ओढ़ के निकल तहान देख कइसे तोला सेल्यूट मारही।

खुमान-त का करे बर परही?

बल्दाऊ-एक काम कर, आज परीक्षा देवा ले तहान काली आबे।

खुमान-कहां आहूं?

बल्दाऊ-बस स्टैण्ड म मोर ऑफिस हे, उहें दस बजे आ जबे। दू घंटा ऑफिस म बइठथंव तहान दौरा म निकल जथंव। खुमान परीक्षा सेंटर ल देख के टेम्पो वाले ल कथे-रूक रूक। ड्राइवर ह टेम्पो ल रोकथे। उही करा खुमान ह उतर जथे।

बल्दाऊ-काली दस ले बारह बजे के बीच तोर रद्दा देखहंू।

खुमान-हव बल्दाऊ।

बल्दाऊ-खुमान मोर नाम झन ले कर।

खुमान-त का काहंव यार?

बल्दाऊ-सर काह।

खुमान-जी सर! काली ऑफिस म आहंू।

खुमान ह गिस तहान बल्दाऊ ह टेम्पो वाले ल किहिस चल ''मनी फंडÓÓ कंपनी के ऑफिस। ड्राइवर ह टेम्पो ल ऑफिस डाहर बढ़ा दिस। बल्दाऊ ह मने मन खुस राहय काबर के आज एक झिन एजेन्ट अउ बाढ़ जही। जतके एजेन्ट बाढ़ही ओतके जादा वसूली होही तहान मोर कमीसन बाढ़त जाही।

एती खुमान ह घलो परीक्षा देवा के लहूटे के बाद गुनत रिहिसे। महंू ल अब सब सर कही। कोट-टाई पहिर के सूटकेस धर के घुमहंू। रतिहा ल अलथ-कलथ के ले दे के पहाय रिहिसे। काबर ओ हर तो रात भर बड़े आदमी बने के सपना देखत रिहिसे। बिहनिया उठिस धकर-लकर, नहइस-खोरिस। पेंट शर्ट ल आयरन चलइस। तहान बिहनिया बन ठन के कांकेर बस स्टेण्ड ''मनी फंडÓÓ  कंपनी के ऑफिस जाय बर निकल गे। लगभग ग्यारा बजे खुमान ह ''मनी फंडÓÓ  कंपनी के ऑफिस पहुंच गे। उहें खुमान ह चपरासी ल पूछिस-सर हे का?

चपरासी-कोन सर?

खुमान-बल्दाऊ ह।

चपरासी-अरे कइसे बात करथस?

खुमान-काबर?

चपरासी-सर के कोनो नाम लेथे।

खुमान-त तंय बता का काहवं?

चपरासी-बड़े सर केहे करबे नही ते नाराज हो जही।

खुमान-मंय तो पहिली सर केहे रेहेंव त तिहीं ह तो नाम पूछे।

चपरासी-असल म छोटे सर घलो हे न। तेकर सेती पूछ परेंव।

खुमान-चलो कोई बात नही छोटे अउ बड़े साहब मन के ध्यान रखहंू।

बल्दाऊ के दाई-ददा ह दुसर प्रदेस ले खाय-कमाय बर कांकेर आय रिहिन। पहिली बल्दाऊ के ददा ह गली-गली साइकिल म पेपर, टीना अउ प्लास्टिक बिसा के कबाड़ी मन करा बेच के घर-गृहस्थी ल चलावत रिहिस। बल्दाऊ के ददा के नाम प्रेमसुख अउ दाई के नाम फूलबतिया रिहिस। दुनो झिन राहय त ले दे के घर खरचा चल जावत रिहिसे फेर साल भर बाद बल्दाऊ के जनम होइस। अब खरचा बाढ़ गे। अब खाय बर करे ते अस्पताल बर ते घर किराया बर। एती साग भाजी बेचे के मन बनइस। कांकेर के दाऊ ह प्रेमसुख करा ले साग भाजी बिसावय। एक दिन दाऊ जी ह प्रेमसुख करा ले साग भाजी बिसाय बर गिस त प्रेमसुख ह बड़ उदास रिहिसे।

दाऊ जी ह पूछथे-प्रेमसुख कइसे उदास दिखत हस?

प्रेमसुख-का दुख ल बताबे दाऊ जी।

दाऊ जी-बता न। मोर राहत ले फिकर झन कर।

प्रेमसुख-मंय जऊन घर म किराया म रहिथंव ओह एक हप्ता म खाली करे बर काहत हे। भइगे, दिन-रात इही चिंता ह खावत हे।

दाऊ जी-अब मंय तोर बर कुछु न कुछु जुगाड़ कर दुहंू। फिकर झन कर। अभी आधा किलो भांटा, आधा किलो रमकलिया अउ आधा किलो पताल तउल दे।

प्रेमसुख ह दाऊ के बात ल सुन के खुस हो गे। प्रेमसुख ह धीरे-धीरे कर के छत्तीसगढ़ी गोठियाय बर सीख गे रिहिस हवय। प्रेमसुख ह दाऊ जी ल तराजू ल जादा झूला के साग सब्जी दिस। अउ हकन के पुरौनी घलो डारत गिस। दाऊ जी ह पुरौनी ले खुस हो गे। घर म आ के दाऊ जी ह गउंटनीन ल चाय बनाय बर कहिके हाथ गोड़ ल धोए बर धर लिस। दाऊ जी ह सोफा म बइठिस तहान गउंटनीन ह चाहा पानी लान के दे के बाद झोरा के साग भाजी ल निमारत-निमारत किहिस-कइसे आज साग भाजी ह जादा जादा लागत हे?

दाऊ जी-अरे ओ प्रेमसुख ह।

गउंटनीन-कोन प्रेमसुख ह?

दाऊ जी-साग भाजी के बेचइया।

गउंटनीन-अच्छा।

दाऊ जी-आज ओह मया म जादा-जादा जोर दे हे।

गउंटनीन-काबर?

दाऊ जी-ओकर एक ठन समस्यिा ल हल करहंू केहेंव तहान मया के मारे जादा-जादा जोर दे हे।

गउंटनीन-त मना नइ करतेच। हम्मन दुए परानी हवन। अतेक-अतेक साग सब्जी ल कोन खाही?

दाऊ जी-उही ल तो महूं काहत रेहेंव। दुए झिन रहिथन अतेक बड़ घर ह भांय भांय लागथे।

गउंटनीन-त कइसे करबे?

दाऊ जी-मंय सोंचत हवं प्रेमसुख के समस्यिा के हल कर देतेन। तहान हमरो समस्यिा खतम हो जतिस।

गउंटनीन-का समस्यिा आय प्रेमसुख के?

दाऊ जी-प्रेमसुख ल किराया के मकान चाही। मंय ह सोंचत हवं।

गउंटनीन-का सोंचत हस?

दाऊ जी-मंय सोंचत हवं प्रेमसुख ल पिछू के मकान ल किराये म दे देतेन। ओकर नान नान लइका घलो हवय उही मन ल खेलावत-खेलावत मन ल मढ़ा लेतेन।

गउंटनीन ह लइका के बात ल सुन के किहिस-बने काहत हर दाऊ जी पिछू डाहर के घर तो खाली हे। किरायादार के किरायादार अउ रखवार के रखवार। हमर मन के बिक्कट दउंड़ धूप घलो रहिथे। घर के देख रेख घलो हो जही। दाऊ जी ह गउंटनीन के स्वीकृति ले खुस होगे। दाऊ जी ल आसा नइ रिहिस कि गउंटनीन ह मान जही। काबर कि गउंटनीन थोरिक किटकिटहीन बानी के रिहिसे।

फूलबतिया घर म अपन बेटा बल्दाऊ संग उदास बइठे रिहिस हे। साग भाजी बेच के प्रेमसुख ह जब घर पहुंचीस त फूलबतिया ल उदास देख के किहिस-''हिम्मत झन हार फूलबतिया छत्तीसगढ़ ह धरम के भुइंया आय। आज बजार म एक झिन धरमी दाऊ जी संग गोठबात होइसे। वोइसे ओह मोर जुन्ना गिराहिक आय।ÓÓ

प्रेमसुख-हमर मन के रेहे के बेवस्था करहंू किहिसे।

फूलबतिया-छत्तीसगढ़ महतारी के जय हो बल्दाऊ के ददा। छत्तीसगढ़ महतारी ह दुनिया भर के मनखे मन ल अपन कोरा म पोसत पालत हे त हमु मन ल पोसही। मोला पूरा बिसवास हे।

प्रेमसुख-बने काहत हस फूलबतिया।

फूलबतिया-त धरमी दाऊ जी ह कब बताहंू किहिस हे?

प्रेमसुख-बस दू-चार दिन म बता दुहूं केहे हे।

फूलबतिया-भगवान भला करय दाऊ जी के।

चार दिन बाद दाऊ जी ह साग भाजी बिसाये बर हटरी गिस। हटरी म घुमत-घुमत प्रेमसुख के पसरा म गिस। प्रेमसुख ह दाऊ जी ल देख के खुस हो गे जानो मानो भगवान आ गे। दाऊ जी ल देखिस तहान नमस्कार करे बर दुनो हाथ जोड़ के खड़े हो गे। दाऊ जी ह प्रेमसुख ल पूछिस-का हालचाल हे प्रेमसुख?

प्रेमसुख-हाल बेहाल हे दाऊ जी।

दाऊ जी-अब तुंहर हाल बेहाल नइ होवय।

प्रेमसुख-कइसे दाऊ जी?

दाऊ जी-तुंहर रेहे के बेवस्था हो गे हे।

प्रेमसुख-कते करा हे दाऊ जी?

दाऊ जी-कते करा का, मोरे घर म एक ठन कुरिया खाली हे उहें तुमन ल रहना हे।

प्रेमसुख-कतेक किराया हे?

दाऊ जी-किराया-उराया झन पूछ, तोर सकऊ अतना दे देबे।

प्रेमसुख-त आप मन के घर ह कते मेर हे दाऊजी?

दाऊ जी-चर्च के आघू म बड़े जन घर हे उही आय।

प्रेमसुख-त कब आवंव दाऊ जी घर देखे बर?

दाऊ जी-एक काम कर, मंझनिया ढरे के बाद आ जबे।

प्रेमसुख-आज का साग सब्जी देवंव दाऊ जी?

दाऊ जी-लाल भाजी, अमारी भाजी अउ आधा किलो कुम्हड़ा जोर दे। संग म धनिया, पताल अउ मिरची घलो डार दे।

प्रेमसुख-जी दाऊ जी।

(प्रेमसुख ह अपन पसरा म जतना साग भाजी रिहिसे ओमे ले एकक साग के निकाल निकाल के दाऊ जी के झोरा म भर दिस।)

दाऊ जी-कतेक के होइस?

प्रेमसुख-आप कर ले का पइसा लुहंू दाऊ जी।

दाऊ जी ह बड़ा दयालु किसम के रिहिसे। ओह अपन जिनगी ल लोगन के सेवा म लगाये रिहिस हे। गरीब आदिवासी मन के सेवक रिहिस। बोली भले कड़क रिहिसे फेर हिरदे ह सरल रिहिसे। दाऊ जी ह प्रेमसुख ल किहिस-''के रूपिया होइस प्रेमसुख हिसाब के बता। प्रेमसुख ह दाऊ जी ल किहिस-नही दाऊ जी मंय आज रूपिया नइ लेवंव। तभो ले दाऊ जी ह पचास रूपिया ल निकाल के प्रेमसुख के थैली म डार दिस। प्रेमसुख ह नही-नही काहते रहिगे। दाऊ जी ह रूपिया ल दे के घर लहूट गे।ÓÓ

मंझनिया ढरके के बाद फूलबतिया ह बल्दाऊ ल गोदी म पा के सइकिल के केरियर म बइठिस तहान प्रेमसुख ह सइकिल ल ओंटट दाऊ जी घर पहुंच गे। ओतका बेर दाऊ जी अउ गउंटनीन ह चाहा पियत रिहिन। पे्रमसुख ह आवाज लगइस।

प्रेमसुख-दाऊ जी, दाऊ जी।

दाऊ जी-आव, आव प्रेमसुख।

प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह दाऊ जी के तीर पहुंचते भार दुनो झिन दाऊ जी अउ गउंटनीन के पांव परिस। फूलबतिया ह बल्दाऊ ल घलो पांव परवइस। प्रेमसुख अउ फूलबतिया के बेवहार ले खुस होगे। गउंटनीन ह प्रेमसुख अउ फूलबतिया ल चाहा पानी दिस। बल्दाऊ ल खजानी दिस।

चाहा पानी पिये के बाद दाऊ जी अउ गउंटनीन ह इमन ल पिछू के सर्वेंट रूम ल देखइन।

दाऊ जी-देख लव। ए ह खाली हे। तुमन ल जमही ते।

प्रेमसुख-जमही का दाऊ जी, जमगे।

दाऊ जी-त कब आहू?

प्रेमसुख-कालिच आ जबोन दाऊ जी।

प्रेमसुख ह बिहान दिन रिक्सा म जोर के सब समान ल धर के पहुंचगे। अब तो दाऊ जी निस्फीकर हो गे। दाऊ जी ह लोक कला मर्मज्ञ रिहिस हे। ओकर रोज के एती-ओती दौरा भारी राहय। प्रेमसुख के आय ले घर के चिंता खतम होगे।

अब तो प्रेमसुख बर बिन मांगे मोती मिलय मांगे मिलय न भीख बरोबर होगे। प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह दाऊ जी अउ गउंटनीन के सेवा सटका म लग गे। प्रेमसुख ह बजार करे त फूलबतिया ह रोज के रोज ताजा ताजा साग भाजी दाऊ जी घर देवय। अब तो दाऊ जी ल साग भाजी बर हटरी जाय के जरूरत नइ परय। पे्रेमसुख अउ फूलबतिया बर ए घर ह बरदान सिद्ध होइस। अब तो साग भाजी के संगे संग फल घलो बेचे के सुरू कर दिस।

दाऊ जी अउ गउंटनीन बर रोज के रोज ताजा फल घलो दे बर धर लिस। दाऊ जी ह रोज फल के जूस पियय। बल्दाऊ ह स्कूल घलो जावय अउ अपन पिता जी के धंधा म हाथ घलो बटावंय। बिहनिया प्रेमसुख ह साग भाजी अउ फल के धन्धा करय अउ सांझ कन चउंक म समोसा, आलू गुण्डा बेचे के बूता करय। अब तो इंकर धन्धा ह बढ़िया चले बर धर लिस। पे्रमसुख ह नवरात्रि म हैवी ड्यूटी (मोटर सायकिल) बिसइस तहान फेर धन्धा के रफ्तार बाढ़ गे। बल्दाऊ ह अपन पिता जी के संघर्ष ल देखे रिहिस। ओह बड़े आदमी बने के सपना देखय। तिही पाय के बड़े होय के बाद कांकेर म तीन साल म डबल होय के झांसा दे बर ''मनी फंडÓÓ कंपनी खोलिस। इही ''मनी फंडÓÓ कंपनी के मैनेजर रिहिस बल्दाऊ शर्मा ह। वइसे तो बल्दाऊ के पिता प्रेमसुख ह सरनेम ल विश्वकर्मा लिखय। फेर छत्तीसगढ़ म पंडित मन ल बिक्कट मान-सम्मान मिलथे कहिके बल्दाऊ ह सरनेम ल शर्मा लिखत रिहिसे।

खुमान ह चपरासी ल फेर पूछिस, शर्मा सर अभी ऑफिस म हवय का?

चपरासी-हव, हवय।

खुमान ह कागज म अपन नाम लिख के शर्मा साहब करा चपरासी के हाथ भेजवइस। चिट ल पढ़ के शर्मा साहब ह खुमान ल बलवइस।

खुमान-में आई कम इन सर?

बल्दाऊ-यस, कम इन।

खुमान-जी सर।

बल्दाऊ-बइठ खुमान।

कुर्सी में बइठिस तहान बल्दाऊ ह सब योजना ल बढ़िया से समझा दिस। संगे-संग मासिक जमा योजना ल घलो समझा दिस। बल्दाऊ शर्मा खुमान ल किहिस-तंय जतके जल्दी टारगेट ल पूरा करबे तहान तोला जगदलपुर के ब्रांच मैनेजर बनाहंू। गाड़ी होही, बंगला होही, बढ़िया सुख सुविधा होही। आज घूम-घूम के ग्राहक बनाए बर मिहनत करबे, ओकर फल ह बाद म ब्रांच मैनेजर के रूप म मिलही तहान तहंू ह अइसने एयर कण्डिशन ऑफिस म बइठ के लाइनअप करबे। सब एजेन्ट मन रूपिया धर-धर के तोर ऑफिस पहुंचही।


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तीन


अब तो खुमान ह घलो ''मनी फंडÓÓ कंपनी के बूता म भीड़ गे। खुमान ह गायत्री परिवार वाले रिहिस हे तिही पाय के जान-पहिचान ह बाढ़ गे रिहिस हवय। खुमान ह ''मनी फंडÓÓ कंपनी म रूपिया सकेले के सुरूआत अपन घर ले करिस। भुवन ह खुमान ल पुछिस-''क्लर्क के परीक्षा देवाय बर गे रेहेस, पेपर कइसे बनिस?ÓÓ

खुमान-पेपर ह तो बने गे हे फेर अब मंय नौकरी नइ करंव।

भुवन-काबर?

खुमान-अब मंय ''मनी फंडÓÓ कंपनी म काम करहंू।

भुवन-ए ''मनी फंडÓÓ कंपनी का आय?

खुमान-ए ''मनी फंडÓÓ कंपनी म तीन साल म रूपिया डबल हो जही। अउ हर महीना जमा (मासिक जमा योजना) के घलो योजना हे। वहू म जादा बियाज मिलही।

भुवन-देख बेटा हमला लालच म नइ फंसना हे।

खुमान-त तंय अपन बेटा ल बड़े आदमी बनत देखना नइ चाहत हस।

भुवन-देख बेटा मोर चूंदी ह असइने नइ पाके हवय। तिही पाय के बरजत हवंव।

खुमान-अच्छा त तुमन मोला खुस नइ देखना चाहत हव।

निर्मला-तोला काबर खुस नइ देखना चाहबोन बेटा। तभो ले अपन ददा के बात ल मान ले।

खुमान-सुन दाई, तहंू ह ददा के संग देवत हस। (कहिके खुमान ह खिसिया के निकल गे। खुमान के घर ले निकले के बाद निर्मला ह अपन गोसइया ला समझाथे।)

निर्मला-जवान बेटा आय। दुनो झिन जानत हवन कि आजकल लुटइया मन के खरही गंजाय हे। तभो ले लइका काहत हे ते ओकरो बात ल सुने बर परही।

भुवन-देख अब तिंही सम्हाल। मंय ए सब चक्कर म परे के मूड म नइ हवं। निर्मला ह खुमान के कुरिया म जा के मनाथे। काबर रिसा गेस बेटा। तंय मोला बता, हम्मन ल काय करे बर परही?

भुवन-मोला ''मनी फंडÓÓ कंपनी म जमा करे बर पचास हजार रूपिया चाही।

निर्मला-अतेक अकन रूपिया ल कहां से लानबो, तिंही बता।

खुमान-ददा ल मना न दाई, ओकर करा रूपिया जरूर होही। मंय ह तीन साल म डबल कर के लहुटा दुहूं। (निर्मला ह खुमान के ददा ल समझाथे।)

निर्मला-(भुवन ल) तहंू ह काबर मुहंू ल फूलोए हस? बाप बेटा के एके हाल।

भुवन-अरे, खुमान ह मानबे नइ करत हे।

निर्मला-खुमान ह नइ मानत हवय त तहीं मान जा।

भुवन-काला?

निर्मला-खुमान काहत रिहिसे। ''मनी फंडÓÓ कंपनी ज्वाइन करे बर पचास हजार रूपिया चाही।

भुवन-अतेक रूपिया कहां ले लाबोन निर्मला?

निर्मला-ले ना मोर गाहना गुरिया ल बेंच के दे देथौं।

भुवन-कतेक के हो जही? जादा से जादा 20 हजार के होही।

निर्मला-खुमान के बिहाव पर बैंक म बीस हजार के फिक्स करे हवन ओला तेला टोरवा देथन अउ दस हजार सेठ करा ब्याज म उधार ले लेथन।

भुवन-देख निर्मला, अब तिंही जान। तंय कहिथस ते मंय फिक्स डिपाजिट ल टोरवा देथंव। बाद म मोला कुछु कहिबे झन।

निर्मला ह खुस हो के खुमान करा जा के बताथे-''रूपिया के बेवस्था होगे बेटा।ÓÓ सुन के खुमान ह खुस हो जथे। रूपिया के बेवस्था होय के बाद खुमान ह ''मंनी फंडÓÓ कंपनी जाय बर निकल गे। उहें शर्मा सर संग भेंट करे के बाद पचास हजार रूपिया जमा करिस। बल्दाऊ शर्मा खुश होगे। अरे वाह खुमान, तंय तो बहुत आगू बढ़बे। बल्दाऊ शर्मा ह खुमान ल गिफ्ट के रूप म एक ठन सूटकेस दिस अउ किहिस-अब तंय दौरा म जिंहा भी जाबे इही सूटकेस ल धर के निकले करबे। अब खुमान ह सूटकेस ल धर के घर पहुंचिस त घर म भुवन अउ निर्मला ह खुस होगे। बढ़िया कंपनी आय। एके दिन म सूटकेस दे दिस। अब खुमान धीरे-धीरे चिन्ह-पहिचान, सगा-सोदर मन घर जा-जा के योजना के फायदा बता-बता के गिराहिक बनावत गिस। जउन जेन योजना म फंसे ओला ओइसने योजना के फायदा बता-बता के रूपिया जमा करवावत गिस।

खुमान कस अउ कतनो एजेन्ट रिहिसे, बल्दाऊ के। महीना म लाखों के वसूली होवय। अब तो बल्दाऊ ह प्लाटिंग के घलो धन्धा सुरू कर दिस। बड़े-बड़े राज नेता मन संग घलो पकड़ बना लिस।

खुमान ह कुछ दिन म फटफटी घलो बिसा डरिस। अब तो खुमान ह फटफटी के पिछू केरियर म सूटकेस ल बांध के निकले ते दौरा करके तीन चार दिन म घर लहूटय। बल्दाऊ के चालाकी ह खुमान ल समझ आबे नइ करिस। बल्दाऊ ह जमा पंूजी के एवज म कमीसन के रूप म दस हजार रूपिया खुमान ल दिस। पहिली जऊन रूपिया मिलिस ओला अपन दाई ददा ल दिस। वहू मन खुस हो गे। निर्मला ह भुवन ल कहिथे अब तो खुमान ल महीना म दस हजार रूपिया मिले बर सुरू होगे हवय। खुमान ल बिहाव बर कहिथन। भुवन घलो हामी भर देथे। निर्मला खुमान ल किहिस-''बेटा अब तो तंय कमाए बर धर ले हस। बहू हाथ के पानी पिबोन कहिके गुनत हवन। खुमान कथे-ले ना दाई, योग बनही ते बिहाव घलो हो जही। खुमान जानत रिहिस हे कि खुद ल नौकरी नइ मिलय। फेर पढ़े लिखे पत्नी लाहंू तेला नौकरी करवाहंू। बात ल भले उपक के नइ बोलिस फेर ए बात ल जरूर समझत रिहिसे कि जब दुनो झन कमाबोन तहान हमर आर्थिक स्थिति मजबूत होही कहिके।ÓÓ

खुमान बोले कम फेर दिमाक जादा लगावय। भुवन के खानदान पूरा करियच्च करिया रिहिसे तिही पाय के इंकर घर म संबंध बड़ा मुसकिल म जुड़य। खुमान घलो कोइला खदान कस बिलवा रिहिस हवय। तिही पाय के खुमान घलो जानत रिहिसे कि पड़री लड़की ह तो मोला पसंद नइ करही। कारी गोसइन ल घलो चलाय बर परही। बस पढ़े-लिखे राहय। वंश ह भले करिया रही फेर घर म गियान के तो अंजोर बगरही।

अब खुमान ह रात-दिन ग्राहक खोजे बर भीड़ गे। धीरे-धीरे एकरो एजेन्ट बाढ़त गिस। ओकर मन ह घर के काम बूता म लगबे नइ करय। अब तो वसूली बर टाई कोट पहिर के सूटकेस धर के फटफटी म बइठ के दौरा म निकल जय। ''मनी फंडÓÓ कंपनी बर रूपिया वसूले के संगे संग अपन बर लड़की घलो खोजय। एक पंथ दू काज। एक दिन गरियाबंद वाले फूफा घर ''मनी फंडÓÓ कंपनी के काम से गिस। पहुंचत-पहुंचत रात हो गे। खाना खा के सुत गे। बिहनिया चाहा पियत-पियत खुमान ह ''मनी फंडÓÓ कंपनी के फायदा ल बतइस। फूफा जानत रिहिस हे अइसन कंपनी भरोसा के लइक नइ राहय। फेर खुमान के बात ल राखे बर बीस हजार ''मनी फंडÓÓ कंपनी म इन्वेस्ट कर दिस। खुमान खुस हो गे। खुमान ल सगा सगा घर अउ गायत्री परिवार ले जुड़े चिन्ह पहिचान वाले मन करा जावय। सगा सोदर अउ चिन्ह पहिचान वाले मन खुमान के बात ल राखे बर थोर बहुत ''मनी फंडÓÓ म इन्वेस्ट कर देवय। गोठबात के दौरान खुमान के फूफा ह पुछीस-कस खुमान बिहाव करे के का बिचार हे। तोर ददा केहे रिहिसे तोर बर लड़की खोजबे कहिके।

खुमान-मोला कोन लड़की पसंद करही?

फूफा-काबर?

खुमान-मय तो निच्चट बिलवा हवं।

फूफा-अरे आजकल रंग रूप संग बिहाव नइ होवय। लड़का के कमई ल देखथे-कमई।

खुमान-तभो ले।

फूफा-तभो ले का, तोर आमदनी कतना हे?

खुमान-उही लगभग आठ-दस हजार महीना मिल जथे।

फूफा-अरे भई, तंय का नौकरी वाले ले कम हवस।

खुमान-वो तो सब ठीक हवय। आप देखव मोर बर लड़की।

फूफा-देख का, देख डरे हवंव।

खुमान-कोन गांव के आय?

फूफा-नवागांव के आय। तुंहर जोड़ी सुग्घर फभही। लड़की ह तोरे कस कारी हवय।

खुमान-त काय पढ़े हे?

फूफा-एम.ए. करके बी.एड. करइया हवय।

फूफा के बात ल सुन के खुमान खुस हो गे। फूफा ह खुमान के रूझान ल देख के किहिस-कइसे काली जाबोन का? बता वइसे वहू मन गायत्री परिवार वाले आय। आठ-दस एकड़ जमीन घलो हवय। खुमान ह अपन फूफा के बात ल सुन के हव कहि दिस। खुमान कथे-ले न फूफा तिहीं ह बात चला। फूफा कथे-अरे भई पहिली लड़की ल देख तो ले ताहन फेर गोठबात ल आगू बढ़ाहंू। पहिली तोला मन तो आना चाही। उही डाहर तोर बर एकाद झिन ''मनी फंडÓÓ कंपनी बर गिराहिक घलो मिल जही। गिराहिक वाले बात ल सुन के खुमान ह हव कहि देथे। अरे हां उहें तो गायत्री यज्ञ के आयोजन घलो हवय। नेवता पठोय हवय। मंय तो तोर ददा ल बताय रेहेंवे। गायत्री यज्ञ म संघरबोन अउ इही बहाना लड़की ल घलो देख लेबोन कहिके। फेर तोर ददा के जवाब नइ अइस। अब तंय आ गे हस तब चल दुनो झिन चल देथन। संबंध ह जुड़ जतिस ते बने हो जतिस। तहंू मन गायत्री परिवार वाले अव अउ वहू मन गायत्री परिवार वाले आय।

एती रामनाथ ह गायत्री यज्ञ के तइयारी म भीड़े रहिथे। माईलोगन मन घरो-घर के करसा ल सकेल डरे रिहिन हे। उही करसा के चाउंर ले यज्ञ म भण्डारा के आयोजन होथे। ए सब केकती के सियानी म सब चलत रिहिसे। सरला के अगुवई म कलस सजई ह चलत रिहिसे। ओती कुबेर ह यज्ञ के मंडप डाहर अपन संगवारी मन संग भीड़े रिहिसे। अब यज्ञ म गायत्री परिवार वाले मन के आना जाना सुरू हो गे। गाड़ी मन ल रखे बर पार्किंग के बेवस्था रिहिसे।

खुमान ह घलो अपन फूफा ल फटफटी म बइठार के नवागांव पहुंचिस। खुमान अउ ओकर फूफा ह गायत्री मंत्र लिखाय वाले मशाल के छापा वाले पिंयर रंग के झोरा अरो के पहुंचिन। झोरा म अखण्ड ज्योति के किताब घलो धरे रिहिन हे। थोरको कोनो करा समय मिल जतिस ते पत्रिका ल पढ़य अउ अखण्ड ज्योति के सदस्य मन ल घलो घर-घर बांटय। नवागांव म यज्ञ बड़ा धूमधाम ले संपन्न होइस। दिन भर पूरा वातावरन ह गायत्री महामंत्र ''ऊं भुर्भुव: स्व: तस्येवतुवरेण भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।ÓÓ ले गुंजत रिहिसे। कार्यक्रम सम्पन्न होय के बाद खुमान अपन फूफा के संग भुवन घर गिन। दिन भर के कार्यक्रम म सब थके मांदे रिहिन हे। खाना खा के सब झिन सूत गे। सब झिन के एक्के नींद होइस।

बिहनिया केकती ह तो जल्दी उठगे, उठे के बाद सरला ल घलो उठइस। महतारी बेटी मिलके घर के अंगना दुआरी ल बाहरिन बटोरिन। कोठा के गोबर कचरा करिन। रामनाथ ह सगा मन ल चाहा पिया के फ्रेस होय बर किहिस। खुमान के फूफा के नाम सुधीर रिहिसे। रामनाथ किहिस-''लेव शौचालय म फ्रेस हो के बाथरूम म नहा खोर लव। रामनाथ ह धार्मिक प्रवृत्ति के तो रहिबे करे रिहिसे संगे-संग महात्मा गांधी ल अपन आदर्श मानय। स्वच्छ भारत के ओकर सपना ल सिरतोन करे बर किरिया खाय रिहिस। सरकारी योजना म तो गांव गांव शौचालय बनगे रिहिसे। रामनाथ ह सम्पन्न रिहिस हे उही पाय के अपना खरचा म बढ़िया बाथरूम अउ शौचालय बनवाय रिहिस हे। अंगना के कोंटा म बोर घलो करवा ले रिहिस हे। तिही पाय के अब घर के कोनो सदस्य ल बाहिर बट्टा बर तरिया जाय के जरूरत नइ परय। रामनाथ उन्नत कृषक रिहिस हे। ग्राम विस्तार अधिकारी संग बढ़िया सम्बन्ध रिहिसे। ओकर सलाह मसविरा ले बारो महीना मौसम के हिसाब ले फसल लेवय। साग भाजी के डपट के उत्पादन लेवय। कृषि मेला रायपुर म प्रदेश के सम्मानीय मुख्यमंत्री ह रामनाथ ल उन्नत कृषक के रूप म सम्मानित घलो करे रिहिस। सरला ह नासता पोहा बनइस।ÓÓ

बइठक खोली म रामनाथ, सुधीर, खुमान अउ कुबेर ह नहा खोर के तइयार हो के बइठे रिहिन हवय। सरला ह ट्रे म गिलास ल रख के सब झिन बर पहिली पानी लइस तहान पोहा देवत गिस। पोहा के उप्पर म बारिक सेव घलो छींच दे रिहिस हवय। प्लेट म गोंदली अउ हरियर मिरची घलो सोभा देवत रिहिस हवय। जउन ल खाय के साध लागही ओह खा लिही। पोहा खावत-खावत खुमान ह सुधीर ल किहिस-सरला बर लड़का देखते नही ग?

सुधीर-देख डरे हवं।

रामनाथ-कहां के आय?

सुधीर-कांकेर के आय।

रामनाथ-का करथे लड़का ह?

सुधीर-देख भई सरकारी नौकरी वाले कहिबे त तो वोह नौकरी म नइहे फेर नौकरी वाले मन ले कम घलो नइ हे।

रामनाथ-कइसे?

सुधीर-ओकर आमदनी ह दस हजार महीना हवय।

रामनाथ-त ओह का काम करथे?

सुधीर-ओह ''मनी फंडÓÓ कंपनी के जगदलपुर ब्रांच म काम करथे।

रामनाथ-त बात ल चलाते नही।

सुधीर-बात ह चलगे हवय।

रामनाथ-ले त लड़का ल कब पठोबे? सरला ल देखे बर।

सुधीर-कब पठोबे का, आगू म बइठे हवय।

रामनाथ-अच्छा त इही लड़का आय।

सुधीर-हव

रामनाथ-त काय पढ़े हस बाबू?

खुमान-गे्रजुवेट हवं।

सुधीर-अब नाश्ता पानी कर डरेन। इही बहाना सरला ल देखना घलो रिहिस हे। अब हम्मन ल बिदा देवव, दुरिहा जाना हे।

रामनाथ-अइसे कइसे चल दुहू। मंय खाना जल्दी बनाय बर कहि दे हवं।

गोठ बात करके बखरी डाहर घुम के आवत ले खाना बनगे रिहिस हे। खाना खा के खुमान अउ सुधीर घर जाय के तइयारी करत रिहिन। सगा मन के बिदा करे के बेर केकती अउ सरला पाय पलागी करिस। खुमान घलो रामनाथ फूफा, केकती अउ कुबेर के पांव परिस। जाय के बेर सुधीर ह रामनाथ ल कथे अपन मोबाइल नम्बर दे दे। रामनाथ ह सुधीर ल कथे तहंू अपन मोबाइल नम्बर दे दे तहान मोबाइल म ही दुनो झिन गोठ बात कर लेबोन। दुनो ह कांकेर जाय बर लहूट गे। पहिली तो खुमान ह अपन फूफा ल छोड़े बर गरियाबंद गिस। पहुंचत ले रतिहा हो गे। खुमान ह रतिहा ल उहें ढारिस। रतिहा गोठ बात होइस-

सुधीर-कइसे खुमान लड़की जमिस?

खुमान-लड़की तो पढ़े लिखे हे अउ एसो ओकर बी.एड. घलो पूरा हो जही। मन तो आ गे हवय।

सुधीर-त ओ डाहर ले पूछही त हव कहि दुहूं का?

खुमान-पहिली ददा ल पूछ लेबे, फूफा ओकर बाद हव कहिबे।

सुधीर-तोर ददा ल तो मंय सम्हाल लुहूं। पहिली तंय बता तोला जमिस ते नही, सरला ह।

खुमान-मोला तो पसंद हे। मंय तो अइसने पढ़े-लिखे लड़की खोजत रेहेंव।

सुधीर-चल अब रात जादा होगे हे अउ थके मांदे घलो हवन। सुत जथन।

बिहनिया ले उठ के खुमान ह कांकेर जाय बर फटफटी म निकल गे। बिहनिया ले नहा खोर डरे रिहिसे। बीच के होटल बासा म नासता करत ओह संझा कना कांकेर पहुंच गे। खुमान ह अपन फूफा सुधीर ल घलो कस्टमर बना डरे रिहिस। ओकरो करा ले बीस हजार रूपिया जमा करवा डरे रिहिसे। तीन साल के स्कीम म सुधीर घलो इन्वेस्ट कर दिस। अतका जल्दी बैंक तो घलो डबल नइ करय कहिके। सुधीर ह मने मन बिक्कट खुस राहय ए सोच के कि रूपिया घलो डबल हो जही अउ मोर हाथ ले खुमान के रिसता जुड़ जही ते पुन के काम घलो हो जही। खुमान जेला-जेला मेम्बर बनावय वहू मन ल एजेन्ट बने बर प्रेरित करय। खुमान के फूफा घलो कमीसन के लालच म जादा से जादा मेम्बर बनाना शुरू कर दिस।


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चार


सगा मन के जाय के बाद रामनाथ केकती सरला अउ कुबेर संझा कन एके जघा बइठ के गोठियावत-बतावत रिहिन हवय। रामनाथ ह किहिस-''धरम के काम ह कभू अबिरथ नइ जावय।ÓÓ देख न गायत्री माता ह सरला बर सगा भेज दिस।

केकती-ठऊंका काहत हवस सरला के बाबू।

कुबेर-माता रानी के किरपा हमेसा ले हमन मन उपर बने हवय। कइसे सरला?

सरला-हव भइया।

कुबेर-त लड़का तोला पसंद हे? (सरला लजा के रेंगे देथे।)

रामनाथ-त सरला डाहर ले ओ के मान लेथन।

केकती-वो तो ठीक हे फेर पहिली ओ डाहर ले तो जवाब आवन दे।

रामनाथ-बने काहत हस केकती। फेर एक जवाब तो यहू डाहर बांचे हे।

केकती-काकर?

रामनाथ-सरला के।

केकती-ले न मंय पुछू लुहूं। फेर तंय कुबेर ल पुछ न, ओकरो बर बहू खोजन।

रामनाथ-कइसे कुबेर?

कुबेर-पहिली सरला बहिनी के तय होवन दे तहान मोर बर खोज लेबोन।

रामनाथ-लड़की खोजई ह गरूवा खोजई आय। चार जघा घुमबे-फिरबे त पता चलथे।

कुबेर-ले त फेर कुछु नइ होवय। अभी नइ मिलही ते अवइया बछर बिहाव ल कर लेबोन फेर सरला के बिहाव ल एसो नइ रोकन।

केकती-बने काहत हे कुबेर ह। बेटा जात के का, ए साल नही ते पउर साल कर देबोन। तभो ले सरला बर गोठ बात चलावत-चलावत कुबेर बर घलो बहू खोजे बर काली निकल जव।

रामनाथ-तोर दाई बने काहत हे बेटा। काहे कि सरला के जाय के बाद घर ह सुन्ना-सुन्ना लागही। बहू आ जतिस ते तोर महतारी ल काम बूता बर हल्का हो जतिस।

केकती-बने काहत हस सरला के बाबू।

कुबेर-लड़की देखे बर अभी मंय नइ जावंव। सियान मन पहिली देख के आ जावय तहान मंय चल दुहूं।

केकती-बने काहत हस बेटा। सियान मन ल पहिली लड़की देख के आवन दे तहान तंय देखे बर चल देबे।

रामनाथ ह बिहान दिन अपन संगवारी गोबिंद संग लड़की देखे बर निकल गे। दिन भर ए गांव ले वो गांव घुमिन। घुम के अइन त केकती ह पुछिस-''कइसे जमिस का?ÓÓ

रामनाथ-खाय के थोरे आय तेमे एके दिन म जम जही।

दू-चार दिन रामनाथ अउ गोबिंद ह कुबेर बर लड़की खोजे बर घुमीन फेर सीध नइ परत रिहिस। ओइसने म एक दिन सुधीर के फोन अइस-

सुधीर-हलो!

रामनाथ-हलो!

सुधीर-मंय सुधीर बोलत हवं।

रामनाथ-जै जोहर सगा!

सुधीर-जै जोहार!

रामनाथ-बोलव सगा।

सुधीर-हम्मन ल तो सरला पसंद हे। आप मन के का विचार हवय?

रामनाथ-हमु मन ल खुमान पसंद हे फेर।

सुधीर-का फेर?

रामनाथ-बेटा बर घलो जम जतिस ते एके संघरा बिहाव ल निपटा देतेंन कहिके गुनत हवन।

सुधीर-फेर हम्मन तो अक्ती भांवर लेबोन कहिके गुनत हवन।

रामनाथ-ठीक हे जी सगा। दू-चार दिन कुबेर बर अऊ किंजर लेथंव।

सुधीर-त रिसता ल तय मानन।

रामनाथ-मंय आप ल चार दिन के बाद फोन लगावत हवं।

सुधीर-ठीक के।

रामनाथ-जै जोहार!

सुधीर-जै जोहार!

रामनाथ अउ गोबिंद दुनो झिन दू-चार दिन लड़की खोजे बर निकलिन। फेर जइसन चाहत रिहिन हे ओइसन नइ मिल पावत रिहिस। घर म सबो झिन बइठ के सलाह मसविरा होइन।

रामनाथ-कइसे करबो केकती? कुबेर बर तो लड़की जमत नइ हे।

केकती-इही ल तो मंय पहिली ले केहे रेहेंव, पहिली ले आरो करत रहिथन कहिके फेर नइ मानेव।

रामनाथ-मंय ह तो राजी रेहेंव फेर कुबेर ह रोक दिस। अब तिंही बता गोबिंद मंय का करंव?

गोबिंद-कइसे कुबेर का करे जाय?

कुबेर-एमा का करे जाय के बाते नइहे कका। आप मन तो सियान अव, जइसन चाहव निरनय ले सकथव। फेर मेंह चाहत हवं-''मोर बर नइ जमत हे त एसो सरला बहिनी के बिहाव ल निपटा देथन।ÓÓ अवइया साल देखबोन मोर बिहाव ल।

केकती-सगा मन ल मनातेव नही, कुबेर के रिसता तय होही तहान संघरा बिहाव ल कर देबोन कहिके।

रामनाथ-फेर सगा मन तो अक्ति भांवर लेबोन काहत हे।

गोबिंद-अब ए रिसता ल छोड़ना घलो ठीक नइ हे। लड़का घलो ठीक हे अउ घर घरायेन घलो ठीक हे।

रामनाथ-कइसे करबो केकती?

केकती-अइसे करन। सगा मन ल हव कहि देथन। इही बीच म कुबेर बर जम जही ते संघेर देबोन। नही ते सरला भर के बिहाव ल करबोन।

कुबेर-दाई ह बने काहत हे।

रामनाथ-कइसे गोबिंद?

गोबिंद-भउजी बने काहत हवय भइया।

दू-चार दिन बहू खोजे बर घूमे के बाद फेर सबो झन बइठिन। बइठ के सुन्ता सलाह करिन।

रामनाथ-अब आखिरी निरनय बताव, का करे जाय? कुबेर बर लड़की जम्बे नइ करत हे।

केकती-अब अइसे करथन तइयारी म घलो समय लगही। कुबेर के बिहाव ल अवइया साल करबोन। सरला के भांवर ल अक्ति म देबोन कहिके सगा मन ल खबर कर देवव।

रामनाथ-कइसे कुबेर?

कुबेर-एकर ले बढ़िया बात अउ का हो सकथे।

रामनाथ-कइसे गोबिंद। बात ह जमत हे।

गोबिंद-बिल्कुल भइया।

रामनाथ-त सगा मन ल फोन लगा दवं।

गोबिंद-लगा दे।

जइसने रामनाथ फोन लगाय बर मोबाइल ल धरथे ठउंका ओतके बेर लड़का पक्ष वाले मन के फोन आ जथे।

रामनाथ-हलो!

सुधीर-जै जोहार सगा!

रामनाथ-जै जोहार, जै जोहार!

सुधीर-सब बने बने हे।

रामनाथ-हव, सब बने बने हे।

सुधीर-आप मन के बिचार जाने बर फोन करे हवं, का सोंचे हव?

रामनाथ-हमर डाहर ले तो पहिलिच ले हां हे सगा। भइगे एसो सरला भर के बिहाव करबोन।

सुधीर-त अपन लड़का बर तो बहू खोजत रेहेव, का होइस?

रामनाथ-खोजे बर खोजेन फेर अइसे लागत हे एसो ओकर बिहाव के योग नइ हे तइसे लागत हे।

सुधीर-त फेर अक्ति भांवर के हिसाब ले पंडित करा दिन बादर ल धरवा लेथन।

रामनाथ-हव सगा।

सुधीर-ले त फेर अब तइयारी म भीड़ जथन। जै जोहार!

रामनाथ-जै जोहार!

सुधीर ह जै जोहार कहिके फोन ल काटथे। सुधीर ह सबो खबर ल भुवन ल बता देथे। अब भुवन ह ए खुसखबरी ल अपन परिवार वाले मन ल बतइस। सब झिन खुश हो गे। भुवन ह निर्मला ल खुस हो के किहिस-''गायत्री माता के किरपा ले एसो बहू हाथ के पानी पिये बर मिल जही।ÓÓ

निर्मला-बने काहत हवस खुमान के बाबू, खुमान के एसो बिहाव होही तहान एक साल बाद नाती खेलाबोन।

भुवन-तहंू निर्मला, अभी कुछु न कहीं अउ छ_ी बर दार भात।

निर्मला-चलव खाना खाय के बेरा हो गे हे। ए लव खाय बर पानी। (खाना खाय के बाद जुग जोड़ी बिहाव के जोरा बर सुन्ता सलाह होवत रिहिस। बहू बर गाहना गुरिया, सगा सोदर मन बर कपड़ा लत्था कस कतनो समान के जोरा बर गुनत रिहिन।)

भुवन ह बड़े बेटा के बिहाव करत रिहिस हे। घर म भारी उमंग रिहिसे। सब झन मिल के एक दिन कपड़ा लत्था बर गिन। बिहान दिन रामनाथ अउ निर्मला ह बहू बर गाहना गुरिया बिसाय बर गिन। धीरे धीरे करके करसा-कलौरी, तेल-हरदी कस अऊ कतनो समान के तइयारी करिन। बर बिहाव सुरू होगे। सगा सोदर, हितु पिरूतु मन सकलागे। भुवन ह अक्ति के दिन बरात धर के नवागांव गिस। खुमान ह राजा राम कस दूल्हा दिखत रिहिसे। अक्ति भांवर ले के राजा राम कस खुमान ह सीता कस सरला ल बिहा के कांकेर लहुटिन। वधु पक्ष वाले मन बेटी बिदाई के नेंग ल घलो निभा दे रिहिन हे। सरला के बिदा करे के बाद रामनाथ के घर ह उदास रिहिस फेर बहू ल बिदा करा के लेगे के बाद भुवन के घर म खुशी के भण्डार रिहिसे।


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पांच


सरला ल बहू के रूप म पा के ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये के साध ह भुवन अउ निर्मला के पूरा हो गे। धीरे-धीरे सरला ह अपन घर गृहस्थी म रम गे। खुमान घलो अपन ''मनी फंडÓÓ इन्वेस्टमेंट कंपनी बर वसूली म भीड़ गे। खाना ऊ खा के बिहनिया ले निकलय ते रतिहा तक घर पहुंचय। निर्मला ह सरला ल संग म रेंगावत बाजार हाट जावय। ताकि सबो गली खोर ल जान डरय। अपन जिगनी के रद्दा ल देख डरय। भुवन ह घलो गायत्री मिशन म भीड़ गे। सरला कस बहू पाके मने मन खुस राहय। सरला के ननंद कविता ह घलो अपन पढ़ाई-खिलाई म लग गे। दीपक ह उतलंगहा बानी के रिहिस हवय। ओकर मन ह पढ़ई-लिखई म कम अउ नचई-कुदई म जादा राहय। कतनो घांव गुरूजी के सिकायत घलो आवय। भुवन ह दीपक ल बिक्कट समझावय-''नाचा-कुदा म पेट नइ भरय बेटा, बने पढ़-लिख के अपन जीनगी ल संवार ले।ÓÓ भुवन ह देखे रिहिसे कलाकारी के चक्कर म बड़े-बड़े मालगुजार मन ल बरबाद होवत। भुवन ह एक दिन महासिंग दाऊ करा भेंट करे बर गिस। भुवन ल चाहा पानी पियावत पूछिस-''कइसे का करत हवस अभी?ÓÓ

भुवन-मंय तो गायत्री मिसन म जुड़े हवं। गायत्री यज्ञ के कार्यक्रम म दुरूग आय रेहेंव। दुरूग के आय-आय आप के असीस ले लेथंव कहिके आप करा आय हवं।

महासिंग-बने करे।

भुवन-खुमान के बिहाव नेवता पठोय रेहेंव। आप नइ आयेव दाऊ जी?

महासिंग-उही दिन सोनहा बिहान के कार्यक्रम लगे रिहिसे तिही पाय के नइ आ पायेंव। अउ खुमान ह का करत हवय?

भुवन-ओह ''मनी फंडÓÓ कंपनी म भीड़े रहिथे।

महासिंग-देख के खुमान ल समझा दे रहिबे। आजकल नकली कंपनी उतरगे हे। अऊ तोर का बिचार हे?

भुवन-मंय सोचत हवं, कांकेर डाहर के कलाकार मन ल सकेल के एक ठन सांस्कृतिक पार्टी चलाहूं कहिके गुनत हवं।

महासिंग-तंय अइसन गलत बूता झन करबे। एक घांव छेरी चरा लेबे फेर नाचा-कुदा पार्टी झन चलाबे।

भुवन-काबर दाऊ जी?

महासिंग-एक घांव मेचका ल तउल सकथस फेर कलाकार मन ल सकेलना बड़ मुसकुल हे। कलाकार मन के मारे तन, मन अउ धन घलो बरबाद हो जथे।

भुवन-बने रद्दा बता देव दाऊ जी।

महासिंग के बात ह भुवन ल सुरता रिहिसे तिही पाय के घेरी-बेरी दीपक ल समझावय। फेर दीपक ल तो बांसुरी बजाय के चस्का लगे रिहिस। सरला ह ओ घर बर नवा-नवा रिहिसे। सरला ह सब झन के गोठ बात ल सुनत राहय। सब झन के व्यवहार ल समझत राहय। उंकर सुभाव ल समझ के सबो के सेवा भाव म लगे राहय। खुमान ह ''मनी फंडÓÓ कंपनी बर बिक्कट अकन रूपिया सकेल के जमा करवा डरे रिहिसे। अब तो खुमान के रहन-सहन म भारी बदलाव आ गे। खुमान ह सुटबूट पहिरे राहय। बूट ल बराबर पालिस करके घर ले निकलय। खुमान ह जगदलपुर ब्रांच के ब्रांच मैनेजर होगे रिहिसे। खुमान के अण्डर म कतनो एजेन्ट मन काम करत रिहिन। घर के विकास ह घलो दिखत रिहिसे। पति के कमई ले पत्नी के सान बाढ़थे। खुमान ह सरला के सबो इच्छा ल पूरा करय। वइसे भी सरला ह नाम के मुताबिक सरल रिहिस। बी.एड. के रिजल्ट घलो आ गे। वहू म सरला ह फर्स्ट डिवजन म पास हो गे। घर म खुसी के माहौल रिहिस हे। घर म अखबार घलो आवय। छत्तीसगढ़ शासन के शिक्षा विभाग ह कांकेर जिला म पंचायत शिक्षाकर्मी बर विज्ञापन निकाले रिहिस। ए विज्ञापन म खुमान के नजर परगे। खुमान ह खुसी-खुसी विज्ञापन ल सरला ल बतइस। सरला तो चाहते रिहिस कि मोला नौकरी करना हे कहिके। विज्ञापन ल देख के सरला के चेहरा म उमंग के लहरा दउंड़ गे।

सरला वइसे भी फर्स्ट क्लास पोस्ट ग्रेजुएट पास होय रिहिसे तिही पाय के ओकर नियुक्ति म जादा परेसानी नइ होइस। पहिलिच्च लिस्ट म ओकर मेरिट के अधार म सलेक्सन हो गे। सरला के पोस्टिंग कांकेर तीर पटौद गांव के हाईस्कूल म हो गे। अब तो घर म इनकम के साधन अउ बाढ़गे। सब झिन सुख सांति ले राहन लागिस। फेर एके ठन तकलीफ रिहिसे-''सरला ह कांकेर म रिहिस अउ खुमान ह जगदलपुर म। हप्ता पुट खुमान ह कांकेर आवत रिहिस। फेर अब रांधे गढ़े बर थोकिन तकलीफ होवत रिहिसे खुमान ल। सरला बर स्कूटी ले दिस। सरला ह स्कूटी म कांकेर ले पटौद पढ़ाय बर जावय। एक दिन खुमान ह सरला ल किहिस-अब अइसे करथंव सरला, तोर पोस्टिंग ल जगदलपुर म करवाए के कोसिस करथंव ताकि दुनो झिन एके जघा जगदलपुर म रहितेन।ÓÓ सरला बहुत समझदार नारी रिहिस। खुमान के बात ल सुन के सरला कहिथे-''मंय जब जगदलपुर चल दुहूं त फेर इहां घर ल कोन देखही? सास ससुर के देख रेख कोन करही?ÓÓ कविता के पढ़ई ल कोन देखही? अउ फेर देवर बाबू के चाल ल तो जानथेच हस। घुमक्कड़ आय घुमक्कड़। सरला ह खुमान ल कहिथे एक काम कर तंय ह कांकेर म आ ज। खुमान कथे-एह तो नइ हो सकय। सरला कथे-एक काम करथन ननंद अउ देवर के भविष्य ल संवार देथन तहान तंय जइसन कहिबे ओइसन बेवस्था बना लेबोन। खुमान ल घलो ए बात जंचगे।

ओकर बाद खुमान अउ सरला घर के विकास म लगगे। सरला ह अपन ननंद कविता ल पढ़े बर प्रेरित करिस। कविता ह घलो बढ़िया पढ़े-लिखे बर मन लगइस। दीपक ल घलो पढ़े लिखे अउ आगू बढ़े बर प्रोत्साहित करिस। सरला ह कविता ल काहय-''तंय पढ़ई-लिखई म जादा धियान दे, काम बूता ल मोर उपर छोड़े दे कर।ÓÓ अब खुमान के घर बल्दाऊ के आना-जाना बाढ़ गे। कभू काम के बहाना त कभू कुछु बहाना। सरला घर काम कर के अपन सास ससुर के घलो बिक्कट सेवा करय। भुवन अउ निर्मला बहू के सेवा सटका ले अब्बड़ खुस रहय। ईश्वर के किरपा ल कोन जानथे। भगवान ह सरला ल चिन्ह दिस। ए बात के आरो जब खुमान ल होइस त किलो भर मोतीचूर के लाड़ू लान के घर म खुसी मनाय रिहिन। अब तो निर्मला ह घलो काम बूता म हाथ बटावन लागत रिहिसे। तभो ले सरला ह अपन सास ल जादा काम करन नइ देवय। काबर कि ओकर महतारी बाप मन केहे रिहिसे। ''तोर सास ससुर के बने सेवा करबे बेटी कहिके।ÓÓ अऊ यहू केहे रिहिसे कि ओ घर ले मर के निकलबे फेर जियत झन निकलबे। सरला अपन महतारी बाप के मंत्र ल गांठ बांध के रखे रिहिसे।

कविता पढ़ लिख के हुसियार हो गे रिहिस हे। सरला ह कविता ल ओकर जनम दिन म मोबाइल गिफ्ट करिस। मोबाइल दे के बाद सरला ह कविता ल किहिस-''दिन भर मोबाइल म झन लगे रहिबे। जतना जरूरत हे ओतने उपयोग करबे। कविता घलो अपन भउजी ल भरोसा देवइस, हव भउजी महंू ह ए मोबाइल के उपयोग जतना जरूरत रही ओतने करहूं।ÓÓ फेर मोबाइल तो अइसे नसा आय कि कोनो ल एक घांव नसा लग गे तहान का पूछबे।

अब सरला मने मन गुनय। कविता बर घलो बने सरिख लड़का मिल जतिस ले ओकर बढ़िया धूमधाम ले बिहाव कर देतेन। सरला एक दिन अपन ननंद ल किहिस-''अब तोरो घर ल बसा देतेन काहत रिहिस मां-बाबू ह, त तोर का विचार हे?ÓÓ कविता किहिस-अभी मंय ह बिहाव के मुड म नइ हवं। मोरो मन ह आपे कस नौकरी करे के बिचार हे फेर अभी तो भतीजा घलो खेलाय बर हे। सरला किहिस-तहंू कविता।

सनिच्चर के खुमान ह जगदलपुर ले कांकेर अइस। रतिहा सरला ह अपन गोसइया ल किहिस-सुनत हस जी।

खुमान-हव, बता का बात आय?

सरला-मंय कविता ल बिहाव बर काहत रहेेंव।

खुमान-त कविता ह काय किहिस?

सरला-कविता काहत रिहिसे, जाब के तइयारी करहंू कहिके।

खुमान-तोर का बिचार हे?

सरला-कविता बर घलो कोनो करा नौकरी के बेवस्था हो जतिस ते बढ़िया रिहिस।

खुमान-त बिहाव के?

सरला-नौकरी के बेवस्था हो जही तहान बिहाव के योग घलो बन जही।

खुमान-ले त विज्ञापन देखत रहिबे। ओकर लइक वेकेन्सी निकलही तहान भरवा देबोन।

सरला-बने काहत हस।

खुमान-वइसे मय बल्दाऊ सर से बात करहंू। कांकेर के आफिस म एक झिन क्लर्क के सीट खाली हे काहत रिहिसे।

सरला-पूछ के बताबे।

खुमान-हव, मंय सोचत हवं।

सरला-काय सोंचत हस?

खुमान-आज मंय तोला पिच्चर देखाय बर लेगहंू कहिके।

सरला-कविता अउ दीपक ल

खुमान-हमर बीच म उमन ल कहां ले लेगबो।

सरला-तहंू ह।

खुमान-ले रे भई। वहू मन ल लेग जबो। त दाई ददा ल?

सरला-बहू मन ल लेग जबो।

खुमान-त तिंही बता का पिच्चर देखबोन?

सरला-मोर छईंहा भुइंया।

खुमान-बने काहत हस। बिक्कट हिट चलत हवय। सब झिन ल कहि दे आज पिक्चर देखे बर जाबोन कहिके।

पिक्चर के नाम ल सुन के सब झिन खुस हो जथे। सब झिन तइयार हो जथे। आटो मंगवा के पिक्चर देखे बर गिन। बिक्कट भीड़, बिक्कट भीड़। बड़ा मुसकुल म टिकिट मिले रिहिसे। टाकिज म तीन घंटा कइसे निकलिस पता नइ चलिस। सब झिन हंसी खुसी पिक्चर देख के घर लहुटिन। पिक्चर ल देख के लगिस कि अब अपन छईंहा भुइंया ल छोड़ के पलायन नइ करय। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद सब ल भरोसा होगे अब अपने भुइंया म सब ल रोजगार मिलही। अब तो अपन राज आ गे। अब तो छत्तीसगढ़ म चहुंमुखी विकास होय बर धर लिस। छत्तीसगढ़ म विकास के धारा बोहावत हवय।

एक दिन खुमान ह अपन साहेब बल्दाऊ सर ले बात करिस-सर! कांकेर के आफिस म एक ठन कर्ल्क के पद खाली हे काहत रेहेव।

बल्दाऊ-हव खाली हे।

खुमान-त का डिग्री चाही सर।

बल्दाऊ-डी.सी.ए. के डिप्लोमा चाही। काहे कि एती सब काम ल कम्प्यूटर कृत करवाना चाहत हवं। तोर नजर म कोनो हवय का?

खुमान-जी सर।

बल्दाऊ-कोन आय?

खुमान-मोर बहिनी आय। ग्रेजुवेट के संगे-संग डी.सी.ए. घलो करे हे।

बल्दाऊ-त ठीक हे।

बल्दाऊ के बात ल सुन के खुमान ह खुसी-खुसी घर आथे अउ बताथे कि कविता बर एक ठन जाब मिल गे हे। फेर सरला ह मना कर देथे। अभी एला कोचिंग करवाथन। पी.एस.सी. के तइयारी करवाथन। खुमान अउ सरला मिल के कविता ल पी.एस.सी. के कोचिंग करे बर सलाह देथे तहान कोचिंग सेंटर म ज्वाइन करवा देथे। सरला ह अपन ननंद अउ देवर ल पढ़ाय बर पूरा जान लगा देथे। अपन सउंख ल मार के इंकर मन के पढ़ई लिखई बर खरचा करत रिहिसे।

देखते-देखत सरला के जचकी के समय आ गे। पीरा जनइस तहान घर वाले मन कांकेर के अस्पताल म भरती करिस। सरला ह भले बड़े घर ले आय रिहिसे फेर काम बूता बर कभू जी नइ चोरइस। अम्मल म रिहिसे तभो घर के काम बूता ल करय। कविता घलो संग देवय अउ निर्मला ह तो अपन बहू ल काम धाम बर रोकय तभो ले सरला मानय नही। जतना हो सकय ओतने काम काज म भीड़े राहय तभे तो बिना आपरेशन के नार्मल डिलवरी होइस। डिलवरी निपटे के बाद बेबी ल सब झिन ल देखइस। नर्स किहिस-नोनी आय नोनी। सब झिन खुस होइन। फेर खुमान के चेहरा म ओ खुसी नइ दिखिस जउन दिखना चाही। काबर कि खुमान ह तो लड़का के सपना देखे रिहस हे। फेर परिवार ल एहसास नइ होवन दिस।

बेटी पैदा होय के बाद बाप ल बाप होय के एहसास होथे। उही दिन ले सुभाव म परिवर्तन आ जथे। काबर कि बेटी पैदा होय के बाद बाप ल अइलगे किसम के जिम्मेदारी के एहसास होथे। खुमान ह नर्स ल मिठई खाय बर रूपिया दिस। तहान सब एक-दूसर ल बधाई दिन। अस्पताल म सरला के भरती होय के पहिलिच ओकर दाई ददा मन आ गे रिहिन। छट्ठी बरही निपटिस तहान रामनाथ, केकती अउ कुबेर ह घर लहूटे बर बिदा मांगिन।

सरला अपन महतारी ल किहिस-दू-चार दिन अउ नइ रूक जते दाई। केकती समझावत किहिस-ले न बेटी सेंके चूपरे बर तो तोर सास हवय। तोर बाप अउ भइया बर घरो म तो रांधे-गढ़े बर लागही। सरला समझदार रिहिसे। बने काहत हस दाई। ले त फेर सोर लेवत रहिबे। महतारी मया म किहिस-हव बेटी, रोज के रोज मंय फोन करके तोर आरो लेवत रहंू।

सरला अउ खुमान अपन अपन काम धाम म लग गे। अब तो सरला उपर एक ठन अउ जिम्मेदारी आगे, नोनी के जतन करई ह। निर्मला ह तो बने सेंके चूपरे फेर कहंू न कहंू इंकरो मन ह उदास रहय, नोनी अवतरे के कहिके। काबर कि सोंचे रिहिन हे नाती आही ते छ_ी ल जोरदार मनइंगे कहिके। फेर विधि के रचना के आगू म काकरो थोरे चलथे, नतनीन आगे। सेंके चूपरे के बखत नोनी ह चिरक देवय ते अपन मन के बात ल कहि डरे-''ए घर फूक्कन ह गोड़ ल गइंदला कर दिस कहिके।ÓÓ छ_ी के दिन नोनी के नाम ल सरिता धर डरे रिहिन।

अब तक बल्दाऊ ह बिक्कट सातिर हो गे रिहिसे। लोगन मन ल झांसा दे के कइसे रूपिया अइंठना हे तेला ओह जान डरे रिहिसे। छत्तीसगढ़िया मन परबुधिया होथे। अपन दिमाक तो कभू लगाबे नइ करय। दूसर उपर जल्दी भरोसा कर लेथे। बल्दाऊ के नजर ह जउन घर म किराया म राहत रिहिन हे ओ घर ल हड़पे बर नजर लगे राहय। बल्दाऊ ह हमेशा वकिल मन के सम्पर्क म राहय। बल्दाऊ अब पूरा योजना के साथ काम करना सुरू कर दिस। अपन दाई ददा ल चेता दे रिहिस हवय कि दाऊ जी अउ गउंटनीन के बढ़िया सेवा करके उंकर मन ल जीत लेवव। प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह घलो अपन बेटा के बुध म आके ओइसने करे बर धर लीन। मने मन गुने-''देवी देवता कस दाऊ जी अउ गउंटनीन मन उपर बिसवास घात करना ठीक नइहे कहिके।ÓÓ जब प्रेमसुख अउ फूलबतिया छइंहा बर तरसत रिहिन हे तब दाऊ जी अउ गउंटनीन ह सहारा दे रिहिन हे।

अब तो बल्दाऊ करा भारी रूपिया आ गे। ओह राजनैतिक पकड़ घलो बना ले रिहिस। रूपिया कमाए के ओकर भूख ह दिनो दिन बाढ़त गिस। 'प्रापर्टी डीलरÓ के घलो धन्धा खोल लिस। खुमान घलो खुस रहय। ओला बल्दाऊ के चालबाजी के थोरको अंदाजा नइ रिहिस। सरला ह अपन देवर दीपक ल पढ़े बर प्रेरित करत रिहिस। फेर ओकर मन ह पढ़ई-लिखई म लगबे नइ करय। बल्दाऊ अतेक हुसियार रिहिसे कि ओह जानत रिहिसे कि अब जउन वादा करके रूपिया जमा करवाए रिहिसे ओकर भुगतान करे के दिन ह लकठावत हवय। बल्दाऊ के नजर ह बहुत पहिली ले दाऊ जी के मकान उपर रिहिस हवय। कांकेर के नामी वकिल ल पकड़िस। बल्दाऊ ह सबले पहिली दाऊ जी उपर केस कर दिस। हम्मन ल ए घर म किरायादार के रूप म राहत बहुत दिन हो गे हे तिही पाय के ए घर के मालिकाना हक हमर होना चाही कहिके नोटिस भेजवा दिस। नोटिस ल दाऊ जी ह पढ़िस तहान दंग रहिगे। जिही ल हम्मन तकलिफ के समय दूध पियायेन उही मन अब जहर उगलत हवय। आजकल काकरो उपर आंखी मंूद के भरोसा करना घलो ठीक नइहे। अब दाऊ जी ह पे्रमसुख ल ए बारे में पूछिस।

दाऊ जी-कइसे प्रेमसुख, एक काए ए? एक तो घर के किराया दे बर छोड़ दे हस। उल्टा घर ल हथियाए बर नोटिस भेजवा दे हस।

प्रेमसुख-एमा का गलती हे दाऊ जी? फोकट म थोरे राखे रेहे। किराया तो देवत रेहेन।

दाऊ जी-तंय तो धोखा देवत हवस प्रेमसुख।

प्रेमसुख ह अब साग-भाजी अउ फल-फूल घलो दाऊ जी घर देना बंद कर दिस। दाऊ जी अउ गउंटनीन दुनो झिन रोज इही नाम से किटिर काटर होवय। गउंटनीन ह किहिस-मंय तो तुंहला पहिलिच ले बरजत रेहेंव-''परदेसिया मन उपर जादा भरोसा झन कर दाऊ जी, फेर नइ माने।ÓÓ घर होवय चाहे परिवार सब धोखच्च तो दिन हे। दाऊ जी ह उदास हो के किहिस-भगवान ह हम्मन ल धोखच खाय बर पठोय हवय गउंटनीन। जिंकर-जिंकर उपर भरोसा करेंव, उही-उही मन धोखा दिन। गउंटनीन ह दाऊ जी ल हिम्मत देवावत किहिस-''धोखा दे नइ हे दाऊ जी, धोखा खाय हन। हम्मन लघियात सब ल अपन मान लेथन। ले न अब कइसे करबोन? हमर भाग म तकलिफे लिखाये हवय तेला हम्मन का करबो?ÓÓ

खुमान के बेटी घलो अब मड़ियाय के लइक हो गे। ठुबुक-ठाबक रेंगे बर धर लिस। धीरे धीरे रेंगे बर घलो धर लिस। भुवन ह कोनो डाहर ले आवय त सरिता बर खिलौना लावय। रामनाथ ह गोदी म पा के सरिता ल बिस्कुट खवावत-खवावत खेलावय। सरिता घलो अपन बबा करा जादा जावय। काबर कि ओह खजानी खवाय के टकराहा कर डरे रिहिसे। खुमान ह घलो जगदलपुर ले कांकेर आवय तब सब झिन बर किलो भर मिठई के संगे संग सरिता बर खिलौना बिसा के घलो लावय। सब बढ़िया चलत रिहिस हवय।

बल्दाऊ ह कइसनो कर के मुकदमा ल जीत गे। मनखे के भाग ह कतेक बेर पलट जही तेला कोन जानथे। दाऊ जी ह मुकदमा ल हारे के बाद भारी तनाव म रिहिस हवय। दाऊ जी अउ गउंटनीन ह पहाड़ असन दुख ल नइ सहि सकिस। सियान होगे रिहिन हे। जउन मन ल सहारा बर किराया म रखे रेहेन उही मन हम्मन ल बेसहारा कर दिस कहिके दाऊ जी ह गउंटनीन संग तीरथ धाम म निकल गे। उमन लहूट के कांकेर आबे नइ करिन। अब तो बल्दाऊ ह खुस हो के अपन पिता जी ल किहिस-''अब तो हमर रेहे बसे के बेवस्था हो गे।ÓÓ प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह दाऊ जी अउ गउंटनीन के तीरथ यात्रा गे ले भारी दुखी रिहिन हवय। इमन ल दुखी देख के बल्दाऊ ह पूछिस-तुमन काबर दुखी हव?

प्रेमसुख-देख बेटा भगवान बरोबर संकट के बखत दाऊ जी अउ गउंटनीन ह हमर मन के सहयोग करे रिहिन हे। आज उही मन ल घर ले निकाल देन।

बल्दाऊ-हम्मन निकाले थोरे हवन। उमन खुदे निकल गे हे।

प्रेमसुख-ए सब धोखा आय बेटा।

बल्दाऊ-देखव, छत्तीसगढ़िया मन निच्चट परबुधिया होथे। इमन दिल से काम करथे। दिमाक के कभू काम करबे नइ करय।

प्रेमसुख-दिमाक ले काम लेतीन त हम्मन ल सहारा नइ मिलतिस।

बल्दाऊ-जिंकर कोनो नइ राहय उंकर भगवान होथे।

प्रेमसुख-तंय बने काहत हवस बेटा। इमन हमर मन बर भगवान बरोबर रिहिन हे।

फूलबतिया-तोर बाबू बने काहत हे बल्दाऊ, हम्मन तोर बुध म आ के देवता सरिख दाऊ जी अउ गउंटनीन मन ल धोखा दे दे हवन। हम्मन ल बने नइ लागत हावय।

प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह नइ जानत रिहिन कि बल्दाऊ ह अतेक बड़ कदम उठा डरही। वोकर कहना हे हमरो आंखी म टोपा बंधा गे रिहिसे। फूलबतिया ह बल्दाऊ ल समझावत कथे-तंय दाऊ जी अउ गउंटनीन मन ल खोज के लान अउ केस ल वापिस ले के उंकर घर कुरिया ल लहूटा दे। वइसे भी दाऊ जी अउ गउंटनीन के जाये के बाद तो हमी मन ए घर के मालिक होतेन। फेर तोला तो हड़बड़ी रिहिसे बल्दाऊ। तंय बने नइ करेस। बल्दाऊ किहिस-देखो तुमन ल जउन करना हे ओइसन करव फेर मंय उमन ल खोजे बर नइ जावंव। तुमन ल मना करना रिहिस हे त उही समे मना कर दे रहितेव। फूलबतिया फेर कथे-अइसन धोखा धड़ी के काम झन कर बेटा। अपन मिहनत के कमई ह पुरथे। हमर मन ले इही तो बड़े जन गलती हो गे बल्दाऊ। तोला उही समे बरज देना रिहिसे। महतारी बेटा के गोठ बात ल सुन के प्रेमसुख कथे-भइगे राहन दे फूलबतिया, दाऊ जी अउ गउंटनीन ल हम्मन खोजे बर जाबो। बल्दाऊ खिसिया के किहिस-तुमन ल जउन करना हे ते करव तुंहर धरम करम म मंय नइ पड़ने वाला हवं कहिके अपन कुरिया म चल दिस। बिहनिया बल्दाऊ ह सुत के उठे नइ रिहिसे ओकर पहिली मुंधराहा ले प्रेमसुख अउ फूलबतिया ह दाऊ जी अउ गउंटनीन ल खोजे बर इलाहाबाद बर निकल गे।


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छै


रामनाथ अउ केकती दुनो परानी खेती किसानी के सगे-संग गायत्री मिसन के बूता म लग गे रिहिन। कुबेर ह आधुनिक खेती करे बर बिधुन हो के भीड़े रिहिस। दिन-रात खेती अपन सेती कहिके अपन फारम हाऊस ल सिरजाय म लगे राहय। जानत रिहिस हे कुबेर ह कि अब दाई-ददा सियान उमर म पहुंच गे हे। अब तो सबो काम बूता ल खुदे ल सम्हालना हे कहिके बर बिहाव डाहर धियान नइ देवत रिहिस। केकती अपन बेटा कुबेर ल काहय घलो-''अब तो बिहाव कर ले बेटा।ÓÓ त कुबेर ह हमेसा टार देवत रिहिस। ए पइत गुनमुना के केकती किहिस-घर बूता सम्हाले बर तो एक झिन बहू चाही न कुबेर। कुबेर फेर कहि दिस-''ले न दाई अभी घर के काम काज बर रउतइन लगा लेथन।ÓÓ केकती किहिस-रउतइन ह रउतइन रही, बहू नइ हो सकय। अपन महतारी ल रिसावत देख के ए दरी हामी भर दिस। कुबेर ह किहिस-रिसा झन दाई, मंय थोकिन फारम हाऊस के काम बूता ल देखे बर जावत हवं, तुमन लड़की के आरो करत रहव। जम जही ते तुंहरो ''बहू हाथ के पानीÓÓ पीए के साध ह पूरा हो जही। घर म नवा बहुरिया के आवत ले काम बूता बर रउतइन लगा दिन। सब काम बढ़िया सरके बर धर लिस।

एती खुमान ह घलो ''मनी फंडÓÓ कंपनी म लोगन मन ले लाखो रूपिया जमा करवा डरे रिहिस। अब धीरे-धीरे समय नजदीक आवत रिहिस। जिंकर मन के रूपिया ल तीन साल म डबल करके देना रिहिसे। खुमान ह बल्दाऊ सर करा अब रिपोर्ट देना सुरू कर दिस। खुमान के अण्डर म घलो कतनो एजेन्ट मन काम करत रिहिन। वहू मन अब खुमान ल सुरता कराय बर धर लिन। सर! अब इन्वेस्टर मन के रूपिया ल लहुटाय के बखत आवत हवय। बल्दाऊ के अण्डर म आठ-दस जिला म खुमान कस मैनेजर के रूप म काम करत रिहिन हवय। धीरे-धीरे सबके फोन बल्दाऊ करा आना सुरू होगे। बल्दाऊ समझ गे अब तो फंसना निश्चित हे काबर कि जउन कंपनी के शेयर खरीदे रिहिसे ओह डूबगे। कंपनी के डूबे के संगे-संग बल्दाऊ के सपना घलो डूबे बर धर लिस। अब बल्दाऊ करा ओतना रूपिया नइ रिहिस कि सब ल वापिस कर सकय। कुछ मन धमकी दिस त घर-कुरिया ल बेच भांज के मन मढ़ाय बर थोरिक-थोरिक करके लहुटावत गिस। बल्दाऊ बड़ चतुरा रिहिस अब ओह अपन भागे के जुगाड़ म लगगे। सब झिन के तगादा सुरू होइस तहान बल्दाऊ हलाकान होगे। अब बल्दाऊ ह अपन पंूजी पसरा अउ रूपिया पइसा ल समेट के रातो रात अपन प्रदेस भगा गे। कोनो ल कानो कान आरो नइ लगिस। बिहनिया अखबार के फ्रंट पेज म छपे समाचार पढ़े बर मिलिस-''मनी फंडÓÓ कंपनी के संचालक बल्दाऊ फरार। अब सबो जिला के मैनेजर मन हलाकान हो गे। दिन भर टी वी न्यूज चैनल म प्रसारित होवत रिहिस हवय कि ''मनी फंडÓÓ कंपनी के संचालक करोड़ों के घोटाला करके फरार हो गे हवय। समाचार ल सुन-सुन के अब सब इन्वेस्टर मन अपन-अपन एजेन्ट ल फोन लगईन। एजेन्ट मन अपन-अपन जिला प्रबंधक मन ल फोन घनघनईन। सब झिन ठीक हे न ह, देखत हवन कहिके बात ल सम्हाले ल धरिन। ए समाचार ले खुमान घलो विचलित हो गे।

खुमान के परिवार म घलो उदासी छा गे। अब तो एजेन्ट मन के फोन आना सुरू हो गे। खुमान घलो हलाकान हो गे। जतना झिन खुमान के माध्यम ले इन्वेस्ट करे रिहिन हे वहू मन तगादा सुरू करिन। खुमान ह अपन ससुरार वाले मन ल घलो नइ छोड़े रिहिस। कुबेर ल अपन ग्रीप म ल के ''मनी फंडÓÓ कंपनी म लाखों रूपिया लगवाय रिहिस हवय। कुबेर ह घलो समाचार ल सुन के फोन लगइस। खुमान ह घलो वहू मन ल समझा-बूझा के सांत कर दिस। रामनाथ अउ केकती ह कुबेर ल समझइस कि अब फोन झन करबे बेटा, ए सब कंपनी मन अइसनेच होथे। मंय तो खुमान ल पहिलिच ले चेताए रेहेंव फेर वहू ह नइ मानिस। खुमान ह सब ल केहे रिहिसे मोर उपर भरोसा करव, कंपनी ह रूपिया नइ दिही त मंय ह दुहूं। इही भरोसा म ओकर फूफा घलो धान बेचे रिहिस ते रूपिया ल ''मनी फंडÓÓ कंपनी म लगा दे रिहिसे। खुमान के फूफू ह घलो बिक्कट बरजे रिहिस हवय, तंय ए सब कंपनी म रूपिया झन लगा कहिके। फेर पारिवारिक संबन्ध ल देखत ओकर फूफा ह खुमान के बात ल राखे बर रूपिया लगा दे रिहिसे। वहू ह खुमान ल फोन लगइस, का होइस रूपिया जमा करे रेहेंव तेकर? खुमान ह अपन फूफा ल घलो ले दे के सम्हालिस।

अइसने अब कतनो सदस्य मन वसूली बर खुमान ल तंगाय बर धर लिन। खुमान अब परेशान होय बर धर लिस। सरला ह खुमान के बेचैनी ल समझ गे। काबर कि अब तो सरला ल घलो स्टाफ म ताना मिले बर धर लिस। सरला ल घलो बेकार लगे बर धर लिस। सरला करे तो काय करय। सरला ह मने मन गुनिस, अब तो समाज ह जीना हराम कर दिही। अइसने म सरिता के पापा ह उल्टा-पूल्टा कदम उठा डरही त अउ अलहन हो जही। अब सरला ह परन करिस कि कइसनो करके ए बिपत्ति ले परिवार ल उबारे बर परही। अंधियारी ह हमेसा थोरे रही। आय हवय ते ह जाबे करही। आज दुख हवय त सुख ह आबे करही। फेर अब करे ते करे का जाय। चिंता-फिकर म सरला ह घलो रोहन-बोहन दिखे बर धर लिस। सब झिन के तगादा ल सुन-सुन के सरला के सास के तबियत खराब हो गे। भुवन ल तो बड़ मुसकुल म सम्हाले रिहिन। अब तो का होही तेला भगवाने जाने। सरला ह खुमान ल हलाकान होवत देख के किहिस-''जादा फिकर झन कर सरिता के पापा।ÓÓ

खुमान-कइसे फिकर नइ करंव सरला?

सरला-फिकर करे ले समस्यिा के हल नइ होवय।

खुमान-त काय करंव?

सरला-ओकर बर रद्दा निकाले बर परही।

खुमान-अब तिंही बता, कइसे हल निकाले जाय?

सरला-ले न मंय लोन निकाल लेथंव।

खुमान-लोन भर ले ले का होही? अऊ फेर करजा ले लेबे तहान घर ल कइसे चलाबोन?

सरला-घर के खरचा ल घलो चलाबोन अउ कविता ल पढ़ाबोन घलो।

खुमान-कइसे पढ़ाबे?

सरला-हम्मन अपन इच्छा ल मारबो। अपन अपन फिजूल खरचा ल कम करबोन।

खुमान-तभो ले जउन मन रूपिया लगाय हवय उंकर रूपिया नइ छुटावय।

सरला-सब छुटाही।

खुमान-नइ छुटावय सरला। ताना मरई के मारे अब तो फांसी अरोए के मन करथे।

सरला-का फांसी अरोए ले समस्यिा के निदान हो जही। अभी ननंद ल पढ़ाना हवय अउ दीपक ल घलो पैर म खड़ा करना हवय।

कविता सब बात ल सुनत रिहिस हे। ले न भाभी महंू ह कोचिंग ल बंद कर दुहंू। सरला कथे तोला कोचिंग बंद करे के जरूरत नइ हे। अब सरला ह घर म टिवसन पढ़ाय के घलो सुरू कर दिस। एक दिन मौका देख के निर्मला किहिस मोरो गाहना गुरिया ल बेच के उंकर रूपिया ल लहुटा दव। फेर सरला किहिस-मां! गाहना-गुरिया बेचे भर ले मेम्बर मन के रूपिया के भरपाई नइ हो सकय। त निर्मला कथे-काय करे बर लागही बहू? सरला कथे-कविता के पापा के हिम्मत नइ हे कि आप मन करा कुछु कहि सकय।

निर्मला-त का करे जाय बहू?

सरला-नइ खिसियाबे त तो कहंू। परान ह रही ते धन दउलत ल कमा लेबोन मां जी।

निर्मला-बने फोर के बता बहू।

सरला-काहे कि कविता के पापा ह बहुत झिन के बिक्कट अकन रूपिया ल डुबो डरे हवय।

निर्मला-त उबरे बर का करे बर लागही?

सरला-पांच एकड़ जमीन ल बेच देबोन तहान हमर समस्यिा के समाधान हो जही।

निर्मला-पांच एकड़ जमीन ल बेच देबोन तहान हमर मन बर का बांचही?

सरला-तभो ले दस एकड़ बांच जही मां। अभी तो कम से कम हमर समस्यिा ह हल हो जही।

निर्मला अउ भुवन ह बड़ मुसकुल ले जमीन ल बढ़़ाय रिहिसे। भुइंया बेचे के बात अइस त निर्मला के आंखी ले तरतर-तरतर आंसू निकले बर धर लिस। सरला ह अपन सास के आंसू ल अंचरा म पोंछ के चूप करइस। सरला ल निर्मला किहिस-ले बहू, ए बात ल तोर ससूर करा रखहूं। निर्मला ह भुवन ल किहिस-सुनत हव हो!

भुवन-बता का बात आय?

निर्मला-कइसे निच्चट दिखत हवस? खाना घलो तुंहर टूट गे हवय। दुबरावत घलो हवस।

भुवन-लोगन मन के ताना ले दुबराबे नही त का मोटाबे? ए खुमान ह तो हम्मन ल सड़क म लान दिस।

निर्मला-खुमान के एमा थोरको गलती नइ हे। रूपिया ल कंपनी वाले डूबो दिस तेला खुमान काय करही?

भुवन-त ओला तो हम्मन ल भोगे बर परत हवय।

निर्मला-ए तो सब भगवान के मरजी आय जोड़ी। हो सकथे पीछू जनम म इंकर मन के लागत रेहे होबोन।

भुवन-त ओला छूटबो कइसे?

निर्मला-छूट सकत हवन।

भुवन-कइसे?

निर्मला-केहे के हिम्मत तो नइ होवत हवय, फेर खिसियाबे नही त कइहंव।

भुवन-बोल न बोल, नइ खिसियावंव।

निर्मला-मंय तो सोंचत रेहेंव।

भुवन-का सोंचत हस?

निर्मला-(हिम्मत करके अपन गोसइय्या ल किहिस) मंय गुनत रेहेंव सब झिन के रूपिया ल लहूटाय बर पांच एकड़ जमीन ल बेंच देतेन तहान हाल के समस्यिा ले मुकती पा लेतेन।

भुवन-(सुन के गमछा म अपन आंसू पोछत किहिस) एला तंय काहत हस निर्मला, कतेक मिहनत करके दुनो परानी भुइंया ल सकेले हवन।

निर्मला-कइसे करबे खुमान के ददा। महंू ह छाती म पथरा राख के काहत हवं। फेर मंय जानत हवं मोला कतेक दुख होतव हवय। एकर अलावा कुछु चारा घलो नइ हे।

भुवन-बने काहत हस खुमान के दाई। खेत ल बेच के सबके रूपिया ल वापिस कर देथन। विधाता के रचना ल कोन जानथे। संकट आथे त चारो कोती ले। हालत ले उबरे बर सब झन अपन अपन स्तर म हल निकाले बर धरिन। कविता घलो घर म टिवसन पढ़ाय बर सुरू करिस। दीपक ह घर के सामने वाले कुरिया म किराना दुकान खोलिस। विपत्ती काल म सब झन हिम्मत से काम लिन।


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सात


जब सरला के बिहाव होय रिहिस हवय ओ समे ओकर दू झिन बहिनी मन नान्हे नान्हे रिहिन हवय। धीरे-धीरे वहू मन बाढ़त गिन। रामनाथ हमेसा चाहत रिहिसे कि लइका मन पढ़य-लिखय कहिके। सबो बेेेटी मन ल पढ़ाय-लिखय बर कोनो कसर नइ छोड़िस। रामनाथ ह बीच-बीच म परिवार के संग तीरथ बरत घलो करय। रामनाथ ह लइका मन के देवारी छुट्टी म सब झिन हरिद्वार जाय बर योजना बनइस। उही समे हरिद्वार म गायत्री महायज्ञ के विसाल आयोजन रिहिसे। मुख्य काम तो महायज्ञ म सेवा देना रिहिसे। यज्ञ के समापन के बाद हरिद्वार के दर्शनीय स्थल मन के दर्शन करे के योजना रिहिस हे। फेर सरला ह मना कर दे रिहिस हे-''नही दाई मंय ह अभीन नइ जावंव। सरिता घलो छोटे हवय। सम्हले के लइक हो जही तहान फेर तीरथ धाम कर लेबोन। अभी तो ससुरार के जिम्मेदारी घलो निभाना हवय। ननंद के पी.एस.सी. कोचिंग चलत हवय। अउ दीपक के पढ़ई-लिखई म ठीकाना नइ परिस तहान ओकर बर नानकुन किराना दुकान घलो खोले हवन।ÓÓ केकती ह पूछिस-ओ ''मनी फंडÓÓ के का होइस बेटी? कतनो झिन के रूपिया ह डूब गे हे कहिके हल्ला हवय। सरला ह किहिस-हव दाई डूब गे हवय। केकती किहिस-खुमान ह जादा फिकर झन करही, समझाबे ओला। हमुमन कंपनी म जउन रूपिया लगाय हवन ओकर फिकर झन करय। बल्कि अऊ कोनो किसम के जरूरत परही ते बताबे, हम्मन अउ सहयोग कर देबोन। सरला समझदार रिहिस हवय। ससुरार म कतनो संकट अइस फेर मइके म नइ बतइस। जहर ल पी के रहि गे। सरला अपन दाई ल किहिस-फिकर करे के कउनो जरूरत नइ हे दाई। सब ठीक हो गे हवय।

सबो बात ल रामनाथ सुनत रिहिसे। रामनाथ केकती ल किहिस-सुन केकती हमर महतारी बाप मन नोनी मन ल पढ़ाय-लिखाय बर मना करत रिहिन हे फेर बेटी ल पढ़ा-लिखा के पैर म खड़ा करना कतना जरूरी हे। केकती ह घलो किहिस-हव कुबेर के ददा, आज सरला पढ़-लिख के नौकरी नइ करे रहितिस ते आज सड़क म आ जय रहितिन। तिंही पाय के दुलारी अउ हंसा ल घलो बिक्कट पढ़ाबोन। बेटी मन पढ़-लिख के अपन गोड़ म खड़ा हो जही ते अपन परिवार बर आधार बनही। शिक्षा ह जिनगी भर काम आथे। सियान मन कथे न धन के बंटवारा हो जथे फेर गियान के बंटवारा नइ होवय।

हरिद्वार ले रामनाथ अपन परिवार संग लहूटिन तहान खुसी-खुसी सब अपन-अपन काम बूता म लग गे। मउका देख के केकती ह अपन जोड़ी ल कथे-एसो धान-पान बने होए हवय, कुबेर के बिहाव ल कर देतेन। कब तक ले कुंवारा रही। रामनाथ ह केकती ल कथे-मोला तो अइसे लागथे कुबेर ह बिहाव कर डरे हे तइसे लागथे। केकती ह अकबका के पूछथे-तुमन कइसे गोठियाथव, ए टूरा ह नाक कान ल कटवा दिही का? अउ फेर तोला मालूम रिहिस हे त मोला बताय काबर नही? केकती ह रामनाथ ल पूछथे-काकर संग बिहाव करे हे तेला जानत हस?

रामनाथ-हव।

केकती-काकर संग करे हवय, जात के आय ते पर जाता आय?

रामनाथ-जात के।

केकती-त बताबे कोन आय तेला? तभे तो ए टूरा ह बिहाव के नामे ल नइ लेवत हे। ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिबोन कहिके सपना देखत हवन तेह धरे के धरे रहि गे।

रामनाथ-तोरो सपना पूरा होही केकती।

केकती-काला पूरा होही? बढ़िया धूमधाम ले बिहाव करबोन काहत रेहेन, तेह जइसने के तइसने रहि गे। बहू बर सोना-चांदी घलो बिसा डरे हंव। फेर कुबेर ह तो हमर नावे ल बुड़ो दिस।

रामनाथ-नइ बुड़ो हे केकती, जादा खिसिया झन।

केकती-काला नइ खिसियाबे। निच्चट सिधवा टूरा आय फेर कइसे बिगड़ गे। आरो घलो नइ पायेन।

रामनाथ-अभी कुबेर नइ बिगड़े हे केकती।

केकती-काला नइ बिगड़े हे। तभे तो काहंव, ए टूरा ह रात-रात के रमायेन म जाथंव कहिके जावय अउ अधरतिया आवय। मोला तो उही बखत संका होय ल धर ले रिहिस हे। फेर तुंहला खिसियाही कहिके कुछ नइ केहेंव।

रामनाथ-अभी घलो संका करत हवस केकती।

केकती-अब जादा बिल्होर के झन राख। काकर संग मुहंू ल करिया करे हवय तेला बता।

रामनाथ-बतावंव।

केकती-हव, जल्दी बता।

रामनाथ-खेती संग।

केकती-ए काकर टूरी आय?

रामनाथ-ए ह काकरो टूरी नोहे।

केकती-त का आय?

रामनाथ-तहंू नइ जानस, दिन भर खेती किसानी म भीड़े रहिथे। ओला तो अपन सुध नइ राहय त बिहाव के सुध कहां ले रिही।

केकती-तहंू कुबेर के ददा, मोला संका म डार दे रेहेस।

रामनाथ-ओ तो तोला मजाक करत रेहेंव।

केकती-अब मजाक उजाक नइ चलय। मोला एसो ''बहू हाथ के पानीÓÓ पीना हे मने पीना हे।

रामनाथ-ठीक हे भई ठीक हे। एसो कुबेर ल बिहाव करे बर राजी करहंू। रामनाथ के गोठ ल सुन के केकती के चेहरा म मुस्कान आ जथे।

अब रामनाथ ह दू-चार जगह लड़की खोजे बर गोबिंद संग निकलिस। एसो तो रामनाथ ह पंडित करा बिचरा के निकले रिहिसे। ताबिज घलो बनवाय रिहिस। पंडित ह बताय घलो रिहिस हे कि रायपुर डाहर लड़की मिलही कहिके। ज्योतिस करा बिचराए रिहिस हवय फेर काम नइ बनिस। त ए दरी दूसर पंडित करा ताबिज अउ मुंदरी बनवाय रिहिस हवय। जेती जेती पंडित मन काहय उही-उही डाहर जावय। अइसे तइसे चारो दिसा म घुम डरिन। फेर मुंदरी अउ ताबिज काम नइ आइस। संयोग से गायत्री माता के किरपा ले अभनपुर के लड़की पसंद आ गे। सबो किसम ले लड़की ह कुबेर बर फीट बइठत रिहिसे। घर म आके सब ल बतइस तहान सबके चेहरा म खुसी दउड़गे। पुरोहित करा कुबेर अउ लड़की के नाड़ी, गुन ल घलो मिला डरिन। सबो बढ़िया मिल गे। गोबिंद ह रामनाथ के सग भाई भले नइ रिहिस फेर सग ले बढ़ के रिहिस। रामनाथ के सुख-दुख म बरोबर खड़े राहय। गोबिंद ह रामनाथ ल किहिस-भइया हम्मन ल तो लड़की पसंद आ गे हे फेर अब कुबेर ल पसंद आना चाही। रामनाथ किहिस-बने काहत हस भाई। गोबिंद ह रामनाथ ल किहिस-अवइय्या इतवार के कुबेर ल लड़की देखाय बर लेग जबे। ठउंका ओतके बेर कुबेर घलो आ जथे। गोबिंद ह कथे-ए दे कुबेर घलो आ गे। कुबेर ह अपन ददा अउ कका के पांव परथे। तहान ओ जगह ले जाय बर धरथे। देख के गोबिंद ह कथे-सुन तो कुबेर

कुबेर-हव कका।

गोबिंद-तोर बर लड़की पसंद करके आय हवन। इतवार के भइया संग लड़की देखे बर चल देबे।

कुबेर-ले न कका। ददा अउ तोर मन आ गे तहान मोला जाय के का जरूरत हवय। सियान मन गलत थोरे करहू।

गोबिंद-तभो ले बेटा हमर जमाना म चल जावत रिहिसे। तुमन नवा पीढ़ी अव। एक-दूसर ल पसंद कर लेवव। ओकर बाद बात ल आगू बढ़ाबोन।

रामनाथ-गोबिंद बने काहत हे कुबेर। इतवार के लड़की देखे बर चल देबोन। तोला जम जही तहान फायनल कर देबोन। ओकर बाद बिहाव के तइयारी म लग जबोन। हमर परिवार बड़े हवय। जोरा करे बर परही।

गोबिंद-कइसे कुछु नइ काहत हवस कुबेर?

कुबेर-ले न आप मन जइसन सोंचत हव, ओइसने हो जही। मंय कभू आप मन के बात ल टारे हवंव।

कुबेर के बिहाव होवइया हे कहिके पूरा परिवार खुस रिहिन। दुलारी अउ हंसा घलो बिक्कट खुस रिहिन हे, भउजी आही कहिके। केकती तो मने मन खुस रहय ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बर मिलही। अब तो काम बूता बर हाथ-गोड़ के रफ्तार बाढ़ गे रिहिस। रामनाथ घलो मने मन खुस रिहिस हवय, चलो एसो जिनगी भर के साध ल भगवान पूरा करही। गोबिंद घलो अब्बड़ खुस रिहिस। मने मन गुनत रिहिस हवय, कुबेर बर जउन नोनी ल देखे हवन ओह बहुत सुन्दर हवय। कुबेर ल पसंद आ जही ते बढ़िया जोड़ी फभही। राम सीता कस जोड़ी लागही। गोबिंद ह भगवान ले अपन भइया-भउजी के ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये के साध ल पूरा करे बर बिनती करिस। गोबिंद ल भगवान उपर पूरा भरोसा रिहिस हवय कि ओकर बिनती ल जरूर सुनही। देखते देखत इतवार आ गे। आज रामनाथ ह कुबेर ल लड़की देखाय बर अभनपुर जवइया रिहिस। केकती, दुलारी अउ हंसा जुरमिल के जल्दी-जल्दी खाना बनइन। रामनाथ अउ कुबेर ह जल्दी भात खा के कुल देवता ल सुमर के अभनपुर जाय बर फटफटी म बइठ के निकल गे।

रामनाथ अउ कुबेर ह पाटन म चाहा पानी पिये बर थोकिन रूके रिहिन ओकर बाद उमन अभनपुर जाय बर निकल गे। बाप-बेटा दुनो झिन अभनपुर पहुंच गे। अभनपुर के बस स्टैण्ड के होटल के पेड़ा बहुत प्रसिद्ध हवय। रामनाथ ह एक किलो पेड़ा बिसइस तहान सगा घर पहुंच गे। रामनाथ ह सगा मन ल आय के खबर मोबाइल म आघुच ले दे दे रिहिस। तिही पाय के सगा मन घलो इंकर रद्दा जोहत रिहिन। बढ़िया तइयारी करे रिहिन। कलिन्दर, कलमी आमा, मिक्चर अउ मिठाई के बेवस्था करे रिहिन। सगा घर पहुंचिन तहान रामनाथ अउ कुबेर ल बइठक रूम म बइठारिन। सगा मन अपन डाहर ले कोनो कमी नइ करिन। बइठक खोली म नोनी के बबा, अउ पिता जी ह रामनाथ अउ कुबेर संग बइठिन। नोनी के भाई ह बेवस्था म लगे रिहिस। पांव पलागी करे के बाद लड़की के महतारी ह पानी धर के अइस। तहान लड़की ल नासता धर के भेजवइस। कुबेर ह लाज के मारे मुड़ी ल उठावत नइ रिहिस। लड़की के पिता जी ह समझ गे। ओह कुबेर ल किहिस-''ले नासता कर बेटा।ÓÓ तब कहंू जा के मुड़ी उठा के कुबेर ह नासता करिस। एकर बाद लड़की ह सरबत धर के अइस। तब कुबेर ह लछरहा लड़की ल देखिस। देखई-सुनई होय के बाद सबो झिन खाना खइन तहान रामनाथ ह नवागांव जाय बर बिदा मांगिस। फेर सगा मन बिनती करिन। बेरा ह ढरक गे हे सगा अउ सफर दुरिहा घलो हवय, आज रूक जव। काली बिहनिया नासता करे के बाद चल दुहू। फेर रामनाथ ह नइ मानिस। मने मन गुनिस, काहे कि अभी रिसता तय नइ होय हवय त रात रूकना ठीक नइ हे। कहंू जादा मुंधियार हो जही त पाटन म संगवारी घर रूक जबोन कहिके जिद्द कर दिस। निकलत खानी रामनाथ सगा मन ल किहिस-ले न घर म जा के काली मोबाइल म खबर करहंू। सगा मन घलो हव कहिके बिदा कर दिन। कुबेर बिक्कट हिम्मत वाले रिहिस हवय। तभे तो फटफटी ल रफ्तार म चलावत आगू बढ़ गे। सफर लम्बा रिहिसे। कुबेर के चेहरा म थकावट ल देख के किहिस पाटन म रूक जथन बेटा। कुबेर कथे-''नही ददा चल देबोन।ÓÓ

कुबेर ह अपन ददा संग नवागांव आय बर पाटन होवत आगू बढ़ गे। थोकिन मुंधियार होय बर धर ले रिहिसे। दुरूग डाहर ले फुल स्पीड म आवत कार ह कुबेर के गाड़ी ल आघु डाहर ले जोर से ठोक दिस। लोगन मन के आवा जाही रिहिसे। देखो-देखो हो गे। कार वाले ह इमन ल मार के तो भगा गे। फेर एक दुर्घटना म कुबेर ह लहूलुहान हो गे। रद्दा रेंगइय्या मन कइसनो करके चंदूलाल शासकीय चिकित्सालय पाटन म बाप-बेटा ल लइन। अस्पताल म डॉक्टर ह कुबेर ल मृत घोषित कर दिस। डॉक्टर मन बतइन कि रामनाथ के एक गोड़ म हल्का चोंट आय हवय। एती केकती, दुलारी अउ हंसा ह रामनाथ अउ कुबेर के बाट जोहत रिहिन हवय। गोबिंद ल घलो केकती ह उंकर खबर लेबर किहिस-''देखव तो पता लगावव, हम्मन मोबाइल लगावत हवन त मोबाइल लगत नइ हे।ÓÓ गोबिंद किहिस हो सकथे उमन सगा घर रहि गे होही। गोबिंद के मन नइ माड़िस त अभनपुर फोन लगइस। सगा मन बतइन कि उमन तो इहां ले निकल गे हवय।

अस्पताल म जउन करा रामनाथ भरती रिहिस उही करा ओकर पुराना संगवारी अजय उमरे मिल गे। रामनाथ अजय उमरे ल किहिस-गोबिंद के नम्बर म फोन लगा के बता दे कि पाटन ले निकलती म हमर मन के एक्सीडेंट हो गे हे। गोबिंद ल कहि देबे कि अभी घर वाले मन ल झन बताही, ओह तुरते पाटन पहुंच जाय। अब गोबिंद ह खाना खावत रिहिसे तेला छोड़ के फटफटी निकालिस अउ अपन गोसइन ल बतइस-''रामनाथ भइया अउ कुबेर के एक्सीडेंट हो गे हवय, मंय पाटन जावत हवं। तंय ए बात ल केकती भउजी ल झन बताय रहिबे।ÓÓ केकती बड़ खुस रिहिसे ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिबोन कहिके फेर भगवान के मरजी ल कोन जानथे। ''होइ हैं वही जो राम रचि राखा।ÓÓ गोबिंद ह पाटन अस्पताल म रामनाथ करा पहुंचिस। पहुंचते भार हाल चाल ल पूछिस। सबो घटना ल रामनाथ ह बतइस। रामनाथ ह गोबिंद ल किहिस-देख तो कुबेर के का हाल चाल हे? अजय अउ गोबिंद एक-दूसर ल पहिलिच ले जानत रिहिन। गोबिंद ह अजय उमरे ल पूछिस-तें इहां कइसे?

अजय उमरे-मोर ददा के हाथ ह फैक्चर हो गे हवय।

गोबिंद-अभी कइसे हे?

अजय उमरे-अभी तो पहिली ले सुधार हे।

गोबिंद-फेर रामनाथ भइया के एक्सीडेंट कइसे हो गे। कुबेर ह दिखत नइ हे।

अजय ह गोबिंद ल अकेल्ला म बला के सब बात ल बताथे। पाटन के निकलती म काली रामनाथ अउ कुबेर के एक्सीडेंट हो गे। अस्पताल म ल के भरती करइस तेह मोर पहिचान के आय। उही ह मोला सबो ल बतइस। काहे कि अभी न, रामनाथ ल कुछु बताय झन रहिबे।

गोबिंद-काला?

अजय-बड़ दुख के बात आय कि एक्सीडेंट म कुबेर के आन स्पाट डेथ हो गे हे। ओकर डेथ बाडी ल मरचुरी म रखे हवय।

गोबिंद ह सुन के दहाड़ मार के रो डरिस। अजय ओला ढांढस बंधइस। तोला सम्हले बर परही गोबिंद काहे कि अब तुहीं ल रामनाथ भइया के परिवार ल सम्हाले बर परही। ले दे के गमछा म आंसू ल पोंछत चूप हो के अपन आप ल सम्हालथे। अजय ह रामनाथ अउ गोबिंद के संग ल नइ छोड़िस। अजय ह अपन पिता जी के सेवा जतन बर बेटा ल बलवा ले रिहिस हवय। अजय अपन बेटा ल कहि दे रिहिसे, आज सबो झिन बर खाना लाबे कहिके। गोबिंद अउ अजय ह रामनाथ करा पहुंचिन त रामनाथ ह पूछिस-कइसे कुबेर ह दिखत नइ हे, बने हे न?

गोबिंद-हव भइया बने हे, ओला दूसर वार्ड म रखे हवय।

रामनाथ-चलो, भगवान के किरपा ले जादा अलहन नइ अइस।

गोबिंद ह मने-मन गुनत रिहिसे, रामनाथ भइया ह नइ जानय कि कतेक बड़ अलहन आय हे तेला। बिहनिया अजय उमरे अउ गोबिंद डॉक्टर मन ले मिलिन। सब कार्यवाही करे के बाद कुबेर ल अलग गाड़ी म अउ रामनाथ ल अलग गाड़ी म बइठार के घर लेगिन। गोबिंद ह अपन गोसइन ल सब बता के चेता दे रिहिसे कि ए सब ल केकती भउजी ल झन बताय रहिबे। अतना जरूर बता देबे कि काली लहूटत खानी कुबेर अउ ओकर ददा के एक्सीडेंट हो गे हे। गोबिंद के गोसइन सत्यभामा ह केकती घर जा के खबर ल बता दिस। फेर सत्यभामा के चेहरा मोहरा ल देख के अन्देसा होय ल धर ले रिहिसे कि कोनो अनहोनी जरूर हो गे हे। केकती ह सत्यभामा ल चेंध-चेंध के पूछिस फेर बताय के हिम्मत नइ होइस। बस इही काहत रहिगे-कुछु नइ होय हवय। दुनो झिन बने हवय, चिन्ता-फिकर के बात नइ हे। तब तक रामनाथ ह पहिली पहुंचिस। ओकर एक गोड़ म घुटना करा प्लास्टर बंधाय रिहिसे। रामनाथ अउ गोबिंद ल देखिस त केकती, दुलारी अउ हंसा ल हाय जी लगिस। तब तक रामनाथ ल घलो पता नइ रिहिस कि कुबेर हम्मन ल छोड़ के चल दे हे कहिके। रामनाथ ल देख के केकती पूछिस-कुबेर बेटा कहां हे? तंय अकेल्ला आवत हवस। गोबिंद किहिस-आवत हे भउजी, आवत हे। फेर...

केकती-का फेर?

गोबिंद-कुबेर हम्मन ह छोड़ के चल दिस भउजी।

रामनाथ-कहां चल दिस? कइसे गोठियाथस। काली तो हम्मन एके संघरा रेहेन।

गोबिंद-काली के एक्सीडेंट म कुबेर ह हम्मन ल छोड़ के भगवान घर चल दिस भइया कहिके बोम फार के रोये ल धर लिस। सुनते भार रामनाथ, केकती, दुलारी, हंसा अउ सत्यभामा ह घलो दहाड़ मार के रोए बर धर लिन। इंकर रोवई ल सुन के तीर सखार के मन सकला गे। ओकर बाद धीरे-धीरे करके परिवार, डिहवार अउ गांव वाले मन सकलावत गिन। सरला घलो खबर पा के वहू ह खुमान संग अपन बेटी सरिता ल धर के पहुंचिस। सब झिन कुबेर के सुरता कर-कर के रोए बर धर लिन।

रामनाथ ल गोबिंद ह सम्हाले रिहिस। केकती ल सत्यभामा सम्हाले रिहिस। लोग लइका ल परिवार के अउ सदस्य मन सम्हाले रिहिन। बेटा जात मन खटली के तइयारी म लग गे। माई लोगन मन आरती के तइयारी म लग गे। अब सफेद कपड़ा म लपटाय कुबेर के लास ल गाड़ी ले उतारिन। तहान तो फेर दुख के पहाड़ टूट गे। सब झिन आरती उतार के उल्टा भांवर घुम के अपन दुलरूवा बेटा ल हमेसा-हमेसा बर बिदा करिन।


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आठ


कांकेर के जमीन ल बेचे के बाद भुवन बिक्कट उदास रिहिस हवय। सरला ह घलो सरलग मइके अउ ससुरार म संकट उपर संकट ले भारी दुखी राहत रिहिसे। तभो ले अपन जिम्मेदारी ल पूरा करे म लग गे। घर बाहिर कमाए बर धर लिस। अब खुमान घलो अपन आप ल दोसी मानत रिहिसे कि मोरे सेती घर के हालत ह अतेक बिगड़ गे कहिके। सरला अउ ननंद भउजई घर के आर्थिक स्थिति ल कइसे सुधारे जाय कहिके रात-दिन सोचन लागे। सरला ह खुमान बर घलो हिम्मत बनिस। सरला ह खुमान ल समझावत किहिस-''अब जऊन हो गे तउन तो हो गे अब उही बात ल धरे रहिबोन त कइसे काम चलही? खुमान ह सरला ल किहिस-त मंय का करंव तिंही बता न।ÓÓ

सरला-मन ल बहलाए बर आप ल कुछु न कुछु करे बर परही। कुछु कहीं काम बूता म मन ह लगे रही त चिंता-फिकर ले मन ह हटही।

खुमान-का बूता करंव?

सरला-अइसे कर फिरहाल देवर बाबू के किराना दुकान म सहयोग कर। ताकि दीपक ल घलो बजार हाट जाय बर सहुलियत हो जही।

खुमान-बने काहत हवस सरला। अब तो सरिता के भविष्य बर घलो सोचे बर परही।

सरला-मंय सोंचत हवं कविता अउ दीपक अपन गोड़ म खड़ा हो जतिस तहान फेर हमरो जिम्मेदारी पूरा हो जतिस।

भुवन अउ निर्मला सरला कस बहू पा के खुस रहय। भुवन ह निर्मला ल किहिस-''हमन बड़ भागमानी अन निर्मला।ÓÓ

भुवन-कइसे?

निर्मला-सरला असन बहू पा के।

भुवन-ए सब हमर करम के फल आय निर्मला।

निर्मला-फेर समधी-समधीन मन उपर दुख के पहाड़ टूट गे।

भुवन-हव निर्मला। कतेक सुघ्घर सपना संजोए रिहिन हवय-''बहू हाथ के पानीÓÓ पिबोन कहिके फेर का करबे। होनी ल कोन टार सकथे।

निर्मला-बने काहत हवस खुमान के ददा, भगवान उमन ल दुख ले उबरे बर हिम्मत देवय।

भुवन-हव निर्मला।

निर्मला-बूढ़त काल बर सहारा होही अउ डिह म दीया जलाही कहिके बेटा मांगथन फेर समधी के डिह म अब दीया कोन जलाही?

भुवन-बने काहत हस वो।

कविता ह पी.एस.सी. पास करके आफिसर बने के सपना देखे रिहिसे। बिक्कट मिहनत करिस अउ लिखित परीक्षा म मेरिट म पास हो गे। तहान मौखिक म घलो टाप टेन म सलेक्सन हो गे। ओकर पोस्टिंग ह सरगुजा म हो गे। तहान कविता ह सरगुजा चल दिस। भुवन के पूरा परिवार खुस रहिस। कविता ह हमर घर के नाम ल रोसन कर दिस कहिके। अभी कविता ट्रेनिंग परेड म रिहिसे।

छुट्टी के दिन कविता ह कांकेर अइस त निर्मला ह किहिस-''बेटी अब तोरो बिहाव ल कर देतेन कहिके सोंचत हवन।ÓÓ कविता ह सुन के अनसूनी कर दिस। अब भुवन ह मने मन गायत्री माता ले बिनती करय कि हे मइया मोर दुलौरिन बेटी बर सुघ्घर दमांद दे देते। तोर अपार किरपा हवय हमर परिवार उपर। सरला घलो मजाके मजाक म किहिस-कइसे कविता बिहाव करे के बिचार हे ते नही? कविता किहिस-नही भउजी अभी परमानेंट नइ होय हे। परमानेंट होही तहान बिहाव ल कर लुहूं। काबर कि कविता ल तो बिहाव ल टालना रिहिस हे। अब कविता घलो थोर बहुत घर म सहयोग करे के सुरू कर दे रिहिसे।

अब घर के आर्थिक स्थिति ल सुधारे बर सरला ह दिन-रात गुनत राहय। काहे कि नानकुन किराना दुकान म हमर घर के कतेक बढ़ोत्तरी होही? अब सरला ह खुमान ल किहिस-मंय ह एक ठन बात सोचे हवंव।

खुमान-का बात सोंचे हवस?

सरला-मंय सोचे हवंव, जउन दस एकड़ के जमीन कांकेर म हे ओमा ईंटा भट्ठा खोल लेतेन कहिके।

खुमान-ओमा तो बहुत रूपिया लागही।

सरला-अभी ले चिमनी ईंट भट्ठा खोलबोन कहिके थोरे काहत हवं। सुरू म हाथ भट्ठा खोलबोन कहिके गुनत हवंव।

खुमान-बने तो काहत हवस सरला फेर दाई-ददा ल पूछ लेथन।

इतवार के दिन घर म सबो झन सकलाय रिहिन हवय। उही समय खुमान ह अपन ददा ल बिनती करत कथे-मंय सोंचत हवं कि कांकेर के दस एकड़ म हाथ भट्ठा खोलतेन कहिके। काहे कि किराना दुकान इहां बहुत हो गे हवय। ओतेक आमदनी नइ होवत हवय।

भुवन-देखव रे भई, अब इही तुंहर पंूजी आय, तुमन बनाव चाहे बिगाड़व।

निर्मला-हम्मन ल का चाही, दू जुआर के भर पेट भोजन मिल जाय तहान अउ का, कइसे सरला?

सरला-हव दाई, महंू सरिता के पापा के बात ले सहमत हवं। पहिली हाथ भट्ठा खोलबो तहान बैंक लोन ले के एक-दू साल बाद चिमनी ईंटा भट्ठा खोल लेबोन। हाथ भट््ठा ले धन्धा के अनुभव घलो हो जही। कइसे दीपक, तहंू अपन सलाह बता अउ कविता तोर का बिचार हवय?

सरला के बात ल सुन के दीपक अउ कविता ह हव कहिके हामी भर देथे। अब सब झिन सुन्ता सलाह हो के हाथ ईंटा भट्ठा खोलिन। दीपक ह किराना दुकान ल अउ खुमान ह ईंटा भट्ठा ल सम्हालिस। दीपक ह बीच बीच म दुकान बंद करके ईंटा भट्ठा जावय अउ ईंटा रेती के आर्डर ल अपन दुकान म घलो ले लेवय। कविता घलो अपन नौकरी म धियान देवत रिहिसे। धीरे-धीरे अब घर के आर्थिक विकास सुरू हो गे। आर्थिक रूप ले पनपे के बाद हाथ ईंटा भट्ठा ले चिमनी ईंटा भट्ठा बर योजना बनइन। अब दीपक ह घलो किराना दुकान ल गांव ले हटा के ईंटा भट्ठा के आफिस म खोल लिस। किराना दुकान ल बरसात म कांकेर म चलावय अउ ईंटा भट्ठा के सीजन म ईंटा भट्ठा के आफिस म चलावय। धीरे-धीरे ईंटा भट्ठा के कारोबार बाढ़त गिस। इही बीच खुमान के घलो भिलाई स्टील प्लांट म नौकरी बर काल आ गे। अब खुमान ह सब कारोबार दीपक ल सौंप के भिलाई आ गे। भुवन अउ निर्मला ह सरला कस बहू पवई ल गायत्री माता के किरपा मानत रिहिन। बहू के आये ले घर म सुख, सांति अउ समृद्धि अइस। तभे तो देखते देखत धन्धा पानी ह पनपिस। अब दीपक ह किराना दुकान ल बंद करके पूरा समय ल ईंटा भट्ठा के धन्धा म दे बर धरिस। एसो के देवारी म तो लछमी जी के अपार किरपा रिहिस। बैंक ले लोन ले के ट्रक लिस। सब झिन खुसी-खुसी ट्रक के पूजा पाठ करिन। एसो के देवारी म तो मजा आ गे।

एसो सबो झिन सोंचत रिहिन हवय कि कविता बर बने सरिख सगा उतर जही ते ओकर बिहाव कर देबोन कहिके। दीपक ह सान सौकत वाले रिहिस हवय। दीपक के इच्छा तो खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय म डिग्री ले के मन रिहिस हवय फेर मालिक ह तो कुछु अउ चाहत रिहिसे। अब तो ट्रक आए के बाद तो दीपक के ठाठ अऊ बाढ़ गे। जिये के स्टाइल बदल गे। हाथ म घड़ी, गर म सोनहा हार अउ जिंस पहिर के घर ले फटफटी म निकलै। अपन आप ल एक हिरो ले कम नइ समझय। धीरे-धीरे गलत संगति के चक्कर म घलो आय बर धर लिस फेर महतारी-बाप ल थोरको हवा नइ लगिस। दीपक ह कांकेर म दुकान चलावत रिहिसे तभे एक झिन आन जात के टूरी के मया म बंधा गे रिहिस हवय। बीच-बीच म भेंट मुलाकात करत रिहिन हे। भुवन अउ निर्मला ल अब दीपक के चाल चलन उपर सक घलो होय बर धरिस। दुनो झिन गोठियावय एसो दीपक के घलो बिहाव कर देतेन। भुवन किहिस-बने काहत हस निर्मला इंकर मन के बर-बिहाव करे के बाद हम्मन गंगा नहा लेतेन।

जइसे-जइसे घर के बढ़ती होथे, छत्तीसगढ़िया मन ल काकर सराप लगे हे ते कोनो न कोनो बिघन ह आके खड़ा हो जथे। अब कांकेर भर कानाफूसी होय बर धर लेथे। फेर बने उपक के कोनो गोठिया नइ सकय। काबर कि दीपक के कारोबार बाढ़े के संगे-संग दबदबा घलो बाढ़ गे रिहिस हवय। अब तो बड़े बड़े मनखे मन संग उठय बइठय। बैसाखिन ह गरीब परिवार के रिहिसे। मजदूरी करना मजबूरी रिहिसे। बैसाखिन गरीबिन जरूर रिहिस हे फेर रूप रंग के अमीर रिहिस हवय। बैसाखिन ह दीपक के ईंटा भट्ठा म कमाय बर आवय उही दरी ले इंकर मया ह अ उ पनके बर धर ले रिहिस हे। उपक के कोनो बोलत नइ रिहिस फेर बैसाखिन के दिनो दिन बाढ़त पेट ह काकर-काकर मुहंू ल तोपतिस। जइसे-जइसे पेट ह बाढ़त गिस वइसने-वइसने खुसुर-फूसुर ह घलो बाढ़त गिस। जब दीपक ल पता चलिस तहान बैसाखिन ल बिक्कट समझइस, ए पेट के लइका ल उतरवा देथन कहिके फेर बैसाखिन ह नइ चाहत रिहिस हे कि अपन पेट म सिरजत भ्रूण के हत्या होवय। अब तो बैसाखिन के दाई-ददा ल घलो ताना मारे के सुरू हो गे रिहिस हवय। बैसाखिन के दाई बिसाहिन ह अपन गोसइय्या ल किहिस-बैसाखिन ह तो हमर मन के नाक ल कटवा डरे हे।

उमेंद-अब का करबे? लइका ल जनम दे सकत हन फेर ओकर करम ल थोरे दे सकबे।

बिसाहिन-करम ल तो बने दे रेहेन अउ एसो बिहाव घलो करबो कहिके गुनत रेहेन फेर ओकर पहिलिच ए टूरी ह हमर नाक म चूना लगा दिस।

उमेंद-अब तिंही समझा बिसाहिन, बैसाखिन ल।

बिसाहिन-का समझावंव?

उमेंद-बैसाखिन ल समझा, अब ओह दीपक संग बिहाव कर लेवय।

बिसाहिन-मंय तो बैसाखिन ल पहिलिच ले कहि डरे हवं।

उमेंद-त ओह का कथे?

बिसाहिन-बैसाखिन कथे मंय तो कई घांव कहि डरे हवं दीपक ल, अब हम्मन दुनो झिन बिहाव कर लेथन कहिके फेर...

उमेंद-फेर का?

बिसाहिन-बैसाखिन बतावत रिहिसे कि दीपक ह पेट के लइका ल गिरवा देथन कहिथे।

उमेंद-त बैसाखिन का किहिस?

बिसाहिन-मंय भ्रूण हत्या नइ करंव कहिके, दीपक ल कहि दे हवय, भ्रूण हत्या पाप आय।

उमेंद-त बिहाव बर का कथे दीपक ह?

बिसाहिन-बिहाव बर दीपक ह मना करत हवय।

उमेंद-अच्छा त हमर बेटी ह ओकर बर खिलौना आय। मंय अइसन नइ होवन दवं। मंय बैसाहिन अउ दीपक के बिहाव करवा के रहंू।

अब तो बैसाखिन के जेचकी के दिन ह नजदीक आवत रिहिस हवय। बैसाखिन अउ दीपक के घटना ह पूरा कांकेर भर बगर गे। अब तो बैसाखिन ल देख के सब खुलखुल-खुलखुल हांसय। कोनो ताना मारय, कोनो मजा लेवय। कतनो माईलोगन मन बिसाहिन ल सुनावत-सुनावत काहय-''बैसाखिन ह ईंटा भट्ठा म बनिहारिन बन के जावत रिहिसे, अब तो ईंटा भट्ठा के मालकिन बन जही। बैसाखिन कतेक किस्मत वाली आय। किस्मत वाली के सगे-संग दिमाक वाली घलो आय। ईंटा भट्ठा के मालिक ल ही मया म फंसा डरिस।ÓÓ अब काहे कि बैसाखिन ह गरिबीन घर भले पैदा होय रिहिसे फेर सुंदरई म कोनो कमी नइ रिहिसे। तभे तो दीपक ह मोहागे रिहिस हे। फेर दीपक ह ए नइ सोचे रिहिसे कि अइसन अनहोनी हो जही। बैसाखिन ह अम्मल म रही जही कहिके थोरको नइ सोचे रिहिस। ओ तो सिरिफ खिलौना समझे रिहिस। फेर का पता दांव उल्टा पर जही कहिके।

अब ताना सुनत-सुनत उमेंद के कान पाक गे रिहिसे। उमेंद ह एक दिन भुवन करा गिस अउ सबो बात ल फोर के बतइस। दीपक ह बैसाखिन ल अम्मल म कर देहे। मंय चाहत हवं कि बात ह जादा बाढ़े झन अउ दीपक ह बैसाखिन ल अपन घर ले आवय। बात ह घलो बन जही अउ इज्जत ह घलो बांच जही। उमेंद के बात ल सुन के भुवन ह बगिया गे। भुवन ह ऊंच भाखा म किहिस-सुन उमेंद तुंहर चाल ल मंय समझत हवं। तोर बेटी के आचरन ठीक नइ हे। छोटे मनखे मन के चाल ल मंय समझथंव। जिंहा बड़े आदमी दिखिस तहान अपन नोनी ल ओकर पिछू लगा देथव। बता तोला कतेक रूपिया लागही, मामला ल सुलझाए बर। उमेंद ह घलो खिसिया के किहिस-सुन भुवन, तंय ह गरीब मन के खिल्ली झन उड़ा। हमरो इज्जत हवय। बेटी सब बर बरोबर होथे, अमीर के होवय चाहे गरीब के। इज्जत सबके बरोबर होथे। पइसा म गरीब के इज्जत ल बिसा नइ सकस, समझे। फेर भुवन तोर असन धार्मिक मनखे ल तो अइसन उल्टा-पुल्टा बात करई ह सोभा नइ देवय। उमेंद ह हाथ जोड़ के भुवन ल किहिस मोर बात ल राख ले, कांकेर भर हल्ला हो गे हे।

भुवन ह उमेंद के बात ल स्वीकार करे बर तइयार नइ रिहिसे। तभे तो बात ह जब जादा बाढ़े बर धरिस तहान भुवन ह घुस्सा हो के उमेंद ल खेदार दिस। भुवन उमेंद ल किहिस-तंय काकरो भी औलाद ल दीपक के औलाद काहत हस, तोर टूरी ह काकर संग नाक ल कटाय हे अउ दीपक के नाम लेवत हे कहिके काहत-काहत ओला लहूटा दिस। भुवन ह खिसियाय बर तो खिसिया दिस फेर ओकर मन ह गवाही नइ देवत रिहिसे। भुवन के ब्लड प्रेसर बाढ़ गे अउ बेहोस हो के पड़ाक ले गिर जथे। देख के तुरते निर्मला ह भुवन के मुड़ी म पानी थोपिस। तहान भुवन ह होस म अइस। निर्मला ह समझावत किहिस-एक तो हाई ब्लड प्रेसर वाले अस अउ उपर ले तमतम-तमतम करथौ। भुवन ह कथे-कइसे तमतम-तमतम नइ करबे? देख न उमेंद ह आय रिहिसे अउ दूसर के पाप ल हमर दीपक उपर मढ़त रिहिस हवय। निर्मला कथे-गुस्सा करे म मामला सुलझे नही बल्कि अऊ बिगड़ जही। हम्मन ल विवेक ले काम ले बर परही। अइसे कइसे बिना जाने सुने उमेंद ह दीपक के नाम लेवत होही। कुछु तो बात होही। एक घांव दीपक ल घलो हमु मन पूछ लेथन। भुवन निर्मला ल कथे-अच्छा त तंय ह बैसाखिन ल बहू बनाना चाहत हवस। हम्मन तो समाज म मुंहु देखाय के लइक नइ रहिबो। कहां उमन अउ कहां हम्मन। निर्मला फेर समझाथे भुवन ल-देखव हो, दीपक ल एक घांव पूछ तो लेथन। हो सकथे दीपक ले गलती हो गे होही। तब कहंू जा के ले दे के भुवन ह सांत होइस। ठउंका ओतके बेरा सरला ह घलो ड्यूटी ले आ जथे। सरला पूछथे-का हो गे? कोनो अनहोनी हो गे का?

निर्मला-अनहोनी होय नइ हे फेर होवइया हे।

सरला-का बात आय तेला बता न दाई?

निर्मला-उमेंद आय रिहिसे।

सरला-का काहत रिहिसे?

निर्मला-उमेंद ह काहत रिहिसे कि बैसाखिन के पेट म लइका हवय ओह दीपक के आय।

सरला-त एमा गुस्सा के का बात हे?

निर्मला-तहंू कइसे गोठियाथस बहू, ओ अनजतनीन टूरी ह दीपक के नाम लेवत हे त का हम्मन मान जवन। हम्मन तो बदनाम हो जबोन तहान कविता बर सगा घलो नइ उतरही।

सरला-वो तो सब ठीक हे फेर अभी के मामला ल तो पहिली हल कर लेथन।

निर्मला-त दीपक ल पूछही कोन?

सरला-तुमन चिंता फिकर झन करव मंय सब सम्हाल लुहंू।

दीपक ह रात कना ईंटा भट्ठा के काम ल निपटा के घर पहुंचथे। आज दीपक ह टेंसन म दिखत रिहिस हवय। दीपक ल तनाव म देख के सरला ह पूछथे-कइसे देवर बाबू आज टेंसन म दिखत हवस, का हो गे?

दीपक-कुछु नही।

सरला-कुछु तो बात हे देवर जी। हांसत मुस्कुरावत मोर देवर के चेहरा ल काकर नजर लग गे हे?

दीपक-नही भउजी, कुछु बात नोहे।

सरला-बताबे कि भइगे, काकर नजर लग गे हे? बता न, मंय कोनो ल नइ बतावंव, दाई किरिया।

दीपक-बैसाखिन के नजर लग गे हवय।

सरला-कइसे का काहत रिहिसे?

दीपक-हमर घर आहंू काहत रिहिस हवय।

सरला-काबर?

दीपक-मंय गलती कर डरे हवं।

सरला-का गलती हो गे हे?

दीपक-मंय ओकर संग मया करथंव अउ अभी अम्मल म हो गे हे। मंय का करंव समझ म नइ आवत हवय।

सरला-त एमा टेंसन के का बात हे?

दीपक-बैसाखिन तो दूसर जात के आय।

सरला-त एकर ले का होही। तोर मया तोला मिल जही त एकर ले बढ़िया अउ का बात हो सकत हे।

दीपक-त दाई-ददा मानही तब तो?

सरला-ले न मंय उमन ल सम्हाल लुहंू।

दीपक-बड़े भइया खिसियाही त।

सरला-वहू ल मंय सम्हाल लुहंू।

दीपक-मोला तो डर लागत हवय। देख भउजी तिंही सम्हाल लेबे।

सरला कथे ले न मंय सब सम्हाल लुहंू, तंय फिकर झन कर। सरला ह खुमान ल सबो बात ल बता दिस। खुमान ह सुन के गुस्सा हो गे सरला किहिस गुस्सा होय म काम नइ बनय।

खुमान-त का दीपक के आरती उतारंव।

सरला-कइसे करबे, अब लइका ह गलती कर डरे हे त मार थोरे डरबे।

खुमान-देख सरला, तंय दीपक के सांखी झन तीर।

सरला-मंय ओकर सांखी नइ तीरत हवंव बल्कि कइसनो करके ए मामला ल हल करना हे चाहत हवं। तोला का, तंय तो भिलाई म रहिथस। इहें का गुजरत हे तेला मंय जानथंव।

खुमान-त मंय का करंव?

सरला-काली बैसाखिन के ददा ह कांकेर म बइठका सकेले हवय। काली छुट्टी ले के कांकेर आ जा। बइठक रात म हवय।

खुमान-ले मंय काली संझा तक पहुंचत हवंव।

सरला ह कविता ल घलो ए बात ल बता दे रिहिसे फेर तंय झन आबे कहिके चेता दे रिहिसे।

उमेंद ह कांकेर म बइठक सकेलिस। भुवन घर घलो खबर कर दे रिहिसे कि संझा जेवन करे के बाद चौपाल म बइठका हे। गांव भर के मन बइठका म धीरे-धीरे सकलागे। आज बइठका म जादा भीड़ रिहिसे काबर कि गुनागारी वाले केस रिहिसे। एती ले उमेंद अउ बिसाहिन ह बैसाखिन ल धर के बइठक म अइन ओती ते भुवन, निर्मला, सरला अउ खुमान ह दीपक ल धर के पहुंचिन। वइसे गांव के बइठका म माईलोगन मन नइ जावय फेर गुनागारी के बइठका आय ते पाय के सब झिन आय रिहिन। अब बइठका म सवाल-जवाब सुरू होइस।

सरपंच-कइसे उमेंद बइठका काबर सकेले हवस?

उमेंद-तुमन तो सबो ल जानत हव सियान देवता।

सरपंच-तंय बता न रे भई अपन मुंहु ले।

उमेंद-मोर बेटी बैसाखिन ल बिहाव के झांसा दे के दीपक ह अम्मल म कर दे हे। अउ अब बिहाव बर मुकरत हे।

भुवन ह दीपक ल घर म समझा दे रिहिस हे कि बइठा म सियान मन पूछही त बैसाखिन ह लबारी मारत हे कहिके कहि देबे। दूसर के लइका ल मोर उपर थोपत हे कहिके कहि देबे। दीपक ह अपन ददा ल हव तो कहि दिस फेर ओकर आत्मा ह गवाही नइ देवत रिहिसे।

सरपंच ह पूछिस हं त बता भुवन, उमेंद ह काहत हे तेह सही हे ते नही? भुवन कथे-ए सब गलत हे, नही ते दीपक ल पूछ लेव। सरपंच ह कथे-देखो ग! दीपक ह का बताही, ए बात ल तो बैसाखिन ह बताही कि पेट म लइका हे ओकर असली बाप कोन आय? सरपंच ह पूछथे-कइसे बैसाखिन पेट म लइका हे ओकर बाप कोन आय? बैसाखिन ह लजा के बताय ल नइ धरत रिहिस त बिसाहिन ह खिसिया के कथे-बता न बैसाखिन। बैसाखिन ह साफ-साफ कहि दिस ए लइका के बाप दीपक आय। अब तो लोगन मन ल बोले बर मउंका मिल गे। कतको मन तो बइठके म केहे बर धर लिन, अच्छा त गांव के नोनी मन ल बिगाड़े बर ईंटा भट्ठा खोले हे। सियान मन चूप करावत दीपक ल पूछथे-कइसे दीपक बैसाखिन काहत हे तेह सिरतोन आय कि नही। भुवन ह दीपक ल कोचक के कथे-बता न रे मोर नोहे कहिके। दूसर के पाप ल तोर उपर मढ़त हवय। दीपक ह न नूकुर नइ करिस तहान सब झिन जान डरथे। बैसाखिन के पेट के लइका के बाप तो दीपक आय। दुनो पक्ष के बात ल सुन के सरपंच किहिस-ले त उमेंद अब तो बात ह फरियर हो गे हे। अब घर जावव उमेंद ह किहिस-मंय बैसाखिन ल अपन घर नइ लेगंव।

सरपंच-त काकर घर जाही?

उमेंद-बैसाखिन ह अब अपन घर जाही।

सरपंच-त अभी कइसे भेज देबे?

उमेंद-इहें बइठका म पंच परमेश्वर के आगू म बिहाव करवा के आजे दीपक संग बिदा करव।

(ए बात ह सियान मन ल जमगे)

सरपंच-उमेंद ह बने काहत हे। बइठका म बिहाव करके बैसाखिन ल खुमान के हाथ सौंप देथन।

भुवन, निर्मला, खुमान अउ सरला मन तो नखमरजी हो गे फेर स्वीकार करे के अलावा कोनो चारा नइ रिहिसे। बैसाखिन ह दीपक घर चल दिस। एती उमेंद अउ बिसाहिन ह अपन घर चल दिन। बइठका घलो उसल गे। उमेंद अउ बिसाहिन ह रात भर नइ सुत पइन। बेटी के एके घांव म बिदा होवई ले रात भर रोवत रहिगे। फेर एक बात के जरूर संतोष रिहिसे कि लोक लाज ह बांचगे। उमेंद अउ बिसाहिन ह रात भर गुनै। जेती जाबे तेती सुने बर मिलही कहिके। फेर दुनो परानी एक-दूसर ल समझई के समझा होइन।

एती भुवन अउ निर्मला घलो अलथ-कलथ के रात ल पहाए रिहिन हवय। भुवन ह घेरी बेरी अपन किस्मत ल कोसय कि अतेक बड़ इज्जत कमाये रेहेन सब धरे के धरे रहिगे। ए दीपक ह कुल दीपक नोहे बल्कि कुल बोरूक आय। हमर परिवार म दीया कस अंजोर करही कहिके गुने रेहेन फेर कुलुप अंधियार कर दिस। ब्रम्हा के लिखा ल कोन मेटा सकथे। खुमान अउ सरला ह घलो रात भर गुनत रहिगे। अब का करे जाय? अब तो दाई-ददा के सेवा करे बर देरानी घलो आ गे। दाई-ददा के भाग ह बढ़िया हे अब तो छोटे बहू हाथ के पानी घलो पिये बर मिलही। खुमान ह कथे-अब महतारी-बाप बर सहारा घलो हो जही। खुमान ह सरला ल कथे-मंय गुनत हवं तोर ट्रान्सफर ल भिलाई करा उतई हाईस्कूल म करवा लेतेंव। तहान सरिता ल भिलाई के बढ़िया स्कूल म पढ़ातेन। सरला ह घलो सरिता ल पढ़ाय के नाम ले के हामी भर दिस। अतेक दिन ले सास-ससुर अउ घर परिवार के जिम्मेदारी के सेती बने सरिख पति सुख ल घलो नइ पाय रिहिसे। सरला ह स्कूटी चला लेवत रिहिसे तिही पाय के घरेलू जिम्मेदारी निभाय बर जादा परेशानी नइ होवत रिहिसे फेर इमन ल अब कविता के चिन्ता घलो खावत रिहिस हवय।

दीपक ह दूसर जात के लड़की ल लान तो लेहे। ते पाय के जात समाज वाले मन अपन ले अलग कर दे रिहिन हवय। अब कविता बर सगा कइसे उतरही। सरला ह खुमान ल समझइस-सब ठीक हो जही सरिता के पापा सब ठीक हो जही।

खुमान के हौसला बाढ़िस तहान भिलाई लहुटगे।

सरला ह सबो घटना के जानकारी ल कविता ल फोन म बतावत किहिस-तंय फिकर झन करबे मोर राहत ले। खुमान ह भिलाई आ के कुछ दिन म सरला के ट्रान्सफर भिलाई ले आठ-दस किलोमीटर दूरिहा उतई हाईस्कूल म करवा डरिस। एकर बाद खुमान ह सरला अउ सरिता ल भिलाई के क्वार्टर म लइस। तहान सब झिन खुसी-खुसी रिहिन।

अब कांकेर के सबो सियानी बैसाखिन के हाथ म आ गे। भुवन अउ निर्मला ह मने मन भारी नाराज राहय फेर करे तो करे का। भिलाई म रहि नइ सकय अउ गांव ल छोड़ नइ सकय। कइसनो कर के भुवन ह डाड़ बउड़ी दे के समाज म मिलिस। जउन हो गे तउन हो गे फेर कविता के बिहाव ल जात बिरादरी म करना हे कहिके। भुवन ह निर्मला ल काहय-जमाना ठीक नइ हे वो, कविता के बिहाव ल घलो कर देतेन। निर्मला ह कथे-बने सरिख सगा उतरही त काबर नइ करबो। कविता ह थोरिक करिया बानी के रिहिस हे तिही पाय के बने सरिख सगा नइ उतरत रिहिसे।

कविता के अण्डर म चन्द्रमोहन ह काम करय। चन्द्रमोहन ह थोरिक विकलांग जरूर रिहिसे ओकर बावजूद घलो सामाजिक काम म बढ़ चढ़ के हिस्सा लेवय। आदिवासी मन के विकास खातिर हमेसा लगे रहय। आदिवासी लइका मन ल फोकट म टीवसन पढ़ावय ताकि गरीब आदिवासी लइका मन पढ़ लिख के अपन गोड़ म खड़ा हो जय। आदिवासी मन के विकास खातिर किरिया खाय रिहिसे। चन्द्रमोहन ह ड्यूटी ल घलो बड़ ईमानदारी ले करय। आदिवासी माईलोगन मन ल 'सखी सहेलीÓ स्व सहायता समूह बनवा के उमन ल आत्मनिर्भर बनावत रिहिसे। पुरूष मन ल स्वरोजगार देवाय बर सरलग लगे रहय। एक दिन आदिवासी महिला ल जेचकी अस्पताल म भरती करवा के लहूटत रिहिसे, रद्दा म फटफटी के स्लीप हो के गिरे ले चन्द्रमोहन के गोड़ ह टूट गे। सरगुजा के सरकारी अस्पताल म चन्द्रमोहन ल भरती कराय गिस। कविता घलो समय निकाल के चन्द्रमोहन ल देखे बर जावय। डॉक्टर ल कविता ह बिनती करे रिहिस कि कइसनो करके चन्द्रमोहन ल ठीक करना हे कहिके। डॉक्टर मन बड़ मेहनत करके चन्द्रमोहन के गोड़ म राड लगा के रेंगे के लइक बनाय रिहिसे। अब चन्द्रमोहन ह बैसाखी के सहारा चले फिरे बर धर लिस। चन्द्रमोहन ह लइका रिहिसे तभे ओकर ददा खतम हो गे रिहिसे। दाई के आंखी ह दिखत नइ रिहिसे। बस अब चन्द्रमोहन भर ह सहारा रिहिसे ओकरो एक्सीडेंट हो गे हे। एक तो पहिलीच ले थोकिन विकलांग रिहिसे। अस्पताल के छुट्टी होय के बाद एक दिन कविता ह चन्द्रमोहन के हालचाल पता करे बर ओकर घर गिस। त देखथे चन्द्रमोहन ह बैसाखी के भरोसा जतना हो सकय ओतना अपन महतारी के सेवा जतन करत रिहिस हवय। चन्द्रमोहन के संघर्ष ल देख के कविता ह प्रभावित हो गे। कविता ल देख के चन्द्रमोहन ह दंग रहिगे।

चन्द्रमोहन-आव मेडम आव।

कविता-हव।

चन्द्रमोहन-कुछु काम रिहिस त मोला बता दे रहितेव। मंय कर दे रहितेंव। आय के काबर तकलीफ करेव?

कविता-ए तो मोर फर्ज आय। मोला तो तोर हाल चाल जाने बर आनच्च रिहिस हवय।

चन्द्रमोहन-चाय पिहू ते सरबत मेडम।

कविता-कुछ नइ लागे। तंय हड़बड़ा झन चन्द्रमोहन।

चन्द्रमोहन के हड़बड़ाना स्वाभाविक रिहिस हवय काबर कि कविता मेडम ह चन्द्रमोहन के अधिकारी रिहिसे। कविता ह खुरसी म बइठ के देखत रिहिसे। चन्द्रमोहन ह बैसाखी ल धरे-धरे अपन दाई बर पानी लावत रिहिसे। कविता ह उठ के तुरते जा के चन्द्रमोहन के गिलास ल लान के, चन्द्रमोहन के महतारी ल पियाथे। कविता चन्द्रमोहन के दाई ल कथे-ले पानी पी दाई। चन्द्रमोहन के दाई ह पूछथे-तंय कोन अस बेटी? आज मोरो बहू रहितिस ते अइसने पानी पियातिस। कविता किहिस-मंय चन्द्रमोहन संग आफिस म काम करथंव दाई। पानी पियाय के बाद कविता ह चन्द्रमोहन के दाई हे पांव परत बिदा मांगिस। चन्द्रमोहन के दाई ह असीस दिस-खुसी राह बेटी, तोर चूरी अम्मर रहय। सुन के खुस हो के कविता ह चल देथे।

घर म जब कविता पहुंचिस त चन्द्रमोहन के बारे म ही सोंचत रिहिसे। बिचारा ह कइसे अतेक तकलीफ म रहिके घलो अपन महतारी के सेवा करत रिहिस हवय। दूसर के सेवा खातिर अपन गोड़ ल फैक्चर करवा डरिस। आदिवासी समाज के मनखे मन बर अतेक पीरा। चन्द्रमोहन बर कविता के मया ह लामे बर धर लिस।

एक दिन अपन आफिस म कविता ह चन्द्रमोहन ल बलवइस। चन्द्रमोहन ल कविता ह अपन आगू के खुरसी म बइठारिस।

कविता-चन्द्रमोहन!

चन्द्रमोहन-जी मेडम।

कविता-घर, ड्यूटी अउ समाज के बूता करत-करत थक जावत होबे। बिहाव काबर नइ कर लेवस?

चन्द्रमोहन-बिहाव हो गे मेडम।

कविता-(सुन के उदास हो के पूछथे) त फेर तोर पत्नी?

चन्द्रमोहन-ओह भगा गे मेडम।

कविता-काबर?

चन्द्रमोहन-मोर महतारी के सेवा नइ करौं किहिस। ओह किहिस मोर संग रहना हे त तोला तोर दाई ल छोड़े बर परही।

कविता-तंय का केहे?

चन्द्रमोहन-मंय केहेव, दाई ल नइ छोड़ सकंव।

कविता-ओकर बाद।

चन्द्रमोहन किहिस ओकर बाद बिहई ह मोला छोड़ के भगा गे। तहान मोर से तलाक ले के दूसर संग बिहाव कर डरिस। तब ले दाई ह बिक्कट दुखी रथे। जउन बहू ह पानी पियातिस उही बहू ह भगा गे। तब ले आज तक मंय दाई के इच्छा ल पूरा नइ कर सकत हवं।

कविता-अब का सोचे हवस। तोर दाई ल बहू हाथ के पानी पियईया मिल जही त बिहाव करबे?

चन्द्रमोहन-पहिली तो थोरिक विकलांग रेहेंव त मोर बिहई ह छोड़ के भगा गे। अब तो एक्सीडेंट म जादा विकलांग हो गे हवं।

कविता-तंय तन से विकलांग हवस मन से नही चन्द्रमोहन। बने बता, कोनो तोर संग बिहाव करे बर तइयार हो जही त करबे ते नइ करस?

चन्द्रमोहन-मोर संग कोन बिहाव करही मेडम? फेर मोर एक झिन बेटी घलो हवय।

कविता-कोनो करना चाही त करबे?

चन्द्रमोहन-कोन करही मेडम?

कविता-मंय करहंू तोर संग बिहाव अउ मंय तोर दाई ल ओकर बहू हाथ के पानी पिया हंू। अउ तोर दुलौरिन बेटी ल मंय अपन बेटी मानहंू।

चन्द्रमोहन-हड़बड़ा जथे। ए का काहत हव मेडम जी। आप अधिकारी अउ मय कलर्क अंव।

कविता-मंय जात-पात, छोटे-बड़े ल नइ मानव। मंय एक इन्सान ल अपन जीवन साथी बनाना चाहत हवं।

चन्द्रमोहन-तभो ले गुन लव मेडम जी। मंय आप ल सुख सुविधा नइ दे सकंव।

कविता-मोला ओकर चिन्ता नइ हे चन्द्रमोहन। हम्मन दुनो झिन तो एके जात के अन। अपन फैसला ल मंय सुना दे हवं अउ अब तंय विचार करके बताबे। मंय तोर निरनय के अगोरा करत रहंू। मंय तोर बेटी ल अपन बेटी मानहंू। मंय बच्चा घलो पैदा नइ करंव।

चन्द्रमोहन ह कविता के बात ल सुनके बैसाखी ल उठाथे अउ ओकर सहारा आगू बढ़ जथे। चन्द्रमोहन ह गुनत रहि जथे। एती कविता ह सबो बात ल अपन भउजी सरला ल बता देथे। सरला कथे-''त कर ले न बिहाव।ÓÓ

कविता-ओ लड़का मानत नइ हे।

सरला-का नाम हे ओकर?

कविता-चन्द्रमोहन।

सरला-नाम तो बढ़िया हे, गुन घलो बढ़िया होही।

कविता-सब बढ़िया हे फेर काबर मना करत हवय ते?

सरला-हमर जात के आय कि नोहे?

कविता-हमरे जात के आय। फेर दुजहा आय। ओकर एक झिन बेटी घलो हवय।

सरला-एमा डर के का बात हे? इन्सान होना चाही बस।

कविता-ओह बढ़िया इन्सान आय भउजी।

सरला-त कर लेना बिहाव। मंय तोर घर ल बसाहंू।

कविता-बड़े भइया खिसियाही त?

सरला-मंय तोर भइया ल मना लुहंू।

कविता-दाई-ददा खिसियाही त। एक तो दीपक भाई ह घर के इज्जत ल गिरा दे हे उपराहा म महूं ह मोर पसंद के लड़का संग बिहाव करहंू कहि के सोंचत हवं।

सरला-दीपक के बात अलग हे अउ तोर बात अलग हवय। मंय तोर खुसी के सेती सब ल मनाए के कोसिस करहंू। फिर तंय तो जात ले बेजात घलो नइ होवत हवस।

कविता-वो तो सब ठीक हे भउजी फेर चन्द्रमोहन ल कइसे समझावंव? ओह तो छोटे-बड़े के चक्कर म मानत नइ हे। मंय ओकर से बात करहंू। (मोबाइल नम्बर मिले के बाद सरला ह चन्द्रमोहन ल मोबाइल लगाथे।)

सरला-हलो!

चन्द्रमोहन-हलो, कोन?

सरला-मंय सरला बोलत हवं।

चन्द्रमोहन-कोन सरला मेडम?

सरला-कविता के भउजी सरला बोलत हवं।

चन्द्रमोहन-नमस्कार जी, नमस्कार। बोलव!

सरला-कविता ल तो आप जानत हव न?

चन्द्रमोहन-हव, मोर अधिकारी आय।

सरला-मंय ओ बात ल नइ काहत हवं।

चन्द्रमोहन-त का बात ल काहत हवस मेडम?

सरला-बिहाव के बारे म आपके कविता खातिर का खियाल हवय।

चन्द्रमोहन-मंय तो कविता मेडम ल बता दे हवं।

सरला-का बता दे हवस?

चन्द्रमोहन-मोर महतारी सियान हो गे हे अउ बिहई डाहर ले मोर एक झिन बेटी घलो हवय। अभी अभी जउन गोड़ ह कमजोर रिहिसे उही गोड़ ह एक्सीडेंट म जादा अउ कमजोर हो गे हवय। बैसाखी के सहारा मोर सरबस जिनगी ह चलत हवय।

सरला-त ओमे का बात हवय।

चन्द्रमोहन-बात हे। कविता बड़े पोस्ट म हवय अउ मय क्लर्क हवंव। ए सबो बात ल कविता मेडम ल मंय बता दे हवं।

सरला-चन्द्रमोहन, कविता बहुत समझदार लड़की आय। ओ तो काहत रिहिसे अपन सास के बिक्कट सेवा करहंू, 'बहू हाथ के पानी पियाहंू।Ó अउ तोर बेटी के खातिर संतान घलो पैदा नइ करंव। तोर बेटी के महतारी बनहूं कहिके काहत रिहिसे। त फेर एमा का एतराज हवय?

चन्द्रमोहन-आप काहत हवव त मोला कोनो एतराज नइ हे। फेर एक घांव अउ बिचार कर लुहू।

सरला-एमा बिचारे के का बात हे, हम्मन सब सोच डरे हवन। तोर डाहर ले ए रिसता ल हां मानव।

चन्द्रमोहन-जी, फेर एक ठन बिनती हे। बिहाव बर जादा खरचा करे के मोर हिम्मत नइ हे।

सरला-त तंय का चाहत हवस? तंय जइसने चाहबे ओइसने बिहाव होही।

चन्द्रमोहन-आदर्श बिहाव करहंू कहिके सोंचत हवं।

सरला-चल हम्मन राजी हवन। आदर्श बिहाव ही होही। देखावटी खरचा करके घर के अर्थव्यवस्था ल खराब करे के जरूरत नइ हे।

चन्द्रमोहन-जी। आप ठीक काहत हव।

सरला-अब मंय फोन करके आप ल खभर करहंू।

चन्द्रमोहन-जी।

सरला ह कविता ल सबो गोठबात ल बात दे रिहिस हवय। कविता मने मन खुस रहय। अपन सपना ल सिरतोन होवत देखत रिहिस हवय। आफिस म जब चन्द्रमोहन ह कविता ल देखय त लाज के मारे मुड़ी ल गड़िया लेवय। कविता घलो लजा जावय। धीरे-धीरे दुनो के हिरदे म बिहाव के बंधना के डोरी ह लामे बर धर लिस।

एती सरला ह सब बात ल खुमान ल बात देथे। खुमान ह अपन ददा ल बता देथे। भुवन अउ निर्मला ह दुनो झिन बइठे-बइठे गोठियावत रिहिन-

भुवन-खुमान के फोन आय रिहिसे।

निर्मला-काय काहत रिहिसे?

भुवन-कविता ह लड़का पसंद कर डरे हे कहिके।

निर्मला-यहू टूरी ह दीपक कस नाक कटवाही तइसे लागत हे।

भुवन-नाक ल नइ कटवावत हे।

निर्मला-कइसे?

भुवन-जात सगा वाले आय।

निर्मला-त लड़का काय करथे?

भुवन-ओकरे आफिस म क्लर्क हवय। फेर लड़का ह दुजहा आय अउ ओकर एक पांव ह एक्सीडेंट म थोकिन विकलांग घलो हो गे के काहत रिहिस हे।

निर्मला-ए टूरी ल का हो गे हे?

भुवन-कविता ल कुछु नइ होय हे निर्मला बल्कि तोला कुछु हो गे हवय।

निर्मला-कइसे, मोला का हो गे हवय?

भुवन-एसो कविता के बिहाव करबो कहिके सोचे रेहेन। ओह सिरतोन होवत हवय।

निर्मला-कहां सिरतोन होवत हवय। एक झिन बेटी आय। बने सरिख लड़का संग बने धूमधाम ले बिहाव करबोन कहिके गुने रेहेन फेर कविता ह-

भुवन-कविता बहुत समझदार हवय निर्मला। ओह जउन भी निरनय लिही सोच बिचार के लिही। अउ महतारी-बाप ल तो लइका मन के खुसी ल देखना चाही। आखिर दीपक के खुसी खातिर अनजतनीन टूरी ल बहू बनायेन ते नही तेला बता?

निर्मला-वो तो सब ठीक हे फेर सरला ले घलो सलाह ले लेथन।

भुवन-बड़े बहू सब ल जानत हे कहिके खुमान ह बतावत रिहिस हवय।

निर्मला-ले त फेर खुमान ल हरी झंडी दे दे, लड़का वाले मन ल बता दिही। हमु मन ल तइयारी करे बर परही।

भुवन-हम्मन ल जादा तइयारी करे के जरूरत नइ हे। लड़का ह आदर्श बिहाव करहंू कहिके काहत हवय।

निर्मला-त का बेटी ल खाली हाथ भेज देबे? कुछु गाहना गुरिया दे ल लागही कि नही? तिंही बता।

भुवन-ले त फेर तोला जउन करना हे त कर। मंय सोंचत हवं भिलाई म सेक्टर छै के गायत्री मंदिर म खुमान अउ कविता के बिहाव ल कर देबोन।

निर्मला-बने काहत हस कविता के ददा। खुमान ल बता दे इतवार के भिलाई म सेक्टर सिक्स के गायत्री मंदिर म खुमान अउ कविता के बिहाव ल करबोन। जउन सराजाम के जोरा करे बर होही ओला सरला ह कर लिही। एती ले गाहना गुरिया ल धर के हम्मन आबोन।

ए सब बात ल भुवन अउ निर्मला ह दीपक अउ बैसाखिन ल बतइन। दीपक ह तो खुश रहिबे करिस फेर ओकर ले जादा बैसाखिन ह खुस रिहिस। मने मन काहत रिहिस हवय-''चलो अच्छा हो गे, खरचा ले बांच गेन। आदर्स बिहाव करत हवय तेह बने बात आय।ÓÓ

चन्द्रमोहन ह अपन बेटी अउ दू झिन संगवारी ल धर के कार म गायत्री मंदिर पहुंचिस। भुवन, निर्मला, खुमान, सरला अउ बैसाखिन मन कविता संग पहिलिच ले गायत्री मंदिर पहुंच गे रिहिन। गायत्री परिवार ले जुड़े सदस्य मन ह गायत्री विधि विधान ले कविता अउ चन्द्रमोहन के बिहाव ल सम्पन्न करवईन। बिहाव सम्पन्न होय के बाद कविता ल बिदा कर के भुवन घलो सपरिवार अपन बड़े बेटा खुमान के क्वार्टर म पहुंच गे। बिहनिया ले भुवन, निर्मला, दीपक अउ बैसाखिन ह कांकेर जाय बर निकल गे। सब झिन खुसी-खुसी कांकेर पहुंच गे। बिहान दिन ले सब झिन अपन-अपन काम बूता म लग गे।


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नौ


नंदौरी गांव वाले श्यामलाल ह अपन दुलरूवा बेटा खूबचंद ल बिक्कट पढ़ाय रिहिस हवय। मध्यम परिवार के खूबचंद ह जादा ऊंच रिहिस न जादा बौना। खूबचंद ह ननपन ले तेज तर्रार रिहिस हवय। ओहा गांव के नाचा, रामलीला अउ कृष्ण लीला म बराबर भाग लेवत राहय। खूबचंद ह अपन बेटा ल चेता दे रिहिस हवय-''देख बेटा काकरो पिछलग्गू झन रहिबे।ÓÓ जउन क्षेत्र म जाबे उहां अपन आप ल अव्वल बने बर मेहनत करबे। तिही पाय के गांव म पहिली कक्षा ले हाईस्कूल तक कप्तान रिहिस हवय। खूबचंद ह बी.ए. करिस तहान श्यामलाल ह किहिस-नौकरी चाकरी करबे का? खूबचंद ह किहिस-नौकरी मिल जही ते करहंू नही ते पढ़ई ल जारी रखहंू। खूबचंद अपन दाई-ददा के बिक्कट खियाल रखय। खूबचंद के मन म देशभक्ति के जस्बा रहाय। ननपन म गुलेल चलई ह ओकर सउंख रिहिसे। गुलेल ल ओह सैनिक मन के रायफल समझे। खूबचंद के निसाना अचूक रहाय। बस ओकर एके ठन इच्छा रिहिसे कि सेना म भरती हो के देस के सेवा करे के। खूबचंद ल तो देशभक्ति के नसा चढ़े रिहिस हे।

उही समय गजट (अखबार) म थल सेना के भरती बर विज्ञापन निकलिस, ए बात ल अपन दाई-ददा ल बतइस। ओकर ददा ह तो चाहते रिहिसे, खूबचंद ह देस सेवा म जावय कहिके। फेर ओकर महतारी के थोरको इच्छा नइ रिहिसे कि ओकर दुलरूवा बेटा ह सेना म जावय। काबर कि खूबचंद ह सेना म चल दिही तहान हमर मन के देख रेख कोन करही? तीर तखार म मास्टर मुंसी के नौकरी मिल जतिस ते बने रहितिस। निरूपमा ह अपन बेटा खूबचंद ल समझइस-बेटा तंय ह हम्मन ल छोड़ के सेना म दूरिहा चल देबे तहान हम्मन बिन आधार के रहि जबोन। खूबचंद कथे-पहिली मोला नौकरी तो लगन दे दाई तहान फेर ओकरो बेवस्था हो जही। निरूपमा कथे पक्का। खूबचंद भरोसा देवाथे-हव पक्का। तोर नौकरी लगे के बाद जउन बात ल मंय कहंू ते बात ल मानबे। खूबचंद किहिस-हव मानहूं।

खूबचंद ह पढ़ई-लिखई म हुसियार रिहिस हे। ओकर जनरल नालेज तगड़ा रिहिसे। कैचिंग पावर जबरदस्त रिहिस हे। खूबचंद ह अपन उमर के संगवारी मन संग बहुत कम बल्कि सियान मन करा किस्सा कहानी सुने बर जादा बइठे रहाय। ननपन ले सीखे के अउ लिखे के सौकिन रिहिस हवय। नदिया, नरूवा म मछरी-कोतरी मरई तो ओकर आदत रिहिसे। खूबचंद के आदत ल देख के ओकर ददा बिक्कट खिसियावय-''जीव हत्या बने बात नोहे बेटा।ÓÓ फेर खूबचंद ह तो ए दू ठन मछरी मिल जतिस तहू ल घर म लान के, सण्डेवा काड़ी म भंूज के लाली मिरची अउ गड़ा वाले नून म नुनगुदा बना के खावय। पढ़ई-लिखई, खेलई-कुदई के संगे-संग घर के काम बूता ल घलो आगू-आगू ले कर डरय।

सेना म भरती खातिर सारिरिक फिटनेस जरूरी रहिथे। खूबचंद ह जानत रिहिस हवय, दउड़ म तो पास हो जहंू, छाती के नाप जोख ह घलो बने रिहिसे फेर खूबचंद ल एके ठोक चिन्ता सतावत रिहिस, ओ चिन्ता रिहिस ऊंचाई के। ऊंचाई ह सेना म निर्धारित मापदंड के मुताबिक करारी आवत रिहिसे। कहंू नापे जोखे म ऊंच नीच हो जही तहान उही म गड़बड़ाही। खूबचंद के आत्मविश्वास तगड़ा रिहिस। तिही पाय के अब सेना म भरती खातिर तइयारी करना सुरू कर दिस। पहाती चार बजे ले उठ के दउड़ना, कसरत करना अउ रोज आमा पेड़ म जा के दूनो हाथ म डारा ल धर के झूलना सुरू कर दिस। ओह जादा समय आमा पेड़ म लगावय ताकि ओकर ऊंचाई ह बाढ़य। खूबचंद ह तरिया ले नहा के घर पहुंचय तहान निरूपमा ह अंगाकर रोटी म गाय के धींव चूपर के अपन बेटा ल देवय। निरूपमा के जतन ह खूबचंद ल ठोस बना दे रिहिसे।

जउन दिन भिलाई म नेहरू नगर करा पुलिस ग्राउण्ड म सारिरिक परीच्छा रिहिस हवय ओ दिन अपन दाई-ददा के असीस ले के संगे-संग कुलदेवी अउ देवी-देवता मन ल सुमर के पहुंचिस। फौज म अधिकारी मन ठोक-बजा के भरती लेवे। काबर कि कमजोर कैंडिटेड ह सेना के जिम्मेदारी ल नइ निभा सकय। सेना म भरती बर कोनो किसम के समझौता नइ करे जाय। खूबचंद ह आमा पेड़ म झूल-झूल के अपन ऊंचाई ल घलो बढ़ा डरे रिहिस हवय। नाप-जोख, दउड़-भाग सुरू होइस। एक के बाद एक सबो प्रतियोगिता म सफल हो गे। जब लिस्ट निकलिस त चयन लिस्ट म सबले उप्पर म खूबचंद के नाम रिहिसे। खुसी-खुसी खूबचंद ह मिठई धर के घर पहुंचिस। मिठई के डब्बा ल देख के ओकर दाई-ददा मन जान डरिस, जरूर खुसखबरी होही। खूबचंद ह अपन दाई-ददा के पांव परके मिठई के डब्बा देवत किहिस-''फौज म मोर नौकरी लग गे।ÓÓ तहान तीनो झिन हंसी-खुसी मिठई खईन।

बिहनिया उठ के खूबचंद ह अपन दाई-ददा ल बतइस कि अब मोला सेना म ज्वाइन करे बर महीना दिन बाद कशमीर जाना हे। श्यामलाल ह कथे-मोला तोर उपर गर्व हे बेटा तंय भारत माता के सेवा करे बर कशमीर जाबे। अतना ल सून के निरूपमा कथे-''त ए माता के कोन सेवा करही?ÓÓ

श्यामलाल-तहंू ह निरूपमा, खूबचंद ल निरास झन कर। बल्कि ओकर हौसला बढ़ा। जब भारत भुइंया रही त तो हम्मन सुरक्षित रहिबो।

निरूपमा-बने काहत हस खूबचंद के ददा। फेर हम्मन कइसे करबो?

श्यामलाल-कइसे करबो तेला खूबचंद ल पूछ।

निरूपमा-कइसे खूबचंद, तंय मोर संग वादा करे रेहे कि मंय कहंू तेला मानहंू कहिके।

खूबचंद-काला दाई? बता न।

निरूपमा-नही झन कहिबे।

खूबचंद-कभू तोर बात के उजर करे हवं?

निरूपमा-तंय तो कश्मीर जावत हस। त अइसे कर हमर मन बर बहू लान दे तहान।

खूबचंद-बस अतके बात।

निरूपमा-हव।

खूबचंद-अइसे करव, तुमन लड़की खोज के रखव। साहब करा छुट्टी मांग के आ जहूं। तहान मंय तुंहर बर बहू लान दुहंू। ''बहू हाथ के पानी पिये के तुंहर साध ह पूरा घलो हो जही।ÓÓ

खूबचंद ह मिलेट्री ज्वाइन करे बर बोरिया बिस्तर धर के अपन संगवारी मन संग जाय बर दुर्ग रेल्वे स्टेशन ले गाड़ी बइठथे। खूबचंद ह कशमीर जा के बार्डर म तैनात हो गे। भारत माता के रक्षा खातिर खूबचंद ह बन्दूक ताने बार्डर म दुस्मन बैरी मन के उपर नजर रखे रिहिसे। ताकि कोनो भी आतंकवाद कश्मीर म झन खुसर सकय।

खूबचंद के कश्मीर जाय के बाद घर ह सुन्ना सुन्ना लागय। निरूपमा ह श्यामलाल ल किहिस-खूबचंद बर बहू खोजे के सुरू करतेव। लड़की जमतिस तहान खूबचंद ल खबर कर दिंगे। श्यामलाल ह निरूपमा के बात म हामी भर दिस। श्यामलाल ह विनय संग खूबचंद बर लड़की खोजे बर निकलिन। खूब घूमिन फेर रिसता जमबे नइ करत रिहिसे। लड़की तो कतनो पसंद अइस फेर लड़की वाले मन ह लड़का मिलेट्री म हवय कहिके मना कर देवय। लड़की वाले मन ल इही डर सतावय कि मिलेट्री वाले मन अपन गोसइन ल संग म नइ लेगय कहिके। त फेर बिहाव के का मतलब होही।

विनय ह श्यामलाल ल किहिस-भइया नवागांव म मोला लड़की पता चले हे, उहें चलबोन का? श्यामलाल ह हतास हो गे रिहिसे। श्यामलाल ह विनय ल किहिस-भइगे विनय अब खूबचंद बर लड़की देखे बर नइ जावन। एसो खूबचंद के बिहाव के लगन नइ हे तइसे लागथे। तभो ले विनय ह श्यामलाल ल मनाथे। विधि के रचना ल कोनो नइ जाने भइया। का पता उहें लिखे होही खूबचंद बर जीवन साथी। तब ले दे के श्यामलाल ह मानिस जाय बर। विनय ह नवागांव वाले अपन जुन्ना संगवारी पालेश्वर ल सबो हालचाल ल बता चूके रिहिसे। देख रे भई, हमर बेटा ह मिलेट्री म हवय। लड़की वाले मन मिलेट्री वाले लड़का ल अपन लड़की दिही के नइ दिही। पालेश्वर ह सबो बात ल रामनाथ ल बता चूके रिहिसे। रामनाथ ह पालेश्वर ल किहिस-पहिली सगा मन ल तो आवन दे रे भई। पहिली दुलारी ल पसंद करही ते नइ करही। ओकर बाद बात ल आगू बढ़ाबोन। पालेश्वर ह रामनाथ के बात म हामी भर के, दुलारी बेटी ल देखे बर सगा मन ल बलवइस।

श्यामलाल अउ विनय दुलारी ल देखे बर पालेश्वर संग रामनाथ के घर गिन। सरला अउ खुमान घलो आय रिहिन। रामनाथ के परिवार ह सगा सोदर मन के बढ़िया मान गउन करिन। सगा मन दुलारी ल घलो देखिन। जाय के समय विनय ह कहि दिस-ले हम्मन घर जा के बताबोन। श्यामलाल अउ विनय ह लगे हाथ दू-चार जघा लड़की अऊ देखे रिहिन हे। श्यामलाल अउ विनय घर पहुंचिन तहान निरूपमा ह चाहा बनइस। चाहा पियत पियत गोठियावत घलो रिहिन।

विनय-लड़की तो सुन्दर हे भइया, खूबचंद बर बने फभही।

श्यामलाल-बने काहत हस विनय। लड़की के ऊंचाई ह घलो खूबचंद के खांध तक आही। निरूपमा-त नोनी के का नाम हवय?

विनय-नोनी के दुलारी नाम हवय।

निरूपमा-नाम तो बढ़िया हवय। एकात जघा अऊ नइ देख ले रहितेव।

श्यामलाल-देखे हवन।

निरूपमा-उमन कइसन हवय।

श्यामलाल-कोनो ऊंच हे त कोनो बुटरी काठी के हवय। मंय सोंचत हवं इही ल फायनल करथन। खूबंचद ह एला मन नइ करही तब फेर दूसर अऊ खोजे के बारे म सोंचबो।

निरूपमा-बने काहत हव।

बिहान दिन लड़की वाले मन के डहार ले पालेश्वर फोन करिस।

पालेश्वर-हलो, पालेश्वर बोलत हवं।

विनय-जै जोहार सगा!

पालेश्वर-कुछु सोंचेव का?

विनय-हम्मन ल तो लड़की पसंद हे फेर खूबचंद ह आही तहान देख के फायनल करही।

पालेश्वर-बने काहत हवस सगा। त खूबचंद ह कब आही?

विनय-आठ दिन बाद आही एक महीना के छुट्टी ले के तहान उही एके महीना म लड़की फायनल करके बिहाव घलो करबोन।

पालेश्वर-बने सोचे हव सगा। जोहार ले!

विनय-जोहार ले!

पालेश्वर-आय के पहिली खबर कर दुहू तहान मंय रामनाथ भइया ल बता दे रहूं।

विनय-हव सगा। जै जोहार!

पालेश्वर-जय जोहार!

सगा मन के बिदा करे के बाद सरला अउ सरिता ल एक-दू दिन बर नवागांव म छोड़ के खुमान ह भिलाई आ गे। बिहान दिन सरला ह दुलारी ल उदास देख के पूछथे-कस बहिनी काबर उदास हवस?

दुलारी-नही दीदी मंय ह उदास नइ हव।

सरला-त मुंहु ल काबर ओथराए हवस? का मिलेट्री वाले लड़का संग बिहाव नइ करना चाहत हवय। कोनो बात नइ हे। मंय ह दाई-ददा ल बता देथंव। काहे कि अभी तो बात ह आगू बढ़ेच्च नइ हे।

दुलारी-ओइसन बात नोहे दीदी। मंय ह का अतेक गरू हो गे हवं। तेमा अतेक जल्दी मोला बिदा करना चाहत हव।

सरला-नही बहिनी, अइसन बात नोहे। एक न एक दिन तो बेटी ल मइके ले बिदा हो के अपन ससुरार जायेच्च ल परथे। तभो ले तोर मन ह बिहाव करे के इच्छा नइ होही त मंय दाई-ददा ल मना कर देथंव।

दुलारी-नही दीदी नही।

ओतके बेर रामनाथ अउ केकती ह हंसा संग बजार ले आथे। साग-भाजी, धनिया मिरची के संग म कलिन्दर घलो लइस। रामनाथ ह हंसा ल किहिस-बेटी कलिन्दर ल पानी म बुड़ो दे तहान पोइलहू। हंसा ह हव कहिके कलिन्दर ल पानी म बुड़ो देथे। तब तक हंसा ह थारी अउ हंसिया के बेवस्था म लग जथे। कलिन्दर ह ठण्डा होथे तहान सब झिन एके जघा बइठ जथे। केकती ह कलिन्दर ल हंसिया म चानी-चानी कांट के थारी म राखत गिस। केकती ह दुलारी ल किहिस-बेटी, सबो झिन ल एक-एक चानी देवत जा। दुलारी ह सब झिन ल कलिन्दर देथे। तहान सबो झिन कलिन्दर खाथे। कलिन्दर खावत-खावत सरला कथे-कलिन्दर बिक्कट मिट्ठा हे।

हंसा-हव दीदी। फेर दुलारी दीदी के चेहरा ह सिट्ठा दिखत हवय।

सरला-अइसन नोहे हंसा। तोरो दिन आही। बिहाव के बात ल सुने के बाद अन्तस ह खुस रहिथे फेर चेहरा ह उदास हो जथे।

हंसा-उदास काबर होथे दीदी?

सरला-मइके ल छोड़े के दुख म उदास अउ पति पाय के खुसी रथे।

हंसा-वइसन म मंय बिहाव नइ करंव।

सरला-काबर?

हंसा-सब झिन ससुरार चल देबोन तहान दाई-ददा के सेवा कोन करही?

केकती-एक दिन तो सब ल मइके ले बिदा होय बर परथे। महंू तो मइके ल छोड़ के आए रेहेंव।

सरला-दाई मंय तो सोंचत हवं। हंसा के बिहाव ल घलो कर देतेन। बिक्कट पुचपुचावत हवय।

हंसा-(लजा के) नही, अभी मंय बिहाव नइ करंव।

रामनाथ-बने काहत हवस बेटी, एके संघरा दुनो झिन ल बिदा नइ करन। घर ह भांय-भांय लागही।

केकती-कइसे हंसा, कर देवन तोरो बिहाव ल?

रामनाथ-हंसा के बिहाव ल तो बाद म सोचिंगे। अभी तो लड़का ह दुलारी ल देखेच बर नइ आय हवय, पसंद करही ते नही।

केकती-फेर मिलेट्री वाले लड़का आय।

रामनाथ-एमा तो हम्मन ल गर्व होना चाही। हम्मन ल मिलेट्री वाले दमांद मिलत हवय।

सरला-लेव न लड़का ल पहिली आवन तो दव तहान महंू भिलाई जाहूं। मोला ड्यूटी ज्वाइन करना हे अउ सरिता के पापा बर टिफीन घलो बनाय बर परथे ओहा शिफ्ट ड्यूटी वाले घलो आय।

रामनाथ-बने काहत हस बेटी, अपन-अपन घर ल देखव।

पालेश्वर ह रामनाथ के घर आ के बतइस कि सगा मन के फोन आय रिहिसे।

रामनाथ-काय किहिस सगा मन?

पालेश्वर-खूबचंद ह एक महीना के छुट्टी ले के आवत हवय। इही बीच लड़की फायनल करही अउ बिहाव करही।

रामनाथ-अउ कुछु किहिस का?

पालेश्वर-हव।

रामनाथ-काय किहिस हे?

पालेश्वर-अवइया इतवार के खूबचंद ह दुलारी ल देखे बर अवइया हवय।

दुलारी ह ओतके बेर कम्प्यूटर कोचिंग ले आय रिहिसे। सुन के मने मन खुस होवत रिहिस हवय। लड़का कइसे होही, आदत कइसे होही। मोला पसंद आही कि नही ओहा मोला पसंद करही ते नही।

ओतके बेर केकती ह आ गे। केकती ह पालेश्वर ल पूछिस का होइस बाबू? पालेश्वर किहिस-खूबचंद ह इतवार के अवइया हवय। सुन के केकती घलो खुस हो गे। तुरते फोन म सरला ल बता दिस। इतवार के सरला अउ खुमान घलो पहुंच गे।

श्यामलाल अउ विनय ह खूबचंद ल तीन-चार जघा लड़की देखावत देखावत नवागांव दुलारी ल देखाय बर पहुंचिन। रामनाथ के परिवार ह सगा मन के रद्दा जोहत रिहिस हवय। सगा मन मोबाइल के माध्यम ले पालेश्वर के सम्पर्क म रिहिन। तिही पाय के पहिली ले तइयारी कर डरे रिहिन हे। खूबचंद ह दुलारी ल देखिस तहान ओला पसंद कर डरिस। दुलारी ल घलो खूबचंद पसंद आ गे। घर जा के श्यामलाल ह रामनाथ ल अपन रिजल्ट बता दिस। लड़की हम्मन ल पसंद हवय। अब लगन पत्रिका निकाल के बिहाव के तइयारी करथन। अक्ती भांवर बर लगन निकलिस, दुनो पक्ष ह खुसी-खुसी बिहाव के तइयारी म लग गे। रामनाथ ह तो बराती मन के बेवस्था म कोनो कसर नइ छोड़े रिहिसे।

अक्ती भांवर ले के बाद श्यामलाल ह बहू बिदा करवा के नंदौरी लहुट गे। निरूपमा ह बिक्कट खुस राहय। अब तो ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बर मिलही कहिके। ओती दुलारी के बिदा होय के बाद रामनाथ केकती हंसा अउ सरला बिक्कट दुखी रिहिन। घर ह सुन्ना-सुन्ना लागत रिहिसे। सरला ह अपन दाई- ददा ल सम्हाले बर आठ दिन मइके म रिहिस। खुमान ह काम बूता झरे के बाद भिलाई लहूट गे रिहिसे। बाद म सरला घलो हंसा ल अपन दाई-ददा के बने खियाल रखबे कहिके चेता के भिलाई चल दिस।

बर-बिहाव होये दुए-चार दिन होये रिहिसे। एकाएक कश्मीर ले फोन आ गे। पाकिस्तान बार्डर म लड़ाई छिड़ गे हे तोला तुरते ड््यूटी ज्वाइन करना हे। खूबचंद ह फोन ल सुन के अकबकागे। खूबचंद ह धर्मसंकट म परगे। नवा-नवा बिहाव होय रिहिस हवय, बोस ल बोल के छुट्टी ल बढ़वाहंू कहिके सोचे रिहिस फेर उल्टा हो गे। भारत माता के रखवारी बर जाना हे कहिके खूबचंद ल अंतस ले गर्व होवत रिहिसे। दुलारी ह खूबचंद के चेहरा ल भांप के किहिस-

दुलारी-कइसे का हो गे?

खूबचंद-कुछु नइ होय हे।

दुलारी-कुछ तो बता, मंय हवं न तोर संग।

खूबचंद-संग म अभी तो हस फेर मोला तोर संग ल छोड़ के जाय बर परही।

दुलारी-कहां जाय बर परही?

खूबचंद-कश्मीर।

दुलारी-त अभी तो छुट्टी सिराय नइ हे न?

खूबचंद-अचानक पाकिस्तान बार्डर म लड़ाई छिड़ गे हे, मोला तुरते बलावत हे।

दुलारी-त एमा हैरानी के का बात आय?

खूबचंद-मंय तोर मया के अंछरा म बंधागे हवंव दुलारी। मोर मन ह जाय बर नइ करत हे मोर मन तो करथे मिलेट्री ले रिजाइन दे दवं।

दुलारी-तंय कइसे गोठियाथस जी, सबो झिन अइसने सोंचही त भारत महतारी के सुरक्षा कोन करही?

खूबचंद-त मोर महतारी के सेवा ल कोन करही?

दुलारी-मंय करहू। तंय एती के थोरको फिकर झन करबे। मंय तो मिलेट्री वाले पति पाए हवं कहिके मोला गर्व होथे अउ तंय। अइसने गोस्वामी तुलसीदास ह अपन गोसइन के मया म फंसे रहितिस ते रमायन नइ लिखाय रहितिस। तहंू ल पाकिस्तान ल हरवा के हमर देस के नाम ल उंच करना हे।

खूबचंद-बने काहत हवस दुलारी। मोर मति ल का हो गे रिहिस। मंय ह पत्नी प्रेम ल देस प्रेम ले बड़े मानत रेहेंव। बने करे मोर आंखी ल खोल देस।

दुलारी-भइगे गोठियाते रहिबे कि जाय के तइयारी घलो करबे।

खूबचंद-चल फेर बैग, सूटकेस म समान मन ल जोर। अउ सुन-

दुलारी-का हो गे?

खूबचंद-रद्दा बर ठेठरी अउ खुरमी घलो जोर देबे।

दुलारी-एकर चिन्ता झन कर, मंय सब जोर देथंव।

इंकर तइयारी ल देख के निरूपमा ह खूबचंद ल कथे, कहां जाय बर जोरा करत हव? दुलारी संग अपन ससुरार जाबे का दीपक? इही तो घूमे फिरे के बेरा आय बेटा। दू-चार दिन म अपन ससुरार डाहर ले घूम-घुमा के आ जा तहान ड्यूटी म लहूटे के बेरा हो जही। खूबचंद कथे लहूटे के बेरा हो जही नही, हो गे हे दाई।

निरूपमा-कहां लहूटे के बेरा हो गे हे?

खूबचंद-कश्मीर।

निरूपमा-तंय कइसे गोठियाथस बेटा। दुए दिन होय हे बिहाव होय अउ जाना हे कहिथस।

खूबचंद-मोला जाय बर परही दाई! भारत महतारी के उपर संकट आ गे हे।

निरूपमा-त तोला अपन दाई के थोरको फिकर नही हे?

खूबचंद-हवय दाई। मोला तुंहर फिकर रिहिसे तभे तो बिहाव करके बहू लान दे हवं।

निरूपमा-वो तो बने करे हस बेटा फेर बहू ल घलो छोड़ के जाबे?

खूबचंद-हव दाई, दुलारी से मोर बात हो गे हे।

श्यामलाल-त उहां क्वार्टर नइ मिलय बेटा?

खूबचंद-मिलथे ददा फेर अभी ए सब सोचे के नइ हे। पाकिस्तान बार्डर म लड़ाई छिड़ गे हे। मोला तुरते जाना हे।

श्यामलाल-त बहू ल बता दे हस न?

खूबचंद-हव दुलारी ल समझा दे हवं। ओह तो भारत महतारी के सेवा करे खातिर भेजे बर तइयारी करत हवय।

ओतके बेर कश्मीर ले फेर फोन आ जाथे। खूबचंद कथे-जी सर, मंय अभी तुरते निकलत हवं। बात ल सुन के श्यामलाल के छाती तन जथे। अपन बेटा उपर गर्व होथे। आज मां भारती के रक्षा बर मोर बेटा जावत हवय। निरूपमा घलो ठेठरी, खुरमी बनाय बर भीड़ जाथे। तइयारी पूरा होय के बाद श्यामलाल, निरूपमा अउ दुलारी खूबचंद के आरती उतार के माथ म लाल टीका लगा के बिदा करथे।

ओती पाकिस्तान बार्डर म जंग छिड़ गे रिहिसे। टेलीविजन म रोज लड़ाई के समाचार चलय। भारत अउ पाकिस्तान के बीच लड़ाई के समाचार ल सुन-सुन के निरूपमा, श्यामलाल अउ दुलारी के जीव ह धुकुर-धुकुर करय। खूबचंद ल लिखे के बिक्कट सउंख रहाय। जब भी समय मिलय रोज के रोज संस्मरण लिखय। ए डहार दुलारी ह अपन सास-ससुर के दिन-रात सेवा करय। श्यामलाल अउ निरूपमा ल बहू के राहत ले कोनो किसम के फिकर नइ रहाय तभो ले धियान ह खूबचंद डहार जाय रहाय। दुलारी अपन कम्प्यूटर के पढ़ई ल पूरा कर डरिस। सास-ससुर ल समय-समय म नास्ता-खाना दे के अपन लिखई म लग जय। संगे संग सिलाई कढ़ाई करे बर घलो धर लिस। दुलारी अपन आप ल अतना व्यस्त कर दिस कि समय कइसे कटय तेह पतच नइ चलय।

नंदौरी गांव वइसे भी दाऊ मन के बस्ती आय। उहां के अन्नपूर्णा भण्डार बहुत प्रसिद्ध हवय। श्यामलाल खेती खार ल सम्हालय। निरूपमा ह घर म अपन बहू के संग देवय। काम बूता ल दुनो झिन मिल के कर डरय। कभू-कभू निरूपमा श्यामलाल संग खेत घलो चल देवत रिहिस। श्यामलाल ह खेत डाहर धान ल निंदवाय बर गे रिहिस हे। बनिहार मन ददरिया झोरत धान ल निंदत रिहिन हवय। खेत ले लहूटत लहूटत मुुंधियार हो गे रिहिस हवय। मुड़ म पागा, पंछा, सलूखा पहिरे हाथ म लउठी धरे राहय। बरसात के मौसम आय कहिके छत्ता घलो धरे रिहिस हवय। वहू दिन कीरा मकोरा के डर के मारे हाथ म लउठी धरे रिहिस हवय। बनिहार मन के संग म श्यामलाल ह मेड़े-मेड़ आवत रिहिस हवय। श्यामलाल आगू-आगू अउ बनिहार मन ओकर पाछू-पाछू रेंगत रिहिन। श्यामलाल के आगू ले डोमी सांप ह सलमल-सलमल जावत रिहिस हवय। मुंधियार होय के सेती सांप ल नइ देख पइस अउ हुरहा डोमी सांप के पूछी ल खूंद परिस। डोमी सांप ह अपन जान बचाए बर श्यामलाल के गोड़ म हमला करके चाब दिस। श्यामलाल के अरे द ददा रे काहत ले सांप ह कांट के उलट के अपन जान बचा के भाग गे। अइसे केहे जाथे कि सांप ह कांट के उलटथे त जहर ह सरीर म पहुंचथे कथे। डोमी बिक्कट जहरिहा रथे। श्यामलाल ह सांप-सांप काहत गोड़ ल धर के बइठ गे।

बनिहार मन सांप ल लहरावत जावत देख डरे रिहिन। सबो झिन चिन्ह डरे रिहिन हे कि ओहा गउंहा डोमी आय। गउंहा डोमी ह बिक्कट बिख वाले होथे। बनिहार मन सब झिन श्यामलाल के सेवा जतन म लग गे। एक झिन ह अपन गमछा ल चीर के श्यामलाल के गोड़ म सांप चाबे रिहिस तेकर उपर बांधिस। ताकि जहर ह उप्पर झन चघय। देखते-देखते गांव म हल्ला हो गे। कोनो किहिस बइगा करा फूंकवावव, त कोनो किहिस खून ल चूस चूस के पुरक के जहर ल निकालव फेर काकरो हिम्मत नइ होइस। धकर लकर घर लइन। घर म दुलारी ल बतइन-तोर ससुर ल डोमी सांप ह चाब दे हे। बिक्कट जहरिला होथे। दुलारी ल घलो गांव वाले मन किहिन-बइगा करा फंूकवा झरवा लव कहिके फेर दुलारी ह किहिस-एह बइगा गुनिया ले बने नइ होवय। गांव के सरपंच घर कार रिहिसे। सरपंच ह कार म श्यामलाल ल बइठार के चरोदा के अस्पताल म लइन। डॉक्टर मन तुरते इलाज पानी म भीड़ गे। कुछ समय के बाद डॉक्टर मन बतइन कि श्यामलाल के स्थिति ह ठीक हे। थोकिन अऊ देरी करतेव ते सम्हालना मुस्किल हो जाय रिहितिस। निरूपमा ह घलो संगे म अस्पताल आय रिहिस हवय। बजरंग बली ले घेरी बेरी बिनती करके अपन जोड़ी के जल्दी स्वस्थ होय के कामना करत रिहिस हवय।

दुलारी समय म अपन ससुर ल अस्पताल लेग के बचा लिस। श्यामलाल ल छुट्टी करा के घर लानिस। श्यामलाल ह अपन बहू ल किहिस-''तोरे सरिख बहू सब ल मिलय बेटी।ÓÓ मोर पहिली जनम के करम के फल आय कि तोर असन मोला बहू मिलिस। श्यामलाल अपन बहू ल किहिस-खूबचंद ल बता दे बहू, ए सब घटना के बारे म। दुलारी किहिस-नही ददा ओला नइ बतावन ओह देस के रक्छा म लगे हवय। ओकर धियान ह भटक जही। मंय हवं न तुंहर देख-रेख बर। मंय तुंहर पूरा खियाल रखहूं। निरूपमा कथे-तंय नइ रहिते त हमर का होतिस बहू? दुलारी किहिस-महंू ह बड़ भागमानी अवं कि मोला सास-ससुर के सेवा करे बर मिलत हवय। मोर राहत ले फिकर झन करो।

पाकिस्तान बार्डर म पाकिस्तानी आतंकवाद मन घुसपैठ करे के कोसिस करत रिहिन। घुसपैठिया मन ल रोके खातिर भारत के फोर्स ह जोरदार जवाब देवत रिहिन हे। ओतके बेर ब्रेकिंग न्यूज चलना सुरू हो गे कि भारत के मिलेट्री फोर्स पाकिस्तान के दस झिन आतंकी मन ल मार गिरइस फेर हमर इहां के दू झिन जंबाज सैनिक सहिद हो गे अउ पांच झिन घायल हवय। घायल होवइया म छत्तीसगढ़ के नंदौरी गांव के जवान खूबचंद घलो सामिल हवय। खास सूत्र ले पता चलत हवय कि घायल जवान मन खतरा के बाहिर हे। उंकर इलाज मिलेट्री अस्पताल म चलत हवय। तब कहंू जा के दुलारी के जीव ह हाय लगिस। समाचार सुनते भार श्यामलाल ह कश्मीर जाय बर रेलगाड़ी म बइठ गे। श्यामलाल ह कश्मीर पहुंच के जा के देखथे त खूबचंद के गोड़ म गोली लगे रिहिस हवय। गोली अतेक जबरदस्त लगे रिहिसे कि जेउनी गोड़ ल माड़ी के उप्पर ले कांटे बर परगे रिहिस हवय।

खूबचंद के हिम्मत ल देख के आफिसर मन दंग रहिगे। अस्पताल म घलो ओतेक दरद पीरा के बावजूद बड़े बड़े लेखक मन के किताब पढ़े बर नइ छोड़िस। जब भी मौका मिलय संस्मरण ल जरूर लिखय। एती अपन बेटा के फिकर म निरूपमा ह दुबराये बर धर ले रिहिसे। फेर दुलारी ह अपन सास ल सम्हाल के राखे रिहिस। खूबचंद संग दुलारी के रोज गोठ बात होवत रहय। निरूपमा के तबियत ह बिगड़े बर धर लिस। दुलारी ह सेवा जनत म कोनो कसर नइ छोड़िस। महतारी कस सेवा करिस। वइसे भी ससुरार म सासे ह महतारी अउ ससुर ह बाप बरोबर आय।

खूबचंद के सेहत म सुधार आवत गिस। खूबचंद ल अस्पताल ले मेडिकल अनफिट घोषित कर के छुट्टी दे दिस। अब खूबचंद के सैनिक के रूप म काम करे के सपना ह धरे रहिगे। फेर जानत रिहिस मोला तो जिनगी ल सिपाही के रूप म जीना हे। चाहे देस के सिपाही होवय चाहे कलम के सिपाही। भीतरे-भीतरे गुनत रहय-''मोर तो गोड़े ह अनफिट होय के दिमाक ह थोरे होय हवय।ÓÓ

श्यामलाल ह खूबचंद ल कश्मीर ले छुट्टी करा के नंदौरी पहुंचिस। त दुलारी ह बाप-बेटा के आरती उतार के स्वागत करिस। आज दुलारी के माथ ह गर्व ले ऊंच हो गे हवय। निरूपमा ह अपन दुलरूवा ल बैसाखी म देख के दंग रहि जथे। महतारी के ममता ह बिक्कट रोथे। दुलारी अपन सास ल समझाथे-''तंय बिक्कट भागमानी अस दाई कि आज तोर बेटा ह अपन देस के रक्छा खातिर अपन पांव ल गंवाय हवय।ÓÓ ओहा सब ठीक हो जही। गांव वाले मन घलो खूबचंद के फूल माला अउ गुलाल ले स्वागत करिन। पत्रकार मन तो दुर्ग स्टेशन म ही पहुंच गे रिहिन हवय। उमन स्टेशन म ही खूबचंद के स्टेटमेंट ले डरे रिहिन हवय। बिहान दिन सबो अखबार के मुख पृष्ठ म खूबचंद के बहादुरी के कहानी छपे रिहिसे। पूरा नंदौरी गांव वाले मन ल खूबचंद के उपर गर्व होवत रिहिसे। आज खूबचंद ह छत्तीसगढ़ महतारी के संगे संग नंदौरी गांव के मान ल बढ़ा दिस। सब झिन खूबचंद ल ओकर बहादुरी बर बधाई दिन।

अब दुलारी के सेवा जतन ले पूरा परिवार सुखी पूर्वक जिनगी गुजारत रिहिन। अब तो खूबचंद ह जादा बाहिर आ जा नइ सकय, न दउ़ड धूप सकय। चूंकि खूबचंद ह सब बर मयारू हो गे रिहिसे तिही पाय के सबके धियान ह बरोबर ओकर डाहर राहय। खूबचंद एक दिन बड़ा उदास बइठे रिहिस हवय। त दुलारी ओला देख के कथे-कइसे उदास दिखत हवस जी?

खूबचंद-हव दुलारी, कइसे तो मन ह बने नइ लागत हे।

दुलारी-काबर?

खूबचंद-मोला अब अइसे लागे बर धर ले हे कि मंय परिवार उपर बोझ हो गे हवं का?

दुलारी-अइसे काबर सोंचत हवस? मंय तो हवं आपके संग।

खूबचंद-मंय परिवार के जिम्मेदारी ल नइ निभा पावत हवं।

दुलारी-जादा उदास होय के जरूरत नइ हे जोड़ी। अभी आपके एके गोड़ ह कटे हे, दिमाक अउ हाथ ह थोरे काटे हवय।

खूबचंद-त का करंव?

दुलारी-अब साहित्य म मन ल लगा। अभी ले हिम्मत हारे म काम नइ बनय। अभी आप ल छत्तीसगढ़ बर बहुत कुछ करना हे। कलम के सिपाही बनके छत्तीसगढ़ के मान ल बढ़ाना हे।

खूबचंद-बने काहत हवस दुलारी। अभी छत्तीसगढ़ महतारी के मान-सम्मान अउ स्वाभिमान ल बढ़ाय के जरूरत हवय। हिन्दी के संगे-संग अपन मातृभाषा छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोट्ठ करना हे।

दुलारी-ए बात होइस न। अब एक काम करथन।

खूबचंद-का काम?

दुलारी-अब कम्प्यूटर सेट लेथन। आप लिख-लिख के देवत रहू ओला मंय टाईप करत जाहंू। तहान सब अखबार अउ पत्रिका मन म पठोवत जाबोन।

खूबचंद-बने काहत हवस दुलारी। अब पुरखा मन के सपना ल पूरा करे के दिन आ गे। 

अब खूबचंद ह साहित्य पढ़ई अउ लिखई के रफ्तार ल बढ़ईस। धार्मिंक ग्रंथ घलो पढ़ना सुरू करिस। अब तो खूबचंद ल छत्तीसगढ़ के चिन्ता ह सतावन लागय। खूबचंद ह रफ म लिखय तेला दुलारी ह कम्प्यूटर म टाईपिंग करत जावय। धीरे धीरे प्रादेशिक अखबार म छपना सुरू हो गे। ओकर बाद खूबचंद के कलम के जादू ले ओला खूब वाह वाही मिले के सुरू हो गे। दुलारी ह दिन-रात खूबचंद के सहयोग करय। पहिली हिन्दी म लेखन सुरू करिस। काबर कि ओ बखत छत्तीसगढ़ी के लिखइया मन ल हीन भावना ले देखय। खूबचंद ल घलो खूब वाह वाही मिले के सुरू हो गे। खूबचंद करा अब दोहरा जिम्मेदारी आ गे। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के मान-सम्मान कइसे बढ़ाय जाय। छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल कइसे जगाय जाय। अब हिन्दी के संगे संग छत्तीसगढ़ी म लिखना सुरू करिस। खूबचंद के नाम अब धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ म स्थापित होय बर धर लिस। ओकर बाद तो खूबचंद के कहानी राष्ट्रीय पत्रिका मन म घलो प्रकाशित होय बर धर लिस।

कुछ दिन बाद भिलाई इस्पात संयंत्र के क्रीड़ा अउ सांस्कृतिक विभाग म योग्य कर्मचारी बर विज्ञापन निकलिस। जेह छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ संस्कृति के जानकार रहाय। हिन्दी के संगे संग अंग्रेजी घलो आवय। कुर्सी म बइठे वाले बूता रिहिसे। ए सब म खूबचंद ह फिट बइठत रिहिसे। खूबचंद के नियुक्ति ओकर योग्यता के संगे-संग मिलेट्री कोटा ले बड़ा असानी से हो गे। अब तो खूबचंद ह अपन परिवार सहित नंदौरी गांव ले भिलाई के सेक्टर वन क्वार्टर म आ गे। खूबचंद के जिम्मेदारी म छत्तीसगढ़ी लोक कला महोत्सव के आयोजन ह घलो आ गे। लोक कला महोत्सव के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के लोक कला साहित्य अउ संस्कृति ल जाने परखे के मौका मिलिस। एक साल बाद भिलाई के डॉक्टर मन के सलाह ले नकली गोड़ लगवाय बर जयपुर गिस। खूबचंद के भाग्य ह अच्छा रिहिसे। नकली गोड़ लगई ह सक्सेस हो गे। अब आटोमेटिक चालू होवइया वाले तीन गोड़िया स्कूटी लिस। स्कूटी म ड्यूटी आवय-जावय अउ डंडी ल स्कूटी के पीछू म बांध देवत रिहिसे। दुलारी के हौसला ल देख के लोगन दंग रहि जय। आज खूबचंद ल दुलारी के संग नइ मितलिस ते बिचारा खूबचंद के जिनगी दुभर हो जतिस। पत्नी हो तो दुलारी जइसे।

अब तो लिखत लिखत खूबचंद के जान-पहिचान बड़े-बड़े अधिकारी अउ राजनेता मन संग हो गे रिहिसे। अब तो खूबचंद के कलम म अतेक ताकत आ गे रिहिसे कि जेकर उपर ओकर कलम चल जाय ओह हीरा हो जय। सब ओकर कलम के अगोरा करत राहय। खूबचंद ह घलो अब थोकिन दिमाक लगाय बर धर लिस। अब छत्तीसगढ़ के अस्मिता ल जगाय बर 'दीया बातीÓ नाम के त्रैमासिक पत्रिका निकाले बर धरिस। त्रैमासिक पत्रिका ल छपवाय बर रूपिया के जरूरत परय। रूपिया बर विज्ञापन के बेवस्था कर डरय। शासन म जउन भी नेता राहय उंकर जीवन परिचय लिख-लिख के उंकर मन ले काम निकलवा लेवत रिहिसे। अब खूबचंद के प्रतिष्ठा ल देख के आफिसर मन खूबचंद ल टाइट करना सुरू करिस। खूबचंद ल बंधन कभू पसंद नइ रिहिस। खिसिया के भिलाई इस्पात संयंत्र के नौकरी ले वालेन्ट्री रिटायरमेंट लेके स्वतन्त्र लेखन के सुरूआत करिस। अब तो खूबचंद ह स्वतन्त्र हो गे। उही समय छत्तीसगढ़ राज के आंदोलन ह चरम सीमा म रिहिसे। लेखन के संगे संग पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के आंदोलन म संघर गे। सब झिन के त्याग-तपसिया ले पुरखा मन के सपना सिरतोन हो गे। छत्तीसगढ़ राज बनगे। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद विकास ह जोर पकड़ लिस। अब छत्तीसगढ़ी नारा चला दिस ''छत्तीसगढ़ी लिखव, पढ़व, बोलव अउ आगू बढ़व।ÓÓ छत्तीसगढ़िया मन ल जगाय खातिर बहुत आलेख लिखिस। छत्तीसगढ़ के विकास खातिर लिखिस। कतनो नेता अउ उद्योगपति मन के खिलाफ घलो लिखिस। कतनो बड़े मनखे मन नाराज घलो होइस फेर ओला काकरो परवाह नइ रिहिसे।

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले के बाद भिलाई के सेक्टर एक के क्वार्टर ल छोड़ के हाउसिंग बोर्ड के क्वार्टर ल बिसा के राहत रिहिस हवय। अब तो छत्तीसगढ़ म सबले बड़े साहित्यकार के रूप म स्थापित हो गे। खूबचंद के योग्यता ल देख के विश्वविद्यालय ह डी. लिट. के उपाधि घलो दिस। अब खूबचंद ह डॉ. खूबचंद हो गे। दुलारी घलो खूबचंद के हौसला बुलंद करत रिहिसे। डा.ॅ खूबचंद के उपन्यास 'अन्तस के पीराÓ ल कालेज म पढ़ाय बर शामिल कर ले गिस।

विश्वविद्यालय ह भले खूबचंद ल डी.लिट. के उपाधि तो दे दिस फेर ओकर दाई-ददा मन के डी. लिट. ह पूरा नइ होय रिहिस हे। महतारी-बाप मन बर तो डी. लिट. नाती नतरा आय। खूबचंद अउ दुलारी ह किराना समान बिसाय बर दुकान गे रिहिसे। खूबचंद ह अपन दाई-ददा ल चेता दे रिहिसे-आवत ले समय लग जही, साग-भाजी लाय बर रूआंबांधा बाजार करत आबोन। अब श्यामलाल अउ निरूपमा ल गोठियाय बर फूरसदहा समय मिल गे। दुनो झिन एके जघा बइठ के गोठियावत रिहिन हवय।

श्यामलाल-सुनत हस वो निरूपमा।

निरूपमा-काय हो गे?

श्यामलाल-हरि ह काहत रिहिस हे, खूबचंद के बिहाव होय भल्ले दिन हो गे हे फेर छट्टी चाहा पिये बर मिलही ते नही?

निरूपमा-महूं ल तो खोरबाहरिन डोकरी ह काहत रिहिसे। कइसे य निरूपमा बहू ल भइगे भाते रंधवाय बर लाय हव ते नाती-नतरा घलो दिही।

श्यामलाल-लोगन का का नइ काहय, सब सुने बर परथे।

निरूपमा-उही हाल तो मोरो हे।

श्यामलाल-त लोगन मन ल काहन दे न, हंसइया मन के दांत दिखही।

निरूपमा-काकर-काकर दांत ल देखबे?

श्यामलाल-कइसे करबे, ए सब भगवान के मरजी आय। भगवान उपर भरोसा रख।

निरूपमा-भगवान उपर तो भरोसा कर लेबे फेर मनखे मन उपर कतना भरोसा करबे? सब मोला ठगड़ी (बांझ) के सास आय कहिके मुंहु ल फेरत रहिथे। अपने अपन मुंहु ल मुरकेटत रहिथे।

श्यामलाल-त का कर सकथन निरूपमा?

निरूपमा-खूबचंद ल समझाते नही, डॉक्टर ऊ ल देखातिस।

श्यामलाल-तंय ह बहू ल कहिते नही।

निरूपमा-ठउंका काहत हवस। मोर मइके के बइगा ह घलो बढ़िया जानथे। बइगई-गुनियई करवा के देख लेथन का?

श्यामलाल-देख भई मोला तो ए बइगई-गुनियई उपर भरोसा नइ राहय। तंय ए सब चक्कर ल छोड़।

निरूपमा-काबर?

श्यामलाल-मंय खूबचंद ले बात करहूं।

निरूपमा-ले बात कर ले, नही त फेर कुछ सोचे बर परही।

निरूपमा-महंू ह बहू ल पूछे के कोसिस करहंू।

(श्यामलाल ह एक दिन मौका देख के खूबचंद ल किहिस)

श्यामलाल-बिहाव होय भल्ले दिन हो गे हवय। डॉक्टर ऊ ल देखातेन नही ग। बहू म कुछु कमी होही ते।

खूबचंद-ठीक हे ददा, दुलारी ल डॉक्टर करा जांच करवाए बर लेग जहंू।

(ओतके बेर निरूपमा आ जथे। निरूपमा इंकर बात ल सुन के कथे-डॉक्टर ऊ ले कुछु नइ होवय। तोर ममा गांव म बढ़िया बइगा रथे। शनिच्चर अउ इतवार के बइठथे। बहू ल धर के उहें चल देते।)

खूबचंद-मंय बइगा-गुनिया मन उपर भरोसा नइ करंव दाई। तुमन काहत हव त डॉक्टर करा इलाज कराय बर चल दुहंू।

निरूपमा-देख खूबचंद तुमन रिस करव चाहे दुख करव फेर मोला नाती चाही मने चाही।

खूबचंद-ठीक हे न दाई, तोर सपना जरूर पूरा होही।

निरूपमा-कब होही?

खूबचंद-तोर तो सपना ल पूरा कर दे हवं, त अतेक काबर खिसियाथस?

निरूपमा-कइसन सपना ल?

खूबचंद-ले तंय जइसन कहिबे, ओइसने करहूं। तुंहर खुसी मोर खुसी।

अपन महतारी के खुसी बर खूबचंद ह दुलारी ल सबले पहिली अपन ममा गांव म बइगा घर लेगिस। बइगा ह किहिस तुंहर घर ल बांधे बर लागही, दस हजार के खरचा हवय। तहान फेर साल भर म तुंहर अंगना म लइका खेलही। संग म निरूपमा घलो गे रिहिस। निरूपमा पूछिस-त घर बंधई कब बनही बइगा महराज। बइगा कथे-अवइया सनिच्चर रात म बन जही। मंय सराजाम (सामग्री) लिख देथंव। ए सबो समान ल बिसा लेहू। सनिच्चर के आवत ले निरूपमा ह सबो सराजाम सकेल डरिस। अपन चेला चंगुरिया मन संग आ के बइगा ह श्यामलाल के घर ल रतिहा बांध के दस हजार रूपिया धर के चल दिन।

अब एक महीना ले दू महीना रद्दा देखिस त नाती-नतरा के उम्मीद ह दिखबे नइ करत रिहिस। अब निरूपमा के चिन्ता ह बाढ़त गिस। चिन्ता फिकर म निरूपमा के तबियत बिगड़ गे। कुछ दिन बाद एका एक निरूपमा के तबियत खराब हो गे। बड़े अस्पताल म भरती करिन। उहां डॉक्टर मन बतइन कि निरूपमा के हिमोग्लोबिन कम हवय। ओला खून चढ़ाय के जरूरत हवय। परिवार म निरूपमा के ब्लड ग्रुप ले दुलारी के ब्लड ग्रुप ह मैच होइस। दुलारी ह खुसी-खुसी अपन सास बर खून दिस। दुलारी ह अपन सास के बिक्कट सेवा सटका करिस। दुलारी के सेवा जतन ले निरूपमा ह पहिली कस टन्नक हो गे।

एक दिन खूबचंद ह दुलारी ल धर के डॉक्टर करा गिस। दुलारी ह डॉक्टरीन ल सबो बात ल बतइस। बिहाव ह भल्ले दिन हो गे हे फेर मंय महतारी नइ बनत हवं। डॉक्टरीन ह दुलारी के जांच के प्रक्रिया ल सुरू करिस। जांच करके डॉक्टरीन ह खूबचंद अउ दुलारी ल किहिस कि रिपोर्ट ह आठ दिन के बाद मिलही। डॉक्टरीन ल नमस्ते करके दुनो परानी घर लहूटिन।

घर म श्यामलाल अउ निरूपमा ह बहू के चारी निंदा म लगे रिहिसे। निरूपमा काहत रिहिसे-तेकर ले तो आजकाल मोला बहू ल देक्खन नइ भावय। श्यामलाल निरूपमा ल समझाथे-धीरज धर निरूपमा, भगवान घर देर हे फेर अन्धेर नइ हे। तभो ले अंटियाय कस जवाब देथे-का अन्धेर नइ हे। का का सपना नइ देखे रेहेंव। नाती-नतरा आही तहान बने सेंकहूं चुपरहूं, बने खेलाहंू। हाट-बाजार ले ओकर बर आनी-बानी के खिलौना लाहूं। सुन के श्यामलाल ह कथे-तोर सबो सपना ह पूरा होही वो खूबचंद के दाई। अब चूप राह खूबचंद अउ दुलारी ह आगे तइसे लागथे। अब तो निरूपमा के धीरज के बांध ह फूटे बर धर ले रिहिसे। लहूटत खानी अपन सास-ससुर बर दुलारी ह खजानी बिसाय रिहिसे। आ के हाथ गोड़ ल धो के अपन सास-ससुर ल मुर्रा लाडू दिस। भुखागे होहू ए लव खजानी ल खाव। मंय ह जल्दी रांधत हवं। श्यामलाल अउ निरूपमा ह खजानी खाय म मगन हो गे।

अब दुलारी ह मने मन सोंचय कि रिपोर्ट म का आही? मंय अपन सास-ससुर के सपना ल पूरा कर पाहंू कि नइ कर पाहूं। मंय महतारी बनहंू कि नइ बन पाहंू। मंय ए घर के वंस ल आगू बढ़ा पाहंू कि नइ बढ़ा पाहंू। अइसने गुनत-गुनत कराही म फोरन ह जादा जरगे। धकर-लकर आलू ल भंूजे बर डारिस। तब कराही के जीव ह जुड़इस। खूबचंद ह खाना के चूरत ले किताब पढ़े म लग गे। खाना ह चूरिस तहान दुलारी ह ताते तात अपन सास-ससुर अउ खूबचंद ल खाना पोरसिस। तहान अपन ह खइस। ओतके बेर दुलारी के बड़े बहिनी सरला के फोन आ गे।

सरला-हलो!

दुलारी-हलो दीदी, पाय लागी!

सरला-खुसी राह, अउ का चलत हवय?

दुलारी-आज अस्पताल गे रेहेन।

सरला-काकर तबियत खराब हवय?

दुलारी-काकरो तबियत खराब नइ हे।

सरला-काकरो तबियत खराब नइ हे त अस्पताल काबर गे रेहेव?

दुलारी-जांच करवाए बर।

सरला-काकर जांच करवाए बर?

दुलारी-मोर।

सरला-का के?

दुलारी-सास-ससुर मन काहत हे अतेक दिन ले नाती-नतरा नइ अवतरत हे कहिके।

सरला-त का एमा नारिच म कमी रहिथे का? दमांद म कमी नइ हो सकय? ओकरो जांच नइ करवा लेतेव?

दुलारी-राहन दे न दीदी। धीरे-धीरे सब ठीक हो जही, सरिता कइसे हे?

सरला-बने हे। फेर पढ़े-लिखे म धियान नइ देवय। देख न हम्मन दुनो झिन ड्यूटी चल देथन तहान धियान देवइया कोनो नइ राहय।

दुलारी-त अपन सास-ससुर ल नइ बलवा लेतेव।

सरला-उंकर मन ह सहर म नइ रमय। इहां संगवारी बिना बंबा जथे।

दुलारी-त एकाद झिन बाई नइ लगवा लेतेव?

सरला-लगवाए हवन दुलारी फेर काम बूता बर आय।

दुलारी-त पढ़ई-लिखई बर कइसे करथव?

सरला-सरिता के पापा के शिफ्ट ड्यूटी आय। समय निकाल के तोर भाटो ह पढ़ाथे। थोर बहुत मंहू पढ़ाथंव। टिवसन घलो लगा दे हन।

दुलारी-बने करे हस दीदी, सरिता पढ़-लिख के डॉक्टर बनही डॉक्टर।

सरला-दाई-ददा ल फोन करे रेहे? उमन तोर बिक्कट फिकर करथे।

दुलारी-हव दीदी करत रहिथंव फेर जांच वाले बात ल नइ बताय हवं।

सरला-बताबे घलो झन। नही ते उमन ल फिकर हो जही।

दुलारी-उही पाय के तो उमन ल नइ बताय हवं।

सरला-दमांद कइसे हे?

दुलारी-बने हवय दीदी।

सरला-अउ तोर सास-ससुर मन?

दुलारी-वहू मन बने हवय दीदी।

सरला-ले त बने सुखी पूर्वक राहव। अस्पताल के रिपोर्ट आही तहान बताबे। अस्पताल वाले बात ल जादा एती ओती झन बगराबे। ले फोन ल राखत हवं।

दुलारी-हव दीदी, पाय लागी!

आठ दिन बाद खूबचंद अउ दुलारी ह रिपोर्ट लाय बर अस्पताल गिन। उहें जाय के बाद डॉक्टरीन ह बतइस कि दुलारी म कोनो किसम के कमी नइ हे। ओकर सबो रिपोर्ट ह बने हवय। ओहा महतारी बन सकथे। सुनते भार दुनो के चेहरा म खुसी के लहर दउड़ गे। घर म आ के अपन दाई-ददा ल बतइस कि रिपोर्ट ह बने हवय। श्यामलाल अउ निरूपमा ह सुन के खुस होइन।

दू-तीन महीना तक निरूपमा के आसा के फूल ह फूले रिहिस हे ओह फेर मुरझाए बर धर ले रिहिसे। काबर कि दुलारी ह हर महीना मुड़ी ल भिंजते रिहिसे। न उल्टी होवय न ओला अम्मट खाय के सउंख राहय। अब निरूपमा के मन ह टूट गे। निरूपमा ह श्यामलाल ह किहिस-मोला तो अइसे लागथे, दुलारी ह महतारी नइ बनय। खूबचंद अउ दुलारी जरूर कुछु न कुछु लुकावत हवय। सुन के श्यामलाल ह निरूपमा ल समझावत कथे-तहंू ह डोकरी हो गे हवस फेर थोरको समझदारी नइ हे। तहंू तो खूबचंद ल बिहाव के दस साल बाद होय रेहे हस। अपन दिन ल भुला गेस। निरूपमा कथे-ओ सब मंय नइ जानव, अब तंय खूबचंद ल काह-''दुलारी ल घर ले निकाल के दूसर बहू लावय।ÓÓ श्यामलाल कथे-तहंू निरूपमा, संस्कारिक बहू बर अइसन जहर काबर उगलत हवस? महंू ह तोर बर अइसने करतेंव त तहंू ल घर ले निकाल दे रहितेंव नही ते तोर सउत लान ले रहितेव, त फेर तंय कइसे करते। अपन बेटा बहू के घर गृहस्थी ल बसाय बर छोड़ के टोरे म लगे हवस। निरूपमा ह खिसिया के किहिस-वो सब मंय नइ जानव, बहू ल निकालय या फेर नवा बहू लावय। जउन ह हमर वंस ल आगू बढ़ा सकय।

सबो बात ल दुलारी ह सुनत रिहिसे, एला श्यामलाल अउ निरूपमा नइ जानत रिहिन कि हमर गोठ ल बहू सुन डरे हवय। दुलारी ह खूबचंद ल समझइस कि अइसे कर मंय तो महतारी नइ बन पावत हवं तेकर ले एकाद झिन सउत बना के लान लेते मंय तुंहर सेवा करत रहि जहंू। खूबचंद ह सुन के खिसिया जथे। ए सब का गोठियाथस दुलारी, तंय तो मोर परान अस। न मंय तोला घर ले निकाल सकंव न मंय तोर बर सउत लान सकंव। दुलारी रोवत-रोवत कथे-अइसन म सियान मन के सपना कइसे पूरा होही? खूबचंद कथे अच्छा त ए सब दाई-ददा मन के सेती आय। सुन दुलारी, ए बात ल तंय गांठ बांध के रख ले मंय तोला जिनगी भर नइ छोड़व। रहि बात संतान के त डॉक्टरीन करा सलाह ले बर अऊ चल देबोन। डॉक्टरीन ह कोनो न कोनो रस्ता बताही।

दू-चार दिन बाद खूबचंद अउ दुलारी सलाह लेबर डॉक्टरीन करा पहुंचिन। देख के डॉक्टरीन खुस हो के पूछथे-कुछु खुसखबरी हे का दुलारी? दुलारी कथे-कुछु खुसखबरी नइ हे मैडम। अब आपे सलाह बतावव ताकि हमर वंस ह बाढ़ सकय। हम्मन ल महतारी-बाप के सुख मिल सकय। डॉक्टरीन ह समझ गे दुलारी म कोनो कमी नइ हे ओकर बावजूद अम्मल म नइ होय हे। एकर मतलब खूबचंद म कुछु कमी होही। डॉक्टरीन ह कथे-मंय डॉक्टर के नाम बतावत हवं, ओकर करा जा के एक घांव खूबचंद के घलो चेकअप करवा लव। डॉक्टरीन के सलाह ले डॉक्टर करा जा के खूबचंद के चेकअप करवाथे।

एती श्यामलाल अउ निरूपमा म झगरा माते राहय। निरूपमा कथे-ए बहू ह ठगड़ी हे, बांझ हे। एला अब मंय घर म नइ राख सकंव। अब घर म बहू रही नही ते मंय। श्यामलाल घलो घुस्सा हो के किहिस-तोला का हो गे निरूपमा, तंय वो दिन ल भुला गेस जब तोला खून के जरूरत परिस त इही बहू तोला खून दे के बचाय रिहिस। जब मोला डोमी सांप ह चाब दे रिहिसे त इही बहू ह मोला बचाय रिहिसे।

ओतके बेर खूबचंद अउ दुलारी अस्पताल ले चेकअप करवा के आथे। निरूपमा ह खूबचंद ल पूछथे-का होइस बेटा?

खूबचंद-दाई! रिपोर्ट ह एक हप्ता बाद पता चलही।

निरूपमा-अच्छा।

निरूपमा के बेवहार ह दिनो दिन दुलारी बर बिगड़त रिहिस हवय। ओकर मन म तो बस एके बात रिहिस हवय कि अब दुलारी ल घर ले निकाल के दूसर बहू लाय जाय या फेर एकर सउत लाय जाय। अपन मन के भड़ास ल निरूपमा ह श्यामलाल करा निकालत रिहिसे। महतारी-बाप के लड़ई झगरा ल खूबचंद ह सून डरिस। ओह अपन दाई ल किहिस-ए सब का गोठियाथस दाई? तंय अपन बहू ल निकाले बर गुनत हवस। अतेक रामायेन भागवत सुनथस, दिन-रात पूजा पाठ करथस त तो भगवान उपर भरोसा कर। सब समय के साथ ठीक हो जही। निरूपमा ह खूबचंद उपर खिसिया जथे। देख खूबचंद मोला तंय जादा समझाये के कोसिस झन कर, समझे।

महतारी-बेटा के बात ल बाढ़त देख के श्यामलाल ह निरूपमा ल खिसियइस-तंय चुप रहिबे ते नही? घर ल रात-दिन लड़ई-झगरा म नरक बना दे हस। जादा लहो लेबे त तोला घर ले निकाल दुहंू। तहान निरूपमा ह रोये बर घर लिस। मंय का करंव दाई ए हें हें-अहा उमर म मंय कहां जाहंू दाई ए हें हें... मोला कोन करा छइंहा मिलही भगवान ए हें हें... श्यामलाल कथे-जब तंय ह अपन बर ए सब बात ल सोंच सकथस त बहू बर काबर नइ सोच-सकस? तहंू एक दिन ए घर म बहू बनके आय रेहे। तोरो सास-ससुर ह तोर बइ अइसने करतिस त तोला कइसे लागतिस। दुलारी ह अतना ल सुन के अपन सास ल कथे-ठीक हे दाई ए घर ले मोर निकले ले तोला सुख मिलही त मंय अभी निकल जथंव। अब तो घर म कलह ह बाढ़े बर धर लिस।

महतारी-बाप अउ गोसइन के बात ल सुन के खूबचंद टेन्शन म आ गे। अब ए घर ले कोनो नइ जावय। जादा करहू ते मंय ए घर ले चल दुहंू। निरूपमा डर्रा के कथे-ए सब का काहत हवस बेटा? खूबचंद कथे-त अउ का करंव। जब तुमन ल समझावत हवं त समझ म नइ आवत हवय। थोकिन धीरज धरव। इलाज पानी म तो लगे हवन। रिपोर्ट घलो अवइया हवय तहान सुंता सलाह ले गोठियाबोन। ठउंका ओतके बेर पुरानिक के फोन आथे।

पुरानिक-हलो!

खूबचंद-हलो! हां बोल पुरानिक।

पुरानिक-माता कौशल्या उपर संगोष्ठी रखे बर सोचे रेहे तेकर का होइस?

खूबचंद-होइस का, होवत हे।

पुरानिक-मोला पता घलो नइ चलिस।

खूबचंद-सार्वजनिक होतिस त तो पता चलतिस। ए तो घरेलू संगोष्ठी आय।

पुरानिक-बताय नही।

खूबचंद-(खिसिया के) आ ज तहंू ह, घरेलू संगोष्ठी म संघरे बर।

पुरानिक-त काबर खिसियाथस?

खूबचंद-नइ खिसियाहंू त का तोर आरती उतारहंू?

पुरानिक-अरे बताबे, का हो गे तोला?

खूबचंद-दाई ददा ल कौशल्या के राम चाही।

पुरानिक-राम तो मंदिर म मिल जही, एमा टेन्सन के का बात हे?

खूबचंद-मंदिर वाले राम नही भाई उमन ल नाती-नतरा चाही। अब खाय के तो नोहे। घर म झगरा माते हवय।

पुरानिक-अतेक बात हो गे, मोला बताय नही अउ न फोन करे।

खूबचंद-काला बताबे, अभी तो अस्पताल के चक्कर काटत हवन।

पुरानिक-अस्पताल के चक्कर काबर काटत हव?

खूबचंद-तोर भउजी अउ मोर चेकअप करावत हवन।

पुरानिक-तुमन तो स्वस्थ हव फेर का के जांच करावत हव?

खूबचंद-हम्मन मां-बाप काबर नइ बनत हवन तेकर बर।

पुरानिक-त भउजी के जांच नइ करवाते?

खूबचंद-ओकर करवा डरे हवं। तोर भउजी म कुछु कमी नइ हे।

पुरानिक-त तोर जांच नइ करवाते?

खूबचंद-महंू करवाए हवं, रिपोर्ट आना बाकी हवय।

पुरानिक-महंू आववं का?

खूबचंद-आ ज, तहान सब बात ल बता हंू।

कुछ समय के बाद पुरानिक ह खूबचंद के घर पहुंचिस। घर के आघु म खूबचंद ह साहित्यिक आयोजन बर सरकारी सहयोग ले सभागार बनाय रिहिसे। खूबचंद ह पुरानिक ल उहें बइठारिस। पुरानिक ह खूबचंद ल पूछथे-कइसे यार बहुत टेंसन म चलत हवस, का बात हो गे, बता ना। खूबचंद-काला बताबे यार।

पुरानिक-बता न भइया, दुख ल बताय ले हल्का हो जही।

खूबचंद-घर म कलह मचे हवय।

पुरानिक-काबर?

खूबचंद-दुलारी ल नाती-नतरा नइ होवत हे कहिके।

पुरानिक-त दाई-ददा मन का कथे?

खूबचंद-ददा तो कुछु नइ काहत हे।

पुरानिक-दाई ह का काहत हे?

खूबचंद-तोर भउजी ल घर ले निकाले बर काहत हवय या फेर नवा बहू लाय बर काहत हवय।

पुरानिक-त रिपोर्ट ह कब मिलही?

खूबचंद-आजे मिलही, चल न जाबोन डॉक्टर करा।

खूबचंद ह पुरानिक के बिना एक कदम नइ चल सकय। पुरानिक ल खूबचंद के झोरा धरइया घलो काहय। खूबचंद बड़े लेखक बन गे रिहिसे। लेखक के संगे संगे बड़े बड़े साहित्यिक आयोजक घलो बन गे रिहिसे। आयोजन के सबो काम बूता ल पुरानिक ह करय। चाहे कार्यक्रम म संचालन के बात होवय चाहे नेवता हिकारी के बूता होवय चाहे प्रेस विज्ञप्ति के बंटई होवय। बड़ा संत प्रवृत्ति के रिहिसे पुरानिक ह। ओला खूबचंद के तियारा मनई ह तीरथ यात्रा ले कम नइ लागय।

खूबचंद अउ पुरानिक ह डॉक्टर करा रिपोर्ट बर जाथे। उहें डॉक्टर ह बताथे-जांच के मुताबिक खूबचंद तोरे म कुछु गड़बड़ आवत हे फेर दवई म सब ठीक हो जही। तब कहंू जा के खूबचंद अउ पुरानिक के चेहरा म चमक अइसे। अब रिपोर्ट ल धर के घर आवत-आवत खूबचंद ह पुरानिक ल किहिस-दाई-ददा ल तिंही समझाबे पुरानिक। तंय उंकर मन करा सबो बात ल बता देबे। पुरानिक कथे-एकर फिकर झन कर खूबचंद भइया, मंय सब ल सम्हाल लुहंू।

घर पहुंचे के बाद पुरानिक ह श्यामलाल अउ निरूपमा के कुरिया म गिस। निरूपमा के मुंहु ह फूले रिहिसे। पुरानिक ह निरूपमा ल पूछिस-कइसे तबियत ह बने ते नही दाई। कइसे उदास-उदास दिखत हवस?

निरूपमा-हांसे के लइक बात रहि तभे तो हांसबे।

पुरानिक-हांसी बर तोला का चाही?

निरूपमा-खिलौना चाही।

पुरानिक-दुकान ले बिसा के लान दुहंू।

निरूपमा-का नाती-नतरा घलो दुकान म मिलथे?

पुरानिक-त अइसे काह न दाई नाती-नतरा चाही कहिके।

निरूपमा-मोला तो अब बहू के थोथना ल देखन नइ भाय।

पुरानिक-काबर?

निरूपमा-बिहाव होय अतेक दिन हो गे हे। नाती-नतरा नइ दे सकत हे बहूच म कोनो दोस होही। खूबचंद ह मानत घलो नइ हे। ए बहू ल घर ले निकाल नही ते दूसर बहू लान काहत हवं।

पुरानिक-अउ खूबचंद म दोस होही त का खूबचंद ल घर ले निकाल देबे? का खूबचंद ल निकाल के दूसर बेटा लानबे?

निरूपमा-तंय कइसे गोठियाथस पुरानिक, मंय बेटा ल काबर निकालहंू?

पुरानिक-त बहू ह तो घलो तोरेच आय, ओला काबर निकालबे?

निरूपमा-मोर बेटा में दोस नइ हे पुरानिक, बहू म हावे।

पुरानिक-नही दाई मोला खूबचंद ह सब बता डरे हे। दुलारी भउजी म कोनो दोस नइ हे।

निरूपमा-त महतारी कइसे नइ बनत हवय?

पुरानिक-आज हम्मन डॉक्टर करा गे रेहेन।

निरूपमा-त डॉक्टर का बतइस?

पुरानिक-डॉक्टर बतइस, दोस खूबचंद म हे।

निरूपमा-मंय नइ मान सकंव।

पुरानिक-तोर माने अउ नइ माने ले का होही? सच तो सच आय।

निरूपमा-त का हम्मन दादा-दादी नइ बन सकन?

पुरानिक-ईश्वर के किरपा ले सब ठीक हो जही, डॉक्टर काहत रिहिसे।

निरूपमा-काय काहत रिहिसे?

पुरानिक-डॉक्टर काहत रिहिसे कि इलाज के बाद सब ठीक हो जही।

निरूपमा-बने खबर बताये हस पुरानिक, तोर मुंहु म दूध सक्कर।

पुरानिक-तोरो मुंहु म दूध सक्कर। ले मंय जावत हवं। एती दुलारी भउजी बर नाराज झन होबे। बने बात बेवहार करबे तभे तो अवइया संतान ह गुनवान रही नही ते तोरे कस टिरटिरहा-टिरटिहीन निकलही।

निरूपमा-अब हाय जी लगिस।

पुरानिक-ले महंू जावत हवं, घर म देखत होही।

दुलारी-चाहा बन गे हे बाबू, पी के जाबे।

(सबो झिन बइठक रूम म बइक के संघरा चाहा पिथे तहान पुरानिक ह अपन घर चल देथे।)

खूबचंद के सरलग इलाज चलत रिहिसे। ईश्वर के किरपा हो गे। दू महिना के बाद दुलारी ह मुड़ी ल नइ मिंजिस। दुलारी ल उल्टी आय बर धर लिस। अब तो अम्मट खाय के जादा मन करय। निरूपमा ल समझे म जादा समय नइ लगिस कि ओह अब दादी बनइया हे। निरूपमा ह खुशखबरी ल श्यामलाल ल बतइस-तंय दादा बनइया हस। श्यामलाल सुन के खुस हो जथे तहान श्यामलाल ह निरूपमा ल समझाथे-''धीरज के फल मीठा होथेÓÓ। बिना गलती के बहू ल निकलइय्या रेहेस। निरूपमा ह रोनहू हो गे। मोला माफी दे दे खूबचंद के ददा। मोर ले बड़े जन गलती होवत रिहिसे। दोस बेटा म रिहिसे अउ दोसी बहू ल मानत रेहेंव।

अब तो डोकरा-डोकरी बिक्कट खुस राहय। खूबचंद अउ दुलारी ह अपन साहित्यिक साधना म लगे रिहिन। जस-जस दिन गुजरत गिस दुलारी के पेट घलो बाढ़त गिस। संगे संग उपन्यास घलो लिखावत गिस। अब उपन्यास ह प्रकाशन बर चल दिस। पुरानिक ह उपन्यास के प्रुफ ल ठीक करे म लग गे। खूबचंद अउ दुलारी मिल के अइसे उपन्यास लिखे रिहिन हे कि हर कोई ल लागही कि मोरे कहानी आय। अब तो जेचकी के दिन लकठागे। डिलवरी बर जवाहर लाल नेहरू हास्पीटल सेक्टर नाइन भिलाई म भरती करइस। दुलारी काम बूता म टन्नक रिहिसे। तिही पाय के नार्मल डिलवरी निपट गे। नर्स ह लेबर रूम के बाहिर म बइठे परिवार ल लइका ल देखावत किहिस-लछमी अवतरे हे लछमी। निरूपमा ह खुसी के मारे मिठई खाय बर सौ रूपिया दिस।

खूबचंद ह अपन ससुरार म फोन कर के अपन ससुर ल बता दिस-''नोनी अवतरे हे कहिके।ÓÓ खुमान अउ सरला ह घलो रात भर अस्पताल म रिहिन हे। सरला ह लगातार अपन दाई-ददा के सम्पर्क म रिहिस हवय। फोन म गोठ बात होवत रिहिसे। रामनाथ अउ केकती हंसा संग कांकेर ले भिलाई के अस्पताल पहुंच गे। देखे के बाद खूबचंद अउ दुलारी के दाई केकती अस्पताल म रिहिन। बाकि मन हाउसिंग बोर्ड के घर चल दिन। नार्मल डिलवरी होय रिहिसे तिही पाय के अस्पताल ले जल्दी छुट्टी हो गे।

नामकरण के दिन खूबचंद ह भव्य कार्यक्रम के आयोजन करे रिहिसे। खूबचंद ह निमंत्रण पत्र म लिखे रिहिसे कि हमर जुड़वा बेटी होय हे उंकर नामकरण संस्कार म आप मन सादर आमंत्रित हव। नेवता कार्ड ल पढ़ के सब झिन दंग रहिगे। नोनी तो एके झिन हे फेर जुड़वा नोनी कइसे कथे? खूबचंद अउ दुलारी ह कोनो ल नइ बतइन। सब नेवतहार संगी-संगवारी, अउ सगा-सोदर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के सभागार म समय म पहुंच गे। जोरदार पार्टी रिहिस। मंच म श्यामलाल, निरूपमा, रामनाथ, केकती, खूबचंद अउ दुलारी नोनी ल खेलावत हांसत-मुसकात बइठे रिहिन हवय। पुरानिक ह मंच संचालन करत किहिस कि आज बहुत खुसी के बात आय कि खूबचंद अउ दुलारी ह जुड़वा नोनी के महतारी-बाप बन गे हवय। सब झिन ताली बजा के स्वागत करथे। बड़े नोनी के नाव जउन दुलारी के गोदी म खेलत हे ओकर नाम 'संस्कृतिÓ हे अउ खूबचंद के गोदी म जउन झिल्ली म लपटाय नोनी हे ओ किताब के नाम ''बहू हाथ के पानीÓÓ हे जेला खूबचंद अउ दुलारी मिल के लिखे हवय। सब झिन खुस हो के ताली बजइन। सब के संका ह खतम हो गे। पुरानिक ह किहिस-संस्कृति ह छत्तीसगढ़ महतारी के कला, साहित्य अउ संस्कृति ल देस बिदेस म बगराही अउ ''बहू हाथ के पानीÓÓ उपन्यास ह ए परिवार के चिन्हारी ल युगो युग तक अमर रखही। ए उपन्यास घरो घर संस्कार दिही। अतेक बढ़िया दुनो कृति खातिर सब झिन खूबचंद अउ दुलारी ल बधाई दिन। सब झिन बर खाना के बेवस्था रिहिसे। हंसी खुसी सब झिन खाना खइन। श्यामलाल निरूपमा ल किहिस-अब तक ले बहू ल लड़ लड़ के पानी पियावत रेहे। अब बहू के संगे संग नतनीन के हाथ ले घलो पानी पिबे। निरूपमा ह लजा के श्यामलाल ल कहिथे-चूप, डोकरा कहिके मजाक करे के आदत ह अभी तक ले नइ गे हवय।


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दस


शिवनाथ नदिया के करार म बसे गांव कोटनी। कोटनी गांव ह दुर्ग ले बघेरा होवत पांच-छैह किलोमीटर दूरिहा म हवय। कोटनी पहिली सम्पन्न गांव रिहिसे। नदिया करार के भुइंया उपर ईंटा भट्ठा वाले ठेकादार मन के नजर परगे अउ चातर डाहर गुजराती मन के नजर। जानो मानो गांव ल काकरो नजर लग गे तइसे। जादा रूपिया के लालच म गांव वाले मन नदिया करार के खेत ल ईंटा भट्ठा के ठेकेदार मन करा अउ चातर भुइंया ल गुजराती मन करा बेंच डरिन। गांव वाले मन के चेहरा ह तो चार दिन हरियर-हरियर दिखिस तहान अइलाये बर धर ले रिहिसे। पइसा के राहत ले खूब उदाली मारे रिहिन हवय। तहान खेत के मालिक मन अपने भुइंया म बनिहार बनके रिहिसे। काकरो करा एकड़ भर जमीन नइ बांचिस। खोरबाहरा घलो अपन खेत खार ल बेच के सड़क म आ गे रिहिसे। रूपिया के राहत ले खूब फूटानी मारिस। सब खेत खार ल बेच के दारू के पुरतिन कर डरे रिहिसे। सतवन्तीन खूब बरजिस फेर नइ मानिस। अब चार-पांच गाड़ा के जोतनदार खाय बर लुलवाय बर धर लिस।

सतवन्तीन ह पहिली मालकिन कस घर म राहत रिहिसे फेर अब ओला समय ह बनिहारिन बना दिस। खूब तकलीफ पइस बपरी ह। खोरबाहरा अउ सतवन्तीन के एकलौता बेटा मनराखन ह अपन ददा के हरकत ले परेसान रिहिसे। सतवन्तीन ह अपन बेटा ल बनिहार नइ बनाना चाहत रिहिसे। ईंटा भट्ठा म कमा-कमा के घर चलावय अउ मनराखन ल पढ़ावय। मनराखन बिक्कट समझदार रिहिसे। अपन महतारी के तपस्यिा ल देखत रिहिसे। मनराखन घलो बड़े बिहनिया ले, दू घंटा ईंटा भट्ठा म कमाय बर जावय तहान पढ़े बर नगपुरा जावय। घर पहुंच के संझा कन कमाय बर गुजराती फारम जावय। अइसे करके मैट्रिक पढ़ डरिस। फेर अब आगू पढ़े बर हिम्मत नइ होइस। खोरबाहरा के दारू पियई के मारे ओकर लीवर खराब हो गे अउ देखते-देखते खतम हो गे। सतवन्तीन ह खाली हाथ हो गे। सब सपना धरे के धरे रहिगे। विधाता के लिखा ल कोन जानथे। कब काकर संग कइसन बिपदा आ जही। अब तो मनराखन ह गुजराती बारी म मेट (मुंशी) के नौकरी करे बर धर लिस।

एक दिन सतवन्तीन ह मनराखन ल कथे-बेटा, अब महंू सियाना हो गे हव ग। बस मोरो एके ठन साध रिहिसे-''बहू हाथ के पानीÓÓ पी लेतेंव कहिके। मनराखन के मन तो बिहाव करे के नइ रिहिसे फेर दाई के साध के आघु हारे बर परगे अउ बिहाव बर हव कहि दिस। अपन ददा के कारनामा ल जानत रिहिसे। अपन ददा के चिता ल आगी देवत किरिया खाय रिहिसे कि मंय कोनो भी किसम के नसा पानी नइ करंव। नसा नास के जड़ आय। महतारी-बेटा कमा-धमा के थोर बहुत रूपिया सकेले रिहिन हवय। सतवन्तीन के हिम्मत नइ रिहिसे, मड़वा बिहाव करे के। तभो ले अलवा-जलवा बहू बर जोरा करत रिहिसे। लड़की पसंद आ जही ते एसो अलवा-जलवा मनराखन के बिहाव ल निपटा दुहंू कहिके।

महमरा गांव म गया प्रसाद के लड़की घलो सज्ञान हो गे रिहिसे। यहू मने मन गुनत रिहिसे-''एसो सगा उतर जतिस ते बिसाखा के बिहाव कर देतेन कहिके।ÓÓ फेर गरीबी के आगू म काकरो बस नइ चलय। बिसाखा सुन्दर रिहिसे फेर गरीब बाप के बेटी के सेती सगा मन बिचक जावत रिहिसे। एक दिन मनराखन ह अपन पुरषोत्तम कका संग लड़की देखे बर महमरा गिस। सरपंच ह पुरषोत्तम के संगवारी रिहिसे। तिही पाय के सरपंच ह इमन ल लड़की देखाय बर गया प्रसाद घर लेगिस। बिसाखा ल गया प्रसाद ह खबर करके बलवइस। बिसाखा ह रोहन-बोहन घर म अइस। हाथ-गोड़, मुंहु-कान धो के सगा मन के पलागी करिस। अब लड़की देख के इमन घर वापिस आ गे। बिसाखा ल पसंद कर डरिन। महमरा के सरपंच ह गया प्रसाद करा खबर भेजवइस कि बिसाखा बेटी ल सगा मन पसंद कर डरे हवय। तुंहर डाहर ले जवाब चाहत हवय। गया प्रसाद ह सरपंच ल कथे-''बिहाव तो करबोन कहिके सोंचत हवन फेर हिम्मत नइ होवत हवय।ÓÓ

सरपंच-काबर?

गया प्रसाद-बिहाव करे बर रूपिया नइ हे।

सरपंच-एकर चिन्ता झन करव।

गया प्रसाद-काबर?

सरपंच-दुर्ग के स्टेडियम म महीना भर बाद ''मुख्यमंत्री निर्धन कन्या बिहावÓÓ के योजना के अन्तर्गत एक सौ एक जोड़ी मन के बिहाव होवइया हवय। बिसाखा के बिहाव ल उहें कर देबोन।

गया प्रसाद-सगा मन राजी हो जही?

सरपंच-मंय मना लुहंू।

गया प्रसाद-त बेटी ल खाली हाथ कइसे बिदा करबे? फूटी कौड़ी नइ हे।

सरपंच-बिसाखा ल खाली हाथ बिदा नइ करय सरकार ह। उंकर घर गृहस्थी के जिनिस के संगे संग दस हजार रूपिया घलो दिही।

गया प्रसाद-ए तो बढ़िया हो जही सरपंच जी।

सरपंच-त मंय लड़का वाले मन ल हमर डाहर ले हव कहि दवं।

गया प्रसाद-जी सरपंच जी। हव कहि दव।

सरपंच ह मोबाईल करके मनराखन के कका पुरूषोत्तम ल बतइस कि हमरो डाहर ले हव हे फेर एक ठन शर्त हे। काहे कि गयाप्रसाद ह गरीब हे बिचारा ह। रोज कमाथे अउ रोज खाथे। तिही पाय के मड़वा बिहाव करे के हिम्मत नइ हे। ''मुख्यमंत्री निर्धन कन्या विवाह योजनाÓÓ के अन्तर्गत दुर्ग के रविशंकर स्टेडियम म बिहाव ल करबोन कहिके गया प्रसाद ह काहत हवय। अब तुंहर मन के का बिचार हे तेला बतावव? पुरूषोत्तम ह मनराखन मन के स्थिति ल जानत रिहिसे। यहू मन तो रोज कमावय अउ रोज खावय।

खोरबाहरा अउ पुरूषोत्तम दुनो भाई बंटवारा हो गे रिहिन हे। खोरबाहरा के इंतकाल के बाद सतवन्तीन ह अपन देवर पुरूषोत्तम ल ही सियान मानय। पुरूषोत्तम ह पूरा भरोसा करके महमरा वाले सरपंच ल कहि दिस-ले रे भई सगा ह जइसन चाहही ओइसने बिहाव करे बर तइयार हवन। अब दुनो परिवार खुस रिहिन हवय। अब ''मुख्यमंत्री निर्धन कन्या बिहाव योजनाÓÓ म बिहाव होही कहिके सरकार ल धन्यवाद देवत रिहिन हवय। सरकारी योजना म बिहाव के तइयारी के बाद घलो सतवन्तीन ह अपन ले जतना हो सकय अपन बहूरिया बर गहना-गुरिया बिसा डरे रिहिसे। सतवन्तीन ह बड़हर घर ले आय रिहिसे तिही पाय के थोर बहुत गहना ल खोरबाहरा ले लुका के राखे रिहिस हे। उही गहना ल बहू ल पहिराहंू कहिके मने मन मगन रिहिसे।

बिसाखा के दाई भले गरीबिन रिहिसे फेर बपरी ह अपन दुलौरिन बेटी बर पाई-पाई सकेल के जोरा करत रिहिसे। एक दिन गया प्रसाद अउ रमशीला दुनो जुग जोड़ी गोठियावत रिहिन-''सरकार ह कतनो दिही, फेर अलवा जलवा घर-गृहस्थी के सामान ल बिसा डरतेन।ÓÓ बिसाखा ह गजब समझदार रिहिसे। अपन दाई-ददा ल मना करिस। ए सब सामान म रूपिया खरचा झन करव। बल्कि रूपिया ल बचा के रखे रहव। रमशीला कथे-नही बेटी तोर बर जउन रूपिया सकेले हवन ओह उठ जही। गया प्रसाद घलो कथे-तोर दाई बने काहत हे बेटी। हमर करा थोर बहुत तोर बिहाव बर रूपिया हवय ओह उठ जही। बिसाखा कथे-एक काम करव मंय बैंक जा के जन धन योजना के अन्तर्गत खाता खोलवा देथंव, उही म जमा कर दुहू। वो रूपिया ह वक्त म हमर काम आही। सामान ह खराब हो जही। बैंक म रूपिया रही तेह बाढ़ही। वइसे भी सिंगार के सामान ल तो वर पक्ष वाले मन तो लानबे करही। बिसाखा के सलाह ल गया प्रसाद अउ रमशीला ल जम गे। दुनो झिन जउन रूपिया सकेले रिहिन हे ओला बिसाखा के खाता म जमा कर दिन।

वर-वधु पक्ष वाले मन ''मुख्यमंत्री निर्धन कन्या विवाहÓÓ समारोह म दूल्हा-दुल्हिन संग पहुंचिन। सामूहिक बिहाव के कार्यक्रम सुरू होइस। प्रदेश के मुख्यमंत्री ह वर-वधु ल असीस दिस। बिहाव के कार्यक्रम सम्पन्न होइस। इहें ले मनराखन ह बिसाखा ल बिदा करा के कोटनी लइस। बेटी वाले मन बिसाखा ल बिदा करे के बाद दुखी मन ले महमरा लहूटिन। सतवन्तीन ह बिक्कट खुस रिहिसे काबर कि अब ओला ''बहू हाथ के पानी पिये बर मिलही।ÓÓ सतवन्तीन ह एक-दू दिन बाद ईंटा भट्ठा कमाय बर जाय के सुरू कर दिस। मनराखन ह घलो गुजराती बारी म मेट के काम सुरू कर दिस। सतवन्तीन ह आठ ठन ईंटा ल मुड़ी म बोहे, दउड़-दउड़ के डोहारत रिहिसे। काहे कि जतने जादा डोहारही ओतने जादा टिकिया मिलही। इंर्टा डोहारत डोहारत एक ठन ईंटा ह सतवन्तीन के गोड़ म गिर गे। ईंटा गिरे ले पांव ह कुचरागे।

ईंटा भट्ठा के मुंशी ह सतवन्तीन ल सइकिल म बइठार के घर छोड़िस। बिसाखा अपन सास के खूब जतन करिस। सतवन्तीन मने मन गुनथे, कोनो जनम के करम के फल आय कि अइसन बहू मिले हवय। सतवन्तीन थोकिन बने होइस तहान फेर कमाय बर ईंटा भट्ठा जाहंू किहिस फेर बिसाखा ह साफ मना कर दिस। बिसाखा अपन सास ल किहिस-मोर राहत ले अब तंय ह ईंटा भट्ठा कमाय बर झन जा। अब तंय घर म रहिबे अउ मंय ह ईंटा भट्ठा जाहंू कमाय बर। बने ढंग ले माहुर अउ मेंहदी के रंग छूटे नइ रिहिसे फेर अइसे लागत हे मजदूरी के पछीना ले सबो रंग ह छूट जही।

रात कना मनराखन ल बिसाखा ह किहिस कि अब दाई ह घर म रही, अब मंय ह ईंटा भट्ठा कमाय बर जाहूं। दुनो जुग जोड़ी सुन्ता सलाह हो जथे। बिसाखा नवा बहुरिया रिहिसे। बिसाखा गरीब जरूर रिहिसे फेर नाक नक्शा बिक्कट सुन्दर रिहिसे। दुए चार दिन होय रिहिसे ईंटा भट्ठा म बिसाखा ल काम करे बर जावत फेर नवा बीमारी सुरू हो गे। ईंटा भट्ठा के मुंशी के नजर ह बिसाखा उपर परगे। धीरे-धीरे मुंशी ह बिसाखा ल अपन मया के डोरी म फंसाय के कोसिस करिस। फेर बिसाखा गरिबीन भले रिहिसे फेर अपन इज्जत ल आंच आवन नइ दिस। मने मन गुने, आखिर करे का जाय। ए मुंशी के नजर ह ठीक नइ लागत हे। ईंटा भट्ठा के कमई ल छोड़ के दूसर बूता करे बर परही। अब बिसाखा ह परन कर लिस ए जिनगी भर हटर-हटर कमई ले तो अच्छा हे साग-भाजी बेचे के धन्धा सुरू करे जाय। एक दिन बिसाखा ह अपन बिचार ल मनराखन करा राखिस। मनराखन किहिस-धन्धा पानी बर तो रूपिया के जरूरत परही बिसाखा, अभी तो हम्मन पेटे ले नइ उबरत हवन। बिसाखा कथे-ओकर जुगाड़ कर डरे हवं जोड़ी। मनराखन पूछथे-वो कइसे? बिसाखा कथे-मंय बिहाव के बखत दाई-ददा ल चेता दे रहेंव कि तुमन जउन घर गृहस्थी के सामान बर फोकट खरचा झन करव, ओ रूपिया ल मोर खाता म जमा कर देव कहिके जमा करवा दे रहेंव।

आज धन्धा पानी बर उही रूपिया के उपयोग करबोन। अउ फेर ''मुख्यमंत्री निर्धन कन्या बिहावÓÓ के आयोजन म टिकावन म असीस के रूप म जउन रूपिया दे हे वहू काम आ जही। मनराखन कथे-ओ रूपिया ल तो मंय साहूकार मन ल दे दे हवं। ददा के तबियत खराब रिहिसे ओ समय करजा ले रेहेंव। उमन ल लहूटा दे हवं। बिसाखा किहिस-''बने करे जोड़ी, उधारी अउ बीमारी ल जादा बढ़ाना नइ चाही।ÓÓ मंय अपन खाता ले रूपिया ल निकाल लेथंव। जिहां तंय कमाय बर जाथस उही फार्म हाउस ले साग-भाजी बिसा के दुर्ग जाहंू, बेचे बर।

बिसाखा बड़ कमेलिन तो रिहिसे। बिसाखा के सुघ्घर सोच ल सुन के हव कहि के हामी भर दिस। बिसाखा ह बिहनिया ले गुजराती फारम ले साग-भाजी बिसा के, बोझा ल बोह के नवापारा, चण्डी चौक म घुम घुम के बेच के लहूट जावय। पहिली तो टेम्पो नइ चलय त भारी तकलीफ होवय फेर कोटनी नदिया म स्टाप डेम बने ले-टेम्पो चले के सुरू हो गे। तहान टेम्पो म बइठ के बिसाखा ह साग-भाजी बेचे बर दुर्ग जावय। अपन सास बर खजानी धर के जरूर लेगय। बहू के आवत ले सतवन्तीन ह रांध गढ़ के राखे राहय। अपन बहू के काम बूता ल देख के सतवन्तीन ह गुनत रहि जाय। हे भगवान फेर जनम म मोर घर बिसाखा ल बहू बना के भेजबे।

देखते देखत बिसाखा ल भगवान ह चिन्ह दिस। आधा सीसी रेहे के बावजूद धन्धा पानी ल बिसाखा ह नइ छोड़िस। कभू कभू टेम्पो नइ आवय त मनराखन ह सइकिल के केरियर म साग-भाजी के बोझा ल बांध के बिसाखा ल डण्डी म बइठार के बघेरा तक छोड़ के आवय। भगवान के किरपा ले घर म नवा मेहमान अवतरिस। बुधवार के जनम धरे रिहिसे तिही पाय के गुड्डू के नाम बुधारू धरिन। बिसाखा के जेचकी बर मनराखन ह रिस्क नइ ले रिहिसे तिही पाय के दुर्ग के सरकारी अस्पताल म भरती करवाय रिहिसे। छुट्टी करा के लाय के बाद घर म कांखे पानी अउ ढुड़ही खवइस। सोंठ-ढुड़ही खइस तहान बिसाखा ह जल्दी टन्नक हो गे। बिसाखा के दाई-ददा मन घलो लुगरा पेंट धर के आय रिहिन हवय। बिसाखा के सास ह अब फदर-फदर बुधारू के पेट ल थपोल मार-मार के सेंकय-चुपरय। हाथ गोड़ के मालिस करय। बिसाखा के दाई ह अपन समधीन ल किहिस-बुधारू ल काजर के टीका लगा दे, काकरो नजर झन लगय। ओकर बाद गया प्रसाद अउ रमशीला ह महमरा लहूट गे। बुधारू ह अपन ददा के मुहरन म रिहिसे। सतवन्तीन ह बुधारू ल सेंकत-सेंकत काहय-मोर धनी बेटा ह पढ़ लिख के मास्टर बनही। चार गांव के गउंटिया बनही। महतारी अउ डोकरी दाई धन ले भले गरिबीन रिहिस फेर असीस देबर गउंटनीन रिहिसे। कोनो किसम के कमी नइ होवन देवय। सतवन्तीन ह मनराखन ल काहय-''मंय तोला जादा नइ पढ़ा पायेंव बेटा, फेर तंय अपन लइका मन ल बिक्कट पढ़ाबे-लिखाबे।ÓÓ

बुधारू ह अब ठुबुक-ठाबक रेंगे बर धर लिस। मनराखन ह नगपुरा बजार ले गुलढुली लाय रिहिसे। उही ल धरवा-धरवा के बुधारू ल रेंगे बर सिखोवय। अब सतवन्तीन ह थके बर धर लिस। धीरे धीरे तबियत घलो खराब होय बर धर लिस। बिसाखा ह अपन लइका के संगे संग अपन सास के सेवा म कोनो किसम के कमी नइ करत रिहिस। सतवन्तीन के तो अब कनिहा ह झूके बर धर लिस। अब तो रेंगे बर लउठी के सहारा लेवय। बहू-बेटा मन अपन-अपन काम बूता म जावय त घर म सतवन्तीन ह बुधारू ल खेलावय। जब बिसाखा ह हाट बाजार ले लहूटय तहान थोर बहुत मन मढ़ाय बर सतवन्तीन ह बइठे बर चल देवय। आजो घलो संझौती लउठी ल टेकत-टेकत गली डाहर सुकवारो घर जावत रिहिसे। फेर रफ्तार म आवत फटफटी ह सतवन्तीन ल ठोकर मार के भगा गे। देखइया मन काहय फटफटी चलइया ह दारू पीये रिहिस हवय तइसे लागथे। फटफटी म सतवन्तीन ल धक्का लगे के बाद ओकर डेरी गोड़ ह फे्रक्चर हो गे। ओकर बाद मनराखन अउ बिसाखा ह खूब इलाज पानी करवइन फेर सतवन्तीन ह नइ सम्हल पइस। देखते देखत एक दिन बेरा के बुड़ती म सतवन्तीन ह घलो अपन परान ल तियाग दिस।

अब तो मनराखन अउ बिसाखा बर नवा समस्यिा खड़ा हो गे। अब का करे जाय? दुनो झिन सुन्ता सलाह ले दुर्ग के पंचशील नगर म रेहे के योजना बनइन। अब मनराखन ह बिसाखा अउ बुधारू ल धर के दुर्ग के पंचशील नगर म आ के किराया म रेहे बर धर लिस। इहें रहिके सब्जी के धन्धा म दुनो परानी लग गे।

बुधारू ननपन ले कमजोर रिहिस हवय। जब देखबे तब बीमार पर जय। बुधारू ल निमोनिया के शिकायत रिहिसे। मनराखन अउ बिसाखा ह बुधारू के तबियत ले बिक्कट हलाकान रिहिसे। बस जब देखते त बुधारू ल धर के अस्पताल जावय। बड़े-बड़े चाइल्ड स्पेसलिस्ट करा देखइन फेर ठीक होय के नामे नइ लेवय। जतना कमावय सब इलाज पानी म चल देवय। मनराखन अउ बिसाखा के तन के पछीना अउ आंखी ले आंसू थम्हे के नामे नइ लेवत रिहिसे। एक दिन तो बुधारू ह अबक-तबक हो गे रिहिसे। दुर्ग वाले डॉक्टर ह सेक्टर नाइन अस्पताल भिलाई लेगे बर किहिस। तुरते सेक्टर नाइन अस्पताल लानिस। डॉक्टर मन के चेहरा ह घलो जवाब दे बर धर ले रिहिसे फेर बजरंग बली के किरपा ले बुधारू ह बांच गे। मनराखन अउ बिसाखा ह दुनो झिन बजरंग बली के मंदिर म जा के नरियर चघइन। अउ अपन परिवार उपर किरपा बनाय रेहे बर बिनती करिन। चार दिन अस्पताल म रखे के बाद छुट्टी दे दिस। महीना भर बाद बुधारू ल फेर निमोनिया हो गे। फेर सेक्टर नाइन अस्पताल भिलाई के चाइल्ड स्पेसलिस्ट डॉक्टर दवे करा लेगिस। डॉक्टर साहब ह घलो इलाज करत करत हक खागे।

डॉक्टर मनराखन अउ बिसाखा ल सलाह दिस कि एकर इलाज एलोपैथिक दवई म नइ हो पावत हवय। एक घांव घरेलू नुस्खा अपना के देखथन। डॉक्टर साहब ह किहिस कि मंहू ह बजरंग बली ले बिनती करत हवं कि बुधारू जल्दी स्वस्थ हो जाय। मनराखन किहिस-काय करे बर परही डॉक्टर साहब। डॉक्टर साहब किहिस-एक काम करहू, एक कप दूध म एक चुटकी हरदी ल घोर के दिन म दु घांव भगवान ल सुमर के पियावव तहान ठीक हो जही। डॉक्टर भगवान के रूप रिहिसे। दूध अउ हरदी ह बुधारू बर अमरित बरोबर काम करिस तहान धीरे-धीरे बुधारू के निमोनिया ह ठीक होय बर धर लिस। बुधारू के इलाज करावत ले मनराखन अउ बिसाखा ह दंदर गे रिहिसे। आर्थिक स्थिति खराब हो गे, करजा बउड़ी म लदा गे। अब चिन्ता फिकर ह दुनो परानी ल खाय बर धर ले रिहिसे। कतनो संकट अइस फेर मनराखन अउ बिसाखा ह हिम्मत नइ हारिन। मनराखन के सपना रिहिसे कि अपन लइका के बढ़िया परवरिश करहंू। मंय जउन सुख नइ पायेंव ओला अपन लइका ल दुहंू। बिसाखा घलो अपन लइका के पांव म कांटा झन गड़य कहिके दिन-रात गुनत राहय। फेर गरीबी के मार ले कोन बांचे हवय। गरीबी के आगू म तो अच्छा अच्छा के बूध पतरा जथे।

अब ले दे के बुधारू ह स्कूल जाय के लइक होइस तहान बिसाखा के पेट म अउ लइका सचर गे। भगवान के मरजी ल कोन टार सकथे। बुधारू ह ननपन ले फिसफिसहा रिहिसे तिही पाय के मनराखन अउ बिसाखा ह जादा डाटे-डपटे नही। सुरू-सुरू म मनराखन ह बुधारू उपर धियान देवत रिहिसे। फेर बुधारू के रात-दिन तबियत खराब होवई के मारे सरीर अउ दिमाग ह घलो कमजोर हो गे रिहिसे। पंचशील नगर म मनराखन ह बुधारू ल के.जी. वन म भरती करिस। मनराखन अउ बिसाखा ह अपन बेटा ल स्कूल के यूनिफार्म म देखय ते शान बढ़ जाय। बुधारू के के.जी. वन के पास होवत ले बिसाखा ह हरू हो गे। अभी के जेचकी म थोरिक जादा तकलीफ पाय रिहिसे काबर कि परिस्थिति ह तन अउ मन ल कमजोर कर दे रिहिसे। जादा खून जाय ले एक बोतल खून घलो चढ़ाय बर परे रिहिसे। ईश्वर के किरपा ले बिसाखा ह सम्हल गे। पूरा परिवार बिसाखा ल सम्हाले बर बिनती करे रिहिन हवय। बिसाखा के अस्पताल ले घर आय के बाद मनराखन ह धन्धा पानी म लग गे। मनराखन ह मैट्रिक पढ़े रिहिसे तिही पाय के बुधारू ल होमवर्क करा देवत रिहिसे। मनराखन के एके सपना-बस लइका मन कइसनो करके पढ़ लेवय नही ते जानवर अउ अनपढ़ म का अन्तर हे, आखरी सांस तक पछीना ल चुचवावत राह। मनराखन अउ बिसाखा ह नान्हे लइका के नाव सन्तू रखिन।

मनराखन अउ बिसाखा ह बुधारू ल बड़ मुस्किल म बड़े करे रिहिन। अब तो बुधारू बर खिलौना बरोबर संतु आ गे। संतु के आय ले चाह के भी बुधारू ल जादा समय नइ दे पावत रिहिन हे। बुधारू ल क्लास वन अंग्रेजी माध्यम म भरती करइस। मनराखन ह सपना देखत रिहिसे कि कइसनो करके लइका मन ल अंगे्रजी माध्यम म पढ़ाहू कहिके। अब लइका मनके परिवरिश अउ शिक्षा बर दिन-रात मेहनत करे बर धर लिस। कइसनो कर के बैंक ले लोन ले के हैवी ड्यूटी (मोटरसाइकिल) लिस। अब मनराखन ह थोक बाजार ले साग-भाजी बिसा के हाट बाजार जा जा के धन्धा करके रेहे बर घर के बेवस्था म लग गे। बुधारू बर टिवसन लगा दे रिहिसे फेर ओकर मन ह पढ़ई म लगबे नइ करय। बुधारू ह ले दे के तीसरी पास होइस तहान चौथी म फेल हो गे। तीसरी तक कइसनो कर के पास होइस फेर बीच-बीच म तबियत खराब होय के सेती ओकर कैचिंग पावर कम हो गे। अब चलो कइसनो करके बुधारू ह पढ़य कहिके एन.सी.आर.टी. म भर्ती नइ करा के सीधा सरकारी स्कूल म भरती कर दिस। बुधारू ह महतारी-बाप के सिधाई के नजायज फायदा उठइस। बुधारू ह गलत संगति म पड़ गे। अब तो बुधारू ह स्कूल जाय बर घर ले निकलय अउ पइसा जितउला खेल म दिन भर लगे राहय। छुट्टी होय के समय म बराबर घर पहुंच जय। बुधारू ह स्कूल ले आ गे कहिके बिसाखा ह बिक्कट मया करय। बुधारू ह गलत संगति म पड़ के बिगड़े बर धर ले रिहिसे। कतनो घांव मेडम मन घर म बुधारू के कम्पलेन करिन फेर मनराखन अउ बिसाखा ल थोरको भरोसा नइ होइस।

एक दिन मनराखन ह स्कूल डाहर हटरी जावत रिहिस। जावत-जावत देखथे कि बुधारू ह रद्दा म पइसा जितउल खेलत रिहिसे। तब पतियइस कि तभे मेडम मन एकर सिकायत करत रिहिसे-''बुधारू ह स्कूल नइ आवय।ÓÓ अब सब ल जाने के बाद मनराखन अउ बिसाखा के हाथ मुंहु ह एकर सेती बंध जावय कि बुधारू ह रिंगरिंगहा रिहिसे। बड़ा मुस्किल म सम्हाले रिहिन हे बुधारू ल, एकर दुख पीरा ल महतारी-बाप मन जानत रिहिसे। एक दिन अउ पइसा जितउल खेलत बुधारू ल मनराखन ह देख डरिस। ओ दिन मनराखन ह बुधारू ल घर म लान के राहपे राहपट थूथरे रिहिसे। ले दे के बिसाखा ह छोड़ाय रिहिसे। ''कइसे लइका ल मार डरबे का? अरे नइ पढ़ही-लिखही त रोजी-मजदूरी कर के जी लिही।ÓÓ

महतारी के मया म बुधारू ह नइ पढ़ पइस। ले दे के दसवीं ल पढ़िस तहान बारहवीं ल पास नइ कर सकिस। ओला मनराखन ह मेडम मन के सलाह ले ओपन स्कूल म भरती करइस। ओपन स्कूल म घलो ले दे के पास होइस। बुधारू के चाल ल देख के मनराखन ह बहुत दुखी राहय। मनराखन मने मन सोंचय-''मंय जिनगी भर पछीना ओगारत हवं ते ओगारत हवं फेर बेटा ह तो पढ़-लिख के सुख के जिनगी पहावय।ÓÓ पढ़-लिख के बुधारू ह नौकरी करय कहिके अपन जिनगी ल खपा दे रिहिसे।

बिसाखा ह संतु के देख रेख करत-करत घरे मुहाटी म साग-भाजी के पसरा लगावय। बुधारू बारहवीं पास करे के बाद मंय ह सरस्वती कालेज म कम्प्यूटर साइंस म डिप्लोमा करहंू किहिस। मनराखन ह कइसनो करके पन्द्रा हजार रूपिया के बेवस्था करके भरती ल तो करवा दिस। बुधारू ह दू-चार महीना कालेज गिस तहान फेर घूम फिर के घर आ जावय। मनराखन के नजर ह बुधारू उपर रिहिसे। जान के अनजान बरोबर राहय। अब मनराखन ह करे ते करे का? बुधारू के जिनगी के चिन्ता सतावत रिहिसे। उपराहा म बैंक लोन के चिन्ता अऊ संतु के परवरिश के चिन्ता फिकर ह लगे राहय। बुधारू ह अब तो बीड़ी सिगरेट पिये बर सीख गे रिहिस हवय। माखूर घलो खाय बर सीख गे रिहिसे। ''कभू कभू दरूवाहा संगवारी मन संग घलो बइठे बर धर लिस। मनराखन ह अपन दरूवाहा ददा के करनी ल जानत रिहिसे। नसा म तन मन धन ल जल्दी गंवा डरे रिहिस हवय। मनराखन ह ननपन ले गरीबी के किताब ल पढ़े रिहिसे तिही पाय के बुधारू के जिनगी बर भारी फिकर करे।ÓÓ

बुधारू ल मनराखन अउ बिसाखा ह लइका पढ़त हवय कहिके काम-बूता बर कभू तियारबे नइ करिन। बुधारू के तन ह बतावत रिहिसे कि बुधारू ह नसेड़ी हो गे हे कहिके। अब तो कालेज ले घलो मनराखन करा बुधारू के सिकायत आय बर धर लिस। महतारी-बाप मन पूछय कि कालेज काबर नइ जावत हवस बेटा त बड़ा असानी से बहाना मार के उंकर भरोसा ल जीत लेवत रिहिस। जब भी मनराखन ह बुधारू ल खिसियाय त बिसाखा उल्टा मनराखन ल खिसिया के चुप कर देवय। ओकर बाद तो मनराखन ह बुधारू ल खिसियायेच बर छोड़ दिस। बुधारू बिक्कट चतुरा राहय। ओह अपन महतारी के हाथ गोड़ दबावय अउ भुलवार-भुलवार के पइसा मांगय। बिसाखा ह समझेच नइ पावत रिहिसे कि बुधारू ह कोन दिशा म जावत हवय फेर मनराखन ह जानत रिहिसे कि बुधारू ल महतारी के ममता ह बिगाड़त जावत हे। कभू-कभू बुधारू के आंखी ह लाल दिखय त मनराखन ह पूछय तोर आंखी ह कइसे लाल दिखत हवय? बुधारू ह बड़ा सरल ढंग ले बेवकूफ बना देवत रिहिसे। कभू आंखी ह पिरावत हे त कभू कचरा परगे हे कहिके फेर ओ नसा कर के आवय तेला कभू नइ बतइस।

मनराखन ह बिसाखा ल किहिस-''सुन बिसाखा बुधारू के संगति ह बने नइ हे तइसे लागत हे फेर बिसाखा ह बुधारू के सांखी तीरत मनराखन ल खिसियावय, भइ गे तंय तो टूरच के पिछू परगे हवस।ÓÓ मनराखन के मुंहु बंद हो जावय। कभू कभू बुधारू ह दारू पी के आवय त मनराखन ह पूछय-कइसे बास आवत हे कहिके? फेर बुधारू कहि देवय कि मोजा के बास आय। मनराखन ल जिनगी के अनुभव रिहिसे। ओह जानत रिहिसे कि ए टूरा ह रोज दारू गांजा पी के घर आथे। बुधारू ल थोरको अपन भविष्य के चिन्ता नइ रिहिस।

अब संतु घलो टिंग टांग चले बर सुरू करिस। अब मनराखन ह अपन सपना ल संतु म देखे बर धरिस। संतु ल घलो के.जी. वन म भरती करिस। संतू ह ननपन ले टन्नक बानी के रिहिस हवय। कोनो भी बात ल जल्दी पकड़ लेवय। पहिली तो सिल्हेट पट्टी अउ कलम म लिखय तहान उही ल कापी पेन्सिल म लिखय। बिसाखा ह घलो संतु ल पढ़े बर खिसियावय। कभू कभू होम वर्क करवाय बर बुधारू ल बोलय फेर ओकर मन ह पढ़ई म लगय न पढ़ाय म लगय। मनराखन ह संतू के नाम से सेविंग कंपनी वाले करा रोज के रोज बीस रूपिया जमा करय ताकि ओकर पढ़ई-लिखई बर काम आही कहिके। अब धीरे धीरे बिसाखा ल घलो समझ म आ गे रिहिसे कि बुधारू ह मया दुलार म बिगड़ गे काबर कि ओकर चाल चलन ह अब दिखे बर धर ले रिहिसे। संतु ल क्लास वन म मनराखन ह भरती कर दिस। क्लास वन म भरती करवा तो दे रिहिसे फेर मनराखन ल डर लागत रिहिस हवय संतु ह घलो कहंू बुधारू कस झन होवय। अंग्रेजी मिडियम म भरती तो करा दे हवं फेर एती ओला घर म कोन पढ़ाही? बुधारू ह पढ़े न पढ़ावय। तिही पाय के मनराखन ह सोच ले रिहिसे कि बुधारू बर पढ़े-लिखे बहू लाहूं कहिके।

अब बिसाखा अउ मनराखन गुनथे ए बुधारू ह दिनो दिन बिगड़त जावत हवय। ओला अपन जिनगी के चिन्ता हे न अपन तन के। बिसाखा कथे अइसे करथन, बुधारू के बिहाव कर देथन तहान सुधर जही। मनराखन कथे-अरे ए बिगड़े टूरा ल कोन ह बेटी दिही। बिसाखा कथे-तभो लेे तो हमर धरम ल निभायेच ल परही। हो सकथे बहू के आय ले बुधारू के बुध ह आ जही। मनराखन ह कथे-बने तो काहत हवस बिसाखा, ए साल बुधारू बर कोनो करा बहू खोजे बर निकलबोन। मनराखन ह बुधारू बर लड़की देखे बर बिक्कट घुमिन फेर कोनो लड़की दे बर तइयार नइ होवय। बुधारू के बदमासी दिनो दिन बाढ़त गिस। कंप्यूटर साइंस ल तो पास नइ कर पइस, अब अपन ददा ल किहिस कि मंय ओपन यूनिवर्सिटी ले डी.सी.ए. करहंू कहिके किहिस। मनराखन ह पढ़ई भर बर कभू मना नइ करिस। इहों बुधारू ह दुर्ग के कोचिंग सेंटर जावत हवं कहिके निकले अउ घूम फिर के आ जावय। कोनो कोनो चिन्ह पहिचान वाले मन मनराखन ल किहिन-''अरे बुधारू ल सम्हाल, ओकर संगति ठीक नइ हे।ÓÓ बुधारू ह बराबर हर महीना फीस बर रूपिया लेगय। कोचिंग जाथंव कहिके घर ले निकले अउ पी खा के घर आवय। बुधारू के चाल चलन ल देख के एक दिन मनराखन ह पूछिस, कते कोचिंग म पढ़े बर जाथस? बुधारू किहिस-मंय संतरा बाड़ी दुर्ग के आदर्श कोचिंग सेंटर म पढ़े बर जाथंव। मनराखन ल सक होइस, ए टूरा के चाल चलन बने नइ दिखत हे कहिके ओह आदर्श कोचिंग सेंटर के आगू म जा के बुधारू ल फोन करिस। फोन ल बुधारू ह उठइस। मनराखन ह पूछिस, अभी कहां हवस? बुधारू-अभी तो मंय कोचिंग म हवं।

मनराखन-निकल तो थोकिन काम हे।

बुधारू-अभी तंय कहां हस?

मनराखन-मंय तो कोचिंग सेंटर के आगू म खड़े हवं।

बुधारू-(समझ जथे, अब तो अलकरहा फंस गेंव रे, तुरते बहाना बनाथे) पिता जी मोला माफी देबे, मंय आज कोचिंग नइ जा पाय हवं।

मनराखन-काबर?

बुधारू-मोर संगवारी के पिता जी ह अस्पताल म भरती हे त ओला देखे बर आय हवं।

मनराखन ल बुधारू के बात उपर बिसवास नइ होइस। आदर्श कोचिंग सेंटर म पहुंचिस, उहां जा के संचालक ल पूछिस-सर! इहां बुधारू नाम के लड़का के पढ़ई ह कइसे चलत हवय? कोचिंग सेंटर के मालिक कथे इहां बुधारू नाम के कोनो लड़का भरती नइ होय हवय। सुन के मनराखन ह तरूवा पकड़ लिस। अब मनराखन ल समझ आ गे ए टूरा ह हाथ ले निकल गे। ए सब बिसाखा के मया के फल आय। तभे सियान मन काहय, घर के बनाय अउ बिगाड़े म माईलोगन के हाथ रथे। ए बात ल जानबूझ के बिसाखा ल नइ बतइस। मनराखन जानत रिहिसे कि ओह बुधारू के सांखी तिरही कहिके। मनराखन ल नींद आय न चैन। रही रही के चण्डी मइया ले बिनती करय, हे माता रानी! बुधारू के आदत ल सुधार दे।

मनराखन ह खुसमिजाज किसम के आदमी रिहिसे फेर ओकर चेहरा के हांसी ल चिंता ह खा डरे रिहिसे। रात-दिन सोंचय, अब करे ते करे का जाय। घर भी चलाना हे, लइका मन ल पढ़ाना हे अउ बुधारू के बिहाव घलो करना हे। एक दिन मनराखन ह बुधारू ल अकेल्ला म बइठार के समझइस-बेटा, जिनगी ल अपने बलबूता म जिये बर परथे। कभू कोनो काम नइ आवय। सबले कीमती धन निरोगी काया आय। यदि तन ह बने हे त दुनिया के कोनो भी जंग ल जीते जा सकत हे। अतना ल सुनिस तहान बुधारू ह अपन ददा ल जवाब दे बर धर लिस-''का मंय नसेड़ी लगथंव? का मंय दरूवाहा लगथंव? मनराखन प्यार से समझइसÓÓ-नही बेटा मंय अइसन नइ काहत हवं, अब तोला अपन पैर म खड़ा होय बर परही। अब काम धन्धा करे बर परही।

बुधारू-त का पढ़ई-लिखई ल छोड़ दवं।

मनराखन-बेटा, तंय डी.सी.ए. करत हवस तेह ओपन यूनिवर्सिटी वाले आय। दिन म काम कर अउ संझा कन कोचिंग कर।

बुधारू-मतलब कि अब मंय ह तुंहर मन बर गरू हो गे हवं। अइसन म पैदच काबर करे होहू।

(बुधारू के बात ल सुन के मनराखन घलो ताव म आगे?)

मनराखन-पैदा करेच हवन त का छानी म होरा भंूजबे। मंय नइ जानत हवं का, तोर चाल ल। पढ़ई के नाम म हम्मन ल धोखा देवत हवस। अउ सुन, तंय हम्मन ल का धोखा देवत हवस, तंय अपन आप ल धोखा देवत हवस, समझे।

अब बुधारू ल समझ आय बर धर ले रिहिसे कि मोर सबो करनी ल ददा ह जानत हे कहिके चूप रहिगे। मनराखन किहिस-तोर ए सब कोड़िहई, झूठ लबारी ल अब मंय नइ सहि सकंव। अब मोला संतु के पढ़ाई ल घलो देखना हे। अरे यहू जवानी ह का काम के, जउन ह बिरथा चले जाय। तोर उमर म मंय घर गृहस्थी चलाना सुरू कर दे रहेंव, समझे। अउ सुन बुधारू हम्मन तोर बिहाव करे बर सोंचत हन। फेर तोर आदत के देखे कोनो लड़की दे बर तइयार नइ होवत हवय। मंय कलेक्टर ऑफिस म तोर बर डेली वेजेस म गार्ड के नौकरी खोजे हवं। काली ले तोला ज्वाइन करना हे समझे। नइ काम करबे ते अब मंय तोला नइ पोंस सकंव समझे। काली ले ड्यूटी जाबे या फेर घर ले बाहिर। अब बुधारू करा कलेक्टर ऑफिस म गार्ड के नौकरी ज्वाइन करे के अलावा कुछु चारा नइ रिहिसे। मनराखन खिसिया के निकल के साग-भाजी बेचे बर हटरी चल दिस।

बुधारू ह पहिली घांव अपन ददा के गुस्सा ल देखे रिहिसे। अब ओला समझ म आ गे। नइ कमाहंू त खाय बर नइ मिलय कहिके। बिहान दिन ले बुधारू ह गार्ड के नौकरी ज्वाइन करिस। मनराखन ह गुस्सा गुस्सा म बुधारू संग बने ढंग ले गोठियाबे नइ करय। बुधारू ह अब रोज ड्यूटी जावय अउ घर लहूट आवय। गंजपारा अउ पंचशील नगर के बीच म देसी भ_ी परय। आवत-आवत पी घलो लेवय।

मनराखन ह बुधारू के पियई-खवई ले सख्त नाराज रिहिसे। मनराखन ह परन कर डरिस कि अब ए टूरा के बिहाव करे बर परही। गर (गला) म घंटी बंधाही तहान आटोमेटिक सुधर जही। मनराखन ह अपन संगवारी अंतराम ल सबो दुख ल बतइस। सुन के अंतराम ह किहिस-बुधारू बर मोर नजर म एक झिन लड़की हवय। जोड़ी ह सुग्घर फभही। मंय कहंू ते उमन मोर उपर भरोसा करके दे दिही। काबर कि उमन मोला बिक्कट मानथे। अंतराम संत प्रवृत्ति के रिहिसे। बड़ा गुनवान रिहिसे। कबीर के भक्त रिहिसे। भजन अउ प्रवचन म पूरा छत्तीसगढ़ घुमत राहय। तिही पाय के ओकर जान पहिचान पूरा छत्तीसगढ़ म बन गे रिहिसे। मनराखन ह अंतराम ल किहिस-कोन गांव वाले आय साहेब। अंतराम ह किहिस ओह नवागांव वाले रामनाथ आय। ओकर छोटे नोनी हंसा ह बिहाव बर बांचे हवय। रामनाथ ह मोला बोल के रखे हवय, कोनो करा बढ़िया सरिख सगा उतर जही ते बताबे साहेब। एसो हंसा बेटी के बिहाव कर देबोन। हंसा ल रामनाथ ह अंग्रेजी मिडियम म पढ़ाय रिहिसे। रामनाथ जानत रिहिसे कि शिक्षा अउ संस्कार ले बड़े पंूजी कुछु नो हे। रामनाथ ह अपन बेटी मन ल संस्कार अउ शिक्षा दुनो दे रिहिसे। मनराखन ह अंतराम ल कथे- त बात चला न। अंतराम ह मोबाइल निकालिस अउ तुरते फोन लगइस-

अंतराम-हलो!

रामनाथ-हलो!

अंतराम-मंय अंतराम बोलत हवं रामनाथ।

रामनाथ-साहेब बंदगी साहेब!

अंतराम-मंय एक ठन बूता बर फोन लगाय रेहेंव।

रामनाथ-हं बता न साहेब।

अंतराम-मंय तोर नान्हे नोनी हंसा बर लड़का देखे हवं।

रामनाथ-कहां के आय?

अंतराम-पंचशील नगर दुर्ग के आय।

रामनाथ-हम्मन सात्विक खान पान वाले अवन, आप तो जानतेच हव साहेब।

अंतराम-मंय तहंू ल जानत हवं अउ मोर संगवारी मनराखन ल घलो जानत हवं। ओह तो नसा पानी ले बिक्कट दुरिहा रथे।

रामनाथ-त लड़का का करथे?

अंतराम-लड़का ह अभी कलेक्टर रेट म कलेक्टर आफिस म गार्ड के नौकरी करथे। फेर पढ़त घलो हे।

रामनाथ-काय पढ़त हे?

अंतराम-डी.सी.ए. करत हवय। बाद म कोनो न कोनो जगह सरकारी नौकरी जरूर मिल जही।

रामनाथ-आप काहत हव साहेब त बनेच होही।

अंतराम-फेर आजकाल के लइका मन के मानी नइ पी सकंव। अब लइका मन के पीछू पीछू थोरे जावत रहिबे।

रामनाथ-त सुभाव ह बने हे न?

अंतराम-आप ल मोर उपर भरोसा होही त सगा मन ल मंय ह लाहंू नही ते मना कर दुहंू।

रामनाथ-ले न मंय घर वाले मन संग गोठिया के फोन करके बताहंू।

अंतराम-ठीक हे, त जल्दी बताबे।

रामनाथ-हव साहेब।

अंतराम-ठीक हे।

रामनाथ-साहेब बंदगी!

अंतराम-साहेब बंदगी!

रामनाथ ह अंतराम ल खबर कर दिस। सगा मन ल धर के हंसा ल देखे बर आ जबे कहिके। अंतराम, मनराखन अउ बुधारू ह नवागांव हंसा ल देखे बर गिन। लड़की देखे के बाद मनराखन अउ बुधारू ल जम जथे। रामनाथ ल जरूर लगथे कि लड़का थोकिन कमजोर दिखथे। हंसा ह बने सुन्दर अउ थोकिन देंह पांव वाली रिहिसे। अउ कलेक्ट्रेट म नौकरी करथे कहिके रामनाथ ह हंसा के रिश्ता ल बुधारू संग पक्का कर दिस। रामनाथ ल तो बस अंतराम उपर सोला आना भरोसा रिहिसे। अंतराम घलो सोचय, चलो रिश्ता जोड़ई ह बने पून्न के काम आय कहिके मने मन गुनत रिहिसे। अंतराम अतना जानत रिहिसे कि मनराखन ह बड़ सज्जन आदमी आय। बस दिन-रात मिहनत म लगे रहिथे।

हंसा घलो बिक्कट सपना संजोए रिहिसे। बस इही बात ल गुनत राहय आदत ह कइसे होही। सास-ससुर के स्वभाव कइसे होही। मोर होवइया जोड़ी ह नसा पानी तो नइ करत होही। काबर कि हंसा ह बड़ा धार्मिक, प्रवृत्ति के रिहिसे। बारो महीना एकादसी उपास। सावन म सावन सोमवारी उपास राहय। गे्रजुएट कर डरिस फेर पढ़ई के सिवाय ओकर धियान ह दूसर डाहर नइ गिस। बस पढ़ई मने पढ़ई। काबर कि रामनाथ ह पहिली ले बता दे रिहिसे कि पढ़ही तिही ह आगू बढ़ही। हंसा ह सुग्घर आनी बानी के सपना संजोये मने मन खुश राहय। बिहाव के दिन लकठागे।

मनराखन ह बेटा के पहिली बिहाव करत रिहिसे। जतना जादा हो सकिस, बिहाव ल अपन शक्ति के हिसाब ले धूमधाम ले करिस। हंसा ल बिहा के बुधारू ह लइस। फेर संगति अतेक खराब रिहिसे कि दूल्हा बने रिहिस तभो मुंहु ह भक्क-भक्क करय। बुधारू ल ओकर संगवारी मन पानी के बोतल म मिला के दारू देवय। लोगन ल लगय कि ओकर संगवारी मन ओकर कतेक बढ़िया धियान रखथे। समय समय म बराबर पानी ल पियावत राहय। लोगन मन थोरे जानत रिहिन हवय कि पानी के ओखी म दारू देवत हवय। फेर मनराखन जानत रिहिसे। बुधारू बिहाव म घलो नसा म हे। फेर का करे। मन ल मार के रहि जय। बुधारू ह दरूहा हो गे रिहिसे। बुधारू ह दारू पिये त मनराखन ह आंसू ल पिये। मनराखन ''ह सोंचय का कपूत तो का धन संचय, का कपूत तो का धन संचय।ÓÓ चलो कइसनो करके बिहाव तो निपट गे। फेर हंसा के जिनगी म गरहन लग गे।

हर नारी बर गृहस्थी जीवन के सुरूआत सुहाग रात ह पून्नी के चंदा कस रथे फेर हंसा बर यहू पून्नी ह अमावस्या म बदल गे। बुधारू ह रात म दारू पी के अइस अउ अलग खोली म सूत गे। पूरा रात ह हंसा के जगवारी म गुजर गे। अब तो समझे म जादा समय नइ लगिस। मनराखन अउ बिसाखा ह घलो सोच म परगे। एक दिन के बात होतिस त कोई बात नइ रहितिस फेर एह तो रोज के बात हो गे। उदास चेहरा ह बतावत रिहिसे कि हंसा ल पति सुख नइ मिलत हे। रेंगई म चंचलता हे न चेहरा म मुस्कान। मनराखन अउ बिसाखा सोंचिन हो सकथे ए बुधारू ह हमर राहत ले लजावत होही कहिके हप्ता भर बर गांव चल दिन। गर्मी के छुट्टी चलत रिहिस हवय, संग म संतू ल घलो ले  गे। अब तो बुधारू ह स्वतन्त्र हो गे। घरे म दारू पिये बर धर लिस। मनराखन अउ बिसाखा ह जब गांव ले लहूटिन तभो कोनो रौनक बहू म नइ देखिन। बल्कि पहिली ले अउ जादा उदास रिहिसे। अब तो बुधारू के मारे मनराखन हलाकान हो गे। बहू कहंू मइके चल दिही अउ वापिस नइ आही तभो फधित्ता हे। ए बुधारू ह मनराखन ल आंसू के धार रोवा डरिस। ए सब बिसाखा के ममता के मारे आय। बुधारू ल न कभू गलती बर बरजिस न मनराखन ल बरजन दिस। अब तो मनराखन के तबियत घलो धीरे-धीरे जवाब दे बर धर लिस।

रामनाथ ह अपन तीनो बेटी मन ले सबले जादा मया हंसा ल करय। बीच बीच म हंसा के हाल चाल ल पूछे बर फोन करत राहय फेर अपन पापा ल हंसा कहि देवय-''मंय ससुरार म बिक्कट खुस हवं। मोर चिंता फिकर झन करे कर पापा, तंय अपन सेहत के धियान रखे कर।ÓÓ रामनाथ ल समझ म आवत रिहिसे कि हंसा ह कुछु न कुछु बात ल लुकावत हे। रामनाथ ह केकती ल किहिस-हंसा ल फोन लगा के पूछ तो, का हाल चाल हे? मोला तो भुसभुस लागत हे। अतेक चंचल लइका, हांस हांस के गोठयइया हंसा के गला ह कइसे बइठे-बइठे कस लागत रिहिसे। केकती ह घलो हंसा ल बिक्कट मया करय। कोनो भी महतारी-बाप होवय सबले नान्हे लइका ल थोकिन जादच मया करथे। केकती ह हंसा ल फोन लगइस। फोन ल देख के हंसा के चेहरा ह खिल गे काबर कि जान डरिस, मम्मी के फोन आय कहिके। हंसा ह तुरते फोन ल उठइस अउ किहिस-चरन छू के प्रणाम मम्मी। केकती घलो खुश हो के दुनिया भर के असीस ल हंसा के झोली म भर दिस। ''खुस राह बेटी, खुस राह, तोर चूरी अम्मर रहय। तोर चूरी अम्मर रहय ल सुन के हंसा के आंखी डबडबा गे फेर अपन मम्मी ल एहसास नइ होवन दिस कि इहां सब ठीक ठाक नइ चलत हे कहिके।ÓÓ

हंसा ह सुसरार के बात ल बता के अपन दाई-ददा ल दुखी नइ करना चाहत रिहिसे। दुख के आंसू ल एक हाथ ले लुगरा का अछरा ल धर के पोछत किहिस-सब बने-बने हे मम्मी, सब बढ़िया हे। पापा के धियान रखबे बहुत फिकर करथे। केकती किहिस-हव बेटी, तोर पापा ह तोर बहुत फिकर करथे। केकती कथे-दमांद ल कहिते नही, एकाद दिन दुनो झिन घूमे बर आ जतेव। हंसा कथे-हव दाई मंय पूछ के बताहंू। फेर हंसा के हिम्मत नइ होइस, बुधारू ल पूछे बर। काबर कि ओह तो हंसा डाहर धियान देबे नइ करय। हंसा ह तीन-चार महीना ले घर के बूता काम करके, रांधे गढ़े तहान खा के सूत जय। तीन-चार महीना ल बड़ा मुश्किल म काटे रिहिसे हंसा ह, अब देखते देखत तीजा आ गे। हंसा के ससुर के चंूदी ह अइसने नइ पाके रिहिसे। तीजा के पहिली अपन बहू ल उदास देख के पूछे रिहिसे। कइसे बहू तुंहर घर गृहस्थी ठीक चलत हे? हंसा किहिस-पापा जी, महंू आप ले बात करइया रेहेंव फेर मौका नइ मिल पावत रिहिसे। मनराखन कथे-बता बेटी अपन दुख ल।

हंसा-पापा आप मन अपन पसंद के बिहाव करे हव कि अपन बेटा के हिसाब ले करे हव?

मनराखन-कइसे गोठियाथस बहू, बुधारू ह खुदे पसंद करे रिहिसे तोला। हां फेर ओकर मन ह नइ रिहिसे बिहाव करे के। मिही ह केहे रेहेंव मोर तबियत खराब रथे बेटा, कम से कम तोर चॉउंर टिक के बहू हाथ के पानी पी लेथन कहिके।

हंसा-त पापा जी, ओकर मन नइ रिहिसे तब फेर काबर बिहाव करे हव? ओ तो मोर संग गोठियाय न बतावय न पति बेवहार ल निभावय। अब मंय कइसे करंव? मंय तो धरम संकट म परगे हवं पापा जी। मोला रद्दा बता।

मनराखन-देख बेटी मंय तोर जीवन ल बरबाद होवन नइ देवंव। बिहाव के पहिली कोनो लड़का तोला पसंद रिहिस होही त मंय अपन बेटी कस तोला बिदा करहंू।

सुन के हंसा ह फफक फफक के रोये बर धर लिस। अउ किहिस-बिहाव के पहिली मोला कोनो लड़का पसंद नइ रिहिस। ओ डाहर तो मोर धियान गेबे नइ करिस। दिन-रात मोर धियान ह पढ़ई म लगे राहय। मंय तो मम्मी-पापा के खुसी के धियान रखेंव। उमन जिंहा बिहाव कर दिही उहें अपन घर ल बसाहूं। फेर आपे सलाह देवव पापा जी ए घर म मंय कइसे रहंू? अपन बहू के उपास-धास अउ शंकर भगवान के पूजा पाठ ल देख के समझइस-धीरज रख बेटी, मोला अइसे लागथे, भोला भण्डारी ह तोर परीक्षा लेवत हवय। एक दिन सब ठीक हो जही। बिसाखा ह ओतके बेर बाजार ले अइस तहीान धकर-लकर हंसा ह आंसू ल पोंछ के ओला पिये बर पानी दिस। जब ले बहू ह अपन दुख ल बताय रिहिस तब ले मनराखन ह मने मन गुनय-बुधारू ल कइसे समझाय जाय। कइसे इंकर गृहस्थी ल बसाये जाय।

मनराखन ह एक दिन अपन खोली म बिसाखा ल सबो बात का बतावत बुधारू ल समझाये बर किहिस। फेर पुत्र मोह म बिसाखा ह बुधारू के गलती मानबे नइ करय, बस एके रटन धरे राहय, बहू के गलती होही। बहू ह हमेसा मुंहु ल फूलोये रथे। खुस दिखबे नइ करय। हो सकथे बहू ह बुधारू ल पसंद नइ करत होही? फेर कोनो हालत म बुधारू के गलती माने बर तइयार नइ होइस। अइसने गलती तोपई म बुधारू ह अतेक बिगड़ गे रिहिसे। मनराखन ह बिसाखा ल किहिस-नसा करई ह तो खुदे के तन उपर पाप करई आय। सबले बड़े पंूजी अपन शरीर आय। सरीर हे त दुनिया हे, जउन दिन शरीर खराब हो जही ओ दिन पूरा दुनिया के सुख सुविधा व्यर्थ हवय। बिसाखा ल अतना समझाए के मतलब ए रिहिसे कि महतारी के माध्यम ले बुधारू ह रद्दा म आज जय।

बिसाखा घलो जानत रिहिसे फेर ममता के मारे बुधारू ल बोल नइ सकत रिहिसे। मनराखन के आय के पहिली बुधारू ह घर आ गे रिहिसे। आज बिसाखा ह मौका देख के बुधारू ह किहिस-बर बिहाव हो गे बेटा, अब नाती-नतरा देखे के सउंख हवय। घर म नाती-नतरा आ जतिस ते खिलौना कस खेलातेंव। फेर बुधारू ल महतारी के सपना के कोई मतलब नइ रिहिसे। बुधारू किहिस तोला खिलौना चाही न, त काली दुकान खुलही तहान गिफ्ट हाउस ले गुड्डु लान दुहूं। ओला खेलावत रहिबे। बिसाखा कथे-तहंू बुधारू मोर बात ल समझबे नइ करत हस। बुधारू कथे-एकर ले जादा मोला समझ नइ आवय कहिके अपन कुरिया म चल दिस। मनराखन ह साग-भाजी बेच के घर अइस त पूछिस-कइसे अतेक देरी कर डरे? मनराखन बतइस-हैवी ड्यूटी ह पंचर हो गे रिहिसे तिही पाय के थोकिन देरी हो गे।

बहू ह अपन सास-ससुर अउ बुधारू ल खाय बर पानी दिस तहान सब खाय बर बइठिन। मनराखन ह बुधारू के मुंहु के महक के मारे खाना नइ खा पइस अउ आधा ल छोड़ के बीचे म उठ गे। मुंहु हाथ धो के थके हारे अपन कुरिया म आराम करे बर गिस। हाथ गोड़ ल लमा के आराम करत रिहिसे। चिंता म नींद ह अभी परे नइ रिहिसे। बिसाखा ह आ के अपन जोड़ी ल पूछिस-कइसे आज पेट भर खाना नइ खाय? मनराखन किहिस-काला खाबे टूरा के मुंहु ले भक्क-भक्क दारू ह बस्सावत रिहिसे। बिसाखा ह किहिस-त का टूरा ह रोज दारू पी के आही त का रोज खाय बर छोड़ देबे। एकरे सेती सियान मन काहय लइका मन ल संस्कार अउ शिक्षा देवव। फेर हमर मन ले कते मेर चूक हो गे, समझ नइ आवत हवय। बिसाखा ह खिसिया के किहिस-जब देखबे तब बुधारू के पीछू परे रहिथस। मनराखन किहिस-कइसे पीछू नइ परे रहिबे। अब मनराखन ल गुस्सा आ गे तहान खिसिया के किहिस-जादा बकर-बकर झन कर, मंय तोला बुधारू ल समझाए बर केहे रेहेंव, ओकर का होइस? जब देखबे तब बुधारू के सांखी तीरथस। जादा करहू ते तुम सब झिन ल घर ले खेदार दुहंू। अतका ल सुनिस तहान बिसाखा ह रोए बर धर लिस। रोवत-रोवत बिसाखा ह किहिस-मंंय जिनगी भर तोर सेवा करेंव सब अबिरथ हो गे। मनराखन किहिस-हव सब अबिरथा हो गे। ममता के मारे टूरा ल बिगाड़ डरे। जब मंय बुधारू ल बरजे कस करौं त तंय ह मुही ल खिसिया देवस। ओकर नतीजा ह दिखत हे। बिसाखा ह रोवत-रोवत किहिस-अहा उमर म मंय कहां जाहूं जोड़ी। मनराखन किहिस-ओइसने सबो के बहू-बेटी बर सोचे कर। ए तोर रोए के नाटक ल छोड़ अउ बता बुधारू का किहिस? बिसाखा किहिस-मंय बुधारू ल केहेंव नाती-नतरा खेलाय के सउंख लगथे रे त ओह कहि दिस-काली दुकान ले गुड्डी-गुड्डा ल लान दुहंू तहान उही ल खेलावत रहिबे। ओकरे जतन करत रहिबे। मनराखन ह बिसाखा ल किहिस-अब तोला समझ म आवत हे बुधारू ह न अपन बर सोंचत हे न बहू बर। हमर मन के तो बाते ल छोड़ दे। जउन ह अपन आप ल नइ सम्हाल पावत हे त अपन महतारी-बाप अउ बहू ल कहां ले सम्हालही?

मनराखन के समाज म बहुत प्रतिष्ठा रिहिसे। ओला अपन मान-सम्मान के फिकर रिहिसे। फेर बुधारू ल ए समझ नइ आवत रिहिसे कि ओह मनराखन जइसे नामी बाप के बेटा आय। रूहेल्ला ह एक दिन मनराखन ल फोन करके किहिस-''अब तो मोटाबे मनराखन बहू हाथ के पानी के।ÓÓ मनराखन ह किहिस-ओ तो बने काहत हवस रूहेल्ला फेर ए दरूहा टूरा के चिंता ह मोला मोटावन दिही तब तो, आधा तो चिंता फिकर म तन ह घुना खावत हे। ''चिंता ले चतुराई घटे दुख ले घंटे शरीर पाप ले लछमी घटे कह गये दास कबीरÓÓ। रूहेल्ला कथे-का हो गे बताबे? मनराखन कथे-देख न, बुधारू ह नसा पानी ल छोड़बे नइ करत हे। अब करंव ते करंव का? तिंही बता। रूहेल्ला ह मनराखन ल किहिस-त बुधारू ल समझाते नही ग। तभे तो काहंव ए बुधारू ह कइसे बीमरहा-बीमरहा कस दिखथे कहिके। मंय तो एक दिन दारू भट्ठी डहार जावत घलो देखे रेहेंव, फेर तंय ह खिसियाबे कहिके मंय कुछू नइ केहेंव। फेर अब ओला बइठार के समझाहंू। ओकर एकाद झिन बने सरिख संगवारी नइ हे का? जेन ह बुधारू ल समझा सकय। मनराखन कथे-अरे बने सरिख एको झिन संगवारी रहितिस ल बिगड़तिस काबर? रूहेल्ला ह किहिस-बने काहत हवस जी। हां, मंय समझाये के जरूर कोसिस करहूं, हो सके मोर ले समझ जय।

हंसा के एसो पहिली तीजा रिहिसे। असाढ़ मान के तीजा लेगे बर केकती ह रामनाथ ल जोजियाय बर धरिस। रामनाथ ह हव कहि दिस तहान तो केकती के हिरदे के उछाह ह नदिया के लहरा कस लहराये बर धर लिस। हरदी-पानी चढ़े के बाद बेटी के देखे के तिसना ह बाढ़ गे रिहिसे। केकती ह जल्दी उठ के बरा, सोंहारी, ठेठरी, खुरमी रांध के जोरा कर डरिस। रामनाथ ह रोटी ल झोरा म धर के पंचशील नगर दुर्ग जाय बर निकल गे। बेटी के मया म कइसे अपन समधी घर पहुंचिस ते पतच नइ चलिस। अपन पापा ल देख के हंसा ह धकर-लकर फूलकसिया लोटा म पानी दे के पांव परिस तहान रामनाथ ह झोरा के सगा रोटी ल अपन बेटी ल दिस। हंसा के सास ह घलो अपन समधी के पांव परिस। हंसा ह अपन पापा ल खटिया म बइठे बर किहिस। रामनाथ ह हाथ-गोड़ धो के खटिया म बइठिस। हंसा किहिस-पापा चल खाना खा ले।

रामनाथ-नही बेटी, अभी भूख नइ हे।

हंसा-चाय बना दवं।

रामनाथ-हव ले चाय बना दे।

हंसा ह चाय बनाय के तइयारी करत रथे ओतके बेर ओकर समधी मनराखन ह बाजार ले घर पहुंच जथे। दुनो समधी जोहार भेंट करथे। मनराखन ह हाथ-गोड़ धो के समधी संग बइठथे तहान एक-दूसर के हाल चाल पूछथे। रामनाथ ह हंसा ल बिदा करे के बाद आज देखत हे। रामनाथ ल समझे म समय नइ लगिस कि हंसा के गोंदा कस फूल कर चेहरा ह कइसे मुरझाय-मुरझाय कस दिखत हे। मोला समझ नइ आवत हवय कि हंसा के हांसी कइसे गायब हो गे हे? बल्कि ससुरार आय के बाद तो बेटी ह अऊ चंचल हो जथे। मन के बात ल मने म राखे रिहिस। खाना खाय के बेर हो गे रिहिसे। ठउंका बुधारू ह घर पहुंचिस। आजो दारू पी के आय रिहिसे। आते भार पता झन चलय कहिके बाथरूम म जाके साबून म हाथ-मुंह धोइस ताकि कोनो ल पता झन चलय कहिके। फेर मउंहा ह अपन गुन ल बताय बर नइ छोड़िस। बुधारू ह हाथ-मुंहु धो के अपन ससुर अउ पिता जी के पांव परिस। तभो ले भक्क-भक्क माहकत रिहिसे। बुधारू अपन ससुर ल पूछिस-कतेक बेर आय हव पापा जी?

रामनाथ-डेढ़-दू घंटा पहिली आय हवं। ड्यूटी म जादा काम रिहिसे का, रात म घर आवत हस?

बुधारू-हव आज आफिस म थोकिन जादा काम रिहिसे, तिही पाय के देरी हो गे।

मनराखन ह बात ल सम्हालत किहिस, ड्यूटी ह समय के पाबंध वाले आय तिही पाय के बुधारू ल आय म समय लग जाथे। रामनाथ किहिस-अच्छा कोनो बात नइ हे दमांद, इही तो उमर आय मेहनत करे के। अभी जतना अपन जिनगी ल संवारे बर मिहनत करत हवस एह बढ़िया बात आय। सियान मन के का, बस तुंहर खुशी ल देख के खुस रहिथन। हम्मन ल का, दू जुआर के खाना मिल जाय तहान का करना हे।

हंसा ह खाना खाय बर सब झिन ल पानी दिस। रामनाथ, अउ मनराखन एके संग बइठिन। बुधारू ह सियान मन के सम्मान करत थोकिन दुरिहा चटाई म बइठिस। हंसा ह बुधारू संग गोठियाय के कोसिस करिस फेर बुधारू ह रोज कस एकंगू मुंहु कर के सुत गे। हंसा ह रात भर नइ सुत पइस। रात भर ओह सुरूज नारायण के उए के अगोरा करत रिहिसे। रात भर शंकर भगवान ल बिनती करय, ए का के परीक्षा लेवत हव भगवान। मोर कोन जनम के करनी के फल ल देवत हव प्रभु जी। सुरूज नारायण ल पूछय मोर जिनगी म कब बिहनिया होही देवता? जब ले ससुरार आये हवं सुख के अंजोरी पाख ल जानबेच नइ करंव। मोर बर तो रोज अंधियारी पाख आय देवता।

हंसा ह चिंता म रात भर जागे रिहिसे। आंखी ह उसवाय उसवाय कस दिखत रिहिसे। तन ह सुस्ती-सुस्ती लागत रिहिसे तभो ले घर दुआर के बूता म लग गे। काबर कि जतने जल्दी काम बूता होही तहान ओतके जल्दी मइके जाय बर तइयारी करना रिहिस हे। नास्ता करके लाली वाले सूटकेस म सब सामान ल जोर के अपन सास-ससुर अउ बुधारू के पांव परके अपन पापा के फटफटी म बइठ गे। सब झिन ल हंसा ह टाटा करिस। रद्दा म जावत जावत हंसा ह सोंचत रिहिसे, ए लाल बैग ह अपसकुन तो नो हे। कतनो किसम के उथल-पुथल मन म होवत राहय। फेर गुनय दीदी अउ दाई ह पूछही त का बताहंू। रामनाथ ह हेलमेट पहिरे रिहिसे तिही पाय के हंसा संग जादा नइ गोठियावत रिहिसे। बस ओकर धियान तो सड़क म रिहिसे। काहे कि आजकाल के लइका मन आयं-बायं गाड़ी मोटर चलाथे।

केकती घलो आज संजकेरहे ले उठगे रिहिसे। बस आज तो बेटी के चेहरा ह आंखिच-आंखी म झूलत हे। मोबाइल म कतनो गोठिया ले फेर सउंहत गोठियाये के अलगे आनंद हवय। केकती ह फोन करके पूछिस कतेक बेर पहुंचहू बेटी? त हंसा ह बता दे रिहिसे, मंझनिया कना पहुंचबो। उही हिसाब ले केकती ह खाना बना डरे रिहिसे। देखते देखत रामनाथ ह घर करा फटफटी ल रोकिस। फटफटी के आवाज ल सुन के जान डरिस, इमन पहुंच गे। केकती ह गोड़ धोये बर लोटा म पानी दिस। हंसा ह अपन मम्मी के पांव परिस। बेग ल धर के अपन कुरिया म रख दिस तहान केकती किहिस-चलव खाना खा लव, मंय पोरसत हंव। हंसा किहिस, नही मम्मी आज मंय ह खाना पोरसहंू। केकती किहिस ले बेटी तिंही परोस, हम्मन खाय बर बइठ जथन। हंसा ह अपन मम्मी-पापा ल दुसरइया दे के बाद अपनो ह उंकर मन के तीर म खाय बर बइठ गे। केकती ल बिक्कट आनंद आवत रिहिसे, बेटी के पोरसे भात-साग खावत।

बहू के तीजा जाय के बाद एती घर दुआर ह बिसाखा ल सुन्ना-सुन्ना लागय। संगे संग बूता घलो बाढ़ गे। बहू के राहत ले बिक्कट सुख पाये रिहिसे। बहू ह बिहनिया ले उठ के घर के सबो काम-बूता ल निपटा डरै। बिसाखा ह उठ के रेंगान अउ डेराठी डहार ल बाहर बटोर के छरा छिटका देवय। बिसाखा कभू-कभू बरतन भाड़ा घलो मांजे बर धरे के कोसिस करय फेर हंसा ह अपन सास ल मना कर देवय। बिसाखा घलो बहू के राहत ले भाजी-पाला के पसरा ल लगा के तेल पानी के पुरतीन कमा लेवत रिहिसे। हंसा ह काम बूता ले फूरसद हो के समय-समय म अपन देवर ल घलो पढ़ावय। देवर ल पढ़ावत-लिखावत अपन समय ल काटत रिहिसे फेर कोनो ल अहसास नइ होवन दिस कि बुधारू अउ हंसा के अभी तक गृहस्थ जीवन के सुरूआत नइ होय हवय। हंसा ह पढ़े-लिखे अउ संस्कारिक रिहिसे संझा बिहनिया घर के देवी-देवता मन के पूजा पाठ करके अपन सास-ससुर अउ पति देवता के पांव परय।

ओइसे तो नामे भर पति देवता रिहिसे बुधारू ह। आदत आचरन ले राक्षस रिहिसे। समय मिलय त हंसा ह धार्मिक किताब पढ़य। हंसा के इच्छा रिहिस कि ओह पढ़-लिख के मास्टरीन बनहंू कहिके। फेर वाह रे बुधारू सुन्दर रंग रूप, शिक्षा अउ संस्कारी हंसा ल समझे नइ पइस। हंसा ह अपन मइके म घलो सियानी करत रिहिस हवय तिही पाय के अपन धीरज ल नइ खोइस। काबर कि अपन मइके म बिक्कट उतार-चढ़ाव देखे रिहिसे। दरूहा मन के गृहस्थी ल टूटत सउंहत अपन आंखी ले देखे रिहिसे। तिही पाय के हंसा ह मने मन किरिया खाय रिहिसे कि एक दिन यहू घर ल स्वर्ग ले सुन्दर बनाना हवय। कतनो बहू के डेरौठी म पांव रखते भार घर के उजाड़ होय बर धर लेथे फेर कतनो बहू के घर म आय ले सुख, शांति अउ समृद्धि आ जथे। अभी तो बुधारू ल अपन संगवारी मन संग गांजा भांग अउ दारू पियई ले फूरसद नइ रिहिसे। बुधारू ह नशा कर-कर के अपन सरीर ल खराब करत रिहिसे। संगे संग लफूट हो गे रिहिसे। बुधारू के चाल चलन ले मनराखन ह हलाकान राहय।

मनराखन मने मन गुनय, बेटा-बहू के योग ह अच्छा नइ बनत हे तइसे लागथे। अब करे तो करे का जाय? मनराखन ह ए विषय म समझाए बर बुधारू संग बइठना चाहत रिहिसे। एक दिन बाप बेटा ह गोठियाय बर बइठिन। मनराखन किहिस-कइसे बुधारू तुंहर दुनो झिन के मन ह एक-दूसर ले मिलत हे कि नही। बुधारू किहिस-हां सब ठीक हे। मनराखन पूछिस-त कइसे दुनो झिन के चेहरा म खुसी दिखय नही। बुधारू कथे-सब ठीक हे, तुमन कोनो किसम के चिन्ता फिकर झन करौ। मनराखन किहिस-त मंय निश्चित हो जवं? बुधारू किहिस-हव निश्चिंत हो जा। अब बुधारू ह अऊ उदास दिखे बर धर लिस, अब बिसाखा ह अपन बेटा पूछिस-काबर उदास हवस बेटा? बहू तोला पसंद हे ते नही? त बुधारू ह रोवत-रोवत गाना गा देवय-''कोन जनी काय पापा करे रेहेंव, ठगड़ी कस जिनगी म सुख ल मंय नइ जानेव।ÓÓ बिसाखा के आंखी ले घलो आंसू निकल गे। आंसू पोंछत-पोंछत किहिस, बेटा तिंही ह तो पसंद करे हवस तभे संबंध ल जोड़े हवन। बुधारू किहिस-सुन दाई मंय तुंहर मन ल नइ तोड़ना चाहत रेहेंव। तुमन ''बहू हाथ के पानीÓÓ पीबोन केहेंव त मंय बिहाव कर लेंव। अब तुमन पियव बहू हाथ के पानी ल, तुमन तो खुस हव न। बिसाखा किहिस-बेटा हम्मन ल देख के बहू नइ राहय। पत्नी ह हमेशा पति ल देख के रहिथे। पत्नी बर पति देवता होथे। बुधारू खिसिया के किहिस-मोला देवता ऊ नइ बनना हवय। मोर मन बिहाव करे के नइ रिहिसे तभो ले मंय दाई-ददा मन सुख पाही कहिके बिहाव करे हवं। बिसाखा किहिस-जब अइसन बात रिहिसे त तोला मना कर देना रिहिसे, बिहाव नइ करंव कहिके। बुधारू किहिस-का मना करतेंव, तुंहर तो मुड़ी म मोर बिहाव के भूत चघे रिहिसे। तुमन जानव, तुंहर काम जानय।

अब तो मनराखन ह घलो ओतके बेर आ गे। बिसाखा ल रोवत देख के मनराखन ह पूछिस-का हो गे तेमा रोवत हवस। बिसाखा कथे-देख न बुधारू काहत हवय-तुमन ल बहू हाथ के पानी पियाय बर बिहाव करे हवं। मंय अपन बर बिहाव नइ करे हवं। मनराखन बुधारू ल किहिस-जब बिहाव करे के मन नइ रिहिसे त मना काबर नइ करेस, तेला बता। बुधारू किहिस-मंय काला बतावंव, तुंहर तंग करई के मारे हव कहि देेंव। अउ जेकर संग बिहाव करहू ओकरे संग कर लुहू कहिके मन बना लेंव। लड़की देखे के बाद सब झिन मोटी हे मोटी हे किहिन, फेर तुंहर रूझान ल देख के मना नइ कर पायेंव अउ मने मन अपन खुसी ल पचो के महतारी-बाप के खुसी के धियान रखेंव। बिहाव के समे देखेव न ए रिश्ता ले कोनो खुस नइ रिहिसे। इहां तक ले कका के बेटी मन घलो काहय-का रे बुधारू अपन ले दुहरी देंह वाले संग बिहाव करत हस। मंय तुंहर खुसी के आगू म काकरो नइ सुनेंव अउ बिहाव बर हव कहि देंव। देखेव न बिहाव के समे परिवार के मन कोनो ह साथ दिस हे। हम्मन उंकर कारज म आगू-आगू ले 

भीड़े राहत फेर हमर कारज म बड़े ददा के बेटी दमांद मन कतना साथ दिस? दीदी-भाटो मन तो बिहाव के बात चलत रिहिस हे तब ले खुस नइ रिहिन हे। अब मंय काला-काला देखंव। संगी संगवारी के बात ल सुनव कि कका के बेटा-बहू के बात ल सुनव, कि बेटी-दमांद के बात ल सुनव कि दीदी-भांटो के। सब खिलाफ रिहिन बिहाव के।

बिसाखा ह बुधारू ल समझावत किहिस, ओइसन नोहे बेटा। कतनो मन दूसर के खुसी ल नइ देखना चाहय। परिवारे ह परिवार के खुसी ल नइ देखना चाहय। कतनो मन दूसर के काम ल बिगाड़े बर बइगई-गुनियई घलो करे रिहिथे। सब धीरे धीरे ठीक हो जही। सियान मन कथे-कभू-कभू ग्रह नक्षत्र के प्रभाव घलो रहिथे। बुधारू कथे-फेर मोर जिनगी के तो ग्रह नक्षत्र ह बिगड़ गे, अब तुहीं मन बतावव मंय का करंव। बुधारू तो अपन ददा ल खिसिया के किहिस-''तहूं ददा मोर ले जादा काली घर म अइस तेला जादा मया करथस। मोला तो कोनो मया नइ करव। बस मोर इही गलती हे, मंय पढ़ नइ पायेंव, दारू पीथंव।ÓÓ अब तुहीं मन बतावव एमा मोर का गलती हे? तुमन तो ननपन ले मोर पढ़ई-लिखई उपर धियान नइ दे हव। ददा ह दिन-रात धंधा पानी म लगे रहाय। अउ तहंू दाई कभू मोला पढ़े-लिखे बर नइ बरजेस। मोर संगति घलो बिगड़त गिस तभो ले तंय कभू नइ टोके, बेटा तंय गलत रद्दा म जावत हवस कहिके। अब तो मोर जिनगी सत्यानाश हो गे, तब काहत हव। अब मंय का करंव तुहीं मन     बतावव। सुन ददा! मोला तुंहर मन के प्रतिष्ठा के धियान रखना हवय। अब अपन बहू ल तुमन टेकल करौ या फेर मोला टेकल करन दव। अब तो मंय जिनगी ले हार गे हवं। अब जिये के मन नइ हे। बुधारू ह सुसक-सुसक के रोये बर धर लिस। बिसाखा समझाथे-झन रो बेटा, झन रो, समय के संग सब ठीक हो जही। हमर मन बर तो तोर खुसी ह हमर खुसी आय। रोवत-रोवत बुधारू ह बाहिर निकल गे। बिसाखा ह रोकत रहिगे फेर नइ रूकिस।

बुधारू के जाये के बाद मनराखन अउ बिसाखा ह फफक-फफक के रोए बर धर लिन। एक-दूसर के आंसू ल पोछिक के पोछा होइन। सुसकत-सुसकत दुनो झिन चुप होइन। बिसाखा ह घबरा के मनराखन ल किहिस-आरो लगा तो, कुछु कर तो नइ लिही। मनराखन ह फोन लगावय त बुधारू के फोन ल स्वीच आफ बतावय। बिसाखा ह मनराखन ल किहिस-मोला तो अइसे लागथे लगिन पूजा बारात के दिन कोनो जादू मंतर कर देहे तइसे लागथे। लगिन धराये के बाद ही बुधारू के टेंशन बाढ़े हे। मनराखन घलो कथे-महंू ल ओइसने लागथे। फेर करे का जाय? समय के संग सब ठीक हो जही। मनराखन ह किहिस-दुर्ग म एक झिन शुक्ला महराज हे, जउन ह अच्छा बिचारथे। एकाद दिन ओकरे करा जाबोन। बिसाखा कथे-मंय काहत रेहेंव पहिली बइगा करा जातेन। हो सकथे कोनो ह जड़कुकड़ी म हमर बेटा-बहू मन ल टोरे बर कुछु करम करे होही। आज के समे म काकर भरोसा करबे, जेला अपनेच जानबे उही ह कब का कर दिही तेकर ठीकाना नइ हे। वइसे भी परिवारे के मन हम्मन ल सुखी नइ देखना चाहत हवय। मंय तो जब ले सुसरार आये हवं तब ले देखत हंव, हम्मन ल कोनो भाबे नइ करिन। अब काकर-काकर नाव ल फोर के बताबे। मनराखन कथे-बने काहत हवस बिसाखा। आज के समय म कोनो अपन नइ होवय।

मनराखन बिसाखा ल कथे, चल पहिली तोरे हिसाब ले बोरसी वाले बइगा कर चल देथन। अब जुग जोड़ी बुधारू के घर-गृहस्थी ल बसाय बर कोशिश करत रिहिन कइसनो करके बहू-बेटा के मन ह मिल जय कहिके। रात-दिन भगवान ले बिनती करय कि हे भगवान, ए बुधारू ह दारू ल छोड़ दे अउ अपन परिवार उपर धियान देवय। बिसाखा कथे-मोला तो अइसे लागथे कि हम्मन बिहाव के समय बहुत पहिली ले लगन ल धरा दे रेहेन। लगिन धराय के बाद वर-वधू ल घुमना नइ चाही। फेर बुधारू ह अपन बिहाव के जोरा ल अकेल्ला घूम-घूम के करे हे। हो सकथे उही दरी बाहरी हवा लगे होही। मनराखन कथे मोला तो अइसे लागथे, बुधारू के संगवारी मन एला बिगाड़े बर दारू म मिला के कुछु कांही पिया दे होही।

किसम-किसम के बात ह समुंदर के लहरा कस मन म उठत रहय। दुनो जुग जोड़ी घलो बुधारू के तन, मन अउ व्यवहार ल देख-देख के फिकर म दुबराये बर धर लिन। अब तो शरीर म कमजोरी घलो आय बर धर लिस। अब तो संतु के पढ़ई डहार घलो इमन धियान नइ दे पावत हवय। बिसाखा ह काहय-हे भगवान, ए का परीक्षा लेवत हवस? कोन जनम के करम के सजा ल देवत हस? बड़े बेटा के घर बसाय के चक्कर म संतु ह घलो बेहड़वा झन हो जाय? फेर भगवान के लीला ल कोन जानथे। बिधाता तो जनम के बखत जनम पत्री लिख दे रहिथे।

बिहान दिन मनराखन अउ बिसाखा बोरसी वाले बइगा करा गिन। इतवार के दिन बइगा ह आसन म बइठे। तिही पाय के बिक्कट भीड़ रिहिसे। दूरिहा-दूरिहा ले दुखी मनखे मन अपन समस्यिा के निवारन खातिर बइगा करा आवय। घन्टा भर बाद मनराखन अउ बिसाखा के नम्बर अइस। बइगा करा अपन समस्यिा ल मनराखन ह बतइस। सुन के बइगा ह आश्वासन दिस। ए समस्यिा ह ठीक हो जही। खरचा जादा हवय मनराखन पूछिस-कतेक खरचा आ जही बइगा महराज? बइगा किहिस-पांच हजार रूपिया के खरचा हे। अउ मंय बतावत हवं ते सामान मन ल बिसा के लाने बर परही। पांच हजार ल सुन के मनराखन किहिस-एकमुस्त तो रूपिया के बेवस्था नइ हो पाही बइगा महराज। किस्त म दुहंू त चल जही का? तहान बइगा किहिस-तुंहरो समस्यिा ह किस्त म हल होही। एह तुंहर उपर हे। अपन समस्यिा के निदान एकमुस्त म करवाहू कि किस्त म करवाहू। मनराखन अउ बिसाखा घर पहुंचिन। मनराखन ल चिन्ता म देख के बिसाखा ह किहिस-तंय ह काबर फिकर करथस मोर राहत ले। मनराखन कथे-कइसे चिन्ता नइ करहूं। पांच हजार रूपिया कहां ले जुगाड़ करहंू?

बिसाखा-हो जही जुगाड़।

मनराखन-कइसे?

बिसाखा-मोर जेवर ल गिरवी रख देबोन तहान बइगा के पुरतीन हो जही।

मनराखन-तंय कइसे गोठियाथस बिसाखा। मंय तोला गहना पहिराये हवं, ओला कइसे गिरवी रखंव?

बिसाखा-कइसे गिरवी रखंव का? गिरवी रख के रूपिया के जुगाड़ करके एके घांव म समस्यिा के निदान कर लेथन। अउ फेर गहना गुरिया ह वक्त म काम नइ आही त कब आही? तिही पाय के सियान मन काहय, घर म गाहना गुरिया रथे ओह विषम परिस्थिति म काम आथे।

मनराखन-तोरो बिक्कट बड़ करेजा हवय बिसाखा।

बिसाखा-मोर गहना के गिरवी धरे ले, मोर करेजा के टुकड़ा के जिनगी ह संवर जही त एकर ले बड़े बात अऊ का हो सकथे।

मनराखन-तिंही तो मोर हिम्मत अस बिसाखा, तभे तो सियान मन कथे-पति-पत्नी गृहस्थी के दू ठन चक्का आय। दुनो चक्का के सहयोग ले गृहस्थी के गाड़ी ह सुग्घर दउड़थे। कहूं एको चक्का ह ऊंच-नीच होइस तहान गृहस्थी के गाड़ी ह घलो ऊंच-नीच हो जाथे। मोर बड़ भाग अ बिसाखा कि तोर असन मोला गोसइन मिलिस।

बिसाखा-महंू बड़ भागमानी अवं बुधारू के ददा, मोला तोर असन जोड़ी मिलिस।

मनराखन-जादा बड़ई झन कर बिसाखा। मंय तोला का सुख दे पाये हवं, दुख के अलावा। अब लइका के सुख के खातिर बइगा करा जाबोन। उही दिन साहूकार करा जा के, तोर गहना ल गिरवी रखके पइसा धर के बइगा करा जाबोन। सामान ल एक दिन पहिली बिसा लेबोन।

बिसाखा-बने काहत हस। ओइसने करबोन। इतवार के मनराखन अउ बिसाखा ह अपन सबो गहना गुरिया ल धर के दुर्ग म सेठ करा गिन। गहना ल गिरवी रख के पांच हजार रूपिया ल धर के बोरसी गांव वाले बइगा करा गिन। बइगा के भारी सोर उड़े रिहिसे। भीड़ तो हर इतवार के रथे। यहू इतवार के भारी भीड़ रिहिसे। तीन घंटा बाद इंकर नम्बर अइस। बइगा करा गिन त बइगा किहिस हो गे बेवस्था-

मनराखन-हव हो गे बइगा महराज।

बइगा-पूरा रूपिया के हो गे?

मनराखन-हव बइगा महराज।

बइगा-सबले पहिली पांच हजार रूपिया ल दव।

मनराखन ह पांच हजार रूपिया ल बइगा ल दिस। बइगा ह सबले पहिली रूपिया ल गिन के अपन देवता के आगू म चढ़इस तहान पूजा पाठ शुरू करिस। मनराखन अउ बिसाखा ल सबले पहिली भभूत दे के उमन ल खाय बर किहिस। दुनो झिन भभूत ल खइन तहान बइगई विधि विधान ले पूजा करके ताबिज बना के दिस। ए ताबिज ल बुधारू ल पहिरा दुहू। एकर बाद एक-दूसर के प्रति मया बाढ़ही। मनराखन कथे-त बहू ह अभी तो मइके गे हवय अऊ बुधारू ह ए ताबिज वाबिज ल पहिरे नही। अब कइसे करबो। बइगा कथे-एक काम करहू, ए भभूत ल भात म डार के बुधारू ल खवा दुहू। मनराखन किहिस, सुनत हवस न बिसाखा। बिसाखा कथे हव ओइसने करिंगे। मनराखन ह बइगा ल पूछिस-ए भभूत के परिणाम ह कब तक आ जही महराज। बइगा किहिस-बस भभूत खाही तहान अपन प्रभाव देखाय के सुरू कर दिही। बुधारू ह खुदे बहू ल फोन लगाना शुरू कर दिही।

पूजा पाठ निपटे के बाद मनराखन अउ बिसाखा घर लहूटिन। रात कन बिसाखा ह भात म भभूत ल मिला के बुधारू ल दिस। भात ल खाय के बाद उल्टा बुधारू के तबियत खराब हो गे। काहे कि भभूत ह राख के रिहिसे। बिहनिया डॉक्टर करा लेगे बर परगे। ले दे के बुधारू ह बने होइस। अब धीरे-धीरे मनराखन अउ बिसाखा समय के इंतजार करे लगिन। अब तो बुधारू के मन ह बहू डाहर लगही कहिके।

एक हप्ता के बाद मनराखन ह बिसाखा ल किहिस-बुधारू ल पूछबे तो बहू के हाल चाल पूछे हस का? बिसाखा ह समय देख के बुधारू ल पूछिस-कइसे बहू ल फोन करे रेहसे का? बुधारू-मंय काबर फोन करहंू। जब ओला चिंता नइ हे, त मंय ओकर चिंता काबर करहूं? बेटा, जब बहू ह फोन नइ करे हे त तिंही ह फोन कर लेते। घर के लछमी आय। जउन घर में लछमी के इज्जत रहिथे ओ घर म सुख, सांति अउ समृद्धि होथे बेटा। बुधारू कथे-जब अतेक तोला अपन लछमी के फिकर रिहिसे त भेजेस काबर? बिसाखा कथे-ए तो समाज के नियम आय बेटा, पहिली तीजा म जल्दी मइके भेजे बर परथे। बुधारू तो लगी-लाग म रिहिसे-''जब लछमी ल भेज डरे हवस त ओकर फिकर काबर करत हवस?ÓÓ मोला तो बढ़िया निश्चिंत जीयन दे। बिसाखा पूछथे-त का बहू रथे त निश्चिंत नइ राहस? बुधारू आंसू पोछत गाना गा देथे-''कोन जनी काय पापा करे रेहेंव, ठगड़ी कस जिनगी म सुख ल मंय नइ जानेंव।ÓÓ कहिके फफक-फफक के रोय बर धर लेथे। बिसाखा चुप करावत कथे-बेटा, जब तोला बिहाव नइ करना रिहिसे त पहिली ले बता देना रिहिसे। हम्मन तो बिहाव ल तोर चेहरा म फूल कस हांसी देखे बर करे रेहे हवन, आंखी म आंसू देखे बर थोरे करे हवन। तंय नही कहिते त का धर पकड़ के तोर बिहाव थोरे करे रहितेन। अब महतारी-बेटा दुनो झिन रोए बर धरिन। बिसाखा घलो बुधारू के दुख ल देखके-''कोन जनी हमर मन संग का गलती हो गे, कहिके उदास राहय।ÓÓ

मनराखन ह बाजार ले धन्धा पानी करके लहूटिस। रात कुन खाना खा के दुनो झिन, सुख-दुख गोठियावत रिहिन।

मनराखन-कइसे बिसाखा, बुधारू उपर बइगा के कुछु असर दिखत हवय?

बिसाखा-काला बताबे?

मनराखन-बता न बिसाखा।

बिसाखा-बइगा के भभूत के थोरको असर नइ दिखत हवय।

मनराखन-मोला तो अइसे लागथे, बइगा ह हम्मन ल बेवफूक बना दे हे। हमर रूपिया ह तो बेकार हो गे हे तइसे लागथे।

बिसाखा-हम्मन तो बरबाद हो गेन तइसे लागथे।

मनराखन-कइसे कहिथस बिसाखा, तंय मोला ताकत देवइया अस अउ आज तिंही कमजोर होवत हस। जब तक सांस हे तब तक आस हे।

बिसाखा-अभी आसा बांचे हे?

मनराखन-हव।

बिसाखा-ओ कइसे?

मनराखन-मंय दुर्ग वाले शुक्ला महराज ल बताये रेहेंव न।

बिसाखा-हव।

मनराखन-वहू बिक्कट बढ़िया बिचारथे अउ बड़े बड़े समस्यिा के निदान करथे।

बिसाखा-अब तो मोला ए बइगा गुनिया मन ले भरोसा उठ गे हवय।

मनराखन-मोरो मन ह उठ गे हवय फेर बुधारू खातिर मंय तोर बात ल मानेव अउ एक घांव मोर बात ल मान के देख तहान सब ल भगवान उपर छोड़ देबोन।

बिसाखा-महराज ह उपाय बर पइसा कउड़ी मांगही तेला कहां ले लाबोन?

मनराखन-भगवान ओकरो बेवस्था करही।

बिसाखा-कइसे?

मनराखन-देखबो कोनो करा ले ब्याज म ले के रूपिया के बेवस्था करबो। लइका बर तो करेच बर परही।

बिसाखा-मोर मन तो नइ हे बुधारू के ददा, फेर आपके बात ल राखे बर चल दुहंू।

इतवार के दिन मनराखन अउ बिसाखा ह ब्याज म रूपिया उधार ले के शुक्ला महराज करा गिन। अपन समस्यिा ल बतइन। शुक्ला महराज किहिस कि अभी इंकर मया के योग नइ बनत हवय। इंकर दुनो के बीच ग्रह मन टकरावत हवय। अच्छा करेव समय म पहुंच गेव नही ते दुनो के जोड़ी टूटना तय रिहिसे। सुन के मनराखन अउ बिसाखा डर्राय बर धर लीन। दुनो के तन ले पछीना छूटे बर धर लिस। महराज कथे चिन्ता झन करव, मंय सब ठीक कर दुहंू। इंकर मन बर मुंदरी बनाय बर परही तहान बुधारू अउ बहू के मन ह मिले बर धर लिही। मनराखन कथे-फेर बुधारू ह तो ए सब मुंदरी-उंदरी ल पसंद नइ करय।

महराज-अइसे करव, मंय एक ठन उपाय आप ल बतावत हवं। ए नरियर ल भण्डार मुंहु कर के गुलाल लगा के नदिया म ठंडा कर दुहू तहान बुधारू ह मुंदरी ल जरूर पहिरही।

मनराखन-त एकर बर कतेक खरचा आ जाही?

महराज-उही करीब दस हजार के खरचा आही। काहे कि मुंगा मोती माहंगी आथे न।

मनराखन-ठीक हे महराज, मुंदरी कब तक बन जही?

महराज-आठ दिन म बन जही।

मनराखन-त बनवा के रख दुहू महराज। मंय इतवार के आके लेग जहंू।

महराज-त आधा रूपिया ल जमा करबे त तो आर्डर दुहंूं।

मनराखन-ठीक हे, इतवार के आ जहंू। ए नरियर ल आजे सुरूज डूबे के बाद शिवनाथ नदिया म ठंडा कर दुहू।

बिसाखा अउ मनराखन हव कहिके नरियर ल धर के सीधा शिवनाथ नदिया गिन अउ शंकर भगवान के सुमिरन करके, बेटा-बहू के घर गृहस्थी ह चलय कहिके बिनती करत नरियर ल ठंडा करिन। ओकर बाद घर लहूटिन।

अब तक ले बुधारू के हरकत म थोरको कमी नही आय रिहिसे फेर अब तो बस शुक्ला महराज ले भरोसा रिहिसे। दुनो परानी फेर रूपिया जुगाड़ करके इतवार के शुक्ला महराज करा मुंदरी लाय बर गिन। पांच हजार रूपिया ल मनराखन ह खीसा ले निकाल के दिस तहान महराज ह मीठ-मीठ गोठिया के रूपिया ल झोंकिस तहान मुंदरी ल दिस। घर आ के बिसाखा ह मुंदरी ल दूध म डूबो के पूजा पाठ करके बुधारू ल पहिरे बर दिस। बुधारू ल बिसाखा किहिस-बेटा ए मुंदरी ल पहिर ले। तोर बर बनवा के लाये हवन। बुधारू अपन महतारी ल किहिस-देख दाई मोला मुंदरी-उंदरी पहिरे के सउंख नइ हे। अउ मंय सब जानत हवं, ए सब तुमन काबर करत हव। जब मोर मन ह तुंहर बहू बर लगबे नइ करय त ए मुंदरी-उंदरी ले कुछु नइ होवय। तभो ले तुमन ल खुस करे बर मंय ए मुंदरी ल पहिर लेथंव। बिसाखा खुस हो गे चलो कम से कम मुंदरी ल पहिरे बर बुधारू ह राजी हो गे। अब इंकर दाम्पत्य जीवन ह बढ़िया गुजरही।

सबो बात ल बिसाखा ह मनराखन ल बता दिस कि बुधारू ह मुंदरी ल पहिर लिस। ईश्वर के कृपा ले बेटा-बहू के मन ह मिल जही। मनराखन घलो खुस हो गे। चलो शुक्ला महराज के बताये के मुताबिक नरियर ठण्डा करे के बाद बुधारू के दिमाक घलो ठण्डा हो जही। मनराखन नइ जानत रिहिसे कि इंकर किस्मत ह बूड़त हवय कहिके।

अब आठ-पंदरा दिन गुजरे के बाद, मनराखन ह बिसाखा ल पूछथे-कस वो! बुधारू ल पूछते नही, बहू ल फोन करे हे कि नही? बिसाखा कथे-ले आज मंय पूछ हंू। बुधारू घर अइस तहान खाना ऊ खा के पूछिस-कस बेटा बहू ल फोन करे रेहे। बुधारू कथे-जब वोला फिकर नइ हे त मोला का करना हे। बिसाखा कथे-तभो ले बेटा, हमर धन आय। एकाद घांव फोन करके हाल चाल ल नइ पूछ लेते ग।

बुधारू-देख दाई, मोला जादा तंगा झन नही ते मंय।

बिसाखा-नही ते का?

बुधारू-घर ले भाग जहंू।

बिसाखा-ए तंय का गोठियाथस बुधारू। हम्मन तोला देख के जीयत हवन अउ तंय।

बुधारू-(रोवत रोवत गाना गाथे) ''कोन जनी काय पाप करे रेहेंव, ठगड़ी कस जिनगी म कुछु सुख नइ जानेंव।ÓÓ

ओतके बेर मनराखन आथे तहान बुधारू ह अपन खोली म चल देथे। बिसाखा ह मनराखन ल खाना ऊ खवा के अपन खोली म सुख-दुख गोठियाय बर धरिन। बिसाखा के चेहरा ह ओथरे राहय। बिसाखा के ओथरे चेहरा ल देख के मनराखन ह पूछथे-कइसे बिसाखा उदास काबर दिखत हवस? बुधारू संग गोठियाय हवस का?

बिसाखा-हव।

मनराखन-का किहिसे, बहू ल फोन करे रिहिसे का?

बिसाखा-काला फोन करही, ओ तो अउ उदण्ड हो गे हे। बस एके ठन गाना ल गावत रथे-''कोन जनी काय पाप करे रेहेंव...।ÓÓ

मनराखन-हम्मन काय पाप करे हवन बिसाखा तेमा ए दिन देखे के मौका मिलत हवय।

बिसाखा-पहिली जनम म भले कुछु पाप होय रिहिस होही बुधारू के ददा फेर ए जमन म तो कुछु पाप नइ करे हवन।

मनराखन-जब ए जनम म पाप नइ करे हवन त एक ठन पुन के काम कर डर।

बिसाखा-का पुन के काम आय। अब मोला बइगा गुनिया के ताबिज अउ पंडित करके मुंगा मोती के मुंदरी बर कभू झन कहिबे। इंकर मन ले मोर भरोसा उठ गे हवय।

मनराखन-तोला बइगा के ताबिज अउ महाराज के मुंगा मोती बर नइ काहत हवं। बल्कि अपन घर के मुंगा-मोती बर काहत हवं।

बिसाखा-कइसन मुंगा मोती?

मनराखन-अपन बहू कस मुंगा मोती बर काहत हवं।

बिसाखा-त का करंव?

मनराखन-बहू करा तिहीं फोन लगा के देख तो।

बिसाखा-मंय नइ लगावंव, तिहीं बहू करा फोन लगा के देख।

मनराखन-ले समय देख के मिहीं ह काली फोन लगाहंू।

बिहान दिन मनराखन ह अपन बहू हंसा ल फोन लगइस। अपन ससुर के फोन नम्बर ल देख के तुरते उठइस।

हंसा-चरन छू के प्रणाम पापा जी।

मनराखन-खुसी राह बेटी, खुसी राह, कइसे हवस?

हंसा-खुश हवं पापा जी। मम्मी कइसे हे?

मनराखन-वहू बढ़िया हे।

हंसा-अऊ ओह?

मनराखन-बुधारू ल तंय फोन करके ओकर हाल चाल ल पूछ ले।

हंसा-मंय तो फोन लगा लगा के थक गे हवं पापा जी, फेर ओह तो फोन ल उठाबे नइ करय।

मनराखन-त ए बात ल मोला पहिली ले काबर नइ बताय।

हंसा-मोर हिम्मत नइ होइस पापा, लागथे ओ ह मोर ले नाराज हवय।

मनराखन-त तोर सास ल बता नइ देते। बुधारू ह फोन नइ उठावय कहिके।

हंसा-काला-काला बताबे पापा (सुसके बर धर लेथे।)

मनराखन-बता बेटी, मोला अपन बाप समझ के बता। मंय तोर जीवन ल खराब नइ होवन दवं।

हंसा-मंय आप ल कइसे बतावंव। तीन महीना हम्मन जुग जोड़ी अपन कुरिया म रेहेन फेर सिरिफ देखाये के रिहिसे। पति-पत्नी के रिसता ह तो अब तक ले एक-दूसर म बंधाये नइ हे अब आपे मन बतावव, मंय आप ल अउ सास ल बतातेंव त आप मन दुखी होतेव अउ अपन मम्मी-पापा ल बतातेंव त उमन दुखी होतिस।

मनराखन-काबर दुखी होतेन बेटी। जब तक तुमन अपन तकलीफ नइ बताहू त महतारी-बाप मन तुंहर समस्यिा ल हल कइसे करही, तिहीं बता।

हंसा-तिंही बता पापा मंय तो धरम संकट म हवं। मंय तो तीन महीना ले इही गुनत रहि गेंव कि आखिर मोला काबर लाय हे। का नौकरानी बना के लाने हे। नौकरानी तो उहें पंचशील नगर म मिल जतिस फेर मोला बिहा के काबर लेगे हवय? जब ओला मंय पसंद नइ रेहेंव त मोर संग बिहाव काबर करिस होही?

मनराखन-बोल बेटी बोल, मंय तोर बाप बरोबर अंव। पहिली मोला बताय रेहे फेर ओतेक सिरियस नइ ले रेहेंव।

हंसा-बस पापा कतेक ल बतावंव, रोवत-रोवत आंसू ह सुखा गे हवय। (रोये बर धर लेथे।)

मनराखन-चुप बेटी चुप। भगवान अभी तोर परीक्षा लेवत हवय। आज अंधियार हे त काली अंजोरी जरूर आही। तोर नेम ब्रत पूजा पाठ ले भगवान जरूर खुस होही। समय के संग सब ठीक हो जही, सब ठीक हो जही।

मनराखन-तंय जउन बात ल मुंहु ले बोलत हस ओला हमर पाके चंूदी ह समझ गे रिहिसे। तभे तो फोन करे हवं। ले तीजा मना के आबे तहान सब ठीक हो जही।

हंसा-जी, पापा जी (कहिके रोए बर धर लिस।)

मनराखन-चुप राह बेटी, चुप राह। अपन धीरज ल झन खो। मंय फोन रखत हवं। अभी तंय ए सब बात ल अपन मइके म झन बताये रहिबे।

हंसा-जी, पापा जी।

मनराखन-मंय फोन रखत हवं।

हंसा-जी पापा जी, अपन तबियत के खियाल रखबे। चरन छू के प्रणाम!

मनराखन-खुस राह बेटी, खुश राह। (कहिके फोन ल बंद करथे।)

तीजा के दिन लकठागे। अब केकती ह रामनाथ ल किहिस-तीजा लकठावत हे, सरला अउ दुलारी ल फोन करते। कब आवन तीजा ले बर कहिके। केकती के आगू म फोन ल निकाल के रामनाथ ह दुलारी ल फोन लगइस-कब आवं बेटी तीजा लेगे बर कहिके। दुलारी कथे-कभू भी आ जा पापा। रामनाथ कथे-सरला दीदी ल पूछ ले, उही ह नौकरी वाले आय। एकर बाद सरला ल फोन लगाथे। सरला अपन पापा ल कथे-मोला तो जादा दिन के छुट्टी नइ मिलय, मंय करू भात के दिन आहंू। दुलारी ल पहिली लेग जा। रामनाथ ह कथे-मंय सोंचत रेहेंव कि एके संघरा दुनो झिन ल लान लेतेंव कहिके। सरला कथे-अइसे कोनो बात नइ हे, पापा! दुलारी ह पहिली जाही ते ओला पहिली लेग जा। मंय करू भात के दिन बस म आ जहंू। रामनाथ कथे-ठीक हे बेटी, दुलारी ल पूछ लेथंव, ओह काय कथे। रामनाथ ह अपन मंझली बेटी दुलारी ल फोन लगाथे। मंय तोला तीजा लेगे बर आठे मान के आहूं। पहिली सरला घर जाहूं तहान तुंहर घर आहंू। दुलारी कथे-त दीदी घलो संग म जाही का? रामनाथ-नही बेटी, ओह करू भात के दिन बस म आहंू कथे। तोला मंय आठे मान के लेगे बर आहूं। दुलारी कथे-ठीक के पापा, आप ल जइसन सुविधा होवय।

दुलारी ल रामनाथ ह तीजा लेवा के लेग जथे। हंसा ह दुलारी ल देख के बिक्कट खुस हो जथे। सरला ह करू भात के दिन संझा कन मइके पहुंचथे। सरला दीदी ल देख के हंसा अउ दुलारी दुनो झिन खुस हो जथे। केकती आज तीनों बेटी ल देख के बिक्कट खुस राहय। आज तो सब झिन कुलकत रिहिन। रामनाथ घलो आज तीनों बेटी ल देख के मने मन खुस राहय। करेला अउ तीजा के रोटी पीठा, पूजा पाठ बर तइयारी म भिड़े रिहिन हवय।

कतनो जोरा करबे तभो ले कुछु न कुछु कमती रहि जथे। रात कन केकती ह तीनों बेटी संग अपन कका ससुर घर करू भात खाय बर गिन। ओकर बाद अपन कका ससुर के बेटी मन ल घलो करू भात खवाय बर काकी सास संग लइस। तीजा के आनंद तो बेटी मन बर अइलगेच रथे। केकती के भइया घलो तीजा लेवाय बर आय रिहिसे। फेर केकती अपन भइया ल किहिस-तंय तो जानतेच हवस भइया, जब ले बेटी मन ला तीजा लाथंव तब ले कहा जाथंव। केकती के भाई ह तीजा के लुगरा बर रूपिया छोड़ के गे रिहिसे। केकती उही पइसा के अपन बर लुगरा बिसाय रिहिसे। एती रामलाल ल घलो अपन बेटी मन के संगे संग केकती बर घलो तिजाही लुगरा बिसाय रिहिसे। फेर फरहार के दिन केकती ह अपन भइया के दे पइसा ले बिसाय लुगरा ल ही पहिरे पर पहिली ले मन बनाय रिहिसे। करू भात खाय के बाद तीजा के दिन रोटी पीठा बनावत-बनावत अपन अपन ससुरार के बात ल गोठियाय बर धरिन। सब झिन कुछु न कुछु बात एक-दूसर ल बतावत अउ सुनत रिहिन हे। एक-दूसर संग सुख-दुख ल बांटत रिहिन हे।

गोठ बात के सुरूआत ल सरला ह सुरू करिस सरला कथे-कइसे हंसा बहिनी का चाल हे, तोर ससुरार के? मंय जब ले आय हवं तब ले देखत हवं तोर चेहरा ह उदास दिखत हे। कइसे तंय अपन ससुरार म खुस हवस ते नही? दमांद के बात बेवहार ह बने हे ते नही? हंसा कथे-सब बने-बने हे दीदी। दुलारी कथे-दीदी बने काहत हे हंसा तंय अपन ससुरार म खुस नइ हस तइसे लागथे। हंसा कथे-खुस हवं दीदी। ले ना आज तिहार ल बढ़िया मना लेथन तहान काली फरहारी के बाद घर परिवार के बात ल गोठियाबोन। ओतके बेर केकती आ गे। अपन मम्मी ल आवत देख के चुप रहिगे। केकती ह अपन बेटी मन ल किहिस-का खुसुर-फुसर चलत रिहिसे। काबर बंद कर देव। सरला कथे-कुछु नही मम्मी, हम्मन अपन-अपन घर दुआर के बात ल गोठियावत रेहेन।

हंसा ह अपन मामी करा फोन म सब सुख-दुख गोठियावत राहय। तेकरे सेती हंसा के बात ह मालूम रिहिसे फेर हंसा ह अपन मामी ल किरिया खवा दे रिहिसे कि ए बात ल घर म कोनो ल झन बताबे कहिके। मइके वाले मन जानत रिहिन हे कि एह भले कोनो ल नइ बताही फेर मामी ल जरूर बताय होही। सरला ह समय देख के रतिहा अपन मामी करा फोन लगइस। हंसा ह तोला कुछु बताय हवय का मामी? मंय ह जब ले देखत हवं, हांसत कुलकत हंसा के चेहरा ह अइलाये कस दिखत हवय। मामी ह बात ल सम्हालत किहिस-अइसे कोनो बात नइ हे, हंसा के एसो पहिली तीजा आय तिही पाय के उपास धास के सेती चेहरा-मुहरा ह अइलाये कस दिखत होही। एसो मामी ह घलो तीजा नइ गे रिहिसे काबर कि वहू ह अपन बेटी मन ल तीजा लाय रिहिसे। मामी ह सरला ल किहिस-फरहार के बाद दू-चार दिन बर हमरो घर हंसा ल छोड़े बर कहिबे तोर पापा ल भांची। सरला ल किहिस हव मामी मंय पापा ल तुंहर घर हंसा ल छोड़े बर कहि दुहंू।

हंसा बहुत समझदार लड़की रिहिसे। ओह उपास के दिन सोंचथे कि तीजा उपास पति के दीर्घायु बर रहिथे कहिके त महंू ह शंकर भगवान ले बिनती करहंू कि मोर पति ल दीर्घायु दे अउ ओह नसा पानी ल तियाग के अपन जिम्मेदारी ल सम्हालय। चतुर्थी के दिन भगवान के पूजा पाठ करत हंसा ह शंकर भगवान ले इही वरदान मांगिस अउ किरिया खइस कि कइसनो करके अपन घर गृहस्थी ल सम्हालहंू कहिके।

फरहार के बाद रामनाथ ह सरला अउ दुलारी ल पहिली उंकर ससुरार छोड़िस तहान हंसा ल अपन सारा घर छोड़िस। कानो कान उमन ल चेता के छोड़िस कि हंसा ल जादा दिन झन राखहू, हंसा ल जल्दी ओकर ससुरार पहुंचा दुहंू। रामनाथ ह हंसा ल छोड़ के अपन गांव लहूट गे। हंसा अउ ओकर मामी रात म सुते के बखत सुख-दुख गोठियाना सुरू करिन। सबले पहिली फूफू ह पूछिस-मन ह तोर ससुरार म माढ़त हवय ते नही? अतना ल सुनिस तहान हंसा ह गोहार पार के रो डरिस। हंसा के रोवई ल देख के ओकर फूफू ह फफक-फफक के रोवत-रोवत चुप करइस। हंसा के मामी किहिस-तोर सबो बात ल तो मंय फोन म जान डरे रेहेंव। हम्मन तो आंजत-आंजत तोर जिनगी ल कानी कर डरेन हंसा। मंय सोंचत रेहेंव दमांद ल कलेक्ट्रेट ऑफिस म परमानेंट नौकरी होही कहिके समझत रेहेंव। फेर बाद म पता चलिस कि ओह कलेक्टर रेट म गार्ड के काम करत रिहिसे। वहू ह बने ढंग से ड्यूटी नइ करत रिहिसे तहान ओला नौकरी ले निकाल दिस।

नौकरी रहितिस अउ दरूवाहा हे कहिके जानत रहितेन तभो ले तोला ओ घर म नइ देतेन। हंसा कथे- एमा तुंहर दोस हे न मम्मी पापा के। एमा तो मोर करम के दोस हे। मोर भाग म इही लिखाय हवय तेला मंय का करंव। एला तो मुहिच्च ल भोगे बर परही। हंसा किहिस एक दिन बाद मोला मोर ससुरार पहुंचाय बर ममा ल कहि देबे। फूफू ह कथे त का अइसने अपन जिनगी ल कांट डरबे। हंसा कथे-हव मामी। सबो दिन ह एके बरोबर नइ राहय। आज अंधियार हे त काली अंजोर आबे करही। मामी ह कथे-तहंू ह कोन माटी के बने हस हंसा। जिंहे तन के सुख न मन के सुख उहां अपन जिनगी ल काट लुहंू कहिथस। हंसा कहिथे-मोला परन दिन ससुरार जाना हे नही ते तुंहर दमांद ह खिसियाही, बड़ टिरटिरहा हवय।

हंसा के ममा चार जघा उठने-बइठने वाला रिहिसे। थोर बहुत सामाजिक बइठक म घलो आवय-जावय। राजनीति म घलो दखल रिहिसे। दुनिया देखे रिहिसे। कलाकार रिहिसे। कइसे नाटक करना हे तेला बखूबी जानत रिहिसे। अपन गोसइन ल समझा दिस। हम्मन नइ अमरावन भांची ल, उमन खुदे लेगे बर आही तहान उंकर मजा बताबोन। मंय ह कुछु नइ बोलंव, तंय समधीन ल चमकाबे। हंसा के मामी ह घलो लड़न्तीन तो रिहिसे। हव कहि दिस। तीजा बनाय के तीन-चार दिन बाद बुधारू ह हंसा ल फोन लगइस। कब आवत हस? हंसा किहिस-काली ममा ह अमराहूं काहत हवय। बुधारू कथे-ठीक हे। जेन दिन हंसा ह अमराए बर केहे रिहिसे ओ दिन जानबूझ के ओकर ममा ह दूसर गांव चल दिस। एती हंसा ह अपन ससुरार जाय बर तइयार रिहिसे। फेर ममा ह रात कना अइस। ए नाटक ल मामी जानत रिहिसे। जानबूझ के खिसियइस-कइसे एती भांची ल अमराहंू केहे रेहे अउ अतेक रात कन आवत हवस। ममा ह किहिस कि कामे ह अइसे आ गे कि देरी हो गे। मामी ह किहिस-अउ तोर मोबाइल घलो नइ लगत रिहिसे। ममा ह कथे-मोबाइल के बैटरी डाउन हो गे रिहिसे। एती बुधारू ह हंसा ल फोन कर कर के पूछत-पूछत थक गे रिहिसे। कब आबे कहिके? हंसा अब बताय ते बताय काला। आज अमराही कहि दिस। बुधारू, मनराखन अउ बिसाखा ह रद्दा देखत रहिगे फेर रात दस बजे तक उंकर दउव्हा नइ रिहिसे।

मनराखन ह हंसा के ममा ल फोन लगइस-आज बहू ल अमरइया रेहेव फेर पहुंचाय नइ हव। हंसा के ममा किहिस-असल म मंय जरूरी बूता म फंस गे रेहेंव, तिही पाय के अमराए बर नइ आ पायेंव। अउ मोर मोबाइल के बैटरी ह उतर गे रिहिसे तिही पाय के मंय फोन घलो नइ लगा पायेंव। लेव न मंय काली आ जहंू भांची ल अमराये बर। बिहान दिन सोसाइटी जाथंव कहिके बहाना मार के दूसर गांव चल दिस। बुधारू ह फेर सांझ कना हंसा ल फोन लगइस। आज कतेक बेर पहुंचत हव? हंसा कथे देख न ममा ह सोसायटी गेहे तेह अभी तक आय नइ हे। आही तहान आबोन। आजो घलो हंसा ल ओकर ममा ह हंसा के ससुरार नइ पहुंचइस। अब मनराखन ल समझे म समय नइ लगिस कि ओकर ममा ह बहू ल नइ अमराना चाहत हे। मनराखन बिसाखा अउ बुधारू ल कथे-उमन नइ अमराने वाला हे बहू ल लाय बर हमीच्च मन ल जाय बर परही। काली मंय टेम्पो बुक कर देथंव, बिहनिया ले जाबोन अउ खाना खाय के बेरा ले आ जाबोन।

बिहनिया ले उठीन, जल्दी-जल्दी तइयार होके मनराखन बिसाखा अउ बुधारू ह हंसा के ममा गांव पहुंच गे। हंसा ह अपन ममा ल काहत रिहिसे, आज मोला पहुंचा दे। तुंहर दमांद ह नाराज होही। फूफा के मन तो पहुंचाये के रहिबे नइ करे रिहिसे। आजो काहत रिहिसे-ठीक के भांची आज थोकिन बैंक के काम हे। तंय तइयार रहिबे, मंय आहंू तहान पहुंचा दुहंू। हंसा के ममा ठउंका निकले बर फटफटी चालू करत रिहिसे, ओइसने म मनराखन, बिसाखा अउ बुधारू ह हंसा ल लेगे बर पहुंच गे। ममा ह फटफटी ल बंद करिस तहान सगा मन के अपन घर म स्वागत करिस। ममा ह अपन गोसइन ल किहिस-सगा आय हे वो, पानी देव। हंसा ह लोटा म पानी धर के निकल के गोड़ धोये बर पानी दिस अउ पांव पलागी करिस। चाहा पानी पिये के बाद मनराखन कथे चल हंसा तइयारी कर, जल्दी निकलबो। अतका ल सुनते भार हंसा के ममा ह कथे-चल न थोकिन खेत डहार ले आबोन तहान खाना खा के जाहू। हंसा के ममा ह मनराखन ल खेत डहार लेग के मेड़ म बइठ के बातचीत सुरू करिन-

मनराखन-कइसे बहू ल पहुंचावत नइ हव समधी महराज।

आज आबो, काली आबो कहिके काहत रहिगेव। आप मन के रद्दा देखत हमर आंखी मन थकगे तहान हमी मन लेगे बर आय हवन।

ममा-ओ तो बने बात आय समधी महराज फेर ए बता उहां हंसा जा के का करही? जउन सुख के खातिर हंसा के बिहाव करे हवन ओला उही सुख नइ मिलही त का मतलब बतावव?

मनराखन-मंय सब ल समझत हवं समधी महराज फेर समय के संग सब ठीक हो जही। हमला मउंका तो दव।

ममा-काला मउका देबे? हम्मन तो तुंहर संग रिसता जोड़ के धोखा खा गे हवन। कतेक उछाह के संग बेटी ल हम्मन बिदा करे रेहेन। फेर ओकर जिनगी ह मटिया मेट हो गे हवय तइसे लागथे। एक घांव नौकरी चाकरी नइ रहितिस तभो चलतिस फेर दरूवाहा के संग हंसा के बिदा नइ करतेन। अब तो सब पता चल गे हवय। बुधारू ह कलेक्टर रेट म कलेक्टर कार्यालय म गार्ड के नौकरी करत रिहिसे। उहों ठीक से ड्यूटी नइ करे के सेती छोड़ा दे हे। हम्मन तो धोखा खा गे हवन धोखा।

मनराखन ह अतेक सुनइया नोहे फेर बुधारू के नाव ले के मुड़ी गड़ियाये बइठे सुनत रहिगे। ओकर ममा किहिस-अब हंसा ल कोनो हालत म तुंहर घर नइ भेजन।

मनराखन बहुत हाथ पैर जोड़िस। अइसे झन करव समधी महराज। समाज म, घर म हमर बदनामी होही। ममा किहिस-अउ भांची के जिनगी बिगड़ही तेला कोन सम्हालही? ओ तो अंतराम गुरूजी उपर भरोसा करके दे परेन। अंतराम ह घलो हम्मन ल अंधियार म रखिस। कोन जनी वहू ह जानत रिहिस कि नइ जानत रिहिसे।

मनराखन ह अपन समधी ले बिक्कट बिनती करिस फेर समधी ह हंसा ल पठोय बर राजी नइ होइस। गोठ बात खतम होय के बाद ममा ह मनराखन ल बइठार के घर लानिस। घर म अब बिसाखा किहिस चल हंसा बैग ल निकाल घर जाबोन, टेम्पो वाले ल देरी होवत हे। ओकर एक ठन अउ बुकिंग हवय। अतना ल सुनिस तहान हंसा के मामी के तरूवा गरम हो गे। मामी ह खिसिया के किहिस-अई जउन सुख बर भांची ल बिदा करे हवन उही सुख ओला नइ मिलही त उहां काय करे बर जाही? नौकरानी के जरूरत रिहिस होही ल उही डहार लगा लेतेव। मामी के बात ल मनराखन, बिसाखा अउ बुधारू ह मुड़ी गड़िया के सुनत रिहिसे। मामी किहिस-हम्मन हंसा ल नइ भेजन। बात ल जादा बाढ़त दिखिस तहान हंसा ह अपन मामी ल किहिस-तुहीं मन तो मोला समझाये रेहेव मामी, ससुरार ले मर के निकलबे फेर जियत-जियत झन निकलबे कहिके। मामी मंय आप ले हाथ जोड़ के बिनती करत हवं, मोर सास, ससुर अउ पति ल कुछु झन काह। मंय अपन ससुरार जाहंू। मंय मोर परिवार के अपमान नइ सहि सकंव। हंसा अपन सास ल कथे-चल मम्मी चलबो अपन घर। मंय तो ममा ल तीन दिन पहिलिच्च के काहत रेहेंव फेर ममा ह टरकावत रिहिसे। मंय नइ जानत रेहेंव कि तुमन ओखी करत रेहेव कहिके। हंसा के बात ल सुन के मामी, अउ ममा ह दंग रहिगे। मनराखन, बिसाखा अउ बुधारू के सान बढ़़गे। ममा बहुत मनइन, खाना खा के जाहू कहिके फेर मनराखन ह किहिस-खाय के बेरा ले तो पंचशील नगर पहुंच जबो कहिके। चारों झिन टेम्पो म बइठ के पंचशील नगर पहुंच जथे।

चारो झिन घर म आए के बाद खाना खा-खुवा के आराम करिन। सबके मुंहु ह फूले रिहिसे। हंसा ह अंदरे-अंदर समझत रिहिसे। फेर हंसा तो तीजा के दिन शंकर भगवान करा अपन घर ल सुधारे खातिर बरदान मांगे रिहिसे। सब सोच के रखे रिहिसे कि अपन ससुरार के वातावरण ल कइसे बदलना हे कहिके। हंसा ह पहिली ले ठान ले रिहिसे कि सास-ससुर अउ पति ह कतनो कुछु भी बोलही ओला मुड़ी गड़िया के सुनना हे कहिके। अब मनराखन, बिसाखा, बुधारू अउ हंसा ह बिहान दिन मिटिंग म बइठिन। ओतका बेर संतु ह स्कूल गे रिहिसे। अब मनराखन किहिस-बता बहू घर के बात ल बाहिर बताये के का जरूरत रिहिस? मोला तोर ममा बिक्कट सुनाये हे। बिसाखा कथे-बेटी वाले हो के तोर मामी ह महंू ल बिक्कट सुनाय हे। बुधारू कथे-तंय लबारी काबर मारत रेहेंस-आज आवत हवं, काली आवत हवं कहिके। हम्मन ल सोज-सोज बता दे रहिते ते पहिलीच दिन तोला लेगे बर आ जय रहितेन। अउ तोला लेगे बर आयेन त उपराहा म तोर मामी-ममा ह हमर मन के घोर बेज्जती करे हवय। का हम्मन उंकर आगू म दू कौड़ी के आदमी नइ हन। घर म ए सब ल बताये रहिते कि तोर इहें रेहे के मन नइ रिहिस ते तोला उही दरी तोर मइके पहुंचा देतेन। यदि मंय तोला पसंद नइ आए रेहेंव त मोर संग काबर बिहाव करे होबे? हंसा सब जानत रिहिसे कि एमा न मोर गलती हे न ममा मामी के। सबो गलती इंकरे आय।

हंसा ह मने मन सोचिस मान ले कुछु काहत हवं त विवाद ह बाढ़ही कहिके कलेचूप सब झिन ल माफी मांगिस। मोला माफी दे देव पापा जी, मोर ले गलती हो गे। मंय किरिया खावत हवं, अब घर के बात बाहिर नइ जावय। मंय मामी ल कानो कान चेताए रेहेंव कि तंय कोनो ल झन बताबे कहिके तभो ले ममा ल बता दे रिहिसे। मंय उंकरो डाहर ले माफी मांगत हवं। मंय तो उमन ल तीन दिन पहिली के अमराए बर काहत रेहेंव फेर मंय नइ जानत रेहेंव कि उंकर मन ह अमराए के नइ हे कहिके। मोर पति कुछु राहय फेर मोर बर तो परमेश्वर आय। आप मन मोर मम्मी-पापा अव। मोला माफी दे दव माफी। मनराखन ह बुधारू ल कथे-एमा गलती सिरिफ बहू भर के नइ हे एमा सबले जादा गलती तोर हवय। अतेक सब सुने बर मिलिस एह सब तोर सेती आय। अतका ल सुनिस तहान बिसाखा कथे-कइसे बुधारू, हम्मन सब सियान हो गे हवन। कब तक ले तोर लड़कमति रही। अब बर बिहाव हो गे हे, अपन जिम्मेदारी ह तोला उठाए बर परही। मनराखन कथे अब एती सबो झिन सुंता सलाह ले रहिबोन। बुधारू घलो कथे-अब एती मोर ले गलती नइ होवय कहिके माफी मांगथे। हंसा ह अपन सास-ससुर अउ पति के पांव परथे अउ बुधारू ह अपन दाई-ददा के पांव पर के माफी मांगथे।

छत्तीसगढ़ म एक ठन कहावत हे कुकुर के पूछी टेड़गा रथे तेह कभू सोज होबे नइ करय। बुधारू फेर रात कना दारू पी के आ गे। फेर उही पुराना बेवहार पीना खाना। आज रात तो हंसा ह चुप रिहिस। कुछ दिन बुधारू के बेवहार ल देखत रिहिस। मिटिंग म जउन वादा करे रिहिसे कि सब झिन बढ़िया रहिबोन कहिके। ओकर थोरको असर नइ दिखत रिहिसे।

अब हंसा ह अपन मिसन के सुरूआत करिस। रोवत रोवत अपन पति के नाम चिट्ठी लिखिस-सादर प्रणाम! आप मोर बर परमेश्वर अव। इहां सास-ससुर देवी-देवता कस हवय। फेर मंय सास-ससुर ल ही देख के कइसे अपन जिनगी कांट पाहंू। बिहाव के बाद मंय मइके भी नइ जा पांव। मंय न आप बर गरू बनना चाहत हवं, न सास-ससुर बर न अपन मम्मी-पापा बर। यदि आप नइ सुधरहू त मंय अइसे जघा तीरथधाम करे बर चल दुहंू तहान आप मोला खोजत रही जबे। ए निर्णय आपके उपर हे। तोला दारू पिलाई ल छोड़ के व्यवहारिक जिनगी म जीबे तब तो मंय आपके संग रहू नही ते मंय तीरथयात्रा करे बर दू दिन बाद चल दुहंू। आपके निर्णय मोला एक दिन म चाही नही ते मोला अपन निर्णय ले बर परही। चिट्ठी ल पढ़ के बुधारू हड़बड़ा गे। अइसन कहंू हो जही त बहुत गड़बड़ हो जही। महतारी-बाप मन तो अइसने चिंता फिकर म कमजोर होवत जावत हे अउ ओतके धूमधाम ले बिहाव करे हे। घर, परिवार अउ समाज म हमर का होही?

अब बुधारू ह अपन आप ल बदले बर निर्णय लिस। बुधारू ह हंसा के मुड ल देख के किहिस-मंय तो चिट्ठी ल पढ़ डरे हवं। मंय अब तक ले तोला बहुत तकलीफ दे हवं फेर अब तंय जइसन कहिबे ओइसने करहंंू। हंसा किहिस मोला अभी तोर उपर भरोसा नइ हे? बुधारू किहिस तोला भरोसा देवाय बर मोला काय करे बर परही? हंसा कथे-मोर मुड़ी म हाथ रख के किरिया खा अब मंय गलत रद्दा म नइ जांव। अउ छोटे-मोटे नौकरी करहंू कहिके। काहे कि पत्नी ल तब गर्व होथे जब ओकर पति ह कमा के लानथे भले तन्खा कम राहय। अब एती हम दुनो झिन मिल के घर के जिम्मेदारी ल उठाबो। बुधारू ह हंसा के शर्त ल मान के नसा पानी ल छोड़ के अपन पुराना प्राइवेट नौकरी ल ज्वाइन कर लेथे। अब मनराखन अउ बिसाखा बुधारू के जीवन परिवर्तन ल देख के दंग रहिगे। अब मनराखन घलो काम धन्धा म लग गे। हंसा ह घर के काम बूता के संगे संग अपन पढ़ई ल घलो जारी रखिस। बुधारू ल घलो पोस्ट ग्रेजुएट करवइस। एती संतु ल घलो हंसा ह मार्गदर्शन दे के धीरे-धीरे ओकर पढ़ई ल जारी रखिस। अब धीरे-धीरे घर ह पटरी म आय बर धर लिस। उही समय शिक्षक खातिर विज्ञापन निकलिस। ओमे हंसा के नियुक्ति हो गे। अब तो मालिक के किरपा बरसे बर धर लिस। हंसा ल सोलह शुक्रवार के वैभव लक्ष्मी के व्रत करिस। घर म माता के किरपा ले लक्ष्मी के बरसात होना शुरू हो गे। हंसा के पोस्टिंग मोहलई गांव म होइस। हंसा ह पंचशील नगर के मोहलई अप-डाउन करके अपन गृहस्थी ल सम्हाले बर धरिस। अब तो हंसा ह बुधारू के पूरा जीवन शैली ल बदल चुके रिहिसे। छुट्टी के दिन बुधारू ह संझा कन सब झिन ल सकेल के रामायण सुनावय। त भगवान श्रीराम के किरपा घलो होय पर धर लिस। बुधारू ह कंप्यूटर कोर्स कर डरे रिहिसे। उही समय पटवारी के विज्ञापन निकलिस। हंसा ह बुधारू ल जोरदार तइयारी करवइस। बुधारू के सलेक्शन पटवारी म हो गे। बुधारू के पोस्टिंग बघेरा म होइस। बुधारू घलो पंचशील नगर ले आना-जाना सुरू करिस।

अब मनराखन अउ बिसाखा ह इंकर खुसी ल देख के खुस राहय। एक दिन मनराखन ह किहिस हम्मन बिक्कट भागमानी अन बिसाखा कि अइसन सौभाग्यवती ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बर मिलिस। जउन ह हमर घर ल स्वर्ग बना दिस। बिसाखा कथे-अतना दुख तकलीफ म दूसर बहू होतिस ते भगा जतिस। मनराखन कथे-हव बिसाखा, अब तो संतु घलो बने पढ़त-लिखत हे। हंसा अब बुधारू ह अपन मेहनत के बदौलत म हमर गांव म दू एकड़ जमीन घलो बिसा डरिन। धीरे-धीरे करके घर बनाय खातिर पंचशील नगर म जमीन बिसइन अउ कुछ दिन बाद संतु बर बघेरा म जमीन लिन।

हंसा ह बढ़िया सियानी करत रिहिसे। घर के जिम्मेदारी ल बुधारू अउ हंसा दुनो बढ़िया सम्हाल ले रिहिन हे। अब संतु ल पढ़ा-लिखा के नगर निगम दुर्ग म क्लर्क के नौकरी लगइन। संतु के नौकरी लगे के बाद अब तो सबो झिन मिल के पंचशील नगर दुर्ग के प्लाट म घर बनइन। बुधारू ह अब तक ले दू लइका के बाप बनगे रिहिसे। एक झिन नोनी अउ एक झिन बाबू रिहिसे। हंसा बुधारू अउ संतु के ड्यूटी के सेती अब घर म लइका अउ सियान मन ल देखइया कोनो नइ रहि जाय। वोइसे भी संतु ह अब बिहाव के लइक हो गे रिहिसे अउ बिसाखा ह हंसा अउ बुधारू ल किहिस-''अब मन ह करथे, संतु के माथ म घलो दू बीजा चांउर टीक लेतेन कहिके। बुधारू अउ हंसा तो पहिली ले संतु के बिहाव के तइयारी म लगे रिहिन हे।ÓÓ

हंसा ह बुधारू ल कथे-मंय तो घर बनाय बर लोन ले डरे हवं अब तंय ह देवर के बिहाव बर लोन ले लेबे। अब तो घर म तीन झिन कमइया हो गे हवन, कइसनो करके घर ह चल जही। बुधारू ह हंसा ल हामी भर देथे। हंसा ह अपन देवर ल कथे-एसो हमन तोर बिहाव करबोन कहिके सोंचत हवन। बने बने बता तोला कोनो लड़की पसंद हे का? यदि होही त बताबे नही ते तोर भइया ल कहूं तोर बर लड़की देखे बर। संतु ह कथे-अइसे कोनो बात नइ हे भउजी फेर अभी ले मोर टोटा म घंटी काबर बांधना चाहत हव? हंसा मजाक म कथे-अच्छा त का मंय तोर भइया के घंटी अंव का? नही भउजी मंय तो अइसने मजाक करत रेहेंव। हंसा कथे मंय जानत रेहेंव। तंय मजाक करत हवस। त का लड़की खोजे बर कहि दवं तोर भइया अउ सियान मन ल? संतु लजावत कथे-जइसे तुमन उचित समझव। मंय आप मन के बात ल मना कर सकथंव का? आज मंय जउन भी हवं तुंहरे परसादे हवं। ए एहसान ल मंय कभू नइ भुलावंव भउजी। हंसा कथे-हमन तोर उपर कोनो एहसान नइ करे हवन समझे। पढ़ा-लिखा के तोर पांव म खड़ा करना हमर जिम्मेदारी आय। अब तोर घर ल बसा देबोन तहान हमर जिम्मेदारी पूरा हो जही। तोर जिम्मेदारी लेवइया सुन्दर असन देरानी आ जही तहान हम्मन फुरसद हो जबोन।

हंसा बुधारू ल किहिस मोर सहेली बतावत रिहिसे गिरधारी नगर दुर्ग म संतु के लइक बढ़िया लड़की हवय। दाई-ददा ल पूछ के बात चलावव अउ लड़की के नाव घलो बढ़िया हवय। परिवार घलो बने हे काहत रिहिसे। बुधारू कथे-नोनी के का नाम हे? हंसा कथे-नोनी के नाम हेमलता हे? नाम तो बढ़िया हे। हंसा कथे-मंय तो राशि-बरग घलो मिलान कर डरे हवं। गुन घलो बढ़िया मिलत हे। सबो झिन सुन्ता सलाह होके संतु के रिश्ता ल हेमलता संग पक्का कर देथे। अब तो मनराखन अउ बिसाखा ह छोटे बेटा संतु के ''बहू हाथ के पानीÓÓ घलो पिये बर मिलगे कहिके भारी खुश हो गे। अब तो घर ह स्वर्ग कस लागे बर धर लिस। हेमलता ह घर के काम बूता ल सम्हाल लिस।

नवा सत्र म शिक्षा विभाग डाहर ले शिक्षक अउ शिक्षिका मन के प्रमोशन लिस्ट निकल गे। लिस्ट म हंसा के घलो प्रमोशन हो गे रिहिसे। हंसा ल हेड मास्टरीन के रूप म बेरला ज्वाइन करना रिहिसे। अब इमन असमंजस म रहिगे। फेर आखिर म बुधारू अउ हंसा मिल के फैसला लिन कि प्रमोशन ल नइ छोड़न। बेरला म हंसा ह हेड मास्टरीन के पद म ज्वाइन करथे। कुछ दिन बाद बुधारू घलो भीड़ भाड़ के अपन ट्रान्सफर बेरला म करवा लिस। अब घर म सास-ससुर ल हंसा पूछिस तुमन कतिंहा रहंू? मनराखन अउ बिसाखा कथे कि हम्मन इहें संतु संग रहिबो काबर कि इहें जिनगी ल कांटे हवन। इहें सब जान-पहिचान हवय। तिही पाय के हम्मन छोटे बेटा-बहू संग रहिबोन। कभू कभू तुंहरो घर आ जबोन। बुधारू कथे ठीक हे जब तुंहर जिंहा मन लगे उहें रइहव। बस मां-बाप के खुशी ले बढ़ के हमर मन बर अउ का हे?

अब बुधारू अउ हंसा ह बेरला म अपन लइका मन ल पढ़ावत-लिखावत सुखी से जीवन काटत रिहिन हवय। एती संतु अउ हेमलता घलो अपन संग सुग्घर जिनगी बितावन लगिस। अब एती मनराखन अउ बिसाखा मन घलो जादा सियान हो गे रिहिन हे। साल भर म संतु घलो बाप बनगे। अब संतु के जिम्मेदारी बाढ़ गे। अब सियान मन के तबियत जादा खराब होय ले इलाज पानी म जादा खरचा आय लगिस। अब सेवा जतन घलो हेमलता ल जादा करे बर परत रिहिसे। हेमलता ल अब धीरे-धीरे अपन सास-ससुर के सेवा जतन ह जियाने बर धरत रिहिसे। सियान मन बर हेमलता के बेवहार बदलत रिहिसे। एला सियान मन घलो समझत रिहिसे। अब हम्मन इंकर मन बर गरू होवत हवन कहिके। हेमलता के बेवहार ह संतु बर घलो बदले बर धर लिस। बात-बात म चिड़चिड़ाना, बात-बात म लड़ई-झगरा करना। संतु ल समझ तो आवत रिहिसे कि हेमलता ह काबर अतेक चिड़चिड़ावत हे तेह। एक दिन हेमलता ह संतु ल साफ-साफ सुना दिस-का तोर दाई-ददा के सेवा करे के ठेका हमी मन लेहन। अब ए मोर से नइ हो सकय। मंय मोर लइका के सेवा जतन ल देखंव कि सियान मन के सेवा जतन ल। जेठानी कइसे अपन लइका ल पढ़ावत-लिखावत बेरला म मस्त हवय। संतु कथे-ले न मंय भइया संग बात करहंू। हेमलता कथे-बात करके बताबे अपन भइया ल कि हमर वेतन ह कम हवय। उपर ले बहुत अकन रूपिया ह सियान मन के इलाज पानी म चल देथे। इहां घर चलाना मुश्किल होवत हे त हम्मन अपन लइका बर कब रूपिया सकेलबोन। संतु ह हेमलता ल समझाथे-अइसन झन काह हेमलता। आज जउन भी हवन भइया-भउजी के परसादे हवन। मोला भउजी ह पढ़इस-लिखइस अउ नौकरी घलो लगइस। हेमलता ह कथे-त तोर महतारी-बाप ह तो घलो बड़े ल पढ़इस-लिखइस होही। ए सब तो बड़े मन के फर्ज आय। संतु कथे-त हम्मन महतारी-बाप के सेवा करके अपन फर्ज ल काबर निभा नइ सकन। हेमलता खिसिया के कथे-''त का फर्ज ल निभाए बर अकेल्ला ठेका ले हवन का?ÓÓ

संतु ह हेमलता ल समझाथे-तंय अइसन झन सोच हेमलता-तंय नइ जानस, हमर घर के हालत बहुत खराब रिहिसे। भइया ह दरूवाहा हो गे रिहिसे। महतारी-बाप ह भाजी पाला बेंच के ले दे के घर ल चलावत रिहिन हे। घर म जब ले भउजी अइस तभे ए घर के दिसा ह बदलिस। ए सब नौकरी-चाकरी पक्का घर दुआर दिखत हे एक सब भउजी के देन आय। हेमलता खिसिया के कथे-तोला अपन भउजी के गुन ल गाना हे त मंय ए घर म नइ राहंव। तंय जान अउ तोर भइया-भउजी जानय अउ तोर महतारी-बाप जानय। संतु अब तो धरम संकट म परगे रिहिसे। आखिर करे ते करे का जाय? अब अपन गोसइन ल देखे कि महतारी-बाप ल कि भइया-भउजी के सम्मान ल। संतु ह हेमलता ल समझइस कि घर ल छोड़े ले समस्यिा के निदान नइ होवय हेमलता, तोर का बिचार हे तेला बता? हेमलता कथे-हमला बांटा चाही, बांटा। जब बांटा हो जही त हमु मन अपन लोग लइका बर पंूजी पसरा बना लेबोन। अउ सेवा जतन बर सियान मन के घलो बांटा कर लेबोन। छै महीना उमन राखही अउ छै महीना हम्मन राखबोन। संतु ह हेमलता ल बहुत समझइस फेर हेमलता समझे के नामे नइ लिस। संतु किहिस-ठीक हे, एसो भइया-भउजी मन देवारी म आही। उही समय तिहार माने के बाद बांटा के बात ल कर लुहंू अउ बांटा करवा लेबोन। हेमलता सुन के खुस हो गे। सियान मन के प्रति बेवहार ह तो जस के तस रिहिसे फेर संतु के बेवहार बर काफी बदलाव आ गे। अब तो हेमलता ह संतु ल बिक्कट मया करे बर धर लिस। संतु ल खुस करे बर ओकर आगू म अपन सास-ससुर मन संग घलो मीठ-मीठ गोठियाये बर धर लिस। मनराखन अउ बिसाखा दुनो झिन बिक्कट खुस रिहिन हे कि भगवान ह अपन दुनो बेटा बर सुग्घर बहू दे हे। धन भाग हम्मन ल ''दुनो बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बर मिलिस। अइसने बहू सब ल मिलय। फेर मनराखन अउ बिसाखा नइ जानत रिहिन हे कि छोटे बहू के मीठा बचन के पिछु म कतना करू लुकाय हवय।

देवारी तिहार मनाय बर बुधारू ह परिवार सहित चार दिन पहिली अइस। आये के बाद सब झिन बर कपड़ा लत्था लिन। सब झिन बड़ खुसी ले देवारी तिहार मनइन। एसो के देवारी तो घर म जगमग अंजोर करत रिहिसे। हंसी खुशी देवारी ल मनइन। फेर पता नही घर ल काबर नजर लग गे ते। घर के अच्छा पनपती होथे ओइसने वो घर के विकास ल गरहन लगे बर घर लेथे। बस अइसने गरहन मनराखन अउ बिसाखा के बनाय सुग्घर घरघुंदिया म घलो लग गे। अब तो अतेक सुग्घर घरघुंदिया के उजरे के समे आ गे रिहिसे। तिहार मनाय के बाद अब बुधारू ह अपन महतारी-बाप ल किहिस कि काली हम्मन बेरला जाबोन। मनराखन कथे-ठीक हे बेटा। ले काली चल दुहू फेर हम्मन ल देखे-सुने बर बीच-बीच म आवत-जावत रहू। बुधारू कथे-ठीक हे पिताजी। संतु कथे-काली जाबोन कहिथव त बिहनिया आपके संग थोकिन गोठियाना रिहिसे। बुधारू किहिस-ठीक हे संतु काली नासता करे के बाद बइठ जबोन का होही। बुधारू रात कन सोंचत रथे कि आखिर संतु ह का गोठियाना चाहत हवय। हंसा ह बुधारू ल गुनत देख के किथे-का हो गे, भारी उदास दिखत हवस? बुधारू ह हंसा ल कथे-तंय तो सुने हवस न, संतु ह काली का गोठियाना हे काहत रिहिसे। हंसा समझाथे-ठीक हे न, ओमे जादा गुने के का बात हे? एती संतु अउ हेमलता ह रात भर योजना बनाथे कि काली का कहना हवय। संतु के मन तो नइ रिहिसे कि अपन भइया-भउजी अउ महतारी-बाप के आत्मा ल दुखाय के, फेर ''होइहैं वही जो राम रचि राखा।ÓÓ

बिहनिया नहा धो के हंसा ह बेरला लहूटे बर तइयारी म भीड़ गे। हेमलता नासता के तइयारी म लग गे। सब झिन नाश्ता करे बर धर लिन। नासता करे के बाद बुधारू ह संतु ल किहिस-काय गोठियाहंू काहत रेहे त ले गोठिया डर तहान हमु मन ल जाना हे। नासता करे के बाद संतु किहिस-बोले के हिम्मत तो नइ हे भइया, फेर बोले बर परत हवय।

बुधारू-एमा हिम्मत के का बात हे, बता न भाई। जउन भी तोर मन म होही?

मनराखन-बता न संतु कोनो भी किसम के ऊंच-नीच होही तेला निपटाबो।

बुधारू-पिता जी ह बने काहत हे संतु, अतेक बढ़िया घर चलत हे। विकास बर तोर अऊ कुछु योजना हे त बता।

संतु-हव भइया एक ठन योजना हवय।

बुधारू-का योजना? बने फोर के बता।

संतु-मोला बांटी चाही।

(सब झिन बांटा के नाम ल सुन के सन्न रहि जथे।)

बुधारू-अइसे का बात आ गे तेमा, बांटा बर सोच डरे।

संतु-बात आ गे हे भइया।

बुधारू-बताबे का बात आगे हे तेला?

संतु-भइया एक तो मोर तन्खा कम अउ फेर महंू बाप बन गे हवं। उपराहा म दाई-ददा के इलाज म कतनो रूपिया चल देथे। हम्मन हलाकान हो गे हवन।

मनराखन-अरे, अब हमर सेती तुमन हलाकान होवत हव। हम्मन तुंहर बर गरू हो गे हवन। एला पहिली ले बताये रहिते ते हम्मन तुंहर खुसी के खातिर खुदे कोनो जघा अपन बेवस्था कर लेतेन।

बुधारू-अइसे कइसे गोठियाथस ददा। तुमन अतेक मिहनत करके हम्मन ल पढ़ाय-लिखायेव। ओकर बाद हमर मन के नौकरी लगा के घर बसायेव। त का हम्मन तुंहर बेवस्था नइ कर सकन?

संतु-उही बेवस्था खातिर तो मंय बांटा के प्रस्ताव रखे हवं भइया जी।

(सब झिन ल समझे म जादा समय नइ लगिस कि ए सब छोटे बहू हेमलता के चाल आय कहिके। एती हंसा ह अब हेमलता ल समझाए के कोसिस करिस।)

हंसा-ए का काहत हे देवर बाबू ह हेमलता?

हेमलता-बने तो काहत हवय। तुमन तो दू-दू झिन नौकरी वाला हव। अउ तन्खा (वेतन) घलो जादा हे। उपराहा म हम्मन ल सियान मन के खरचा उठाय बर परत हवय।

हंसा-त हम्मन ल बता दे करव कतना खरचा आथे तेला हम्मन दे दे करबो।

हेमलता-ए सब ल मंय नइ जानव, तुंहर देवर जानय।

संतु-हमला बांटा चाही मने बांटा चाही।

बुधारू-जब महतारी-बाप ह हम्मन दुनो भाई ल पोस पाल के बड़े करिस, त का हम्मन दुनो भाई मिल के महतारी-बाप के सेवा नइ कर सकन?

संतु-उही बात ल तो महूं काहत हवं भइया। मिही एके झिन ल थोरे पढ़ाय-लिखाय हवय? दुनो भाई ल पढ़ा-लिखा के बड़े करे हे। त दुनो भाई के जिम्मेदारी बनथे, दाई-ददा के सेवा करई ह।

बुधारू-मतलब?

संतु-मतलब स्पष्ट हे भइया? दाई-ददा के सेवा करे बर दाई-ददा घलो छै-छै महीना बर बांटबोन। नही ते दाई-ददा ल अलग-अलग बांट लेथन। दाई ल मंय रख लेथंव अउ ददा ल आप रख लव।

मनराखन-(रोवत-रोवत) जीयत-जीयत दुनो परानी ल अलग-अलग झन करव बेटा।

संतु-एकर अलावा अउ कोनो उपाय तो नइ हे ददा।

बुधारू-ए का काहत हवस संतु?

संतु-मंय बने काहत हवं भइया।

बुधारू-तंय बने काहत हस न कि महतारी-बाप के सेवा करई ह तोला भारी परत के फेर हमर मन बर भारी नइ हे। मोर बर तो महतारी-बाप ह भगवान आय भगवान।

संतु-त अपन भगवान ल लेग जवव।

बुधारू-इही बात ल प्यार से पहिली ले कहि दे रहिते ते हम्मन उही दरी लेग जय रहितेन। दाई-ददा के बांटा के बात आबे नइ करतिस। अउ उंकर आत्मा ल दुख घलो नइ होय रहितिस।

संतु-त लेग जवव, हमर मन ले मुक्ति देवाव।

बुधारू-ठीक हे संतु जेमा तुमन खुस राहव, ओइसने करबोन।

संतु-त दाई-ददा भर के लेगे ले काम नइ बनय भइया।

बुधारू-त अऊ का बांचे हे संतु?

संतु-घर दुवार अउ खेत खार के घलो बांटा चाही।

(अब हंसा ले रहि नइ गिस)

हंसा-अइसे करव, तुंहर खुसी हमर खुसी आय। पंचशील नगर के घर, बघेरा के प्लाट अउ महमरा के दू एकड़ जमीन ल तुंहर बर छोड़त हवन।

संतु-त तुंहर मन बर?

हंसा-हमर मन बर दाई-ददा हे न।

बुधारू-बने काहत हवस हंसा। संतु ल बांटा चाही न, मंय इमन ल बांटा देवत हवं।

संतु-हं त तिंही बता न भइया। काला-काला कइसे-कइसे बांटबे तेला।

बुधारू-तंय काला काला लेबे तेला बताबे, छोटे भाई अस। बांच जही तेला मंय राखहंू।

संतु-तैं बता भइया।

बुधारू-त सुन, एक डहार पूरा सम्पत्ति हे अउ दूसर डहार दाई-ददा हे। काला लेबे तेला बता।

संतु-मंय पूरा सम्पत्ति लुहंू।

बुधारू-ठीक हे भाई हम्मन महतारी-बाप ल बांटा म पाय हवन संतु।

संतु-भइया फेर सियान मन कथे-छोटे भाई ह बड़े भाई ल जेठासी देथे कहिके।

बुधारू-सुन भाई, मंय तोला दुखाना नइ चाहत हवं। मोर बर तो दाई-ददा के असीस ह जेठासी आय।

संतु-नही भइया मोर मन ह नइ माड़े।

बुधारू-त तोर मन ह कामे माड़ही?

संतु-मंय काहत रेहेंव, महमरा म जउन दू एकड़ जमीन हवय ओमा ले एक एकड़ जमीन ल आप ल जेठासी के रूप म देना चाहत हवं।

बुधारू-तंय जेमा खुश राह भाई, मोला सब मंजूर हवय।

पूरा घर गमगीन हो गे। सब झिन रोवत बिखलत रिहिन। अब बुधारू ह अपन महतारी-बाप अउ हंसा ल तइयार होय बर किहिस। सब झिन ल टेम्पो म बइठार के बेरला भेज दिस तहान अपनो ह फटफटी म बेरला जाय बर निकल गे।

(इंकर सब झिन के जाये के बाद हेमलता ह फेर संतु बर बिफड़ गे। जेठासी देनच्च रिहिस त बघेरा के प्लाट ल नइ दे देते। महमरा के एक एकड़ ल काबर दे दे?)

संतु-अरे महंू ल अतना समझ हे कि दू एकड़ जमीन के बांटा म एक एकड़ बड़े भइया ल मिलना चाही कहिके। फेर सबो ल हम्मन रखतेन त दुनिया वाले मन ल का मुख देखातेन।

हेमलता-बने करे जोड़ी। अब ए दे बांटा होय के बार निश्चिंत जिबोन। (हेमलता ह संतु के टूप-टूप पांव परिस। संतु ह बांटा होय के बाद पूरा परिवार के बिछड़े ले बोम फार के रो डरिस।)


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ग्यारह


रामनाथ ह अब सियाना होगे रिहिसे। धार्मिक कार्यक्रम म जाय बर पहिली कस हिम्मत नइ राहय। केकती के घलो चूंदी पाक गे रिहिसे। कुबेर के इंतकाल के बाद सम्हले बर बहुत समय लगिस। धीरे-धीरे अपन आप ल दुनो झिन सम्हाल ले रिहिन हे। रामनाथ के तीनों बेटी मन के नाती-नतरा आ गे रिहिसे। मन करे त दुनो परानी कभू सरला घर कभू दुलारी घर अउ कभू हंसा घर चल देवय। अब रामनाथ ह रूपिया कौड़ी सकेले के मोह ल छोड़ दे रिहिसे। बस अब आखिरी इच्छा रिहिसे कि तीरथ यात्रा करे जाय। एक दिन रामनाथ ह केकती ल कथे-मंय सोंचत हवं तोला भारत भ्रमण करवा देतेंव कहिके। केकती खुस हो के कथे-वाह ए तो बढ़िया हे फेर मंय सोंचथंव कि संगे संग तीनों बेटी दमांद मन ल घुमा देतेंव कहिके। रामनाथ कथे-वाह, एह तो बढ़िया बात आय। फेर रेलगाड़ी अउ बस म लइका मन ह हलाकान हो जही। तेकर ले अच्छा एक ठन बारा सीटर महेन्द्रा मैक्स बिसा लेथन आखिर जउन भी धन दउलत हवय ओह तो तीनों बेटी मन के आय। रामनाथ केकती ल कथे-फोन लगा के तीनों बेटी ल पूछ ले। उंकर मन के का विचार हवय ते। केकती ह तीनों बेटी मन करा फोन लगा के पूछथे-तोर पापा ह तुमन ल घुमाय बर कार लुहंू काहत हवय बने रही ते नइ रही तेला बतावव।

महतारी के अइसन सुग्घर बिचार ल सुन के तीनों बेटी मन हामी भर देथे। तीनों बहिनी मन घलो खुस हो जथे। जब-जब लइका मन के लम्बा छुट्टी रिही तहान मम्मी-पापा मन संग घूमे बर निकल जबो। एक-एक घांव म एक-एक दिशा म घूमे बर जाबोन कथे। रामनाथ ह तीनों बेटी के सुन्ता सलाह ले कुंआर नवरात्रि म महेन्द्रा मैक्स लिस। तीनों बेटी अपन मइके आय रिहिन हे। अब सब झिन बढ़िया नवा गाड़ी के पूजा करिन।

माता जी के मंदिर म गाड़ी के पूजा पाठ करवाय बर लेगिन। माता जी के दर्शन करके सब झिन सुख शान्ति अउ समृद्धि बर माता जी ले बिनती करिन। तीनों बहिनी योजना बनइन कि एसो देवारी छुट्टी म नरसिंगनाथ घूमे बर जाबोन। रामनाथ ह बड़हर मनखे रिहिसे तिही पाय के नवागांव के घर तो बढ़ि़या बनायेच रिहिसे। फेर कभू कभू रायपुर जाय बर परथे कहिके शंकर नगर म घलो मकान बनवाय रिहिसे। भिलाई आना-जाना लगे राहय त भिलाई के नेहरू नगर म घलो प्लाट ले ले रिहिसे। रामनाथ अउ केकती सुन्ता सलाह हो के अपन बेटी मन ल पहिलिच्च ले बता दे रिहिसे कि रायपुर के घर ह सरला के, गांव के घर ह दुलारी के अउ भिलाई के नेहरू नगर के प्लाट जउन माहंगी के रिहिसे ओह छोटे बेटी हंसा के आय। सबो बेटी मन खुस राहय। एसो के देवारी छुट्टी म नरसिंगनाथ के दर्शन करे के योजना बनिस। रामनाथ अउ केकती के मन तो तीनों बेटी दमांद ल घुमाये के इच्छा रिहिसे। फेर बड़े दमांद खुमान अउ छोटे दमांद बुधारू ह छुट्टी नइ मिलत हे कहिके जाय बर मना कर दिन। अब जाय के तारिख तय हो गे। रामनाथ अउ केकती ह गाड़ी चलाए बर गांव के ड्राइवर शेखचंद ह राखिस। बड़ा सीधा लड़का रिहिसे। नसा पानी ले दूर रिहिसे। केकती ह ड्राइवर ल बेटा बरोबर मानय। बिक्कट भरोसा करय। ड्राइवर ह परिवार के सदस्य बरोबर हो गे। ड्राइवरी के संगे-संग घर के छोटे-मोटे बूता ल घलो करय।

रामनाथ अउ केकती ड्राइवर उपर आंखी मंूद के भरोसा करय। अब रामनाथ अउ केकती ह पूजा पाठ करके नवागांव ले महेन्द्रा मैक्स म बइठ के शेखचंद संग भिलाई अइस। हंसा ल बुधारू ह पहिली ले सरला घर छोड़ दे रिहिसे। अब सब ले पहिली रामनाथ ह हाउसिंग बोर्ड भिलाई पहुंचिस उहें दुलारी अउ खूबचंद ल बइठार के सरला घर पहुंचिन। उहें सरला अउ नाती-नतरा मन ल बइठार के नरसिंगनाथ भगवान के दर्शन करे बर यात्रा म निकल गे।

बढ़िया हांसत कुलकत पिकनिक मनावत घुमत-फिरत नरसिंगनाथ के ठउर पहुंच गे। सब झिन माई पिल्ला भगवान के दरसन करिन। रामनाथ ह मने मन खुस रिहिसे, आज मोर तीनों बेटी के संग तीरथ बरत करत हवं। केकती ह बेटी मन संग भुलाय रिहिसे त खूबचंद ह अपन ससुर के संगे संग रिहिसे। भगवान के दरसन करत ले सुरूज नरायेन ह बूड़ गे रिहिसे। अब आमापाड़ा के होटल म रात रहिबो कहिके उहां ले महेन्द्रा मैक्स म बइठ के निकल गे। होनी ल कोन जानथे। रात हो गे रिहिसे। ड्राइवर शेखचंद ह सरलग गाड़ी चलावत-चलावत थक गे रिहिसे। आमापाड़ा ले चार-पांच किलोमीटर पहिली ड्राइवर ल झपकी आ गे। गाड़ी ह पेड़ म टकरा गे। रामनाथ आगू डाहर बइठे रिहिसे। ओकर मुड़ी म भारी चोट अइस। बाकि मन ल थोर बहुत खरोच भर अइस। गांव वाले मन पुलिस ल फोन लगइन। तुरते पुलिस गाड़ी पहुंचिस अउ सबले पहिली सबो झिन ल पुलिस गाड़ी म बइठार के आमापाड़ा के अस्पताल म लेग के भरती कर दिस। रामनाथ के मुड़ी म अट्ठारा टांका लगे रिहिसे। ओकर बाद पुलिस वाले मन महेन्द्रा मैक्स ल थाना म लान के रखिन। ओकर बाद ड्राइवर ले पूछताछ सुरू करिस। ड्राइवर ह बड़ सीधा सादा रिहिसे। नसा उ नइ करय। बस थकासी के सेती झपकी आ गे तिही पाय के ए घटना हो गे। पुलिस मन घलो समझदार रिहिसे। जादा तंग नइ करिन बल्कि भरपूर सहयोग करिन। पूछताछ के बाद इंस्पेक्टर ह ड्राइवर ल किहिस कि इंकर रिसतेदार ल घटना के जानकारी दे दे।

शेखचंद ड्राइवर ह रामनाथ के बड़े दमांद खुमान ल फोन करके बतइस कि आमापाड़ा के पहिली चार-पांच किलोमीटर गाड़ी ह पेड़ ले टकरा गे हे। आपके ससुर के मुड़ी म थोकिन चोट आय हवय। गाड़ी के सामने वाले हिस्सा ह डेमेज हो गे हवय। सुमो धर के आबे त ओला टोचन लगा के रायपुर लाय बर परही। गाड़ी के अभी फर्स्ट पार्टी बीमा हवय ओला टाटीबंध करा महेन्द्रा कम्पनी के गैरेज म ले गे बर परही। खुमान ह बुधारू ल फोन लगइस। खुमान अउ बुधारू ह सुमो गाड़ी किराया करके गिन। आमापाड़ा जा के सब झिन के आये के बेवस्था करिन। उहें ले एक ठन गाड़ी किराया करके सब झिन ल भिलाई भेजिन। खुमान अउ बुधारू पुलिस थाना के काम बूता ल निपटाके दुर्घटनाग्रस्त महेन्द्रा मैक्स बर सुमो लेगे रिहिन तेमा-टोचन लगा के धीरे-धीरे लान के रायपुर के महेन्द्र कम्पनी के शो रूम म लेगिन। गाड़ी के कागजात ल देखे के बाद ओला गैरेज म भेज दिस। गैरेज के मैनेजर ह खुमान अउ बुधारू ल आठ दिन बाद पता लगा लुहू कहिके आश्वासन दिस। ओकर बाद खुमान अउ बुधारू दुनो झिन भिलाई पहुंच गे।

भिलाई म सबो झिन सरला घर रिहिन हे। बिहान दिन दुलारी अउ हंसा अपन-अपन घर जाये के बेवस्था म लग गे। इमन दुनो झिन अपन-अपन घर चल दिन। महतारी-बाप ल इलाज पानी करवाए बर सरला ह अपन घर रखिस। रामनाथ के मुड़ी म अट्ठारा टांका लगे रिहिसे। ओमा रोज के रोज पट्टी बंधवाए बर देवांगन डॉक्टर कर लेगय। घाव ह तो सुखा गे। अब रामनाथ अउ केकती ल अपन गांव के सुरता आय बर धर लिस। रामनाथ अपन बेटी दमांद करा घर जाय बर छुट्टी मांगिस। खुमान अपन ससुर ल किहिस-अभी झन जावव। पूरा इलाज करवाये के बाद जातेव। रामनाथ कथे-अब तो घाव सुखा गे हवय। जादा होही त उही डाहर इलाज पानी करवा लुहंू। खुमान कथे-मंय सोंचत रेहेंव-मुड़ी के कारोबार आय एक घांव सीटी स्कैन करवा लेतेव कहिके। रामनाथ किहिस-सीटी स्कैन करवाये के जरूरत नइ हे। फोकट खरचा करे के का मतलब। सरला घलो घेरी बेरी अपन पापा ल कथे-''सरिता के पापा बने काहत हवय, मुड़ी के कारोबार आय थोर बहुत खून उ जमे होही ते ह सीटी स्कैन ले पता चल जही तहान निश्चिंत हो जबोन। केकती घलो किहिस-बेटी दमांद के बात ल मान ले न। उमन काहत हे ते ह तोरे बर तो आय। फेर रामनाथ ह काकरो नइ सुनिस। नवागांव जाय बर जिद्द कर दिस। इंकर जिद्द के आगू बेटी दमांद के एको नइ चलिस। खुमान ह सुमो गाड़ी किराया करके अपन सास-ससुर ल नवागांव अमरा दिस।ÓÓ

कांकेर म दीपक के ईंटा भट्ठा के कारोबार ह बढ़िया चले बर धर ले रिहिसे। बैसाखिन ह सुख म अब तो मोठ डांट सेठियइन मन बरोबर दिखे बर धर ले रिहिसे। अब धीरे-धीरे बैसाखिन के पावर घलो बाढ़त गिस। दीपक ह अब चिमनी ईंटा भट्ठा के भरोसा ट्रक, जेसीबी खरीद डरे रिहिसे। अब तो कार घलो खरीद डरिन। अब तो दीपक के कांकेर ले लेके प्रदेश स्तर तक बड़े-बड़े नेता मन ले चिन्ह-पहिचान हो गे रिहिसे। अब तो दीपक ह कांकेर विधानसभा क्षेत्र ले चुनाव लड़े के सपना देखे बर धर ले रिहिसे। ए पइत कांकेर विधानसभा क्षेत्र ह महिला सीट बर रिजर्व हो गे। दीपक ह जउन राष्ट्रीय पाट्री ले टिकिट मांगत रिहिसे ओ पार्टी ले टिकिट नइ मिलिस। अब तो दीपक ल राजनैतिक कीरा ह चाबे बर धर ले रिहिसे। दीपक ह बैसाखिन ल कांकेर विधानसभा क्षेत्र ले चुनाव लड़े बर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप म फारम भरवा दिस। कतनो मन समझाए के कोसिस करिन फेर दीपक मानय कहां? ओकर उपर तो विधायक पति के भूत सवार रिहिसे।

अब तो दीपक अउ बैसाखिन ह चुनाव प्रचार सुरू कर दिन। कतनो सियान मन गोठियावय घलो ए का नसा चढ़ गे हवय दीपक अउ बैसाखिन उपर। एक तो अभीन अभीन पनके बर धरे रिहिन हे। कतनो कार्यकर्ता तो बस दीपक ल उभराये के बूता करत रिहिन हे। हम्मन जीतत हवन दीपक भइया, हम्मन जीतत हवन, कहिके नारा लगा देवत रिहिन हे-''कांकेर के नेता कइसन हो, बैसाखिन भौजी अइसन हो। दीपक ल ए मालूम नइ रिहिसे कि जतना झन दीपक के सपोर्टर रिहिन हे उमन म कतनो झन विरोधी पारटी के खुफिया घलो रिहिन हे। जिंहा-जिंहा दीपक जावय उंकर रिपोर्ट विरोधी पारटी डाहर देवत जावय। दीपक जेमन ल खास सपोर्टर समझे उही मन खुफिया के बूता करत रिहिन। खुफिया मन तो दुनो डाहर ले नोट पिटत रिहिन हे। अउ दुनो डाहर ले फायदच-फायदा चाहे जीतय कोनो।ÓÓ विधायक के खास तो इही खुफिया मन रहितीन।

चुनाव अब जोर पकड़े बर धर लिस। चुनाव जीतत हवन कहिके दीपक ह हाथ खोल के रूपिया खरचा करे बर धर लिस। करजा बोड़ी ले के बिक्कट खरचा करिस। जेती देखते उही डाहर दीपक अउ बैसाखिन के फ्लैक्स टंगे राहय। दीपक ल तो अब चैन नइ रिहिसे। जउन ह जतने रूपिया मांगय उमन ल ओतने रूपिया दे देवत रिहिसे। अब मतदान के दिन नजदीक आ गे। मतदान होइस। रिजल्ट के पहिली रात तो दीपक अउ बैसाखिन रात भर नइ सूते रिहिन। पहिली राउण्ड म बैसाखिन ह दू सौ वोट ले लीड करिस। बैसाखिन भउजी के जिन्दाबाद के नारा लगे बर धर लेवय, एटम बम फूटे बर धर लेवय। सबो राउण्ड म आगू पिछु होवत आखिरी राउण्ड तक तीन हजार एक सौ पन्चानबे वोट ले बैसाखिन हार जथे। पूरा खुसी गम म बदल गे। हारे के बाद तो दीपक के जी बगिया गे। हारे जुआड़ी अउ हारे नेता के हाल ह एके जइसे रथे। चुनाव लड़े के पहिली बड़े भइया-भउजी अउ महतारी-बाप ह बिक्कट मना करे रिहिन हे कि चुनाव झन लड़वा दीपक बहू ल। ए सब रूपिया पइसा वाले मन के काम आय। हम्मन तो अभी-अभी पनपे बर धरे रेहेन। आखिर म भइया-भउजी अउ महतारी-बाप के बात ह सही निकलिस। जोसे जोस म चुनाव म दीपक ह बिक्कट अकन खरचा कर डरे रिहिन हे। लागा (करजा) छूटे बर कुछ जमीन बेचे पर पर गे। अब भुवन अउ निर्मला सोच म पर गे। दीपक ह घर म अंजोर करही कहिके गुने रेहेन फेर एह तो अंधियार कर दिस। अब तो फेर सम्हले बर समय लगही। धीरे-धीरे दीपक ह अपन धन्धा डाहर धियान देना सुरू करिस।

नवागांव ले खुमान करा खभर अइस कि ओकर ससुर के तबियत खराब हे कहिके। खुमान अउ सरला ह गाड़ी करके नवागांव गिन अउ ओला कार म बइठार के रायपुर के गायत्री अस्पताल म भरती करइन। अस्पताल म डॉक्टर ह मुड़ी के सीटी स्कैन करके बतइस कि मुड़ी म खून जमे हे। उही समे सीटी स्कैन करवा के दवई खाय रहितिस ते ठीक हो जय रहितिस। डॉक्टर जानत रिहिसे कि रामनाथ के बीमारी ह बाढ़ गे हे, ठीक नइ होवय कहिके तभो ले रामनाथ के परिवार ल आस्वासन देथे कि फिकर झन करव, सब ठीक हो जही। ओकर बाद डॉक्टर ह दवई-बूटी दे के छुट्टी कर देथे। रामनाथ ल नवागांव लेग जथे। केकती बड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के रिहिसे। पति ल परमेश्वर मानय। अपन परमेश्वर के जतन म कोनो किसम के कमी नइ करिस।

महीना दिन बाद रामनाथ के हालत बिगड़े बर धर लिस। अस्पताल लेगे के सबो तइयारी कर डरे रिहिसे। ड्राइवर ह गाड़ी ल मुहाटी के आगू म लान के खड़ा करिस। रामनाथ ल चिंगी चांगा उठा के कार म बइठारतेच रिहिन हे ओइसने म रामनाथ ल हार्ट अटैक आ गे। अस्पताल म डॉक्टर ह बता दिस कि अब रामनाथ ह नइ हे। ओकर इंतकाल हो गे हे। सुनते भार रोहा राही शुरू हो गे। नवागांव के आवत ले रात हो गे रिहिसे। केकती ह अपन देवर ल किहिस सबो रिश्तेदार मन ल फोन लगा के खबर कर दे कहिके। सरला जब सुनिस ते रात भर रोवत रहिगे। दुलारी अउ हंसा घलो अपन बाप के दुखद घटना ल सुने के बाद उंकरो आंखी ले आंसू ह रूकबे नइ करत रिहिसे। तीनों बेटी-दमांद बिहनिया ले नवागांव जाय बर निकल गे। उहां सब गांव वाले मन रामनाथ के अंतिम बिदाई के तइयारी करत रिहिन। रोवत बिखलत रामनाथ ल संसार ले बिदा करत रिहिन। केकती बर तो-जिनगी ह परीक्षा लेवत रिहिसे। पहिली अपन जवान बेटा ल गंवइस ओकर बाद ओकर जोड़ी ल ले गे। दुख के पहाड़ टूट गे। कुछ दिन केकती के ससुर ह बहुत कोसिस करिस कि अपन छोटे बेटा के लड़का ल गोद ले लेवय कहिके फेर केकती ह साफ सुना दिस कि मंय ह काकरो लइका ल गोद नइ लेवंव। मोर तीन झिन बेटी हे उही मन मोर बेटा बरोबर आय। अब घर के सबो जिम्मेदारी ह केकती उपर आ गे। काम निपटे के बाद तीनों बेटी मन किहिन कि इहां घर म अकेल्ला कइसे रहिबे? चल हमर मन घर रहिबे कहिके फेर केकती मना कर दिस। केकती के भाई ह अपन दीदी ल किहिस ''मंय ह तोला अपन घर लेगहूं।ÓÓ हम घर चल। केकती ह मइके जाय बार तइयार हो जथे। मइके म आठ दिन बीते के बाद धियान ह नवागांव डाहर तीरे ल बर लिस।

अब केकती ह नवागांव आ गे। ओकर बड़े दमांद खुमान ल जइसने पता चलिस कि सास ह नवागांव आ गे हे कहिके तहान फेर अपन करा लाने बर ससुरार चल दिस। तीनों बेटी करा आठ-आठ दिन रेहे के बाद बेटी मन ल कहि दिस मंय ह गांव म रइहंव बेटी। जादा जरूरत परही त फोन कर दुहूं। नहीं ते मिही ह आ जहूं। गाड़ी ल सुधरवा के शेखचंद ड्राइवर ह घर लानिस। कुछ दिन बुकिंग म चलइस। गाड़ी के कोनो देखइया नइ हे कहिके ओकर नजर ह गाड़ी उपर पर गे। फेर बड़े दमांद चाहत रिहिसे कि अपन सास ल ड्राइवर ह कार म घुमावय-फिरावय अउ बाकि समय म बुकिंग म चलावय। शेखचंद ह केकती के मन ल सेवा करके जीत डरे रिहिसे। ड्राइवर ल अपन बेटा कस माने बर धर ले रिहिसे। केकती घलो अब गाड़ी ल शेखचंद ल दे बर मन बना डरिस। तीनों बेटी सुन्ता सलाह होके अपन महतारी के निर्णय ल मान के ड्राइवर ल गाड़ी दे दिन। अब केकती ल कहूं जाना राहय त इही गाड़ी ल बुक कर लेवय। ड्राइवर के राहत ले बेटी दमांद मन ल घलो थोरको चिंता फिकर नइ राहय। तीनों बहिनी ल शेखचंद कस भाई मिल गे। अब तो इंकर राखी बांधे के सउंख ह घलो पूरा हो गे। शेखचंद ल राखी बांधे के सुरू कर दिन।

अब धीरे-धीरे केकती ह सम्हले बर धर लिस। खेत खार ल रेगहा दे दिस। अपन जिनगी ल अब भगवान के मरजी आय कहिके कांटे बर धरिस। रेगहा के रूपिया मिलय ओला तीनों बेटी ल बराबर बांट देवत रिहिसे। अपनो खुस अउ बेटी मन घलो खुस। 

भुवन अउ निर्मला ह अपन छोटे बेटा करा राहत रिहिसे। चिमनी ईंटा भट्ठा ह भुवन के नाम म रिहिसे। ओह अपने नाम म रखे रिहिसे। अब बैसाखिन ह दीपक ल किहिस कि सरिता ह बिहाव के लइक हो गे। एकाद साल म कहूं सगा उतर जही त हम्मन ल घलो खरचा करे बर परही। इही पाय के मंय काहत हवं कि ससुर ल बोल अब दुनो भाई के बंटवारा कर देवय। दीपक ह बंटवारा वाले बात ल अपन पिताजी करा रखिस ''अब बड़े भइया ल अलग कर देते तहान बने होतिस। भुवन ल दीपक संग रहना रिहिसे। भिलाई म ओकर मन ह माड़े नही। दीपक के बंटवारा वाले बात ल भुवन ह गुने बर धर लिस। भुवन धलो अपन छोटे बेटा बर जादा सोचे बर धर लिस।ÓÓ

बड़े बेटा बहू तो नौकरी-चाकरी चाले आय अउ बहू सरला घलो बहिनी-बहिनी हवय। खुमान ल तो अपन ससुराल ले घलो धन मिलही। भुवन ह ए बात ल निर्मला करा गोठियाइस। निर्मला किहिस नतनीन ह बिहाव करे के लइक हो गे हवय। ओकर बिहाव ल जुरमिल के धूमधाम ले कर देथन तहान बंटवारा ल देवत रहिबे। भुवन ह निर्मला ल समझाए म सफल हो गे कि बड़े बेटा बहू मन दुनो झिन नौकरी म हावे उपराहा म बहू ल ओकर मइके ले घलो पूंजी मिलही। अब तो दीपक के चिन्ता हवय। ओला ईंटा भट्ठा ह मिल जही तहान दुनो बेटा सुख के जिनगी काटही। निर्मला किहिस त हमर सम्पत्ति म तो दुनो बेटा के अधिकार हवय। भुवन ह निर्मला ल खिसिया के कहि देथे कि तंय ए सब मामला म झन पर, ओ सब ल हम्मन सम्हाल लेबोन। भुवन ह दीपक ल कथे अब बता बांटा-बांटा कहिथस त का करना हे तेला। दीपक कथे-आप बंटवारा के प्रस्ताव ल लेके बड़े भइया करा भिलाई जा, ओह का कथे तेह समझ म आ जाही  तहान उही हिसाब ले प्लानिंग करबोन। 

भुवन ह बंटवारा के प्रस्ताव ल लेके खुमान करा पहुंचिस। छुट्टी के दिन के सेती खुमान ह आज घरे म रिहिसे। भुवन ल रिक्सा ले उतरत देखिस तहान सरिता ह खुस हो गे, खुशी म चिल्ला चिल्ला के किहिस मम्मी दादा आ हे। सरला घलो खुस होके लोटा म पानी धर के हाथ गोड़ धोये बर पानी देके पाय लागी करिस। खुमान घलो पाय लागी करके अपन पिता जी ल खुर्सी म बइठारिस चाहा पानी पिये के बाद खाना खइन तहान खुमान ह घर डाहर के हाल चाल पूछिस। खाना खा के आराम करे के बाद भुवन ह खुमान ल किहिस-''थोकिन घरेलू गोठ गोठियाना रिहिस बेटा, अकेल्ला म गोठियातेन। खुमान कथे-अइसे कुछु बात नइ हे ददा जउन भी बात हे तेला सब झिन के आगू म गोठिया किहिस। फेर भुवन के हिम्मत नइ होइस, बहू के आगू म गोठियाये के। भुवन कथे-कुछ खास बात आय, अकेल्ला म गोठियाबोन। चल न मैत्री गार्डन म चल उहें बइठ के गोठिया लेबोन। खुमान ह अपन पिता जी ल फटफटी म बइठार के मैत्री बाग लेगिस। उहें बाप-बेटा बेंच म बइठ के गोठियाना सुरू करिन। खुमान ह कथे-दाई तो बने हे न? भुवन कथे-हव बेटा, तोर दाई बने हवय। खुमान पूछथे-दीपक अउ बहू बने हवय? भुवन कथे-हव, वहू मन बने हवय। खुमान कथे-अइसे का बात आय तेमा अकेल्ला गोठियाय के जरूरत पर गे। भुवन कथे-जरूरत पर गे बेटा, बात करे के।

खुमान-काय बात आय पिता जी?

भुवन-दीपक काहत रिहिसे।

खुमान-काय काहत रिहिसे?

भुवन-बंटवारा।

खुमान-का, बंटवारा!

भुवन-हव बेटा।

खुमान-अइसे का बात हो गे ददा तेमा बंटवारा के जरूरत पर गे।

भुवन-मोर जीयत-जीयत, मंय दुनो भाई के बंटवारा कर देतेंव कहिके गुनत रेहेंव।

खुमान-अपन जीयत-जीयत बंटवारा झन कर ददा। मोर उपर भरोसा कर। दीपक ल जउन चाही मंय दे दुहूं। अभी सब झिन मिलजुल के रहिथन अउ घर के विकास ल आगू बढ़ाथन।

भुवन-फेर दीपक ह तो बंटवारा बर अड़ देहे, अब कइसे करंव तेला बता?

खुमान-दीपक के बात ल छोड़ ददा, तंय का चाहत हस। का बंटवारा दे के तंय खुस रहिबे?

भुवन-हव बेटा मंय खुस रहूं।

खुमान-बंटवारा करे ले महतारी-बाप खुस रहू त मोर बर एकर ले बड़े पुन्न अउ का हो सकथे।

खुमान के तबियत खराब चलत रिहिसे। खुमान ह अपन ददा ल समझाए के बहुत कोसिस करिस फेर भुवन ह नइ मानिस। खुमान ह किहिस एकाद साल रूक जा ददा तहान बंटवारा कर देबे। भुवन कथे-जब बंटवारा करनच हे त अभी निपटा देथन। खुमान कथे-ले त अवइया इतवार के दीपक संग आ जहूं। भुवन ह कलाकार रिहिसे। चेहरा-मोहरा ल तो ओथार दे रिहिसे फेर मने मन खुस रिहिसे। चलो खुमान ह राजी तो हो गे। गोठ बात पूरा होय के बाद क्वार्टर पहुंचिन तहान बिहान दिन बिहनिया ले कांकेर जाय बर बस बइठ गे।

कांकेर जाय के बाद भुवन ल दीपक ह पूछिस-बंटवारा संबंधी कुछु गोठ बात होइस?

भुवन-हव।

दीपक-का काहत रिहिस भइया ह?

भुवन-ओह तो बंटवारा बर राजी नइ होवत रिहिसे फेर मंय ह ओला मना ले हवं।

दीपक-त कब बइठबो केहे हे?

भुवन-इतवार के बताय हे।

दीपक-त कइसे करना हे तेला बता।

भुवन-मंय काला बतावंव, मोला तो तोरे करा रहना हे। अब तिही बता तोला का चाही तेला, त ओकरे हिसाब ले रणनीति बनाबोन।

दीपक-बड़े भइया-भउजी ह तो भिलाई म घर बना डरे हे। 

भुवन-त तहू तो ओकर ले बड़े घर बना डरे हवस। घर के बात ल छोड़। तोला का-का चाही, तेला बता कहिथंव।

दीपक-भइया-भउजी तो नौकरी म हवय। उंकर तो बेवस्था हो गे हे फेर मोर बर बेवस्था ईंटा भट्ठा ह दिखत हे। ईंटा भट्ठा ह मोला मिल जतिस त बढ़िया हो जतिस।

भुवन-त ओतेक बड़े पूंजी ह तोर अकेल्ला के कइसे हो जही दीपक?

दीपक-हो जही न ददा।

भुवन-वो कइसे?

दीपक-इंर्टा भट्ठा बर हकन के करजा निकाल देबोन। जउन ह करजा ल छूटही ओह ईंटा भट्ठा ल राखही कहि देबोन।

भुवन-त कतेक अकन के करजा निकालबो?

दीपक-करजा ल जानबूझ अतेक जादा बता देथन कि भइया-भउजी ह करजा ल छूटे बर मना कर देवय।

भुवन-तभो ले कुछु तो सोचे होबे, फोकटे फोकट कतना के करजा बता देवन।

दीपक-सोचे हवं न।

भुवन-कतेक?

दीपक-चालीस लाख के करजा बताबो तहान भइया-भउजी खुदे ईंटा भट्ठा ल छोड़ दिही।

भुवन-ठीक काहत हस। फेर सिरिफ करजा बताये भर म काम नइ चलय। खुमान ल हमर बात ल मनवाय बर बइगा करा घलो कुछु उपाय करवाये बर परही।

दीपक-त बंटवारा बर भइया ह कब बलाय हवय?

भवन-अवइया इतवार के बलाय हवय।

दीपक-त बइगा करा कब जाबोन?

भुवन-बइगा ह सनिच्चर के बइठथे। उही दिन ओकर करा जाबोन। ओह जइसन बताही ओइसने करबोन।

(एती सरला ह खुमान ल पूछिस काली ददा संग मैत्री बाग गे रेहेव का बात रिहिसे तेमा ददा ल तोर संग अकेल्ला गोठियाय के जरूरत पर गे?)

खुमान-ददा ह काहत रिहिसे अपन जीयत जीयत दुनो भाई ल बंटवारा दे देतेंव कहिके।

सरला-त आप का केहेव?

खुमान-मंय केहेंव अपन जीयत जीयत बंटवारा झन दे कहिके। हमर मन उपर भरोसा कर, दीपक जउन चाही ओला दे देबोन अभी तीज तिहार बर आवत-जावत हवन वहू ह छूट जही। गांव घर आये के रद्दा ल काबर तोरत हवस ददा!

सरला-बने तो केहे।

खुमान-बने तो केहेंव सरला फेर नइ मानिस। बंटवारा देबर उमन इतवार के अवइया हे।

सरला-अतेक हड़बड़ी काबर हो गे हे?

खुमान-दीपक के चालाकी आय, भट्ठा म कमई जादा हे। अब ओह सोंचत हवय कि मंय ह मिहनत करके पूंजी बनाहूं अउ फोकट म बड़े भइया ल अपन बनाय पूंजी के बांटा देबर परही कहिके। ओह ददा उपर दबाव बनावत हवय।

सरला-ददा का कथे, का ददा ह बंटवारा दे के बाद खुस रहूं काहत हे?

खुमान-हव, खुस रहिबोन काहत हे।

सरला-त बंटवारा दे ले दाई-ददा खुस रही त उंकर खुसी के सेती उमन जइसन काहत हवय उही ल मान जथन। (बंटवारा के नाम ल सुन के सरला ह सुुसक सुसक के रोए बर धर लिस।)

खुमान-(सरला ल चुप करावत) ए समय ह रोये के नोहे सरला बल्कि हिम्मत के आय। हम्मन ल हिम्मत ले काम ले बर परही।

सरला-अब तिंही बता सरिता के पापा सरिता ह बिहाव के योग्य हो गे हे। कतेक सुग्घर सपना देखे रेहेन। सब झिन मिल के सरिता बेटी के बिहाव ल बड़ा धूमधाम ले करबोन कहिके।

खुमान-मोला इंकर सब चाल ह समझ आवत हवय। सरिता के बिहाव म खरचा करे बर परही कहिके डर के मारे बंटवारा देवत हवय। 

सरला-त सास-ससूर ल तो सोंचना चाही।

खुमान-उंकरो मजबूरी हे सरला, उमन ल उंकरे करा रहना हवय। दीपक के दबाव म दाई-ददा आ गे हे। उपराहा म भाई-बहू ह आगी म नून डारे के बूता करत होही। एह न दीपक के दिमाक आय न दाई-ददा के ए सबो दिमाक ह भाई-बहू के आय।

सरला-महूं ल ओइसने लगथे सरिता के पापा।

खुमान-त हमु मन सुन्ता सलाह कर लेथन। बांटा म काला काला हम्मन रखबोन अउ काला दीपक ल देबोन।

सरला-उमन तोर बात ल मानही त उमन तो खुदे योजना बना के आही।

खुमान-त ईंटा भट्ठा ल कइसे करबोन?

सरला-आप बतावव।

खुमान-मंय सोंचत हंव ईंटा भट्ठा ल आधा-आधा बांट लेथन कहिथंव।

सरला-ए बंटवारा कोनो जमीन अउ घर द्वार बर थोरे आय, ईंटा भट्ठा के आय।

खुमान-अब तिंही बता, हम्मन ल का करना चाही?

सरला-अब मंय काला बतावंव। सास-ससुर यदि ईंटा भट्ठा ल देवर बाबू ल देना चाहत हवय त सबो ल उही ल दे दे। वइसे भी अपने ह मेहनत करत हे। जउन भी दिही ओला लक्ष्मी के परसाद समझ के झोंक लेबे। काहे कि सास-ससुर के असीस ह हम्मन ल पुरही।

खुमान-(सरला के बात ल सुन के दंग रहि जथे।) ए का काहत हस सरला? लोगन ह नान नान चीज के बंटवारा कर डरथे। हंसिया और टंगिया ल आधा बांट डरथे। जमीन ल घलो कुटका कुटका करके बांटा कर डरथे अउ तंय सबो ल दीपक ल दे बर काहत हस।

सरला-मंय बने काहत हवं। हमला दूसर घर के बांटा हिस्सा म नइ जाना हे। हमला अपन सास-ससुर के सुख ल देखना हे। उंकरे असीस ह हम्मन ल पुरही।

खुमान-दीपक ह दाई-ददा के बंटवारा करहूं कहि त का करना हे?

सरला-दीपक ल बोलबे दाई-ददा के बंटवारा नइ करन उमन ल जिंहा बने लागही उमन उहें रहि सकत हे। मान ले दीपक ह दाई-ददा ल नइ राखंव कही त हम्मन राखबो। उंकर सेवा करबोन फेर दाई-ददा ल नइ बांटन।

खुमान-मंय तो धन्य हो गेंव सरला तोर सही गोसइन पा के, मोर जिनगी म अंजोर आ गे।

सरला-मोरो जिनगी म अंजोरी आ हे सरिता के पापा फेर ए के ठन दुख हे।

खुमान-का के दुख हवय?

सरला-बांटा होय के बाद हमर गांव, हमार माटी, हमर तिहार बार बिरान हो जही सरिता के पापा।

खुमान-तिहार बर भाई घर जाबोन सरला।

सरला-बांटा के बाद तो सबो बंटा जथे। भाई के मया बंटा जथे। महतारी-बाप के दुलार बंटा जथे। अउ तिहार बार ल एके म रहिके मनाय के आनंद ह अलग होय के बाद नइ मिलय। बांटा के बाद तो भाई घलो बांटे भाई परोसी हो जथे।

खुमान-फेर का करबे सरला, हमर भाग म तो अइसने लिखाय हवय। फेर बांटा तो पैदा होतेच ही लिखा जय रहिथे। भाई मन के मया भले बंटा जही सरला फेर लइका मन बर महतारी-बाप के मया ह नइ बंटावय। महतारी-बाप ल तो सबो लइका के फिकर रथे। महतारी-बाप मन ह तो चाहथे लइका मन दूधे खाय, दूधे अचोवय। चार गांव के गउंटिया बनय।

सरला-हम्मन ल तो हमरे गांव ले अलग करइया हे सरिता के पापा त चार गांव के गउंटिया कहां ले बनबे?

खुमान-अइसे बात नोहे सरला, हमर भाई ह गांव के गउंटिया रिही ते हमु मन गउंटिया कहाबोन।

सरला-गउंटिया होवई अउ कहवई म बहुत अन्तर हे सरिता के पापा।

खुमान-तंय कइसे गोठियाथस सरला, समय के संग सब ठीक हो जही।

सरला-बने काहत हस। इतवार के बंटवारा देबर आही त उमन जइसन-जइसन चाही ओइसन-ओइसन कर देबे। हम्मन हमर मिहनत ले कमा लेबोन। अरे जब उमन घर म ईंटा रही के एक ठन ईंटा नइ दिन त हमर बर तो ईंटा भट्ठा ह माटी आय माटी। ओइसने सरिता के बिहाव ल घलो कर लेबोन।

खुमान-ए होइस न बात। सरला तिही मोर हिम्मत अस। आज मंय जउन भी हवं ओह, तोर परसादे आय। आज पूरा परिवार ह तोरे परसादे अतेक उन्नति करे हवन। जब ले तोर पांव ह हमर घर म परे हे तब ले सरस्वती अउ लक्ष्मी दुनो के किरपा बरसे हे। आजो घलो जउन दीपक बर सोंचत हस एह बहुत बड़े बात आय। सरला नाम हे ओइसने सरल हवस।

सरला-बस बस मोला सरस्वती अउ लक्ष्मी झन बना। हमर मन बर तो दाई-ददा ह भगवान आय। दाई-ददा मन के खुसी के कारन हम्मन अपन खुसी के बलिदान कर देबोन।

खुमान-बने काहत हवस सरला। दाई-ददा ले बड़े ए दुनिया म कोनो नइ हे। इंकर सेवा ही हमर पूजा आय।

भुवन अब छोटे बेटा दीपक के मोह म ओला कइसनो करके ईंटा भट्ठा ह मिलना चाही कहिके बोड़ेगांव वाले बइगा घर सनिच्चर के नरियर धर के गिस। बइगा घर आना-जाना भुवन के पहिलिच्च ले रिहिस। भुवन ह नरियर अगरबत्ती ल बइगा ल देके अपन सबो बात ल बतइस। काली बड़े बेटा खुमान करा बंटवारा बर जाना हे तिही पाय के छोटे बेटा ल धर के आपके दरबार म आय हवं। बइगा कथे-तुमन का चाहत हव? भुवन कथे कि मंय चाहत हवं, कइसनो करके चिमनी ईंटा भट्ठा ह दीपक ल मिलना चाही। बइगा कथे बूता हो जही। सुन के भुवन ह पूछथे-त खरचा कतेक आ जही बइगा महराज? बइगा कथे कुछु खरचा नइ हे। काम होही तहान जउन दान करना होही कर दुहू। भुवन पूछथे त अभी का करना हे? बइगा कथे अभी कुछ नइ करना हे ए ढोलकी देवत हवं तेला पहिन लव अउ भभूत देवत हवं तेला अपन माथ म लगा के जाहू तहान खुमान ह हव के सिवाय कुछ नइ काहय। खुमान के आगू म तुमन बइठहू। मंय तुंहर हाथ म करिया धागा बांध देथंव। इही धागा के परताप ले खुमान तुंहर गोठ म बंधा जही तहान तुमन ल कुछ केहे बर नइ लागय एकर बाद खुमान ह अपने आप तुमन ल ईंटा भट्ठा ल दे बर हामी भर दिही। बइगा महराज करा भुवन अउ दीपक ह हाथ म करिया धागा बंधवा के घर लहुट गे।

इतवार के दिन भुवन अउ दीपक ह बइगा के दे भभूत ल माथ म लगा के भिलाई जय बर निकलिन। भिलाई पहुंचे के बाद खाना ऊ खा के बंटवारा के गोठ बात बर बइठिन। भुवन सियान होके अपन दुनो बेटा ल कथे त बता ल सुरू करे जाय। बात ल टोक के खुमान अपन ददा अउ भाई ल एक घांव अऊ समझाथे तंय ददा मोर उपर भरोसा रख दीपक ल जउन जउन चाही मंय ओला बाद म दे देहूं फेर अपन जीयत ले बांटा के बात झन कर। भुवन कथे-नहीं बेटा मंय ह मन बना डरे हवं कि मंय दुनो भाई ल बंटवारा देके अलग कर देना चाहत हवं। खुमान कथे-कइसे दीपक का तहंू ह हमर मन ले अलग होना चाहत हस? दीपक कथे-हव भइया महूं ह अलग होना चाहत हवं। इंकर बात ल सुन के खुमान कथे देख लव भई यदि बंटवारा करके तुमन ल खुसी मिलत हे त एकर ले बड़े बात अउ का हो सकथे। खुमान कथे-ले त तुही मन बतावव का चाहत हव ते। भुवन कथे-ईंटा भट्ठा के तो चालीस लाख करजा हवय। जउन ह ओ करजा ल छूट्ही ओह ह ईंटा भट्ठा ल राख ही अउ नदिया करार के कछार जमीन ह चार एकड़ हवय तेला दुनो भाई ल दू-दू एकड़ दे देथंव। खुमान ह दीपक ल पूछथे-तंय बता दीपक तोर का बिचार हे? दीपक कथे-ईंटा भट्ठा ल मंय राखहूं अउ करजा ल छूटहूं। खुमान ह किहिस-तुमन हमला करजा वरजा झन बतावव दीपक। चिमनी ईंटा भट्ठा ल तंय मेहनत करके चलावत हस। हम्मन तो तोर भउजी संग पहिली ले सुंता सलाह होगे हवन कि चिमनी ईंटा भट्ठा ल तोला देना हे कहिके। रहिस बात नदिया तीर के दू-दू एकड़ जमीन के बात त वहू म तोला अऊ चाही त देबर राजी हवन। अब तो भुवन अउ दीपक के चेहरा म खुसी झलकत रिहिसे। दीपक ह टूप-टूप अपन बाप अउ भाई के पांव परिस तहान घर जाबो कहिके जाय बर धरिस। सरला घलो जाय के बखत इंकर मन के पांव परिस।

भुवन अउ दीपक के जाय के बाद खुमान, सरला अउ सरिता तीनों झन फफक-फफक के रोय बर धर लिन। खुमान ह रोवत-रोवत सरला ल काहत रिहिसे-हमर सिर ले बाप के हाथ तो ओकर जीते जी हट गे। सरला घलो रोवत-रोवत कथे-अब तो हम्मन ल अपन ले बिरान बना दिन। अब तो गांव के तीज तिहार ह घलो हमर मन बर दुरिहागे। सरिता ह अपन मम्मी-पापा ल चुप करइस। चुप हो जव इही हमर भाग म लिखाय हवय, एला तो स्वीकारे बर परही।

खुमान घर दुख के पहाड़ टूट गे ओती भुवन अउ दीपक खुसी मनावत रिहिन। भुवन अउ दीपक खुमान घर ले निकल के मिठई अउ चढ़ौतरी धर के सबले पहिली बइगा घर गिस। इमन ल लागत रिहिसे कि ए सब बइगा के योजना के मुताबिक होय हे। फेर अइसे कोनो बात नइ रिहिसे। चिमनी ईंटा भट्ठा ल दीपक ल देबर खुमान अउ सरला ह पहिली ले सुन्ता सलाह हो गे रिहिन हे। बल्कि भुवन घलो जानत रिहिसे कि जउन चालीस लाख के करजा बतावत हवन ओह सब लबारी आय कहिके। खुमान घलो जानत रिहिसे कि ईंटा भट्ठा ल हड़पे बर जानबूझ के चालीस लाख के करजा बतावत हे कहिके।

भुवन ह जउन चाहत रिहिसे दुनो बेटा के बंटवारा करके उंकर घर ल बसाय बर ओह सफल हो गे। बैसाखिन ह बिक्कट खुस रिहिसे। अब तो सरबस पूंजी के मालकिन हो गे रिहिसे। घर म बैसाखिन के चलय जतेक नता रिस्ता वाले मन दीपक घर आवय त बैसाखिन बिक्कट मया करय। एक दिन के रहवइया  सगा-सोदर मन अठोरिया-पंदरही दिन राहय। सबके आय-जाय बर खरचा करय, सगा-सोदर मन दीपक के घर आवय-जावय सब खुस राहय। भुवन अउ निर्मला ह घलो बिक्कट खुस राहय। दीपक अउ बैसाखिन बर सबके मया पलपलावय ओतके खुमान अउ सरला ह परिवार के मया बर तरसे ल बर लिन। सरिता ह तो दादी-ददा के मया बने ढंग ले पायेच नइ रिहिसे। देखते देखत देवारी आ गे। पहिली तो आठ-दस दिन पहिलीच देवारी मनाये बर कांकेर जाय के तइयारी करत रिहिन। पहिली गांव जाय बर बिक्कट खुस राहय। एसो बांटा होय के बाद तिहार बार बर गांव जाय के रद्दा बंद हो गे रिहिसे। पहिली तो पूरा परिवार बर कपड़ा लत्था ले के घर जावय।

एसो तो अपन तीनों झिन भर बर कपड़ा ले रिहिन हवय। फेर मन म उमंग नइ रिहिसे। पहिली सब झिन मिल के कांकेर म लक्ष्मी पूजा करय, देवारी अउ मातर मनावय, कांकेर के सब झांकी ह आंखी-आंखी म झूलत रिहिसे। खुमान ह एसो फटाका, सुरसुरी घलो ले रिहिसे फेर उदसहा मन ले। तीर तार घर वाले मन सब अपन अपन गांव देवारी मनाय बर जावत गिन। अब तो आस परोस घलो सुन्ना हो गे। लक्ष्मी पूजा के दिन भुवन ह दीपक ल किहिस-तोर बड़े भइया ल फोन कर दे, देवारी मनाय बर आहू कहिके। दीपक ह अपन बड़े भइया ल देवारी मनाय बर आहू कहिके फोन करिस। खुमान घलो देवारी तिहार के बधई देवत हव कहि दिस। फोन बंद करे के बाद आंखी ले बोहावत आंसू ल रूमाल म पोंछिस।

लक्ष्मी पूजा के दिन ल तो भिलाई म कइसनो करके सरला अउ सरिता ह काटिन। तभो ले खुमान ल सुरता आवय कि जब गांव जावय त लक्ष्मी पूजा करे के बाद ईसर गौरा समिति वाले मन के सहयोग करे बर रात भर जागय। नींद तो आबे नइ करय। पहाती कन सरला अउ सरिता घलो परिवार के संग गउरा चंवरा म ईसर गौरा के बिहाव देखे बर जावय। आज सब सिरिफ सुरता भर रहिगे। देवारी के दिन तो अरोसी-परोसी मन गांव चल दे रिहिन हे। सहर ह सूनसान लागय। गांव म गोवर्धन पूजा के तइयारी म लगे राहय। गोवर्धन पूजा के बाद गाय गरवा ल खिचरी खवाय तहान गाय गरूवा मन ल सोहई बंधवावय नवा-नवा कपड़ा पहिरे। राउत मन बाजा गाजा के संग नाचत कुदत, दोहा पारत मालिक परघाये बर आवय। संगे संग मड़ई निकाल के ठाकुर देव करा गोवर्धन खुंदाय बर गांव भर के सकलावय। दनादन एटम बम, मिरची फटाका अउ अनारदाना के सुरता आवत रिहिसे। खुमान, सरला अउ सरिता ह देवारी के दिन ल अभागा मन कस गुमसुम बितइन। खुमान मने मन गुनय बैरी मन ल घलो ए दिन देखे बर झन मिलय। बिना उछाह मंगल के जीवन के का आनंद। 

एती भुवन सरला अउ सरिता ह गांव बर तरसत रिहिसे ओती भुवन अउ निर्मला ह अपन बड़े बेटा-बहू बर तरसत रिहिन हे। भुवन ह अंदरे अंदर पछतावत रिहिसे। मोला दीपक के बुध म नइ आना रिहिसे। जीयत जीयत बंटवारा नइ देना रिहिसे। बंटवारा के संगे संग मया घलो बटा गे। एसो के देवारी ह भुवन अउ निर्मला बर घलो दुखदायी रिहिसे फेर दीपक अउ बैसाखिन बर तो एसो के देवारी ह भारी खुसी ले के आय रिहिसे। देवारी तिहार के संग म बंटवारा म चिमनी ईंटा भट्ठा के पोगरी मालिक होय के खुसी म एसो दीपक ह जादा फटाका फोरे रिहिसे। बैसाखिन ह गहना मा लदाय रिहिसे। घर के आगू म ट्रक, ट्रेक्टर अउ जेसीबी धोवा मंजा के खड़े रिहिसे। दस गांव के गउंटिया कस दीपक ह कुरता पायजामा पहिरे रिहिसे। एसो लागत रिहिस हवय दीपक ह दाऊ कस। ओकर पूंजी पसरा ल देख के सब ओकर पहिली ले राम राम काहय। सम्मान देवय।

तिहार के बाद धीरे-धीरे खुमान, सरला अउ सरिता मन अपन-अपन काम बूता म लग गे। अब धीरे-धीरे मन ह हल्का होय बर धर लिस। खुमान के मन ह अब भारी दुखी हो गे। घर-परिवार ले भरोसा उठ गे। खुमान ह हमेशा घर-परिवार के कार्यक्रम म बढ़ चढ़ के भाग लेवय उही परिवार अलग कर दिस। मने मन गुने रिहिसे सरिता के बिहाव ल सब झिन हंसी खुसी करबोन कहिके। दुलौरिन सरिता बेटी ल सब झिन खुसी-खुसी बिदा करबोन कहिके सोचे रिहिसे फेर सरिता के बिहाव के पहिली ओकर बाप ह बांटा दे दिस तेकर ले भारी दुखी रिहिसे। अब तो लोगन मन ले भरोसा उठे बर धर लिस। घर-परिवार कस संगी-संगवारी मन घलो उधारी म रूपिया ले के लहुटाबे नइ करिन। खुमान ह सबके काम म खड़ा होवय फेर खुमान के काम के समय सब झिन मुंहु ल मटका दिन। खुमान किरिया खा लिस आज के समे म काकरो उपर भरोसा करना ठीक नइ हे। अपने उपर भरोसा करना ठीक हे। बस खुमान अउ सरला के एके कथन राहय कि दुनिया वाले मन रूठे ते रूठे फेर भगवान झन रूठे। यदि हम्मन काकरो नइ बिगाड़े हवन त हमरो नइ बिगड़े।

खुमान सोचे रिहिसे पिताजी सामाजिक नेता आय, चार जघा के बइठइया-उठइया आय त सरिता बर सगा खोजे म ओतेक परेसानी नइ होही। फेर वक्त म ओकर बाप ह घलो काम नइ अइस। खुमान अउ सरला गुनिन अब काकरो भरोसा करना ठीक नइ हे कहिके। छत्तीसगढ़ स्तरीय युवक-युवती परिचय सम्मेलन महादेव घाट रायपुर म सरिता ल खुमान अउ सरला ह लेगे रिहिसे। भगवान के किरपा ले उहेें एक झिन छत्तीसगढ़ विद्युत मण्डल म डाटा आपरेटर के नौकरी करइया लड़का ह पसंद कर लिस। ओ लड़का ह खुमान के मोबाईल नम्बर लिस अउ अपन घर-परिवार वाले मन संग भिलाई पहुंच गे। लड़का के नाम रिहिसे सहदेव। सहदेव अउ सरिता के जोड़ी बढ़िया जमत रिहिसे। गोठ बात होय के बाद रिसता तय हो गे। खुमान अउ सरला ह भिलाई के आशीर्वाद भवन ल बुक करिन अउ बड़ा धूमधाम ले सरिता के बिहाव करिन। परिवार वाले मन ले पहिली ले कोनो आसरा नइ रखे रिहिन हे तिही पाय के पार्टी ल बफर सिस्टम म रखे रिहिसे। भुवन अउ दीपक देखते रहिगे। इमन गुनत रहिगे कि आखिर हम्मन ल थोरको पूछबे नइ करिस। आज भुवन अउ दीपक ल एहसास होवत रिहिसे कि हमर बिना इमन अतेक धूमधाम ले सरिता के बिहाव ल कर डरिन। भुवन बार-बार पछतावय कि मोला नतनीत के बिहाव के पहिली बंटवारा नइ करना रिहिसे। एके म रहितेन तेकर आनंद कुछ अउ रहितिस।

बेटी बिदा करे के बाद सब सगा-सोदर एक-दू दिन म झर गे। ईश्वर के किरपा ले बिहाव ह बढ़िया निपट गे। खुमान अउ सरला ह बेटी बिदा करे के बाद भारी दुखी होवत रिहिन हे फेर सरिता के घर बसे ले खुस होवत रिहिन हे। सरिता के बिहाव म खरचा करे बर परही कहिके भुवन अउ दीपक ह खुमान ल बांटा दे दे रिहिन हे। फेर काकरो रोके ले काम रूकै नहीं। ईश्वर के किरपा ले सबो काम बूता निपट गे अब दीपक के धन्धा ह जोर पकड़े बर धर लिस। घर म अवइया-जवइया मन के मारे चहल-पहल राहय। बैसाखिन ह अपन मइके के घर-कुरिया ल घलो दीपक ल बोल के पक्का बनवा डरे रिहिसे। दीपक के घर म ओकर साढू़ सखा मन के आना जाना बाढ़ गे। दीपक घलो अब अपन ससुरार वाले मन बर हाथ खोल के खरचा करे बर धर ले रिहिसे। ए सब ल देख के भुवन के मन ह भारी कचोटे फेर कुछ कहि नइ सकय। एक दिन भुवन ह निर्मला ल किहिस-देख न दीपक ह सबो रूपिया ल अपन ससुरारे डाहर लुटावत हे। आये दिन ओकर ससुरार वाले मन महीना-महीना भर ले डेरा डारे रहिथे। देख के मोर मन ह चूर जथे। मोर मन करथे खुमान घर जा के दू-चार दिन रहितेंव कहिके सोचथंव। निर्मला कथे-इही पाये के केहे रेहेंव अभी बंटवारा झन कर कहिके फेर माने नहीं। अब कोन मुंहु ल ले के बड़े बेटा घर जाबे। भुवन कथे-हव निर्मला, दीपक के मोह म आ के ए सब कर परेंव। निर्मला कथे-अभी तो सुरू होय हे येती देखत जा अउ का-का होही तेला।

चिमनी ईंटा भट्ठा ह अब तक ले भुवन के नाम रिहिसे। दीपक के मन म ए बात के डर हमेसा बने राहय कि कहूं चिमनी ईंटा भट्ठा के बांटा आगू चल के भइया ह झन ले लेवय कहिके। अब दीपक ह चिमनी ईंटा भट्ठा ल अपन नाम म करे बर ठान लिस। दीपक के खास संगवारी प्रहलाद रिहिस। दीपक के हिम्मत नइ होवत रिहिसे कि अपन पिता जी ल बोले के कि चिमनी इंर्टा भट्ठा ल अपन नाम कर देवय। तिही पाय के प्रहलाद वकील के माध्यम ले कहवाय। प्रहलाद के बोली गुरतुर हे। मीठ-मीठ गोठिया गोठिया के बहुत अकन केस ल सकेल डरे रिहिसे। पहिली रेटही सईकिल म घुमय फेर अब तो कार ले डरे रिहिसे। प्रहलाद ह एक दिन भुवन करा गिस। भुवन के पांव परि तहान भुवन ह तीर म बइठे बर किहिस। भुवन ह पूछिस कते डाहर ले आवत हवस प्रहलाद?

प्रहलाद किहिस-कछेरी डाहर ले आवत हवं। एक ठन केस के बहस म टाईम लग गे।

भुवन-का केस आय?

वकील-दू भाई के झगरा रिहिसे।

भुवन-कइसन झगरा?

वकील-सम्पत्ति बर बंटवारा के।

भुवन-का होगे हे तेमा ?

वकील-दुनो भाई के पिता जी ह मुंह अखरा दुनो भाई ल बांट दे रिहिसे। लिखा-पढ़ी नइ होय रिहिसे। बाद म बड़े भाई ह अपन पिता जी के बात ल नइ मानत हे। ददा के दे बंटवारा ल मुकरत हवय। बहुत कोसिस करत हवंव दुनो झिन समझौता कर लेवय कहिके।

भुवन-दुनो भाई बइठ के हल कर लेतिन।

वकील-हल हो जय रहि जतिस त कोर्ट कछेरी के चक्कर काबर कांटतीन।

भुवन-त दुनो भाई बंटवारा के बखत स्टांप पेपर म लिखा-पढ़ी नइ करवा ले रहितिस?

वकील-हां, इहीच्च बात ल तो महूं काहत हवं। बंटवारा के बखत लिखा-पढ़ी हो जय रहितिस ते ए सब झगरा नइ माततिस।

भुवन-त हमु मन तो बंटवारा के लिखा-पढ़ी नइ करे हवन।

वकील-लिखा-पढ़ी के जरूरत हे कका। दुनो भाई के हिस्सा ल उंकर नाम कर दे।

भुवन-काहत तो बने हवस बेटा। मंय खेत के ल तो दुनो के हिस्सा कर दुहू फेर ईंटा भट्ठा ल जीयत जीयत दीपक के नाम नइ करना चाहत हवं।

वकील-अइसे कर कका जमीन के ल दुनो भाई के नाम कर दे अउ चिमनी ईंटा भट्ठा ल दीपक के नाम नइ करना हे त मत कर फेर मरे के बाद ईंटा भट्ठा संतु के होही कही के ओकर नाम म पावर आफ अटर्नी लिख दे तहान झंझट ले मुक्ति हो जबे।

भुवन-त ए बात ल कभू दीपक मोला बोलबे नइ करिस।

वकील-महूं ल केहे बर नइ बोले हे फेर बात उठिस त कहि परे हवं।

भुवन-ले त ठीक हे, तंय कागजात ल तइयार कर ले। पावर आफ अटर्नी के पेपर ल तइयार करके लानबे।

वकील-हव कका मंय कालिच्च पावर आफ अटर्नी के कागजात बना के स्टांप पेपर म लान लुहूं।

भुवन-ले ठीक हे।

वकील ह अपन मकसद म पूरा होय के बाद भुवन ले बिदा मांग के चल देथे। दीपक ह सकल म सीधा दिखे फेर सातिर दिमाक के रिहिसे। ओती दीपक ह पान ठेला म वकील के अगोरा करत रिहिसे। वकील ह खुसी-खुसी भुवन करा ले गोठिया के निकले के बाद दीपक ल इसारा करिस तहान दुनो झिन वकील घर गिन।

दीपक-का होइस?

वकील-सब ठीक हे।

दीपक-ईंटा भट्ठा ल मोर नाम म करे बर तइयार हो गे का?

वकील-नही।

दीपक-त का करे बर तइयार हे?

वकील-चिमनी ईंटा भट्ठा ल अपन मरे के बाद तोर नाम म पावर आफ अटर्नी दे बर तइयार हो गे हे।

दीपक-पावर आफ अटर्नी के बाद बड़े भइया हक नइ जमा सकय?

वकील-हव, कम से कम पावर आफ अटर्नी देबर तो तइयार हो गे हे।

दीपक-अउ खेत के?

वकील-ओकर दुनो के नाम म खाता फोरवा दुहूं किहिसे।

दीपक-त पावर आफ अटर्नी वाले काम ल कब करवाबे?

वकील-वो ह तो कागजात बनवाय बर कहि देहे तहान दसखत कर दुहूं केहे हे। तभो ले तहूं ह अउ भउजी ह कका-काकी मन ले बेवहार ल बने रखहू।

दीपक-वो तो सब ठीक हे। मंय ददा करा काली बिहनिया बइठहूं।

वकील-ठीक हे, महूं ह काली पावर आफ अटर्नी के कागजात तइयार कर लेथंव तहान सहुलियत के हिसाब ले दसखत करा लेबोन।

दीपक-ठीक हे, अच्छा त मंय जाथंव।

वकील-चाहा पी के जाबे भइया, काली के खरचा बर रूपिया छोड़ दे राह।

दीपक-कतेक?

वकील-देख ले, जतेक जम जय।

दीपक-ए दे अभी पांच हजार रूपिया रख। उंच-नीच ल बाद म देख लेबोन।

वकील-ठीक हे।

बिहनिया चाहा पियत-पियत भुवन ह दीपक ल कथे-मंय सोंचत हवं कि तुंहर दुनो भाई के खाता ल फोरवा देथंव।

दीपक-ठीक हे न ददा।

भुवन-एक ठन अउ बात सोचे हवं।

दीपक-का सोचे हस?

भुवन-मंय सोचत हवं बाद म दुनो भाई म लड़ई-झगरा झन होवय कहिके चिमनी इंर्टा भट्ठा ल मोर मरे के बाद तोर नाम म पावर आफ अटर्नी दे देथंव। आखिर हम्मन ल तो तुुंहरे करा रहना हे।

दीपक-आप जइसन काहव, आपके खुसी हमर खुसी आय।

भुवन-मंय वकील ल कहि दे हवं पावर आफ अटर्नी के कागजात बना डर कहिके।

भुवन-वकील ह हव किहिसे। बल्कि मंय तो सोचत रेहेंव वकील के संग म कछेरी जा के पावर आफ अटर्नी के बुता ल पूरा कर लेतेंव कहिके।

दीपक-आप जइसन काहव, मंय वकील ल आजे बोल देथंव। संगे म कछेरी चल देबोन।

भुवन-ठीक हे।

दीपक अउ वकील पूरा योजना बना के पावर आफ अटर्नी म भुवन ले दसखत करवाय म सफल हो गे। वो दिन तो दीपक ह खुसी के मारे भारी खरचा करे रिहिस। अपन घर बर मिठई लइस। वकील घर बर घलो एक किलो कलाकंद लिस। खुसी खुसी सब घर अइन वकील ह आज के खाना अपन घर म रखे रिहिसे। दीपक ह वकील के सलाह के बिना एक पांव आगू नइ बढ़य। तिही पाय के दुनो झिन के भारी दोस्ती राहय। इंकर दुनो के दोस्ती ल देखके गांव वाले अउ परिवार वाले मन घलो जलय। वकील ह अपन घर कुकरा बनवाय रिहिसे। वकील ह खाय म मास्टर रिहिसे। फेर दीपक ह मछरी कुकरा खा भले लेवय फेर बीड़ी सिगरेट अउ दारू ल हाथ नइ लगावय। बिहान दिन दीपक ह वकील ल अपन घर खाना म बलइस। बैसाखिन ह खुसी खुसी कुकरा रांधे रिहिसे। भुवन अउ निर्मला तो शाकाहारी रिहिसे। अपने मन बताथे-पहिली मांस मछरी खावत रेहेन फेर धार्मिक लाइन म आय के बाद मांस मछरी ल तियाग के शाकाहारी हो गे हवन।

अब धीरे धीरे दीपक के राजनैतिक प्रभाव बाढ़े बर धर लिस। अब दीपक अउ बैसाखिन ह जन सेवा पारटी ज्वाइन कर लिस। बैसाखिन ह तो पहिली ले तेज रिहिसे। अब तो चिमनी इंर्टा भट्ठा के मालकिन हो गे रिहिसे। रूपिया के कमी नइ रिहिसे। दीपक ए बात ल जानत रिहिसे कि यदि धन्धा पानी करना हे त राजनीति म सक्रिय रहना जरूरी हे। दीपक ह जनसेवा पार्टी के जिला अध्यक्ष पर बिक्कट कोसिस करिस। ओह सफल नइ हो पाइस फेर बैसाखिन ल जनसेवा पारटी कांकेर जिला के अध्यक्ष बनाय म सफल हो गे। अब तो दीपक ह मोबाइल म ही लाइनअप करे बर धर लिस। ईंटा भट्ठा ल बड़े मुंसी सम्हालय। एती बैसाखिन के घलो व्यस्तता ह बाढ़े बर धर लिस। पारटी काम से दीपक अउ बैसाखिन ह बिहनिया ले निकलय ते रात तक वापिस आवय। कभू कभू दीपक ह बैसाखिन संग नइ जा सकय त कार्यकर्ता मन संग अकेल्ला पठो देवत रिहिस हे। अब तो बैसाखिन ह मंच म भाषण घलो दे बर सीख गे। बड़े-बड़े नेता मन संग उठना-बइठना बाढ़ गे। घर म घलो लोगन मन के आना-जाना बाढ़ गे। घर म दीपक नइ राहय तभो ले जनसेवा पार्टी के कार्यकर्ता मन, घर म आके बइठे राहय। चाहा पानी बर एक झिन नौकर रखे रिहिन।

लोगन मन के आना-जाना अउ खरचा के चकल चउदस म भुवन अउ निर्मला ल नइ सुहावत रिहिसे। कोनो मन दारू पीके आवय त कोनो रूपिया मांगे बर आवय त कतनो मन चाहा पिये बर आवय त कुछ मन समय काटे बर आवय। घर के हालत ल देख के भुवन अउ निर्मला हलाकान हो गे रिहिसे। एक दिन भुवन ह दीपक ल किहिस-ए मिलइया-जुलइया मन के घर म आना-जाना बाढ़ गे हे बेटा। बहू-बेटी के घर आय। इंकर अवई-जवई ल मंय मना नइ करत हवं फेर इंकर मिले जुले बर घर के बाहिर आफिस बनाय बना डरते ते बने होतिस। ए सबो बात ल मुहाटी ले सपट के बैसाखिन ह सुनत रिहिसे। ससुर के बात ल सुन के बैसाखिन के तन बदन म आगी लग गे। गोठ बात पूरा होय के बाद भुवन ह अपन खोली म गिस त बैसाखिन ह अटियाय कस दीपक ल पूछिस-का काहत रिहिसे सियान ह? का कार्यकर्ता मन के अवई-जवई ल रोक देवन बड़ा सिखोय बर आय हे। दीपक ह बैसाखिन ल सांत करइस चुप राह, सब ठीक हो जही। दीपक ह सम्हाले के कोसिस करिस फेर अब तो बैसाखिन ह मुंहुफट हो गे रिहिसे। दीपक बैसाखिन के आगू म कुछू बोल नइ सकय। बैसाखिन ह पता नही का मोहनी खवा दे रिहिसे ते दीपक म मुड़गड़ा हो गे रिहिसे। ओकर आगू म कुछु हुंके न भूंके।

जब ले अपन ससुर के गोठ ल सपट के सुने रिहिसे तब ले बैसाखिन के बेवहार म बदलाव आगे। बिहान दिन नहाय बर गरम पानी मांगिस त ले दे के मुंहु ल फूलो के गरम पानी दिस। खाय के बेरा थारी ल पटक के भात दिस। बैसाखिन ह अपन सास संग घलो करू-करू गोठियाय बर धर लिस। दीपक घलो पहिली कस मीठ बोली देबर छोड़ दिस। अठोरिया-पंदरही तक इंकर बेवहार ले हलाकान हो के भुवन ह निर्मला ल कथे-ए का होवथे वो। सुख के दिन दुख पाय के नौबत आवत हे। निर्मला ह कथे-हम्मन तो ''बहू हाथ के पानीÓÓ पियत रहिबोन कहिके गुनत रेहेन फेर ए चण्डालीन ह तो जहर पियावत हे जहर। बहू ल कुछ कहीं कहि दे हस का? भुवन कथे बहू ल कुछ नइ केहेंव फेर दीपक ल बरजे रेहेंव कि बहू-बेटी के घर आय, बाहिरी वाले मन के आना-जाना ल बाहिर तक रख। घर अन्दर तक झन रख। फेर एला बहू ह सपट के सुन डरिस तइसे लागथे। पहिली तो अइसन गलत बेवहार हमर संग नइ करय। निर्मला कथे- ओकर कारण रिहिसे।

भुवन-का कारण?

निर्मला-ओ दरी चिमनी इंर्टा भट्ठा ह तोर नाम म रिहिसे। ते पाय के हमर मन के सेवा जतन ल आगू आगू ले करय। जब ले ईंटा भट्ठा ल दीपक के नाम म पावर आफ अटर्नी दे हवस तब ले इंकर बेवहार म बदलाव आगे हे।

भुवन-ठउंका काहत हस निर्मला, ए बात सच आय। तिही पाय के सियान मन काहय जीयत ले अपन धन दउलत ल अपन बेटा मन के नाम नइ करना चाही फेर मंय तो आंजत आंजत कानी कर डरेंव निर्मला। अब का करे जाय।

दीपक ह बने गोठियावय नहीं, बहू ह मुंहु ल फुलोय रहिथे। अब तो इलाज पानी म घलो धियान नइ देवत हवय। अब का करे जाय? निर्मला कथे-एकाद दिन बड़े बेटा खुमान करा जाते नही। खुमान ह दीपक ल समझातिस। भुवन कथे-मंय कोन मुंहु ले के जावंव बड़े बेटा करा। निर्मला कथे-मंय जानत हवं ओकर स्वभाव ल खुमान ह देवता आय देवता। ओह तोर बात जरूर सुनही। भुवन ह निर्मला के बात मान के कांकेर ले भिलाई जाय बर दीपक ल बस बइठारे बर किहिस। भुवन ह सांझ के होवत ले खुमान घर भिलाई पहुंच गे। भुवन ल देख के खुमान अउ सरला खुस हो गे।

इतवार के दिन रिहिसे। खुमान अउ सरला के छुट्टी के दिन रिहिसे। नासता करत करत भुवन ह खुमान ल किहिस जब ले चिमनी ईंटा भट्ठा ल दीपक के नाम म पावर आफ अटर्नी लिख के दे हवं ओकर बाद उंकर बेवहार बदल गे हे। उपर से नेतागिरी जब ले सरू करे हवय, बाहिर के मनखे मन के घर म आना-जाना जादा बाढ़ गे हवय। मंय केहेंव ए मिलइया-जुलइया मन बर घर बाहिर ऑफिस रखते तहान मोर बर बगियागे। आज काल तो छोटे बहू घलो गुरेरे-गुरेरे कस बेवहार करथे। दीपक ल थोकिन समझा देते बेटा। खुमान किहिस-मंय जानत रेहेंव बंटवारा के बाद सियान मन उपर ए तकलीफ आथे। तिही पाय के आप ले घेरी बेरी बिनती करेंव, अपन जीयत जीयत बंटवारा झन कर कहिके, फेर नइ माने। अउ फेर मंय तुंहर खुसी खातिर तुमन जइसन चाहत रेहेंव ओ सबो पंूजी ल दे देंव। आप चाहत रेहेव कि हम्मन तो नौकरी वाला अन। चिमनी ईंटा भट्ठा दीपक ल मिलना चाही कहिके। मंय तोर अउ दीपक के मंसा ल पहिली ले भांप डरे रेहेंव कि तुमन मोला काबर अलग करना चाहत हव? ताकि दीपक ह स्वतंत्र हो के अपन बर पूंजी बनावय नही ते पूंजी बनाही दीपक अउ हिस्सा दे ल परही खुमान ल। इही सब बात आय न ददा।

भुवन किहिस-वाह बेटा तंय तो सब ल भांप डरे रेहे। खुमान किहिस वो ईंटा भट्ठा बर करजा देखावत रेहेव वहू लबारी रिहिसे। मनगढं़त रिहिसे। ए सही आय ते नोहे ददा? भुवन किहिस ए सब सही आय बेटा मोला थोरको अंदाजा नइ रिहिसे कि ए सब तंय जानत होबे। ए सब तोर अउ दीपक के खेल रिहिसे। मंय यहू जानत हवं पावर आफ अटर्नी बर वकील ल दीपक ह बोलवइस होही अउ तंय भावना म बहिके तइयार होके दसखत कर देस। खैर अब ए सब बात करना बेकार हे। अब मोला का करना हे तेला बता। भुवन खुमान ल कथे-तोर से मोर इही बिनती हे कि दीपक ल थोकिन समझा देते। खुमान ह किहिस ठीक हे ददा मंय दीपक ल समझाये के कोसिस करहूं। खुमान ह अपन ददा ल किहिस-तुंहर मन ह कांकेर म नइ माढ़त हे त भिलाई म आ के राहव। हम्मन सेवा करबोन। भुवन कथे नही बेटा, पूरा जिनगी ल कांकेर म कांटे हवन त भिलाई म हम्मन नइ रहि सकन। मंय जानत हवं, तुमन मोर उपर पूरा धियान दुहू फेर मंय संगी संगवारी बिना बंबा जहूं। इहां मोर समय नइ कटही। भुवन ह खुमान ल कथे-मोला कांकेर वाले बस म दुर्ग बस स्टेशन म चढ़ा दे तहान सांझ मुंधियार ले पहुंच जहूं। खुमान ह अपन ददा ल दू हजार रूपिया दे के कांकेर वाले बस म बइठार के भिलाई आ गे। सरला ह खुमान ल पूछिस सियान ह अउ कुछु काहत रिहिसे का?

खुमान-हव, दीपक ल समझाये बर काहत रिहिसे।

सरला-तंय का केहे?

खुमान-हव कहि दे हवं।

सरला-देख फेर जादा बोलबे झन नहीं ते देवर अउ देरानी ह रिसा जही तहान फेर सियान मन ल जादा तंग करही।

खुमान-ठीक हे, मंय फोन करके समझाये के कोसिस करहूं।

बिहान दिन खुमान ह दीपक ल फोन लगइस। दीपक के मोबाईल म खुमान के मोबाईल नम्बर अउ नाम सेव रिहिसे। नाम ल देख के दीपक किहिस-पाय लागी भइया!

खुमान-खुसी राह। ददा ह बने-बने पहुुंच गे?

दीपक-हव भइया, काली संझौती कना पहुंच गे।

खुमान-अउ सब ठीक चलत हे, धन्धा पानी ह सब।

दीपक-हव भइया, सब ठीक चलत हवय।

खुमान-एक बात कहूं ते रिसाबे ते नहीं?

दीपक-नहीं भइया, आप जउन भी कइहव मोर हित बर कहू। एमा रिसाये के कोनो बात नइ हे।

खुमान-तंय आगू बढ़, बहू आगू बढ़य। ए तो हमर परिवार अउ समाज बर गौरव के बात आय फेर।

दीपक-का फेर भइया?

खुमान-ददा काहत रिहिसे-आजकल अवइया-जवइया मन के संख्या बाढ़ गे हे। हमु मन ल आराम करे के मौका नइ मिलय। अउ कार्यकर्ता मन के मिले-जुले बर बाहिर म ऑफिस बना लेते काहत रिहिसे।

दीपक-अइसे कुछु नइ हे भइया, ददा ह सक्की हे। तिही पाय के ए सब बात ल बताय हे। कुछु कही देबे त नाराज हो जथे। ओकर हिसाब ले करबे तब तक ठीक हे। ओकर बात ल नइ मानेस तहान मुंहु ल फूलो देथे। अब आपे बतावव, मंय का करंव?

खुमान-अब कइसे करबे भाई, महूं तो केहेंव भिलाई म रहि जा कहिके फेर नइ मानिस। कांकेर म ही रहूं कहि दिस। पूछ लेबे तहूं ह, मान ले कांकेर म नइ रहना चाहत होही ते भइया करा रहि सकथौ कहिके। वोइसे भी महतारी-बाप के सेवा ल तो दुनो झिन करबो केहे हवं। महतारी-बाप के बंटवारा तो करे नइ हन।

दीपक-जी भइया जी। मंय भरपूर कोसिस करहूं, दाई-ददा ल तकलीफ झन होवय।

खुमान अउ दीपक के बीच फोन म बात होवत रिहिसे ओ सबो ल बैसाखिन ह सुनत रिहिस। सुन सुन के ओकर जी ह बगियावत रिहिसे। बैसाखिन के जीव ह खउलत रिहिसे। अब तो दीपक ह अपन ददा ल किहिस-अइसे तुमन ल का दुख देेवत हवन तेमा बड़े भइया करा सिकायत करे बर चल देस। अउ तंय ह दाई, हम्मन तोला का दुख दे हवन तेमा ददा ल भइया करा भेज देस। कुछु भी तकलीफ होवत रहितिस ते हमला बता दे रहितेव। बैसाखिन अपन सास ल खिसियावत किहिस-अउ का दुख देवत हवन तेमा गली-गली ढिंढोरा पीटत हवव। का उही मन पोस दिही का? अउ तुमन इहां दुख पावत हव ते, बड़े मन घर भिलाई चल देवव। हमी मन तुंहर गरम पानी अउ दवई बूटी के ठेका थोरे ले हवन। बैसाखिन ह घेक्खर हो गे रिहिसे। अब तो सास-ससुर के थोरको इज्जत नइ करत रिहिसे। अपन छोटे बेटा के बेवहार ले हिम्मत ल नइ हारिन बल्कि संयम राखिन। एकर बाद भुवन अउ निर्मला दुनो झिन अपन बड़े बेटा बहू करा गिन। भुवन मने मन किरिया खा लिस कि अब दीपक ल सुधारे बर परही।

खुमान अउ दीपक के एक झिन बहिनी कविता रिहिस। तीजा लाय बर अपन बहिनी कविता ल बांटे रिहिन हे। एक साल कविता ल दीपक ह तीजा लाही त एक साल खुमान ह लाही। एसो खुमान के पारी रिहिस कविता ल तीजा लाय के। खुमान ह कविता ल तीजा लानिस तहान सरला घलो अपन मइके तीजा गिस ओती बैसाखिन घलो तीजा गिस। गणेश चतुर्थी के दिन फरहारी करे के बाद अपन बहू मन ल लहुटे बर कहि दे रिहिसे। बैसाखिन घलो अपन ससुरार पहुंच गे। सरला घलो भिलाई पहुंच गे। गणेश चतुर्थी के दिन दीपक ल फोन करके भुवन ह बता दे रिहिसे कि पंचमी के दिन भिलाई म सब झिन के जरूरी मिटिंग हे। दीपक ह मने मन सोंचथे आखिर का के मिटिंग होही? रात भर बैसाखिन अउ दीपक सुते नइ रिहिन। बिहनिया कार म बइठ के दीपक अउ बैसाखिन भिलाई आय बर निकलगे। दीपक अउ बैसाखिन जइसे सरला घर पहुंचिन, भुवन ह दुर्ग के वकील ल फोन करके बइलस। सबो झिन ल एके जघा बइठार के वकील ह नवा पावर आफ अटर्नी ल पढ़ के सुनइस-मंय भुवन होसो हवास म लिखत हवं कि आज ले चिमनी ईंटा भट्ठा के मालिकाना हक खुमान, दीपक अउ कविता के सामूहिक रही। एकर पहिली जउन दीपक के नाम म पावर आफ अटर्नी लिखे रेहेंव ओला निरस्त करत हवं। चिमनी ईंटा भट्ठा उपर मालिकाना हक आज ले खुमान, दीपक अउ कविता के रही। मोर फैसला आज ले लागू हो जही। दसखत- भुवन लाल।

दीपक अउ बैसाखिन फैसला ल सुन के सन्न रहि जथे। दीपक कथे-चिमनी ईंटा भट्ठा ल तो करजा के बदला निकाले रेहे। भुवन कथे-मोला जादा झन बोलवा। चिमनी ईंटा भट्ठा ल हड़पे बर का-का उपाय नइ करे रेहेन। इहां तक करजा घलो लबारी रिहिसे। खुमान अउ सरला ल तो थोरको लालच नइ रिहिसे। फेर दीपक अउ बैसाखिन ह तो पानी-पानी हो गे। दीपक अपन ददा के पांव पकड़ के रोये बर धर लेथे। मोर गलती के अतेक बड़ सजा झन दे ददा। बैसाखिन ह अपन सास के पांव ल धर के माफी मांगथे। महूं ल माफी दे दे दाई। हम्मन तुंहर थोरको खियाल नइ करेन। बैसाखिन ह अपन जेठानी ल कथे-मोला माफी दे दे दीदी। दाई-ददा ल हम्मन दुख दे हन। उंकर मान-सम्मान के खियाल नइ रखे हन। दीपक ह अपन बड़े भाई खुमान करा माफी मांगथे। अब मंय अइसन गलती नइ करंव भइया। ददा ल समझा न।

अब भुवन कथे-सुन दीपक, हम्मन कांकेर जावन अउ न भिलाई म राहन हम्मन तीरथ धाम जाबोन। पावर आफ अटर्नी के कागजात ह कविता करा रही। ओह जइसन निर्णय ले सकत हवय। कविता कथे-मोर निर्णय ल सब झन मानहूं त तो सुनाहूं। भुवन कथे-हव ले बेटी सुना। मोला मइके के धन के बांटा नइ चाही मोला तो बस एक लोटा पानी भर चाही। दाई-ददा ह बड़े भइया घर होवय, चाहे छोटे भइया घर होवय। चाहे हमर संग होवय, जिंहा उंकर मन रम जय उहां राहय। हां फेर ए पावर आफ अटर्नी ह मोर करा रही। दाई-ददा मन के जाय के बाद का करना हे तेकर फैसला बड़े भइया, भउजी अउ मंय लुहूं। एकर बाद दीपक ह अपन दाई-ददा ल कार म बइठार के कांकेर म लेगिस। ओकर बाद फेर अपन महतारी-बाप के मन लगा के सेवा करिन। अब बैसाखिन ह करू-करू गोठियावय तेह मीठ-मीठ गोठियावय। अब लगिस भुवन अउ निर्मला ल ''बहू हाथ के पानीÓÓ पिये बरोबर। कुछ दिन बाद भुवन अउ निर्मला के इंतकाल हो जथे। इंतकाल के बाद दीपक अउ बैसाखिन ह चिंता म परे राहय कि चिमनी ईंटा भट्ठा के का होही? काम बूता झरे के बाद खुमान, सरला, दीपक, बैसाखिन अउ कविता के मिटिंग होइस। खुमान कथे-ददा ह तोला फैसला सुनाय बर केहे रिहिसे। कविता कथे-कि ददा ह जउन पहिली दीपक के नाम म पावर आफ अटर्नी लिखे रिहिस उही ल सुनाबे केहे रिहिसे। बाद के पावर आफ अटर्नी ह तो दीपक भइया अउ बैसाखिन भउजी ल रद्दा देखाय बर रिहिसे। दीपक अउ बैसाखिन ह उठ के हाथ जोड़ के सबो झिन के आगू म माफी मांगिस। मोर ले जउन भी गलती होय हे ओकर बर माफी दुहू। एकर बाद दीपक, खुमान अउ कविता, सरला, अउ बैसाखिन बीते दिन ल बिसार के सुम्मत के नवा जोत जलइन।


- दुर्गा प्रसाद पारकर

7 सितम्बर 2020


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दुर्गा प्रसाद पारकर


जन्म     : 11 मई 1961

जन्म स्थान     : ग्राम-बेलौदी (मालूद), दुर्ग, छत्तीसगढ़

शिक्षा     : एम.कॉम., एम.ए. (हिन्दी)

प्रवर्तक     : एम.ए. (छत्तीसगढ़ी)

      पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर

प्रकाशित कृतियां     : चिन्हारी ''लोक-संस्कृति’‘ (2001), जस-जंवारा ''शोध’‘ (2002), मया पीरा के संगवारी ''सुवा’‘ गद्य (2011), मया पीरा के संगवारी ''सुवा’‘ पद्य (2013), छत्तीसगढ़ी नाटक ''शिवनाथ’‘ (2015), छत्तीसगढ़ी नाटक ''सुकुवा’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक ''चंदा’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक संग्रह ''सोन चिरई’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक ''सुराजी गांव’‘ (2020), लोक अभिव्यक्ति के उपन्यास ''केवट कुंदरा’‘ (2020), पारिवारिक पृष्ठ भूमि के उपन्यास ''बहू हाथ के पानी’‘ (2021), छत्तीसगढ़ी उपन्यास ''शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा देवी केवट’‘ (2022)


छत्तीसगढ़ी अनुवाद     : व्यंग्य संग्रह हरिशंकर परसाई के (2018), लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक-वीरेन्द्र तँवर (2021), चौरी-चौरा की कहानी-गौतम पांडेय (2021), भारतीय मूर्तिकला का परिचय-प्रभात रंजन (2021), निर्मला, उपन्यास-प्रेमचंद (2021)


छत्तीसगढ़ी स्तंभ     : ''आनी-बानी के गोठ’‘ छत्तीसगढ़ी व्यंग्य (दैनिक रौद्रमुखी स्वर) 1992-1994

      ''चिन्हारी’‘ छत्तीसगढ़ी निबंध (दैनिक भास्कर) 1995-2000


संपादन     :  ''लोक मंजरी’‘ छत्तीसगढ़ी-1995, ''छत्तीस लोक’‘ छत्तीसगढ़ी-1995, ''धरोहर’‘ छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-1998, ''अपन कद काठी ले बड़का साहित्यकार-डुमन लाल ध्रुव’‘ व्यक्तित्व अउ कृतित्व-2019


सम्मान     : ''छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग’‘, छत्तीसगढ़ शासन, ''पद्मश्री पूनाराम निषाद’‘ सम्मान-2019, ''बिसम्भर यादव’‘ सम्मान-2013, ''प्रेम साईमन’‘ सम्मान-2014, ''केयूर भूषण’‘ सम्मान-2021, ''शिवनाथ स्वाभिमान’‘ सम्मान-2021, ''साहित्य पुरोधा’‘ सम्मान-2017, ''छत्तीसगढ़ी लोक कला रत्न’‘ सम्मान-2006, ''वीणापाणी साहित्य’‘ सम्मान-2015, ''साहित्य सृजन’‘ सम्मान-2013, ''छेरछेरा’‘ सम्मान-2018, ''धरती पुत्र’‘ सम्मान-2013, ''साहित्य’‘ सम्मान-2011, ''पं. दानेश्वर शर्मा स्मृति’‘ सम्मान (2022)


विशेष     : राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद रायपुर (एस.सी.ई.आर.टी.) द्वारा छठवीं ले आठवीं कक्षा तक कहानी संग्रह (2022) बर कहानी लेखन ग्रुप के सदस्य।

न्यूज 18 डॉट कॉम नई दिल्ली म 21 अक्टूबर 2021 ले सरलग छत्तीसगढ़ी लेखन प्रकाशित।


पता     : केंवट कुंदरा, प्लाट-03, सड़क-11, आशीष नगर (पश्चिम), रिसाली, भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़-490006

मोबाइल     : 98274-70653, 79995-16642, केतन पारकर (पुत्र) 93404-26863, 8878167832


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