Friday 17 June 2022

जगदलपुरहीन माँ छिन्द वाली श्री महाकाली*


 

*जगदलपुरहीन माँ छिन्द वाली श्री महाकाली*



*दुर्गा प्रसाद पारकर*

 


                        

छत्तीसगढ़िया मन ल एसो आमा अथान बर लुलवाए ल परगे हे। गरती तो दूर के बात हरे। बीते दिन भिलाई जगदलपुर गेंव। रद्दा भर आमा के फर नइ दिखे ले आमा के मऊर कस मोर तिसना ह झरगे। फेर जब जगदलपुर म छिंदवाली माई के कोरा म पहुंचेंव त मोर मन के भरम ह टूटिस कि एसो कोनो जगह आमा नइ फरे होही का? काबर कि दाई के दुवार म लटलट ले फरे आमा ह माई के शोभा बढ़ावत रिहिस हे। अकती के बिहान भर पूरा बस्तर जिला माटी तिहार मनाए म मस्त रिहिसे त जगदलपुर म एम.आर.निषाद जी ह मां छिन्द वाली श्री महाकाली के पूजा पाठ म मस्त रिहिसे। एम. आर. निषाद जी के मानना हे कि देवी के प्रताप ह दूरिहा दूरिहा ले बगरही। तभे तो जगदलपुर म मां दंतेश्वरी, राजमहल, म्यूजियम आदि शिल्प के संग म देखे के लइक जघा म मां छिंदवाली माता महाकाली के नाव घलो जुड़गे हे।

रामगोपाल यादव के मुताबिक सन् 1978 के आसपास लोगन मन ल एहसास होइस कि छिंद पेड़ म देवी के वास हे। भक्त मन हर मंगल के उदबत्ती जलाए बर धर लीन। सन् 1982 में चौड़ी बनीस जेला 1984 म चिकनइस। सन् 1992-93 में ढोल मंजीरा के थाप म माई के सेवा बजाये बर धरिन। जिंहे श्रद्धा अऊ विश्वास हे उहें आस के महल अटारी खड़ा करे म जादा टेम नई लगे। तभे तो देवी के किरपा ले भीतर म चार-चार अऊ बाहिर म पांच-पांच कालम खड़े होगे। मंदिर कमेटी वाले मन मने मन गुने ल धरिन कि अब एक डाहर मंदिर ल पूरा करे बर कइसे ऊंचाए जाए काबर कि गर्भ गृह म छिंद पेड़ हे जेमा देवी विराजमान हे।

देवी अपन भक्त मन के पुकार ल सुनिस। तभे तो छिंद पेड़ ह अपने-अपन बिना कोनो नुकसान के अपन जघा ल छोड़ दिस ताहन कमल यादव मन कस संगवारी मन संग मिल के एम. आर. निषाद जी ह जन भावना के कदर करत चार लाख रुपिया के मंदिर बनवइस | जिंहा जयपुर ले चालीस हजार रुपिया के मूर्ति लान के  29 अप्रेल 1998 अकती के दिन जगदलपुरहीन माँ छिंद वाली श्री महाकाली के स्थापित करिन।

मोती तालाब पारा के रहवइया मन बतइन पहिली छिंद पेड़ ले सटे करिया पथरा रीहिस जेला काली कंकालीन के नाव ले जानत रेहेन। कतको मन इही ल तेलगीन देवी घलो काहत रिहिन। अब लोगन मन के मानना हे कि छिंद पेड़ म देवी बिराजे के तेकरे सेती मां छिन्द वाली माता महाकाली के नाव ले जगजाहिर होगे। देवी के महिमा भारी हे। अइसे केहे जाथे 

सन् 1981 के घटना आय जब स् देवनाथ ह दारू पी के छिंद पेड़ ल लात मार के अपमानित कर दिस। उसी दिन अधरतिया देवी दर्शन दिस जेला तीर म सुते साहू जी ह आधा डर आधा बल कर के देखत राहे। अइसन तो कभू देखे नइ रिहिस जिनगी म बिचारा ह। दस फीट ऊंच देवी ह धूप छांव रंग के लुगरा पहिरे चमचम चमचम करत रिहिसे। पीड़री तक चूंदी बगरे रिहिस। देवी के तन ले तेज प्रकाश निकलत रिहिस। हाथ म त्रिशूल धरे दक्षिण दिशा वाली देवी ल देख के साहू जी ह तो घबरा गे रिहिस। देवी अपन सहेली संग देवनाथ के घर तक पहुंचीस ताहन साहू जी सुतगे। बिहन्चे उठ के देखथे त देवनाथ ल माता आगे रिहिस। माता सेवा वाले मन किहिस कि देवी से मनौती मान। मनौती माने के बाद भी जब माता नइ गिस। पुजारी मन के पूछे ले देवनाथ बतइस कि एक दिन मंय ह दारू पी के छिंद पेड़ ल लतिया दे रहेंव तेखर फल ल भोगत हंव। तब भक्त मन किहिन कि अब तंय बाबू अगरबत्ती अऊ नरियर धर के देवी के शरण म जा के माफी मांग। अइसने करिस देवनाथ ह। देवी के किरपा ले दू दिन के बाद देवनाथ के बदन ले माता चले गे। अइसन महिमा वाली जगदलपुरहीन देवी माँ छिन्द वाली श्री महाकाली के दर्शन करे खातिर लोग मन दूरिहा दूरिहा ले पहुंचथे।


दुर्गा प्रसाद

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