Saturday 4 June 2022

सरला शर्मा: गुनान *****

  सरला शर्मा: गुनान 

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      साहित्य होवय चाहे राजनीति होवय चाहे धर्म के विचार धारा होवय तुलना होबे च करथे फेर कभू कभू तुलना करत खानी समय सीमा ल मनसे मन भुला जाथें , इही देखव न इटली के मैकियावली ल " अपन युग के शिशु " कहिथें त ओकर तुलना चाणक्य से करथें ...काबर के मेकियावली के युग मं यूरोप के राजनीति हर नवा विचार संग केरवट लेवत रहिस जइसे चाणक्य के समय भारत के राजनीति अउ समाज मं बड़का बदलाव देखे बर मिलथे गुने लाइक बात एहर आय के इटली के मेकियावली के काल ले चाणक्य के काल हर सत्रह सौ साल पहिली के आय ।ये तुलना या कहिन समानता के कारण चाणक्य के साम , दाम , दंड , भेद के नीति हर आय जेहर शेक्सपीयर के " एवरीथिंग इज फेयर लभ एंड वॉर " या कहिन " बाय हुक आर क्रुक " के संगवारी असन लागथे फेर हमन " जेकर लाठी तेकर भैंस " कहि के शक्ति के सिद्धांत ल घलाय तो मानत आवत हन । तभो मन उसखुस करे लागथे काबर के तब के भारत के बदलत राजनीति अउ समाज आज के बदलाव ले कुछ जादा अलग तो रहिस नहीं । 

     मूल बात एहर आय के संसार के कोनो भी देश होय भाषा कोनो भी होय मनसे के सोच तो अलग नइ होवय , कुर्सी के लोभ , राज करे के मनसुभा , सकल सम्पदा ल अपने कोठी मं भरे के लोभ तो सबो जघा एके असन होथे गड़बड़ इही आय । मन गुने बर सुरु करथे के राज पाठ , धन दोगानी , इज्जत सफलता पा लेना ही हर सब आय का ? अतका सब पा के कोन जुग मं कोन मनसे अमर होगिस ? राजनीति इही मेर हार जाथे तब सुरु होथे जनम जीवन सकारथ करे के विचार जेला दार्शनिक चिंतन कहिथन ...। कमोबेश सबो दार्शनिक मन अपन समय के समाज , सामाजिक मान्यता , जन जीवन उपर विचार करके अपन सिद्धान्त बनाईन ठीक बात आय न ? तभो तो अंतर मिलथे जइसे सुकरात के सामाजिक मान्यता ले आघू नैतिकता ल गुनिन प्लेटो ओकरो ले आघू सामाजिकता अउ नैतिकता बर सोचिन अरस्तू फेर एदारी सोच मं बदलाव आइस के अरस्तू पूरा पूरी नैतिकता अउ धर्म आधारित आदर्श के संग समाज अउ राजनीति मं युगीन व्यवहार ल मान्यता दिहिन । 

   हमर भारत मं चाणक्य के सिद्धांत आदर्श अउ विद्रोह के संग राजनीति अउ अर्थनीति मं जन जीवन के सामाजिक सरोकार ल जघा दिहिन । चन्द्रगुप्त मौर्य ल आदर्श राजा के रूप मं  स्थापित करिन फेर आम आदमी के दुख सुख ल घलाय तो देखिन ...। आज के युग मं महात्मा गांधी के राजनीति , समाजनीति अउ अर्थनीति ऊपर धियान देइ त उन राम राज्य ल साकार करे के बात कहिन उही आदर्शवादिता ल तो आधुनिक राजनीतिज्ञ मन अपनाए नइ सकिन ..कारण चाहे जौन होवय , गलती तो होबे करिस न ? आज फेर देश दिशाहीन होए लगे हे काबर के जन जन के हित सोचे के बलदा उही साम , दाम , दंड , भेद अपना के कुर्सी पोगरियाये के चलागत तो फेर चले लग गए हे । राजनीति के ए हाल हे त समाज से , जन जन से नैतिकता के उम्मीद कइसे करे जा सकत हे ? हर हाल मं सत्ता हथियाये के चाल हर समाज के सबके विकास कइसे करही ? अइसन परिस्थिति मं आम जनता से धर्म , नैतिकता , ईमानदारी के उम्मीद दोहरी चाल होही न जेला कहिथन हाथी के दांत  खाए के अलग देखाए के अलग । 

   महात्मा गांधी इही पाय के तो कहे रहिन के कथनी अउ करनी एक होना चाही जेन आदर्श के बात हम करबो ओला आचरण मं व्यवहार मं उतारबो तभे तो लोगन सीखहीं , अनुकरण करहीं । ए विचार संसार के सबो देश राज के मनसे मन ऊपर लागू होथे । एकर उल्टा होथे त प्लेटो ल देश निकाला मिलथे , सुकरात ल प्राणदण्ड मिलथे अउ महात्मा गांधी ल गोली लगथे । इन सबो झन अउ इनमन असन आउ सबो विचारक , दार्शनिक मन अपन युग के शिशु होथें । 

    युग कोनो होवय , देश कोनो होवय , भाषा धर्म समाज कोनों होवय सामाजिक नैतिकता के आदर्श के स्थापना तभे होही जब राजनैतिक नैतिकता स्थापित होही काबर के राजनैतिक अनैतिकता हर समाज ल भी उही अनैतिकता डहर ले जाबे च करही । 

    सरला शर्मा

      दुर्ग

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विचार


 *आज फेर देश दिशाहीन होय लगे हे*.......अतेक सुग्घर फेर राजनीतिज्ञ मन बर एकदम करू-करू दवई कस। राजनैतिज्ञ मन हरू-हरू हो गे हें अउ दीदी के दवई हे करू-करू! ओमन तो मीठ-मीठ खावत हें- हवई जहाज म उड़त हें अउ मीठ-मीठ खा के मिठलबरा घलो हो गे हें!......ओमन के आँखी मुंदाय हे......अफगानिस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान जइसन देश के का हाल होवत हे अउ अभी हे-एला देखे के फुरसत कहाँ हे ओमन ला?- हाईकमान के जयकारा म सब बूड़ गे हे.....चुनावी सफलता ला अपन भगवान मनइया राजनीतिज्ञ मन एला काबर नि देख पावँत हें कि साम्प्रदायिका के आगी ह ओहु मन ला तको अउ देश ला जला सकत हे! आगी ला बारे बर ओमन माटी तेल अउ माचिस ला लेके घुमत हें अउ जगा-जगा म जयकारा लगवावत हें। बड़े-बड़े विज्ञापन अउ मिडिया प्रचार के बाढ़ आ गे हे- आम आदमी समझ नि पावत हे कि सही का हे अउ गलत का हे?

    आजादी के बाद 1990-91 म देश ह गड्ढा म गिरत-गिरत बाँचे हे। ओ समय हमू मन पेट्रोल-डिजल बर वोइसने लाइन लगावत रहेन जइसे आज श्रीलंका म देखे ला मिलत हे! आरक्षण के आगी म ओ समय हजारों युवा म धू-धू करके जल गिन।......फेर दीदी! हमन ला भुलाय के आदत हे-कतको दुःख ला भूल जाथन।एहा सही घलो हे....... अब ओकर ले कुछु नि सीख पावत हन त एहा हमर गलती हे! गलती ला सुधारे बर परही.....नई तो हमर देश घलो पाकिस्तान, श्रीलंका अउ अफगानिस्तान कस बरबादी के रद्दा म आघू बढ़ही जेल रोक पाना राजनीतिज्ञ मन के पहुँच ले बाहिर हो जाही!

       एकदम सही बात लिखे हॅव दीदी! कि... *युग कोनो होवय, देश कोनो होवय, भाषा, धर्म, समाज कोनो होवय, सामाजिक नैतिकता के आदर्श के स्थापना तभे होही जब राजनैतिक नैतिकता स्थापित*    *होही*।

 


           - विनोद कुमार वर्मा

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