Saturday 4 June 2022

हमर पूर्वाग्रह के एकठन नानकुन पड़ताल-*

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*हमर पूर्वाग्रह के एकठन नानकुन पड़ताल-*




                   

 *बने निकता डाक्टर*                                  ----------------------------


*" ये साले छत्तीसगढिया मन कुछू जानथें भला?बासी के खाने वाला मन..!"*


*"फुलझर...!"मोर अवाज हर थोरकुन खर हो गय रहिस।*


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         फुलझर के कुला म बनेच बड़े केशटुटी हो गय हे । बनेच चउक -चाकर ल थरोय हे।दई हर लिरबिटी जरी ल चिक्कन पीस के लेपन लगा दिस। कुछु नई होइस। आगू दिन गहुँ आटा ल बने गूंथ के ,केश टूटी उपर पकनहा छाबिस, फेर थोरकुन मुहड़ा छोड़ देय रहिस।अइसन करे ल , आटा हर चिरमोट थे,अउ मुहड़ा म ल सफाई हो जाथे। फेर इहाँ कुछु नइ होइस।


"बेटा, तोर देहे हर वज्रर ये।ये कुछु भी देशी दवई मन काम नइ करत यें। नहीं त नानमुन पिरकी केश टूटी मन तो एमे ,एके दिन म पाक फुट के बरोबर हो जाथे ।"


"दई टपकत हे, ओ..!"फुलझर किल्ली- गोहार पारत रहिस। 


"का करहां बेटा, जतका जानत रहंय ,वोतका सब ल तो बउर दारय,फेर कामे नई करत ये।"महतारी घलव रोनरोनही हो गय रहिस।


                  तब वोकर सियान मोला बलवाय रहिस।


" कइसे बने भला चंगा तो रहे,बाबू।का हो गय तोला।" मंय अब्बड़ मयारुक बनत कहंय,वोकर हाथ ल धरत।


" केशटुटी...!" फुलझर के बदला म वोकर सियान कहिस।


" ये कहाँ करा हो गय जी..!" मोर मया हर अबले घलव चुचुवाते रहिस।


" वोला वोइच बताही..।" वोकर सियान कहिस थोरकुन हाँसत ।


             मैं थोरकुन ओकर कपड़ा ल हटा के देखे के कोशिश करें ।तव बोहर बल भर के मना करत मोर हाथ ल ठेलिस।


" तँय डॉक्टर उवा कुछु अस का। देख के तँय का करबे।" फुलझर थोरकुन कड़कत कहिस।


"तब मंय, तोर फिर का सेवा करों ,बाबू साहब। " मंय वोला कहंय ।


" येला शहर ले जा बेटा, डाक्टरी इलाज लागही, कहू लागत हे..!" वोकर सियान कहिस।


" लागही कहू लागत हे, कहथे ..! देखत नइ ये हालत ल..!!" फुलझर कड़क जात रहिस।


" ये बबा गा, ले जा तो येला शहर।देखवा दे बने डॉक्टर ल ।"वोकर सियान कहिस।


" कका, तँय काबर नइ ले गय।" मोला तो शहर जाय के नाव  म ही मजा आये के शुरू हो गय रहे। राजू होटल के समोसा अउ कढ़ी मोर ,आँखी के आगू म झूल गइन ।


"अरे ये टुरा -बाँड़ा, मनखे छाँटत हे।अउ तोला बलवाय हे।"वोकर सियान थोरकुन रोसियावत कहिस।



              येती अपन उपयोगिता सिद्ध होये ले महुँ बहुत खुश होवत रहंय। 



                  झटकुन झोला -झंडा साईकल म ओरमा के हमन निकल गयेन, शहर कोती। ले- दे के फुलझर ल सायकल के आगू डण्डा   म बइठारें मंय,अउ सायकल ल आंटे लागैं । सड़क हर रहिस, हमर छत्तीसगढ़िया,  अउ हमर छत्तीसगढ़ हर बिहार तो होइस नहीं,जिहाँ के सड़क मन हे*-मा*नी के गाल आसन चिक्कन रथिन।खंचवा-डबरा सड़क हमर। सायकल हर गड्ढा म उतरे तब बैकुन्ठ के सुख ल ,शायद फुलझर हर पाय ,तब तो वोकर मुख ल..ये दद्दा रे..!ये द ..दई ओ..!! बरोबर निकलत रहीस ।वोहर आज ददा अउ दई  ल बड़ सुमिरत रहीस।


" ये दद्दा रे..!!अब मारीच डारबे का..?"फुलझर मोर बर अब्बड़ अकन रोसियावत रहे।


"  कइसे का हो गय भई..!" मैं साईकल ल बिरिक मारत कहंय।


" कइसे का हो गय, भई कहथस । इहाँ तीनो पुर ल देख डारे न।रोक रोक सायकिल ल।मंय पाछु म बइठ हं ।"फुलझर तो एकदम बम्म हो गय रहय।


"ले त पीछू म बइठ।"मंय कहें अउ वोकर बहां ल धर के पीछू कैरियर म बइठार देंय।



                फेर वोकर से का होना रहिस।फेर कुछु नइ होइस ,कहना हर घलव उचित नोहे।जउन बुता ल लिरबिटी के जरी,आंटा के लेपन मन नइ कर पाँय रहिन ।वोला सायकिल के कैरियर हर कर दिस।



          अब  वोला शहर मंय लेके जावत हंव तब मोला तो पता रहही कि कहाँ ले जाना हे। मंय वोला, हमरे गांव तीर के  एक झन बने पढ़इया लइका हर पोठ डाक्टरी पढ़ के,शहर म जउन अस्पताल खोले हे, उहाँ ले गएं ।



        डॉ 0 राधेश्याम सिदार हर अपन जान चिन्ह के बढ़िया भाव दिस।अउ तुरत ताही जांच करे लागिस।


"येकर केश टूटी हर तो फुट गय हे।चीरा लगाय के जरूरत नइये। अपने आप सफाई हो गय हे।मंय ड्रेसिंग करवा देत हंव। अउ ये दवाई ल खरीद लिहा बजार ले।" डॉक्टर कहिस। फीस पुछेव तब डॉ0 सिदार हर खुद हाथ जोड़ लिस।मोर इलाका के चिन्हार मनखे तँय आय हस अउ मोर कुछु खर्चा नइ होय ये,तब फीस कइसन..?



       मंय तो धन्य हो गएं। विश्वास कर के इहाँ ले आने रहें।अउ डॉक्टर हर नइ चिंनहतिस अउ भाव नइ देथिस तब मंय का करथें।


     


            फेर येती  मन आही तब न..!


"चल वोती ,बने इलाज नइ होइस।"फुलझर झरझराइस।


"कइसे ..?"


" ये साले छत्तीसगढ़ीया मन कुछू जानथें।बासी के खाने वाला मन..!"


"फुलझर...!"मोर अवाज हर थोरकुन खर हो गय रहिस।


" एक ठन  सूजी  तक नइ मारिस हे।अउ हो गय इलाज ।"


"त अब कइसे करबो..!"


"अउ कइसे करबो।चल  कनहु बने डॉक्टर करा चल ।"


" तँय जानथस कनहु ल.."


"नहीं.. फेर अब कन्हू छत्तीसगढ़िया करा झन ले के जाबे। वोमन ल कुछु नइ आय।"


      


        अब तो मरना हो गय रहे। वोला सायकल म बइठार के बढ़िया डॉक्टर के खोझार करना रहिस,फेर शर्त रहिस के वोहर छत्तीसगड़ीया झन रहय।


          सड़क म चलत नाव के तख्ती मन ल पढ़त आगू बढ़त रहेन।इलाज फुलझर ल कराना रहिस।ते पाय के वोकरेच निर्णय हर ठीक रहिस।एक दु ठन नाव मन ल  पढेंन,फेर ये नाम मन नइ जचिन।


            आगू बढ़ेंन..।फुलझर एक ठन नाव ल हाथ के इशारा म बताइस अउ कहिस-ये नाम हर बने लागत हे।


          वो नाम ल महुँ पढेंव- डॉ० जितेन्द्र र*तोगी।


"अरे फुलझर,ये डॉक्टर के नांव हर खुद रोगी कस लागत हे रे।"मंय थोरकुन चकरावत कहंय।


"नही... नही इहर ठीक लागत हे।"वो कहिस। 


      अब भला मंय काबर बात ल काटथें ।


                   अंदर गयेन।धड़ाधड़ इलाज शुरू।अरे!छोटे ऑपरेशन अउ क्यूरेटेज लागही।"


"का होही..!कर देवा बबा।"


            अनेशथेसिया -भोथवा लग गय।तभो ले किल्ली गोहार..!


" हैवी एंटीबायोटिक दे।जल्दी सुखाही।"


"हो गय ,सर।"


             नर्स सांय सांय सूजी मारत हे।


"टेस्टोस्टेरोन दे।घाव जल्दी भरही।"


"सर टेस्टोस्टेरोन..?"


"अरे दे,नॉर्म म नइ ये तभो ल दे।जल्दी बने होही तब तो फिर इहाँ आही।"


"जी..!"


"अउ सुन,स्टेरॉयड घलव दे,येला तुरत फुरत बने लागही।"


  


            इलाज होवत रहिस।फेर पहिलाच बिल ल पटा के पईसा ल छेवर कर डारे रहेंव।


          वो गॉंव के बंशी ल देखें त कका ल शोर पठोय अउ रुपिया लाने बर।



*रामनाथ साहू*



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