Friday 10 June 2022

सुरता ..डॉ. निरुपमा शर्मा


 

सुरता ..डॉ. निरुपमा शर्मा

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       जेठ महीना के रात तो आय बिक्कट गरमत हे त कूलर नहीं त एसी चला लेवव भाई फेर मन मं तो सुरता के बादर गरजत , घुमड़त हे ...अब उम्मर हो गए हे ते पाय के बरसा बादर ल सहे ताकत घलाय कम हो गए हे । 

  31 मई निरुपमा दीदी के जनमदिन रहिस , गोठ बात होइस , उन बताइन तीन ठन किताब तियार हे जल्दी करत हंव छपवाए बर वैभव प्रकाशन जाए के सोचत हंव । दुर्ग अवइया हंव "सरला ! 2018 मं तैं हर डॉ. निरुपमा शर्मा ... समग्र कार्यक्रम करवाये रहे उही तरह रायपुर मं आयोजित करवा दे । " थोरकुन सकपका गएंव काबर दुर्ग मं रहिके रायपुर मं कार्यक्रम तो मोर से होही नहीं ...मोला चुप जान के हांसिन " अरे भाई ! गाइडेंस कर देबे न ..तोला घेरी बेरी रायपुर आए बर थोरे कहत हंव ...। " जीव बांचीस रे गुन के हांसेव ...। आज 7 जून के धरा रपटी चल दिहिन ...गुनत हंव जिजीविषा तो जगर मगर करत रहिस त का होगिस के सांस अतेक जल्दी सिरा गिस ? सियान मन कहिथें न मरण कोन दिशा ले कब ,कोन रुप धर के आही कोनो जाने नइ सकयं । 

  छत्तीसगढ़ी के प्रथम मंचीय कवयित्री रहिन ...त " पतरेंगी " पहिली छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह आय जेकर विशेषता हे के ये संग्रह मं करमा , ददरिया , पंथी , देवारगीत , भजन संग्रहित हे । अधिकांश रचना मन कविसम्मेलन मन मं प्रस्तुत भी होवत आये हें । 

    " रितु बरनन " शास्त्रीय ऋतु वर्णन पद्धति पर आधारित कृति आय सवैया छंद मं लिखे रचना गेय गुण से सजे संवरे हे । " हमर चिन्हारी " बड़ महत्वपूर्ण किताब आय काबर के एमा छत्तीसगढ़ के इतिहास , ऐतिहासिक महापुरुष , लोककला , लोक संस्कृति , लोकगीत मन के जानकारी मिलथे । छत्तीसगढ़ के बारे मं विद्यार्थी मन बर बड़ उपयोगी किताब आय। 

एकरे से लगे लगाय किताब हे " इंद्रधनुषी छत्तीसगढ़ " बीस ठन शोधात्मक लेख एमा संग्रहित हें । छत्तीसगढ़ मं आने प्रान्त ले आके रहइया , बसइया मन के बोली भाषा , रहन सहन के जानकारी पुरौनी मं मिल जाथे किताब पढ़इया मन ल । 

   छत्तीसगढ़ का ददरिया *** किताब हर शोध ग्रन्थ आय इही किताब के चलते हमन उनला डॉ. निरुपमा शर्मा के रुप मं जानथन , मानथन । ये किताब हर लोक मानस मं बसे ददरिया के लौकिक स्वरूप के अलावा लोक जीवन मं मिंझरे दर्शन , सामाजिकता , समय के महत्वपूर्ण घटना मन ल भी ददरिया मं जोर देहे के महत्वपूर्ण काम करे हे । अवइया दिन मं ददरिया उपर शोध , अनुसन्धान करइया मन बर ये किताब हर मार्गदशक के काम करही । 

  पारम्परिक ददरिया रूप वर्णन , प्रेमपरक , श्रृंगार परक पाए जाथे फेर ये किताब मं भक्ति , राष्ट्रीयता , जीवन दर्शन से सम्बंधित ददरिया उध्दरण सहित मिलथे । 

 हिंदी साहित्य के भंडार भरे मं भी तो उन पिछुवाये नइ रहिन इही देखव न " बूंदों का सागर " , " दत्तात्रेय के चौबीस गुरु " , " चिंतन के बिंदु " , " मूल्य जनक पुराख्यान " आदि कृति ....। 

     छत्तीसगढ़ के महिला साहित्यकार अउ आने विधा मन के पारंगत महिला मन के परिचयात्मक संकलन के दू भाग के सम्पादन अउ प्रकाशन उंकर महत्वपूर्ण काम आय जेकर बर छत्तीसगढ़ के महिला मन उनला कभू भुलाए नइ सकयं ...। 

     डॉ . निरुपमा शर्मा ल कवि सम्मेलन मंच से सुने रहेवं , आकाशवाणी से प्रसारित कार्यक्रम मं भी सुनत आवत रहेंव , भेंट मुलाकात तो कभू होए नइ रहिस ...त सोचत रहें अतेक गुनी ,मानी साहित्यकार संग भेंट होई जाही त उन मोर से बोलहीं के नहीं ? 

   सन् 2007 मं बख्शी सृजन पीठ के तत्कालीन अध्यक्ष बबन प्रसाद मिश्र बताइन के सरला तोर कहानी संग्रह " सत्यं  वद " के विमोचन समारोह मं डॉ. निरुपमा शर्मा आहीं ...मन तो कुलकुल्ला होगिस फेर पेट भर डर अमा गिस ..उही अतेक बड़ महिला साहित्यकार मंच मं बइठे रहिहीं त मोर मुंह ले तो चार आखर घलाय नइ निकलही ? का करवं ? 

सुमन शर्मा बाजपेयी संग उन आइन ...मंझोलन कद काठी , चीटिकन  सांवर चेहरा मं जगर मगर करत, करिया फ्रेम के चश्मा ले झांकत आँखी ...मनसे ल मया के धार मं चिभोरत पातर पातर ओंठ मं बिजली कस लौकत हांसी , सबले जादा बने लागिस छत्तीसगढ़िया दाई , दीदी , भौजी मन असन मूंड ढांक के पहिरे कोसाही लुगरा ...।  

   ओ दिन मैं मंच मं काय , कतका बोलेवं तेकर सुरता तो आजो नइये ...फेर मन मं अमाये डर , संकोच घुंच गिस उही दिन समझेवं के ज्ञान हर अहंकार ल जीत लेथे तभे मनसे अपन ले छोटे मन ल , नवा लिखइया मन ल मया , दुलार , असकारा  देके आघू बढ़ाए के उदीम करथे फेर का डॉक्टर निरूपमा शर्मा तो दीदी बन गिन ...। जब भी भिलाई , दुर्ग आना होवय मोर घर ही डेरा रहय ....गोठ के गाड़ा ढिला जावय , भिनसरहा सोवन फेर बिहनिया उठ के नियमित योग , प्राणायाम करतिन , लौकी के रस पीतिन , मोला धमकातिन " उम्मर होवत हे चीटिक योग , व्यायाम करे सीख, होत बिहनिया ले आधा रात तक चाय पियाई ल कम कर ..अउ हां सबले बड़े बात रात जगाई ल छोड़ ....। " 

 " दीदी ! उल्लू तो रात के जागबे करही न तभे तो कुछु काहीं लिखही ,  नहीं निदान पढ़ही ..." 

मोर बात समंगल सिराये नइ पाए रहिस के दीदी हांस के कहिन " अच्छा तभे  तोर फेस बुक मं 

रात जागा पाखी लिखत रहिथे । " 

    दीदी ! रात के तीन बज गिस आज मोला खिसियाये बर कोनो नइये ...। 

एदे रे ...गुंगुंवावत सुरता के बादर हर अब बरसे बर सुरु कर दिस ....

  सरला शर्मा 

   दुर्ग

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सुरता म



*मँझली तोर बहुरिया*

           - डाॅ निरुपमा शर्मा


मँझली तोर बहुरिया ममादाई,

मँझली तोर बहुरिया ह वो।

रांधे गढ़े के नइये ठिकाना,

माँजथे पइरी अउ बिछिया ममादाई।

मँझली तोर बहुरिया ह वो..


मइके के बड़ई म चलावथे चरखा

अड़बड हावे चटरही।

गोठे बाते ह गाड़ा म समाय नइ

लाहो लेवथे पचरही।

कांदी लूवथे, पीयथें पसिया,

मइके मा संझा बिहनिया ममादाई

मँझली तोर बहुरिया ह वो


लाली कोर लुगरा अउ गहना पहिर के

मटकथे अंगना दुवारी।

भुइयाँ मा सुत के सरग के हे सपना

देखत हवै अपनसुर्री।

मुँह ला फुलोये अउ नखरा देखाथे

आथे जब ओकर नंगरिहा ममादाई

मँझली तोर बहुरिया ह वो।


ननंद देरानी के चारी ला करके

दिन रात झगरा लड़ाथे।

एकर ओकर बद्दी ला सुनसुन के

मन ह घलोक बगियाथे।

अइसन पतोहिया के आगी लगे गुन म

तहीं हस रद्दा बतइया ममादाई

मँझली तोर बहुरिया ह वो


मंझली तोर बहुरिया ममादाई,

मँझली तोर बहुरिया ह वो

रांधे गढ़े के नइहे ठिकाना,

मांजथे पइरी अउ बिछिया ममादाई

मँझली तोर बहुरिया ह वो।


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रचना:डाॅ निरुपमा शर्मा के कृति *पतरेंगी* से

प्रस्तुति- बलराम चन्द्राकर


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निरुपमा दीदी की यादें

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निरुपमा शर्मा छत्तीसगढ़ की पहिली मंचीय कवियत्री थी।

मैं उनको 1973-74 से देख रही थी। मेरी मुलाकात 1991 में डा. सत्यभामा आड़िल दीदी के घर पर हुई थी। उसके बाद मेरी मुलाकात होती रही।

2002 के आसपास दीदी.ने एक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था बनाई थी।.उसके बनाने के विचार को लेकर मेरे घर आई थी मुझसे चर्चा करने के.लिये। उसके बाद संस्था के बनने के बाद मेरे घर आई थी कार्ड देने के लिये। बहुत ही बढ़िया कार्यक्रम हुआ था। उसी समय मेरी मुलाकात मीता अग्रवाल से हुई थी।। 2009 से मेरी मुलाकात ज्यादा होने.लगी। एक बार मुझे पुसँतकें देने मेरे घर.आई थी क्योंकि किसी शोधार्थी को जरुरत थी। मैने 12 महिलाओं का साक्षात्कार लिया था उसमें एक दीदी भी थीं।

मैं 2008 से एस सी ई आर टी जाने.लगी थी तब वहाँ भी मेरी मुलाकात होती थी।

उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षित करता था। हमेंशा सिर पर पल्ला और शर्मिली सी हँसी। आज भी मुझे वही दिखता है।कुछ सालों से  मैं मो. पर ही बात कर रही थी।

साहित्यकारों के परिचय की पुस्तक छपी उसमें मेरा भी नाम है। उसकी समीक्षा मैं की थी और कुछ कमियाँ भी बताई थी। दीदी ने इसे सकारात्मक रूप से लिया और अगली बार इस बात का ध्यान रखुंगी बोलीं। मेरे सिर का बोझ कम हो गया। दीदी की कमियां बताना भी जिगर का काम था।

कुछ महिने पहले भी बात हुई थी तभी बताईं कि एक संकलन साहित्यिकारों का निकाल रही हूँ। धीरे धीरे काम हो रहा है। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।

इस तरह से अचानक चले जाना बहुत ही दुखद रहा। मुझे छोटी बहन की तरह ही लाड़ प्यार दोनों मिला। आशिर्वाद तो हमेंशा साथ था। उनके जाने से एक इतिहास समाप्त हो गया।

सुधा वर्मा


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